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वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर डॉ. डी.सुब्बाराव का वक्तव्य

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वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा
के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के
गवर्नर डॉ. डी.सुब्बाराव का वक्तव्य

इस वक्तव्य के दो भाग हैं : भाग-अ - वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक मौद्रिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा; और भाग-आ-वर्ष 2008-09 के लिए विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वार्षिक वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा। समष्टि-आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की विश्लेषणात्मक समीक्षा इस वक्तव्य के भाग-अ के अनुपूरक के रूप में एक दिन पहले ही जारी की गई थी जिसमें चार्टों और सारणियों की सहायता से जानकारी और तकनीकी विश्लेषण उपलब्ध कराया गया है।

भाग अ - वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक मौद्रिक
नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा

2. यह भाग तीन खंडों में विभाजित है :
I - वर्ष 2008-09 की पहली छमाही के दौरान समष्टि-आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों का आकलन;
II - वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही में मौद्रिक नीति का रुझान ; और
III - मौद्रिक उपाय।

I. वर्ष 2008-09 की पहली छमाही के दौरान समष्टि
आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों का आकलन

घरेलू उत्पाद

3. एक वर्ष पहले सकल घरेलू उत्पाद की दर 9.2 प्रतिशत थी, जिसकी तुलना में वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही के दीरान वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद 7.9 प्रतिशत था। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा राष्ट्रीय आय के सकल आंकड़े अगस्त 2008 के अंत में जारी किए गए, जिनमें कृषि, उद्योग और सेवाओं से होने वाले सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि को अप्रैल-जून 2008 के दौरान क्रमश: 3.0 प्रतिशत, 5.2 प्रतिशत और 10.2 प्रतिशत पर निर्धारित किया गया, जो कि एक वर्ष पहले क्रमश: 4.4 प्रतिशत, 9.6 प्रतिशत और 10.6 प्रतिशत थी।

4. वर्ष 2008-09 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के दौरान विगत तिमाही के परिप्रेक्ष्य में व्यष्टि आर्थिक गतिविधियों में कुछ विशिष्ट लक्षण हैं। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार समूचे देश में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की समग्रता दीर्घावधि औसत से दो प्रतिशत कम रही। मौसम विज्ञान के कुल 36 उप-खंडों में से 32 उप खंडों में अति/सामान्य वर्षा रही जबकि 2007 के दौरान 30 उप खंडों में यही स्थिति थी। विदर्भ, केरल, पश्चिमी मध्यप्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा के इलाकों में कम वर्षा हुई। दिनांक 15 अक्तूबर, 2008 की स्थिति के अनुसार 81 प्रमुख जलाशयों में कुल निर्धारित क्षमता का 73 प्रतिशत भराव स्तर चल रहा था, जो विगत 10 वर्ष के औसत से 7 प्रतिशत अधिक किंतु एक वर्ष पहले के स्तर से 10 प्रतिशत कम है।

5. खरीप मौसम में 10 अक्तूबर 2008 तक चावल और प्रमुख तिलहनों की बुवाई का क्षेत्र विगत वर्ष के दौरान बुवाई क्षेत्र से क्रमश: 2.9 प्रतिशत और 3.6 प्रतिशत बढ़ गया, लेकिन मोटे अनाजों, दालों, कपास, गन्ना और जूट की बुवाई का क्षेत्र एक वर्ष पहले की तुलना में क्रमश: 6.4 प्रतिशत, 15.5 प्रतिशत, 1.3 प्रतिशत, 16.6 प्रतिशत और 10.8 प्रतिशत कम रहा। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी प्रथम अनुमानित आंकड़ों में खरीप फसल के उत्पादन को 115.3 मिलियन टन रखा गया जो कि 121.5 मिलियन टन के लक्ष्य और विगत वर्ष हुए 121.0 मिलियन टन के उत्पादन से भी कम है। इन आरंभिक अनुमानों के अनुसार चावल का अनुमानित उत्पादन 83.3 मिलियन टन है, जो विगत वर्ष में 82.8 मिलियन टन के उत्पादन से अधिक है। खरीप मौसम में नौ प्रमुख तिलहनों का उत्पादन 17.9 मिलियन टन निर्धारित किया गया जो कि वर्तमान वर्ष के लिए निर्धारित 20.0 मिलियन टन के लक्ष्य से तो कम है ही, वर्ष 2007-08 में 19.8 मिलियन टन के उत्पादन से भी कम है। वर्ष 2008-09 में गन्ने और कपास के उत्पादन भी लक्ष्य और विगत वर्ष के उत्पादन से कम रहने की संभावना है।

6. अप्रैल-अगस्त 2008 के दौरान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में विगत वर्ष की तदनुरूपी अवधि के 10.0 प्रतिशत की तुलना में 4.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। विनिर्माण उत्पाद संवृद्धि, विद्युत उत्पादन और खनन क्रियाकलापों में विगत वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 10.6 प्रतिशत, 8.3 प्रतिशत और 4.9 प्रतिशत की तुलना में कमी रही और ये क्रमश: 5.2 प्रतिशत, 2.3 प्रतिशत और 4.1 प्रतिशत रही। विनिर्माण क्रियाकलापों में रसायन और रासायनिक उत्पाद, पेय पदार्थ, तम्बाकू और सम्बद्ध उत्पाद, परिवहन उपस्करों और कल-पुर्जों सहित मशीनरी और उपकरणों के उत्पाद शीर्ष पर रहे, अप्रैल-अगस्त 2008 के दौरान औद्योगिक उत्पाद की संवृद्धि में इनका समूचा हिस्सा 89 प्रतिशत रहा, जबकि भारिता की दृष्टि से सूचकांक में इनका हिस्सा 30 प्रतिशत ही है। दूसरी ओर, खाद्य उत्पादों, जूट टैक्सटाइल, लकड़ी और काष्ठ-उत्पादों, रबड़, प्लास्टिक, पेट्रोलियम और कोयला उत्पादों में गिरावट रही और विनिर्माण क्षेत्र की समग्र संवृद्धि पर इसका मामूली असर रहा। प्रयोग-आधारित वर्गीकरण से निवेश मांग में कुछ नरमी का संकेत मिलता है, जिसमें पूंजीगत माल का उत्पादन गिरकर 9.2 प्रतिशत रहा, जो कि एक वर्ष पूर्व 20.1 प्रतिशत पर था। उपभोक्ता गैर-टिकाऊ वस्तुओं का उत्पादन विगत वर्ष की समवर्ती अवधि के 10.0 प्रतिशत की तुलना में 8.6 प्रतिशत बढ़ा; एक वर्ष पूर्व 2.3 प्रतिशत की गिरावट की तुलना में 5.6 प्रतिशत की कायापलट बढ़ोतरी रही। आधारभूत और अर्धनिर्मित माल के उत्पादन में क्रमश: 3.8 प्रतिशत (9.9 एक वर्ष पूर्व) और 0.7 प्रतिशत (9.9 प्रतिशत) की बढ़ोतरी रही। छह आधारभूत उद्योगों को एक साथ लिया जाए तो औद्योगिक उत्पाद सूचकांक में इनका हिस्सा 27 प्रतिशत है, इन उद्योगों ने एक वर्ष पूर्व की 7.1 प्रतिशत संवृद्धि की तुलना में अप्रैल-अगस्त 2008 के दौरान 3.4 प्रतिशत की संवृद्धि दर्ज की। कोयले के अलावा, अन्य आधारभूत क्षेत्रों की संवृद्धि की गति में गिरावट रही जबकि कच्चे पेट्रोलियम के उत्पादन में कमी हुई।

7. निजी गैर-वित्तीय कंपनी क्षेत्र में अप्रैल-जून 2008 के दौरान बिक्री में 30.0 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई, जो कि एक वर्ष पूर्व तदनुरूपी तिमाही के 19.2 प्रतिशत से अधिक है। अ-प्रमुख क्रियाकलापों से आय में कमी रही, पूंजी बाजार में गिरावट की स्थिति इसका प्रमुख कारण है। व्यय में 34.5 प्रतिशत की संवृद्धि ने बिक्री-संवृद्धि को पीछे छोड़ दिया। वर्ष-दर-वर्ष आधार पर कच्चे माल पर व्यय में 35.9 प्रतिशत बढ़ोतरी रही और स्टाफ की लागत में 23.2 प्रतिशत बढ़ोतरी रही। तिमाही के दौरान विदेशी मुद्रा विनिमय दर में गिरावट के परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा में लिए गए उधारों पर बही में दर्ज मूल्य की वजह से हानियां हुईं; काफी संख्या में कंपनियों ने वित्तीय कार्य-निष्पादन में गिरावट बताई। ब्याज के रूप में भुगतान राशि में बढ़ोतरी के बावजूद ब्याज का बोझ 16.7 प्रतिशत (सकल लाभ और ब्याज का अनुपात) रहा जबकि इसकी तुलना में 1990 के दशक में यह 50.0 प्रतिशत और वर्तमान दशक के प्रथमार्ध में 43.7 प्रतिशत था। वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही में निवल लाभ की संवृद्धि गिरकर 8.2 प्रतिशत पर रही, जबकि एक वर्ष पूर्व 33.9 प्रतिशत और विगत तिमाहियों में दर्ज द्विअंकीय संवृद्धि दरों की तुलना में व्यय की बढ़ोतरी को दर्शाता है। क्षेत्रीय स्तर पर सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी से इतर सेवा प्रदाता कंपनियों की तुलना में विनिर्माण कंपनियों ने उच्चतर बिक्री संवृद्धि दर्ज की।

8. वर्ष 2008-09 की दूसरी तिमाही के प्रारंभिक परिणामों में कंपनियों के विखंडित प्रदर्श (ट्रंकेटेड सैम्पलस्) में लाभप्रदता की संवृद्धि दर में लगातार नरमी प्रकट होती है, विशेषकर विनिर्माता कंपनियों के संदर्भ में। बिक्री की संवृद्धि बढ़ी हुई मात्राओं और उच्चतर कीमतों के सम्मिश्रण से संचालित रही लेकिन इससे इनपुट की बढ़ती हुई लागत और स्टाफ लागत के दबाव पर पूरी तरह से काबू नहीं पाया जा सका। ब्याज के बढ़ते हुए भुगतान के साथ-साथ विदेशी देयताओं के कारण हानियों के प्रभाव से वित्तपोषण की लागतों में बढ़ोतरी हुई। अ-प्रमुख क्रियाकलापों से होनेवाली आय कम रही, जो कि घटती हुई ट्रेजरी आय को दर्शाता है। परिणामस्वरूप, वर्ष 2008-09 के दौरान कंपनियों की आय-संवृद्धि और भी कमजोर होती प्रतीत हो रही है।

9 . रिज़र्व बैंक की तिमाही आउटलुक सर्वेक्षण का जुलाई - अगस्त 2008 के दौरान चलाए गए 43वें दौर, जिसमें निजी विनिर्माण कंपनियां शामिल की गयी थीं, में कारोबारी क्षेत्र में कमी के संकेत दिए गए हैं। जुलाई - सितंबर 2008 के मूल्यांकन में सर्वेक्षण के पिछले दौर की तुलना में मामूली आशाजनक स्थिति देखी गई। सभी प्रमुख मानदंडों जैसे समग्र कारोबारी स्थिति, समग्र वित्तीय स्थिति, उत्पादन, आदेश बहियाँ, कच्चे माल की लागत और लाभ मार्जिन, में कमी आयी थी। मांग की स्थितियां कमज़ोर प्रतीत हुई जो कि उत्पादन के मूल्यांकन, आदेश बहियों और निर्यात मांग में परिलक्षित हुई। वर्ष 2008-09 की दूसरी ओर तीसरी तिमाहियों में उच्चतर निविष्टि लागतों के कारण लाभ मार्जिन उल्लेखनीय रूप से कम हो जाने की प्रत्याशा है। अक्तूबर - दिसंबर 2008 में कार्यकारी पूंजी की वित्तीय जरूरतें उच्च स्तर पर बने रहने की आशा है, तथापि, वित्त की उपलब्धता चिंता का विषय है। क्षमता का उपयोग आम तौर पर स्थिर रह सकता है तथा मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन क्षमता पर्याप्त होने का अनुमान है। प्रतिनिधि (रिस्पाडेंट) फर्मों की बढ़ती संख्या के कारण कच्चे माल की उच्चतर लागतों की पृष्ठभूमि में मूल्य दबाव बढ़ने की आशंका है और उससे लाभ मार्जिनों की रक्षा करने के लिए अंतिम उपभोक्ताओं पर उच्चतर मूल्य अंतरित होने का अनुमान है। अक्तूबर-दिसंबर 2008 के लिए कारोबारी प्रत्याशा सूचकांक 2.6 प्रतिशत या जो पूर्ववर्ती तिमाही की तुलना में न्यूनतर थी।

10. अन्य कारोबारी विश्वास सर्वेक्षणों में दृष्टिकोण के प्रति अनिश्चितता परिलक्षित होती रही। वित्त और कच्चे माल की लागत में वृद्धि पर तथा समग्र आर्थिक स्थितियों और निर्यात मांग में धीमेपन संबंधी कुछ चिंताओं के संबंध में पिछले सर्वेक्षण के दौर में विद्यमान इसके स्तर की तुलना कारोबारी विश्वास आम तौर पर न्यून स्तर का रहा। एक सर्वेक्षण के अनुसार समग्र आर्थिक स्थितियों के संकेतक में पिछली तिमाही में देखे गए इसके स्तर के संबंध में अगले छ:महीनों में 19 प्रतिशत की गिरावट रही। एक अन्य सर्वेक्षण में अक्तूबर- दिसंबर 2008 के लिए संयोजित कारोबार अनुकूलन सूचकांक में बिक्री की मात्राओं, नए आदेशों और निवल लाभों में मिलकर (28.1 प्रतिशत की गिरावट की सूचना मिली है, जो अल्प मांग स्थितियों का परिचायक है। क्रय प्रबंधकों के मौसमी रूप से समायोजित सूचकांक दर्शाते हैं कि विनिर्माण क्षेत्र के क्रियाकलापों की गति, स्थानीय और निर्यात बाजार दोनों ही में आयी गिरावट तथा बढ़े हुए मुद्रास्फीतिकारी प्रभाव के कारण, कुछ मात्रा में बाधित हुई है। भावी स्थिति के संकेतक कुछ मंदी तथा मार्जिन के दबाव को इंगित करते हैं।

11. सेवा क्षेत्र में प्रमुख संकेतकों की गतिविधि से संकेत मिलते है कि संप्रेषण के क्षेत्र में विस्तार की गति तेज़ बनी है जिसमें स्विचिंग क्षमता में एक वर्ष पहले आई 53.1 प्रतिशत की गिरावट के मुकाबले अप्रैल-जुलाई 2008 में 33.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। टेलीफोन कनेक्शन (फिक्स एवं सेल्यूलर) में 32.4 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई जिसमें 34.4 मिलियन कनेक्शन जुड़ गए थे, जबकि इसकी तुलना में पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में 26.0 मिलियन कनेक्शन जुड़े थे। रेलवे राजस्व के माल ढुलाई से अर्जन 9.4 प्रतिशत बढ़ गए, जो पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में पेट्रोलियम, तेल और लुब्रिकेन्ट (पीओएल), कंटेनर सेवाओं तथा सीमेंट की ढुलाई के लिए अधिक यातायात के कारण हुई 6.1 प्रतिशत की वृद्धि से उच्चतर थी। प्रमुख बंदरगाहों में कार्गों कार्यों में वृद्धि एक वर्ष पहले के 14.9 प्रतिशत की तुलना में 8.3 प्रतिशत बढ़ गई। नागरी विमानन क्षेत्र में आयात कार्गों तथा निर्यात कार्गो के कार्य क्रमश: 6.6 प्रतिशत और 8.1 प्रतिशत बढ़ गए जबकि वर्ष 2007-08 की तदनुरूपी अवधि में ये 23.4 प्रतिशत तथा 3.6 प्रतिशत थे। देशी एवं अंतर्राष्ट्रीय ट्य्मनलों पर यात्रियों की संख्या में हुई संवृद्धि एक वर्ष के पहले क्रमश: 27.3 प्रतिशत और 11.8 प्रतिशत से घटकर/कम होकर क्रमश: (-) 2.2 प्रतिशत और 7.9 प्रतिशत रही।

12. केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) की अगस्त 2008 की प्रकाशनी के अनुसार अप्रैल-जून 2008 के दौरान वास्तविक निजी अंतिम खपत व्यय (पीएमसीई) 8.0 प्रतिशत बढ़ गए जो एक वर्ष की तदनुरूपी अवधि में दर्ज 7.6 प्रतिशत की वृद्धि से सीमान्त रूप से उच्चतर थी। वास्तविक सकल स्थायी-पूंजी निरूपण (जीएफसीएफ) 9.0 प्रतिशत बढ़ गया जो अप्रैल-जून 2007 में दर्ज 13.3 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में न्यूनतर था। सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही के दौरान 59.8 प्रतिशत का पीएमसीई का अंश स्थिर बना रहा जबकि जीएफसीएफ का अंश बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 32.3 प्रतिशत रहा जबकि एक वर्ष पहले वह 32.0 प्रतिशत था।

13. अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा दिया गया क्रेडिट वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 10अक्तूबर 2008 तक 29.4 प्रतिशत बढ़ गया, जबकि इसकी तुलना में एक वर्ष पहले 23.1 प्रतिशत (3,77,62 करोड़ रुपए) की वृद्धि हुई थी। वित्तीय वर्ष के आधार पर, 10अक्तूबर 2008 तक बैंक ऋण 10.4 प्रतिशत (2,45,491 करोड़ रुपए) बढ़ गया जबकि इसकी तुलना में पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में यह वृद्धि 4.4 प्रतिशत (84,280 करोड़ रुपये) था। खाद्यान्न ऋण पिछले वर्ष आई 9501 करोड़ रुपये की गिरावट के मुकाबले 4496 करोड़ रुपये बढ़ गया। खाद्येतर ऋण में पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में हुई 5.0 प्रतिशत (93,781 करोड़ रुपये) की वृद्धि की तुलना में 10.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई।

14. वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 10 अक्तूबर 2008 तक खाद्येतर ऋण वृद्धि एक वर्ष पहले के 23.3 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर 29.3 प्रतिशत रही। बैंक ऋण के क्षेत्रगत विनियोजन संबंधी अगस्त 2008 तक उपलब्ध अनंतिम सूचना से संकेत मिलता है कि वर्ष-दर-वर्ष आधार पर सेवा क्षेत्र को दिए गए ऋण में उच्चतम वृद्धि (35.3 प्रतिशत), कृषि (18.5 प्रतिशत) और निजी ऋण (17.4 प्रतिशत) दर्ज की गई। आवास और भू-संपदा ऋणों में वृद्धि क्रमश: 13.9 प्रतिशत (16.6 प्रतिशत) और 46.34 प्रतिशत (52.9 प्रतिशत) कम हो गई। औद्योगिक क्षेत्र में भारी ऋण वृद्धि देखी गई: बुनियादी सुविधाएं (एक वर्ष पहले के 32.0 प्रतिशत के मुकाबले 35.8 प्रतिशत) पेट्रोलियम 32.9 प्रतिशत के मुकाबले 91.8 प्रतिशत), मूल धातु और धात्विक उत्पाद (20.6 प्रतिशत के ऊपर 32.2 प्रतिशत), सीमेंट और सीमेंट उत्पाद (एक वर्ष पहले के 18.1 प्रतिशत के मुकाबले 62.8 प्रतिशत), रसायन (15.3 प्रतिशत के मुकाबले 27.1 प्रतिशत) और भवन निर्माण (42.9 प्रतिशत के मुकाबले 25.6 प्रतिशत)— निम्नलिखित संबंधी ऋण वृद्धि मामूली रूप से कम रही : खाद्यान्न प्रसंस्करण (29.0 प्रतिशत के मुकाबले 25.6 प्रतिशत), सूती वॉा (28.7 प्रतिशत के मुकाबले 23.1 प्रतिशत) और वाहन, वाहने के पुर्जे और परिवहन उपकरण (34.2 प्रतिशत के मुकाबले 27.5 प्रतिशत)। उद्योग को दिए गए ऋण अगस्त 2008 तक खाद्येतर बैंक ऋण में हुए कुल विस्तार का 44.6 प्रतिशत रहा, इसके बाद सेवा (30.3 प्रतिशत), निजी ऋण (16.7 प्रतिशत) और कृषि (8.4 प्रतिशत) का स्थान था। बुनियादी सुविधा, पेट्रोलियम, भवन निर्माण, सीमेंट तथा खनन और उत्खनन का उद्योग को दिए गए कुल ऋण में अंश 21.6 प्रतिशत, 4.6 प्रतिशत, 2.9 प्रतिशत, 1.34 प्रतिशत और 1.0 प्रतिशत से बढ़कर (क्रमश: 22.5 प्रतिशत, 6.7 प्रतिशत, 3.3 प्रतिशत, 1.6 प्रतिशत और 1.4 प्रतिशत हो गया। इसके विपरीत, सूती वॉा , रसायन, इंजीनियरी, खाद्यान्न प्रसंस्करण और रत्न तथा आभूषणों के लिए ऋण का अंश 11.0 प्रतिशत, 7.7 प्रतिशत, 6.4 प्रतिशत, 5.6 प्रतिशत और 3.3 प्रतिशत से घटकर क्रमश: 10.4 प्रतिशत, 7.5 प्रतिशत, 6.1 प्रतिशत, 5.4 प्रतिशत और 2.9 प्रतिशत रह गया। प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को दिए गए अग्रिम 20.8 प्रतिशत बढ़ गए और बकाया सकल बैंक ऋण में उनका अंश एक वर्ष पहले के 34.7 प्रतिशत से कुछ ही घटकर 33.1 प्रतिशत रह गया। हालांकि वर्ष 2008-09 में पेट्रोलियम और उर्वरक कंपनियों द्वारा ऋण की कुल खरीद में तीव्र वृद्धि हुर्ह है, फिर भी, खाद्येतर ऋण की वार्षिक वृद्धि दर, पेट्रोलियम और उर्वरक क्षेत्रों को दिए गए ऋण को छोड़ देने के बाद भी एक वर्ष पहले के 24.5 प्रतिशत की तुलना में अगस्त 2008 में 25.6 प्रतिशत पर उल्लेखनीय रूप से उच्चतर स्तर पर थी।

15. शेयरों, बांडों/डिबेंचरों और वाणिज्यिक पत्रों में वाणिज्य बैंकों के निवेश वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 10 अक्तूबर, 2008 तक एक वर्ष पूर्व की 5.4 प्रतिशत (4,458 करोड़ रुपये) की कमी की तुलना में 17.5 प्रतिशत (13,600 करोड़ रुपये) बढ़ गये। वित्तीय वर्ष के आधार पर बैंकों द्वारा किये गये ऐसे निवेश वर्ष 2008-09 के दौरान अब तक (10 अक्तूबर तक) वर्ष 2007-08 की तदनुरूपी अवधि में हुई 7.2 प्रतिशत (6,025 करोड़ रुपये) की गिरावट की तुलना में 4.6 प्रतिशत (4,386 करोड़ रुपये) गिर गये।

16. अनुसूचित वाणिज्य बैंकों से वाणिज्य क्षेत्र को कुल संसाधन प्रवाह में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि 10 अक्तूबर, 2008 तक 28.9 प्रतिशत थी और वह एक वर्ष पहले की 21.9 प्रतिशत की वृद्धि के ऊपर थी। वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं और म्युचुअल फंडों द्वारा जारी लिखतों में बैंकों के निवेशों में पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में हुई 51,656 करोड़ रुपये की वृद्धि की तुलना में 11,411 करोड़ रुपये की कमी आई। कंपनियों द्वारा बाह्य वाणिज्यिक उधारों के रूप में जुटाये गये अतिरिक्त संसाधन पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 28,822 करोड़ रुपये (7.0 बिलियन अमरीकी डालर) की तुलना में अप्रैल-जून 2008 के दौरान 6,494 करोड़ रुपये (1.6 बिलियन अमरीकी डॉलर) कम थे। 4,652 करोड़ रुपये (1.1 बिलियन अमरीकी डॉलर) की राशि, पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में जुटाई गई 11,284 करोड़ रुपये (2.8बिलियन अमरीकी डॉलर) की तुलना में अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान एडीआर/ जीडीआर को जारी करके जुटाई गई।

17. अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की सकल जमाराशियां, एक वर्ष पूर्व के 24.7 प्रतिशत (5,65,124 करोड़ रुपये) की तुलना में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 10 अक्तूबर, 2008 तक 21.6 प्रतिशत (6,15,263 करोड़ रुपये) बढ़ गयीं। वित्तीय वर्ष के आधार पर सकल जमाराशियों में, पूर्ववर्ती वर्ष की तदनुरूपी अवधि में हुई 9.3 प्रतिशत (2,42,163 करोड़ रुपये) की तुलना में 8.5 प्रतिशत (2,72,420 करोड़ रुपये) की वृद्धि हुई। कुल जमाराशियों में बचत जमाराशियों का अंश कम होता जा रहा है और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बैंकों के पास लघु बचत लिखतों से हट कर मीयादी जमाराशियें की ओर झुकाव हो रहा है जहां प्रतिफल की दरें अधिक आकर्षक हैं। वृद्धिशील वार्षिक ऋण-जमा अनुपात एक वर्ष पूर्व के 66.8 प्रतिशत से 10 अक्तूबर 2008 को 96.2 प्रतिशत हो गया।

18. वर्ष 2008-09 के दौरान 10 अक्तूबर, 2008 तक सरकारी तथा अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के वृद्धिशील निवेश 9,201 करोड़ रुपये थे जबकि इसके मुकाबले पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में वे 1,56,236 करोड़ रुपये थे। वृद्धिशील आधार पर सकल जमाराशियों में ऐसे निवेशों का अनुपात 3.4 प्रतिशत था जो पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के 64.5 प्रतिशत से काफी कम था। तथापि, चलनिधि समायोजन सुविधा परिचालनों के अंतर्गत संपार्श्विक प्रतिभूतियों के समायोजन में सांविधिक चलनिधि अनुपात निवेश में पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में हुई 90,806 करोड़ रुपये की वृद्धि की तुलना में वर्ष 2008-09 के दौरान 80,176 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई। बकाया आधार पर चलनिधि समायोजन सुविधा संपार्श्विक प्रतिभूतियों को शामिल करते हुए, सांविधिक चलनिधि अनुपात प्रतिभूतियों की अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की धारित राशियां 10 अक्तूबर, 2008 को 10,72,416 करोड़ रुपये अथवा निवल मांग और मीयादी देयताओं की 28.2 प्रतिशत हो गई जो निवल मांग और मीयादी देयताओं के 25 प्रतिशत के निर्धारित सांविधिक चलनिधि अनुपात से 1,20,870 करोड़ रुपये अथवा निवल मांग और मीयादी देयताओं के 3.2 प्रतिशत वृद्धि निर्दिष्ट करती है।

19. वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 10 अक्तूबर 2008 तक मुद्रा आपूर्ति (एम3) में वृद्धि 20.3 प्रतिशत हुई जो एक वर्ष पहले की 21.9 प्रतिशत से कम थी, परंतु वार्षिक नीति वक्तव्य 2008 में निर्धारित 17.0 प्रतिशत के सांकेतिक पूर्वानुमान से अधिक थी। वित्तीय वर्ष आधार पर, एम3 में पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में हुई 8.1 प्रतिशत (2,68,694 करोड़ रुपये) की वृद्धि की तुलना में 10 अक्तूबर 2008 तक 7.7 प्रतिशत (3,07,403 करोड़ रुपये) की वृद्धि हुई।

20. वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 17 अक्तूबर, 2008 की स्थिति के अनुसार आरक्षित मुद्रा में पिछले वर्ष के 24.4 की तुलना में 17.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वित्तीय वर्ष आधार पर, आरक्षित मुद्रा में 17 अक्तूबर, 2008 तक 2.9 प्रतिशत (27,296 करोड़ रुपये) की गिरावट आयी जबकि पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में इसमें 8.1 प्रतिशत (57,189 करोड़ रुपये) की वृद्धि हुई थी। आरक्षित मुद्रा के घटकों जैसे संचलनगत मुद्रा में 4.5 प्रतिशत (22,702 करोड़ रुपये) की तुलना में 7.3 प्रतिशत (43,095 करोड़ रुपये) की उच्च वृद्धि दर्ज़ की गयी। रिज़र्व बैंक के पास बैंकों की जमाराशियों में पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि को 8.7 प्रतिशत (36,984 करोड़ रुपये) की वृद्धि की तुलना में 20.3 प्रतिशत (66,793 करोड़ रुपये) की गिरावट आयी। आरक्षित मुद्रा के स्रोतों में से केंद्र सरकार को रिज़र्व बैंक के निवल ऋण पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में हुई 1,43,116 करोड़ रुपये की कमी के विपरीत 15,534 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई। तथापि, चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत लेनदेन के लिए केंद्र सरकार को रिज़र्व बैंक के ऋणों ने 57,244 करोड़ रुपये की वृद्धि दर्शाई, इसका मुख्य कारण था विशेष बाज़ार परिचालनों के अंतर्गत प्राप्त प्रतिभूतियां और रिज़र्व बैंक के साथ भारत सरकार की नकदी शेष राशियों में कमी। रिज़र्व बैंक की निवल विदेशी मुद्रा आस्तियों में पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के 1,71,080 करोड़ रुपये की वृद्धि की तुलना में 93,402 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई। तथापि, विदेशी मुद्रा आस्तियों के पुनर्मूल्यांकन के समायोजन के लिए निवल विदेशी मुद्रा आस्तियों में पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान हुई 2,17,201 करोड़ रुपये की वृद्धि की तुलना में 34,556 करोड़ रुपये की कमी आयी। निवल विदेशी मुद्रा आस्तियों का मुद्रा के साथ अनुपात 31 मार्च, 2008 के 209.2 प्रतिशत से थोड़ा-सा बढ़कर 17अक्तूबर,2008 तक 209.7 प्रतिशत हो गया।

21. वर्ष 2008-09 की दूसरी तिमाही के दौरान चलनिधि स्थितियां सामान्यत: तंगी में थीं और जुलाई के प्रथम सप्ताह को छोड़कर चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत सिस्टम में लगातार चलनिधि डाली गयी। इसके अतिरिक्त, जुलाई-सितंबर 2008 के दौरान 91 दिन, 182 दिन और 364 दिनों के खज़ाना बिल जारी करके, 26,000 करोड़ रुपये (निवल) की राशि जुटायी गयी। चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत सिस्टम में डाली गयी निवल चलनिधि जून 2008 के 8,622 करोड़ रुपये के औसत से बढ़कर अगस्त 2008 में 22,560 करोड़ रुपये हो गयी। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाज़ारों में विपरीत गतिविधियों के साथ सितंबर 2008 के दौरान चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत डाली गयी चलनिधि 1,025-90,075 करोड़ रुपयों के बीच रही जो 29 सितंबर 2008 को 90,075 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गयी जो अग्रिम कर बहिर्प्रवाह और अर्धवार्षिक बैंक लेखाबंदी के साथ-साथ हुई। चलनिधि दबाव को कम करने के लिए रिज़र्व बैंक ने बाज़ार स्थिरीकरण योजना में ढील देते हुए 30 जून-21 अगस्त 2008 के दौरान 3,105 करोड़ रुपये प्रदान किए। रिज़र्व बैंक ने अक्तूबर 2008 में प्रारक्षित नकदी अनुपात में 250 आधार अंक की कमी कर दी और बाद में उल्लिखित अतिरिक्त सुविधाओं के माध्यम से बाज़ार के लिए चलनिधि सहायता बढ़ा दी। अक्तूबर 2008 के दौरान चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत 10 अक्तूबर 2008 को सिस्टम में डाली गयी चलनिधि बढ़कर 91,500 करोड़ रुपये हो गयी। परंतु बाद की अवधि में चलनिधि स्थिति पूरी तरह बदल गयी और चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत 22 अक्तूबर 2008 को रिज़र्व बैंक ने 27,745 करोड़ रुपये सिस्टम से निकाल लिये। निर्यात ऋण पुनर्वित्त पर बैंकों की निर्भरता जून 2008 के 2,208 करोड़ रुपये के दैनिक औसत से बढ़कर अगस्त 2008 में 3,110 करोड़ रुपये हो गयी तथा 29 सितंबर 2008 को और बढ़कर 6,752 करोड़ रुपये हो गयी तथा 22अक्तूबर 2008 को घटकर 91 करोड़ रुपये हो गयी। केंद्र सरकार की नकद शेष राशि 30 जून 2008 को 37,194 करोड़ रुपये से घटकर 2 अगस्त 2008 को 2,967 करोड़ रुपये हो गयी और उसने 4-6 अगस्त और 2-14 सितंबर 2008 के दौरान अर्थोपाय अग्रिमों का सहारा लिया और 5 सितंबर 2008 को वह 10,903 करोड़ रुपये के चरम स्तर पर पहुंच गयी। बाद की अवधि में, 20 अक्तूबर 2008 को केंद्र सरकार का नकदी शेष बढ़कर 29,753 करोड़ रुपये हो गया।

22. निवल आधार पर, औसत दैनिक चलनिधि समायोजन सुविधा राशि 2008-09 की पहली तिमाही में 9881 करोड़ रुपये थी। यह राशि दूसरी तिमाही में बढकर निवल चलनिधि भरण की राशि 30,912 करोड़ रुपये तथा अक्तूबर 2008 में (22 अक्तूबर तक) 53,259 करोड़ रुपये हो गई। बाजार स्थिरीकरण योजना के अधीन शेष 30 जून, 2008 को विद्यमान 1,76,422 करोड़ रुपये के स्तर से बढ़कर 25 सितंबर , 2008 को 1,77,817 करोड रुपये हो गए। लेकिन यह घट कर 22 अक्तूबर, 2008 को 1,71,317 करोड़ रुपये रह गए। रिज़र्व बैंक के पास केद्र सरकार के नकदी शेष 2008-09 की पहली तिमाही में विद्यमान 30,587 करोड़ रुपये के औसत से कम हो कर दूसरी तिमाही में 17,821 करोड़ रुपये रह गए और ये अक्तूबर 2008 में (22 अक्तूबर तक) 36,599 करोड़ रुपये थे। चलनिधि समायोजन सुविधा, बाजार स्थिरीकरण योजना और केंद्र सरकार के नकदी शेषों को मिलाकर चलनिधि का अधिक्य (ओवर हैंग) जून 2008 में 1,93,726 करोड़ रुपये के दैनिक औसत से कम हो कर सितंबर 2008 में 1,53,863 करोड़ रुपये तथा 5 अकतूबर, 2008 को और भी कम हो कर 1,22,182 करोड़ रुपये रह गया। चलनिधि का कुल आधिक्य 20 अक्तूबर, 2008 को बढ़कर 2,17,415 करोड़ रुपये हो गया।

