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मास्टर परिपत्र - बैंकों द्वारा निवेश संविभाग केवर्ग् ाीकरण, मूल्यन और परिचालन के लिए विवेकपूर्ण मानदंड

आरबीआइ/2006-07/30
बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 14 /21.04.141/2006-07

1 जुलाई 2006
10 आषाढ़ 1928 (शक)

सभी वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय

मास्टर परिपत्र - बैंकों द्वारा निवेश संविभाग केवग् र् ाीकरण, मूल्यन और परिचालन के लिए विवेकपूर्ण मानदंड

कृपया आप 12 जुलाई 2005 का मास्टर परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 15/21.04.141/ 2005-2006 देखें, जिसमें बैंकों द्वारा निवेश संविभाग के वर्गीकरण, मूल्यन और परिचालन के लिए विवेकपूर्ण मानदंडों से संबंधित विषयों पर बैंकों को 30 जून 2005 तक जारी किये गये अनुदेश / दिशा-निर्देश समेकित किये गये हैं । उक्त मास्टर परिपत्र को 30 जून 2006 तक जारी किये गये अनुदेशों को शामिल करते हुए उपयुक्त रूप में संशोधित कर दिया गया है और इसे रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (/en/web/rbi) पर भी उपलब्ध करवा दिया गया है ।

2. यह नोट किया जाए कि परिशिष्ट में सूचीबद्ध परिपत्रों में निहित, उक्त विषय से संबंधित सभी अनुदेश समेकित किये गये हैं । हम सूचित करते हैं कि यह संशोधित मास्टर परिपत्र भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी उक्त परिपत्रों में निहित अनुदेशों का अधिक्रमण करता है ।

भवदीय

(प्रशांत सरन)
प्रभारी मुख्य महा प्रबंधक


मास्टर परिपत्र - बैंकों द्वारा निवेश संविभाग के वर्गीकरण, मूल्यन और परिचालन के लिए विवेकपूर्ण मानदंड

विषय-सूची

1

प्रस्तावना . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . .

 

1.2

निवेश नीति . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

 

1.2.1

सरकारी प्रतिभूतियों में हाज़िर वायदा संविदा . . . . . . . . . . . . . . .

 

1.2.2

एसजीएल खाते के माध्यम से लेनदेन . . . . . . . . . . . . . . . . . ..

 

1.2.3

बैंक रसीदों का उपयोग (बी आर) . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . .

 

1.2.4

सरकारी प्रतिभूतियों की खुदरा बिक्री . . . . . . . . . . . . . . . . . .. .

 

1.2.5

आंतरिक नियंत्रण प्रणाली . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . .

 

1.2.6

दलालों को लगाना . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . .

 

1.2.7

निवेश लेनदेनों की लेखा-परीक्षण, समीक्षा और रिपोर्ट देना . . . . . . .

 

1.2.8

सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर निवेश . . . . . . . . . . . . . . .

 

1.3

सामान्य . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . .

   

सरकारी प्रतिभूतियों आदि के धारण का समाधान . . . . . . . . . . . . .

   

प्रतिभूतियों के लेनदेन - अभिरक्षक के कार्य . . . . . . . . . . . . . . . .

 

1.3.3

ग्राहकों की ओर से निवेश संविभाग प्रबंधन . . . . . . . . . . . . . . . .

 

1.3.4

बैंकों का निवेश संविभाग - सरकारी प्रतिभूतियों का लेनदेन . . . . . .

2.

वर्गीकरण . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . .. . . . . . . .

 

2.1

अवधिपूर्णता तक धारित . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . .

 

2.2

बिक्री के लिए उपलब्ध तथा ट्रेडिंग के लिए धारित . . . . . . . . . . . .

 

2.3

एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी में अंतरित करना . . . . . . . . . . . . . . . .

3.

मूल्यन . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

 

3.1

अवधिपूर्णता तक धारित . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . .

 

3.2

बिक्री के लिए उपलब्ध . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . .

 

3.4

निवेश संबंधी उतार-चढ़ाव हेतु प्रारक्षित निधि (आई एफ आर) . . . .

 

3.5

बाज़ार मूल्य . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . .

 

3.6

कोट न की गयी सांविधिक चलनिधि अनुपात प्रतिभूतियां . . . . . . . . .

 

3.6.1

केंद्र सरकार की प्रतिभूतियां . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . .

 

3.6.2

राज्य सरकार की प्रतिभूतियां . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . .

 

3.6.3

अन्य ‘अनुमोदित’ प्रतिभूतियां . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . .

 

3.7.1

डिबेंचर/बांड . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . .

 

3.7.3

अधिमान शेयर . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . .

 

3.7.4

ईक्विटी शेयर . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . .

 

3.7.5

म्युच्युअल फंड यूनिट . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . .

 

3.7.6

वाणिज्यिक पत्र . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . .

 

3.7.7

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में निवेश . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . .

 

3.8

प्रतिभूतिकरण कंपनियों (एससी)/पुनर्निर्माण कंपनियों (आरसी) द्वारा जारी की गई प्रतिभूतियों में निवेश . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . .

 

3.8.1

प्रावधानन/मूल्यन मानदंड . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . .

 

3.9

अनर्जक निवेश . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . .

5

सामान्य . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ..

 

5.2

खंडित अवधि ब्याज . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . .

 

5.3

डिमटिरियलाइज़ड धारिताएं . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . .


मास्टर परिपत्र - बैंकों द्वारा निवेश संविभाग के वर्गीकरण, मूल्यन और परिचालन के लिए विवेकपूर्ण मानदण्ड

1. प्रस्तावना

पूंजी पर्याप्तता, आय-निर्धारण, आस्ति-वर्गीकरण तथा प्रावधान करने से संबंधित अपेक्षाओं के बारे में विवेकपूर्ण मानदण्ड लागू किये जाने से पिछले कुछ वर्षों में भारत में बैंकों की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ है। इसके साथ-साथ, प्रतिभूति बाजॉर में ट्रेडिंग में पण्यावर्त तथा जिन अवधिपूर्णताओं पर कार्य किया गया उनकी व्याप्ति की दृष्टि से सुधार हुआ है । इन गतिविधियों को तथा विद्यमान अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं को ध्यान में रखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों द्वारा निवेश संविभाग के वर्गीकरण, मूल्यन और परिचालन के संबंध में समय-समय पर निम्नानुसार दिशा-निर्देश जारी किये हैं :

1.2 निवेश नीति

(व) बैंक एक उपयुक्त निवेश नीति तैयार करें और उसे कार्यान्वित करें, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रतिभूतियों में किये गये परिचालन सुदृढ़ और स्वीकार्य कारोबार प्रथा के अनुरूप किये गये हैं । निवेश नीति बनाते समय बैंकों को निम्नलिखित दिशा-निर्देश ध्यान में रखने चाहिए :

(क) बैंक ऐसी कोई प्रतिभूति जो पहले ही खरीद के लिए संविदागत है, को बेच सकते हैं बशर्ते:

i. बिक्री के पहले खरीद संविदा की पुष्टि हुई हो।

ii. खरीद संविदा सीसीआइएल द्वारा गारंटीकृत हो अथवा प्रतिभूति भारतीय रिज़र्व बैंक से खरीद के लिए संविदागत हो और,

iii संबंधित बिक्री लेनदेन या तो उसी निपटान चक्र में निपटाया जायेगा जैसा कि पूर्ववर्ती खरीद संविदा में निपटाया था, या बादवाले निपटान चक्र में ताकि खरीद संविदा के अधीन प्राप्त प्रतिभूतियों द्वारा बिक्री संविदा के अधीन सुपुर्दगी दायित्व को पूरा किया जा सके (अर्थात् जब कोई प्रतिभूति ऊ+ 0 आधार पर खरीदी जाती है तो वह खरीद के दिन को या तो ऊ + 0 अथवा ऊ + 1 आधार पर बेची जा

सकती है; तथापि यदि वह ऊ+ 1 आधार पर खरीदी जाती है तो वह खरीद के दिन को ऊ + 1 आधार पर बेची जा सकती है या अगले दिन ऊ + 0 अथवा ऊ + 1 आधार पर बेची जा सकती है)

खुले बाजार के परिचालनों के माध्यम से रिज़र्व बैंक से प्रतिभूतियों की खरीद के लिए, रिज़र्व बैंक से लेनदेन की पुष्टि / आबंटन की सूचना प्राप्त होने के पहले बिक्री लेनदेनों की संविदा नहीं की जानी चाहिए ।

उपर्युक्त के अलावा, अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र बैंकों से इतर) प्राथमिक व्यापारियों को अनुबंध 1क में दी गयी अपेक्षाओं के अनुसार सरकारी प्रतिभूतियों की शॉर्ट बिक्री की अनुमति दी गयी है।

साथ ही, एनडीएस -ओएम सदस्यों को, एनडीएस -ओएम में आवश्यक सॉफ्टवेयर संशोधन करने के बाद अनुबंध 1ख में दिये गये दिशा-निर्देशों की शर्त पर केंद्र सरकार की दिनांकित प्रतिभूतियों में ‘जब जारी की जाए’ आधार पर लेनदेन की अनुमति दी गयी है।

(ख) सरकारी प्रतिभूतियों के प्राथमिक निर्गम की नीलामी में सफल बैंक, अनुबंध -1ग में उल्लिखित शर्तों के अनुसार, आबंटित प्रतिभूतियों की बिक्री के लिए संविदाएं कर सकते हैं ।

(ग) सरकारी प्रतिभूतियों में सभी एकमुश्त गौण बाजार लेनदेनों का निपटान 24 मई 2005 से मानकीकृत ऊ + 1 आधार पर किया जाएगा ।

(घ) किसी बैंक द्वारा किये गये सभी लेनदेन चाहे वे एकमुश्त आधार पर हों या हाज़िर-वायदा आधार पर और चाहे सहायक सामान्य खाता बही (एसजीएल) अथवा बैंक रसीदों के माध्यम से हों, उन्हें उसी दिन उसके निवेश खातों में और तदनुसार, जहां लागू हो, सांविधिक चलनिधि अनुपात के प्रयोजन हेतु दर्शाया जाना चाहिए ।

(ङ) सौदे पर दलाल को देय दलाली, यदि कोई हो (यदि उक्त सौदा दलाल के माध्यम से किया गया था तो) उक्त लेनदेन करने के लिए अनुमोदन प्राप्त करने हेतु उच्च प्रबंध-तंत्र के समक्ष प्रस्तुत किये गये नोट / ज्ञापन में स्पष्ट रूप से दर्शायी जानी चाहिए और दलालवार, अदा की गयी दलाली का अलग खाता रखा जाना चाहिए ।

(च) बैंक रसीदें जारी करने के लिए बैंकों को भारतीय बैंक संघ द्वारा निर्धारित फार्मेट का प्रयोग करना चाहिए और इस संबंध में उनके द्वारा निर्धारित किये गये दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करना चाहिए । बैंकों को केवल अपने स्वयं के बिक्री लेनदेनों के लिए बैंक रसीदें जारी करनी चाहिए तथा अपने ग्राहकों जिनमें दलाल भी है, की ओर से बैंक रसीदें जारी नहीं करनी चाहिए ।

(छ) बैंकों को दलालों की ओर से प्रतिभूतियों के लेनदेन करने के लिए अपने दलाल ग्राहकों के एजेंट के रूप में कार्य करते समय सतर्क रहना चाहिए ।

(ज) खाते में पर्याप्त शेषराशि की आवश्यकता के लिए रिज़र्व बैंक के लोक ऋण कार्यालय से लौटाये गये किसी भी एसजीएल फार्म के बारे में लेनदेन के ब्यौरों सहित तत्काल रिज़र्व बैंक को जानकारी दी जानी चाहिए ।

(i) जो बैंक उपर्युक्त उच्चतम सीमा के अंतर्गत ईक्विटी शेयरों / डिबेंचरों में निवेश करने, ईक्विटी के वित्तपोषण और गारंटियां जारी करने के इच्छुक हैं, उन्हें निम्नलिखित दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए :

i. अपने परिचालनों के परिमाण के अनुसार समर्पित ईक्विटी शोध विभाग स्थापित करके उन्हें ईक्विटी शोध में पर्याप्त विशेषज्ञता विकसित करनी चाहिए ;

ii. निदेशक मंडल के अनुमोदन से शेयरों में निवेश के लिए एक पारदर्शक नीति और क्रियाविधि का निर्मित करनी चाहिए ।

iii शेयरों, परिवर्तनीय बांडों और डिबेंचरों में प्रत्यक्ष निवेश के संबंध में निर्णय बैंक के निदेशक मंडल द्वारा गठित निवेश समिति द्वारा लिया जाना चाहिए । बैंक द्वारा किये गये निवेशों के लिए उक्त निवेश समिति को उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए ।

ii) प्रतिभूतियों का अपने स्वयं के निवेश खाते में तथा ग्राहकों की ओर से लेनदेन करते समय बैंकों द्वारा अपनाये जानेवाले निवेश के स्थूल उद्देश्य संबंधित निदेशक मंडल के अनुमोदन से स्पष्ट रूप से निर्धारित करने चाहिए, जिनमें जिस प्राधिकारी के माध्यम से सौदा किया जाना है उसकी स्पष्ट परिभाषा, उपयुक्त प्राधिकारी की मंजूरी के लिए अपनायी जानेवाली क्रियाविधि, सौदा करने में अपनायी जानेवाली क्रियाविधि, जोखिम की विभिन्न विवेकपूर्ण सीमाएं और रिपोर्ट देने की प्रणाली स्पष्ट रूप से परिभाषित की जानी चाहिए । निवेश नीति संबंधी इस प्रकार के दिशा-निर्देश निर्धारित करते समय बैंकों को निम्नलिखित से संबंधित रिज़र्व बैंक के विस्तृत अनुदेशों का कड़ाई से पालन करना चाहिए :

(क) हाज़िर वायदा (वापसी-खरीद) सौदे (पैराग्राफ 1.2.1)

(ख) सहायक सामान्य खाता बही (एस जी एल) के माध्यम से लेनदेन (पैराग्राफ 1.2.2)

(ग) बैंक रसीदों का प्रयोग (पैराग्राफ 1.2.3)

(घ) सरकारी प्रतिभूतियों की खुदरा बिक्री (पैराग्राफ 1.2.4)

(ङ) आंतरिक नियंत्रण प्रणाली (पैराग्राफ 1.2.5)

(च) दलालों के माध्यम से सौदे करना (पैराग्राफ 1.2.6)

(छ) लेखा-परीक्षा, समीक्षा और रिपोर्टिंग (पैराग्राफ 1.2.7)

(ज) सां. च. अ. से इतर निवेश (पैराग्राफ 1.2.8)

iii) उपुर्यक्त अनुदेश आवश्यक परिवर्तनों के साथ, बैंकों द्वारा स्थापित सहायक कंपनियों और पारस्परिक निधियों पर केवल उन स्थितियों को छोड़कर लागू होंगे जहां उनके परिचालनों को नियंत्रित करनेवाले भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के विशिष्ट विनियम इसके प्रतिकूल हैं या असंगत हैं ।

1.2.1 सरकारी प्रतिभूतियों में हाज़िर वायदा संविदा

जिन शर्तों के अधीन हाज़िर वायदा संविदाएं (प्रतिवर्ती हाज़िर वायदा संविदाओं सहित) की जा सकती हैं, वे निम्नप्रकार होंगी :

(क) हाज़िर वायदा संविदाएं केवल निम्नलिखित में की जायें (i) भारत सरकार द्वारा जारी दिनांकित प्रतिभूतियां और खज़ाना बिल तथा (ii) राज्य सरकार द्वारा जारी दिनांकित प्रतिभूतियां ।

(ख) ऊपर निर्दिष्ट प्रतिभूतियों की हाज़िर वायदा संविदाएं निम्नलिखित द्वारा की जा सकेंगी :

i. भारतीय रिज़र्व बैंक, मुंबई में सहायक सामान्य बही (एसजीएल) खाता रखने वाले व्यक्ति अथवा कंपनियां कर सकेंगी और

ii. निम्नलिखित श्रणियों की कंपनियाँ जो रिज़र्व बैंक के पास एसजीएल खाता नहीं रखती हैं लेकिन किसी बैंक में अथवा अन्य किसी ऐसी कंपनी में गिल्ट खाते रखती है (अर्थात् गिल्ट खाता धारक) जिन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उसके लोक ऋण कार्यालय, मुंबई के पास सहायक सामान्य खाता बही (सीएसजीएल) बनाए रखने की अनुमति है :

क) कोई अनुसूचित बैंक,

ख) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्राधिकृत कोई प्राथमिक व्यापारी,

ग) कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 617 में यथा परिभाषित सरकारी कंपनियों के अलावा भारतीय रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत कोई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी,

घ) भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड के पास पंजीकृत कोई म्युच्युअल फंड,

ङ) राष्ट्रीय आवास बैंक के पास पंजीकृत कोई आवास वित्त कंपनी, और

च) बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण के पास पंजीकृत कोई बीमा कंपनी ।

छ) कोई गैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंक,

ज) कोई सूचीबद्ध कंपनी जो किसी अनुसूचित वाणिज्य बैंक के पास गिल्ट खाता रखती हो, निम्नलिखित शर्तों के अधीन ।

(i) सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा रिवर्स रिपो (निधि उधार देना) के लिए न्यूनतम अवधि सात दिन है । तथापि, सूचीबद्ध कंपनियां रिपो के जरिए इनसे कम अवधि के लिए निधि उधार ले सकती हैं जिसमें एक दिवसीय अवधि (ओवर नाइट) भी शामिल है ।

(ii) जहां सूचीबद्ध कंपनी रिपो संविदा के पहले चरण में प्रतिभूतियों का क्रेता (अर्थात् निधियों का उधारदाता) है वहाँ अभिरक्षक जिसके जरिए रिपो लेनदेन को निपटाया गया है, को उन प्रतिभूतियों को गिल्ट खाते में अवरुद्ध करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ये प्रतिभूतियां आगे बेची न जायें या रिपो अवधि में पुन: रिपो न की जायें, बल्कि दूसरे चरण के अधीन वितरण हेतु रोक रखी जाएँ ।

(iii) रिपो /रिवर्स रिपो के लेनदेन के लिए सूचीबद्ध कंपनियों का प्रतिपक्ष ऐसा बैंक या प्राथमिक व्यापारी होना चाहिए जिसका रिज़र्व बैंक के पास एसजीएल खाता हो ।

(ग) उक्त (ii) में विनिर्दिष्ट सभी व्यक्ति या कंपनियां आपस में निम्नलिखित प्रतिबंधों के अधीन हाज़िर वायदा लेनदेन कर सकते हैं :

i. कोई एसजीएल खाता धारक अपने ही संघटक के साथ हाज़िर वायदा संविदा न करें । अर्थात् हाज़िर वायदा संविदाएं अभिरक्षक और उसके गिल्ट खाता धारक के बीच नहीं होनी चाहिए ।

ii) एक ही अभिरक्षक (अर्थात् सीएसजीएल खाता धारक) के पास अपने गिल्ट खाते रखने वाले किन्हीं दो गिल्ट खाता धारकों के बीच एक दूसरे के साथ हाज़िर वायदा संविदाएं न की जाएं, और

iii) सहकारी बैंक, गैर-बैंंकिंग वित्तीय कंपनियों के साथ हाज़िर वायदा संविदा नहीं
करेंगे । यह प्रतिबंध शहरी सहकारी बैंकों और सरकारी प्रतिभूतियों से संबद्ध प्राधिकृत व्यापारियों के बीच वाले रिपो लेनदेन पर लागू नहीं होगा ।

(घ) सभी हाज़िर फॉर्वर्ड संविदाओं को तयशुदा लेनदेन प्रणाली (एनडीएस) पर रिपोर्ट किया जाएगा । गिल्ट खाता धारकों से संबंधित हाज़िर वायदा संविदाओं के संबंध में, जिस अभिरक्षक (अर्थात् सीएसजीएल खाता धारक) के साथ गिल्ट खाते रखे गये हैं वे घटकों (अर्थात् गिल्ट खाता धारक) की ओर से एनडीएस पर लेनदेनों की रिपोर्ट करने के उत्तरदायी होंगे ।

(ङ) सभी हाज़िर वायदा संविदाओं का भारतीय रिज़र्व बैंंक, मुंबई में एसजीएल खाते /सीएसजीएल खाते के माध्यम से निपटान किया जाएगा । ऐसी समस्त हाज़िर वायदा संविदााओं के लिए भारतीय समाशोधन निगम लि. (सीसीआइएल) केंद्रीय काउंटर पार्टी की भूमिका करेगा ।

(च) अभिरक्षकों को आंतरिक नियिंत्रण तथा समवर्ती लेखा परीक्षा की एक प्रभावी प्रणाली स्थापित करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो कि :

i. हाज़िर वायदा लेनदेन केवल गिल्ट खाते में प्रतिभूतियों के स्पष्ट शेष की जमानत पर किये जाते हैं,

ii. ऐसी सभी लेनदेनों को तुरंत एनडीएस पर रिपोर्ट किया जाता है, तथा

iii. उपर्युक्त संदर्भित सभी अन्य शर्तों का अनुपालन किया गया है ।

(छ) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित कंपनियां हाज़िर वायदा लेनदेन केवल सांविधिक चलनिधि अनुपात की निर्धारित अपेक्षाओं से अतिरिक्त प्रतिभूतियों में ही कर सकते हैं ।

(ज) हाज़िर वायदा लेनदेनक े पहले चरण में प्रतिभूतियों के विक्रेता द्वारा संविभाग में वास्तविक रूप से प्रतिभूतियां धारित करने के बिना कोई भी बिक्री लेनदेन पूर्ण नहीं होगा ।

i. हाज़िर वायदा संविदाओं के अंतर्गत खरीदी गयी प्रतिभूतियां, संविदा की अवधि के दौरान बेची नहीं जाएंगी ।

ii. भारत सरकार की दिनांक 1 मार्च 2000 की अधिसूचना सं. 183 (इ) द्वारा, प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम 1956 (1956 का 42) की धारा 16 तथा धारा 29 ए के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक को प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी की गयी 17 अप्रैल 2006 की अधिसूचना सं. एस. ओ. 551 (इ) के अंतर्गत संगत शर्तें होंगी ।

iii. वापसी-खरीद व्यवस्थाओं पर निषेध

क) खज़ाना बिलों सहित सरकारी प्रतिभूतियों के दोहरे हाज़िर-वायदा सौदों (डबल रेडीफार्वर्ड) पर कड़ी रोक लगायी गयी है ।

ख) किन्हीं भी अन्य प्रतिभूतियों, जैसे कि सरकारी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों के बांडों और यू टी आई के यूनिटों आदि के कोई भी हाज़िर-वायदा और दोहरे हाज़िर-वायदा सौदे बैंकों के बीच नहीं किये जाने चाहिए और ये अपने निजी निवेश खातों में भी नहीं किये जाने चाहिए ।

ग) इसी प्रकार, सरकारी प्रतिभूतियों सहित किसी भी प्रतिभूति के कोई भी हाज़िर- वायदा और दोहरे हाज़िर-वायदा सौदे दलालों सहित अन्य ग्राहकों की ओर से नहीं किये जाने चाहिए ।

(वख्) रिपो /रिवर्स रिपो लेनदेनों के लिए एक समान लेखा के लिए दिशा-निर्देश पैराग्राफ 4 में दिए गए हैं ।

1.2.2 एसजीएल खाते के माध्यम से लेनदेन

भुगतान पर सुपुर्दगी (डी वी पी) प्रणाली के अंतर्गत, जिसमें प्रतिभूतियों का अंतरण निधियों के अंतरण के साथ-साथ होता है, सहायक सामान्य खाता बही (एस जी एल) खाते के माध्यम से प्रतिभूतियों की खरीद / बिक्री के लिए बैंकों को निम्नलिखित अनुदेशों का पालन करना चाहिए । अत: बिक्री करने वाले और खरीदने वाले बैंक दोनों के लिए यह जरूरी है कि वे रिज़र्व बैंक के पास चालू खाता रखें । चूंकि चालू खाते में ओवरड्राफ्ट की कोई सुविधा प्रदान नहीं की जायेगी, अत: बैंकों को खरीद लेनदेन करने के लिए चालू खाते में पर्याप्त जमा शेष रखना चाहिए ।

i. सरकारी प्रतिभूतियों के उन सभी लेनदेनों को, जिनके लिए एस जी एल सुविधा उपलब्ध है, केवल एस जी एल खातों के माध्यम से किया जाना चाहिए ।

ii. किसी भी परिस्थिति में, किसी एक बैंक द्वारा किसी दूसरे बैंक के पक्ष में जारी एस जी एल अंतरण फार्म बिक्री करने वाले के एस जी एल खाते में प्रतिभूतियों का पर्याप्त जमाशेष न होने या खरीददार के चालू खाते में निधियों का पर्याप्त जमाशेष न होने के कारण लौटाया नहीं जाना चाहिए ।

iii. खरीदार बैंक द्वारा प्राप्त एस जी एल अंतरण फार्म उनके एस जी एल खातों में तत्काल जमा किये जाने चाहिए अर्थात् रिज़र्व बैंक के पास एस जी एल फार्म जमा करने की तारीख अंतरण फार्म हस्ताक्षरित होने की तारीख के बाद एक कार्य दिन के भीतर होगी । जहां ओ टी सी व्यापार के मामलों में निपटान प्रतिभूति संविदा अधिनियम, 1956 की धारा 2 (i) के अनुसार केवल ‘हाजिॅर’ दाति के आधार पर होना चाहिए, वहीं मान्यताप्राप्त शेयर बाज़ारों में सौदों के मामलों में निपटान उनके नियमों, उप-नियमों और विनियमों के अनुसार सुपुर्दगी अवधि के भीतर होना चाहिए । सभी मामलों में, सहभागियों को ‘बिक्री तारीख’ के अंतर्गत एस जी एल फार्म के भाग ‘ग’ में सौदे / व्यापार / संविदा की तारीख का अवश्य उल्लेख करना चाहिए । जहां इसे पूरा नहीं किया जाता है, वहां भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा एस जी एल फार्म स्वीकार नहीं किया जायेगा ।

iv. बैंक द्वारा धारित एस जी एल फार्म लौटाकर कोई भी बिक्री नहीं की जानी चाहिए ।

v. एस जी एल अंतरण फार्मों पर बैंक के दो प्राधिकृत अधिकारियों के हस्ताक्षर होने चाहिए, जिनके हस्ताक्षर भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित लोक ऋण कार्यालय तथा अन्य बैंकों के रिकार्ड में होने चाहिए ।

vi. एस जी एल अंतरण फार्म भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित मानक फार्मेट में होने चाहिए और अर्ध प्रतिभूति पत्र (सेमी सेक्युरिटी पेपर) पर एकसमान आकार में मुद्रित होने
चाहिए । उन पर क्रम संख्या दी जानी चाहिए और प्रत्येक एस जी एल फार्म का हिसाब रखने की नियंत्रण प्रणाली होनी चाहिए ।

vii. यदि एस जी एल खाते में पर्याप्त शेष न होने के कारण एस जी एल अंतरण फार्म नकारा जाये तो फार्म जारी करने वाला (विक्रेता) बैंक निम्नलिखित दंडात्मक कार्रवाई का भागी होगा :

क) एस जी एल फार्म की राशि (प्रतिभूति के खरीदार द्वारा अदा की गयी क्रय लागत) विक्रेता बैंक के रिज़र्व बैंक में चालू खाते में तुरंत नामे की जायेगी ।

ख) यदि इस प्रकार के नामे से चालू खाते में ओवरड्राफ्ट की स्थिति होगी तो ओवरड्राफ्ट की राशि पर रिज़र्व बैंक द्वारा संबंधित दिन को भारतीय मितीकाटा और वित्त गृह की मांग मुद्रा ऋण दर से तीन प्रतिशत अंक अधिक की दर पर दण्डात्मक ब्याज लगाया जायेगा । तथापि, यदि भारतीय मितीकाटा और वित्त गृह की मांग मुद्रा ऋण दर बैंक की मूल ऋण दर से कम हो, जो ब्याज दर के बारे में रिज़र्व बैंक के लागू निदेश में निर्दिष्ट की गयी है, तो वसूल की जाने वाली दंडात्मक लागू दर संबंधित बैंक की मूल ऋण दर से 3 प्रतिशत अंक अधिक होगी ।

