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मौद्रिक नीति वक्तव्य 2012-13

डॉ. डी. सुब्बाराव
गवर्नर

भूमिका

2012-13 की यह मौद्रिक नीति एक चुनौतीपूर्ण समष्टि-आर्थिक माहौल में तैयार की गई है। जनवरी 2012 में की गई तीसरी तिमाही समीक्षा (टीक्यूआर) के बाद से, वैश्विक स्तर पर संकट संबंधी चिंताओं में कुछ कमी आई है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में समुत्थान (रिकवरी) के हल्के संकेत बने हुए हैं। यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) की ओर से बड़े पैमाने पर डाली गई चलनिधि (लिक्विडिटी) ने वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में दबाव को काफी कम किया है। तथापि, हाल के घटनाक्रम, जैसे कि स्पेन में, यह बता रहे हैं कि यूरो क्षेत्र का सरकारी ऋण संकट वैश्विक अर्थव्यवस्था पर छाया रहेगा। उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) में विकास संबंधी जोखिम सामने आए हैं। एवम इन सबके बीच, कच्चे तेल की कीमतें जनवरी से अब तक 10 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं और वर्तमान स्तर पर बने रहने का संकेत दे रही हैं।

2. घरेलू स्तर पर, अर्थव्यवस्था की स्थिति बढ़ती चिंता का विषय बनी हुई है। यद्यपि हाल के महीनों में मुद्रास्फीति में मामूली कमी आई है, पर अड़ी हुई है और स्वीकार्य सीमा से ऊपर बनी हुई है जबकि विकास धीमा पड़ा है। महत्त्वपूर्ण यह है कि ये प्रवृत्तियां ऐसे समय में सामने आ रही हैं जबकि राजकोषीय घाटा, चालू खाता घाटा और आस्तियों की गिरती गुणवत्ता को लेकर चिंता बढ़ी हुई है। इस संबंध में मौद्रिक नीति के लिए चुनौती यह है कि मुद्रास्फ़ीति के नियंत्रण पर सजग रहे और साथ ही, विकास को होने वाले खतरों व दूसरे नाज़ुक पक्षों के प्रति संवेदनशील हो।

3. उपर्युक्त संदर्भ में, इस वक्तव्य को रिज़र्व बैंक द्वारा कल जारी की गयी समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों में दी गयी विस्तृत समीक्षा के साथ पढ़ा और समझा जाए ।

4. यह वक्‍तव्‍य दो भागों में है। भाग ए मौद्रिक नीति पर केंद्रित है और इसे चार खंडों में बांटा गया है: खंड I में वैश्विक एवं घरेलू समष्टि आर्थिक गतिविधियां दी गई हैं; खंड II में घरेलू विकास, मुद्रास्‍फीति और कुल मौद्रिक राशियों संबंधी परिदृश्य एवं पूर्वानुमान दिए गए हैं; खंड III मौद्रिक नीति के रुख़ को स्‍पष्‍ट करता है तथा खंड IV में मौद्रिक व चलनिधि उपायों का उल्लेख है। भाग बी में विकासात्‍मक एवं विनियामक नीतियां दी गई हैं और इसे पाँच खंडों में बांटा गया है: वित्‍तीय स्थिरता (खंड I), वित्‍तीय बाज़ार (खंड II), ऋण वितरण और वित्‍तीय समावेश (खंड III), वाणिज्‍य बैंकों के लिए विनियामक एवं पर्यवेक्षी उपाय (खंड IV), तथा संस्‍थागत गतिविधियां (खंड V)।

