प्रधान मंत्री रोजगार योजना(प्रमंरोयो)पर मास्टर परिपत्र - आरबीआई - Reserve Bank of India
प्रधान मंत्री रोजगार योजना(प्रमंरोयो)पर मास्टर परिपत्र
मास्टर परिपत्र
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी. 01 /09.04.01/2005-06
01 जुलाई 2005
सभी भारतीय अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के अतिरिक्त)
महोदय,
प्रधान मंत्री रोजगार योजना(प्रमंरोयो)पर मास्टर परिपत्र
भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्रधान मंत्री रोजगार योजना के परिचालन के संबंध में बैंकों को समय-समय पर अनुदेश/निदेश जारी किए हैं । योजना के वर्तमान दिशानिर्देशों/ अनुदेशों/ निदेशों को संकलित करते हुए एक मास्टर परिपत्र तैयार किया गया था और इसे 31 जुलाई 2004 के हमारेपरिपत्र भारिबैं2004-05/83/ग्राआऋवि.पीएलएफएनएस.बीसी सं.14/09.04.01/03-04 द्वारा परिचालित किया गया ताकि बैंकों को वर्तमान अनुदेश एक ही स्थान पर उपलब्ध हो सकें । हम सूचित करते हैं कि मास्टर परिपत्र में 30 जून 2005 तक जारी पिछले सभी अनुदेश सम्मिलित किए गए हैं तथा उनकी सूची इस परिपत्र के परिशिष्ट में दी गई है ।
कृपया पावती दें ।
भवदीय
( जी. श्रीनिवासन)
मुख्य महाप्रबंधक
मास्टर परिपत्र
प्रधान मंत्री रोजगार योजना (प्रमंरोयो)
विषय वस्तु
खण्ड घ्
प्रधान मंत्री रोज़गार योजना हेतु दिशानिर्देश
( समय-समय पर यथा संशोधित )
खण्ड घ्घ्
प्र.मं.रो.यो. - कार्यान्वयन अभिकरण और परिचालनगत दिशानिर्देश
खण्ड घ्घ्घ्
प्र.मं.रो.यो. - लक्ष्य निर्धारण और वसूली अपेक्षाएँ
खण्ड घ्ङ -
अनुलग्नक - I
अनुलग्नक - II
अनुलग्नक - III
अनुलग्नक - IV
अनुलग्नक - V
अनुलग्नक - VI
अनुलग्नक - VII
अनुलग्नक - VIII
अनुलग्नक - IX
अनुलग्नक - X
अनुलग्नक - XI
अनुलग्नक - XII
अनुलग्नक - XIII
परिशिष्ट
मास्टर परिपत्र
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार
विशेष कार्यक्रम
खण्ड - घ्
प्रधान मंत्री रोजगार योजना (प्रमंरोयो) हेतु दिशानिर्देश
- उद्देश्य
- सीमा क्षेत्र
- लक्ष्य समूह
- आरक्षण
- पात्रता मानदण्ड
प्रधान मंत्री रोजगार योजना शिक्षित बेरोज़गार गरीबों द्वारा लघु उद्योगों की स्थापना करके शिक्षित बेरोजगार युवाओं को रोज़गार उपलब्ध कराने हेतु तैयार की गई है । यह उद्योगों, सेवाओं तथा व्यापार के लिए स्वरोज़गार के लिए उद्यम उपलब्ध कराने से सम्बन्धित है ।
योजना सम्पूर्ण देश पर लागू होगी ।
योजना उन सभी शिक्षित बेरोज़गार युवाओं पर लागू होगी जिनकी न्यूनतम अर्हता आठवीं श्रेणी (उत्तीर्ण) है । योजना के अंतर्गत उन व्यक्तियों को वरीयता दी जाएगी जिन्होंने सरकार द्वारा मान्य/अनुमोदित संस्थानों में कम से कम छ: माह की अवधि के लिए किसी भी प्रकार के व्यापार हेतु प्रशिक्षण लिया हो ।
कमजोर वर्ग के साथ-साथ महिलाओं को वरीयता दी जानी चाहिए । योजना में अजा/अजजा के लिए 22.5 प्रतिशत तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण निर्धारित किया गया है । यदि अजा/अजजा /अन्य पिछड़े वर्गों के उम्मीदवार उपलब्ध न हों तो राज्यों /संघशासित क्षेत्रों की सरकार प्रमंरोयो के अन्तर्गत अन्य वर्ग के उम्मीदवारों पर विचार करने हेतु सक्षम होंगी ।
- आयु
- शिक्षा
- वार्षिक पारिवारिक आय
सभी शिक्षित बेरोज़गार युवा जिनकी आयु सम्बन्धित जिला औद्योगिक केन्द्र में आवेदन पत्र प्राप्त होने की तारीख को 18 से 35 वर्ष के बीच हो, योजना के अन्तर्गत सामान्य रुप से ऋण के लिए पात्र होंगे । अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/ भूतपूर्व सैनिक/विकलांग तथा महिलाओं को 10 वर्ष की छूट प्राप्त है अर्थात् 45 वर्ष तक की आयु ।
शिक्षित /बेरोजगार युवा जिनकी न्यूनतम अर्हता ङघ्घ्घ् कक्षा (उत्तीर्ण) हो । उन व्यक्तियों को वरीयता दी जाएगी जिन्होंने सरकारी मान्यता प्राप्त/अनुमोदित संस्थान (आइटीआइ इत्यादि) में किसी कारोबार में कम से कम 6 माह का प्रशिक्षण प्राप्त किया हो । उच्चतर अर्हता वाले आवेदक अथवा मैट्रिक के बाद अन्य कोर्स कर रहे व्यक्ति भी सहायता के लिए पात्र होंगे ।
(क) आवेदन की तारीख को परिवार की आय रु. 40,000/- वार्षिक तक तथा हिताधिकारी की आय रु. 40,000/- वार्षिक को हिसाब में लिया जाए । इस प्रयोजन के लिए परिवार का अर्थ होगा हिताधिकारी और उसका जीवन साथी । पारिवारिक आय में मज़दूरी,वेतन,पेंशन,कृषि,व्यवसाय,किराया इत्यादि सभी स्रोतों से प्राप्त आय को सम्मिलित किया जाएगा ।
(ख ) परिभाषा के अनुसार हिताधिकारी की आय, यदि वह विवाहित है तो जीवन साथी की आय को मिलाकर रु. 40,000/- प्रति वर्ष तथा हिताधिकारी के माता-पिता की आय पृथक रुप में रु. 40,000/- प्रति वर्ष होनी चाहिए । प्रधान मंत्री रोज़गार योजना के अन्तर्गत पात्रता निर्धारित करने के लिए वही मानदंड लागू होंगे चाहे हिताधिकारी अपने माता-पिता के साथ रहता हो अथवा अलग ।
(ग) साथ ही, आवेदक और उसके जीवन साथी को ही एक परिवार माना जाएगा चाहे दो या उससे अधिक बहन-भाई इकठ्ठे रहते हों । उनका परिवार अलग होगा तथा प्रधान मंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत निर्धारित पात्रता मानदण्डों को पूरा करने पर वे योजना के अन्तर्गत सहायता प्राप्त करने के लिए पात्र होंगे ।
(घ) विवाहित महिलाओं के मामले में, उनके सास-ससुर की आय को हिसाब में लिया जाएगा।
(ङ) प्र.मं.रो.यो. के अन्तर्गत ऋण हेतु आवेदन की तारीख से 3 वर्ष पहले यदि आवेदक को गोद लिया गया है तो पारिवारिक आय के निर्धारण के लिए उन माता-पिता की आय को हिसाब में लिया जाएगा, जिन्होंने उसे गोद लिया है । यदि प्र.मं.रो.यो. के अन्तर्गत आवेदन के समय गोद लेने की अवधि तीन वर्ष से कम है तो उसके माता-पिता की आय हिसाब में ली जाएगी ।
(च) आवेदक की पारिवारिक आय के समर्थन में एक शपथ पत्र प्रस्तुत करना होगा । आवेदक की पारिवारिक आय मानदण्डों के संबंध में कार्य-दल की सन्तुष्टि होना आवश्यक है । संदेह होनेपर कार्य-दल अतिरिक्त दस्तावेजों की मांग कर सकता है अथवा कोई उचित प्रक्रिया अपना सकता है । कार्य-दल द्वारा एक बार अनुशंसा होने पर ऐसा मान लिया जाना चाहिए कि आवेदक आय मानदण्डों को पूरा करता है, बशर्ते इसके विपरीत कोई साक्ष्य प्राप्त हो । बैंकों को पारिवारिक आय के आधार पर कार्य-दल की सिफारिशों पर प्रश्नचिन्ह लगाने की आवश्यकता नहीं है जब तक उनके पास कोई ठोस सबू -‘ त न हो । ऐसे मामले में सबूत के साथ वह मामला कार्य दल के पास उचित कार्रवाई हेतु वापस भेजा जाना चाहिए । भारत सरकार ने निर्णय लिया है कि आवेदकों को अनुमति प्रदान की जाए कि वे सादे कागज पर शपथ पत्र की विषय -वस्तु को सम्मिलित करके आवेदन पत्र के साथ जिला उद्योग केन्द्र/बैंकों को प्रस्तुत करें । सम्बन्धित गैर - न्यायिक कागज पर औपचारिक शपथ पत्र ऋण की राशि स्वीकृत होने के बाद बैंक को प्रस्तुत की जाए ।
- आवास
- अन्य शर्तें
(क) हिताधिकारी उस क्षेत्र का तीन वर्ष तक स्थाई निवासी होना चाहिए । यहाँ ’क्षेत्र’ का अर्थ है जिला । यदि आवेदक उस स्थान पर कोई उद्यम आरम्भ करना चाहता है, जहाँ वह तीन वर्ष से रह रहा है तो वह सहायता के लिए पात्र है । नव विवाहित महिला हिताधिकारियों को इससे छूट प्राप्त है तथा इसके बजाय आवास का मानदंड उनके ससुराल पक्ष/पति पर लागू होगा ।
(ख) इस प्रयोजन हेतु राशन कार्ड पर्याप्त साक्ष्य होगा । राशन कार्ड उपलब्ध न होने पर उपायुक्त/जिला मजिस्ट्रेट अथवा राज्य सरकार द्वारा नामित अन्य किसी उचित प्राधिकरण द्वारा जारी आवास प्रमाण पत्र स्वीकार्य होगा । राशन कार्ड उपलब्ध न होने पर अन्य कोई दस्तावेज भी आवास के साक्ष्य के रुप में स्वीकार्य होगा जो जिला समिति/कार्य दल को मान्य हो ।
(ग) मेघालय में विवाहित पुरूषों के लिए आवासीय मानदंड में छूट दी गई है जैसाकि देश के अन्य भागों में विवाहित महिलाओं को दी गई है । मेघालय में प्रमंरोयो के अंतर्गत आवासीय मानदंड विवाहित पुरूष आवेदक के ससुराल पक्ष/पत्नी पर लागू होंगे अर्थात् आवेदक पिछले तीन वर्ष से उस क्षेत्र का निवासी होना चाहिए ।
क) किसी बैंक/वित्तीय संस्थान का चूककर्ता योजना के अन्तर्गत सहायता के लिए पात्र नहीं होगा । साथ ही, यदि परिवार का कोई सदस्य चूककर्ता है तो उस परिवार के अन्य सदस्य भी सहायता के लिए पात्र नहीं होंगे ।
ख) योजना के अन्तर्गत परिवार के एक से अधिक सदस्यों को सहायता प्रदान नहीं की जाएगी । तथापि, यदि परिवार के किसी सदस्य को केन्द्र/राज्य/राज्य द्वारा धारित निगम द्वारा प्रायोजित योजना (सब्सिडी सहित/रहित) के अन्तर्गत सहायता दी गई है तो उसे प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत सहायता प्राप्त करने से रोका नहीं जाएगा ।
ग) यदि किसी व्यक्ति को सब्सिडी वाले कार्यक्रम के अन्तर्गत पहले ही सहायता दी गई हो तो वे प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत सहायता के लिए पात्र नहीं होंगे ।
6. मान्य गतिविधियाँ
आर्थिक सहायता कृषि एवं सम्बन्धित गतिविधियों सहित सभी अर्थक्षम गतिविधियों के लिए प्रदान की जाएगी लेकिन इनमें फसल उगाना,खाद इत्यादि खरीदना जैसे प्रत्यक्ष कृषि परिचालन सम्मिलित नहीं होंगे । तथापि, यह सुनिश्चित किया जाए कि हिताधिकारी लागू नियमों के अन्तर्गत अपेक्षित सांविधिक अनुमोदन प्राप्त करता है अन्तर्गत तथा बैंक द्वारा किए गए संवितरण, ऐसे समशोधन, यदि कोई हों तो, से संबंधित होंगे । कार्यान्वयन अभिकरण उद्योग/सेवा/व्यवसाय क्षेत्रों के अन्तर्गत प्रस्तावित गतिविधियों की पात्रता और वर्गीकरण निर्धारित करेगा । उद्योग, सेवा एवं कारेबार क्षेत्र के अन्तर्गत आनेवाली गतिविधियों की उच्चतम सीमा पर पूर्व शर्तें अब हटा दी गई है ।
7. उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल एवं जम्मू और कश्मीर के लिए प्रमंरोयो के मानदण्डों में छूट
भारत सरकार ने निर्णय लिया है कि उत्तर पूर्वी क्षेत्र के राज्यों अर्थात् असम,मिज़ोरम, मणिपुर,त्रिपुरा,नागालैंड,अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और सिक्किम तथा हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल एवं जम्मू और कश्मीर में प्रधान मंत्री रोजगार योजना के कार्यान्वयन में विभिन्न मानदंडों के आधार पर छूट प्रदान की जाए । ये मानदण्ड निम्नानुसार हैं :-
क) प्रधान मंत्री रोजगार योजना का विस्तार औद्यानिकी ,सूअर पालन,मुर्गीपालन, मत्स्यपालन,चाय के छोटे बागानों को सम्मिलित करने के लिए किया गया है ताकि सभी अर्थक्षम गतिविधियों को सम्मिलित किया जाए ।
ख) प्रत्येक हिताधिकारी की पारिवारिक आय उसके जीवन साथी अथवा माता - पिता की आय सहित रु. 40,000/- प्रतिवर्ष से अधिक न हो ।
ग) अधिकतम आयु सीमा को सामान्य रुप से बढ़ा कर 40 वर्ष कर दिया गया है । अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/भूतपूर्व सैनिकों, विकलांगों और महिलाओं के लिए यह छूट बढ़ा कर 45 वर्ष की आयु तक कर दी गई है ।
घ) सब्सिडी की मात्रा परियोजना की 15% होगी जिसकी अधिकतम सीमा रु. 15,000/- प्रति उधारकर्ता होगी । बैंकों को अनुमति है कि वे परियोजना की लागत का 5% से 12.5% तक मार्जिन राशि के रुप में ले सकते हैं, जिससे सब्सिडी और मार्जिन राशि का जोड़ परियोजना लागत के 20% के बराबर हो । ( दिनांक 01.04.1999 से स्वीकृत मामलों पर लागू )
( "क" और "ख" में निर्धारित शर्तें अब प्रमंरोयो के अन्तर्गत समग्र देश में लागू होंगी )
8.परियोजना निधियन
- परियोजना की तैयारी
- परियोजना लागत के घटक
- ऋण की राशि
- मार्जिन
जिला उद्योग केन्द्र/लघु उद्योग सेवा संस्थान (एसआइएसआइ) (महानगरों के लिए) अथवा गैर सरकारी संगठन, औद्योगिक संघ अथवा अन्य अभिकरण आवेवन पत्रों की पहचान करके उद्योग मंत्रालय,भारत सरकार द्वारा स्थापित की जाने वाली जिला स्तरीय समिति/महानगरीय समिति को भेजेंगे । समिति द्वारा संवीक्षा के बाद आवेदनपत्र बैंकों को प्रायोजित किए जाएंगे । बैंक परियोजना की अर्थक्षमता और विश्वसनीयता की जाँच कर सकते हैं ।
क) योजना के अंतर्गत उधारकर्ता व्यवसाय क्षेत्र के अतिरिक्त के लिए परियोजना लागत पर आधारित दो लाख रुपये तक का मिला-जुला ऋण (कार्यशील पूंजी + मीयादी ऋण) प्राप्त कर सकता है । व्यवसाय क्षेत्र में परियोजना लागत 1 लाख रु. तक प्रतिबन्धित होगी ।
ख) उधारकर्ता द्वारा लीज़/किराये पर अथवा स्वामित्व आधार पर दुकान के लिए उपर्युक्त स्थान के अभिग्रहण के लिए निधि की आवश्यकता परियोजना लागत का एक भाग हो सकती है, बशर्ते वित्तपोषक बैंक द्वारा यह आवश्यक समझा गया हो । कुल परियोजना लागत ऐसी आवश्यकताओं सहित ऊपर दर्शाई निर्धारित सीमा के भीतर होनी चाहिए ।
ग) किराये के स्थान पर अपनी गतिविधियाँ चलाने वाले प्रधानमंत्री रोजगार योजना के हिताधिकारियों के मामले में, लीज़ अवधि को लिया जा सकता है, बशर्ते कि उसका प्रधानमंत्री रोजगार योजना से इतर ऋणों के मामलों की तरह नवीकरण किया जाए । बैंकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऋण की अवधि के दौरान लीज़ अवधि की समाप्ति पर लीज़ करार का नवीकरण कर लिया जाता है ।
क) बैंक (आवधिक ऋण/कार्यशील पूंजी ) व्यवसाय क्षेत्र अथवा अन्य क्षेत्र मे लिए क्रमश: रु.95,000/- अथवा रु. 1,90,000/- से अनधिक प्रति उधारकर्ता को मिला जुला ऋण परियोजना की अर्थक्षमता तथा विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के बाद प्रदान कर सकता है । उत्तर पूर्वी राज्यों (सिक्किम सहित), हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल एवं जम्मू और कश्मीर में उधारकर्ताओं द्वारा दी जाने वाली कम मार्जिन राशि (परियोजना लागत के 5% से 12.5% के बीच) को देखते हुए इन राज्यों के लिए प्रत्येक उधारकर्ता के अनुसार बैंकों से मिले-जुले ऋण का आकलन अलग से किया जाए ।
ख) कार्यशील पूंजी घटक वास्तविक आवश्यकता के आधार पर निर्धारित होना चाहिए ताकि इकाई के लिए कम वित्त न प्रदान किया जाए क्योंकि कम वित्त परियोजना को रुग्णता की ओर ले जाता है । सचिव, (एसएसआइ और एआरआइ) भारत सरकार की अध्यक्षता में दिनांक 28.5.2004 को आयोजित बैठक मे लिए गए निर्णय के अनुसार बैंकों को सूचित किया गया कि वे प्रमंरोयो के अन्तर्गत प्रत्येक गतिविधि की क्षेत्रवार न्यूनतम इकाई लागत निर्धारित करने पर विचार करें ताकि परियोजना के लिए वित्तपोषण कम न हो ।