23. वर्षानुवर्ष आधार पर, थोक मूल्य सूचकांक में हुए परिवर्तनों पर आधारित मुद्रास्फीति मार्च 2008 के अंत में स्थित 7.8 प्रतिशत और एक वर्ष पहले के 3.2 प्रतिशत की तुलना में 4 अक्तूबर, 2008 को बढ़कर 11.4 प्रतिशत हो गई। अलग-अलग देखें, तो प्राथमिक वस्तुओं और विनिर्मित उत्पादों के मूल्य क्रमश: 12.7 प्रतिशत और 9.7 प्रतिशत बढ़े जब कि एक वर्ष पहले ये 5.0 प्रतिशत और 4.5 प्रतिशत ही बढ़े थे। वर्ष2008-09 में अब तक, प्राथमिक वस्तुओं के लिए मुद्रास्फीति मुख्यतया खाद्यान्नों, सब्जियों, फलों, कपास, दूध, मसालों और मिर्चमसालों तथा चाय के बढ़ते मूल्यों के कारण हुई है। खाद्य पदार्थों के मूल्य जून में कुछ कम हो गए थे, लेकिन बाद के महीनों में ये बढ़ गए। कपास तथा तिलहनों के उच्च मूल्यों के कारण खाद्येतर वस्तुओं की मुद्रास्फीति उच्च रही। विनिर्माण मुद्रास्फीति मुख्यतया तीन समूहों के कारण रही-बुनियादी धातु और मिश्रधातु, खाद्य उत्पाद और रसायन तथा रासायनिक उत्पाद।

24. ईंधन समूह के मूल्यों में वर्षानुवर्ष आधार पर 14.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि एक वर्ष पहले इसमें 1.8 प्रतिशत की कमी हुई थी। कच्चे तेल के भारतीय बास्केट का दैनिक औसत मूल्य मार्च 2002 के 99.4 अमरीकी डालर प्रति बैरल से बढ़कर जून 2008 में 129.8 अमरीकी डालर प्रति बैरल हो गया और 3 जुलाई, 2008 को 141.5 अमरीकी डालर के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया लेकिन सितंबर 2008 में कम हो कर 96.8 अमरीकी डालर और अक्तूबर में अब तक 22 अक्तूबर, 2008 तक 74.4 अमरीकी डालर हो गया। ईंधन समूह को छोड़कर वर्षानुवर्ष आधार पर एक वर्ष पहले के 4.7 प्रतिशत की तुलना में मुद्रास्फीति बढ़कर 10.6 प्रतिशत हो गई। इसी प्रकार, ईंधन और खाद्य पदार्थों को छोड़कर, एक वर्ष पहले के 5.2 प्रतिशत की तुलना में मुद्रास्फीति बढ़कर 10.8 प्रतिशत हो गई। औसत आधार पर 8.0 प्रतिशत पर वार्षिक थेक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फिति एक वर्ष पूर्व के 5.4 प्रतिशत से उच्चतर थी।

25. औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति एक वर्ष पहले के 7.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्षानुवर्ष आधार पर अगस्त 2008 के 9.0 प्रतिशत हो गई। कृषि श्रमिकों तथा ग्रामीण श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित वर्षानुवर्ष मुद्रास्फीति एक वर्ष पहले क्रमश: 7.9 प्रतिशत और 7.6 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर दोनों के लिए 11.0 प्रतिशत हो गई। शहरी गैर-श्रमिक कर्मचारियों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति पिछले वर्ष तदनुरूपी अवधि के 6.4 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर अगस्त 2008 में 8.5 प्रतिशत हो गई। थोक मूल्य सूचकांक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति दरों में विभिन्नता का कारण इंदधन की वस्तुओं और धातुओं के मूल्यों में हुई उच्च वृद्धि है जिनका उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की तुलना में थोक मूल्य सूचकांक में अधिक भारित है।

26. अप्रैलअगस्त 2008 में केंद्र सरकार की राजस्व प्राप्तियां बजट अनुमानों का 26.8 प्रतिशत थीं जब कि एक वर्ष पहले इसी अवधि में यह 33.7 प्रतिशत थीं। बजट अनुमान के अनुमान के रूप में, कर और करेतर राजस्व प्राप्तियां क्रमश: 24.7 प्रतिशत और 37.7 प्रतिशत थीं जब कि एक वर्ष पहले ये 24.6 प्रतिशत और 78.4 प्रतिशत थीं। बजट अनुमान के 37.2 प्रतिशत पर कुल व्यय एक वर्ष पहले के 39.9 प्रतिशत की तुलना में कम था। पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के 68.5 प्रतिशत और 74.9 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-अगस्त 2008 में सकल राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा बढ़कर क्रमश: 87.7 प्रतिशत और 177.4 प्रतिशत हो गया। इस वर्ष में अब तक घाटे के वित्तीयन की एक उल्लेखनीय बात यह है कि पिछले वर्ष में कमी के बाद छोटी बचत जमा राशियों और प्रमाणपत्रों के संग्रहण में सुधार हुआ है।

27. वर्ष 2008-09 में अब तक (22 अक्तूबर 2008 तक) दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से केंद्र सरकार का सकल बाजार उधार 1,06,000 करोड रुपये के स्तर पर (एक वर्ष पहले 1,07,000 करोड रुपये ) बजट अनुमान का 60.3 प्रतिशत था। 61,972 करोड़ रुपये के स्तर पर निवल बाजार उधार (एक वर्ष पहले 74,875 करोड़ रुपये) बजट अनुमान का 67.6 प्रतिशत था। इसके अतिरिक्त चालू वर्ष में 17 अक्तूबर, 2008 तक किसानों की ऋण माफी योजना पर व्यय का वित्तपोषण करने के लिए केंद्र सरकार ने अतिरिक्त खजाना बिल जारी कर के 38,500 करोड़ रुपये जुटाए हैं। 2008-09 में अब तक (22 अक्तूबर, 2008 तक) जारी केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों की भारित औसत आय और भारित औसत परिपक्वता क्रमश: 8.81 प्रतिशत और 15.55 वर्ष के स्तर पर उच्चतर थे, जब कि 2007-08 (पूरे वर्ष) में जारी प्रतिभूतियों के लिए ये 8.12 प्रतिशत और 14.90 वर्ष थे। दो अवसरों को छोड़कर, 2008-09 की पहली छमाही के लिए संकेतात्मक कैलेंडर के अनुसरण में उधार की राशि बढ़ा दी गई। पहला, बाजार में मौजूदा अनिश्चित परिस्थितियों को देखते हुए उच्चतर परिपक्वता की प्रतिभूति के स्थान पर 24 जुलाई, 2008 की नीलामी में एक 10 वर्षीय बेंचमार्क प्रतिभूति जारी की गई। दूसरा, 1अप्रैल, 2008 से 30 सितंबर, 2008 तक की अवधि के लिए, संकेतात्मक कैलेंडर के अनुसार, भारत सरकार द्वारा चालू राजकोषीय वर्ष की पहली छमाही के लिए दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करने के बाद, सरकार की प्रत्याशित आवश्यकताओं, बाजार की परिस्थितियों और अन्य संगत बातों को ध्यान में रखते हुए, 26 सितंबर, 2008 को 10,000 करोड़ रुपये की दिनांकित प्रतिभूतियों की एक अनियत नीलामी की गई। भारत सरकार के साथ सलाह करके 2008-09 की दूसरी छमाही (अक्तूबर-मार्च) के लिए दिनांकित प्रतिभूतियों के लिए 26 सितंबर, 2008 को 39,000करोड़ रुपये की राशि के नियोजित निर्गमों के लिए निर्गम कैलेंडर जारी किया गया। लेकिन चलनिधि स्थितियों की समीक्षा के बाद, रिज़र्व बैंक से सलाह करके भारत सरकार ने 10 अक्तूबर और 20अक्तूबर, 2008 को प्रत्येक 10,000 करोड़ रुपये के लिए घोषित नीलामियां रद्द कर दीं। चालू वर्ष में अब तक तेल कंपनियों, उर्वरक कंपनियों और भारतीय खाद्य निगम को कोई विशेष प्रतिभूतियां जारी नहीं की गई हैं जब कि 2007-08 में 38,050 करोड़ रुपये और 2006-07 में 40,321 करोड़ रुपये की प्रतिभूतियां जारी की गई थीं। अन्य बातों के साथ-साथ छठे वेतन आयोग के अधिनिर्णय के कार्यान्वयन के कारण केंद्र सरकार के कर्मचारियों के बढ़े हुए वेतन, कृषि ऋण माफी योजना, ग्रामीण रोजगार और उर्वरक सब्सिडी के लिए बढ़ाये गये आबंटन सहित 1,05,613 करोड़ रुपये के अतिरिक्त व्यय के लिए, केंद्र सरकार ने 20 अक्तूबर, 2008 को संसद से अनुमोदन मांगा। 62,658 करोड़ रुपये के सकल अनुमानित उधार (निवल 48, 287 करोड़ रुपये) की तुलना में, राज्य सरकारों ने 22 अक्तूबर, 2008 तक 8,738 रुपये की राशि जुटाई।

28. वर्ष 2008-09 की दूसरी तिमाही में वित्तीय बाज़ार चलनिधि की परिस्थितियों में परिवर्तन परिलक्षित हुए। एक रात के लिए मांग, बाजार रेपो (एलएएफ से अलग) और संपार्श्विकीकृत उधार लेने और देने की बाध्यतां (सीबीएलओ) में सख्ती अप्रैल-अगस्त 2008 के दौरान प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात में छह चरणों में वृद्धि और एलएएफ रेपो दर में 12 जून, 25 जून और 30 जुलाई 2008 को वृद्धि के परिणामस्वरूप चलनिधि की अधिक तंगहाली के कारण आई। भारित औसत मांग दर मार्च 2008 में 7.37 प्रतिशत से बढ़कर अगस्त 2008 में 9.10 प्रतिशत हो गई तथा सितंबर 2008 में और बढ़कर 10.52 प्रतिशत हो गई। अग्रिम कर के बाह्य प्रवाह तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा एवं शेयर बाजारों में उथल-पुथल के कारण मांग दर 16 सितंबर 2008 को बढ़कर 13.07 हो गई। छ:माही बैंक लेखाबंदी के बाद औसत मांग दर का स्तर 29 सितंबर 2008 को 14.70 प्रतिशत तक पहुंच गया था। अक्तूबर 2008 (22 अक्तूबर तक) के दौरान भारित औसत मांग दर 9.9 प्रतिशत थी जिसने बढ़ते-बढ़ते 10 अक्तूबर 2008 को 19.70 प्रतिशत की ऊंचाई छू ली और 22 अक्तूबर 2008 को वह गिरकर 6.09 प्रतिशत हो गयी। सांपार्श्वीकृत उधार और ऋणदायी बाहयता (सीबीएलओ) तथा बाज़ार रेपो खण्डों में ब्याज दरों में परिवर्तन मांग दरों के साथ-साथ हुए और वे मार्च 2008 में क्रमश: 6.37 प्रतिशत तथा 6.72 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2008 में क्रमश: 8.74 प्रतिशत तथा 8.87 प्रतिशत हो गये और इसके बाद 22 अक्तूबर 2008 को गिरकर क्रमश: 5.38 प्रतिशत तथा 6.04 प्रतिशत होने से पहले ये दरें 01 अक्तूबर 2008 को एक बार फिर बढ़कर क्रमश: 11.44 प्रतिशत तथा 11.77 प्रतिशत हो गई थीं ।मांग मुद्रा बाज़ार, बाज़ार रेपो तथा सीबीएलओ खण्डों में दैनिक औसत मात्रा (एक चरण) मार्च 2008 में क्रमश: 11,182 करोड़ रूपये, 14,800 करोड़ रुपये तथा 37,413 करोड़ रुपये से सितंबर 2008 में क्रमश: 11,690 करोड़ रुपये, 10,659 करोड़ रुपये तथा 20,547 करोड़ रुपये हो गई और 22 अक्तूबर 2008 को बढ़कर 15,730 करोड़ रुपये, 13,275 करोड़ रुपये तथा 23,719 करोड़ रुपये हो गई थी। इस प्रकार अंतर-बैंक मुद्रा बाज़ार का कामकाज इस दौरान ठीक रहा।

29. 91 दिवसीय खज़ाना बिलों पर प्राथमिक प्रतिफल मार्च 2008 के अंत में 7.23 प्रतिशत से बढ़कर जुलाई 2008 के अंत में 9.36 प्रतिशत था जो बाद में घटकर 22 अक्तूबर 2008 को 7.19 प्रतिशत हो गया। इसी प्रकार 364 दिवसीय खज़ाना बिलों पर प्राथमिक प्रतिफल मार्च 2008 के अंत में 7.35 प्रतिशत था जो जुलाई के अंत में बढ़कर 9.56 प्रतिशत हो गया तथा 22 अक्तूबर 2008 को घटकर 7.40 प्रतिशत हो गया। वाणिज्यिक पत्रों पर भारित औसत बट्टा दर मार्च 2008 के अंत के 10.38 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2008 के अंत में 12.28 प्रतिशत हो गयी और इस दौरान वाणिज्यिक पत्रों की बकाया राशि 32,592 करोड़ रुपये से बढ़कर 52,038 करोड़ रुपये हो गयी। जमा प्रमाणपत्रों के बाज़ार में भी भारित औसत बट्टा दर मार्च 2008 के अंत के 10.00 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2008 के अंत तक 11.56 प्रतिशत हो गयी और इससे बकाया राशि में 18.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई (अर्थात 1,47,792 करोड़ रुपये से बढ़कर 1,75,522 करोड़ रुपये)।

30. एक वर्षीय, 10 वर्षीय तथा 20 वर्षीय अवशिष्ट परिपक्वता वाली सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिफल मार्च 2008 के अंत में क्रमश: 7.49 प्रतिशत, 7.93 प्रतिशत तथा 8.11 प्रतिशत से बढ़कर 14 जुलाई 2008 को क्रमश: 9.25 प्रतिशत, 9.17 प्रतिशत तथा 9.72 प्रतिशत हो गया और ऊणचाई का यह स्तर सितंबर 2008 तक कायम रहा। इस प्रकार 29 सितंबर 2008 को दर्ज प्रतिफल क्रमश: 8.74 प्रतिशत, 8.63 प्रतिशत तथा 9.30 प्रतिशत से घटकर 22 अक्तूबर 2008 को क्रमश: 7.40 प्रतिशत, 7.58 प्रतिशत तथा 8.31 प्रतिशत हो गए। दस वर्षीय और 1 वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों के बीच प्रतिफल का स्प्रेड मार्च 2008 में 44 आधार अंकों से घटकर 22 अक्तूबर 2008 को 18 आधार अंक हो ग्या। इस अवधि में बीस वर्षीय और एक वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों के बीच प्रतिफल का स्प्रेड 82 अंकों से घटकर 71 अंक हो गया।

31. विदेशी मुद्रा बाजार में तीव्र गतिविधि औसत दैनिक टर्नओवर के उछाल में प्रतिबिंबित हुई जो एक वर्ष पहले 50.5 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर 64.9 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। इसी अवधि के दौरान व्यापारिक लेनदेन 13.7 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर 18.5 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया और साथ ही अंतर-बैंक टर्न ओवर 36.8 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर 46.4 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। छ:माही अगाऊ किस्तें मार्च 2008 के अंत में 2.5 प्रतिशत से बढ़कर 01 जुलाई 2008 को 5.4 प्रतिशत हो गयीं लेकिन वे बाद में नरम होकर 12 सितंबर 2008 को 2.5 प्रतिशत और आगे 22 अक्तूबर 2008 को 0.24 प्रतिशत हो गयी।

32. अप्रैल - 22 अक्तूबर 2008 के दौरान अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ने विभिन्न परिपक्वता अवधि वाली अपनी जमाराशियों की दरों में 50-175 आधार अंकों की वृद्धि की। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा एक वर्ष से अधिक परिपक्वता अवधि वाली जमाराशियों पर अदा की जाने वाली ब्याज दरों का रेंज अप्रैल 2008 में 8.00-9.25 प्रतिशत से बढ़कर 22 अक्तूबर 2008 को 8.50 -10.60 प्रतिशत के रेंज में आ गया। इसी अवधि के दौरान एक से तीन वर्ष और तीन वर्ष से ऊपर की परिपक्वता पर निजी क्षेत्र के बैंकों की जमाराशि दर 7.25 से 9.25 प्रतिशत; और 7.25 से 9.75 प्रतिशत से क्रमश: 9.00 से 11.00 प्रतिशत और 8.25 से 11.00 प्रतिशत बढ़ी। उधार देने के मामले में सरकारी क्षेत्र के बैंकों के बेंचमार्क मूल उधार दरों में अप्रैल-अक्तूबर के बीच 125 से 150 आधार अंकों की बढ़ोतरी हुई और ये दरें 22 अक्तूबर 2008 को 13.75 से 14.75 के बीच में आ गईं। इसी अवधि के दौरान निजी क्षेत्र और विदेशी बैंकों ने भी अपने बीपीएलआर में 13.00 से 16.50 प्रतिशत और 10.00 से 15.50 प्रतिशत के दायरे में क्रमश: 13.75 से 17.75 और 10.00 और 17.00 प्रतिशत की बढ़ोतरी की।

33. चालू वित्त वर्ष के दौरान अब तक इक्विटी बाजारों में प्राथमिक तथा द्वितीयक दोनों ही क्षेत्रों में मंदी अनुभव की गई। वर्ष 2008-09 की पहली छ:माही के दौरान प्राथमिक बाज़ार में सार्वजनिक निर्गमों के जरिए जुटाए गए संसाधन पिछले वर्ष उसी अवधि के दौरान जारी निर्गमों के 31,851 करोड़ रुपये की तुलना में तेजी से गिरकर 12,361 करोड़ रुपये हो गए। चालू वर्ष के दौरान अब तक निजी स्तर पर किए गए निवेश तथा यूरो निर्गमों के जरिए जुटाए गए संसाधनों में भी एक वर्ष पहले जुटाई गई राशि के मुकाबले तीव्र गिरावट हुई। वितीयक बाज़ार में विश्व इक्विटी बाजारों में ज्यादातर उतार -चढ़ावों के फलस्वरूप बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स (1978-79 = 100 ) दो तरफा उतार-चढ़ावों के साथ संवेदनशील बना रहा। 08 जनवरी 2008 को 20,873 के शिखर पर पहुंचे सेंसेक्स में लगातार गिरावट जारी रही जो 22 अक्तूबर 2008 को 10,170 के स्तर पर पहुंच गया।

बाह्य क्षेत्र में गतिविधियां

34. सितंबर 2008 के अंत में रिज़र्व बैंक द्वारा वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही के लिए जारी भुगतान संतुलन संबंधी आंकड़ों से पण्य व्यापार घाटे में बढ़ोतरी , अदृश्य प्राप्रियों में लगातार वृद्वि, निवल पूंजी अंतर्प्रवाह में कुछ कमी तथा आरक्षित निधियों में वृद्धि का पता चलता है। अमरीकी डॉलर के रूप में पण्य निर्यात में वृद्धि पिछले वर्ष की पहली तिमाही में 20.7 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-जून 2008 के दौरान 22.2 प्रतिशत थी। वाणिज्य आसूचना और सांख्यिकीय महानिदेशालय (डीजीसीआई एण्ड एम) से अप्रैल -मई 2008 के लिए प्राप्त पण्यवार आंकडों से पता चलता है कि इंजीनियरिडग वस्तुओं, कृषि तथा संबंद्ध उत्पादों तथा पेट्रोलियम उत्पादों की कुल निर्यातों में 54.7 प्रतिशत की मिलीजुली हिस्सेदारी रही और वे निर्यात में वृद्धि के मुख्य संचालक रहे जिनकी संपूर्ण निर्यात वृद्धि में 66.5 प्रतिशत हिस्सेदारी रही। मुख्य रूप से कृषि तथा संबद्ध उत्पादों के निर्यात में 89.2 प्रतिशत की वृद्धि के कारण प्राथमिक उत्पादों के निर्यात में 69.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात में एक वर्ष पहले 17.6 प्रतिशत की तुलना में 29.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई । इंजीनियरिडग वस्तुओं तथा रसायनों और संबद्ध उत्पादों के निर्यातों में वृद्धि एक वर्ष पहले 29.8 प्रतिशत तथा 16.7 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर क्रमश: 50.7 प्रतिशत एवं 26.0 प्रतिशत थी। इसी के साथ वॉााटं तथा संबंद्ध उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हुई जो एक वर्ष पहले 0.5 प्रतिशत घटने के मुकाबले 20.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। तेल आयातों के उँंचे भुगतान के कारण पण्य आयात के भुगतान में एक वर्ष पहले 21.1 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही के दौरान 33.3 प्रतिशत की उँची वृद्धि दर्ज़ की गई। कच्चे तेल के आयात में अप्रैल-जून 2008 के दौरान एक वर्ष पहले 23.9 प्रतिशत की तुलना में 50.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ की गई जो कि अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की भारतीय बास्केट के मूल्य में वृद्धि के प्रभाव को प्रदर्शित करती है, जो 2008-09 की पहली तिमाही में बढ़कर प्रति बैरल 118.8 अमेरिकी डॉलर हो गया जबकि पिछले वर्ष की तदनुरूपी तिमाही में यह प्रति बैरल 66.4 अमेरिकी डॉलर था। दूसरी ओर, तेल से इतर आयात के भुगतान में एक वर्ष पहले के 45.1 प्रतिशत की तुलना में 20.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो कि घरेलू मांग में कुछ नरमी का द्योतक है। अप्रैल-मई 2008 में वस्तुं उर्वरक, केमिकल, कोयला, कोक तथा ब्रिकेट के साथ-साथ पूंजीगत वस्तुं तेल से इतर आयात में वृद्धि की मुख्य घटक रहीं। तथापि, सोने और चांदी के आयात में पिछले एक वर्ष के 88.4 प्रतिशत की संवृद्धि की तुलना में 15.7 प्रतिशत की कमी आई। अप्रैल-मई 2008 में मोती, मूल्यवान तथा अर्ध मूल्यवान रत्नों जैसी निर्यात संबंधी वस्तुओं के आयात में भी कमी आई। अप्रैल-मई 2008 में चीन आयात का एक मात्र बड़ा स्रोत रहा, जहां से कुल आयात का 11.1 प्रतिशत आयात हुआ और तेल से इतर आयात 17.7 प्रतिशत हुआ। भुगतान के आधार पर, 2008-09 की पहली तिमाही में वणिक व्यापार घाटा एक वर्ष पहले के 20.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 31.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।

35. वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही के दौरान सकल अदृश्य प्राप्तियां 37.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गयी जो कि पण्य निर्यात का लगभग 86 प्रतिशत हो गईं जो कि 29.7 प्रतिशत की वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दर्शाती हैं। सॉफ्टवेयर सेवाओं के निर्यात, यात्रा तथा परिवहन में लगातार वृद्धि के साथ-साथ निजी अंतरणों के अंतर्गत प्राप्तियों में वृद्धि हुई। दूसरी ओर अदृश्य भुगतानों में एक वर्ष पहले के 22.6 प्रतिशत की तुलना में 14.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। परिवहन भुगतानों में एक वर्ष पहले के 24.8 प्रतिशत की तुलना में 33.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो कि आयातों की बढ़ती हुई मात्रा तथा भाड़ा दरों में वृद्धि, व्यवसाय तथा व्यावसायिक सेवाओं में वृद्धि को दर्शाती है। निवल आधार पर, 2008-09 की पहली तिमाही में अदृश्य लेखा में 20.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अधिशेष दर्ज़ किया गया जो कि व्यापार घाटे का लगभग 66 प्रतिशत वित्तपोषण करता है। वणिक व्यापार तथा अदृश्य लेखों में गतिविधियों के कारण चालू खाता घाटा (सी ए डी) 2007-08 पहली तिमाही के 6.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में 10.7 बिलियन अमेरिकी डालर हो गया।

36. वर्ष 2008-09 में निवल पूंजी प्रवाह एक वर्ष पहले के 17.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में 13.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा। अप्रैल-जून 2008 में निवल ई सी बी प्रवाह 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा जो कि निवल पूंजी प्रवाह का केवल 11.8 प्रतिशत रहा जब कि एक वर्ष पहले यह 6.9 बिलियन अमेरीकी डॉलर या 40.3 प्रतिशत था। अप्रैल-जून 2008 में निवल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ डी आइ) में उछाल आया और यह पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के 7.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में बढ़कर 12.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो कि सकारात्मक निवेश वातावरण तथा भुगतान व्यवस्था के लगातार उदारीकरण का द्योतक है। तथापि, निवल जावक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश एक वर्ष पहले के 4.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 2.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया जो कि वैश्विक व्यवसाय क्रियाकलापों की मंदी को दर्शाता है। 2008-09 की पहली तिमाही में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफ आइ आइ) द्वारा निवल पोर्टफोलियो निवेश के अंतर्गत 5.2 बिलियन अमरीकी डॉलर का बाह्य प्रवाह किया गया जब कि अप्रैल-जून 2007 में कुल अंतर्वाह 7.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हुआ था। अप्रैल-जून 2008 में अमेरिकन डिपोजिटरी प्राप्तियों/वैश्विक डिपोजिटरी प्राप्तियों (एडीआर/जीडीआर) के अंतर्गत प्राप्त राशियां 1.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर थीं। वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही में अनिवासी भारतीय (एन आर आइ) जमाराशियों में 0.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की निवल प्राप्ति हुई, जो अप्रैल-जून 2007 में 0.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बाह्य प्रवाह से एकदम उल्टी स्थिति थी।

37. भुगतान संतुलन के चालू तथा पूंजीगत खातों में इन गतिविधियों के फलस्वरूप 2008-09 की पहली तिमाही में विदेशी मुद्रा भंडार (मूल्य निर्धारण को छोड़कर) में एक वर्ष पहले के 11.2 बिलियन अमरीकी डॉलर की तुलना में 2.2 बिलियन अमराकी डॉलर की वृद्धि हुई। 0.2 बिलियन अमरीकी डॉलर के मूल्य निर्धारण को ध्यान में रखते हुए जून 2008 के अंत में विदेशी मुद्रा भंडार 312.1 बिलियन अमेरिकी डालर हो गया।

38. अप्रैल-जून 2008 में भारत के विदेशी ऋण में 0.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई और जून 2008 के अंत में यह 221.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। जहां बहुदेशीय ऋण में 0.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की मामूली वृद्धि दर्ज़ हुई, वहीं द्विपक्षीय ऋण में 0.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी आई। ई सी बी में 0.6 बिलियन अमरीकी डॉलर की कमी आई; तथापि अल्पाकालिक व्यापार क्रेडिट के अंतर्गत 2.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई। अन्य मुख्य अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं तथा भारतीय रुपए की तुलना में अमेरिकी डॉलर के मूल्य में वृद्धि के कारण पुनर्मूल्यंकन के चलते विदेशी ऋण में 4.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी आई। भारत के विदेशी ऋण में 52.3 प्रतिशत का मुख्य हिस्सा अमेरिकी डॉलर का रहा जब कि रुपया मूल्यवर्गित ऋण 14.1 प्रतिशत रहा। कुल ऋण में अल्पकालिक ऋण का अनुपात जून 2008 में बढ़कर 20.8 प्रतिशत हो गया जब कि मार्च 2008 के अंत में यह 19.9 प्रतिशत था। जून 2008 के अंत में विदेशी ऋण में विदेशी मुद्रा भंडार का अनुपात मार्च 2008 के अंत के 140.3 प्रतिशत से मामूली बढ़कर 141.0 प्रतिशत हो गया।

39. यह गतिविधियां 2008-09 की दूसरी तिमाही में भी जारी रहीं। डी जी सी आइ एण्ड एस द्वारा जारी सूचना से पता चलता है कि अप्रैल-अगस्त 2008 के दौरान निर्यात में अमेरिकी डालर के अनुसार 35.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई जब कि पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में 19.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। आयातों में पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के 34.2 प्रतिशत की तुलना में 38.0 की वृद्धि हुई। जहां गैर पी ओ एल आयात की वृद्धिदर एक वर्ष पहले के 42.7 प्रतिशत से घटकर 28.3 प्रतिशत हो गई, वहीं अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के मूल्यों में वृद्धि के परिणामस्वरूप पी ओ एल आयातों में पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के 17.9 प्रतिशत की तुलना में 60.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप, अप्रैल-अगस्त 2008 में वणिक व्यापार घाटा पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के 34.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 49.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया जिसमें अकेले तेल आयात बिल की राशि 17.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।

40. पूंजी प्रवाहों के घटकों के बारे में उपलब्ध सूचना मिली जुली स्थिति प्रस्तुत करती है। जहां आवक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश पिछले तदनुरूपी प्रवाहों से दुगुना हो गया तथा अनिवासी भारतीय जमाराशियों में सकारात्मक बदलाव देखा गया, वहीं निवल ई सी बी इस वर्ष काफी कम थे और विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश में भारी मात्रा में बाह्य प्रवाह हुआ। इसके निवल परिणामस्वरूप, पहली तिमाही में हुई पूंजीगत प्रवाहों में कमी दूसरी तिमाही में जारी रही। विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा किए गए पोर्टफोलियो निवेश में चालू वित्त वर्ष में 10 अक्तूबर 2008 तक की अवधि में 7.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवल बाह्य प्रवाह दर्ज़ हुआ जब कि पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में 18.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर की निवल प्राप्ति हुई थी। अप्रैल-अगस्त 2008 में भारतीय कंपनियों द्वारा जारी किए गए ए डी आर/जी डी आर पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के 2.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में घटकर 1.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहे। दूसरी तरफ अप्रैल-अगस्त 2008 में सकल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश अंतर्वाह एक वर्ष पहले के 8.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में 16.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा। अप्रैल-अगस्त 2008 में एन आर आइ जमाराशियों का निवल अंतर्वाह 0.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा जबकि एक वर्ष पहले निवल बाह्य प्रवाह 0.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। चालू वित्तीय वर्ष में विदेशी मुद्रा भंडार में अभी तक 35.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी आई और 17 अक्तूबर 2008 को यह 273.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।

41. मार्च 2008 के अंत में अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपए की विनिमय दर 39.97 रुपए थी, उसके बाद इसमें तेजी से मूल्यह्रास हुआ और 22 अक्तूबर 2008 को यह प्रति डॉलर 49.29 रुपए हो गयी। चालू वित्तीय वर्ष में अब तक रुपए की कीमत में अमेरिकी डॉलर तुलना में 18.9 प्रतिशत, यूरो की तुलना में 0.4 प्रतिशत, पाउंड स्ट्य्र्लंग की तुलना में 1.1 प्रतिशत, जापानी येन की तुलना में 19.1 प्रतिशत का मूल्यह्रास हुआ है। 22 अक्तूबर 2008 को रुपए की विनिमय दर प्रति डॉलर 49.29 रुपए, प्रति यूरो 63.35 रुपए, प्रति पाउन्ड स्ट्य्र्लंग की तुलना में 80.40 रुपए और 100 जापानी येन की तुलना में 49.53 रुपए थी।

42. हाल के वर्षों में विनिमय दर नीति सावधानीपूर्वक निगरानी और विनिमय दरों के प्रबंधन, जिसमें लचीलापन भी हो, के व्यापक सिद्धांतों धद्वारा नियंत्रित होती रही है। इसमें कोई निश्चित लक्ष्य या पूर्व-घोषित लक्ष्य या बैंड भी नहीं होता, और साथ ही, आवश्यकता पड़ने पर किसी भी समय हस्तक्षेप भि किया जा सकता है। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन के लिए समग्र दृष्टिकोण के रूप में भुगतान संतुलन की बदलती संरचना को ध्यान में रखा जाता है और इसमें विभिन्न प्रकार के प्रवाहों और अन्य आवश्यकताओं से जुड़ी चलनिधि जोखिमों को परिलक्षित करने का प्रयास भी किया जाता है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था संबंधी गतिविधियां

43. वर्ष 2008 के पहले नौ महीनों के दौरान अत्यधिक अनिश्चितताओं के वातावरण के चलते विकसित अर्थव्यवस्थाओं मे वैश्विक संवृद्धि दर में मंदी का प्रसार हुआ। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आयी कमजोरी के चलते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में निराशा देखी गई जिसका व्यापक प्रभाव वित्तीय बाजार में चल रहे संकट और ईंधन, खाद्य और पण्य कीमतों में भारी उतार चढाव के रुप में देखा गया। संरक्षणात्मक दबावों के अविर्भाव और वित्तीय उठापटक के प्रति अनियमित समायोजनों की संभावना की चिन्ताएं भी परिदृश्य में अधोगामी जोखिमों का कारण रही हैं। अक्तूबर 2008 में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा जारी वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलुक के अनुसार क्रय शक्ति समानता आधार पर वैश्विक वास्तविक सकल घरेलू उत्पादन वृद्धि 2007 के 5.0 प्रतिशत से घटकर 2008 में 3.9 प्रतिशत (वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलुक के जुलाई 2008 के अपडेट के अनुसार 3.9 प्रतिशत) और आगे, 2009 में 3.0 प्रतिशत (वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलुक के जुलाई 2008 के अपडेट के अनुसार 4.1 प्रतिशत) हो जाने का अनुमान है।

44. वर्ष 2008 की दूसरी तिमाही में अमेरिका में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद संवृद्धि में कमी आई और वह एक वर्ष पहले के 3.8 प्रतिशत से कम होकर 2.8 प्रतिशत हो गयी। तीसरी तिमाही में, सितंबर 2008 में बेरोजगारी दर में 6.1 प्रतिशत की वृद्धि , जो लगभग पिछले पांच वर्षों में सर्वाधिक थी, से श्रम बाजार कमजोर हुए। 2008 की तीसरी तिमाही में औद्योगिक उत्पादन में 6.0 प्रतिशत की वार्षिक दर से गिरावट आई जिसका मुख्य कारण तूफान और सितंबर में उत्पादन में आयी रुकावट थी। सितंबर 2008 में औद्योगिक क्षमता उपयोग दर 76.4 प्रतिशत रही जो 1972-2007 के औसत से 4.6 प्रतिशत अंक कम थी। सितंबर 2008 में प्रमुख संकेतकों के सूचकांक में वृद्धि हुई जो सूचकांक में पिछले पांच महीनों में पहली बार हुई थी। जुलाई 2008 में अमेरिकी आवास कीमतों में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 16.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई। आवास कीमतों में भारी कमी के बावजूद अगस्त 2008 में अमेरिका में नये आवासों की बिक्री में पिछले वर्ष की तुलना में 34.5 प्रतिशत की कमी आयी। सितंबर में आवासन (नए मकान बनाने संबंधी खर्च) में 6.3 प्रतिशत की कमी आयी - यह 17 वर्षों में सबसे कम स्तर था - क्योंकि आवास निर्माताओं ने बेचे न गए आवासों की संख्या में कमी करने की इच्छा जाहिर की। एकल परिवार में 12 प्रतिशत की तेज गिरावट हुई जो अगस्त 1982 के बाद से न्यूनतम स्तर था। सितंबर 2008 में अमेरिकी खुदरा बिक्री में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 1.0 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई और अक्तूबर में ग्राहक विश्वास में तीव्र गिरावट आयी। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अक्तूबर 2008 के वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलुक के अनुसार अमेरिकी अर्थव्यवस्था की वृद्धिदर 2007 के 2.0 प्रतिशत की तुलना में गिरकर 2008 में 1.6 प्रतिशत और इसके बाद 2009 में 0.1प्रतिशत हो सकती है।

45. वर्ष 2008 की दूसरी तिमाही में यूरो क्षेत्र में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में एक वर्ष पहले के 2.5 प्रतिशत की तुलना में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 1.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आगे 2008 की तीसरी तिमाही में यूरो क्षेत्र के आर्थिक परिदृश्य में स्थितियां और खराब हुई। अगस्त 2008 में यूरो क्षेत्र में बेरोजगारी एक वर्ष पहले की 7.4 प्रतिशत की तुलना में 7.5 बढ़ी। औद्योगिक उत्पादन और कारोबारी विश्वास में लगातार गिरावट होती रही जबकि मुद्रास्फीति में कमी के कारण वास्तविक प्रयोज्य आय में बढोतरी प्रारंभ हुई और कमजोर श्रम बाजारों ने निजी खपत की मांग को हतोत्साहित किया। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अक्तूबर 2008 के वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलुक के अनुसार यूरो क्षेत्र में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2007 के 2.6 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2008 के लिए 1.3 प्रतिशत और 2009 के लिए 0.2 प्रतिशत आंका गया है।

