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मास्टर परिपत्र - विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण

 

विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण

भारतीय रिजर्व बैंक /2004-05/153
बैंपविवि औनिऋक. सं. 35 /04.02.02/2000-2001

1 सितंबर 2004

10 भाद्र 1926 (शक)
सभी वाणिज्यिक बैंकों के
अध्यक्ष /मुख्य कार्यपालक

प्रिय महोदय,

मास्टर परिपत्र - विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण

जैसा कि आप को ज्ञात है, भारतीय रिज़र्व बैंक ने उपर्युक्त विषय पर दिनांक 1 जुलाई 2003 के पत्र संदर्भ औनिऋवि. सं. 7/04.02.02/2003-04 द्वारा एक मास्टर परिपत्र जारी किया था ताकि सभी वर्तमान अनुदेश बैंकों को एक ही जगह प्राप्त हो सकें । मास्टर परिपत्र में निहित अनुदेशों को 1 जुलाई 2004 तक अद्यतन बना दिया गया है । संशोधित मास्टर परिपत्र की एक प्रति संलग्न हैं । यह ध्यान दिया जाए कि जहाँ तक बैंकों द्वारा उधारदाताओं को विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण दिए जाने का संबंध है, परिशिष्ट में सूचीबध्द परिपत्रों में निहित अनुदेशों को मास्टर परिपत्र में समेकित करके अद्यतन बना दिया गया है ।

भवदीय

(ए. श्रीकुमारन)
महाप्रबंधक

संलग्नक : यथोपरि


1. पोतलदानपूर्व निर्यात ऋण

2. पोतलदानोत्तर निर्यात ऋण

3. निर्यातकों के लिए गोल्ड काड़ योजना

4. निर्यात ऋण पर ब्याज

*परिशिष्ट


1. पोतलदानपूर्व निर्यात ऋण

1.1 विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण

1.1.1 परिभाषा

‘पोतलदानपूर्व ऋण’ किसी बैंक द्वारा किसी निर्यातक को दिया गया या मंजूर किया गया ऐसा ऋण या अग्रिम है जो भारत से बाहर स्थित किसी आयातक द्वारा निर्यातक या किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में खोले गए साखपत्र के आधार पर या भारत से वस्तुओं के निर्यात के लिए पुष्ट और अपरिवर्तनीय आदेश या निर्यातक या किसी अन्य व्यक्ति को भारत से बाहर निर्यात करने संबंधी आदेश के किसी अन्य साक्ष्य के आधार पर (बशर्ते रिज़र्व बैंक ने निर्यात आदेश दिए गए होने या बैंक में साखपत्र खोले जाने से छूट न दे दी हो) पोतलदान से पहले वस्तुओं के ाय, प्रसंस्करण, विनिर्माण या पैकिंग कार्यों के लिए अपेक्षित वित्त के रुप में उपलब्ध कराया गया हो ।

1.1.2 सामान्य

निर्यातकों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी दरों पर ऋण उपलब्ध कराने की दफ्ष्टि से प्राधिवफ्त व्यापारियों को इस बात की अनुमति दी गयी है कि वे निर्यातकाें को निर्यातित वस्तुओं के लिए इस्तेमाल होने वाली देशी या आयातित सामग्री के लिए लिबॉर / यूरो लिबॉर / यूरीबॉर से संबद्ध दरों पर विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण दें ।

1.1.3 योजना

(व) यह योजना भारतीय निर्यातकों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी ब्याज दरों पर पोतलदानपूर्व ऋण उपलब्ध कराने के लिए एक अतिरिक्त सुविधा है । यह केवल नकदी निर्यातों के मामले में लागू होगी ।

(वव) निर्यात वित्त प्राप्त करने के लिए निर्यातकों के पास निम्नलिखित विकल्प उपलब्ध होंगे :

क) वह पोतलदानपूर्व ऋण रुपये में ले और बाद में पोतलदानोत्तर ऋण तो रुपये में ले या निर्यात बिल पुनर्भुनाई योजना के अंतर्गत (जिसका विवरण पैरा 2.2 में दिया गया है) निर्यात बिलों की बट्टे पर भुनाई /पुनर्भुनाई कराए ।


ख) पोतलदानपूर्व ऋण विदेशी मुद्रा में ले और निर्यात बिल पुनर्भुनाई योजना के अंतर्गत निर्यात बिलों की विदेशी मुद्रा में बट्टे पर भुनाई / पुनर्भुनाई कराए ।

ग) पोतलदानपूर्व ऋण रुपये में ले और बैंक के विवेकानुसार आहरणों को विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण में परिवर्तित करे ।

(ववव) मुद्रा का विकल्प

क) यह सुविधा परिवर्तनीय मुद्राओं (अमेरिकी डालर, पौंड स्टर्लिंग, जापानी येन, यूरो इत्यादि) में से किसी एव मुद्रा में उपलब्ध करायी जाए ।

ख) यह उचित होगा कि बैंक किसी दूसरी परिवर्तनीय मुद्रा में इनवॉयस किए हुए निर्यात आदेश के मामले में किसी भी एक परिवर्तनीय मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण दें ताकि निर्यातकों को परिचालनगत लचीलापन उपलब्ध रहे । उदाहरणार्थ यदि किसी निर्यात आदेश का इनवॉयस यूरो में तैयार किया गया है तो निर्यातक अमेरिकी डालर में पोतलदानपूर्ण ऋण ले सकता है । किसी अन्य मुद्रा में लेनदेन करने से संबंधित जोखिम और लागत निर्यातक को वहन करना पड़ेगा ।

(वख्) बैंकों को इस बात की अनुमति दी गयी है कि वे एशियाई समाशोधन संगठन के सदस्य देशों को किए जानेवाले निर्यातों के लिए विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण दें ।

(ख्) निर्यात बिलों की वसूली के बाद या परिणामी निर्यात बिलों की ‘दायित्व रहित’ आधार पर पुनर्भुनाई के बाद ही निर्यातकों को देय सुविधा का लाभ मिल सकेगा ।

1.1.4 बैंकों के लिए निधि का स्रोत

(व) विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण के वित्तपोषण के लिए, बैंकों के पास विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खातों, निवासी विदेशी मुद्रा खातों और विदेशी मुद्रा (अनिवासी) खाता (बैंक) योजना के अंतर्गत उपलब्ध विदेशी मुद्रा शेषों का उपयोग किया जा सकता है।

(वव) बैंकों को इस बात की भी अनुमति दी गयी है कि वे इस प्रयोजन के लिए एसो खातों और निर्यातक विदेशी मुद्रा खातों में उपलब्ध विदेशी मुद्रा शेषों का भी उपयोग करें परन्तु ऐसा करते समय उन्हें यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि अनुमत लेनदेनों के लिए खाताधारकों द्वारा माँगी गयी राशि उनकी जरूरत के अनुसार उन्हें दी जा रही है और व्यापक सुविधा के अंतर्गत खाते में अधिकतम राशि रखने संबंधी अधिकतम सीमा का उल्लंघन नहीं हो रहा है ।