ग) यदि एस जी एल फार्म तीन बार नकारा जायेगा तो तीसरी बार नकारे जाने से छ: महीने की अवधि के लिए उस बैंक को एस जी एल सुविधा का प्रयोग करके व्यापार करने से वंचित कर दिया जायेगा । यदि उक्त सुविधा पुन: प्रारंभ होने के बाद संबंधित बैंक का कोई एस जी एल फार्म पुन: नकारा जायेगा तो वह बैंक रिज़र्व बैंक के सभी लोक ऋण कार्यालयों में एस जी एल सुविधा के प्रयोग से स्थायी रूप से वंचित कर दिया जायेगा ।

घ) एस जी एल सुविधा के प्रयोग से वंचित करने के प्रयोजन के लिए खरीदने वाले बैंक के चालू खाते में अपर्याप्त जमाशेष होने के कारण नकारे जाने को बेचनेवाले बैंक के (बेचने वाले बैंक के विरुद्ध) एस जी एल खाते में अपर्याप्त जमाशेष के कारण नकारे जाने के समकक्ष गिना जायेगा (संबंधित पुन: क्रय करने वाले बैंक के विरुद्ध)। दोनों खातों में (अर्थात् एस जी एल खाते तथा चालू खाते) में नकारे जाने के प्रसंगों को मिलाकर वंचित किये जाने के प्रयोजन के लिए एस जी एल खाते के संबंधित धारक के

विरुद्ध गिना जायेगा (अर्थात् अस्थायी निलंबन के लिए छमाही में तीन तथा एस जी एल सुविधा पुन: शुरू होने के बाद किसी नकारे जाने के लिए स्थायी वंचित । )

1.2.3 बैंक रसीदों का उपयोग (बी आर)

व) बैंक रसीद जारी करते समय बैंकों को निम्नलिखित अनुदेशों का पालन करना चाहिए :

(क) जिन सरकारी प्रतिभूतियों के लिए एस जी एल सुविधा उपलब्ध है उनके लेन-देन के संबंध में बैंक रसीद किसी भी परिस्थिति में जारी नहीं की जानी चाहिए ।

(ख) अन्य प्रतिभूतियों के मामले में भी बैंक रसीद केवल हाजिर लेन-देन के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों में जारी की जाये :

i. स्क्रिप, जारीकर्ता द्वारा अभी जारी की जानी है और बैंक के पास आबंटन-सूचना है ।

ii. प्रतिभूति भौतिक रूप में किसी अन्य केन्द्र पर रखी है और बैंक अल्प समय में उस प्रतिभूति को भौतिक रूप में अंतरित करने और उसकी सुपुर्दगी देने की स्थिति में
है ।

iii. प्रतिभूति अंतरण / ब्याज अदायगी के लिए जमा की गयी है और इस तरह जमा करने का आवश्यक रिकार्ड बैंक के पास है और वह प्रतिभूति की भौतिक सुपुर्दगी अल्पकाल में देने की स्थिति में होगा ।

(ग) बैंक द्वारा धारित (किसी अन्य बैंक की) किसी बैंक रसीद के आधार पर कोई भी बैंक रसीद जारी नहीं की जानी चाहिए और बैंक द्वारा धारित बैंक रसीदों के केवल विनिमय के आधार पर कोई लेनदेन नहीं होना चाहिए ।

(घ) बैंकों के केवल निजी निवेश खातों से संबंधित लेनदेन की ही बैंक रसीदें जारी की जानी चाहिए और बैंकों द्वारा न तो संविभाग प्रबंधन योजना के ग्राहकों के खातों से संबंधित लेनदेनों की और न ही दलालों सहित अन्य ग्राहकों के खातों से संबंधित लेनदेनों की बैंक रसीद जारी की जानी चाहिए ।

(ङ) कोई भी बैंक रसीद 15 दिन से अधिक के लिए बकाया नहीं रहनी चाहिए ।

(च) बैंक रसीदें स्क्रिप की वास्तविक सुपुर्दगी द्वारा परिशोधित की जानी चाहिए, न कि लेनदेन के रद्द / अन्य लेनदेन के हेतु समंजन द्वारा । यदि बैंक रसीद को 15 दिन की वैधता अवधि के भीतर स्क्रिप की सुपुर्दगी द्वारा परिशोधित नहीं किया जाता है तो बैंक रसीद को अस्वीकृत समझा जायेगा तथा जिस बैंक ने बैंक रसीद जारी की है, उसे मामला लो रिज़र्व बैंक को भेजना चाहिए जिसमें निर्दिष्ट अवधि के

भीतर स्क्रिप की सुपुर्दगी नहीं की जा सकने के कारणों को तथा लेनदेन निपटान का प्रस्तावित तरीका स्पष्ट किया जाये ।

(छ) बैंक रसीदें मानक फार्मेट (भारतीय बैंक संघ द्वारा निर्धारित) में अर्ध प्रतिभूति पत्र पर जारी की जानी चाहिए, जिन पर क्रम संख्या हो और बैंक के ऐसे दो प्राधिकृत अधिकारियों के उन पर हस्ताक्षर

होने चाहिए जिनके हस्ताक्षर अन्य बैंकों के पास रिकार्ड में हों । जैसा कि एस जी एल फार्मों के मामले में है, प्रत्येक बैंक रसीद के फार्म का हिसाब रखने की नियंत्रण प्रणाली होनी चाहिए ।

(ज) जारी की गयी बैंक रसीदों और प्राप्त बैंक रसीदों के अलग-अलग रजिस्टर होने चाहिए और इनका प्रणालीबद्ध रूप में पालन करना तथा निर्धारित समय-सीमा में उनका समापन करना सुनिश्चित करने की व्यवस्था होनी चाहिए ।

(झ) बैंकों में अप्रयुक्त बैंक रसीद फार्मों की अभिरक्षा तथा उनके प्रयोग के लिए उपयुक्त प्रणाली भी होनी चाहिए । बैंक के संबंधित कार्यालयों / विभागों में इन नियंत्रणों के विद्यमान होने और परिचालनों की समीक्षा अन्यों के साथ, सांविधिक लेखा-परीक्षकों द्वारा की जानी चाहिए तथा इस आशय का एक प्रमाणपत्र हर वर्ष रिज़र्व बैंक के उस क्षेत्रीय कार्यालय के बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग को भेजा जाना चाहिए जिसके क्षेत्राधिकार में बैंक का प्रधान कार्यालय हो ।

ञ) बैंक रसीदों से संबंधित अनुदेशों के किसी भी उल्लंघन पर दण्ड स्वरूप कार्रवाई की जायेगी, जिसमें प्रारक्षित निधि संबंधी अपेक्षाओं को बढ़ाना, रिज़र्व बैंक से पुनर्वित्त सुविधा को वापस लेना तथा मुद्रा बाज़ार में पहुंच रोकना शामिल हो सकता है । रिज़र्व बैंक बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 के प्रावधानों के अनुसरण में उपयुक्त समझा जानेवाला कोई अन्य दण्ड भी लगा सकता है ।

1.2.4 सरकारी प्रतिभूतियों की खुदरा बिक्री

बैंक निम्नलिखित शर्तों के अधीन बैंकों से इतर ग्राहकों के साथ सरकारी प्रतिभूतियों की खुदरा बिक्री का कारोबार कर सकते हैं :

i. इस प्रकार की खुदरा बिक्री एकमुश्त आधार पर होनी चाहिए तथा बिक्री और खरीद के बीच अवधि का कोई प्रतिबंध नहीं है ।

ii. सरकारी प्रतिभूतियों की खुदरा बिक्री गौण बाज़ार में लेनदेन से उत्पन्न चालू बाज़ार दरों / प्रतिफल वक्र पर आधारित होनी चाहिए ।

1.2.5. आंतरिक नियंत्रण प्रणाली

i) निवेश लेनदेनों के संदर्भ में आंतरिक नियंत्रण प्रणाली के लिए बैंकों को निम्नलिखित दिशा-निर्देश अपनाने चाहिए :

क) (i) व्यापार, (ii) निपटान, निगरानी और नियंत्रण तथा (iii) हिसाब रखने के कार्य स्पष्ट रूप से अलग-अलग होने चाहिए । इसी तरह बैंकों के निजी निवेश खातों, संविभाग प्रबंधन योजना के ग्राहकों के खातों तथा अन्य ग्राहकों (दलालों सहित) के खातों के संबंध में व्यापार और पश्च कार्यालय कार्य भी अलग-अलग होने चाहिए ।

ग्राहकों को संविभाग प्रबंधन सेवा, इस संबंध में निर्दिष्ट दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए प्रदान की जानी चाहिए (पैराग्राफ 1.3.3 में शामिल) । साथ ही, संविभाग प्रबंधन योजना के ग्राहक-खातों की लेखा-परीक्षा बाहरी लेखा-परीक्षकों द्वारा अलग से करायी जानी चाहिए ।

ख) किये गये प्रत्येक लेनदेन के लिए इस तरह का व्यापार करने वाले डेस्क पर सौदे की पर्ची तैयार की जानी चाहिए, जिसमें सौदे के स्वरूप में संबंधित आंकड़े, प्रतिपक्ष का नाम, क्या

यह सीधा सौदा है अथवा दलाल के माध्यम से और यदि दलाल के माध्यम से है तो दलाल का नाम, प्रतिभूति के ब्यौरे, राशि, मूल्य, संविदा की तारीख और समय से संबंधित ब्यौरे दिये जायें । उक्त सौदा पर्चियों पर क्रम संख्या दी जाये और उनका अलग से नियंत्रण किया जाये, ताकि प्रत्येक पर्ची का ठीक से हिसाब रखना सुनिश्चित किया जा सके । एक बार सौदा पूरा हो जाने पर सौदाकर्ता उस सौदा पर्ची को तुरंत पश्च कार्यालय को रिकॉर्डिंग और प्रोसेसिंग के लिए भेज दे । प्रत्येक सौदे के लिए प्रतिपक्ष को पुष्टि जारी करने की प्रणाली अवश्य होनी चाहिए । प्रतिपक्ष से अपेक्षित लिखत पुष्टि समय पर प्राप्त होने की निगरानी पश्च कार्यालय द्वारा की जानी चाहिए । उक्त पुष्टि में संविदा के सभी आवश्यक ब्यौरे शामिल होने चाहिए ।

ग) एनडीएस -ओएम मॉड्यूल से मेल किए गए लेनदेनों के संदर्भ में, चूंकि सभी सौदों में सीसीआइएल केंद्रीय प्रतिपक्ष है, व्यापार के लिए किसी प्रतिपक्ष का एक्सपोज़र केवल सीसीआइएल के प्रति होगा, न कि उस संस्था के प्रति जिसके साथ सौदे करता है। इसके अलावा, एनडीएस - ओएम संबंधी सभी सौदों के ब्यौरों की जब भी जरूरत हो तो वे प्रतिपक्ष को एनडीएस -ओएम के संबंध में रिपोर्टों के रूप में उपलब्ध है। उपर्युक्त को देखते हुए, एनडीएस-ओएम पर मैच किए गए सौदों की प्रतिपक्ष की पुष्टि की जरूरत नहीं है। तथापि, एनडीएस -ओएम पर मैच किए गए सौदों से इतर, सभी सरकारी प्रतिभूतियों के लनदेनों की अब तक की तरह, प्रतिपक्ष के पश्च कार्यालयों द्वारा भौतिक रूप से पुष्टि करना जारी रहेगा।

घ) एक बार सौदा पूरा हो जाने पर जिस दलाल के माध्यम से सौदा किया गया है उसके द्वारा प्रतिपक्ष बैंक के स्थान पर किसी अन्य बैंक को नहीं रखा जाना चाहिए, इसी तरह सौदे में बेची गयी / खरीदी गयी प्रतिभूति के स्थान पर कोई दूसरी प्रतिभूति नहीं होनी चाहिए ।

ङ) पश्च कार्यालय द्वारा पारित वाउचरों के आधार पर लेखा अनुभाग को खाता बहियां स्वतंत्र रूप से लिखनी चाहिए (दलाल / प्रतिपक्ष से प्राप्त वास्तविक संविदा नोट और प्रतिपक्ष द्वारा सौदे की पुष्टि के सत्यापन के बाद वाउचर पारित किये जाने चाहिए) ।

च) संविभाग प्रबंध योजना के ग्राहकों (दलालों सहित) के खाते से संबंधित लेनदेनों के मामले में सभी प्रासंगिक रिकार्डों में यह स्पष्ट संकेत होना चाहिए कि उक्त लेनदेन संविभाग प्रबंधन योजना के ग्राहकों / अन्य ग्राहकों का है और वह बैंक के अपने निवेश खाते का नहीं है और बैंक केवल न्यासी / एजेंसी की हैसियत से कार्य कर रहा है ।

छ)

i. जारी किये गये / प्राप्त एस जी एल अंतरण फार्मों का रिकार्ड रखा जाना चाहिए ।

ii. बैंक की बहियों के अनुसार जमाशेष का समाधान (मिलान) हर तिमाही के लोक ऋण कार्यालयों की बहियों में शेष से किया जाना चाहिए । यदि लेनदेनों की संख्या से आवश्यक हो तो उक्त समाधान और जल्दी-जल्दी किया जाना

चाहिए, जैसे कि मासिक आधार पर । इस समाधान की आवधिक जांच आंतरिक लेखा विभाग द्वारा की जानी चाहिए ।

iii. विक्रेता बैंक द्वारा क्रेता बैंक के पक्ष में जारी किये गये एस जी एल अंतरण फार्म को नकारे जाने की जानकारी क्रेता बैंक द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक के बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय को तुरंत दी जानी चाहिए ।

iv. जारी की गयी / खरीदी गयी बैंक रसीदों का भी रिकार्ड रखा जाना चाहिए ।

v. अन्य बैंकों से प्राप्त बैंक रसीदों और एस जी एल अंतरण फार्मों की प्रामाणिकता के सत्यापन तथा प्राधिकृत हस्ताक्षरकर्ताओं के पुष्टिकरण की प्रणाली अपनायी जानी चाहिए ।

(ज) प्रतिभूतियों के लेनदेन के ब्यौरे, अन्य बैंकों द्वारा जारी किये गये एस जी एल अंतरण फार्मों के नकारे जाने के ब्यौरे और एक महीने से अधिक के लिए बकाया बैंक रसीदों के ब्यौरे और उक्त अवधि में किये गये निवेश लेनदेनों की समीक्षा की जानकारी साप्ताहिक आधार पर उच्च प्रबंध-तंत्र को देने की प्रणाली बैंकों को अपनानी चाहिए ।

(झ) अंतर-बैंक लेनदेनों सहित तीसरी पार्टी के लेनदेनों के लिए बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक के पास अपने खाते पर चेक आहरित नहीं करने चाहिए । इस प्रकार के लेनदेनों के लिए बैंकर चेक / अदायगी आदेश जारी किये जाने चाहिए ।

(ञ) शेयरों में निवेश / शेयरों की जमानत पर अग्रिम की चौकसी एवं निगरानी का कार्य बोर्ड की लेखा-परीक्षा समिति द्वारा किया जायेगा, जो अपनी प्रत्येक बैठक में ऊपर उल्लिखित विभिन्न रूपों में पूंजी बाज़ार में बैंक के कुल ऋण आदि जोखिम, निधि-आधारित और गैर निधि-आधारित दोनों, की समीक्षा करेगी तथा यह सुनिश्चित करेगी कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये गये दिशा-निर्देशों का अनुपालन किया जाये तथा जोखिम प्रबंधन और आंतरिक नियंत्रण की पर्याप्त प्रणालियां स्थापित की जायें;

(ट) लेखा-परीक्षा समिति पूंजी बाजार में समग्र ऋण आदि जोखिम, भारतीय रिज़र्व बैंक एवं बोर्ड के दिशा-निर्देशों के अनुपालन, जोखिम प्रबंधन तथा आंतरिक नियंत्रण प्रणालियों की पर्याप्तता के बारे में बोर्ड को सूचित किया करेगी;

(ठ) हितों में किसी संभावित टकराव को रोकने के लिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि शेयर दलाल (स्टॉक ब्रोकर) बैंकों के बोर्डों में निदेशक के रूप में अथवा किसी अन्य क्षमता में निवेश समिति में अथवा शेयर आदि में निवेश संबंधी निर्णय लेने अथवा शेयरों की जमानत पर अग्रिम प्रदान करने की प्रक्रिया में शामिल न किये जायें ।

(ड) आंतरिक लेखा विभाग को प्रतिभूति के लेनदेन की लेखा-परीक्षा लगातार करते रहना चाहिए और प्रबंध-तंत्र की निर्धारित नीतियों तथा निर्धारित क्रया-विधि के अनुपालन पर निगरानी रखनी चाहिए और कमियों की सूचना बैंक के उच्च प्रबंध-तंत्र को सीधे देनी चाहिए ।

(ढ) बैंकों के प्रबंध-तंत्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि निवेश संविभाग के संचालन के संबंध में अनुदेशों का उचित अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त आंतरिक नियंत्रण और लेखा-परीक्षा क्रियाविधियां हैं । बैंकों को रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये गये विवेकपूर्ण मानदंडों और अन्य दिशा-निर्देशों के अनुपालन पर निगरानी की नियमित प्रणाली स्थापित करनी चाहिए । बैंकों को प्रमुख क्षेत्रों में अनुपालन को अपने लेखा-परीक्षकों द्वारा प्रमाणित कराना चाहिए तथा इस प्रकार का लेखा-परीक्षा प्रमाणपत्र रिज़र्व बैंक के बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग के उस क्षेत्रीय कार्यालय को भेजना चाहिए जिसके अधिकार क्षेत्र में बैंक का प्रधान कार्यालय आता हो ।

1.2.6. दलालों को लगाना

i) निवेश लेनदेन करने के लिए दलालों को लगाने के लिए बैंकों को निम्नलिखित दिशा-निर्देश अपनाने चाहिए :

(क) एक बैंक और दूसरे बैंक के बीच लेनदेन दलालों के खातों के माध्यम से नहीं किये जाने चाहिए। लेनदेन करने के लिए दलाल को सौदे पर देय दलाली, यदि कोई हो (यदि सौदा दलाल की सहायता के द्वारा किया गया हो), का अनुमोदन लेने हेतु वरिष्ठ प्रबंध तंत्र को प्रस्तुत नोट / मेमोरेंडम में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए तथा अदा की गयी दलाली का दलाल के अनुसार अलग हिसाब रखा जाना चाहिए ।

(ख) यदि कोई सौदा दलाल की सहायता से किया जाये तो दलाल की भूमिका सौदे के दोनों पक्षों को साथ लाने तक सीमित रहनी चाहिए ।

(ग) सौदे के संबंध में बातचीत के समय यह आवश्यक नहीं है कि दलाल उस सौदे के प्रतिपक्ष का नाम प्रकट करे, तथापि सौदा पूरा होने पर उसे प्रतिपक्ष का नाम बताना चाहिए और उसके संविदा नोट में प्रतिपक्ष का नाम स्पष्ट बताया जाना चाहिए । बैंक द्वारा यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि दलाल के नोट में सौदे का सही समय दिया जाता है। उनका पश्च कार्यालय यह सुनिश्चित करे कि दलाल के नोट तथा डील टिकट में सौदे का समय समान है। बैंक को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके समवर्ती लेखा-परीक्षक इस पहलू की लेखा-परीक्षा करते हैं।

(घ) प्रतिपक्ष का नाम प्रकट करने वाले संविदा नोट के आधार पर बैंकों के बीच सौदे का निपटान अर्थात् निधि का निपटान और प्रतिभूति की सुपुर्दगी सीधे बैंकों के बीच होनी चाहिए और इस प्रक्रिया में दलाल की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए ।

(ङ) बैंकों को अपने उच्च प्रबंध-तंत्र के अनुमोदन से अनुमोदित दलालों का पैनल तैयार करना चाहिए, जिस पर वार्षिक आधार पर अथवा आवश्यक हो तो और शीघ्र पुनर्विचार किया जाना चाहिए । दलालों का पैनल बनाने के लिए स्पष्ट मानदंड

निर्धारित होना चाहिए, जिसमें उनकी साख-पात्रता, बाजार में प्रतिष्ठा आदि का सत्यापन शामिल हो । जिन दलालों के माध्यम से सौदे किये जाये उनके दलालवार ब्यौरों और अदा की गयी दलाली का रिकार्ड रखा जाना चाहिए ।

(च) उक्त व्यवसाय का असंगत भाग केवल एक या थोड़े से ही दलालों के माध्यम से नहीं किया जाना चाहिए । प्रत्येक अनुमोदित दलाल के लिए समग्र संविदा सीमाएं बैंकों को

निश्चित करनी चाहिए । किसी बैंक द्वारा एक वर्ष के दौरान किये गये कुल लेनदेनों (क्रय और विक्रय दोनों) के 5 प्रतिशत की सीमा को प्रत्येक अनुमोदित दलाल के लिए समग्र उच्चतम संविदा सीमा माना जाना चाहिए । इस सीमा में बैंक द्वारा स्वयं आरंभ किया गया व्यवसाय तथा किसी दलाल द्वारा बैंक की प्रस्तुत किया गया / लाया गया व्यवसाय शामिल होगा । बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एक वर्ष के दौरान अलग-अलग दलालों के माध्यम से किये गये लेनदेन सामान्यत: इस सीमा से अधिक न हों । तथापि, किसी कारणवश किसी दलाल के लिए समग्र सीमा बढ़ानी आवश्यक हो जाये तो उक्त लेनदेन करने के लिए अधिकृत प्राधिकारी द्वारा लिखित रूप में उसके विशेष कारण अभिलिखित किये जाने चाहिए । इसके साथ ही इस कार्य के बाद बोर्ड को इसकी सूचना दी जानी चाहिए । तथापि, प्राथमिक व्यापारियों के द्वारा किये गये बैंकों के लेनदेनों पर 5 प्रतिशत का मानदण्ड लागू नहीं होगा ।

(छ) इन समवर्ती लेखा-परीक्षकों को, जो कोषागार परिचालनों (ट्रेज़री आपरेशन्स) की लेखा-परीक्षा करते हैं, दलालों के माध्यम से किये गये कारोबार की जांच करनी चाहिए और बैंक के मुख्य कार्यपालक अधिकारी को प्रस्तुत की जाने वाली अपनी मासिक रिपोर्ट में उसे शामिल करना चाहिए । इसके अतिरिक्त उक्त सीमा से अधिक किसी एक दलाल या दलालों के माध्यम से किये गये कारोबार को, उसके कारणों सहित निदेशक मंडल /स्थानीय परामर्शी बोर्ड को प्रस्तुत की जाने वाली अर्ध वार्षिक समीक्षा में शामिल करनी चाहिए । ये अनुदेश बैंकों की सहायक कंपनियों और म्युचुअल फंडों पर भी लागू होते हैं ।

स्पष्टीकरण : उक्त अनुदेशों के संबंध में कतिपय स्पष्टीकरण अनुबंध घ्घ् में दिये गये हैं।

ii. अंतर-बैंक प्रतिभूतियों के लेनदेन बैंकों के बीच सीधे ही होने चाहिए और ऐसे लेनदेनों में किसी बैंक को किसी दलाल की सेवाएं नहीं लेनी चाहिए ।

अपवाद :

नोट (i)

जहा लेनदेन पारदर्शी हों तो बैंक, प्रतिभूति लेनेदेन आपस में या गैर बैंक ग्राहकों के साथ राष्ट्रीय शेयर बाजार (एन एस ई), ओ टी सी एक्सचेंज ऑफ इंडिया (ओ टी सी ई आइ) और स्टॉक एक्सचेंज, मुंबई (बी एस ई) के सदस्यों के माध्यम से कर सकते हैं । गैर बैंक ग्राहकों के साथ लेनदेन, यदि ऐसे लेनदेन एन एस ई, ओ टी सी ई आइ या बी एस ई पर नहीं किये जा रहे हों तो बैंकों द्वारा, दलालों की सेवाएं लिये बिना ही, स्वयं किये जाने चाहिए ।

नोट (ii)

यद्यपि प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 में ‘प्रतिभूतियां’ शब्द का अर्थ, कंपनी निकायों के शेयर, डिबेंचर, सरकारी प्रतिभूतियां और राइट्स या प्रतिभूतियों में हित है, परंतु ‘प्रतिभूतियां’ शब्द में कंपनी निकायों के शेयर शामिल नहीं होंगे । उपर्युक्त नोट (i) के प्रयोजनार्थ इंडियन ट्रस्ट अधिनियम,

1882 के अंतर्गत पंजीकृत भविष्य / पेंशन निधियां और न्यास ‘गैर बैंक ग्राहक’ पद की परिधि से बाहर रहेंगे ।

1.2.7 निवेश लेनदेनों की लेखा-परीक्षण, समीक्षा और रिपोर्ट देना

बैंकों को निवेश लेनदेनों की लेखा-परीक्षा, समीक्षा और सूचना देने के संबंध में निम्नलिखित अनुदेशों का पालन करना चाहिए :

क) बैंक अपने निवेश संविभाग की छमाही समीक्षा (30 सितंबर और 31 मार्च की) करें, जिसमें निवेश संविभाग के अन्य परिचालनगत पहलुओं के अलावा निवेश नीति में किये गये संशोधन स्पष्ट रूप से बताये जायें और बतायी गयी आंतरिक निवेश नीति एवं क्रियाविधि तथा भारतीय रिजॅर्व बैंक के दिशा-निर्देशों का दृढ़ता से पालन करने का प्रमाणपत्र दिया जाये । यह समीक्षा अपने संबंधित निदेशक मंडल को एक महीने में अर्थात् अप्रैल के अंत और अक्तूबर के अंत में प्रस्तुत की जाये ।

ख) बैंक के निदेशक मंडल को प्रस्तुत की गयी समीक्षा रिपोर्ट की एक प्रति भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय) को क्रमश: 15 नवंबर और 15 मई तक भेजी जाये ।

ग) दुरुपयोग की संभावना को ध्यान में रखते हुए, खज़ाना लेनदेनों की समवर्ती लेखा-परीक्षा आंतरिक लेखा-परीक्षकों द्वारा अलग से की जानी चाहिए और उनकी लेखा-परीक्षा के परिणाम प्रत्येक महीने एक बार बैंक के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक को प्रस्तुत किये जाने चाहिए । बैंकों को उपर्युक्त समवर्ती लेखा परीक्षा रिपोर्टों की प्रतिलिपियां भारतीय रिजॅर्व बैंक को प्रेषित करना अपेक्षित नहीं है । तथापि, इन रिपोर्टों में पायी गयी प्रमुख अनियमितताओं तथा उनके अनुपालन की स्थिति को निवेश संविभाग की अर्ध-वार्षिक समीक्षा में सम्मिलित किया जाए ।

1.2.8. सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर निवेश

i) बैंकों ने गैर-श्रेणीबद्ध बांडों में निजी तौर पर काफी निवेश किया है और कुछ मामलों में तो उन कंपनियों के बांडों में निवेश किया है, जो कंपनियां उनकी ग्राहक भी नहीं हैं । निजी तौर पर निवेश के ऐसे प्रस्तावों का मूल्यांकन करते समय हो सकता है बैंक मानकीकृत और अधिदेशात्मक प्रकटीकरण, जिनमें साख श्रेणीबद्धता शामिल है, के न होने की वजह से निवेश के बारे में निर्णय लेने के लिए उचित अध्यवसाय करने की स्थिति में न हों । इस प्रकार निजी तौर पर किये गये निर्गमों के मूल्यांकन में कमियां हो सकती हैं ।

