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मास्टर परिपत्र - रुपया निर्यात ऋण

आरबीआइ /2005-2006/10
संदर्भ: बैंपविवि. डीआईआर. सं. 1/04.02.02/2005-06

1 जुलाई 2005

10 आषाढ़ 1927 (शक)
सभी वाणिज्य बैंक
मबेदय,

मास्टर परिपत्र - रुपया निर्यात ऋण

जैसा कि आप जानते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक ने उपर्युक्त विषय पर दिनांक 12 अगस्त 2004 के पत्र संदर्भ : बैंपविवि. औनिऋक. सं. 27/04.02.02/2004-05 द्वारा एक मास्टर परिपत्र जारी किया था ताकि सभी वर्तमान अनुदेश बैंकों को एक ही जगह प्राप्त बे सकें । मास्टर परिपत्र में निहित अनुदेशों को 1 जुलाई 2005 तक अद्यतन बना दिया गया है । संशोधित मास्टर परिपत्र की एक प्रति संलग्न है । यह ध्यान दिया जाए कि जबँ तक बैंकों द्वारा उधारकर्ताओं को रुपया निर्यात ऋण दिए जाने का संबंध है, परिशिष्ट में सूचीबद्ध परिपत्रों में निहित अनुदेशों को मास्टर परिपत्र में समेकित करके अद्यतन बना दिया गया है ।

भवदीय

(पी. विजय भास्कर)

मुख्य मबप्रबंधक


1. पोतलदानपूर्व निर्यात ऋण

1.1 रुपया पोतलदानपूर्व ऋण /पैकिंग ऋण

1.1.1 परिभाषा

पोतलदानपूर्व /पैकिंग ऋण किसी बैंक द्वारा किसी निर्यातक को मंजूर किया गया या दिया गया ऐसा ऋण या अग्रिम है जो भारत से बाहर स्थित किसी आयातक द्वारा निर्यातक या किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में खोले गए साख-पत्र के आधार पर या भारत से वस्तुओं के निर्यात के लिए पुष्ट और अपरिवर्तनीय आदेश या निर्यातक या किसी अन्य व्यक्ति को भारत से बाहर निर्यात करने संबंधी आदेश के किसी अन्य साक्ष्य के आधार पर (बशर्ते निर्यात आदेश दिए गए बे ने या बैंक में साखपत्र खोले जाने से छूट न दे दी गई बे) पोतलदान से पहले वस्तुओं के क्रय, प्रसंस्करण, विनिर्माण या पैकिंग कार्यों के लिए अपेक्षित वित्त के रूप में उपलब्ध कराया गया बे ।

1.1.2 अग्रिम की अवधि

(व) पैकिंग ऋण संबंधी अग्रिम कितनी अवधि के लिए दिया जाए, यह प्रत्येक मामले में माल प्राप्त करने में लगने वाले समय, उसके विनिर्माण या प्रसंस्करण (जबँ आवश्यक बे) और माल को जबज पर लादने में लगने वाले समय पर निर्भर करेगा । यह मुख्यत: बैंक का दायित्व है कि वह विभिन्न परिस्थितियों का ध्यान रखते हुए स्वयं निर्धारित करे कि पैकिंग ऋण संबंधी अग्रिम कितनी अवधि के लिए दिया जाए ताकि निर्यातक को इतना समय मिल सके कि वह माल को जबज में लाद सके ।

(वव) अग्रिम की तारीख से 365 दिनों के भीतर यदि निर्यात संबंधी दस्तावेज प्रस्तुत करके पोतलदानपूर्व अग्रिम समायोजित नहीं कर दिया जाता तो निर्यातक को दिए गए अग्रिम पर प्रारंभ से ही रियायती ब्याज दर की सुविधा नहीं दी जाएगी।

(ववव) भारतीय रिजॅर्व बैंक केवल 180 दिन तक की अवधि के लिए ही पुनर्वित्त उपलब्ध करायेगा ।

1.1.3 पैकिंग ऋण का संवितरण

(व) सामान्यत:, मंजूर किया गया प्रत्येक पैकिंग ऋण अलग-अलग खाते के रूप में रखा जाना चाहिए ताकि मंजूरी की अवधि और ऋण के उष्टि उपयोग पर नजर रखी जा सके ।

(वव) आदेश /साख-पत्र के कार्यान्वयन के लिए बैंक पैकिंग ऋण एक बार में या आवश्यकता के अनुसार कई चरणों में उपलब्ध करा सकते हैं ।

(ववव) निर्यात की जानेवाली वस्तुओं के प्रकार के आधार पर (जैसे दफ्ष्टिबंधक, बंधक इत्यादि) बैंक प्रसंस्करण, विनिर्माण इत्यादि विभिन्न चरणों पर अलग-अलग खाते रख सकते हैं तथा वे यह सुनिश्चित करें कि ऐसे खातों के बकाया शेषों का समायोजन, एक खाते से दूसरे खाते में अंतरण द्वारा और अंततोगत्वा क्रय, छूट, इत्यादि के उपरान्त संबंधित निर्यात-दस्तावेजों की आय से, कर लिया जाता है ।

(वख्) बैंकों को ऋण की राशि के उद्दिष्ट उपयोग पर कड़ी नजर रखनी चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कम ब्याज दर पर उपलब्ध कराये गए ऋण का उपयोग निर्यात संबंधी वास्तविक आवश्यकताओं के लिए ही किया जा रब है। बैंकों को निर्यात संबंधी आदेशों के ठीक समय से कार्यान्वयन के मामले में निर्यातकों द्वारा की जा रही कार्रवाई पर भी नजर रखनी चाहिए ।

1.1.4 पैकिंग ऋण का परिसमापन

(व) सामान्य

किसी निर्यातक को स्वीवफ्त किया गया पैकिंग ऋण/पोतलदानपूर्व ऋण को निर्यात की गई वस्तुओं की खरीद, छूट आदि के बाद बनाए गए बिलों की प्राप्तियों में से परिसमाप्त किया जाए । इस प्रकार पोतलदान पूर्व ऋण को पोतलदानोत्तर ऋण में परिवर्तित कर दिया
जाएगा । इसके साथ ही, निर्यातक और बैंकर के बीच आपसी सहमति बेने पर यह, विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाते (ईई एफ सी खाते) के शेष तथा निर्यातक द्वारा किए गए वास्तविक निर्यात के बराबर निर्यातक के रूपयों के संसाधन से भी चुकता/समय से पूर्व अदा किया जा सकता है । यदि ऋण का इस प्रकार परिसमापन/चुकौती न बे सके, तब बैंको को चाहिए कि पैरा 5.2.1 (4) में दर्शाए गए अनुसार अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण- पोतलदानपूर्व श्रेणी के ऋणों के अनुसार अग्रिम की तिथि से ब्याज का प्रभार लगाएँ ।

(वव) निर्यात मूल्य से अधिक पैकिंग ऋण

(क) जबँ उप-उत्पाद का निर्यात किया जा सकता बे

जिन मामलों में काजू इत्यादि जैसे कफ्षि-उत्पादों के प्रसंस्करण के कारण बेने वाली कमी के चलते निर्यातक पैकिंग ऋण को समाप्त करने के लिए समान मूल्य का निर्यात बिल प्रस्तुत नहीं कर सकता है, उनमें बैंक निर्यातकों को, अन्य बातों के साथ-साथ, इस बात की अनुमति दे सकते हैं कि वे काजू का तेल इत्यादि जैसे उप-उत्पादों से संबंधित आहरित निर्यात बिलों द्वारा अधिक पैकिंग ऋण का समापन कर सकें ।

ख) जबँ आंशिक घरेलू बिक्री की जा सकती बे

लेकिन तंबाकू, कालीमिर्च, इलायची, काजू इत्यादि जैसे वफ्षि-आधारित उत्पादों के निर्यात के मामले में, निर्यातक उत्पाद थोड़ी अधिक मात्रा में खरीदे तथा उसे निर्यात योग्य व न निर्यात योग्य श्रेणियों में रखे और केवल निर्यात योग्य श्रेणी की वस्तुओं का ही निर्यात करे। न निर्यात योग्य शेष उत्पादों की स्थानीय बिक्री अनिवार्य है। जिस पैकिंग ऋण में ऐसी न निर्यात योग्य वस्तुएँ शामिल बें, उनमें बैंको के लिए आवश्यक है कि वे पैकिंग ऋण दिए जाने की तारीख से ही, घरेलू अग्रिमों पर लगाए जाने वाले ब्याज की दर से वाणिज्यिक दर पर ब्याज लें और पैकिंग ऋण के उतने भाग के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से पुनर्वित्त की कोई सुविधा प्राप्त नहीं बेगी ।

ग) डी-आयल्ड/डी-फैटेड केक का निर्यात

बैंक निर्यातकों को एच पी एस मूँगफली तथा डी आयल्ड /डी फैटेड केक के निर्यातकों को पैकिंग ऋण अग्रिम मंजूर कर सकते हैं लेकिन यह राशि अपेक्षित कच्चे माल के मूल्य की सीमा तक बेनी चाहिए, भले ही उसका (कच्चे माल का) मूल्य निर्यात आदेश के मूल्य से अधिक बे। निर्यात आदेश से अधिक राशि का अग्रिम रियायती ब्याज दर लगाए जाने के लिए तभी पात्र बेगा जब कि उसका समायोजन नकद रूप में या शेष उप-उत्पाद तेल की बिक्री द्वारा अग्रिम की तारीख से तीस दिनों के भीतर कर दिया जाए ।

(ववव) तथापि, बैंको का इस बात की छूट है कि वे अच्छे ट्रैक रिकाड़ वाले निर्यातकों को निम्नलिखित छूट प्रदान कर सकें :

क) निर्यात दस्तावेजों की आय से पैकिंग ऋण की चुकौती/का समापन किया जाता रहेगा । लेकिन ऐसा, निर्यातक द्वारा निर्यात की गई किसी अन्य वस्तु या उसी वस्तु से संबंधित अन्य आदेश से संबद्ध निर्यात दस्तावेजों से भी किया जा सकता है । संविदा के इस प्रकार प्रतिस्थापन की अनुमति देते समय बैंको को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसा करना वाणिज्यिक दृष्टि से आवश्यक और अपरिबर्य है । बैंक को उन कारणों से संतुष्ट बे लेना चाहिए कि किसी खास वस्तु के पोतलदान के लिए दिया गया पैकिंग ऋण सामान्य तरीके से समाप्त क्यों नहीं किया जा सकता। यदि निर्यातक ने संबंधित बैंक में खाता खोल रखा है या यदि सबयतासंघ गठित किया गया है और इस संघ के सदस्यों ने अनुमति दे दी है तो संविदा के प्रतिस्थापन की अनुमति यथासंभव दी जानी चाहिए ।

ख) वर्तमान पैकिंग ऋण का समापन किसी ऐसे निर्यात दस्तावेज की आय से भी किया जा सकता है जिसके आधार पर निर्यातक ने कोई पैकिंग ऋण नहीं लिया है । फिर भी ऐसा संभव है कि निर्यातक किसी एक बैंक से पैकिंग ऋण लेकर संबंधित दस्तावेज किसी दूसरे

 

 

बैंक में प्रस्तुत कर दे । इस संभावना को दृष्टिगत रखते हुए बैंक ऐसी सुविधा यह सुनिश्चित करने के बाद उपलब्ध कराएँ कि निर्यातक ने प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों के माध्यमसे किसी अन्य बैंक से पैकिंग ऋण नहीं लिया है ।

ग) सहयोगी संस्थाओं /अधीनस्थ संस्थाओं/उसी समूह की अन्य संस्थाओं को ऐसी छूट नहीं प्रदान की जानी चाहिए ।

1.1.5 ‘चल खाता’ सुविधा

(व) जैसा कि ऊपर बताया गया है, निर्यातकों को पोतलदानपूर्व ऋण सामान्यत: साखपत्र या निर्यात संबंधी पक्का आदेश प्रस्तुत किए जाने के बाद प्रदान किया जाता है । यह पाया गया है कि कुछ मामलों में कच्चे माल की उपलब्धता किसी खास मौसम में ही बेती है, कुछ अन्य मामलों में निर्यात संबंधी संविदा के अनुसार माल के निर्यात के लिए जो समय-सीमा निश्चित की गयी बेती उसकी तुलना में उस माल के विनिर्माण और उसके पोतलदान में अधिक समय लगता है । कई मामलों में विदेशी खरीददारों से साख-पत्र /पक्का निर्यात आदेश प्राप्त बेने की आशा के आधार पर भी निर्यातकों को कच्चा माल खरीदकर निर्यात योग्य वस्तु का निर्माण करके पोतलदान के लिए तैयार रखना पड़ता है । ऐसे मामलों में, पर्याप्त पोतलदानपूर्व ऋण प्राप्त करने में निर्यातको को बे रही कठिनाइयों को दृष्टिगत रखते हुए बैंकों को इस बात के लिए अधिवफ्त किया गया है कि वे अपने विवेक के आधार पर, साख-पत्र या पक्का आदेश के पूर्व प्रस्तुतीकरण हेतु जोर डाले बिना भी, किसी भी वस्तु के मामले में पोतलदान पूर्व ऋण ‘चल खाता’ सुविधा प्रदान करें लेकिन ऐसी स्थिति में निम्नलिखित शर्तें भी लागू बेंगी :

(क) बैंक ‘चल खाता’ सुविधा केवल ऐसे निर्यातकों को उपलब्ध कराएँ जिनका ट्रैक रिकाड़ अच्छा बे। यह सुविधा निर्यार्तोन्मुख इकाइयों/मुक्त व्यापार क्षेत्रों/ निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों में स्थित इकाइयों को भी दी जा सकती है ।

(ख) जिन मामलों में पोतलदानपूर्व ऋण चल खाता सुविधा प्रदान की जाए उन सब में साखपत्र/पक्का आदेश उपयुक्त अवधि के भीतर प्रस्तुत किया जाना चाहिए तथा ऐसी अवधि का निर्धारण बैंक करेंगे ।

(ग) एक-एव निर्यात बिल जैसे-जैसे बेचान /संग्रह के लिए प्राप्त बें बैंको को चाहिए कि पहले ऋण का पहले समापन के आधार पर सबसे पहले के बकाया पोतलदानपूर्व ऋण का समापन करें। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि ऊपर बताए गए तरीके से पोतलदानपूर्व ऋण का समापन करते समय बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रियायती दर पर प्रदान किए गए किसी भी पोतलदानपूर्व ऋण की अवधि मंजूरी की अवधि या 360 दिन, दोनों में से जो भी पहले बे, से अधिक न बेने पाए ।

(घ) पैकिंग ऋण का समापन ऐसे निर्यात दस्तावेज की आय से भी किया जा सकता है जिसके आधारपर निर्यातक ने कोई पैकिंग ऋण नहीं लिया है ।

(वव) यदि यह पाया जाए कि निर्यातक इस सुविधा का दुरुपयोग कर रहे हैं तो यह सुविधा तुरंत वापस ले ली जाए ।