46. जापानी अर्थव्यवस्था में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में पिछले वर्ष की 2.3 प्रतिशत वृद्धि की तुलना में 2008 की दूसरी तिमाही में 3.0 प्रतिशत की गिरावट आयी जिसका कारण ऊर्जा और वस्तुओं के मूल्यों में की गयी वृद्धि और निर्यातों में धीमी वृद्धि थी। तीसरी तिमाही में व्यापार के संदर्भ में गिरावट के परिणामस्वरूप कारोबार में सावधि निवेश और कारपोरेट लाभों में कमी आयी। निजी खपत मांग भी अपेक्षाकृत कमजोर रही जिसका मुख्य कारण घरेलू आय में धीमी वृद्धि और पेट्रोलियम पदार्थों और खाद्य मूल्यों में वृद्धि होना था। आवासीय निवेश में सुधार अवरुद्ध रहा है। इसी बीच सार्वजनिक निवेश में भी सुस्ती रही। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अक्तूबर 2008 के वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलुक के अनुसार जापानी अर्थव्यवस्था 2007 के 2.1 प्रतिशत की तुलना में 2008 में 0.7 प्रतिशत और 2009 में 0.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि करेगी।

47. वर्ष 2008 की तीसरी तिमाही में चीन की अर्थव्यवस्था में एक वर्ष पहले के 12.2 प्रतिशत की तुलना में 9.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो पिछले पांच वर्षो में सबसे धीमी गति है जो निर्यातों में कमजोरी और वास्तविक संपदा बाज़ार में छायी मंदी के चलते औद्योगिक उत्पादन और निर्माण में कमी के कारण है। सितंबर में चीन का व्यापार अधिशेष वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 2.6 प्रतिशत कम होकर 180.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया जिसका कारण अधिशेष को नियंत्रित करने के लिए लगाये गए विनियमन और बढते हुए ईंधन मूल्य रहे। सितंबर 2008 में प्रारक्षित विदेशी मुद्रा निधियां बढ़कर 1.91 ट्रिलियन अमरीकी डालर हो गयी जिसमें 2007 की तदनुरूपी अवधि की तुलना में 2008 के पहले नौ महीनों में 377 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि दर्ज की। सीएसआई 300 सूचकांक जो कि चीन के दो शेयर बाजारों में युआन-प्रधान "ए" शेयरों के सूचीबद्ध सूचकांक का द्योतक है, वर्ष के दौरान अक्तूबर 22, 2008 तक 66.5 प्रतिशत गिर चुका था। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अक्तूबर 2008 के वर्ल्ड इकानोमिक आउटलुक के अनुमानों के अनुसार चीन की अर्थव्यवस्था 2007 के 11.9 प्रतिशत की तुलना में 2008 में 9.7 प्रतिशत और 2009 में 9.3 प्रतिशत की दर से वृद्धि करेगी।

48. एशिया की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में कोरिया की अर्थव्यवस्था 2008 की दूसरी तिमाही में एक वर्ष पहले के 4.9 प्रतिशत की तुलना में 4.8 प्रतिशत बढ़ी। तीसरी तिमाही में, घरेलू मांग में मंदी के चलते कोरिया में आर्थिक गतिविधियों में कमी आयी, हालांकि निर्यातों में लगातार भारी वृद्धि दर्ज होती रही। मुख्य रूप से वित्तीय बाजारों में चल रही उथल-पुथल और वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते भावी आर्थिक विकास के प्रति अत्यधिक अनिश्चितता छायी रही। थाइलैण्ड में आर्थिक गतिविधियां 2008 की दूसरी तिमाही में एक वर्ष पहले के 4.3 प्रतिशत की तुलना में 5.3 प्रतिशत की दर से बढ़ीं।

49. वैश्विक स्तर पर, हाल के महीनों में कई देशों में मुद्रास्फीति में कमी आयी है। अमरीका में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति जुलाई 2008 के 5.6 प्रतिशत की तुलना में कम होकर सितंबर 2008 में 4.9 प्रतिशत हो गयी। यूरो क्षेत्र में मुद्रास्फीति जुलाई 2008 के 4.1 प्रतिशत के सर्वोच स्तर से घटकर सितंबर 2008 को 3.6 प्रतिशत हो गयी। जापान में घटती हुई तेल और खाद्य कीमतों के चलते मुद्रास्फीति जुलाई 2008 के 2.3 प्रतिशत के सर्वोच स्तर से घटकर अगस्त 2008 में 2.1 प्रतिशत हो गयी। तथापि, यू.के. में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति एक वर्ष पहले के 1.8 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2008 में 5.2 प्रतिशत हो गयी। खुदरा स्तर पर (खुदरा मूल्य सूचकांक अर्थात आरपीआई के अर्थों में) भी मुद्रास्फीति बढ़कर सितंबर 2008 में 5.0 प्रतिशत हो गयी जो जुलाई 2008 में भी उसी स्तर पर थी - यह अगस्त 2008 में घटकर 4.8 प्रतिशत हो गयी थी।

50. अमेरिका में, कोर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति जून 2008 के 2.4 प्रतिशत से बढ़कर जुलाई-सितंबर 2008 को 2.5 प्रतिशत हो गयी। यू.के. में मूल उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति अगस्त 2008 में 2.0 प्रतिशत हो गयी। यूरो क्षेत्र में, मूल उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति जुलाई 2008 के 1.7 प्रतिशत से बढ़कर अगस्त - सितंबर 2008 में 1.9 प्रतिशत हो गयी। जापान में मूल मुद्रास्फीति जुलाई 2008 के 0.2 प्रतिशत से घटकर सितंबर 2008 में शून्य प्रतिशत हो गयी।

51. अनेक औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं के उत्पादक मूल्य सूचकांकों (पीपीआई) की वृद्धि में गिरावट आनी शुरू हो गयी। अमेरिका में, पीपीआई मुद्रास्फीति जुलाई 2008 के 9.8 प्रतिशत के उच्च स्तर से घटकर सितंबर 2008 में 8.7 प्रतिशत हो गई। यूरो क्षेत्र में यह, जुलाई 2008 के 9.0 प्रतिशत से घटकर अगस्त 2008 में 8.5 प्रतिशत हो गई। यूके में यह, जुलाई 2008 के 10.0 प्रतिशत से घटकर सितंबर 2008 में 8.5 प्रतिशत हो गई। जापान में, थोक मूल्य मुद्रास्फीति अगस्त 2008 के 7.2 प्रतिशत से गिरकर सितंबर 2008 में 6.8 प्रतिशत हो गई।

52. एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के सभी उभरते हुए बाजारों (ईएमई) की अर्थव्यवस्था में भी मुद्रास्फीति दबावों में कमी आना शुरू हो गई है। चीन में मुद्रास्फीति फरवरी 2008 के 8.7 प्रतिशत के उच्च स्तर से घटकर सितंबर 2008 में 4.6 प्रतिशत हो गई। कोरिया में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति जुलाई 2008 के 5.9 प्रतिशत से गिरकर सितंबर 2008 में 5.1 प्रतिशत हो गई। थाईलैंड में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति जुलाई 2008 के 9.2 प्रतिशत से गिरकर सितंबर 2008 में 6.0 प्रतिशत हो गई। ब्राजील, चिली और मैक्सिको में मुद्रास्फीति ने उच्च स्तरों से गिरावट के कुछ संकेत दिए हैं जबकि एशिया में इंडोनेशिया और मलेशिया जैसी कुछ उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्थाओं में वस्तुओं की उंची कीमतों के कारण मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई है। उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्थाओं - एशिया और अन्यत्र दोनों में 2008 की पहली तीन तिमाहियों में उत्पादक मूल्य मुद्रास्फीति उंची रही एवं हाल के महीनों में कुछ उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादक मूल्य मुद्रास्फीति में थोड़ी कमी हुई।

53. जुलाई 2008 से खाद्य, कच्चे तेल एवं धातुओं की कीमतों में समग्र रूप से गिरावट आई जिसके फलस्वरूप विश्व स्तर पर उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में नरमी आई। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) खाद्य मूल्य सूचकांक जो 2006 की शुरुआत से लगातार बढ़ना शुरू हुआ था, जून 2008 में 219 के रिकार्ड स्तर को छूकर, अच्छी फसल एवं भंडार में बढ़ोतरी के संकेतों से सितंबर 2008 में गिरकर 188 के स्तर पर आ गया। वैश्विक खाद्यान्न बाजार में, प्रमुख फसलों की कीमतों में पिछले वर्ष की स्तरों की अपेक्षा 22 अक्तूबर 2008 को (प्रमुख फसलों जैसे) मकई की कीमतों में 5.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि सोयाबीन और गेहूं की कीमतों में क्रमश: 11.6 प्रतिशत और 37.3 प्रतिशत की कमी आई। जून 2008 में उच्चतम स्तर तक बढ़ने वाली खाद्य कीमतें सितंबर 2008 में घटकर नौ महीने के सबसे कम स्तर तक आ गई जो सभी प्रमुख खाद्य और पशु खाद्य वस्तुओं की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में नरमी को दर्शाते हैं। वैश्विक आर्थिक वृद्धि में सामान्य मंदी की संभावना के कारण हाल के महीनों में ऊर्जा की कीमतों में भी कमी आई है जो जुलाई 2008 में रिकार्ड स्तरों को छू गई थी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का धातु मूल्य सूचकांक सितंबर 2008 में घटकर 164.1 के स्तर तक पहुंचने के पहले मार्च 2008 में बढ़कर 201.1 हो गया था।

54. पूरे यूरोप में, अमेरिका में खासकर, मक्के एवं पूर्व एशिया में मोटे अनाजों एवं चावल के अनुमान से बेहतर फसल होने के कारण खाद्य और कृषि संगठन ने अपने नवीनतम पूर्वानुमान में 2008 के लिए विश्व अन्न उत्पादन 2,232 मिलियन टन रखा है जो पिछले वर्ष से 4.9 प्रति अधिक है एवं एक नया रिकार्ड है। 2008-09 में अन्न उत्पादन चार वर्षों में पहली बार खपत से ज्यादा होने की संभावना है। भंडार में बढ़ोतरी के कारण, अधिकांश अन्नों के मूल्य 2008 में नीचे आना शुरू हो गए। वर्ष 2008 में प्रमुख निर्यातक देशों के अन्न उत्पादन में अत्यधिक मजबूत बढ़ोतरी को देखते हुए, उनकी सकल अन्न आपूर्ति का अनुपात 2008-09 में पिछले दो वर्षों की निम्न स्तरों से बढ़कर सामान्य बाज्ाार आवश्यकताओं के लिए 123 प्रतिशत होने का अनुमान है।

55. वर्ष 2008 में निम्न-आय एवं खाद्यान्न की कमी वाले देशों (एलआइएफडीसी) के अन्न उत्पादन में 1.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी की संभावना है। हालांकि, इन देशों में पिछले मौसम में उत्पादन में गिरावट के बाद इस वर्ष भी उत्पादन में सीमित वृद्धि के कारण, 2008-09 में अपने खपत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वे आयात पर पहले की तरह निर्भर रहेंगे। 2008 में वैश्विक खाद्य आयात व्यय 2007 के पिछले उच्च स्तर से 26 प्रतिशत ज्यादा 1,035 बिलियन अमेरिकी डालर तक पहुंचने की संभावना है।

56. वर्ष 2008 में वैश्विक गेहूं उत्पादन अब 677 मिलियन टन होने का अनुमान है, जिसमें पिछले वर्ष की तुलना में 11 प्रतिशत की ठोस वृद्धि है एवं यह पिछले पांच वर्षों के औसत से अधिक है। यूरोप में, नवीनतम अनुमान उत्पादन में औसत पैदावार से 25 प्रतिशत की वृद्धि की ओर इशारा करते हैं जो अनेक देशों में 2007 में सूखे से आए उत्पादन की कमी की तुलना में तीव्र वृद्धि है। गेहूं की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में फरवरी 2008 में उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद पिछले दो महीनों में तीव्र कमी आई है। शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (सीबीओटी) में गेहूं की आगामी महीनों की वायदा कीमतें 27 फरवरी 2008 के 12.80 अमेरिकी डालर प्रति बुशेल से घटकर 22 अक्तूबर 2008 को 5.18 अमेरिकी डालर हो गई।

57. धान का वैश्विक उत्पादन रिकार्ड 672 मिलियन टन होने की संभावना है, जो 2007 के स्तर से लगभग 2 प्रतिशत अधिक है। अनुकूल मौसमी परिस्थितियों के साथ-साथ आकर्षक बाजार मूल्यों एवं मौद्रिक प्रोत्साहन से बुआई क्षेत्रों एवं पैदावार में बढ़ोतरी की संभावना है। सीबीओटी में चावल की आगामी महीने की अंतर्राष्ट्रीय वायदा कीमतें 23 अप्रैल 2008 के उच्चतम 24.50 अमेरिकी डालर प्रति हंड्रेडवेट से घटकर 22 अक्तूबर 2008 को 14.63 अमेरिकी डालर हो गई। 22 अक्तूबर 2008 को वायदा कीमतें जनवरी 2007 के लिए 14.91 अमेरिकी डालर, मार्च 2009 के लिए 15.24 अमेरिकी डालर और सितंबर 2009 के लिए 15.16 अमेरिकी डालर उद्धृत की गई।

58. खाद्य और कृषि संगठन की नवीनतम अनुमान में संशोधन कर 2008 की मोटे अनाजों की वैश्विक उत्पादन को बढ़ाकर 1,106 मिलियन टन कर दिया गया जो पिछले वर्ष से 2.6 प्रतिशत अधिक है। अमेरिका में मक्के की बेहतर पैदावार की संभावना के साथ-साथ पूरे यूरोप में मोटे अनाज की फसल की अच्छी पैदावार बढ़ोतरी की प्रमुख कारण रही है। दक्षिण अमेरिका में रिकार्ड फसल पहले ही हो चुकी है। हालांकि, बायो-इंधन के लिए मक्के के प्रयोग में बढ़ोतरी के कारण मोटे अनाजों का वैश्विक उत्पादन कुल प्रयोग के बराबर रहने की संभावना की वजह से बाजार परिस्थितियां कठिन बनी रहने की संभावना है। सीबीओटी में मकई की आगामी महीनों की वायदा कीमतें 22 अक्तूबर 2008 को बढ़कर 3.85 अमेरिकी डालर हो गई। उसी दिन, मकई की वायदा कीमतें मार्च 2009 के लिए 4.01 अमेरिकी डालर, जुलाई 2009 के लिए 4.22 अमेरिकी डालर और सितंबर 2009 के लिए 4.31 अमेरिकी डालर प्रति बुशेल उद्धृत की गई।

59. धातु की कीमतों में 2007 के दौरान 8.1 प्रतिशत की कमी हुई थी लेकिन इसके बाद मार्च 2008 में उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद सितम्बर 2008 में 18.4 प्रतिशत की गिरावट आई। सीसा और तांबा की कीमतें आपूर्ति आशंकाओं एवं स्टॉक में हो रही कमी के कारण बढ़ी। हालांकि, अन्य आधारभूत धातु की कीमतों में वैश्विक वृद्धि के संबंध में चिंताओं के कारण गिरावट आई है जो मांग को प्रभावित कर सकती है। न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज (नाईमैक्स) में तांबे की वायदा कीमतें पिछले वर्ष की 3.54 अमेरिकी डालर की तुलना में 4.08 अमेरिकी डालर प्रति पौंड के रिकार्ड स्तर तक पहुंच गई। तांबे की आगामी महीनों की वायदा कीमतें 22 अक्तूबर 2008 को 1.85 अमेरिकी डालर प्रति पौंड, दिसंबर 2008 के लिए 1.87 अमेरिकी डालर, मार्च 2009 के लिए 1.87 अमेरिकी डालर और सितंबर 2009 के लिए 1.85 अमेरिकी डालर रही। अमेरिकी डालर में मजबूती और तेल की कीमतों में गिरावट के कारण सोने का हाजिर मूल्य 17 मार्च 2008 को जनवरी 1980 से अब तक के उच्चतम मूल्य 1,032.70 अमेरिकी डालर प्रति औंस से गिरकर 22 अक्तूबर 2008 को 757.50 अमेरिकी डालर प्रति औंस हो गई।

60. वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यू टी आई) कच्चे तेल की कीमतें 22 अक्तूबर 2008 को 65.85 अमेरिकी डालर प्रति बैरल के स्तर तक गिरने के पहले प्रमुख निर्यातक देशें द्वारा कम आपूर्ति की संभावनाओं की वजह से 3 जुलाई 2008 को 145 अमेरिकी डालर प्रति बैरल के रिकार्ड स्तर तक बढ़ गई। कच्चे तेल की कीमते जुलाई 2007 के स्तर के पुन: बढ़ने के पश्चात 22 अक्तूबर 2008 को पिछले वर्ष के स्तर की तुलना में 24.8 प्रतिशत घटी। एनर्जी इन्फॉर्मेशन एड्य्मनिस्ट्रेशन (ई आई ए) के 07 अक्तूबर 2008 के अनुमान के अनुसार बेस्ट टेक्सीस इंटरमीडिएट (डब्ल्यू टी आई) के कच्चे तेल की औसत कीमतें 2008 में 111.57 अमेरिकी डालर प्रति बैरल और 2009 में 112.0 अमेरिकी डालर प्रति बैरल होने की संभावना है। आगामी महीने की भावी सौदे की कीमतें 3 जुलाई 2008 को दर्ज 146.5 अमरीकी डालर से कम होकर 22 अक्तूबर 2008 को प्रति बैरल 66.8 अमरीकी डालर प्रति बैरल के स्तर तक पहुँच गयी। 22 अक्तूबर 2008 को तेल के भावी सौदे जनवरी 2009 के लिए 67.2 अमरीकी डालर, मार्च 2009 के लिए 68.1 अमरीकी डालर और सितंबर 2009 के लिए 71.2 अमरीकी डालर पर सीमांत रूप से अधिक रहे। पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) को कच्चे तेल का उत्पादन एक वर्ष पहले के स्तर से प्रतिदिन 1.7 मिलियन बैलर से बढ़कर 2008 की तीसरी तिमाही के दौरान प्रति दिन 32.7 मिलियन बैरल तक हो जाने की संभावना है। ओपेक के कच्चे तेल के उत्पादन में 2008 की चौथी तिमाही में प्रति दिन 32.4 मिलियन बैरल तक कमी आएगी और 2009 के दौरान प्रतिदिन औसतन 31.6 मिलियन बैरल तक की गिरावट होगी। गैर ओपेक कच्चे तेल की अपूर्ति में आपूर्ति विघटनों की श्रृंखलाओं तथा मेक्सिको की खाडी में आए तूफानों के प्रभाव के कारण पिछले वर्ष के स्तर से 2008 की दूसरी छमाही के दौरान प्रतिदिन लगभग 0.1 मिलियन बैरल की कमी आने की संभावना है। परिणामस्वरुप, 2008 में गैर-ओपेक की आपूर्ति में 2005 से अब तक पहली बार कमी आने की संभावना है।

61. वर्ष 2008 की तीसरी तिमाही में वैश्विक वित्तीय बाजारों में तनाव उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है। वित्तीय और अन्य चक्रीय क्षेत्रों में अर्जन संबंधी आँकड़ों में मूल्यनों द्वारा निराशाजनक स्थिति पायी गई, जिसके कारण इक्विटी बाजार उल्लेखनीय रूप से कमज़ोर हो गए। अंतर-बैंक मुद्रा बाज़ारों में दबाव, जो मई 2008 से लगातार जारी रहे, 2008 की तीसरी तिमाही के दौरान उसकी तीव्रता और अधिक होने लगी। तीव्र गति से प्रकट हो रही अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय अशांति की प्रतिक्रिया में सक्रिय चलनिधि प्रबंधन के लिए मौद्रिक नीति प्राधिकारियों द्वारा निरंतर उपाय किए जा रहे हैं, जिनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं।

62. वित्तीय अशांति द्वारा उत्पन्न विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए अमरीकी ट्रेजरी और फेडरल रिज़र्व ने एक बहुविध दृष्टिकोण अपनाया जिसमें चलनिधि सुविधाएं लागू की गईं और उनकी दक्षता बढ़ायी गयी तथा वित्तीय समर्थन, विलयन, ऋण परिवर्तन और एकमुश्त दिवालयापन की अनुमति दी गई जिससे बड़े निवेश और बचत बैंक और प्रमुख बीमा फर्म भी प्रभावित हुए। सितंबर के आरंभ में अमरीकी सरकार द्वारा प्रायोजित दो बड़े दृष्टिबंधक बैंकों को सरकार द्वारा संरक्षकता (कनज़रवेटरशिप) में रखा गया। सितंबर के मध्य में एक प्रमुख निवेश बैंक ने सरकार का समर्थन न मिलने के कारण दिवालीयेपन का मामला दायर किया और एक प्रमुख बीमा फर्म को केंद्रीय बैंक की सहायता दी गयी। इन गतिविधियों के परिणामस्वरूप मुद्रा बाजार के दबावों को कम करने के लिए पूर्व में प्रारंभ की गई और बाद में बढ़ाई गई मीयादी नीलामी सुविधा (टीएएफ), प्राथमिक व्यापारी ऋण सुविधा (पीडीसीएफ) और मीयादी प्रतिभूति ऋण सुविधा (टीएसएलएफ) के अलावा, फेडरल रिज़र्व ने वित्तीय बाज़ारों को अतिरिक्त सहायता प्रदान करने के लिए विभिन्न पहलों की घोषणा की है। अक्तूबर के प्रारंभ में की गयी इन पहलों में आस्ति समर्थित वाणिज्यिक पत्र (एबीसीपी) मुद्रा बाजार मुच्युअल फंड चलनिधि सुविधा शामिल है, जो ऋण उन्मोचन संबंधी मांगों को पूरा करने में सहायता प्रदान करने तथा एबीसीपी बाजार में चलनिधि को सुदृढ़ बनाने की दृष्टि से मुद्रा बाजार मुच्युअल फंडों से उच्च गुणवत्तावाले आस्ति समर्थित वाणिज्यिक पत्र की खरीद में बैंकों को वित्त प्रदान करती है और वाणिज्यिक पत्र निधीयन सुविधा (सीपीएफएफ) भी शामिल है जिसमें अमरीकी वाणिज्यिक पत्र जारीकर्ताओं को उच्च रेटिंग वाले गैर जमानती एबीसीपी को खरीदने के लिए पात्र प्राथमिक व्यापारियों के जरिए वित्त प्रदान करने हेतु चलनिधि समर्थन उपलब्ध कराया जाता है। फेडलर रिज़र्व बोर्ड ने 21 अक्तूबर 2008 को मुद्रा बाजार निवेशक निधीयन सुविधा (एमएमआइएफएफ) की घोषणा की जो अमरीकी मुद्रा बाजार निवेशकों के लिए चलनिधि का प्रबंध करने हेतु मुद्रा बाजार मुच्युअल फंडों से 90 दिन या उससे कम की अवधिपूर्णता के साथ उच्च श्रेणीवाली वित्तीय संस्थाओं द्वारा जारी अमरीकी डालर-मूल्यवर्गवाले जमा प्रमाणपत्रों (सीडी) और वाणिज्यिक पत्रों (सीपी) सहित आस्तियों की खरीद के लिए निधि का प्रबंध करेगी।

63. सितंबर में बेलआउट और चूक की घटनाओं के बाद गुणवत्ता आस्तियों जैसे खजानों और अनकदी रिपो बाजार स्थितियों की ओर गति को सूचित करते हुए 3 माह के अमरीकी खजाना बिल की दर 17 सितंबर 2008 को 0.0304 प्रतिशत तक गिर गयी, जो 1954 से अब तक की सबसे न्यूनतम दर है। लड़खड़ाते हुए अमरीकी बाजारों के इस संसर्ग को रोकने के लिए प्रमुख केंद्रीय बैंकों ने 18 सितंबर 2008 को तत्काल समन्वित आपातिक चलनिधि कार्रवाई की है और अमरीकी डॉलर अल्पावधि निधीयन बाजारों में लगातार बढ़नेवाले दबावों को कम करने के लिए बैंक ऑफ कैनडा (बीओसी), बैंक ऑफ इंग्लैंड (बीओई), यूरोपियन केंद्रीय बैंक (ईसीबी), फेडरल रिज़र्व, बैंक ऑफ जापान (बीओजे) और स्विस नैशनल बैंक (एसएनबी) ने समन्वित उपायों की योजना बनाने की घोषणा की है। इसमें फेडलर मुक्त बाजार समिति (एफओएमसी) द्वारा यूरोपियन केंद्रीय बैंक और स्विस नैशनल बैंक को अपनी वर्तमान स्वैप सुविधा का विस्तार करने तथा बैंक ऑफ जापान, बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ कैनडा के साथ नई स्वैप सुविधाएँ स्थापित करने का अधिकार दिया गया जो अपने संबंधित वाणिज्यिक बैंकों को अल्पावधि डालर निधीयन का प्रबंध कर सकेंगी। इसी प्रकार 24 सितंबर 2008 को रिज़र्व बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया (आरबीए), डेन्मार्क नैशनल बैंक, नोर्गेज बैंक और स्विरिगेज रिक्स बैंक में स्वैप सुविधाएं स्थापित की गयी हैं। उसके बाद एफओएमसी ने बीओई, ईसीबी और एसएनबी को 30 अप्रैल 2009 तक अपनी अस्थायी स्वैप सुविधाओं के आकार को बढ़ाने का अधिकार दिया ताकि ये केंद्रीय बैंक मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्राओं में अमरीकी डालर के निधीयन का प्रबंध कर सकें। केंद्रीय बैंकों ने भी अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए चलनिधि नीलामियों, परिवर्तित मौद्रिक नीति परिचालन क्रियाविधि तथा विविध नीलामी परिपक्वताओं के लिए पात्र संपार्श्विकता में छूट दी है। अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (एसईसी) ने अत्यधिक सट्टेबाजी को कम करने के लिए 16 जुलाई 2008 को लगाये गए अस्थायी प्रतिबंध को बढ़ाते इजए 17 सितंबर को किसी भी स्टॉक में असुरक्षित शॉर्ट-सेलिंग को प्रतिबंधित किया। यूके में 19 सितंबर 2008 से 16 जनवरी 2009 तक वित्तीय शेयरों में शॉर्ट-सेलिंग को प्रतिबंधित किया गया।

64. दो बड़े अमेरिकी निवेश बैंकों को उनके शेयरों की गिरती कीमतों के कारण विनियामक द्वारा फेडरल रिज़र्व विनियमित बैंक कंपनी (बीएचसी) बनने की अनुमति दी गई। मुद्रा बाज़ार में 25 सितंबर को एक आभासी ठहराव सा आया और अंतर-बैंक तथा रिपो दर लगभग रिकार्ड ऊंचाई तक बढ़ गए। इसने अमेरिकी ट्रेजरी को प्रवृत किया कि वह अशोध्य ऋण को खत्म करने के लिए 700 बिलियन अमेरिकी डॉलर की फेडरल निधि के योजना की घोषणा करे और यह अशोध्य ऋण (i) बाज़ार में चलनिधि बहाल करने के लिए अलाभकारी पेपर खरीदने; (ii) आपाधापी में बिक्री की बजाय समयानुसार सुव्यवस्थित पुनर्संरचना की अनुमति देने; (iii) मोचन निषेध (फोरक्लोजर) को कम करने और (iv) फेडरल डिपॉजिट इन्स्योरेंस कॉरपोरेशन (एफडीआईसी) द्वारा संकटग्रस्त संस्थानों की सहायता, जिसे कांग्रेस द्वारा अक्तूबर के प्रारंभ में आपात आर्थिक स्थिरीकरण अधिनियम (इमेरजेंसी इकॉनॉमिक स्टेबलाइजेशन एक्ट) द्वारा प्राधिकृत किया था, की वजह से हुआ था। 14 अक्तूबर 2008 को फेडरल रिजर्व के गर्वनर बोर्ड, अमेरिका का ट्रेजरी विभाग और एफडीआइसी ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बचाने, वित्तीय संस्थानों में जनता का विश्वास बढ़ाने और स्वैच्छिक पूंजी संचय कार्यक्रम तथा वित्तीय संस्थानों को व्यवस्थित करने के प्रयोजन से एक अस्थायी एफडीआइसी कार्यक्रम के जरिए ऋण बाज़ार की कार्यप्रणाली को मज़बूत करने के लिए एक संयुक्त व्यक्तव्य जारी किया। बैंकिंग जगत में हुई इस हलचल ने बेनेलक्स, जर्मनी, यू के, स्पेन, आयरलैंड और आइसलैंड में सितंबर के बाद सरकारी हस्तक्षेप आवश्यक हुआ और कुछ बैंकों को अस्थायी सरकारी स्वामित्व में लिया गया। इंग्लैण्ड में सरकार ने वित्तीय प्रणाली में स्थिरता के लिए बैंकिंग प्रणाली के पुन:पूंजीकरण के लिए कदम उठाए। रिज़र्व बैंक ऑफ आस्ट्रेलिया (आरबीए) और रिज़र्व बैंक ऑफ न्यूजीलैंड (आरबीएनजेड) ने रिपो परिचालन के संपार्श्विक मानदंडों में ढील दी। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में सरकारों ने बैंक जमाराशियों पर गारंटी देने के अपने निर्णय की घोषणा की।

65. केंद्रीय बैंक लगातार गहन विचार-विमर्श में लगे रहे और अप्रत्याशित संयुक्त कार्रवाइयों में आपसी सहयोग किया। अमेरिकी डॉलर स्वैप लाइन के अलावा, बैंक ऑफ कनाडा, बैंक ऑफ इंग्लैण्ड, यूरोपियन सेंट्रल बैंक, फेडरल रिज़र्व, स्वीरिज़ेज रिक्स बैंक और स्विस नेशनल बैंक ने 8 अक्तूबर 2008 को अपनी नीतिगत दर में 50 आधार अंकों की कमी की। साथ ही, बैंक ऑफ जापान ने नीतिगत दर में इस कार्रवाई को अपना मज़बूत समर्थन दिया। चलनिधि के प्रचुर विस्तार और वित्तीय संस्थानों को वित्त प्रदान करने के लिए बैंक ऑफ इंग्लैंड, यूरोपियन सेंट्रल बैंक, फेडरल रिज़र्व, बैंक ऑफ जापान और स्विस नेशनल बैंक ने अल्पावधि अमेरिकी निधियन बाजार में चलनिधि में सुधार के लिए 13 अक्तूबर 2008 को संयुक्त रूप से कदम उठाने की घोषणा की । जी-7 कार्रवाई योजना के भाग के रूप में बैंक ऑफ कनाडा ने 14 अक्तूबर 2008 को जब तक परिस्थिति की मांग हो तब तक कनाडा की वित्तीय प्रणाली में अप्रत्याशित चलनिधि मुहैया कराने की अपनी मंशा की घोषण की। बैंक ऑफ जापान ने वाणिज्यिक पत्र रिपो लेनदेन की आवधिकता और आकार में वृद्वि की और पात्र संपाश्दिवको के दायरे को भी बढ़ाया।

66. दिसंबर 2007 से, फेडरल रिज़र्व ने 28 दिवसीय परिपक्वता वाली 1,203.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर राशि की 21 मीयादी नीलामी सुविधा (टीएएफ) की, 35 दिवसीय परिपक्वता वाली 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर राशि की, और 84 दिवसीय परिपक्वता वाली 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर की दो नीलामियों तथा 20 अक्तूबर 2008 तक 85 दिवसीय परिपक्वता वाली 138.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर राशि की नीलामी की। आर्थिक प्रगति में निरंतरता सुनिश्चित करने के प्रयास में अमेरिकी ट्रेजरी ने अप्रैल -सितंबर 2008 के दौरान अमेरिकी परिवारों को लगभग 94 बिलियन अमेरिकी डॉलर राशि का वित्तीय भुगतान किया। साथ ही, 28 अगस्त 2008 को फेडरल रिज़र्व बोर्ड ने उपभोक्ताओं को जब वे आवास ऋण का पुन: वित्तपोषण करा रहे हों, के दौरान उन्हें विकल्पों की जानकारी देने के लिए ऑनलाइन सहायता के शुरुआत की घोषणा की।

67. दिसंबर 2007 से, यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने 880 बिलियन अमेरिकी डॉलर की 16 ओवरनाइट अमेरिकी डॉलर मीयादी नीलामी सुविधा (टीएएफ), 3 दिवसीय परिपक्वता वाली 120 अमेरिकी डॉलर की तीन नीलामी और 4 दिवसीय परिपक्वता वाली 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की एक नीलामी, 7 दिवसीय परिपक्वता वाली 206 बिलियन अमेरिकी डॉलर की दो नीलामी, 28 दिवसीय परिपक्वता वाली 460 बिलियन अमेरिकी डॉलर की 20 नीलामी, 84 विसीय परिपक्वता वाली 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की दो नीलामी और 21 अक्तूबर 2008 तक 85 दिवसीय परिपक्वता वाली 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर की एक नीलामी की है। बैंक ऑफ कनाडा ने 21 अक्तूबर 2008 तक 28 दिवसीय परिपक्वता वाली 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर की 13 नीलामी और 91 दिवसीय परिपक्वता वाली 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की दो नीलामी कीं। स्विस नेशनल बैंक ने 22 अक्तूबर 2008 तक 182 बिलियन अमेरिकी डॉलर की 24 ओवरनाइट नीलामी, 7 दिवसीय परिपक्वता वाली 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तीन नीलामी, 87 बिलियन अमेरिकी डॉलर की 28 दिवसीय 15 नीलामी, 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की 84 दिवसीय दो नीलामी और 88 दिवसीय परिपक्वता वाली 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की एक नीलामी की। बैंक ऑफ इग्लैंड ने 18 सितंबर और 22 अक्तूबर 2008 के बीच 312 बिलियन अमेरिकी डालर की 24 ओवरनाइट अमेरिकी डालर रिपो नीलामी, 3-दिवसीय 30 बिलियन अमेरिकी डालर की एक नीलामी, 6-दिवसीय 12.5 बिलियन अमेरिकी डालर की एक नीलामी, एक सप्ताह परिपक्वता वाली 242 बिलियन अमेरिकी डालर की सात नीलामी और 28-दिवसीय 26 बिलियन अमेरिकी डालर की एक नीलामी की।

68. उभरते बाज़ार के केंद्रीय बैंकों ने उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में फैलती घटनाओं के प्रति विभिन्न तरीकों से प्रतिक्रिया की है। सितंबर 2008 की दूसरी छमाही में वे अमेरिकी ऋण संकट से उत्पन्न चलनिधि आघात को नियंत्रित करने के लिए मुद्रा बाज़ार में आए। जापान,कोरिया,ताइवान और आस्ट्रेलिया एशियन बैंक जो संकटग्रस्त अमेरिकी इन्वेस्टमेंट बैंको में हेजिंग, संपार्श्विकों के जरिए निवेश के कारण ऋण संकट से प्रभावित हुए थे और बांड प्रतिफल तथा शेयर मूल्य में गिरावट और वित्तीय बाज़ार अस्थिरता के परिप्रेक्ष्य में खुला बाजार लेन-देन किया था, की सहायता करने के लिए बैंकिंग प्रणाली में चलनिधि प्रवाहित की। वित्तीय संकट की भरपाई के लिए कुछ उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं द्वारा चलनिधि बढ़ाने के लिए अपेक्षित आरक्षित और ब्याज दरों में कटौती करने जैसी मौद्रिक नीति कार्रवाई की गई। बैंक ऑफ कोरिया ने विदेशी मुद्रा आपूर्ति का प्रभाव बढ़ाने और विदेशी मुद्रा वित्त बाज़ार में स्थिरता कायम करने के लिए 20 अक्तूबर 2008 से एक प्रतियोगी नीलामी स्वैप सुविधा शुरू की।