प्रस्ताव दस्तावेजों में प्रकटीकरण अपेक्षाएं

ii) साथ ही, प्रस्ताव के दस्तावेजों में पर्याप्त प्रकटीकरण न होने से उत्पन्न जोखिम का निर्धारण होना चाहिए और बैंक अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से प्रकट करने के संबंध में न्यूनतम मानक निर्धारित करें । इस संबंध में, हम यह उल्लेख करना चाहते हैं कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने एक तकनीकी दल का गठन किया था, जिसमें कुछ बैंकों के खज़ाना विभाग के अधिकारी और कंपनी वित्त के विशेषज्ञ शामिल थे। इस दल का उद्देश्य, अन्य बातों के साथ-साथ, बैंकों द्वारा सामान्यत: सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर निवेशों को और विशेष रूप से निजी तौर के निर्गमों में निवेश के लिए अपनायी जानी वाली पद्धतियों का अध्ययन करना तथा इन निवेशों को विनियमित करने के लिए उपायों का सुझाव देना था । उक्त दल ने एक फॉर्मेट तैयार किया है, जिसमें निजी निर्गमों के लिए प्रकट करने के संबंध में न्यूनतम अपेक्षाएं तथा दस्तावेजों और प्रभार निर्मित करने के बारे में कतिपय शर्तें निहित हैं । यह बैंकों के लिए ‘सर्वोत्तम प्रथा के मॉडल’ के रूप में काम आ सकता है । उक्त दल की सिफारिशों के ब्योरे अनुबंध घ्घ्घ् में दे रहे हैं और बैंक तकनीकी दल की सिफारिशों के अनुसार प्रकट करने से संबंधित अपेक्षाओं का उपयुक्त फॉर्मेट अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से तत्काल लागू करें ।

आंतरिक मूल्यांकन

iii) यह सुनिश्चित करने की दृष्टि से कि गैर-श्रेणीबद्ध निर्गमों में निजी तौर पर निवेश, उधारकर्ता ग्राहक और उधार न लेने वाले ग्राहक दोनों के निवेश से प्रणालीगत चिंता की कोई बात नहीं है, यह आवश्यक है कि बैंक यह सुनिश्चित करें कि उनकी निवेश नीतियां निम्नलिखित पहलुओं को ध्यान में रखते हुए निदेशक मंडल के अनुमोदन से बनायी गयी हैं :

(क) बैंक का निदेशक मंडल बांडों और डिबेंचरों में निवेशों के संबंध में नीति और विवेकपूर्ण सीमाएं निर्धारित करे, जिसमें निजी तौर पर निवेशों के लिए उच्चतम सीमा, सरकारी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों के बांडों, कंपनी बांडों, गारंटीकृत बांडों, निर्गमकर्ता की उच्चतम सीमा आदि के लिए उप सीमाएं तय हों ।

(ख) निवेश के प्रस्तावों का ऋण जोखिम विश्लेषण उसी तरह किया जाये, जिस तरह किसी ऋण प्रस्ताव का किया जाता है । बैंकों को अपना आंतरिक ऋण विश्लेषण और श्रेणी-निर्धारण श्रेणीबद्ध निर्गमों के संबंध में भी करना चाहिए और केवल बाहरी एजेंसियों के श्रेणी-निर्धारण पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहिए । उधार न लेने वाले ग्राहकों द्वारा जारी किये गये लिखतों के संबंध में मूल्यांकन और भी अधिक कड़ाई से किया जाना चाहिए ।

(ग) उनकी आंतरिक श्रेणी निर्धारण प्रणाली को मजबूत करना चाहिए । इन प्रणालियों में निर्गमकर्ताओं / निर्गमों के ‘श्रेणी बदलने’ पर निरंतर नज़र रखी जाती है, यह सुनिश्चित करने की दृष्टि से निर्गमकर्ता की वित्तीय स्थिति पर नियमित (तिमाही या अर्ध-वार्षिक) नज़र रखने की प्रणाली का निर्माण शामिल हो ।

(घ) यह विवेकपूर्ण होगा कि बैंक प्रवेश स्तर पर ही न्यूनतम श्रेणी / गुणवत्ता मानक और उद्योगवार, अवधि के अनुसार, निर्गमकर्तावार आदि सीमाएं निर्धारित करें, ताकि संकेंद्रण और चलनिधि की कमी के जोखिम का प्रतिकूल प्रभाव कम से कम हो ।

(ङ) इन निवेशों के संबंध में जोखिम की जानकारी प्राप्त करने और उसका विश्लेषण करने और समय पर निवारक कार्रवाई करने के लिए बैंकों को उचित जोखिम प्रबंध प्रणाली लागू करनी चाहिए ।

(वख्) कुछ बैंकों /वित्तीय संस्थाओं ने कंपनियों के बांडों, डिबेंचरों आदि में निवेश करते समय रिज़र्व बैंक द्वारा परिचालित /प्रकाशित चूककर्ताओं की सूची पर उचित ध्यान नहीं दिया है । अत: बांडों, डिबेंचरों, शेयरों आदि में निवेश करने का निर्णय लेते समय बैंक उचित सावधानी बरतें और यह

सुनिश्चित करें कि निवेश बैंकों /वित्तीय संस्थाओं की देनदारी में चूक करने वाली कंपनी / इकाई में नहीं किया गया है । इसके लिए वे चूककर्ताओं की सूची अवश्य देख लें । कुछ कंपनियों के बैंक खाते अपने उद्योग विशेष में, जैसे वस्त्र उद्योग, चल रही मंदी के चलते प्रतिकूल वित्तीय स्थिति से गुजरने के कारण अवमानक के वर्ग में आ सकते हैं । रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों के अधीन पुनर्गठन सुविधा के बावजूद यह रिपोर्ट मिली है कि बैंक आगे और वित्त प्रदान करने में हिचकिचाते हैं, जबकि मामले की गुणवत्ता को देखते हुए वित्त प्रदान करना आवश्यक था । बैंक ऐसी कंपनियों में निवेश के प्रस्तावों को अस्वीकार न करें जिनके निदेशक (कों) के नाम रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर परिचालित चूककर्ता कंपनियों की सूची में हों, विशेष रूप से उन ऋण खातों के संबंध में निवेश के प्रस्तावों को अस्वीकार न करें जिन्हें रिज़र्व बैंक के विद्यमान दिशा-निर्देशों के अधीन पुनर्गठित किया गया है, बशर्ते कि प्रस्ताव व्यवहार्य हो और ऐसा ऋण प्रदान करने के लिए वह सभी शर्तें पूरी करता हो ।

गैर -सांविधिक चलनिधि अनुपात प्रतिभूतियों पर विवेकपूर्ण मानदंड

क्षेत्र- विस्तार

1.2.9 इन दिशा-निर्देशों के अंतर्गत कॉर्पोरेट, बैंक वित्तीय संस्थाओं तथा राज्य तथा केंद्र सरकार प्रायोजित संस्थाओं, एसपीवी आदि द्वारा जारी की गयी गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपातिक प्रतिभूतियपां तथा पूंजीगत अभिलाभ बांड, प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र स्तर के लिए पात्र बांड, शामिल होंगे । यह दिशा-निर्देश प्राथमिक बाज़ार तथा अनुषंगी बाज़ार दोनों में किये गये निवेशों पर लागू होंगे ।

1.2.10 दिनांक 12 नवंबर 2003 और 10 दिसंबार 2003 के परिपत्रों के जरिए गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी प्रतिभूतियों से संबद्ध सूचीकरण तथा रेटिंग पर जारी दिशा-निर्देश बैंकों के निवेशों की निम्नलिखित श्रेणियों पर लागू नहीं होंगे :

(क) केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा सीधे जारी की गयी प्रतिभूतियां, जिनकी एसएलआर प्रयोजनों से गणना नहीं होती है ।

(ख) ईक्विटी शेयर

(ग) ईक्विटी उन्मुख म्युच्युअल फंड योजनाओं अर्थात् उन योजनाओं जहां मूल निधि के किसी भी हिस्से का ईक्विटी में निवेश किया जा सकता है, के यूनिट

(घ) उद्यम पूंजी निधियां

(ड.) वाणिज्यिक पत्र

(च) जमा प्रमाण पत्र

1.2.11 दिशा-निर्देशों का कार्यान्वयन करते समय दृष्टिकोण में एकरूपता सुनिश्चित करने की दृष्टि से इन दिशा-निर्देशों में उपयोग में लाये गये कुछ शब्दों को अनुबंध घ्ङ में परिभाषित किया गया है ।

विनियामक आवश्यकताएं

1.2.12 बैंकों को वाणिज्यिक पत्र तथा भारतीय रिज़र्व बैंक दिशा-निर्देशों के अंतर्गत आने वाले जमा प्रमाणापत्रों के अलावा एक वर्ष से कम अवधि की मूल परिपक्वता वाली गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर प्रतिभूतियों में निवेश नहीं करना चाहिए ।

1.2.13 सांविधिक अनुपात से इतर चलनिधि प्रतिभूतियों में निवेशों के संबंध में बैंकों को सामान्य सतर्कता कार्रवाई करनी चाहिए । भारतीय रिज़र्व बेंक के विद्यमान दिशा-निर्देश कतिपय प्रयोजनों के लिए ऋण सुविधा प्रदान करने के लिए बैंकों को प्रतिबंधित करते हैं । बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर प्रतिभूतियों के माध्यम से जमा की गयी निधियों द्वारा इन कार्यकलापों का वित्तपोषण नहीं होता है ।

सूचीबद्धता तथा श्रेणी निर्धारण आवश्यकताएं

1.2.14 बैंकों को ऐसी सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर प्रतिभूतियों में निवेश नहीं करना चाहिए जिनकी श्रेणी निर्धारित नहीं की गयी है ।

1.2.15 भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ने 30 सितंबर 2003 के अपने परिपत्र में संस्थागत बिक्री के आधार पर तथा स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्धा ऋण प्रतिभूतियों का निर्गम करने के लिए सूचीबद्ध कंपनियों को जिन अपेक्षाओं का अनुपालन करना है उन्हें निर्धारित किया है । इस परिपत्र के के अनुसार, किसी भी सूचीबद्ध कंपनी को जो संस्थागत बिक्री के आधार पर तथा स्टाक एक्सजेंच में सूचीबद्ध ऋण प्रतिभूतियों का निर्गम कर रही है, कंपनी अधिनियम 1956, की अनुसूची घ्घ्, सेबी (प्रकटीकरण तथा निवेशक सुरक्षा) दिशा-निर्देश 2000 तथा एक्सचेंजेस के साथ सूचीबद्धता समझौता में निर्धारित तरीके से संपूर्ण प्रकटीकरण (प्रारंभिक तथा निरंतर करने होंगे । इसके साथ ही, ऋण प्रतिभूतियों पर क्रेडिट, सेबी के साथ रजिस्टर्ड निर्धारण एजेन्सी से ऐसा क्रेडिट रेटिंग होना चाहिए जो कि निवेश ग्रेड से कम नहीं है ।

16. तदनुसार, सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर प्रतिभूतियों में नये निवेश करते समय, बैंकों को सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे निवेश केवल उन कंपनियिों की सूचीबद्ध ऋण प्रतिभूतियों में किये जाते हैं जो कि नीचे दिये गये पैराग्राफ 1.2.17 तथा 1.2.18 में दर्शायी गयी सीमा को छोड़कर, 30 सितंबर 2003 के सेबी परिपत्र की अपेक्षाओं का अनुपालन करती हैं ।

विवेककपूर्ण सीमाओं का निर्धारण

1.2.17 बैंकों का सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर गैर-सूचीबद्ध प्रतिभूतियों में निवेश, पिछले वर्ष 31 मार्च की स्थिति से सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर प्रतिभूतियों में उनके कुल निवेश से 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए । बैंक ऊपर निर्दिष्ट सीमाओं मक जिन गैर-सूचीबद्ध सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर प्रतिभूतियों में निवेश कर सकते हैं, उन्हें सेबी द्वारा सूचीबद्ध कंपनियों के लिए निर्धारित प्रकटीकरण अपेक्षाओं का अनुपालन करना होगा ।

1.2.18 बैंकों का गैर-सूचीबद्ध सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर प्रतिभूतियों में निवेश 10 प्रतिशत की सीमा से अतिरिक्त 10 प्रतिशत से अधिक हो सकता है, बशर्ते यह निवेश मूलभूत सुविधागत परियोजनाओं के लिए जारी किये गये प्रतिभूतिकरण पत्रों तथा वित्तीय आस्तियों के प्रतिभूतिकरण तथा

पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम 2002 के अंतर्गत स्थापित तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ रजिस्टर्ड प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा जारी किये गये बांड /डिबेंचरों में किये गये निवेश के कारण है । अन्य शब्दों में इस पैराग्राफ में निदिष्ट प्रतिभूतियो ंमें अनन्य निवेश, सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर निवेश के 20 प्रतिशत की अनुमत अधिकतम सीमा तक हो सकता
है ।

1.2.19 उपर्युक्त दिशा-निर्देशों में निर्धारित विवेकपूर्ण सीमाओं के अनुपालन के निर्धारण हेतु निम्नलिखित में निवेश की गणना "असूचित गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी प्रतिभूतियों" में नहीं की जाएगी :

(i) भारतीय रिज़र्व बैंक में पंजीकृत प्रतिभूतिकरण कंपनियों/पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा जारी प्रतिभूति रसीदें ।

(ii) न्यूनतम निवेश ग्रेड पर अथवा उससे ऊपर निर्धारित दर की आस्ति समर्थित प्रतिभूतियों तथा बंधक समर्थित प्रतिभूतियों में निवेश । तथापि, बौंकिंग पर्यवेक्षण विभाग द्वारा अलग से भेजे गये प्रोफार्मा के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की जानेवाली मासिक रिपोर्टों के आधार पर विशिष्ट बैंक आधार पर आस्ति समर्थित प्रतिभूतियों में निवेशों पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी ।

1.2.20 पिछले वर्ष के 31 मार्च को बैंक की कुल गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी प्रतिभूतियों के 10 प्रतिशत की विवेकपूर्ण सीमा के अनुपालन के निर्धारण हेतु ग्रामीण मूलभूत सुविधा विकास निधि (आरआइडीएफ)/भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) जमा में निवेश को गणक के भाग के रूप में गणना नहीं की जाएगी ।

12.21 1 जनवरी 2005 से केवल ऐसी म्युच्युअल फंड योजनाओं जिनका निवेश असूचीबद्ध प्रतिभूतियों में निवेश फंड की मूल निधि के 10 प्रतिशत से कम हैं, के यूनिटों में किया गया निवेश ही उपर्युक्त दिशा-निर्देशों में निर्धारित विवेकपूर्ण सीमाओं के अनुपालन के प्रयोजन से सूचीबद्ध प्रतिभूतियों के समान समझा जाएगा ।

12.22 दिशानिर्देशों में निर्धारित विवेकपूर्ण सीमाओं के प्रयोजन से संकेतक अर्थात् ‘सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर निवेश में तुलनपत्र से संलग्न अनुसूचि 8 में निम्नलिखित 4 संवर्ग अर्थात् ‘शेयर’, ‘बांड तथा डिबेंचर’, ‘सहायक /उद्यम’ तथा अन्य के अंतर्गत किया गया निवेश शामिल होगा ।

12.23 जिन बैंकों के असूचीबद्ध गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी प्रतिभूतियों में निवेश पिछले वर्ष के 31 मार्च से अपनी कुल गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी प्रतिभूतियों के 10 प्रतिशत की विवेकपूर्ण सीमा के भीतर है वे ऐसी प्रतिभूतियों में विवेकपूर्ण सीमाओं के भीतर नया निवेश कर सकते हैं ।

बोर्ड की भूमिका

12.24 बैंकों को सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी निदेशक बोर्ड द्वारा विधिवत् रूप से अनुमोदित निवेश नीतियां सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर प्रतिभूतियों में निवेश पर इन दिशानिर्देशों में निर्दिष्ट समस्त संबंधित मामलों को ध्यान में लेते हुए तैयार की गयी हैं । बैंकों को सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर निवेश के संबंध में जोाखिम का विश्लेषण करने तथा उस पर रोक लगाने और समय पर सुधारात्मक कार्रवाई करने के लिए उचित जोखिम प्रबंधन प्रणाली स्थापित करनी चाहिए । बैंकों को यह सुनिश्चित करने के लिए उचित प्रणालियां स्थापित करना चाहिए कि निजी तौर पर आंबटित लिखतों में निवेश, संबंधित बैंक को निवेश नीति के अंतर्गत निर्धारित प्रणालियों तथा क्रियाविधियों के अनुसार किया है ।

12.25 बैंकों के बोर्ड को सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर निवेश के निम्नलिखित पहलूओं की कम-से-कम तिमाही अंतरालों पर समीक्षा करनी चाहिए :

क) रिपोर्टिंग अवधि के दौरान कुल कारोबार (निवेश तथा विनिवेश)।

ख) सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर निवेश के लिए बोर्ड द्वारा निर्धारित विवेकपूर्ण

सीमाओं का अनुपालन

ग) सांविधिक अनुपात से इतर प्रतिभूतियों पर रिजॅर्व बैंक द्वारा जारी विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों

का अनुपालन

घ) बैंक की बहियों में निर्गमकर्ताओं / निर्गमों का रेटिंग अंतरण तथा उसके परिणामस्वरूप

संविभाग की गुणवत्ता में होने वाला ह्रास ।

ङ) सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर श्रेणी में अनर्जक निवेशों की सीमा ।

प्रकटीकरण

1.2.26 ऋण के निजी तौर पर आबंटन पर केंद्रीय डाटाबेस निर्माण करने में सहायता हो इस दृष्टि से निवेशकर्ता बैंकों के लिए आवश्यक है कि वे सभी प्रस्ताव दस्तावेजों की प्रतिलिपियों को क्रेडिट इंफॉर्मेशन ब्यूरो (भारत) लि. (सिबिल) में फाइल करते हैं । साथ ही, निवेशकर्ता बैंक को चाहिए कि किसी भी निजी तौर पर आबंटित ऋण के मामले में ब्याज /किस्त से संबंधित किसी भी चूक को भी प्रस्ताव दस्तावेज की प्रतिलिपि के साथ सिबिल में रिपोर्ट करते हैं ।

1.2.27 बैंक सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर निवेशों तथा सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर अनर्जक निवेशों की निर्गमकर्ता संरचना के ब्योरे अनुबंध ङ में दर्शाए गए अनुसार तुलनपत्र की ‘लेखा पर टिप्पणियों’ में प्रकट करें ।

ऋण प्रतिभूतियों में खरीद-बिक्री तथा निपटान

1.2.28 सेबी के अनुसार हाजिर सौदे को छोड़कर सूचीबद्ध ऋण प्रतिभूति में समस्त खरीद-बिक्री केवल स्टॉक एक्स्चेंज की खरीद-बिक्री के माध्यम से निष्पादित होगी । सेबी के दिशानिर्देशों का अनुपालन करने के अलावा, बैंकों यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारतीय रिजॅर्व बैंक द्वारा अधिसूचित तारीख से

सूचीबद्ध तथा असूचीबद्ध ऋण प्रतिभूतियों में सभी हाजिर सौदों को तयशुदा लेनदेन प्रणाली (एनडीएस) पर रिपोर्ट किया जाता है और भारतीय समाशोधन निगम लि. (सीसील) के माध्यम से उनका निपटान होता है ।

शेयरों, परिवर्तनीय बांडों और डिबेंचरों आदि में सीधा निवेश

1.2.29 पूंजी बाजॉरों में बैंक का कुल निवेश जिसमें किसी बैंक का ईक्विटी शेयरों /परिवर्तनीय बांड तथा डिबेंचरों, ईक्विटी उन्मुख म्युच्युअल फंड के यूनिटों में सीधा निवेश; ईक्विटी शेयरों (आई पी ओ/ईएस ओ पी) सहित, बांड तथा डिबेंचरों, ईक्विटी उन्मुख म्युच्युअल फंड के यूनिटों आदि में निवेश के लिए व्यक्तियों को शेयरों की जमानत पर अग्रिम तथा स्टाक ब्रोकरों की गैर जमानती अग्रिम तथा स्टाक ब्रोकर तथा मार्केट मेकर्स की ओर से जारी की गयी गारंटियां शामिल है; पिछले वर्ष के 31 मार्च की स्थिति के अनुसार बैंकों के कुल बकाया अग्रिमों (वाणिज्य पेपर सहित) के 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए । इस समग्र सीमा के भीतर शेयरों परिवर्तनीय बांड तथा डिबेंचरों तथा ईक्विटी उन्मुख म्युच्युअल फंड के यूनिटों में बैंक का निवेश अपनी मालियत के 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए । जिनके भाव अस्थिर होते हैं ऐसे ईक्विटी शेयरों आदि में निवेश करते समय, बैंकों को निम्नलिखित दिशानिर्देशों का ध्यान रखना चाहिए :

क) जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, शेयरों आदि में निवेश के लिए उच्चतम सीमा (अर्थात् मालियत (नेट वर्थ) का 20 प्रतिशत) अधिकतम अनुमत सीमा है और बैंक का निदेशक मंडल समग्र जोखिम और कंपनी कार्य-नीति को ध्यान में रखते हुए अपने बैंक के लिए इससे कम सीमा निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र है ।

ख) बैंक अपने निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित निवेश नीति के अनुसार बैंक में ही उपलब्ध निपुणता को ध्यान में रखते हुए शेयर में सीधे निवेश कर सकते हैं, जो जोखिम प्रबंधन और नीचे बतायी गयी आंतरिक नियंत्रण प्रणाली के अनुपालन की शर्त पर होगा ।

ग) बैंक भारतीय यूनिट ट्रस्ट के यूनिटों तथा सेबी द्वारा अनुमोदित विशाखीकृत अन्य पारस्परिक निधियों के यूनिटों में भी निवेश कर सकते हैं । ये निवेश अच्छे रिकार्ड वाली पारस्परिक निधियों में और निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित निवेश नीति के अनुसार होने चाहिए । इस प्रकार के निवेश यू टी आइ :पारस्परिक निधियों की विनिर्दिष्ट योजनाओं में होने चाहिए और उनकी ओर से पूंजी बाजॉर में निवेश के लिए यू टी आइ /पारस्परिक निधियों के पास निधियां नहीं रखी जानी चाहिए ।

घ) प्रारंभिक निर्गमों के संबंध में बुक बिल्ंडिग के रास्ते बैंकों द्वारा की गयी हामीदारियां भी उपर्युक्त समग्र उच्चतम सीमा के अंतर्गत होनी चाहिए ।

ङ ) कंपनियों के ईक्विटी शेयरों और किसी एकल ऋणकर्ता और ऋणकर्ताओं के समूह के लिए उच्चतम सीमाके बारे में विवेकपूर्ण मानदंड निर्धारित करने के प्रयोजन से परिवर्तनीय बांडों तथा डिबेंचरों में निवेश को अब तक की तरह हिसाब में लिया जाना चाहिए ।

1.3 सामान्य

1.3.1 सरकारी प्रतिभूतियों आदि के धारण का समाधान

बैंकों को प्रत्येक लेखा वर्ष के अंत में बैंक के निवेशों (उसके अपने निवेश खाते में तथा निवेश संविभाग प्रबंधन योजना के अधीन धारित) के समाधान के बैंक के लेखा-परीक्षकों द्वारा विधिवत् प्रमाणित विवरण रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करना चाहिए । साथ ही, यह विवरण लेखा वर्ष समाप्त होने के एक महीने के भीतर रिज़र्व बैंक के पास पहुंचना चाहिए । ऊपर उल्लिखित समाधान की अपेक्षा को बैंकों द्वारा भविष्य में बैंक के बाह्य लेखा-परीक्षकों को जारी किये जाने वाले नियुक्ति पत्रों में शामिल किया जाना चाहिए । उक्त विवरण का फार्मेट तथा उसे समेकित करने के लिए अनुदेश अनुबंध ङघ् में दिये गये हैं ।

1.3.2 प्रतिभूतियों के लेनदेन - अभिरक्षक के कार्य

अपनी वणिक बैंकिंग सहायक संस्थाओं की ओर से अभिरक्षक के कार्य करते समय, इन कार्यों के संबंध में वही क्रियाविधियां और सुरक्षा उपाय अपनाये जाने चाहिए जो अन्य घटकों पर लागू हों । तदनुसार, जिस तरीके से लेनदेन किये गये उसके बारे में बैंकों की सहायक संस्थाओं के पास पूरे ब्यौरे उपलब्ध होने
चाहिए । बैंकों को इस संबंध में उस विभाग / कार्यालय को उपयुक्त अनुदेश भी जारी करने चाहिए जो उनकी सहायक संस्थाओं की ओर से अभिरक्षक के कार्य कर रहा है ।

1.3.3 ग्राहकों की ओर से निवेश संविभाग प्रबंधन

i) निवेश संविभाग प्रबंधन योजना (पी एम एस) और इसी तरह की योजनाएं संचालित करने लिए बैंकों में निहित सामान्य शक्तियों को वापस ले लिया गया है । अत: किसी भी बैंक को भविष्य में भारतीय रिज़र्व बैंक का पूर्व अनुमोदन लिये बिना निवेश संविभाग प्रबंधन योजना या इसी प्रकार की किसी योजना को शुरू या पुन: शुरू नहीं करना चाहिए ।

ii) रिज़र्व बैंक के विशिष्ट पूर्व अनुमोदन से निवेश संविभाग प्रबंधन योजना या इसी प्रकार की योजना चलाने वाले बैंकों को निम्नलिखित शर्तों का कड़ाई से पालन करना चाहिए :

(क) निवेश संविभाग प्रबंधन योजना पूरी तरह से ग्राहक के जोखिम पर होनी चाहिए, जिसमें पहले से नियत किसी प्रतिलाभ की कोई गारंटी, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नहीं होनी चाहिए ।

(ख) निवेश संविभाग प्रबंधन के लिए निधियां एक वर्ष से कम अवधि के लिए स्वीकार नहीं की जानी चाहिए ।

(ग) निवेश संविभाग की निधियों का विनियोजन मांग / नोटिस मुद्रा, अंतर बैंक मीयादी जमाराशि और बिल पुनर्भुनाई बाजारों में ऋण देने और कंपनी निकायों को ऋण देने / में रखने के लिए नहीं करना चाहिए ।

(घ) बैंकों को प्रबंधन के लिए स्वीकार की गयी निधियों और उनके लिए किये गये निवेशों का ग्राहकवार खाता / रिकार्ड रखना चाहिए और संविभाग के ग्राहकों को खाते का विवरण पाने का अधिकार होना चाहिए ।

(ङ) बैंकों के अपने निवेश और निवेश संविभाग प्रबंधन योजना के ग्राहकों के निवेश एक दूसरे से पृथक रखे जाने चाहिए और बैंक के निवेश खाते एवं ग्राहकों के संविभाग खातों के बीच कोई भी लेनदेन पूर्णतया बाजार दरों पर ही होना चाहिए ।

(च) बैंकों के अपने निवेश खाते और संविभाग प्रबंधन योजना के ग्राहकों के खातों के संबंध में कार्य और पश्च कार्यालय संबंधी कार्य स्पष्ट रूप से अलग-अलग होने चाहिए ।

(ववव) निवेश संविभाग प्रबंधन योजना के ग्राहकों के खातों की लेखा-परीक्षा बाह्य लेखा-परीक्षकों द्वारा अलग से होनी चाहिए, जैसा कि पैरा 1.2.5 (व) (क) में दिया गया ।

(वख्) बैंकों का यह नोट करना चाहिए कि इन अनुदेशों के उल्लंघन को गंभीरता से लिया जायेगा और बैंकों पर निवारक कार्रवाई की जायेगी, जिसमें बैंकों पर उपर्युक्त कार्यकलाप करने पर प्रतिबंध के अलावा प्रारक्षित निधि अपेक्षायें बढ़ाना, रिज़र्व बैंक से पुनर्वित्त सुविधा वापस लेना और मुद्रा बाजारों में उनकी पहुंच पर रोक लगाना शामिल है ।

(ख्) साथ ही, उपर्युक्त अनुदेश आवश्यक परिवर्तनों के साथ बैंकों की सहायक कंपनियों पर भी लागू होंगे, वे मामले अपवाद होंगे जहां वे उनके कार्यों को शासित करने वाले भारतीय रिज़र्व बैंक के या भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के विशिष्ट विनियमों के विपरीत हों ।