(ववव) जिन मामलों में निर्यातक शर्तों का पालन नहीं करेंगे उनमें अग्रिमों पर प्रारंभ से ही वाणिज्यिक दर पर ब्याज लगाया जाएगा । ऐसे मामलों में संबंधित पोतलदानपूर्व ऋणों के मामलों में बैंकों द्वारा रिज़र्व बैंक से लिए गए पुनर्वित्त पर उच्चतर दर पर ब्याज का भुगतान किया जाना बेगा । ऐसे सभी मामलों की रिपोर्ट मौद्रिक नीति विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्रीय कार्यालय, मुंबई - 400 001 को भेजी जानी चाहिए ताकि वह पुनर्वित्त पर लगाए जाने वाले ब्याज की दर निश्चित कर सके ।

(वख्) उप-आपूर्तिकर्ताओं को चल खाता सुविधा नहीं प्रदान की जानी चाहिए ।

      1. पैकिंग ऋण पर ब्याज
      2. ब्याज दर का विवरण तथा उससे संबंधित अनुदेश पैराग्राफ 5 में दिए गए हैं ।

      3. निर्यात संबंधी अग्रिम भुगतान वाले बैंक ड्राफटों इत्यादि

की आय के आधार पर निर्यात ऋण

(व) जिन मामलों में निर्यातकों को निर्यात के लिए भुगतान के रूप में विदेश से चेकों, ड्राफटों इत्यादि के रूप में सीधे प्रेषण प्राप्त बें, उनमें अच्छे ट्रैक रिकाड़ वाले निर्यातकों को बैंक विदेश से प्राप्त चेकों, ड्रापटों इत्यादि की आय की वसूली तक की अवधि वे लिए रियायती ब्याज दर पर निर्यात ऋण मंजूर कर सकते हैं परंतु ऐसा, इस बात से संतुष्ट बेने के बाद किया जाना चाहिए कि यह किसी निर्यात आदेश पर आधारित है, संबंधित वस्तुओं के मामले में व्यापारिक प्रथाओं के अनुरूप है और प्रचलित नियमों के अनुसार निर्यात संबंधी आय की वसूली का यह अनुमोदित तरीका है ।

(वव) यदि उपर्युक्त शर्तें पूरी न किए जाने तक किसी निर्यातक को सामान्य वाणिज्यिक ब्याज दर पर सबयता मंजूर की गयी है तो उपर्युक्त शर्तें बाद में पूरी कर लिए जाने पर बैंक पीछे की तारीख से रियायती दर पर ब्याज लगा सकते हैं और निर्यातक को ब्याज दरों में अंतर की राशि वापस कर सकते हैं ।

1.2 खास क्षेत्रों/खंडों को रुपया पोतलदानपूर्व ऋण

1.2.1 राज्य व्यापार निगमों/खनिज और धातु व्यापार निगम या अन्य निर्यात गफ्बें, एजेंसियों इत्यादि के माध्यम से किए गए निर्यातों के लिए निर्माता आपूर्तिकर्ताओं को रुपया निर्यात पैकिंग ऋण

(व) बैंक ऐसे निर्माता आपूर्तिकर्ताओं को निर्यात पैकिंग ऋण मंजूर कर सकते हैं जिनके पास निर्यात आदेश साखपत्र नहीं हैं, और माल का निर्यात राज्य व्यापार निगमों/खनिज और धातु व्यापार निगम या अन्य निर्यात गफ्बें, एजेंसियों इत्यादि के माध्यम से किया जाता है ।

(वव) ऐसे अग्रिम पुनर्वित्त के लिए पात्र बेंगे, बशर्ते, सामान्य शर्तों के अलावा निम्नलिखित शर्तों का भी पालन किया गया बे :

(क) बैंक को निर्यात गफ्ह से एक पत्र प्राप्त करना चाहिए जिसमें निर्यात आदेश तथा उसके उस भाग का विवरण दिया गया बे जिसे आपूर्तिकर्ता द्वारा पूरा किया जाना है तथा जिसमें यह प्रमाण पत्र दिया गया बे कि निर्यात गफ्ह ने आदेश के उस भाग के लिए, जिसे आपूर्तिकर्ता द्वारा पूरा किया जाना है, कोई पैकिंग ऋण सुविधा न तो ली है और न ही बाद में ऐसी सुविधा लेगा ।

(ख) बैंक को चाहिए कि वह आपसी विचार-विमर्श करके तथा निर्यात गफ्ह और आपूर्तिकर्ता (यानि दोनों पक्षों) की निर्यात संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उन दोनों - अर्थात् निर्यात गफ्ह और आपूर्तिकर्ता के बीच पैकिंग ऋण की इस अवधि को विभाजित कर देगा जिसके लिए रियायती दर पर ब्याज लगाया जाना है। पोतलदानपूर्व ऋण पर निर्धारित अवधि तक रियायती दर पर लगाया जाने वाला ब्याज निर्यात गफ्ह / एजेंसी और आपूर्तिकर्ता दोनों को मिलाकर ही लिया जाएगा ।

(ग) निर्यात साखपत्रों या आदेशों का अपेक्षित विवरण देते हुए निर्यात गफ्ह को आपूर्तिकर्ता के पक्ष में देशी साखपत्र खोल देना चाहिए तथा पैकिंग ऋण खाते से संबंधित बकायों को, ऐसे देशी साखपत्रों के अंतर्गत बिलों का बेचान करके, समाप्त किया जाना चाहिए । यदि निर्यात गफ्ह के लिए आपूर्तिकर्ता के पक्ष में देशी साखपत्र खोलना असुविधाजनक बे तो आपूर्तिकर्ता को चाहिए कि वह निर्यात के लिए आपूर्ति किए गए माल के संबंध में निर्यात गफ्ह पर बिलों का आहरण करे और ऐसे बिलों से प्राप्त आय से पैकिंग ऋण संबंधी अग्रिमों का समायोजन करे। यदि ऐसी व्यवस्था के अंतर्गत आहरित बिलों के साथ लदान-पत्र या निर्यात संबंधी अन्य दस्तावेज न बें तो बैंक को हर तिमाही के अंत में आपूर्तिकर्ता के माध्यम से निर्यात गफ्ह से इस आशय का प्रमाणपत्र प्राप्त करना चाहिए कि इस व्यवस्था के अंतर्गत आपूर्ति की गयी वस्तुओं का वस्तुत: निर्यात किया गया है । प्रमाण-पत्र में संबंधित बिल की तारीख, राशि और बैंक का नाम दिया जाना चाहिए जिसके माध्यम से बिलों का बेचान किया गया है ।

(घ) बैंकों को आपूर्तिकर्ता से इस आशय का वचन पत्र प्राप्त करना चाहिए कि संबंधित निर्यात आदेश के लिए निर्यात गफ्ह से यदि कोई अग्रिम भुगतान प्राप्त बेगा तो उसे पैकिंग ऋण खाते में जमा कर दिया जाएगा ।

2.उप-आपूर्तिकर्ताओं को रुपया निर्यात पैकिंग ऋण

(व) जैसा कि निर्यात आदेश धारक तथा निर्माता आपूर्तिकर्ता के बीच बेता है, उसी प्रकार निर्यात आदेश धारक तथा निर्यातित माल के कच्चे माल, घटकों इत्यादि के उप-आपूर्तिकर्ता के बीच भी पैकिंग ऋण विभाजित किया जा सकता है परन्तु इस मामले में निम्नलिखित शर्तें लागू बेंगी :

(क) योजना के अंतर्गत बाद में चल खाता सुविधा न प्रदान की जाने वाली बे । योजना के अंतर्गत, निर्यात गफ्बें/व्यापार गफ्बें/स्टार व्यापार गफ्बें इत्यादि या निर्माता निर्यातकों के पक्ष में प्राप्त निर्यात आदेश या इनसे संबंधित साखपत्र ही शामिल बेंगे । निर्यातक के अच्छे ट्रैक रिकाड़ के आधार पर ही इस योजना का लाभ उसे दिया जाना चाहिए ।

(ख) निर्यात आदेशधारक के बैंकर देशी साखपत्र खोलेंगे । साखपत्र में उस माल का विवरण दिया जाएगा जिसकी आपूर्ति उप-आपूर्तिकर्ता द्वारा निर्यात संबंधी लेनदेन के अंग के रूप में, आदेश धारक को प्राप्त निर्यात आदेश या साख-पत्र के आधार पर निर्यात की जानेवाली है । ऐसे साखपत्र के आधार पर उप-आपूर्तिकर्ता का बैंकर कार्यशील पूँजी के रूप में निर्यात पैकिंग ऋण मंजूर करेगा ताकि उप-आपूर्तिकर्ता ऐसी वस्तुओं का निमार्ण कर सके जिनकी आवश्यकता निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के लिए बेती है । माल की आपूर्ति के बाद, साखपत्र खोलनेवाला बैंक खोले गए देशी साखपत्र के आधार पर प्राप्त देशी दस्तावेजों को आधार मानकर उप-आपूर्तिकर्ता के बैंक को भुगतान कर देगा। इसके बाद ऐसे भुगतान निर्यात आदेश धारक का निर्यात पैकिंग ऋण बे जाएँगे ।

(ग) यह निर्यात आदेश धारक पर निर्भर करता है कि वह प्राप्त आदेश या साखपत्र की समग्र सीमा के भीतर, अपने बैंकर /बैंकों के सबयता संघ के नेता के अनुमोदन से, अपेक्षित वस्तुओं के लिए कितने साखपत्र खोले। परिचालनगत सुविधा को दृष्टिगत रखते हुए यह साखपत्र खोलने वाले बैंक पर निर्भर करता है कि वह साखपत्र खोले जाने के लिए न्यूनतम राशि कितनी निर्धारित करे। आपूर्तिकर्ता(ओं) द्वारा व्यक्तिगत या पफ्थक रूप से तथा निर्यात आदेशधारक द्वारा लिए गए पैकिंग ऋण की कुल अवधि निर्यात की गयी वस्तुओं के लिए अपेक्षित सामान्य उत्पादन चक्र के भीतर बेनी चाहिए । सामान्यत:, कुल अवधि की गणना उप-आपूर्तिकर्ताओं में से किसी एक द्वारा पैकिंग ऋण के प्रथम आहरण की तारीख से निर्यात आदेश धारक द्वारा निर्यात दस्तावेजों के प्रस्तुतीकरण की तारीख तक की जाएगी ।

(घ) निर्यात आदेश धारक निर्यात आदेश या विदेश में खोले गए साखपत्र के अनुसार माल के निर्यात के लिए उत्तरदायी बेगा तथा इस प्रक्रिया में किसी प्रकार के विलम्ब के लिए वह समय-समय पर लागू किए जा रहे दांडिक प्रावधानों के अंतर्गत कार्रवाई का पात्र बेगा। उप-आपूर्तिकर्ता द्वारा देशी साखपत्र की शर्तों के अनुसार निर्यात आदेशधारक को माल उपलब्ध करा दिए जाने के बाद, इस योजना के अंतर्गत उसका दायित्व सम्पादित मान लिया जाएगा तथा निर्यात आदेशधारक यदि किसी प्रकार से विलम्ब करेगा तो ऐसे विलम्ब के लिए उप-आपूर्तिकर्ता पर कोई दांडिक प्रावधान लागू नहीं बेगा ।

(ड.) यह योजना निर्यातित माल के मामले में, निर्यात आदेश धारक तथा निर्माता के बीच पैकिंग ऋण की हिस्सेदारी की वर्तमान व्यवस्था के अलावा एक अतिरिक्त सुविधा है, जैसा कि पैरा 1.2.1 में बताया गया है । इस योजना के अंतर्गत उत्पादन चक्र का केवल प्रथम चरण ही शामिल बेगा। उदाहरण के लिए, किसी निर्माता निर्यातक को ऐसे सामानों के अपने निकटतम आपूर्तिकर्ता के पक्ष में देशी साखपत्र खोलने की अनुमति दी जाएगी जो निर्यात योग्य वस्तुओं के निर्माण के लिए आवश्यक बें। इस योजना का लाभ ऐसे निकटतम आपूर्तिकर्ताओं को कच्चे माल /सामानों की आपूर्ति करने वालों को नहीं दिया जाएगा। यदि निर्यात आदेशधारक मात्र व्यापार गफ्ह है तो यह सुविधा उस निर्माता से आरंभ करके शुरू करायी जाएगी जिसे व्यापार-गफ्ह ने निर्यात आदेश हस्तांतरित किया है ।

(च) निर्यात के प्रयोजन हेतु किसी दूसरी निर्यातोन्मुख इकाई /निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र को माल की आपूर्ति करने वाली निर्यातोन्मुख इकाई /निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र/विशेष आर्थिक क्षेत्र/भी इस योजना के अंतर्गत रुपया पोतलदानपूर्व निर्यात ऋण प्राप्त करने का पात्र बेंगे। तथापि निर्यातोन्मुख इकाई /निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र /विशेष आर्थिक क्षेत्र की आपूर्तिकर्ता इकाई किसी पोतलदानोत्तर सुविधा के लिए पात्र नहीं बेगी क्योंकि इस योजना के अंतर्गत वस्तुओं की उधार बिक्री शामिल नहीं है ।

(छ) इस योजना के अंतर्गत अग्रिम की कुल राशि या अवधि में कोई परिवर्तन करने का विचार समाहित नहीं है । तदनुसार, देशी निर्यात साखपत्र प्रणाली के अंतर्गत उप-आपूर्तिकर्ता को अग्रिम दिए जाने की तारीख से निर्यात आदेश धारक द्वारा उसे समाप्त किए जाने की तारीख तक और निर्यात आदेशधारक द्वारा वस्तुओं के पोतलदान के माध्यम से पैकिंग ऋण का परिसमापन किए जाने की तारीख तक इस व्यवस्था के अंतर्गत दिया गया ऋण निर्यात ऋण माना जाएगा और इसके लिए संबंधित बैंक उपयुक्त अवधि के लिए रिज़र्व बैंक से पुनर्वित्त सुविधा प्राप्त करने का पात्र होगा। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि एक ही चरण के किसी लेनदेन के लिए दो बार वित्तपोषण न किया जाए ।

(ज) निर्यात ऋण गारंटी निगम से उपयुक्त बीमा सुविधा प्राप्त करने के लिए बैंक ऐसे अग्रिमों के लिए निर्यात ऋण गारंटी निगम से संपर्क कर सकते हैं ।

(झ) इस योजना के अंतर्गत उप-आपूर्तिकर्ता द्वारा निर्यात आदेश धारव /निर्माता को ऋण दिए जाने के संबंध में कोई बात नहीं कही गयी है । अत: साखपत्र खोलने वाले बैंक द्वारा, भुगतान को निर्यात आदेशधारक का निर्यात पैकिंग ऋण मानकर ही, दस्तावेजों के प्रस्तुतीकरण के आधार पर उप-आपूर्तिकर्ताओंको भुगतान किया जाना है ।

