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मास्टर परिपत्र प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्रों को ऋण-विशेष कार्याम स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोज़गार योजना

भारिबैं / 2005 - 06/ 51
ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी. 13 /09.01.01/2005-06

जुलाई 12, 2005

सभी वाणिज्य बैंक
महोदय,

मास्टर परिपत्र प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्रों को ऋण-विशेष कार्यक्रम स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोज़गार योजना

वफ्पया आप स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना पर दिनांक 31 अगस्त 2004 का हमाारा मास्टर परिपत्र भारिबैं /2004-05/150; ग्राआऋवि.सं.एसपी.बीसी.25/09.01.01/2003-04 देखें ।

बैंकों को वर्तमान अनुदेश एक ही स्थान पर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से योजना के सभी वर्तमान दिशा-निर्देशों / अनुदेशों / निदेशों को सम्मिलित करते हुए एक मास्टर परिपत्र तैयार किया गया है तथा संलग्न है । हम सूचित करते हैं कि इस मास्टर परिपत्र में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उक्त विषय पर आज तक जारी सभी परिपत्र सम्मिलित हैं जैसाकि परिशिष्ट में दर्शाया गया है ।

वफ्पया पावती भेजें ।

भवदीय

( जी. श्रीनिवासन )

मुख्य महाप्रबंधक


स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (स्वग्रास्वयो)

निम्नलिखित विद्यमान योजनाओं को पुनर्गठित करते हुए ग्रामीण विकास विभाग, भारत सरकार ने स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (स्वग्रास्वयो) नामक नया कार्यक्रम शुरु किया है :

  1. समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (आइआरडीपी)
  2. स्वरेाजगार हेतु ग्रामीण युवाओं का प्रशिक्षण (टॅ्राइजम)
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में महिला एवं बाल विकास (ड्वक्रा)
  4. ग्रामीण शिल्पियों को परिष्वफ्त उपकरणों की आपूर्ति (सिटॅ्रा)
  5. गंगा कल्याणयोजना (जीकेवाय)
  6. मिलियन कूप योजना (एमडब्ल्यूएस)

ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा सभी जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों/बैंकों को विस्तफ्त दिशानिर्देश परिचालित किए गए हैं ।

1. योजना

स्वग्रास्वयो दिनांक 1 अप्रैल 1999 से देश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रारम्भ की गई है । स्वग्रास्वयो एक ऐसी सर्वांंगीण योजना है, जिसमें स्वरोजगार के सभी पहलुओं, जैसे गरीबों को स्वयं-सहायता समूहों में संगठित करना, प्रशिक्षण, ऋण,प्रोद्यौगिकी , बुनियादी संरचना एवं विपणन आदि शामिल हैं । उक्त योजना 75:25 के अनुपात में केन्द्र और राज्यों द्वारा निधिवफ्त की जाएगी तथा इसका कार्यान्वयन वाणिज्य बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा सहकारी बैंकों द्वारा किया जाएगा ।योजना की आयाोजना,कार्यान्वयन और निगरानी हेतु अन्य वित्तीय संस्थाओं, पंचायती राज संस्थाओं, जिला ग्रामीण विकास एजेन्सियों, गैर-सरकारी संगठनों,जिले की तकनीकी संस्थाओं को भी सहभागी बनाया

जाएगा स्वयं-सहायता समूहों के गठन, विकास और स्व-रोजगारी व्यक्तियों की प्रगति पर निगरानी हेतु गैर सरकारी संगठनों की सहायता भी ली जा सकती है । यथासंभव, उनकी सेवाओं का उपयोग प्रौद्योगिक सहायता, उत्पादों के गुणवत्ता नियंत्रण तथा वसूली पर्यवेक्षण एवं सुविधाकरण हेतु भी किया जा सकता है ।

योजना इस लक्ष्य पर केन्द्रित है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत बड़ी संख्या में व्यष्टि -स्तरीय उद्यम स्थापित किये जाएं । स्वग्रास्वयो के अंतर्गत सहायता हेतु परिवारों की पहचान, गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों की जनगणना और ग्रामसभा द्वारा विधिवत् अनुमोदित सूची के आधार पर की जाएगी ।

स्वग्रास्वयो का उद्देश्य सहायताप्राप्त गरीब परिवारों (स्वरोजगारियों) को निर्धारित अवधि में निर्वाह योग्य आय सुनिश्चित करके गरीबी रेखा से ऊपर लाना है । इस उद्देश्य के माध्यम से अन्य बातों के साथ-साथ गरीब ग्रामीणों को सामाजिक संगठन द्वारा स्वयं सहायता समूह में संगठित करना, उनका प्रशिक्षण तथा आय सफ्जन करने वाली आस्तियाँ उपलब्ध कराना है । इस योजना में भूमिहीन और भूमि वाले, शिक्षित बेरोजगार, ग्रामीण शिल्पी और विकलांग जैसे सभी ग्रामीण गरीब शामिल हैं ।

जिन व्यक्तियों अथवा परिवारों को इस योजना के अंतर्गत सहायता प्राप्त हो, उन्हें स्वरोजगारी के रुप में जाना जाएगा और गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों में से उनका चयन एक तीन सदस्यीय दल द्वारा किया जाएगा जिसमें खण्ड विकास अधिकारी, बैंकर तथा सरपंच शामिल रहेंगे ।

स्वग्रास्वयो ग्रामीण गरीबों के कमज़ोर वर्गों पर ध्यान केन्द्रित करेगी । तदनुसार इस योजना के अंतर्गत सहायता पाने वालों में न्यूनतम 50% अ.जा./अ.ज.जा. हिताधिकारी, 40% महिलाएं तथा 3% विकलांग शामिल रहेंगे ।

2. कौशल उन्नयन/प्रशिक्षण

सहायता हेतु एक बार किसी व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह की पहचान हो जाने के पश्चात् यह जरुरी हो जाता है कि न्यूनतम कौशल के संदर्भ में उनकी प्रशिक्षण आवश्यकताएं सुनिश्चित की जाएं । ऋण ओवदनों की संवीक्षा के दौरान तकनीकी कौशल का आकलन सम्बन्धित विभागों द्वारा तथा प्रबंधकीय कौशल का आकलन बैंकर द्वारा किया जाएगा । कौशल युक्त स्वरेाजगारियों को बुनियादी परिचयात्मक कार्यक्रम में अनिवार्यत: शामिल किया जाएगा । इस कार्यक्रम में बुक कीपिंग, बाज़ार का ज्ञान, अभिनिर्धारण और मूल्यांकन, परिचयात्मक उत्पाद-लागत-निर्धारण, उत्पाद-मूल्य-निर्धारण, बैंकों द्वारा किये जाने वाले परियोजना वित्त-पोषण की जानकारी तथा अभिनिर्धारित मुख्य गतिविधि के

क्षेत्र में बुनियादी कौशल जैसे विषय शामिल रहेंगे । प्रशिक्षण की अवधि दो दिन से ज्यादा नहीं होगी । खण्ड विकास अधिकारी, बैंकर और सम्बन्धित विभाग प्रशिक्षण देने हेतु स्रोत सदस्य होंगे ।

बुनियादी परिचयात्मक और कौशल उन्नयन दोनों प्रशिक्षणों के व्यय का वहन जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों द्वारा स्वग्रास्वयो निधि में से किया जाएगा ।

जिन हिताधिकारियों के मामले में अतिरिक्त कौशल विकास/कौशल उन्नयन अपेक्षित हो, वहां सरकारी एजेन्सियों,पॉलीटेकनिक केन्द्रों, विश्वविाद्यालयों ,गैर-सरकारी संगठनों आदि के माध्यम से उपयुक्त प्राक्षिण की व्यवस्था की जाएगी । स्वरोजगारियों को स्वग्रास्वयो के अंतर्गत ऋणकी पात्रता उसी स्थिति में होगी जब उनके पास न्यूनतम अपेक्षित कौशल हो तथा संवितरण उसी स्थिति में किया जाएगा जब उन्होंने संतोषजनक तरीके से कौशल प्रशिक्षण पूर्ण किया हो ।

यदि स्वरोजगारियों को एक सप्ताह से ज्यादा अवधि का प्रशिक्षण दिया जाना अपेक्षित हो, तो उन्हें वित्तीय सहायता भी मिलेगी । सहायता की दर स्थानीय आधार पर निर्धारित की जाएगी । इस प्रयोजन हेतु बैंक द्वारा स्व-रोजगारियों को ऋण भी दिया जाएगा । तथापि, क्योंकि परियोजना हाथ में लेने से पहले ऋण दिया जाना अपेक्षित होता है, अत: योजना के अंतर्गत निर्धारित सामान्य सुरक्षा मानदण्डों के बावजूद कौशल विकास प्रशिक्षण हेतु बैंक अपने विवेकानुसार, संपार्श्विक जमानत/तफ्तीय पक्ष गारण्टी समर्थित अथवा रहित ऋण भी दे सकते हैं ।

3. गतिविधि समूह, मुख्य गतिविधियां

योजना के अन्तर्गत समूह और व्यक्तिगत सहायता दोनों के लिए ब्लॉक में पहचान की गई मुख्य गतिविधियों पर जोर देते हुए गतिविधि समूह के विकास पर ध्यान केन्द्रित होना चाहिए । गतिविधि समूह उपर्युक्त परिधि में पड़ोसी गाँवों के भौगोलिक समूह में होंगे । तथापि, अन्य गतिविधियों के लिए सहायता देने के लिए निषेध नहीं है । यह विशेष मामलों के लिए केवल समर्थता का प्रावधान है तथा अपेक्षा की जाती है कि प्रमुख गतिविधि के लिए निधियन ही प्रमुख मानदंड होगा ।

स्वग्रास्वयो समिति प्रत्येक ब्लॉक में से 10 गतिविधियों का चयन करेगी । तथापि, उन 4,5 गतिविधियों पर ध्यान केन्द्रित होना चाहिए जिनका चयन प्रशिक्षण समष्टि उद्यम विकास के लिए अधिक समूहों के लिए सामूहिक रुप से किया गया है । यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि या तो उस उत्पाद के लिए बाजार उपलब्ध हो अथवा उसके लिए बाजार तैयार किया जा सके । स्वग्रास्वयो समिति को यह अधिकार प्राप्त होगा कि वह किसी भी गतिविधि को न्यायोचित कारण से प्रमुख गतिविधियों की सूची से हटा सके । जिला ग्रामीण विकास एजेंसियाँ जिले में चयनित प्रमुख गतिविधियों की डिरेक्टरी तैयार करेगी जिसे चयनित गतिविधियों की डिरेक्टरी तैयार करने के लिए जिला स्तर पर संकलित किया जाएगा ।

वफ्षि क्षेत्र के अंतर्गत जिन गतिविधियों हेतु सहायता दी जाती है उनमें खुदे हुए कुएं/बोर/ट्यूब वेल/उद्वहन सिंचाई/नियंत्रण बांध जैसी लघु सिंचाई गतिविधियां शामिल रहेंगी । वफ्षीतर क्षेत्र के अंतर्गत वे गतिविधियां शामिल रहेंगी जिनके फलस्वरुप हाजिर बाजार के लिए

माल/सेवाओं का उत्पादन हो सके । वफ्षि क्षेत्र के लिए इकाई मूल्य निर्धारित करते समय नाबाड़ की क्षेत्रीय समितियों द्वारा यथा-निर्धारित इकाई मूल्य को संकेत मूल्य के रुप में ध्यान में रखा जाए । उद्योग - सेवा और कारोबार (आईएसबी) क्षेत्र के अंतर्गत शामिल ऋणों के मामले में इकाई मूल्य और अन्य तकनीकी - आर्थिक मानदण्ड निर्धारित करने का दायित्व जिला स्वग्रास्वयो समिति का रहेगा ।

4. स्वयं - सहायता समूह

गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की ग्राम सभा द्वारा अनुमोदित सूची में से स्वरोजगारियों द्वारा स्वयं-सहायता समूह गठित किये जाएंगे । योजना के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों के गठन, विकास तथा बैंकों के साथ उनके संयोजन का प्रावधान है । स्वयं सहायता समूह अनौपचारिक समूह अथवा सोसायटी अधिनियम राज्य सहकारी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीवफ्त अथवा भागीदारी फर्म के रुप में हो सकता है । समूह के सदस्यों को व्यक्तिगत रुप से अथवा समूह के सभी सदस्यों को आय सफ्जन करने वाली गतिविधियाँ आरंभ करने के लिए सहायता (ऋण व सब्सिडी) दी जा सकती है । समूह की गतिविधियों को अधिमान्यता दी जाएगी और प्रगामी क्रम में स्वयं-सहायता समूहों को अधिकाधिक निधिवफ्त किया जाएगा । विकासखण्ड स्तर पर गठित समूहों में से आधे समूह केवल महिलाओं के होने चाहिए ।

स्वयं सहायता समूह मूल क्रिया के विभिन्न चरणों से गुजरते हैं यथा समूह बनाना, समूहों को मजबूत करना, माइक्रो ऋण चरण तथा माइक्रो उद्यमिता विकास चरण । योजना के अन्तर्गत स्वयं सहायता समूह में सामान्यतया 10-20 व्यक्ति होते हैं ।

  1. तथापि, रेगिस्तान, पहाड़ों जैसे दुर्गम क्षेत्रों तथा बिखरी हुई जनसंख्या वाले क्षेत्रों और कम सिंचाई वाले क्षेत्रों तथा विकलांग व्यक्तियों के मामले में यह संख्या 5 से 20 तक हो सकती है । दुर्गम क्षेत्रों की पहचान राज्य स्तरीय स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना समिति द्वारा की जानी है तथा सदस्यता में उक्त छूट ऐसे क्षेत्रों के लिए ही दी जाएगी ।
  2. सामान्यत: समूह के सभी सदस्य गरीबी रेखा से नीचे के परिचार के होने चाहिए । तथापि, यदि आवश्यक हो, अधिकतम 20% तथा अपवादात्मक मामलों में, जहाँ अत्यावश्यक हो, समूह के 30% सदस्य उन परिवारों से लिए जा सकते हैं जो गरीबी रेखा से सीमान्त रॅप से ऊपर हों तथा गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों के निकटस्थ हों तथा गरीबी रेखा के नीचे के सदस्यों के समूह को स्वीकार्य हों ।
  3. गरीबी रेखा के ऊपर के सदस्य योजना के अन्तर्गत सब्सिडी के पात्र नहीं होंगे । समूह में एक परिवार के सदस्य से अधिक नहीं होंगे । एक व्यक्ति एक समूह से अधिक का सदस्य नहीं होना चाहिए । गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को प्रबंधन तथा निर्णय लेने में सक्रिय रुप से भाग लेना चाहिए तथा यह सामान्यत: केवल गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों के हाथ में ही नहीं होना चाहिए । साथ ही स्वयं सहायता समूहों के गरीबी रेखा से ऊपर वाले सदस्य समूह की कार्यकारिणी (समूह लीडर, सहायक समूह लीडर कोषपाल) के सदस्य नहीं होने चाहिए ।
  4. समूह का एक सामूहिक खाता उनकी सेवा क्षेत्र बैंक शाखा में होना चाहिए ताकि सदस्यों में ऋण संवितरण के बाद समूह के पास शेष राशिकोउसमें जमा कराया जा सके ।
  5. समूह को सामान्य मूल रिकाड़ का अनुरक्षण करना चाहिए यथा कार्य-विवरण पुस्तिका, उपस्थिति रजिस्टर, ऋण लेजर , सामान्य लेजर, रोकड़ बही, बैंक पास-बुक तथा व्यक्तिगत पास बुक ।
  6. विकलांग व्यक्तियों के मामले में, जहाँ भी संभव हो, बनाया गया समूह विशेष रुप से विकलांग व्यक्तियों का ही होना चाहिए । तथापि, विकलांग समूह बनाने के लिए पर्याप्त संख्या में विकलांगता विशिष्ट समूह के व्यक्ति न मिलने पर, समूह में विभिन्न रुप से विकलांग व्यक्ति सम्मिलित हो सकते हैं अथवा समूह में गरीबी रेखा से नीचे के विकलांग और गैर विकलांग, दोनों प्रकार के सदस्य हो सकते हैं ।
  7. स्वयं सहायता समूह का आकार बड़ा होने पर (जैसा कि केरल सरकार के कदम्बश्री कार्यक्रम के अन्तर्गत पड़ोसी समूह के मामले में, जहाँ प्रत्येक समूह में 40 सदस्य होते हैं) बैंक ऐसे बड़े समूहों को वित्त प्रदान करने में अपनी कठिनाइयाँ बताते रहे हैं । अत: स्वग्रास्वयो के अन्तर्गत बैंकों द्वारा वित्त प्रदान करने के लिए बड़े समूहों के उप-समूहों के बारे में विचार किया जा सकता है बशर्ते कि वे (अथवा बड़े समूह) अपेक्षित ग्रेडिंग मानदण्ड पूरे करते हैं, उनमें अर्थक्षम समूहों की विशेषताएँ हैं तथा बैंक उन्हें विश्वसनीय मानते हैं ।