(ख्व) जो बैंक / बैंकों की व्यापारी बैंकिंग की सहायक कंपनियां रिज़र्व बैंक के विशिष्ट पूर्व अनुमोदन से निवेश संविभाग प्रबंधन योजना और इसी प्रकार की योजना चला रहे हैं उन्हें भी सेबी (संविभाग प्रबंध) नियमावली और विनियमावली, 1993 में निहित तथा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों का पालन होगा ।

1.3.4 बैंकों का निवेश संविभाग - सरकारी प्रतिभूतियों का लेनदेन

कतिपय सहकारी बैंकों द्वारा कुछ दलालों की सहायता से सरकारी प्रतिभूतियों में भौतिक रूप में लेनदेनों के नाम पर किये गये कपटपूर्ण लेनदेनों को देखते हुए यह निर्णय किया गया है कि
प्रतिभूतियों के भौतिक रूप में लेनदेनों की गुंजायश कम करने संबंधी उपायों को और अधिक प्रभावी बनाया जाये । ये उपाय निम्नलिखित हैं :

i. जिन बैंकों का रिज़र्व बैंक के पास एस जी एल खाता नहीं है, उनके लिए केवल एक गिल्ट खाता खोला जा सकता है ।

ii. किसी अनुसूचित वाणिज्य बैंक में सी एस जी एल खाता खोले जाने पर, खातेदार को उसी बैंक में निर्दिष्ट निधि खाता (गिल्ट संबंधी सभी लेनदेनों के लिए) खोलना
चाहिए ।

iii. गिल्ट/निर्दिष्ट निधि खाता रखने वालों के लिए लेनदेन करने से पूर्व यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि खरीद हेतु निर्दिष्ट निधि खाते में पर्याप्त निधि है और बिक्री हेतु गिल्ट खाते में पर्याप्त प्रतिभूतियां हैं ।

iv. बैंक किसी दलाल के साथ भौतिक रूप में लेनदेन न करें ।

v. बैंक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकारी प्रतिभूतियों के लेनदेन करने हेतु वे अनुमोदित दलाल एन एस ई /बी एस ई / ओ टी सी ई आई के ऋण बाज़ार विभाग में पंजीकृत हैं ।

2. वर्गीकरण

i) बैंकों के समग्र निवेश संविभाग (सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी प्रतिभूतियों और गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी प्रतिभूतियों सहित) को तीन श्रेणियों, अर्थात् ‘अवधिपूर्णता तक धारित’, ‘बिक्री के लिए उपलब्ध’ तथा ‘ट्रेडिंग के लिए धारित’ में वर्गीकृत किया जायेगा । तथापि, तुलनपत्र में निवेशों को मौजूदा छ: वर्गीकरणों के अनुसार दर्शाया जाता रहेगा, जो इस प्रकार हैं - (क) सरकारी प्रतिभूतियां,

(ख) अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियां, (ग) शेयर, (घ) डिबेंचर और बांड, (ङ) सहायक / संयुक्त उद्यम और (च) अन्य (वाणिज्यिक पत्र, म्युचुअल फंडों के यूनिट, आदि )।

वव) बैंकों को निवेश की श्रेणी के बारे में निर्णय अर्जन के समय करना चाहिए तथा निर्णय को निवेश संबंधी प्रस्तावों पर दर्ज किया जाना चाहिए ।

2.1 अवधिपूर्णता तक धारित

i) बैंकों द्वारा अवधिपूर्णता तक धारित किये जाने के इरादे से प्राप्त की गयी प्रतिभूतियों को अवधिपूर्णता तक धारित के अंतर्गत वर्गीकृत किया जायेगा ।

ii) ‘अवधिपूर्णता तक धारित’ श्रेणी के अंतर्गत निवेश, बैंकों के कुल निवेशों के 25 प्रतिशत तक रखने की अनुमति बैंकों को दी गयी थी ।

निम्नलिखित निवेशों को ‘अवधिपूर्णता तक धारित’ के अंतर्गत वर्गीकृत किया जायेगा, परंतु उन्हें इस श्रेणी के लिए विनिर्दिष्ट 25 प्रतिशत की उच्चतम सीमा के प्रयोजन के लिए हिसाब में नहीं लिया जायेगा :

(क) उनकी पुन: पूंजीकरण संबंधी आवश्यकता के लिए भारत सरकार से प्राप्त तथा उनके निवेश संविभाग में रखे गये पुन:पूंजीकरण बांड । निवेश के प्रयोजनों के लिए अर्जित अन्य बैंकों के पुन: पूंजीकरण बांड इसमें शामिल नहीं किये जायेंगे ।

(ख) सहायक संस्थाओं और संयुक्त उद्यमों में किये गये निवेश । डसंयुक्त उद्यम उसे कहा जायेगा, जिसकी ईक्विटी का 25 प्रतिशत से अधिक भाग सहायक संस्थाओं सहित उस बैंक के पास हो ।

(ग) उन डिबेंचरों / बांडों में निवेश, जिन्हें अग्रिम के स्वरूप का माना जाये ।

(ववव) एच टी एम श्रेणी के अंतर्गत कुल निवेशों के 25 प्रतिशत की सीमा से अधिक निवेश करने की अनुमति बैंकों को 2 सितंबर 2004 को दी गयी बशर्ते :

क. अतिरिक्त निवेश में केवल सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी प्रतिभूतियां ही शामिल हों

और

ख. एच टी एम श्रेणी में धारित सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी कुल प्रतिभूतियां दूसरे पूर्ववर्ती पखवाड़े के अंतिम शुक्रवार को उनकी मांग और मीयादी देयताओं के 25 प्रतिशत से अधिक न हों ।

(वख्) 2 सितंबर 2004 को ‘अवधिपूर्णता तक धारित’ (एचटीएम) के भाग के रूप में धारित गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी प्रतिभ्ूातियां उस श्रेणी में रह सकती हैं । निम्नलिखित को छोड़कर किसी भी नयी गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी प्रतिभूतियों को एचटीएम श्रेणी में शामिल करने की अनुमति नहीं है :

(क) अपनी पुन: पूंजीकरण अपेक्षा के लिए तथा अपना निवेश संविभाग में धारित भारत सरकार से प्राप्त नये पुन: पूंजीकरण बांड । इसमें निवेश के प्रयोजन हेतु अर्जित दूसरे बैंकों के पुन: पूंजीकरण बांड शामिल नहीं होंगे ।

(ख) सहायक संस्थाओं तथा संयुक्त उद्यमों की ईक्विटी में नये निवेश ।

(ग) ग्रामीण मूलभूत सुविधा विकास निधि (आरआइडीएफ) /भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) जमा ।

(ख्) संक्षेप में, एचटीएम श्रेणी के अंतर्गत बैंक निम्नलिखित प्रतिभूतियां धारण कर सकते हैं :

(क) दूसरे पूर्ववर्ती पखवाड़े के अंतिम शुक्रवार को अपनी मांग और मीयादी देयताओं के 25 प्रतिशत तक सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी प्रतिभूतियां ।

(ख) 2 सितंबर 2004 को एचटीएम के अंतर्गत शामिल गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी प्रतिभूतियां ।

(ग) अपनी पुन: पूंजीकरण अपेक्षा के लिए तथा निवेश संविभाग में धारित भारत सरकार से प्राप्त नये पुन: पूंजीकरण बांड ।

(घ) सहायक संस्थाओं तथा संयुक्त उद्यमों में नये निवेश (संयुक्त उद्यम अर्थात् वह जिसमें बैंक अपनी सहायक संस्थाओं के साथ 25 प्रतिशत से अधिक ईक्विटी धारण करता
है) ।

(ङ) ग्रामीण मूलभूत सुविधा विकास निधि / भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक जमा ।

(ख्व) इस श्रेणी में निवेशों की बिक्री से होने वाले लाभ को पहले लाभ-हानि लेखे में लिया जायेगा और उसके बाद उसका विनियोजन ‘आरक्षित पूंजी खाता’ में किया जायेगा । बिक्री से होने वाली हानि को लाभ-हानि लेखे में दर्शाया जायेगा ।

(ख्वव) बैंकों को सूचित किया गया था कि डिबेंचरों /बाडों को उस स्थिति में अग्रिम के स्वरूप का माना जाये जब

    • डिबेंचर / बांड परियोजना वित्त के प्रस्ताव के भाग के रूप में जारी किया जाये तथा डिबेंचर की अवधि तीन वर्ष और उससे अधिक हो ।

अथवा

डिबेंचर / बांड कार्यशील पूंजी वित्त के प्रस्ताव के भाग के रूप में जारी किया गया हो तथा डिबेंचर / बांड की अवधि एक वर्ष से कम हो ।

और

    • उस निर्गम में बैंक की हिस्सेदारी उल्लेखनीय हो, अर्थात् 10 प्रतिशत या अधिक की
      हो ।

और

    • निर्गम निजी तौर पर आबंटन (प्राइवेट प्लेसमेंट) का एक अंग हो, अर्थात् ऋणकर्ता ने बैंक / वित्तीय संस्था से संपर्क किया हो तथा वह सार्वजनिक निर्गम का अंग न हो, जिसमें बैंक / वित्तीय संस्था द्वारा अभिदान के लिए आमंत्रण के प्रतिसाद (रिस्पांस) में अभिदान किया जाता है ।

चूंकि एचटीएम श्रेणी के अंतर्गत किसी भी नयी गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी प्रतिभूति को शामिल करने की अनुमति नहीं दी गयी है, अत: इन निवेशों को एचटीएम श्रेणी के अंतर्गत धारित न किया जाना चाहिए । ये निवेश बाज़ार दर पर मूल्यन पद्धति के अधीन होंगे ।

अनर्जक निवेश तथा प्रावधानीकरण की पहचान के लिए वे विवेकपूर्ण मानदंडों के अधीन होंगे जैसा कि निवेशों के संबंध में लागू है ।

2.2 बिक्री के लिए उपलब्ध तथा ट्रेडिंग के लिए धारित

i) बैंकों द्वारा अल्पावधि मूल्य / ब्याज दर गतिविधि का लाभ लेकर व्यापार की इच्छा से प्राप्त ट्रेडिंग के लिए धारित के अंतर्गत प्रतिभूतियों को निम्नलिखित के अनुसार वर्गीकृत किया जाना चाहिए ।

ii) जो प्रतिभूतियां उपर्युक्त दो श्रेणियों में नहीं आतीं उन्हें बिक्री के लिए उपलब्ध के अंतर्गत वर्गीकृत करना चाहिए ।

ववव) बिक्री के लिए उपलब्ध तथा ट्रेडिंग के लिए धारित श्रेणियों के अंतर्गत धारिताओं की सीमा के बारे में निर्णय करने की स्वतंत्रता बैंकों को होगी । वे प्रयोजन के आधार, व्यापारिक कार्य-नीतियों, जोखिम प्रबंधन क्षमताओं, कर आयोजना, जन-बल की कुशलताओं, पूंजी की स्थिति जैसे विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इसका निर्णय लेंगे ।

वख्) ट्रेडिंग के लिए धारित श्रेणी के अंतर्गत उन निवेशों को रखा जायेगा, जिनसे बैंक को ब्याज दरों / बाजार दरों में घट-बढ़ द्वारा लाभ कमाने की आशा हो । इन प्रतिभूतियों को 90 दिन के भीतर बेचा जाना है ।

ख्) दोनों श्रेणियों में निवेशों की बिक्री से होने वाले लाभ या हानि को लाभ-हानि लेखे में दर्शाया जायेगा ।

2.3 एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी में अंतरित करना

i) बैंक अवधिपूर्णता तक धारित श्रेणी में / उससे निवेशों को निदेशक मंडल के अनुमोदन से वर्ष में एक बार अंतरित कर सकते हैं । आम तौर पर लेखा-वर्ष के प्रारंभ में ऐसे अंतरण की अनुमति दी जायेगी । उस लेखा-वर्ष के शेष भाग में इस श्रेणी में से किसी और अंतरण की अनुमति नहीं दी जायेगी।

ii) बैंक निदेशक मंडल / आस्ति-देयता प्रबंधन समिति / निवेश समिति के अनुमोदन से बिक्री के लिए उपलब्ध श्रेणी से ट्रेडिंग के लिए धारित श्रेणी में निवेश अंतरित कर सकते हैं । आवश्यकता पड़ने पर बैंक के मुख्य कार्यपालक / आस्ति-देयता प्रबंधन समिति के प्रमुख के अनुमोदन से इस प्रकार का अंतरण किया जा सकता है, परन्तु इसका अनुसमर्थन निदेशक मंडल / आस्ति-देयता प्रबंधन समिति द्वारा किया जाना चाहिए ।

iii) ट्रेडिंग के लिए धारित श्रेणी से बिक्री के लिए उपलब्ध श्रेणी में निवेशों के अंतरण की अनुमति आम तौर पर नहीं दी जाती । तथापि, सिर्फ बैंक निधि की सख्त स्थितियों या अत्यधिक अस्थिरता या बाजार के एक दिशा में होने जैसी अपवादस्वरूप परिस्थितियों के कारण 90 दिन के भीतर प्रतिभूति की बिक्री करने में असमर्थ होने के अपवाद की परिस्थितियों के अंतर्गत इसकी अनुमति निदेशक मंडल /

आस्ति-देयता प्रबंधन समिति / निवेश समिति के अनुमोदन से अंतरण की तारीख को लागू मूल्यह्रास, यदि कोई हो, की शर्त पर दी जायेगी ।

वख्) एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी में स्क्रिपों का अंतरण सभी परिस्थितियों में अंतरण की तारीख को अर्जन की लागत / बही मूल्य / बाजार मूल्य पर, जो भी सबसे कम हो, किया जाना चाहिए तथा ऐसे अंतरण पर मूल्यह्रास, यदि कोई हो, के लिए पूरा प्रावधान किया जाना चाहिए । बैंक अंतरण की तारीख को विद्यमान मूल्य लागू कर सकते हैं तथा अंतरण की तारीख को विद्यमान मूल्य लागू करने यदि व्यावहारिक कठिनाइयां हो तो बैंकों को विकल्प है कि वे प्रतिभूतियों की शिफ्ंटिग संबंधी मूल्यह्रास अपेक्षा का हिसाब लगाने के लिए पिछले कार्य दिवस को विद्यमान मूल्य लागू करें।

3. मूल्यन

3.1 अवधिपूर्णता तक धारित

i) अवधिपूर्णता तक धारित श्रेणी के अंतर्गत वर्गीकृत निवेशों को बाजार भाव पर दर्शाने की आवश्यकता नहीं है तथा इसे अर्जन की लागत पर, अंकित मूल्य से अधिक न होने की स्थिति में, दर्शाया

जायेगा । अर्जन की लागत अंकित मूल्य से अधिक होने पर प्रीमियम की राशि अवधिपूर्णता तक की शेष अवधि में परिशोधित की जानी चाहिए ।

ii) बैंकों को ‘अवधिपूर्णता तक धारित’ श्रेणी के अंतर्गत शामिल सहायक कंपनियों / संयुक्त उद्यमों में अपने निवेशों के मूल्य में हुई किसी भी कमी, अस्थायी कमी को छोड़कर, को हिसाब में लेते हुए उसके लिए प्रावधान करना चाहिए । ऐसी कमी निर्धारित की जानी चाहिए और प्रत्येक निवेश के लिए अलग-अलग प्रावधान किया जाना चाहिए ।

3.2 बिक्री के लिए उपलब्ध

i) बिक्री के लिए उपलबध श्रेणी की अलग-अलग स्क्रिपों को तिमाही या उससे कम अवधि के अंतराल पर बाज़ार भाव के अनुसार दर्शाया जायेगा । इस श्रेणी के अंतर्गत आनेवाली प्रतिभूतियों का मूल्यांकन स्क्रिप वार किया जाएगा और मद 2(व) में उल्लिखित प्रत्येक वर्गीकरण के लिए मूल्यहृास/मूल्य वृद्धि को जोड़ दिया जाएगा । यदि कोई शुद्ध मूल्यहृास आये तो उसके लिए प्रावधान किया जाएगा । यदि कोई शुद्ध मूल्यवृद्धि हो तो उसे नजरंदाज कर दिया जाएगा । किसी एक वर्गीकरण के अंतर्गत अपेक्षित शुद्ध मूल्यहृास के लिए प्रावधान को किसी दूसरे वर्गीकरण में शुद्ध मूल्यवृद्धि के कारण कम नहीं किया जाना चाहिए । बाज़ार मूल्य के अनुसार मूल्यांकित करने के बाद इस श्रेणी की अलग-अलग प्रतिभूतियों के बही मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होगा ।

3.3 ट्रेडिंग के लिए धारित

ट्रेडिंग के लिए रखे शेयरों की श्रेणी के अंतर्गत आनेवाली अलग-अलग स्क्रिपों का मासिक या कम अवधि के अंतराल पर बाज़ार मूल्य के अनुसार मूल्यांकन किया जायेगा और उनके लिए उसी प्रकार प्रावधान किया जायेगा जैसा कि बिक्री के लिए उपलब्ध श्रेणी के संबंध में किया जाता है । परिणामत: बाज़ार के मूल्य के अनुसार मूल्यांकित करने के बाद इस श्रेणी की प्रतिभूतियों के बही मूल्य में भी कोई परिवर्तन नहीं होगा ।

3.4 निवेश संबंधी उतार-चढ़ाव हेतु प्रारक्षित निधि (आई एफ आर)

i. अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण भविष्य में ब्याज दर में होने वाले बदलाव की स्थिति से बचने के लिए पर्याप्त प्रारक्षित निधि जमा रखने के उद्देश्य से बैंकों को सूचित किया गया है कि वे 5 वर्ष के भीतर निवेश संबंधी उतार-चढ़ाव हेतु प्रारक्षित निधि स्थापित करें जो अपने निवेश संविभाग का न्यूनतम 5 प्रतिशत हो ।

ii. बासल घ्घ् के मानदंडों को अपनाने में आसानी हो, यह सुनिश्चित करने के लिए 24 जून 2004 को बैंकों को सूचित किया गया था कि वे दो वर्ष की अवधि में बाजॉर जोखिम के लिए चरणबद्ध तरीके से निम्नानुसार पूंजी प्रभार बनाए रखें :

(क) व्यापार के लिए धारित (एचएफटी) श्रेणी, खुली स्वर्ण स्थिति की सीमा, खुली विदेशी मुद्रा स्थिति की सीमा, व्युत्पन्न साधनों (डेरिवेटिव्जॅ) में व्यापार की स्थितियां तथा व्यापार बही जोखिमों से

बचाव के लिए किये गये व्युत्पन्न साधनों (डेरिवेटिव्जॅ) में सम्मिलित प्रतिभूतियों के संबंध में 31 मार्च 2005 तक, तथा

(ख) बिक्री के लिए उपलब्ध (एएफएस) श्रेणी में सम्मिलित प्रतिभूतियों के संबंध में 31 मार्च 2006 तक ।

(iii) बाजॉर जोखिमों के लिए पूंजी प्रभार बनाए रखने से संबंधित दिशा-निर्देशों का शीघ्र अनुपालन करने के लिए बैंकों को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से अप्रैल 2005 में यह सूचित किया गया था कि जिन बैंकों ने दोनों व्यापार के लिए धारित श्रेणी (उपर्युक्त

(क) में दर्शाई गयी मद) तथा बिक्री के लिए उपलब्ध श्रेणी के लिए ऋण जोखिम तथा बाजॉर जोखिम, दोनों के लिए जोखिम-भारित आस्तियों के न्यूनतम 9 प्रतिशत की पूंजी को बनाए रखा है, वे निवेश उतार-चढ़ाव प्रारक्षित निधि (आइएफआर) में व्यापार के लिए धारित तथा बिक्री के लिए उपलब्ध श्रेणियों में शामिल प्रतिभूतियों के 5 प्रतिशत से अधिक शेष को टियर घ् पूंजी के रूप में मानें । उपर्युक्त अपेक्षा को पूर्ण करने वाले बैंकों को निवेश उतार-चढ़ाव प्रारक्षित निधि में उक्त 5 प्रतिशत से अधिक राशि को सांविधिक प्रारक्षित निधि में अंतरित करने की अनुमति दी गयी ।

(वख्) अक्तूबर 2005 में बैंकों को यह सूचित किया गया कि यदि बैंकों ने 31 मार्च 2006 की स्थिति के अनुसार दोनों, व्यापार के लिए धारित तथा बिक्री के लिए उपलब्ध श्रेणी (उपर्युक्त (व) में दर्शाई गई मदें) के लिए ऋण जोखिम तथा बाजॉर जोखिम, दोनों के लिए जोखिम-भारित आस्तियों के न्यूनतम 9 प्रतिशत की पूंजी को बनाए रखा है, उन्हें निवेश उतार-चढ़ाव प्रारक्षित निधि में संपूर्ण शेष को टियर घ् पूंजी के रूप में मानने की अनुमति दी जाएगी । इस प्रयोजन के लिए, बैंक लाभ-हानि विनियोग लेखे में ‘लाभ निकालने के बाद’ (बिलो दी लाइन) निवेश उतार-चढ़ाव प्रारक्षित निधि में शेष को सांविधिक आरक्षित निधि, सामान्य प्रारक्षित निधि अथवा लाभ-हानि लेखा शेष में अंतरित कर सकते हैं ।

निवेश प्रारक्षित निधि लेखा

(ख्) यदि ‘बिक्री के लिए उपलब्ध’ अथवा ‘व्यापार के लिए धारित’ श्रेणियों में मूल्यह्रास के कारण किये गये प्रावधान किसी वर्ष में आवश्यक राशि से अधिक पाए जाते हैं तो उस अधिक राशि को लाभ-हानि लेखे में जमा किया जाए तथा उसकी समकक्ष राशि का (कर, यदि कोई है, को घटाकर तथा ऐसे अधिक प्रावधान पर लागू होने वाले सांविधिक आरक्षित निधि में अंतरण को घटाकर) अनुसूची 2 में निवेश प्रारक्षित निधि - "राजस्व तथा अन्य प्रारक्षित निधि" शीर्ष के अंतर्गत ‘प्रारक्षित निधियां तथा अधिशेष’ में विनियोग किया जाए तथा यह राशि सामान्य प्रावधानों /हानि प्रारक्षित निधियों के लिए निर्धारित कुल जोखिम-भारित आस्तियों के 1.25 प्रतिशत की समग्र उच्चतम सीमा के भीतर टियर घ्घ् में शामिल करने के लिए पात्र होगी ।

vi. बैंक निवेश प्रारक्षित निधि लेखे का निम्नानुसार उपयोग कर सकते हैं :

‘बिक्री के लिए उपलबध’ और ‘ट्रेडिंग के लिए रखे गये’ श्रेणियों में मूल्यहृास के लिए अपेक्षित प्रावधान को लाभ-हानि लेखा में नामे डालना चाहिए और सममूल्य राशि (कर लाभ को घटाकर और सांविधिक आरक्षित निधि को अंतरण में परिणामस्वरूप कटौती को घटाकर) निवेश संबंधी प्रारक्षित निधि खाते (आइआरए) से लाभ-हानि लेखा में अंतरित की जाये ।

उदाहरण के तौर पर, वर्ष के दौरान ट्रेडिंग के लिए रखे गये और बिक्री के लिए उपलब्ध श्रेणियों में निवेश में मूल्यहृास के लिए किये गये प्रावधान (कर को घटाकर, यदि कुछ हो, और सांविधिक आरक्षित निधि में अंतरण को घटाकर जो ऐसे अतिरिक्त प्रावधान के लिए लागू हो) की सीमा तक बैंक आइआरए से आहरण द्वारा कम कर सकते हैं । दूसरे

शब्दों में, जो बैंक 30 प्रतिशत कर का भुगतान करता है और जिसे सांविधिक आरक्षित निधि में निवल लाभ का 25 प्रतिशत विनियोग करना चाहिए, वह आइआरए से 52.50 रुपये आहरण द्वारा कम कर सकता है, यदि बिक्री के लिए उपलब्ध और ट्रेडिंग के लिए रखे गये श्रेणियों में शामिल निवेशों में मूल्यहृास के लिए किया गया प्रावधान 100 रुपये है ।

(vii) प्रावधान हेतु लाभ-हानि लेखा में नामे डाली गयी राशि "व्यय-प्रावधान और आकस्मिकता" शीर्ष के अंतर्गत नामे डाली जानी चाहिए । आइआरए से लाभ-हानि लेखा में अंतरित राशि को वर्ष के लिए लाभ निश्चित करने के बाद लाभ-हानि विनियोग लेखा में "लाभ निकालने के बाद" मद के रूप में दर्शाया जाना चाहिए ।

किसी आस्ति के मूल्य में कमी हेतु प्रावधान लाभ-हानि लेखा पर एक प्रभार की मद है और लेखा अवधि के लिए लाभ निकालने से पहले उसे उस खाते में दिखाई देना चाहिए । निम्नलिखित को अपनाना न केवल गलत लेखा सिद्धांत का स्वीकरण होगा, बल्कि इसके परिणामस्वरूप लेखा अवधि के लिए लाभ का एक गलत विवरण तैयार होगा :

(क) लाभ-हानि लेखा में दर्शाये बिना आरक्षित निधि की मद के अंतर्गत प्रावधान को सीधे समायोजित करने की अनुमति देना, या

(ख) लेखा अवधि के लिए लाभ निकालने के पहले निवेश संबंधी उतार-चढ़ाव हेतु प्रारक्षित निधि से आहरण द्वारा कम करने की अनुमति किसी बैंक को देना (अर्थात् लाभ निकालने से पहले), या

(ग) विशिष्ट अवधि के लिए लाभ निकालने के बाद निवेश पर मूल्यहृास हेतु प्रावधान लाभ निकालने के बाद की मद के रूप में करने की अनुमति किसी बैंक को देना,

(घ) अत: उपर्युक्त कोई भी विकल्प अनुमत नहीं है ।

(ख्ववव) बैंकों द्वारा लाभांश के भुगतान के संबंध में हमारे दिशा-निर्देशों के अनुसार लाभांश केवल चालू वर्ष के लाभ से ही देय होना चाहिए । इसलिए निवेश संबंधी उतार-चढ़ाव हेतु प्रारक्षित निधि से आहरण द्वारा प्राप्त की गयी राशि शेयरधारकों को लाभांश का भुगतान करने के लिए बैंकों को उपलब्ध नहीं होगा । तथापि लाभ-हानि विनियोग लेखे में ‘लाभ निकालने के बाद’ निवेश संबंधी प्रारक्षित निधि में जो शेष सांविधिक प्रारक्षित निधि सामान्य प्रारक्षित निधि या लाभ-हानि लेखा शेष में अंतरित किया गया वह टियर घ् पूंजी के रूप में गणना करने के लिए पात्र होगा।

3.5 बाजार मूल्य

‘बिक्री के लिए उपलब्ध’ और ‘ट्रेडिंग के लिए धारित’ श्रेणियों में शामिल निवेशों के आवधिक मूल्यन के प्रयोजन के लिए ‘बाजार मूल्य’ उस स्क्रिप का वह बाज़ार भाव होगा जो शेयर बाजारों पर ट्रेड / कोट, एस जी एल खाते के लेनदेनों, भारतीय रिज़र्व बैंक की मूल्य सूची, समय-समय पर फिक्स्ड इनकम मनी मार्केट एंड डेरिवेटिव्ज असोसिएशन ऑफ इंडिया (एफ आइ एम एम डी ए) से उपलब्ध हो । कोट न की गयी प्रतिभूतियों के संबंध में निम्नलिखित ब्यौरेवार प्रक्रिया अपनायी जानी चाहिए ।