1.2.3. निर्माण ठेकेदारों को रुपया पोतलदानपूर्व ऋण

(व) निर्माण ठेकेदारों को विदेशों में प्राप्त ठेकों को पूरा करने के लिए उनकी प्रारंभिक कार्यशील पूँजी संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पैकिंग ऋण अग्रिम, विदेश से प्राप्त सुनिश्चित संविदा के आधार पर, एक अलग खाते में दिए जाने चाहिए। लेकिन ऐसे अग्रिम ठेकेदारों से इस आशय का वचनपत्र प्राप्त करने के बाद ही दिए जाने चाहिए कि उन्हें संविदा संबंधी कार्य पूरा करने के लिए प्रारंभिक व्यय के रूप में, अर्थात विदेश में संविदा पूरी करने के प्रयोजन हेतु उपभोग्य वस्तुएँ खरीदने और आवश्यक तकनीकी स्टाफ के आवागमन पर खर्च इत्यादि हेतु, उक्त वित्त की आवश्यकता है ।

(वव) अग्रिमों का समायोजन, संविदा संबंधी बिलों का बेचान करके या विदेश में पूरी की गयी संविदा के संबंध में विदेश से प्राप्त प्रेषणों द्वारा, अग्रिम की तारीख से 180 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए । खाते में बकाया जितनी राशि का समायोजन निर्धारित तरीके से नहीं बे पाता है, उतनी राशि के लिए बैंक सामान्य दर पर ब्याज लगा सकते हैं ।

(ववव) सेवाओं के निर्यात सहित परियोजना निर्यात संविदाओं का काम करने वाले निर्यातकों को भारतीय रिज़र्व बैंक, विदेशी मुद्रा विभाग, केन्द्रीय कार्यालय, मुंबई द्वारा समय-समय पर जारी किए गए दिशानिर्देशों/अनुदेशों का पालन करना बेगा ।

1.2.4 परामर्शी सेवाओं का निर्यात

(व) कुछ भारतीय परामर्शी फर्मों ने विदेशों में औद्योगिक व अन्य परियोजनाएँ स्थापित किए जाने के संबंध में परामर्शी सेवाओं के निर्यात का काम शुरू किया है। जबँ ऐसी परामर्शी सेवाएँ विदेश में स्थापित टर्न-की परियोजनाओं या संयुक्त उद्यमों का अंग हैं, वबँ बैंक पोतलदानपूर्व और पोतलदानोत्तर स्तरों पर उपयुक्त ऋण सुविधाएँ उपलब्ध कराने पर विचार कर रहे हैं । जिन मामलों में केवल परामर्शी सेवाओं का ही निर्यात किया जाता है, विशेषत:तब जब कि कोई अग्रिम भुगतान न प्राप्त बेता बे, उनमें भी निर्यातकों को बैंकों से वित्तीय सबयता लेने की आवश्यकता पड़ सकती है।

(वव) बैंक परामर्शी फर्मों को परामर्शी करारों के आधार पर, परियोजना में नियोजित तकनीकी व अन्य स्टाफ के खर्च पूरे करने और उस प्रयोजन हेतु आवश्यक किसी अन्य सामान के क्रय तथा कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर (स्टैंडड़ और कस्टम बिल्ट सॉफ्टवेयर प्रोगाम) के निर्यात के लिए पैंकिंग ऋण योजना की सामान्य शर्तो के अधीन, उपयुक्त पोतलदानपूर्व ऋण सुविधाएँ मंजूर करने पर विचार कर सकते हैं ।

(ववव) पोतलदानपूर्व सुविधाओं के संबंध में निर्णय लेते समय संविदाओं के लिए प्राप्त अग्रिम भुगतानों को भी हिसाब में अवश्य लिया जाना चाहिए ।

(वख्) संबंधित कामों को पूरा करने के मामले में संबंधित फर्म की सक्षमता तथा अन्य संबद्ध पहलुओं पर विचार करते हुए बैंक बड़े मूल्य की परामर्शी सेवाओं के निर्यातकों को (जिन्हें बड़ी मात्रा में अग्रिम भुगतान प्राप्त हुआ बे) उपयुक्त गांरटी देने पर विचार कर सकते
हैं ।

1.2.5.सूचना प्रौद्योगिकी (आई टी) तथा साफ्टवेयर का निर्यात

विदेश से विशिष्ट आड़र प्राप्त बेने पर सूचना प्रौद्योगिकी तथा साफ्टवेयर सेवाओं के लिए लदान-पूर्व या लदानोत्तर वित्त प्रदान किए जा सकते हैं । आई टी सेवाओं को ऐसी किसी सेवा के रूप में परिभाषित किया गया है जो कि किसी आई टी उत्पाद की गुणवत्ता में वफ्द्धि करने के लिए किसी आई टी साफ्टवेयर के उपयोग से प्राप्त बेती है ।

सूचना प्रौद्योगिकी तथा साफ्टवेयर उद्योग की विभिन्न शाखाओं को मोटे तौर पर चार वर्गो में बाँटा जा सकता है ।

(क) साफ्टवेयर सेवाएँ तथा प्रोग्रामिंग सेवाएँ

इन सेवाओं के अंतर्गत, जिन्हें कार्मिक निर्यात सेवाएँ भी कब जाता है विभिन्न अनुबंधों के तहत देश के किसी भाग में या विदेश में ग्राहकों के घर /प्रतिष्ठान पर प्रोग्रामिंग सेवाएँ देने के लिए पेशेवर व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता है ।

(ख) परियोजना सेवाएँ

(व) ग्राहक के अनुकूल साफ्टवेयर का विकास करना

इन सेवाओं में ग्राहकों की विशिष्ट समस्याओं का समाधान किया जाता हैं जिन्हें कार्पोरेट मेन-फ्रेम तथा मिनी कम्प्यूटर के उपयोगकर्ताओं द्वारा उपयोग किया जाता है ।

(वव) प्रणालीगत समाधान तथा अनुकूलन

इसके अंतर्गत, सूचना प्रौद्योगिकी के द्वारा पूर्ण व्यापारिक समाधान प्रदान किया जाता है। इसमें अनुकूलक द्वारा ग्राहक की व्यापारिक समस्या ली जाती है तथा उसका आईटी पद आधारित व्यापारिक समाधान दिया जाता है । इस कार्य में ग्राहकों के लिए प्रोग्रामिंग, परीक्षण तथा ग्राहक के अनुकूल सॉफ्टवेयर समाधान तैयार किया जाता है तथा ग्राहक की पार्टी/उसके सहयोगियों की वर्तमान प्रणाली के साथ वर्तमान प्रोग्रामों का समेकन और अनुकूलन भी किया जाता है ।

(ववव) सापटवेयर अनुबंध का अनुरक्षण

इन अनुबंधों में समस्याओं के समाधान संबंधी कार्य तथा कभी कभी सॉफ्टवेयर का अद्यतन करना शामिल बेता है ।

(ग) सॉफ्टवेयर उत्पाद तथा पैकेज

इनमें निम्नलिखित शामिल हैं

(व) सिस्टम सापटवेयर तथा

(वव) एप्लीकेशन सापटवेयर

(घ) सूचना प्रौद्यौगिकी संबंधी सेवाएं (आई. टी. सेवाएँ)

इसके अंतर्गत कॉलसेन्टर, मानीटरिंग, टेली कान्फ्रेसिंग, टेली मेडिसीन आदि आई.टी सेवाओं के द्वारा, किसी आईटी उत्पादों की गुणवत्ता में वफ्द्धि करने के लिए आई. टी. सेवाओं का उपयोग करना शामिल है ।

1.2.6.पुष्पोत्पादन, अंगूर और वफ्षि-आधारित अन्य उत्पादों के लिए पोतलदानपूर्व ऋण

  1. पुष्पोत्पादन के मामले में, फूलों इत्यादि की खरीद तथा फूल तोड़े जाने के बाद पोतलदान के लिए किए गए सभी खर्चों को पूरा करने के लिए पोतलदानपूर्व ऋण दिया जाता है ।
  2. तथापि फूलों से संबंधित उत्पादों, अंगूरों और वफ्षि-आधारित अन्य उत्पादों का निर्यात बढ़ाने के लिए फूलों, अंगूरों की खेती, इत्यादि के लिए उर्वरकों, कीटनाशकों व अन्य सामानों के क्रय सहित सभी वफ्षि-आधारित उत्पादों के निर्यात से संबंधित गतिविधियों के लिए कार्यशील पूँजी के प्रयोजन हेतु बैंक रियायती दर पर ऋण उपलब्ध करा सकते हैं परन्तु शर्त यह बेगी कि बैंक इस स्थिति में बें कि वे ऐसी गतिविधियों की पहचान निर्यात से संबंधित गतिविधि के रूप में कर सकें तथा इनकी निर्यात संबंधी संभाव्यताओं के बारे में स्वयं संतुष्ट बे सकें, और साथ ही ये गतिविधियाँ नाबाड़ या किसी अन्य एजेंसी की प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष वित्तपोषण योजना के अंतर्गत शामिल न बें । यह ऋण पैंकिंग ऋण के मामले में उसकी अवधि, मात्रा, परिसमापन इत्यादि से संबंधित सामान्य शर्तो ंपर दिया जा सकता है ।
  3. निवेशों के लिए, जैसे विदेशी प्रौद्योगिकी, उपकरणों का आयात, भूमि विकास इत्यादि, या किसी ऐसी मद के लिए जिसे कार्यशील पूँजी न माना जा सके, निर्यात ऋण नहीं दिया जाना चाहिए ।

1.2.7 प्रसंस्करणकर्ताओं / निर्यातकों को निर्यात ऋण-वफ्षि निर्यात क्षेत्र

(व) देश में वफ्षि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने वफ्षि निर्यात जोन बनाए हैं । वफ्षि निर्यातोन्मुख इकाईयां (संसाधन) वफ्षि निर्यात जोन के भीतर तथा बाहर भी स्थापित की जाती हैं तथा ऐसी इकाईयों को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन एवं प्रसस्करण को एकीवफ्त करना बेगा । उत्पादक को किसानों के साथ वफ्षि का अनुबंध करना बेगा तथा किसानों के उस समूह को गुणकारी बीज, कीटनाशक, माइक्रो न्यूट्रीएंटस और अन्य सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करवानी बेगी जिससे उत्पादक, निर्यात के लिए उत्पाद तैयार करने वाले कच्चे माल के तौर पर किसानों के उत्पाद खरीदेंगें। उस समूह को अच्छी गुणवत्ता के बीज, कीटनाशक सूक्ष्म पोषक तत्त्व तथा अन्य सामानों की आपूर्ति सुनिश्चित करेगा। इसलिए सरकार ने सुझाव दिया है वि किसानों को संबंधित सामानों की खरीद तथा आपूर्ति के लिए वर्तमान दिशानिर्देशों के अंतर्गत ऐसी प्रसंस्करणकर्ता इकाइयों को पैकिंग ऋण दिया जाये ताकि किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाले सामान उपलब्ध बे सकें जिससे अच्छी गुणवत्ता वाली फसलों को उगाया जाना सुनिश्चित किया जा सके । निर्यातकर्ता ऐसे सामान थोक में खरीद / आयात कर सकेंगे जिसके चलते मात्रा में वफ्द्धि बेने के कारण वस्तुएँ सस्ती पड़ेंगी।

(वव) निर्यातकों द्वारा किसानों को आपूर्ति किये गये सामानों को बैंक निर्यात की जाने वाली वस्तुओं से संबधित कच्चा माल समझें और किसानों द्वारा ऐसी फसलें उगाये जाने के लिये उन्हें अपेक्षित सामानों की लागत को पूरा करने के लिये प्रसंस्करणकर्ताओं / निर्यातकों को ऋण / निर्यात ऋण मंजूर करने पर विचार करें ताकि वफ्षि संबंधी उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा मिल सके । इससे प्रसंस्करणकर्ता इकाइयाँ अपेक्षित सामान थोक में खरीद सकेंगी और पूर्व-निश्चित व्यवस्था के अनुसार किसानों को उनकी आर्पूत्ा िकर सकेंगी ।

(ववव) बैंकों को यह सुनिश्चित करना बेगा कि निर्यातकों ने खरीदी जाने वाली फसलों के लिए किसानों से और ं निर्यात किये जाने वाले उत्पादों के लिये विदेशी खरीददारों से अपेक्षित समझौता कर रखा है । वित्तीय सुविधा प्रदान करने वाले बैंकों को वफ्षि निर्यात क्षेत्रों मे स्थित परियोजनाओं का मूल्यांकन करना बेगा तथा यह सुनिश्चित करना बेगा कि क्रय/ विक्रय संबंधी व्यवस्थाएं संभव हैं तथा परियोजनाएँ उपयुक्त अवधि के भीतर कार्यान्वित की जा सकेंगी ।

(वख्) निधियों के उष्टि उपयोग पर अर्थात् निर्यातक /मुख्य प्रसंस्करणकर्ता इकाई द्वारा की गयी व्यवस्था के अनुसार, फसलें उगाने के लिये निर्यातकों द्वारा किसानों को सामानों के वितरण पर, बैंकों को नजर रखनी बेगी।

(ख्) बैंकों को यह सुनिश्चित करना बेगा कि प्रचलित अनुदेशों के अनुसार पोतलदानपूर्व ऋण के समापन के लिये मंजूरी की शर्तो के अनुसार प्रसंस्करणकर्ता /निर्यातकर्ता इकाईयाँ अंतिम उत्पादों का निर्यात कर रहीं हैं।

2. प्ाोतलदानोत्तर निर्यात ऋण

2.1 पोतलदानोत्तर ऋण’ किसी संस्था द्वारा, भारत से वस्तुओं का निर्यात करने वाले को, मंजूर किया गया ऋण या अग्रिम या कोई अन्य ऋण है जो वस्तुओं के पोतलदान के बाद ऋण उपलब्ध कराये जाने की तारीख से आरंभ करके निर्यात संबंधी आय की वसूली की तारीख तक के लिए बेता है तथा इसके अंतर्गत शुल्क वापसी के प्रतिफलस्वरूप या उसकी प्रतिभूति के आधार पर किसी निर्यातक को मंजूर किया गया कोई ऋण या अग्रिम या सरकार द्वारा समय-समय पर दिए गए प्रोत्साहन के रूप में निर्यातक को किया गया कोई नकदी भुगतान शामिल है ।

2.2 पोतलदानोत्तर अग्रिम मुख्यत: निम्नलिखित रूपों में बे सकते हैं :-

(व) खरीदे गए/बट्टावफ्त/बेचे गए निर्यात बिल ।

(वव) वसूली के लिए बिलों के आधार पर अग्रिम ।

(ववव) शुल्क वापसी के बदले अग्रिम/सरकार से वसूली योग्य कोई नकद प्रोत्साहन ।

2.3 पोतलदानोत्तर ऋण का समापन निर्यात की गयी वस्तुओं के लिए विदेश से प्राप्त निर्यात बिलों की आय से किया जाना चाहिए ।

2.4 रुपया पोतलदानोत्तर निर्यात ऋण

2.4.1 अवधि

(व) माँग बिलों के मामले में अग्रिम की अवधि फेडाई द्वारा निश्चित सामान्य पारगमन अवधि बेगी ।