भाग ए. मौद्रिक नीति

I. अर्थव्‍यवस्‍था की स्थिति

वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था

5. वैश्विक समष्टि-आर्थिक स्थितियों में मामूली बेहतरी के संकेत दिखाई दिए हैं। अमेरिका में जीडीपी विकास [तिमाही-दर-तिमाही (क्यू-ओ-क्यू), मौसमी रूप में समायोजित वार्षिकृत दर (एसएएआर)] 2011 की चौथी तिमाही में बढ़कर 3.0 प्रतिशत हो गया। उपभोक्ता खर्च बेहतर हो रहा है। एक ओर जहाँ बेरोजगारी दर के नीचे आने के रुझान हैं, वहीं यह चिंता बनी हुई है कि यह रुझान कब तक और कितना बना रह पाएगा।

6. दो दीर्घावधि पुनर्वित्त कार्रवाइयों के जरिये ईसीबी द्वारा एक ट्रिलियन से अधिक लिक्विडिटी डाले जाने से यूरो क्षेत्र में वित्तीय बाज़ारों पर फ़ौरी/तत्कालीन(इमीडियेट) दबाव काफ़ी हद तक कम हुआ है। तथापि, यूरो क्षेत्र के ऋण का कोई टिकाऊ हल निकलना अभी बाकी है। 2011 की चौथी तिमाही में यूरो क्षेत्र में जीडीपी विकास (क्यू-ओ-क्यू, एसएएआर) 1.2 प्रतिशत कम हुआ। बड़े सरकारी ऋण स्तरों के मद्देनज़र राजकोषीय सुधार, ऋण के तंग हालात और लगातार बनी हुई ऊँची बेरोजगारी ने यूरो क्षेत्र में आर्थिक कार्य-कलापों में ह्रास को और बढ़ाया है।

7. मौद्रिक कसाव और वैश्विक विकास में सुस्ती के संयुक्त प्रभाव के कारण उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) में भी विकास धीमा पड़ गया। जहाँ तक ब्रिक्स का सवाल है, 2011 की पहली छमाही में चीन में जीडीपी विकास [वर्ष-दर-वर्ष(वाई-ओ-वाई)] 9.6 प्रतिशत के औसत से घटकर 8.1 प्रतिशत हो गया। ब्राज़िल में भी 2011 की चौथी छमाही में विकास में तीव्रता से मंदी आई, परंतु रूस और दक्षिण अफ्रिका में यह मंदी तुलनात्मक रूप से कुछ कम हुई।

8. प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फ़ीति के शीर्ष माप में नरमी जारी रही। ब्रिक्स में, जहाँ ब्राज़ील और रूस में शीर्ष मुद्रास्फ़ीति में कमी आई वहीं चीन में यह बढ़ गई।

9. भू-राजनैतिक चिंताओं और वैश्विक चलनिधि की प्रचुरता के कारण 2012 की शुरुआत से अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें बढ़ी हैं। कच्चे तेल की ब्रेंट वेरायटी की कीमत जनवरी के 111 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर मध्य-अप्रैल में 120 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल हो गई। इसी तरह क्रूड के औसत भारतीय समूह की कीमत इसी अवधि में 110 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर मध्य-अप्रैल में 119 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल हो गई।

घरेलू अर्थव्यवस्था

10. जीडीपी विकास 2011-12 की दूसरी तिमाही के 6.9 प्रतिशत से घटकर तीसरी तिमाही में 6.1 प्रतिशत हो गया जबकि इसी अवधि में 2011-12 में विकास 8.3 प्रतिशत रहा। इसका मुख्य कारण औद्योगिक विकास का दूसरी तिमाही के 2.8 प्रतिशत से घटकर तीसरी तिमाही में 0.8 प्रतिशत हो जाना। तुलनात्मक रूप से सेवा क्षेत्र (सर्विसेज़ सेक्टर) की स्थिति बेहतर रही (2011-12 की दूसरी और तीसरी दोनों तिमाहियों में 8.7 प्रतिशत का विकास रहा) । समग्र तौर पर अप्रैल-दिसंबर 2011 के दौरान विकास गत वर्ष की तत्संबंधी अवधि के 8.1 प्रतिशत से उल्लेखनीय रूप से धीमा पड़कर 6.9 प्रतिशत पर आ गिरा।