जिन राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में स्वयं-सहायता समूह की परिपाटी विकसित नहीं हो पाई हो, वहां बैंक पात्र स्वरोजगारियों को ऋण सुविधाएं देना जारी रख सकते हैं ।


5. परिवार और जानबूझकर चूक करने वाले की परिभाषा

भारत सरकार द्वारा स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के प्रयोजन हेतु "परिवार" और "चूककर्ता" शब्दों को निम्नानुसार पारिभाषित किया गया है :-

दिशानिर्देशों के ’अन्तर्गत गरीबी रेखा से नीचे के परिवार’ को आय सफ्जन आस्तियाँ देने के प्रयोजन से एक इकाई के रुप में माना जाएगा । एक परिवार के सदस्य जो शादी, खून के रिश्ते और गोद लेने से बने हैं, उन्हें एक परिवार माना जाएगा । पति, पत्नी, आश्रित माता-पिता/बेटे/बेटियाँ/भाई और बहनों को "परिवार" माना जाएगा । माता-पिता/बेटे/ बेटी/ भाई/ बहन के आश्रित न रहने पर तथा अलग घर होने पर वे गरीबी रेखा के नीचे के उसी परिवार के सदस्य नहीं माने जाएंगे । जिस पारिवारिक इकाई में दो रसोईघर और दो राशन काड़ हो तो क्या उसे एक परिवार न समझा जाए क्योंकि एक ही घर में दो रसोईघर या दो राशन काड़ होना, दो परिवारों को इंगित करता है । ऋण आवेदक द्वारा दिए गए इस तरह का केवल घोषणापत्र कि वह परिवार से अलग रहता है, को अलग परिवार के लिए पर्याप्त दस्तावेज नहीं माना जाए । यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि राशन काड़ प्राप्त करने में विभिन्न आधार स्तरीय कठिनाइयाँ आने के कारण इसे लाने की आवश्यकता पर जोर नहीं दिया जाता । अत: शाखा प्रबंधकों को सूचित किया जाए कि संदिग्ध मामलों में निर्णय लेते समय तथ्य निर्धारित करने के लिए वे निरीक्षण/दौरा करके अपने स्वयं के तरीके अपनाएँ । जहाँ तक जानबूझकर चूक करने वाले शब्द का प्रश्न है, उसकी परिभाषा इस प्रकार होगी "वह व्यक्ति जो ऋण की चुकौती करने में सक्षम है, लेकिन जानबूझकर चूक कर रहा है तथा जानबूझकर ऋण की चुकौती नहीं कर रहा " । यह वांछनीय है कि जानबूझकर चूक करनेवालों को स्वग्रास्वयो के अंतर्गत वित्तपोषण न दिया जाए । यदि जानबूझकर चूक करनेवाले समूह के सदस्य हैं तो, परिक्रामी निधि की सहायता से बनायी गयी राशि सहित समूह के बचत और उधार गतिविधियों से मिलनेवाले लाभ उठानेकी अनुमति दी जा सकती है । परंतु आर्थिक गतिविधियों की सहायता की स्थिति में जानबूझकर चूक करनेवालों को और अधिक लाभ तब तक नहीं देना चाहिए, जबतक वे बकाया ऋणों की चुकौती नहीं करते । समूह के जानबूझकर चूक करनेवालों को स्वग्रास्वयो के अंतर्गत लाभ नहीं मिलेंगे और ऋण प्रलेखन के समय समूह को ऐसे चूककर्ताओं को छोड़कर वित्तपोषण किया जाए । साथ ही, जानबूझकर चूक न करनेवालों को ऋण लेने से रोकना नहीं चाहिए तथा उन्हें एक दल द्वारा प्रमाणित किया जाए जिसमें खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) या उसके प्रतिनिधि, बैंक प्रबंधक और सरपंच होंगे ।

6. परिक्रामी निधि

एसएचजी , जो करीब 6 माह से अस्तित्व में हैं और जो अर्थक्षम समूह की संभाव्यता का प्रमाण हैं, वे तीसरे चरण में जाते हैं और जिला ग्रामीण विकास एजेंसी और बैंकों से नकदी ऋण सुविधा के रुप में परिक्रामी निधि प्राप्त करते हैं । जिला ग्रामीण विकास एजेंसियां, बैंक ऋण से सहलग्न रु.5000/- की न्यूनतम और रु.10,000/- की अधिकतम समूह राशि के बराबर की सब्सिडी दे सकती है । बैंक समूह राशि के गुणजों में ऋण मंजूर कर सकते हैं और यह ऋण राशि समूह की उपयोग क्षमता और ऋण पात्रता के आधार पर नकदी ऋण सुविधा के रुप में समूह राशि के चार गुना अधिक हो सकती है ।

उसके बाद, यदि ऐसा पाया जाता है कि समूह व्यष्टि उद्यम अवस्था तक नहीं पहुंच पाता है और उसे कुछ और अधिक समय तक व्यष्टि वित्त अवस्था में जारी रहने के लिए अधिक वित्तीय समर्थन की आवश्यकता है, तो ऐसे समूहों के कार्यनिष्पादन का मूल्यांकन किया जाए । मूल्यांकन करते समय यदि ऐसा पाया जाता है कि समूह परिक्रामी निधि का सफलतापूर्वक उपयोग कर रहा है, तब बैंक ऋण के साथ सहलग्न पहले के अंश सहित रु. 20,000/- की अधिकतम मात्रा तक अगली सब्सिडी निधि की स्वीवफ्ति दे सकते हैं ।

समूह राशि के अंतर्गत समूह के पास नकदी सहित उपलब्ध कुल राशि, समूह के बचत बैंक खाते की राशि, समूह के सदस्यों पर बकाया ऋण और ऋणों एवं जमाराशियों पर अर्जित ब्याज शामिल होंगे ।

समूहों को परिक्रामी निधि देने का प्रयोजन यह है कि वे अपने समूह की आधार निधि बढ़ा सकें ताकि अधिकाधिक संख्या में सदस्य ऋण सुविधा का लाभ ले सकें और प्रति व्यक्ति आधार पर उपलब्ध ऋण की राशि में भी वफ्ध्दि हो सके । परिक्रामी निधि से सदस्यों के बीच ऋण सम्बन्धी अनुशासन और वित्तीय प्रबंध कौशल विकसित होता है, जिससे अंतत: उनकी साख बढ़ती है । सफलता प्रदर्शित करने वाले स्वयं-सहायता-समूहों को इस योजना के अंतर्गत आर्थिक गतिविधियों हेतु भी सहायता मिलेगी ।

7. ऋण के मानदण्ड

योजना के अंतर्गत ऋण का आकार परियोजना के स्वरुप पर निर्भर होगा । इकाई लागत, अर्थात् परियोजना हेतु अपेक्षित निवेश को छोड़कर निवेश की कोई शीर्ष सीमा नहीं है । योजना के अंतर्गत संमिश्र ऋण प्रदान किये जायेंगे जिनमें मीयादी ऋण और कार्यशील पूंजी शामिल रहेगी । ऋण घटक और अनुमत सब्सिडी की कुल राशि परियोजना लागत के बराबर होगी । स्वरोजगारियों की परियोजना लागत को अंतिम स्वरुप देने के लिए बैंक, जिले की मुख्य गतिविधियों की आदर्श परियोजना रिपोर्ट का अनुसरण कर सकते हैं । किसी भी परिस्थिति में निर्धारित स्तर से कम वित्तपोषण की प्रवफ्त्ति से बचा जाए । स्वरेाजगारियों को ऋण और सब्सिडी की पूरी राशि दी जाएगी और उन्हें अपने स्तर पर परिसम्पत्तियां जुटाने की स्वतंत्रता रहेगी । उद्योग-सेवा और कारेाबार क्षेत्र के अंतर्गत कई मदों की खरीद अपेक्षित होने पर दस हजार रुपये तक के संवितरण नकद किये जाएं ।

i) समूह ऋण

सामूहिक ऋण के अन्तर्गत समूह को एक ही गतिविधि आरंभ करनी चाहिए लेकिन यदि आवश्यक हो तो सामूहिक ऋण के अन्तर्गत एक से अधिक गतिविधियाँ भी आरंभ की जा सकती हैं । किसी भी मामले में ऋण समूह के नाम में ही स्वीवफ्त किया जाएगा तथा ऋण की तुरन्त अदायगी के लिए समूह बैंक के लिए गारंटी के समान होगा । समूह परियोजना लागत की 50% सब्सिडी का पात्र होगा जिसकी सीमा रु. 1.25 लाख अथवा प्रति व्यक्ति सब्सिडी रु. 10000/-, जो भी कम हो, होगी ।

ii) ऋण के बहुमुखी चरण

कई चरणों में सहायतांश दिये जाने के मुद्दे पर ज्यादा ध्यान दिया जाए अर्थात् स्वरोजगारी को इस तरह से द्वितीय तथा अनुवर्ती सहायतांश दिया/दिये जाएं कि वह गरीबी रेखा से उबर सके और उसे उच्चतर राशि की ऋण सुविधा का लाभ मिल सके । सभी सहायतांशों के कुल योग हेतु उपलब्ध सब्सिडी की राशि किसी श्रेणी विशेष के अंतर्गत निर्धारित पात्रता से अधिक नहीं होनी चाहिए । प्रथम/पूर्ववर्ती सहायतांश जारी रहने की अवधि के दौरान ही द्वितीय तथा अनुवर्ती सहायतांश उसी अथवा अन्य किसी बैंक द्वारा दिया जा सकता है बशर्ते प्रथम/पूर्ववर्ती सहायतांश से जुड़े वित्तीय अनुशासन के बारे में सम्बन्धित बैंक संतुष्ट हो । सामान्यतया वे लोग जिनके पास न तो आस्तियाँ हैं और न कौशल, वे ही सबसे गरीब हैं तथा वे इस कार्यक्रम से वंचित रह जाते हैं । इस वर्ग के लोगों को यथोचित अवधि में बहुमुखी ऋण छोटी किस्तें देने के साथ-साथ उनमें जागरुगता उत्पन्न करने, प्रशिक्षण और क्षमता सफ्जन की आवश्यकता होती है । वे गतिविधियाँ जिन्हें चलाना आसान है तथा आसानी से विपणन योग्य उत्पाद को ही ऐसे लोागों के लिए चुनना चाहिए ताकि वे निर्वाह योग्य आय जुटा पाएँ और ऋण के जाल में न फंसें । जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों को चाहिए कि वे यह सुनिश्चित करें कि ऐसी परियोजनाओं से संभावित आय प्राप्त हो और स्वरोजगारी गरीबी रेखा को पार कर लें ।

iii) ब्याज दर

योजना के अंतर्गत सभी ऋणों पर भारतीय रिज़र्व द्वारा समय-समय पर जारी ब्याज दर सम्बन्धी दिशा-निर्देशों के अनुसार ब्याज देय होगा । तथापि, स्वग्रास्वयो के अन्तर्गत समूह ऋणों पर प्रभारित की जाने वाली ब्याज दरें ऋणों के प्रति व्यक्ति मात्रा से सहलग्न की जाएंगी ताकि समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम के सामुहिक ऋणों के समान गरीबी रेखा के नीचे वाले हिताधिकारियों पर भार कम किया जा सके ।

  1. ऋण आवेदन पत्र

क) आवेदन पत्रों के निपटान हेतु समय सीमा

योजना के अंतर्गत प्रदत्त सभी ऋण प्राथमिकता क्षेत्र के अंतर्गत अग्रिम माने जाएं । ऋण -आवेदनों का निपटारा 15 दिनों के भीतर कर दिया जाए तथा किसी भी स्थिति में निपटारे हेतु एक माह से ज्यादा का समय नहीं लगे । आवेदन पत्र निलम्बित न रखें जाएँ इसके लिए बैंकरों और सरकारी कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय होना आवश्यक है । आवेदन प्राप्त करने, उन्हें स्वीवफ्त करने और संवितरण के बीच न्यूनतम अंतराल होना चाहिए ।

ख) आवेदनपत्रों को अस्वीकार करना

यदि कोई आवेदन पत्र शाखा प्रबंधकों द्वारा अस्वीकफ्त किए जाते हैं तो अस्वीवफ्त करने के कारण आवेदन पत्र के फार्म पर ही दर्ज किए जाएँ तथा सम्बन्धित आवेदन पत्र प्रायोजक प्राधिकरण को तुरन्त उनकी जानकारी अथवा कार्रवाई, जो भी वे उचित समझें, हेतु लौटाया जाए । योजना के अंतर्गत ऋण प्रस्तावों की स्वीकफ्ति हेतु शाखा प्रबंधकों को पर्याप्त विवेक-सम्मत अधिकार दिये जाएं ताकि वे उच्चतर अधिकारियों को संदर्भित किये बगैर अपेक्षित मंजूरी दे सकें ।

8. सग्राविका उधारकर्ताओं को सहायता

व) यदि सग्राविका के विद्यमान उधारकर्ता निर्दोष होने के बावजूद गरीबी रेखा से उबरने में असफल रहे हों, तो स्वग्रास्वयो के अंतर्गत द्वितीय/बहुचरणीय सहायतांश हेतु उनके लिए भी विचार किया जा सकता है ।

स्वग्रास्वयो के अधीन बैंक सग्राविका के ऐसे ऋणकर्ताओं को ऋण देने पर भी विचार कर सकते हैं जो इरादतन चूककर्ता नहीं हों तथा जिनके विरुध्द 5 हजार रुपये से ज्यादा की राशि बकाया नहीं हो । सग्राविका के विद्यमान हिताधिकारियों को उपलब्ध सब्सिडी सम्बन्धित श्रेणी के अंतर्गत निर्धारित शीर्ष सीमा तक ही सीमित रहेगी किन्तु उक्त शीर्ष सीमा में वह राशि घटा दी जाएगी जिसका हिताधिकारी ने सग्राविका के अंतर्गत लाभ लिया हो ।

  1. सग्राविका दुरुपयोग के मामलों में सब्सिडी जब्त करने के लिए जिला परामर्शदात्री समिति के पास भेजने से पहले कानूनी कार्रवाई से छूट

सग्राविका के अन्तर्गत वर्तमान अनुदेशों के अनुसार, हिताधिकारी द्वारा ऋण का दुरुपयोग करने पर बैंक शाखा सब्सिडी का समायोजन डीसीसी/डीएलआरसी के निर्णय के बाद कर सकती है । यह निर्णय लिया गया है कि सग्राविका ऋणों के मामले में, जहाँ चुकौती में चूक होने के मामले लम्बे समय से लम्बित हैं, बैंक शाखा सब्सिडी जब्त करने का निर्णय ले सकती है तथा अगले उच्चतर स्तर से अनुमोदन प्राप्त करके उसका समायोजन ऋण में कर सकती है।

9. बीमा सुरक्षा

ऋण की राशि से खरीदी गई परिसम्पत्तियों/पशुधन हेतु बीमा सुरक्षा उपलब्ध है । स्वग्रास्वयो दिशानिर्देशों के पैरा 4.35 और 4.36 में दिये गए विवरणों के अनुसार स्वरोजगारी समूह-बीमा-योजना के अंतर्गत शामिल हैं । स्वग्रास्वयो के स्वरोजगारियों को सामूहिक बीमा उपलब्ध कराने के लिए ऋण स्वीवफ्त करने के समय उनकी आयु 60 वर्ष होनी चाहिए । तथापि, बीमा कवरेज 5 वर्ष के लिए आवा ऋण की चुकौती करने तक, जो भी पहले हो, होगी चाहे ऋण स्वीवफ्त करते समय स्वरोजगारी की आयु कुछ भी हो ।

पैरा 4.35 : वर्तमान में बीमा कवर एसजीएसवाई के अंतर्गत पशुधन परिसम्पत्तियों के लिए उपलब्ध है । साधारण बीमा निगम उन शर्तों पर यह कवर प्रदान करने के लिए सहमत हो गया है जो जीआईसी और राज्य सरकार के बीच हस्ताक्षरित नमूना मास्टर पालिसी और दीर्घावधि मास्टर पालिसी अनुबंध में उल्लिखित हैं ।

(व) पशुधन बीमा

कवरेज और प्रीमियम दरें मास्टर पालिसी अनुबंध के अनुसार निर्धारित की जानी हैं ।

(वव) कवर का दायरा

पशुधन पालिसी में दुर्घटना के कारण पशु / पक्षी की मफ्त्यु हो जाने पर क्षतिपूर्ति का प्रावधान है । दुर्घटना के कारणों में बीमा अवधि के दौरान कतिपय कारणों को छोड़कर अग्नि, बिजली गिरना, दंगे और हड़ताल , बाढ़, चक्रवात, भूकम्प, अकाल या सम्पर्क में आए या उत्पन्न हुए रोग का कोई दैवी कारण शामिल है ।