(वव) मीयादी बिलों के मामले में पोतलदान की तारीख से 180 दिन की अधिकतम अवधि के लिए ऋण दिया जा सकता है । इस अवधि में सामान्य पारगमन अवधि तथा यदि छूट की अवधि बे तो वह भी शामिल बेगी । तथापि बैंकों को चाहिए कि वे पोतलदान ऋण अधिकतम 180 दिन की अवधि के लिए दिए जाने की आवश्यकता पर भली-भाँति गौर करें और निर्यातकों पर इस बात के लिए दबाव डालें कि वे निर्यात से संबंधित आय कम से कम अवधि में वसूल कर लें ।

(ववव) ‘सामान्य पारगमन अवधि’ का आशय वह औसत अवधि है जो सामान्यत:बिल के बेचान /क्रय /डिस्काउंट की तारीख से संबंधित बैंक के नोस्रो खाते में बिल से संबंधित आय प्राप्त बेने तक (जैसा फेडाई द्वारा समय-समय पर निश्चित किया जाता है) लगती है। इस अवधि को विदेश स्थित गंतव्य पर माल के पहुँचने में लगने वाला समय नहीं समझना चाहिए ।

(वख्) अतिदेय बिल -

(क) माँग बिल के मामले में वह बिल है जिसका भुगतान सामान्य पारगमन अवधि समाप्त बेने से पहले नहीं किया गया बेता है, और

(ख) मीयादी बिल के मामले में वह बिल है जिसका भुगतान नियत तारीख को नहीं किया गया बेता है ।

2.4.2 ब्याज दर ढाँचा

पोतनदानोत्तर ऋण का ब्याज दर ढाँचा और उससे संबंधित अनुदेश पैरा 6 में दिए गए हैं ।

2.4.3 निर्यात बिलों पर आहरित न की गयी शेष राशियों के बदले अग्रिम

कुछ वस्तुओं के निर्यात में निर्यातकों को संविदा के पोतपर्यत नि:शुल्क मूल्य के 90 से 98 प्रतिशत भाग तक के लिए विदेशी क्रेता पर बिल आहरित करने की आवश्यकता पड़ती है तथा ‘आहरित न किये गये शेष’ की बकाया राशि का भुगतान विदेशी क्रेता वस्तुओं की गुणवत्ता/मात्रा के बारे में संतुष्ट बेने के बाद करता है । आहरित न किए गए शेष का भुगतान आकस्मिक प्रवफ्ति का बेता है । बैंक अपने वाणिज्यिक विवेक और क्रेता के टॅ्रैक रिकाड़ के आधार पर, आहरित न किए गए शेषों के बदले रियायती ब्याजदर पर अग्रिम मंजूर करने पर विचार कर सकते हैं। तथापि ऐसे अग्रिम अधिकतम 90 दिनों की अवधि के लिए रियायती ब्याज दर के पात्र उस सीमा तक के लिए तब बेंगे जब संबंधित अग्रिम की चुकौती विदेश से प्राप्त वास्तविक प्रेषणों द्वारा की जाए और ऐसे प्रेषण माँग बिलों के मामले में सामान्य पारगमन अवधि समाप्त बे जाने के बाद 180 दिनों के भीतर तथा मीयादी बिलों के मामले में निर्धारित तारीख को प्राप्त बे गए बें। पोतलदानोत्तर स्तर पर 90 दिनों से बाद की अवधि के लिए ’अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण’ श्रेणी हेतु निर्दिष्ट ब्याज लगाया जाना चाहिए ।

2.4.4 प्रतिधारण धन के बदले अग्रिम

(व) टर्न-की परियोजनाओं /निर्माण संविदाओं के मामले में विदेशी नियोक्ता संविदा के सेवा संबंधी कार्यों के लिए क्रमिक भुगतान करता रहता है तथा क्रमिक भुगतानों का थेाड़ा प्रतिशत प्रतिधारण धन के रूप में अपने पास रख लेता है जिसका भुगतान वह, संविदा के पूरा बेने की तारीख के बाद निर्धारित अवधि समाप्त बे जाने पर निर्धारित प्राधिकारियों से अपेक्षित प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के बाद करता है ।

(वव) कभी-कभी टर्न-की परियोजनाओं के मामले में भी आपूर्ति भाग के बदले प्रतिधारण धन निर्धारित किया जा सकता है । उसी तरह उप-संविदाओं के मामले में भी ऐसा किया जा सकता है । प्रतिधारण धन का भुगतान आकस्मिक प्रवफ्ति का है क्योंकि यह डिफेक्ट लाइबिलिटी है ।

(ववव) प्रतिधारण धन के बदले अग्रिम की मंजूरी के संबंध में निम्नलिखित दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिए :

(क) संविदा के सेवा भाग से संबंधित प्रतिधारण धन के बदले कोई अग्रिम मंजूर नहीं किया जाना चाहिए ।

(ख) निर्यातकों से कब जाना चाहिए कि वे प्रतिधारण धन के बजाय यथासंभव उपयुक्त गारंटी प्रस्तुत करने की व्यवस्था करें ।

(ग) अन्य बातों के साथ-साथ संचित प्रतिधारण धन के आकार, निर्यातक की नकदी-निधि संबंधी स्थिति पर उसके प्रभाव और प्रतिधारण धन के समय से प्राप्त बेने के मामले में पिछले कार्यनिष्पादन को ध्यान में रखते हुए बैंक कुछ गिने-चुने मामलों में आपूर्ति भाग से संबंधित प्रतिधारण धन के बदले अग्रिम मंजूर करने पर विचार कर सकते हैं ।

(घ) प्रतिधारण धन का भुगतान, जबँ संभव बे, साखपत्र द्वारा या बैंक गारंटी द्वारा प्रतिभूत कर लिया जाना चाहिए ।

(ङ) संविदा की शर्तों के अनुसार जबँ प्रतिधारण धन का भुगतान पोतलदान की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर किया जाना बेता है, वबँ बैंकों व ो अधिकतम 90 दिनों के लिए रियायती दर पर ब्याज लगाना चाहिए । पोतलदानोत्तर स्तर पर 90 दिनों से बाद की अवधि के लिए ’अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण’ श्रेणी के लिए निर्धारित दर पर ब्याज लिया जाना चाहिए ।

(च) संविदा की शर्तों के अनुसार जबँ प्रतिधारण धन का भुगतान पोतलदान की तारीख से एक वर्ष के बाद किया जाना बेता है, और समरूपी अग्रिम की अवधि एक वर्ष से अधिक के लिए बढ़ा दी जाती है, वबँ उसे आस्थगित भुगतान की शर्तों पर एक वर्ष से अधिक समय के लिए दिया गया पोतालदानोत्तर ऋण माना जाएगा और उस पर तदनुसार ब्याज लगाया जाएगा ।

(छ) प्रतिधारण धन के बदले दिए गए अग्रिम केवल उस सीमा तक रियायती ब्याज दर के पात्र बेंगे जिस सीमा तक प्रतिधारण घन से संबंधित ऐसे अग्रिमों की चुकौती विदेशों से प्राप्त प्रेषणों से की जाती है तथा संविदा की शर्तों के अनुसार ऐसे भुगतान प्रतिधारण धन के भुगतान के लिए नियत तारीख से 180 दिनों के भीतर प्राप्त बे जाएँ ।

2.4.5 परेषण आधार पर निर्यात

(व) सामान्य

(क) परेषण आधार पर निर्यात किए जाने पर निर्यात संबंधी आय के प्रत्यावर्तन के मामले में कई तरह के दुरपयोग की गुंजाइश रहती है ।

(ख) इसलिए परेषण आधार पर निर्यात, पोतलदानोत्तर ऋण पर बैंकों द्वारा लगाए जाने वाले ब्याज की दरों के मामले में, एकमुश्त नकद बिक्री के आधार पर किए जाने वाले निर्यात के समरूप बेना चाहिए । इस प्रकार परेषण आधार पर किए जाने वाले निर्यातों के मामले में निर्यात संबंधी आय के प्रत्यावर्तन के लिए विदेशी मुद्रा विभाग द्वारा 180 दिन से अधिक की अवधि के लिए मंजूरी दे दिए जाने के बावजूद बैंक (बिलों की अवधि के आधार पर) केवल आनुमानिक नियत तारीख तक ही उपयुक्त रियायती ब्याज दर लगाएँगे तथा यह अवधि भी 180 दिनों से अधिक नहीं बे सकती ।

(वव) बहुमूल्य और अल्पमूल्य रत्नों का निर्यात

बहुमूल्य और अल्पमूल्य रत्नों का निर्यात अधिकांशत: परेषण आधार पर किया जाता है तथा निर्यातक विदेशों से प्राप्त प्रेषणों से अग्रिम की तारीख से 180 दिनों की अवधि के भीतर पोतलदानपूर्व ऋण खाते का समापन नहीं कर पाते हैं । इसलिए परेषण निर्यातों के मामले में निर्यात बेते ही एक विशेष (पोतलदानोत्तर) खाते में बकाया शेषों को अंतरित करके बैंक पैकिंग ऋण संबंधी अग्रिमों का समायोजन कर लें। परंतु इस विशेष खाते का समायोजन भी विदेश से संबंधित आय प्राप्त बेते ही यथाशीध्र कर लिया जाना चाहिए तथा ऐसा समायोजन निर्यात की तारीख से अधिकतम 180 दिनों की अवधि या रिज़र्व बैंक के विदेशी मुद्रा विभाग द्वारा अनुमोदित अतिरिक्त अवधि के भीतर कर लिया जाना चाहिए । विशेष (पोतलदानोत्तर) खाते में शेषराशियों के संबंध में रिज़र्व बैंक से कोई पुनर्वित्त प्राप्त नहीं किया जा सकेगा ।

(ववव) सीआईएस और पूर्वी यूरोप के देशों को परेषण निर्यात

(क) सन्तोषजनक ट्रैक रिकाड़ वाले अलग-अलग निर्यातकों द्वारा आवेदन किए जाने पर रिज़र्व बैंक (विदेशी मुद्रा विभाग)उपयुक्त मामलो में, सीआईएस (भूतपूर्व सोवियत संघ) और पूर्वी यूरोप के देशों को परेषण के आधार पर किए गए निर्यातों से संबंधित आय परिवर्तनीय मुद्रा में प्राप्त करने के लिए 12 महीने तक की लम्बी अवधि की अनुमति देता है । बैंक ऐसे निर्यातकों को शुरू से ही अपेक्षावफ्त लम्बी अवधि के लिए पोतलदानोत्तर ऋण दे सकते हैं । तदनुसार ऐसे मामलों में ब्याज दर निम्नानुसार बेगी :

पोतलदानोत्तर ऋण की अवधि

ब्याज दर

अग्रिम की तारीख से 90 दिन तक

 

मीयादी बिलों के लिए 90 दिन तक की अवधि हेतु लागू दर

पोतलदान की तारीख से 90 दिन के बाद और 12 महीने तक

मीयादी बिलों के लिए पोतलदान की तारीख से 90 दिन से अधिक और 6 माह तक के लिए लागू दर

(ख) यह आशा की जाती है कि उपर्युक्त देशों को परेषण आधार पर निर्यात किए गए माल की बिक्री से संबंधित आय अनुमत 12 महीने की अवधि के भीतर वसूल कर ली जाएगी और पोतलदानोत्तर ऋण का समापन कर दिया जाएगा । यदि उक्त अवधि में बिक्री संबंधी आय की वसूली नहीं बे पाती है तो 6 महीने के बाद वसूले गए बिलों के लिए लागू ब्याज की उच्चतर दर पर, अर्थात ’अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण - पोतलदानोत्तर’ श्रेणी के निर्यात के लिए लागू दर पर ब्याज 6 माह से अधिक की संपूर्ण अवधि के लिए लिया जाना चाहिए ।

(ग) फिर भी भारतीय रिज़र्व बैंक निर्यात ऋण के बदले बैंकों को पुनर्वित्त की सुविधा पोतलदानपूर्व और पोतलदानोत्तर - दोनों स्तरों पर केवल 180 दिन के लिए ही उपलब्ध कराएगा ।

(वख्) रपये में राज्य ऋण की चुकौती के बदले

रूस मबसंघ को परेषण निर्यात

(क) संतोषजनक ट्र्रैक रिकाड़ वाले निर्यात गफ्बें /व्यापार-गफ्बें /स्टार व्यापार-गफ्बें / सुपर स्टार व्यापार-गफ्हों द्वारा आवेदन किए जाने पर रिज़र्व बैक (विदेशी मुद्रा विभाग) इन गफ्बें द्वारा समय-समय पर की गयी घोषणा के अनुसार रपये में राज्य ऋणों की चुकौती के बदले रूस मबसंघ को परेषण के आधार पर अनुमत माल के किए गए निर्यातों से संबंधित आय की वसूली के लिए पोतलदान की तारीख से 360 दिनों तक की लम्बी अवधि की अनुमति देता है । इस संबंध में अपनायी जानेवाली प्रक्रिया के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक, विदेशी मुद्रा विभाग का दिनांक 31 मई 1999 का एडी (जी पी श्रंफ्खला) का परिपत्र सं. 5 और उसके द्वारा बाद में जारी किए गए अनुदेश देखे जा सकते हैं । बैंक ऐसे निर्यातकों को आरंभ से ही अपेक्षावफ्त लम्बी अवधि के लिए पोतलदानोत्तर ऋण मंजूर कर सकते हैं । तदनुसार ऐसे मामलों में ब्याज दर निम्नानुसार बेगी :

पोतलदानोत्तर ऋण की अवधि

ब्याज दर

अग्रिम की तारीख से 90 दिन तक

मीयादी बिलों के लिए 90 दिन तक की अवधि हेतु लागू दर

पोतलदान की तारीख से 90 दिन के बाद और 360 दिन तक

मीयादी बिलों के लिए पोतलदान की तारीख से 90 दिन से अधिक और 6 माह तक के लिए लागू दर

(ख) लेकिन यदि उक्त अवधि के भीतर बिक्री संबंधी आय की वसूली नहीं बे पाती है तो 6 माह से अधिक की संपूर्ण अवधि के लिए वही उच्चतर ब्याज दर लागू बेगी जो पोतलदान की तारीख से 6 महीने के बाद वसूले गए बिलों पर लागू बेती है ।

(ग) फिर भी भारतीय रिज़र्व बैंक निर्यात ऋण के बदले बैंकों को पुनर्वित्त की सुविधा पोतलदानपूर्व और पोतलदानोत्तर -दोनों स्तरों पर केवल 180 दिनों के लिए ही उपलब्ध कराएगा ।