3.6 कोट न की गयी सांविधिक चलनिधि अनुपात प्रतिभूतियां

3.6.1 केन्द्र सरकार की प्रतिभूतियां

i) बैंकों को केन्द्र सरकार की कोट न की गयी प्रतिभूतियों का मूल्यन पीडीएआइ / एफआइएमएमडीए द्वारा आवधिक अंतरालों पर दिये जानेवाले भावों /अवधिपूर्णता पर प्रतिलाभ (वायटीएम) संबंधी दरों के आधार पर करना चाहिए ।

ii) 6.00 प्रतिशत पूंजी इंडेक्स्ड बांडों का मूल्यन ‘लागत’ के आधार पर करना चाहिए जैसा कि 22 जनवरी 1998 के परिपत्र बैंपविवि. सं. बीसी. 8/12.02.001/97-98 और 16 अगस्त 2000 के परिपत्र बीसी. 18/12.02.001/2000-2001 में परिभाषित है ।

iii) खजॉना बिलों का मूल्यन कारोबारी लागत पर किया जाना चाहिए ।

3.6.2 राज्य सरकार की प्रतिभूतियां

राज्य सरकार की प्रतिभूतियों का मूल्यन पी डी ए आइ / एफ आइ एम एम डी ए द्वारा समय-समय पर प्रस्तुत समतुल्य अवधिपूर्णता की केन्द्र सरकार की प्रतिभूतियों के प्रतिलाभों से ऊपर 25 आधार अंक पर उसे मार्क करते हुए वाई टी एम पद्धति लागू करके किया जायेगा ।

3.6.3 अन्य ‘अनुमोदित’ प्रतिभूतियां

अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों का मूल्यन पी डी ए आइ / एफ आइ एम एम डी ए द्वारा आवधिक रूप से प्रस्तुत की जानेवाली समान अवधि वाली केन्द्र सरकार की प्रतिभूतियों के प्रतिफल के ऊपर 25 आधार अंक द्वारा मार्किंग करके अवधिपूर्णता की तुलना में प्रतिलाभ (वाई टी एम) पद्धति लागू करके किया जायेगा ।

3.7 सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर प्रतिभूतियां, जिनकी दरें नहीं दी जातीं

3.7.1 डिबेंचर / बांड

डिबेंचरों / बांडों से इतर अग्रिम स्वरूप वाले सभी डिबेंचरों / बांडों का मूल्यन अवधिपूर्णता पर प्रतिलाभ की दर पर किया जायेगा । इस प्रकार के डिबेंचर / बांड विभिन्न कंपनियों के और भिन्न-भिन्न दरों वाले हो सकते हैं । इनका मूल्यन पी डी ए आइ / एफ आइ एम एम डी ए द्वारा आवधिक रूप से प्रस्तुत की जानेवाली समान अवधि वाली केन्द्र सरकार की प्रतिभूतियों के लिए वाइ टी एम दरों के ऊपर उचित रूप से मार्कअप करके किया जायेगा । यह मार्कअप श्रेणी-निर्धारक (रेटिंग) एजेंसियों द्वारा डिबेंचरों / बांडों को दी गयी श्रेणी के अनुसार ग्रेड रूप में दिया जाता है, जो निम्नलिखित बातों के अधीन होता है :

(क) श्रेणीबद्ध डिबेंचरों / बांडों के लिए अवधिपूर्णता पर प्रतिलाभ के लिए प्रयुक्त दर समान अवधि पूर्णता वाले भारत सरकार के ऋण के लिए लागू दर से कम से कम 50 आधार अंक होनी चाहिए ।

(ख) बिना दर वाले डिबेंचरों / बांडों के लिए अवधिपूर्णता पर प्रतिलाभ के लिए प्रयुक्त दर समान अवधि के दरयुक्त डिबेंचरों / बांडों के लिए लागू दर से कम नहीं होनी चाहिए । बिना दर वाले डिबेंचरों / बांडों के लिए मार्कअप में बैंक द्वारा उठाया जानेवाला ऋण जोखिम उचित रूप से परिलक्षित होना चाहिए ।

जहां डिबेंचरों / बांडों की दरें दी जाती हैं और लेनदेन मूल्यन की तारीख से 15 दिन पहले किया गया हो, वहां अपनाया गया मूल्य शेयर बाजार में रिकार्ड किये गये लेनदेन की दर से अधिक नहीं होना चाहिए ।

3.7.2 जीरो कूपन बांड

जीरो कूपन बांडों को बहियों में रखाव लागत पर दिखाया जाना चाहिए, रखाव लागत का अर्थ अभिग्रहण लागत तथा अभिग्रहण के समय प्रचलित दर पर प्रोद्भूत बट्टा है जो बाजार मूल्य के संदर्भ में बाजार भाव पर हो।

बाज़ार मूल्य के अभाव में जीरो कूपन बांड उनके वर्तमान मूल्य के संदर्भ में बाज़ार भाव (मार्केट - टु -मार्केट)पर होने चाहिए। जीरो कूपन बांडों का वर्तमान मूल्य की गणना फिमडा द्वारा आवधिक रूप से दिए जाने वाले जीरो कूपन स्प्रेड के अनुसार उचित मूल्य बढ़ाने (मार्क अप) सहित जीरो कूपन यील्ड कर्व का प्रयोग कर अंकित मूल्य में बट्टा काटते हुए करना चाहए।

यदि बैंक अभी अभिग्रहण लागत पर जीरो कूपन बांड अपना रहे हैं तो बाज़ार भाव पर लगाने के पहले लिखत पर प्रोद्भूत बट्टे को काल्पनिक रूप से बांड के बही मूल्य में जोड़ना चाहिए।

3.7.3 अधिमान शेयर

अधिमान शेयरों का मूल्यन अवधिपूर्णता पर प्रतिलाभ की दर के आधार पर होना चाहिए । अधिमान शेयर कंपनियों द्वारा भिन्न-भिन्न दरों पर जारी किये जायेंगे । इनका मूल्यन पी डी ए आइ / एफ आइ एम एम डी ए द्वारा आवधिक रूप से प्रस्तुत की जानेवाली समान अवधि वाली केन्द्र सरकार की प्रतिभूतियों के लिए वाइ टी एम दरों के ऊपर उचित रूप से किया जायेगा । यह मार्कअप श्रेणी-निर्धारक (रेटिंग) एजेंसियों द्वारा डिबेंचरों / बांडों को दी गयी श्रेणी के अनुसार ग्रेड रूप में दिया जाता है, जो निम्नलिखित बातों के अधीन होता है :

क) अवधिपूर्णता पर प्रतिलाभ की दर समान अवधि वाले भारत सरकार के ऋण के लिए कूपन दर / अवधिपूर्णता की तुलना में प्रतिलाभ से कम नहीं होनी चाहिए ।

ख) बिना दर वाले अधिमान शेयरों के लिए अवधिपूर्णता पर प्रतिलाभ के लिए प्रयुक्त दर समान अवधि के दरयुक्त अधिमान शेयरों के लिए लागू दर से कम नहीं होनी चाहिए । बिना दर वाले डिबेंचरों / बांडों के लिए मार्कअप में बैंक द्वारा उठाये जानेवाले ऋण जोखिम को उचित रूप से परिलक्षित होना चाहिए ।

(ग) परियोजना वित्तपोषण के भाग के रूप में अधिमान शेयरों में निवेश का मूल्यन उत्पादन प्रारंभ होने के दो वर्ष बाद अथवा अभिदान के 5 वर्ष बाद, जो भी पहले हो, की अवधि के अनुसार किया जाना चाहिए ।

(घ) जहां अधिमान शेयरों में निवेश पुनर्वास के एक भाग के रूप में है, वहां अवधिपूर्णता की तुलना में प्रतिलाभ की दर समान अवधिपूर्णता वाले भारत सरकार के ऋण के लिए कूपन दर / अवधिपूर्णता पर प्रतिलाभ से 1.5 प्रतिशत अधिक से कम नहीं होनी चाहिए ।

(ङ) जहां अधिमान लाभांश बकाया हो वहां ऋण को प्रोद्भूत लाभांश के लिए नहीं लिया जाना चाहिए और अवधिपूर्णता पर प्रतिलाभ पर निर्धारित बकाया राशि यदि एक वर्ष के लिए हो तो मूल्य को कम से कम 15 प्रतिशत की दर पर बट्टा दिया जाना चाहिए, और यदि बकाया राशि एक वर्ष से अधिक समय से हो तो इससे अधिक बट्टा दिया जाना चाहिए । जहां लाभांश बकाया है, वहां निष्क्रिय शेयरों के संबंध में उपर्युक्त ढंग से निकाले गये मूल्यह्रास / प्रावधान की अपेक्षा को आय देनेवाले अन्य अधिमान शेयरों पर मूल्यवृद्धि में से प्रतितुलित (सेट ऑफ) करने की अनुमति नहीं होगी ।

(च) अधिमान शेयर का मूल्यन उसके विमोचन मूल्य से अधिक पर नहीं किया जाना चाहिए ।

(छ) जब किसी अधिमान शेयर का व्यापार मूल्यन की तारीख से 15 दिन पहले की अवधि में शेयर बाज़ार में किया गया हो, तो उसका मूल्य उस मूल्य से अधिक नहीं होना चाहिए, जिस मूल्य पर व्यापार किया गया हो ।

3.7.4 ईक्विटी शेयर

बैंक के संविभाग के अंतर्गत ईक्विटी शेयरों का बााज़ार दर पर मूल्यन अधिमानत: दैनिक आधार पर तथा कम-से-कम साप्ताहिक आधार पर किया जाना चाहिए ।

जिन इक्विटी शेयरों के लिए चालू दरें उपलब्ध नहीं हैं अथवा शेयर बाज़ारों में जिनकी दर नहीं दी जाती है उनका मूल्यन ब्रेक-अप मूल्य पर किया जाना चाहिए (पुनमूर्ल्यन प्रारक्षित निधि, यदि कोई हो, पर विचार किये बिना), जिसका निर्धारण कंपनी के अद्यतन तुलनपत्र से किया जाना चाहिए (यह तुलनपत्र मूल्यन की तारीख से एक वर्ष पहले से अधिक पुराना नहीं होना चाहिए)। यदि अद्यतन तुलनपत्र उपलब्ध न हो तो शेयरों का मूल्यन एक रुपया प्रति कंपनी की दर पर किया जाना चाहिए ।

3.7.5 म्युच्युअल फंड यूनिट

‘कोट’ किए गए म्युच्युअल फंड यूनिटों के निवेशों का मूल्यन शेयर बाज़ार की दरों के अनुसार किया जाना चाहिए । ‘कोट’ न किए गए म्युच्युअल फंड के यूनिटों में निवेश का मूल्यन प्रत्येक विशिष्ट योजना के संबंध में म्युच्युअल फंड द्वारा घोषित अद्यतन पुनर्खरीद मूल्य पर किया जाना चाहिए । यदि निधियों के लिए रुद्धता अवधि हो तो उस मामले में पुनर्खरीद मूल्य / बाज़ार दर उपलब्ध न होने पर यूनिटों का मूल्यन शुद्ध आस्ति मूल्य (एन ए वी) पर किया जाना चाहिए । यदि शुद्ध आस्ति मूल्य उपलब्ध न हो तो इनका मूल्यन लागत पर तब तक किया जाना चाहिए जब तक कि रुद्धता अवधि समाप्त न हो जाये ।

जहां पुनर्खरीद मूल्य उपलब्ध न हो वहां यूनिटों का मूल्यन संबंधित योजना का शुद्ध आस्ति मूल्य पर किया जा सकता है ।

3.7.6 वाणिज्यिक पत्र

वाणिज्यिक पत्र का मूल्यन आगे ले जायी जानेवाली लागत पर किया जाना चाहिए ।

3.7.7 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में निवेश

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में निवेश आगे ले जायी जानेवाली लागत (अर्थात् बही मूल्य) पर सतत आधार पर किया जाना है ।

3.8 प्रतिभूतिकरण कंपनियों (एससी)/पुनर्निर्माण कंपनियों (आरसी)

द्वारा जारी की गई प्रतिभूतियों में निवेश

3.8.1 प्रावधानन / मूल्यन मानदंड

जब बैंक/वित्तीय संस्थाएं एससी /आरसी को उनके द्वारा बेची गयी वित्तीय आस्तियों के संबंध में एससी /आरसी द्वारा निर्गमित प्रतिभूति रसीदों /पास थ्रू प्रमाणपत्रों में निवेश करते हैं तो उस बिक्री का बैंकों /वित्तीय संस्थाओं की बहियों में निम्नलिखित में से निम्नतर पर मूल्यन किया जाएगा ।

    • प्रतिभूति रसीदों / पास-थ्रू प्रमाणपत्रों के प्रतिदेय मूल्य, तथा

    • वित्तीय आस्ति का निवल बही मूल्य (एनबीवी)

उपर्युक्त निवेश को बैंक /वित्तीय संस्थाओं की बहियों में उसकी बिक्री अथवा वसूली तक उपर्युक्त के अनुसार निर्धारित मूल्य पर रखा जाए तथा ऐसी बिक्री अथवा वसूली पर, लाभ अथवा हानि पर निम्नानुसार कार्रवाई की जाए :

  1. यदि एससी /आरसी को निवल बही मूल्य (एनबीवी) (अर्थात् बही मूल्य में से धारित प्रावधानों को घटाने के बाद) से कम मूल्य पर बेचा जाता है तो कमी को उस वर्ष के लाभ-हानि लेखे में नामे डाला जाए ।
  2. यदि एनबीवी से उच्चतर मूल्य पर बिक्री होती है तो अतिरिक्त प्रावधान को प्रत्यावर्तित नहीं किया जाएगा लेकिन एससी/आरसी को अन्य वित्तीय आस्तियों की बिक्री के कारण होने वाली कमी /हानि को समायोजित करने के लिए उसका उपयोग किया जाएगा ।

बैंकों /वित्तीय संस्थाओं द्वारा एससी /आरसी से उन्हें बेची गयी वित्तीय आस्तियों की बिक्री प्रतिफल के रूप में प्राप्त सभी लिखतों तथा एससी/आरसी द्वारा निर्गमित अन्य लिखत जिनमें बैंक /वित्तीय संस्थाएं निवेश करते हैं, वे भी सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर प्रतिभूतियों के स्वरूप में होंगे । तदनुसार, भारतीय रिजॅर्व बैंक द्वारा समय समय पर निर्धारित सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर लिखतों में निवेशों को लागू होने वाले, मूल्यन, वर्गीकरण तथा अन्य मानदंड एससी/आरसी द्वारा

नर्गमित डिबेंचर /बांड /प्रतिभूति रसीदों /पास-थ्रू प्रमाणपत्रों में बैंकों /वित्तीय संस्थाओं के निवेश को भी लागू होंगे । तथापि, यदि एससी /आरसी द्वारा निर्गमित उपर्युक्त लिखतों में से कोई एक लिखत भी संबंधित योजना में लिखतों को समनुदेशित वित्तीय आस्तियों की वास्तविक वसूली तक सीमित है तो, बैंक /वित्तीय संस्था ऐसे निवेशों के मूल्यन के लिए एससी /आरसी से समय-समय पर प्राप्त निवल आस्ति मूल्य (एनएवी) को ध्यान में होंगे ।

3.9 अनर्जक निवेश

3.9.1 तीन श्रेणियों में से किसी एक श्रेणी में शामिल प्रतिभूतियों के संबंध में जहां ब्याज/मूलधन बाकाया है, बैंकों को प्रतिभूतियों पर आय का संगणन नहीं करना चाहिए और निवेश के मूल्य में मूल्यहृास हेतु उचित प्रावधान भी करना चाहिए । बैंंकों को चाहिए कि वे इन अनर्जक प्रतिभूतियों के संबंध में मूल्यहृास की अपेक्षाओं का समंजन अन्य अर्जक प्रतिभूतियों की मूल्यवृद्धि के साथ न करें ।

3.9.2 एक अनर्जक निवेश (एनपीआइ) एक अनर्जक अग्रिम (एनपीए) के समान है, जहां :

  1. ब्याज/किस्त (परिपक्वता आगम को मिलाकर) देय है और 90 दिन से अधिक अवधि तक उसकी अदायगी नहीं की गई है ।
  2. उपर्युक्त अपेक्षा आवश्यक परिवर्तनों सहित ऐसे अधिमान शेयरों पर लागू होगी, जहां नियत लाभांश अदा नहीं किया गया है ।
  3. ईक्विटी शेयरों के मामले में 16 अक्तूबार 2000 के परिपत्र डीबीओडी. बीपी. बीसी. 32/21.04.048/2000-01 के संलग्नक के पैरा 28 में निहित अनुदेशों के अनुसार
  4. अद्यतन तुलनपत्र उपलब्ध न होने के कारण किसी भी कंपनी के शेयरों में निवेश का मूल्यन 1 रुपया प्रति कंपनी करने की स्थिति में, उन ईक्विटी शेयरों की भी गणना अनर्जक निवेश के रूप में की जाएगी ।

  5. यदि जारीकर्ता द्वारा उपयोग की गयी कोई ऋण सुविधा बैंक की बहियों में अनर्जक आस्ति है तो उसे जारीकर्ता द्वारा जारी किसी भी प्रतिभूति में निवेश अनर्जक निवेश और उससे उल्टा माना जाएगा ।
  6. डिबेंचरों/बांडों में निवेश, जो अग्रिम के स्वरूप के माने जाते हों, भी निवेशों के लिए लागू अनर्जक निवेश मानदंडों के अधीन होंगे ।

3.9.3 राज्य सरकारों द्वारा गारंटीकृत निवेश

31 मार्च 2005 को समाप्त वर्ष के लिए यदि बैंक को देय ब्याज और/या मूलधन या अन्य कोई राशि 180 दिनों से अधिक अवधि तक अतिदेय है तो राज्य सरकारों द्वारा गारंटीकृत प्रतिभूतियों में निवेश के संबंध में अनर्जक निवेशों की पहचान और प्रावधानीकरण के लिए विवेकपूर्ण मानदंड लागू होंगे ।

मार्च 31, 2006 को समाप्त वर्ष से जब बैंक को देय ब्याज/मूलधन की किस्त (परिपक्वता आगम को मिलाकर) या अन्य कोई राशि 90 दिनों से अधिक अवधि तक अदा नहीं की गई हो तब राज्य सरकारों

द्वारा गारंटीकृत प्रतिभूतियों में निवेश जिसमें ‘डीमड् अग्रिम’ के स्वरूप की प्रतिभूतियां शामिल हैं, पर अनर्जक निवेशों की पहचान और प्रावधानीकरण के लिए निर्धारित विवेकपूर्ण मानदंड लागू होंगे ।

4. रिपो /रिवर्स रिपो लेनदेनों के लिए एकसमान लेखा

4.1 रिपो /रिवर्स रिपो लेनदेनों के लेखा के लिए एकसमान लेखा कार्रवाई सुनिश्चित करने तथा पारदर्शिता प्रदान करने की दृष्टि से समस्त विनियमित कंपनियों द्वारा किये गये रिपो /रिवर्स रिपो लेनदेनों के लिए एक समान लेखा सिद्धांत निर्धारित किये गये है । तथापि, वर्तमाना में, यह मानदंड भारतीय रिजॅर्व बैंक की चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएवी) के अंतर्गत किए गए रिपो /रिवर्स रिपो लेनदेनों को लागू नहीं होंगे ।

4.2 एकसमान लेखा सिद्धांत वित्तीय वर्ष 2003-04 से लागू हेांगे । इनका कार्यान्वयन होने पर, बाजार सहभागी निवेश के तीन श्रेणियों अर्थातद्व खरीद-बिक्री के लिए धारित, बिक्री के लिए उपलब्ध तथा परिपक्वता तक धारित में से किसी एक से रिपो ले सकते हैं ।

4.3 विद्यमान कानून के अंतर्गत रिपो का विधिक रूप, अर्थात् एकमुश्त खरीद तथा एकमुश्त बिक्री लेनदेन, यह सुनिश्चित करके अबाधित रखा जाएगा कि रिपो (बेचनेवाली कंपनी को ‘विक्रेता’ कहा गया है) के अंतर्गत बेची गयी प्रतिभूतियों को प्रतिभूतियों के क्रेता के निवेश खाते में शामिल नहीं किया जाता है तथा रिवर्स रिपो (खरीदने वाली कंपनी को क्रेता कहां गया है) के अंतर्गत खरीदी गयी प्रतिभूतियों को प्रतिभूतियों के खरीदार के निवेश खाते में शामिल किया जाता है । इसके साथ ही, खरीदार रिपो की अवधि के दौरान सांविधिक चलनिधि अनुपात के प्रयोजन के लिए रिवर्स रिपो लेनदेन के अंतर्गत अर्जित अनुमोदित प्रतिभूतियों को ध्यान में ले सकता है ।

4.4 वर्तमान में केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों में जिनमें राजकोषीय बिल शामिल हैं तथा दिनांकित राज्य सरकार की प्रतिभूतियों में रिपो लेनदेन की अनुमति है ।चूंँकि प्रतिभूतियों का खरीदार उन्हें उनकी परिपक्वता तक धारित नहीं करेगा, इसलिए बैंकों द्वारा रिवर्स रिपो के अंतर्गत खरीदी गयी प्रतिभूतियों की परिपक्वता तक धारित श्रेणी के अंतर्गत वर्गीकृत नहीं किया जाए । रिपो पहला चरण प्रचलित बाजॉर दरों पर संविदाकृत किया जाए । इसके अलावा, रिपो /रिवर्स रिपो लेनदेन में प्राप्त / भुगतान किया गया उपचित ब्याज तथा शुद्ध मूल्य (अर्थात् कुल नकद प्रतिफल में से उपचित ब्याज को घटाकर) का अलग तथा सुस्पष्ट हिसाब दिया जाए ।

4.5 रिपो/रिवर्स रिपो का हिसाब लगाते समय निम्नलिखित अन्य लेखा सिद्धांतों का अनुपालन करना होगा :

4.5.1 कूपन

यदि रिपो के अंतर्गत प्रस्तावित प्रतिभूति के ब्याज के भुगतान की तारीख रिपो अवधि के दौरान आती है तो प्रतिभूति के खरीदार द्वारा प्राप्त कूपनों को प्राप्त करने की तारीख को विक्रेता को प्रदान किया जाए क्योंकि दूसरे चरण में विक्रेता द्वारा देय नकद प्रतिफल में कोई मध्यवर्ती नकदी प्रवाह शामिल नहीं है । जहां रिपो की अवधि के दौरान क्रेता कूपन बुक करेगा, वहां विक्रेता रिपो की अवधि के दौरान कूपन का उपचय नहीं करेगा । राजकोषीय बिलों जैसे बट्टाकृत लिखतों के मामले में चूंकि कोई कूपन नहीं है विक्रेता

रिपो की अवधि के दौरान मूल बट्टा दर पर बट्टा उपचित करना जारी रखेगा। अतएव रिपो की अवधि के दौरान खरीददार बट्टा उपचित नहीं करेगा ।

4.5.2 रिपो ब्याज आय /व्यय

रिपो /रिवर्स रिपो के दूसरे चरण के बाद लेन-देन पूरा होता है,

(क) पहले चरण तथादूसरे चरण के बीच प्रतिभ्ज्ञूति के स्पष्ट मूल्य में अंतर को क्रेता /विक्रेता की बहियों में क्रमश: रिपो ब्याज आय /व्यय के रूप में गिना जाए;

(ख) लेनदेन के दो चरणों के बीच भुगतान किए गए उपचित ब्याज के बीच के अंतर को रिपो ब्याज आय /व्यय खाता, जैसी स्थिति हो, के रूप में दर्शाया जाए; तथा

(ग) रिपो ब्याज आय /व्यय खाते में बकाया शेष को लाभ तथा हानि खाते में आय अथवा व्यय के रूप में अंतरित किया जाए ।

तुलनपत्र-तारीख को बकाया रिपो /रिवर्स रिपो लेनदेनों के संबंध में केवल तुलनपत्र-तारीख तक उपचित आय /व्यय को लाभ-हानि खाते में लिया जाए । बकाया लेनदेनों के संबंध में अनुंवर्ती अवधि के लिए कोई भी रिपो आय/व्यय को अगली लेखा अवधि के लिए ध्यान में लिया जाए ।

4.5.3 बाजॉर दर पर

क्रेता रिपो लेनदेन के अंतर्गत अर्जित प्रतिभ्ूातियों को बाजॉर दर पर मूल्यन, प्रतिभूति के निवेश वर्गीकरण के अनुसार करेगा । उदाहरण के लिए, बैंकों के लिए यदि रिवर्स रिपो लेनदेनों के अंतर्गत अर्जित

प्रतिभूतियों को बिक्री के लिए उपलब्ध श्रेणी के अंतर्गत वगीकृत किया गया है तो ऐसी प्रतिभूतियों को बाजॉर दर पर मूल्यन कम-से-कम तिमाही में एक बार किया जाना चाहिए उन कंपनियों के लिए जो किसी

निवेश वर्गीकरण के मानदंडों का अनुपालन नहीं करती हैं, रिवर्स रिपो लेनदेनों के अंतर्गत अर्जित प्रतिभूतियों का मूल्यन, उसी प्रकार की प्रतिभूतियों के संबंध में उनके द्वारा अनुपालन किये जाने वाले मूल्यन मानदंडों के अनुसार किया जाए ।

तुलनपत्र-तारीख को बकाया रिपो लेनदेनों के संबंध में

(क) क्रेता तुलनपत्र तारीख को प्रतिभ्ूातियों का बाजॉर दर पर मूल्यन करेगा तथा भारतीय रिजॅर्व बैंक के संबंधित विनियामक विभागों द्वारा जारी किए गए विद्यमान मूल्यन दिशानिर्देशों में निर्धारित किये गये अनुसार उनका लेखा-जोखा ।

(ख) रिपो के अंतर्गत प्रस्तावित प्रतिभूति का बिक्री मूल्य यदि बही मूल्य से कम है तो विक्रेता लाभ तथा हानि खाते में मूल्य में अंतर के लिए प्रावधान करेगा तथा इस अंतर को तुलनपत्र में ‘अन्य आस्तियों’ के अंतर्गत दर्शाएगा ।

(ग) रिपो के अंतर्गत प्रस्तावित प्रतिभूति का बिक्री मूल्य यदि बही मूल्य से अधिक है तो विक्रेता लाभ तथा हानि खाते के प्रयोजन से मूल्य में अंतर को ध्यान में नहीं लेगा लेकिन तुलनपत्र में इस अंतर को ‘अन्य देयताओं’ के अंतर्गत दर्शाएगा; तथा

(घ) उसी प्रकार तुलनपत्र तारीखों को बकाया रिपो /रिवर्स रिपो लेनदेनों में भुगतान /प्राप्त किया गया उपचित ब्याज तुलनपत्र में ‘अन्य आस्तियों’ अथवा ‘अन्य देयताओं’ के रूप में दर्शाया जाए ।

4.5.4 पुन: खरीद पर बही मूल्य

दूसरे चरण में प्रतिल्भूतियों को पुन: खरीदने पर विक्रेता रिपो खाते में मूल बही मूल्य (पहले चरण की तारीख को बहियों में विद्यमान मूल्य के अनुसार) को नामे डालेगा ।

4.5.5 प्रकटीकरण

तुलनपत्र को संलग्न ‘लेखों पर टिप्पणियों’ में बैंकों को जो प्रकटीकरण देने है उन्हें अनुबंध ङघ्घ् में दिया गया है ।

4.5.6 लेखा पद्धति

जिन लेखा पद्धतियों को अनुपालन करना है उन्हें नीचे दिया गया है तथा अनुबंध ङघ्घ्घ् में उदाहरण दिए गए हैं । जहां विभिन्न लेखा प्रणालियों का उपयोग करने वाले बाजॉर सहभागी उदाहरण में उपयोग में लाए गए लेखा शीर्षों से अलग शीर्षों का उपयोग कर सकते हैं वहां ऊपर प्रस्तावित लेखा सिद्धांतों के अनुपालन में कोई अंतर नहीं होना चाहिए । इसके साथ ही, रिपो लेनदेनों से उठने वाले विवादों को दूर करने के लिए सहभागी, फिमडा द्वारा अंतिम रूप दिए गए प्रलेखन के अनुसार द्विपक्षीय मास्टर रिपो समझौता करने पर विचार करें ।

4.5.7 रिपो /रिवर्स रिपो लेनदेनों के समान लेखा पद्धति के लिए संस्तुत लेखा पद्धति

क. निम्नलिखित खाते खोले अर्थात् : i) रिपो खाता, ii) रिपो मूल्य समायोजन खाता, iii) रिपो ब्याज समायोजन खाता, iv) रिपो ब्याज व्यय खाता, v) रिपो ब्याज आय खाता, vi) रिवर्स रिपो खाता, vii) रिवर्स रिपो मूल्य समायोजन खाता तथा viii) रिवर्स रिपो ब्याज समायोजन खाता ।