ग) बैंकों को उधारकर्ता द्वारा जमा कराई गई मार्जिन राशि को सम्मिलित करते हुए ऋण की राशि का संवितरण करना चाहिए । ऐसे ऋणों पर लगाया जानेवाला ब्याजदर वही है जो रु.2 लाख तक प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रा ऋण, अर्थात् अलग-अलग बैंकों के मूल उधार दर से अनधिक , को लागू है ।
घ) ऐसे ऋणों पर प्रभारित ब्याज दर प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के लिए 2 लाख रु.के ऋणों पर लागू ब्याज दर के बराबर हो अर्थात प्रत्येक बैंक की मूल ब्याज दर से अधिक न हो ।
क) बैंकों को अनुमति होगी कि वे उधारकर्ताओं से परियोजना लागत की 5 प्रतिशत से 16.25 प्रतिशत तक मार्जिन राशि लें ताकि सब्सिडी और मार्जिन राशि का जोड़ परियोजना लागत के 20 प्रतिशत के बराबर हो जाए । उत्तरपूर्वी राज्यों (सिक्किम सहित) हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल एवं जम्मू और कश्मीर में बैंकों को अनुमति दी गई है कि वे उधारकर्ता से परियोजना लागत के 5 प्रतिशत से 12.5 प्रतिशत तक मार्जिन राशि ले सकते हैं ताकि सब्सिडी और मार्जिन राशि का कुल जोड़ परियोजना लागत के 20% के बराबर हो ।
ख) उधारकर्ताओं द्वारा जमा कराई गई मार्जिन राशि को अग्रिम के लिए जमानत के रुप में नहीं रखा जाएगा ।
ङ) सब्सिडी की राशि
क) उत्तर पूर्वी राज्यों के अतिरिक्त उत्तरांचल, हिमाचल एवं जम्मूऔर कश्मीर में देय सब्सिडी परियोजना लागत की 15 प्रतिशत है जिसकी अधिकतम सीमा रु.7,500/- प्रति उधारकर्ता है । संवितरित राशि वास्तविक परियोजना लागत से कम होने पर सब्सिडी की पात्रता संशोधित परियोजना लागत की 15 प्रतिशत ही होगी ।
ख) डेयरी ऋणों के मामले में, जहाँ संवितरण दो चरणों में किया जाएगा, (जानवरों का दूसरा बैच 6 माह बाद) शाखाओं को सूचित किया जाए कि वे सब्सिडी का दावा ऋण के अन्तिम (दूसरे) संवितरण के समय ही प्रधान कार्यालय से करें ।
- संयुक्त उद्यम/भागीदारी
क) सामूहिक गतिविधियों की सफलता के अवसर अधिक होते हैं क्योंकि उन्हें सहायता और विपणन सुविधाएँ उपलब्ध कराना आसान होता है । अत: सामूहिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देना चाहिए ।
ख) यदि एक से अधिक सदस्य मिलकर भागीदारी संस्था बनाते हैं तो वे पूरे ऋण और सब्सिडी के पात्र होंगे, बशर्ते ऊपर 7(ववव) (क) और 7 (ख्) (क) में निर्दिष्ट किए अनुसार, प्रत्येक उधारकर्ता को दिए गए यथानुपाती ऋण/सब्सिडी की राशि प्रत्येक उधारकर्ता के निर्धारित राशि से अधिक न हो तथा परियोजना की कुल लागत 10 लाख रु. से अधिक न हो । साथ ही, प्रत्येक भागीदार के लिए परियोजना लागत के हिस्से की व्यक्तिगत सीमा फर्म द्वारा आरम्भ की गई गतिविधि के स्वरुप पर निर्भर होगी ।
ग) यदि भागीदारों के भाग समान होंगे तो उचित होगा । प्रधान मंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत सभी भागीदार प्रथम दृष्ट्या सब्सिडी के पात्र होंगे ।
घ) सहकारी समितियाँ, भागीदारी न होने के कारण, प्रधान मंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत सब्सिडी के लिए पात्र नहीं हैं ।
ड.) यह निर्णय लिया गया है कि स्वयं सहायता समूहों को प्रमंरोयो के अन्तर्गत वित्तपोषण हेतु विचार किया जाए बशर्ते कि
- स्वरोजगार उद्यमों (सामान्य आर्थिक गतिविधि) के निर्माण हेतु स्वयं सहायता समूह बनाने के इच्छुक शिक्षित बेरोजगार युवकों को योजना के अन्तर्गत निर्धारित मानदण्डों को पूरा करना चाहिए ।
- स्वयं सहायता समूह में 5 से 20 शिक्षित बेरोजगार युवक हो सकते हैं ।
- ऋण पर कोई ऊपरी उच्चतम सीमा नहीं हो ।
- परियोजना की आवश्यकता को देखते हुए व्यक्तिगत पात्रता के अनुसार ऋण दिया जाए ।
- स्वयं सहायता समूह अपने सदस्यों को आगे उधार दिये बिना, सामान्य आर्थिक गतिविधि जिसके लिए ऋण स्वीकृत हुआ था, आरम्भ कर सकते है ।
- स्वयं सहायता समूहों को उत्तर पूर्वी राज्यों, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर में दी गई छूट को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक व्यक्ति की पात्रता के अनुसार सब्सिडी दी जा सकती है ।
- अपेक्षित मार्जिन राशि अंशदान (अर्थात् सब्सिडी और मार्जिन राशि परियोजना लागत के 20 प्रतिशत हो) स्वयं सहायता समूह द्वारा सामूहिक रुप से लाना होगा ।
- उद्योग क्षेत्र के अन्तर्गत परियोजनाओं के लिए प्रति उधारकर्ता खाता संपार्श्विक प्रतिभूति प्राप्त करने के लिए सीमा 5 लाख रु. होगी। सेवा और व्यवसाय क्षेत्रों वे अन्तर्गत परियोजनाओं के लिए स्वयं सहायता समूह के प्रत्येक सदस्य को 1.00 लाख रु. की राशि पर संपार्श्विक से छूट प्राप्त होगी । बैंक पात्र मामलों में संपार्श्विक से छूट की सीमा बढ़ाने पर विचार कर सकता है ।
- कार्यान्वयन एजेंसियाँ समूह के सभी अधिकाश सदस्यों/अधिकतर सदस्यों को सवितरण पूर्व प्रशिक्षण की आवश्यकता निर्धारित कर सकती हैं ।
- प्रतिभूति
क) उधारकर्ता द्वारा मार्जिन और व्यक्तिगत गारंटी और सरकार द्वारा सब्सिडी देने के अतिरिक्त, बैंक ऋण से सृजित आस्तियों को उधारकर्ता बैंक के पास बंधक/दृष्टिबंधक/ गिरवी रखेगा ।
ख) 50,000/- रु. से अधिक ऋणों के मामले में यदि स्थायी आस्तियों का सृजन प्रस्तावित नहीं है तो बैंकों को ऐसे मामलों में ऋण स्वीकृत करते समय विशेष सावधानी बरतनी होगी ।
ग) 2 लाख रु. (प्रमंरोयो के अन्तर्गत ऋण सीमा) की लागत वाली औद्योगिक क्षेत्र की परियोजनाओं में उधारकर्ताओं को संपार्श्विक प्रतिभूति देना अपेक्षित नहीं होगा तथा व्यवसाय और सेवा क्षेत्र में कोई परिवर्तन नहीं है । प्रधान मंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत बैंकों को उधारकर्ताओं से सम्पार्श्विक प्रतिभूति के लिए जोर नहीं देना चाहिए, तथापि उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे 1 लाख रु. से अधिक राशि के उन ऋणों की संवीक्षा करते हुए विशेष सावधानी बरतें जहाँ स्थायी आस्तियों का सृजन नहीं किया गया । भागीदारी के मामले में, परियोजना में भाग ले रहे प्रति व्यक्ति 1 लाख रु. की सीमा तक संपार्श्विक प्रतिभूति से छूट प्राप्त है । उद्योग क्षेत्र में भागीदारी परियोजनाओं के संबंध में संपार्श्विक प्रतिभूति के लिए छूट की सीमा छोटे क्षेत्र में 5 लाख रु. प्रति उधारकर्ता खाता होगी । यदि इस प्रकार की संपार्श्विक प्रतिभूति दी जाती है तो भी वह स्वीकार नहीं की जानी चाहिए ।
- मामलों की स्वीकृति/संवितरण
क) संवितरण एक सतत प्रक्रिया है तथा उस विशेष कार्यक्रम वर्ष के पूरा होने पर भी ऋणों का संवितरण होता रहता है । कार्य दल समितियों द्वारा प्रायोजित आवेदन पत्रों पर कार्रवाई करते समय, शाखाएँ सुनिश्चित करें कि :-
- जहाँ तक संभव हो, संवितरण कम से कम किस्तों में होना चाहिए, स्वीकृति उचित अन्तराल में होनी चाहिए तथा वर्ष की अन्तिम तिमाही तक न धकेली जाए ।
- आवेदनपत्र के निरसन के कारण स्पष्ट होने चाहिए तथा प्रत्येक माह जिला समन्वयकों को कारण उपलब्ध कराए जाएं ताकि कार्य दल समिति मामले की समीक्षा कर सकें ;
- किस्तों की संख्या
- दिनांक 28.5.04 को आयोजित सचिव (एसएसआइ एण्ड एआरआइ) भारत सरकार की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार बैंकों को सूचित किया गया है कि वे संबंधित जिला उद्योग केन्द्र को स्वीकृति पत्र की प्रति परांकित करें ताकि हिताधिकारियों की संवितरण पूर्व औपचारिकताएँ पूरी करने में सहायता कर सके ।
ख) योजना के अन्तर्गत बैंकों द्वारा प्रदान की गई स्वीकृति अन्तिम होनी चाहिए तथा ऋण राशि के संवितरण हेतु हिताधिकारियों द्वारा पूरी की जाने वाली शर्तों का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए । इससे हिताधिकारी बैंकों की अपेक्षाओं का अनुपालन सही समय पर कर सकेंगे ताकि बैंक यह सुनिश्चित कर सकें कि समाप्ति की तारीख से पहले स्वीकृत ऋण राशि का संवितरण पूरा किया जाता है ।
- चुकौती संबंधी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम
- अतिरिक्त वित्त
- दंडस्वरुप ब्याज/प्रक्रिया प्रभार
क) चुकौती अनुसूची आरम्भिक आस्थगन अवधि के 3 से 7 वर्ष की अवधि में निर्धारित होनी चाहिए ; यह वित्तपोषक बैंक द्वारा उनके उद्यम के स्वरुप और लाभप्रदता के अनुसार होगी। कार्यशील पूंजी सीमा की आवधिक समीक्षा होनी चाहिए ।
ख) चुकौती अनुसूची मीयादी ऋण घटक के लिए ही बनाई जाए ।
ग) जहाँ उधारकर्ता बैंक द्वारा निर्धारित चुकौती अनुसूची से पहले ऋण की चुकौती कर सकते हैं , प्रमरोयो ऋण की चुकौती की अनुसूची शाखा प्रबंधक के विवेकाधिकार पर 3 वर्ष की न्यूनतम अवधि में फिर से बनाई जा सकती है, ताकि उधारकर्ता को सब्सिडी समय से पहले प्राप्त हो जाए तथा यदि वह चाहे तो अतिरिक्त ऋण सुविधाएँ प्राप्त कर सकता है ।
घ) ऋण की वसूली सम्बन्धित बैंकों का उत्तरदायित्व है । बैंकों को सूचित किया गया है कि वे वसूली दर में सुधार लाने के लिए अपने क्षेत्रीय/नियंत्रक कार्यालय स्तर पर वसूली कक्षों का गठन कर सकते हैं । वे इस संबंध में कार्यान्वयन एजेंसियों की सहायता ले सकते हैं । राज्य सरकार/समितियाँ ऋणों की वसूली की निगरानी करेंगी तथा इस संबंध में बैंकों की सहायता करेंगी । वास्तविक चूक होने पर उनकी दुबारा सूची बनाए जाने को वरीयता दी जानी चाहिए ।
क) कार्यशील पूंजी पर अतिरिक्त वित्त उस सीमा तक दिया जाए कि मीयादी ऋण घटक और स्वीकृत कार्यशील पूंजी उधारकर्ता अथवा उसे सभी भागीदारों के लिए निर्धारित स्थायी अधिकतम सीमा से अधिक न हो (अर्थात् व्यवसाय क्षेत्र अथवा व्यवसाय क्षेत्र से इतर के अनुसार 1 लाख रु. अथवा 2 लाख रु.) तथा अतिरिक्त वित्त का प्रस्ताव भी कार्य दल समिति द्वारा अनुमोदित होना चाहिए ।
ख) बैंकों द्वारा उपलब्ध कराई गई अतिरिक्त सहायता पर शाखा को आबंटित मूल लक्ष्य के आधार पर विचार किया जाएगा । अन्य शब्दों में, किसी बैंक शाखा के लिए यह नया मामला नहीं माना जाएगा ।
प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत प्रदान किये गये ऋणों पर कोई दंडस्वरुप ब्याज अथवा प्रक्रिया प्रभार लगाये नहीं जाएंगे ।
9. सब्सिडी प्रबंधन
- सब्सिडी संवितरण
- सावधि जमा की प्रभावी तारीख
- सब्सिडी की राशि की सावधि जमा पर
- सब्सिडी की पात्रता
- लेखा परीक्षा प्रमाणन
भारत सरकार द्वारा सब्सिडी पहले ही उपलब्ध कराई जाएगी तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के माध्यम से बैंकों को दी जाएगी । सब्सिडी का भाग बैंकों में उधारकर्ता के नाम पर मीयादी ऋण घटक की अवधि तक सावधि जमा के रुप में रखा जाएगा । परंतु उस पर कोई ब्याज लागू नहीं होगा । सब्सिडी जमा का समायोजन उधारकर्ता के पास मीयादी ऋण घटक के अन्तर्गत अन्तिम किस्तों के लिए किया जाएगा । किसी भी हालत में सावधि जमा कम से कम 3 वर्ष की अवधि के लिए होनी चाहिए तथा उसके बाद ही समायोजन के लिए उपलब्ध होनी चाहिए ।
क) चूंकि सब्सिडी की राशि पहले ही बैंक के प्रधान कार्यालय में भेज दी जाती है, सब्सिडी राशि द्वारा की गई सावधि जमा की तारीख वही तारीख होगी जिसको शाखा द्वारा ऋण की अन्तिम किस्त का भुगतान किया जाना हो । उस तारीख से ऋण के सब्सिडी वाले भाग पर ब्याज नहीं लिया जाएगा ।
ख) यदि प्रधान कार्यालय में सब्सिडी की राशि ऋण संवितरण के बाद प्राप्त होती है तो भी, उधारकर्ताओं को असुविधा से बचाने के लिए, सावधि जमा उसी तारीख से होगी जिस तारीख को ऋण की अन्तिम किस्त का भुगतान किया जाए तथा उसी तारीख से सब्सिडी वाले भाग पर ब्याज प्रभारित नहीं किया जाएगा ।
ब्याज का भुगतान न होना
सब्सिडी की राशि, जो हिताधिकारी के नाम में सावधि जमा के रप में बैंकों में रखी जाती है, उस पर बैंक द्वारा ब्याज नहीं दिया जाएगा और सब्सिडी वाले ऋण भाग पर बैंकों द्वारा कोई ब्याज प्रभारित नहीं किया जाएगा । प्रभारित किए जाने वाले ब्याज की यह ऋण राशि, सब्सिडी के अतिरिक्त, ऋण की राशि के आधार पर होगी ।
क) यदि प्रधान मंत्री रोजगार योजना का ऋण अवधि समाप्ति से पहले खत्म हो जाता है, तो उधारकर्ता सब्सिडी का पात्र नहीं होगा । इसी प्रकार, ऋण का दुरूपयोग करने पर, उधारकर्ता द्वारा परियोजना का त्याग किए जाने पर,योजना इत्यादि के अन्तर्गत निर्दिष्ट मानदण्डों का अनुपालन न किए जाने पर उधारकर्ता की अपात्रता होने पर भी सब्सिडी उपलब्ध नहीं होगी । इन सभी मामलों में जहाँ ऋणों से योजना का उद्देश्य पूरा न हुआ हो, उधारकर्ता सब्सिडी के लिए पात्र नहीं होंगे ।
ख) तथापि, जहाँ ऋण अवरुध्द हो गए हैं / वसूली के लिए संदेहास्पद हैं और जिनके संबंध में बैंक ने निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम के पास दावा दर्ज कर दिया है, वहाँ तीन वर्ष की अवधि पूरी होने से पहले भी बकाया ऋण का समायोजन सब्सिडी जमा में से कर लिया जाए बशर्ते कि दुरुपयोग बैंक के नियंत्रण से परे हो ।
ग) बैंक यह सुनिश्चित करें कि मूल्यांकन ऋण स्वीकृत करने तथा संवितरण करने की प्रक्रिया तथा संवितरण के बाद की निगरानी इत्यादि बैंक के प्रधान/नियंत्रक कार्यालयों द्वारा जारी अनुदेशों के अनुसरण में की जा रही है ताकि वे उपर्युक्त लाभ के लिए पात्र हो सकें तथा आवश्यकता होने पर आवश्यक रिकार्ड प्रस्तुत कर सकें ।
घ) ऐसे मामलों में मीयादी जमा की समयपूर्व समाप्ति के लिए दण्ड से सम्बन्धित उपबंध लागू नहीं होंगे । तथापि, जहां हिताधिकारी योजना के अन्तर्गत सहायता हेतु पात्र नहीं हैं, वहाँ किसी भी स्थिति में सब्सिडी का समायोजन ऋण में करने की अनुमति नहीं है तथा सब्सिडी की राशि लौटाई जानी है ।
- प्रत्येक बैंक प्रधान मंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत सब्सिडी के संबंध में बैंक द्वारा किए गए दावों की सत्यता प्रमाणित करते हुए सांविधिक लेखा परीक्षकों से प्रमाणपत्र प्राप्त करें तथा प्रत्येक वर्ष 30 सितम्बर से पहले निदेशक मंडल को प्रस्तुत करें । इस संबंध में, सांविधिक लेखा परीक्षण प्रमाणपत्र जारी करने के लिए निम्नानुसार प्रक्रिया का पालन करें ।
- बाहरी लेखा परीक्षा के लिए चयनित शाखाएँ अपने प्रधान कार्यालय को बाहरी लेखा परीक्षकों/समवर्ती लेखा परीक्षकों द्वारा जारी इस आशय का प्रमाणपत्र भेजें कि रजिस्टरों और अन्य संबंधित बहियों में प्रविष्टियों तथा प्रधान मंत्री रोजगार योजना में पिछले कार्यक्रम वर्ष के अन्तर्गत स्वीकृत ऋणों से संबंधित सब्सिडी राशि के बैंक शाखाओं के दावे सही हैं ।
- अन्य बैंक शाखाओं के संबंध में जहाँ बाहरी लेखा परीक्षकों/समवर्ती लेखा परीक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई है, शाखा प्रबंधक स्वयं प्रधान कार्यालय को आवश्यक प्रमाणपत्र भेज सकते हैं ।