2.4.6 विदेश स्थित ‘वेयर बउस-कम-डिस्प्ले सेंटर’ के माध्यम से निर्यात

(व) भारतीय रिज़र्व बैंक (विदेशी मुद्रा विभाग) कुछ भारतीय संगठनों/निर्यातकों को भारत से निर्यात की गयी वस्तुओं के भंडारण के लिए विदेशों में वेयरबउस स्थापित करने की अनुमति देता है ताकि वे विदेशी बाजारों में बेहतर पैठ बनाने के लिए अपने स्टोर से ही सामानों की बिक्री कर सकें । चूँकि इन वेयरबउसों को विदेशी क्रेताओं से आदेश मिलने की प्रत्याशा में उन्हें निर्यात किए जाते हैं, अत: ऐसे निर्यातों से संबंधित आय की वसूली की अवधि पोतलदान की तारीख से 15 महीने निश्चित की गयी है जबकि अन्य मामलों में यह अवधि सामान्यत: 6 महीने ही बेती है ।

(वव) वसूली की अपेक्षावफ्त लम्बी अवधि की आरंभ से ही अनुमति दिए जाने को दृष्टिगत रखते हुए अनुमोदित वेयरबउसों के माध्यम से निर्यातों के बदले रुपये में दिए जाने वाले पोतलदानोत्तर ऋण पर लगाए जाने वाले ब्याज की दरें निम्नानुसार बेंगी :-

 

पोतलदानोत्तर ऋण की अवधि

ब्याज दर

अग्रिम की तारीख से 90 दिन तक

मीयादी बिलों के लिए 90 दिन तक की अवधि हेतु लागू दर

पोतलदान की तारीख से 90 दिन के बाद और 15महीने तक

मीयादी बिलों के लिए पोतलदान की तारीख से 90 दिन से अधिक और 6 माह तक के लिए लागू दर

(ववव) लेकिन यदि उक्त अवधि के भीतर बिक्री संबंधी आय की वसूली नहीं बे पाती है तो 6 माह से अधिक की संपूर्ण अवधि के लिए वही उच्चतर ब्याज दर लागू बेगी जो पोतलदान की तारीख से 6 महीने बाद वसूले गए बिलों पर लागू बेती है ।

(वख्) भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकों को निर्यात ऋण के बदले पुनर्वित्त की सुविधा पोतलदानपूर्व और पोतलदानोत्तर - दोनों स्तरों पर केवल 180 दिनों के लिए ही उपलब्ध कराएगा ।

2.4.7. प्रदर्शनी और बिक्री के लिए वस्तुओं का निर्यात

बैंक विदेश में प्रदर्शनी और बिक्री के लिए भेजे गए माल के बदले निर्यातकों को पहले वित्त उपलब्ध करा सकते हैं और बिक्री पूरी बे जाने के बाद ऐसे अग्रिमों पर पोतलदानपूर्व और पोतलदानोत्तर - दोनों स्तरों पर निर्धारित अवधि तक छूट के रूप में रियायती ब्याजदर का लाभ दे सकते हैं । ऐसे अग्रिम अलग खातों में दिए जाने चाहिए ।

2.4.8 आस्थगित भुगतान की शर्तों पर पोतलदानोत्तर ऋण

भारतीय रिज़र्व बैंक (विदेशी मुद्रा विभाग) द्वारा संमय-समय पर निर्गत अनुदेशों के अनुसार पूँजीगत माल और उत्पादक वस्तुओं के निर्यात के मामले में बैंक आस्थगित भुगतान की शर्तों पर एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए पोतलदानोत्तर ऋण मंजूर कर सकते हैं ।

2.5 शुल्क वापसी की पात्रता के बदले पोतलदानोत्तर अग्रिम

2.5.1बैंक निर्यातकों को शुल्क वापसी संबंधी उनकी पात्रता के बदले पोतलदान अग्रिम, अंतिम मंजूरी और भुगतान न बेने तक, सीमा शुल्क प्राधिकारियों के अनंतिम प्रमाण-पत्र के आधार पर, मंजूर कर सकते हैं ।

2.5.2नौवहन बिल की निर्यात संवर्धन प्रति के आधार पर, जिसमें सीमाशुल्क विभाग द्वारा जारी किया गया ई जी एम नम्बर दिया बेता है, निर्यातकों को प्राप्य शुल्क की वापसी के बदले, अग्रिम उपलब्ध कराया जा सकता है । जबँ आवश्यक बे, वित्तपोषण करने वाला बैंक नामित बैंक के पास अपना लिएन नोट करा सकता है तथा इस प्रकार की व्यवस्था कर ली जानी चाहिए ताकि सीमा शुल्क विभाग जब भी शुल्क वापसी की राशि खाते में जमा करे तब नामित बैंक संबंधित राशि वित्तपोषण करने वाले बैंक के खाते में अंतरित कर दे ।

2.5.3शुल्क वापसी पात्रता के बदले मंजूर किए गए इन अग्रिमों पर रियायती दर पर ब्याज लगाया जाएगा और इसके लिए रिज़र्व बैंक से, अग्रिम की तारीख से अधिकतम 90 दिनों की अवधि के लिए पुनर्वित्त भी उपलब्ध बेंगे ।

2.6 ईसीजीसी समग्र टर्नओवर पोतलदानोत्तर गारंटी योजना

2.6.1 निर्यात ऋण गारंटी निगम लि.लल द्वारा शुरू की गयी समग्र टर्न ओवर पोतलदानोत्तर गारंटी योजना में इस बात की व्यवस्था है कि निर्यातकों द्वारा पोतलदानोत्तर ऋण की चुकौती न किए जाने की स्थिति में बैंकों को सुरक्षा मिल सके । निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बैंक समग्र टर्न ओवर पोतलदानोत्तर पॉलिसी लेने पर विचार करें । इस योजना की प्रमुख विशेषताओं की जानकारी निर्यात ऋण गारंटी निगम से प्राप्त कर ली जाए ।

2.6.2 चूँकि पोतलदानोत्तर गारंटी का मुख्य उेश्यि बैंकों को लाभ प्रदान करना है, अत: बैंकों द्वारा ली गयी समग्र टर्नओवर पोतलदानोत्तर गारंटी से संबंधित प्रीमियम का खर्च बैंक स्वयं उठाएँ और इसका दायित्व निर्यातकों पर न डाला जाए ।

2.6.3 जिन मामलों में कोई जोखिम निर्यात ऋण गारंटी निगम द्वारा कवर किया जाने वाला है, उनमें भी लम्बे समय से बकाया निर्यात बिलों की वसूली के मामले में बैंकों को अपना प्रयास कम नहीं करना चाहिए ।

 

  1. मानित निर्यात - रियायती रुपया निर्यात ऋण
3.1 बैंकों को इस बात की अनुमति है कि वे द्विपक्षीय या बहुपक्षीय एजेंसियों/फंडों (विश्व बैंक, आई बी आर डी, आई डी ए सहित) द्वारा सबयता प्राप्त/वित्तपोषित परियोजनाओं के संबंध में आपूर्ति के लिए आदेशों के आधार पर उन पार्टियों को रियायती ब्याजदर पर रुपया पोतलदानपूर्व और आपूर्ति के बाद रुपया निर्यात ऋण उपलब्ध कराएँ जो वित्त मंत्रालय, आर्थिक कार्य विभाग द्वारा निर्यात-आयात नीति में मानित निर्यात अध्याय के अंतर्गत समय-समय पर जारी की गयी अधिसूचनाओं के अनुसार भारत सरकार द्वारा सामान्य निर्यात सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए पात्र हैं ।

3.2 पैकिंग ऋणों का समायोजन, इन एजेंसियों को की गयी माल की आपूर्ति के लिए किए जाने वाले भुगतानों से संबंधित मुक्त विदेशी मुद्रा से किया जाना चाहिए । इसकी चुकौती /समय से पूर्व चुकौती विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाता (ई ई एफ सी खाते) के शेष से की जा सकती है, तथा निर्यातकों द्वारा वास्तविक रूप से की गई आपूर्ति के अनुपात में उनके रुपये संसाधनों से भी की जा सकती है ।

3.3 बैंक निम्नलिखित ऋण भी दे सकते हैं :

(व) रुपया पोतलदानपूर्व ऋण, और

(वव) समय-समय पर निर्यात-आयात नीति के अंतर्गत उसी अध्याय के अंतर्गत मानित निर्यात के रूप में निर्दिष्ट अन्य वर्गीवफ्त वस्तुओं की आपूर्ति के लिए आपूर्ति के बाद रुपया ऋण (अधिकतम 30 दिनों के लिए या माल प्राप्त करने वाले द्वारा भुगतान किए जाने की वास्तविक तारीख तक, दोनों में से जो भी पहले बे) ।

3.4 आपूर्ति के बाद दिए गए अग्रिमों को 30 दिनों के बाद अतिदेय माना जाएगा । जिन मामलों में ऐसे अतिदेय ऋणों का समापन आनुमानिक नियत तारीख से 180 दिनों के भीतर (अर्थात अग्रिम की तारीख से 210 दिनों की अवधि बीतने से पूर्व) कर दिया जाता है उनमें बैंकों को ऐसी वर्धित अवधि के लिए, पोतलदानोत्तर स्तर पर ‘‘अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण’’ श्रेणी के लिए निर्धारित ब्याज लगाना चाहिए । यदि बिलों का भुगतान उपर्युक्त 210 दिनों के भीतर नहीं बे पाता है तो बैंकों को चाहिए कि वे अग्रिम की तारीख से ‘अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण’-पोतलदानोत्तर श्रेणी के लिए निर्धारित ब्याज लें ।

3.5 बैंक पोतलदानपूर्व और पोतलदानोत्तर -दोनों स्तरों पर दिए गए ऐसे रुपया निर्यात ऋणों के लिए रिज़र्व बैंक से पुनर्वित्त प्राप्त करने के पात्र बेंगे ।

4. निर्यातकों के लिए गोल्ड काड़ योजना

(वफ्पया मास्टर परिपत्र ‘‘उपभोक्ता सेवाएँ, निर्यात ऋण देने संबंधी प्रक्रियाओं का सरलीकरण तथा रिपोर्ट भेजने संबंधी अपेक्षाएँ’’ का पैरा 1.1.2 भी देखें।)

4.1 गोल्ड काड़ योजना के अंतर्गत लगायी जानेवाली ब्याज दर प्रत्येक बैंक में निर्यात ऋण पर लिए जोन वाले ब्याज की सामान्य दर से अधिक न बे और भारतीय रिज़र्व बैंक की निर्धारित सीमा के भीतर बे । इस योजना के अभिप्राय के मेनिजर बैंक, गोल्ड काड़ धारकों को उनकी रेटिंग और पिछले कार्यनिष्पादन के आधार पर सबसे अच्छी संभावित दर देने का प्रयास करेंगें ।

4.2 गोल्ड काड़ धारकों वे संबंध में, पोतलदानोत्तर रुपया निर्यात ऋण के लिए 90 दिनों तक लगाई जाने वाली रियायती ब्याज की दरें अधिकतम 365 दिनों की अवधि के लिए भी उसी दर से लगाई जा सकती हैं ।

4.3 इस योजना के अंतर्गत बैंकों द्वारा निर्यातकों को दी जाने वाली सेवाओं के प्रभारों और फीस के स्वरूप को अन्य निर्यातकों को दी जाने वाली सेवाओं से अपेक्षावफ्त कम रखा जाए ।

5. निर्यात ऋण पर ब्याज

5.1 सामान्य

प्रत्येक बैंक अपने अपने देशी उधारकर्ताओं को जिस आधारभूत मूल उधारदर को आधार मानकर ऋण उपलब्ध कराते हैं, उसी दर से जोड़ कर, रुपया निर्यात ऋण के लिए अधिकतम ब्याजदर निश्चित की गयी है । अत: बैंक अधिकतम ब्याजदर के अंतर्गत कोई भी ब्याज लगाने के लिए स्वतंत्र हैं । इसके अलावा किसी भी श्रेणी के निर्यात ऋण के अंतर्गत भिन्न-भिन्न अवधि के लिए अधिकतम ब्याज दर निर्यात ऋण की संपूर्ण अवधि के लिए संगत आधारभूत मूल उधार दर पर आधारित बेनी चाहिए ।

5.2 रुपया निर्यात ऋण पर ब्याज दर

5.2.1 ब्याज दर ढाँचा

रुपया निर्यात ऋण के लिए 31.10.2005 तक की अवधि हेतु लागू ब्याजदर का ढाँचा निम्नलिखित है :

 

 

ऋण का प्रकार

ब्याज दर@

1.

पोतालदानपूर्व ऋण (अग्रिम की तारीख से)

 
 

(व) (क) 180 दिन तक

आधारभूत मूल उधार दर से 2.5 प्रतिशत कम से अधिक नहीं

 

(ख) 180 दिन से अधिक और 360 दिन तक

मुक्त*

 

(वव) सरकार से प्राप्य प्रोत्साहनों के बदले (ईसीजीसी गारंटी में शामिल) 90 दिन तक

आधारभूत मूल उधार दर से 2.5 प्रतिशत कम से अधिक नहीं

2.

पोतलदानोत्तर ऋण (अग्रिम की तारीख से)

 
 

व) माँग बिलों पर पारगमन अवधि के लिए

(फेडाई द्वारा यथानिर्दिष्ट)

आधाभूत मूल उधार दर से 2.5 प्रतिशत कम से अधिक नहीं

 

वव) मीयादी बिल^ (निर्यात बिलों की मीयाद, फेडाई द्वारा निर्दिष्ट पारगमन अवधि और जबँ भी लागू बे वबँ छूट की अवधि सहित (कुल अवधि के लिए) +

 
 

क) 90 दिन तक

आधारभूत मूल उधार दर से 2.5 प्रतिशत कम से अधिक नहीं

 

ख) पोतलदान की तारीख से 90 दिन के बाद और 6 माह तक

मुक्त*

 

ग) गोल्ड काड़ योजना के अंतर्गत आने वाले निर्यातको ंके लिए 365 दिनों तक

आधारभूत मूल उधार दर से 2.5 प्रतिशत कम से अधिक नहीं

 

(ववव)सरकार से प्राप्य प्रोत्साहनों के बदले

(ईसीजीसी की गारंटी में शामिल) 90

दिन तक

आधारभूत मूल उधार दर से 2.5 प्रतिशत कम से अधिक नहीं

 

(वख्) आहरित न किए शेष के बदले(90 दिन तक)

-वही-

 

(ख्) पोतलदान की तारीख से 1 वर्ष के भीतर देय प्रतिधारण धन(आपूर्ति भाग के लिए ही) के बदले (90 दिन तक)

-वही-

3.

आस्थगित ऋण

 
 

(व) 90 दिन से बाद की अवधि के लिए

आस्थगित ऋण

-मुक्त-*

4.

अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण

 
 

(व) पोतलदानपूर्व ऋण

-मुक्त-*

 

(वव) पोतलदानोत्तर ऋण

-मुक्त-*0

^ आनुमानिक नियत तारीख या वास्तविक नियत तारीख, जो भी पहले बे ।
+ अग्रिम की तारीख से 90 दिन के बाद की अवधि वाले ऋण के लिए स्लैब (1-90 दिन, 91-180 दिन) के आधार पर ब्याज लगाया जाएगा ।
@ चूँकि ये अधिकतम दरें हैं, इसलिए बैंक इसके भीतर किसी भी दर पर ब्याज ले सकते हैं ।
* आधारभूत मूल उधार दर और स्प्रेड संबंधी दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए बैंक ब्याज दर निश्चित करने के लिए स्वतंत्र हैं ।

5.2.2 ब्याज दर लागू करना

समय-समय पर संशोधित की जानेवाली ब्याज की दर नये अग्रिमों पर और साथ ही वर्तमान अग्रिमों की शेष अवधि के लिए भी लागू की जानी हैं।

5.2.3 पोतलदानपूर्व ऋण पर ब्याज

व) बैंक द्वारा निर्धारित दर पर 180 दिन तक के पोलदानपूर्व ऋण पर बैंकों को संबंधित श्रेणी के अंतर्गत निर्यात ऋण की संपूर्ण अवधि के लिए लागू आधारभूत मूल उधार दर के आधार पर गणना की गयी अधिकतम दर के भीतर ब्याज लगाना चाहिए । ऋण की अवधि की गणना अग्रिम की तारीख से की जानी है ।

वव) यदि पोतलदानपूर्व अग्रिमों का समापन निर्यात दस्तावेजों के प्रस्तुतीकरण पर क्रय, डिस्काउंट आदि के बाद बिलों की आय से अग्रिम की तारीख से 365 दिनों के भीतर नहीं बे पाता है तो संबंधित अग्रिम आरंभ की तारीख से ही रियायती ब्याजदर के लिए पात्र नहीं रह पाएगा ।

ववव) जिन मामलों में पैंकिंग ऋण की अवधि मंजूरी की मूल अवधि के बाद नहीं बढ़ायी जाती और निर्यात मंजूरी की अवधि समाप्त बे जाने के बाद लेकिन अग्रिम की तारीख से 365 दिनों के भीतर संपादित बे पाता है, उनमें निर्यातक केवल मंजूरी की अवधि तक के लिए रियायती ऋण के लिए पात्र बेगा । शेष अवधि के लिए ‘अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण’ श्रेणी के लिए नियत दर पर ब्याज लिया जाएगा । इसके अलावा बैंकों को अवधि न बढ़ाए जाने के कारणों की सूचना निर्यातकों को देनी बेगी ।

वख्) जिन मामलों में पोतलदानपूर्व अग्रिम की तारीख से 365 दिनों के भीतर निर्यात नहीं बे पाता है उनमें संबंधित ऋण ‘अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण’ माना जाएगा और बैंक ऐसे ऋणों पर अग्रिम के आरंभ की तारीख से ही ‘अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण - पोतलदापूर्व’ श्रेणी के लिए निर्धारित ब्याज लेंगे ।

ख्) यदि निर्यात बिल्कुल बे ही नहीं पाता तो बैंकों को संबंधित पैंकिंग ऋण पर, अपने बैंक के निदेशक-मंडल द्वारा अनुमोदित पारदर्शी नीति के आधार पर निश्चित किया गया देशी उधार दर पर ब्याज तथा दंडात्मक ब्याज लेना चाहिए ।

5.2.4 पोतलदानोत्तर ऋण पर ब्याज

(व) निर्यात बिलों का शीध्र भुगतान

(क) माँग बिलों के आधार पर दिए गए अग्रिमों के मामले में यदि बिलों की वसूली सामान्य पारगमन अवधि की समाप्ति से पहले ही बे जाती है तो अग्रिम की तारीख से आरंभ करके ऐसे बिलों की वसूली की तारीख तक के लिए रियायती दर पर ब्याज लिया जाएगा। इस प्रयोजन के लिए माँग बिलों की वसूली की तारीख वह मानी जाएगी जिस तारीख को बिल की राशि बैंक के नोस्रो खाते में जमा बे पाएगी ।

(ख) मीयादी निर्यात बिलों के आधार पर दिए गए अग्रिम/ऋण के मामले में रियायती दर पर ब्याज केवल आनुमानिक/वास्तविक नियत तारीख तक या उस तारीख तक के लिए लगाया जाएगा जिस तारीख को निर्यात संबंधी आय बैंक के विदेश स्थित नोस्त्रो खाते में जमा बे पाएगी (इन दोनों तारीखों में से जो भी पहले बे), भारत में उधारकर्ता/निर्यातक के खाते में संबंधित राशि चाहे जिस तारीख को जमा बे । जिन मामलों में सही नियत तारीख की पुष्टि, विदेश स्थित क्रेता द्वारा स्वीकार किए जाने के कारण या अन्यथा, ऋण लिए जाने के पहले ही/तत्काल बाद बे जाती है, उनमें रियायती दर पर ब्याज केवल वास्तविक नियत तारीख तक के लिए ही लगाया जाएगा, आनुमानिक नियत तारीख चाहे कुछ भी निश्चित की गयी बे,बशर्ते वास्तविक नियत तारीख आनुमानिक नियत तारीख से पहले पड़ती बे ।

(ग) यदि माँग बिलों के मामले में संपूर्ण सामान्य पारगमन अवधि के लिए या मीयादी बिलों के मामले में आनुमानिक/वास्तविक नियत तारीख तक के लिए ब्याज बिलों के बेचान/क्रय/डिस्काउंट के समय ही ले लिया गया है तो वसूली की तारीख से आरंभ करके सामान्य पारगमन अवधि की अंतिम तारीख/आनुमानिक नियत तारीख/ वास्तविक नियत तारीख तक के लिए लिया गया अधिक ब्याज वापस कर दिया जाना चाहिए ।

5.2.5 अतिदेय निर्यात बिल

(व) निर्यात बिलों के मामले में रिज़र्व बैंक द्वारा निश्चित की गयी अधिकतम दर के अंदर बैंक द्वारा निश्चित किए गए ब्याज की दर, बिल की नियत तारीख तक (माँग बिल के मामले में सामान्य पारगमन अवधि तक और मीयादी बिल के मामले में निर्दिष्ट अवधि तक) के लिए लागू बेगी।

(वव) नियत तारीख से बाद की अवधि अर्थात अतिदेय अवधि के लिए ‘अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात बिल - पोतलदानोत्तर’ श्रेणी के लिए लागू दर पर ब्याज लिया जाना चाहिए तथा ऐसे मामले में अलग से दंडात्मक ब्याज नहीं लगाया जाना चाहिए ।

(ववव) जिन मामलों में निर्यातक द्वारा पोतलदानपूर्व और लदानोत्तर कोई भी अग्रिम नहीं लिया गया है वबँ बैंक सुनिश्चित करें कि अतिदेय ब्याज (ई सी एन ओ एस) के अनुसार अतिरिक्त ब्याज नहीं लगाया जाना चाहिए।

5.2.6 रुपया संसाधनों में से समायोजित पोलदानोत्तर ऋण पर ब्याज

जिन पोतलदानोत्तर अग्रिमों का समायोजन विदेशी मुद्रा उपचित न बे पाने के कारण अनुमोदित तरीके से नहीं बे पाता है, तथा उनका समायोजन निर्यात-परेषण के चलते निर्यात ऋण गारंटी निगम के पास प्रस्तुत किए गए दावों के निपटान से प्राप्त निधियों में से किया जाता है, उन पर ब्याज लगाए जाने के मामले में, एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए बैकों को निम्ननिखित दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए :

(क) कुछ देशों को किए गए निर्यातों के मामले में, क्रेताओं द्वारा स्थानीय स्तर पर भुगतान कर दिए जाने के बावजूद, सरकारों/केन्द्रीय बैंक प्राधिकारियों की भुगतान संतुलन संबंधी समस्याओं के कारण उनके द्वारा विदेशी मुद्रा न भेजे जाने के चलते निर्यातक निर्यात संबंधी आय वसूल नहीं कर पाते हैं । ऐसे मामलों में अन्तरण में बेने वाले विलम्ब के लिए निर्यात ऋण गारंटी निगम निर्यातकों को सुरक्षा प्रदान करता है । जिन मामलों में निर्यात ऋण गारंटी निगम ने दावों को स्वीकार कर लिया है और अन्तरण में बेने वाले विलम्ब के लिए राशि का भुगतान कर दिया है, उनमें पोतलदानोत्तर अग्रिम के पोतलदान की तारीख से छ: माह के बाद तक बकाया रहने के बावजूद बैंक ‘अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण -पोतलदानोत्तर’ श्रेणी के लिए लागू दर पर ब्याज ले सकते हैं । ऐसा ब्याज अग्रिम की पूरी राशि पर लगाया जाएगा तथा इसका संबंध इस बात से बिल्कुल नहीं बेगा कि निर्यात ऋण गारंटी निगम 90 प्रतिशत /75 प्रतिशत भाग तक ही दावों को स्वीकार करता है तथा निर्यातकों को शेष 10 प्रतिशत /25 प्रतिशत भाग अपने स्वयं के रुपया संसाधनों से ले आना पड़ता है ।

(ख) जिन मामलों में घरेलू वाणिज्यिक दर पर या अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण श्रेणी के लिए लागू दर पर अनुमत ब्याज लिया गया है उनमें यदि निर्यात संबंधी आय की वसूली अनुमोदित तरीके से बाद में बे जाती है तो, पहले ही लिए जा चुके ब्याज और उक्त तरीके से लिए जाने योग्य ब्याज के अंतर की राशि बैंकों द्वारा उधारकर्ताओं को वापस कर दी जानी चाहिए परन्तु ऐसा करने से पहले ऐसी वसूली की वस्तुस्थिति सन्तोषजनक साक्ष्यों के माध्यम से सुनिश्चित कर ली जानी चाहिए । खातों का समायोजन करते समय, अधिक ब्याज की वापसी की संभावना की जानकारी उधारकर्ता को दे देना बेहतर बेगा ।

5.2.7 बिल की अवधि में परिवर्तन

(व) भारतीय रिज़र्व बैंक (विदेशी मुद्रा विभाग) द्वारा जारी दिनांक 9 सितंबर 2000 के एपी डीआईआर श्रफ्ंखला के परिपत्र सं. 12 के पैरा सी-14 के अनुसार बैंकों को इस बात की अनुमति दी गई है कि वे निर्यातकों के अनुरोध पर, मूल क्रेता या वैकल्पिक क्रेता पर आहरित बिलों के मामले में बिलों की अवधि में परिवर्तन की अनुमति दें परन्तु शर्त यह बेगी कि भुगतान की संशोधित नियत तारीख पोतलदान की तारीख से छ: माह के बाद न पड़ती बे ।

(वव) ऐसे मामलों में तथा जिन मामलों में पोतलदान की ताारीख से छ: महीने तक अवधि परिवर्तन की अनुमति दी गई हैं, उनमें बैंक संशोधित आनुमानिक नियत तारीख तक रियायती दर पर ब्याज लगा सकता है, परन्तु यह रिज़र्व बैंक द्वारा ब्याज दरों के संबंध में जारी किए गए दिशानिर्देशों के अनुरूप होना चाहिए ।


परिशिष्ट

मास्टर परिपत्र

रुपया निर्यात ऋण

मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

सं.

परिपत्र सं.

दिनांक

विषय

1.

बैंपविवि. डीआइआर (ईएक्सपी) सं. 83/ 04.02.01/2004-05

29.04.2005

रुपया निर्यात ऋण ब्याज दर

2.

औनिऋवि. सं. 14/01.01.43/ 2003-04

30.6.2004

भारतीय रिज़र्व बैंक के औद्योगिक निर्यात और ऋण विभाग के कार्यों का इसके अन्य विभागों में विलयन

3.

औनिऋवि.सं.12/04.02.02/ 2003-04

18.5.2004

निर्यातकों के लिये गोल्ड काड़ योजना

4.

औनिऋवि. सं. 13/04.02. 01/2003-04

18.5.2004

गोल्ड काड़ धारक निर्यातकों के लिए रुपया निर्यात ब्याज दरें

5.

औनिऋवि. सं. 10/04.02.01/ 2003-04

24.4.2004

रुपया निर्यात ऋण ब्याज दर

6.

औनिऋवि. सं. 5/04.02.01/ 2003-04

31.10.2003

रुपया निर्यात ऋण ब्याज दर

7.

औनिऋवि. सं. 18/04.02.01/ 2002-03

30.4.2003

रुपया निर्यात ऋण ब्याज दर

8.

औनिऋवि. सं. 16/04.02.02/ 2002-03

01.04.2003

निर्यात ऋण - एस ई जेड इकाइयां

9.

औनिऋवि. सं. 8/04.02.01/ 2002-03

28.09.2002

बड़े मूल्य के निर्यातों के लिएविशेष वित्तीय पैकेज

10.

औनिऋवि. सं. 7/04.02.01/ 2002-03

23.09.2002

रुपया निर्यात ऋण ब्याज दर

11.

औनिऋवि. सं. 17/04.02.01/ 2001-02

15.03.2002

रुपया निर्यात ऋण ब्याज दर

12.

औनिऋवि. सं. 15/04.02.02/ 2001-02

03.01.2002

प्रसंस्करणकर्ताओं / निर्यातकों को निर्यात ऋण -वफ्षि निर्यात क्षेत्र

13.

औनिऋवि. सं. 4/04.02.01/ 2001-02

24.09.2001

रुपया निर्यात ऋण ब्याज दर

14.

औनिऋवि. सं. 13/04.02.01/ 2000-01

19.04.2001

रुपया निर्यात ऋण ब्याज दर

15.

औनिऋवि. सं. 9/ 04.02.01/ 2000-01

05.01.2001

निर्यात ऋण पर ब्याज दर

16.

औनिऋवि. सं. 15/04.02.01/ 1999-2000

25.05.2000

निर्यात ऋण - ब्याज दर

17.

औनिऋवि.सं. 14/04.02.02/ 1999-2000

17.05.2000

राज्य ऋण की चुकौती के बदले रूस मबसंघ को परेषण निर्यात- रुपये में पोतलदानोत्तर ऋण पर ब्याज दर

 

18.

औनिऋवि. सं. 12/04.02.01/ 1999-2000

15.03.2000

निर्यात ऋण पर ब्याज दर के संबंध में स्पष्टीकरण

19.

औनिऋवि. सं. 6/04.02.01/ 1999-2000

29.10.1999

निर्यात ऋण - ब्याज दर

20.

औनिऋवि. सं. 23/04.02.01/ 1998-99

12.04.1999

बिल की अवधि में परिवर्तन - रियायती ब्याज दर का लागू बेना

21.

औनिऋवि. सं. 19/04.02.01/ 1998-99

03.03.1999

निर्यात ऋण - ब्याज दर

22.

औनिऋवि. सं. 16/04.02.01/ 1998-99

25.02.1999

शुल्क वापसी दावों के बदले अग्रिम

23.

औनिऋवि. सं. 11/04.02.01/ 1998-99

13.01.1999

निर्यात ऋण - पुष्पोत्पादन, अंगूर और वफ्षि - आधारित अन्य उत्पाद

24.

औनिऋवि. सं. 6/08.12.01/ 1998-1999

08.08.1998

सूचना प्रौद्योगिकी और साफ्टवेयर उद्योग को कार्यशील पूँजी संस्वीवफ्त करने के संबंध में दिशानिर्देश

25.