(ववव) बीमित राशि

दावों के निपटान के लिए परिसम्पत्ति की लागत को बीमित राशि समझा जाएगा । स्थायी पूर्ण अपंगता (पी टी डी) दावों के लिए बीमित राशि का 75% देय होगा ।

(वख्) दावा प्रक्रिया

दावों का शीघ्र निपटान सुनिश्चित करने के लिए दावा प्रक्रिया को सरल बनाया गया है । बैंक / डीआरडीए मफ्त्यु की तिथि से 30 दिनों के भीतर निम्नलिखित में से किन्ही दो द्वारा संयुक्त रुप से दिया गया मफ्त्यु प्रमाण-पत्र अग्रेषित करेंगे :

  1. गाँव का सरपंच / उप-सरपंच ;
  2. सहकारी ऋण समिति का अध्यक्ष या कोई अन्य अधिकारी ;
  3. दुग्ध एकत्रण केन्द्र का कर्मचारी या सरकारी पशु शल्य चिकित्सक / पशु
  4. चिकित्सा सहायक ;

4. सहकारी केन्द्रीय बैंक का पर्यवेक्षक / निरीक्षक

5. डीआरडीए का प्राधिकफ्त नामिति ;

6. पंचायत का सचिव ;

7. ग्राम राजस्व अधिकारी ;

8. ग्राम लेखाकार ;

9. प्राथमिक विद्यालय का प्रधानाचार्य ;

(ख्) बीमा दावा धनराशि का समायोजन

पशुओं के बीमा दावे के समायोजन की क्रियाविधि निम्नवत है :

क) जहां ऋण प्राप्तकर्ता ब्याज का भुगतान / किस्तों की अदायगी नियमित रुप से कर रहा हो और बदले में दूसरा पशु लेने के लिए तैयार हो, वहां दावे की राशि स्वरोजगारी द्वारा नए पशु की खरीद के लिए उपयोग में लायी जा सकती है ।

ख) यदि स्वरोजगारी जानबूझकर अदायगी न करता रहा हो और ब्याज के रुप में उसके पास बैंक के प्रति अतिरिक्त देय हो तो दावे की राशि बैंक ऋण देयता से समायोजित की जाएगी और शेष राशि का भुगतान डीआरडीए को कर दिया जाएगा । तथापि, यदि चूकवश अदायगी नहीं की गयी थी तो बीमा दावे की धनराशि स्वरोजगारी को दूसरे पशु की खरीद के लिए दी जा सकती है ।

ग) यदि स्वरोजगारी नियमित रुप से ऋण और ब्याज का भुगतान कर रहा हो किंतु बदले में दूसरा पशु लेने के इच्छुक न हो तो उसे किसी अन्य कार्यकलाप के लिए सहायता दी जा सकती है और दावे की राशि उसके वित्तपोषण के लिए उपयोग में लायी जा सकती है । यदि वह कोई अन्य कार्यकलाप आरंभ करने का इच्छुक न हो तो दावे की राशि ऋण खाते में बकाया राशि के बराबर की राशि बैंक को देने के लिए उपयोग में लाई जा सकती है । डीआरडीए भी बकाया ऋण के अनुपात में सहायता-राशि प्राप्त करेगा और शेषराशि (यदि कोई हो) लाभार्थी को दी जा सकती है । यहां, स्वरोजगारी अपने द्वारा भुगतान किए गए ऋण की सीमा तक दावा राशि में हिस्सा लेने का हकदार है क्योंकि वह परिसम्पत्ति का समुचित उपयोग कर चुका है और पशुधन की मफ्त्यु होने तक बैंक की देयराशि का भुगतान कर चुका है और उस सीमा तक कार्यक्रमों के उद्देश्य की पूर्ति करता है ।

(ख्व) अन्य सुविधाएं

भारतीय साधारण बीमा निगम ने सूचित किया है कि यदि किसी आईआरडीपी (अब एस जी एस वाई) लाभार्थी के पास अन्य दुधारु पशु हैं जिससे कोई ऋण या सहायता सम्बधित नहीं है तो ऐसे दुधारु जानवरों का भी प्रीमियम का रियायती दरों अर्थात 2.25% प्रति वर्ष या तीन वर्ष के लिए 1.69% पर बीमा किया जा सकता है । निगम ने यह भी सूचित किया है कि जो आईआरडीपी (अब एस जी एस वाई) लाभार्थी अपने ऋण खाते बंद कर चुके हैं, वे ऋण और सहायता के माध्यम से लिए गए पशुओं का ऋण खाते की समाप्ति के बाद अगले तीन वर्ष की अवधि के लिए प्रीमियम की रियायती दरों पर बीमा करवा सकते हैं - बशर्ते पशुओं ने बीमा योग्य आयु सीमा पार न की हो ।

प्रीमियम पर व्यय

प्रीमीयम पर किया गया व्यय सरकार, बैंक और लाभार्थी के बीच निम्नलिखित अनुपात में बांटा जाएगा :

 

जब बैंक भागीदारी न कर रहा हो

जब बैंक भागीदारी करने पर सहमत हो

स्वरोजगारी

1.25%

1.00%

सरकार

1.00%

0.75%

बैंक

शून्य

0.50%

 

सरकार द्वारा वहन किया जाने वाला व्यय राज्य और केन्द्र के बीच 75:25 के अनुपात में होगा । इसकी पूर्ती एसजीएसवाई निधि में से की जानी चाहिए किंतु लाभार्थी पर लागू व्यक्तिगत सहायता की अधिकतम सीमा में शामिल किया जाना चाहिए ।

समूह जीवन बीमा योजना

पैरा 4.36 : 18 से अधिक और 60 वर्ष तक की आयु के स्वरोजगारियों के लिए समूह बीमा योजना 1.4.1988 से आरंभ की गयी थी । वह योजना स्वरोजगारी को परिसम्पत्ति के वितरण की तिथि से स्वरोजगारी के 60 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने तक या बीमा कवर के आरंभ होने की तिथि से 5 वर्ष की अवधि के लिए (जो भी पहले हो) लागू रहती है । स्वाभाविक मफ्त्यु के मामले में मफ्तक के नामित को एलआइसी द्वारा 6000/- रु. की राशि देय होगी । दुर्घटना के कारण मफ्त्यु होने पर एलआईसी द्वारा 12,000/- रु. की राशि देय होगी ।

10 प्रतिभूति के मानदण्ड

50 हजार रुपये तक के व्यक्तिगत ऋण और पाँच लाख रुपये तक के समूह-ऋणों के मामले में बैंक

ऋण की सहायता के निर्मित परिसम्पत्तियां प्राथमिक जमानत के रुप में बैंक के पास दृष्टिबंधक रहेंगी । कूप-खनन , अल्प-सिंचाई जैसी भू-आधारित गतिविधियों के मामलों में जहां चल परिसम्पत्तियां निर्मित नहीं होती, वहां जमीन बंधक रखी जाए । जहां जमीन बंधक रखना संभव नहीं हो,वहां बैंक के विवेकाधिकार पर तफ्तीय पक्ष गारण्टी प्राप्त की जाए ।

50 हजार रुपये से ज्यादा के सभी व्यक्तिगत ऋणों और पाँच लाख रुपये से ज्यादा के सभी समूह ऋणों के मामले में प्राथमिक जमानत यथा दृष्टिबंधक/भूमिबंधक अथवा तफ्तीय पक्ष गारंटी, जैसा भी मामला हो, के अतिरिक्त बैंक की अपेक्षानुसार उपयुक्त मार्जिन राशि/बीमा पालिसी के रुप में अन्य संपार्श्विक जमानत विपणन योग्य जमानत/अन्य संपत्ति संबंधी विलेख आदि प्राप्त किये जाएं । 5 लाख रु. की उच्चतम सीमा समूह के आकार अथवा समूह के यथानुपाती प्रति व्यक्ति ऋण से प्रभावित नहीं होगी । संपार्श्विक प्रतिभूति की सीमा निर्धारित करते समय बैंकों द्वारा कुल परियोजना लागत (बैंक ऋण तथा सरकारी सब्सिडी ) को विचारार्थ रखा जाए ।

11. आर्थिक सहायता (सब्सिडी)

7500/- रुपये की अधिकतम सीमा के अधीन स्वग्रास्वयो के अंतर्गत देय सब्सिडी समान रुप से परियोजना लागत का 30% रहेगी । अजा/अजजा के मामलों में यह 10,000/- रुपये की अधिकतम सीमा के अधीन परियोजना लागत का 50% रहेगी । स्वरेाजगारी समूहों (स्वयं सहायता समूह) के लिए यह 10,000 रु. से 1.25 लाख रुपये , जो भी कम हो, की सीमा के अधीन सब्सिडी परियोजना लागत का 50% रहेगी । सिंचाई परियोजनाओं के लिए सब्सिडी की कोई मौद्रिक सीमा नहीं रहेगी । स्वग्रास्वयो के अंतर्गत देय सब्सिडी पूर्व प्रदत्त राशि से संयोजित रहेगी । बैंकों को सब्सिडी की राशि पर ब्याज प्रभारित नहीं करना चाहिए । स्वरेाजगारियों को इस शर्त पर सब्सिडी उपलब्ध होगी कि उन्होंने प्रदत्त ऋण का यथोचित उपयोग किया है, चुकौती त्वरित आधार पर हुई है और परिसंपत्ति अच्छी हालत में बरकरार रखी गई है । स्वग्रास्वयो दिशा-निर्देशों के पैरा 4.17 में यथा-उल्लिखित सब्सिडी प्रारक्षित निधि खातों के परिचालन से सम्बन्धित प्रक्रिया का अनुपालन किया जाए ।

सब्सिडी के प्रयोजन से जिला ग्रामीण विकास एजेंसियां प्रधान सहभागी बैंक की शाखाओं में बचत बैंक खाता खोलेंगी । इन खातों का समायोजन तिमाही आधार पर तथा लेखा परीक्षा वार्षिक आधार पर की जाएगी ।

12. ऋणोपरान्त कार्रवाई

स्वरोजगारी को क्षेत्रीय भाषा में ऋण पास बुक दी जाए जिसमें उसे संवितरित ऋण संबंधी ब्यौरा दिया जाए ।

पैरा 4.17 : सहायता बैक-ऐन्डैड होगी । बैंक, स्वरोजगारी को सहायता सहित पूरी परियोजना लागत ऋण के रुप में वितरित करेगा । सहायता राशि उन स्वरोजगारियों के लिए भी उपलब्ध होंगी जो स्वयं, नकद ऋण के रुप में, अपेक्षित कार्यशील पूंजी का लाभ उठाना चाहते हों । बैंक द्वारा सहायता राशि का संचालन इस प्रकार किया जाएगा :

क) एसजीएसवाई के अंतर्गत स्वरोजगारी के लिए स्वीकार्य सहायता स्वरोजगारी के नाम में सावधि जमा के बजाय स्वरोजगारी-वार सहायता आरक्षित निधि खाते में रखी जानी चाहिए । सहायता आरक्षित निधि पर बैंक कोई ब्याज नहीं लागू करेंगे । इसके दृष्टिगत, ऋण पर ब्याज लगाने के प्रयोजनार्थ सहायता राशि को शामिल नहीं किया जाना चाहिए । सहायता आरक्षित निधि खाते में जमा राशि एसएलआर/सीआरआर राशि प्रयोजनार्थ डीटीएल का हिस्सा नहीं होगी ।

ख) कार्यशील पूँजी अग्रिमों के मामले में भी, उपर्युक्तानुसार सहायता राशि बिना किसी ब्याज के आरक्षित निधि खाते में रखी जा सकती है । तथापि, खाते में जमा राशि 5 वर्ष की अवधि के बाद निकाल देनी चाहिए और एसजीएसवाई स्वरोजगारी के किसी नकद ऋण खाते में जमा की जानी चाहिए ।

पैरा 4.24 : बैंक सभी संभव उपाय करेंगे, अर्थात - व्यक्तिगत सम्पर्क, जिला प्रशासन के साथ संयुक्त वसूली शिविरों का आयोजन, कानूनी कार्रवाई इत्यादि । इसके बाद भी यदि बैंक पूरी देयराशि की वसूली में असफल रहते हैं तो देयों के समायोजन के लिए सहायता राशि जब्त करने की प्रक्रिया आरंभ की जाएगी । इस आयोजन के लिए स्वरोजगारी को नोटिस जारी किया जाएगा और उसे कारण बताने का उचित अवसर दिया जाएगा कि क्यों न उसकी सहायता राशि जब्त कर ली जाए । तत्पश्चात संबंधित बैंक जिला एसजीएसवाई समिति के समक्ष की गई कार्रवाई की एक पूरी रिपोर्ट तथा सहायता राशि की जब्ती और समायोजन के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत करेगा । समिति का अनुमोदन प्राप्त करने के बाद संबंधित बैंक स्वरोजगारी के देयों के प्रति सहायता राशि (अर्जित ब्याज सहित) का समायोजन करेगा । तथापि, यदि बैंक बाद में स्वरोजगारी से देय राशि से ऊपर कोई राशि वसूल करने में सफल हो जाता है तो वह राशि डीआरडीए को वापस कर दी जाएगी ।

बैंक शाखाएं सप्ताह में एक दिन गैर सार्वजनिक कार्यदिवस के रुप में मना सकती हैं जिस दिन स्टाफ सदस्य सम्बन्धित क्षेत्र का दौरा करते हुए स्वरोजगारियों की समस्याओं पर ध्यान दें ।

समुचित निगरानी और सत्यापन के जरिये बैंक यह सुनिश्चित वरें कि स्वरोजगारियों द्वारा जुटाई गई परिसंपत्ति उत्तम गुणवत्ता की है । बैंक द्वारा परिसंपत्ति अर्जन संबंधी आवश्यक दस्तावेज प्राप्त किये जाएं और फील्ड स्टाफ द्वारा भी इस हेतु दौरे किये जाएं ।समुचित समयावधि का लाभ दिये जाने के बावजूद यदि स्वरोजगारी परिसंपत्ति नहीं जुटाता है, तो बैंक को इस बात की आजादी रहेगी कि वह ऋण निरस्त कर दे तथा प्रदत्त राशि की वसूली करे । ऋण वसूली के लिए स्वरोजगारी और स्वयं सहायता समूहों के मामलों में सभी सदस्यों के विरुध्द यथा-आवश्यक कानूनी कार्रवाई (सीविल/फौजदारी) शुरु की जाए ।

13. उपभोग्य ऋण हेतु जोखिम निधि

योजना के अंतर्गत जिला स्तर पर स्वग्रास्वयो निधि की 1% राशि से जोखिम निधि निर्मित करने का प्रावधान है । बैंकों द्वारा स्वरोजगारियों को उपभोग्य ऋण भी प्रदान किया जाएगा जिसकी राशि प्रति स्वरोजगारी 2000/- रुपये से अधिक नहीं होगी । वर्ष के दौरान स्वग्रास्वयो स्वरोजगारियों को बैंकों द्वारा संवितरित कुल उपभोग्य ऋण के 10% तक की सहायता जोखिम निधि से प्रदान की जायेगी ।

पैरा 4.10 : स्वरोजगारी द्वारा परिसम्पत्ति ग्रहीत करने की सूचना बैंक को न देने पर बैंक बीडीओ को सूचित करेगा जो इसके कारणों की पूछताछ करेगा । यदि परिसंपत्ति ग्रहीत न करने का कारण स्वरेाजगारी की अज्ञानता हो तो बैंक बीडीओ के परामर्श से इस कार्य के लिए उचित अवसर देगा जिसके बाद बैंक ऋण निरस्त करने और धन की वसूली करने के लिए स्वतंत्र होगा ।स्वरोजगारी ऐसे मामलों में उत्पन्न संभावित सिविल और फौजदारी कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होगा । स्व-सहायता समूह (एसएचजी) के मामले में सभी सदस्य उत्तरदायी होंगे ।

पैरा 4.30 : समाज के कमजोर वर्गों की लघु उपभोग आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जिला स्तर पर एसजीएसवाईनिधि के एक प्रतिशत (1%) से उपभोग ऋण के लिए एक जोखिम निधिं का सफ्जन किया जा सकता है । यह योजना समाज के कमजोर वर्ग को प्रति स्वरोजगारी अधिकतम 2000/- रु. का उपभोग ऋण प्रदान करने के लिए वाणिज्यिक बैंकों, सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को सक्षम बनाने के लिए है । "कमजोर वर्ग" का अर्थ है सभी एसजीएसवाई स्वरेाजगारी, लघु और सीमांत किसान, भूमिहीन वफ्षि कामगार, ग्रामीण शिल्पकार और छोटे साधनों वाले अन्य व्यक्ति जैसे बढ़ई, नाई, धोबी इत्यादि जो ग्राम समाज का एक अभिन्न भाग हैं । इस योजना के अंतर्गत बैंकों को उपर्युक्त लक्षित समूहों को वर्ष के दौरान उनके द्वारा वितरित कुल उपभोग ऋणों के 10% तक जोखिम निधि सहायता दी जाती है ।