- बैंक शाखाओं से प्राप्त प्रमाणपत्रों (बाहरी लेखा परीक्षकों/समवर्ती लेखा परीक्षकों / शाखा प्रबंधकों, जैसा भी मामला हो) के आधार पर बैंकों के सांविधिक लेखा परीक्षक प्रधान मंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत पिछले कार्यक्रम वर्ष के दौरान सभी बैंकों द्वारा जारी सब्सिडी राशि के संबंध में एक समेकित प्रमाणपत्र जारी करें तथा वह निदेशक मंडल को प्रस्तुत किया जाए (अनुबंध घ् में दिए फार्मेट के अनुसार) ।
- सब्सिडी खाते महालेखाकार के लेखा-परीक्षा पर आधारित होंगे ।
- सब्सिडी के उपयोग का विवरण
क) भारत सरकार ने अनुबंध घ्घ् में प्रोफार्मा निर्दिष्ट किया है जिसमें बैंक द्वारा सब्सिडी के उपयोग/अपेक्षित अतिरिक्त सब्सिडी के आँकड़े दिए जाएँ, यह 30 सितम्बर 1999 से तिमाही आधार पर दिये जाएं । तदनुसार, बैंक प्रोफार्मा के नोट में दिए गए अनुदेशों के आधार पर प्रत्येक तिमाही के अन्त में प्रत्येक कार्यक्रम वर्ष से संबंधित कुल स्वीकृति / संवितरण/सब्सिडी का उपयोग/अपेक्षित राशि की संचयी स्थिति भेजें ।
ख ) बैंक अपने नियंत्रक कार्यालयों/शाखाओं से, निर्धारित प्रोफार्मा में आँकड़े मासिक आधार पर मंगवा सकते हैं तथा वे भारतीय रिज़र्व बैंक को समेकित विवरण तिमाही आधार पर भेजना सुनिश्चित करें ।
ख्वव ) अतिरिक्त सब्सिडी का समायोजन
क) बैंक अपने पास उपलब्ध किसी भी कार्यक्रम वर्ष की सब्सिडी का उपयोग चार कार्यक्रम वर्षों अर्थात् 1993-94,1994-95,1995-96,1996-97 के लिए कर सकते हैं, इस प्रकार समायोजित की गई सब्सिडी की राशि की सूचना भारतीय रिज़र्व बैंक को तिमाही सब्सिडी उपयोग प्रमाणपत्र/विवरण में दी जाए ।
ख) बैंक 1993-94 से 1996-97 तक के कार्यक्रम वर्ष के लिए प्रधान मंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत अपने पास उपलब्ध अतिरिक्त सब्सिडी का उपयोग कार्यक्रम वर्ष 1997-98 की सब्सिडी आवश्यकताओं के लिए कर सकते हैं ।
ग) बैंक कार्यक्रम वर्ष 1997-98 के लिए प्रधान मंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत उनके पास उपलब्ध अतिरिक्त सब्सिडी का उपयोग 1997-98 के लिए सभी सब्सिडी आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद कार्यक्रम वर्ष 1998-99 की सब्सिडी का भी उपयोग कर सकते हैं ।
घ) यदि बैंकों ने वर्ष 1998-99 की सब्सिडी आवश्यकताओं को पूरा कर लिया हो तो वे कार्यक्रम वर्ष 1998-99 के लिए प्रधान मंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत उनके पास उपलब्ध अतिरिक्त सब्सिडी का उपयोग 1999-2000 की आवश्यकताओं के लिए कर सकते हैं ।
क) राज्य सरकार/संघ शासित प्रदेशों को, बैंकों से यह पुष्टि मिलने के बाद कि ऋणों की स्वीकृति हो गई है, उद्योग क्षेत्र के प्रति हिताधिकारी को 1000/- रु. उद्योग क्षेत्र और 500/- रुपये सेवा और व्यवसाय क्षेत्र के लिए प्रशिक्षण/मूलभूत घटक के रुप में दिया जाएगा । प्रशिक्षण कार्यक्रम में शिक्षित हिताधिकारियों की विशेष आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाए ।
ख) शिक्षित महिलाओं की ओर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है क्योंकि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में बेरोज़गारी का भार अधिक है तथा रोजगार और प्रशिक्षण तक उनकी पहुँच सामाजिक परिस्थितियों और रवैये पर निर्भर करती है । सम्भवत: सेवा क्षेत्र ही उनके लिए सर्वाधिक अनुकूल है । इलैक्ट्रिकल और इलैक्ट्रानिक उपकरणों की मरम्मत और उन्हें तैयार करना, घड़ियों को एसेम्बल करना,कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर,शिशु सदन इत्यादि सेवाएँ आदि कुछ क्षेत्र हैं जो शिक्षित महिलाओं के लिए उपयुक्त हैं तथा उन्हें इन गतिविधियों को आरम्भ करने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। उन्हें कम्प्यूटर पार्ट्स,सॉफ्टवेयर विकास टीवी इलैक्ट्रानिक उपकरणों की मरम्मत तथा, प्रिंटिंग प्रेस,फार्मेसी चलाना, ड्राई क्लीनिंग और रेस्तराँ, छोटे गेस्ट हाउस इत्यादि छोटे सेवा उद्योग स्थापित करना इत्यादि का प्रशिक्षण उपलब्ध कराना चाहिए ।
ग) उद्योग तथा कुशल श्रमशक्ति के प्रयोगकर्ता, जिन्हें कौशल की नई अपेक्षाओं की जानकारी है, को श्रमशक्ति के विकास में सम्मिलित किया जाना चाहिए । वाणिज्य और उद्योग चैम्बर को भी उद्यमिता और स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए आगे आना चाहिए । स्थानीय उद्योग संघ को भी इसी तरह की भूमिका निभानी चाहिए । यह अपेक्षा की गई है कि आइटीआई,पॉलिटेक्निक और सरकार द्वारा चलाए जा रहे अन्य प्रशिक्षण संस्थानों, निजी और स्वैच्छिक संगठनों की क्षमता को दो पारियों में चला कर तथा पाठाक्रिम और कार्यक्रम अवधि में समुचित सुधार करके उपयोग में लाया जाए । कार्यक्रम की अवधि सामान्यतया एक माह की होगी। तथापि, जिला प्रधान मंत्री रोजगार योजना समिति नए व्यवसाय के लिए अवधि में परिवर्तन करके अवधि निर्धारित कर सकती है ।
घ) उद्योग क्षेत्र के अन्तर्गत प्रशिक्षण 15-20 कार्य दिवस के लिए दिया जाए । सेवा और व्यवसाय क्षेत्र के अन्तर्गत प्रशिक्षण अवधि 7-10 कार्य दिवस की होगी ।
ड.) प्रधान मंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत जहां उधारकर्ता ने किसी प्रतिष्ठित संस्था अथवा बैंक द्वारा संचालित कोई समतुल्य अथवा उच्चतर उद्यम विकास प्रशिक्षण अथवा दीर्घावधि प्रशिक्षण प्राप्त किया हो तो उसे प्रशिक्षण से छूट प्राप्त हो सकती है । ऐसे मामलों में संबंधित जिलों के जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक से इस आशय का प्रमाणपत्र जारी करें कि उधारकर्ता ने ऐसा प्रशिक्षण पहले ही प्राप्त कर लिया है और वह प्रमंरोयो के अंतर्गत प्रशिक्षण से छूट पाने का हकदार है, ताकि उसे ऋण संवितरित किया जा सके ।
च) प्रमंरोयो के उधारकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण आयोजित करने के मामले में यदि बैंक आगे आते हैं तो सबसे पहले उन्हें वरीयता (निर्धारित निधि सहित) दी जानी चाहिए । जिन बैंकों के पास राज्य स्तर पर बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हों उन्हें चाहिये कि राज्य सरकारों से परामर्श करते हुए प्रमंरोयो के उधारकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करें ।
11. अन्य पहलू
(व) दिवंगत उधारकर्ता
क) किसी उधारकर्ता की मृत्यु होने पर प्रमंरोयो के अंतर्गत बैंकों के लिए यह उचित रहेगा कि वे दिवंगत उधारकर्ता के किसी कानूनी वारिस/नजदीकी रिश्तेदार अथवा किसी तीसरे पक्ष को दायित्व का अंतरण कर दें जो उस इकाई/कार्यकलाप का दायित्व लेने और उसे जारी रखने के लिए इच्छुक हो, भले ही वे योजना में निर्धारित मानदंडों को पूरा न करते हों, परंतु शर्त यह रहेगी कि जिस व्यक्ति को इकाई/कार्यकलाप अंतरित की जाती है वह ऋण की शर्तों में कोई बदलाव किये बिना किस्तों की समय पर चुकौती के लिए उधारकर्ता बैंक को संतुष्ट करेगा ।
ख) सब्सिडी की राशि सिर्फ अंतरित खाते में ही जमा की जायेगी ।
ग) तथापि, यदि ऐसी व्यवस्था नहीं हो पाती है तो बैंक ऋण वसूली के लिए आवश्यक कदम उठायें और सब्सिडी की राशि दिवंगत हिताधिकारी की बकाया राशि में समायोजित कर लें ।
(ii) साझेदारी की समाप्ति
किसी एक साझेदार की सेवानिवृत्ति होने पर साझेदारी की समाप्ति होने तथा शेष अन्य साझेदार द्वारा फर्म की सभी देयताओं के संबंध में एकमात्र स्वामित्व स्वीकारने की स्थिति में निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाए :
· शेष साझेदार द्वारा जारी रखे जाने वाली प्रस्तावित गतिविधि यदि सेवा और उद्योग क्षेत्रों के लिए 2 लाख रु. से अधिक है और व्यवसाय क्षेत्र के लिए 1 लाख रुपये से अधिक है तो गतिविधि जारी रखने वाला शेष साझेदार / एकमात्र साझेदार किसी सब्सिडी के लिए पात्र नहीं होगा ।
(iii) "अदेयता प्रमाणपत्र" जारी करना
क्षेत्र में कार्यरत सभी बैंकों से "अदेयता प्रमाणपत्र" प्राप्त करने में उधारकर्ताओं को सामान्यत: कठिनाई होती है तथा बैंकों द्वारा ऐसा प्रमाणपत्र देने में भी विलम्ब होता है । अब से आवेदनपत्र में एक खण्ड होगा जिसमें किसी बैंकिंग/वित्तीय संस्थान से आवेदक द्वारा लिए गए ऋण का ब्योरा होगा , आवेदक द्वारा दिए गए सभी ब्योरे उसके द्वारा प्रमाणित किए जाएंगे । आवेदन द्वारा दी गई सूचना के आधार पर बैंक आवेदक के स्तर के संबंध में सन्तुष्ट होने पर "अदेयता प्रमाणपत्र" की आवश्यक अपेक्षा से छूट देने पर विचार कर सकते हैं । यदि बैंक उधारकर्ता के ऋण खाते के स्तर को क्षेत्र के अन्य बैंकों से सत्यापित करने का निर्णय लेते हैं तो वे आवेदकों की सूची दो प्रतियों में, संलग्न करते हुए विशिष्ट रुप से पत्राचार करें । यदि अन्य बैंकों से 15 दिन के भीतर कोई उत्तर प्राप्त नहीें होता हैं तो यह समझा जाए कि संदर्भित बैंकों को कोई देयता / आपत्ति नहीं है । चूंकि यह जानकारी आपसी लेन-देन के आधार पर है, तो "अदेयता प्रमाणपत्र" देने के लिए कोई सेवा प्रभार नहीं लिया जाना चाहिए ।
(वख्) प्रमंरोयो के उधारकर्ताओं को पासबुक जारी करना
प्रमंरोयो के उधारकर्ताओं को बैंक पास - बुक क्षेत्रीय भाषा में जारी करें ताकि संवितरणों/ चुकौतियों आदि का अभिलेख सुविधाजनक तरीके से रखा जा सके ।
(ख्) आवेदनों को जारी रखना
किसी वर्ष के दौरान जिला उद्योग केंद्र द्वारा संस्तुत आवेदन जो वर्ष की समाप्ति तक लंबित रह गये हों, उनके मामलों में बैंकों को चाहिए कि अगले वित्तीय वर्ष में मंजूरी/संवितरण के समय उन पर पहले विचार करें । लक्ष्य प्राप्त कर लिए गए हैं, के आधार पर इन लंबित मामलों को लौटाया नहीं जाना चाहिए ।
ख्व) अन्य प्रोत्साहन
प्रमंरोयो के उधारकर्ताओं को राज्य सरकारों द्वारा कुछ अन्य किस्म के प्रोत्साहन यथा रियायती दर पर औद्योगिक शैड,प्लॉट आदि प्रदान करने चाहिए। उधारकर्ता परोक्ष नकद प्रोत्साहन यथा बिक्री कर की छूट आदि भी प्राप्त कर सकते हैं । राज्य संघ शासित प्रदेश उन्हें मौद्रिक प्रोत्साहन दे सकते हैं परंतु परियोजना लागत के 5 प्रतिशत प्रवर्तक अंशदान को परियोजना में प्रवर्तक की हिस्सेदारी नहीं समझा जाना चाहिए ।
ख्वव) कार्यक्रम वर्ष के दौरान स्वीकृत मामलों का संवितरण बंद करना
(क) कभी-कभी किसी वर्ष विशेष में स्वीकृत मामले विभिन्न कारणों जैसे कि उधारकर्ता की रुचि न रह जाने अथवा उसका किसी अन्य व्यवसाय से जुड़ जाने आदि की वजह से अगले वर्ष तक असंवितरित रह जाते हैं । किसी वर्ष विशेष में स्वीकृत मामले यदि अगले वित्तीय वर्ष के दौरान 9 महीनों की अवधि तक संवितरित नहीं होते तो बैंक उन्हें व्यपगत मान सकते हैं तथा ऐसे आवेदनकर्ताओं को पंजीकृत डाक द्वारा सूचना भेजी जाती है । साथ ही साथ, भावी उधारकर्ता के दुबारा न आने की स्थिति में जिला उद्योग केंद्र को भी सूचित किया जाता है । ऐसे सभी मामलों में, जिला उद्योग केंद्र आवेदनकर्ताओं से संपर्क स्थापित करने का प्रयास करता है । जिला उद्योग केंद्र को चाहिए कि जहां कहीं आवश्यक हो किसी भीं कारण से आवेदनकर्ताओं के असंवितरित मामलों को पुन: प्रयोजित करें । इन्हें संबंधित वित्तीय वर्ष के दौरान नया मामला समझा जायेगा । ये अनुदेश ऐसे मामलों पर लागू नहीं होंगे जिनका आंशिक रुप से भुगतान किया जा चुका है ।
(ख) प्रमंरोयो के अंतर्गत किसी वित्तीय वर्ष के दौरान स्वीकृत ऋण अगले वर्ष के 10वें महीने अर्थात निश्चित रुप से 1 फरवरी से पहले संवितरित करके खाता बंद कर देना चाहिए ।
(ग) प्रमंरोयो के अंतर्गत विशेष मामले के रुप में वर्ष 1993-94,1994-95 और 1995-96 के दौरान स्वीकृत ऋणों के संवितरण और अंतिम रुप से खाता बंद करने की तारीख 1 जून 1997 निर्धारित की गयी थी ।
(घ) प्रमंरोयो के अंतर्गत वर्ष 1997-98 के दौरान ऋणों की स्वीकृति और संवितरण अवधि क्रमश: अगले वर्ष के छठे और नौवें महीने की समाप्ति पर निर्धारित की गयी थी । तदनुसार, वर्ष 1997-98 के लिए स्वीकृतियां 01.10.1998* को व्यपगत हो गयी और संवितरण को 01.01.1999* तक पूरा करना पड़ा । इस संबंध में 01.04.97 से 31.03.98 की अवधि के दौरान स्वीकृत मामले ही कार्यक्रम वर्ष 1997-98 के दौरान स्वीकृत कुल मामले बने रहे । 31.03.98 के पश्चात् की स्वीकृतियों की गणना वर्ष 1997-98 के दौरान हुई स्वीकृतियों के साथ नहीं की गयी यद्यपि उनके आवेदन वर्ष 1997-98 के दौरान प्राप्त हो गये थे । ऐसी स्वीकृतियों की गणना कार्यक्रम वर्ष 1998-99 के लिए की गयी ।
(ड.) कार्यक्रम वर्ष 1997-98 के दौरान स्वीकृत ऐसे मामले जिनका संवितरण 01.10.98 तक नहीं हुआ था, वे स्वीकृतियां उस तारीख को व्यपगत हो गयीं और ऐसे मामलों में उक्त पैराग्राफ (क) में उल्लिखित व्यपगत स्वीकृतियों संबंधी अनुदेशों का अनुपालन किया जाए ।
(च) प्रमंरोयो के अंतर्गत कार्यक्रम वर्ष 01.04.98 से 31.3.99 के दौरान स्वीकृत मामलों के संवितरण बंद करने की तारीख 31.12.99 निर्धारित की गयी । इसके पश्चात् ऐसी स्वीकृतियां जिनका कार्यक्रम वर्ष 1998-99 के दौरान संवितरण न हुआ हो, व्यपगत मानी गयीं । ऐसे मामलों में जहां आंशिक रुप से संवितरण हुआ हो, उन्हें आंशिक रुप से भुगतान करने की अनुमति 31.12.99 के पश्चात् दी गयी जैसा कि उक्त पैरा (घ) में इंगित है । जैसा कि कार्यक्रम वर्ष 1998-99 हेतु संवितरण 31.12.99 तक बंद होना है अत: बैंकों को चाहिये कि अपने सभी दावों के लिए अंतिम सब्सिडी उपयोगिता प्रमाणपत्र निर्धारित फार्मेट में 28.2.2000 तक प्रस्तुत करें ।
(छ) वर्ष 1999-2000 के दौरान स्वीकृत ऋणों के मामले में स्वीकृतियों के व्यपगत और संवितरण पूरा होने की अंतिम तारीख क्रमश: 31.10.2000 और 31.12.2000 निर्धारित की गयी थी । वर्ष 1999-2000 के दौरान आंशिक रुप से संवितरित मामलों में 31.12.2000 की समाप्ति पर संवितरित राशि के लिए बैंक का सब्सिडी दावा रोक लिया गया । उसके पश्चात् ऋण का असंवितरित हिस्सा बैंकों द्वारा बिना सब्सिडी लाभ के संवितरित किया जायेगा । सब्सिडी हिस्से की स्वीकृति और संवितरण बैंकों द्वारा अतिरिक्त ऋण के रुप में किया जा सकता है ।
(ज) वर्ष 1993-94 से 1995-96 के दौरान स्वीकृतियों के आंशिक संवितरण के मामलों में यह तय किया गया था कि संवितरण बंद होने की तारीख अर्थात् 01.06.97 तक संवितरित राशि के बाद बैंक की सब्सिडी रोक दी जाए । उसके पश्चात्, ऋण का असंवितरित हिस्सा बैंकों द्वारा संवितरित किया जा सकता है परंतु वे सब्सिडी की मांग नहीं करेंगे । सब्सिडी हिस्से की स्वीकृति और संवितरण अतिरिक्त ऋण के रुप में की जा सकेगी ।