(ववव) विदेशी मुद्रा में ऋण

(क) इसके अलावा बैंक विदेशों से भी ऋण की व्यवस्था कर सकते हैं । बैंक निर्यातकों को विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण देने के प्रयोजनार्थ, रिज़र्व बैंक की पूर्व अनुमति के बिना भी, विदेशी बैंकों से ऋण संबंधी व्यवस्था के लिए समझौता कर सकते हैं बशर्ते ऐसे ऋण के लिए लिया जानेवाला ब्याज छ: माह की अवधि हेतु, लिबॉर /यूरो लिबॉर /यूरीबॉर से 0.75 प्रतिशत से अधिक न हो ।

(ख) बैंक विदेशी बैंकों से लिए गए ऋण का केवल विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण के अंतर्गत निर्यातकों को ऋण प्रदान करने के लिए उपयोग करे । तथापि जिन मामलों में ऋण देने वाले विदेशी बैंक ने आहरण के लिए न्यूनतम राशि निश्चित व ी है (जो बहुत बड़ी राशि नहीं होगी), उनमें बैंक को ऐसे छोटे अप्रयुक्त भाग का प्रबंधन विदेशी मुद्रा संबंधी अपनी समस्थिति और समग्र अंतर सीमा के अंतर्गत करना चाहिए । उसी प्रकार निर्यातक द्वारा किए जाने वाले किसी पूर्व भुगतान को भी विदेशी मुद्रा संबंधी समस्थिति और समग्र अंतर सीमा के अंतर्गत लिया जाना चाहिए ।

(ग) यदि बैंक स्वयं विदेश से ऋण प्राप्त न कर पाएँ तो उन्हें भारत में ही अन्य बैंकों से ऋण लेना चाहिए बशर्ते निर्यातक के लिए ऐसे ऋण पर आनेवाली अधिकतम लागत लिबॉर /यूरो लिबॉर /यूरीबॉर पर 0.75 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए । उधार लेने वाले और उधार देने वाले बैंक के बीच का स्प्रेड संबंधित बैंक के विवेक पर छोड़ दिया गया है ।

(वख्) यदि निर्यातकों ने आयातित सामानों को प्राप्त करने के लिए ‘आपूर्तिकर्ता के ऋण’ की व्यवस्था कर ली है तो बैंक विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण सुविधा निर्यात से संबंधित देशी वस्तुओं के वित्तपोषण के प्रयोजन हेतु ही उपलब्ध कराएँ ।


(ख्) अधिसूचना सं. एफईएमए. 3/2000 आरबी दिनांक 3 मई 2000 के पैरा 4.2 (व) के अनुसार बैंकों को विदेशी मुद्रा निधि का आहरण कर के उपयोग करने की अनुमति दी गयी है तथा वे विदेशी मुद्रा में लदानपूर्व ऋण (पीसीएफसी) प्रदान करने के लिए घरेलू विदेशी मुद्रा बाजार में खरीदी-बिकाई के आदान-प्रदान से विदेशी मुद्रा निधि ला सकते हैं, जोकि रिज़र्व बैंक (विदेशी विनिमय विभाग) द्वारा अनुमोदित सकल अंतर सीमा (एजीएल) के अनुरूप होना चाहिए।

1.1.5 स्प्रेड

(व) विदेशी मुदा्र में दिए जाने वाले पोतलदानपूर्व ऋण पर स्प्रेड लिबॉर /यूरो लिबॉर / यूरीबॉर (6 माह) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ दर से जुड़ा होगा ।

(वव) निर्यातक को दिए जाने वाले ऋण पर लिया जानेवाला ब्याज विथोल्डिंग टैक्स को छोड़कर, लिबॉर/यूरो लिबॉर/यूरीबॉर पर 0.75 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए ।

(ववव) लिबॉर /यूरो लिबॉर /यूरीबॉर दरें सामान्यत: 1,2,3,6 और 12 महीनों की मानव अवधि के लिए उपलब्ध हैं । यदि विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण छ: माह से कम अवधि के लिए चाहिए तो बैंक मानक अवधि के आधार पर दरें कोट कर सकते हैं । तथापि, मानक अवधि से भिन्न अवधि के लिए दरें कोट करते समय बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोट की गयी दर अगली उच्चतर मानक अवधि दर से नीचे हो ।

(वख्) बैंक विदेशी मुद्रा में दिए गए पोतलदानपूर्व ऋण पर, विदेशी मुद्रा की बिाी में से, हर तिमाही के अंतराल पर ब्याज वसूल सकते हैं, या यदि विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण का समापन ब्याज की वसूली व ी तिमाही अंतराल के भीतर ही कर दिया जाता है तो विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाते में से या निर्यात बिलों के बट्टावफ्त मूल्य में से ब्याज की वसूली की जा सकती है ।

1.1.6 ऋण की अवधि

(व) विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण, रुपया ऋण की ही तरह, आरंभ में अधिकतम 180 दिन की अवधि के लिए दिया जाएगा । ऋण की अवधि में कोई भी वफ्द्धि उन्हीं शर्तों पर की जाएगी जो शर्तें रुपया पैकिंग ऋण की अवधि बढ़ाए जाने के मामले में लागू होती हैं और इस पर, अवधि बढ़ाए जाते समय 180 दिन की मूल अवधि के लिए जो ब्याज लागू होता है, उससे 2 प्रतिशत अधिक ब्याज लिया जाएगा ।

(वव) ऋण की अवधि में और अधिक वफ्द्धि संबंधित बैंक द्वारा निश्चित की गयी शर्तों पर होगी तथा यदि 360 दिनों के भीतर निर्यात नहीं किया जा सकेगा तो विदेशी मुद्रा में दिए गए पोतलदानपूर्व ऋण का समायोजन संबंधित मुद्रा की टी. टी. बिाी दर पर कर लिया जाएगा । ऐसे मामलों में संबंधित बैंक विदेश में लिए गए ऋण / की गयी ऋण व्यवस्था की चुकौती / देय ब्याज की चुकौती के लिए विदेशी मुद्रा का प्रेषण कर सकते हैं तथा इसके लिए उन्हें रिज़र्व बैंक से पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।


(ववव) विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण की अवधि 180 दिन से कम समय में बढ़ाए जाने के लिए बैंकों को इस बात की अनुमति दी गयी है कि वे, मूल राशि के निश्चित रोल ओवर आधार पर, बढ़ायी गयी अवधि के लिए लागू लिबोर / यूरो लिबोर / यूरीबॉर दर + अनुमत मार्जिन लें (लिबॉर / यूरो लिबॉर /यूरीबॉर से 0.75 प्रतिशत अधिक) ।


1.1.7 विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण का संवितरण

(व) यदि विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण की पूरी राशि या उसके किसी भाग का उपयोग देशी सामानों के वित्तपोषण के लिए किया जाता है तो बैंक संबंधित लेन देन के लिए उपयुक्त स्पॉट दर लगाएँ ।