14. ऋण की चुकौती

सभी स्वग्रास्वयो ऋण मध्यावधि ऋण माने जाएं जिनकी न्यूनतम चुकौती अवधि 5 वर्ष रहेगी । ऋण चुकौती की किस्तें नाबाड़/जिला स्वग्रास्वयो समिति द्वारा अनुमोदित इकाई लागत के अनुसार निर्धंरित की जायेगी । प्रतीक्षा अवधि के दौरान ऋण की चुकौती आस्थगित रहेगी । चुकौती की किस्तें परियोजना से अपेक्षित वफ्ध्दिगत शुध्द आय के 50% से अधिक नहीं होंगी । मूलधन, ब्याज देयता और चुकौती अवधि का ध्यान रखते हुए किस्तों की संख्या निर्धारित की जाए ।

निर्धारित अवरुध्द (लॉक-इन) अवधि समाप्ति के पहले ऋण की पूर्ण चुकौती हो जाने की स्थिति में स्वरोजगारी को सब्सिडी की पात्रता नहीं रहेगी । स्वग्रास्वयो के अंतर्गत विभिन्न कार्यकलापों के लिए चुकौती अवधि परियोजनानुसार मोटे तौर पर 5,7 और 9 वर्ष की अवधि में वर्गीवफ्त की जायेगी । तदनुरुपी अवरुध्द अवधि क्रमश: 3,4 और 5 वर्षों की रहेगी । यदि ऋण जारी रहने की अवधि के पूर्व ही पूरी चुकौती कर दी जाती है तो स्वरोजगारी समानुपाती आधार पर सब्सिडी हेतु पात्र रहेगा ।

15. वसूली

कार्यक्रम की सफलता सुनिश्चित करने के लिए ऋणों की त्वरित वसूली आवश्यक है । वसूली सुनिश्चित करने के लिए बैंक व्यक्तिगत संपर्क जिला प्रशासन के साथ संयुक्त वसूली शिविरों के आयोजन, कानूनी कार्रवाई जैसे सभी संभव उपाय करेंगे । इन सबके बावजूद ऋण की अदायगी में चूक होने पर अथवा समूह का विघटन होने जाने पर यदि बैंक संपूर्ण बकाया राशि वसूल करने में असफल रहता है तो बकाया राशि के समायोजन हेतु सब्सिडी जब्ती की प्रक्रिया शुरु की जाए । जिला स्वग्रास्वयो समिति के अनुमोदन के पश्चात् संबंधित बैंक सब्सिडी (अर्जित ब्याज सहित) की राशि स्वरोजगारी की बकाया राशि के विरुध्द समायोजित कर सकता है । इसके पश्चात यदि बैंक अपनी बकाया राशि से ऊपर कोई भी अन्य राशि वसूल कर पाए तो वह राशि जिला ग्रामीण विकास एजेंसी को लौटा दी जाए ।

कमीशन आधार पर बैंकों द्वारा गैर-सरकारी संगठनों अथवा व्यक्तियों (सरकारी कर्मचारियों से इतर) की सेवाएं पर्यवेक्षण एवं वसूली प्रवर्तकों के रुप में ली जा सकती हैं । इस व्यय की पूर्ति हेतु स्वरेाजगारी से ऋण राशि पर 0.5 प्रतिशत की दर से प्रसंस्करण एवं निगरानी शुल्क लिया जा सकता हे । स्वरोजगारी के स्तर पर त्वरित चुकौती होने की स्थिति में वह 0.5 प्रतिशत की दर पर देय उक्त प्रसंस्करण एवं निगरानी शुल्क से मुक्ति पा सकता है ।

स्वग्रास्वयो दिशानिर्देशों के पैरा 4.26 के उपबंध के अनुसार योजना के अन्तर्गत पंचायतों में 80% की वसूली को अस्थायी रुप से 16 मार्च 2001 के भारत सरकार के पत्र सं. घ्-12011/20 /99 आइआरडीपी द्वारा स्थगित किया गया है । यह स्थगन अगले नोटिस तक लागू रहेगा ।

राज्य सरकारों और बैंकों को योजना के अन्तर्गत वसूली निष्पादन सुधारने के लिए पूर्ववर्ती सग्राविका और स्वग्रास्वयो के अन्तर्गत ऋणों की वसूली के लिए प्रयास करने चाहिए ।

स्वग्रास्वयो के अन्तर्गत वसूली रिपोर्ट करते समय बैंकों को स्वग्रास्वयो की वसूली के साथ सग्राविका की वसूली नहीं जोडनी चाहिए । स्वग्रास्वयो की वसूली के आँकड़े अलग से रखने चाहिए । साथ ही, स्वग्रास्वयो के ऋणों के अग्रिम और वसूली को समूह /व्यक्तिगत वित्त का अनुरक्षण पफ्थक रुप से करना चाहिए ताकि उचित प्रतिसाद प्राप्त हो सके ।

16. स्वग्रास्वयो ऋणों पर पुनर्वित्त

स्वग्रास्वयो के अंतर्गत संवितरित ऋणों हेतु बैंक नाबाड़ के दिशा-निर्देशों के अनुसार (नाबाड़ से) पुनर्वित्त पाने के पात्र हैं । पुनर्वित्त सम्बन्धी पात्रता बैंक की वसूली स्थिति से सम्बध्द है ।

17. बैंकों और राज्य एजेंसियों की भूमिका

परियोजनाओं के कार्यान्वयन, आयोजना और तैयारी, मुख्य गतिविधियों , समूहों,स्वयं सहायता समूहों, स्वरोजगारी व्यक्तियों की पहचान करने, बुनियादी संरचनागत आयोजना तथा क्षमताओं के विकास और स्वयं सहायता समूहों के कार्यकलापों के चयन, स्वयं सहायता समूहों का ग्रेड निर्धारण, स्वरेाजगारियों के चयन, ऋण वितरण से पूर्व की गतिविधियों तथा वसूली सहित ऋणोपरान्त निगरानी सम्बन्धी सभी कार्यों में बैंक सरकारी एजेंसियों के साथ बहुत ही नजदीकी तौर पर जुड़े रहेंगे । स्वरोजगारियों के चयन के मामले में अंतिम निर्णय का अधिकार बैंक का ही रहेगा ।

पैरा 4.26 : वसूली अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए 1.1.2001 से कोई भी पंचायत जो एसजीएसवाई के अंतर्गत 80 प्रतिशत से कम वसूली दर्ज करती है, वह एसजीएसवाई के अंतर्गत विचार करने हेतु पात्र नहीं रहेगी । इसी प्रकार, 80 प्रतिशत से कम वसूली दर्ज करनेवाली किसी भी पंचायत समिति का आगे का कार्यक्रम निलम्बित हो जाएगा (अगले आदेशों तक स्थगित रखा गया है ) ।

जहां बैंक सहायकों/एसएचपीआइ के रुप में शामिल होते हैं, वहाँ सामाजिक संगठन, प्रशिक्षण और समूहों को सक्षम बनाने आदि की लागत की राशि स्थानीय आवश्यकताओं और अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य स्तरीय स्वग्रास्वयो समिति द्वारा निर्धारित की जाती है ।साथ ही, सामाजिक संगठन की लागत का भुगतान समूह के विकास की अवस्था पर आधारित होगा जैसा कि संशोधित दिशानिर्देशों के पैरा 3.21 में उल्लिखित है ।

व) सुग्राहीकरण कार्यक्रम

स्वग्रास्वयो के कार्यान्वयन में कार्यरत बैंकरों और जिला तथा ब्लॉक स्तरीय अधिकारियों के प्रशिक्षण आयोजित करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया । अत: बैंक अपने शाखा अधिकारियों के लिए जिला वार गहन एक दिवसीय सुग्राहीकरण कैम्प/कार्यशाला का आयोजन करें ।

वव) स्वग्रास्वयो विशेष परियोजना

योजना के अन्तर्गत विशेष परियोजनाओं के और अधिक विधिवत गठन की आवश्यकता है ताकि स्तरीय अर्थव्यवस्था के लाभ, सर्वोत्तम प्रक्रिया के तेजी से विस्तार, सुरक्षित बाजार का सफ्जन तथा निर्यात बाजार का मूल्यांकन इत्यादि किया जा सके तथा बैंक प्रायोगिक आधार पर, योजना के अन्तर्गत विशेष परियोजनाएँ आरंभ कर सकते हैं ।

ववव) स्वैच्छिक सेवानिवफ्त्ति योजना

केन्द्र स्तरीय समन्वय समिति ने 3 जून 2002 को हैदराबाद में आयोजित अपनी बैठक में दर्ज किया कि बैंकों में स्वैच्छिक सेवानिवफ्त्ति योजना के पश्चात के परिवेश, बहुत से राज्य, विशेष रुप से उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में जहाँ बैंकों की ग्रामीण शाखाओं में नियुक्त व्यक्तियों की संख्या कम होने के कारण कार्यक्रम को लागू करने में कठिनाइयाँ आ रही हैं । इस संबंध में हम आपका ध्यान 25 जुलाई 2001 के अपने परिपत्र डीबीओडी.बीएल.बीसी.3/22.01.001/2001 की ओर आवफ्ष्ट करते हैं जहाँ यह उल्लेख किया गया है कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों की किसी भी शाखा को सामान्य रुप से तथा ग्रामीण क्षेत्र की शाखा, को विशेष रुप से स्वैच्छिक सेवानिवफ्त्ति योजना को लागू करने के फलस्वरुप स्टाफ की अनुपलब्धता के कारण बन्द नहीं किया गया है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत उधार देने पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ा है । हम उपर्युक्त अनुदेशों को पुन: दोहराते हुए सूचित करते हैं कि उन शाखाओं केा जिन्हें उन कठिन क्षेत्रों में या तो बन्द कर दिया गया था अथवा स्थानान्तरित कर दिया गया था, सामान्य स्थिति आने पर फिर से उनकी मूल स्थिति में लाया जाए ।

वख्) ब्लॉक/जिला स्तरीय स्वग्रास्वयो सीमीत की

बैठकों में बैंकों की सहभागिता

स्वग्रास्वयो के अन्तर्गत हुई प्रगति की निगरानी के लिए ब्लॉक स्तर और जिला स्तर पर समितियों का गठन किया गया है । ब्लॉक स्तरीय स्वग्रास्वयो समिति के सदस्य बैंक शाखा प्रबंधक होंगे तथा जिला स्तर पर अग्रणी बैंक अधिकारी संयोजक होगा तथा कार्यान्वयन बैंकों के जिला समन्वयक सदस्य होंगे । ब्लॉक और जिला स्तरीय स्वग्रास्वयो समितियों की बैठकों में बैंकों को अपनी सहभागिता सुनिश्चित करनी चाहिए ।

ख्) परामर्श प्रक्रिया

कार्यक्रम के सुचारु कार्यान्वयन के लिए बैंकरों के साथ जिला और ब्लॉक स्तर के कार्यकर्ताओं के बीच जानकारी के आदान-प्रदान तथा परामर्श की प्रक्रिया आरम्भ करने की आवश्यकता है । सरकारी कार्यकर्ताओं को गरीबी रेखा से नीचे वालों की अनुमोदित सूची बैंकों को बतानी चाहिए और बैंकों को चाहिए कि वे सग्राविका/स्वग्रास्वयो ऋणों के चूककर्ताओं का ब्योरा सरकार को दें ।

पैरा 3.21 : समूह क्रियाकलापों की सफलता के मौके ज्यादा होते हैं क्योंकि समूह क्रियाकलापों के लिए बैकअप समर्थन और विपणन संपर्क उपलब्ध कराना आसान होता है । स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना में मूलत: समूह दृष्टिकोण पर बल दिया जाएगा । समूह कर्ज पर 50% सब्सिडी दी जाती है जो प्रति व्यक्ति 10,000/- रु. या 1.25लाख रु. जो भी कम हो, से ज्यादा नहीं होगी । जिला ग्रामीण विकास अभिकरण को समूह के सदस्य और प्रतिनिधियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए ताकि समूह पूरी तरह स्व-प्रबंधित बन सकें । समूह निर्माण और विकास पर आने वाली लागत स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के तहत उपलब्ध निधि से पूरी की जानी चाहिए । देश में स्व-सहायता समूहों के अनुभव के मद्देनजर अनुमान है कि 3-4 वर्षों तक प्रति समूह 10,000/- रु. की राशि का निवेश करने की जरुरत होगी । स्व-सहायता समूहों के निर्माण और विकास के मद में अधिकतम 10,000/- रु. की सहायता दी जाएगी किंतु वास्तविक राशि का निर्धारण जिला स्तरीय स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना समिति द्वारा स्थानीय परिस्थितियों के मद्देनजर किया जाएगा ।

सुविधाप्रदाताओं / स्व-सहायता संवर्ध्दन संस्थानों (जो गैर-सरकारी संगठन / समुदाय आधारित संगठन / सामुदायिक समन्वयक / एनीमेटर हो सकते हैं) को चार किस्तों में निम्नांकित रुप से भुगतान किया जाएगा :

क) प्रारंभ में, सुविधाप्रदाताओं / स्व-सहायता संवर्ध्दन संस्थानों द्वारा स्व-सहायता समूह के

गठन के समय निधि की 20% राशि । इस राशि का उपयोग निर्माण चरण के दौरान किया जाना चाहिए । इसी अवधिं के दौरान समूह को सेवा क्षेत्र की बैंक शाखा में खाता खोलना चाहिए और उन्हें स्व-सहायता समूह, समूह गति की, अभिलेखों व खाता बही के रखरखाव, समूह बैठकों के आयोजन तथा वित्तीय लेन-देन की अवधारणा से संबंधित बुनियादी अभिमुखीकरण प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ।

ख) चक्रीय निधि के लिए समूह के योग्य बन जाने या बैंक से ऋण लेकर जुड़ने तथा संतोषजनक रुप में कार्य करना जारी रखने के बाद 30% राशि ।

ग) समूह द्वारा आर्थिक क्रियाकलाप शुरु करने के बाद 40% राशि ।

घ) समूह द्वारा आर्थिक क्रियाकलाप प्रारंभ किए जाने तथा बैंक द्वारा संस्वीवफ्त कर्ज की वापसी संबंधी समय-सारणी का पालन करने के पश्चात् 10% राशि ।

18. जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों की भूमिका

(व) स्वयं सहायता समूहों के एक बार परिपक्वता स्तर पर पहुंचने और स्थिर होने पर जिला ग्रामीण विकास एजेंसियाँ स्वयं सहायता समूहों के नेटवर्क की योजना में उन्हें उचित स्तर पर संगठित करके सहायता प्रदान कर सकती हैं ।

जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों को विभिन्न संगठनों द्वारा गठित समूहों को मजबूत बनाने तथा समेकित करने के सघन प्रयास करने चाहिए क्योंकि इनमें साहचर्य का कुछ स्तर पहले से ही विद्यमान रहता है । तथा उसके बाद नए समूह बनाने के प्रयास करने चाहिए । जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों को आवधिक मूल्यांकनों के माध्यम के समूहों की प्रगति पर नियमित निगरानी रखनी चाहिए । जिला ग्रामीण विकास एजेंसियाँ डाटाबेस तैयार करने के लिए प्रमुख एजेंसी के रुप में कार्य कर सकती हैं, जिसमें विभिन्न योजनाओं की समरुपता सुनिश्चित करने के लिए सभी योजनाओं के अन्तर्गत बनाए गए स्वये सहायता समूहों के साथ-साथ उनके प्रशिक्षण और अन्य अपेक्षाओं की बेहतर योजना सम्मिलित होनी चाहिए ।

आधार स्तर की समितियों में निकट रुप से कार्य करनेवाला सहायक समूह बनाने और उसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं । जिला ग्रामीण विकास एजेंसियाँ ऐसे संवेदनशील समर्थन तंत्र को, जो गैर सरकारी संगठनों या समुदाय आधारित संस्थाओं (सीबीओ) या समुदाय समन्वयकों/प्रोत्साहकों के नेटवर्क या ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत वाणिज्य बैंकों/क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों/ सहकारी बैंकों या पूर्णत: समूह विकास प्रक्रिया का कार्य प्रारंभ करने से लेकर उसे निरंतर चलाते रहने की प्रक्रिया से जुड़े रहने वाले सरकारी कर्मचारियों की टीम के रुप में प्रोत्साहन/समर्थन देंगी ।