(झ) वर्ष 1996-97 के दौरान स्वीकृत मामलों के संबंध में जहां आंशिक संवितरण किया गया था वहां संवितरण की अंतिम तारीख 01.02.98 तक बढ़ायी नहीं गयी और बैंकों से कहा गया कि वे संवितरण पूरा करने के लिए उपर्युक्त पैराग्राफ (ज) में बतायी गयी प्रक्रिया का पालन करें ।
(ञ) वर्ष 1997-98 के दौरान स्वीकृत मामलों के आंशिक संवितरण के संबंध में बैंक का सब्सिडी दावा संवितरण की अंतिम तारीख अर्थात् 01.01.99 तक संवितरित राशि के पश्चात् रोक दिया गया । उसके बाद ऋण का असंवितरित हिस्सा बैंकों द्वारा बिना सब्सिडी लाभ लिए संवितरित किया जा सकता था । कार्यकलाप हेतु वित्तीय सहायता कम न होने पाये, इसलिए असंवितरित राशि पर देय सब्सिडी बैंक द्वारा उधारकर्ता को अतिरिक्त ऋण के रुप में स्वीकृत और संवितरित की जा सकती है ।
(ट) वर्ष 1993-94 से 1995-96 के दौरान स्वीकृत मामलों में बैंक का सब्सिडी दावा संवितरण बंद होने की तारीख अर्थात् 01.06.1997 के पश्चात् रोक दिया गया और वर्ष 1996-97 के दौरान स्वीकृत तथा आंशिक रुप से संवितरित मामलों की अंतिम तारीख 01.02.1998 निर्धारित की गयी । चूंकि पात्र संवितरण पूरे किये जा चुके थे , बैंकों से अपेक्षा की गई थी कि वे वर्ष 1993-94 से 1996-97 तक के संबंधित कार्यक्रम वर्ष के लिए उपयोगिता प्रमाण-पत्र निर्धारित फार्मेट में भारतीय रिजॅर्व बैंक को प्रस्तुत करें ताकि वे सब्सिडी राशि का समाधान कर सकें । बैंको को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उनकी शाखाओं के सब्सिडी दावे संबंधित कार्यक्रम वर्ष में शामिल कर लिये गये हैं ।
- निरस्त मामलों की समीक्षा
अस्वीकृत मामलों की नमूना जाँच की जाए तथा यह जाँच ऋण आवेदन मूलरूप से अस्वीकृत करने वाले बैंक अधिकारी से उच्चतर प्राधिकारी द्वारा की जाए ।
खण्ड II
प्रमंरोयो - कार्यान्वयनकर्ता एजेंसियां और परिचालनगत दिशानिर्देश
- कार्यान्वयन
(क) भौगोलिक इकाइयों की दृष्टि से एक सुव्यवस्थित जिला होने की वजह से यह प्रस्ताव किया जाता है कि कार्यक्रम का समन्वित कार्यान्वयन जिला स्तर पर किया जाए ।
(ख) राज्य/केंद्र शासित सरकार को चाहिये कि वे दिल्ली,मुंबई,कलकत्ता और चेन्नई चारों महानगरों में कार्यान्वयनकर्ता एजेंसी के रुप में जिला उद्योग केंद्र/लघु उद्योग सेवा संस्थान/उद्योग निदेशालय/जिला शहरी विकास एजेंसी में से किसी एक का चयन कर घोषित करें । अन्य क्षेत्रों में वे जिला उद्योग केंद्र अथवा जिला शहरी विकास एजेंसी का चयन कर घोषित कर सकते हैं । यह एजेंसी स्वरोजगार योजनाओं, उनके कार्यान्वयन तथा जिला प्रमंरोयो समिति के समग्र पर्यवेक्षण/मार्गदर्शन के अंतर्गत उनकी निगरानी के लिए जिम्मेदार होगी जिसे यह संबंधित क्षेत्रों के बैंकों से परामर्श करते हुए पूरा करेगी । उनसे यह अपेक्षित है कि वे विभिन्न कार्यकलापों की वास्तविक मांग और उनकी समाहित होने की क्षमता के आधार पर स्थान विशेष कार्य योजना का प्रारंभ करें ।
(ग) जिला प्रमंरोयो समिति स्वरोजगार योजनाओं को प्रारंभ करने, उनका कार्यान्वयन और निगरानी रखने के लिए एक नोडल एजेंसी के रुप में कार्य करेगी । समिति इस प्रयोजन के लिए एक कार्य दल गठित करेगी । जिला स्तर पर कार्य दल निम्नानुसार गठित किया जायेगा । इसका अध्यक्ष कार्यान्वयनकर्ता एजेंसी का वरिष्ठ अधिकारी रहेगा जो अधिमानत: एजेंसी का प्रमुख अधिकारी रहेगा अर्थात् उसमें जिला उद्योग केंद्र का महाप्रबंधक,लघु उद्योग सेवा संस्थान के निदेशक उद्योग निदेशालयों के मामलों में उद्योग केंद्रों के अपर निदेशक,जिला शहरी विकास एजेंसी के मामले में उप अध्यक्ष शामिल रहेंगे । कार्य दल के अन्य सदस्यों में निम्नलिखित संस्थाओं के प्रतिनिधियों को शामिल किया जायेगा -
- अग्रणी बैंक
- दो अग्रसर ॅ बैंक
- जिला रोजगार अधिकारी
- जिला उद्योग केंद्र/लघु उद्योग सेवा संस्थान/जिला शहरी विकास एजेंसी प्रत्येक का एक सदस्य (कार्यान्वयनकर्ता एजेंसी के अतिरिक्त)
- कार्य दल के अध्यक्ष द्वारा एक अधिकारी सदस्य सचिव के रुप में नामित किया जायेगा ।
- अध्यक्ष किसी ख्यातिप्राप्त गैर - सरकारी संगठन से एक या अधिक सदस्याें को सहयोजित कर सकता है ।
(घ) कोलकाता और चेन्नई महानगरों में योजना के कार्यान्वयन का उत्तरदायित्व उद्योग निदेशालय का होगा । मुंबई में योजना के कार्यान्वयन का उत्तरदायित्व उद्योग निदेशालय और लघु उद्योग सेवा संस्थान का होगा । एन सी टी दिल्ली में योजना का कार्यान्वयन उद्योग निदेशालय सभी 9 जिलों में उपायुक्त के माध्यम से सुनिश्चित करेगा । उक्त एजेंसियाँ सामान्य तथा निम्नलिखित कार्यों के लिए जिम्मेदार रहेंगी :
- उद्यमियों का चयन और उन्हें अभिप्रेरित किया जाना,
- उद्योग,सेवा और व्यवसाय क्षेत्रों में योजनाएं तैयार करना और उनकी पहचान करना,
- व्यवसाय/कार्यकलाप का निर्धारण किया जाना,
- ऋण की सिफारिश करना ,
- संबंधित प्राधिकारियों से आवश्यकतानुसार संपर्क कर त्वरित गति से मामलों को निपटाना
(ड.) कार्य दल स्थानीय अखबारों में विज्ञापन के जरिए पात्र व्यक्तियों से आवेदन आमंत्रित करेगा । कार्य दल इन आवेदनों का अनुमोदन करेगा और बाद में सिफारिश करते हुए उन्हें बैंक शाखाओं के पास भेजेगा । कार्य दल समिति की सिफारिश के पश्चात शाखा प्रबंधक को प्राप्त सभी आवेदनों को तत्परतापूर्वक निपटाया जायेगा ।
(च) जिला प्रमंरोयो समिति अथवा प्रयोजनार्थ गठित कार्य दल द्वारा योजना के कार्यान्वयन में हिताधिकारी की पहचान व्यवसाय विशिष्ट का चयन, हिताधिकारी के लिए अपेक्षित तंत्र की पहचान, बैंकाें और उद्योग से संबंधित अन्य स्थानीय एजेंसियों के साथ अनुरक्षक सेवाएं और निकट संपर्क बनाये रखने जैसे कार्य शामिल होते हैं ।
(छ) चारों महानगरीय शहरों में प्रमंरोयो समिति इसी तरह गठित की जायेगी ।
(ज) उच्च अधिकार प्राप्त समिति की पाचवीं बैठक में यह उल्लेख किया गया कि कार्य दल स्तर पर विस्तृत रुप से संवीक्षा किये जाने तथा संबंधित बैंकरों के अधिक ध्यान देने से प्रमंरोयो के कार्यान्वयन में और सुधार हो सकता है । संवीक्षा के स्तर को भी बेहतर बनाया जा सकता है यदि कार्य दल को अधिक समय दिया जाए । अत: यह निर्णय लिया गया कि राज्य/केंद्र शासित प्रदेश उप संभागीय स्तर अथवा खंड स्तर पर कृतिक बलों का गठन किया जाए जैसा कि अनुबंध घ्घ्घ् में प्रावधान किया गया है । संवीक्षा की गुणवत्ता का स्तर बनाये रखने के लिए जिला कार्य दल से सिर्फ एक स्तर नीचे तक का चयन किया जाए । सहायक कार्य दल केवल जिला उद्येाग केंद्र से प्राप्त आवेदन की संवीक्षा करें और अभ्यर्थियों का साक्षात्कार लें । तथापि, सहायक कार्य दल चाहे तो अनुमोदित आवेदनों को सीधे ही बैंक शाखाओं को भेज सकते हैं । सचिव (एसएसआइ और एआरआइ), भारत सरकार की अध्यक्षता में 28.5.2004 को आयोजित बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार बैंकों को निम्नानुसार सूचित किया गया है :-
- जिला कार्य दल समिति की बैठक माह में कम से कम एक अथवा उससे अधिक बार होगी, बैठकों की संख्या प्राप्त आवेदनपत्रों की संख्या पर निर्भर करेगी ।
- ब्लॉक स्तरीय कार्य दल समितियों की बैठवें ब्लॉक स्तर बैंकर समिति की बैठक के तुरन्त बाद आयोजित की जाए ताकि ब्लॉक स्तरीय कार्य दल समिति की बैठक में सभी बैंक भाग ले सकें और आवेदन पत्रों का त्वरित निपटान सुनिश्चित किया जा सके ।
(झ) यदि किसी एक सहायक कार्य बल को कार्य करने की अनुमति दी जाती है तो राज्य/केंद्र शासित प्रदेश को चाहिये कि संवीक्षा और साक्षात्कार प्रयोजन के लिए जिला कार्य दल का कार्य क्षेत्र निर्दिष्ट करें । जिला स्तरीय कार्य दल को अन्य कार्य जैसे आवेदनों की प्राप्ति,रिपोर्टिंग प्रक्रिया, हिताधिकारी को सहायता आदि जिला स्तरीय कार्य दल/ महाप्रबंधक,जिला उद्योग केंद्र कार्यालय द्वारा किये जाते रहेंगे ।
(ञ) राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के संबंधित संयोजक बैंकों से परामर्श करके सहायक कार्य दलों के गठन संबंधी निर्णय लिये जायेंगे ।
(ट) उपर्युक्त के अनुसार कार्य दलों द्वारा प्रायोजित आवेदनों के अलावा योजना के अंतर्गत बैंक पात्र व्यक्तियों से सीधे ही आवेदन प्राप्त कर सकते हैं । तथापि, ऐसे आवेदनों पर परियोजना संबंधी व्यवहार्यता और बैंक के लिए स्वीकार्यता संबंधी मसले पर अपनी टिप्पणी के साथ प्रायोजक एजेंसी के पास भिजवायेंगे। प्रायोजक एजेंसियां ऐसे आवेदनों को औपचारिक रुप से ऋण की मंजूरी हेतु पुन: बैंक शाखा के पास भिजवायेंगी ।
(ठ) योजना के बेहतर कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकार चाहे तो क्षेत्र में उधार देने वाले बैंकों की संख्या प्रतिबंधित कर सकती है परंतु उन्हें चाहिए कि ऐसा निर्णय वे जिला समिति / उप-समिति से परामर्श से लें ।
13. निगरानी
(क) योजना की निगरानी , जिला स्तर पर जिला प्रमंरोयो समिति, महानगरीय शहरी समिति अथवा इस प्रयोजनार्थ गठित उप समिति द्वारा, राज्य स्तर पर राज्य प्रमंरोयो समिति द्वारा और केंद्रीय स्तर पर सचिव (लघु उद्योग और कृषि ग्रामोद्योग) की अध्यक्षता में गठित उच्च अधिकार प्राप्त समिति द्वारा की जायेगी । कार्यान्वयन संबंधी समस्याएं, समन्वयन और निगरानी इस समिति द्वारा किया जाएगा । इसकी बैठक महीने में एक बार होनी चाहिए । इसके अतिरिक्त सचिव (लघु उद्योग और एआरआइ) की अध्यक्षता में उच्चाधिकारप्राप्त समिति की बैठक अपने कार्य करने के लिए आवधिक रुप से होगी ।
(ख) अनुबंध घ्ङ में दिये अनुसार निर्धारित प्रोफार्मा में मासिक प्रगति रिपोर्ट उद्योग निदेशालय को भेजी जायेगी जहां इसे संकलित करके विकास आयुक्त कार्यालय को भेजेंगे । राज्य स्तरीय समिति तिमाही में एक बार प्रगति की समीक्षा करेगी और अनुबंध ङ में दिये अनुसार निर्धारित प्रोफार्मा में विकास आयुक्त कार्यालय की टिप्पणी के साथ तिमाही प्रोफार्मा में अपनी रिपोर्ट भेजेगी ।
(ग) योजना संबंधी प्रगति की निगरानी जिला स्तर पर जिला परामर्शदात्री समिति, राज्य स्तर पर राज्य स्तरीय बैंकर समिति द्वारा भी आवधिक बैठकों में की जायेगी ।
(घ) विलंब संबंधी समस्याओं के निवारण के लिए बैंकों के जिला स्तरीय समन्वयनकर्ता प्रमुख अनियमितताओं के कारणों की जांच करेंगे । इसके लिए उन बैंक शाखाओं पर ज्यादा ध्यान दिया जायेगा जिन्होंने मंजूरी और संवितरण के लिहाज से अपना निष्पादन जिला के औसत की तुलना में 50 प्रतिशत से कमतर स्तर पर बनाये रखा । वह संपार्श्विक प्रतिभूतियों के संबंध में प्राप्त शिकायतों को भी देखेगा । ऐसी बैंक शाखाओं के संबंध में समस्याओं/मामलों पर वह हर माह जिला प्रमंरोयो समिति और कार्य दल समिति के पास रिपोर्ट भेजेगा जहां उस पर चर्चा होगी और आवश्यकतानुसार बैंकिंग तंत्र में तथा बैंकिंग लोकपाल द्वारा उपयुक्त स्तर पर कार्रवाई के लिए सिफारिश की जायेगी ।
(ड.) राज्यों और बैंकों द्वारा स्वीकृतियों और संवितरणों के संबंध में भेजे गये आंकड़ों के समाधान की आवश्यकता है । बैंकों के जिला स्तरीय समन्वयकर्ता को चाहिए कि वे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अधिसूचित प्रबंध सूचना प्रणाली के अनुसार सिफारिश और स्वीकृत किये गये आंकड़ों का समाधान जिला उद्योग केंद्र के आंकड़ों से करें ।
(च) शाखाओं के निष्पादन पर निगरानी
बैंकों को चाहिए कि वे प्रमंरोयो के अंतर्गत कुछ शाखाओं के कार्य निष्पादन की आकस्मिक जांच करवायें तथा ऐसे शाखा प्रबंधकों के विरुध्द कार्रवाई करें जिनका कार्य निष्पादन इरादतन अपर्याप्त और अनुचित पाया गया हो ।
(छ) समीक्षा टिप्पणी
बैंकों को चाहिए कि वे प्रमंरोयो के अंतर्गत तिमाही आधार पर अपने कार्य निष्पादन को समीक्षा हेतु बोर्ड की बैठक में प्रस्तुत करें और जानकारी हेतु इसकी एक प्रतिलिपि मुख्य महाप्रबंधक,ग्रामीण आयोजना और ऋण विभाग,भारतीय रिज़र्व बैंक,केंद्रीय कार्यालय, मुम्बई को भेजें ।
14. मूल्यांकन
- भारत सरकार नियमित आधार पर समवर्ती मूल्यांकन करती रहेगी । राज्य की ख्याति प्राप्त संस्थाएं, संगठन और गैर - सरकारी संगठनों की पहचान हिताधिकारियों के सर्वेक्षण के लिए की जाएगी । सर्वेक्षण के लिए संस्थाओं और संगठनों का चयन राज्य सरकारों से परामर्श करके किया जायेगा ताकि समुचित अनुवर्ती कार्रवाई होती रहे । राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा समवर्ती मूल्यांकन के साथ भेजी गयी रिपोर्ट की समीक्षा केंद्रीय स्तर पर उच्च अधिकार प्राप्त समिति द्वारा की जायेगी । केंद्रीय सरकार से लक्ष्य की प्राप्ति के तुरंत बाद ही राज्य सरकार/केंद्र शासित सरकार जिला -वार लक्ष्य की सूचना सभी जिलों को भेजेगी । जिला समिति जिले के भीतर बैंकों के लिए लक्ष्य आबंटित करेगी । महानगरीय शहरों में यह कार्य महानगरीय शहरी समिति द्वारा किया जायेगा । महानगरीय शहरों के लिए गठित जिला प्रमंरोयो समिति/समितियां अथवा उनकी उप समितियां स्थानीय अखबार के जरिए पात्र व्यक्तियों से आवेदन आमंत्रित करेंगी । इस संबंध में बैंक और खंड विकास अधिकारी के सूचना बोर्ड पर सूचना प्रदर्शित करके प्रचार भी किया जायेगा ।
- ये आवेदन महानगरीय शहरों हेतु गठित जिला प्रमंरोयो समिति/समितियों द्वारा अनुमोदित किये जायेंगे और सिफारिश करके संबंधित बैंक शाखाओं को भेजे जायेंगे । बैंक स्तर पर आवेदनों की अस्वीकृतियों को ध्यान में रखते हुए सिफारिश किये जाने वाले आवेदनों की संख्या शाखा के लिए निर्धारित लक्ष्य से कम से कम 25 प्रतिशत अधिक होनी चाहिए ।
- समिति की सिफारिश के पश्चात् बैंक प्रबंधक को प्राप्त सभी आवेदनों का निपटारा तत्परतापूर्वक किया जाना चाहिए ।
- जिला प्राधिकारियों द्वारा प्रशिक्षण संस्थाओं की पहचान ऋण की स्वीकृति पूर्व की जानी चाहिए और प्रशिक्षण के मानदंड मोड्यूल तैयार रखने चाहिए ।
- मामले पर स्वीकृति मिलते ही बैंक महानगरीय शहरों हेतु गठित जिला प्रमंरोयो समितियों/समिति अथवा उप-समितियों को सूचना भेजेगा ताकि वे प्रशिक्षण कार्य प्रारंभ करवा सकें ।
- यह सुनिश्चित करने के लिए कि अपेक्षित परिणाम हासिल कर लिये गये हैं, सभी कार्यकलाप समयबध्द तरीके से पूरे किये जाएं और किसी कठिनाई के होने पर जिला प्रमंरोयो समिति/महानगरीय शहरी समिति अथवा उनकी उप-समिति में उनका निवारण किया जाए ।
- वर्ष 1993-94 के दौरान प्रमंरोयो के कार्यान्वयन के संबंध में गहन अध्ययन हेतु गठित कार्य दल की सिफारिशें ( अनुबंध च्घ्घ्घ्) ।
15. गैर -सरकारी संगठनों को शामिल करना