69. हांगकांग मॉनेटरी अथॉरिटी (एचकेएमए) ने 30 सितंबर 2008 को समुचित क्रेडिट गुणवत्ता वाली अमेरिकी डॉलर आस्तियां शामिल करने के लिए डिस्काउंट विंडो तक अभिगम के लिए संपार्श्विकों में विस्तार किया और हांगकांग एक्सचेंज फंड पेपर का संपार्श्विक के रूप में प्रयोग करने की पाबंदी हटा ली। इससे मामलावार आधार पर उपलब्ध निधि की अवधि बढ़ेगी और प्रभावित बैंकों से अमेरिकी/ हांगकांग डॉलर अदला-बदली हो पाएगी। सभी उपाय 2 अक्तूबर से प्रभावी हैं और मार्च 2009 तक जारी रहेंगे। 14 अक्तूबर 2008 को एचकेएमए ने हांगकांग के प्राधिकृत संस्थानों में रखे सभी ग्राहक- जमाराशियों के भुगतान की गारंटी के लिए विनिमय फंड के प्रयोग का आश्वासन देने के लिए उपाय किए हैं। दूसरा, एचकेएमए ने स्थानीय बैंकों को अतिरिक्त पूंजी उपलब्ध कराने के प्रयोजन से एक आकस्मिक बैंक पूंजी सुविधा शुरू की है। दोनों उपाय 2010 के अंत तक प्रभावी रहेंगे।

70. सिंगापुर सरकार ने सभी सिंगापुर डॉलर और बैंकों में व्यक्ति तथा बैंक से इतर ग्राहक, सिंगापुर के मौद्रिक प्राधिकारी द्वारा लाइसेंस प्राप्त वित्तीय कंपनियों एवं मर्चेंट बैंकर को विदेशी मुद्रा जमा राशि की 2010 तक गारंटी देने का निर्णय किया। इन क्षेत्रीय प्रयासों के साथ साम्य रखते हुए मलेशिया सरकार और बैंक नेगारा मलेशिया ने भी रिंगिट और बैंकों के पास मौजूद विदेशी मुद्रा जमाराशियों की गारंटी दी है और दिसंबर 2010 तक विकासात्मक वित्तीय संस्थानों को नियमित किया है। बैंक नेगारा मलेशिया बीमा कंपनियों जैसे गैर-बैंकिंग संस्थानों को भी नकदी की सुविधा प्रदान करेगा। घरेलू और विदेशी मुद्रा बाजारों में नकदी बनाये रखने के लिए 14 अक्तूबर 2008 को बैंक इंडोनेशिया ने विभिन्न उपायों की घोषणा की जिनमें, अन्य बातों के साथ-साथ, विदेशी मुद्रा स्वैप की अवधि को सात दिनों से एक माह तक का विस्तार प्रदान करना और घरेलू कंपनियों के लिए बैंकों के जरिये विदेशी मुद्रा भंडारों की बिक्री करना शामिल है। एशिया में कई केंद्रीय बैंको ंने विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ साम्य रखते हुए अपनी नीतिगत दरों में कटौती की है और वित्तीय बाजारों को नकदी समर्थन प्रदान करने का आश्वासन दिया है।

71. डॉव जोन्स औद्योगिक औसत, स्टैंडर्ड और पुअर्स (एस एंड पी) 500 एवं नास्डैक कम्पोजिट में काफी उतार-चढ़ाव रहा और उन्होंने अपने एक वर्ष पूर्व के स्तर की तुलना में 22 अक्तूबर 2008 तक क्रमश: 37.2 प्रतिशत, 40.5 प्रतिशत और 41.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की। निर्धारित आय खंड में, प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सरकारी बांड से प्राप्त प्रतिफल जो वर्ष 2007 की प्रथम छमाही में मजबूत हुए थे, उसके बाद सरकारी ऋणों में वृद्धि के चलते उनमें कमी आई क्योंकि निवेशकों को एक सुरक्षित स्थान की तलाश थी। अमेरिकी 10-वर्षीय बांडों के प्रतिफल में 22 अक्तूबर 2008 को 3.60 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज होने के पूर्व उनमें दिसंबर 2006 के अंत में 4.70 प्रतिशत की तुलना में 12 जून 2007 तक 5.29 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई। यूरो क्षेत्र में 10-वर्षीय बांडों के प्रतिफल में 22 अक्तूबर 2008 को 3.80 प्रतिशत तक की गिरावट के पूर्व दिसंबर 2006 के अंत में 3.95 प्रतिशत की तुलना में 6 जुलाई 2007 को 4.67 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई। इसी प्रकार, जापानी 10-वर्षीय बांडों के प्रतिफल में 22 अक्तूबर 2008 को 1.53 प्रतिशत की गिरावट दर्ज करने के पूर्व उनमें दिसंबर 2006 के अंत में 1.68 प्रतिशत की तुलना में 10 जुलाई 2007 को 1.97 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई। वृद्धि की संभावनाओं के धूमिल होने से उभरते हुए बाजारों की अर्थव्यवस्थाओं में ईक्विटी मूल्यों में कमी दर्ज की गई और इसका फैलाव विभिन्न रूपों में एक देश से दूसरे देशों तक होता गया। अमेरिकी वित्तीय व्यवस्था में आई गिरावट के चलते उभरते हुए बाजारों में ईक्विटी की बिक्री होने से एम.एस.सी.आई. - उभरते हुए बाजारों के सूचकांक में तीव्र गिरावट आई; और 22 अक्तूबर 2008 तक एक साल में इसमें 52 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। उधार लागत के अधिक होने के कारण लगभग सभी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के ईक्विटी बाजारों में गिरावट आई और उधार में हुई हानियों के चलते निवेशकों ने जोखिमवाली परिसंपत्तियों में निवेश करना बंद कर दिया और औसत रूप में उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की ईक्विटी निवेश वापस 2006 के स्तरों पर पहुंच गए।

72. व्यापार भारित औसत के आधार पर वर्ष 2006 से अमेरिकी डालर में बीच-बीच में विभिन्न अंतरालों पर कमी दर्ज की गई। सितंबर 2007 से फेडरल निधियों की दरों में कमी होने के पश्चात अमेरिकी डालर में अन्य मुद्राओं के सापेक्ष गिरावट आई। परंतु हाल ही के सप्ताहों में इसमें महत्वपूर्ण मजबूती दर्ज की गई है। दिनांक 22 अक्तूबर 2008 को पौंड स्ट्य्र्लंग 1.63 अमेरिकी डालर के स्तर पर पहुंच गया, पिछले 26 वर्षों के उच्चतम स्तर पर यह नवम्बर 2007 में 2.11 अमेरिकी डालर था। जनवरी 2007 से यूरो जो अमेरिकी डालर के प्रति मजबूत हो रहा था, 15 जुलाई 2008 को एक दिन के भीतर इसने 1.60 अमेरिकी डालर का स्तर प्राप्त किया परंतु 22 अक्तूबर 2008 को यह गिरकर 1.28 अमेरिकी डालर के स्तर पर पहुंच गया।

73. प्रमुख विकसित देशों में मौद्रिक नीति में ढीलापन अपने के कारण वैश्विक चलनिधि में वृद्धि हुई है जिसके परिणामस्वरूप उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक प्रबंधन के लिए अधिक सावधानी रखनी पड़ रही है। वर्ष 2007 की तीसरी तिमाही में जब से वित्तीय बाजार में उथल-पुथल सामने आई है कई केंद्रीय बेंकों ने अपनी नीतिगत दरों में कटौती की है। 18 सितंबर 2007 और 8 अक्तूबर 2008 के बीच अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने अपनी नीतिगत दरों में 375 आधार अंकों की कमी की और इसे 1.50 प्रतिशत तक ले आया, जबकि जून 2004 और 2006 के बीच इसमें 17 बार वृद्धि करके इसे 5.25 प्रतिशत किया गया था। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने फरवरी और अप्रैल 2008 के प्रत्येक माह में 25 आधार अंकों की कटौती करके अपनी बैंक दर को 4.50 प्रतिशत कर दिया और 8 अक्तूबर 2008 को पुन: 50 आधार अंकों की कटौती की। यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने 8 अक्तूबर 2008 को अपनी मुख्य पुन: वित्तपोषण प्रचालन दर में 50 आधार अंकों की कमी करके इसे 3.75 प्रतिशत कर दिया। बैंक ऑफ कनाडा ने दिसंबर 2007 और जनवरी 2008 के प्रत्येक माह में 25 आधार अंकों की कमी करके अपनी नीतिगत दर को 2.25 प्रतिशत कर दिया और मार्च एवं अप्रैल के प्रत्येक माह में 50 आधार अंकों और अक्तूबर 2008 में दो चरणों में 75 आधार अंकों की कमी की हैं। रिज़र्व बैंक ऑफ आस्ट्रेलिया ने फरवरी-मार्च 2008 प्रत्येक माह में 25 आधार अंकों की वृद्धि करके अपनी नकद दर को 7.25 किया जबकि इसके बाद 3 सितंबर 2008 को इसमें 25 आधार अंकों की कटौती करके इसे 7.00 प्रतिशत और 8 अक्तूबर 2008 को 100 आधार अंकों की कटौती करके इसे 6.00 प्रतिशत कर दिया। रिज़र्व बैंक ऑफ न्यूजीलैंड ने 11 सितंबर 2008 को अधिकारिक नकदी दर में कमी करके इसे 8.00 प्रतिशत से 7.50 प्रतिशत कर दिया और 23 अक्तूबर 2008 को पुन: इसे 6.50 प्रतिशत कर दिया। दि पीपुल्स बैंक ऑफ चायना ने 16 सितंबर और 9 अक्तूबर 2008 को प्रत्येक बार 27 आधार अंकों की कटौती करके अपनी नीतिगत उधार दर को 6.93 प्रतिशत कर दिया। इसने अपने नकद आरक्षित अनुपात में भी 100 आधार अंकों की कमी करके इसे 25 सितंबर 2008 से 16.5 प्रतिशत कर दिया और पुन: 10 अक्तूबर 2008 में प्रभावी बनाते हुए 50 आधार अंकों की और कमी की जबकि इसके पूर्व 25 जून 2008 को चरणबद्ध रूप में बढ़ाकर 17.5 प्रतिशत किया गया था। बैंक ऑफ कोरिया ने 9 अक्तूबर 2008 को अपनी आधार दर में 25 आधार अंकों की कटौती करके इसे 5.00 प्रतिशत किया। हांगकांग मॉनीटरी प्राधिकरण ने 9 अक्तूबर 2008 से अपनी आधार दर का निर्धारण करने वाले फार्मूले में परिवर्तन किया, जिससे प्रचलित फेडरल निधि लक्ष्य दर के ऊपर 150 आधार अंकों की व्याप्ति से 50 आधार अंकों की कमी हुई।

74. जापान और मलेशिया जैसे कुछ देशों के केंद्रीय बैंकों ने वर्ष 2008 में अपनी नीति दरों में परिवर्तन नहीं किया है।

75. हाल के महीनों में कुछ केंद्रीय बेंकों ने अपनी नीतिगत दरों को बढ़ाया है इनमें बैंक इंडोनेशिया (अप्रैल-अक्तूबर 2008 में 150 आधार अंकों द्वारा बैंक इंडोनेशिया दर); बैंक ऑफ थाईलैंड (27 अगस्त 2008 को 1 दिन की पुन: खरीद दर में 25 आधार अंकों की वृद्धि द्वारा इसे 3.75 प्रतिशत करना); बैंकों सेन्ट्रल दि चिली (बेंचमार्क उधार दर को जनवरी में 25 आधार अंकों द्वारा 8.25 प्रतिशत करना और दिसंबर 2007 के 6.00 प्रतिशत में जून-सितंबर 2008 में प्रत्येक बार 50 आधार अंकों की वृद्धि करना); बैंकों सेन्ट्रल दी ब्राजील (10 सितंबर 2008 को एक दिवसीय बिक्री दर में 75 आधार अंकों की बढ़ोतरी करके 13.75 प्रतिशत करना) और बैंकों दी मैक्सिको (जून-अगस्त 2008 में प्रत्येक बार एक दिवसीय निधि दर में 25 आधार अकों की वृद्धि करके इसे 8.25 प्रतिशत करना), शामिल है।

समग्र मूल्यांकन

76. बिगड़ते हुए वैश्विक समष्टि आर्थिक और वित्तीय वातावरण के चलते 2008-09 की दूसरी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की सकल आपूर्तिगत परिस्थितियों ने समुत्थानशील लचीलापन दर्शाया। तथापि, इस बात के जबर्दस्त लक्षण हैं कि अंतर्निहित आर्थिक चक्र वैश्विक आर्थिक गतिविधियों के अनुकूल चल रहा है और देशी आर्थिक कार्यकलाप एक मोड़ पर आकर खड़ा है। एक ओर जहाँ 2008 में दक्षिण-पश्चिम मानसून का मौसम आशा के अनुरूप लगभग सामान्य है, वहीं दूसरी ओर बड़े पैमाने पर अस्थायी परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कुछ उत्तर-पूर्वी, पूर्वी और उत्तरी राज्यों में जून में बाढ़ के कारण तथा उत्तर-पूर्वी, मध्य भारत और केरल में जुलाई में कम वर्षपात के कारण उत्पादन में कुछ हानि हुई। अखिल भारतीय स्तर पर विभिन्न फसलों की बुआई का क्षेत्र फसल की सामान्य व्याप्ति के नजदीक है, परंतु यह एक वर्ष पूर्व के उच्च स्तर की तुलना में लगभग 2.6 प्रतिशत कम है। चावल और तिलहनों जैसी प्रमुख फसलों का क्षेत्रफल वर्ष-दर-वर्ष आधार पर बढ़ गया है, लेकिन गन्ने, मोटे अनाज, दालों और जूट जैसी फसलों की संभावनाओं के लिए नुकसानदेह जोखिम विद्यमान हैं । कृषि मंत्रालय से प्राप्त 2008-09 में खाद्यान्नों के उत्पादन से संबंधित प्रथम अग्रिम अनुमान यह सुझाते हैं कि इन प्रमुख फसलों में कुछ सुधार हो सकता है जैसे ही पहले दौर के ये संकेत वर्ष के लिए उत्पादन के अंतिम स्तर एवं कृषि संबंधी समग्र दृष्टिकोण के आधार पर स्पष्ट रूप से मजबूत हो जाते हैं।

77. औद्योगिक गतिविधि ने 2008-09 की दूसरी तिमाही में विभिन्न क्षेत्रों में मंदी के लक्षणों के साथ मिश्रित प्रगति दर्शायी है। जबकि जुलाई 2008 में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि ने आम तौर पर किये गये अनुमानों को चकित कर दिया जैसा कि उसने नवंबर 2007-जून 2008 के दौरान एक असमान गिरावट की स्थिति से गुजरने के बाद दर्शाया, आधार प्रभाव (बेस इफेक्ट) अगस्त में देखी गई वृद्धि दरों पर भारी पड़े तथा वे आगामी कुछ महीनों में, विशेष रूप से अक्तूबर-दिसंबर 2008 में अपना असर जारी रख सके। गति में धीमापन आवश्यक रूप से आधारभूत और मध्यवर्ती वस्तुओं के क्षेत्रों में देखा गया और यह मंदी उर्वरकों, इस्पात, अल्यूमीनियम उत्पादों, सूत और रेशों, कार्बनिक रंगद्रव्यों और इसी प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन में गिरावट के कारण थी। पूर्ववर्ती दो महीनों में कमी के बाद जुलाई में पूँजीगत वस्तुओं के उत्पादन में पुन: उछाल अगस्त में स्थिर नहीं रह सका जो उभरते हुए निवेश वातावरण में काफी अनिश्चितता का द्योतक है। दूसरी ओर, उपभोक्ता वस्तुओं, विशेष रूप से टिकाऊ वस्तुओं के उत्पादन में जारी उछाल यह दर्शाता है कि उपभोग की माँग की शक्ति उच्च मुद्रास्फीति के परिवेश में कीमत-निर्धारण शक्ति की वापसी से समर्थन पाकर आपूर्तिगत प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा देती है। विनिर्माण की गतिविधि रसायनों, मशीनरी और परिवहन उपकरण तथा पेयों और तंबाकू उत्पादों जैसे उद्योगों से संचालित होती है। वास्तव में, उन मदों को छोड़कर जैसे लकड़ी और उत्पाद, चर्म और कागज के उत्पाद, वस्त्र, रबड़, प्लास्टिक, पेट्रोलियम और कोयला उत्पाद जिन्होंने उत्पादन में गिरावट/नगण्य वृद्धि दर्ज की है तथा जिन सबका सम्मिलित भार आईआईपी में केवल 26 प्रतिशत ही है, औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि 6.5 प्रतिशत होगी जो स्पष्ट रूप से अप्रैल-अगस्त 2008 में पाई गई 4.9 प्रतिशत की हेडलाइन वृद्धि से अधिक है । कंपनी वित्तों के सर्वेक्षण एक बिगड़ते हुए परिदृश्य को दर्शाते हैं जो बिक्री से संबंधित, विशेष रूप से कच्चे माल और अन्य निविष्टियों, स्टाफ की लागतों और विनिमय संबंधी हानियों के संबंध में बढ़ते हुए व्यय के कारण लाभप्रदता में आ रही कमी के कारण है । विभिन्न सर्वेक्षण यह सुझाते हैं कि समग्र व्यापारिक विश्वास मंद पड़ रहा है । ऐसा प्रतीत होता है कि अग्रणी निर्देशकों के आधार पर संचार और मालभाड़े के आवागमन को छोड़कर सेवा क्षेत्र की गतिविधि में अनेक उप-क्षेत्रों में नरमी आ रही है । सीमेंट और इस्पात के उत्पादन में कुछ सुधार के चलते निर्माण की गतिविधि में आगामी महीनों में तेजी आ सकती है ।

78. भौतिक बुनियादी संरचना में उल्लेखनीय रूप से बिजली में, कोयला उत्पादन को छोड़कर अन्यत्र भी विस्तृत हो रहे अंतरों के कारण वृद्धि पर एक बाध्यकारी दबाव आ सकता है । बिजली के क्षेत्र में क्षमता में वृद्धि दसवीं योजना के लक्ष्यों से काफी पीछे है जिससे देश में बड़े पैमाने पर बनी हुई कमी की स्थिति और बदतर हो रही है ।यह प्रतीत हो रहा है कि बिजली उत्पादन जल-विद्युत उत्पादन में गिरावट से अत्यधिक प्रभावित हुआ है जो जलाशयों के ऊर्जा घटक द्वारा अक्तूबर 2008 के मध्य तक अखिल भारतीय स्तर पर पूर्ण जलाशय स्तर (एफआरएल) के 27 प्रतिशत की कमी दर्ज करने के कारण है । एक ओर जहाँ तापीय बिजली उत्पादन से सहायता मिली है, वहीं दूसरी ओर कमिशनिंग/वाणिज्यिक परिचालनों में विलंब, मानसून के कारण कोयले में उच्च नमी घटक एवं देश भर में उपयोगिताओं द्वारा सूचित कोयले की कमी की वजह से अप्रैल-अगस्त के दौरान उत्पादन के 3.8 बिलियन यूनिटों की हानि प्रमुख दुर्बलकारी तत्व हैं । ईंधन की कमियों के कारण भी नाभिकीय बिजली उत्पादन के अंतर्गत 2008-09 के प्रथम पाँच महीनों में 1.2 बिलियन यूनिटों की हानि हुई है ।

79. सकल माँग परिस्थितियाँ निरंतर मुख्य रूप से निवेश द्वारा संचालित हैं, यद्यपि 2008-09 की पहली तिमाही में कुछ मंदी कायम रही है जो विस्तृत आधार से युक्त प्रतीत होती है। तथापि, अब तक निवेश के उद्देश्य मजबूत बने हुए हैं जैसा कि औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग के पास दर्ज ज्ञापनों/आशय-पत्रों/प्रत्यक्ष औद्योगित लाइसेंसों से स्पष्ट होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि निजी उपभोग जो भारत में सकल घरेलू माँग का मुख्य आधार है, 2007-08 की तीसरी तिमाही से क्रमश: स्थिर हो रहा है तथा यह अनुमान है कि सब्सिडियों के बढ़े हुए व्यय, किसानों की ऋण माफी और छठवें वेतन आयोग के अधिनिर्णय के परिणामस्वरूप वर्ष की दूसरी छमाही में लागू होनेवाले वेतनों के कारण राजकोषीय प्रोत्साहनों से यह लाभान्वित होगा।

80. सकल माँग के दबावों को प्रतिबिंबित करते हुए प्रमुख मौद्रिक और बैंकिंग संबंधी कुल राशियों में - मुद्रा आपूर्ति, जमा और खाद्येतर ऋण में वृद्धि - वर्ष के दौरान अब तक उन दरों पर विस्तार होता रहा है जो अप्रैल 2008 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में दिये गये संकेतक गति-पथों के सापेक्ष तौर पर उल्लेखनीय रूप में बढ़ाई गई हैं। मुद्रा आपूर्ति, ऋण वृद्धि की निरंतर गति से प्रेरित होकर 2003-08 की विस्तारक दरों पर लगातार बढ़ रही है। इस संदर्भ में जुलाई 2008 की समीक्षा में बढ़ी हुई ऋण वृद्धि के कारण बैंकिंग प्रणाली से उल्लेखनीय रूप में अति आहरण की स्थिति से संबंधित कठिनाइयों को व्यक्त किया गया था ।चयनित बैंकों के साथ उनके परिचालनों में उचित समायोजन लागू करने के उद्देश्य से पर्यवेक्षी समीक्षा प्रक्रियाएँ शुरू की गई हैं । समग्र वित्तीय स्थिरता और वित्तीय मध्यस्थता की कार्यकुशलता के संदर्भ में निधियों के स्रोतों के संबंध में अक्षुण्ण बैंक ऋण वृद्धि और एसएलआर निवेशों के आधिक्य को कम करने की दृष्टि से गंभीर नीतिगत निगरानी की आवश्यकता है।

81. मौद्रिक परिस्थितियों में हुई प्रगति के परिणामस्वरूप 2008-09 की दूसरी तिमाही तक घरेलू वित्तीय बाजारों में चलनिधि की शर्तों में सख्ती लाई गई। बाजार की चलनिधि पर दबावों में केंद्र सरकार की नकदी शेषराशियों में भारी उतार-चढ़ाव, सितंबर के मध्य में अग्रिम कर भुगतान, प्रत्याशित से अधिक ऋण वृद्धि एवं अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में अचानक स्थिति के बदतर होने की पृष्ठभूमि में घरेलू ईक्विटी और विदेशी मुद्रा बाजारों में अस्थिरता की अत्यधिकता के कारण बढ़ोतरी हुई । मुद्रा बाजार में एक दिवसीय ब्याज-दरों का प्राधान्य सामान्यत: कॉरिडर के ऊपरी स्तर से अधिक रहा है, यद्यपि यह एक संकीर्ण दायरे में है जो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय अशांति के और गहरा हो जाने के कारण अक्तूबर 2008 के दूसरे सप्ताह में अपने चरम पर रहा है । एक ओर जहाँ रिज़र्व बैंक द्वारा सितंबर-अक्तूबर 2008 में घोषित उपायों ने इन दबावों को दूर कर दिया है, वहीं दूसरी ओर नाजुक अंतर्राष्ट्रीय परिवेश के चलते आगामी महीनों में चलनिधि की स्थितियों के विकास को भारी अनिश्चितता ने घेर लिया है । रिज़र्व बैंक द्वारा घोषित उपायों के प्रतिक्रियास्वरूप ंओवरनाइट बाजार-क्षेत्रों में ब्याज-दरों में कुछ नरमी आई है ।

82. सरकारी प्रतिभूति बाजार में एसएलआर प्रतिभूतियों की उच्च माँग के कारण जुलाई के मध्य से समूचे क्षेत्र में प्रतिलाभों में कमी आई परंतु बीच-बीच में चलनिधि संबंधी समस्याओं में वृद्धि भी आती रही। अनिश्चित समष्टि आर्थिक दृष्टिकोण तथा कुछ सीमा तक अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के मूल्यों में नरमी को प्रतिबिंबित करते हुए, कम परिपक्वता वाली प्रतिभूतियों पर प्रतिलाभ की तुलना में न्यूनतम (बेंचमार्क) 10-वर्षीय प्रतिभूति पर प्रतिलाभ के साथ तिमाही के दौरान आय-वक्र प्रतिलोम (इन्वर्जन) बना रहा।

83. विदेशी मुद्रा बाजार में सक्रियता में मुख्य रूप से आयात की बढ़ती हुई माँग के कारण तेजी आई जो अस्थिर अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के मूल्यों, संविभाग बहिर्वाहों और वैश्विक परिदृश्य में व्याप्त अनिश्चितताओं से प्रेरित थी। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में असाधारण घटनाओं के घटित होने पर विनिमय दर की गिरावट बहुवर्षीय निम्न स्तरों पर होने के साथ ही हाजिर खंड में भारी अस्थिरता रही। वायदा प्रीमियमों में जून के अंत में तेजी से वृद्धि हुई और वे जुलाई 2008 तक संवर्धित स्तरों पर बने रहे जिसके बाद उक्त प्रीमियमों ने नरमी की प्रवृत्ति दर्शाई हालांकि वह सभी परिपक्वताओं में असमान थी। वायदा प्रीमियम सितंबर 2008 के अंत तक डॉलर की कमियों के कारण बट्टे (डिस्काउंट) पर चले गए, लेकिन बाद में अक्तूबर 2008 में उन्होंने पहले की स्थिति पुन: प्राप्त की । ईक्विटी बाजार वैश्विक बाजारों से प्राप्त संकेतों पर कहीं-कहीं और विशेष रूप से एशिया में कमजोर हो गए ।घरेलू वित्तीय बाजारों में इन घटनाओं ने समष्टि आर्थिक दृष्टिकोण को अनिर्धारित और अनिश्चित बना दिया।

84. यह प्रतीत होता है कि राजकोषीय स्थिति में अवनति के संकेतों से अर्थव्यवस्था में सकल माँग के दबावों में वृद्धि हुई है। केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा अप्रैल-अगस्त 2008 के बजट अनुमानों के 177 प्रतिशत से अधिक हो गया तथा घाटे के अन्य निर्देशकों में अतिलंघन भी देखा गया। एक ओर जहाँ कर राजस्वों में उछाल थी तथा सकल कर वसूलियों में प्रत्यक्ष करों का अंशदान 45 प्रतिशत तक बढ़ गया था, वहीं दूसरी ओर सब्सिडियों, सामाजिक और अन्य आर्थिक सेवाओं पर चालू व्ययों से इन लाभों को कम कर दिया और घाटे को सभी स्तरों पर व्यापक बना दिया। सब्सिडियों और वेतन संशोधनों पर आसन्न व्ययों से राजकोष पर और परिणामत: सकल माँग पर अतिरिक्त दबाव उत्पन्न होंगे। सरकार के लिए यह आवश्यक होगा कि वह सरकारी क्षेत्र की तेल विपणन और उर्वरक कंपनियों को सब्सिडियाँ तेल और उर्वरक बांडों के निर्गम की वर्तमान प्रथा के स्थान पर सीधे नकदी में ही प्रदान करने से संबंधित समस्ओं का निराकरण करें।

85. वाणिज्य व्यापार घाटे में अत्यधिक माँग की स्थितियाँ भी प्रतिबिंबित हुईं जो वर्ष-दर-वर्ष आधार पर अप्रैल-अगस्त 2008 में 43 प्रतिशत के करीब तक विस्तृत हुआ, यद्यपि यह मुख्य रूप से कच्चे तेल के भारतीय समूह (बैस्केट) के औसत मूल्य में 77 प्रतिशत की वृद्धि के प्रतिक्रियास्वरूप था ।यद्यपि यह वर्तमान संकट-काल में परिदृश्य अनिश्चित है, तथापि बाद के महीनों में कच्चे तेल के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में नरमी का हितकारी प्रभाव वर्ष की शेष अवधि में वाणिज्य व्यापार घाटे को कम करने के रूप में होना चाहिए । तेल से इतर आयात की वृद्धि संवर्धित रही, यद्यपि यह एक वर्ष पूर्व दर्ज वृद्धि की तुलना में काफी कम है। एक ओर जहाँ निर्यातों में पुन: गति आ रही है और यह प्रतीत होता है कि कच्चे तेल सहित अंतर्राष्ट्रीय पण्य मूल्यों में कमी आ रही है, वहीं दूसरी ओर इस बात की आवश्यकता है कि व्यापार घाटे की व्याप्ति को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं और बाजारों में अशांति एवं पूँजीगत प्रवाहों के लिए विकसित हो रहे परिवेश के संदर्भ में देखा जाए । संसर्ग के प्रारंभिक मार्ग उन संविभाग निवेशकों से युक्त ईक्विटी और मुद्रा बाजार रहे हैं जो पूँजीगत आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए स्थितियों को अनुकूल बनाना चाहते हैं । बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) में भारतीय संस्थाओं की पहुँच और अल्पकालिक व्यापार ऋणों के लिए निहितार्थ निश्चित करते हुए बाह्य ऋण स्थितियों को अधिक व्यापक आधार पर सख्त बनाने के जोखिमों के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं, यद्यपि हाल ही में ईसीबी के मानदंडों को उदार बनाया गया है । भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए, 2008-09 की पहली छमाही में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अंतर्वाहों में काफी बड़ी वृद्धि अनुकूल स्थिति का उपाय प्रदान करती है। इसके अलावा, आवक विप्रेषणों की टिकाऊ शक्ति के साथ ही अनिवासी जमाराशियों और अंतर्राष्ट्रीय शेयर बाजारों में भारतीय निर्गमों में पहले की स्थिति की पुन: प्राप्ति भुगतान-संतुलन में अंतर्निहित स्थिरीकारियों के रूप में कार्य कर रही है । एक वर्ष की अवधि के लिए संभावित बाह्य भुगतान की बाध्यताओं के संदर्भ में आरक्षित विदेशी मुद्रा निधियों का स्तर पर्याप्त है।

86. जुलाई 2008 में संपन्न पहली तिमाही समीक्षा के समय हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक (डबल्यूपीआई) मुद्रास्फीति 12 प्रतिशत के नजदीक थी तथा जून उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति 7-9 प्रतिशत के दायरे में थी । इस बात पर ध्यान दिया गया कि मुद्रास्फीति में वृद्धि एक वैश्विक घटना बन चुकी है, भारत में मुद्रास्फीति में वृद्धि अन्य किसी देश से आनुपातिक तौर पर अलग नहीं है तथा 2008-09 की अंतिम तिमाही तक मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय गिरावट हो सकेगी । जबकि सीपीआई मुद्रास्फीति में जुलाई-सितंबर में और बढ़ोतरी हुई, डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति की अंतर्निहित गति में अगस्त के मध्य से कुछ उतार है जो मुख्य रूप से मुक्त कीमत निर्धारित पेट्रोलियम उत्पादों, खाद्य तेलों और वस्त्राटं के कारण है तथा यदि कोई प्रवृत्ति बन रही है तो इसका निर्धारण करने के लिए और अधिक जानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता है। अक्तूबर के प्रारंभ तक 2008-09 के दौरान डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति में 369 आधार अंकों की वृद्धि में से लगभग 55 प्रतिशत पेट्रोलियम, तेल और चिकनाई के पदार्थों (पीओएल), खाद्य वस्तुओं, धातुओं और तिलहनों/खाद्य तेलों/तेल की खलियों की कीमतों में वृद्धि के कारण था जिनमें से सभी वैश्विक माँग-पूर्ति के संतुलनों को प्रतिबिंबित करते हैं। इसी अवधि में इन वस्तुओं की वैश्विक कीमतों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है, जिससे समूचे विश्व में मंहगाई में तेज बढ़ोतरी हुई और ऐसी ही बढ़ोतरी उत्पादक (इनपुट और आउटपुट) कीमतों में रही। घरेलू दृष्टि से देखें तो स्फीति के ये आयातित दबाव उच्च स्तरों पर हेडलाइन स्फीति बने रहे और इस बारे में भारी अनिश्चय रहा कि इनका शीर्ष कहां और कब रहेगा। तथापि, अतिरिक्त झटकों की गैर-मौजूदगी में ये घटक सामान्यीकृत स्फीति का सामना नहीं कर सकते, विशेषकर तब जबकि मुद्रा की आपूर्ति वर्ष 2003-08 के औसत दर पर रही, इस अवधि में स्फीति दर न्यून तथा स्थिर थी। यह ध्यान देने की ज़रूरत है कि वस्तुओं की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में बढ़ोतरी का असर पूरी तरह से घरेलू कीमतों पर नहीं पड़ने दिया गया था, और इस प्रकार भारत में मंहगाई पर अंतर्राष्ट्रीय जिन्सों की कीमतों के प्रभाव नरम रखे जा सके। मौद्रिक नीति निर्धारण में चुनौती यह है कि आउटपुट में परिवर्तनशीलता की दृष्टि से मंहगाई को कम करने की लागतों में संतुलन किया जाए, विशेषकर औद्योगिक और सेवा क्षेत्र क्रियाकलाप में संयतता के परिप्रेक्ष्य में विद्यमान मंहगाई और स्फीति अनुमानों में जुड़ते जा रहे वर्तमान जोखिमों के मुकाबले। यद्यपि, इस निर्णय के साथ महत्वपूर्ण अनिश्चितताएं जुड़ी हैं, तथापि स्फीति को उन स्तरों तक लाने पर ध्यान रखना होगा, जो अर्थव्यवस्था और वित्तीय स्थिरता के लिए उच्च किंतु स्थिर संवृद्धि दर के साथ तुलनीय हों।

87. जुलाई 2008 की पहली तिमाही की समीक्षा के बाद से वैश्विक आर्थिक प्रत्याशाएं और भी कमजोर हुई। वैश्विक अर्थव्यवस्था वित्तीय संकट के प्रतिकूल प्रभावों का सामना कर रही है। वर्ष 2008 की दूसरी तिमाही में यू.एस. के अलावा अन्य प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं में संकुचन के बाद तीसरी तिमाही की वित्तीय स्थितियों की समरूपता में वैश्विक संवृद्धि की प्रत्याशाएं और भी कमज़ोर हुई। प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में ग्राहक के भरोसे में गिरावट और बेरोजगारी में बढ़ोतरी के साथ-साथ तीसरी तिमाही में खुदरा बिक्री में निरंतर गिरावट रही। अगस्त से ही ऋण देने की स्थितियों में तीव्र सख्ती से मांग में गिरावट अवश्यंभावी है, क्योंकि विभिन्न विकसित अर्थव्यवस्थाओं में आवास क्षेत्र में समायोजन की पीड़ा भी बढ़ेगी। कंपनी क्षेत्र भी कमज़ोर पड़ती जा रही मांग और उच्च इनपुट लागत के दबाव का समायोजन कर रहा है, जिसके कारण रोजगार में गिरावट का जोखिम बढ़ रहा है। यू.एस. में प्रयोज्य आय तथा पारिवारिक संपत्ति में गिरावट से वास्तविक व्यक्तिगत उपभोग में गिरावट प्रकट हो रही है। अगस्त में हाउसिंग स्टार्ट और परमिट संकट में पड़ गए, इसका कारण आवासीय इकाइयों की अधिक आपूर्ति, गिरवी रखने की स्थायी दरों में बढ़ोतरी और मकानों की कीमतों में और भी गिरावट की संभावनाएं हैं।