औनिऋवि. 5/04.02.01/ 1998-1999

06.08.1998

निर्यात ऋण - ब्याज दर

26.

औनिऋवि. 41/04.02.01/ 1997-98

29.04.1998

निर्यात ऋण - ब्याज दर

27.

औनिऋवि. 38/04.02.01/

1997-98

02.03.1998

दुबई में वेयरबउस कम डिस्प्ले सेंटर के माध्यम से निर्यातों के मामले में पोतलदानोत्तर वित्त

28.

औनिऋवि. सं. 32/04.02.01/ 1997-98

31.12.1997

निर्यात ऋण - अतिदेय निर्यात बिलों पर ब्याज दर

29.

औनिऋवि. सं. 31/04.02.01/ 1997-98

31.12.1997

निर्यात ऋण - पोतलदानोत्तर रुपया ऋण पर ब्याज दर

30.

औनिऋवि. सं. 29/04.02.01/ 1997-98

29.12.1997

निर्यात ऋण - पोतलदानोत्तर रुपया ऋण पर ब्याज दर- स्पष्टीकरण

31.

औनिऋवि. सं. 26/04.02.01/ 1997-98

17.12.1997

निर्यात ऋण - पोतलदानोत्तर रुपया ऋण पर ब्याज दर

32.

औनिऋवि. सं. 19/04.02.01/ 1997-98

29.11.1997

निर्यात ऋण - पोतलदानोत्तर रुपया ऋण पर ब्याज दर

33.

औनिऋवि. सं. 18/04.02.01/ 1997-98

26.11.1997

निर्यात ऋण - पोतलदानोत्तर रुपया ऋण पर ब्याज दर

34.

औनिऋवि. सं. 11/04.02.01/ 1997-98

21.10.1997

निर्यात ऋण - ब्याज दर

35.

औनिऋवि. सं. 9/04.02.01/ 1997-98

12.09.1997

निर्यात ऋण - पोतलदानोत्तर रुपया ऋण पर ब्याज दर

36.

औनिऋवि.सं 1/04.02.01/1997-98

05.07.1997

मानित निर्यातों के लिये रियायती ऋण देना

37.

औनिऋवि. सं. 32/04.02.01/ 1996-97

25.06.1997

निर्यात ऋण - ब्याज दर

38.

औनिऋवि. सं. 29/04.02.01/ 1996-97

17.04.1997

दुबई में वेयरबउस कम डिस्प्ले सेंटर के माध्यम से निर्यातों के मामले में पोतलदानोत्तर वित्त

39.

औनिऋवि. सं. 27/04.02.01/ 1996-97

15.04.1997

निर्यात ऋण - ब्याज दर

40.

औनिऋवि. सं. 16/04.02.01/ 1996-97

22.11.1996

मानित निर्यातों के लिये रियायती ऋण देना - बहुपक्षीय / द्विपक्षीय एजेंसियों / फंडों की सूची

41.

औनिऋवि. सं. 15/04.02.01/ 1996-97

19.11.1996

निर्यात ऋण -निर्यात ऋण गारंटी निगम - समग्र टर्नओवर पोतलदानोत्तर गारंटी योजना

42.

औनिऋवि. सं. 10/04.02.01/ 1996-97

19.10.1996

अग्रिमों पर ब्याज दर-पोतलदानोत्तर रुपया ऋण

43.

औनिऋवि. सं. 2/04.02.01/ 1996-97

03.07.1996

मध्यावधि और दीर्घावधि आधारपर (180 दिनों से बाद की अवधि के लिये आस्थगित ऋण)- पोतलदानोत्तर रुपया ऋण पर ब्याज दर

44.

औनिऋवि. सं. 20/04.02.02/ 1995-96

07.02.1996

अग्रिमों पर ब्याज दर - पोतलदानोत्तर रुपया ऋण

45.

औनिऋवि. सं. 30/04.02.02/ 1994-95

14.12.1994

निर्यात पैकिंग ऋण के मामले में छूट

46.

औनिऋवि. सं. 25/04.02.02/ 1994-95

10.11.1994

निर्यात आदेश के उप - आपूर्तिकर्ताओं को शामिल करने वाली देशी निर्यात साखपत्र प्रणाली

47.

औनिऋवि. सं. 17/04.02.02/ 1994-95

11.10.1994

निर्यात पैकिंग ऋण - ब्याज दरों में छूट

48.

औनिऋवि. सं. 11/04.02.02/ 1994-95

05.09.1994

निर्यात पैकिंग ऋण का समापन

49.

औनिऋवि. सं. 5/04.02.02/ 1994-95

04.08.1994

मानित निर्यातों के लिये रियायती ऋण देना- बहुपक्षीय / द्विपक्षीय एजेंसियों / फंडों की सूची

50.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. 42/ 04.02.02/1993-94

07.05.1994

सीआइएस और पूर्वी यूरोप के देशों को परेषण निर्यात -पोतलदानोत्तर रुपया ऋण ब्याज दर

51.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. 23/ 04.02. 02/1993-94

10.12.1993

मानित निर्यातों के लिये रियायती ऋण देना - बहुपक्षीय / द्विपक्षीय एजेंसियों / फंडों की सूची

52.

औनिऋवि सं. ईएफडी. 2/ 04.02.02/1993-94

02.08.1993

मानित निर्यातों के लिये रियायती ऋण देना

53.

औनिऋवि सं. 16/ईएफडी/ बीसी/819/पीओएल-

15.12.1992

विदेश स्थित वेयरबउसों के माध्यम से भंडारण और विक्री के लिए निर्यात वित्त

54.

औनिऋवि. सं. 56/ईएफडी. बीसी. 819/ पीओएल-

14.03.1992

पोतलदानोत्तर ऋण दिया जाना - चालू सुविधा खाता

55.

औनिऋवि. स.ं 55/ईएफडी/ बीसी/819/ पीओएल- ईसीआर/1991-92

12.03.1992

180 दिनों से बाद की अवधि के लिये पोतलदान पूर्व ऋण

56.

औनिऋवि.सं.53/ईएफडी/बीसी/ 819/पीओएल-ईसीआर/1991-92

29.02.1992

निर्यात ऋण पर ब्याज दर

57.

औनिऋवि. सं. 47/ईएफडी/बीसी / 819/पीओएल- ईसीआर/ 1991-92

25.01.1992

पैकिंग ऋण - चालू सुविधा खाता

58.

औनिऋवि. सं. 31/ईएफडी बीसी/ 819/पीओएल- ईसीआर/ 1991-92

20.11.1991

पैकिंग ऋण दिया जाना - चालू सुविधा खाता

59.

औनिऋवि. सं. 25/ईएफडी बीसी/ 819/पीओएल- ईसीआर/ 1991-92

09.10.1991

निर्यात ऋण ब्याज दरें

60.

औनिऋवि. सं.22/ईएफडी / बीसी/ 819/पीओएल- ईसीआर / 1991-92

27.09.1991

पोतलदानोत्तर निर्यात ऋण पर ब्याज दर

61.

औनिऋवि. सं. 11/ ईएफडी/ बीसी/ 819/पीओएल- ईसीआर/ 1991-92

05.08.1991

अग्रिमों पर ब्याज दर- निर्यात ऋण

62.

औनिऋवि. सं. 2/ईएफडी/बीसी/ 819/पीओएल- ईसीआर/ 1991-92

09.07.1991

निर्यात ऋण (ब्याज पर छूट) योजना 1968, - रुपया संसाधनों में से समायोजित पोतलदानोत्तर ऋण पर ब्याज

63.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी. 49/ 819-पीओएल-ईसीआर/ 1991

22.04.1991

अग्रिमों पर ब्याज दर- निर्यात ऋण

64.

औनिऋवि. सं. ईएफडी.बीसी. 48 / 819-पीओएल-ईसीआर/1991

02.04.1991

अग्रिमों पर ब्याज दर- निर्यात ऋण

65.

औनिऋवि. सं. ईएफडी/बीसी. 47/ 819/पीओएल- ईसीआर./ 1991

01.04.1991

अग्रिमों पर ब्याज दर- निर्यात ऋण

66.

औनिऋवि.सं.ईएफडी.बीसी.44/ डीडीबी (पी)- 1991

26.03.1991

शुल्क वापसी ऋण योजना 1976- ब्रैंड रेट के अंतर्गत शुल्क वापसी पात्रता के बदले ब्याजमुक्त अग्रिमों की मंजूरी

67.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी. 8/ 819-पीओएल-ईसीआर- 1989-90

28.09.1989

निर्यात ऋण (ब्याज में छूट) योजना 1968 - सामान्य पारगमन अवधि- मांग बिल

68.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी 253/ 819-पीओएल/ईसीआर/1989

27.05.1989

निर्यात ऋण (ब्याज पर छूट) योजना 1968 - रुपया संसाधनों में से समायोजित पोतलदानोत्तर ऋण पर ब्याज

69.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी. 250/ 380/पीओएल-ईसीआर/1989

29.04.1989

शुल्क वापसी ऋण योजना, 1976

70.

औनिऋवि. सं. ईएफडी.बीसी. 248 /819-पीओएल-ईसीआर- 1989

13.03.1989

अग्रिम लाइसेंस / आयात - निर्यात पासबुक योजना के अंतर्गत पात्रता के बदले आयात हेतु पैकिंग ऋण

71.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी. 240/ 819-पीओएल-ईसीआर-1989

03.03.1989

निर्यात ऋण (ब्याज पर छूट) योजना 1968- नियामतों के लिए अग्रिम भुगतान रूप में सीधे प्राप्त चेकों, ड्राफ्टों इत्यादि की आय के बदले रियायती ऋण का प्रावधान

72.

औनिऋवि. सं. ईएफडी/ 215/ 822-डब्ल्यूजीएम-एनओडी-1988

12.08.1988

विदेश स्थित सिविल इंजिनिअरिंग निर्माण संविदाएँ- परामर्शी सेवाएँ

73.

औनिऋवि. सं. 197 /822-डब्ल्यूजीएम -एनओडी-1988

30.01.1988

परियोजना निर्यात - भारतीय ठेकेदारों को ऋण सुविधाओं की मंजूरी

74.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी. 188/ 819/पीओएल-ईसीआर/ 1987

06.11.1987

निर्यात ऋण (ब्याज पर छूट)योजना 1968-180 दिनों से अधिक समय के लिए पैकिंग ऋण दिया जाना - काजू और वफ्षि आधारित अन्य उत्पादों के लिए पैकिंग ऋण

75.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी. 181/ 819-पीओएल- ईसीआर-1987

10.08.1987

निर्यात ऋण गारंटी निगम- लंबे समय से बकाया निर्यात बिलों की वसूली- बैंकों द्वारा वसूली के प्रयास

76.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी. 163/ 819/पीओएल-ईसीआर-

04.03.1987

निर्यात ऋण (ब्याज पर छूट) योजना,1968 - सामान्य पारगमन अवधि के संबंध में स्पष्टीकरण

77.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी. 153/ 819-पीओएल-पीआरइ-ईसीआर-87

03.01.1987

निर्यात ऋण (ब्याज पर छूट) योजना 1968 - पोतलदानपूर्व अग्रिम- रियायती ब्याज दर

78.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी.148 /819-पीओएल-ईसीआर-1986

24.11.1986

निर्यात ऋण (ब्याज पर छूट) योजना 1968- मांग बिलों के आधार पर अग्रिमों पर ब्याज

79.

बैंपविवि सं. डीआईआर. बीसी. 23/ सी. 96-86

28.02.1986

निर्यातों के लिये पोतलदानपूर्व वित्त

80.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी. 133/ 015- ईओयू-1985

21.11.1985

शत-प्रतिशत निर्यातोन्मुख ईकाईयों को निर्यात ऋण

81.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी. 127/ 819/पीओएल-ईसीआर/ 1985

08.10.1985

निर्यात ऋण (ब्याज पर छूट) योजना 1968- भारत में आईबीआरडी / आईडीए / युनीसेफ से सबयताप्राप्त परियोजनाओं को की जाने वाली आपूर्ति के बदले आपूर्ति के बाद सुविधाएँ

82.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी. 109/ 819/पीओएल-ईसीआर/ 1985

27.03.1985

लौह अयस्क की आपूर्ति के लिए पोतलदानपूर्व ऋण

83.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी. 103/ 819/पीओएल- ईसीआर/ 1985

04.02.1985

निर्यात ऋण (ब्याज पर छूट) योजना 1968-पोतलदानपूर्व ऋण की मंजूरी - संविदाओं का प्रतिस्थापन आदि

84.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी. 102/ 819/पीओएल-ईसीआर/ 1985

28.01.1985

निर्यात ऋण - परेषण आधार पर वस्तुओं का निर्यात

85.

औनिऋवि. सं. इएफडी. बीसी. 86/ सी. 819- पीओएल- ईसीआर/1984

15.03.1984

निर्यात ऋण (ब्याज पर छूट) योजना, 1968 - निर्यात बिलों कि आय का प्रत्यावर्तन - स्पष्टीकरण

86.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी.80

/015.ईओयू. 1984

19.01.1984

शत-प्रतिशत निर्यातोन्मुख इकाईयों को निर्यात ऋण

87.

औनिऋवि. सं. ईएफडी. बीसी. 75/सी 297(पी)-1983

06.12.1983

अफ्रीका को किए जाने वाले निर्यात के संबंध में रणनीति - निर्यात वित्त संबंधी स्थायी समिति के उप-समूह की रिपोर्ट का सारांश

88.

बैंपविवि. सं. र्ईएफडी. बीसी. 59 और 60 /सी. 297 पी-83

20.06.1983

डी-आयल्ड और डी-फ़टेड केक्स के निर्यातकों को पैकिंग ऋण अग्रिम - संशोधित दिशानिर्देश

89.

बैंपविवि सं. र्ईसीसी. बीसी 143, 144 /सी. 297 पी-80

09.12.1980

पोतलदानपूर्व ऋण- ब्याज की अधिकतम दर - दिशानिर्देश

90.

बैंपविवि सं. र्ईसीसी. बीसी. 172 / सी. 297 पी-79

04.12.1979

निर्यात ऋण -निर्यात ऋण गारंटी निगम - समग्र टर्नओवर पोतलदानोत्तर निर्यात ऋण गारंटी योजना

91.

बैंपविवि सं. एसीसी. बीसी. 104/ सी. 297 पी(सी)-79

23.07.1979

शुल्क वापसी ऋण योजना 1976- निर्धारित समय के भीतर ऋण खातों में समायोजन

92.

बैंपविवि सं. र्ईसीसी. बीसी. 104/ सी. 297 पी-

14.07.1979

निर्यात ऋण -निर्यात ऋण गारंटी निगम - समग्र टर्नओवर पोतलदानोत्तर निर्यात ऋण गारंटी योजना

93.

बैंपविवि सं. र्ईसीसी. बीसी. 81/ सी. 297 पी-79

05.06.1979

निर्यात ऋण - (ब्याज पर छूट) योजना 1968 - निर्यात बिलों को कवर करने के लिए आय का प्रत्यवर्तन

94.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी. 73/ सी. 297 (ओ) (ॅ12)-79

02.06.1979

निर्यात ऋण - हीरों का निर्यात

95.

