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मास्टर परिपत्र - गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी लेखा परीक्षक की रिपोर्ट (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998

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भारिबैं.2008-09/4
गैबैंपवि.(नीप्र)कंपरि.सं. 118/03.02.001 /2008-09

01 जुलाई 2008

अध्यक्ष/मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ(भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45
आइ (एफ) में यथा परिभाषित)

अध्यक्ष, भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान

प्रिय महोदय

मास्टर परिपत्र - गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी लेखा परीक्षक की रिपोर्ट (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संबंध में निदेश 2 जनवरी 1998 को अधिसूचना सं.डीएफसी. 117/डीजी (एसपीटी)-98 द्वारा जारी किये गये। उक्त अधिसूचना 30 जून 2008 की स्थिति के अनुसार अद्यतन रूप में दी जा रही है।

भवदीय
(पी.कृष्णमूर्ति)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक


भारतीय रिज़र्व बैंक
गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग
केंद्रीय कार्यालय
सेंटर -1, विश्व व्यापार केंद्र
कफ परेड, कोलाबा
मुंबई-400005

अधिसूचना सं. डीएफसी 117/डीजी(एसपीटी)-98 दिनांक 2 जनवरी 1998

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 45 एमए की उपधारा (1ए) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक एतद्द्वारा प्रत्येक लेखा परीक्षक को इसके आगे विनिर्दिष्ट निदेश देता है।

1.निदेश का संक्षिप्त शीर्षक, अनुप्रयोग और प्रारंभ
(i) इन निदेशों को "गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी लेखा परीक्षकों की रिपोर्ट (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998" के रूप में जाना जाएगा।
(ii) ये निदेश भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 (1934 का 2) की धारा 45आइ(एफ) में यथापरिभाषित गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के प्रत्येक लेखा परीक्षक पर लागू होंगे।
(iii) ये निदेश 2 जनवरी, 1998 से लागू होंगे।

2.लेखा-परीक्षक की रिपोर्ट - पैराग्राफ 3 और 4 में विनिर्दिष्ट विषयों को शामिल करें
इन निदेशों के प्रारंभ होने के दिन अथवा उसके बाद से किसी दिन समाप्त होनेवाले प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए लेखा परीक्षक द्वारा कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 227 के अंतर्गत किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के परीक्षित लेखा पर दी गई प्रत्येक रिपोर्ट के अलावा उसे नीचे दिए गए पैरा 3 और 4 में विनिर्दिष्ट विषयों पर अलग से भी एक रिपोर्ट कंपनी के निदेशक मंडल को देना होगा।

3. लेखा परीक्षक की रिपोर्ट में शामिल किए जानेवाले विषय
गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी के लेखे पर लेखा परीक्षक की रिपोर्ट मे निम्नलिखित विषयों पर एक विवरण शामिल किया जायेग, यथा:
(अ)सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के मामले में
यदि कंपनी 9 जनवरी, 1997 के पहले संस्थापित की गई है तो क्या कंपनी ने पंजीकरण के लिए आवेदन किया है जैसा कि भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 45 आइए में प्रावधान किया गया है और क्या कंपनी को भारतीय रिज़र्व बैंक की ओर से उसे पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदान किए जाने अथवा इनकार किए जाने के बारे में कोई सूचना प्राप्त हुई है, और यदि कंपनी 9 जनवरी, 1997 को या उसके बाद संस्थापित की गई है तो क्या कंपनी ने भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त किया है।
(आ)जनता की जमाराशियां स्वीकार करनेवाली/रखनेवाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के मामले में
ऊपर (अ) में उल्लिखित मामलों के अलावा लेखा परीक्षक निम्नलिखित मामलों को एक अलग विवरण में शामिल करेगा, यथा :-
(i)क्या कंपनी द्वारा स्वीकार की गई जनता की जमाराशि नीचे दर्शाए गए अन्य उधारों के साथ है, अर्थात्
(क) जनता से प्रतिभूति-रहित अपरिवर्तनीय डिबेंचरों/बांडों के निर्गम द्वारा
(ख) किसी पब्लिक लिमिटेड कंपनी द्वारा अपने शेयर धारकों से और
(ग) अन्य प्रकार की कोई जमाराशि जिसे गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998 में दी गई ‘जनता की जमाराशि’ की परिभाषा से बाहर नहीं रखा गया है
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998 में दिए गए प्रावधानां के अनुसार कंपनी के लिए स्वीकार्य सीमाओं के भीतर है;

