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वर्ष 2005-06 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा : मानक परिसंपत्तियों के लिए अतिरिक्त प्रावधानीकरण की आवश्यकता

भारिबैं/2005-06/227
बैंपविवि. सं. एफआइडी. एफआइसी. 6 /01.02.00/2005-06

6 दिसंबर 2005
15 अग्रहायण 1927 (शक)

सभी भारतीय मीयादी ऋणदात्री तथा पुनर्वित्त संस्थाओं के
मुख्य कार्यपालक अधिकारी

(एक्ज़िम बैंक, आइडीएफसी लि., आइएफसीआइ लि., आइआइबीआइ लि.,
नाबार्ड, एनएचबी, सिडबी तथा टीएफसीआइ लि.)

महोदय,

वर्ष 2005-06 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा : मानक परिसंपत्तियों के लिए अतिरिक्त प्रावधानीकरण की आवश्यकता

वर्तमान विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों के अनुसार मानक परिसंपत्तियों पर संविभाग आधार पर निधीकृत बकाया राशियों के 0.25 प्रतिशत के एकसमान प्रावधानीकरण की अपेक्षा लागू होती है। पारंपरिक रूप से ऋण तथा अग्रिम संविभाग एक चक्र के अनुसार हैं तथा किसी विस्तार के चरण के दौरान तेजी से बढ़ते हैं और मंदी के दौरान धीरे-धीरे बढ़ते हैं । विस्तार तथा त्वरित ऋण वृद्धि के समय अंतर्निहित जोखिम के स्तर को कम करके आंकने की प्रवृत्ति होती है तथा मंदी के समय इसके विपरीत प्रवृत्ति होती है । इस प्रवृत्ति को ऊपर उल्लिखित विवेकपूर्ण विशिष्ट प्रावधानीकरण की अपेक्षाओं द्वारा कारगर रूप से हल नहीं किया गया है क्योंकि उन पर जोखिम तत्काल नहीं, बाद में बढ़ते हैं। अत: अर्थव्यवस्था में गिरावट अथवा बाद में उभरने वाली ऋण कमजोरियों की स्थिति में वित्तीय संस्थाओं के तुलन-पत्रों हेतु अनुकूल स्थिति हो, इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रावधानीकरण में वृद्धि की जाए ।

2. इस संबंध में, वर्ष 2005-06 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा का पैरा 85 देखें (पैरा की प्रतिलिपि संलग्न)। तदनुसार, ऋण वृद्धि में हाल की प्रवृत्तियों को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि ‘मानक अग्रिमों’ के लिए सामान्य प्रावधानीकरण की अपेक्षा को 0.25 प्रतिशत के वर्तमान स्तर से बढ़ाकर 0.40 प्रतिशत कर दिया जाए । इसके परिणामस्वरूप बैंकों के कृषि तथा लघु और मध्यम उद्यम (एसएमई) क्षेत्रों में प्रत्यक्ष अग्रिमों को छोड़कर अन्य सभी मानक परिसंपत्तियों पर संविभाग आधार पर निधीकृत बकाया राशि के 0.40 प्रतिशत के एकसमान प्रावधानीकरण की अपेक्षा लागू होगी ।

3. वित्तीय संस्थाएं, मानक श्रेणी में कृषि तथा लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्रों में दिए जाने वाले प्रत्यक्ष अग्रिमों के लिए 0.25 प्रतिशत पर प्रावधान करना जारी रखेंगे ।

4. अब तक की तरह, ये प्रावधान अनुमत सीमा तक पूंजी पर्याप्तता के प्रयोजनों से टीयर - घ्घ् पूंजी में सम्मिलित किये जाने के लिए पात्र होंगे ।

5. कृपया प्राप्ति-सूचना दें ।

भवदीय

(पी. विजय भास्कर)

मुख्य महाप्रबंधक


वर्ष 2005-06 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा का उद्धरण :