11. माँग वाले पक्ष में 2011-12 की दूसरी तिमाही में (-4.0 प्रतिशत) और तीसरी तिमाही (-1.2 प्रतिशत) सकल स्थिर पूँजी निर्माण (ग्रॉस कैपिटल फॉर्मेशन) संकुचित हुआ। सरकारी अंतिम खपत व्यय (फाइनल कन्ज्यम्पशन एक्सपेंडिचर) दूसरी तिमाही में 2.9 प्रतिशत और तीसरी तिमाही में 6.2 प्रतिशत बढ़ा। निजी अंतिम खपत व्यय दूसरी तिमाही में 6.1 प्रतिशत और तीसरी तिमाही में 4.4 प्रतिशत बढ़ा।

12. 2011-12 (अप्रैल-फरवरी) के दौरान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में विकास गत वर्ष के तत्संबंधी 8.1 प्रतिशत से घटकर 3.5 पर आ गया। उपयोग के आधार पर वर्गीकरण के अनुसार, जहाँ पूँजीगत वस्तुओं और मध्यवर्ती वस्तुओं के क्षेत्र में क्रमश: 1.8 प्रतिशत और 0.9 की नकारात्मक वृद्धि देखी गई, वहीं उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं वाले क्षेत्र की वृद्धि में 2.7 प्रतिशत का ह्रास हुआ। ये रुझान बताते हैं कि चौथी तिमाही में कार्य-कलाप (एक्टिविटी) का विस्तार 6.9 प्रतिशत से धीमा रहा होगा जैसा कि जीडीपी के अग्रिम आकलन (एडवान्स्ड एस्टिमेट) से संकेत मिलता है।

13. मार्च 2012 के महीने का विनिर्माण क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) फरवरी के 56.6 से घटकर 54.7 पर आ गया जो नये ऑर्डर्स में पहले की तुलना में कमी को दर्शाता है। संयुक्त (विनिर्माण और सेवा) पीएमआई भी फरवरी के 57.8 से घटकर 53.6 पर आ गया।

14. रिज़र्व बैंक के आदेश बही, स्टॉक सूची और क्षमता उपयोग (ओबीआईसीयूएस) सर्वेक्षण के अनुसार 2011-12 की तीसरी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र के नये ऑर्डर्स और क्षमता उपयोग में पिछली तिमाही की तुलना में वृद्धि देखी गई। रिज़र्व बैंक के औद्योगिक परिदृश्य (इंडस्ट्रिअल आउटलुक) सर्वेक्षण के कारोबारी प्रत्याशा सूचकांकों में 2011-12 की चौथी तिमाही में कारोबारी विश्वास में हल्की बढ़ोतरी दिखी परंतु, 2012-13 की पहली तिमाही में हल्की कमी का संकेत पाया गया।

15. अप्रैल-नवंबर 2011 के दौरान 9 प्रतिशत से अधिक रही शीर्ष थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) मुद्रास्फ़ीति मार्च 2012 के अंत तक घटकर 6.9 प्रतिशत पर आ गई जो कि रिज़र्व बैंक के 7.0 प्रतिशत के सांकेतिक अनुमान के अनुसार है। तथापि दिसंबर-जनवरी में आई कमी का मुख्य कारण खाद्य कीमतों में कमी रही, फरवरी-मार्च वाली कमी प्रधानत: मूल खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति के कारण रही जो दो वर्षों के बाद पहली बार 5 प्रतिशत के नीचे गई।

16. खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फ़ीति जो अप्रैल-दिसंबर 2011 के दौरान 8.1 प्रतिशत थी, कुछ समय के लिए जनवरी 2012 में नकारात्मक हुई जिसका कारण मौसमी खाद्य पदार्थों, विशेषत: सब्जियों की कीमत में कमी और तुलनात्मक आधार का ऊँचा होना (हाइ बेस फेक्ट) था। तथापि फरवरी में में यह तेजी से बढ़कर 6.1 प्रतिशत पर पहुँची तथा आधार प्रभाव के घटने एवं सब्जियों की कीमतों के बढ़ने से मार्च 2012 में और बढ़कर 9.9 प्रतिशत पर जा पहुँची। प्रोटीन आधारित वस्तुओं – ‘अंडा, मछली और माँस’, दूध और दाल- में मुद्रास्फ़ीति अधिक रही जो बताता है कि माँग-आपूर्ति संबंधी संरचनात्मक (सट्रक्चरल) असंतुलन कायम है।

17. यद्यपि वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ीं, पर इसका अनुपातिक प्रभाव घरेलू ग्राहकों तक न पहुँचने के कारण ईंधन मुद्रास्फ़ीति नवंबर-दिसंबर 2011 के 15 प्रतिशत से अधिक के स्तर से मार्च 2012 में 10.4 प्रतिशत तक गिर गई। तथापि, अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों के बढ़ने के कारण अनियंत्रित खनिज तेल संबंधी मुद्रास्फ़ीति मार्च में 19.8 प्रतिशत की ऊँचाई पर रही।

18. खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति, जो नवंबर 2011 में 8.4 प्रतिशत थी, फरवरी में उल्लेखनीय रूप से गिरकर 5.8 प्रतिशत तथा मार्च 2012 में और नीचे खिसकते हुए 4.7 तक आ गई। इसका कारण घरेलू माँग में कमी और तेल से इतर पण्यों की वैश्विक कीमतों में नरमी थी। खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति (मौसमी तौर पर समायोजित 3-माह गतिशील औसत (सीज़नली एडजस्टेड 3-मंथ मूविंग एवरेज) मुद्रास्फ़ीति दर) के गति संकेतक (मूमेंटम इंडिकेटर) में भी ढलान का रुख दिखा।

19. गौर किया जाए कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फ़ीति (नई श्रृंखला से मापी गई, आधार वर्ष: 2010) जनवरी के 7.7 प्रतिशत से तेजी से बढ़ते हुए फरवरी में 8.8 प्रतिशत पर आ गई जो खाद्य मुद्रास्फ़ीति के रुझान की दिशा-परिवर्तन को दर्शाता है। खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई दुहरे अंकों में रही अर्थात् खुदरा स्तर पर कीमतें अभी भी ऊँची थी। खाद्य कीमतों के कारण अन्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों पर आधारित मुद्रास्फ़ीति ने पिछले चार महीनों के अपने ढलते ट्रेंड को उलट दिया और फरवरी में ऊपर की ओर जाने लगी। रिज़र्व बैंक द्वारा संचालित परिवार (हाउसहोल्ड) सर्वे के ताज़े दौर के अनुसार, पिछले तीन महीनों तक लगातार चढ़ने के बाद मुद्रास्फ़ीति प्रत्याशाएं कुछ नरम पड़ी हैं, वैसे अभी भी ऊँचाई पर हैं ।

20. 2011-12 की तीसरी तिमाही में 2,352 गैर-सरकारी, गैर-वित्तीय कंपनियों के एक कॉमन सैंपल पर आधारित कंपनी प्रदर्शन के एक विश्लेषण से पता चलता है कि मुद्रास्फ़ीति के लिए समायोजन (एडजस्ट) करने के बाद भी बिक्री तुलनात्मक रूप से मज़बूत रही। तथापि, वर्ष के प्रारंभ में मूल्यह्रास, ब्याज एवं कर पूर्व अर्जन (ईबीडीआईटीए) और कर पश्चात लाभ (पीएटी) मार्जिन में जो ढलान आना शुरू हुआ था वह वैसे ही जारी रहा। ये लक्षण क्रय शक्ति में लगातार गिरावट दर्शाते हैं, क्योंकि बढ़ते इनपुट लागत को अपने ग्राहकों पर डालना (पास ऑन करना) उत्पादकों के लिए लगातार मुश्किल होता जा रहा है।