(वव) जहाँ तक लेनदेन की न्यूनतम मात्रा का संबंध है, यह बैंकों पर निर्भर करेगा कि वे अपने पास संसाधनों की उपलब्धता का ध्यान रखते हुए अपनी परिचालनगत सुविधा के अनुसार ऐसी न्यूनतम मात्रा स्वयं निश्चित करें । तथापि न्यूनतम मात्रा निश्चित करते समय बैंकों को चाहिए कि वे अपने छोटे ग्राहकों की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखें ।


(ववव) बैंकों को अपनी कार्यविधि और सरल और कारगर बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए ताकि पैकिंग ऋण सीमा प्राधिवफ्त कर दिए जाने के बाद विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण के लिए अलग से मंजूरी की आवश्यकता न पड़े तथा शाखाओं के स्तर पर संवितरण में विलम्ब न हो ।


1.1.8 विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण खाते का समापन

(व) सामान्य

विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण का समापन पैरा 2.2 में दी गयी निर्यात बिल पुनर्भुनाई योजना के अंतर्गत डिस्काउंटिंग/रीडिस्काउंटिंग के लिए निर्यात दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के बाद प्राप्त आय से अथवा विदेशी मुद्रा कर्ज (डीपीबिल) प्रदान

कर किया जाना चाहिए। बैंकर और निर्यातक के आपसी समझौते से इसकी विदेशी मुद्रा खाते (ईईएफसी खाते) के शेष तथा जिस सीमा तक निर्यात हुआ है उस सीमा तक निर्यातक के रुपये कोष से भी चुकौती /पहले ही भुगतान किया जा सकता है ।

(वव) पोतपर्यंत नि:शुल्क मूल्य से अधिक पैकिंग ऋण

कुछ मामलों में (जैसे एच पी एस ग्राउंडनट, डीफैटेड और डीआयल्ड केक, तंबाकू, मिर्च, बादाम, काजू इत्यादि वफ्षि आधारित उत्पाद) जिनमें पोतपर्यंत नि:शुल्क मूल्य से अधिक राशि के पैकिंग ऋण की आवश्यकता पडती है, उनमें विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण, उत्पाद के केवल निर्यात योग्य भाग के लिए ही प्राप्त होगा ।

(ववव) आदेश / वस्तु का प्रतिस्थापन

विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण का समापन किसी अन्य ऐसे आदेश से संबंधित निर्यात दस्तावेजों से भी किया जा सकता है जिसके अंतर्गत निर्यातक द्वारा निर्यात की गई वही वस्तु या कोई अन्य वस्तु शामिल हो । संविदा के इस प्रकार प्रतिस्थापन की अनुमति देते समय बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसा करना वाणिज्यिक दृष्टि से आवश्यक और अपरिहार्य है । बैंकों को उन वास्तविक कारणों के बारे में भी संतुष्ट हो लेना चाहिए जिनके चलते किसी खास वस्तु के पोतलदान के लिए दिया गया विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण सामान्य तरीके से समाप्त नहीं किया जा सकता। जहाँ तक संभव हो, संविदा के प्रतिस्थापन की अनुमति तभी दी जानी चाहिए जब निर्यातक का खाता उसी बैंक में हो या यदि ऋण के लिए सहायता संघ बनाया गया है तो ऐसे संघ ने संविदा के प्रतिस्थापन के लिए अनुमोदन दिया हो।

1.1.9 निर्यात आदेश निरस्त होना /पूरा न कर पाना

(व) जिस निर्यात आदेश के लिए निर्यातक ने बैंक से विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण लिया था, उस आदेश के निरस्त हो जाने पर या किसी कारण से यदि निर्यातक निर्यात आदेश को कार्यान्वित नहीं कर पाता तो यह उचित होगा कि निर्यातक बैंक के माध्यम से देशी बाजार से विदेशी मुद्रा (मूलधन + ब्याज) का ाय करके ऋण और उसपर देय ब्याज चुका दे । ऐसे मामलों में, मूल राशि के बराबर रुपये पर पोतलदानपूर्व स्तर पर ‘अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण’ श्रेणी के लिए लागू दर

पर ब्याज लगाया जाएगा और साथ ही विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण पर पहले ही वसूले जा चुके ब्याज का समायोजन करने के बाद, बैंक के निर्णय के अनुसार अग्रिम की तारीख से दंडात्मक ब्याज भी लगाया जाएगा। बैंक पोतलदानपूर्व स्तर पर ‘अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण’ के लिए ब्याज की दर निश्चित करने के लिए स्वतंत्र हैं परन्तु इस संबंध में मूल उधार दर और स्प्रेड संबंधी दिशानिर्देशों का ध्यान रखा जाना चाहिए ।

(वव)बैंकों के लिए यह भी उचित होगा कि वे संबंधित राशि विदेश स्थित बैंक को प्रेषित कर दें बशर्ते विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण उस बैंक से ली गई ऋण राशि से निर्यातक को उपलब्ध कराया गया था ।


(ववव) बैंक बाद में यह सुनिश्चित करने के बाद कि ऐसे ऋण को पहले उचित कारणों के आधारपर निरस्त किया गया था, ऐसे निर्यातकों को विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण दे सकते हैं ।

1.1.10 सभी वस्तुओं के लिए चालू खाता सुविधा

(व) बैंक विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण योजना के अंतर्गत निर्यातकों को सभी वस्तुओं के लिए, रुपया ऋण के अंतर्गत उपलब्ध सुविधा के अनुसार निम्नलिखित शर्तों के अधीन ‘‘चालू खाता’’ सुविधा दे सकते हैं :

(क) यह सुविधा तभी दी जानी चाहिए जब निर्यातक ने बैंक की संतुष्टि के अनुसार यह साबित कर दिया हो कि ‘‘चालू खाता’’ की सुविधा दिया जाना आवश्यक है ।

(ख) बैंक यह सुविधा केवल उन्हीं निर्यातकों को दें जिनका टै्रक रिकाड़ अच्छा हो ।

(ग) उन सभी मामलों में, जिनमें पोतलदानपूर्व ‘चालू खाता’ सुविधा प्रदान की गयी है, साखपत्र या पुष्ट आदेश उपयुक्त अवधि के भीतर प्रस्तुत कर दिये जाने चाहिए ।

(घ) विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण के मामले में ‘पहले ऋण का पहले समापन’ आधार पर कार्रवाई की जानी चाहिए ।

(ङ) विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण का समापन उन निर्यात दस्तावेजों की आय से भी किया जा सकता है जिनके आधार पर निर्यातक ने कोई विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण नहीं लिया है ।


(वव) बैंकों को निर्यातक द्वारा बाद में पुष्ट आदेश या साखपत्र प्रस्तुत करने तथा निधियों के उद्दिष्ट उपयोग पर निगरानी रखनी चाहिए । यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि संबंधित निधि का उपयोग किसी अन्य घरेलू काम के लिए नहीं किया जा रहा है । विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण के अंतर्गत किए गए आहरणों का निर्यात के लिए उपयोग न हो सकने की स्थिति में ऊपर बताए गए दंडात्मक प्रावधान लागू किए जाने चाहिए और संबंधित निर्यातक से ‘चालू खाता’ सुविधा वापस ले ली जानी चाहिए ।