विवेकपूर्ण प्रावधानीकरण अपेक्षाएं: समीक्षा

82. विवेकपूर्ण दिशा-निर्देशों के अनुसार, बैंकों से अपेक्षित है कि वे चूक की मात्रा के आधार पर खाता-दर-खाता अपने समस्त ऋणों और अग्रिमों के संविभाग का आकलन करें तथा उन्हें चार व्यापक परिसंपत्ति वर्गीकरण कोटियों यथा; मानक, अवमानक, संदिग्ध और हानि में वर्गीकृत करें । मानक परिसंपत्तियाें पर संविभाग आधार पर निधीकृत बकाया राशियों के 0.25 प्रतिशत के एक समान प्रावधानीकरण की अपेक्षा की जाती है । बैंकों से यह अपेक्षित है कि वे अवमानक आस्तियों के संबंध में निधीकृत बकाया राशियों के 10 प्रतिशत की समान दर पर तथा संदिग्ध खातों के लिए उस अवधि को ध्यान में रखते हुए जिसमें वह खाता अनर्जक रहा है तथा बैंक के पास रखी गई जमानत के प्रभारित प्रतिभूति के वसूली योग्य मूल्य को भी ध्यान में रखते हुए 20 से 100 प्रतिशत के बीच की दरों पर विशिष्ट प्रावधान करें ।

83. पारम्परिक रूप से, बैंकों के ऋण एवं अग्रिम संविभाग एक चक्र के अनुसार हैं तथा किसी विस्तार के चरण के दौरान तेजी से बढ़ते हैं और मंदी के दौरान धीरे-धीरे बढ़ते हैं । विस्तार तथा त्वरित ऋण वृद्धि के दौरान निहित जोखिम के स्तर को कम करके आंकने की प्रवृत्ति होती है तथा मंदी के दौरान इसके विपरीत प्रवृत्ति होती है । इस प्रवृत्ति को ऊपर निर्दिष्ट विशिष्ट विवेकशील प्रावधानीकरण अपेक्षाओं द्वारा प्रभावी ढंग से हल नहीं किया गया है क्योंकि उनपर जोखिम तत्काल नहीं, बाद में बढ़ते हैं ।

84. चक्रीयता के तत्व को कम करने के लिए उपलब्ध विभिन्न विकल्पों में अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित बातें भी शामिल हैं: परिसंपत्तियों की जोखिमशीलता के आधार पर एक वर्ष की अपेक्षा पूरे कारोबारी चक्र की अपेक्षाओं का आकलन करके गतिशील प्रावधानीकरण संबंधी अपेक्षाओं के लिए यथार्थ पद्धतियाँ अपनाना (जैसा कि कुछ देशों द्वारा किया जा रहा है); विवेकपूर्ण पूंजी अपेक्षाएं और समय विशेष पर रेतिंग के बदले संपूर्ण चक्र के दौरान रेतिंग के बीच सहसंबंध स्थापित करना; तथा "मूल्य की तुलना में ऋण" अनुपात संबंधी लचीली अपेक्षाएँ स्थापित करना जिसके अंतर्गत "मूल्य की तुलना में ऋण" अनुपात परिसंपत्ति के मूल्यों में होने वाले उतार-चढ़ाव से सीधे जुड़ा होगा।

85. ऋण वृद्धि में हाल की प्रवृत्तियों को ध्यान में रखते हुए यह प्रस्तावित है कि:

  • ‘मानक अग्रिमों’ के लिए सामान्य प्रावधानीकरण अपेक्षा को 0.25 प्रतिशत के वर्तमान स्तर से बढ़ाकर 0.40 प्रतिशत कर दिया जाए। कृषि तथा लघु तथा मध्यम उद्यम क्षेत्र में बैंक के प्रत्यक्ष अग्रिमों को अतिरिक्त प्रावधानीकरण अपेक्षा से छूट प्राप्त होगी। अब तक के अनुसार, अनुमत सीमा तक पूंजी पर्याप्तता प्रयोजनों के लिए टीयर घ्घ् पूंजी में शामिल होने के लिए ये प्रावधान पात्र होंगे । इस संबंध में परिचालनात्मक दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे ।

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