88. यह तथ्य सामने आता जा रहा है कि यू.एस. की मंदी, व्यापार और वित्तीय मार्गों से फैल रही है। यूरो के इलाके में खुदरा बिक्री भी कमज़ोर क्रियाकलापों की ओर इशारा कर रही है। बहुत-सी अर्थव्यवस्थाओं में प्रतीत हो रहा है कि आवास क्षेत्र की मंदी और भी गहरी हो गई है, यद्यपि परिवारों की वित्तीय स्थितियां मज़बूत है। विनिर्माण के लिए हाल ही के मिले आर्डरों की संवृद्धि से लगता है कि यूरो इलाके में भी व्यावसायिक निवेश में गिरावट हो रही है। जापानी अर्थव्यवस्था में अभी हाल ही के महीनों में औद्योगिक उत्पादन में कमज़ोरी और आयात-निर्यात की बड़ी हानियों के साथ खुदरा बिक्री में गिरावट के कारण प्रत्याशाओं का तीव्र क्षरण हुआ है। वर्ष 2008 की तीसरी तिमाही में कारोबारी भरोसे में गिरावट रही, विशेषकर छोटी फर्मों में जहां रोजगार और न्यूनतम मजदूरी की संवृद्धि भी हाल ही के महीनों में गिरी है। यू.के. में आर्थिक क्रियाकलापों में तीव्र गिरावट हुई और अल्पावधिक दृष्टिकोण में तीव्र कमी रही और वित्तीय संकट गहराता गया। मुद्रा और ऋण की शर्तों में कसावट के साथ उच्चतर मुद्रास्फीति के कारण वास्तविक आय में हुई कमी ने खर्चें पर लगाम लगा दी है। स्ट्य्र्लंग में गिरावट मुद्रास्फीति के नए जोखिम दिखा रहा है। अन्य प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक क्रियाकलाप भी कमज़ोर पड़ रहे हैं। कनाडा जैसी सापेक्षिक रूप से मुक्त अर्थव्यवस्था में भी आयात-निर्यात की आय में परिवर्तन से वहां की सुदृढ़ घरेलू मांग में कमज़ोरी आ सकती है। वर्ष 2008 में औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं में संवृद्धि को पूर्वानुमानों में एकमत से 1.5 प्रतिशत रखा गया है, जो कि अभी भी मामूली-सा विस्तार है लेकिन इसमें गिरावट के जोखिम ज्यादा हैं।

89. उदीयमान अर्थव्यवस्थाओं के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण बना हुआ है, लेकिन वैश्विक आघातों को सहन करने के बारे में उनकी अनिश्चितता बढ़ गई है। औद्योगिक उत्पादन और निर्यात की मात्राओं में नरमी आयी है, जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं के प्रभाव में इक्विटी बाजारों में गिरावट और बांड से आमदनी में बढ़ोतरी हुई है। लैटिन अमरीका में इक्विटी कीमतों में गिरावट ने वस्तुओं की कीमतों में नरमी को दबा दिया है, जबकि एशिया में पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा अति सुरक्षित आश्रय लेने के कारण इसमें गिरावट रही। कुछ उदीयमान बाजार अर्थव्यवस्थाओं में बैंकिंग क्षेत्र में थोड़ी कमज़ोरी रही। यद्यपि घरेलू मांग मजबूत बनी रही, जिसे बढ़ती पारिवारिक आय का संबल मिला और यह अभी भी तेजी से बढ़ते हुए बैंक ऋण को प्रकट करता है। उदीयमान अर्थव्यवस्थाओं से निर्यात का परिदृश्य अधिक मजबूत नहीं है और व्यापार-संतुलन की स्थितियां घरेलू मांग में गिरावट ला सकती हैं। संवृद्धि प्रत्याशाओं, और अधिक महत्वपूर्ण यह कि स्फीति की प्रत्याशाएं, व्यष्टि आर्थिक परिदृश्य, पूंजी प्रवाह और आस्ति-कीमतों के संबंध में इन देशों के अंतर्भाव को प्रभावित कर रही है। यद्यपि अनुमानित पूंजी प्रवाह के अनुमान तीव्र प्रत्यावर्तन की संभावना का संकेत नहीं देते, तथापि, 2008 की दूसरी तिमाही के बाद से विगत तिमाहियों के परिप्रेक्ष्य में इसमें बड़ी गिरावट के संकेत हैं। प्रमुख वित्तीय केंद्रों में उथल-पुथल से अंतर्राष्ट्रीय इक्विटी और ऋण प्रतिभूतियों को जारी करने में कमी आयी और स्प्रैड इस स्तर तक बढ़ गये कि बाह्य वित्तपोषण तक पहुँचने में बाधा आने लगी। बैंकिंग प्रवाह भी वाणिज्यिक और व्यापार ऋणों के कम होने और पुनर्निर्धारणीय ऋणों पर प्रतिबंध आने के कारण वित्तीय अस्तव्यस्तता के साथ प्रभावित हुए हैं। कई उभरती बाज़ार मुद्राओं का अमरीकी डॉलर की तुलना में मूल्यहास हुआ। उभरती अर्थव्यवस्थाओं से संबंधित निवेशकों की भावना मुद्रास्फीति की चिंताओं और उन्नत अर्थव्यवस्था में धीमी गति से संक्रामकता की संभावनाओं के कारण निरुत्साही बन गई। उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से प्रभावित हो सकनेवाली अर्थव्यवस्था वे हैं जिनकी बृहत चालू खाता घाटा और जिसकी अल्पावधि बाह्य ऋण पर अधिक निर्भरता है, उच्च राजकोषीय घाटा है और सरकारी क्षेत्र की ऋणग्रस्तता, अस्थिर मुद्राएं हैं, अधोगामी प्रतिफल-वक्र है और उच्च मुद्रास्फीति है। आनेवाले समय में इन अर्थव्यवस्थाओं की वित्तीय क्षेत्र की अच्छी स्थिति और लचीलेपन का वृद्धि की संभावनाओं पर महत्वपूर्ण असर पडेगा।

90. हेडलाइन मुद्रास्फीति अभी भी विश्वभर में उच्च बनी हुई है। औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं के लिए सर्वसम्मत पूर्वानुमान के अनुसार उपभोक्ता मूल्य आधारित मुद्रास्फीति 2007 के 2.2 प्रतिशत से बढ़कर 2008 में 3.6 प्रतिशत हो गयी जिसमें अन्न और ऊर्जा कीमतों के कारण उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए इससे भी अधिक वृद्धि बतायी गयी है। उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए सभी क्षेत्रों में 2008 और 2009 के लिए मुद्रास्फीति पूर्वानुमानों में संशोधन कर वृद्धि दर्शायी गयी है। पूर्ण पास-थ्रू को रोक कर खुदरा मूल्यों पर पड़नेवाले प्रभाव से बचाव के प्रयास इन में से बहुत सी अर्थव्यवस्थाओं में राजकोषीय स्थिति कमजोर हो गई। उभरती हुई अर्थव्यवस्था के मुद्रास्फीति के लक्ष्यधारियों के लिए 15 में से 13 अभी कुछ समय से लक्ष्य से अधिक मुद्रास्फीति का सामना कर रहे हैं और अन्य अर्थव्यवस्थाओं में भी मुद्रास्फीति लक्ष्य से अधिक रही है। इन अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंकों ने प्रतिक्रिया में मौद्रिक नीति को सख्त कर दिया परंतु कइयों के लिए वृद्धि संबंधी चिंताएँ भी बढ़ा दी हैं। जहाँ एक ओर कुछ उभरती अर्थव्यवस्थाएं मुद्रास्फीतिकारक विनिमय दर में मूल्यहास को नियंत्रित करने के लिए विनिमय बाजार हस्तक्षेप में उलझ गई; वहीं इन प्रयासों को हाल ही में फिर बढाया गया। कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं में, मज़बूत वास्तविक घरेलू बैंक ऋण से वृद्धि के साथ मुद्रास्फीतिकारी दबाव भी बढ़ गए। बढ़ते हुए मूल्य दबावों के कारण भी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुख्य (कोर) मुद्रास्फीति और बढ़ रही है। वर्ष 2008 की प्रथम छमाही में वस्तुओं की कीमतों में तीव्र वृद्धि हुई जिसने उत्पादक कीमत मुद्रास्फीति दर्शाई, वह फुटकर स्तरों के माध्यम से संचारित हुई। तथापि आगत मूल्यों से निर्गत मूल्यों में पास थ्रू अब तक सीमित है। दूसरी ओर हाल ही में क्रूड और अन्य वस्तुओं के मूल्यों में आई कमी और वायदा बाज़ारों से मिले संकेतों से पता चलता है कि शीघ्र ही इन मूल्यों में स्थिरता आ सकती है। दोनों ही परिप्रेक्ष्यों में काफी अनिश्चितता की स्थिति है। यदि प्रगति धीमी होती है, जैसा कि एकमत से पूर्वानुमान बताते हैं, तो मुद्रास्फीति में कहीं अधिक शीघ्रता से कमी आ सकती है जितनी कि अभी संभावना जतायी जा रही है। अभी तक, सामान्य रूप से वेतन में वृद्धि होने का कोई प्रमाण नहीं है जिससे मुद्रास्फीति के बने रहने के कारणों पर निर्णायात्मक प्रभाव पड़ेगा। कुछ उभरती हुयी अर्थव्यवस्थाओं में न्यूनतम मज़दूरी में तेजी से वृद्धि होने की सूचना प्राप्त हुयी है, जबकि कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बाज़ार आधारित मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं में कमी आई है, आने वाले समय में मुद्रास्फीति संभावनाओं के निर्माण हेतु निहितार्थों के साथ उपभोक्ता मुद्रास्फीति की संभावनाओं में तेजी बनी रही।

91. विश्व के विशालतम वित्तीय संस्थानों, जिनमें से कई की ऐतिहासिक और पारंपारिक ख्याति रही है, की अभूतपूर्व विफलता के बाद जोखिम से बचने की प्रवृत्ति ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को अपने शिकंजे में जकड़ लिया है। बट्टे खाते डालने/हानियों/विमोचनों/ नियंत्रण हेतु खरीदों से संबंधित और मामलों के प्रकाश में आने के डर और ‘घातक आस्तियों’ का और अधिक व्यापक रूप से फैलाव होने के संबंध में उठने वाली चिंताओं के चलते ऋण गुणवत्ता में कमी होने से निवेशकों में निराशावादी दृष्टिकोण पैदा हो गया है। काफी संख्या में संकट से उबारने की सार्वजनिक नीतिओं, बैंकिंग प्रणाली में मौजूद जमाराशियों की गारंटी देने और कमज़ोर संस्थानों का पुन: निर्माण करने जैसी घोषणाओं ने आतंक की भावनाओं को पर्याप्त रूप से ठंडा नहीं किया है, या बाज़ारों में कामकाज अभी तक सामान्य नहीं हुआ है। वित्तीय बाज़ारों में मई 2008 से गहन दबाव का अनुभव किया गया, सितंबर-अक्तूबर 2008 की घटनाओं ने विश्वास का संकट खड़ा कर दिया, जिसमें इतनी प्रबलता थी कि वे विकसित अर्थव्यवस्थाओं में, विशेष रूप से अमेरिका में वित्तीय परिदृश्य को पूर्णतया बदल सकती थी। लंबे अरसे तक अमेरिकी डॉलर के यूरोपियन बैंकों से लेकर गैर-बैंकिंग संस्थानों में किए गए ऋण जोखिम का मोचन होने से मुद्रा बाज़ारों में निधियों के दबाव में वृद्धि हुई है। केंद्रीय बैंकों और वित्तीय नियामकों ने अत्यधिक नकदी की व्यवस्था, समन्वित प्रचालनों (स्वैप और दरों में कटौती सहित) और शार्ट सेलिंग जैसे कुछ वित्तीय लेनदेनों पर पाबंदी लगाकर इसका नीतिगत उपाय किया है। प्रमुख मुद्राओं के प्रति अमेरिकी डॉलर के कमज़ोर पड़ने के साथ ही साथ संपूर्ण विश्व में वित्तीय बाज़ार समकालिक मंदी से गुजर रहे हैं।

92. बंधक आधारित हानियों की व्यापकता बढ़ने से ऋण हानियों और बट्टे खाते डालने की घटनायें प्रतिभूति और पूंजी बाज़ार से संबंधित क्षेत्रों से बाहर आकर पारंपरिक बैंकिंग खातों को प्रभावित कर रही हैं। संपण्झाद वित्तीय प्रणाली में पूंजी की गंभीर कमी के चलते यूरोपियन बैंकों द्वारा वृहत राइट इश्यू लाये जाने से मौजूदा शेयरधारकों की शेयर पूंजी में आई कमी ने वास्तविक रूप से इक्विटी बाज़ार की भावनाओं में मंदी का माहौल बनाया है। बैंकों के शेयरों की कीमतों में गिरावट के कारण वैश्विक बैंकों का बाज़ार पूंजीकरण घटकर तकरीबन एक ट्रिलियन अमरीकी डॉलर हो गया और अधिकतर मामलों में निवल आस्तियों का बाज़ार मूल्य उनके बही मूल्य से कम रहा। शेयर की कीमतों में इन भारी गिरावटों के कारण पूंजी जुटाने की बैंकों की क्षमता बुरी तरह सीमित हो गई है। इसके परिणामस्वरूप कुछ औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं के नीति नियंताओं ने संकटग्रस्त वित्तीय संस्थाओं को पुन: पूंजीकृत करने के लिए कदम बढ़ाए। सार्वभौम संपदा निधियों (सावरेन वेल्थ फंड) तथा जिने आधिकारिक संस्थाओं ने वर्ष 2007 में अधिकांश पूंजी प्रदान की थी वे सतर्क हो गईं। इसी के साथ आस्तियों की बिक्री से भारी नुकसान की भरपाई हो रही है तथा इस प्रकार की संकटापन्न बिक्रियों को संभव बनाने वाली विनियामक प्रणालियों के अंतर्गत प्रोत्साहन के ढांचे पर प्रश्न उठा रहे हैं। वास्तविक क्षेत्र विशेष रूप से आवास क्षेत्र तथा आवासीय दृष्टिबंधक बाजार की क्षीण गतिविधि ने अमरीकी सरकार द्वारा प्रायोजित उद्यमों (जीएसई), जिनके शेयरों की कीमतें लगातार कमजोर बनी रहीं और अधीनस्थ ऋण पर ऋण चूक स्वैप का अंतर काफी बढ़ गया हो, की सहायता करने के लिए किए जाने वाले राजकोषीय उपायों के बावजूद वित्तीय प्रणाली पर पड़ने वाले दबावों को बढ़ाया।

93. संक्षेप में, अमरीकी तथा यूरोप के अंतर-बैंक बाजारों के फ्रीज होने के चलते वैश्विक वित्तीय बाजारों की स्थिति बदतर हुई जिसके कारण इन अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंकों द्वारा भारी पैमाने पर नकदी सुविधाएं प्रदान करना जरूरी हो गया जिनमें डॉलर स्वैप व्यवस्थाएं, नकदी प्रदान करने तथा नीतिगत दरों में कटौती करने के रूप में समन्वित मौद्रिक नीति कार्रवाई, सरकारों द्वारा निजी क्षेटत्र के संकटग्रस्त बैंकों का पुनपूंजीकरण, कमजोर बैंकों को बचाने के लिए यूरोपीय बैंको की समन्वित कार्रवाई तथा तमाम देशों की बैंकिंग प्रणाली में सभी जमाराशियों की गारंटी शामिल हैं। पहले से ही कमजोर आवास बाजारों में गिरती हुई कीमतों तथा तुलन पत्रों की यथेष्टता को प्रभावित करने वाले जटिल डेरिवेटिवों के खुलते क्षेत्र से, जिसके साथ बाजार मूल्य से सम्बद्ध हानियां जुड़ी हें तथा इक्विटी कीमतों में गिरावट, ये समस्याएं और बढ़ गईं हैं। वित्तीय संकट से सर्वाधिक प्रभावित देशों से भिन्न देशों के वित्तीय एकीकरण के कारण उनमें फैल रहे अप्रत्यक्ष प्रभावों को ध्यान में रखते हुए इन अर्थव्यवस्थाओं के विशेष रूप से पूर्वी एशिया के प्राधिकारियों ने अपेक्षित आरक्षित निधियों एवं ब्याज दरों में कटौती के रूप में मौद्रिक नीति से जुड़ी कार्रवाइयां करने के अलावा जमाराशियों की गारंटी देने तथा बैंकिंग प्रणालियों में नकदी के समावेश की दिशा में कदम उठाए हैं।

94. समग्र मूल्यांकन करते हुए कहा जा सकता है कि वैश्विक आर्थिक स्थितियां बदतर हुई हैं और भविष्य में होने वाली घटनाओं का रुख बहुत अनिश्चित हो गया है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक गतिविधियों में व्यापक गिरावट ने उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के समष्टि आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित करना प्रारंभ कर दिया है जिनमें से बाह्य वित्तीय जरूरतों के लिए निर्यात तथा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं पर सर्वाधिक खतरे की संभावना है। मुद्रा-स्फीति लगातार ऊँची बनी रही और वह वैश्विक आर्थिक संभावनाओं के लिए एक प्रमुख जोखिम बनी रही। हालांकि वस्तुओं की कीमतों में उनकी हाल के दिनों में ऊँची कीमतों की तुलना में कमी हो रही है और वायदा बाजारों द्वारा उनमें आगे और कमी होने की संभावना है लेकिन हाल में लंबे समय तक बनी रही मुद्रा स्फीति में वृद्धि का प्रभाव अभी भी हेडलाइन मुद्रा स्फीति पर पड़ रहा है और निकट भविष्य में इसके कारण मुद्रा स्फीति अपने मौजूदा स्तर पर बनी रह सकती है। मौजूदा चरण में वित्तीय संकट के गहराने का प्रभाव उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के कमजोर समष्टि आर्थिक दृष्टिकोण पर पड़ सकता है जिसके दूसरे चरण का प्रभाव शेष दुनिया पर पड़ सकता है। इसके परिणामस्वरूप उन्नत तथा उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रा स्फीति के विरुद्ध मौद्रिक नीति संबंधी कार्रवाई से ऐसा प्रतीत होता है कि एक समान रूप से अर्थव्यवस्था तथा वित्तीय प्रणाली से जुड़ी और व्यापक चिंताओं से ज्यादा-से-ज्यादा प्रभावित होती जा रही है। घरेलू स्तर पर मुद्रा स्फीति को यथाशीघ्र कम करके उसे व्यावहारिक रूप से स्वीकार्य स्तर पर लाना तथा मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाना एक प्रमुख चिंता बना हुआ है। वर्ष 2005-08 के दौरान उच्च विकास के संबंध में औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र की गतिविधियों की गति में कुछ कमी हुई है। कृषि उत्पादन में अपेक्षित वृद्धि से संपूर्ण आपूर्ति में वृद्धि तथा मुद्रास्फीति के दबावों में कमी होनी चाहिए। हालांकि भारत की वित्तीय प्रणाली अभी तक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में व्यापक उथल-पुथल, भीषण घटनाओं (जिसमें उथल-पुथल का विस्तार शामिल है) तथा उनकी चपेट में आई वित्तीय संस्थाओं के प्रकार (भले ही उनकी प्रतिष्ठा और उनका आकार कैसा हो) इत्यादि से काफी अलग-थलग रही है फिर भी काफी चौकस रहते हुए तत्परता की आवश्यकता है ताकि बाहरी आघातों से अर्थव्यवस्था तथा घरेलू वित्तीय प्रणाली को बचाए रखा जा सके।

II. 2008-09 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति का रुझान

95. कई जटिल और बाध्यकारी नीतिगत चुनौतियों के संदर्भ में यह मध्यावधि समीक्षा जारी की जा रही है। वैश्विक वित्तीय प्रणाली अभूतपूर्व संकट के चंगुल में है। अमरीकी सब-प्राइम मार्टगेज बाजार में हुई चूकों और अगस्त 2007 में जटिल व्युत्पन्न लिखतों के कारण उत्पन्न समस्या ने वित्तीय क्षेत्र में उथल-पुथल के कारण पूरे वित्तीय क्षेत्र को अपनी जकड़ में ले लिया। जो समस्या चलनिधि की कमी के रूप में शुरू हुई, वह तेजी से शोध-क्षमता की समस्या में बदल गई जिसके कारण वित्तीय बाजारों में विश्वास का संकट उठ खड़ा हुआ। यह संकट अमरीका से यूरोप में फैल गया और फिर आंशिक रूप से शेष विश्व में फैल गया और इसका प्रभाव वित्तीय क्षेत्र के साथ-साथ संपदा क्षेत्र पर भी आ गया। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ारों में कई बड़े व्यवधान हुए हैं, पूरे विश्व में शेयर बाजारों में बड़ी गिरावट आई है और वित्तीय क्षेत्र के सहभागियों में जोखिम बिल्कुल न उठाने की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। पूरे विश्व में सरकारें, केंद्रीय बैंक और वित्तीय विनियामक संकट का मुकाबला आक्रामक, सुधारात्मक और रूढ़िमुक्त उपायों से कर रहै हैं ताकि बाजारों में शांति पुन: कायम हो और उनमें विश्वास जगे और वे फिर से सामान्य और स्थिर हो जाएं।

96. भारत का वित्तीय क्षेत्र स्थिर और स्वस्थ है। वित्तीय मजबूती के सभी संकेतक जैसे कि हमारे वाणिज्य बैंकों की पूंजी पर्याप्तता, अनर्जक आस्तियों के अनुपात और आस्तियों पर आय, जो कि बैंकिंग आस्तियों का 88 प्रतिशत हैं, बहुत मजबूत हैं। उन्नत देशों में कई बैंकों और अर्ध-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं को बड़ी हानि उठानी पडी और उन्हें बृहद पूंजी और बेल आउट पैकेजों की आवश्यकता पड़ी, लेकिन भारतीय बैंकों पर इनका प्रभाव सीमित ही रहा है क्योंकि अमरीकी सब-प्राइम आस्तियों में उनका प्रत्यक्ष वित्तीय निवेश नहीं है। भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं और विदेशी सहायक संस्थाओं द्वारा विदेशी पोर्टफोलियों में धारित वित्तीय लिखतों की बाजार दर पर मूल्यांकन (मार्क टु मार्केट) से हुई हानियां ऋण-स्प्रेड में सामान्य वृद्धि के कारण हैं। भारत में वाणिज्य बैंकों का समग्र पूंजी पर्याप्तता अनुपात 12.7 प्रतिशत है, जो कि 9 प्रतिशत के विनियामक न्यूनतम से और बासेल समझौते की आवश्यकता के 8 प्रतिशत से कहीं अधिक है। वास्तव में, भारत में सभी वाणिज्य बैंकों का पूंजी पर्याप्तता अनुपात 10 प्रतिशत से अधिक है। इसके अतिरिक्त, निवल मांग और मीयादी देयताओं के 25 प्रतिशत का सांविधिक चलनिधि अनुपात के रूप में बनाएं रखने और 6.5 प्रतिशत को चलनिधि अनुपात के रूप में बनाए रखने की विनियामक अपेक्षा भारतीय बैंकों को एक अंतर्निहित मजबूती प्रदान करती है। उन्नत देशों के वित्तीय क्षेत्रों में समस्या का सबसे अधिक उल्लेखनीय लक्षण है - अंतर-बैंक बाजारों का शिथिल हो जाना। इसके विपरीत, भारत में अंतर-बैंक बाजार सुव्यवस्थित ढंग से काम करते रहै हैं और हाल ही के सप्ताहों में लेनदेन की मात्रा, पिछले छह महीने के लेनदेनों की मात्रा के बराबर ही या कई बार उससे अधिक रही है।

97. बहरहाल, देशी वित्तीय बाजारों पर वैश्विक गतिविधियों का कुछ अप्रत्यक्ष, चोटीला प्रभाव पड़ा है। हाल ही के सप्ताहों में वैश्विक गतिविधियों के कारण मुद्रा बाजारों में असामान्य रूप से चलनिधि में कमी आई। अग्रिम कर भुगतानों जैसे अल्पकालिक स्थानीय कारणों के चलते इनमें और भी वृद्धि हो गई। विदेशी संस्थागत निवेशकों के पोर्टफोलियो निवेश बहिर्वाहों और उच्चतर अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों और आयात परिमाणों के चलते तेल और उर्वरक कंपनियों की बढ़ी हुई विदेशी मुद्रा की मांग के कारण विदेशी मुद्रा बाजार पर कुछ दबाव पड़ा। बाह्य वित्तपोषण की पहुंच में बाधाओं और जोखिमों के पूनर्मूल्यन और उच्चतर अंतरों के (स्प्रेडों) कारण देशी बैंक ऋण के लिए अतिरिक्त मांग उत्पन्न हुई जिसके कारण सभी स्तरों पर ब्याज दरों में अनुवर्ती वृद्धि हुई। इन सब बातों का एक संयुक्त प्रभाव यह हुआ कि चालू वित्तीय वर्ष में अब तक बैंक ऋण में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद, ऋण पर दबाव पड़ा। देशी ईक्विटी बाजारों पर वैश्विक आस्तियों की डीलीवरेज और विदेशी बाजारों से प्रतिकूल सेंटिमेंट का काफी प्रभाव पड़ा।

98. सितंबर मध्य में देशी बाजारों में चलनिधि में अचानक कमी आई। रातभर के लिए मांग मुद्रा दर 8 सितंबर के लगभग 9 प्रतिशत से बढ़कर 16 सितंबर को 13 प्रतिशत से अधिक हो गई। इस तेजी का एक कारण तो सितंबर के मध्य में पहले से ही निर्धारित अग्रिम कर बहिर्वाह था, लेकिन शीघ्र ही यह स्पष्ट हो गया कि चलनिधि में कमी केवल स्थानीय और मौसमी कारणों से नहीं थी क्योंकि 29 सितंबर को मांग दर बढ़ कर लगभग 15 प्रतिशत हो गई। एलएएफ रेपो नीलामियों में परिमाण, जो सितंबर के प्रथम पखवाड़े में औसतन 12,500 करोड़ रुपये था, माह के दूसरे पखवाड़े में बढ़ कर 68,000 करोड़ रुपये हो गया।

99. पिछले वित्तीय वर्ष में, सकल घरेलू उत्पाद के 1.5 प्रतिशत के चालू खाता घाटे की तुलना में, भारत में सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 10 प्रति शत के निवल पूंजीगत अंतर्वाह प्राप्त हुए। हालांकि इन अंतर्वाहों को आंशिक रूप से बाजार स्थिरीकरण योजना प्रतिभूतियां जारी करके और प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात में कई बार वृद्धि करके निक्रिय कर दिया गया, लेकिन फिर भी देशी चलनिधि की स्थितियों पर इनका विस्तारात्मक प्रभाव पड़ा। पिछले दो महीनों में वैश्विक चलनिधि संकट के और बढ़ जाने के कारण, पूंजीगत अंतर्वाह कम हो गये और देशी बैंकिंग प्रणाली से ऋण की मांग बढ़ गई जिससे चलनिधि का संकट और गहरा हो गया।

100. वैश्विक वित्तीय संकट के परिणामस्वरूप, हमारे वित्तीय बाजारों पर दबाव के कारण, रिज़र्व बैंक के सामने आसन्न चुनौती थी, देशी और विदेशी मुद्रा चलनिधि में इजाफ़ा करके विश्वास जगाना। तदनुसार, रिज़र्व बैंक ने 16 सितंबर, 2008 को निम्नलिखित उपायों की घोषणा की:

* रिज़र्व बैंक ने वित्तीय बाजार के सहभागियों को विश्वास दिलाया कि वह आपूर्ति बढ़ाने के लिए देशी और विदेशी मुद्रा बाजार में विदेशी मुद्रा बेचना जारी रखेगा या सीधे हस्तक्षेप भी करेगा ताकि प्रचलित बाजार दर और बाजार प्रथा के अनुसार मांग-आपूर्ति में अंतर पूरे किये जा सकें।

* दैनिक आधार पर एक दूसरी एलएएफ फिर से प्रारंभ की गई जिससे बाजार के सहभागी आश्वस्त हो सकें कि बाजार में दबाव होने पर चलनिधि उपलब्ध कराई जाएगी।

* सभी परिपक्वताओं के लिए एफसीएनआर(बी) और एन आर (ई) आरए के अधीन एक से तीन वर्ष की परिपक्वता के लिए उच्चतम ब्याज दरें में 50 आधार अंकों की वृद्धि की गई।

* एक तदर्थ और अस्थाई उपाय के रूप में, बैंकों को एलएएफ के अधीन उनकी निवल मांग और मीयादी देयताओं के एक प्रतिशत तक की अतिरिक्त चलनिधि प्राप्त करने और दांडिक ब्याज से छूट प्राप्त करने की अनुमति दी गई।

101. अमरीकी वित्तीय संकट के यूरोप और एशिया में फैल जाने के कारण 7 अक्तूबर के बाद चलनिधि की स्थिति में और गिरावट आ गई। पूरे विश्व में, मुद्रा बाजार ठहर से गए और शेयर बाजारों में बहुत ज्यादा उथल-पुथल हो गई क्योंकि अमरीका, यूरोप, एशिया और आस्ट्रेलिया के मौद्रिक प्रधिकारियों की समन्वित नीतिगत कार्रवाई भी वित्तीय बाजारों में विश्वास नहीं जगा पायी। 10 अक्तूबर, 2008 को समाप्त पखवाड़े में, बैंक ऋण में 65,000 करोड़ रुपये की उल्लेखनीय वृद्धि हुई जो कि 2008-09 में अब तक किसी भी पखवाड़े से सबसे अधिक वृद्धि है। परिणामस्वरूप, देशी मुद्रा बाजार में, 10 अक्तूबर को मांग मुद्रा दरें 19.8 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं और अक्तूबर के प्रारंभ में एलएएफ रेपो परिमाण 90,000 करोड़ रु. से अधिक हो गया। वैश्विक वित्तीय स्थिति में लगातार अनिश्चितता और भारत पर उसके प्रभाव को देखते हुए, और देशी बाजार चलनिधि की लगातार मांग के कारण, अक्तूबर 2008 में निम्नलिखित उपाय किए गए:

  • लगातार अनिश्चित वैश्विक स्थिति को देखते हुए, इन उपायों के तहत 11अक्तूबर से प्रारंभ हुए पखवाड़े से प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में 250 आधार अंकों की संचयी कमी की गई।
  • 20,000 करोड़ रुपये की अधिसूचित राशि के लिए एक विशेष 14-दिवसीय रेपो सुविधा स्थापित की गई ताकि मुच्युअल फंडों की चलनिधि संबंधी कठिनाई को दूर किया जा सके। इसी प्रयोजन के लिए, बैंकों को सांविधिक चलनिधि अनुपात संबंधी पात्र प्रतिभूतियों में निवल मांग और मीयादी देयताओं के 0.5 प्रतिशत की अतिरिक्त अस्थायी सीमा उपलब्ध कराई गई।
  • वाणिज्य बैंकों और अखिल भारतीय मीयादी ऋणदात्री और पुनर्वित्तीयन संस्थाओं को मुच्युअल फंडों द्वारा 15 दिन के लिए धारित जमा प्रमाणपत्रो पर उधार देने और उन्हैं वापस खरीदने की अनुमति दी गई।
  • सरकार के अनुरोध पर, रिज़र्व बैंक कृषि ऋण माफी और ऋण राहत योजना के अधीन वाणिज्य बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी ऋण संस्थाओं को 25,000 करोड़ रुपये की राशि तुंत उपलब्ध कराने के लिए सहमत हो गया।
  • एफसीएनआर (बी) जमाराशियों की सभी परिपक्वताओं के लिए और एनआर(ई)आरए के अधीन एक से तीन वर्ष की परिपक्वता की जमाराशियों पर प्रत्येक के लिए ब्याज दर की उच्चतम सीमा में 50 आधार अंकों की वृद्धि की गई।
  • बैंकों को उनकी अक्षत टीयर I पूंजी या 10 मिलियन अमरीकी डालर की, इनमें से जो भी अधिक हो, सीमा तक अपनी विदेशी शाखाओं और प्रतिनिधि बैंकों से निधियां उधार लेने की अनुमति दी गई।
  • रिज़र्व बैंक ने यह भी घोषणा की कि वह तेल बांडों की जमानत पर, जब वे उपलब्ध होंगे, सरकारी क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों की विदेशी मुद्रा की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए विशेष बाजार परिचालन प्रारंभ करेगा।

102. देशी ऋण बाजारों पर वैश्विक चलनिधि समस्या के अप्रत्यक्ष प्रभाव को कम करने के लिए, और विशेष रूप से, वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए, 20 अक्तूबर, 2008 को एलएएफ के अधीन रेपो दर में तुंत प्रभाव से 100 आधार अंकों की कमी करते हुए उसे 8.0 प्रतिशत कर दिया गया।

103. कुल मिलाकर, सितंबर 2008 के मध्य से किए गए उपायों ने प्रतिकूल बाह्य गतिविधियों के प्रभाव के कारण देशी वित्तीय बाजारों के चलनिधि संबंधी दबाव को काफी कम किया है। प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात में कमी, सांविधिक चलनिधि अनुपात के अधीन अस्थायी समायोजन और कृषि ऋण माफी और ऋण राहत योजना की पहली किश्त के माध्यम से कुल चलनिधि सहायता 1,85,000 करोड़ रु. थी। अंतर-बैंक मांग मुद्रा बाज़ार में, दरें 10 प्रति शत के स्तर से कम होकर एलएएफ रिवर्स रेपो दर के निकट के दायरे में आ गई हैं। मांग मुद्रा टर्नओवर में लगातार सुधार हुआ है जो एकदिवसीय बाजारों में किए गए लेनदेनों का एक तिहाई है। एलएएफ विंडो में 1 अक्तूबर, 2008 को 91,720 करोड़ रुपये की निवल राशि डालने के स्थान पर 22 अक्तूबर, 2008 को रिवर्स रेपो से 27,745 करोड़ रुपये की निवल राशि खपाने की स्थिति आ गई। सरकारी प्रतिभूति बाजार में आय चलनिधि परिस्थितियों में सुधार में दिखलाई देती है और बेंचमार्क 10-वर्षीय आय 3 अक्तूबर 2008 के 8.30 प्रतिशत से कम होकर 22 अक्तूबर, 2008 को 7.58 प्रतिशत हो गई। इसके अतिरिक्त, आशा है कि 20 अक्तूबर 2008 को रेपो दर में की गई कमी से मुद्रा और ऋण बाजारों की बाधाओं में सहजता आएगी, उनका सुचारु कार्य फिर से कायम होगा और वित्तीय स्थिरता बनी रहेगी।