(ववव) बैंकों को विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण योजना के अंतर्गत निर्यातक द्वारा कोई भी पूर्व भुगतान उपर्युक्त पैराग्राफ 1.1.4 (ववव) (2) में दिये गये अनुसार अपनी स्वयं की विदेशी मुद्रा संबंधी समस्थिति तथा समग्र अंतर सीमा के भीतर करना चाहिए । ‘चालू खाता’ सुविधा उपलब्ध कराए जाने के परिणामस्वरूप अंतर की स्थिति अपेक्षावफ्त लम्बे समय तक बनी रह सकती है जिसके लिए बैंकों का खर्च भी बढ़ सकता है । एक महीने के बाद पूर्व भुगतान संबंधी अंतरों को समायोजित करने में आने वाली निधीयन संबंधी लागत बैंकों को निर्यातकों से वसूल कर लेनी चाहिए तथा विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण लेने के बाद प्रचलित बाज़ार दर पर संविदा निरस्त भी कर सकते हैं ।



1.1.11 फॉर्वड़ संविदाएँ


(व) ऊपर निर्दिष्ट पैरा 1.1.3 के अनुसार, किसी एक मुद्रा में इनवायस किए गए किसी निर्यात आदेश से संबंधित विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण को किसी अन्य परिवर्तनीय मुद्रा में रूपांतरित करके उपलब्ध कराया जा सकता है । बैंक किसी निर्यातक को इस बात की अनुमति दे सकते हैं कि वे, विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण लेने से पहले भी, पुष्ट निर्यात आदेश के आधार पर वायदा संविदाएँ बुक कर सकते हैं तथा विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण लेने के बाद प्रचलित बाज़ार दर पर संविदा निरस्त भी कर सकते हैं ।

(वव) बाजार में जिन मुद्राओं में अच्छी तरह लेन देन किया जा रहा है उनमें से ग्राहक की पसंद की किसी अनुमत मुद्रा में कवर प्राप्त करने की अनुमति ग्राहक को बैंक दे सकते हैं परन्तु ऐसे मामलों में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ग्राहक अनुमत मुद्रा में विनिमय जोखिम उठाए ।

(ववव) योजना के अंतर्गत वायदा सुविधाएँ प्रदान करते समय बैंक विदेशी मुद्रा नियंत्रण संबंधी इस मूलभूत अपेक्षा का अनुपालन सुनिश्चित करें कि ग्राहक निर्यात वित्त के विभिन्न स्तरों पर संबंधित लेनदेन के मामले में विनिमय संबंधी जोखिम उठाए ।


1.1.12 विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण के अंतर्गत निर्यात पैकिंग ऋण में हिस्सेदारी

(व) निर्यात आदेश धारक तथा निर्यात की जानेवाली वस्तु के निर्माता रुपया निर्यात पैकिंग ऋण में हिस्सेदार हो सकते हैं ।

(वव) उसी प्रकार, निर्यात आदेश धारक द्वारा अपने बैंक के माध्यम से दावे का त्याग किए जाने के आधार पर बैंक निर्माता को विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण दे सकते हैं । निर्माता को मंजूर किए गए विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण की चुकौती निर्यात
आदेश धारक द्वारा विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण लिए जाने या बिलों की डिस्काउंटिंग कराये जाने के बाद उसके खाते से विदेशी मुद्रा अंतरित करके की जा सकती है । बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लेनदेन में दो-दो बार वित्तपोषण न होने पाए और पैकिंग ऋण की कुल अवधि निर्यातित माल के वास्तविक उत्पादन चा तक सीमित हो ।

(ववव) यह सुविधा उन मामलों में दी जानी चाहिए जिनमें निर्यात आदेश धारक और निर्माता - दोनों के लिए बैंकर या बैंकों के सहायतासंघ का नेता एक ही हो या जिन मामलों में निर्यात आदेश धारक और निर्माता के बैंकर अलग-अलग हैं, उनमें संबंधित बैंक ऐसी व्यवस्था किए जाने के लिए सहमत हों । निर्यात आदेश धारक तथा निर्माता के बीच आपसी करार के अनुसार निर्यात लाभों को बांटा जाएगा ।


1.1.13 किसी एक निर्यातोन्मुख इकाई /निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र /विशेष आर्थिक
क्षेत्र में स्थित इकाई द्वारा किसी दूसरी निर्यातोन्मुख इकाई /निर्यात
प्रसंस्करण क्षेत्र /विशेष आर्थिक क्षेत्र में स्थित इकाई को आपूर्ति

(व) आपूर्ति करने वाली निर्यातोन्मुख इकाई /निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र /विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाई और आपूर्ति प्राप्त करने वाली निर्यातोन्मुख इकाई/निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र/विशेष आर्थिक क्षेत्र की ईकाई - दोनों को विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण प्रदान किया जा सकता है ।

(वव) आपूर्तिकर्ता निर्यातोन्मुख इकाई/निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र/विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाई को दिया जाने वाला विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण उस कच्चे माल /उन सामानों की आपूर्ति के प्रयोजन के लिए होगा जिनका और अधिक प्रसंस्करण करके अन्त में प्राप्तकर्ता निर्यातोन्मुख इकाई/ निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र / विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाई द्वारा उनका निर्यात किया जा सके । आपूर्तिकर्ता निर्यातोन्मुख इकाई / निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र/विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाई को दिए गए विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण का समापन प्राप्तकर्ता निर्यातोन्मुख इकाई /निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र/विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाई से विदेशी मुद्रा प्राप्त करके किया जाना होगा जिसके लिए प्राप्तकर्ता निर्यातोन्मुख इकाई /निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र /विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाई विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण प्राप्त कर सकती है । ऐसे मामलों में

विदेशी मुद्रा में भुगतान करके विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण के समापन की शर्त निर्यात दस्तावेजों का बेचान करके नहीं बल्कि प्राप्तकर्ता निर्यातोन्मुख इकाई /
निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र /विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाई के बैंकर से आपूर्तिकर्ता
निर्यातोन्मुख इकाई /निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र /विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाई के पास
विदेशी मुद्रा अंतरित करके पूरी की जाएगी । इस प्रकार ऐसे लेनदेन में सामान्यत: आपूर्तिकर्ता निर्यातोन्मुख इकाई/निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र /विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाई के लिए कोई पोतलदानोत्तर ऋण नहीं होगा ।

(ववव) ऐसे सभी मामलों में बैंकों द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना होगा कि एक ही लेनदेन के लिए दो बार वित्तपोषण न होने पाए । यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि प्राप्तकर्ता निर्यातोन्मुख इकाई / निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र/विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाई को दिए गए विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण का समापन निर्यात बिलों की डिस्काउंटिंग द्वारा किया जाएगा ।