21. सावधि जमाराशियों में अच्छी वृद्धि के कारण वित्तीय वर्ष 2011-12 के प्रारंभ में मुद्रा आपूर्ति (एम3) वृद्धि 17 प्रतिशत थी पर मार्च-2012 के अंत तक घटकर 13 प्रतिशत पर आ गई। यह रिज़र्व बैंक के 15.5 प्रतिशत के सांकेतिक पथ से कम है और दर्शाता है कि वर्ष के अधिकांश हिस्से के दौरान प्राथमिक चलनिधि में तंगी रही और ऋण की माँग अपेक्षतया कम रही।

22. खाद्येतर ऋण वृद्धि 2011-12 के प्रारंभ में 22.1 प्रतिशत थी पर आर्थिक कार्य-कलापों में सुस्ती के कारण घटकर फरवरी 2012 तक 15.4 आ गई। वैसे, मार्च में यह बढ़कर 16.8 तक पहुँची जो 16 प्रतिशत के सांकेतिक अनुमान से अधिक है। फरवरी 2012 तक के कृषि, उद्योग, सेवा और व्यक्तिगत ऋणों (पर्सनल लोन्स) के अलग-अलग आँकड़े दर्शाते हैं कि ऋण वृद्धि के ह्रास का क्षेत्र व्यापक रहा। वर्ष के अंत में खाद्येतर बैंक ऋण में वृद्धि का कारण कृषि और उद्योग की ओर ऋण प्रवाह का अधिक होना था । गत वर्ष के 8.4 प्रतिशत की तुलना में 2011-12 में केंद्र सरकार को जाने वाला निवल बैंक ऋण (नेट बैंक क्रेडिट) अधिक उधारियों के कारण 15.7 प्रतिशत की उल्लेखनीय ऊँची दर से बढ़ा।

23. चलनिधि (लिक्विडिटी) के तंग हालात और बैंकों से उधारी की अधिक लागत के कारण कइपनियों (कॉरपोरेटों) ने बैंकेतर स्त्रोतों, विशेषकर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) व वाणिज्यिक पत्र का सहारा अधिक लिया। परिणामत: बैंक ऋण विस्तार (समग्र तौर पर) पहले से भले ही कम रहा हो पर 2011-12 के दौरान वाणिज्य क्षेत्र की ओर संसाधनों का कुल प्रवाह 12.7 ट्रिलियन रहा जबकि गत वर्ष 12.4 ट्रिलियन था।

24. 2011-12 के दौरान प्रमुख अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबी) की मोडल जमा दरों में 45 आधार अंकों की वृद्धि हुई और उनके मोडल आधार दरों में 125 आधार अंकों की। सरकारी क्षेत्र के पाँच प्रमुख बैंकों की भारित औसत उधारी दर (वेटेड एवरेज लेंडिंग रेट्स) मार्च 2011 के 11.0 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2011 में 12.8 प्रतिशत तक पहुँची और फरवरी 2012 में व्यापकत: उसी स्तर पर रही जो दर्शाता है कि बैंक उधारी दरें मोटे तौर पर नीति दर संकेत के अनुसार चल रही थीं।