      1[(iए) क्या कंपनी द्वारा रखी गई जनता की जमाराशियां गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी जनता की जमाराशि स्वीकृति (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998 के प्रावधानों के अंतर्गत अनुमत मात्रा से अधिक होने पर उन्हें इन निदेशों में बताए गए तरीके के अनुसार नियमित किया गया है;]

      (ii) क्या क्रेडिट रेटिंग एजेंसी, अर्थात् ------------- (एजेंसी का नाम) द्वारा ------------------(दिनांक) को मियादी जमाराशियों के लिए समनुदेशित ------------------(रेटिंग का उल्लेख करें) क्रेडिट रेटिंग लागू है और क्या वर्ष के दौरान कभी भी बकाया जमाराशियों की कुल राशि रेटिंग एजेंसी द्वारा निर्दिष्ट सीमा से अधिक हुई है;
      (iii) क्या कंपनी द्वारा अपने जमाकर्ताओं की जमाराशियों पर ब्याज और/अथवा मूलधन देय होने के बाद ब्याज और/अथवा मूलधन की राशि के भुगतान में चूक हुई है;
      (iv)
      क्या कंपनी द्वारा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998 के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी निदेशों में निर्दिष्ट किए गए अनुसार आय निर्धारण, लेखा मानकों, परिसंपत्ति वर्गीकरण, अशोध्य और संदिग्ध ऋणों के लिए प्रावधानीकरण और ऋण/निवेशों के संकेंद्रण से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंडों का अनुपालन किया गया है;
      (v)
      क्या जैसा कि भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की गयी विवरणी में यथाघोषित पूंजी पर्याप्तता अनुपात गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998 के अनुसार सही-सही निर्धारित की गई है और क्या यह अनुपात भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित न्यूनतम पूंजी के जोखिम परिसंपत्ति अनुपात का अनुपालन करता है;
      (vi)
      क्या कंपनी ने निर्धारित चलनिधि अपेक्षाओं का अनुपालन किया है और किसी नामित बैंक में अनुमोदित प्रतिभूतियों को रखा है।
      (vii)
      क्या कंपनी ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी विवेकपूर्ण मानदड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998 में विनिर्दिष्ट विवेकपूर्ण मानदंडों पर नियत अवधि के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक को छमाही विवरणी प्रस्तुत की है; और
      (viii) क्या कंपनी ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998 की पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट जमाराशियों से संबंधित विवरणी नियत अवधि के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की है।

2[(ix) जमाराशियों की वसूली के लिए नई शाखाएं अथवा नए कार्यालय खोले जाने के मामले में और एजेंट की नियुक्ति के मामले में क्या कंपनी ने अधिसूचना सं.डीएफसी 118/डीजी(एसपीटी)-98 दिनांक 31 जनवरी, 1998 में अंतर्निहित गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी जमाराशियां स्वीकृति (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998 में निर्दिष्ट अपेक्षाओं का अनुपालन किया है ]

(इ)जनता की जमाराशियां स्वीकार नहीं करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के मामले में
ऊपर (अ) में गिनाये गये पहलुओं से अलग, लेखा परीक्षक को निम्नलिखित विषयों पर एक विवरण शामिल करना होगा, यथा:
(i) क्या निदेशक मंडल ने जनता की कोई जमाराशि स्वीकार नहीं करने के लिए कोई संकल्प पारित किया है।
(ii) क्या कंपनी ने संबंधित अवधि/वर्ष के दौरान जनता की कोई जमाराशि स्वीकार की है; और
(iii) क्या कंपनी ने आय निर्धारण, लेखा मानकों, परिसंपत्ति वर्गीकरण और अशोध्य तथा संदिग्ध ऋणों से संबधित उन विवेकपूर्ण मानदंडों का अनुपालन किया है, जो कि उस पर लागू होते हैं।