1.1.14 मानित निर्यात

बहुपक्षीय /द्विपक्षीय एजेंसियों /फंडों द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं को आपूर्ति के लिए केवल ‘मानित निर्यातों’ हेतु ही विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण दिया जा सकता है ।‘मानित निर्यातों’ के लिए दिए गए विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण का समापन, आपूर्ति के बाद अधिकतम 30 दिनों की अवधि के लिए विदेशी मुद्रा ऋण मंजूर करके या परियोजना के प्राधिकारियों द्वारा भुगतान की तारीख तक, इनमें से जो भी पहले हो, कर दिया जाना चाहिए । विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण का विदेशी मुद्रा खाते (ईईएफसी) में शेष तथा जिस सीमा तक आपूर्ति की गयी है उस सीमा तक निर्यातक के रुपया कोष से भी चुकौती /पहले ही भुगतान किया जा सकता है ।

1.1.15 पुनर्वित्त

विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण योजना के अंतर्गत बैंकों द्वारा दिए गए निर्यात ऋणों के लिए वे रिज़र्व बैंक से कोई पुनर्वित्त सुविधा प्राप्त करने के पात्र नहीं होंगे। इसलिए निर्यात ऋण पुनर्वित्त प्राप्त करने के प्रयोजन से निर्यात ऋण संबंधी जो आँकड़े प्रस्तुत किए जाते हैं, उनसे विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण की मात्रा को अलग दिखाया जाना चाहिए ।

1.1.16 अन्य पहलू

(व) निर्यातकों को लागू होनेवाली सुविधाएँ जैसे निर्यात संबंधी आय की पात्र प्रतिशत राशि विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाता में जमा किया जाना इत्यादि निर्यात बिलों की वसूली के बाद ही उन्हें उपचित होंगी, न कि पोतलदानपूर्व ऋण के पोतलदानोत्तर ऋण में रूपान्तरण के स्तर पर (उन परिस्थितियों को छोड़कर जब


कि बिलों की डिस्काउंटिंग/रीडिस्काउंटिंग ‘दायित्व रहित’ आधार पर होती है)। संबंधित निर्यात वित्त के समायोजन और विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा
खाते में जमा किए जाने के बाद निर्यात संबंधी शेष बची आय का उपयोग आयात बिलों के समायोजन हेतु करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए ।

(वव) विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण विदेशी मुद्रा में दिया जाता है, और निर्यात ऋण गारंटी निगम की सुरक्षा केवल रुपये में ही प्राप्त होगी ।

(ववव) निर्यात ऋण देने के मामले में बैंकों के कार्यनिष्पादन की गणना करने के प्रयोजन हेतु विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण के समरूप रुपये को ही हिसाब में लिया जाना चाहिए ।

1.2 डायमंड डालर खाता योजना

जो फर्में /कंपनियाँ अपरिष्वफ्त या कटाई किए हुए और पॉलिश किए हुए हीरों की खरीद /बिाी करती हैं और हीरों के आयात या निर्यात में कम से कम तीन वर्षों का जिनका ट्रैक रिकाड़ अच्छा है तथा पिछले तीन लाइसेंसिंग वर्षों (अप्रैल से मार्च तक) में जिनका वार्षिक टर्नओवर पाँच करोड़ रुपये या अधिक रहा है, वे निर्यात - आयात नीति 1997-2002 के अंतर्गत, निर्दिष्ट डायमंड डालर खातों के माध्यम से अपना कारोबार कर सकती हैं । डायमंड डालर खाता योजना के अंतर्गत बैंकों के लिए आवश्यक है कि वे डायमंड डालर खाता धारक को प्रदान किए गए विदेशी मुद्रा पोतलदानपूर्व ऋण का समापन अपरिष्वफ्त या कटाई किए गए और पॉलिश किए गए हीरों की दूसरे डायमंड डालर खाता धारक को की गई बिाी से प्राप्त डालर आय से करें ।


2. पोतलदानोत्तर निर्यात ऋण

2.1 परिभाषा

‘पोतलदानोत्तर ऋण’ किसी संस्था द्वारा, भारत से वस्तुओं का निर्यात करने वाले को मंजूर किया गया ऋण या अग्रिम या कोई अन्य ऋण है जो वस्तुओं के पोतलदान के बाद ऋण उपलब्ध कराए जाने की तारीख से आरंभ करके निर्यात संबंधी आय की वसूली की तारीख तक के लिए होता है ।

2.2 निर्यात बिलों की विदेश में रीडिस्काउंटिंग योजना

2.2.1 सामान्य
देशी बाज़ार में निर्यात बिलों की रीडिस्काउंटिंग के अलावा बैंकों को इस बात की भी अनुमति दी गयी है कि वे निर्यात बिलों की रीडिस्काउंटिंग पोतलदानोत्तर स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय ब्याज दरों से जुड़ी दरों पर करें ।

2.2.2 योजना

(व) प्रत्येक बिल के लिए विदेश में रीडिस्काउंटिंग की सुविधा लेने की अपेक्षा ज्यादा सुविधाजनक यह होगा कि बिल संविभाग के आधार पर (जिसके अंतर्गत सभी पात्र बिल शामिल होंगें) सुविधा ली जाय। किसी खास निर्यातक के मामले में, खासकर बड़े मूल्य के लेनदेन के मामले में, यदि प्रत्येक बिल के आधार पर रीडिस्काउंटिंग सुविधा की व्यवस्था बैंक द्वारा की जाती है तो यह आपत्तिजनक नहीं होगा ।

(वव) निर्यात बिलों की रीडिस्काउंटिंग के लिए बैंक बिना मार्जिन के और संपार्श्विकीवफ्त दस्तावेजों के अंतर्गत विधिवत् शामिल ‘बैंकर स्वीकरण सुविधा’ की व्यवस्था कर सकते हैं ।

(ववव) प्रत्येक बैंक किसी विदेश स्थित बैंक या रीडिस्काउंटिंग एजेंसी के साथ या फैक्टरिंग ऐजेंसी जैसी किसी अन्य संस्था के साथ अपनी खुद की बैंकर स्वीकरण सुविधा (फैक्टरिंग व्यवस्था के मामले में यह ‘‘दायित्व रहित’’ आधार पर होनी चाहिए) सीमा निर्धारित कर सकता है ।

(वख्) निर्यातक स्वयं भी किसी विदेशस्थित बैंक या किसी अन्य एजेंसी से (फैक्टरिंग एजेंसी सहित), अपने निर्यात बिलों की सीधी डिस्काउंटिंग के लिए ऋण की व्यवस्था कर सकते हैं परन्तु इस मामले में निम्नलिखित शर्तें लागू होंगी :-

(क) निर्यातक द्वारा किसी विदेश स्थित बैंक और /या किसी अन्य एजेंसी से निर्यात बिलों की सीधी डिस्काउंटिंग उसके द्वारा इस प्रयोजन हेतु नामित किसी बैंक की शाखा के माध्यम से ही की जाएगी ।