प्रमंरोयो के कार्यान्वयन में गैर - सरकारी संगठनों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है । प्रमंरोयो कार्यक्रम के कार्यान्वयन में ख्याति प्राप्त गैर - सरकारी संगठनों को जुड़ना चाहिए । उन्हें हिताधिकारियों की पहचान किये जाने, अभिप्रेरित किये जाने और चयन किये जाने तथा परियोजना की रुपरेखा तैयार किये जाने के समय से ही शामिल किया जाना चाहिये । वे उधारकर्ता की आस्तियों के समुचित प्रबंधन,उत्पादों के विपणन,ऋण किस्तों की चुकौती आदि में भी सहायता प्रदान कर सकते हैं । हिताधिकारियों का प्रशिक्षण एक अन्य क्षेत्र है जहां वे बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं । ख्याति प्राप्त गैर - सरकारी संगठनों को जुड़ने के लिए राज्य/संघ शासित प्रदेश्
ा ऐसे तौर-तरीके अपनाएं ताकि योजना संभावित हिताधिकारियों के दरवाजे तक पहुंच सके ।
खण्ड - III
प्रमंरोयो - लक्ष्य आबंटन और वसूली आवश्यकताएं
16. वार्षिक लक्ष्य
क) भारत सरकार प्रत्येक वर्ष, प्रमंरोयो के अंतर्गत कार्यक्रम वर्ष के लिए प्रत्येक राज्य/संघशासित प्रदेश हेतु लक्ष्य आबंटित करती है ।
ख) फरवरी 2001 में आयोजित ग्यारहवीं उच्च अधिकार समिति की बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि राज्य में पांच से कम शाखाओं वाले बैंकों को लक्ष्य आबंटित नहीं किया जाएगा, यदि, उस बैंक की सभी शाखाओं का कुल लक्ष्य, राज्य के लक्ष्य के 2% अथवा कम होता हो । पांडिचेरी तथा जम्मू और कश्मीर को उक्त उपबंधों से छूट दी गई है ।
ग) नियंत्रक कार्यालय/शाखाओं को सूचित किया जाए कि तिमाही प्रगति लक्ष्य निम्नानुसार हासिल करें ताकि वर्ष के अन्त में आवेदन पत्रों का ढेर न लगे :-
तिमाही |
प्रायोजन |
मंजूरी |
संवितरण |
पहली |
25% |
10% |
- |
दूसरी |
100% |
50% |
15% |
तीसरी |
125%* |
80% |
50% |
चौथी |
- |
100% |
80% |
पहली (अगले वर्ष की) |
- |
- |
100% |
* 31 दिसंबर के बाद, बैंकों द्वारा अस्वीकृत मामले ही दुबारा रखे जाएं । |
सचिव (एसएसआइ और एआरआइ) भारत सरकार की अध्यक्षता में 28.5.2004 को आयोजित बैठक में हुए निर्णय के अनुसार बैंकों को सूचित किया गया है कि वे (राज्य सरकार के साथ ) योजना के अन्तर्गत आवेदनों के प्रायोजन, स्वीकृति और संवितरण के संबंध में मासिक आधार पर प्रगति की निगरानी करें । कोई भी समस्याएँ होने पर उनका समाधान जिला स्तरीय परामर्शदात्री समिति की बैठक में किया जाए ।
घ) आवेदनों का प्रायोजन लक्ष्य के 125% तक सीमित होना चाहिए और प्रत्येक वर्ष के 31 दिसंबर तक पूरा हो जाना चाहिए । उसके बाद, बैंकों द्वारा अस्वीकृत आवेदनों के बराबर संख्या में नये आवेदन प्रायोजित किये जाने चाहिए ।
ड़) 31 मार्च तक लंबित आवेदन आगे ले जाने के संबंध में बैंकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी शाखाएं, प्रमंरोयो संबंधी दिशानिर्देशों के अनुबंध च्घ्घ्घ् में दिये गये पैराग्राफ 11 (ख्व) में निहित अनुदेशों का पालन करें और वर्ष के अंत में लंबित आवेदन जिला उद्योग केंद्र (डीआइसी) को वापस न भेजें और अगले कार्यक्रम वर्ष में ऐसे लंबित आवेदनों पर पहले विचार करें, ताकि उन्हीें व्यक्तियों को दुबारा आवेदन करना न पड़े ।
च) कमज़ॉेर वर्गों को वरीयता देने की दृष्टि से, सरकार ने अजा/अजजा आवेदकों के लिए 22.5 प्रतिशत आरक्षण और अन्य पिछड़े वर्गों के आवेदकों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया है ।
छ) अल्पसंख्यकों को सही और पर्याप्त हिस्सा और महिलाओं को वरीयता सुनिश्चित की जाए ।
ज) भारत सरकार द्वारा विविध राज्यों के लिए जब भी अतिरिक्त लक्ष्य निर्धारित किये जाएं, और उनकी सूचना बैंकों को दी जाए तो उनके नियंत्रक कार्यालयों और शाखाओं को उनके लिए निर्धारित अतिरिक्त लक्ष्य स्वीकार करने हेतु आवश्यक अनुदेश जारी किये जाएं और यह सुनिश्चित किया जाए कि लक्ष्य हासिल होते हैं ।
झ ) उद्योग क्षेत्र में उच्चतर रोजगार संभाव्यता के मद्देनजर कार्यान्वयन करनेवाली एजेंसियों द्वारा इस क्षेत्र में स्व रोजगार परियोजनाओं हेतु अधिकतम आवेदन पत्र प्रायोजित / स्वीकृत करने के प्रयास किए जाएँ ।
ञ) राज्यों / संघ शासित प्रदेशों को योजना के अन्तर्गत ऋण वसूली में सुधार लाने के प्रयास करते रहना चाहिए ।
ट) राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति के आयोजकों को राज्य/संघ शासित सरकारों तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ आँकड़ों का समायोजन करना चाहिए ।
ठ) बैंको को उनके द्वारा स्वीकृत और संवितरित मामलों की संख्या में अन्तर कम करने के प्रयास करने चाहिए ।
17 रिपोर्ट करने संबंधी आवश्यकताएं
क) भारतीय रिज़र्व बैंक को अनुबंध ङघ्घ्घ् में दिये गये प्रोफार्मा के अनुसार
योजना के अन्तर्गत तिमाही प्रगति रिपोर्ट भेजी जाए । योजना के कार्यान्वयन की जांच करने के लिए बैंक शाखाओं/नियंत्रक/क्षेत्रीय /आंचलिक कार्यालयों द्वारा वही फार्मेट का उपयोग किया जाए । बैंकों को निम्नानुसार सुनिश्चित करने के लिए उनकी शाखाओं/नियंत्रक कार्यालयों को सूचित करें :
- अलग से राज्य-वार जानकारी प्रस्तुत की जानी चाहिए । विविध राज्यों की जानकारी साथ में न दी जाए ।
- अनंतिम स्थिति नहीं, बल्कि अंतिम स्थिति प्रस्तुत की जाए ।
- प्रत्येक कार्यक्रम वर्ष के लिए संवितरण आंकड़े अलग से दर्शाये जाए । इस तरह, प्रत्येक कार्यक्रम वर्ष के लिए तिमाही विवरण निर्धारित फार्म में अलग से प्रस्तुत करना आवश्यक है ।
- विवरण के कालम 1 में राज्य/संघ शासित क्षेत्रों के नाम निम्नलिखित क्रम में दर्शाये जाएं :
राज्य / संघ शासित क्षेत्र का नाम
उत्तरी क्षेत्र
हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, चंडीगढ़ और दिल्ली
उत्तर-पूर्वी क्षेत्र
असम, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, सिक्किम
पूर्वी क्षेत्र
बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, अंडमान और निकोबार, द्वीपसमूह
मध्य क्षेत्र
मध्य प्रदेश ,उत्तर प्रदेश
प्ाश्चिमी क्षेत्र
गुजरात,महाराष्ट्र,दमण और दीव,गोवा,दादरा और नगर हवेली
दक्षिणी क्षेत्र
आंध्र प्रदेश,कर्नाटक,केरल,तमिल नाडु,लक्षद्वीप,पांडिचेरी
समग्र भारत
ख) बैंकों को योजना के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक और कार्यान्वयनकर्ता एजेंसियों को निर्धारित फार्मेट के अनुबंध ङघ्घ् और ङघ्घ्घ् में अगले महीने के 7 दिन के भीतर मासिक प्रगति रिपोर्ट और तिमाही प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए , जिसमें लक्ष्य/प्राप्त आवेदन/मंजूरी/संवितरण और लंबित आवेदन के ब्यौेरे प्रस्तुत करने होंगे ,जिसमें अजा/अजजा , अन्य पिछड़े वर्ग महिलाओं को दी गयी मंजूरी/संवितरण के ब्यौरे होंगे ।
ग) मासिक और तिमाही रिपोर्टों की प्रतिलिपियां भारत सरकार,उद्योग मंत्रालय को निम्नलिखित पते पर भी भेजी जानी चाहिए ।
संयुक्त विकास आयुक्त
विकास आयुक्त कार्यालय (लघु उद्योग)
लघु उद्योग,कृषि और ग्रामीण उद्योग विभाग,
उद्योग मंत्रालय,भारत सरकार,
निर्माण भवन (दक्षिणी स्कंध),
7वीं मंज़िल मौलाना आजाद रोड,नई दिल्ली - 110011
घ) भारत सरकार ने अपेक्षा की है कि भारिबैंक द्वारा बैंक के प्रधान कार्यालय को दी गयी सब्सिडी और अनुबंध घ्च् में दिये गये निर्धारित फार्मेट में दिनांक 31.3.99 को 1993-94 से 1998-99 की अवधि के दौरान उनके द्वारा उपयोग में लायी गयी सब्सिडी दर्शानेवाला उपयोगिता प्रमाणपत्र प्राप्त किया जाए । उपर्युक्त अवधि के लिए महाप्रबंधक (प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र) और साथ ही साथ बैंक के आंतरिक लेखा परीक्षक द्वारा विधिवत् प्रमाणित विवरण निम्नलिखित को सीधे भेजा जाए -
संयुक्त विकास आयुक्त (प्रमंरोयो)
विकास आयुक्त कार्यालय ( लघु उद्योग)
लघु उद्योग,कृषि और ग्रामीण उद्योग विभाग
उद्योग मंत्रालय,भारत सरकार
निर्माण भवन (दक्षिणी स्कंध), 7वीं मंज़िल
मौलाना आज़ाद रोड, नई दिल्ली - 110011
डॅ) वसूली कार्यनिष्पादन
बैंकों को प्रमंरोयो के बारे में वसूली स्थिति की रिपोर्ट भारतीय रिजर्व बैंक को प्रत्येक छमाही में (मार्च /सितबंर), अनुबंध च् में दिये गये फार्मेट के अनुसार नियत तारीख से 45 दिन के भीतर प्रस्तुत करनी चाहिए ।
18. वसूली
क) बैंकों को अनुमति दी गई है कि वे प्रमंरोयो के अन्तर्गत स्वीकृत ऋणों का दुरुपयोग /अन्यत्र उपयोग करने वाले उधारकर्ताओं के विरुध्द आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकते हैं ।
ख) बैंकों को कभी-कभी अविवाहित लड़कियों से, उनकी शादी के बाद नए स्थान पर चले जाने के कारण, वसूली करने में परेशानी होती है । अब यह निर्णय लिया गया है कि बैंक अविवाहित लड़कियों के माता-पिता/परिवार के मुखिया को प्रमंरोयो ऋण के सह उधारकर्ता के रूप में सम्मिलित कर लें ।
19. अन्य पहलू
क) बैंक भारतीय लघु उद्योग बैंक (सिडबी)/राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की योजनाओं के अंतर्गत निर्दिष्ट प्रयोजन के लिए उपलब्ध सीमा तक पुनर्वित्त पाने के लिए पात्र होंगे ।
ख) योजना के अंतर्गत दिये गये ऋण अन्य ऋणों की तरह ही निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम कवर के लिए पात्र होंगे ।
ग) भारत सरकार ने सभी राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों के मुख्य सचिवों को सूचित किया है कि बैंकों को ऋणों की वसूली में मदद करें। श्री एस.एल.कपूर, सचिव,उद्योग मंत्रालय,भारत सरकार,नई दिल्ली के मुख्य सचिवों को संबोधित दिनांक 29.9.93 के पत्र अ.शा.सं.डीआइसी-6(1)-93 की प्रतिलिपि अनुबंध च्घ् में जानकारी और मार्गदर्शन हेतु दी गयी है ।
घ) जिला प्रमंरोयो समिति/राज्य प्रमंरोयो समिति का गठन और कार्यपध्दति अनुबंध च्घ्घ् में दी गयी है ।
ड़) शक्तियों का प्रत्यायोजन
प्रमंरोयो के अंतर्गत ऋण आवेदनों का शीघ्र निपटान सुनिश्चित करने की दृष्टि से बैंक उनकी वर्तमान प्रशासकीय संरचना को ध्यान में रखते हुए शाखा प्रबंधकों को मंजूरी की शक्तियों की समीक्षा कर सकते हैं, ताकि 50,000 रु. से अधिक के ऋण प्रस्ताव भी शाखाओं में जल्दी से निपटाए जा सके ।
च) योजना के अंतर्गत स्वीकृत ऋण प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत अग्रिम माने जाएंगे । ऋण आवेदन शीघ्र निपटाये जाएं ।
बैंक अग्रणी बैंक अधिकारियों और शाखाओं को योजना में प्रभावी रुप से भाग लेने और कार्यान्वयन के लिए उपयुक्त अनुदेश जारी कर सकते हैं ।
खण्ड - घ्ङ
अनुबंध I
मास्टर परिपत्र
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार -
विशेष कार्यक्रम
लेखा परीक्षा प्रमाणपत्र
(खण्ड घ् - पैराग्राफ 8 (ख्) के अनुसार )
हमने उद्योग मंत्रालय,भारत सरकार द्वारा शिक्षित बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार देने के लिए प्रधान मंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत सब्सिडी के बारे में बैंक के दिनांक .. . . . . . से . . . .. . . . तक .. . . . . .. अवधि के लिए रु. .. . . . . . . . . के दावे की जांच उक्त बैंक के मुख्य कार्यालय में खाता बहियों और अन्य रिकार्ड से कर ली है । बैंक के अन्य कार्यालयों द्वारा दिये गये अग्रिम से संबंधित दावों के बारे में हमें प्रस्तुत किये गये रिकार्ड और रजिस्टरों तथा समवर्ती/बाह्य लेखा परीक्षकों की रिपोर्ट और कार्यालयों के प्रभारी अधिकारियों सेप्राप्त प्रमाणित विवरण की लेखा परीक्षा अभी नहीं की है । रिकार्डों, रजिस्टरों, लेखा परीक्षा रिपोर्टों, विवरणों की ऐसी जाँच और हमें प्राप्त जानकारी और स्पष्टीकरणों के आधार पर हम अपनी सर्वोत्तम जानकारी और विश्वास के आधार पर प्रमाणित करते हैं कि . . . . . . . रु. का दावा सही है/सही नहीं है । *
हम ऊपर दर्शायी गयी सामग्री के आधार पर प्रमाणित करते हैं कि बैंक को . . .. . . . . से . . . . . . . . . . .तक की अवधि के लिए उपर्युक्त योजना के अंतर्गत सब्सिडी के बारे में देय राशि .. . . . .. . . . .. . रु. (सिर्फ रु.) है ।
स्थान:
दिनांक : सांविधिक लेखा परीक्षक
* विसंगतियों के पूरे ब्यौरे अनुबंध के जरिये अलग से प्रस्तुत किये जाएं ।
अनुबंध II
मास्टर परिपत्र
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार - विशेष कार्यक्रम
प्रमंरोयो - सब्सिडी के उपयोग/आवश्यकताओं सम्बन्धी विवरण
(पैराग्राफ 8 (ख्व) (क) खण्ड घ् के अनुसार)
वित्तीय वर्ष ----------के लिए --------------को समाप्त तिमाही की संचयी स्थिति दर्शानेवाला विवरण
बैंक का नाम --------------------------------------------------------
कार्यक्रम वर्ष |
बैंकों द्वारा स्वीकृति (वास्तविक प्रगति के अनुसार) |
बैंक द्वारा संवितरण |
कार्यक्रम वर्ष हेतु नियत भारिबैं से प्राप्त संचयी सब्सिडी |
वित्तीय वर्ष के दौरान प्राप्त सब्सिडी वापसियां और कार्यक्रम वर्ष के लिए समायोजित |
आगे लाया गया/* अन्य वर्षों से समायोजित |
कुल उपलब्ध निधियां (9=6+7+8) |
शाखाओं को अदा कर उपयोग में लायी गयी सब्सिडी |
प्रधान कार्यालय के पास उपलब्ध सब्सिडी की शेष राशि |
आवश्यक अतिरिक्त सब्सिडी |
||||
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
||||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
11 |
12 |
13 |
14 |
1998-99 |
|||||||||||||
1999-2000 |
|||||||||||||
व)उत्तर-पूर्वी राज्यों के अतिरिक्त अन्य सभी राज्य |
|||||||||||||
वव)उत्तर-पूर्वी राज्य |
|||||||||||||
कुल (घ् और वव) |
|||||||||||||
कुल योग |
नोट : 1. प्रत्येक कार्यक्रम वर्ष से संबंधित आंकड़े अलग से प्रस्तुत किये जाएं ।
2. विशिष्ट कार्यक्रम वर्ष के लिएभारिबैं द्वारा दी गयी सब्सिडी भारिबैं द्वारा मंजूर निर्दिष्ट अनुमति के बिना अन्य
कार्यक्रम वर्षों की सब्सिडी आवश्यकताओं के लिए उपयोग में न लाई जाए ।
3. आंकड़े तिमाही विवरण में नज़दीकी हजार रुपयों में और अंतिम उपयोगिता के लिए रुपयों की पूर्व राशियों
में पूर्णांकित किये जाएं ।
4.संवितरण के लिए निर्दिष्ट तारीख से पहले संवितरित मामले ही सब्सिडी भुगतान के लिए पात्र हैं ।
5. विवरण पर सहायक महाप्रबंधक/उप महाप्रबंधक अथवा उससे उच्च श्रेणी के अधिकारी हस्ताक्षर करें ।
6. कार्यक्रम वर्ष 1999-2000 से, उत्तर -पूर्वी राज्यों के अतिरिक्त सभी राज्यों में परियोजना लागत के 15% की दर से सब्सिडी देय है, जिसकी
उच्चतम सीमा रु. 7500/- प्रति उधारकर्ता है । उत्तर पूर्वी राज्यों में परियोजना लागत वें 15% की दर से सब्सिडी देय है जिसकी उच्चतम सीमा 15000/- रु.