(ई)वैसी गैर-बैकिंग वित्तीय कंपनी के मामले में जो जनता की जमाराशियां स्वीकार नहीं करनेवाली निवेश कंपनी है और जिसने अपनी परिसंपत्तियों का कम से कम 90 प्रतिशत दीर्घावधि निवेश के रूप में अपने समूह की धारक/सहायक कंपनियों की प्रतिभूतियों में निवेश किया है।
ऊपर (अ) में उल्लिखित विषयों के अलावा लेखा परीक्षक निम्नलिखित विषयों पर एक विवरण प्रस्तुत करेगा, यथा;
(i) क्या निदेशक मंडल ने जनता की जमाराशियां स्वीकार नहीं करने के लिए कोई संकल्प पारित किया है;
(ii) क्या कंपनी ने संबंधित अवधि/वर्ष के दौरान जनता की कोई जमाराशि स्वीकार की है;
(iii) क्या कंपनी ने बोर्ड के किसी प्रस्ताव के माध्यम से समूह/धारक/सहायक कंपनियों की पहचान की है;
(iv) क्या संपूर्ण लेखा अवधि/वर्ष के दौरान किसी भी समय समूह अथवा धारक अथवा सहायक कंपनियों में किए गए निवेशों की लागत कंपनी की कुल परिसंपत्तियों की कीमत का न्यूनतम 90 प्रतिशत से कम नहीं है।
(v) क्या कंपनी ने समूह अथवा धारक अथवा सहायक कंपनियों की प्रतिभूतियों को दीर्घावधि निवेशों के रूप में रखना जारी रखा है और लेखा वर्ष/अवधि के दौरान उन निवेशों पर कोई व्यापार नहीं किया है।

4.प्रतिकूल अथवा सशर्त विवरणों के लिए कारण बताएं
लेखा परीक्षक की रिपोर्ट में अगर ऊपर दिए गए पैरा 3 में निर्दिष्ट मदों में से किसी के बारे में प्रतिकूल अथवा सशर्त विवरण है, लेखा परीक्षक की रिपोर्ट में ऐसे प्रतिकूल अथवा सशर्त विवरण के कारणों का भी उल्लेख होगा, जैसा मामला हो। अगर लेखा परीक्षक अपनी रिपोर्ट में ऊपर दिए गए पैरा 3 में निर्दिष्ट मदों में से किसी पर कोई अभिमत व्यक्त करने में असमर्थ है, तब उसे संबंधित तथ्यों के साथ उसके कारण बताने होंग।

5.भारतीय रिज़र्व बैंक को रिपोर्ट करने का लेखा परीक्षक का दायित्व
किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के मामले में जहां ऊपर दिए गए पैरा 3 मं निर्दिष्ट मदों में से किसी के बारे में प्रतिकूल अथवा सशर्त विवरण है, अथवा लेखा परीक्षक की राय में कंपनी ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998 अथवा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998 के प्रावधानों का, जिस सीमा तक उक्त कंपनी पर वे लागू होते हैं, अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 के 2) के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया है, तो लेखा परीक्षक का यह दायित्व होगा कि कि वह गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998 की दूसरी अनुसूची के अनुसार कंपनी के संबंध में, भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय के गैर-बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग को, जिसके क्षेत्राधिकार में कंपनी का पंजीकृत कार्यालय स्थित है, प्रतिकूल अथवा सशर्त विवरण के ब्योरे और/या अनुपालन नहीं किए जाने के बारे में, जैसा भी मामला हो, विस्तृत ब्योरों वाली रिपोर्ट दे।

6.गैर-बैकिंग वित्तीय कंपनी (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998 की प्रयोज्यता
इस आदेश के प्रयोजन के लिए, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (रिज़र्व बैंक) निदेश्श 1998 के संदर्भ में संबंधित अवधि के लिए यथा लागू गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1977 शामिल होगा।

(एस.पी.तलवार)
उप गवर्नर

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