ग्रामीण क्षेत्रों में सहायक/स्वयं सहायता प्रवर्तक संस्थाओं (एसएचपीआइ) वे रुप में कार्यरत वाणिज्य बैंक/क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक/सहकारी बैंक शाखाओं के शामिल होने के बारे में, केवल ऐसी बैंक शाखाओं को शामिल करने के प्रयास किये जाएं, जो वचनबध्द हों और जिन्होंने गरीब लोगों के सामाजिक संगठन के क्षेत्र में काफी रुचि दिखायी हो और जो सामाजिक संगठन, समूह तैयार करने और स्वयं सहायता समूहों के विकास की जिम्मेदारी उठा सकते हों । तदनुसार ऐसी ग्रामीण

बैंक शाखाएं सामाजिक संगठन, समूह तैयार करने, प्रशिक्षण और योजना के अंतर्गत बनाये गये स्वयं सहायता समूहों को सक्षम बनाने के लिए सहायक/एसएचपीआइ के रुप में शामिल की जा सकती हैं । साथ ही, एसएचपीआइ/सहायक के रुप में शामिल किये गये बैंक, समूहों की ऋण सहलग्नता में सहायता करेंगे, जो एसएचजी के संगठन का मुख्य उद्देश्य है और आर्थिक सशक्तीकरण और समूहों को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है ।

(वव) बैंकों के साथ सहलग्नता और ग्रेड देने का कार्य

समूह बनाने के चरण के दौरान स्वयं सहायता समूह को स्थानीय बैंकों के पास बचत खाता खोलकर, विशेषत: उनकी सेवा क्षेत्र शाखा में, उनके संपर्क में लाना चाहिए । शाखा विकास अधिकारी और बैंकर को स्वयं सहायता समूह के साथ अक्सर मिलने रहना चाहिए और स्व रोजगार के अवसरों की जानकारी सदस्यों को देनी चाहिए । जिला ग्रामीण विकास एजेन्सियों को स्वयं सहायता समूहों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में भी बैंक कार्यकर्ताओं को शामिल करना चाहिए ।

यदि, स्वयं सहायता समूह किसी अन्य कार्यक्रमों के अंतर्गत शहरी ग्राम स्वरोजगार योजना से पहले ही अस्तित्व में रहा हो और समूह के गठन के बाद छ: महीने पूरे होने के बाद उसे शहरी ग्राम स्वरोजगार योजना के अंतर्गत लाया गया हो तो ऐसे समूहों को, अगले छ: माह तक इंतजार किये बिना ही तुरंत पहला ग्रेड दे देना चाहिए ।

लघु सिंचाई योजनाओं के लिए, यदि समह उधार के लिए पात्र हो और परियोजना व्यवहार्य हो, तो दूसरे ग्रेड के लिए समय में छूट देने की अनुमति दी जाए । छूट से संबंधित निर्णय ब्लाक स्तरीय स्वग्रास्वयो समिति द्वारा लिया जाए ।

यदि, स्वयं सहायता समूह किसी अन्य कार्यक्रमों के अंतर्गत पहले से ही अस्तित्व में रहा हो और समूह ने एक साल पूरा कर लिया हो और अब उसे स्वग्रास्वयो कं अंतर्गत लाया गया हो, तो समूह को सीधे ही दूसरा ग्रेड दे दिया जाए ताकि आर्थिक गतिविधि के लिए पात्रता पहला ग्रेड देने से पहले ही निर्धारित की जा सके ।

ग्रेड देने वाली एजेंसी और साथ ही मानदंड से बैंक सन्तुष्ट होना चाहिए । यह वांछनीय है कि बैंक कार्यकर्ता उनके सेवा क्षेत्र में कार्यरत समूहों के ग्रेडिंग कार्य में शामिल हों ।

19. जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों में बैंक अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति

जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों को सुदफ्ढ़ करने और एक बेहतर ऋण वातावरण तैयार करने के लिए यह सुझाव दिया गया है कि बैंक अधिकारियों को जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों में प्रतिनियुक्त किया जाए । विभिन्न स्तरों पर राज्य सरकारों/जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों से विचार-विमर्श करते हुए अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति हेतु बैंक विचार कर सकते हैं ।

20 . पर्यवेक्षण और निगरानी

क्षेत्रीय/आंचलिक कार्यालयों में बैंक स्वर्णजयंती ग्रामीण स्वरेाजगार योजना कक्षों की स्थापना कर सकते हैं । ये कक्ष स्वग्रास्वयो स्वरोजगारियों के लिए ऋण उपलब्धता की सावधिक निगरानी और समीक्षा करें, योजना के दिशानिर्देशों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करें, शाखाओं से आंकड़े एकत्रित करें और बैक के प्रधान कार्यालय को समेकित आंकड़े उपलब्ध करवाएं । बैंक यह सुनिश्चित करें कि फील्ड स्तर पर उठाई गई किसी भी शंका की प्रधान कार्यालय द्वारा अनदेखी नहीं की जाए । बैंक के प्रधान कार्यालय स्तर पर योजना की निगरानी का कार्य किसी वरिष्ठ अधिकारी को सौंपा जाए और शीर्ष प्रबंधतंत्र द्वारा नियमित आधार पर कार्यक्रम की प्रगति की समीक्षा की जाए । बैंकों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए निर्धारित ऋण संग्रहण लक्ष्य सुनिश्चित करना जरुरी है ।

योजना के अंतर्गत विकास खण्ड/जिला और केन्द्रीय स्तर पर स्वग्रास्वयो समितियां स्थापित करने का प्रावधान है । उक्त समितियां सावधिक बैठकें आयोजित वरेंगी जिनमें योजना के कार्यान्वयन की समीक्षा और निगरानी का कार्य होगा । आशा की जाती है कि उक्त बैठकों में बैंकों की सक्रिय सहभागिता रहेगी और वे उन सभी एजेन्सियों के साथ समन्वय सूत्र स्थापित कर सकेंगे जो स्वग्रास्वयो के कार्यान्वयन हेतु उत्तरदायी हैं ।

21 . सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण

योजना के अंतर्गत स्थापित जिला स्वग्रास्वयो समिति उन गांवों को पुन: आबंटित करने के लिए प्राधिवफ्त है जो या तो किसी बैंक शाखा के अंतर्गत शामिल नहीं हों, या फिर किन्ही कारणों से बैंक शाखा वहां अपेक्षित निष्पादन नहीं कर पा रही हो । पुनराबंटन सम्बन्धी जिला स्तरीय स्वग्रास्वयो समिति का निर्णय जिला समन्वय समिति के विचारार्थ और आगामी आवश्यक कार्रवाई हेतु प्रस्तुत किया जाएगा ।

सेवा क्षेत्र शाखाओं के समूह ब्लॉक वार बनाए जाएँ ताकि उनकी सेवा क्षेत्र पहचान बनी रहे तथा वे ग्राम ऋण योजनाएँ/सेवा क्षेत्र योजनाएँ तैयार कर सकें जिससे उधारकर्ताओं की आवश्यकताओं की पूर्ति संबंधित शाखा द्वारा पर्याप्त रुप से न होने पर वे ब्लाक की अन्य शाखाओं से सम्पर्क कर सकें । सेवा क्षेत्र में उधारकर्ताओं को वित्त प्रदान करने के लिए प्राथमिक उत्तरदायित्व संबंधित सेवा क्षेत्र शाखा का होगा । उधारकर्ता ऋण सुविधाओं के लिए पहले सेवा क्षेत्र शाखा से सम्पर्क करेंगे तथा संबंधित सेवा क्षेत्र शाखा द्वारा ऋण सुविधा प्रदान न किए जा सकने की स्थिति में उनके लिए अनिवार्य होगा कि वे संबंधित उधारकर्ता को "अदेयता प्रमाण पत्र" दें जो, इसके बाद, ऋण सहायता के लिए ब्लॉक में अन्य किसी शाखा से सम्पर्क करने के लिए स्वतंत्र होगा । यदि सेवा क्षेत्र शाखाएँ आवेदन की प्राप्ति की तारीख से 15 दिन के भीतर अदेयता प्रमाणपत्र जारी नहीं करती हैं तो उधारकर्ता संबंधित सेवा क्षेत्र

शाखा से अदेयता प्रमाणपत्र प्राप्त किए बिना अपनी ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ब्लॉक में अन्य किसी शाखा से सम्पर्क करने के लिए स्वतंत्र होगा । (दिनांक 24 मई 1994 के अपने परिपत्र सं.बीसी.150/08.01.00-93/94 के साथ पठित 2 अप्रैल 1996 के अपने परिपत्र ग्राआऋवि. सं. बीसी.117/08.01.00/95-96)

बैंक सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण दिशानिर्देशों का पालन अनिवार्यत: करें ।

22. आँकड़ों की प्रस्तुति

सभी स्तरों पर कड़ी निगरानी से योजना के प्रभावी कार्यान्वयन में बहुत मदद मिलेगी । स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरेाजगार योजना के अन्तर्गत हुई प्रगति दर्शाने वाले ग्रामीण विकास मंत्रालय से प्राप्त फार्मेट अनुबंध 1 (2) से 1 (7) में दिए हैं । सम्बन्धित बैंक द्वारा ब्लॉक तथा ज़िला स्तर पर बैंक वार जानकारी उसी ब्लॉक/जिला प्राधिकरण को भेजी जाए तथा योजना की निगरानी और उसके कार्यान्वयन हेतु ब्लॉक के लिए स्थानापन्न ज़िले द्वारा राज्य स्तरीय सूचना हेतु इसका प्रयोग किया जाए ।

योजना के अन्तर्गत मासिक/तिमाही प्रगति रिपोर्टें भारतीय रिज़र्व बैंक / ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली को परिशिष्ट 1(9) और 1(10) में दिए गए क्रमश: मासिक/तिमाही प्रोफार्मा में भेजी जाएँ ताकि योजना के कार्यान्वयन में राज्यवार / बैंकवार प्रगति की निगरानी की जा सके । योजना के अन्तर्गत वसूली विवरण प्रत्येक वर्ष सितंबर / मार्च को समाप्त छमाही के आधार पर परिशिष्ट 1(8) में निर्दिष्ट प्रोफार्मा में भेजा जाए । बैंकों को स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत वसूली का अलग रिकाड़ रखना चाहिए (समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम से पफ्थक) । वैयक्तिक और सामूहिक ऋणों के आँकड़े पफ्थक रुप से समेकित किए जाएँ ।

तिमाही (संचयी) प्रगति रिपोर्टें तथा वसूली विवरण संबंधित तिमाही/छमाही की समाप्ति के 45 दिन के भीतर भेजना अपेक्षित है । मासिक संचयी प्रगति रिपोर्ट, जिसे सितंबर 2004 से संशोधित किया गया है, संबंधित तिमाही की समाप्ति से 30 दिन के भीतर प्रस्तुत की जानी अपेक्षित है । संशोधित प्रोफार्मा परिशिष्ट 1(9) में दिया गया है । साथ ही, वर्ष के अन्त तक लम्बित आवेदन पत्र अगले वर्ष में आगे ले जाया जाए और उस पर निर्णय लिया जाए । बैंक समय पर आँकड़े भेजना सुनिश्चित करें ।

बैंक इस योजना का ब्योरा तथा अवधारणा स्टाफ सदस्यों मे प्रशिक्षण कार्यक्रम में विषय वस्तु के रुप में सम्मिलित कर लें तथा योजना को और मजबूत बनाने के लिए जहाँ भी आवश्यक हों, स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोज़गार योजना को द्रुतग्रामीकरण कार्यक्रम के रुप में आयोजित करें ।

बैंकों द्वारा स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोज़गार योजना के अन्तर्गत प्रगति की समीक्षा क्षेत्रीय/आँचलिक/प्रधान कार्यालय के स्तर पर तिमाही आधार पर की जाए । बोड़ द्वारा विधिंवत अनुमोदित, समीक्षा की एक प्रति, ग्रामीण विकास मंत्रालय, नई दिल्ली तथा ग्रामीण आयोजना और ऋण विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक,केंद्रीय कार्यालय,मुंबई को बिना कोई विलंब किये नियमित रद्य्र्प से भेजी जाए ।

23. वार्षिक ऋण योजना - 1999-2000

ऋण योजना में सग्राविका हेतु किए गए आबंटन स्वग्रास्वयो के लिए आगे जारी रखे जाएंगे ।

सग्राविका के अन्तर्गत अप्रैल 1999 से किए गए सभी संवितरण स्वग्रास्वयो के अन्तर्गत संवितरण माने जाएंगे ।

सग्राविका के अन्तर्गत आंशिक रुप से संवितरित ऋण प्रतिबध्द देयता मानी जाएगी तथा शेष ऋण स्वग्रास्वयो के अन्तर्गत वितरित किए जाएंगे ।

सग्राविका के अन्तर्गत स्वीवफ्त,लेकिन संवितरित न किए गए ऋणों के संबंध में, मामलों की समीक्षा यह देखने के लिए की जाएगी कि वे उन परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर आने में मदद करेंगे । यदि ऐसा है, तो ऋण वितरित किए जा सकेंगे ।

जहाँ तक सग्राविका के अन्तर्गत अनिर्णीत मामलों का प्रश्न है, उनकी समीक्षा ब्लॉक में चयनित मुख्य गतिविधि के सम्बन्ध में की जाएगी । यदि अनिर्णीत आवेदन प्रमुख गतिविधि के मानदण्डों के अनुरुप हैं तो ऋण स्वग्रास्वयो के अन्तर्गत स्वीवफ्त किए जा सकते हैं ।

24. ऋण संग्रहण लक्ष्य

भारत सरकार द्वारा प्रति वर्ष राज्य वार जमा संग्रहण लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं । राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति द्वारा राज्य वार आंकड़े वाणिज्य बैंकों, सहकारी बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को आबंटित किए जाते हैं । राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति को मान्य मानदंडों यथा संसाधनों,ग्रामीण/अर्ध शहरी शाखाओं की संख्या इत्यादि के आधार पर प्रत्येक बैंक के लिए लक्ष्यों को अन्तिम रुप देना चाहिए ताकि प्रत्येक बैंक अपने लिए निर्धारित लक्ष्य प्राप्त कर सकें; उनकी उपलब्धियों की कड़ी निगरानी भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा की जाएगी । उपर्युक्त आधार पर निर्धारित जमा लक्ष्य प्राप्त करने के लिए बैंक को सभी प्रयास करने चाहिए ।

25. एलबीआर विवरणियां

स्वर्ण जयन्ती ग्रामीण स्वरोज़गार योजना के अन्तर्गत एलबीआर रिपोर्टिंग पद्यति के लिए सभी बैंकों को कूट संख्या आबंटित कर दी है । (दिनांक 20जनवरी 2000 के परिपत्र एसएए 8/ 08.01.04/ 1999-2000 के द्वारा) ।

ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा विभागों, बैंकों, गैर सरकारी संस्थाओं, स्वरोजगार करने वालों को उनकी भूमिका तथा दायित्व बताते हुए मार्गदर्शी सिध्दान्त अलग से जारी किए गए हैं । बैंकों से अपेक्षा है कि वे अपने नियंत्रक कार्यालयों/शाखाओं को कार्यान्वयन हेतु उचित अनुदेश दें ।

26. स्पष्टीकरण

उपर्युक्त के संबंध में, योजना के कार्यान्वयन में बैंकों ने कुछ मुद्दे उठाए हैं । ये मुद्दे , स्पष्टीकरण सहित अनुबन्ध 1(1) में दिए गए हैं ।

योजना को लागू करते समय परिचालनगत मुद्दों को ब्लाक/ज़िला/राज्य स्तरीय समितियों में उनके विभागों के अधिकारियों के परामर्श से स्थानीय रुप से हल किया जाए । इस दौरान योजना की समग्र विषय वस्तु को ध्यान में रखा जाए तथा यह सुनिश्चित किया जाए कि योजना को सुचारु रुप से लागू करने में कोई अवरोध न आए ।


अनुबंध -1(1)

स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (स्वग्रास्वयो) - स्पष्टीकरण

सं.

संदर्भित विषय

स्पष्टीकरण

योजना

1.

राज्य सरकारों को सूचित किया है कि दिनांक 1 अप्रैल 1999 से केवल गरीबी रेखा से नीचे जनगणना सूची, जो नौवीं योजना (1999-2000 से 2003-2004 तक ) में बनायी गयी थी, ही वैध सूची मानी जाएगी ।

परिवारों की पहचान करने हेतु आय स्तर का परिकलन करने के लिए परिवार का औसत आकार ध्यान में लिया जाए ।

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि की है कि नौवीं योजना के गरीबी रेखा के नीचे की परिवारों की सूची स्थानीय प्राधिकरणों के पास उपलब्ध है । सूची सभी बैंकों को उपलब्ध करायी जाएगी ।

सहायता हेतु, विचार करने के लिए गरीबी रेखा से नीचे की सूची आधार है ।

2.