(ख) जिस नामित बैंक से पैकिंग ऋण सुविधा ली गयी है उसी के माध्यम से ही निर्यात बिलों की डिस्काउंटिंग की प्रािया शुरु की जाएगी । यदि इसकी प्रािया किसी अन्य बैंक के माध्यम से आरंभ की जाती है तो वह बैंक रीडिस्काउंट किए गए बिल की आय से सबसे पहले संबंधित बैंक में पैकिंग ऋण वे अंतर्गत बकाया राशि का समायोजन करेगा ।

(ख्) बैंकर स्वीकरण सुविधा के अंतर्गत विदेश स्थित बैंकों / डिस्काउंटिंग एजेंसियों द्वारा बैंकों को मंजूर की गई ऋण सीमाओं की गणना रिज़र्व बैंक विदेशी मुद्रा विभाग द्वारा उनके लिए निश्चित की गयी उधार लेने की सीमा के प्रयोजन से नहीं की जाएगी ।

2.2.3 पात्रता मानदंड -

(व) योजना के अंतर्गत मुख्यत: ऐसे निर्यात बिल शामिल होंगे जिनकी मीयाद पोतलदान की तारीख से 180 दिन होती है (सामान्य पारगमन अवधि और यदि कोई छूट की अवधि हो तो उसे शामिल करके) । तथापि, यदि विदेश स्थित संस्था को कोई आपत्ति न हो तो माँग बिलों को शामिल करने पर कोई रोक नहीं होगी ।

(वव) रीडिस्काउंटिंग योजना के अंतर्गत सुविधा किसी भी परिवर्तनीय मुद्रा में प्रदान की जा सकती है ।

(ववव) बैंकों को इस बात की अनुमति दी गयी है कि वे एशियाई समाशोधन संगठन के सदस्य देशों को किए जाने वाले निर्यात के लिए निर्यात बिल रीडिस्काउंटिंग सुविधा दें ।

(वख्) परिचालनगत सुविधा के लिए बैंकर स्वीकरण सुविधा बैंक द्वारा नामित किसी एक शाखा में केन्द्रीवफ्त की जा सकती है । लेकिन बैंकों के आंतरिक दिशानिर्देशों / अनुदेशों के अनुसार बैंक की दूसरी शाखाएँ भी यह सुविधा उपलबध करा सकती हैं ।

2.2.4 समुद्रतटीय (ऑन शोर) निधियों वे स्रोत

(व) बैंकों के पास विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खातों, निवासी विदेशी मुद्रा खातों, विदेशीमुद्रा (अनिवासी) खाता (बैंक) योजना के अंतर्गत उपलब्ध विदेशी मुद्रा संसाधनों का उपयोग मीयादी बिलों की रीडिस्काउंटिंग करने और रीडिस्काउंटिंग किए बिना ही उन्हें अपने संविभाग में रखने के मामले में उन पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा। माँग बिलों के मामले में (उपर्युक्त पैरा 2.2.3 (व) में निर्दिष्ट बातों के अधीन) वर्तमान पोतलदानोत्तर ऋण सुविधा के माध्यम से या संबंधित योजना के अंतर्गत बैंकों के पास उपलब्ध विदेशी मुद्रा शेषों में से निर्यातकों को दिए गए विदेशी मुद्रा ऋणों के रूप में इन पर कार्रवाई की जानी चाहिए ।

(वव) निर्यात बिलों की रीडिस्काउंटिंग के लिए स्थानीय बाजार विकसित करने के लिए एक सािय अंतर-बैंक बाजार की स्थापना और इसका विकास अपेक्षित है । यह संभव है कि बैंक बिलों की रीडिस्काउंटिंग के बिना ही उन्हें अपने संविभाग में रख लें । तथापि आवश्यकता पड़ने पर बैंक स्थानीय बाजार से भी संपर्क करके अपेक्षित काम कर सकें जिससे देश को उतनी विदेशी मुद्रा बच सकेगी जितनी

रीडिस्काउंटिंग पर खर्च करनी पड़ती है। इसके अलावा, चूंँकि अलग-अलग बैंकों के पास अलग-अलग राशियों के लिए बैंकर स्वीकरण सुविधा होगी, अत: जिस बैंक के पास शेष उपलब्ध होगा वह किसी ऐसे बैंक को रीडिस्काउंटिंग की सुविधा उपलब्ध करा सकेगा जिसके अपने संसाधन समाप्त हो चुके हों या जो ऐसी सुविधा उपलब्ध कराने की स्थिति में न हो ।

(ववव) यदि बैंक स्वयं विदेश से ऋण प्राप्त कर सकने की स्थिति में न हो या उनकी शाखाएँ विदेश में न हाें तो वे भारत में ही अन्य बैंकों से ऋण ले सकते हैं परन्तु शर्त यह होगी कि निर्यातक पर पड़ने वाली अंतिम लागत, विथोल्डिंग टैक्स छोड़कर, लिबोर/यूरो लिबोर/यूरीबॉर से 0.75 प्रतिशत से अधिक न हो । उधार लेने वाले बैंक और उधार देने वाले बैंक के बीच का स्प्रेड कितना हो, यह संबंधित बैंक के विवेक पर निर्भर करेगा । अधिसूचना सं. एफईएमए 3/2000 आरबी दिनांक 3 मई 2000 के पैरा 4.2(व) के अनुसार बैंकों को निर्यात बिलों की डिस्काउंटिंग /रीडिस्काउंटिंग के लिए उधार ली गयी विदेशी मुद्रा निधियों तथा मुद्रा बाजार में खरीदी-बिाी के आदान प्रदान से प्राप्त विदेशी मुद्रा निधि का उपयोग करने की अनुमति दी गई है जो कि रिजर्व बैंक (विदेशी मुद्रा विभाग) द्वारा अनुमोदित सकल अंतर सीमा (एजीएल) के अनुरूप होना चाहिए ।

2.2.5 ‘दायित्व सहित’ और ’दायित्व रहित’आधार पर रीडिस्काउंटिंग सुविधा

यह मानी हुई बात है कि बैंकर स्वीकरण सुविधा या किसी अन्य सुविधा के अंतर्गत विदेश से ॅ‘दायित्व रहित’ सुविधा प्राप्त करना मुश्किल होगा । इसलिए बिल की रीडिस्काउंटिंग ‘दायित्व सहित’ की जा सकती है । तथापि यदि केाई प्राधिवफ्त व्यापारी प्रतिस्पर्धी दरों पर ‘दायित्व रहित’सुविधा की व्यवस्था करने की स्थिति में है तो उसे ऐसी सुविधा की व्यवस्था करने की अनुमति है ।

2.2.6 लेखाकरण संबंधी पहलू

(व) निर्यात बिलों के बट्टावफ्त मूल्य के बराबर रुपया राशि निर्यातक को भुगतान की जाएगी और उसी का इस्तेमाल बकाया निर्यात पैंकिंग ऋण का समापन करने के लिए किया जाएगा ।