104. मौद्रिक प्रबंधन का कार्य हमेशा से ही मूल्य स्थिरता, विकास की गति बनाए रखने और वित्तीय स्थिरता के बीच तर्कसंगत संतुलन बनाए रखने पर केंद्रित रहा है। अन्तर्निहित समष्टि-आर्थिक परिस्थितियों के आधार पर समय-समय पर इन उद्देश्यों के बीच सापेक्ष जोर बदलता रहा है। विवेकपूर्ण विनिमायक निगरानी और प्रभावकारी पर्यवेक्षण से यह सुनिश्चित हुआ है कि हमारा वित्तीय क्षेत्र मजबूत रहा है और अब भी निरंतर मजबूत है। लेकिन, वैश्विक वित्तीय उथल-पुथल ने वित्तीय स्थिरता बनाए रखने पर विशेष जोर देने के महत्व को रेखांकित किया है। लेकिन, मुद्रास्फीति, जो अब भी दो अंकों में है, और वृद्धि में कमी चिंता के विषय हैं। परिणामस्वरूप, मौद्रिक नीति के संचालन का केंद्रीय कार्य अब पहले की अपेक्षा और जटिल हो गया है और वित्तीय स्थिरता को अधिकाधिक प्राथमिकता दी जा रही है। इसलिए, अब चुनौती यह है कि वित्तीय स्थिरता बनाए रखने, मूल्य स्थिरता बनाए रखने, स्फीतिकारी प्रत्याशाओं पर नियंत्रण लगाने, और विकास की गति बनाए रखने के बीच इष्टतम संतुलन बनाये रखे जाए। इस चुनौती का सामना करने के लिए रिज़र्व बैंक ने परंपरागत ओर रूढ़िमुक्त उपाय किए हैं और करता भी रहेगा।

105. जुलाई 2008 की पहली तिमाही समीक्षा में नीतिगत प्रयोजनों के लिए 2008-09 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 8.0 प्रतिशत पर रहने की संभावना व्यक्त की गई है। उसके बाद से, कई ऐसी महत्वपूर्ण वैश्विक और देशी गतिविधियां हुई हैं जिनके कारण दृष्टिकोण अनिश्चित हो गया है, और संभावना में कमी के साथ जुड़े जोखिम में वृद्धि हुई हैं। विशेष रूप से, वैश्विक मंदी और अधिक गहन हो सकती है और पहले के अनुमान की तुलना में कहीं ज्यादा समय तक चल सकती है। परिणामस्वरूप, विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए, जिसमें भारत भी शामिल है, व्यापार और वित्तीय चैनलों के जरिये प्रतिकूल प्रभाव बढ़ गए हैं। यदि मंदी और अधिक गहन रहती है और सुधार होने में समय लगता है, जैसा कि इस समय अनुमान है, तो विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को व्यापार हानियों, निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता में कमी और सीमित बाह्य वित्तपोषण के रूप में दूसरे दौर के प्रभाव झेलने होंगे। इन प्रतिकूल गतिविधियों के साथ-साथ 2008-09 की पहली छमाही में औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में वृद्धि में कमी भी होने की संभावना है। दक्षिण-पश्चिमी मानसून और जल भंडारण स्तरों से 2008-09 में कृषि में मध्यावधि प्रवृत्ति कीं वृद्धि दर बरकरार रहने की संभावना है। इन गतिविधियों और संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए, रिज़र्व बैंक ने 2008-09 में समग्र वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद के 7.5-8.0 प्रतिशत के बीच बने रहने का संशोधित अनुमान व्यक्त किया है।

106. यह प्रतीत हो रहा है कि वैश्विक तौर पर कच्चे तेल सहित पण्यों की कीमतों से प्राप्त हो रहे दबावों में कमी आ रही है यद्यपि वे बढ़े हुए स्तरों पर लगातार विद्यमान हैं घरेलू तौर पर खाद्य वस्तुओं की कीमतें कम हो रही हैं और दक्षिण-पश्चिम मानसून के लाभकारी प्रभावों से आगामी महीनों में स्थिति को और अनुकूल बनाना संभव होना चाहिए। कुछ विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों में कुछ नरमी होने के आरंभिक संकेत भी मिल रहे हैं । परिणामस्वरूप, खाद्य वस्तुओं और ईंधन की श्रेणी को छोड़कर थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) मुद्रास्फीति कुछ स्थिरता दर्शा रही है यद्यपि यह उच्च स्तरों पर है । इसके अलावा, हाल के सप्ताहों में लगभग 70 अमेरिकी डॉलरों तक कच्चे तेल के भारतीय समूह (बैस्केट) की कीमत में गिरावट आनेवाले समय में नियंत्रित मूल्यों में ऊर्ध्वमुखी संशोधनों की संभावना को कम कर दिया है ।यदि प्रमुख वैश्विक पण्य मूल्यों में कमी बनी रहती है, तो वर्तमान स्तरों पर मुद्रास्फीतिगत दबावों में कमी के लिए इसका अंशदान होगा। दूसरी ओर कृषि और ग्रामीण श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति लगभग एक दशक में पहली बार अगस्त और सितंबर में दो अंकों तक बढ़ गई है। थोक मूल्य खंड में भी खाद्येतर वस्तुओं - मुख्य रूप से कपास, खाद्य तेल और धातुएँ - से मुद्रास्फीतिगत दबाव अभी प्रतिलाभकारी नहीं हैं; दरअसल हाल के सप्ताहों में कुछ स्थिरीकरण रहा है। यह संभव है कि यदि वैश्विक मंदी अनुमान से अधिक तीव्र होती तो ये कीमतें भी अधिक नरम होंगी। कुल मिलाकर यह रिज़र्व बैंक का मूल्यांकन है कि मुद्रास्फीति लगातार एक चिंता बनी रहेगी और हमारी मुद्रास्फीति पर निगरानी के मामले में किसी भि तरह की चूक नहीं होनी चाहिए।

107. जुलाई 2008 की पहली तिमाही समीक्षा में इस बात पर ध्यान दिया गया कि वैश्विक आपूर्ति के दबावों से अंशत: आरंभ हुई मुद्रास्फीति का यह दौर और पिछले साल से चली आ रही मुद्रास्फीति आनुपातिक तौर पर किसी भी अन्य देश से अलग नहीं है। फिर भी, दो अंकों में मुद्रास्फीति हमारी सहनशीलता के स्तरों से बिलकुल ऊपर है तथा स्पष्ट रूप से अस्वीकार्य है। जैसा कि पिछली नीतिगत समीक्षाओं में दर्शाया गया है, रिज़र्व बैंक का यह प्रयास रहेगा कि मध्यावधि में लगभग 3.0 प्रतिशत की वैश्विक औसत मुद्रास्फीति के साथ अभिमुखीकरण का लक्ष्य रखते हुए शीघ्रातिशीघ्र 5 प्रतिशत के नीचे के सहनीय स्तर तक मुद्रास्फीति को नीचे लाया जाए। सरकार द्वारा किये गये आपूर्ति प्रबंध उपायों और पिछले एक वर्ष में रिज़र्व बैंक द्वारा किये गये मौद्रिक नीतिगत उपायों के प्रति पिछड़ी हुई माँग संबंधी प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए मार्च 2009 के अंत तक 7.0 प्रतिशत की मुद्रास्फीति का पहले का अनुमान युक्तियुक्त प्रतीत होता है। अत: यह निर्णय किया गया है कि नीतिगत प्रयोजनों के लिए इस अनुमान को बनाये रखा जाए।

108. आगे बढ़ते हुए, रिज़र्व बैंक का नीतिगत प्रयास यह रहेगा कि 2005-06 से मुद्रा आपूर्ति के निरंतर विस्तार द्वारा उत्पन्न मौद्रिक आधिक्य को नियंत्रित किया जाए। यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है क मुद्रास्फीतिगत दबावों में ईंधन न डाला जाए तथा मौद्रिक नीति का वर्तमान रुख विस्तारक मौद्रिक स्थितियों द्वारा क्षीण न कर दिया जाए। तदनुसार, जैसा कि पहली तिमाही समीक्षा में बताया गया है, यह आवश्यक है कि 2008-09 में 17 प्रतिशत तक मुद्रा आपूर्ति की दर को कम किया जाए। इससे 2008-09 में कुल जमाराशियों में 17.5 प्रतिशत तक वृद्धि तथा सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों और निजी कंपनी क्षेत्र के बांडों/डिबेंचरों/शेयरों और वाणिज्यिक पत्रों (सीपी) ंमें निवेशों सहित खाद्येतर ऋण की लगभग 20 प्रतिशत तक वृद्धि करने की अपेक्षा पूरी होती है। तथापि, 2008-09 की दूसरी छमाही में केंद्र सरकार की बढ़ाई गई उधार की आवश्यकता इन अनुमानों को कार्यान्वित करने के प्रति एक ऊर्ध्वमुखी जोखिम है तथा मौद्रिक नीति के संचालन के लिए इसके निहितार्थ होंगे। इससे पता चलता है कि वर्ष 2008-09 में, कुल जमाराशियों में 17.5 प्रतिशत वृद्धि की आवश्यकता होगी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी कंपनी क्षेत्र के बांडों/ डिबेंचरों/शेयरों और वाणिज्यिक पत्रों में किये गये निवेश सहित खाद्येतर ऋणों में लगभग 20 प्रतिशत वृद्धि होगी। तथापि, वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही में केंद्रीय सरकार की ऋण आवश्यकता बढ़ने से इन अपेक्षाओं को प्राप्त करने में एक स्पष्ट जोखिम है और मौद्रिक नीति के संचालन पर इसका प्रभाव पड़ेगा।

109. 10 अक्तूबर 2008 की स्थिति के अनुसार वर्ष-दर-वर्ष आधार पर खाद्येतर ऋणों में 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह वर्ष 2008-09 के लिये लगाये गये 20 प्रतिशत के अनुमानों से कहीं अधिक है। ऋण वृद्धि की अधिक दर मुख्यत: घरेलू ऋण की अतिरिक्त मांग के कारण हो सकती है क्योंकि बाह्य ऋणों तक पहुंच बनाने में बाधायें आई हैं जिनका पूर्व में उल्लेख किया गया है। यहां तक कि, इस प्रकार की तीव्र ऋण वृद्धि चिंता का कारण है और इस पर गहन निगरानी और निरंतर सुधारात्मक उपाय करना आवश्यक होगा। ऋण की व्यवस्था करने के साथ ही इसकी गुणवत्ता बनाये रखना हमेशा हमारा मुख्य ध्येय रहा है, परंतु वैश्विक वित्तीय संकट ने तीव्र और अनियंत्रित ऋण विस्तार के जोखिमों को और अधिक मजबूती प्रदान की है और इसके परिणामस्वरूप, वित्तीय स्थिरता पर प्रणालीगत जोखिम उत्पन्न हो सकता है। बैंकों को उत्पादकता उद्देश्यों के लिये ऋण देना जारी रखना चाहिये और विशेष रूप से अपने सामान्य वाणिज्यिक निर्णय के अनुरूप स्वीकृत सीमाओं तक उन्हें निकासी की अनुमति देनी चाहिये। बैंकों को योग्यता के आधार पर छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों के बकायों के पुन: निर्धारण पर भी विचार करना चाहिये। इसी के साथ-साथ उन्हें ऋण की गुणवत्ता बनाये रखने पर भी ध्यान देना होगा। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये बैंकों को क्षेत्रगत आधार पर कड़े ऋण मूल्यांकन पर ध्यान देना चाहिये, मूल्य-अनुपात की तुलना में ऋण की निगरानी करनी चाहिये और आस्ति-देयता अनुमानों के अनुरूप अपने ऋण पोर्टफोलियों की जांच करनी चाहिये। रिज़र्व बैंक ऋण वृद्धि की दर और ऋण गुणवत्ता की निकट से निगरानी करेगा और आवश्यकता होने पर मानदंडों में ढील देनेवाले कुछ चयनित बैंकों के साथ कार्रवाई करेगा।

110. अत्यधिक अस्थिर अंतर्राष्ट्रीय वातावरण में, भारत का भुगतान संतुलन लगातार सुदृढ़ता और लचीलापन दर्शाता रहा है। वर्ष 2008-09 की दूसरी तिमाही में निर्यात में पुन: वृद्धि प्रारंभ होना एक अच्छा घटक है। इसके अलावा हाल ही के सप्ताहों में अंतर्राष्ट्रीय क्रूड तेल के मूल्यों में आई महत्वपूर्ण कमी से वर्तमान वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में व्यापार घाटे के सहनीय होने की संभावना है। तथापि, अंतर्राष्ट्रीय क्रूड तेल के मूल्यों की अस्थिरता के चलते निरंतर निगरानी करने की आवश्यकता है। पूंजी खाते में, विदेशी संस्थागत निवेश के रूप में आने वाला निरंतर अंतर्वाह और अनिवासी भारतीयों द्वारा किए गये आंतरिक प्रवाह ने पोर्टफोलियों निवेश के तहत बहिर्वाह के प्रभाव को काफी हद तक कम कर दिया है। समग्र रूप से 2008-09 में चालू खाते का घाटा पिछले वर्ष की तुलना में कुछ अधिक हो सकता है परंतु यह भी संभावना है कि निवल पूंजी प्रवाह 2008-09 में बाह्य वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा कर लेगा।

111. वैश्विक वित्तीय स्थिति में अनिश्चितता के चलते घरेलू वित्तीय स्थिरता की निगरानी और रखरखाव के लिये लगातार ध्यान देने की जरूरत है। हमारी वित्तीय प्रणाली के कुछ सकारात्मक पहलू हैं। कार्पोरेट तुलन पत्र अच्छी स्थिति में हैं और नियंत्रण स्तर सामान्य सीमा के भीतर हैं। कार्पोरेट क्षेत्र का ऋण भार भी ऐतिहासिक मानकों की दृष्टि से कम है। नकारात्मक पहलू में, वित्तीय प्रणाली की गहरी श्रृंखलाओं में कहीं से भी नकदी पर दबाव का असर पड़ सकता है। यह असुरक्षा का एक स्रोत हो सकता है। वित्तीय बाज़ारों में दबाव का निर्माण रोकने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक संपूर्ण वित्तीय प्रण्ांली पर निकट से निगरानी करेगा। इसमें दबाव के बने रहने पर नकदी बढ़ाना शामिल होगा। इसका अर्थ यह है कि यदि हाल में किये गये नकदी उपायों के कारण यह पता चलता है कि अधिक नकदी का प्रवाह हो गया है और यह मुद्रास्फीति के दबाव को बढ़ा रहा है तो नकदी के प्रवाह को रोकना भी होगा।

112. वैश्विक वित्तीय संकट के प्रबंधन ने दो महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया है। पहला यह संकल्प कि इस प्रकार के स्तर के और दुरुह संकट के लिये आवश्यक है नियम पुस्तक से बाहर जाकर गैर पारंपरिक उदार और शीघ्र नीतिगत कार्रवाई करना। दूसरा यह कि सरकार और नियामक एजेसियों के बीच एक निकट समन्वय की आवश्यकता हैं और यह भी आवश्यक है कि संस्थागत अखंडता और स्वायतत्ता का भी ह्रास न हों। ये घटक महत्वपूर्ण भी है और भारत के लिये संगत भी हैं। भारत के पास ऐसा संस्थागत प्रबंधन है जो ठीक प्रकार कार्य कर रहा है और यह अंतर-नियामक एजेंसी समन्वय के लिये औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार से प्रभावी है। ये समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। इसी प्रकार इन प्रबंधों को आगे और परिष्कृत और सुदृढ़ बनाने के लिये लगातार प्रयास करने की आवश्यकता है।

113. वैश्विक वित्तीय स्थिति, जिसे द ग्रेट डिप्रेशन के बाद सबसे गंभीर बताया जा रहा है, अभी भी अनिश्चित और अस्थिर है। इस संकट की प्रकृति और गहराई, इसके स्वरूप और इसकी समयावधि के विषय में लगातार चिंतायें व्यक्त की जा रही है ताकि अब तक घोषित किए गये नीतिगत उपायों की प्रतिक्रिया और इसकी परिधि का अनुभव लगाया जा सके। इसके अलावा, इस वित्तीय संकट की मंदी का प्रभाव एक विशिष्ट वैश्विक प्रगति में गिरावट के साथ संबद्ध है। वित्तीय समेकन की गहराई और प्रभाव से स्पष्ट है कि यह अस्थिरता संकट के केंद्र के बाहर भी अपना विस्तार कर रही है। भारत भी इन वैश्विक घटनाओं से अछूता नहीं रह सकता है। पहले से ही मौजूद घरेलू दबावों के ऊपर आने वाला यह बाह्य दबाव, मौद्रिक प्रबंधन के लिये दुरुह चुनौतियां पेश कर रहा है। रिज़र्व बैंक का यह प्रयास है कि वह अत्यधिक सक्रिय रहे और उसने तेजी से होनेवाले बदलाओं का प्रबंधन करने के लिये उपाय किये हैं और वैश्विक संकट से उठने वाले दबावों को कम किया है। निष्कर्षत:, रिज़र्व बैंक अपने उस विश्वास को कि वह स्थिति का प्रबंधन कर सकता है और भारत पर अभी आने वाले वैश्विक संकट के दुष्प्रभाव को न्यूनतम कर सकता है, को दोहराता है। हमारी वित्तीय प्रणाली बहुत मजबूत और स्वस्थ है और हमारे आर्थिक सिद्धान्त सुदृढ़ हैं। एक बार वैश्विक स्थिति काबू में आ जाने और शांत हो जाने के बाद तथा भरोसा कायम हो जाने के बाद हम अपनी उच्च संवृद्धि के उड़ान पथ पर अग्रसर हो जाएंगे।

114. समष्टि आर्थिक स्थिति के उक्त संपूर्ण मूल्यांकन के आधार पर, वर्ष 2008-09 के लिए मौद्रिक नीति का दृष्टिकोण निम्नवत होगा:

  • मौद्रिक एवं ब्याज दर का एक ऐसा वातावरण सुनिश्चित करना जो वित्तीय स्थिरता, मूल्य स्थिरता तथा पर्याप्त रूप से नियंत्रित मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं और वृद्धि के उद्देश्यों को इष्टतम रूप से संतुलित कर सके;
  • सीआरआर, खुला बाजार परिचालनों (ओएमओ), एमएसएस तथा एलएएफ सहित सभी लिखतों के समुचित उपयोग के माध्यम से नकदी के सक्रिय मांग प्रबंधन की नीति जारी रखना ताकि वित्तीय बाजारों की स्थिति सुव्यवस्थित बनाई रखी जा सके;
  • अनिश्चित वैश्विक स्थिति और सामान्य रूप से घरेलू अर्थव्यवस्था तथा विशेष रूप से वित्तीय बाजारों पर उसके परोक्ष प्रभाव के संदर्भ में स्थिति की बारीकी से तथा लगातार निगरानी करना और पारंपरिक एवं गैर-पारंपरिक उपायों का इस्तेमाल करते हुए घटनाओं के प्रति तेजी से और प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करना;
  • वित्तीय समावेशन की दिशा में प्रयास करते हुए विशेष रूप से रोजगार केंद्रित क्षेत्रों के लिए ऋण की गुणवत्ता एवं ऋण प्रदान करने पर जोर देना।

III. मौद्रिक उपाय

(क) बैंक दर

115. बैंक दर को 6.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया है।

(ख) रिपो दर/रिवर्स रिपो दर

116. चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रिपो दर को 8.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया है।

117. चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रिवर्स रिपो दर को 6.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया है।

118. रिज़र्व बैंक परिस्थितियों की मांग के अनुसार नियत दर या परिवर्तनीय दरों पर रिपो/रिवर्स रिपो नीलामियां आयोजित कर सकता है।

119. रिज़र्व बैंक के पास बाजार की स्थितियों और अन्य संबंधित घटकों की मांग को ध्यान में रखते हुए चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत एक दिवसीय या इससे अधिक अवधि के रिपो/रिवर्स रिपो आयोजित करने का विकल्प है। रिज़र्व बैंक दैनंदिन चलनिधि के कुशल प्रबंधन के लिए चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत प्राप्त टेंडर/ टेंडरों को पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से स्वीकृत करने या अस्वीकृत करने के अपने अधिकार का उपयोग जारी रखेगा।

(ग) आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर)

120. वर्तमान में अनुसूचित बैंकों का आरक्षित नकदी निधि अनुपात उनकी निवल मांग एवं मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) का 6.5 प्रतिशत है। वर्तमान चलनिधि स्थिति की समीक्षा करने पर यह निर्णय लिया गया है कि आरक्षित नकदी निधि अनुपात को निवल मांग एवं मीयादी देयताओं के 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा जाए।

तीसरी तिमाही समीक्षा

121. मौद्रिक नीति पर वार्षिक नीति वक्तव्य की तीसरी तिमाही समीक्षा 27 जनवरी 2009 को की जाएगी।

भाग - आ - वर्ष 2008-09 के लिए

विकासात्मक और विनियामक नीतियों से संबंधित
वार्षिक वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा

122. अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में वर्ष 2008-09 के लिए विकास तथा विनियामक नीतियों का निर्धारण किया गया था जिसमें सुदृढ़, सक्षम तथा स्पंदनशील वित्तीय प्रणाली पर जोर दिया था जिससे समाज के अधिकांश वर्गों को प्रभावी वित्तीय सेवाएं प्राप्त हो सकें। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संकट का मुकाबला करने के लिए नीतिगत परिप्रेक्ष्य की दृष्टि से वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने तथा उसे बनाए रखने को प्राथमिकता प्रदान की गई। इसमें प्रतिकूल अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों से वित्तीय स्थिरता को होने वाली जोखिमों से बचने के लिए तात्कालिक उपाय करना, परम्परागत एवं गैर-परम्परागत दोनों, शामिल थे। उक्त वर्ष के लिए विकासात्मक तथा विनियामक नीतियों के उद्देश्य में ऋण गुणवत्ता, ऋण वितरण तथा वित्तीय समावेशन के साथ-साथ विश्वसनीय संचार, पर्याप्त तथा समय पर सूचना की उपलब्धता एवं सभी हितधारकों को शामिल करते हुए विस्तृत, सहभागितापूर्ण तथा परामर्शी दृष्टिकोण पर जोर दिया गया।

123. जैसा कि वार्षिक नीति वक्तव्य में कहा गया और जुलाई 2008 की पहली तिमाही समीक्षा में दोहराया गया कि हाल ही की वैश्विक वित्तीय गतिविधियां वित्तीय क्षेत्र व्यावसायिक रणनीतियों, पूंजीगत अपेक्षाओं, जोखिम मूल्य निर्धारण तथा प्रबंध साधन, पारदर्शिता के लिए गंभीर जटिलताएं पैदा कर सकती हैं, तथा हाल ही के समय में हुए स्पष्ट परिवर्तनों से चलनिधि तथा समान्यीकृत अनिश्चितता की स्थिति में दिवालियेपन के तनाव के बीच वर्जनाएं धूमिल हुई हैं तथा वित्तीय संस्थाओं के बीच विश्वसनीयता में कमी आई है। इस वातावरण में, भारत के बैंकों को अपने क्रेडिट पोर्टफोलियों को बैंक ऋण में उच्च वृद्धि को ध्यान में रखते हुए प्रणाली स्तर पर निगरानी करनी चाहिए तथा अनावश्यक आस्ति-देयता असमानताओं तथा ऋण गुणवत्ता में गिरावट को रोकने के लिए उचित सुधारात्मक उपाय करने चाहिए तथा व्यवसाय चक्र तथा प्रति चक्रीय मौद्रिक नीति उपायों की वास्तविकता का निर्धारण करना चाहिए। वैश्विक गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक ने तात्कालिक, आत्मरक्षक उपाय तथा गैर परम्परागत उपाय भी किए हैं, विशेष रूप से देशी वित्तीय बाज़ारों के चलनिधि दबाव को कम करने के लिए किए गए उपाय जो कि सितंबर और अक्तूबर 2008 में किए गए नीतिगत उपाय में दर्शाए गए हैं और इस समीक्षा के भाग-अ में उनका उल्लेख किया गया है।

124. वर्ष 2008-09 में अब तक रिज़र्व बैंक ने वित्तीय बाज़ारों के विकास तथा लिखतों, ऋण वितरण प्रणाली, विशेष रूप से कमज़ोर वर्ग, प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र तथा संभाव्य अर्थक्षम रुग्ण, लघु तथा मझौले उद्यम (एस एम ई) इकाइयों तथा वित्तीय समावेशन के लिए विभिन्न उपाय किए हैं। साथ-साथ विवेकपूर्ण मानदंडों को सुदृढ़ करने के लिए उपाय किए गए हैं तथा अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम पद्धतियों की ओर अग्रसर होते हुए देश विशेष की अपेक्षाओं पर जोर देते हुए बासल II के लिए थ्री ट्रेक दृष्टिकोण अपनाया गया है।

125. आगे आने वाले समय में कीमत तथा वित्तीय स्थिरता की जिम्मेदारी के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाते हुए रिज़र्व बैंक की विकासात्मक तथा विनियामक नीतियां जारी रहेंगी। रिज़र्व बैंक वित्तीय क्षेत्र में गहरे और विस्तारात्मक सुधार करने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि सक्षम तथा प्रतियोगात्मक वित्तीय मध्यस्थता विकसित हो और संपदा क्षेत्र के उद्देश्यों की पूर्ति हो ताकि स्थिरता के साथ निरंतर विकास सुनिश्चित किया जा सके। वित्तीय शिक्षा के प्रसार, शीघ्र तथा पहुंच योग्य वित्तीय सेवाओं के प्रावधान के माध्यम से समग्र विकास के लिए हितधारकों की सहभागिता और उनके साथ विचार विमर्श की प्रक्रिया को और तेज किया जाएगा ताकि आम आदमी की आवश्यकताओं की ओर ध्यान देने के लिए एक पद्धति विकसित की जा सके।

126. विकासात्मक तथा विनियामक नीतियां संबंधी वार्षिक वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा में कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाता है : वित्तीय बाज़ारों के विभिन्न घटकों के विकास को आगे जारी रखना तथा वित्तीय बाज़ार संरचना को सुदृढ़ करना; विदेशी मुद्रा लेन-देनों में और उदारीकरण लाना; अनिवासी भारतीय (एन आर आइ) जमाराशियों पर दी जानेवाली ब्याज दर में छूट प्रदान करना; सीमा पार पर्यवेक्षण की दृष्टि से पर्यवेक्षात्मक ढांचे का सुदृढ़ीकरण; जोखिम आधारित पर्यवेक्षण तथा बैंक-लेड समूह; ऑफ साइट निगरानी प्रणाली तथा बैंकों के ऋण पोर्टफोलियों पर निगरानी में वृद्धि; वित्तीय नवोन्मेषों को ध्यान में रखते हुए भुगतान तथा निपटान प्रणालियों से संबंधित लिखितें तथा ढांचा विकसित करना; विकसित ऋण वितरण प्रक्रिया तथा वित्तीय समावेशन के लिए शहरी सहकारी बैंकों (यू सी बी) तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आर आर बी) को सुदृढ़ करना।

127. यह भाग पांच अनुभागों में विभाजित हैं - I ब्याज दर नीति; II वित्तीय बाज़ार; III ऋण वितरण प्रक्रिया तथा अन्य बैंकिंग सेवाएं; IV विवेकपूर्ण उपाय तथा V संस्थागत विकास।

I. ब्याज दर नीति

एफ सी एन आर (बी) तथा एन आर (ई) आर ए जमाराशियों पर ब्याज दर

128. हाल ही में हुई वैश्विक गतिविधियों तथा अस्थायी स्थानीय कारकों ने देशी मुद्रा तथा विदेशी मुद्रा बाज़ारों पर कुल दबाव डाला है। इसके कारण रिज़र्व बैंक द्वारा 16 सितंबर 2008 को कारोबार की समाप्ति से एफ सी एन आर (बी) जमाराशियों पर ब्याज दर की उच्चतम सीमा में 50 आधार अंकों की वृद्धि की गई अर्थात् लिबोर / स्वैप दर में से 25 आधार अंक घटा कर तथा एन आर (ई) आर ए जमाओं पर उच्चतम ब्याज दर सीमा में 50 आधार अंक की वृद्धि की गई अर्थात् लिबोर/स्वैप दर में 50 आधार अंक जोड़ें। यह उच्चतम सीमाएं 15 अक्तूबर 2008 के कारोबार की समाप्ति से प्रत्येक के लिए क्रमश: 50 आधार अंक की और वृद्धि की गई अर्थात् लिबोर/स्वैप दर में 25 आधार अंक जोड़ें तथा लिबोर/स्वैप दर में 100 आधार अंक जोड़ें।

 

II. वित्तीय बाजार

मुद्रा बाजार

(क) विशेष बाज़ार कार्यकलाप

129. वित्तीय बाजारों के लिए संभाव्य प्रतिकूल परिणामों को कम करने तथा चलनिधि की दृष्टि से समग्र रूप से वित्तीय स्थिरता लाने तथा अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के मूल्यों में अभूतपूर्व वृद्धि से उत्पन्न अन्य मुद्दों को ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक ने 30 मई 2008 को तदर्थ और अस्थाई आधार पर विशेष बाज़ार कार्यकलापों की घोषणा की। विशेष बाज़ार कार्यकलापों के अंतर्गत रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित बैंकों के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों द्वारा उनके खाते में धारित तेल बांडों में सेकेण्डरी बाज़ार में खुले बाज़ार के सौदे किए जाते थे। इसके लिए किसी एक दिन में 1,500 करोड़ रुपए की समग्र उच्चतम सीमा निर्धारित थी तथा तेल कंपनियों को बैंकों के माध्यम से बाज़ार विनिमय दरों पर निर्धारित समतुल्य विदेशी मुद्रा प्रदान की जाती थी। अनिश्चित वैश्विक स्थिति जारी रहने तथा देशी, वित्तीय बाज़ारों के लिए संभाव्य प्रतिकूल अड़चनों को ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक द्वारा विशेष बाज़ार कार्यकलाप 8 अगस्त 2008 से बंद कर दिए। रिज़र्व बैंक ने 15अक्तूबर 2008 को घोषणा कि यह निश्चय किया गया है कि इसी प्रकार की सुविधा तेल बांड उपलब्ध होने पर पुन: शुरू की जाएगी।

(ख) द्वितीय चलनिधि समायोजन सुविधा

130. रिज़र्व बैंक रिपो/रिवर्स रिपो की दैनिक नीलामियों के माध्यम से चलनिधि प्रदान करने/वापस लेने के लिए चलनिधि समायोजन सुविधा (एल ए एफ) परिचालित करता है। यह कार्यकलाप पूर्वाहन 9.30 बजे से पूर्वाहन 10.30 बजे तक आयोजित किए जाते हैं। अनुरक्षण अवधि के अंतिम दिन को बैंक रिजर्व का प्रबंधन बेहतर ढंग से करने के लिए बाज़ार सहभागियों से प्राप्त सुझावों के प्रत्युत्तर में 1 अगस्त 2008 से द्वितीय चलनिधि समायोजन सुविधा (एस एल ए एफ) शुरू की गई जो रिपोर्टिंग शुक्रवारों को 4.00 अपराहन से 4.30 अपराहन तक आयोजित की जाती है। हाल ही में हुए असाधारण वैश्विक गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए 17 सितंबर 2008 से एस एल ए एफ दैनिक आधार पर की जाती है।

131. अनिश्चितता जारी रहने तथा वित्तीय बाज़ारों पर इसके अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ने को ध्यान में रखते हुए, रिज़र्व बैंक ने म्युच्युल फंडों की चलनिधि अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए बैंकों को सक्षम बनाने की दृष्टि से 14 अक्तूबर 2008 को 20,000 करोड़ रुपए की अधिसूचित राशि के लिए विशेष 14 दिवसीय रिपो आयोजित करने का निश्चय किया। चूंकि 14 अक्तूबर 2008 से केवल 3,500 करोड़ रुपए ही उपयोग में लाए गए थे, इस 14- दिवसीय रिपो सुविधा आगे विस्तारित करके 20,000 करोड़ रुपए की संचयी राशि का पूरा उपयोग होने तक प्रत्येक दिन आयोजित करने का निर्णय किया गया। आगे यह निश्चय किया गया कि विशुद्ध रूप से अस्थायी उपाय के रूप में बैंक विशेष रूप से म्युच्युल फंडों की चलनिधि अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने एन डी टी एल की 0.5 प्रतिशत सीमा तक अतिरिक्त चलनिधि सहायता प्राप्त कर सकते हैं। यह सुविधा 16 सितंबर 2008 को अस्थायी उपाय के रूप में घोषित सुविधा जिसके अंतर्गत बैंक अपने एन डी टी एल की 1 प्रतिशत सीमा तक अतिरिक्त चलनिधि सहायता ले सकते हैं, के अलावा प्रदान की गई। इसके अलावा रिज़र्व बैंक द्वारा 14 अक्तूबर 2008 से म्युचुअल फंडों द्वारा धारित निवल जमा प्रमाणपत्रों (सी डी) मामले में उधार देने तथा वापस खरीदने के प्रतिबंध में छूट प्रदान कर दी गई है।

सरकारी प्रतिभूति बाज़ार

(क) केंद्र सरकार की प्रतिभूतियां

(i) फ्लोटिंग दर बांड : एन डी एस नीलामी फार्मेट का विकास

132. अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में निर्दिष्ट किया गया था कि क्लीयरिडग कोरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (सी सी आइ एल) दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों के लिए प्राइमरी नीलामी माड्यूल विकसित कर रहा है, जिसमें फ्लोटिंग रेट बांड (एफ आर बी) सहित सभी प्रकार के लिखित समाहित किए जाएंगे। नेगोसियेटेड डीलिंग सिस्टम (एन डी एस) नीलामी मॉड्यूल (वर्सन 2) में शामिल किया गया जारी करने का नया ढांचा सी सी आइ एल द्वारा विकसित किया जा रहा है। मौजूदा बाज़ार हालातों को ध्यान में रखते हुए एफ आर बी उचित समय पर जारी किए जाएंगे।

(ii) भारत सरकार की प्रतिभूतियों की नीलामी प्रक्रिया

133. जैसा कि 2008-09 के वार्षिक नीति वक्तव्य में घोषित किया गया है, नीलामी प्रक्रिया संबंधी आंतरिक कार्यकारी दल (अध्यक्ष : श्री एच.आर. खान) की सिफारिशें अनुपालन की प्रक्रिया में हैं। इस दल की मुख्य सिफारिशों में बिड प्रस्तुत करने तथा नीलामी परिणामों की घोषणा के बीच के समय अंतराल को कम करना, फिजिकल फार्म में बिडिंग सुविधा को वापस लेना तथा केवल एन डी एस के माध्यम से ही स्पर्धात्मक बिड प्रस्तुत करना शामिल है। प्रथम चरण में समय अंतराल में कमी करने से संबंधित सिफारिशों और वास्तविक नीलामी बोलियों को वापस लेने की संस्तुतियों को लागू किया जा रहा है। नीलामी-बोलियों में सुरक्षित वेब-आधारित प्रणाली के माध्यम से एनडीएस से इतर सदस्यों की सीधी सहभागिता जैसी कुछ सिफारिशों पर विचार किया जा रहा है।