स्वयं सहायता समूह बनाने और स्वयं सहायता समूह को ऋण देने हेतु औपचारिकताओं के लिए कम से कम एक वर्ष लगता है, जबकि अलग-अलग व्यक्तियों को तुरंत सहायता दी जा सकती है । स्वयं सहायता समूह को ऋण देने में होने वाले विलंब के कारण स्वरोजॅगारियों द्वारा व्यक्तिगत रुप से उधार लेने को तरजीह दी जाती है । स्वयं सहायता समूहों को वर्ष 1999-2000 के दौरान वित्तपोषण के लिए छूट दी जा सकती है ।

स्वयं सहायता समूह अपेक्षित समय के भीतर बनाए जाने चाहिए और किसी भी कारणवश पीछे नहीं रहना चाहिए । समूह बनाने की प्रक्रिया दिशानिर्देशों में दिये गये ब्यौरे के अनुसार होनी चाहिए । यदि गाँवों के वर्तमान महिला और बाल विकास समूहों में अच्छे स्वयं सहायता समूहों की विशेषताएं हैं तो उनकी प्रमुख गतिविधियों के वित्तपोषण हेतु विचार किया जा सकता है । 1999-2000 के दौरान छूट के रुप में स्वग्रास्वयो के अंतर्गत अधिक संख्या में स्वरोजगारियों को वित्त प्रदान किया जा सकता है ।

3.

श्रेणी-वार आरक्षण (महिलाओं के लिए 40% ,अजा/अजजा के लिए 50% विकलांगों के लिए 3% ) की शर्तों में छूट दी जाए और लचीलापन अपनाया जाए ।

बैंकों द्वारा यह सुनिश्चित किया जाए कि जिला स्तर पर उप-लक्ष्यों की उपलब्धि होती है । लचीलापन संभव नहीं है, क्योंकि योजना का केंद्र विशेषत: अतिसंवेदनशील समूह होगा ।

 

 

 

कौशल उन्नयन

1.

एक सप्ताह से अधिक के लिए आयोजित कौशल विकास प्रशिक्षण लेने हेतु वित्तीय सहायता ।

क) अधिकतम सीमा/प्रकार/चुकौती अवधि ।

 

 

कौशल विकास प्रशिक्षण के लिए सहायता की मात्रा, कौशल विकास का स्वरुप, मुहल्ले में उपलब्ध संस्था सुविधा और प्रशिक्षण अवधि पर निर्भर रहेगी । यह गतिविधि के स्वरुप और स्वरेाजगारी पर भी निर्भर होगा । प्रशिक्षण की कोई अवधि निर्धारित करना संभव नहीं होगा । तदनुसार लागत बदलेगी ।

   

ये मुद्दे जिॅला स्वग्रास्वयो समिति के स्तर पर तय किये जाएंगे । चूंकि उधारकर्ता को गतिविधि शुरु करने पर गतिविधिं विशिष्ट ऋण के साथ कौशल विकास ऋण की चुकौती शुरु करनी होती है, अत: चुकौती अवधि साथ-साथ चलती रहेगी । भुगतान की किस्त उधारकर्ता बैंक के वैयक्तिक निर्णय के अनुसार रहेगी ।

 

ख) परियोजना के एक भाग के रुप में प्रशिक्षण लागत और प्रशिक्षण हेतु ऋण की पहली किश्त शामिल करना, ताकि हम प्रलेखीकरण औपचारिकताएं कम कर सके । (दो अलग खातों के स्थान पर केवल एक खाता)

अलग प्रलेखीकरण आवश्यक होगा, क्योंकि प्रशिक्षण के बाद परियोजना लागत अलग से संवितरित की जाएगी ।

 

(वव) स्थानीय रुप से सहायता की मात्रा कौन निर्धारित करेगा ?

सब मिलाकर,जिला स्वग्रास्वयो समिति द्वारा सहायता का स्तर निर्धारित किया जाता है । थोड़ा उतार-चढ़ाव, यदि कोई हो तो, बैंकों द्वारा संबंधित विभाग अधिकारियों या जिला ग्रामीण विकास एजेंसी अधिकारियों के साथ परामर्श करके तय किया जा सकता है ।

 

(ववव) क्या ऋण स्वरोजगारी व्यक्ति विशेष को दिया जाए अथवा समूह को ?

ऋण समूह या स्वरोजगारी, व्यक्ति विशेष को दिया जा सकता है ।

गतिविधि समूह, मुख्य गतिविधियाँ

1.

ब्लॉक स्वर्ण जयन्ती ग्रामीण स्वरोजगार योजना समिति को ग्राम रुपरेखा के आँकड़े एकत्र करके अद्यतन करने चाहिए ।

विस्तार तथा समूह आधारित दक्षता के बीच चयन ब्लाक स्वग्रास्वयो समिति द्वारा किया जाना चाहिए

स्वरोजगारियों द्वारा की जाने वाली मुख्य गतिविधियाँ ग्राम रुपरेखा गरीबी रेखा से नीचे/सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण ऋण योजना पर आधारित होगी । प्रमुख गतिविधियों तथा विस्तार/समूह के चयन में ब्लॉक स्वग्रास्वयो समिति का मत मान्य होगा ।

स्वयं सहायता समूह

1.

सामूहिक ऋण के संबंध में अनु.जाति/ अनु.जनजाति/महिलाओं/शारीरिक रुप से विकलांगों हेतु उप लक्ष्य सुनिश्चित करने हेतु तौर-तरीके ।

बैंकों द्वारा अपेक्षित लक्ष्य प्राप्त करने हेतु जिला स्तर पर उप लक्ष्यों की निगरानी की जाए ।

2.

समूह के किसी सदस्य का बर्हिगमन अथवा किसी सदस्य की मफ्त्यु होने पर विशेष संदर्भ में उसकी देयताओं को बाँटना तथा उसके द्वारा की गई बचत ।

समूह द्वारा निर्धारित उप-नियम/करार के अनुसार ।

3.

क्या कोई सदस्य समूह द्वारा समर्थित व्यक्तिगत ऋण का उपयोग करते हुए तथा समूह ऋण के मामले में समूह का एक सदस्य होने के नाते अन्य ऋण लेकर दो प्रकार की आर्थिक सहायता का उपयोग कर सकता है ?

सदस्य व्यक्तिगत रुप से अथवा समूह के सदस्य के रुप में आर्थिक सहायता का उपयोग कर सकता है ।

4.

क्या परिवार का कोई सदस्य किसी दूसरे समूह का सदस्य बन कर ऋण ले सकता है ?

हाँ, आर्थिक सहायता समूह को दी जाती है ; व्यक्तियों को नहीं ।

5.

यदि बैंक अग्रिम किसी एक सदस्य को प्रदान किया जाता है तो बैंक की बहियों में ऋण खाते का अनुरक्षण कैसे किया जाएगा ? व्यक्तियों को दिए गए ऐसे ऋण सामूहिक दृष्टिकोण के समनुरुप नहीं होते ।

ऋण किसी समूह में किसी व्यक्ति अथवा समूह को प्रदान किया जाता है तथा तदनुसार बहियों का अनुरक्षण किया जाता है । सदस्यों को स्वयं सहायता समूह के माध्यम से ऋण दिया जा सकता है तथा उसकी वसूली स्वयंसहायता समूह से की जा सकती है ।

6.

क्या 10 सदस्यों से कम के समूह पर विचार किया जा सकता है ?

एक समूह में कम से कम 10 सदस्य होने चाहिए । तथापि रेगिस्तान,पहाड़ों और ऐसे क्षेत्रों में, जहाँ जनसंख्या बिखरी हुई है तथा कम सिंचाई वाले क्षेत्रों में तथा विकलांग व्यक्तियों के संबंध में यह संख्या 5-20 के बीच हो सकती है । ऐसे क्षेत्रों की पहचान राज्य स्तरीय स्वग्रास्वयो समिति द्वारा की जाएगी तथा उक्त छूट केवल ऐसे ही क्षेत्रों में दी जाएगी ।

7.

वर्तमान स्वयं सहायता समूहों (गरीबी रेखा से नीचे तथा उनसे इतर परिवारों) को स्वग्रास्वयो के अंतर्गत सम्मिलित किया जा सकता है ?

संयुक्त समूह के गरीबी रेखा से नीचे के सदस्य व्यक्तिगत हैसियत में ऋण प्राप्त कर सकते हैं । संयुक्त समूह सामूहिक आर्थिक सहायता के पात्र नहीं हैं । तथापि, अपवाद के रुप में केवल वर्ष 1999-2000 के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में महिला और बाल विकास हेतु एक समूह बनाया गया ।

8.

बनाए गए नए समूहों के लिए उचित ग्रेडिंग में मानदण्ड निर्धारित होने चाहिए । नई स्वग्रास्वयो के दिशा-निर्देशों में ग्रेडिंग प्रशिक्षण इत्यादि का कार्य करने हेतु एजेंसियों के मूल्यांकन और चयन हेतु प्रक्रिया नहीं दी गई है ।

जिला परामर्शदात्री समिति/राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति ग्रेडिंग का निर्धारण नाबाड़ के रेटिंग मानदण्डों के आधार पर कर सकती है । जब तक जिला परामर्शदात्री समिति/राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति निर्धारित न करें, किसी बाहरी एजेंसी की आवश्यकता नहीं है ।

परिक्रामी निधि

1.

क) क्या नकदी जमा स्थायी स्वरुप का होगा अथवा पाँच वर्ष की अवधि तथा ऋण की शर्तों पर पाँच वर्ष की अवधि में घटती हुई दर पर उसकी वसूली की जानी होती है ।

परिक्रामी निधि (नकदी जमा सुविधा) स्थायी आधार पर आवश्यक हो सकती है तथा स्वयं सहायता समूह के साथ बनी रह सकती है ।

 

ख) खाते में जमा शेष का समायोजन कब किया जाना होता है ?

नकदी जमा खाते की सतत निगरानी करनी चाहिए तथा आवश्यकता के अनुसार आवधिक रुप से उसका नवीकरण किया जाना चाहिए ।

 

ग) जिला ग्रामीण विकास एजेंसी द्वारा अदा की गई रु.10,000/- की राशि की चुकौती की जानी है अथवा उसे अनुदान समझा जाए ?

जिला ग्रामीण विकास एजेंसी द्वारा अदा की गई रु.10,000/- की राशि को, जहाँ तक बैंक का संबंध है, आर्थिक अनुदान समझा जाए । जहाँ तक समूह का संबंध है, यह नकदी जमा है, अत: उसकी चुकौती की जानी है । रु. 10,000/- की बकाया राशि पर केवल ब्याज नहीं लगाया जाता ।

 

घ) नकदी जमा खाते में परिसमापन का तरीका ।

इसका परिसमापन किसी अन्य नकदी जमा खाते की तरह होगा । समूह की देयता बकाया नकदी जमा की सम्पूर्ण राशि के लिए होगी ।

2.

क) परिक्रामी निधि के अंतर्गत स्वीवफ्त और वसूल किए जाने का तरीका स्पष्ट किया जाना है । क्या यह सभी समूहों के लिए रु.25,000/- होगा तथा जमा अनुपात अथवा सदस्यों की संख्या के अनुसार होगा ?

परिक्रामी निधि समूह की राशि से सहलग्न है तथा यह ऐसे समूहों को दी जाती है जो ग्रेडिंग का पहला चरण पार कर लेते हैं । खाते का परिचालन समूह में संकल्प द्वारा निर्धारित किया जाता है । यह खाता नकदी जमा स्वरुप का होगा सब्सिडी से अधिक ऋण का उपयोग किए जाने पर ब्याज प्रभारित किया जाएगा । स्वयं सहायता समूह परिचालन में रहने तक नकदी जमा खाता जारी रहेगा तथा निधि का परिचालन उधार देने वाले बैंकर के सन्तुष्टि तक किया जाएगा । वफ्पया मास्टर परिपत्र का पैरा 6 देखें ।

 

ख) क्या परिक्रामी निधि अथवा परिचालनगत सीमा कम करके रु.15,000/- की जानी है ?

परिचालनगत सीमा समूह की राशि पर निर्भर करेगी (मास्टर परिपत्र का पैरा 6 देखें । )

 

ग) बैंक को रु.25,000/- के संबंध में दस्तावेज लेने होंगे अथवा रु.15,000/- के संबंध में ?

बैंक को पूरी परिचालन सीमा के लिए दस्तावेज लेने होंगे ।

3.

क) जिला ग्रामीण विकास एजेंसी की आर्थिक सहायता रु.10,000/- को क्या माना जाएगा ? क्या इसे सीधे नकद-जमा खाते में जमा किया जाएगा अथवा इसे बिना ब्याज वाले अलग खाते के रुप में रखा जाएगा ?

ख) ऋण अथवा आर्थिक सहायता का संबंध स्वयं सहायता समूह में 5 से 20 तक सदस्यों की संख्या से नहीं हैं । कम सदस्यों वाले समूह में प्रति व्यक्ति परिक्रामी निधि अधिक उपलब्ध होगी ।

ग) परिक्रामी निधि ऋण/आर्थिक सहायता का संबंध समूह की बचत से नहीं है । समूह की बचत से उनके बीच निधि का परिचालन परिलक्षित होता है ।

घ) परिक्रामी निधि के लिए प्रतिभूति और ब्याज मानदंड ।

यह समूह की परिक्रामी निधि हेतु आर्थिक सहायता है, अत: इसे स्वयं सहायता समूह के नाम में आर्थिक सहायता आरक्षित कोष खाते के नाम से रखा जाए । इस पर नकदी जमा अनुपात और सांविधिक चलनिधि कोष की बाध्यता लागू नहीं होगी । आर्थिक सहायता आरक्षित कोष में जमा रु,10,000/- की राशि पर कोई ब्याज नहीं लिया जाएगा अर्थात् स्वयं सहायता समूह को केवल बैंक जमा वाले भाग पर ही ब्याज अदा करना होगा ।

ऋण की राशि किसी समूह द्वारा तैयार की गई परियोजना पर निर्भर करेगी परिक्रामी निधि तथा आर्थिक सहायता की सीमा एक समूह के लिए है तथा प्रतिव्यक्ति परिक्रामी निधि/आर्थिक सहायता में अंतर होगा ।

 

परिक्रामी निधि और आर्थिक सहायता दो प्रकार की सहायता है जो स्वयं सहायता समूहों को स्वग्रास्वयो के अंतर्गत उपलब्ध है तथा परिक्रामी निधि समूह राशि से सहलग्न है ।

परिक्रामी निधि के लिए समूह के सदस्यों से वचनपत्र और करार के साथ-साथ सामान्य दस्तावेजीकरण पर्याप्त होगा । परिक्रामी निधि के बैंक ऋण वाले भाग पर ही ब्याज लगाया जाता है । प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को दिए गए ऋण पर लागू ब्याज ही लिया जाएगा ।

4.

प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र में परिक्रामी निधिं ऋण किस उप शीर्ष में रखा जाएगा ?

यह प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों को ऋण के रुप में दर्शाया जा सकता है ।

 

 

ऋण के मानदण्ड

1.

दूसरी तथा परवर्ती किस्तें उसी बैंक द्वारा दी जानी हैं अथवा किसी और बैंक द्वारा सेवा क्षेत्र के अंतर्गत एक उधारकर्ता को दूसरी/एक से अधिक किस्तों के लिए दूसरे बैंक किस प्रकार सम्मिलित करेंगे ।

हमारे दिनांक 1.9.1999 के परिपत्र के पैरा (7) के अनुसार, यदि कोई बैंक, कमजोर वाणिज्य बैंक/ सहकारी बैंक/क्षेत्रीय गामीण बैंक के मामले में, दूसरी/एक से अधिक किस्तें देने में असमर्थ रहता है, तो कोई अन्य बैंक उधार देने वाले बैंक से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद उधारकर्ता को वित्त प्रदान कर सकता है । ऐसे मामलों में उधारकर्ता को सेवा क्षेत्र के बाहर जाने की भी अनुमति है । ब्लॉक/जिला स्तर पर स्वग्रास्वयो समितियां ऐसे निर्णय ले सकती हैं ।

2.

एक व्यक्ति , जिसने गैर-लघु सिंचाई ऋण लिया है, अब लघु सिंचाई के लिए ऋण लेने का इच्छुक है । आर्थिक सहायता की पात्रता की मात्रा निर्दिष्ट की जाए ।

गैर-लघु सिंचाई के अंतर्गत स्वग्रास्वयो का उधारकर्ता लघु सिंचाई ऋण के अंतर्गत आर्थिक सहायता/सब्सिडी हेतु पात्र नहीं होगा ।

3.

परियोजना रुपरेखा तैयार करने के लिए उत्तरदायी प्राधिकरण कौन है तथा प्रत्येक ब्लॉक के लिए रुपरेखा की वास्तविकता तकनीकी सक्षमता,आर्थिक सक्षमता इत्यादि कौन तय करेगा तथा अनुमोदन हेतु कौन सा प्राधिकरण है ?