(वव) चूंँकि बिलों की डिस्काउंटिंग /विदेशी मुद्रा ऋण(डीपी बिल) दिए जाने का काम वास्तविक विदेशी मुद्रा में किया जाएगा, इसलिए बैंक लेन-देन के लिए उपर्युक्त स्पॉट दर लागू कर सकते हैं ।

(ववव) बट्टावफ्त राशियों /विदेशी मुद्रा ऋण के बराबर रुपया राशि बैंक की बहियों में, वर्तमान पोतलदानोात्तर ऋण खातो से अलग रखी जानी चाहिए ।

(वख्) अतिदेय बिलों के मामले में बैंक विदेशी मुद्रा ऋण की रीडिस्काउंटिंग की दर से 2 प्रतिशत अधिक राशि, नियत तारीख से ािस्टलाइज़ेशन की तारीख तक ले सकते हैं ।

(ख्) पोतलदानोत्तर ऋण (रुपये में) के लिए रिज़र्व बैंक के ब्याज दर संबंधी दिशानिर्देशों के अनुसार लगने वाला ब्याज, ािस्टलाइज़ेशन की तारीख से ही लागू किया जाएगा ।

(ख्व) निर्यात बिल का भुगतान न हो पाने की स्थिति में यह उचित होगा कि बैंक पहले बट्टावफ्त बिल के मूल्य के बराबर राशि डिस्काउंट करने वाले विदेश स्थित बैंक / एजेंसी के पास प्रेषित कर दे तथा ऐसा करने के लिए उसे रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमति भी नहीं लेनी पड़ेगी ।

2.2.7 ऋण सीमा की पुन: उपलब्धता और निर्यात सुविधाओं
(जैसे विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाता) की उपलब्धता

जैसा कि पैरा 2.2.5 में बताया गया है, ‘दायित्व रहित’ सुविधा सामान्यत: उपलब्ध नहीं हो पाती है । इसलिए ’दायित्व रहित’ सुविधा के मामले में निर्यातक की ऋण - सीमा की पुन: उपलब्धता और निर्यात सुविधाओं की उपलब्धता जैसे विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खातों में ऋण, निर्यात संबंधी आय प्राप्त होने के बाद हो सकेगी, न कि बिलों की डिस्काउंटिंग /रीडिस्काउंटिंग की तारीख को। तथापि यदि बिलों की रीडिस्काउंटिंग "दायित्व रहित " आधार पर की जाएगी तो निर्यातक की सीमाओं और निर्यात सुविधाओं की उपलब्धता रीडिस्काउंटिंग के तुरंत बाद प्रभावी कर दी जानी चाहिए ।


2.2.8 निर्यात ऋण गारंटी निगम का कवर

‘दायित्व सहित’ आधार पर बट्टावफ्त निर्यात बिलों के मामले में निर्यात ऋण गारंटी निगम द्वारा प्रदान किए गए कवर की वर्तमान प्रणाली में कोई परिवर्तन नहीं होगा क्योंकि निर्यातक का दायित्व तब तक जारी रहता है जब तक संबंधित बिल का भुगतान नहीं हो जाता । अन्य मामलों में, जहाँ बिलों की रीडिस्काउंटिंग ‘दायित्व रहित’ आधार पर की जाती है, संबंधित बिल की रीडिस्काउंटिंग होते ही निर्यात ऋण गारंटी निगम की जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है ।

2.2.9 पुनर्वित्त

बैंक इस योजना के अंतर्गत डिस्काउंट /रीडिस्काउंट किए गए निर्यात बिलों के लिए रिज़र्व बैंक से पुनर्वित्त प्राप्त करने के पात्र नहीं होंगे। अत: विदेशी मुद्रा में डिस्काउंट /रीडिस्काउंट किए गए बिल निर्यात ऋण पुनर्वित्तप्राप्त करने के प्रयोजनार्थ सूचित किए गए निर्यात ऋण संबंधी आँकड़ों से अलग दिखाए जाने चाहिए ।

2.2.10 निर्यात ऋण कार्यनिष्पादन
(व) केवल विदेश में ‘दायित्व सहित’ आधार पर रीडिस्काउंट किये गए तथा बकाया बिल निर्यात ऋण संबंधी कार्यनिष्पादन के प्रयोजन से हिसाब में लिए जाएंगे । विदेश में ‘दायित्व रहित’ आधार पर रीडिस्काउंट किए गए बिल निर्यात ऋण कार्यनिष्पादन के लिए गिने नहीं जाएंगे ।

(वव) देशी बाजार में ‘दायित्व सहित’ आधार पर रीडिस्काउंट किये गए बिल डिस्काउंट करने वाले पहले बैंक के मामले में ही दर्शाए जा सकेंगे क्यों कि केवल वही बैंक निर्यातक से लेन देन करेगा तथा रीडिस्काउंटिंग करने वाला बैंक संबंधित राशि की गणना निर्यात ऋण के रूप में नहीं करेगा ।


3. निर्यातकों के लिए गोल्ड काड़ योजना

(‘‘गोल्ड काड़ योजना की पूर्ण विषय-वस्तु के लिए ‘‘ग्राहक सेवा, निर्यात ऋण की सुपुर्दगी तथा रिपोर्टिंग की आवश्यकताओं के लिए ाियाविधियों का सरलीकरण’’ पर मास्टर परिपत्र देखें)

3.1 गोल्ड काड़ धारकों को विदेशी मुद्रा में पैकिंग ऋण (पी सी एफ सी ) मंजूर करने में प्राथमिकता दी जाएगी।


3.2 निर्धारित समय में निर्यात बिलों की वसूली करने के रिकाड़ के आधार पर, ऐसे गोल्ड काड़ धारकों को अपनी अविलंब भुगतान की बाध्यताओं, आदि को पूरा करने के लिए विदेशी मुद्रा ोडिट काड़ जारी करने पर विचार किया जाएगा।

3.3 एफ सी एन आर (बी) निधि आदि के विरुद्ध ऋण मंजूर करने के संबंध में, बैंव यह सुनिश्चित करें कि गोल्ड काड़ धारकों की पी सी एफ सी जरुरतें पूरी करने के लिए गैर- निर्यातक उधारकर्ताओं से प्राथमिकता दी जाए ।

3.4 यथायोग्य मामलों में, बैंक उनके एफ सी एन आर (बी), आर एफ सी, इत्यादि निधियों में से विदेशी मुद्रा में मीयादी ऋण मंजूर करने पर विचार करेंगे (बैंकों को ये ऋण अपने समुद्रपारीय उधारी के 25 प्रतिशत विंडो या समुद्रपारीय ऋण व्यवस्था के अधीन मंजूर नहीं करना चाहिए ।)

3.5 भारतीय निर्यातकों को दिए जाने वाले ऋणों की ब्याज दरें लिबोर में 0.75 प्रतिशत मिलाकर आने वाली दर से अधिक नहीं होनी चाहिए । किसी परिस्थिति में, यदि बैंक के पास निर्यातकों को देने के लिए पर्याप्त डॉलर उपलब्ध नहीं हो तब, इस उद्देश्य के लिए अंतर-बैंकिंग विदेशी मुद्रा उधार लेने के लिए 0.1 प्रतिशत की एक समान दर पर सेवा प्रभार लिए जाएँ ।