(iii) बचत बांडों के लिए सांपार्श्विक सुविधा देना

134. भारत सरकार ने 19 अगस्त 2008 को 7 प्रतिशत वाले बचत बांड, 2002, 6.5 प्रतिशत वाले बचत बांड 2003 (टैक्स रहित), और 8 प्रतिशत वाले बचत बांड 2003 (कर-योग्य) स्कीमों की अधिसूचनाओं में संशोधन किया और सरकारी प्रतिभूति अधिनियम 2006 की धारा 28 के उपबंधों और सरकारी प्रतिभूति विनियम, 2007 के विनियम 21 और 22 के अनुसार अब अनुसूचित बैंकों से ऋण लेने के लिए सांपार्श्विक जमानत के रूप में इन बांडों को गिरवी या दृष्टिबंधक या प्रत्याधिकार के रूप में रखा जा सकता है। इन संशोधनों के हो जाने से अब धारकों द्वारा इन लिखतों को गिरवी रखकर ऋण लिया जा सकेगा, इस प्रकार इन लिखतों का नकदीकरण संभव हुआ है।

(ख) राज्य सरकारों के लिए देनदारी प्रबंधन

राज्य विकास ऋणों की नीलामी में अप्रतिस्पर्धी बोली लगाने की योजना

135. निवेशक आधार का प्रसार करने और राज्य विकास ऋणों के नकदीकरण को बढ़ाने की दृष्टि से राज्य सरकारों द्वारा अ-प्रतिस्पर्धी नीलामी-बोली सुविधा की योजना का अनुमोदन किया गया है। तदनुसार, राज्य सरकारों द्वारा राज्य विकास ऋणों के निर्गम से संबंधित सामान्य अधिसूचना में संशोधन किया गया है। इस योजना को लागू करने में सुविधा के लिए सीसीआइएल द्वारा एनडीएस ऑक्शन मॉड्यूल (संस्करण-2) तैयार किया जा रहा है। इस नए संस्करण-2 का समानांतर परिचालन शीघ्र ही शुरू होगा और दिसंबर 2008 के अंत तक यह योजना प्रभावी हो जाएगी।

(ग) बाजार के लिए मूलभूत सुविधाओं का विकास

(i) ब्याज दर वायदों की शुरुआत

136. ब्याज दर वायदों पर कार्यकारी दल (अध्यक्ष : श्री वी.के.शर्मा) का गठन किया गया ताकि जून 2003 से भारत में शुरू किए गए ब्याज दर वायदा कारोबार में प्राप्त अनुभवों की समीक्षा की जा सके, जिसमें उत्पाद प्रकल्प के मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस दल की सिफारिशें को मुद्रा, विदेशी मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाजारों के लिए तकनीकी सलाहकार समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया। जनता, विशेषज्ञों, बैंकों, बाजार सहभागियों और भारत सरकार से प्राप्त फीडबैक और अभिमतों पर विचार करते हुए इस रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया गया और 8 अगस्त 2008 को इसे रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया। भारतीय रिज़र्व बैंक तथा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की स्थायी तकनीकी समिति को इन सिफारिशों को संचलन योग्य बनाने का दायित्व सौंपा गया है। तदनुसार, समिति ने विभिन्न विषयों पर कार्य शुरू कर दिया है जो कि मोटे तौर पर तीन वर्गों में आते हैं : उत्पाद डिज़ाइन और विनिदेशन मुद्दे; विदेशी मुद्रा से सम्बद्ध विषय और मार्जिन जैसे विनिदेश; और बैंकों के लिए नियमक मुद्दे। कार्यकारी दल की सिफारिशों के अनुसार बैंकों को 13 अक्तूबर 2008 से ब्याज दर वायदों में ट्रेड पोजीशन लेने की अनुमति दी गई। इससे बाजार में गहराई और नकदी बढ़ेगी। यह संभावना है कि कार्यकारी दल द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार 2009 के प्रारंभ में ब्याज दर वायदों में संविदाओं की शुरूआत हो जाएगी तथा नियामक व्यवस्था में इसके अनुरूप परिवर्तन किया जाएगा।

(ii) बहु-मॉडल निपटान

137. अप्रैल 2008 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में निपटान बैंकों के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियों में निपटान की नई प्रणाली का प्रस्ताव किया गया था ताकि एनडीएस और एनडीएस ऑर्डर मैचिंग में वे सहभागी भी सीधे ही शामिल होने की सुविधा पा सकें, जिनके पास रिज़र्व बैंक में चालू खाता नहीं है लेकिन सहायक सामान्य खाता (एसजीएल) है। तदनुसार, इस मैकेनिज्म को संचालित करने के लिए 2 जून 2008 को दिशानिदेश जारी किए गए। सरकारी प्रतिभूतियों के लिए गौण-बाजार में सौदों को 30 जून 2008 के बाद से केवल अभिनिर्धारित निपटान बैंकों (डीएसबी) के माध्यम से निपटाया जा रहा है। नये मैकेनिज्म के तहत प्राथमिक नीलामी-बोलियों के निपटान की व्यवस्था की तैयारी हो रही है।

(iii) सीएसजीएल के जरिए एनडीएस-ओएम तक पहुंच

138. अगस्त 2005 में शुरू किए गए एनडीएस-ओएम प्रखंड में पहले केवल वाणिज्य बैंकों और प्राथमिक डीलरों को अनुमति दी गई थी और बाद में एनडीएस के अन्य सदस्यों यथा बीमा कंपनियों, म्यूचुअल फंडों और बड़ी भविष्य निधियों को उनके स्वामित्वाधीन सौदों के लिए अनुमति दी गई। दायरे को बढ़ाने के लिए चरणबद्ध रीति से संघटक एसजीएल व्यवस्था के जरिए एनडीएस सदस्यों (अर्थात् बैंक और सहभागी डीलर) के साथ गिल्ट खाते रखने वाली संस्थाओं को शामिल किया गया और इस समय जमाराशि स्वीकारने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, भविष्य निधियों, पेंशन निधियों, म्यूचुअल फंडों, बीमा कंपनियों, सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, न्यासों और नियामक दृष्टि से महत्वपूर्ण जमाराशियां नहीं स्वीकारने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए उपलब्ध है। अप्रैल 2008 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में यथाप्रस्ताव अनुसार सीएसजीएल के रास्ते से एनडीएस-ओएम में अन्य निवेशकों को अभिगम दिया गया, जिनमें जमाराशियां स्वीकार नहीं करने वाली अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां, कंपनियां और विदेशी संस्थागत निवेशक शामिल हैं। ये संस्थाएं सीएसजीएल व्यवस्था का प्रयोग करते हुए एनडीएस-ओएम के माध्यम से सीधे ही एनडीएस-ओएम पर आर्डर प्रस्तुत कर सकते हैं। इस प्रकार के कारोबार एनडीएस-ओएम सदस्यों के सीएसजीएल खातों और चालू खातों के माध्यम से निपटाए जाएंगे।

(iv) ओटीसी रुपया ब्याज दर पर डेरिवेटिव्स की क्लियरिडग और निपटान

139. ओटीसी रुपया ब्याज दर व्युत्पन्नियों के लिए सीसीआइएल द्वारा रिपोर्टिंग प्लेटफार्म संचालित किया गया है, जो कि संतोषजनक रूप से कार्यरत है। इसका दैनिक औसत प्रतिलाभ वर्तमान में लगभग 14,000 करोड़ रुपये है। अप्रैल 2008 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में घोषित किया गया था कि ओटीसी रुपया ब्याज दर व्युत्पन्नियों के समाशोधन और निपटान की व्यवस्था की जाएगी। तदनुसार, सीसीआइएल को ओटीसी रुपया ब्याज दर डेरिवेटिव्स के लिए गैर-गारंटीकृत आधार पर एक समाशोधन और निपटान व्यवस्था क्रियाशील करने की अनुमति दी जा चुकी है और आशा है कि यह एक माह के भीतर प्रारंभ हो जाएगी। एक बार सॉफ्टवेयर प्रणाली स्थापित हो जाने और प्रति-पक्षीय जोखिम सम्बद्ध मुद्दों के बारे में सीसीआइएल के लिए यथाअनुमेय जोखिम भार के बारे में सूचित कर दिए जाने के बाद, सीसीआइएल तीन माह के भीतर इन उत्पादों के लिए गारंटीकृत आधार पर निपटान संचालित करेगा।

विदेशी मुद्रा बाजार

(क) विदेशी मुद्रा सौदों का उदारीकरण

140. विदेशी मुद्रा सौदों को और अधिक उदार तथा विदेशी मुद्रा सुविधाओं में सुधार करने के लिए 2008-09 के दौरान किए गए उपायों का विवरण निम्नानुसार है :

(i) विदेशों में निवेश

  • विनिर्माण/शिक्षा/अस्पताल जैसे कारोबारों में संलग्न पंजीकृत न्यासों और सोसायटियों को भारत से बाहर या पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक इकाई में निवेश करने की अनुमति दी गई, जिसके लिए निर्धारित पात्रता के अनुपालन की शर्त सहित रिज़र्व बैंक की पूर्वानुमति आवश्यक है।
  • भारतीय संस्थानों को अनुमति दी गई कि वे लेखा परीक्षित पिछले तुलन पत्र की तारीख को अपनी निवल मालियत के 400 प्रतिशत तक विदेशों में तेल क्षेत्र की अनिगमित कंपनियों में निवेश कर सकते हैं।

(ii) विदेशों से उधार

  • एक समीक्षा के आधार पर बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) नीति का संशोधन किया गया और तदनुसार 22 अक्तूबर 2008 से स्वचालित पथ से अनुमेय अंतिम प्रयोगों के लिए रुपया व्यय और/या विदेशी मुद्रा व्यय के लिए प्रत्येक वित्तीय वर्ष में प्रति उधारकर्ता ईसीबी बढ़ाकर 500 मिलियन अमरिकी डालर कर दिया गया है।
  • ऊर्जा स्पेक्ट्रम के लिए लाइसेंस/परमिट के लिए भुगतान को ईसीबी के प्रयोजन से पात्र अंतिम प्रयोग माना गया है।
  • ईसीबी उधारकर्ताओं को यह छूट भी दी गई है कि वे विदेशों में हुए उपार्जन को विदेशों में रखें या उसे प्राधिकृत डीलर वर्ग-I के भारत में स्थित बैंक के अपने रुपया खातों में अंतरित करें, जिसका अनुमेय अंतिम प्रयोगों के लिए अभी उपभोग किया जाना है।
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में नकदी की तंगहाली को देखते हुए समग्र लागत की सीमा को औचित्यपूर्ण बनाया तथा बढ़ाया गया, और तदनुसार औसतन तीन से पांच वर्ष की परिपक्वता अवधि के लिए ईसीबी की सीमा को 300 आधार अंक बढ़ा दिया गया और पांच वर्ष से अधिक की ईसीबी के लिए सीमा 500 आधार अंक बढ़ा दी गई।
  • लघु और मध्यम उद्यमियों के अरक्षित विदेशी मुद्रा जोखिम के साथ जुड़ी स्थिति को ध्यान में रखते हुए इस प्रकार के आरक्षित जोखिमों की निगरानी के लिए बैंकों द्वारा नियमित आधार पर एक प्रणाली तैयार की गयी है और यह प्रणाली कार्यरत है।
  • ईसीबी प्राप्त करने के प्रयोजन से आधार संरचना की परिभाषा में खनन, अन्वेषण और तेल शोधन को शामिल किया गया है।
  • होटल, अस्पताल और सॉफ्टवेयर कंपनियों जैसे सेवा क्षेत्र की कंपनियों को एक वित्तीय वर्ष में 100 मिलियन अमेरिकी डालर तक ईसीबी लेने की अनुमति दी गई है जो कि पूंजीगत माल के आयात के प्रयोजन से अनुमोदित मार्ग से ली जा सकती है।
  • भारत सरकार द्वारा 15 फरवरी 2008 को अधिसूचित विदेशी मुद्रा विनिमय योग्य बांड योजना 2008 की भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा शुरुआत की गई।
  • प्राधिकृत डीलर वर्ग-I के बैंकों को विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम 1999 के तहत "अनापत्ति" जारी करने की अनुमति दी गई जो कि कतिपय शर्तों के तहत स्वत:/ अनुमोदन मार्ग के तहत ईसीबी सुरक्षित करने के लिए विदेशी ऋणदाता के पक्ष में उधारकर्ता की ओर से अचल परिसंपत्तियों और वित्तीय प्रतिभूतियों पर अधिकार सृजित करने और कंपनी या व्यक्तिगत गारंटी प्रदान करने के लिए है।
  • बैंकों को अनुमति दी गई कि वे अपनी विदेश स्थित शाखाओं और सहायक बैंकों से विगत तिमाही के अंत में अपनी अक्षतिग्रस्त टीयर-I पूंजी के 50 प्रतिशत या 10 मिलियन अमेरिकी डालर की सीमा तक, इनमें से जो भी अधिक हो, निधि उधार ले सकते हैं, वर्तमान में, यह सीमा 25 प्रतिशत की है।

(iii) व्यापार सम्बद्ध उपाय

  • यदि विदेश स्थित आपूतिकर्ता से आयातक ने सीधे ही आयात बिल/दस्तावेज़ प्राप्त कर लिये हैं तो आयात के लिए धन प्रेषण करने हेतु 1,00,000 अमेरिकी डालर की सीमा को बढ़ाकर 3,00,000 अमेरिकी डालर कर दिया गया है।
  • बैंक गारंटी /अस्थायी साख पत्र के बिना ही आयात किये गये माल हेतु अग्रिम धन प्रेषण की सीमा को एक मिलियन अमेरिकी डालर या इसके समकक्ष से बढ़ाकर 5 मिलियन अमेरिकी डालर या इसके समकक्ष कर दिया गया है।
  • बैंक गारंटी के बिना सेवाओं के आयात के लिए अग्रिम धन प्रेषण की सीमा को 100,000 अमेरिकी डालर से बढ़ाकर 500,000 अमेरिकी डालर या इसके समकक्ष कर दिया गया है।
  • प्लैटिनम, पैलेडियम, रोडियम और चांदी का आयात करने के लिए दिए गए साख पत्र के प्रयोग की सीमा को लदान की तारीख के बाद से 90 दिन कर दिया गया है।

(ख) मुद्रा वायदा बाजार की शुरूआत

141. भारत में मुद्रा वायदा बाजार की शुरुआत से संबंधित आंतरिक कार्यकारी दल (अध्यक्ष : श्री सलीम गंगाधरन) की अंतिम रिपोर्ट रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर 28 अप्रैल 2008 को प्रकाशित कर दी गयी। मुद्रा वायदा बाजार को संचालित करने के लिए उपयोग संरचना का सुझाव देने के लिए रिज़र्व बैंक और सेबी द्वारा गठित मुद्रा वायदा बाजार में विनिमय सौदा की स्थायी तकनीकी समिति की रिपोर्ट भी रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर 13 जून 2008 को प्रकाशित की गयी। कार्यकारी दल की सिफारिशों पर विचार किया गया और रिज़र्व बैंक ने इन्हें स्वीकार कर लिया। भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के उपबंधों के तहत दिशानिदेश जारी किये गये और विनिमय सौदागत मुद्रा वायदों की शुरुआत करने के लिए 5 अगस्त 2008 को फेमा के तहत आवश्यक अधिसूचना जारी की गयी। इन दिशानिदेशों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (प्राधिकृत डीलर वर्ग-I) को मान्यताप्राप्त शेयर बाजारों द्वारा स्थापित मुद्रा व्युत्पन्नी खंडों में व्यापार करने/सदस्य बनने की अनुमति दी गयी, बशर्ते वे कतिपय विवेक सम्मत अपेक्षाओं को पूरा करें। जो बैंक न्यूनतम विवेक सम्मत अपेक्षाओं को पूरा नहीं करते उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक से अनुमति प्राप्त करने के बाद मुद्रा वायदा बाजार में केवल एक ग्राहक के रूप में शामिल होने की अनुमति दी गयी।

142. इस एक्सचेंज द्वारा नैशनल स्टॉक एक्सचेंज में 29 अगस्त 2008 को सबसे पहले मुद्रा वायदों का व्यापार किया गया। इसके बाद, बम्बई शेयर बाजार और मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज -शेयर बाजार (एमसीएक्स-एसएक्स) द्वारा क्रमश: 1 अक्तूबर 2008 और 7अक्तूबर 2008 को इन सौदों की शुरूआत की गयी।

(ग) भारत में विदेशी कंपनियों के शाखा/संपर्क कार्यालय

143. फेमा के वर्तमान उपबन्धों के तहत भारत से बाहर के आवासी व्यक्ति को भारत में शाखा/सम्पर्क कार्यालय स्थापित करने के लिए रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमति लेना अपेक्षित है। इस क्रियाविधि को और उदार बनाने तथा अधिक-से-अधिक पारदर्शिता लाने के प्रयोजन से भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी वेबसाइट पर वैधता अवधि बढ़ाने के लिए शक्तियों के प्रत्यायोजन या भारत में विदेशी कंपनियों के संपर्क कार्यालयों को बंद करने और भारत में विदेशी कंपनियों के शाखा/संपर्क कार्यालयों की पात्रता शर्तों और क्रियाविधिपरक नेदेशों के बारे में परिपत्र प्रकाशित किया ताकि इस पर जनता का अभिमत प्राप्त किया जा सके। दिसंबर 2008 के अंत तक अंतिम दिशा-निदेश जारी कर दिये जायेंगे।

(घ) फोरेक्स वायदों का समाशोधन और निपटान

144. भारत में बैंकों के लिए सीसीआइएल द्वारा अंतर बैंक विदेशी मुद्रा व्यापार के गारंटीकृत निपटान का मंच प्रदान किया जाता है। यह निपटान बहुपक्षीय निवल आधार पर किया जाता है जिसमें नये उत्तर दायित्व की प्रक्रिया के माध्यम से सीसीआइएल सभी सौदों के लिए केंद्रीय प्रतिपक्ष के रूप में रहता है। विदेशी मुद्रा में किये गये व्यापार हेतु गारंटीकृत निपटान जोखिम को कम करता है और बैंकों को मौका मिलता है कि वे अपनी पूंजी को इष्टतम रूप से प्रयोग में लाएं। वर्तमान में, विदेशी मुद्रा निपटान परिचालन के लिए सदस्य के रूप में 72 बैंक प्रति दिन औसतन 8,500 सौदे करते हैं जिनकी सकल मात्रा 17 बिलियन अमेरिकी डालर बनती है। वायदा सौदों को गारंटीकृत निपटान के लिए केवल तभी स्वीकार किया जाता है जब वे हाजिर विंडो से प्रवेश करें।

145. सौदे की तारीख से ही अंतर बैंक विदेशी मुद्रा वायदा सौदों के गारंटीकृत निपटान की शुरुआत करने के लिए सीसीआइएल ने रिज़र्व बैंक का अनुमोदन मांगा है। विदेशी मुद्रा वायदा प्रखंड के परिचालन शुरू करने के लिए सीसीआइएल ने बैंकों को अपनी तत्परता के बारे में अधिसूचित कर दिया है और इसके सॉफ्टवेयर का संपूर्ण परीक्षण किया जा चुका है। एक बार प्रतिपक्ष जोखिम और जोखिमभार से संबंधित मुद्दों की जानकारी मिलने के बाद सीसीआइएल द्वारा एक माह के भीतर निपटान प्रणाली का संचालन शुरू कर दिया जाएगा।

(V) बचाव व्यवस्था सुविधाओं का उदारीकरण

घरेलू क्रूड तेल रिफाइनिंग कंपनियों के लिए बचाव व्यवस्था

सुविधाएं बढ़ाना

146. प्रमुख घरेलू क्रूड तेल रिफाइनिंग कंपनियों को विदेशी विनिमय/बाजारों पर अपनी वस्तुओं के मूल्य जोखिम की बचाव व्यवस्था के लिए अनुमति दी गई है। प्रमुख तेल रिफाइनिंग और शिपिंग कंपनियां ढुलाई दरों की अस्थिरता को देखते हुए बचाव व्यवस्था सुविधा को और बढ़ाने के लिए रिज़र्व बैंक के पास आवेदन कर रही हैं। ढुलाई जोखिम के बेहतर प्रबंध को सुविधाजनक बनाने की दृष्टि से यह प्रस्ताव किया जाता है कि :

  • घरेलू तेल और शिपिंग कंपनियों को विदेशी विनिमय/काउंटर पर बाजारों के साथ अपने मालभाड़ा जोखिम की बचाव व्यवस्था करने के लिए अनुमति देना।

अन्य ग्राहकों, जिन्हें ढुलाई के दौरान जोखिम है, के संबंध में प्राधिकृत व्यापारी बैंकों को ग्राहकों की ओर से रिज़र्व बैंक से अनुमति लेनी चाहिए।

(च) व्यापार ऋण - समग्र लागत सीमा में वृद्धि

147. वैश्विक ऋण बाजारों में तंगहाल चलनिधि स्थिति को देखते हुए, घरेलू आयातकर्ता वर्तमान समग्र लागत सीमा के भीतर व्यापार ऋणों को बढ़ाने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों पर ध्यान देते हुए यह प्रस्ताव किया जाता है कि :

  • 3 वर्ष से 6 माह तक से कम व्यापार ऋणों के लिए समग्र लागत सीमा को लंदन, अंतर बैंक प्रस्तावित दर के साथ 200 आधार अंक से बढ़ाना।

III. ऋण वितरण तंत्र और अन्य बैंकिंग सेवाएं

(क) प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार

(i) कमज़ोर क्षेत्रों के उधार देने के लक्ष्य : स्थिति

148. अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में निर्दिष्ट किये गये अनुसार, घरेलू अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को यह सूचित किया गया था कि अप्रैल 2009 से नाबार्ड के पास रखी जानेवाली ग्रामीण मूलभूत सुविधा विकास निधि या रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित अन्य वित्तीय संस्थाओं के पास रखी निधियों में अंशदान करने के उद्देश्य से राशि आबंटित करते समय कमजोर क्षेत्रों को उधार देने के उप-लक्ष्य की प्राप्ति में कमी को हिसाब में लिया जायेगा।

(ii) ‘नो फ्रिल’ खाते के बदले प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत कृषि को अप्रत्यक्ष वित्त के रूप में सामान्य प्रयोजन क्रेडिट कार्ड और ओवरड्राफ्ट : स्थिति

149. अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के परिणामस्वरूप बैंकों को यह अनुमति दी गई थी कि वे सामान्य क्रेडिट कार्ड (जीसीसी) के अंतर्गत बकाया ऋण के 100 प्रतिशत और प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत कृषि को अप्रत्यक्ष वित्त के रूप में ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में ‘नो फ्रिल’ खातों के लिए मंजूर (प्रति खाता) 25,000/- रुपये तक के ओवरड्राफ्ट को वर्गीकृत करें।

(iii) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्रों

के लिए उधार देने हेतु अवसर बढ़ाना : स्थिति

150. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के निधि/संसाधन आधार को बढ़ाने की दृष्टि से वाणिज्य बैंक/प्रायोजक बैंकों को यह अनुमति दी गई थी कि वे कृषि को निरंतर उधार और कृषि को अप्रत्यक्ष वित्त के रूप में अन्य गतिविधियों के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को दिये गये बही ऋणों को वर्गीकृत करें। साथ ही, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को यह अनुमति दी गई थी कि वे प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के लिए उधार देने हेतु निर्धारित 60 प्रतिशत के लक्ष्य से अधिक प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र संवर्ग के अंतर्गत उनके द्वारा धारित आस्तियों को बेच दें।

(ख) कृषि और प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के

अन्य खंडों को ऋण की सुपुर्दगी

151. विशेष कृषि ऋण योजना (एसएसीपी) के अंतर्गत सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा कृषि को संवितरित राशि 1,52,133 करोड़ रुपये और 41,427 करोड़ रुपये के लक्ष्य के विपरीत वर्ष 2007-08 में क्रमश: 1,25,758 करोड़ रुपये (अनंतिम) और 47,862 करोड़ रुपये हो गई। किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने 2007-08 के दौरान कुल 59,582 करोड़ रुपये की सीमा को प्राप्त करके 4.6 मिलियन किसान क्रेडिट कार्ड जारी किये। इस योजना के प्रारंभ से सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने 1,54,294 करोड़ रुपये की राशि के 31.22 मिलियन किसान क्रेडिट कार्ड जारी किये।

152. वर्ष 2008-09 के लिए केद्रीय बजट में 14,000 करोड़ रुपये की निधि के साथ नाबार्ड में ग्रामीण मूलभूत सुविधा विकास निधि (आरआइडीएफ XIV) एवं भारत निर्माण कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीण मार्ग कार्यक्रम के लिए 4000 करोड़ रुपये की निधि से अलग विंडो की स्थापना की घोषणा की गयी थी। केंद्रीय वित्त मंत्री ने नाबार्ड/भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक/राष्ट्रीय आवास बैंक के साथ विशिष्ट निधि की स्थापना की घोषणा की है, जिसमें उन अनुसूचित वाणिज्य बैंकों से योगदान लिया जाएगा जो प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने में विफल रहे।

153. ग्रामीण मूलभूत सुविधा विकास निधि (आरआइडीएफ) (I से XIV) जिसमें भारत निर्माण कार्यक्रम के तहत ग्रामीण सड़कों के लिए आरआइडीएफ i ा अलग विंडो शामिल हैं, को शुरुआत से कुल 86,000 करोड़ रुपये का भुगतान आबंटित किया गया जब कि आरआइडीएफ ((I से XIV) के विभिन्न भागों के तहत राज्य सरकार और राष्ट्रीय ग्रामीण सड़क विकास संस्था (एनआरआरडीए) को संचयी मंजूरी क्रमश: 79,920 करोड़ रुपए और 12,000 करोड़ रुपये की रही। 31 अगस्त 2008 को संचयी संवितरण क्रमश: 48,615 करोड़ रुपए और 4,889 करोड़ रुपए था। 2008-09 के दौरान (31 अगस्त तक) कई राज्य सरकारों को कुल 5,864 करोड़ रुपये के ऋण मंजूर किए गए जिसमें 522 करोड़ रुपए की मंजूरी चार राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र के संकटग्रस्त जिलों को दिए गए। वर्ष 2008-09 के दौरान (31 अगस्त तक) आरआइडीएफ की विभिन्न श्रृंखलाओं के तहत 3,021 करोड़ रुपये की राशि का संवितरण किया गया।

ग) ब्याज-सहायता - किसानों को राहत

154. वर्ष 2006-07 के केंद्रीय बज़ट में की गई घोषणा के क्रम में, वाणिज्यिक बैंकों को सूचित किया गया कि वे अपने द्वारा 2005-06 के खरीफ और रबी मौसम के दौरान मंजूर किए गए एक लाख रुपए के प्रत्येक फसली ऋण के मूलधन की ब्याज दर में दो प्रतिशत अंक की ब्याज राहत मंजूर करे। इसके आगे, वर्ष 2007-08 और 2008 -09 के केंद्रीय बजट में की गई घोषणा के परिणामस्वरूप सरकारी क्षेत्र के बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और ग्रामीण सहकारी बैंकों को सूचित किया गया कि वे किसानों को दिए गए तीन लाख रुपये तक के अल्पावधि उत्पादन ऋण पर प्रति वर्ष 2 प्रतिशत ब्याज दर राहत मंजूर करें।

घ) फसली ऋण के लिए उधार प्रक्रिया का सरलीकरण

155. जैसा कि अप्रैल, 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में घोषित किया गया था, बैंकों को सूचित किया गया कि जिन मामलों में स्थानीय प्रशासन /पंचायती राज संस्थाओं से फसल बुवाई से संबंधित प्रमाणपत्र प्राप्त होने में कठिनाई हो, उनमें 50,000 रुपये तक ऋण के लिए भूमिरहित श्रमिकों, बटाईदारों और व्यावसायिक स्थिति देने वाले अलिखित पट्टेदारों (अर्थात् जोती गई भूमि/उगी हुई फसल)द्वारा प्रस्तुत किए गए शपथपत्र स्वीकार करें। साथ ही, बैंकों को सूचित किया कि वे फसल उत्पादन के वित्तपोषण के लिए प्रायोगिक आधार पर एक चक्रीय ऋण उत्पाद की शुरुआत हेतु किसी वर्षा सिंचित जिले की पहचान करें, जहां पर ऋण सीमा की 20 प्रतिशत भाग किसानों को प्रमुख घटक के रूप में निरंतर उपलब्ध रहेगा।

(ङ) कृषि ऋण माफी और ऋण राहत योजना, 2008

156. वर्ष 2008-09 के केद्रीय बज़ट में किसानों के लिये ऋण राहत और कृषि ऋण से छूट देने के लिये एक योजना घोषित की गई थी जिसे सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी ऋण संस्थानों में लागू किया जाना था। इस योजना की रूपरेखा को अंतिम रूप प्रदान किया गया उसे भारत सरकार द्वारा 23 मई 2008 को अधिसूचित किया गया। यह योजना अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी ऋण संस्थानों (शहरी सहकारी बैंकों सहित) और स्थानीय क्षेत्र के बैंकों द्वारा सीमान्त और छोटे किसानों और अन्य किसानों को दिये गये प्रत्यक्ष कृषि ऋणों को कवर करती है। तदनुसार, रिज़र्व बैंक ने स्थानीय क्षेत्र के बैंकों सहित सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को इस योजना के शीघ्रतापूर्ण कार्यान्वयन के लिये आवश्यक कार्रवाई करने का सुझाव दिया। इसी प्रकार का दिशानिर्देश राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी संस्थानों को जारी किया। रिज़र्व बैंक ने स्थानीय क्षेत्र के बैंकों सहित सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को यह भी सुझाव दिया कि वे ब्याज/प्रभारों (अर्थात् मूलधन से भी ज्यादा ब्याज, लागू न किए गये ब्याज, दंडात्मक ब्याज, विधिक प्रभारें, जांच प्रभारों, विविध प्रभारों और ऐसे ही अन्य प्रभारों) को पूरा करने के लिये एडवांस पोर्टफोलियो हेतु रखे गये चल प्रावधानों का अपने विवेकानुसार उपयोग करें। तथापि, परिवर्तनशील प्रावधानों को अब तक की तरह रिज़र्व बैंक की पूर्वानुमति के बिना किसी प्रकार की अन्य प्रावधान संबंधी आवश्यकताओं के लिये उपयेग में नहीं लाया जा सकता है।

157. इस योजना के तहत सरकार वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी ऋण-दाता संस्थानों को 25,000/- करोड़ रुपये की राशि प्रथम किस्त के रूप में प्रदान करने पर सहमत हुयी थी। सरकार के अनुरोध पर रिज़र्व बैंक ऋण संस्थानों को तत्काल यह राशि उपलब्ध कराने पर सहमत हो गया हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 17(3-ख) और धारा 17 (4-V) के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अनुसूचित बैंकों और नाबार्ड को दिया गया यह अस्थायी नकदी समर्थन 3 नवम्बर 2008 तक उपलब्ध रहेगा।

च) असंगठित क्षेत्र में जीवनयापन में संवर्द्धन : वित्तीय प्रणाली की भूमिका

158. जैसा कि अप्रैल 2008 की वार्षिक नीति वक्तव्य में उल्लेख किया गया था, असंगठित क्षेत्र में उद्यमों के लिये राष्ट्रीय आयोग (अध्यक्ष: डा.अर्जुन के.सेनगुप्ता) की सिफारिशों का अध्ययन करने के लिये रिज़र्व बैंक में गठित आंतरिक कार्य दल की रिपोर्ट अर्थात ‘असंगठित क्षेत्र में कार्य की स्थितियां और जीवनयापन में संवर्द्धन’ सबंधी रिपोर्ट को व्यापक प्रचार-प्रसार के लिये रिज़र्व बैंक की वेब साइट पर डाला गया है।

(छ) संभावित रूप से अर्थक्षम लघु और मध्यम

इकाइयों के पुनर्वास/पोषण पर कार्यकारी दल

159. अप्रैल 2007 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में किए गए उल्लेख के अनुसार मामलों पर कार्रवाई करने और उपचारात्मक उपाय सुझाने के लिए एक कार्यकारी दल (अध्यक्ष डॉ के.सी. चक्रवर्ती) का गठन किया गया है ताकि संभावित रूप से अर्थक्षम रुग्ण इकाइयों का शीघ्र पुनर्वास किया जा सके और उसकी रिपोर्ट रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर अप्रैल 2008 में डाल दी गई है। प्राप्त टिप्पणियों के आधार पर यह प्रस्तावित है कि :

  • नबंबर 2008 के अंत तक संभावित रूप से अर्थक्षम रुग्ण लघु और मध्यम इकाइयों के पुनर्वास पर बैंकों को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करना

(ज) स्वयं सहायता समूह-बैंक सहसंबद्धता कार्यक्रम

160. स्वयं सहायता समूह-बैंक सहसंबद्धता कार्यक्रम देश में प्रमुख व्यष्टि वित्त कार्यक्रम के रूप में उभरा है और जिसका कार्यान्वयन वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा सहकारी बैंकों द्वारा किया जा रहा है। 31 मार्च 2008 तक 3.48 मिलियन स्वयं सहायता समूहों के पास 22,227 करोड़ रुपए का बैंक ऋण बकाया है। 2007-08 के दौरान बैंकों ने वर्तमान स्वयं सहायता समूहों को 4,228 करोड़ रुपए तक के पुन: जारी किए गए ऋणों सहित 0.74 मिलियन स्वयं सहायता समूहों को वित्तपोषण किया है।

(झ ) वित्तीय समावेशन निधि और वित्तीय समावेशन प्रौद्योगिकी निधि

161. केंद्रीय बजट 2007-08 में वित्तीय समावेशन निधि (एफआइएफ) और वित्तीय समावेशन प्रौद्योगिकी निधि (एफआइटीएफ) के प्रत्येक निधि को 500 करोड़ रुपए की समग्र निधि जो नाबार्ड के पास रहेगी, की घोषणा की गई थी। भारत सरकार ने भी सूचित किया है कि वर्ष 2007-08 के लिए प्रत्येक निधियों के प्रारंभिक अंशदान की 25 करोड़ रुपए की राशि को केंद्र सरकार, रिज़र्व बैंक और नाबार्ड के बीच 40:40:20 के अनुपात में बाँटा जाएगा। तदनुसार, इन निधियों के लिए रिज़र्व बैंक का अंशदान प्रत्येक के लिए 10 करोड़ रुपए होगा।

(ञ) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी)

(i) शाखा लाइसेंसीकरण को और उदार बनाना

162. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के शाखा विस्तार कार्यक्रमों को और अभिप्रेरित करने के लिए वर्तमान शाखा लाइसेंसीकरण मानदंड को और उदार बनाया गया है। तदनुसार यह प्रस्तावित है कि:

  • नई शाखाएं खोलने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के व्यापक लचीलेपन को अनुमति दे सकते हैं जिससे वे परिचालनगत लाभ कमा सकते हैं और उनकी वित्तीय स्थिति सुधर सकती है।

ii) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का प्रौद्योगिकी उन्नयन

163. अप्रैल 2008 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में सूचित किए गए अनुसार उचित प्रौद्योगिकी को अपनाने तथा कोर बैंकिंग सोल्युशन में अंतरित करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों हेतु रोड मैप तैयार करने के लिए गठित कार्यकारी दल (अध्यक्ष: श्री जी.श्रीनिवासन) की रिपोर्ट रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर डाली गई है। रिपोर्ट में सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए कोर बैंकिंग सोल्यूशन की ओर बढ़ने के लिए सितंबर 2011 तक का लक्ष्य निर्धारित किया गया है और सितंबर 2009 के बाद खोली जानेवाली क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की शाखाओं के लिए कोर बैंकिंग सोल्यूशन अनिवार्य होगा। रिपोर्ट सभी प्रायोजक बैंकों को आवश्यक कार्रवाई के लिए प्रेषित की गई है।

iii) वित्तीय समावेशन के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आइसीटी)