ख. रिपो के अंतर्गत बेची /खरीदी गयी प्रतिभूतियों को पूर्ण बिक्री /खरीद के रूप में हिसाब में लिया जाए ।

ग. प्रतिभूतियों बहियों में एक ही बही मूल्य पर प्रवेश तथा विकास करेंगी। परिचालनगत सुविधा के लिए भारित औसत लागत पद्धति जिसमें निवेशों को उनकी भारित औसत लागत पर बहियों में लिया जाता है को अपनाया जाए ।

रिपो

घ रिपो लेनदेन के पहले चरण में प्रतिभूतियों के बाजॉर संबंधित मूल्यों पर बेचा जाए तथा दूसरे चरण में व्युत्पन्न मूल्य पर पुन: खरीदा जाए । बिक्री तथा पुन: खरीद को रिपो खाते में दर्शाया जाए ।

ङ तुलनपत्र प्रयोजन से रिपो खाते में शेर्षों को बैंक के निवेश खाते से घटाया जाए ।

च. रिपो के पहले चरण में बाजार मूल्य तथा बही मूल्य के बीच के अंतर को रिपो मूल्य समायोजन खाते में दर्ज किया जए । उसी प्रकार रिपो के दूसरे चरण में व्युत्पन्न मूल्य तथा बही मूल्य के बीच के अंतर को रिपो मूल्य समायोजन खाते में दर्ज किया जाए ।

रिवर्स रिपो

छ. रिवर्स रिपो लेनदेन में पहले चरण में प्रतिभूतियों को प्रचलित बाज़ार मूल्य पर खरीदा जाए तथा दूसरे चरण में व्युत्पन्न मूल्य पर बेचा जाए । खरीद तथा बिक्री को रिवर्स रिपो खाते में हिसाब में लिया जाए ।

ज. रिवर्स रिपो लेनदेनों के अंतर्गत अर्जित प्रतिभूतियां यदि अनुमोदित प्रतिभूतियों हो तो रिवर्स रिपो खाते में शेष, तुलनपत्र प्रयोजनों से निवेश खाते का हिस्सा होंगे तथा उन्हें सांविधिक चलनिधि अनुपात के प्रयोजनों से ध्यान में लिए जा सकता हैं ।

झ. रिवर्स रिपो में खरीदी गयी प्रतिभूति बहियों में बाज़ार मूल्य (खंडित अवधि ब्याज को छोड़कर) पर प्रवेश करेगी । रिवर्स रिपो के दूसरे चरण में व्युत्पन्न मूल्य तथा बही मूल्य के बीच के अंतर को रिवर्स रिपो मूल्य समायोजन खाते में दर्ज किया जाए ।

रिपो /रिवर्स से संबंधित अन्य पहलू

ञ. यदि रिपो के अंतर्गत प्रस्तावित प्रतिभूति के ब्याज के भुगतान की तारीख रिपो अवधि में आती है तो क्रेता ने प्राप्त किये हुए कूपनों को प्राप्ति की तारीख को विक्रेता को दिया जाए क्योंकि दूसरे चरण में विक्रेता द्वारा देय नकद प्रतिफल में कोई मध्यवर्ती नकद प्रवाह शामिल नहीं हैं ।

त. रिपो /रिवर्स रिपो मूल्य समायोजन खाते में पहले तथा दूसरे चरणों में दर्ज राशियों के बीच की अंतर राशि को जैसी स्थिति हो रिपो ब्याज व्यय खाते अथवा रिपो ब्याज आय खाते में अंतरित किया जाए ।

थ. पहले तथा दूसरे चरणों में उपचित खंडित अवधि ब्याज को जैसी स्थिति हो रिपो ब्याज समायोजन खाते अथवा रिवर्स रिपो ब्याज समायोजन खाते में दर्ज किया जाएगा । अत: पहले तथा दूसरे चरणों में इस खाते में दर्ज की गयी राशियों के बीच की अंतरराशि को जैसी स्थिति हो रिपो ब्याज व्यय खाते अथवा रिपो ब्याज आय खाते में अंतरित किया जाए ।

द. बकाया रिपोज के लिए लेखा अवधि के अंत में रिपो/रिवर्स रिपो मूल्य समायोजन खाते तथा रिपो/रिवर्स रिपो ब्याज समायोजन खाते में शेषों को जैसी स्थिति हो या तो तुलनपत्र में अनुसूची घ्घ् - ‘अन्य आस्तियां’ के अंतर्गत मद ङघ् - ‘अन्य’ के अंतर्गत अथवा अनुसूची 5 - ‘अन्य देयताएं तथा प्रावधान’ के अंतर्गत मद घ्ङ, ‘अन्य (प्रावधानों सहित)’ में दर्शाया जाना चाहिए ।

ध. चूंकि लेखा अवधि के अंत में रिपो मूल्य समायोजन खाते में नामे शेष, बकाया रिपो लेनदेनों में प्रस्तावित प्रतिभूतियों के संबंध में प्रावधान न की गयी हानियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए उसके लिए लाभ तथा हानि खाते में प्रावधान करना आवश्यक होगा ।

न. लेखा अवधि के अंत में बकाया रिपो/रिवर्स रिपो लेनदेनों के संबंध में ब्याज के उपचय को दर्शाने के लिए क्रेता/विक्रेता की बहियों में क्रमश: रिपो ब्याज आय/व्यय को दर्शाने के लिए लाभ तथा हानि खाते में उचित प्रविष्टियां पारित की जाए तथा उसी को उपचित किंतु अप्राप्य आय/व्यय के रूप में नामे डाला/जमा किया जाए । इस तरह से पारित प्रविष्टियेां को अगली लेखा अवधि के पहले कार्य दिन को रिवर्स किया जाना चाहिए ।

प. ब्याज सहित (कूपन) लिखतों में रिपो के संबंध में क्रेता रिपो की अवधि के दौरान ब्याज उपचित करेगा । डिस्काउंट लिखत जैसे राजकोषीय बिल में रिपो के संबंध में विक्रेता रिपो की अवधि के दौरान अर्जन के समय पर मूल प्रतिफल के आधार पर डिस्काउंट उपचित करेगा ।

फ. लेखा अवधि के अंत में रिपो ब्याज समायोजन खाते तथा रिवर्स रिपो ब्याज समायोजन खाते में नामे शेषों (अब तक बकाया रिपो के शेषों को छोड़कर) को रिपो ब्याज व्यय खाते में अंतरित किया जाए तथा रिपो ब्याज समायोजन खाते तथा रिवर्स रिपो ब्याज समायोजन खाते में जमा शेषों (अब तक बकाया रिपो के शेषों को छोड़कर) को रिपो ब्याज आय खाते में अंतरित किया जाए ।

ब. उसी प्रकार, लेखा अवधि के अंत में रिपो/रिवर्स रिपो मूल्य समायोजन खाते में नामे शेषों (अब तक बकाया रिपो के शेषों को छोड़कर को रिपो ब्याज व्यय खाते में अंतरित किया जाए तथा

रिपो /रिवर्स रिपो मूल्य समायोजन खाते में जमा शेषों (अब तक बकाया रिपो के शेषों को छोड़कर) को रिपो ब्याज आय खाते में अंतरित किया जाए ।

5. सामान्य

5.1 आय निर्धारण

i) कंपनी निकायों / सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की प्रतिभूतियों के संबंध में, केन्द्र सरकार अथवा राज्य सरकार ने ब्याज के भुगतान तथा मूलधन की वापसी की गारंटी दी है वहां बैंक आय को उपचय आधार पर दर्ज कर सकते हैं बशर्ते ब्याज नियमित रूप से दिया जाता है और कुछ बकाया नहीं है ।

ii) बैंक उपचय आधार पर कॉर्पोरेट निकायों के शेयरों पर मिलने वाले लाभांश से प्राप्त आय दर्ज कर सकते हैं बशर्ते कॉर्पोरेट निकाय ने अपनी वार्षिक सामान्य बैठक में शेयरों पर लाभांश की घोषणा की है तथा शेयरों के स्वामी का भुगतान प्राप्त करने पर अधिकार स्थापित है ।

iii) जहां इन लिखतों पर ब्याज दर पूर्व निर्धारित है तथा इस शर्त पर कि ब्याज की नियमित चुकौती की जा रही है और कुछ बकाया नहीं है ऐसी सरकारी प्रतिभूतियों तथा कॉर्पोरेट निकायों के बॉण्डस् तथा डिबेंचर्स से प्राप्त आय को बैंक उपचित आधार पर दर्ज कर सकते हैं ।

iv) बैंकों को चाहिए कि वे म्युचुअल फंडों की इकाइयों से प्राप्त आय को नकद आधर पर दर्ज करें ।

5.2 खंडित अवधि ब्याज


सरकारी तथा अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में निवेश के संबंध में बैंकों को विक्रेता को भुगतान किए गए खंडित अवधि ब्याज को लागत के एक हिस्से के रूप में पूंजीकरण नहीं करना चाहिए, किंतु उसे लाभ तथा हाानि खाते के अंतर्गत व्यय की मद के रूप में समझा जाना चाहिए । यह नोट किया जाए कि उपर्युक्त लेखा पद्धति कर से संबंधित प्रभावों को ध्यान में नहीं लेती है तथा इसलिए बैंकों को आयकर प्राधिकरणों की अपेक्षाओं का उनके द्वारा निर्धारित पद्धति के अनुसार अनुपालन करना चाहिए ।

5.3 डिमटिरियलाइज़ड धारिताएं

बैंकों को सूचित किया गया है कि भारतीय प्रतिभूति तथा विनिमय बोर्ड द्वारा अनुसूचित किये गये अनुसार वे प्रतिभूतियों में की जाने वाली लेनदेन का निपटान केवल डिपॉजिॅटरीज के माध्यम से करें । बैंकों को यह भी सूचित किया गया था कि डिमैट फॉर्म में अनिवार्य खरीद-बिक्री की प्रक्रिया लागू कर दिये जाने के बाद वे सूचीबद्ध कंपनियिों के ऐसे शेयर नहीं बेच सकेंगे जो फिजिॅकल फॉर्म में रखे गये थे । 30 जून 2002 तक स्क्रिप फार्म में रखे गये बकाया निवेशों को डिमटिरियलाइज़ड फार्म में परिवर्तित करना
होगा । ईक्विटी लिखतों के संबंध में बैंकों से यह अपेक्षित था कि वे 31 दिसंबर 2004 तक अपनी सभी स्क्रिप फार्म में रखी गयी ईक्विटी धारिताओं को डिमटिरियलाइज़ड फार्म में परिवर्तित कर लें ।


अनुबंध 1-क

सरकारी प्रतिभूतियों में मंदडिया बिक्री

बैंक केंद्रीय सरकार की उन दिनांकित प्रतिभूतियों की एकमुश्त बिक्री शुरू कर सकते हैं जिनका स्वामित्व उनके पास नहीं है, बशर्ते उसी ट्रेडिंग दिवस के भीतर गौण बाज़ार से एकमुश्त खरीद द्वारा इसे रक्षित किया जाता हो । आंतर-दिवसीय मंदडियां बिक्री की अनुमति निम्नलिखित शर्तों के अधीन दी जा रही है :

  • आंतर-दिवसीय मंदडिया बिक्री सौदा तथा खरीद से अधिक बिक्री की सुरक्षा को भी केवल तयशुदा लेनदेन प्रणाली आर्डर मैचिंग (एनडीएस-ओएम) प्लेटफार्म पर निष्पादित किया जाना चाहिए ।
  • किसी भी स्थिति में खरीद से अधिक बिक्री को उस दिन के अंत को अरक्षित नहीं छोड़ना
    चाहिए । ट्रेडिंग दिन के दौरान खरीद से अधिक किसी बिक्री को रक्षित करने में असमर्थता को ‘एसजीएल नकार’ का उदाहरण माना जाएगा और आवश्यक विनियामक कार्रवाई के अलावा एसजीएल नकारने के संबंध में निर्धारित कार्रवाई को लिए बाध्य होगा ।
  • किसी भी समय किसी बैंक को प्रतिभूति के बकाया स्टाक के 0.25 प्रतिशत से अधिक खरीद से अधिक बिक्री संचित नहीं करना चाहिए । भारत सरकार की प्रत्येक दिनांकित प्रतिभूति के संबंध में जानकारी 1 मार्च 2006 से आरबीआई वेबसाईट (URL:www.rbke.org.ken) पर इस संबंध में निगरानी हेतु उपलब्ध करायी जा रही है ।

वास्तविक रूप में लेनदेन शुरू करने से पहले बैंकों के पास ‘आंतर दिवसीय’ मंदडिया बिक्री पर एक लिखित नीति होना आवश्यक है जो उनके संबद्ध निदेशक बोर्ड द्वारा अनुमोदित हो । इस नीति में आंतरिक दिशानिर्देश निर्धारित किये जाने चाहिए जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ खरीद से अधिक बिक्री पर जोखिम सीमा, सभी पात्र प्रतिभूति के लिए स्वीकार्य कुल सामान्य मंदडिया बिक्री सीमा (अंकित मूल्यानुसार), विनियामक तथा आंतरिक दिशानिर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आंतरिक नियंत्रण प्रणाली, उच्च प्रबंधन तंत्र तथा भारतीय रिज़र्व बैंक को मंदडिया बिक्री कार्यकलापों की सूचना, अतिक्रमण पर कार्रवाई के लिए कार्यपद्धति, आदि (उक्त नीति की एक प्रति भारतीय रिज़र्व बैंक के आंतरिक ऋण प्रबंधन विभाग (आइडीएमडी) को पूर्व सूचनार्थ प्रेषित की जानी चाहिए) को शामिल किया जाना चाहिए । बैंक के पास उसी ट्रेडिंग दिन में अतिक्रमणों, यदि कोई हो, का तुरंत निश्चित रूप में पता लगाने हेतु एक प्रणाली होनी ही चाहिए । जो बैंक इस तरह तुरंत पता लगाना सुनिश्चित नहीं कर सकता उसने मंदडिया बिक्री नहीं करनी चाहिए ।

उपर्युक्त दिशानिर्देश गिल्ट खाता धारकों के लेनदेन के लिए लागू नहीं हैं । तदनुसार, जो बैंक अभिरक्षकों (अर्थात् जीएसजीएल खाता धारकों) के रूप में कार्य करते हैं और अपने घटकों को गिल्ट खाता रखने की सुविधा प्रदान करते हैं, उनके द्वारा बेची गयी प्रतिभूति जब तक उस घटक के गिल्ट खाते में वास्तविक रूप में रखी नहीं जाती तब तक उनके घटकों द्वारा किये गये किसी भी बिक्री लेनदेन के निपटान की अनुमति नहीं देनी चाहिए । जब खुद अभिरक्षक के पास किसी गिल्ट खाता धारक का खरीद ठेका हो तब भी उक्त दिशानिर्देश लागू नहीं होंगे ।

तथापि यह निर्णय किया गया है कि 11 मई 2006 से सीएसजीएल घटक खाता धारकों के साथ तथा उनके बीच आबंटन के दिन प्राथमिक शेयरों में सफल बोली लगानेवाले को उन्हें आबंटित की गयी सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री की अनुमति दी जाए ।

बैंकों को इन दिशानिर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने में भरपूर सावधानी बरतनी चाहिए । समवर्ती लेखा परीक्षकों को इन अनुदेशों के अनुपालन का विशिष्ट रूप में सत्यापन करना चाहिए और उचित आंतरिक प्राधिकारी को पर्याप्त अल्पावधि के भीतर लेनदेन के दिन ही अतिक्रमणों, यदि कोई हो, की सूचना देनी चाहिए । अपनी मासिक रिपोर्टिंग के भाग के रूप में समवर्ती लेखा परीक्षक इस बात का सत्यापन करें कि क्या स्वतंत्र बैक ऑफिस ने ऐसे सभी व्यपगमनों की पहचान की है और अपेक्षित समय सीमा के भीतर उनकी सूचना दी है ।

समवर्ती लेखा परीक्षक रिपोर्टों में उक्त अनुदेशों के अनुपालन पर विशिष्ट अभिमतों का समावेश किया जाना चाहिए और उक्त बैंक के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक/मुख्य कार्यकारी अधिकारी को दी जानेवाली मासिक रिपोर्ट में और निदेशक बोर्ड को प्रस्तुत की जानेवाली अर्ध-वार्षिक समीक्षा में शामिल किया जाना चाहिए । भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड (सीसीआइएल) बाज़ार के सहभागियों को अपनी दैनिक रिपोर्ट के भाग के रूप में तयशुदा लेनदेन प्रणाली (एनडीएस) से सभी लेनदेनों का टाइम स्टॅम्प उपलब्ध कराएगा । मिड ऑफिस/बैक ऑफिस और लेखा परीक्षक इस जानकारी का उपयोग अनुदेशों के अनुपालन हेतु लेनदेनों की अपनी जांच/संवीक्षा को पूरक बनाने के लिए कर सकते हैं । इस संबंध में पाये गये किसी भी प्रकार के अतिक्रमण की सूचना रिज़र्व बैंक के संबंधित विनियामक विभाग तथा लोक ऋण कार्यालय (पीडीओ), भारतीय रिज़र्व बैंक, मुंबई को तुरंत दी जानी चाहिए । इस संबंध में पाये गये किसी भी प्रकार के अतिक्रमण पर आवश्यक समझी गयी आगे की विनियामक कार्रवाई के अलावा सुपुर्दगी बनाम अदायगी (डीवीपी) घ्घ्घ् के अंतर्गत निवल लाभ के कारण यदि सौदा निपटाया गया होगा तो भी, सहायक सामान्य खाता बही (एसजीएल) फार्मों के नकारे जाने पर वर्तमान में लागू दंड की तरह दंड लगाया जाएगा ।


अनुबंध 1-ख

व्हेन इश्यूड बाज़ार - दिशानिर्देश

परिभाषा

"व्हेन, एज़ और इफ इश्यूड" (सामान्यत: "व्हेन-इश्यूड" (डब्ल्यू आइ) के रूप में जाना जाता है) प्रतिभूति वह प्रतिभूति है जिसके निर्गमन का अधिकार दिया गया है परंतु अभी तक वास्तविक रूप में निर्गम नहीं किया गया । डब्ल्यू आई ट्रेडिंग़ नये शेयर की घोषणा के समय और उसे वास्तविक रूप में जारी करने के समय के बीच में होती है । सभी "व्हेन इश्यूड" लेनदेन "इफ" आधार पर होते हैं जिसका निपटान यदि और जब वास्तविक प्रतिभूति जारी की जाये तब किया जाता है ।

परिचालन की क्रियाविधि

व्हेन इश्यूड आधार पर किसी प्रतिभूति का लेनदेन निम्नलिखित पद्धति से किया जाएगा ।

क. डब्ल्यूआइ लेनदेन केवल ऐसी प्रतिभूतियों के मामले में किया जाएगा जिनका पुनर्निर्गम किया
जा रहा हो । नयी प्रतिभूतियों के निर्गम के लिए डब्ल्यू आइ लेनदेन पर विचार बाद में किया
जाएगा ।

ख. डब्ल्यूआइ लेनदेन की शुरुआत अधिसूचना की तारीख को की जाएगी और जारी करने की तारीख के तुरंत पहले कार्य दिवस पर इसे बंद किया जाएगा ।

ग. सभी व्यापार की तारीखों के लिए सभी डब्ल्यूआइ लेनदेनों के निपटान हेतु जारी करने की तारीख को संविदाकृत किया जाएगा ।

घ. जारी करने की तारीख को निपटान के समय डब्ल्यूआइ प्रतिभूति में व्यापार वर्तमान प्रतिभूति में लेनदेन के साथ समायोजित किये जा सकते हैं ।

ङ ‘डब्ल्यूआइ’ लेनदेन तयशुदा लेनदेन प्रणाली आर्डर मैचिंग (एनडीएस-ओएम) पर शुरू करें ।

च. किसी भी डब्ल्यूआइ व्यापार के लिए प्रतिपक्ष के रूप में एक प्राथमिक व्यापारी (पीडी) होना चाहिए (दोनों प्रतिपक्ष प्राथमिक व्यापारी हो सकते हैं)। दूसरे शब्दों में,ं किसी डब्ल्यूआइ लेनदेन में प्राथमिक व्यापारियों से इतर व्यापारी खरीददार तथा विक्रेता दोनों नहीं हो सकता ।

छ. डब्ल्यूआइ बाजार में केवल प्राथमिक व्यापारी खरीद से अधिक बिक्री कर सकते हैं । प्राथमिक व्यापारी से इतर संस्थाएं डब्ल्यूआइ प्रतिभूति की बिक्री केवल तभी कर सकते हैं जब उनके पास समकक्ष या उच्चतर राशि की पूर्वगामी खरीद की संविदा हो ।

ज. डब्ल्यूआइ बाजार में जोखिम की स्थिति निम्नलिखित सीमाओं के अधीन है :

  1. प्राथमिक व्यापारी संस्थाओं से इतर-अधिक्रय, अधिसूचित राशि के 5 प्रतिशत से अनधिक
  2. प्राथमिक व्यापारी - अधिक्रय अथवा खरीद से अधिक बिक्री, अधिसूचित राशि के 10 प्रतिशत से अनधिक

झ. यदि कोई प्राथमिक व्यापारी निपटान (अथवा निर्गम) की तारीख को नीलामी के बाद खरीददार को प्रतिभूति देने में असमर्थ हो तो उस लेनदेन को भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड (सीसीआइएल) की चूक निपटान प्रणाली के अनुसार निपटाया जाएगा ।

ञ. किसी भी कारणवश निलामी के निरसन की स्थिति में सभी डब्ल्यूआइ व्यापार को अनिवार्य बाध्यता के आधार पर प्रारंभ से बातिल और शून्य माना जाएगा ।

आंतरिक नियंत्रण

डब्ल्यूआइ बाजार में भाग लेने वाले एनडीएस-ओएम के सभी सदस्यों के लिए डब्ल्यू आइ पर लिखित नीति होना अनिवार्य है जो निदेशक बोर्ड द्वारा अनुमोदित होनी चाहिए । इस नीति में आंतरिक दिशानिर्देश निर्धारित किये जाने चाहिए जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ डब्ल्यूआइ स्थिति (प्रतिभूति में समग्र स्थिति को शामिल करते हुए डब्ल्यूआइ और वर्तमान प्रतिभूति) पर जोखिम सीमा, डब्ल्यूआइ और समग्र प्रतिभूति के लिए कुल नाम मात्र सीमा (अंकित मूल्य में) विनियामक तथा आंतरिक दिशानिर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आंतरिक नियंत्रण व्यवस्थाएं, उच्च प्रबंधन के डब्ल्यूआइ के कार्यकलापों की सूचना, अतिक्रमण से निपटने की कार्य प्रणाली, आदि का समावेश किया जाना चाहिए । निश्चित रूप के लेनदेन के दिन के भीतर अधिक्रमण का तुरंत पता लगाने हेतु एक प्रणाली होनी चाहिए ।

समवर्ती लेखा परीक्षकों को इन अनुदेशों के अनुपालन का विशिष्ट रूप मे सत्यापन करना चाहिए और उचित आंतरिक प्राधिकारी को पर्याप्त अल्पावधि के भीतर लेनदेन के दिन ही अतिक्रमणों, यदि कोई हो, की सूचना देनी चाहिए । अपने मासिक रिपोर्टिंग के भाग के रूप में समवर्ती लेखा परीक्षक इस बात का सत्यापन करें कि क्या स्वतंत्र बैक ऑफिस ने ऐसे सभी व्यपगमों की पहचान की है और अपेक्षित समय सीमा के भीतर उनकी सूचना दी है । इस संबंध में पाये गये किसी भी प्रकार के अतिक्रमण की सूचना रिज़र्व बैंक के संबंधित विनियामक विभाग तथा लोक ऋण कार्यालय (पीडीओ), मुंबई और आंतरिक ऋण प्रबंध विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक को तुरंत दी जानी चाहिए ।

रिपोर्टिंग

प्राथमिक व्यापारी उनके द्वारा शुरू किये गये सभी ‘व्हेन इश्यूड’ लेनदेनों की सूचना दैनिक आधार पर निर्धारित फार्मेट में देंगे ।


 

अनुबंध - 1 ग

पैरा 1.2 (i) (बी)

बैंकों का निवेश संविभाग - प्रतिभूतियों के लेनदेन - प्राथमिक निर्गमों के लिए

नीलामी में आबंटित प्रतिभूतियों को बेचने की शर्तें

(i) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी की गयी प्रमाणित आबंटन-सूचना के आधार पर आबंटिती बैंक द्वारा बिक्री की संविदा केवल एक बार की जा सकती है । बेचने वाले बैंक को आबंटन-सूचना पर उपयुक्त टिप्पणी लिखनी चाहिए / मोहर लगानी चाहिए, जिसमें बिक्री-संविदा संख्या आदि का उल्लेख किया जाना चाहिए । खरीदने वाले को उन्हें पुन: बेचने की संविदा तब तक नहीं करनी चाहिए, जब तक कि प्रतिभूतियां वास्तव में उसके निवेश खाते में न हों ।

(ii) आबंटित प्रतिभूतियों की बिक्री की संविदा बैंकों द्वारा उन संस्थाओं के साथ की जा सकती है जिनके एसजीएल खाते भारतीय रिज़र्व बैंक में हैं तथा यह संविदा सीएसजीएल खाताधारकों के साथ तथा उनके बीच की जा सकती है । उक्त संविदा भुगतान पर सुपुर्दगी (डीवीपी) प्रणाली के माध्यम से अगले कार्य दिवस पर सुपुर्दगी और निपटान के लिए होगी ।

(iii) बेची गयी प्रतिभूतियों का अंकित मूल्य आबंटन-सूचना में बताये गये अंकित मूल्य से अधिक नहीं होना चाहिए ।

(iv) बिक्री का सौदा दलाल / दलालों के बिना सीधे किया जाना चाहिए ।

(v) इस तरह की बिक्री-सौदों का अलग रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए, जिसमें आबंटन-सूचना की संख्या और तारीख, आबंटित प्रतिभूतियों के विवरण और अंकित मूल्य जैसे ब्यौरे, खरीद संबंधी बातें, बेची गयी प्रतिभूतियों की संख्या, सुपुर्दगी की तारीख और अंकित मूल्य, बिक्री संबंधी बातें, वास्तविक सुपुर्दगी की तारीख और ब्यौरे अर्थात् एस. जी. एल. फार्म सं. आदि दिये जाने चाहिए । यह रिकॉर्ड सत्यापन के लिए रिज़र्व बैंक को उपलब्ध कराया जाना चाहिए । इस तरह का रिकॉर्ड रखने में बैंक की कोई चूक हो तो उसकी रिपोर्ट तत्काल दी जानी चाहिए ।

(vi) प्राथमिक निर्गमों के लिए नीलामी में आबंटित और प्रमाणित आबंटन-सूचना पर आधारित सरकारी प्रतिभूतियों के उसी दिन बिक्री-लेनदेनों की समवर्ती लेखा-परीक्षा की जायेगी और संबंधित लेखा-परीक्षा रिपोर्ट बैंक के कार्यपालक निदेशक, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक को हर महीने प्रस्तुत की जानी चाहिए । उसकी एक प्रति बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्रीय कार्यालय, मुंबई को भी भेजी जानी चाहिए ।

(vii) भुगतान न होने / चेक नकारे जाने आदि के कारण उनके एस. जी. एल. खाते में प्रतिभूतियां जमा न होने के कारण किसी संविदा की असफलता के लिए बैंक पूरी तरह जिम्मेदार होंगे ।


अनुबंध - II;

पैरा 1.2.6 (i) (जी)

बैंकों का निवेश संविभाग - प्रतिभूतियों के लेनदेन -

प्रत्येक दलाल के लिए सकल संविदा सीमा - स्पष्टीकरण

क्रम सं.

उठाये गये मुद्दे

उत्तर

1.