स्वग्रास्वयो समिति से अपेक्षा की जाती है कि वह 8-10 मुख्य गतिविधियों की परियोजना रुपरेखा तैयार करें । इसके लिए नाबाड़ की संभाव्य संबंधित योजनाएं, सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण की ग्राम ऋण रुपरेखा विश्वसनीय है । पंचायत समिति की सिफारिशों के साथ परियोजना रुपरेखा जिला स्वग्रास्वयो समिति को भेजी जाए, जो अनुमोदनों की संवीक्षा करके उन्हें अनुमोदित करेगी ।

4.

क्या दृष्टिबंधक करार पर स्टाम्प शुल्क, गारंटी का सामान्य फार्म तथा अपरिवर्तनीय मुख्तारनामे से छूट प्राप्त है अथवा नहीं ? यदि नहीं, तो प्रत्येक दस्तावेज के लिए लगाए गए स्टाम्प शुल्क की मात्रा ?

विभिन्न व्यक्तियों/समूह उधार लेने वालों द्वारा निष्पादित किए जाने वाले विभिन्न दस्तावेजों पर स्टाम्प शुल्क से छूट देने का कार्य राज्य सरकारें करती हैं ।

5.

सामूहिक वित्त के मामले में ऋण खाते का शीर्ष ।

यह समूह का नाम होगा और इस प्रकार लिखा जाएगा - अबस-स्वयं सहायता समूह-गाँव

6.

  1. क्या वफ्षि क्षेत्र में भी नकद संवितरण की अनुमति है ?
  2. यदि हाँ,तो उसकी सीमा क्या है ?
  3. क्या नकद संवितरण जिले के सभी ब्लॉकों पर लागू है अथवा नकद संवितरण प्रणाली के लिए ब्लॉकों की पहचान का कार्य जिला समन्वय समिति/जिला स्वग्रास्वयो समिति को सौंपा जाएगा ताकि इस प्रयोजन हेतु आवश्यक सुरक्षा उपाय किए जा सवें ।

बैंक वफ्षि प्रयोजन के लिए सभी ऋणों का संवितरण नकद रुप में कर सकते हैं तथा यह सभी ब्लॉकों/ज़िलों पर लागू होगा ।

7.

आर्थिक सहायता की एक से अधिक किस्तों पर जोर दिया गया है । क्या एक से अधिक गतिविधियों के लिए ऋण दिया जा सकता है ? क्या बाद की किस्तें उसी गतिविधि के लिए दी जा सकती हैं अथवा अन्य किसी गतिविधि के लिए भी दी जा सकती है ।

एक से अधिक गतिविधियों के लिए आर्थिक सहायता दी जा सकती है । तथापि, वह गतिविधि,प्रमुख पहचान की गई गतिविधियों में से होनी चाहिए ।

8.

स्वयं सहायता समूह के माध्यम से वित्त प्रदान करने के मामले में स्वयं सहायता समूह की बचत को मार्जिन के रुप में लिया जा सकता है । समूह बचत के रुप में 25% के मार्जिन लाने से हिताधिकारी के भविष्य का ऋण भार कम होगा ।

समूह की बचत के स्वग्रास्वयो के अंतर्गत ऋण के साथ जोड़ने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि लक्ष्य समूह गरीबी रेखा से नीचे होता है । ऋण स्वयं सहायता समूह को तभी दिया जाता है जब ग्रेडिंग संतोषजनक (दिशानिर्देशों का पैरा 3.1) हो । दिशानिर्देशों के अनुसार परियोजना की पूरी लागत का वित्तपोषण करना होता है ।

9.

क्या इसका अर्थ यह हुआ कि अलग-अलग बैंकरों को ऋण राशि निर्धारित करने के लिए विवेकाधिकार बिल्कुल नहीं हैं ?

परियोजना की रुपरेखा में प्रत्येक गतिविधि हेतु आवश्यक निवेश की राशि दर्शायी गयी है । तथापि, बैंकर अपने दिशानिर्देशों के अंतर्गत ऋण स्वीवफ्ति हेतु मंजूरी को अंतिम रुप देते हैं ।

10.

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरेाजगार योजना के अंतर्गत वैयक्तिकों/स्वयं सहायता समूहों से प्राप्त किये जाने वाले प्रलेख

सग्राविका के अंतर्गत ऋण स्वीकफ्ति के लिए आवेदन और उपलब्ध कराये गए प्रलेखों का उपयोग यथोचित संशोधन के साथ स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के लिए किया जा सकता है ।

बीमा सुरक्षा

1.

55 वर्ष से 60 वर्ष के बीच के स्वरेाजगारियों के मामलों में उनकी जन्म तारीख सुनिश्चित करने का तरीका सूचित करें ।

इसके लिए स्वरोजगारी का राशन काड़,मतदाता सूची,गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की सूची और यदि शिक्षित हुआ तो स्कूल छोड़ने प्रमाणपत्र अथवा यदि कुछ भी उपलब्ध नहीं हो तो उसकी घोषणा मात्र भी स्वरोजगारी की आयु सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त समझी जायेगी । (मास्टर परिपत्र का पैरा (9) देखें ।)

प्रतिभूति मानदंड

 

1.

समूह के अंतर्गत 10 से 20 व्यक्ति शामिल हो सकते हैं । समूह को दी जाने वाली ऋण राशि अधिकतम 10 लाख रु. और न्यूनतम 5 लाख रु. तक हो सकती है । 10 लाख रु. तक के ऋणों के लिए संपार्श्विक प्रतिभूति से छूट प्राप्त हो जाती है ।

जून 2002 में आयोजित सीएलसीसी बैठक में प्रतिभूति मानदंडों के संबंध में संशोधन किया गया । मास्टर परिपत्र के पैराग्राफ 10 में उल्लिखित मानदंडों का अनुपालन किया जाए ।

2.

समूह ऋणों के मामलों में, यदि समूह अपनी परिसम्पत्तियों को संपार्श्विक प्रतिभूति के रुप में रखने की स्थिति में नहीं होता तो बैंक समूह के अलग-अलग सदस्यों से संपार्श्विक प्रतिभूति की मांग कर सकता है । समूह ऋणों के मामलों में प्राप्त की जाने वाली संपार्श्विक प्रतिभूति के संबंध में मानदंड निर्धारित किए जाएँ ।

प्राथमिक प्रतिभूति पर्याप्त न होने पर संपार्श्विक प्रतिभूति की मांग की जा सकती है । ऐसे मामलों में यह बैंक की इच्छा पर होगा कि वह मामले की परिस्थितियों के आधार पर समूह के अलग-अलग सदस्यों से संपार्श्विक प्रतिभूति की मांग करे अथवा सामूहिक रुप से मांग करें । इस संबंध में बैंक स्वयं निर्णय लेंगे ।

सब्सिडी

 

1.

दिनांक 10.7.91 के परिपत्र ग्राआऋवि. बीसी.6/568(ए) (पी) के अनुसार जिले की प्रमुख शाखाओं को उस वर्ष के लिए निर्धारित कुल सब्सिडी से 10% की सीमा तक अधिक राशि आहरित करने की अनुमति दी गयी है । प्रत्येक बैंक के लिए वास्तविक वित्तीय लक्ष्य प्राप्त करने की इस सीमा को इस बात के लिए बैठक में अंतिम रुप दिया जाता है कि क्या सग्राविका के अंतर्गत जारी दिशानिर्देश स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के लिए भी लागू रहेंगे । यदि हां, तो इस मामले के संबंध में अद्यतन स्थिति स्पष्ट की जाए ।

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के अंतर्गत वे अनुदेश बने रहेंगे ।

2.

लघु सिंचाई परियोजना सहित एकाधिक ऋणों के मामलों में जहां कोई मौद्रिक सीमा न हो , सब्सिडी घटक क्या रहेगा ?

वैयक्तिकों तथा समूह ऋणों के लिए एकाधिक ऋणों सहित लघु सिंचाई परियोजनाओं के मामलों में सब्सिडी पर कोई सीमा नहीं है । (मास्टर परिपत्र का पैराग्राफ 11 देख्ेां)

3.

अंत में दी जाने वाली सब्सिडी के कार्यान्वयन तथा सब्सिडी प्रारक्षित निधि खाते के रुप में सब्सिडी जमाराशि के प्रारंभ तथा समायोजन आदि करने संबंधी लागू नियम और शर्तों के बारे में विस्तफ्त दिशानिर्देश परिचालित किये जाएं ।

अंत में दी जाने वाली (बैक एंड) सब्सिडी संबंधी जानकारी के लिए भारत सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देर्शों के पैराग्राफ 4.17 और 4.24 देखें । बैक एंड सब्सिडी देने संबंधी नियम और शर्तें सग्राविका के नियम और शर्तों जैैसी ही हैं ।

ऋणोपरान्त अनुवर्ती कार्रवाई

1.

(क) ऋण के दुरुपयोग अथवा नियत वस्तु की खरीदी न की जाने पर दीवानी अथवा फौजदारी कार्रवाई शुरु की जा सकती है ?

(ख) यदि फौजदारी मामला हो तो एफआइआर बैंक और जिला ग्रामीण एजेंसी द्वारा संयुक्त रुप से फाइल किया जायेगा । वर्तमान में सरकार प्रायोजित कार्यक्रमों के लिए दीवानी कार्रवाई शुरु नहीं की जा सकती है ।

भारत सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों के पैराग्राफ 4.10 की ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है ।

2.

यदि स्वरोजगारी बैंक से राशि मिलने पर एक महीने के भीतर परिसंपत्ति की खरीद नहीं करता तो क्या कार्रवाई की जाती है और स्वरोजगारी से ऋण राशि की वसूली कैसे की जाती है ?

खरीद न किये जाने के कारणों की जांच बैंक/खंड विकास अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए । खरीदने का उचित अवसर मिलने के बाद भी यदि परिसंपत्ति की खरीद न किया जाना इरादतन रहा हो अथवा स्वरोजगारी की लापरवाही से रहा हो तो बैंक को यह अधिकार रहेगा कि वह ऋण निरस्त कर दे और राशि की वसूली करे ।

उपभोग ऋण हेतु जोखिम निधि

 

1.

जिला स्तर पर कमजोर वर्ग के स्वरोजगारियों के लिए बैंकों द्वारा संवितरित ऋण का 10% जोखिम निधि से उपलब्ध कराया जाता है । यह 10% सब्सिडी है अथवा चुकौती किया जाने वाला ऋण है ?

वर्ष के दौरान बैंकों द्वारा संवितरित उपभोग ऋण का 10% जोखिम निधि हेतु उन्हें जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों द्वारा उपलब्ध कराया जायेगा । इस निधि की सहायता से बैंक अप्रत्यादेय उपभोग ऋणों को बट्टे खाते में डाल सकेंगे ।

2.

किस समय उपभोग ऋण संवितरित किया जाता है तथा क्या कोई अलग से आवेदन फार्म/जमानती प्रलेख प्रस्तुत करना होता है अथवा यह स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के आवेदन फार्म में शामिल होता है ? क्या उसकी सीमा उपभोग ऋण सीमा सहित होती है ?

स्वरोजगारियों (स्वयं सहायता समूह सदस्यों को छोड़कर) के लिए 2000/- रु. से अनधिक उपभोग ऋण हेतु विचार किया जा सकता है । अलग से आवेदन फार्म/प्रलेख इसके लिए आवश्यक होता है । स्वयं सहायता समूह सदस्य उपभोग ऋण हेतु पात्र नहीं होंगे । यह उनकी इच्छा पर निर्भर होगा कि वे अपनी इस आवश्यकता को नकद ऋण सुविधा से पूरी कर लें ।

3.

जोखिम निधि खाते के खोले जाने/आवेदन करने के तौर-तरीके की व्यवस्था की जाए । इस निधि के लिए कार्यान्वयनकर्ता एजेंसी कौन रहेगी तथा इसमें शामिल मुख्य बातों का विवरण दिया जाए ।

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के उधारकर्ताओं, लघु सीमांत वफ्षकों,भूमिहीन खेतीहर मजदूरों,ग्रामीण कारीगरों आदि सहित कमजोर वर्ग के लोगों को उपभोग ऋण देने के फलस्वरुप होने वाले जोखिम को कवर करने के लिए बैंकों द्वारा जोखिम निधि का गठन किया जाता है (एसजीएसवाय दिशानिर्देश पैराग्राफ 4.30) सग्राविका मैन्युअल के अनुबंध च्च्घ् में इसके तौर-तरीके की व्याख्या की गयी है ।

 

ऋण की चुकौती

 

1.

क्या किस्तों की संख्या और चुकौती का अर्थ एक ही है ?

चुकौती अवधि अलग-अलग गतिविधियों के लिए भिन्न-भिन्न होती है । इसी तरह दिए गये ऋण हेतु गतिविधि विशेष के लिए निर्धारित किस्तों की संख्या भी ऋण की राशि, ब्याज देयता,चुकौती अवधि (अर्थात् 5,7 और 9 वर्ष जैसी भी स्थिति हो) पर निर्भर रहेगी ।

2.

0.5 % प्रक्रिया एवं निगरानी शुल्क की छूट की प्राप्ति हेतु पात्र होने के लिए त्वरित चुकौती अवधि कितनी है ? यदि छूट प्राप्त हो जाती है तो आगे भुगतान कैसे किया जाता है ?

किस्तों की चुकौती के मामलों में जहां तक स्वरोजगारी द्वारा ऋण की चुकौती एक निर्धारित समय सीमा (अनुग्रह अवधि सहित) से अधिक विलंबित नहीं की जाती तब तक उसका खाता नियमित समझा जाता है । प्रक्रिया एवं निगरानी शुल्क की छूट अंतिम किस्त के साथ दी जाती है ।

3.

यदि किसी निर्दिष्ट अवधि अर्थात् निश्चित अवरुध्दता अवधि के पूर्व ऋण की पूर्ण चुकौती कर दी जाती है तो उधारकर्ता यथानुपाती आधार पर सब्सिडी हेतु पात्र हो जाता है । यह यथानुपात किस आधार पर तय किया जाता है इसकी व्याख्या की जाए ।

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के अंतर्गत चुकौती के लिए यथानुपात सब्सिडी तय किये जाने की कार्यप्रणाली संलग्न है ।

4.

हिताधिकारी की आय गतिविधि शुरु होने अथवा तीन वर्ष पश्चात् से अनिवार्यत: निवल बैंक किस्त से 2000/- रु. प्रतिमाह ऊपर हो जाती है । एक निर्धन व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं हो सकेगा कि गतिविधि को उतने पैमाने पर शुरु कर सके कि उसे 4000/- रु. अधिक नकद राशि की प्राप्ति होने लगे । जिला स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना समितियों को चाहिये कि वे तुलनात्मक रुप से बड़ी परियोजनाओं को निरुपित करें ताकि दक्षता और अनुभव न होने की वजह से वे असफल न हो सके ।

इस क्षेत्र में ं कई परियोजनाओं की रुप रेखा पर विचार किया जा रहा है तथा राज्यों से प्राप्त प्रतिसूचनाओं से यह इंगित होता है कि यह प्राप्त किया जा सकता है ।

 

 

वसूली

   

1.

वसूली के लिए प्रोत्साहन और दंडात्मक कार्रवाई । संबंधित स्वरोजगारियों के खातों से प्रक्रिया एवं निगरानी शुल्क क्या एक मुश्त उपाय के रुप प्रभारित किया जाता है अथवा इसे प्रतिवर्ष प्रभारित किया जाता है ।

प्रक्रिया एवं निगरानी शुल्क एक बार में ऋण संवितरण के समय प्रभारित किया जाता है ।

2.

भारिबैं परिपत्र निम्नानुसार है :

किसी भी स्वरोजगारी द्वारा ऋण चुकौती में चूक करने पर बैंक जिला स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरेाजगार योजना समिति के अनुमोदन के पश्चात् सब्सिडी (अर्जित ब्याज सहित) को उसकी बकाया राशि के स्थान पर समायोजित कर सकता है ।

सब्सिडी प्रारक्षित निधि खाते में रखी राशि पर कोई ब्याज देय नहीं है और उसी तरह सब्सिडी के भाग वाले ऋण की राशि पर भी कोई ब्याज प्रभारित नहीं किया जाता । सरकार के दिशानिर्देशों के पैराग्राफ 4.24 तथा भारिबैं परिपत्र में से "अर्जित ब्याज सहित" वाक्य खंड को हटा दिया जाए ।

3.

प्रक्रिया प्रभार संवितरण के समय अथवा वसूली और निगरानी हेतु उसे किसी गैर सरकारी संगठन के समक्ष भेजते समय प्रभारित किया जाता है । त्वरित वसूली की स्थिति में क्या इसे वापस कर दिया जाता है ?

प्रकिया एवं निगरानी प्रभार ऋण संवितरण के समय लगाये जाते हैं तथा उसे अंतिम किस्त की चुकौती के समय लौटाया अर्थात समायोजित कर लिया जाता है क्योंकि चुकौती स्थिति अंत में ही स्पष्ट होती है ।

4.