संबंधी उपायों को अपनाने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को सहायता: स्थिति

164. वित्तीय समावेशन के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आइसीटी) आधारित उपायों के कार्यान्वयन में उनकी प्रारंभिक लागत के एक भाग की अदायगी करने हेतु क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को वित्तीय सहायता देने के प्रावधान की जांच करने लिए गठित कार्यकारी दल (अध्यक्ष: श्री जी. पद्मनाभन) की रिपोर्ट अगस्त 2008 में रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर डाली गई है। अन्य बातों के साथ-साथ दल ने यह सिफारिश की है कि वित्तीय समावेशन के लिए आइसीटी उपायों को वित्तीय सहायता बैंकिंग प्रौद्योगिकी में विकास और अनुसंधान संस्थान (आइडीआरबीटी) के द्वारा दिए जानेवाले ब्याज रहित ऋणों के माध्यम से दी जाए। सिफारिशें परीक्षणाधीन है।

(ट) वित्तीय समावेशन

(i) शत प्रतिशत वित्तीय समावेशन के लिए राज्य स्तरीय

बैंकर समिति (एसएलबीसी) की प्रायोगिक परियोजना

165. राज्य स्तरीय बैंकर समिति द्वारा 100 प्रतिशत वित्तीय समावेशन के लिए अब तक 342 जिलों को अभिनिर्धारित किया गया है। उनमें से 155 जिलों ने 100 प्रतिशत वित्तीय समावेशन का लक्ष्य प्राप्त करने की सूचना दी है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस संबंध में आगे की कार्रवाई करने के लिए बाहरी एजन्सियों के माध्यम से 26 जिलों में यह लक्ष्य प्राप्त करने के लिए की गई प्रगति का मूल्यांकन अध्ययन किया है। इन अध्ययनों के निष्कर्षों के आधार पर यह प्रस्तावित है कि:

  • वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाने के लिए बैंकों को प्रतिसूचना प्रदान की जाए।

(ii) उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए विशेष कार्य दल

166. मई 2008 में उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों की रिज़र्व बैंक के भूतपूर्व गवर्नर के साथ हुई बैठक के पश्चात लोक नीति के लिए आवश्यक समझे जानेवाले क्षेत्र में अतिरिक्त केंद्रों को बैंकिंग सुविधाएं निर्धारित करके उसे प्रोत्साहित करने हेतु एक विशेष कार्य दल (अध्यक्ष: श्रीमती उषा थोरात) का गठन किया गया है। ऐसे केंद्रों में बैंकिंग सुविधाएं (करेंसी चेस्ट, विदेशी मुद्रा और सरकारी कारोबार संबंधी सुविधाएं) प्रदान करने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों को वित्तीय समर्थन देने की योजना बनायी है, बशर्ते राज्य सरकारों को आवश्यक परिसर और अन्य आधारभूत सहायता उपलब्ध होती हो। मेघालय सरकार ने नई शाखाओं के लिए परिसर और आवश्यक सुरक्षा व्यवस्थाएं प्रदान करने के प्रस्ताव को सहमति दी है। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में अन्य राज्यों के लिए एक जैसे तंत्र के लिए प्राप्त अनुरोध विचाराधीन हैं।

(iii) प्रायोगिक आधार पर ऋण समुपदेशन केंद्र गठित करना

167. वित्तीय साक्षरता और समुपदेशन केंद्रों संबंधी परिकल्पना पत्र तैयार किया गया है और उसे जनता की प्रतिसूचना के लिए 3 अप्रैल 2008 को रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर डाला गया है ताकि इसकी पहल की जा सके। प्रतिसूचना के आधार पर यह प्रस्ताव है कि -

  • वित्तीय साक्षरता और ऋण समुपदेशन केंद्र के लिए मॉडल योजना अधिसूचित कि जाए।

(ठ) अग्रणी बैंक योजना पर उच्च स्तरीय समिति

168. अक्तूबर 2007 की मध्यावधि समीक्षा में की गई घोषणा के अनुसार उच्च स्तरीय समिति (अध्यक्ष: श्रीमती उषा थोरात) ने बैंकिंग क्षेत्र में हुई हाल की गतिविधियों के परिप्रेक्ष्य में अग्रणी बैंक योजना की समीक्षा की है और उसमें प्रभावी सुधार किया है। समिति ने विभिन्न राज्य सरकारों, बैंकों और शैक्षिक, सूक्ष्म-वित्त संस्थानों और गैर सरकारी संगठनों सहित विभिन्न राज्यों, बैंकों और अन्य शेयरधारकों के साथ चर्चा के कई दौर किए हैं और उसके निष्कर्ष समेकन करने की प्रक्रिया में हैं और उसकी सिफारिशों को निश्चित रूप दिया जा रहा है। बोर्ड का यह दृष्टिकोण है कि समग्र वृद्धि को सुकर बनाने के लिए औपचारिक वित्तीय संस्थाओं द्वारा बैंकिंग और ऋण का ज्यादा प्रवेश ही योजना का प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिए और यह भी आवश्यक होगा कि संस्था को मजबूती प्रदान की जाए जिसके माध्यम से योजना की प्रक्रिया को कार्यान्वित किया जा सके। समिति द्वारा दिसंबर 2008 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने की संभावना है।

(ड) असम, बिहार और उड़ीसा में बाढ़ से

प्रभावित क्षेत्रों में बैंकों द्वारा राहत उपाय

169. रिज़र्व बैंक ने बैंकों को व्यापक स्थायी-अनुदेश जारी किए हैं कि वे प्राकृतिक आपदा से प्रभावित व्यक्तियों को लगातार बैंकिंग सुविधाएं और राहत तथा पुनर्वास प्रदान करना सुनिश्चित करें। अभूतपूर्व वर्षा और बाढ़ के परिणामस्वरुप असम, बिहार और उड़ीसा के राज्यों में जीवन और संपत्ति की काफी हानि हुई और जिला/राज्य स्तर पर बैंकों तथा राज्य सरकारों की विशेष समितियां/बैठकें हुई हैं, इन स्थायी अनुदेशों जिसमें वर्तमान ऋणों की पुर्नव्यवस्था करने, नए ऋण और उपभोक्ता ऋण प्रदान करने, पर्याप्त उपायों में मुद्रा उपलब्ध कराने तथा सामान्य बैंकिंग सेवाओं को जारी रखना सुनिश्चित करना शामिल है।

(ढ) बैंकों के कूरियर/डाक प्रभारों संबंधी अध्ययन

170. अप्रैल 2008 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में यह उल्लेख किया गया है कि सामान्य व्यक्ति को बैंक की सेवाओं के बारे में अधिक पारदर्शिता लाने की दृष्टि से रिज़र्व बैंक में लोक प्रसार के लिए बैंकों द्वारा लगाए जा रहे विभिन्न प्रभारों के ब्योरे संकलित करने की प्रक्रिया जारी है। तदनुसार बाहरी चेकों की वसूली और ग्राहक को विवरणी/चेक बुक भेजने के लिए लगाए जानेवाले कुरियर/डाक प्रभारों से संबंधित सूचना संकलित, समेकित की गई है और उसे रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर डाला गया है। रिज़र्व बैंक को अन्य प्रभारों के संबंध में समय-समय पर ऐसे अध्ययन करने होंगे और उसे अपनी वेबसाइट पर डालना होगा।

IV विवेक सम्मत उपाय

(क) सीमा पार पर्यवेक्षण

171. बैंकिंग पर्यवेक्षण पर गठित बासल समिति (बीसीबीएस) द्वारा परिकल्पित ढांचे के अनुरूप सीमा-पार पर्यवेक्षण और विदेशी विनियामकों के साथ पर्यवेक्षी समन्वय के लिए एक उचित ढांचा अपनाने के लिए एक रोडमैप बनाने के लिए एक आंतरिक कार्यकारी दल (अध्यक्ष: श्री एस.करूप्पसामी) गठित किया गया था। उक्त कार्यकारी दल ने विदेशी शाखाओंवाले भारतीय बैंकों और भारत में परिचालन कर रहे विदेशी बैंकों, दोनों ही से परामर्श किया ताकि सीमा पार गतिविधियों के संबंध में अपनाई गई प्रथाओं, निरीक्षण पद्धति एवं विदेशी पर्यवेक्षकों द्वारा अपनाई गई बारंबारता, पर्यवेक्षी रेटिंग प्राप्त करने के लिए अपनाई जानेवाली प्रणालियों और बासल II के कार्यान्वयन में की गई प्रगति पर प्रकाश डाला जा सके। दल ने विभिन्न विदेशी विनियामकों/पर्यवेक्षकों से सूचना का आदान-प्रदान करने/सीमा-पार पर्यवेक्षी सहकारिता संबंधी नीतियों और इन क्षेत्राधिकारों में विद्यमान कानूनी ढाँचे के संबंध में उनके द्वारा अपनाई गई प्रथाओं के बारे में जानकारी प्राप्त की। दल ने सीमा पार पर्यवेक्षण व्यवस्थाओं के संबंध में कानूनी स्थिति की जांच की तथा विदेशी पर्यवेक्षकों के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) निष्पादित करने की व्यवहार्यता का पता लगाया। आशा है दल अपनी रिपोर्ट नवंबर 2008 के मध्य तक प्रस्तुत करेगा।

(ख) समेकित पर्यवेक्षण और वित्तीय समूह (काग्लोमरेटस)

172. अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में बैंक प्रधानता वाले समूहों के लिए बैंकिंग पर्यवेक्षी प्रणाली की दक्षता बढ़ाने की दृष्टि से एक विकसित समेकित पर्यवेक्षी प्रक्रिया को कार्यान्वित करने के लिए विभिन्न आंतरिक पर्यवेक्षी प्रक्रियाओं के पुनर्समूहन का प्रस्ताव किया था। तदनुसार वित्तीय समूहों के पर्यवेक्षण पर एक "दृष्टिकोण पत्र" को नवंबर 2008 के अंत तक अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है।

(ग) बैंकों द्वारा गठित न्यासों/विशेष प्रयोजन साधनों (एसपीवी) की

गतिविधियों पर पर्यवेक्षी समीक्षा प्रक्रिया

173. बैंकों द्वारा गठित विशेष प्रयोजन साधन (एसपीवी) और न्यास आम तौर पर अनियंत्रित होते हैं और उन पर निगरानी करने के लिए स्वतंत्र बोर्ड अपर्याप्त है। चूंकि इन संस्थाओं की गतिविधियों में मूल बैंक के लिए जोखिम संभाव्य है और इनसे सर्वांगीण जोखिम उत्पन्न हो सकता है, अत: अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में बैंकों द्वारा गठित विशेष प्रयोजन साधन / न्यासों की गतिविधियों का अध्ययन करने और उनके लिए एक उचित पर्यवेक्षी ढांचे की सिफारिश करने का प्रस्ताव किया गया था। तदनुसार, अक्तूबर 2008 में एक कार्यकारी दल (अध्यक्ष: श्री एस.सेन) गठित किया गया है जिसमें रिज़र्व बैंक, बैंकों और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के प्रतिनिधि होंगे; दल द्वारा अपनी रिपोर्ट तीन महीनों में प्रस्तुत किया जाना अपेक्षित है। उक्त दल बैंकों द्वारा गठित विभिन्न प्रकार के न्यासों/ विशेष प्रयोजन साधनों, मूल बैंकों द्वारा प्रबंध नियंत्रण, संबंधित विनियामक/पर्यवेक्षी विषयों का अध्ययन करेगा और एक उचित पर्यवेक्षी ढांचे की सिपारिश करेगा।

(घ) जोखिम आधारित पर्यवेक्षण का

नया मॉडल : उद्भव

174. जोखिम आधारित पर्यवेक्षण (आरबीएस) का एक उचित मॉडल बनाने की दृष्टि से ऐसी प्रणालियों के संबंध में विद्यमान अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं का अध्ययन करने के लिए एक विभागीय दल गठित किया गया था। दल ने कतिपय क्षेत्राधिकारों (अमरीका, यूके, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, हांगकांग, सिंगापुर, थाइलैंड और मलेशिया) में विभिन्न पर्यवेक्षी प्राधिकारियों द्वारा अपनाए गए आरबीएस तंत्र का अध्ययन किया ताकि वर्तमान पर्यवेक्षी ढांचे की प्रभावोत्पादकता को कम किए बिना एक उचित आरबीएस ढांचा बनाया जा सके। इस संबंध में, एक दृष्टिकोण पेपर तैयार किया जा रहा है और इसे दिसंबर 2008 के मध्य तक अंतिम रूप दिये जाने की आशा है।

V) भारतीय बैंकों के विदेशी परिचालन:

वर्तमान ऑफ साइट निगरानी ढांचे की समीक्षा

175. भारतीय बैंकों के विदेशी परिचालनों के वर्तमान विनियामक और पर्यवेक्षी ढांचे की समीक्षा करने के लिए गठित अंतर-विभागीय दल ने विदेशों में बड़े पैमाने पर कार्यरत भारतीय बैंकों के साथ परामर्श किया। भारतीय बैंकों के विदेशी परिचालनों के संशोधित ऑफ-साइट निगरानी प्रणाली सहित एक उचित पर्यवेक्षी ढांचे को नवंबर 2008 के अंत तक अंतिम रूप दिये जाने की आशा है।

च) बैंकों के क्रेडिट संविभाग से

संबंधित पर्यवेक्षी समीक्षा प्रक्रिया

176. जुलाई 2008 में हुई प्रथम तिमाही समीक्षा में उल्लेख किया गया था कि रिज़र्व बैंक उन चुनिंदा बैंकों की पर्यवेक्षी समीक्षा करने पर विचार करेगा जिनके ऋण संविभाग उनके निधियों के स्रोतों की अपेक्षा बहुत अधिक हो गए हैं। तदनुसार, बैंकों की ऑफ साइट विवरणियों के आधार पर बैंकों का पता लगा लिया गया है और इन बैंकों से उनकी निधियों के स्रोत और विनियोजन के संबंध में विस्तृत जानकारी मांगी गई। इन बैंकों के वरिष्ठ प्रबंध तंत्र के साथ विस्तृत चर्चा की गई और निष्कर्षों की जानकारी देते हुए यथोचित कार्रवाई करने के लिए कहा गया।

छ) कृषि पण्यों में बैंकों के एक्सपोजरों की समीक्षा

177. खाद्य मदों में ट्रेडिंग संबंधी वर्तमान सरकारी नीति में व्यक्त चिंताओं के परिप्रेक्ष्य में अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में बैंकों से आग्रह किया गया कि वे चावल, गेहूं, तिलहनों और दालों सहित कृषि पण्यों के व्यापारियों को दिये जानेवाले तथा गोदाम रसीदों की जमानत पर दिये जानेवाले अपने अग्रिमों की समीक्षा करें। बैंकों से कहा गया कि वे रिज़र्व बैंक को ऐसी पहली रिपोर्ट पण्य क्षेत्र में बैंकों के एक्सपोजरों की समीक्षा करने के लिए भेज दें। बैंकों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों के आधार पर 31 मार्च 2008 को कृषि पण्यों के प्रति बैंकों के एक्सपोज़रों की एक पर्यवेक्षी समीक्षा की गई। समीक्षा में पता चला कि कृषि पण्यों के व्यापारियों को दिए गए बैंकों के अग्रिमों और गोदाम रसीदों की जमानत पर दिये जानेवाले अग्रिम उनके सकल अग्रिमों के एक प्रतिशत से कम थे। बैंकों ने यह भी पुष्टि की कि वे कृषि पण्यों के लिए अग्रिम प्रदान करते समय उचित सतर्कता बरत रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित हो कि बैंक वित्त का उपयोग जमाखोरी के लिए नहीं किया जाता। इस संबंध में 30 जून 2008 की स्थिति की एक और समीक्षा भी की गई और बैंकों के ऐसे एक्सपोजरों में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं पाया गया।

ज) भारत में बासल II क्रियापद्धति का कार्यान्वयन : स्थिति

178. विदेशों में कार्यरत भारतीय बैंकों और विदेशी बैंकों की भारत में कार्यरत शाखाओं ने 31 मार्च 2008 से बासल II क्रियापद्धति अपनायी है। जोखिम प्रबंधन तकनीकों के परिष्कृतता स्तर और डाटा की उपलब्धता को देखते हुए इन बैंकों को ऋण जोखिम के लिए मानकीकृत दृष्टिकोण और परिचालनगत जोखिमों के लिए मूलभूत संकेतक दृष्टिकोण अपनाने के लिए सूचित किया गया। भारत के सभी बैंक जून 2004 से बाजार जोखिम के लिए पूंजी-व्यय की गणना के लिए मानकीकृत परिमाण पद्धति अपना रहे हैं। मार्च 2008 में पिलर II संबंधी दिशानिर्देश जारी किए जाने के बाद बैंकों से यह भी अपेक्षा की गई कि वे एक आंतरिक पूंजी पर्याप्तता निर्धारण प्रक्रिया (आईसीएएपी) अपनाएं ताकि यह सुनिश्चित हो कि उनके कारोबार की सभी जोखिमों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त पूंजी उनके पास है और उन्हें जोखिमों की निगरानी तथा प्रबंधन करने के लिए बेहतर जोखिम प्रबंधन तकनीक विकसित करने तथा प्रयुक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। रिज़र्व बैंक द्वारा अलग-अलग बैंकों के आइसीएएपी बनाने का कार्य बैंकों के वार्षिक वित्तीय निरीक्षण के साथ साथ हाथ में लिया गया है। योजना के अनुसार शेष बैंकों को 31 मार्च 2009 से बासल II क्रियापद्धति अपनाना है।

झ) भारत में क्रेडिट डेरिवेटिव लागू करना : स्थिति की समीक्षा

179. रिज़र्व बैंक ने मई 2007 में ऋण संबंधी चूक की अदला-बदली (स्वैप) पर दिशानिर्देशों का प्रारूप जारी किया था, जिसके बाद परामर्श के एक और दौर के लिए अक्तूबर 2007 में एक संशोधित प्रारूप जारी किया गया। तथापि, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों, विशेष रूप से ऋण बाजारों में होनेवाली कतिपय प्रतिकूल गतिविधियों, जिनके फलस्वरूप पर्याप्त अस्थिरता आई, के परिप्रेक्ष्य में क्रेडिट डेरिवेटिव लागू करना उचित नहीं माना गया। तदनुसार, ऋण व्युत्पन्नियों को लागू करने के लिए अंतिम दिशा-निर्देशों को लंबित रखा गया है। वर्तमान परिस्थिति में जब ऋण बाजार संकट के संपूर्ण पहलुओं को पूरी तरह आंककर, कुछ विकसित देशों के वित्तीय क्षेत्रों के अनुभवों का पूरी तरह से उपयोग करने के लिए यह निर्णय लिया गया है। रिज़र्व बैंक हाल के उथल-पुथल से सीख लेगा और सीडीएस को उचित समय पर लागू करने के प्रस्ताव की समीक्षा करेगा।

(ञ) बैंकों में जोखिम प्रबंधन को मजबूत करना - तरलता जोखिम

180. अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में चल रही उथल-पुथल ने बैंकों में तरलता जोखिम के प्रबंधन को आगे लाया है। यह स्पष्ट है कि बहुत अच्छे माने जाने वाले बैंकों ने भी संविदात्मक या गैर-संविदात्मक आकस्मिक दायित्वों को पूरा करने में आवश्यकता पड़ने वाली चलनिधियों का आकलन नहीं कर पाए, जैसा कि उन्होंने इस दायित्वों का निधियन जरूरी नहीं माना या भविष्य में ऐसी निधियन आवश्यकताओं को पूरा करने में संसाधनों की उपलब्धता को स्थिर माना। अनेक अंतर्राष्ट्रीय बैंकों ने गंभीर एवं लंबी नकदी समस्याओं को बड़ा नहीं माना और स्ट्रेस टेस्ट नहीं किया जो बाजार में व्याप्त चिंताओं या गंभीरताओं और समस्या को अवधि को कम करता। रिज़र्व बैंक ने फरवरी 1999 में आस्ति-चलनिधि प्रबंधन पर दिशा-निर्देश जारी किये जिनसे बैंकों के चलनिधि जोखिम और ब्याज दर जोखिम के लिए मजबूत ढांचे का निर्माण हुआ। विभिन्न टाइम बकेट के घटकों को साथ लाने एवं उनके बीच चलनिधि प्रवाह के समेकित प्रभाव को समझने के लिए अक्तूबर 2007 के इन दिशा निर्देशों को संशोधित किया गया। सितंबर 2008 में बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल समिति द्वारा प्रकाशित "प्रिसिंपल फॉर साउंड लिक्विडिटी रिस्क मैनेजमेंट एंड सुपरविजन" पेपर के संदर्भ में रिज़र्व बैंक इन दिशा-निर्देशों की बृहद समीक्षा करने की प्रक्रिया में है,जो यह सुनिश्चित करेगा कि कि बैंकों का चलनिधि जोखिम आकलन और प्रबंधन क्षमता उनके परिचालनों की जटिलता के स्तर का हो।

(ट) स्ट्रेस टेस्टिंग

181. स्ट्रेस टेस्टिंग व्यावहारिक जोखिम प्रबंधन साधन के तौर पर उभर कर आया है और इसके प्रयोग में विस्तार हो रहा है। वैश्विक वित्तीय प्रणाली पर समिति (सीजीएम) की रिपोर्ट 2005 में पाया गया है कि स्ट्रेस टेस्टिंग कार्य जोखिम मूल्य जैसे प्रमुख जोखिम प्रबंधन साधन के अनुपूरक के बजाय संपूरक के तौर पर उभरा है। इस प्रकार यह बैंकों और प्रतिभूति फर्मों के जोखिम प्रबंधन ढांचे का एक अहम हिस्सा बन गया है। बढ़ते हुए जटिल वित्तीय वातावरण में, जहां बैंक नए जोखिमों का सामना कर रहें हैं और बाजार वैश्विक हो रहें हैं, स्ट्रेस टेस्टिंग साधन अपने लचीलेपन, व्यापकता और दायित्वबोध से लाभ पहुंचाती है और यह बैक के वर्तमान जोखिम के आकलन करने के लिए प्रबंधन पर दबाव बनाती है। यह स्ट्रेस टेस्ट वित्तीय संस्थाओं के जोखिम प्रबंधन ढाचे में लगातार जुड़ता जा रहा है।

182. रिज़र्व बैंक ने जून 2007 में स्ट्रेस टेस्टिंग पर बैंकों को दिशा-निर्देश जारी किए थे जिसमें बैंकों के पास ठोस स्ट्रेस टेस्टिंग नीति होना आवश्यक है, जो स्ट्रेस के माहौल में चलनिधि जोखिम, ब्याज दर जोखिम, ऋण जोखिम और विदेशी मुद्रा जोखिम को तय करेगी। बैंकों को इस मामले में उत्तरोत्तर मार्गदर्शन के लिए इन दिशा-निर्देशों में सुधार लाने का प्रस्ताव है। स्ट्रेस टेस्ट को करने और ऐसे टेस्ट से प्राप्त लाभों का पूरा प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) और जोखिम प्रबंधन दक्षता में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।

(ठ) वित्तीय स्थिरता मंच की रिपोर्ट

183. वित्तीय स्थिरता मंच (एफएसएफ) के प्रस्तावों के कार्यान्वयन की स्थिति को प्रस्तुत करते वक्त, अप्रैल 2008 की वार्षिक नीति वक्तव्य में संकेत दिया गया है कि रिज़र्व बैंक ने इन बहुत से प्रस्तावों पर विनियमन दिशा-निर्देश जारी किए हैं और अन्य मामलों में कार्रवाई शुरू की गई है। अनुवर्ती अवधि में रिज़र्व बैंक ने बैंकों के तुलन पत्र से इतर निवेशों के लिए विवेकपूर्ण मानदंडों पर दिशा-निर्देश जारी किए है जिसे नीचे दिया गया है :

(i) एक्सपोज़र मानदंड: गणना का तरीका

184. बैंकों को, वर्तमान एक्सपोज़र तरीके का प्रयोग करते हुए अपने ब्याज दर और विदेशी मुद्रा व्युत्पत्तियों के लेनदेनो और स्वर्ण में हुए अपने ऋण निवेशों की गणना करनी चाहिए। बैंक ‘बिक्री विकल्प’ को छोड़ सकते है बशर्ते संपूर्ण प्रीमियम/शुल्क या आय की अन्य स्रोत को ऋण निवेश की गणना करते वक्त प्राप्त/वसूल किया गया हो।

ii) पूंजी पर्याप्तता: ऋण के समतुल्य राशि की गणना

185. बॉंसल I और बॉंसल II ढाँचे के अधीन पूँजी पर्याप्तता के लिए सभी बैंकों को ब्याज दर और विदेशी मुद्रा व्युत्पन्नी लेनदेनों और स्वर्ण के ऋण समतुल्य राशि के लिए वर्तमान निवेश मानदंडों का प्रयोग करना चाहिए।

iii) व्युत्पन्नी निवेशों के लिए प्रावधानी ऋण की आवश्यकता

186. ब्याज दर और विदेशी मुद्रा व्युत्पन्नी सौदों या स्वर्ण सौदों के कारण होने वाली संविदा के वर्तमान बाजार मूल्य के अनुसार ऋण एक्सपोजर की गणना भी प्रतिपक्षी संस्था की ‘मानक’ श्रेणी में ऋण आस्तियों पर लागू प्रावधानीकरण के तुल्य की जाएगी। मानक आस्त्यों के प्रावधानीकरण के लिए लागू सभी शर्तों को व्युत्पन्नी और स्वर्ण एक्सपोजर के लिए प्रावधानों पर भी लागू किया जाएगा।

iv) व्युत्पन्नी लेन-देन के तहत प्राप्य राशियों का आस्ति वर्गीकरण

187. व्युत्पन्नी लेन-देन के संदर्भ में बैंक को देय ऐसी कोई राशि जो भुगतान के लिए निर्दिष्ट तारीख से 90 दिनों की अवधि के लिए नकद में अदत्त रहती है, वे अग्रिम संविभाग से संबंधित आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण पर विवेकपूर्ण मानदंडों के अनुसार अनर्जक आस्ति रूप में वर्गीकृत की जाएगी।

188. ये संशोधन वित्तीय वर्ष 2008-09 से लागू होंगे। हालांकि बैंकों के पास यह विकल्प होगा कि वे इन संशोधनों से होने वाले अतिरिक्त पूंजी और प्रावधानीकरण आवश्यकताओं का अनुपालन 31 मार्च 2009 के अंत से चार तिमाहियों की अवधि तक एक चरणबद्ध तरीके से करें।

V. संस्थागत गतिविधियां

भुगतान और निपटान प्रणालियां

(क) भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007

189. भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम 2007 (2007 का 51) तथा भुगतान और निपटान विनियम अधिसूचित किए गए और ये 12 अगस्त 2008 से प्रभावी हुए। भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम विनिर्दिष्ट करता है कि इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए प्राधिकार को छोड़कर रिज़र्व बैंक के अलावा कोई अन्य व्यक्ति भुगतान प्रणाली शुरू या इसका परिचालन नहीं करेगा। तदनुसार, वर्तमान में भुगतान प्रणाली का प्रचालन कर रहे सभी व्यक्ति या ऐसे व्यक्ति जो भुगतान प्रणाली स्थापित करने को इच्छुक हों जैसा कि इस अधिनियम में परिभाषित किया गया है, से अपेक्षित है कि वे प्राधिकार हेतु रिज़र्व बैंक के पास आवेदन करें जब तक कि इस अधिनियम में विशेष रूप से छूट न दी गयी हो। सभी वर्तमान भुगतान प्रणालियों के प्रचालन जारी रखने के उनके अधिकार समाप्त हो जाएगें जब तक कि वे इस अधिनियम के लागू होने (अर्थात् 12 अगस्त 2008) के छ: महीने के भीतर प्राधिकार प्राप्त न कर ले। भुगतान और निपटान प्रणाली विनियमन 2008 वह तरीका और रूप निर्दिष्ट करता है जिसमें प्राधिकार की मंजूरी हेतु रिज़र्व बैंक को आवेदन किया जाना है।

(ख) विनियामक दिशा निर्देश : मोबाइल से भुगतान

190. जैसा कि अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में निर्दिष्ट किया गया था, रिज़र्व बैंक ने बैंकों और कुछ औद्योगिक निकायों से परामर्श करके जनता की टिप्पणियों के लिए अपनी वेबसाइट पर ‘भारत में मोबाइल से भुगतान के लिए परिचालनात्मक दिशानिदेशों के प्रारूप’ जारी किये हैं। विस्तृत परामर्श प्रकिया के बाद भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम 2007 (2007 का अधिनियम 51) की धारा 18 के तहत 8 अक्तूबर से बैंकों द्वारा अपनाए जाने के लिए परिचालनात्मक दिशानिदेश जारी गए।

शहरी सहकारी बैंक

(क) समूहबद्ध संगठन (अम्ब्रेला ऑर्गनाइजेशन) की स्थापना
और शहरी सहकारी बैंकों के लिए पुनरुत्थान निधि

191. जैसा कि अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में निर्दिष्ट किया गया था, रिज़र्व बैंक ने शहरी सहकारी बैंक क्षेत्र के लिए समूहबद्ध संगठन/संगठनों के प्रादुर्भाव की सुविधा प्रदान करने हेतु उपयुक्त विनियामक और पर्यवेक्षी ढांचे सहित उपाय सुझाने के लिए एक कार्यदल (अध्यक्ष: श्री वी.एस.दास) का गठन किया। यह दल इस क्षेत्र के लिए पुनरुत्थान निधि की उपलब्धता सुनिश्चित करने के मामले को भी देखेगा। दिसंबर 2008 के अंत तक इस दल की रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने की संभावना है।

(ख) शहरी सहकारी बैंकों के लिए सूचना प्रौद्योगिकी सहायता

192. जैसा कि अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में निर्दिष्ट किया गया था, रिज़र्व बैंक द्वारा शहरी सहकारी बैंकों को उपलब्ध करायी जाने वाली सूचना प्रौद्योगिकी सहायता प्रदान करने हेतु गठित कार्य दल (अध्यक्ष: श्री आर.गांधी) की रिपोर्ट 17 अप्रैल 2008 को प्रस्तुत की गई। यह रिपोर्ट अभिमत के लिए रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर 13 अगस्त 2008 को रखी गयी। प्राप्त अभिमत पर आधारित दल की सिफारिशों पर उपयुक्त कार्रवाई शुरू की जाएगी।

(ग) गैर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों द्वारा एसएलआर हेतु

सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश

193. टियर I गैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को उनके निवल मांग और मीयादी देयताओं के 15 प्रतिशत तक सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में एसएलआर में निवेश करने से छूट दी गई बशर्ते यह राशि भारतीय स्टेट बैंक या इसके सहयोगी बैंक तथा भारतीय औद्योगिक विकास बैंक सहित अन्य सरकारी क्षेत्र के बैंक के साथ ब्याज-अर्जक जमा राशि के रूप में रखी गयी हो। यह निर्णय किया गया कि :-

  • यह छूट जारी रखी जाए बशर्ते 1 अक्तूबर 2009 से ऐसी छूट निवल मांग और मीयादी देयताओं के 7.5 प्रतिशत से अधिक न हो। यह छूट 1 अप्रैल 2010 से वापस लिया माना जाएगा।

इस छूट धके आलोक में, यह भी निर्णय किया गया कि :

  • टियर I गैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंक 30 सितंबर, 2009 तक अपने निवल मांग और मीयादी देयताओं का 7.5 प्रतिशत और 31 मार्च 2010 तक अपने एनडीटीएल का 15 प्रतिशत सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में निवेश कर एसएलआर बनाए रखेंगे।
  • टीयर II गैर-अनुसूचित शहरी सरकारी बैंकों के लिए उनके निवल मांग और मीयादी देयताओं के 15 प्रतिशत से कम सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में एसएलआर की धारिता का वर्तमान निर्धारण 31 मार्च, 2010 तक जारी रहेगा।
  • 31 मार्च, 2011 से सभी शहरी सहकारी बैंकों (गैर-अनुसूचित और अनुसूचित) के लिए अपेक्षित होगा कि वे अपने निवल मांग और मीयादी देयताओं का 25 प्रतिशत सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में निवेश कर एसएलआर बनाए रखेंगे।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां

सर्वांगीण रूप से महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का
वित्तीय विनियमन: विवेकपूर्ण विनियमों की समीक्षा

194. वर्ष 2006 में सर्वांगीण रूप से महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और उनके बैंकों के साथ संबंधों पर विवेकपूर्ण मानदंडों को शामिल करते हुए विनियामक मार्गदर्शी सिद्धान्त लागू किये गए थे। रिज़र्व बैंक सर्वांगीण रूप से महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के कार्यों और इनमें बैंकों के निवेशों पर निगरानी रखता रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हुई गतिविधियों और इन सर्वांगीण रूप से महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में बैंकों के बढ़ते हुए निवेश को देखते हुए अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में इन संस्थाओं के लिए पूंजी पर्याप्तता चलनिधि और प्रकटीकरण मानकों के संबंध में विनियमनों की समीक्षा करने का प्रस्ताव किया गया था। तदनुसार, सर्वांगिन रूप से महत्वपूर्ण जमा स्वीकार न करने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी-एनडी-एसआई) के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंडों पर मार्गदर्शी सिद्धान्तों का प्रारूप जनसामान्य की राय जानने हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक की वेवसाईट पर रखा गया था। जन सामान्य से मिली राय/ विचारों को ध्यान में रखते हुए दिनांक 1 अगस्त 2008 को मार्गदर्शी सिद्धान्त अंतिम रूप से जारी कर दिए गए हैं।

वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन पर समित: गतिविधियां

195. वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन समिति जिसका गठन भारत सरकार द्वारा रिज़र्व बैंक की सलाह से वित्तीय क्षेत्र के व्यापक मूल्यांकन करने हेतु किया गया था, के द्वारा की गयी प्रगति का ब्यौरा अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में दिया गया था। इसके बाद से समिति द्वारा गठित चार सलाहकार पैनलों की रिपोर्टों में वित्तीय स्थिरता आकलन और दबाव परीक्षण, वित्तीय विनियमों और पर्यवेक्षण के लिए यथाअनुमेय संगत अंतर्राष्ट्रीय मानकों और संहिताओं, संस्थाएं और बाजार संरचना तथा पारदर्शिता मानकों की बाहरी विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा करते समय इस प्रयोजन के लिए निर्धारित प्रत्येक संगत क्षेत्र के प्रतिस्पर्धी से तुलना की गई। वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन समिति द्वारा समकक्षी समीक्षकों और परामर्शदाता पैनल के सदस्यों के साथ विभिन्न पैनल रिपोर्टों द्वारा उठाये गये मुद्दों/अनुशंसाओं पर विचार-विमर्श करने हेतु जून में दो दिवसीय और जुलाई 2008 में एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया समकक्षी समीक्षकर्ताओं द्वारा की गई टिप्पणियों को यथावश्यक रूप से शामिल करते हुए पैनलों द्वारा अपनी रिपोर्टों को अंतिम रूप दिया गया। इसके साथ-साथ वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन समिति की समग्र-दृष्टिकोण रिपोर्ट भी तैयार की जा रही है। ऐसा अनुमान है कि चारों परामर्शदाता पैनलों की रिपोर्ट और वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन समिति की समग्र दृष्टिकोण रिपोर्ट दिसंबर 2008 तक जारी कर दी जाएगी।

मुंबई

अक्तूबर 24, 2008

 

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