प्रति उधारकर्ता है । 7 उत्तर-पूर्वी राज्यों में असम,मेघालय,मणिपुर,त्रिपुरा,अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और
नगालैंड शामिल हैं ।
7. उत्तर-पूर्वी राज्यों के संबंध में सब्सिडी की स्वीकृति /संवितरण/उपयोग के ब्योरे कालम 2 से 5 तक, 10 और 11 में अलग से प्रस्तुत किये
जाएं और युनाइटेड बैंक आफ इंडिया, युनाइटेड कमर्शियल बैंक, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक,भारतीय स्टेट बैंक,यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और विजया बैंक के लिए फार्मेट में क्रम सं.(वव) के सामने दर्शायेनुसार प्रस्तुत किये जाएं । 1999-2000 के बाद से अन्य सभी बैंक पूरे देश के लिए दिखा सकते हैं ।
8. विशिष्ट वित्तीय वर्ष में प्राप्त वापसियां, वर्तमान वित्तीय और कार्यक्रम वर्ष के लिए प्रधान कार्यालय के पास उपलब्ध दावों के साथ
समायोजित करा सकते हैं और इस प्रकार समायोजित किए जाने पर कार्यक्रम वर्ष के सामने दिखा सकते है ।
9. *आगे लाया गया/समायोजन ब्यौरे
हस्ताक्षर :
नाम:
पदनाम :
अनुबंध III
मास्टर परिपत्र
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार -
विशेष कार्यक्रम
(खण्ड घ्घ् - पैराग्राफ 11 (ज) के अनुसार )
प्रमंरोयो के अंतर्गत उप-मंडलीय कार्य दल का गठन
1. महाप्रबंधक, जिला उद्योग केंद्र - - अध्यक्ष
2. उप मंडलीय अधिकारी (सिविल प्रशासन)/प्रतिनिधि - सदस्य
3. अग्रणी बैंक अधिकारी - सदस्य
4. उप-मंडल में भाग लेनेवाले सभी बैंक - सदस्य
5. जिला रोजगार अधिकारी/प्रतिनिधि - सदस्य
6. जिला ग्रामीण विकास एजेन्सी का प्रतिनिधि - सदस्य
7. कार्यकारी प्रबंधक जिला उद्योग केंद्र - सदस्य सचिव
8. जिला कल्याण अधिकारी/प्रतिनिधि - सदस्य
- महाप्रबंधक जिला उद्योग केन्द्र द्वारा - सदस्य
- महाप्रबंधक,जिला उद्योग केंद्र - अध्यक्ष
- खंड विकास अधिकारी - सदस्य
- अग्रणी बैंक अधिकारी - सदस्य
- खंड में भाग लेने वाले सभी बैंक - सदस्य
- जिला रोज़गार अधिकारी/प्रतिनिधि - सदस्य
- जिला ग्रामीण विकास एजेन्सी का प्रतिनिधि - सदस्य
- जिला कल्याण अधिकारी/प्रतिनिधि - सदस्य
- महाप्रबंधक,जिला उद्योग केन्द्र द्वारा सहयोजित -
गैर सरकारी संगठनों के 1/2 सहयोजित सदस्य
महाप्रबंधक,जिला उद्योग समिति की अनुपस्थिति में उप मंडलीय अधिकारी/सिविल प्रशासन/(प्रतिनिधि नहीं) बैठक की अध्यक्षता करेंगे ।
उपर्युक्तानुसार सदस्यों में अजा/अजजा समुदाय में से कोई अधिकारी उपलब्ध न होने पर तो उप मंडल में उपलब्ध अजा/अजजा अधिकारी को सहयोजित किया जाए और सदस्य के रुप में आमंत्रित किया जाए ।
अथवा
प्रमंरोयो के अंतर्गत ब्लाक स्तरीय कार्य दल का गठन
गैर सरकारी संगठनों के 1 या 2 सदस्य,यदि उपलब्ध हों
18. कार्यकारी प्रबंधक,जिला उद्योग केंद्र - सदस्य-सचिव
महाप्रबंधक,जिला उद्योग केंद्र की अनुपस्थिति में खंड विकास अधिकारी (प्रतिनिधि नहीं) बैठक की अध्यक्षता करेंगे ।
उपर्युक्तानुसार सदस्यों में अजा/अजजा समुदाय में से कोई अधिकारी उपलब्ध न होने पर खंड में उपलब्ध अजा/अजजा अधिकारी को सहयोजित किया जाए और सदस्य के रुप में आमंत्रित किया जाए ।
अनुबंध IV
मास्टर परिपत्र
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार -
विशेष कार्यक्रम
प्रमंरोयो - मासिक प्रगति रिपोर्ट
(खण्ड घ्घ् - पैराग्राफ 12 (ख) के अनुसार
माह के दौरान |
माह के अंत तक संचयी |
||
(क) |
प्राप्त आवेदनों की कुल संख्या |
||
(ख) |
जिला स्तरीय समिति (डीआइसी) द्वारा अनुशंसित आवेदनों की संख्या |
||
(ग) |
बैंकों द्वारा स्वीकृत आवेदनों की संख्या |
||
(घ) |
बैंकेां द्वारा स्वीकृत ऋण की राशि |
||
(ड़) |
उन मामलों की संख्या जिन्हें ऋण संवितरित किया गया |
||
(च) |
ऋण की संवितरित राशि |
||
(छ) |
प्रशिक्षण और मूलभूत सुविधाओं के लिए केंद्रीय अनुदान |
||
(ज) |
राज्य/संघशासित प्रदेशों द्वारा प्रशिक्षण और मूलभूत सुविधाओं पर व्यय की गयी राशि |
||
(झ) |
प्रशिक्षित और प्रशिक्षण पानेवाले व्यक्तियों की संख्या |
अनुबंध V
मास्टर परिपत्र
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार
विशेष कार्यक्रम
---------------को समाप्त तिमाही के लिए प्र.मं.रो.यो.
की तिमाही प्रगति रिपोर्ट
राज्य/संघ शासित प्रदेश का नाम
(खण्ड घ्घ् - पैरा 12 (ख) के अनुसार )
(राशि लाख रपये में)
क्रम सं. |
जिला उद्योग |
लक्ष्य (वार्षिक) |
आवेदनों की संख्या |
बैंकों द्वारा स्वीकृत |
बैंकों द्वारा मामले |
तिमाही के दौरान |
|||||||||
जिला स्तरीय समिति द्वारा प्राप्त |
बैंकों को |
उद्योग |
सेवा |
व्यवसाय |
कुल |
मामलों |
राशि |
||||||||
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
||||||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
11 |
12 |
13 |
14 |
15 |
16 |
कुल |
---------------को समाप्त तिमाही तक संचयी रिपोर्ट
(लाख रुपये में)
क्रम सं. |
जिला उद्योग |
आवेदकों की संख्या |
स्वीकृत |
संवितरित |
||
बैंकों द्वारा |
बैंकों द्वारा |
बैंकों द्वारा |
||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
अनुबंध VI
2001-2002 के दौरान प्रधानमंत्री रोजगार योजना
के अन्तर्गत अतिरिक्त लक्ष्य
( खण्ड घ्घ्घ् - पैरा 16(ख) के अनुसार )
क्रम सं. |
राज्य/संघ शासित प्रदेश |
कुल लक्ष्य |
अतिरिक्त लक्ष्य |
1. |
आंध्र प्रदेश |
16600 |
16600 |
2. |
असम |
6600 |
|
3. |
अरुणाचल प्रदेश |
150 |
|
4. |
बिहार |
18000 |
|
5. |
दिल्ली |
4600 |
|
6. |
गोवा |
500 |
|
7. |
गुजरात |
8150+4000* |
4100 |
8. |
हरियाणा |
4400 |
4400 |
9. |
हिमाचल प्रदेश |
2600 |
400 |
10. |
जम्मू और कश्मीर |
1300 |
|
11. |
कर्नाटक |
10700 |
8000 |
12. |
केरल |
14700 |
7300 |
13. |
मध्य प्रदेश |
14100 |
3600 |
14. |
महाराष्ट्र |
22300 |
5600 |
15. |
मणिपुर |
1100 |
|
16. |
मेघालय |
350 |
250 |
17. |
मिज़ोरम |
250 |
|
18. |
नगालैंड |
250 |
250 |
19. |
उड़ीसा |
7050 |
5000 |
20. |
पंजाब |
4200 |
4800 |
21. |
राजस्थान |
8200 |
8200 |
22. |
तमिलनाडु |
18550 |
1450 |
23. |
त्रिपुरा |
800 |
2200 |
24. |
उत्तर प्रदेश |
25100 |
25100 |
25. |
पश्चिम बंगाल |
22000 |
|
26. |
अंड़मान और निकोबार |
100 |
|
27. |
चंडीगढ़** |
300 |
|
28. |
दमण और दीव |
50 |
|
29. |
दादरा और नगर हवेली |
50 |
|
30. |
लक्षद्वीप |
50 |
|
31. |
पांडिचेरी |
450 |
|
32. |
सिक्किम |
50 |
|
33. |
उत्तरांचल |
1000 |
4000 |
34. |
झारखंड |
3000 |
6000 |
35. |
छत्तीसगढ़ |
2500 |
* भूकंप से प्रभावित जिलों के लिए अतिरिक्त लक्ष्य
** संघ शासित प्रदेश की सरकार के अनुरोध पर
100 कम किए गए ।
अनुबन्ध VIII
मास्टर परिपत्र
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्रों को उधार
विशेष कार्यक्रम
प्र.मं.रो.यो. - तिमाही प्रगति रिपोर्ट
(पैराग्राफ 17(ख) - खण्ड घ्घ्घ् के अनुसार)
आँकड़े प्रस्तुत करने का प्रोफार्मा :- व ) कार्यान्वयन बैंक शाखाओं द्वारा उनके नियंत्रक कार्यालयों/संबंधित जिले के अग्रणी बैंक अधिकारी/
जिला समन्वयक को ,
वव ) नियन्त्रक कार्यालयों द्वारा राज्य स्तर पर उनके क्षेत्रीय/आँचलिक कार्यालयों को , ववव ) क्षेत्रीय/आँचलिक कार्यालयों द्वारा उनके प्रधान कार्यालय/राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति
के संयोजक/ग्राआऋवि (भारिबैं) को , वख् ) बैंकों के प्रधान कार्यालयों द्वारा ग्रा.आ.ऋ.वि.,भा.रि.बैं.,केन्द्रीय कार्यालय,मुम्बई को ,
बैंक का नाम -------------------------------------------------------------------------को समाप्त तिमाही के लिए संचयी स्थिति दर्शाने वाली रिपोर्ट
(रु. हजार में)
राज्य /संघ शासित प्रदेश का नाम |
लक्ष्य |
प्राप्त आवेदनों की संख्या |
कुल स्वीकृत ऋण |
कुल संवितरित ऋण |
कुल स्वीकृत ऋणों में से अजा/अजजा को स्वीकृत ऋण |
कुल संवितरित ऋणों में से अजा/अजजा को संवितरित ऋण |
कुल स्वीकृत ऋणों में से अन्य पिछड़ी जाति को स्वीकृत ऋण |
कुल संवितरित ऋणों की तुलना में अन्य पिछड़ी जातियों को संवितरित ऋण |
कुल स्वीकृत ऋणों की तुलना में महिलाओं को स्वीकृत ऋण |
कुल संवितरित ऋणों में से महिलाओं को संवितरित ऋण |
||||||||||||||||||
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
कुल स्वीकृतऋणों की तुलना में % |
सं. |
राशि |
कुल स्वीकृतऋणों की तुलना में %
|
सं. |
राशि |
कुल संवि-तरित ऋणों की तुलना में %
|
सं. |
राशि |
कुल स्वीकृतऋणों की तुलना में %
|
सं. |
राशि |
कुल संवि-तरित ऋणों की तुलना में %
|
सं. |
राशि |
कुल स्वीकृतऋणों की तुलना में %
|
सं. |
राशि |
कुल स्वीकृतऋणों की तुलना में % |
||||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
11 |
12 |
13 |
14 |
15 |
16 |
17 |
18 |
19 |
20 |
21 |
22 |
23 |
24 |
25 |
26 |
|||
अनुबंध VI
मास्टर परिपत्र
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार -
विशेष कार्यक्रम
प्र.मं.रो.यो. - कार्यान्वयन एजेंसी को ----------माह तक संचयी प्रगति की
मासिक बैंक रिपोर्ट भेजने का प्रोफार्मा
(पैराग्राफ 17(ख) - खण्ड घ्घ्घ् के अनुसार)
बैंक का नाम -------------------------------- बैंक शाखा ----------------------------- ( राशि लाख रु. में)
माह तक कार्यदल |
बैंकों द्वारा स्वीकृत |
माह के दौरान बैंक |
||||||||||||||||
उद्योग |
सेवा |
व्यवसाय |
कुल |
महिलाओं |
अनु.जाति |
अनु.ज.जा. |
अन्य पिछड़ा वर्ग |
|||||||||||
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशिं |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
|
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
11 |
12 |
13 |
14 |
15 |
16 |
17 |
18 |
19 |
अनुबंध VIII
मास्टर परिपत्र
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार -
विशेष कार्यक्रम
प्रमंरोयो - कार्यान्वयन एजेंसी को ---------------माह तक संचयी
प्रगति की मासिक बैंक रिपोर्ट भेजने का प्रोफार्मा
( पैराग्राफ 17(ख) - खण्ड घ्घ्घ् के अनुसार )
बैंक का नाम ----------------------- बैंक शाखा --------------------------- (राशि लाख रु. में)
माह तक कार्यदल से प्राप्त मामलों की संख्या |
बैंकों द्वारा स्वीकृत |
अस्वीकृत/ कार्यान्वयन एजेंसी के पास पुन: परीक्षण के लिए भेजे गए आवेदन पत्रों की सं. |
बैंकों द्वारा आवेदन पत्र अस्वीकृत किये जाने के मुख्य कारण |
|||||||||||||||||
उद्योग |
सेवा |
व्यवसाय |
जोड़ |
महिलाएं |
अनु.जाति |
अनु.जनजाति |
अन्य पिछड़ा वर्ग |
माह के दौरान बैंक द्वारा संवितरण |
||||||||||||
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
|||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
11 |
12 |
13 |
14 |
15 |
16 |
17 |
18 |
19 |
20 |
21 |
अनुबंध IX
मास्टर परिपत्र
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्रों को उधार -
विशेष कार्यक्रम
प्रमंरोयो - बैंकों द्वारा सब्सिडी उपयोग करने संबंधी सूचना का फार्मेट
(पैराग्राफ 17(घ )- खण्ड घ्घ्घ् के अनुसार )
कार्यक्रम वर्ष 1993-94 से 1996-97 तक की संचयी स्थिति दर्शाने वाला प्रमाण पत्र
(राशि लाख रुपये में)
बैंक का नाम ------------------------------
वर्ष |
बैंकों द्वारा स्वीकृत राशि |
बैंक द्वारा संवितरित राशि |
भा.रि.बैं. से प्राप्त सब्सिडी (कार्यक्रम वर्ष वार) |
उसी वर्ष सब्सिडी का उपयोग |
बैंक के पास शेष सब्सिडी (कॉलम 6-7) |
कार्यक्रम वर्ष के लिए उपयोग की गई कॉलम 8 की शेष सब्सिडी |
बैंक के पास शेष कॉलम (9-12)से कॉलम 8 कम करें) |
|||||
सं. |
राशि |
सं. |
राशि |
1993-94 |
1994-95 |
1995-96 |
1996-97 |
|||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
11 |
12 |
13 |
1993-94 |
||||||||||||
1994-95 |
||||||||||||
1995-96 |
||||||||||||
1996-97 |
||||||||||||
कुल |
नोट:-
- भारतीय रिज़र्व बैंक से प्राप्त कुल सब्सिडी , कॉलम 7 और 9 से 13 के बराबर होनी चाहिए ।
- कॉलम 9 से 13 का जोड़ कॉलम 8 के बराबर होना चाहिए ।
- यदि किसी कार्यक्रम वर्ष के लिए बैंक की आवश्यकता को पूरा करने हेतु पर्याप्त सब्सिडी उपलब्ध नहीं है तो ,
कॉलम 8 तथा/अथवा कॉलम 13 में ऋणात्मक (-) आँकड़े दर्शाये जाए ।
अनुबंध X
मास्टर परिपत्र
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार
विशेष कार्यक्रम
प्र.मं.रो.यो. के अन्तर्गत वसूली निष्पादन
(पैराग्राफ 17(र्ड़) - खण्ड घ्घ्घ् के अनुसार)
( रु. )
राज्य |
मांग |
वसूली |
अतिदेय |
वसूली(%) |
अनुबंध XI
मास्टर परिपत्र
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार
(खण्ड घ्घ्घ् - पैराग्राफ - 18 (ग) के अनुसार)
भारत सरकार
उद्योग मंत्रालय
(लघु उद्योग तथा कृषि
और ग्रामीण उद्योग विभाग)
उद्येाग भवन,नई दिल्ली - 110011
दूरभाष : 3012107
29 सितम्बर 1993
अ.शा.सं.डीआइसी-6(1)/93
प्रिय मुख्य सचिव,
कृपया प्रधान मंत्री महोदय के स्वतंत्रता दिवस के उद्बोधन में घोषित प्र.मं.रो.यो. के कार्यान्वयन के संबंध में दिनांक 24 सितम्बर 93 का मेरा अ.शा.सं.डीआइसी-6(1)/93 के संदर्भ में देखें । योजना की प्रतिलिपि, मुख्य विशेषताएँ और परिचालनगत दिशानिर्देशों के साथ-साथ 1993-94 का लक्ष्य भी संलग्न किया गया था ताकि प्र.मं.रो.यो. 2 अक्तूबर 1993 से आरम्भ की जा सके ।
मैं आशा करता हूँ कि राज्य औद्योगिक विभाग, उनके फील्ड अधिकारियों और अन्य संबंधित एजेंसियों को इस प्रयोजन हेतु जानकारी उपलब्ध करा दी होगी । हम चाहते हैं कि महिलाओं के साथ-साथ कमजोर वर्ग को इस योजना के अन्तर्गत उपलब्ध अवसरों के लिए वरीयता दी जाए । अत: यह निर्णय लिया गया है कि अनु.जाति/अनु.जनजाति को 225 प्रतिशत तथा पिछड़ी जातियों (अन्य पिछड़े वर्ग) को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए । अनु.जाति/अनु.जनजाति/अन्य पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार उपलब्ध न होने पर राज्य सरकार प्र.मं.रो.यो. के अन्तर्गत अन्य श्रेणी के संबंध में विचार करने के लिए सक्षम है ।
भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्र.मं.रो.यो. को लागू करने के लिए सभी भारतीय अनु.सूचित वाणिज्य बैंकों को अनुदेश जारी किए हैं । भारतीय रिज़र्व बैंक के पत्र की एक प्रति आपकी जानकारी हेतु संलग्न है । भारतीय रिज़र्व बैंक ने सूचित किया है कि सभी राज्य सरकारें इसकी निगरानी करें और ऋणों की वसूली के लिए बैंकों की सहायता करें । हमने अपने पिछले पत्र में राज्य सरकारों को सूचित किया था कि वे राज्य स्तर और जिला स्तर पर समितियों का गठन करें ताकि योजना के कार्यान्वयन पर निगरानी रखी जा सके । ये समितियाँ सभी वाणिज्य बैंकों की निगरानी करें और उनसे समन्वय स्थापित करें और ऋणों की वसूली में उनकी सहायता करें । इससे योजना के सफल कार्यान्वयन में सहायता मिलेगी ।
साभार
हस्ता0/-
(एस.एल.कपूर)
सचिव
अनुबंध XII
मास्टर परिपत्र
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार -
विशेष कार्यक्रम
(पैराग्राफ 18 (घ) - खण्ड घ्घ्घ् के अनुसार)
राज्य/संघ शासित क्षेत्र प्रमंरोयो समिति का गठन
राज्य प्रमंरोयो समिति नए सदस्य आने के कारण पुन: गठित की गई है । सदस्यों के ब्यौरे निम्नानुसार हैं :
1. महा सचिव अध्यक्ष
2. सचिव,उद्योग विभाग सदस्य
3. सचिव, वित्त विभाग "
4. सचिव, आयोजना विभाग "
5. सचिव, ग्रामीण विकास विभाग "
6. सचिव, श्रम विभाग
7. भारतीय रिजर्व बैंक सहित राज्य और संघ शासित
- क्षेत्र स्तरीय बैंकिंग संस्थाओं के प्रतिनिधि ,, "
8. उद्योग और वाणिज्य आयुक्त/निदेशक सदस्य सचिव
यदि बैठकों में अन्य पदाधिकारी व पदाधिकारियों
से इतर सदस्यों की उपिस्थति आवश्यक
समझी जाती है तो उन्हें भी आमंत्रित किया जाए । सदस्य
9. निदेशक, लघु उद्योग सेवा संस्थान / प्रभारी,
राज्यों / संघ शासित क्षेत्रों की लघु उद्योग सेवा
संस्थान शाखा सदस्य
10. अजा/अजजा के कल्याण से संबंधित पदाधिकारी सदस्य
यदि बैठकों में अन्य पदाधिकारी व पदाधिकारियों से इतर सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक समझी जाती है तो उन्हें भी आमंत्रित किया जाए ।
कार्य -
1. योजना का प्रारुप तैयार करना, उसके कार्यान्वयन और निगरानी के
संबंध में जिला प्रमंरोयो समितियों को नेतृत्व और मार्गदर्शन
उपलब्ध कराना ।
- विभिन्न कार्यान्वयन एजेंसियों में अन्तर-विभागीय समन्वय स्थापित करना और मूलभूत और विपणन सुविधाएँ प्रदान करना ।
- व्यय की समीक्षा यह सुनिश्चित करने के लिए करना कि वह स्वीकृत सीमा में रहे ।
- प्रत्यक्ष लक्ष्यों और उपलब्धियों की समीक्षा करना
- योजना के कार्यान्वयन की निगरानी करना और उसका मूल्यांकन करना
- विभिन्न कार्यान्वयन एजेंसियों के बीच राज्य स्तर पर सार्थक बातचीत के लिए मंच उपलब्ध कराना ।
जिला प्रमंरोयो समिति का गठन
1. जिला कलैक्टर/उपायुक्त अध्यक्ष
2. सीईओ,जिला ग्रामीण विकास एजेंसी सदस्य
3. जिला रोज़गार अधिकारी "
4. अग्रणी बैंक प्रबंधक "
5. अध्यक्ष,कार्य दल समिति सदस्य सचिव
इन अधिकारियों/प्रतिनिधियों के अतिरिक्त अध्यक्ष निम्नलिखित में से एक या अधिक पदाधिकारियों को सहयोजित कर सकता है :-
समाज सेवा,उद्योग/व्यवसाय, जिला कल्याण अधिकारी, जिला सांख्यिकीय अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी, स्थानीय इंजिनियरिंग महाविद्यालयों/पॉलिटेक्नीक/आइटीआइ के प्रधानाचार्यों अथवा तकनीकी शिक्षा/व्यावसायिक प्रशिक्षण/ औद्योगिक प्रशिक्षण, बैंकों के प्रतिनिधियों में से एक या अधिक गणमान्य नागरिक ।
जिला प्रमंरोयो समितियों के कार्य
- विभिन्न एजेंसियों को योजना के मूल मानदंडों और अपेक्षाओं तथा उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के संबंध में उन्हें सूचित करते रहना ।
- प्रशिक्षण और वित्तीय मानदंडों की प्रगति की समीक्षा करना और समग्र व्यय को स्वीकृत सीमा में रखते हुए नए मानदंड निर्धारित करना ।
- योजना का प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए उसकी निगरानी और मूल्यांकन करना ।
- अन्तर-विभागीय समन्वय और सहयोग सुनिश्चित करना ।
- उपलब्धियों का प्रचार करना तथा योजना के बारे में जानकारी का प्रसार और जागरुकता उत्पन्न करना ।
- राज्य सरकार को निर्धारित प्रोफार्मा में आवधिक विवरण भेजना ।
उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन
1. सचिव, लघु उद्योग और एआरआइ मंत्रालय अध्यक्ष
2. अतिरिक्त सचिव और विकास आयुक्त, लघु उद्योग मंत्रालय सदस्य
- अतिरिक्त सचिव और वित्तीय सलाहकार, लघु उद्योग और सदस्य
एआरआइ मंत्रालय
4. सलाहकार (ग्राम और लघु उद्योग), योजना आयोग सदस्य
5. संयुक्त सचिव, ग्रामीण विकास मंत्रालय, वित्त, श्रम, सामाजिक सदस्य
न्याय और सशक्तिकरण, शहरी ाविकास और गरीबी उन्मूलन
6. कार्यपालक निदेशक, भारतीय रिज़र्व बैंक सदस्य
7. अध्यक्ष, भारतीय स्टेट बैंक सदस्य
8. केनरा बैंक, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया, युनाइटेड बैंक आफ सदस्य
इंडिया, फेडरल बैंक लि. के मुख्य कार्यपालक निदेशक
9. महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम, तमिलनाडु और सदस्य
कर्नाटक सरकार के चयनित राज्य सरकारी पदाधिकारी
10. निदेशक (प्रमंरोयो) एआरआइ मंत्रालय सदस्य-सचिव
उच्चाधिकारप्राप्त समिति के कार्य
1. योजना का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना ।
2. योजना की वास्तविक, वित्तीय और मात्रात्मक प्रगति की समीक्षा करना ।
3. समवर्ती मूल्यांकन रिपोर्टों पर विचार करना ।
4. योजना के कार्यान्वयन में शामिल राज्य सरकारों और विभिन्न विभागों, बैंकों तथा एजेंसियों के बीच चर्चा करने हेतु स्थायी मंच के रुप में कार्य करना ।
5. उद्यमवृत्ति विकास से संबंधित उद्यम विकास, सहायता तथा संस्था मजबूत करना और मूलभूत सुविधाएं देने के प्रस्ताव पर विचार करना ।
6. परिचालनगत दिशानिर्देशों का संशोधन और आशोधन ।
अध्यक्ष को समिति के अन्य सदस्यों / आमंत्रितों को आवश्यकता होने पर सहयोजित करने की शक्तियां होंगी ।
अपने कार्य करने के लिए समिति की बैठक आवधिक रुप से होगी ।
अनुबंध XIII
मास्टर परिपत्र
प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार
विशेष कार्यक्रम
प्रमंरोयो- कार्यदल द्वारा सिफारिशें
(खंड घ्घ् के पैराग्राफ 13(ख्वव) और खंड घ्घ्घ्के पैराग्राफ 16(ड.) के अनुसार)
सं. 6 (2)/94-डीआइसी जून 22, 1994
- सचिव, (लघु उद्योग), सभी राज्य/संघ शासित प्रदेश
- उद्योगों के निदेशक, सभी राज्य/संघ शासित प्रदेश
विषय : प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत बैंकों को कार्य दल
की सिफारिशें तथा प्रमंरोयो के अन्तर्गत राज्य वार/जिला वार लक्ष्य
महोदय,
दिल्ली , प.बंगाल,बिहार,गुजरात और केरल राज्यों में वर्ष 1993-94 के दौरान प्र.मं.रो.यो. के कार्यान्वयन का एक गहन अध्ययन, डीसी,लघु उद्योग के अधिकारियों द्वारा आयोजित किया गया । इन अध्ययनों और अन्य राज्य सरकारों से हुई चर्चा तथा प्रगति रिपोर्टों की समीक्षा से कुछ सामान्य समस्याएँ तथा लक्ष्य आबंटन के सम्बन्ध में भ्रांतियाँ और बैंकों को कार्य दल की सिफारिशें सामने आई हैं । समस्याएँ, संक्षेप में, निम्नानुसार है :-
समस्याएँ
- कुछ राज्यों ने योजना को साथ-साथ चलाने के बजाय अनुवर्ती रुप में कार्यान्वित किया है । अत: उन्होंने पहले चरण में आवेदनपत्र आमंत्रित किए, बाद में जिनकी संवीक्षा की गई कार्य दल ने उनकी सिफारिश की । स्वीकृति मूल्यांकन की प्रक्रिया और बैंकों द्वारा संवितरण, आवेदन पत्र आमंत्रित करने और कार्य दल की सिफारिशें पूरी होने के बाद ही किया गया ।
- बैंकों का लक्ष्य 25% था इसी प्रकार की किसी प्रतिशतता के पूरा होने पर बहुत से बैंक/बैंक शाखाएँ सिफारिश किए गए मामलों को स्वीकार नहीं करते ।
- बहुत से मामलों में, जब स्वीकृत मामले वित्त वर्ष के अन्त तक अनिर्णीत रह जाते हैं तो बैंक उन्हें कार्य दल को लौटा देते हैं ।
- बैंकों/बैंक शाखाओं द्वारा बहुत से मामले यह कह कर लौटा दिए जाते हैं कि "वर्ष के लिए निर्धारित लक्ष्य पूरा कर लिया गया है । "
- बहुत से मामलों में उदाहरणार्थ दिल्ली में, सिफारिश किए गए मामले उस बैंक शाखा को नहीं भेजे गए, जिनके क्षेत्राधिकार में वे आते हैं ।
- सामान्यतया कार्य दल और अग्रणी बैंक, दोनों ने ही लक्ष्यों के पुन: आबंटन में अनावश्यक रुप से बहुत अधिक समय लिया है और जिले में इस प्रकार की आवश्यकता होने पर, पुन: निर्धारण सिफारिशें विभिन्न बैंक शाखाओं को भेजी जानी होती हैं , राज्य स्तर पर भी इसी प्रकार की स्थिति प्रतीत होती है ।
यह निर्णय लिया गया है कि स्पष्टीकरणों का एक समेकित विवरण जारी किया जाए ताकि बैंकों के स्तर पर सिफारिश करने की प्रक्रिया शुरु करने/उन पर संवितरण करने को अधिक सुविधाजनक बनाया जा सके ।
स्पष्टीकरण
- बैंकों/बैंक शाखाओं द्वारा हिताधिकारियों को ऋण स्वीकृत/संवितरित की गतिविधि, आवेदन पत्र आमंत्रित करने और कार्य दल द्वारा की गई सिफारिशों की गतिविधि के समानान्तर होनी चाहिए । ये गतिविधियाँ अनुवर्ती कार्रवाई के रुप में नहीं देखी जानी चाहिए ।
- परिचालनगत दिशानिर्देशों में यह प्रावधान है कि सामान्यतया कार्य दल को प्रत्येक बैंक शाखा के लक्ष्य से दोगुनी संख्या में मामले भेजे जाने चाहिए ताकि बैंक शाखा स्तर पर ही मामले अस्वीकृत करने का कार्य किया जा सके । इस शर्त का नियमित रूप से अनुपालन होना चाहिए ।
- आवेदनपत्र आमंत्रित करना और कार्य दल द्वारा सिफारिशें करना एक सतत प्रक्रिया है । सामान्यतया कार्यदल द्वारा पूरे वर्ष आवेदनपत्र आमंत्रित किए जाने चाहिए । अन्य शब्दों में, निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार योजना के अन्तर्गत एक सम्भाव्य हिताधिकारी किसी भी समय आवेदन कर सकता है न कि एक निर्धारित अवधि के दौरान ।
- कार्य दल की बैठकें नियमित रुप से, यथा आवेदनपत्रों पर विचार और समीक्षा के लिए माह में दो बार होनी चाहिए । इन आवेदनपत्रों पर नियमित आधार पर प्रक्रिया होनी चाहिए । कार्य दल की सिफारिशें प्रत्येक बैंक/बैंक शाखाओं को ध्यान में रखते हुए जिले में विभिन्न बैंकों/बैंक शाखाओं को पूरे वर्ष नियमित रुप से भेजी जानी चाहिए ।
- अग्रणी बैंक और दो बैंक कार्य दल के सदस्य होते हैं । अत: परियोजना का मोटे तौर पर वित्तीय मूल्यांकन कार्य दल द्वारा ही किया जाना चाहिए । परियोजना के आरम्भिक स्तर पर सही मूल्यांकन और सिफारिशों के लिए जब भी आवश्यक समझा जाए हिताधिकारी से साक्षात्कार किया जाना चाहिए ताकि आरम्भिक स्तर पर ही संबंधित जानकारी प्राप्त हो सके ।
- अत: एक बार फिर यह स्पष्ट किया जाता है कि आवेदन पत्र प्राप्त करने और कार्य दल द्वारा उन पर सिफारिशें देना पूरे वर्ष एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए ।
- सामान्य रुप से, किसी भी बैंक शाखा को एक समय में एक विशेष वर्ष के दौरान अपने लक्ष्य से कम से कम दोगुने सिफारिश किए गए मामले स्वीकार करने चाहिए ।
- यदि बैंक/बैंक शाखाएँ प्राप्त किए तथा सिफारिश किए गए लक्ष्य की तुलना में दोगुने मामलों में से अपना लक्ष्य पूरा नहीं कर पाते हैं तो उन्हें कार्य दल से और मामलों की सिफारिश करने का अनुरोध समय रहते करना चाहिए ।
- यह समझा जाना चाहिए कि एक बार सिफारिश किया गया मामला वित्तीय वर्ष के अन्त में अपना अस्तित्व नहीं खो देता है । बैंक के पास वित्तीय वर्ष के अन्त तक पड़े निलम्बित मामलों पर नियमानुसार, आगामी वित्त वर्ष में स्वीकृति/संवितरण के लिए पहले विचार किया जाना चाहिए । तथापि, ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्रक्रिया लागू नहीं की जा रही है क्योंकि पहली तिमाही में स्वीकृति/संवितरण के मामलों की संख्या नगण्य ही है, जिससे स्पष्ट होता है कि बैंक पिछले वित्तीय वर्ष के चले आ रहे मामलों पर विचार नहीं करते हैं अथवा उन्होंने वित्तीय वर्ष के अन्त में मामले यह कह कर लौटा दिए है कि वे निलम्बित थे ।
- नियमानुसार, कार्य दल द्वारा सिफारिश किए गए किसी भी मामले को बैंक/बैंक शाखा द्वारा यह कह कर नहीं लौटाया जाना चाहिए कि लक्ष्य पहले ही प्राप्त कर लिए गए हैं, इत्यादि ।
- यदि किसी विशेष बैंक/बैंक शाखा द्वारा सिफारिश किए गए मामलों का संवितरण लक्ष्य की तुलना में बहुत अधिक अथवा बहुत कम है तो सभी सिफारिश किए गए मामलों को शाखा-वार पुन: आबंटन अग्रणी बैंक प्रबंधक कार्यान्वयन एजेन्सी के परामर्श से तुरन्त करेगा ।
उक्त स्पष्टीकरणों से निम्नानुसार सुनिश्चित होना चाहिए :-
- आवेदन पत्रों का आगमन और कार्य दल द्वारा सिफारिश किए गए मामलों का बैंकों में आगमन पूरे वर्ष नियमित और सतत प्रक्रिया होगी ।
- संभावित हिताधिकारी वर्ष में किसी भी समय मानक प्रक्रिया के अनुसार योजना के अन्तर्गत ऋण के लिए आवेदन करने का पात्र होगा ।
- कार्य दल की बैठकें प्राप्त आवेदनपत्रों पर कार्रवाई करने और अपनी सिफारिशें देने के लिए नियमित (माह में 2 बार) रुप से होती रहेंगी ।
- परियोजना का आरम्भिक स्तर पर वित्तीय मूल्यांकन मोटे तौर पर कार्य दल द्वारा ही किया जाएगा क्योंकि अग्रणी बैंक प्रबंधक और दो अन्य बैंक कार्य-दल के सदस्य हैं । आवेदन पत्र फार्म तथा अन्य जानकारी में यदि कोई कमियाँ होंगी तो वे कार्य-दल के स्तर पर ही दूर कर दी जाएंगी । इस प्रयोजन के लिए, आवश्यकता होने पर, सभांव्य हिताधिकारी से सम्पर्क किया जा सकता है । कार्य दल की बैठकों के लिए नियमित रुप से तारीखें निर्धारित होनी चाहिए तथा उनका प्रचार किया जाना चाहिए ।
- बैंकों के पास स्वीकृति/संवितरण के लिए सिफारिश किए गए पर्याप्त मामले होने चाहिए ।
- बैंकों के पास वर्ष के अन्त तक रखे अनिर्णीत मामलों पर आगामी वर्ष के आरम्भ में पहले विचार किया जाएगा । इससे पूरे वर्ष स्वीकृति और संवितरण की प्रक्रिया सुनिश्चित होगी ।
आपसे अनुरोध है कि आप उक्त स्पष्टीकरण अपनी प्रशासनिक प्रक्रिया में सम्मिलित करें तथा उन्हें उचित प्रकार से लागू करें । कृपया आप उन्हें कार्यान्वयन एजेंसी प्रशिक्षण संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों तथा संबंधित बैंकों की जानकारी में ला सकते हैं ।
हस्ता /-
( राजू शर्मा )
निदेशक (प्र.मं.रो.यो.)