प्रत्येक ग्राम/खंड में वसूली का आधार स्तर बनाये रखना चाहिए तथा बैंकों द्वारा ऐसे ग्रामों/खंडों को पुन: ऋण देने की समीक्षा की जायेगी जहां की वसूली न्यूनतम स्तर से नीचे रहेगी ।

बैंकों से यह अनुरोध किया गया है कि सितंबर 1999 तक चूककर्ताओं की सूची तैयार करें । मामले की समीक्षा यथासमय पर की जायेगी । स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के लिए न्यूनतम वसूली स्तर 80% रखा गया है । (अस्थायी रुप से स्थगित)

पर्यवेक्षण और निगरानी

 

1.

कुछ राज्यों में सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण के अंतर्गत ब्लाक समितियों की तिमाही बैठकों को स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना की बैठकों में रुपांतरित कर दिया जाता है जिसकी वजह से ब्लॉक/जिला स्तर पर स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के अंतर्गत एक अलग से मंच गठित करने का प्रयोजन ही निष्फल हो जाता है ।

स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना से संबंधित मामलों पर ब्लॉक और जिला स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना समितियों में चर्चा की जाती है । स्वर्णजयंती ग्राम स्वरेाजगार योजना के लिए विशिष्ट समिति गठित होती है क्योंकि इस पर विशेष ध्यान दिया जाना होता है । स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के लिए अलग समिति बनाये रखने की आवश्यकता कम से कम पहले 2-3 वर्षों के लिए होती ही है ताकि मामलों पर गहन चर्चा की जा सके ।

2.

जिला स्तर को छोड़कर शेष सभी स्तरों पर सभी संयोजक सरकारी अधिकारी रहेंगे । जिला स्तरीय मंचों पर संयोजक अग्रणी जिला प्रबंधक रहेंगे । इसके परिप्रेक्ष्य में और एजेंसियों के बीच अर्थपूर्ण समन्वयन हेतु जिला स्तरीय संयोजक का परिवर्तन किया जाए तथा जिला स्तरीय सरकारी अधिकारी जिला स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना समिति के संयोजक के रुप में नामित किया जाए ।

वर्तमान स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है ।

3.

यह सुझाव दिया गया कि ब्लॉक स्तरीय स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना समिति की उस माह की मासिक बैठक तथा तिमाही ब्लाक स्तरीय बैंकर समिति की बैठकों को साथ-साथ आयोजित किया जाए ताकि अग्रणी जिला अधिकारी (एलडीओ) इसमें चयनात्मक आधार पर भाग ले सकें ।

अग्रणी जिला अधिकारी ब्लाक स्तरीय स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना की बैठकों में चयनात्मक आधार पर तभी भाग ले सकते हैं जब वे एससी/ डीसीसी की बैठकों में भाग ले रहे हों और ब्लाक स्तरीय बैंकर समिति की बैठक उसके पहले अथवा बाद में आयोजित की जा रही हो ।

4.

इसी तरह से स्वर्णजयंती गा्रम स्वरोजगार योजना के अंतर्गत एक जिला स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना समिति है जो जिला समन्वयन समिति की स्थायी समिति जैसी ही है । इन मदों को भी एक साथ लाने की जरुरत है ।

वर्तमान स्थिति जारी रखी जाए ।

सेवा क्षेत्र दफ्ष्टिकोण

1.

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के अंतर्गत जिला स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना समितियों को यह अधिकार दिया गया है कि वे ऐसे ग्रामों को निर्धारित कर लें जो किसी बैंक द्वारा कवर न किये गये हों अथवा संबंधित बैंक ने किसी कारणवश उन्हें नजरअंदाज कर दिया हो । वफ्पया यह स्पष्ट करें कि ग्रामों का पुन:आबंटन केवल स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजनाओं तक ही सीमित है अथवा ग्राम की अन्य बैंकिंग गतिविधियों पर भी लागू है तथा क्या इसके लिए भारिबैं का अनुमोदन आवश्यक है ।

इस विषय पर चर्चा सीएलसीसी में हुई थी और यह निर्णय लिया गया था । यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐसा पुनर्निर्धारण के लिए कार्यान्वयन के स्तर पर कोई समस्या न उत्पन्न हो इसलिए हमने मास्टर परिपत्र के पैरा 21 में यह सूचित किया है कि पुन:आबंटन संबंधी निर्णय की सूचना विचारार्थ और आवश्यक कार्रवाई हेतु जिला परामर्शदात्री समिति के पास भेजी जाए ।

2.

यदि समूह ऋण 2/3 ग्रामों को कवर करता है तो ऐसी स्थिति में जिस शाखा के सेवा क्षेत्र के अधिक सदस्य उसमें हाें वह समूह को वित्त प्रदान करें ।

ब्लाक/जिला स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना समिति प्रत्येक शाखा को किये गये आबंटन के आधार पर निर्णय करें । समूह ऋण के संबंध ब्लाक स्तरीय बैंकर समिति/जिला परामर्शदात्री समिति/स्थायी समिति में भी निर्णय लिया जा सकता है ।

आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण

1.

सग्राविका/स्वग्रास्वयो के अंतर्गत वसूली को पफ्थक करना ।

सग्राविका के अंतर्गत दिनांक 31 मार्च 1999 तक संवितरित ऋणों को अलग से सूचित करें ।

भारिबैं के परिपत्रों में सम्मिलित न की गई मदें

 

1.

सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार संबंधित विभागों द्वारा सहलग्नता,विशेषरुप से तकनीकी सहायता स्थापित किए जाने की समीक्षा की जाए ताकि विशिष्ट प्रमुख गतिविधि का वित्तपोषण जारी रह सके - भारतीय रिज़र्व बैंक के परिपत्रों में यह मुद्दा नहीं उठाया गया है ।

परिपत्र में केवल प्रमुख विशेषताओं पर ही प्रकाश डाला गया है । दिशानिर्देश मार्गदर्शी विशेषताओं के रुप में बने रहेंगे ।


अंतिम सहायता सब्सिडी पध्दति

अवरुध्दता अवधि का निर्धारण (माडल)

बैंक ऋण के रुप में परियोजना की कुल लागत - रु.10,000/- सब्सिडी रु. 5,000/-

ऋण की चुकौती

लॉक इन अवधि (वर्षों में )

परिसंपत्तियों की अच्छी हालत में रखरखाव और ऋण की किस्तों की नियमित चुकौती

(ख) के बाद लेकिन (क) की समाप्ति से पहले नियमित चुकौती

समायोजन के लिए यथानुपाती सब्सिडी की पात्र राशि

   

की समाप्ति पर

पात्र सब्सिडी

   

 

रु.

 

रु.

1

2

3

4

5

6

5 वर्ष

3 वर्ष

पहले वर्ष और दूसरे वर्ष

शून्य

तीसरे वर्ष

चौथे वर्ष

पांचवें वर्ष

3000

4000

5000

7 वर्ष

4 वर्ष

पहले वर्ष से तीसरे वर्ष

शून्य

चौथे वर्ष

पांचवें वर्ष

छठें वर्ष

सातवें वर्ष

4/7X5000=2857

5/7X5000=3571

6/7X5000=4286

7/7X5000=5000

9 वर्ष

5 वर्ष

पहले वर्ष से चौथे वर्ष

शून्य

पांचवे वर्ष

छठें वर्ष

सातवें वर्ष

आठवें वर्ष

नौवें वर्ष

5/9X5000=2778

6/9X5000=3333

7/9X5000=3889

8/9X5000=4444

9/9X5000=5000


अनुबंध 1(2)

स्वर्णजयंती ग्राम स्वरेाजगार योजना - जिला स्तरीय - ऋण और वसूली - बैंक वार

राज्य -------------- राज्य कोड --------------

जिला -------------- ब्लॉक------------------

वर्ष --------------- माह ------------------

(लाख रुपये में )

क्रम सं.

बैंक का नाम

बैंक कोड

स्वीवफ्त ऋण की राशि

संवितरित ऋण की राशि

माह के दौरान चुकौती के लिए देय राशि

कुल राशि जिसकी चुकौती माह के दौरान हो जानी चाहिए थी

अब तक चुकौती की गई कुल राशि

     

समूह

व्यक्ति

समूह

व्यक्ति

समूह

व्यक्ति

समूह

व्यक्ति

समूह

व्यक्ति

जोड़

1

2

3

4

5

6

7

8

9

10

11

12

13

14

                           
                           
                           
                           
                           
 

जोड़

                       

अनुबंध 1(3)

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोज़गार योजना - स्वरोज़गारी ऋण की चुकौती का ब्योरा

(प्रोफार्मा - बीआर 2बी - बैंक की शाखा से ब्लॉक तथा ब्लॉक से जिला ग्रामीण विकास एजेंसी को)

बैंक कोड ------------- बैंक का नाम -----------------

ब्लॉक कोड ----------- ब्लॉक का नाम ---------------

माह ----------------- वर्ष ----------------

क्रम सं.

स्वरोजगारी का नाम

स्वरोजगारी कोड

गरीबी रेखा से नीचे कोड

माह के दौरान देय राशि

(रु. में)

माह के दौरान भुगतान की गई राशि

(रु. में)

कुल राशि जिसका भुगतान अब तक हो जाना चाहिए था

(रु. में)

अदा की गई कुल राशि

(रु. में)

1

2

3

4

5

6

7

8

               
               
               
               
               
               
               
               

टिप्पणी : यह प्रोफार्मा केवल स्वरोज़गारियों के लिए भरा जाए ।


अनुबंध 1(4)

स्वग्रास्वयो - स्वयं सहायता समूह ऋण चुकौती के ब्यौरे

(प्रोफार्मा -बीआर-2सी-बैंक शाखा से ब्लॉक तक और ब्लॉक से जिला ग्रामीण विकास एजेंसी तक)

बैंक कूट--------------- बैंक का नाम ----------------

ब्लॉक कूट --------------- ब्लॉक का नाम --------------

माह ------------------ वर्ष --------------------

क्रम सं.

स्वयं सहायता समूह का नाम

समूह कूट

माह में अतिदेय राशि

(रु. में)

माह के दौरान भुगतान की गयी राशि

(रु. में)

कुल राशि जो अब क भुगतान की जानी थी

(रु. में)

चुकौती की गयी कुल राशि

1

2

3

4

5

6

7

             
             
             
             
             
             
             
             

नोट : यह प्रोफार्मा केवल समूहों के लिए भरा जाना है ।


अनुबंध 1(5)

स्वग्रास्वयो - सब्सिडी पर व्यय

(प्रोफार्मा - डीआर 2ए - बैंक शाखा से ब्लॉक तक और ब्लॉक से जिला ग्रामीण विकास एजेंसी तक)

जिले का नाम ------------- जिला कूट -------------

वर्ष -------------------- माह -----------------

बैंक शाखा का नाम

बैंक शाखा कूट

दिनांक 01.04.. को शाखा के पास सब्सिडी राशि (रु.में)

पिछले माह तक दी गयी राशि

(रु. में)

माह केदौरान दी गयी राशि

(रु. में)

शाखा के पास उपलब्ध कुल राशि

(रु. में)

माह तक समायोजित राशि

(रु. में)

1

2

3

4

5

6

7

             
             
             
             
             
             
             
             

अनुबंध 1(6)

स्वग्रास्वयो - स्वयं सहायता समूहों पर व्यय

(प्रोफार्मा - डीआर 2डी - ब्लॉक से जिला ग्रामीण विकास एजेंसी तक)

बैंक का नाम ---------------------- बैंक की शाखा --------------

माह ----------------------- वर्ष ----------------

माह के दौरान किये गये व्यय का ब्यौरा

क्रम सं.

स्वयं सहायता समूह का नाम

स्वयं सहायता समूह कूट

क्षमता निर्धारण पर व्यय

परिक्रामी निधि में अंशदान

बैंक शाखा जिसे परिक्रामी निधि दी गयी

1

2

3

4

5

6

           
           
           
           
           
           
           

अनुबंध 1(7)

स्वग्रास्वयो - उपभोग ऋण हेतु जोखिम निधि पर व्यय

(प्रोफार्मा - डीआर - 2ई - ब्लॉक से जिला ग्रामीण विकास एजेंसी तक)

जिले का नाम ----------------------- जिला कूट -------------

माह ---------------------- वर्ष ------------------

क्रम सं.

बैंक का नाम

बैंक वूट

माह के दौरान किया गया व्यय

(रु. में)

जिला ग्रामीण विकास एजेंसी द्वारा प्रतिपूर्ति की गयी राशि

1

2

3

4

5

         
         
         
         
         
         
         
         

नोट : बैंक द्वारा व्यक्तिगत उपभोग उपयोगिता प्रमाणपत्र, व्यक्तियों के नाम और पते तथा ऋण की राशि, के साथ प्रस्तुत किये जाएं ।


अनुबंध 1(8)

स्वग्रास्वयो के अंतर्गत सितंबर, मार्च को

समाप्त छमाही के लिए वसूली की स्थिति

बैंक का नाम :

राज्य/संघ शासित क्षेत्र का नाम

मांग

वसूली

अतिदेय

3 की तुलना में 2 का प्रतिशत

 

व्यक्तिगत

समूह

व्यक्तिगत

समूह

व्यक्तिगत

समूह

व्यक्तिगत

समूह

1

2

 

3

 

4

 

5

 

आंध्र प्रदेश

               

असम

               

बिहार

               

गुजरात

               

हरियाणा

               

हिमाचल प्रदेश

               

जम्मू और कश्मीर

               

कर्नाटक

               

केरल

               

मध्य प्रदेश

               

महाराष्ट्र

               

मणिपुर

               

मेघालय

               

नगालैंड

               

उड़ीसा

               

पंजाब

               

राजस्थान

               

सिक्किम

               

तमिलनाडु

               

त्रिपुरा

               

उत्तर प्रदेश

               

पश्चिम बंगाल

               

अंदमान और निकोबार

             

अरुणाचल प्रदेश

             

चंडीगढ़

             

दादरा और नगर हवेली

             

दिल्ली

             

गोवा

             

मिज़ोरम

             

पांडिचेरी

             

लक्षद्वीप

             

दमण और दीव

             

छत्तीसगढ़

             

झारखंड

             

उत्तरांचल

             

कुल

             

परिशिष्ट

मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

क्रम सं.

परिपत्र सं.

दिनांक

विषय

1.

एसपी.बीसी.23/09.01.01/99-2000

01.09.1999

स्वर्णजयंती गा्रम स्वरोजगार योजना (स्वग्रास्वयो)

2.

एसपी.बीसी.51/09.01.01/99-2000

30.12.1999

स्वर्णजयंती गा्रम स्वरोजगार योजना (स्वग्रास्वयो)

3.

एसपी.बीसी.58/09.01.01/99-2000

02.02.2000

स्वर्णजयंती गा्रम स्वरोजगार योजना (स्वग्रास्वयो)

4.

एसपी.बीसी.01/09.01.01/2000-01

03.07.2000

स्वर्णजयंती गा्रम स्वरोजगार योजना (स्वग्रास्वयो) रिपोर्ट के फार्मेट

5.

एसपी.बीसी.03/09.01.01/2000-01

06.07.2000

वर्ष 2000-01 के दौरान स्वग्रास्वयेा के अंतर्गत ऋण संग्रहण लक्ष्य

6.

एसपी.बीसी.19/09.01.01/2001-2002

30.08.2001

स्वग्रास्वयो - कार्यान्वयन -सीएलसीसी चर्चा

7.

एसपी.बीसी.99/09.01.01/2001-2002

04.06.2002

स्वग्रास्वयो-परिवार और जानबूझकर चूककर्ता-स्पष्टीकरण

8.

एसपी.बीसी.15/09.01.01/2002-2003

11.09.2002

स्वग्रास्वयो-सामूहिक जीवन बीमा योजना

9.

एसपी.बीसी.16/09.01.01/2002-2003

11.09.2002

स्वग्रास्वयो-तिमाही समीक्षा नोट प्रस्तुत करना

10.

एसपी.बीसी.113/09.01.01/2002-2003

04.07.2002

स्वग्रास्वयो-हैदराबाद में 3 जून 2002 को आयोजित सीएलसीसी बैठक-निर्णयों का कार्यान्वयन

11.

एसपी.बीसी.03/09.01.01/2002-2003

13.08.2002

स्वग्रास्वयो-दिशानिर्देशों में संशोधन

12.

एसपी.बीसी.68/09.01.01/2002-2003

29.01.2003

स्वग्रास्वयो-नई दिल्ली में 24 दिसंबर 2002 को आयोजित सीएलसीसी बैठक-निर्णयों का कार्यान्वयन

13.

एसपी.बीसी.86/09.01.01/2002-2003

16.04.2003

स्वग्रास्वयो-चूककर्ताओं वाले समूहों का वित्तपोषण

14.

एसपी.बीसी.95/09.01.01/2002-03

12.05.2003

स्वग्रास्वयो दिशानिर्देशों में संशोधन

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