मौद्रिक और ऋण नीति 2003-04 - अनर्जक आस्तियों के लिए प्रावधान - आरबीआई - Reserve Bank of India
मौद्रिक और ऋण नीति 2003-04 - अनर्जक आस्तियों के लिए प्रावधान
मौद्रिक और ऋण नीति 2003-04 -
अनर्जक आस्तियों के लिए प्रावधान
संदर्भ : बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 106 /21.04.048/2002-03
7 मई 2003
17 वैशाख 1925 (शक)
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर)
प्रिय महोदय,
मौद्रिक और ऋण नीति 2003-04 -
अनर्जक आस्तियों के लिए प्रावधान
कृपया गवर्नर महादेय के 29 अप्रैल 2003 के पत्र एमपीडी. बीसी. 230/07.01.279/2002-03 के साथ संलग्न ‘‘वर्ष 2003-04 की मौद्रिक और ऋण नीति’’ पर वक्तव्य का पैरा 130 देखें । हमारे 23 अप्रैल 2003 के परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 96/21.04.048/2002-03 के अनुबंध के पैरा 5 (अ) (क) में बैंकों / वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रतिभूतिकरण / पुनर्निर्माण कंपनियों को वित्तीय आस्तियों की बिक्री के संबंध में दिशा-निर्देश दिये गये हैं । यदि प्रतिभूतिकरण / पुनर्निर्माण कंपनियों को आस्तियों की बिक्री शुद्ध बही मूल्य से कम मूल्य पर है (अर्थात् बही मूल्य में से धारित प्रावधान घटाकर), तो उक्त कमी को उस वर्ष के लाभ-हानि लेखे में नामे डाल देना चाहिए । यह परिकल्पना की गयी है कि बैंक अपनी अनर्जक आस्तियों को प्रतिभूतिकरण / पुनर्निर्माण कंपनियों को पर्याप्त डिस्काउंट पर बेच सकेंगे । इसके फलस्वरूप यदि कोई कमी आती है तो उसे पूरा करने में बैंकों को समर्थ बनाने के लिए बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे अपनी अनर्जक आस्तियों के लिए न्यूनतम विनियामक अपेक्षाओं से काफी अधिक का प्रावधान रखें, खास तौर से उन आस्तियों के लिए, जिन्हें वे प्रतिभूतिकरण / पुनर्निर्माण कंपनियों को बेचना चाहते हैं ।
भवदीय
( एम. आर. श्रीनिवासन)
प्रभारी मुख्य महा प्रबंधक