बैंपविवि सं. एसीसी. बीसी. 118/ण्. 297 पी-(सी)79

07.04.1979

शुल्क वापसी ऋण योजना 1976- संशोधित लेखाकरण प्रक्रीया

96.

बैंपविवि. सं. एसीसी. बीसी. 55/ सी. 297 पी (सी)-79

07.04.1979

शुल्क वापसी ऋण योजना 1976 -संशोधन

97.

बैंपविवि. सं. एसीसी. बीसी. 38/ सी. 297 पी (सी)-79

06.03.1979

शुल्क वापसी ऋण योजना 1976-छूट

98.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी 14, 15/सी. 297 पी-79

22.01.1979

निर्यात ऋण -पोतलदानपूर्व ऋण- ब्याज की अधिकतम दर - निदेश

99.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी. 9/ सी. 297 पी-79

15.01.1979

मुक्त व्यापार/ निर्यात संवर्धन क्षेत्रों में इकाईयों को अग्रिम

100.

बैंपविवि. सं. एसीसी. बीसी. 70/सी. 297 पी (सी)-79

18.05.1978

शुल्क वापसी ऋण योजना,1976- भारिबैंक द्वारा दिये गये अग्रिमों की चुकौती के प्रति समायोजन द्वारा उधारकर्ता बैंक के ऋण खाते में जमा

101

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी.बीसी. 57/ सी. 297 एल (आइडी) जीईएन-78

04.05.1978

निर्यात ऋण- बोली बांड/गारंटियां जारी करने के लिए कार्य दल से स्वीवफ्ति लेने हेतु बैंकों को सूचित किया - विदेशी निर्माण संविदाएं

102.

बैंपविवि. सं. ईसीसी. बीसी.45/ सी.297 (ओ)(12)-78

29.03.1978

निर्यात ऋण - हीरों की निर्यात के लिए बैंक वित्त के संबंध में

103.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी. 39 और 40/सी.297 पी.-78

08.03.1978

निर्यात ऋण -ब्याज पर उच्चतम दर - निदेश

104.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी.82/ सी. 297एल (4.1)-77

04.07.1977

निर्यात ऋण - विदेशी निर्माण संविदाओं के वित्तपोषण के लिए दिशानिर्देश

105.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी.55/ सी. 297 पी -77

28.05.1977

आस्थगित अदायगी शर्तों पर दिया गया पोतलदानोत्तर ऋण - पूंजी तथा उत्पादक वस्तुओं का निर्यात - उच्च मूल्य की अभियांत्रिकी तथा उपकरण वस्तुएंँ

106.

बैंपविवि. एसीसी. बीसी. 52/सी. 297 पी (सी)-77

25.05.1977

शुल्क वापसी ऋण योजना, 1976 -बैंकों को वास्तविक ढंग से सीमाएँ निर्धारित करने संबंधी सूचना

107.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी.31/सी 297 एम.-77

29.03.1977

निर्यात ऋण (ब्याज सब्सिडी) योजना , 1968 - एचपीएस ग्राउंडनट के तथा डी-आयल्ड और डी-फ़टेड केक्स के निर्यातकों को पैकिंग ऋण अग्रिम - ब्याज सब्सिडी दावों तथा रियायती ब्याज दरों के संबंध में स्पष्टीकरण

108.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी.8/सी.297 एम.-77

13.01.1977

निर्यात ऋण (ब्याज सब्सिडी) योजना , 1968 -अनाहरित शेषराशियों तथा प्रतिधारण राशि की जमानत पर अग्रिम

109.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी.154/297 पी - 76

27.12.1976

निर्यात ऋण - केवल 1 वर्ष से अधिक अवधि के लिए दिये गये पोतलदानोत्तर ऋण पर 8 प्रतिशत प्रति वर्ष की ब्याज दर से संबंधित स्पष्टीकरण

110.

बैंपविवि. एसीसी. बीसी.66/सी. 297पी (सी)-76

23.06.1976

शुल्क वापसी ऋण योजना, 1976 - बैंकों द्वारा भारिबैंक से एक बारगी आहरण की न्यूनतम राशि को 1 लाख रुपए से घटाकर 20000 रु. करना

111.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी.38/सी. 297 पी-76

22.03.1976

निर्यात ऋण (ब्याज सब्सिडी) योजना , 1968- पैकिंग ऋण अग्रिम

112.

बैंपविवि.एसीसी. बीसी. 25/सी 297 पी (सी)-76

21.02.1976

शुल्क वापसी ऋण योजना, 1976 - योजना के अंतर्गत अग्रिम मंजूर करते समय लदान पत्र आदि के सत्यापन के संबंध में बैंकों को सूचना

113.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी. 20/सी 297 पी -76

09.02.1976

पोतलदानपूर्व ऋण- विदेशी खरीदारों से प्राप्त केबल सूचनाओं के आधार पर जूट मिलों को पैकिंग ऋण सुविधाएँ प्रदान करने हेतु बैंकों को सूचना

114.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी.19/ सी 297 पी -76

09.02.1976

पोतलदानपूर्व ऋण- निर्यात गफ्हों/ एजेन्सियों के माध्यम से संविदाओं के प्रतिस्थापन और निर्यात के वित्तपोषण के संबंध में परिचालनगत लचीलेपन की छूट

115.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी.16 /सी. 297 एल (एलएफ)-76

06.02.1976

निर्यात ऋण - कालीन के निर्यातक - ऐसे निर्यात ऋण प्रस्तावों पर तत्पर कार्रवाई करने हेतु अपने शाखा प्रबंधकों / क्षेत्रीय प्रबंधकों को पर्याप्त अधिकार देने हेतु बैंको को सूचना

116.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी. 12/सी. 297 (एल-11)-76

27.01.1976

निर्यात ऋण- परामर्शी सेवाओं का निर्यात - आवश्यक सहायता देने हेतु बैंकों को सूचना

117.

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी.2/सी 297 एल (16)-76

07.01.1976

शुल्क वापसी ऋण योजना, 1976

118.

 

 

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी. 91 /सी. 297 पी-75

23.10.1975

निर्यात ऋण -प्रदर्शनी और विक्रय के लिए माल का निर्यात -विदेश में प्रदर्शनी और विक्रय के लिए उत्पादन हेतु बैंकों द्वारा रियायती ब्याज दर लिया जाना।

119.

बैंपविवि. ईसीसी. बीसी. 57 /सी. 297 पी-75

14.08.1975

निर्यात ऋण- परामर्शी सेवाओं का निर्यात - तकनीकी तथा अन्य स्टाफ के व्यय की भरपाई हेतु परामर्शी अनुबंधों के बदले बैंकों द्वारा ऋण सीमा का निर्धारण

120.

 

बैंपविवि. सं. र्ईसीसी. बीसी. 33 /33 /सी. 297 पी-75

19.04.1975

आस्थगित भुगतान शर्तों पर पोतलदान पश्च ऋण - एक वर्ष से अधिक समय के लिये 8 प्रतिशत प्रति वर्ष की रियायती दर से ब्याज लगाने के लिए बैंकों को सूचित किया जाना ।

121.

बैंपविवि बीएम. बीसी. 7 /सी. 297 पी-74

12.01.1974

निर्यात ऋण- मात्रा और अवधि के संबंध में निर्यात ऋण के उपयोग पर निगरानी रखने हेतु बैंकों को सूचित किया जाना ।

122.

बैंपविवि. बीएम. बीसी. 81/सी. 297 एम -73

18.07.1973

पोतलदानपूर्व ऋण योजना तथा निर्यात ऋण (ब्याज सब्सिडी) योजना, 1968 - भारत में आईबीआरडी/ आईडीए/युनीसेफ से सहायताप्राप्त परियोजनाओं कार्यक्रमों को आपूर्ति के बदले पैकिंग ऋण सुविधाएँ, पुनर्वित्त और ब्याज सब्सिडी के लिए पात्र है ।

123.

बैंपविवि बीएम. बीसी. 58/सी. 297 पी-73

31.05.1973

पोतलदानपूर्व ऋण योजना - बहुमूल्य और कम बहुमूल्य रत्नों और सिन्थेटिक पत्थरों का निर्यात- एक विशेष (पोतलदानपश्च) खाते में पैकिंग ऋण अग्रिमों के बकाया शेष को स्थानांतरित का समायोजित करने संबंधी स्पष्टीकरण ।

124.

बैंपविवि. बीएम. बीसी. 120/ सी. 297 पी-72

06.12.1972

निर्यात के लिए निर्यातकों को अयस्क की आपूर्ति करने वाले गोवा के लौह अयस्क खोदने वालों को पैकिंग ऋण अग्रिम ।

125.

बैंपविवि. बीएम बीसी. 97/सी. 297(एम)-72

30.10.1972

पोतलदानपूर्व ऋण योजना तथा निर्यात ऋण (ब्याज सब्सिडी) योजना 1968 - नकद प्रोत्साहन, कर वापस लेना आदि - ईसीजीसी योजना संबंधी स्पष्टीकरण ।

126.

बैंपविवि. बीएम. बीसी. 74/ सी. 297(एम)-72

30.08.1972

पोतलदानपूर्व ऋण योजना तथा निर्यात ऋण योजना, 1968 - नकद प्रोत्साहन, कर वापस लेना आदि - ईसीजीसी योजना संबंधी स्पष्टीकरण ।

127.

बैंपविवि बीएम. बीसी. 70 /सी. 297 पी-72

09.08.1972

खनिज अयस्कों के निर्यात संबंधी पैकिंग ऋण अग्रिम ।

128.

बैंपविवि बीएम. बीसी 62 /सी. 297 (एम)-71

21.05.1971

पोतलदानपूर्व ऋण योजना तथा निर्यात ऋण (ब्याज सब्सिडी) योजना, 1968- वित्त के अंतिम कर्ड़ी तक उपयोग पर न सिर्फ सूक्ष्म निगरानी रखने बल्कि निर्यात आदेशों को समय से पूरा करने और समयावधि बढ़ाने के आवेदनों की सावधानीपूर्वक जाँच करने के लिए बैंकों को सूचित किया जाना ।

129.

बैंपविवि. ससीएच. बीसी. 51 /सी.96 -71

16.04.1971

पैकिंग ऋण और पोतलदानपश्च ऋण - ब्याज दर का स्वरूप - पैकिंग ऋण के लिए 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की सीमा तथा निर्यातकों को आस्थगित भुगतान शर्तों पर दिए गए ऋणों के अलावा पोतलदान पश्च ऋण

130.

बैंपविवि. बीएम. 64/सी. 297 पी-70

12.01.1970

पोतलदानपूर्व ऋण योजना - बहुमूल्य, कम बहुमूल्य पत्थरों, रत्नों और सिंथेटिक पत्थरों का निर्यात

131.

बैंपविवि. बीएम. 1152/ सी. 297 (एम) -69

11.07.1969

रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 17(3 क) के अंतर्गत अनुसूचित बैंकों को अग्रिम - उन निर्यातकों को अग्रिम जिनके पास साखपत्र नहीं है या जिनके निर्यात आदेश नहीं है तथा जो राज्य व्यापार निगम, खनिज और धातु व्यापार निगम एवं अन्य निर्यात गफ्बें के माध्यम से अपने निर्यात करते हैं - स्पष्टीकरण

132.

बैंपविवि बीएम. 1064 /सी.297 पी -69

01.07.1969

हीरों के निर्यात के संबंध में पोतलदानपूर्व ऋण योजना

133.

बैंपविवि बीएम.1040 /सी.297पी-69

27.06.1969

पोतलदानपूर्व ऋण योजना - चमड़ों की वस्तुओं के निर्यात हेतु राज्य व्यापार निगम को चमड़े की वस्तुओं की आपूर्ति करने वाले चर्मकारों को दिये जानेवाले अग्रिमों को पैकिंग ऋण मानना

134.

बैंपविवि बीएम. 984 /सी.297 पी 69

19.06.1969

पोतलदानपूर्व ऋण- निर्माण संविदाकोरों को दिये जानेवाले कतिपय अग्रिमों को पैकिंग ऋण मानना

135.

बैंपविवि बीएम. 682/सी.297 के- 69

07.04.1969

निर्यात ऋण- ब्याज लगाना

136.

बैंपविवि बीएम. 588/सी.297 ए-69

26.03.1969

मिनरल्स एंड मेटल ट्रेडिंग कार्पोरेशन के ज़रिए अयस्क के निर्यात से संबंधित पैकिंग ऋण अग्रिमों का पुनर्वित्तपोषण

137.

बैंपविवि बीएम.254/सी.297 ए-69

14.02.1969

पैकिंग ऋण अग्रिम- स्पष्टीकरण- ऐसे अग्रिमों की मंजूरी खोले जाने वाले किसी साख पत्र पर निर्भर नहीं होनी चाहिए

138.

बैंपविवि बीएम. 1489/सी.297ए-68

07.11.1968

पैकिंग ऋण अग्रिम- ऐसे अग्रिम किस अवघि के लिए दिये जाए- स्पष्टीकरण

 

139.

बैंपविवि बीएम. 1179/सी.297ए-68

19.08.1968

काजू के निर्यात संबंधी पैकिंग ऋण अग्रिमों का पुनर्वित्तपोषण- अधिकतम ब्याज दर लागू होने का स्तर- अतिरिक्त स्पष्टीकरण

140.

बैंपविवि बीएम. 974 /सी.297ए-68

27.06.1968

काजू के निर्यात से संबंधित पैकिंग ऋण सुविधाएँ

141.

बैंपविवि बीएम. 785/सी.297ए-68

18.05.1968

काजू के निर्यात से संबंधित पैकिंग ऋण सुविधाएँ

142.

बैंपविवि बीएम.558 /सी.297ए-68

06.04.1968

निर्यातकों को पैकिंग ऋण सुविधाएँ

143.

बैंपविवि बीएम. 2732/सी.297के-63

13.03.1963

निर्यात बिल ऋण योजना -योजना की मुख्य-मुख्य बातें - क्रियाविधियाँ


मास्टर परिपत्र

रुपया निर्यात ऋण

प्रमुख शब्द सूची

शब्द

 

पफ्ष्ठ संख्या

वफ्षि निर्यात क्षेत्र

-

12

मानित निर्यात

-

21

माँग बिल

-

14, 15, 27

निर्यात ऋण गारंटी निगम

-

9, 21,24, 25, 28

अन्यथा न निर्दिष्ट निर्यात ऋण

-

15, 18, 22, 25, 26, 28

निर्यात उन्मुख इकाई / मुक्त व्यापार क्षेत्र/ निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र

-

4, 9

निर्यात आदेश धारक

-

8, 9

फेडाई

-

14, 25

सामान्य पारगमन अवधि

-

14, 27

अतिदेय बिल

-

14, 27

चल खाता सुविधा

-

4

उप आपूर्तिकर्ता

-

7

मीयादी बिल

-

14, 17, 23, 26

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