वर्ष कैलेंडर वर्ष होना चाहिए या वित्तीय वर्ष ?

चूंकि बैंक मार्च के अंत में अपना लेखा बंद करते हैं, अत: वित्तीय वर्ष का अनुपालन करना अधिक सुविधाजनक होगा । फिर भी, बैंक कैलेंडर वर्ष या 12 महीने की किसी अन्य अवधि का अनुपालन कर सकते हैं, बशर्ते कि भविष्य में इसका अनुपालन लगातार किया जाये ।

     

2.

क्या सीमा का अनुपालन पूर्ववर्ती वर्ष के कुल लेनदेन के संदर्भ में किया जाना चाहिए, क्योंकि चालू वर्ष के लेनदेन की जानकारी वर्ष के अंत में ही हो सकती हैं ?

सीमा का अनुपालन समीक्षाधीन वर्ष के संदर्भ में किया जाना है । सीमा का परिचालन करते समय बैंक को चालू वर्ष के प्रत्याशित कारोबर को, जो पूर्ववर्ती वर्ष के कारोबार और चालू वर्ष में व्यवसाय के परिमाण में होने वाली वृद्धि या कमी के आधार पर हो सकती है, ध्यान में रखना चाहिए ।

     

3.

क्या वर्ष में किये गये कुल लेनदेन ज्ञात करने के लिए प्रतिपक्षियों के साथ किये गये प्रत्यक्ष लेनदेन, जिनमें दलाल शामिल नहीं होते, को भी हिसाब में लेना चाहिए ?

आवश्यक नहीं । फिर भी, यदि क्रेता या विक्रेता के रूप में दलालों के साथ कोई प्रत्यक्ष लेनदेन किया जाये तो किसी दलाल के माध्यम से किये जाने वाले लेनदेन की सीमा ज्ञात करने के लिए उसे कुल लेनदेन में शामिल करना होगा ।

     

4.

क्या कुल लेनदेन का परिमाण ज्ञात करने के लिए हाज़िर वायदा लेनदेन के मामले में सौदे के दोनों चरणों, अर्थात् क्रय और विक्रय, को शामिल किया जायेगा ?

हां । चूंकि खज़ाना बिलों को छोड़कर सरकारी प्रतिभूतियों के हाज़िर वायदा लेनदेन पर अब प्रतिबंध लगा दिया गया है और 3 वर्षीय दिनांकित प्रतिभूतियां हाल ही में खज़ाना बिलों के परिवर्तन द्वारा जारी की गयी हैं, अत: यह केवल सैद्धांतिक है ।

     

5.

क्या कुल लेनदेन के परिमाण में प्रत्यक्ष अभिदान / नीलामी द्वारा खरीदे गये केन्द्रीय ऋण / राज्य ऋण / खज़ाना बिलों आदि को शामिल किया जायेगा ?

नहीं, क्योंकि इसमें बिचौलिए के रूप में दलाल शामिल नहीं हैं ।

6.

यह संभव है कि कोई दलाल विशेष 5% निर्धारित सीमा पर पहुंच गया हो, फिर भी वह वर्ष की शेष अवधि में कोई प्रस्ताव लेकर आये और बैंक को अन्य दलालों, जिन्होंने अभी तक निर्धारित सीमा तक व्यवसाय नहीं किया हो, से प्राप्त प्रस्तावों की तुलना में लाभकारी प्रतीत हो, तो क्या बैंक उस पर विचार कर सकता है ।

यदि प्राप्त प्रस्ताव अधिक लाभकारी हो तो उस दलाल के लिए सीमा बढ़ायी जा सकती है । उसके लिए कारण अभिलिखित किये जाये और सक्षम प्राधिकारी / बोर्ड का कार्योत्तर अनुमोदन प्राप्त किया जाये ।

     

7.

क्या ग्राहकों की ओर से किये गये लेनदेन भी वर्ष के कुल लेनदेन में शामिल किये जायेंगे ।

ॅहां, यदि वे दलालों के माध्यम से किये जायें ।

     

8.

यदि 5 प्रतिशत की दलालवार सीमा बनाये रखने वाला कोई बैंक, जो दलालों के माध्यम से बहुत कम लेनदेन करता है और उसके परिणामस्वरूप उसके व्यवसाय का परिमाण बहुत कम होता है, विभिन्न दलालों के बीच छोटे मूल्यों में आदेशों का विभाजन करना चाहे, जिससे मूल्य विभेद भी उत्पन्न हो सकता है, तो क्या ऐसा किया जा सकता है ?

किसी आदेश को विभाजित करने की आवश्यकता नहीं है । यदि किसी सौदे के कारण किसी विशेष दलाल का अंश 5 प्रतिशत की सीमा से अधिक हो जाये तो हमारे परिपत्र में आवश्यक लचीलेपन का प्रावधान किया गया है कि उसके लिए बोर्ड का कार्योत्तर अनुमोदन प्राप्त किया जा सकता है ।

     

9.

समुचित रूप से यह भविष्यवाणी करना संभव नहीं है कि वर्ष में दलालों के माध्यम से किये जानेवाले कारोबार की कुल मात्रा क्या होगी, जिसके परिणामस्वरूप 5 प्रतिशत के मानदंड के अनुपालन में विचलन हो सकता है ।

जिन परिस्थितियों में सीमा बढ़ायी गयी हो, उनका स्पष्टीकरण देकर बैंक बोर्ड से कार्योत्तर अनुमोदन प्राप्त कर सकता है ।

     

10.

निजी क्षेत्र के कुछ छोटे बैंकों ने उल्लेख किया है कि जहां दलालों के माध्यम से लेनदेन किये जाते हैं, वहां कारोबार की मात्रा कम होने के कारण 5 प्रतिशत की सीमा का अनुपालन करने में कठिनाई होती है । इसलिए सुझाव दिया गया है कि जब किसी दलाल के माध्यम से किया गया कारोबार एक सीमा, अर्थात् 10 करोड़ रुपये से अधिक हो जाये तभी निर्धारित सीमा के अनुपालन की अपेक्षा की जानी चाहिए ।

जैसा कि पहले ही देखा गया है कि 5 प्रतिशत की सीमा बढ़ायी जा सकती है, बशर्ते कि कार्योत्तर स्वीकृति के लिए सक्षम प्राधिकारी को कारोबार की सूचना दी जाये । इसलिए हमारे अनुदेशों में कोई परिवर्तन करना आवश्यक प्रतीत नहीं होता है ।

 


 

अनुबंध - III;

पैरा 1.2.8 (ii)

बैंकों के सांविधिक चलनिधि अनुपात से इतर निवेशों से संबंधित कार्यदल की सिफारिशें

निजी तौर के निर्गमों के संबंध में प्रकट करने से संबंधित

न्यूनतम अपेक्षाओं का प्रोफार्मा - प्रस्ताव का मॉडल दस्तावेज

सभी निर्गमकर्ताओं को एक प्रस्ताव दस्तावेज जारी करना चाहिए, जो निदेशक मंडल के संकल्प से प्राधिकृत हो और यह संकल्प निर्गम की तारीख से 6 महीने से अधिक पुराना नहीं होना चाहिए । प्रस्ताव दस्तावेज में निर्गम को प्राधिकृत करने के लिए निदेशक मंडल के संकल्प का तथा प्रस्ताव दस्तावेज के निर्गम के लिए प्राधिकृत अधिकारियों के पदनामों का विशिष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए । प्रस्ताव दस्तावेज मुद्रित या टाइप किया हुआ होना चाहिए और उस पर ‘केवल निजी परिचालन के लिए’ लिखा होना चाहिए । प्रस्ताव दस्तावेज पर प्राधिकृत अधिकारी के हस्ताक्षर होने चाहिए । प्रस्ताव दस्तावेज में कम से कम निम्नलिखित जानकारी अवश्य होनी चाहिए ।

  1. सामान्य जानकारी
  1. कंपनी के पंजीकृत कार्यालय का नाम और पता
  2. निदेशकों के पूरे नाम (आद्यक्षरों से बनने वाले पूर्ण नाम), पते और उन कंपनियों के नाम, जिनमें वे निदेशक के रूप में हैं ।
  3. निर्गम की सूचीबद्धता (यदि सूचीबद्ध हो तो शेयर बाज़ार का नाम)
  4. निर्गम के खुलने की तारीख
  5. निर्गम के बंद होने की तारीख

    बंद होने की तारीख से पहले बंद होने की तारीख

  6. लेखा-परीक्षकोंऔर अग्रणी प्रबंधकों / व्यवस्था करने वालों के नाम और पते
  7. न्यासी (ट्रस्टी) का नाम और पता - सहमति पत्र प्रस्तुत किया जाना है (डिबेंचरों के मामले में)
  8. किसी श्रेणी-निर्धारक एजेंसी द्वारा श्रेणी-निर्धारण और /अथवा अद्यतन श्रेणी-निर्धारण के आचितय की प्रति

II. निर्गम के ब्योरे

(क) उद्देश्य

(ख) नयी परियोजना के संबंध में परियोजना लागत और वित्त व्यवस्था के साधन (जिसमें प्रवर्तकों का योगदान शामिल हो)

III. मॉडल प्रस्ताव (ऑफर) दस्तावेज़ में निम्नलिखित जानकारी भी होनी चाहिए :

  1. आवेदन-धनराशि पर आबंटन की तारीख तक देय ब्याज की दर
  2. जमानत : यदि वह जमानती निर्गम है तो निर्गम को जमानत प्राप्त होनी चाहिए, प्रस्ताव दस्तावेज़ में जमानत, जमानत का प्रकार, प्रभार का प्रकार, न्यासियों, निजी प्रभार-धारकों, यदि कोई हों, का वर्णन होना चाहिए तथा जमानत निर्मित करने की संभावित तारीख, न्यूनतम प्रतिभूति सुरक्षा, पुनर्मूल्यन, यदि कोई हो, का उल्लेख होना चाहिए ।
  3. यदि जमानत के लिए गारंटी द्वारा संपार्श्विक जमानत है, तो गारंटी की प्रति या गारंटी की प्रधान शर्तें प्रस्ताव दस्तावेज़ में शामिल की जायें ।
  4. आंतरिक लेखे, यदि कोई हों ।
  5. पिछले लेखा-परीक्षित तुलन-पत्र तथा लाभ-हानि लेखे का सारांश, लेखा-परीक्षकों द्वारा प्रतिबंध, यदि कोई हों, सहित ।
  6. पिछले दो प्रकाशित तुलन-पत्र संलग्न किये जायें ।
  7. कर छूट, पूंजी पर्याप्तता आदि से संबंधित कोई शर्तें हों तो उन्हें दस्तावेज़ में पूरी तरह लाया जाये ।
  8. बड़े स्तर पर विस्तार करने वाली या नयी परियोजनाएं हाथ में लेने वाली कंपनियों के मामले में निम्नलिखित ब्यौरे (अनुरोध किये जाने पर परियोजना मूल्यांकन की प्रति उपलब्ध करायी जाये) :
  9. (क) परियोजना की लागत, निधियों के स्रोतों और उपयोग सहित

    (ख) अनुमानित नकदी प्रवाह सहित प्रारंभ होने की तारीख

    (ग) वित्तीय समापन की तारीख (अन्य संस्थाओं द्वारा किये गये वायदों के ब्यौरे)

    (घ) परियोजना की रूपरेखा (टेक्नोलोजी, बाज़ार आदि)

    (ङ) जोखिम वाले तत्व

  10. यदि लिखत 5 वर्ष या अधिक की अवधि का है, तो अनुमानित नकदी प्रवाह

IV. बैंक निजी तौर पर किये गये निर्गमों के लिए निम्नलिखित

शर्तों पर जोर देने के लिए सहमत हो सकते हैं

कंपनियों के सभी निर्गमकर्ताओं को खास कर निजी क्षेत्र की कंपनियों के निर्गमकर्ताओं को सभी जमानती ऋण निर्गमों के मामले में, न्यास विलेख और प्रभार दस्तावेज़ निष्पादित होने तक, एक अभिदान करार

निष्पादित करने का इच्छुक होना चाहिए । बैंकों को अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रावधानों सहित एक मानकीकृत अभिदान करार का प्रयोग करना चाहिए ।

(क) आबंटन के 30 दिन के भीतर आबंटन पत्र बनाया जाना चाहिए । कंपनी अधिनियम में निर्धारित सीमा के अंतर्गत न्यास विलेख और प्रभार दस्तावेज़ निष्पादन पूरा किया जाना

चाहिए तथा डिबेंचर प्रमाणपत्र प्रेषित किये जाने चाहिए, परन्तु यह कार्य हर हालत में अभिदान करार की तारीख से 6 महीने में होना चाहिए ।

(ख) उपर्युक्त का अनुपालन करने में विलंब के मामले में कंपनी बैंक विकल्प के अनुसार सहमत ब्याज दर से अभिदान की राशि की चुकौती करेगी, या जब तक उपर्युक्त शर्तें पूरी नहीं होतीं तब तक कूपन दर से 2 प्रतिशत अधिक का दंडात्मक ब्याज अदा करेगी ।

(ग) जमानत निर्मित किये जाने तक, 6 महीने की अवधि (या बढ़ायी गयी अवधि) के दौरान कंपनी के प्रधान निदेशकों को उनके ऋण निर्गम में अभिदान व रने के कारण बैंक को होने वाली किसी हानि के लिए क्षतिपूर्ति करने के लिए सहमत होना चाहिए । (यह शर्त सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर लागू नहीं होगी) ।

(घ) यह कंपनी की जिम्मेदारी होगी कि वह निर्धारित अवधि में जमानत निर्मित करने के लिए पूर्व प्रभार-धारकों की सहमति प्राप्त कर ले । अलग-अलग बैंकों को उपर्युक्त तरीके से प्रस्ताव की शर्तों, जैसे न्यासी की नियुक्ति, जमानत निर्मित करने आदि के अनुपालन के लिए अभिदान करार निष्पादित करने या उपयुक्त पत्र के लिए जोर देना चाहिए ।

(ङ) श्रेणी : दल यह सिफारिश करता है कि सार्वजनिक प्रस्तावों में सभी ऋण लिखतों की श्रेणी के संबंध में ‘सेबी’ के वर्तमान विनियमों को निजी निर्गमों के लिए भी लागू किया जायेगा । यह शर्त उन अधिमान शेयरों पर भी लागू होगी जो 18 महीने के बाद प्रतिदेय
हैं ।

(च) सूचीबद्धता : इस समय, निजी तौर के निर्गमों में बैंकों द्वारा अपेक्षित सूचीबद्धता के संबंध में काफी लचीलापन है । तथापि, दल यह सिफारिश करता है कि कंपनियों को सूचीबद्ध किये जाने पर बल दिया जाना चाहिए (बैंकों की निवेश नीति में इस नियम का कोई अपवाद हो तो वह बताया जाना चाहिए) इससे यथासमय गौण बाज़ार विकसित करने में सहायता मिलेगी । सूचीबद्धता का लाभ यह होगा कि सूचीबद्ध कंपनियों को आवधिक रूप से स्टॉक एक्सचेंजों को सूचना प्रकट करनी होगी, जिससे निवेशक सूचना के रूप में गौण बाज़ार विकसित करने में सहायता मिलेगी । वास्तव में, ‘सेबी’ ने सभी स्टॉक एक्सचेंजों को सूचित किया है कि सभी सूचीबद्ध कंपनियों के लेखा-परीक्षित न किये गये वित्तीय परिणाम तिमाही आधार पर प्रकाशित किये जाने चाहिए और उनके द्वारा ऐसी सभी घटनाओं की तत्काल स्टॉक एक्सचेंजों को सूचना दी जानी चाहिए जिनका असर कंपनी के कार्यनिष्पादन / कार्यकलापों पर पड़ता हो तथा जो सूचना भावों को प्रभावित करने की दृष्टि से संवेदनशील हो ।

(छ) जमानत / दस्तावेज़ : यह सुनिश्चित करने के लिए कि दस्तावेज़ समय पर पूरे किये जायें तथा जमानत निर्मित की जाये, दल ने जो सिफारिशें की हैं वे प्रस्ताव के मॉडल प्रस्ताव में दी गयी हैं । यह नोट किया जाये कि न्यास विलेख और प्रभार दस्तावेज़ों के निष्पादन में विलंब के मामले में कंपनी शर्तें पूरी न होने तक बैंक के विकल्प पर सहमत ब्याज दर से अभिदान की चुकौती करेगी या कूपन दर से 2 प्रतिशत अधिक का दंडात्मक ब्याज अदा करेगी । इसके अलावा, कंपनी के प्रधान निदेशकों को जमानत निर्मित होने तक 6 महीने की अवधि (या बढ़ायी गयी अवधि) के दौरान ऋण निर्गम में अभिदान के कारण बैंक को होनेवाली हानि के लिए बैंक को प्रतिपूर्ति करने के लिए सहमत होना होगा ।


अनुबंध घ्ङ

पैरा 1.2.11

गैर-सांविधिक नकदी अनुपात निवेश संविभाग में

निवेशों पर दिशा-निर्देश - परिभाषाएं

1. सुस्पष्टता तथा दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन में कोई भिन्नता न होना सुनिश्चित करने की दृष्टि से दिशा-निर्देशों की कुछ शर्तों को नीचे परिभाषित किया गया है ।

2. किसी प्रतिभूति को ‘रेटेड’ तब समझा जाएगा जब भारत में सेबी के साथ रजिस्टर्ड बाहरी रेटिंग एजेंसी द्वारा विस्तृत रेटिंग प्रक्रिया की गयी है तथा इसके पास चालू अथवा वैध रेटिंग है । रेटिंग को चालू अथवा वैध तब समझा जाएगा जब

    1. जिस क्रेडिट रेटिंग पत्र पर निर्भर किया गया है वह निर्गम खोलने की तारीख को एक महीने से अधिक पुराना नहीं होगा ।
    2. निर्गम खोलने की तारीख को रेटिंग एजेंसी का रेटिंग तर्काधार एक वर्ष से अधिक पुराना नहीं होगा, तथा
    3. रेटिंग पत्र तथा रेटिंग तर्काधार प्रस्ताव दस्तावेज का एक हिस्सा है ।
    4. अनुषंगी बाज़ार अर्जन के मामले में निर्गम की क्रेडिट रेटिंग प्रचलित होनी चाहिए तथा संबंधित रेटिंग एजेंसी द्वारा प्रकाशित किये जानेवाले मासिक बुलेटिन से उसकी पुष्टि होनी चाहिए ।

जिन प्रतिभूतियों के लिए बाहरी रेटिाग एजेंसी से चालू अथवा वैध रेटिंग प्राप्त नहीं है उन्हें अनरेटेड प्रतिभूतियां समझा जाएगा ।

3. भारत में कार्यरत प्रत्येक बाहरी रेटिंग एजेंसियों द्वारा प्रदान किये गये निवेश ग्रेड रेटिंग का आइबीए/ एफआइएमएमडीए द्वारा निर्धारण किया जाएगा । इनकी आइबीए/एफआइएमएमडीए द्वारा वर्ष में कम-से-कम एक बार समीक्षा भी की जाएगी ।

  1. ‘सूचीबद्ध प्रतिभूति’ वह प्रतिभूति है जिसे स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया गया है । यदि ऐसा नहीं है तो वह अूचीबद्ध प्रतिभूति है ।

अनुबंध ङ

पैरा 1.2.26

बैंकों द्वारा गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात निवेश संविभाग के प्रबंधन पर

विवेकपूर्ण मानदंड - प्रकटीकरण संबंधी अपेक्षाएं

31 मार्च 2004 को समाप्त होनेवाले वित्तीय वर्ष से बैंकों को अपने गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात निवेश संविभाग के संबंध में तुलन-पत्र की ‘लेखों पर टिप्पणियों’ में निम्नलिखित प्रकटीकरण करने चाहिए ।

  1. गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात निवेशों की निर्गमकर्ता संरचना

क्र. सं.

1

निर्गमकर्ता

 

2

राशि

 

3

निजी प्लेसमेंट की सीमा

4

निवेश ग्रेड से निम्न स्तर की प्रतिभूतियां

5

अनरेटेड प्रतिभूति की सीमा

6

असूचीबद्ध प्रतिभूति की सीमा

7

1.

सरकारी क्षेत्र के बैंक

         

2.

वित्तीय संस्था

         

3.

बैंक

         

4.

निजी कंपनियां

         

5.

सहयोगी/संयुक्त उद्यम

         

6.

अन्य

         

7.

मूल्यहृास के लिए प्रावधान

 

XXX

XXX

XXX

XXX

 

कुल*

         

टिप्पणी : 1. * स्तंभ-3 के अंतर्गत कुल योग, तुलन पत्र को अनुसूची 8 में निम्नलिखित श्रेणियों के अंतर्गत शामिल निवेशों के योग के साथ मिलना चाहिए :

क. शेयर

ख. डिबेंचर तथा बांड

ग. सहायक/संयुक्त कंपनियां

घ. अन्य

    1. उपर्युक्त स्तंभ 4, 5, 6 तथा 7 के अंतर्गत रिपोर्ट की गयी राशियां परस्पर अनन्य नहीं हो सकती हैं ।

वव) अनुप्रयोज्य गैर-सांविधिक चलनिधि अनुपात निवेश

विवरण

राशि
(करोड़ रुपयों में)

अथ शेष

 

1 अप्रैल से वर्ष के दौरान जोड़

 

उपर्युक्त अवधि के दौरान कमी

 

इति शेष

 

कुल धारित प्रावधान

 

अनुबंध VI

पैरा 1.3.1

विवरणी / विवरण सं. 9

प्रोफामा&दूi्ा

31 मार्च ........ की स्थिति के अनुसार निवेश खाते के समाधान की स्थिति दर्शाने वाला विवरण

बैंक / संस्था का नाम : . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

(अंकित मूल्य करोड़ रुपये में)

प्रतिभूतियों के ब्यौरे

सामान्य बही खाता शेष

एसजीएल शेष

धारित बैंक रसीदें

धारित एसजीएल फार्म

वास्तव में धारित स्क्रिप

बकाया सुपुर्दगी

   

लोक ऋण का. की बहियों के अनुसार

बैंक /संस्था की बहियों के अनुसार

       

1

2

3

4

5

6

7

8

घ्. केंद्र सरकार

             

घ्घ्. राज्य सरकार

             

घ्घ्घ्. अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियां

             

घ्ङ. सरकारी क्षेत्र के बांड

             

ङ. भा.यूनिट ट्रस्ट की यूनिट (1964)

             

ङघ्. अन्य (शेयर और डिबेंचर आदि)

 

 

कुल :

             

 

टिप्पणी : इसी प्रकार के विवरण संविभाग प्रबंधन योजना के ग्राहकों के खातों और अन्य ग्राहकों के खातों (दलालों सहित) के संबंध में प्रस्तुत वि ये जायें । संविभाग प्रबंधन योजना / अन्य ग्राहकों के खातों के मामले में प्रतिभूतियों का अंकित मूल्य और बही मूल्य, जो बैंक के संबंधित रजिस्टरों में हो, स्तंभ 2 में दर्शाया जाये ।

प्राधिकृत अधिकारी के हस्ताक्षर,

नाम और पदनाम सहित

समाधान विवरण के संकलन के लिए सामान्य अनुदेश

क) स्तंभ - 2 (सामान्य बही खाता शेष)

फार्मेट में प्रतिभूतियों के संपूर्ण ब्यौरे देना आवश्यक नहीं है । प्रत्येक श्रेणी में केवल अंकित मूल्य की कुल राशि का उल्लेख किया जाये । प्रतिभूतियों का तदनुरूप बही मूल्य प्रत्येक श्रेणी के अंतर्गत प्रतिभूतियों के अंकित मूल्य की राशि के अंतर्गत कोष्ठक में दिया जाये ।

ख) स्तंभ - 3 और 4 (एसजीएल शेष)

सामान्य रूप से मद 3 और 4 में उल्लिखित शेष परस्पर मिलने चाहिए । किसी लेनदेन के लोक ऋण कार्यालय अथवा बैंक की बहियों में रिकॉर्ड न होने के किसी कारण से यदि कोई अंतर हो तो वह प्रत्येक लेनदेन के पूरे ब्यौरे देते हुए स्पष्ट किया जाना चाहिए ।

ग) स्तंभ - 5 (धारित बैंक रसीदें)

यदि कोई बैंक खरीद के लिए किसी बैंक रसीद को जारी होने की तारीख से 30 दिन से अधिक रखे तो इस तरह की बैंक रसीदों के ब्यौरे अलग विवरण में दिये जायें ।

घ) स्तंभ - 6 (धारित एसजीएल फार्म)

खरीद के लिए प्राप्त एसजीएल फार्मों, जो लोक ऋण कार्यालय को प्रस्तुत नहीं किये गये हैं, उनकी राशि यहां दी जानी चाहिए ।

ङ) स्तंभ - 7

बांडों, आबंटन पत्रों, अभिदान रसीदों और जारीकर्ता की खाता बहियों में प्रविष्टि के प्रमाणपत्रों (सरकारी प्रतिभूतियों से इतर के लिए), आदि के रूप में धारित सभी स्क्रिपों, बेची गयी किंतु भौतिक रूप में सुपुर्द न की गयी प्रतिभूतियों सहित, की कुल राशि का उल्लेख किया जाना चाहिए ।

च) स्तंभ - 8 (बकाया सुपुर्दगियां)

यह बैंक द्वारा जारी की गयी उन बैंक रसीदों से संबंधित है, जहां भौतिक स्क्रिप सुपुर्द नहीं की गयी है किंतु सामान्य बही खाते में राशि घटा दी गयी है । यदि कोई बैंक रसीदें 30 दिन से अधिक तक बकाया रहे तो उन बैंक रसीदों के ब्यौरे अलग सूची में दिये जायें, जिसमें स्क्रिप की सुपुर्दगी न करने के कारण बताये जायें ।

छ) सामान्य

स्तंभ 2 में प्रत्येक मद के सामने बतायी गयी प्रतिभूतियों के अंकित मूल्य व ा लेखा स्तंभ सं. 4 से 7 तक किसी के भी अंतर्गत बताया जाना चाहिए । इसी प्रकार बकाया सुपुर्दगियों (जारी की गयी बैंक रसीदों) की राशि, जो स्तंभ 8 में बतायी गयी है, स्तंभ सं. 4 से 7 तक में किसी के भी अंतर्गत बतायी जानी चाहिए । इस तरह स्तंभ सं. 2 और 8 का जोड़ स्तंभ सं. 4 से 7 तक के जोड़ से मेल खायेगा ।


 

अनुबंध VII

पैरा 4.5.5

प्रकटन

बैंकों द्वारा निम्नलिखित प्रकटन तुलन-पत्र की ‘लेखा टिप्पणियों’ में दिया जाए :

(राशि करोड़ रुपयों में )

 

वर्ष के दौरान न्यूनतम बकाया

वर्ष के दौरान अधिकतम बकाया

वर्ष के दौरान दैनिक औसत बकाया

 

मार्च 31 की स्थिति

‘रिपो’ के अंतर्गत बेची गयी प्रतिभूतियां

       

‘रिवर्स रिपो’ के अंतर्गत खरीदी गयी प्रतिभूतियां

       

 


 

अनुबंध VIII

पैरा 4.5.6

रिपो तथा रिवर्स रिपो लेनदेन
की समान लेखा प्रणाली के लिए निदर्शी उदाहरण

क. प्रतिभूति धारित कूपन के संबंध में रिपो /रिवर्स रिपो

1. प्रतिभूति धारित कूपन में रिपो के संबंध में ब्योरा :

रिपो के अंतर्गत प्रस्तुत प्रतिभूति

11.43% 2015

 

कूपन अदायगी की तारीख

7 August and 7 February

 

रिपो के अंतर्गत प्रस्तुत प्रतिभूति की बाजॉर कीमत (पहले चरण में प्रतिभूति की कीमत)

Rs.113.00

(1)

रिपो की तारीख

19 January, 2003

 

रिपो ब्याज दर

7.75%

 

रिपो की अवधि

3 days

 

पहले चरण के लिए खंडित अवधि का ब्याज*

11.43%ग्162/360ग्100 = 5.1435

(2)