25. 2011-12 के दौरान चलनिधि के हालात घाटे की स्थिति (डेफ़िसिट मोड) में रहे। तथापि, नवंबर 2011 से चलनिधि की कमी स्वीकार्य सीमा यानी बैंकों की माँग व मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के एक प्रतिशत (+)/(-) के पार चली गई। दैनिक चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत डाली जाने वाली औसत निवल चलनिधि अप्रैल-सितंबर 2011 के 0.5 ट्रिलियन से बढ़कर फरवरी में लगभग 1.4 ट्रिलियन और मार्च 2012 में और बढ़कर 1.6 ट्रिलियन हो गई जो कि अंशत: सरकारी कैश बैलेंस में वृद्धि के चलते थी। चलनिधि की तंगी को कम करने के लिए रिज़र्व बैंक ने अधिक टिकाऊ किस्म की प्राथमिक चलनिधि डालने के कदम उठाए। बैंक ने इसके लिए नवंबर 2011 और मार्च 2012 के बीच 1.3 ट्रिलियन की खुला बाज़ार कार्रवाइयां (ओपन मार्केट ऑपरेशन्स) कीं। इसके अलावा, आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में 125 आधार अंक (28 जनवरी 2012 से 50 आधार अंक और मार्च 2012 से 75 आधार अंक) की कमी की गई जिससे 0.8 ट्रिलियन की प्राथमिक चलनिधि (प्राइमरी लिक्विडिटी) आई। इन कार्रवाइयों और सरकारी कैश बैलेंस में कमी के कारण एलएएफ के तहत डाली गई निवल चलनिधि जो 30 मार्च 2012 को 2.0 ट्रिलियन की ऊँचाई पर थी, तेजी से गिरते हुए 13 अप्रैल 2012 को 0.7 ट्रिलियन पर आ गई।

26. केंद्र सरकार के वित्त के संबध में 2011-12 के संशोधित आकलन ने बताते हैं कि प्रमुख घाटा संकेतक बजट आकलनों (बीई) के पथ से उल्लेखनीय रूप से अलग हुए। 2012-13 के यूनियन बजट ने राजकोषीय जवाबदेही तथा बजट प्रबंध अधिनियम (एफआरबीएम), 2003 में संशोधन की बात कहकर राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के पथ पर वापसी की शुरुआत की है। महत्त्वपूर्ण यह है कि इसने 2012-13 में सब्सिडियों को जीडीपी के 2 प्रतिशत से कम पर सीमित करने के उद्देश्य का संकेत भी दिया। विश्वसनीय मध्यावधि राजकोषीय सुदृढ़ीकरण को हासिल करने में इन कार्रवाइयों से बड़ी सहायता मिलेगी। तथापि, चालू वर्ष में राजकोषीय घाटा-जीडीपी अनुपात में 0.8 प्रतिशत बिंदु गिरावट का लक्ष्य पाना ईंधन व उर्वरक सब्सिडियों पर ठोस कार्रवाइयों पर गंभीर रूप से निर्भर होगा।

27. 2011-12 का 10-वर्षीय बेंचमार्क सरकारी प्रतिभूति प्रतिफल (गवर्नमेंट सिक्यूरिटी) रेंज में (रेंज बाउंड) रहा । बाज़ार उधारियों में वृद्धि, नीति दर वृद्धि और लिक्विडिटी में लगातार बनी हुई तंगी के कारण अक्टूबर 2011 में इसमें मज़बूती आई। मार्च 2012 के अंत की ओर प्रतिफल पुन: मज़बूत हुआ जो इस बात की चिंताओं का सूचक है कि 2012-13 में सरकारी उधारी कार्यक्रम 2011-12 के विस्तारित कार्यक्रम से भी उल्लेखनीय रूप से बड़ा है। 10-वर्षीय बेंचमार्क प्रतिफल 2011 के मार्च-अंत के 8.0 प्रतिशत था जबकि 13 अप्रैल 2012 को 8.6 प्रतिशत।

28. भारत का चालू खाता घाटा अप्रैल-दिसंबर 2010 के 39.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 3.3 प्रतिशत) से बढ़कर अप्रैल-दिसंबर 2011 के दौरान 53.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 4.0 प्रतिशत) पर पहुँच गया जिसका प्रधान कारण बढ़ा हुआ व्यापार घाटा (ट्रेड डेफिसिट) था। अप्रैल –दिसंबर 2011 में गत वर्ष की इसी अवधि की तुलना में निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (नेट एफडीआई) आगम यद्यपि अधिक रहा, पर संविभाग प्रवाह (पोर्टफोलिओ फ्लोज़) कम रहा जिसका परिणाम यह हुआ कि समग्र तौर पर गत वर्ष की तुलना में पूँजी का आगम कम रहा। इसके फलस्वरूप विदेशी मुद्रा भंडार (रिज़र्व्स) में अप्रैल-दिसंबर 2011 के दौरान 7.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक आहरण जनित कमी (ड्राडाउन) हुई जबकि गत वर्ष तत्संबंधी अवधि में 11.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि (एक्रीशन) हुई थी।