4. निर्यात ऋण पर ब्याज

4.1 विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण पर ब्याज दर ढाँचा ‘विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण’ तथा ‘विदेश में निर्यात बिलों की रीडिस्काउंटिंग’ योजनाओं के अंतर्गत निर्यातकों को अंतर्राष्ट्रॅीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी दरों पर निर्यात ऋण दिए जाने के मामले में बैंकों को अनुमति दी गई है कि वे प्रचलित लिबोर, यूरो लिबॉर या यूरीबॉर (जहाँ कही भी लागू हो) को दृष्टिगत रखते हुए नीचे दिए गए विवरण के अनुसार ब्याज की दरें निश्चित करें :

ऋण का प्रकार

ब्याज दर

(प्रतिशत प्रतिवर्ष)

(व) पोतलदानपूर्व ऋण

क) 180 दिन तक

लिबॉर / यूरो लिबॉर / यूरीबॉर पर 0.75% से अनधिक

ख) 180 दिन से अधिक और

360 दिन तक

ऋण दिए जाने के समय 180 दिन की मूल अवधि के ऋण के लिए प्रचलित ब्याज दर + 2.0 प्रतिशत अर्थात् (व) (क) + 2.0%

(वव) पोतलदानोत्तर ऋण

क) पारवहन अवधि के लिए मांग बिलों

पर (फेडाई द्वारा यथानिर्दिष्ट)

लिबॉर / यूरो लिबॉर / यूरीबॉर पर 0.75 % से अनधिक

ख) मीयादी बिल पर (निर्यात बिलों की मीयाद, फेडाई द्वारा निर्दिष्ट पारवहन

अवधि और जहाँ लागू हो वहाँ छूट की

अवधि सहित कुल अवधि के ऋण के

लिए)

 

पोतलदान की तारीख से 6 माह तक

लिबॉर / यूरो लिबॉर / यूरीबॉर पर 0.75 % से अनधिक

ग) नियत तारीख के बाद परंतु

क्रिस्टलाइज़ेशन की तारीख तक वसूल

किए गए निर्यात बिल (माँग या मीयादी)

2 (ख) के लिए दर + 2.0%

(ववव) अन्यथा निर्दिष्ट न किया गया निर्यात ऋण

 

(क) पोतलदानपूर्व ऋण

मुक्त *

(ख) पोतलदानोत्तर ऋण

मुक्त *

* मुक्त: मूल उधार दर और स्प्रेड संबंधी दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए रुपया ऋण दर होने के कारण बैंक लिए जाने वाले ब्याज की दर निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र हैं ।

 


परिशिष्ट

मास्टर परिपत्र

विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण

मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

सं.

परिपत्र सं.

दिनांक

विषय

 

औनिऋवि. सं. 12/ 04.02.02/ 2003-04

18.05.2004

निर्यातकों के लिये गोल्ड काड़ योजना

 

औनिऋवि. सं. 12/ 04.02.02/ 2002-03

31.01.2003

विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण - निधि का स्रोत

 

औनिऋवि. सं. 9/04.02.02/ 2002-03

31.10.2002

निर्यात ऋण- पैकिंग ऋण परिसमापन तथा रुपये पैकिंग ऋण के अंतर्गत आहरणें का पीसीएफसी में परिवर्तन

 

औनिऋवि. सं. 21/ 04.02.01/ 2001-02

29.04.2002

विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण पर ब्याज दर

 

औनिऋवि. सं. 14/04.02.01/ 2000-01

19.04.2001

विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण पर ब्याज दर

 

औनिऋवि. सं. 13/04.02.02/ 1999-2000

17.05.2000

डायमंड डालर खाता योजना के अंतर्गत काम कर रहे निर्यातकों को विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण

 

औनिऋवि. सं. 47/3840/ 04.02.01/97-98

11.06.1998

विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण

 

औनिऋवि. सं. 28/04.02.01/ 96-97

17.04.1997

विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण दिया जाना

 

औनिऋवि. सं. 22/04.02.01/ 95-96

29.02.1996

निर्यात ऋण - विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण

 

औनिऋवि. सं. 15/04.02.15/ 95-96

22.12.1995

एशियाई समाशोधन संगठन के सदस्य देशों को निर्यात - विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण योजना के अंतर्गत विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण मंजूर किया जाना - निर्यात बिल रीडिस्काउंटिंग योजना और विदेशी मुद्रा में निर्दिष्ट पोतलदानोत्तर ऋण योजनाएँ

 

औनिऋवि. सं. ईएफडी. 40/ 04.02.15/94-95

18.04.1995

विदेशी मुद्रा में निर्दिष्ट पोतलदानपूर्व ऋण - वायदा विनिमय सुरक्षा

 

औनिऋवि. सं. 30/04.02.02/ 94-95

14.12.1994

निर्यात पैकिंग ऋण के मामले में छूट

 

औनिऋवि. सं. 27/04.02.15/ 94-95

14.11.1994

विदेशी मुद्रा में निर्दिष्ट पोतलदानपूर्व ऋण के अंतर्गत पैकिंग ऋण में हिस्सेदारी

 

औनिऋवि. सं. 13 04.02.02/ 94-95

26.09.1994

विदेशी मुद्रा में निर्दिष्ट पोतलदानपूर्व ऋण योजना - एक निर्यातोन्मुख इकाई/निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र की इकाई द्वारा दूसरी निर्यातोन्मुख इकाई /निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र की इकाई को आपूर्ति

 

औनिऋवि. सं. 10/04.02.15/ 94-95

03.09.1994

विदेशी मुद्राओं में निर्यात वित्त

 

औनिऋवि. सं. ईएफडी. 43/ 04.02.15/93-94

18.05.1994

विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण -‘चालू खाता’ सुविधा उपलब्ध कराया जाना

 

औनिऋवि. सं. ईएफडी. 37/ 04.02.15/93-94

30.03.1994

विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण - स्पष्टीकरण /छूट

 

औनिऋवि. सं. ईएफडी. 32/ 04.02.11/93-94

03.03.1994

निर्यात बिलों की विदेश में रीडिस्काउंटिंग और विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण - विथोल्डिंग टैक्स

 

औनिऋवि. सं. ईएफडी. 31/ 04.02.15/93-94

03.03.1994

विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण - हीरों के निर्यात के लिए ‘चालू खाता’ सुविधा उपलब्ध कराया जाना

 

औनिऋवि. सं. ईएफडी.30/ 04.02.15/93-94

28.02.1994

विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण - स्पष्टीकरण

 

औनिऋवि. सं. ईएफडी. 21/ 04.02.15/ 93-94

08.11.1993

विदेशी मुद्रा में पोतलदानपूर्व ऋण -

 

औनिऋवि. सं. ईएफडी. 14 / 04.02.11/93-94

06.10.1993

निर्यात बिलों की विदेश में रीडिस्काउंटिंग

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