पहले चरण के लिए नकदी प्रतिफल

(1) + (2) = 118.1435

(3)

रिपो ब्याज **

118.1435ग्3/365ग्7.75% = 0.0753

(4)

दूसरे चरण के लिए खंडित अवधि का ब्याज

11.43% ग् 165/360ग्100=5.2388

(5)

दूसरे चरण हेतु कीमत

(3)+(4) -(5) = 118.1435 + 0.0753 - 5.2388 = 112.98

(6)

दूसरे चरण के लिए नकदी प्रतिफल

(5)+(6) = 112.98 + 5.2388 = 118.2188

(7)


* 30 /360 दिवस गणना पद्धति के आधार पर दिनों की गणना करना

** वास्तविक / 365 दिवस गणना पद्धति के आधार पर दिनों की गणना करना जो मुद्रा बाजॉर लिखतों के लिए लागू है ।

  1. प्रतिभूति विक्रेता के लिए लेखा पद्धति

हम मानते है कि विक्रेता ने 120.0000 रुपये की अंकित मूल्य पर प्रतिभूति धारण किया था ।

पहले चरण की लेखा पद्धति

नाम

जमा

नकदी
रिपो खाता

118.1435


120.0000
(अंकित मूल्य )

रिपो मूल्य समायोजन खाता

7.0000
(अंकित मूल्य और रिपो मूल्य के बीच अंतर)

 

रिपो ब्याज समायोजन खाता

 

5.1435

 

दूसरे चरण की लेखा पद्धति

 

नामे

जमा

रिपो खाता

रिपो मूल्य समायोजन खाता

120.0000


7.02
(अंकित मूल्य तथा दूसरे चरण के मूल्य का अंतर)

रिपो ब्याज समायोजन खाता

नकदी खाता

5.2388


118.2188

 

रिपो के दूसरे चरण के लेनदेन के अंत की रिपो मूलय समायोयजन खाते और ब्याज समायोजन खाते के शेष राशि रिपो ब्याज व्यय खाते में अंतरित की जाती है । इस खातों की शेष राशियों के विश्लेषणह ेतु खाताबही की प्रविष्टियां - नीचे दी गयी है :

रिपो मूल्य समायेायजन खाता

नामे

जमा

पहले चरण के मूल्य में अंतर

7.00

दूसरे चरण केमूल्य में अंतर

7.02

रिपो ब्याज व्यय खाते में आगे लाया गया शेष

0.02

   

कुल

7.02

कुल

7.02

 

रिपो ब्याज समायोजन खाता

नामे

जमा

दूसरे चरण के लिए खंडित अवधि तक ब्याज

5.2388

पहले चरण के लिीए खंडित अवधि का ब्याज

5.1435

   

रिपो ब्याज व्यय खाते में आगे लाया गया शेष

0.0953

कुल

5.2388

कुल

5.2388

 

रिपो ब्याज व्यय खाता

नामे

जमा

रिपो ब्याज समायोजन खाते का शेष

0.0953

रिपो मूल्य समायोजन खाते का शेष

0.0200

   

लाभ और हानि खाते में आगे लाया गया शेष

0.0753

कुल

0.0953

कुल

0.0953

 

3. प्रतिभूति क्रेता के लिए लेखा पद्धति

जब प्रतिभूति की खरीद होती है तब उसके साथ अंकित मूल्य भी आता है । अत: बाजॉर मूल्य प्रतिभूति का अंकित मूल्य होता है ।

प्रथम चरण की लेखा पद्धति

 

नामे

जमा

रिवर्स रिपो खाता

113.0000

 

रिवर्स रिपिो ब्याज समायोजन खाता

5.1435

 

नकदी खाता

 

118.1435

दूसरे चरण की लेखा पद्धति

 

नामे

जमा

नकदी खाता

118.2188

 

रिवर्स रिपो मूल्य ब्याज समायोजन खाता

(प्रथम और दूसरे चरण के मूल्यों के बीच का अंतर)

0.0200

 

रिवर्स रिपो खाता

 

113.0000

रिवर्स रिपो ब्याज समायेाजन खाता

 

5.2388

 

इन खातों के रिवर्स रिपो के दूसरे चरण केअंत की रिवर्स रिपो ब्याज समायोजन खाते औररिवर्स रिपो मूल्य समायोजन खाते की शेष राशि रिपो ब्याज आय खाते में अंतरित की जाती है । इन दो खातों की शेष राशियों के विश्लेषण हेतु खाता बही की प्रविष्टियां नीचे दी गयी है :

रिवर्स रिपो मूल्य समायोजन खाता

नामे

जमा

पहले तथा दूसरे चरण के मूल्य में अंतर

0.0200

रिपो ब्याज आय खाते को शेष

0.0200

कुल

0.0200

कुल

0.0200

 

रिवर्स रिपो ब्याज समायेाजन खाता

नामे

जमा

पहले चरण के लिए खंडित

5.1435

दूसरे चरण के लिए खंडित अवधि ब्याज

5.2388

रिपो ब्याज आय खाते में आगे लाया गया शेष

0.0953

   

कुल

5.2388

कुल

5.2388

 

रिवर्स रिपो ब्याज आय खाता

नामे

जमा

पहले और दूसरे चरण के मूल्यों के बीच अंतर

0.0200

रिवर्स रिपो ब्याज समायोजन खाते से शेष

0.0953

लाभ और हानि खाते में आगे लाया गया शेष

0.0753

   

कुल

0.0953

कुल

0.0953

 

4. जब लेखा अवधि बीच के दिन समाप्त होता हो तब प्रतिभूति धारित लाभांश के संबंध में रिपो /रिवर्स रिपो लेनदेन पर पारित की जानेवाली अतिरिक्त प्रविष्टियां ।

लेनदेन चरण

द्ध

पहला चरण

लेखा अवधि की समाप्ति

दूसरा चरण

तारीख द्ध

19 जून 03

21 जनवरी 03*

22 जनवरी 03

 

पहले चरण तथा दूसरे चरण के बीच प्रतिभूति की निर्बंध कीमतों में अंतर तुलनपत्र की तारीख तक प्रभाजित किया जाए और विक्रेता /क्रेता के बही में क्रमश: रिपो ब्याज आय / व्यय के रूप में दर्शाया जाए और उपचित परंतु देय नहीं आय /व्यय की तरह नामे /जमा किया जाए । उपचित परंतु देय नहीं आय / व्यय के शेष तुलनपत्र में लिये जाए ।

क्रेता द्वारा उपचित लाभांश को भी रिपो ब्याज आय खाते में जमा किया जाए । "रिपो /रिवर्स रिपो मूल्य समायोजन खाता और रिपो /रिवर्स रिपो ब्याज समायोजन खाता" पर कोई भी प्रविष्टि पास करने की आवश्यकता नहीं है । निदर्शी लेखा प्रविष्टियां नीचे दर्शायी गयी हैं :

क. जनवरी 21, 2003 को विक्रेता के बही में प्रविष्टियां

लेखा शीर्ष

नामे

जमा

रिपो ब्याज आय खाता (लाभ और हानि लेखा में अंतरित किये जाने वाले लेखा के शेष)

0.0133 ( दो दिन के अर्थात् तुलनपत्र के दिवस तक के मूल्य में अंतर के प्रभाजन के जरिए रिपो मूल्य समायोजन खाते में काल्पनिक जमा शेष (0.0133)

रिपो ब्याज आय उपचित परंतु देय नहीं

0.0133

 

 

*21 जनवरी, 2003 को तुलनपत्र की तारीख माना गया है ।

ख) जनवरी 21, 2003 को विक्रेता के बहियों में प्रविष्टियां

लेखा शीर्ष

नामे

जमा

रिपो ब्याज आय

0.0133

लाभ और हानि खाता

 

0.0133

 

ग) जनवरी 21, 2003 को क्रेता के बहियों में प्रविष्टियां

लेखा शीर्ष

नामे

जमा

रिपो ब्याज आय उपचित परंतु देय नहीं

0.0502

 

रिपो ब्याज आय खाता (लाभ और हानि लेखा में अंतरित किये जानेवाले लेखा के शेष)

 

0.0502 ( 0.0635 रुपये का 3 दिन काउपचित ब्याज * - 0.0133 रुपये निर्बंध कीमत के बीच अंतर का प्रभाजन)

 

*सरलता हेतु 2दिन के उपचित ब्याज को विचार में लिया गया है ।

घ) जनवरी 21, 2003 को क्रेता के बहियों में प्रविष्टियां

लेखा शीर्ष

नामे

जमा

रिपो ब्याज आय खाता

0.0502

 

लाभ और हानि खाता

 

0.0502

 

रिपो के लिए प्रस्तुत प्रतिभूति पर उपचित ब्याज विक्रेता द्वारा छोड़ देने के कारण विक्रेता और क्रेता द्वारा उपचित रिपो ब्याज के बीच अंतर होता है।

ख. खजाना बिल का रिपो /रिवर्स रिपो

1. खजाना बिल के रिपो का ब्योरा

रिपो के तहत प्रस्तुत प्रतिभूति

28 फरवरी, 2003 को अवधिपूर्ण होने वाले भारत सरकार को 91 दिवसीय खजाना बिल

 

रिपो के तहत प्रस्तुत प्रतिभूति का मूल्य

96.0000 रुपये

(1)

रिपो की तारीख

19 जनवरी, 2003

 

रिपो ब्याज दर

7.75%

 

रिपो की अवधि

3 दिन

 

पहले चरण के लिए कुल नकदी प्रतिफल

96.0000

(2)

रिपो ब्याज

0.0612

(3)

दूसरे चरण हेतु मूल्य

(2)+(3)= 96.0000 + 0.0612 = 96.0612

 

दूसरे चरण के लिए नकदी प्रतिफल

96.0612

 

 

2. प्रतिभूति विक्रेता के लिए लेखा पद्धति

हम ऐसा मानते हैं कि प्रतिभूति 95.0000 रुपये अंकित मूल्य पर क्रेता द्वारा धारित किये गये थे ।

पहले चरण की लेखा पद्धति

 

नामे

जमा

नकदी

रिपो खाता

96.0000


95.0000
(अंकित मूल्य )

रिपो मूल्य समायोजन खाता

 

1.0000
(अंकित मूल्य और रिपो मूल्य के बीच अंतर )


दूसरे चरण की लेखा पद्धति

रिपो खाता
रिपो मूल्य समायोजन खाता

95.0000
1.0612
(अंकित मूल्य और दूसरे चरण के मूल्य के बीच अंतर )

 

नकदी खाता

 

96.0612


रिपो लेनदेन के दूसरे चरण के अंत के रिपो मूल्य समायोजन खाते से संबंधित शेष रिपो ब्याज व्यय खाते में अंतरित किये जाते हैं । खाते शेष का विश्लेषण करने हेतु खाता बही की प्रतिलिपियां नीचे दी गयी हैं :

रिपो मूल्य समायोजन खाता

नामे

जमा

दूसरे चरण के लिए मूल्य में अंतर

1.0612

पहले चरण के लिए मूल्य में अंतर

1.0000

   

रिपो ब्याज व्यय खाते में आगे लाया गया शेष

0.0612

कुल

1.0612

कुल

1.0612

रिपो ब्याज व्यय खाता

नामे

जमा

रिपो मूल्य समायोजन खाते से शेष

0.0612

लाभ-हानि खाते में लाया गया शेष

0.0612

कुल

0.0612

कुल

0.0612

 

रिपो की अवधि के दौरान विक्रेता मूल बट्टा दर पर बट्टा उपचित करना जारी रखे गए ।

3. प्रतिभूति के क्रेता के लिए लेखा पद्धति

जब प्रतिभूति की खरीद की जाएगी तब इसके साथ अंकित मूल्य आएगा । अत: प्रतिभूति का बाजॉर मूल्य अंकित मूल्य होता है ।

पहले चरण की लेखा पद्धति

 

नामे

जमा

रिवर्स रिपो खाता

96.0000

 

नकदी खाता

 

96.0000


दूसरे चरण की लेखा पद्धति

 

नामे

जमा

नकदी खाता

96.0612

 

रिपो ब्याज आय खाता

(पहले तथा दूसरे चरण की कीमतों के बीच अंतर)

 

0.0612

रिवर्स रिपो खाता

 

96.0000


रिपो अवधि के दौरान क्रेता बट्टे का उपचय नहीं करेगा ।

4. जब लेखा अवधि किसी बीच के दिन समाप्त होती हो तब खजॉना बिल से संबंधित रिपो /रिवर्स रिपो लेनदेन पर पास की जानेवाली अतिरिक्त लेखा प्रविष्टियां ।

लेनदेन चरण द्ध

पहला चरण

तुलनपत्र तारीख

दूसरा चरण

तारीख द्ध

19 जनवरी 03

21 जनवरी 03*

22 जनवरी 03


*21 जनवरी, 2003 को तुलनपत्र की तारीख मान लिया है ।

क. जनवरी 21, 2003 को विक्रेता के बही में की गयी प्रविष्टियां

लेखा शीर्ष

नामे

जमा

रिपो ब्याज आय खाता दो दिन के रिपो ब्याज के प्रभाजन के बाद)

डइस खाते का शेष लाभ-हानि खाते में अंतरित किया जाए

0.0408

 

रिपो ब्याज व्यय उपचित परंतु देय नहीं

 

0.0408


ख. जनवरी 21, 2003 के विक्रेता बही में की गयी प्रविष्टियां

लेखा शीर्ष

नामे

जमा

रिपो ब्याज व्यय खाता

0.0408

लाभ -हानि खाता

0.0408

 

ग. जनवरी 21, 2003 को क्रेता बही में की गयी प्रविष्टियां

लेखा शीर्ष

नामे

जमा

रिपो ब्याज व्यय उपचित परंतु देय नहीं

0.0408

 

रिपो ब्याज आय खाता

डइस खाते का शेष लाभ-हानि खाते में अंतरित किया जाए

 

0.0408


घ. जनवरी 21, 2003 को क्रेता बही में की गयी प्रविष्टियां

लेखा शीर्ष

नामे

जमा

रिपो ब्याज आय खाता

0.0408

 

लाभ-हानि खाता

 

0.0408

 


परिशिष्ट

मास्टर परिपत्र

निवेशों का वर्गीकरण, मूल्यन और परिचालन

मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

सं.

परिपत्र सं.

तारीख

परिपत्र की संगत पैरा सं.

विषय

मास्टर परिपत्र की पैरा सं.

1

बैपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 42/ सी.347-87

15 अप्रैल 1987

2. बी (वव), (ववव) और 3, 4

वाणिज्य बैंकों द्वारा सरकारी एवं अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में किये गये बाइ-बैक व्यवस्था लेनदेन

1.2.1 (ii) (ङ) (च) (छ)

2.

बैपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 127/सी. 347 (पीएसबी)-88

11अप्रैल 1988

1, 3

वाणिज्य बैंकों द्वारा सरकारी एवं अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में किये गये बाइ-बैक व्यवस्था लेनदेन

1.2.1 (ii)(च)
(iv) (क) और (ख)

3.

बैपविवि. सं. एफएससी. बीसी. 69/ सी.469-90/91

18 जनवरी 1991

1, 2, 4

ग्राहकों की ओर से संविभाग प्रबंधन

1.3.3

4.

अ. शा. बैपविवि. सं.एफएससी.46/सी. 469-1/92

26 जुलाई 1991

4 (i), (ii), (iii), (iv), (v), (vi)

बैंकों का निवेश संविभाग - प्रतिभ्ूातियों का लेन-देन

1.2 (i)

5.

बैपविवि. सं. एफएससी. बीसी. 143ए/ 24.48. 001/ 91-92

20 जून 1992

3 (I), 3 (I)-(ii) - (iii)-(iv) -(v)- (xi)-(xii)-(xvi)-(xvii, 3 (II;), 3 (III),

3 (V)- (i) - (ii)- (iii), (3) एवं (4)

बैंकों का निवेश संविभाग - प्रतिभ्ूातियों का लेन-देन

1.2 (ii), (iii) और (iv)

1.2.2, 1.2.3, 1.2.5, 1.2.6,

1.2.7

6.

बैपविवि. सं. एफएससी. बीसी. 11/ 24.01.009/

92-93

 

30 जुलाई 1992

3, 4, 5, 6

ग्राहकों की ओर से संविभाग प्रबंधन

1.3.3

सं.

परिपत्र सं.

तारीख

परिपत्र की संगत पैरा सं.

विषय

मास्टर परिपत्र की पैरा सं.

7.

बैपविवि. सं. एफएमसी. बीसी. 17/ 24.48.001/ 92-93

19 अगस्त 1992

2

बैंकों का निवेश संविभाग - प्रतिभ्ूातियों का लेन-देन

1.3.2

8.

बैपविवि. सं. एफएमसी. बीसी. 62/ 27.02.001/ 92-93

31 दिसंबर 1992

1

बैंकों का निवेश संविभाग - प्रतिभ्ूातियों का लेन-देन

1.2.6

9.

बैपविवि. सं. एफएमसी. 1095/ 27. 01.002/93

15 अप्रैल 1993

1 एवं प्रपत्र संलग्न

बैंकों का निवेश संविभाग- धारित शेयरों आदि का समाधान

1.3.1 एवं अनुबंध - IX

10

बैपविवि. सं. एफएमसी. बीसी. 141/ 27.02. 006/93-94

19 जुलाई 1993

अनुबंध

बैंकों का निवेश संविभाग-प्रतिभूतियों का लेन-देन अलग-अलग दलालों के लिए समग्र संविदा सीमा-स्पष्टीकरण

अनुबंध - VII

11.

बैपविवि. सं. एफएमसी. बीसी. 1/27.02.001/ 93-94

10 जनवरी 1994

1

बैंकों का निवेश संविभाग-प्रतिभूतियों का लेनदेन- सहायक सामान्य बही खाता अंतरण फार्म का अनादरित होना - लगाये जाने वाले अर्थदंड

1.2.2

12.

बैपविवि. सं. एफएमसी.73/
27. 7.001/
94-95

7 जून 1994

1, 2

संविभाग प्रबंधन योजना के अंतर्गत जमाराशियां स्वीकार करना

1.3.3

13.

बैपविवि. सं. एफएससी. बीसी. 130/24.76. 002/94-95

15 नवंबर 1994

1

बैंकों का निवेश संविभाग-प्रतिभूतियों का लेनदेन - बैंक रसीदें (बी आर)

1.2.3

14.

बैपविवि. सं. एफएससी. बीसी. 129/ 24.76. 002/94-95

16 नवंबर 1994

2 एवं 3

बैंकों का निवेश संविभाग- प्रतिभूतियों का लेनदेन - दलालों की भूमिका

1.2.6

15.

बैपविवि. सं. एफएससी. बीसी. 142/24.76.002/ 94-95

9 दिसंबर 1994

1 एवं 2

बैंकों का निवेश संविभाग- प्रतिभूतियों का लेनदेन - दलालों की भूमिका

1.2.6

सं.

परिपत्र सं.

तारीख

परिपत्र की संगत पैरा सं.

विषय

मास्टर परिपत्र की पैरा सं.

16.

बैपविवि. सं. एफएससी. बीसी. 70/24.76.002/ 95-96

8 जून 1996

2

सरकारी प्रतिभूतियों की खुदरा बिक्री

1.2.4

17.

बैपविवि. सं. एफएससी. बीसी. 71/24.76.001/ 96

11 जून 1996

1

बैंकों का निवेश संविभाग - प्रतिभूतियों का लेनदेन

1.2.2

18.

बैपविवि. सं. बीसी. 153/24.76.002/ 96

29 नवंबर 1996

1

बैंकों का निवेश संविभाग - प्रतिभूतियों का लेनदेन

1.2.6

19.

बैंपविवि. बीपी. बीसी. 9/ 21.04.048/98

29 जनवरी 1997

3

विवेक सम्मत मानदंड - पूंजी पर्याप्तता, आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण

5.1(iii) एवं (iv)

20.

बैंपविवि. बीपी. बीसी. 32/ 21.04.048/97

12 अप्रैल 1997

1 एवं 2

विवेक सम्मत मानदंड - पूंजी पर्याप्तता, आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण

5.1 (i) एवं (ii)

21.

बैपविवि. सं. एफएससी. बीसी. 129/ 24.76.002/97

22 अक्तूबर 1997

1

सरकारी प्रतिभूतियों की खुदरा बिक्री

1.2.4

22.

बैपविवि. सं. बीसी. 112/ 24.76.002/
1997

14 अक्तूबर 1997

1

बैंकों का निवेश संविभाग- प्रतिभूतियों का लेनदेन - दलालों की भूमिका

1.2.6

23.

बैंपविवि. बीपी. बीसी. 75/ 21.04.048/98

4 अगस्त 1998

सभी

सरकारी और अन्य अनुमेादित प्रतिभूतियों अधिग्रहण - खण्डित

अवधि का ब्याज लेखांकन प्रक्रिया

5.2

24.

डीबीएस. सीओ. एफएमसी. बीसी. 18/22.53.014/ 99-2000

28 अक्तूबर 1999

2, 3, 4 एवं 5

बैंकों का निवेश संविभाग -

प्रतिभूतियों का लेनदेन

1.2.2

25.

बैपविवि. सं. एफएससी. बीसी. 26/ 24.76.002/ 2000

6 अक्तूबर 2000

2

प्राथमिक निर्गमों की नीलामियों में आबंटित की गयी सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री

1.2. (i) (ख)

सं.

परिपत्र सं.

तारीख

परिपत्र की संगत पैरा सं.

विषय

मास्टर परिपत्र की पैरा सं.

26.

बैपविवि. बीपी. बीसी. 32/ 21.04.048/2000-01

16 अक्तूबर 2000

सभी

निवेशों के वर्गीकरण और मूल्यन के संबंध में दिशा-निर्देश

2,एवं 3

27.

बैंपविवि. एफएससी. बीसी. सं. 39/ 24.76.002/
2000

25 अक्तूबर 2000

1

बैंकों का निवेश संविभाग- प्रतिभूतियों का लेनदेन - दलालों की भूमिका

1.2.6

28.

डीआइआर. बीसी. 107/13.03.00/ 2000-01

19 अप्रैल 2001

6

वर्ष 2001-2002 की मौद्रिक एवं ऋण नीति -ब्याज दर नीति

5.3

29.

बैपविवि. बीपी. बीसी. 119/ 21.04.137/2000-2001

11मई 2001

अनुबंध - 5 एवं 12

बैंकों द्वारा ईक्विटी का वित्तपोषण और शेयरों में निवेश- संशोधित दिशा-निर्देश

1.2, 1.2.5, 1.3, 1.3.1,

30.

बैपविवि. बीपी. बीसी. 127/ 21.04.048/2000-01

7 जून 2001

सभी

बैंकों के गैर एस एल आर निवेश

1.2 .8

अनुबंध -

III

31.

बैपविवि. बीपी. बीसी. 61/21.04.048/2001-02

25 जनवरी 2002

सभी

बैंकों /वित्तीय संस्थाओं द्वारा निवेश के लिए दिशा-निर्देश और बैंकों /वित्तीय संस्थाओं द्वारा पुनर्गठित खातों के वित्तपोषण के लिए दिशा-निर्देश

1.2.8(iv)

32.

बैंपविवि. एफएससी. बीपी. बीसी. सं. 113/ 24.76.002/
2001-02

7 जून 2002

सभी

बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों में लेनदेन के निवेश संविभागवार

1.3.4

33.

डीबीएस.सीओ.
एफएमसी.बीसी.7/22.53.014/2002-03

 

 

7 नवंबर 2002

पैरा 2

बैंकों द्वारा निवेश संविभाग का परिचालन - बैंकों द्वारा समवर्ती लेखा परीक्षा - रिपोर्टों का प्रस्तुतीकरण

1.2.7 (ग)

सं.

परिपत्र सं.

तारीख

परिपत्र की संगत पैरा सं.

विषय

मास्टर परिपत्र की पैरा सं.

34.

बैंपविवि. एफएससी. बीसी. सं. 90/ 24.76.002/2002-03

31 मार्च 2003

सभी

हाजिर वायदा संविदाएं

1.2.1(i),

(ii) एवं (iii)

35.

आइडीएमसी. 3810/11.08. 10/2002-03

24 मार्च 2003

सभी

विपो/रिवर्स रिपो लेनदेनों की एकसमान लेखा पद्धति के लिए दिशानिर्देश

4, अनुबंध VII एवं अनुबंध VIII

36.

बैपविवि. बीपी. बीसी. 4/21.04.141/
2003-04

12 नवंबर 2003

सभी

एसएलआर से इतर प्रतिभूतियों में बैंक के निवेश पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश

1.2.8 अनुबंध IV, V

37.

बैपविवि. बीपी. बीसी.4/21.04.141/2003-04

10 दिसंबर 2003

सभी

एसएलआर से इतर प्रतिभूतियों में बैंक के निवेश पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश

1.2.8

38.

बैंपविवि. एफएससी.बीसी. 59/24.76.002/ 2003-04

26 दिसंबर 2003

सभी

प्राथमिक निर्गमों के लिए नीलामी में आबंटित सरकारी प्रतिभूतियों की उसी दिन बिक्री

अनुबंध I

39.

आइडीएमडी. पीडीआरएस.
05/10.02.01/2003-04

29 मार्च 2004

3,4,6 ,एवं 7

सरकारी प्रतिभूतियों में लेनदेन

1.2 (i)(ए)

40.

आइडीएमडी. पीडीआरएस. 4777/10.02. 01/2004-05

11 मई 2005

3

प्राथमिक निर्गमों में आबंटित प्रतिभूतियों की बिक्री

1.2 (i)(बी)

41.

आइडीएमडी. पीडीआरएस. 4779/10.02. 01/2004-05

11 मई 2005

2,3,4,5

हाजिर वायदा संविदाएं

1.2.1.(बी)

1.2.1.(सी)

42.

आइडीएमडी.
पीडीआरएस.
4783/10.02.
01/2004-05

 

11 मई 2005

3

सरकारी प्रतिभूतियों में लेनदेन - टी + 1 निपटान

1.2.(1)(सी)

सं.

परिपत्र सं.

तारीख

परिपत्र की संगत पैरा सं.

विषय

मास्टर परिपत्र की पैरा सं.

43.

बैंपविवि.
एफएससी. बीसी. सं. 28/24.76. 002/ 2004-05

12 अगस्त 2004

2

सरकारी प्रतिभूतियों में लेनदेन

1,2 (i)(ए)

44.

बैपविवि. बीपी. बीसी.

29/21.04.141/2004-05

13 अगस्त 2004

संलग्नक का
2 (बी)

विवेकपूर्ण मानदंड - राज्य सरकार के गारंटीकृत निवेश

3.5.2

45.

बैपविवि. डीआइआर. बीसी. 32/13.07.05/ 2004-05

17 अगस्त 2004

2

ईक्विटी में बैंकों के निवेश का डिमटेरियलाइजेशन

5.3

46.

बैपविवि. बीपी. बीसी.

37/21.04.141/2004-05

2 सितंबर 2004

1(i) एवं (ii)

बैंकों के निवेश संविभाग के वर्गीकरण पर विवेकपूर्ण मानदंड

2.1(ii) एवं

(iii)

47.

बैंपविवि. एफएसडी. बीसी. सं. 31/ 24.76.002/ 2005-06

1 सितंबर 2005

2, 3

एनडीएस - ओएम - प्रतिपक्ष की पुष्टि

1.2.5 (i) (सी)

48.

बैंपविवि. बीपी. बीसी. सं. 38/ 21.04.141/ 2005-06

10 अक्तूबर 2005

सभी

पूंजी पर्याप्तता - निवेश उतार-चढ़ाव आरक्षित निधि

3.4

49.

आइडीएमडी.
सं. 03/11.01.01
(बी)/2005-06

28 फरवरी 2006

2,3,4,5

सरकारी प्रतिभूतियों में अनुषंगी बाज़ार लेनदेन - आंतर दिवसीय मंदडिया बिक्री

1.2(i)(ए)

50.

आइडीएमडी.
सं. 3426/11.01.01(डी)/2005-06

3 मई 2006

अनुबंध

केंद्र सरकार की प्रतिभतियों में ‘व्हेन इश्यूड’ लेनदेन

1.2(i)(ए)

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