29. वैश्विक अनिश्चितता के चलते पूँजी आगम में आई कमी के कारण मुद्रा बाज़ार (करेंसी मार्केट) अगस्त –दिसंबर 2011 के दौरान दबाव में था। तथापि, पूँजी आगम के बढ़ने से तथा डॉलर आपूर्ति को बेहतर करने व अटकलबाजी पर लगाम कसने के लिए की गई नीतिगत कार्रवाइयों के प्रभाव से 2011-12 की चौथी तिमाही में परिस्थितियां कुछ आसान हुईं। 2011-12 के दौरान 6, 30, और 36 – मुद्रा व्यापार भारित वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (रीर) में 8-9 प्रतिशत की रेंज में ह्रास हुआ जिसका प्राथमिक कारण अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए का लगभग 13 प्रतिशत तक का सांकेतिक मूल्यह्रास (नॉमिनल डेप्रिसिएशन) होना था।

II. घरेलू परिदृश्य और पूर्वानुमान

विकास

30. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा 2011-12 में 6.9 प्रतिशत जीडीपी विकास का अग्रिम आकलन रिज़र्व बैंक के 7.0 प्रतिशत के आधारभूत पूर्वानुमान के निकट है।

31. 2012-13 में और आगे की बात करें तो, यदि मानसून सामान्य रहा तो संभावना है कि कृषि ट्रेंड लेवल के करीब हो। उद्योग का प्रदर्शन बेहतर हो सकता है क्योंकि उद्योग के अग्रणी संकेतक आईआईपी वृद्धि में बदलाव का संकेत दे रहे हैं। वैश्विक परिदृश्य भी पहले की प्रत्याशा से कुछ बेहतर दिख रहा है। समग्र तौर पर, 2012-13 में घरेलू विकास परिदृश्य 2011-12 की तुलना में कुछ बेहतर नज़र आ रहा है। तदनुसार, 2012-13 में आधारभूत जीडीपी वृद्धि का अनुमान 7.3 प्रतिशत का है (चार्ट 1)।

32. इस संबंध में एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है अर्थव्यवस्था के विकास की प्रवृत्ति दर (ट्रेंड रेट) का, अर्थात् वह वृद्धि दर जो लंबे समय तक टिके और जो माँग पक्ष के मुद्रास्फ़ीतीय दबावों को जन्म न दे। विकास व मुद्रास्फ़ीति के हाल के ढर्रे बताते हैं कि विकास का ट्रेंड रेट संकट-पूर्व के अपने शीर्ष से नीचे आ गया है। यद्यपि पिछली तीन तिमाहियों में विकास महत्त्वपूर्ण रूप से नीचे गया है, हमारे अनुमान बताते हैं कि 2012-13 में अर्थव्यवस्था अपने संकटोत्तर प्रवृत्ति दर (ट्रेंड रेट) पर वापस आ जाएगी यानी मुद्रास्फीतीय खतरों को बढ़ाए बिना मौद्रिक नीति को सुगम करने की कोई खास गुंजाईश नहीं बचती।

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33. इस बात पर ज़ोर दिया जाना जरूरी है कि संकट-पूर्व की तुलना में विकास की प्रवृत्ति दर में जो कमी दिखाई पड़ रही है, उसका मुख्य कारण है विभिन्न प्रकार के मोर्चों – आधारभूत संरचना, ऊर्जा, खनिज पदार्थों और श्रम - पर महत्त्वपूर्ण आपूर्तिपरक बाधाओं का सामने आना। अर्थव्यवस्था की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए इन अवरोधों पर केंद्रित एक रणनीति का होना आवश्यक है।