परिशिष्ट
मास्टर परिपत्र
प्रधान मंत्री रोजगार योजना
मास्टर परिपत्र में सम्मिलित परिपत्रों की सूची
क्रम सं. |
परिपत्र सं. |
दिनांक |
विषयवस्तु |
1. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी/बीसी.42/ प्रमंरोयो/93-94 |
28.9.93 |
शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए प्रधान |
2. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी/बीसी.58/ प्रमंरोयो/93-94 |
25.10.93 |
शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए प्रधान |
3. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी/बीसी.88/ प्रमंरोयो/93-94 |
13.1.94 |
शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए प्रधान |
4. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.91/प्रमंरोयो/93-94 |
25.1.94 |
शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए प्रधान |
5. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.107/09.04.01/93-94 |
2.3.94 |
शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए प्रधान |
6. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.115/09.04.01/93-94 |
4.3.94 |
-वही- |
7. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.117/09.04.01/93-94 |
11.3.94 |
प्रधान मंत्री रोजगार योजना |
8. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.131/प्रमंरोयो/94-95 |
30.4.94 |
प्रमंरोयो का गठन - वित्तीय वर्ष |
9. |
ग्राआऋवि.सं.बीसी.167/09.04.01/93-94 |
20.6.94 |
शिक्षित बेरोजगार युवाओं के |
10. |
ग्राआऋवि.सं.बीसी.171/09.04.01/93-94 |
24.6.94 |
शिक्षित बेरोजगार युवाओं के |
11. |
ग्राआऋवि.एसपी.बीसी.7/ 09.04.01/93-94 |
18.7.94 |
प्रमंरोयो - शैक्षिक योग्यताएँ |
12. |
ग्राआऋवि.सं.बीसी.17/09.04.01/94-95 |
27.7.94 |
शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए प्रमंरोयो |
13. |
ग्राआऋवि.सं.बीसी40/09.04.01/94-95 |
29.9.94 |
प्रमंरोयो के अन्तर्गत पारिवारिक आय |
14. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.65/ 09.04.01/94-95 |
9.11.94 |
प्रमंरोयो - सावधि जमा पर ब्याज का भुगतान |
15. |
ग्राआऋवि.सं.992/09.04.01/94-95 |
22.11.94 |
प्रमंरोयो के अन्तर्गत हुई प्रगति पर रिपोर्टिंग प्रणाली |
16. |
ग्राआऋवि.सं.बीसी.127/09.04.01/94-95 |
6.3.95 |
प्रमंरोयो - स्पष्टीकरण |
17. |
ग्राआऋवि.सं.बीसी.133/09.04.01/94-95 |
20.3.95 |
प्रमंरोयो के अन्तर्गत अनु. जाति /अनु.ज.जा. |
18. |
ग्राआऋवि.सं.बीसी.69/09.04.01/95-96 |
28.12.95 |
शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए प्रमंरोयो |
19. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.94/ 09.04.01/95-96 |
16.2.96 |
प्रमंरोयो - वसूली निष्पादन |
20. |
ग्राआऋवि.सं.बीसी.107/ 09.04.01/95-96 |
14.3.96 |
प्रमंरोयो के कार्यान्वयन में खादी ग्रामोद्योग |
21. |
ग्राआऋवि.सं.बीसी.109/ 09.04.01/95-96 |
15.3.96 |
शिक्षित बेरोज़गार युवाओं के लिए |
22. |
ग्राआऋवि.सं.बीसी.134/ 09.04.01/95-96 |
16.5.96 |
शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए |
23. |
ग्राआऋवि.सं.बीसी.137/ 09.04.01/95-96 |
17.5.96 |
प्रमंरोयो के अन्तर्गत प्रशिक्षण |
24. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.138/ 09.04.28/95-96 |
16.5.96 |
प्रमंरोयो - भारिबैं द्वारा आयोजित |
25. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.139/ 09.04.01/96-97 |
21.5.96 |
बैंकों द्वारा संपार्श्विक प्रतिभूति |
26. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.6/ 09.04.01/96-97 |
2.7.96 |
प्रमंरोयो - योजना का कार्यान्वयन |
27. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.37/ 09.01.28/96-97 |
18.9.96 |
प्रमंरोयो - वसूली निष्पादन |
28. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.48/ 09.04.01/96-97 |
15.10.96 |
शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए |
29. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.66/ 09.04.01/96-97 |
19.11.96 |
प्रमंरोयो - आवेदनपत्रों का प्रायोजन |
30. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.75/ 09.04.01/96-97 |
11.12.96 |
शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए प्रमंरोयो |
31. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.127/ 09.04.01/96-97 |
21.4.97 |
प्रमंरोयो - मृतक उधारकर्ता |
32. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.132/ 09.04.01/96-97 |
26.4.97 |
प्रमंरोयो - वर्ष 1993-94, 1994-95 और 1995-96 |
33. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.135/ 09.04.01/96-97 |
12.5.97 |
प्रमंरोयो - स्पष्टीकरण |
34. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.136/ 09.04.01/96-97 |
15.5.97 |
प्रमंरोयो - सब्सिडी का समायोजन |
35. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.43/ 09.04.01/97-98 |
22.10.97 |
प्रमंरोयो -भागीदारी का विघटन |
36. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.86/ 09.04.01/97-98 |
16.2.98 |
प्रमंरोयो - जारी की गई सब्सिडी की |
37. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.86/ 09.04.01/97-98 |
16.2.98 |
प्रमंरोयो - कार्यक्रम वर्ष के दौरान स्वीकृत |
38. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.92/ 09.04.01/97-98 |
21.2.98 |
प्रमंरोयो के अन्तर्गत ऋणों की स्वीकृति और |
39. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.105/ 09.04.01/97-98 |
26.3.98 |
प्रमंरोयो के अन्तर्गत स्वीकृति और संवितरण |
40. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.126/ 09.04.01/97-98 |
3.6.98 |
उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए प्रमंरोयो मानदंडों में छूट |
|
41. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.14/ 09.04.01/98-99 |
25.7.98 |
प्रमंरोयो - स्पष्टीकरण |
|
42. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.18/ 09.04.06/98-99 |
31.7.98 |
प्रमंरोयो के अन्तर्गत बैंकों द्वारा सब्सिडी का |
|
43. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.19/ 09.04.01/98-99 |
31.7.98 |
प्रमंरोयो - स्पष्टीकरण -1997-98 के लिए प्रमंरोयो |
|
44. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.59/ 09.04.01/98-99 |
7.1.99 |
प्रमेरोयो के अन्तर्गत प्रगति की रिपोर्टिंग प्रणाली |
|
45. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.83/ 09.04.01/98-99 |
22.3.99 |
प्रमंरोयो - योजना के दिशानिर्देशों में संशोधन |
|
46. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.106/ 09.04.01/98-99 |
10.6.99 |
प्रमंरोयो के अन्तर्गत संवितरण की समाप्ति |
|
47. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.1/ 09.04.01/99-2000 |
5.7.99 |
प्रमंरोयो - उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए योजना |
|
48. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.2/ 09.04.01/99-2000 |
6.7.99 |
प्रधान मंत्री रोजगार योजना - योजना के दिशानिर्देशों |
|
49. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.3/ 09.04.01/99-2000 |
6.7.99 |
प्रमंरोयो का कार्यान्वयन |
|
50. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.5/ 09.06.01/99-2000 |
8.7.99 |
प्रमंरोयो - अन्तिम सब्सिडी के उपयोग का प्रमाणपत्र/ |
|
51. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.22/ 09.04.06/99-2000 |
23.8.99 |
प्रमंरोयो - तिमाही सब्सिडी के उपयोग का विवरण |
|
52. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.26/ 09.04.01/99-2000 |
28.9.99 |
प्रमंरोयो का 31.3.99 को 1993-94 से 1998-99 |
|
53. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.50/ 09.04.01/99-2000 |
20.12.99 |
प्रमंरोयो - आवेदक की आय का करार नामा |
|
54. |
ग्राआऋवि.सं.एस.बीसी.59/ 09.04.01/99-2000 |
7.2.2000 |
प्रमंरोयो - किराये के परिसर की लीज़ॅ अवधि |
|
55. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.75/ 09.04.01/99-2000 |
27.3.2000 |
प्रमंरोयो - प्रमंरोयो के अन्तर्गत शारीरिक रप |
|
56. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.76/ 09.04.01/99-2000 |
28.3.2000 |
प्रमंरोयो - योजना का कार्यान्वयन |
|
57. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.93/ 09.04.01/99-2000 |
12.5.2000 |
कार्यक्रम वर्ष 1999-2000 के लिए प्रमंरोयो |
|
58. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.94/ 09.04.06/99-2000 |
13.5.2000 |
प्रमंरोयो - कार्यक्रम वर्ष 1998-99 से संबंधित |
|
59. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.95/ 09.04.01/99-2000 |
13.5.2000 |
प्रमंरोयो - योजना का कार्यान्वयन |
|
60. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.2/ 09.04.01/2000-01 |
4.7.2000 |
प्रधान मंत्री रोजगार योजना (प्रमंरोयो) - कार्यक्रम वर्ष |
|
61. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.13/ 09.04.01/2000-01 |
4.9.2000 |
प्रमंरोयो - योजना का कार्यान्वयन - उद्योग पर |
|
62. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.20/ 09.04.01/2000-01 |
30.9.2000 |
शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए प्रधान मंत्री |
|
63. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.55/ 09.04.01/2000-01 |
12.2.2001 |
प्रधान मंत्री रोजगार योजना का कार्यान्वयन - |
|
64. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.80/ 09.04.01/2000-01 |
27.4.2001 |
प्रमंरोयो का कार्यान्वयन - लक्ष्य प्राप्ति 2001-02 |
|
65. |
ग्राआऋवि.स.एसपी.बीसी.82/ 09.04.01/2000-01
|
27.4.2001 |
कार्यक्रम वर्ष 2000-01 के लिए प्रमंरोयो के अन्तर्गत |
|
66. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.84/ 09.04.01/2000-01 |
3.5.2001 |
प्रमंरोयो के अन्तर्गत विवाहित महिलाओं के |
|
67. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.86/ 09.04.01/2000-01 |
15.5.2001 |
प्रमंरोयो ऋणों की वसूली के लिए बैंकों को |
|
68. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.99/ 09.04.01/2000-01 |
22.6.2001 |
वर्ष 2001-02 (संशोधित) के लिए प्रमंरोयो के |
|
69. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.26/ 09.04.01/2001-02 |
19.9.2001 |
एक राज्य में 5 से कम शाखाओं वाले |
|
70. |
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.52/ 09.04.01/2001-02 |
31.12.2001 |
जिन्होंने प्रमंरोयो के अंतर्गत स्वीकृत ऋणों का |
|
71 |
ग्राआऋवि.पीएलएन एफएस.बीसी. 73/09.04.01/2001-02 |
02.04.2002 |
अदेयता प्रमाणपत्र प्राप्त करना - सरकार द्वारा |
|
72 |
ग्राआऋवि.पीएलएन एफएस.बीसी. 79/09.04.01/2001-02 |
17.04.2002 |
राज्य में 5 से कम शाखाओं वाले बैंकों को |
|
73 |
ग्राआऋवि.पीएलएन एफएस.बीसी. 41/09.04.01/2002-03 |
31.10.2002 |
अस्वीकृत मामलों की समीक्षा |
|
74 |
ग्राआऋवि.पीएलएन एफएस.बीसी. 47/09.04.01/2002-03 |
21.11.2002 |
अविवाहित लड़कियों के माता-पिता/ |
|
75 |
ग्राआऋवि.पीएलएन एफएस.बीसी. 71/09.04.01/2002-03 |
12.02.2003 |
हिमाचल प्रदेश और उत्तरांचल में लागू |
|
76 |
ग्राआऋवि.पीएलएन एफएस.बीसी. 17/09.04.01/2003-04 |
11.08.2003 |
मेघालय में विवाहित पुरूषों के लिए |
|
77 |
ग्राआऋवि.पीएलएन एफएस.बीसी. 21/09.04.01/2003-04 |
11.9.2003 |
उद्योग , सेवा और व्यवसाय क्षेत्र के लिए क्रमश: |
|
78 |
ग्राआऋवि.पीएलएन एफएस.बीसी. 31/09.04.01/2003-04 |
01.10.2003 |
जम्मू और काश्मीर में लागू आशोधित मानदंड |
|
79 |
ग्राआऋवि.पीएलएन एफएस.बीसी. 50/09.04.01/2003-04 |
8.12.2003 |
प्रमंरोयो के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों को शामिल करना |
|
80 |
ग्राआऋवि.पीएलएन एफएस.बीसी. 11/09.04.01/2003-04 |
05.05.2004 |
उद्योग, सेवा और व्यवसाय के अंतर्गत शामिल की |
|
81 |
ग्राआऋवि.पीएलएन एफएस.बीसी. 12/09.04.01/2004-05 |
30.07.2004 |
प्रमंरोयो का कार्यान्वयन-मानदंडों में आशोधन |
|
82. |
ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस.बीसी. |
30.07.2004 |
राज्य में 5 से कम शाखाओं वाले बैंकों में प्रमंरोयो |
|
83. |
ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस.बीसी. |
30.07.2004 |
प्रमंरोयो के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों को शामिल |
|
84. |
भारिबैं/2004-05/145/ ग्राआऋवि. |
27.08.2004 |
प्रमंरोयो का कार्यान्वयन - मानदंडों में आशोधन |
|
85. |
भारिबैं/2004-05/190/ ग्राआऋवि. |
24.09.2004 |
प्रमंरोयो - कार्यक्रम वर्ष 2003-04 के अंतर्गत |
|
86. |
भारिबैं/2004-05/191/ ग्राआऋवि. |
24.09.2004 |
वर्ष 2004-05 के लिए प्रमंरोयो के अंतर्गत |
|
87. |
भारिबैं/2004-05/216/ ग्राआऋवि. |
12.10.2004 |
वर्ष 2004-05 के लिए प्रमंरोयो के अंतर्गत |
|
88. |
भारिबैं/2004-05/216/ ग्राआऋवि. |
27.12.2004 |
वर्ष 2004-05 के लिए प्रमंरोयो के अंतर्गत लक्ष्य |
|
89. |
भारिबैं/2004-05/401/ ग्राआऋवि. |
22.03.2005 |
प्रमंरोयो - असंगठित क्षेत्र को ऋण उपलब्धि |
|
90. |
भारिबैं/2004-05/416/ ग्राआऋवि. |
8.4.2005 |
प्रमंरोयो - कार्यक्रम वर्ष 2004-05 के अंतर्गत |
|
91. |
भारिबैं/2004-05/427/ ग्राआऋवि. |
20.4.2005 |
वर्ष 2004-05 के लिए प्रमंरोयो के अंतर्गत |
|
92. |
भारिबैं/2004-05/452/ ग्राआऋवि. |
4.5.2005 |
वर्ष 2004-05 के लिए प्रमंरोयो के कार्यान्वयन |
|
93. |
भारिबैं/2004-05/469/ ग्राआऋवि. |
16.5.2005 |
प्रमंरोयो - कार्यक्रम वर्ष 2004-05 के अंतर्गत |
|
94. |
भारिबैं/2004-05/491/ ग्राआऋवि. |
14.6.2005 |
प्रमंरोयो - कार्यक्रम वर्ष 2004-05 के अंतर्गत |
टिप्पणी :- 1. इस प्रोफार्मा में आँकड़े राज्य/संघ शासित प्रदेश स्तर पर बैंकों के नियंत्रक कार्यालयों द्वारा उनके क्षेत्रीय ग्रामीण कार्यालयों को भेजे
जाएंगे,क्षेत्रीय/आँचलिक कार्यालयों द्वारा राज्य वार स्थिति उनके प्रधान कार्यालयों को भेजी जाएगी जबकि प्रत्येक राज्य/संघ शासित
प्रदेश की जिला वार स्थिति वे राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति के संयोजकों और ग्रामीण आयोजना और ऋण विभाग,भारतीय रिज़र्व बैंक
के क्षेत्रीय कार्यालयों को भेजेंगे ।
2. विवरण शीघ्रता से समेकित करके नीचे निर्दिष्ट समय सीमा में भेजे जाएँ :-
से |
को |
अधिकतम अनुमत अवधि |
क) शाखा |
नियंत्रक कार्यालय/अग्रणी बैंक कार्यालय |
तिमाही समाप्त होने से 10 दिन तक |
ख) नियंत्रक कार्यालय और जिला समन्वयक |
क्षेत्रीय/आँचलिक कार्यालय |
तिमाही समाप्त होने से 20 दिन तक |
ग) क्षेत्रीय/आँचलिक कार्यालय |
राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति के संयोजक |
तिमाही समाप्त होने से 30 दिन तक |
घ) बैंकों के प्रधान कार्यालय |
ग्रामीण आयोजना और ऋण विभाग,भारतीय |
तिमाही समाप्त होने से 45 दिन तक |
अनुबंध VI
2001-2002 के दौरान प्रधानमंत्री रोजगार योजना
के अन्तर्गत अतिरिक्त लक्ष्य
( खण्ड घ्घ्घ् - पैरा 16(ख) के अनुसार )
क्रम सं. |
राज्य/संघ शासित प्रदेश |
कुल लक्ष्य |
अतिरिक्त लक्ष्य |
1. |
आंध्र प्रदेश |
16600 |
16600 |
2. |
असम |
6600 |
|
3. |
अरुणाचल प्रदेश |
150 |
|
4. |
बिहार |
18000 |
|
5. |
दिल्ली |
4600 |
|
6. |
गोवा |
500 |
|
7. |
गुजरात |
8150+4000* |
4100 |
8. |
हरियाणा |
4400 |
4400 |
9. |
हिमाचल प्रदेश |
2600 |
400 |
10. |
जम्मू और कश्मीर |
1300 |
|
11. |
कर्नाटक |
10700 |
8000 |
12. |
केरल |
14700 |
7300 |
13. |
मध्य प्रदेश |
14100 |
3600 |
14. |
महाराष्ट्र |
22300 |
5600 |
15. |
मणिपुर |
1100 |
|
16. |
मेघालय |
350 |
250 |
17. |
मिज़ोरम |
250 |
|
18. |
नगालैंड |
250 |
250 |
19. |
उड़ीसा |
7050 |
5000 |
20. |
पंजाब |
4200 |
4800 |
21. |
राजस्थान |
8200 |
8200 |
22. |
तमिलनाडु |
18550 |
1450 |
23. |
त्रिपुरा |
800 |
2200 |
24. |
उत्तर प्रदेश |
25100 |
25100 |
25. |
पश्चिम बंगाल |
22000 |
|
26. |
अंड़मान और निकोबार |
100 |
|
27. |
चंडीगढ़** |
300 |
|
28. |
दमण और दीव |
50 |
|
29. |
दादरा और नगर हवेली |
50 |
|
30. |
लक्षद्वीप |
50 |
|
31. |
पांडिचेरी |
450 |
|
32. |
सिक्किम |
50 |
|
33. |
उत्तरांचल |
1000 |
4000 |
34. |
झारखंड |
3000 |
6000 |
35. |
छत्तीसगढ़ |
2500 |
* भूकंप से प्रभावित जिलों के लिए अतिरिक्त लक्ष्य
** संघ शासित प्रदेश की सरकार के अनुरोध पर
100 कम किए गए ।