मुद्रास्फीति

34. 2011-12 में मुद्रास्फीति‍ व्यापक तौर पर रि‍ज़र्व बैंक द्वारा अनुमानि‍त पथ पर चली। मार्च 2012 में 6.9 प्रति‍शत की मुद्रास्फीति‍‍ रि‍ज़र्व बैंक के 7.0 प्रतिशत के सांकेति‍क अनुमान के करीब थी।

35. आगे, मुद्रास्फीति‍ परि‍दृश्य चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। खाद्य मुद्रास्फीति‍, एक मौसमी कमी के पश्चात, फि‍र से चढ़ी है। प्रोटीन –प्रधान पदार्थों से संबंधि‍त मुद्रास्फीति‍ दोहरे अंकों में बनी हुई है। कच्चे तेल की कीमतों के उँचाई पर रहने की संभावना है और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में विगत में की गई मूल्य वृद्धि का घरेलू पेट्रोलि‍यम उत्पादों के कीमतों पर पड़ने वाला प्रभाव अभी भी काफ़ी हद तक अधूरा है। कोयले और बि‍जली के संबंध में एक प्रसुप्त मुद्रास्फीति‍ का घटक भी बना हुआ है। तथापि‍, पहले किए गए मौद्रि‍क नीति‍ कसाव के कुल मांग पर विलंब से पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए खाद्येतर विनि‍र्मि‍त उत्पाद मुद्रास्फीति‍ के सीमित रहने की संभावना है। कॉरपोरेट प्रदर्शन आँकड़े भी दर्शाते हैं कि‍ मूल्य नि‍र्धारण क्षमता घट गई है। फलस्वरूप, नियंत्रि‍त मूल्यों में समायोजन (एडजस्टमेंट) के सामान्यीकृत मुद्रास्फीति‍ दबाबों में बदल जाने का जोखि‍म सीमित ही है परंतु‍ इस मामले में ढील बरतने की कोई गुंजाइश नहीं है।

36. घरेलू मांग-आपूर्ति‍ संतुलन, पण्य कीमतों में वैश्वि‍क रुझानों और मांग के संभावि‍त परि‍दृश्य को ध्यान में रखते हुए, मार्च 2013 के थोक मूल्य सूंचकाक (डब्ल्यूपीआई) मुद्रास्फीति‍ के आधारभूत अनुमान को 6.5 प्रति‍शत पर रखा गया है। मुद्रास्फीति‍ के इस वर्ष रेंज में रहने की संभावना है (चार्ट 2) ।

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37. इस पर पुन: जोर देने की आवश्यकता है कि‍ यद्यपि‍ मुद्रास्फीति‍ लगातार पि‍छले दो वर्षों में ऊँचाई पर रही है, पर 2000 के दशक में डब्ल्यूपीआई और सीपीआई दोनों में मुद्रास्फ़ीति, औसतन 5.5 प्रति‍शत रही जो कि‍पहले के लगभग 7.5 प्रति‍शत के ट्रेंड रेट से कम है। इस पृष्ठभूमि में मौद्रिक नीति, मुद्रास्फीति प्रत्याशा को 4.0 - 4.5 प्रतिशत के रेंज में बनाए रखने का कार्य करेगी। वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था के साथ भारत के अधिकाधिक एकीकरण के अनुरूप यह 3.0 प्रतिशत मुद्रा स्‍फीति के मध्‍यावधि लक्ष्य के अनुकूल रहेगा।

कुल मौद्रि‍क राशि‍यां (मॉनिटरी एग्रिगेट्स)

38. वृध्दि‍ और मुद्रास्फीति‍ अनुमानों के अनुरूप, नीति‍गत उद्देश्यों के लि‍ए, वर्ष 2012-13 के लि‍ए एम3 में 15 प्रति‍शत की वृध्दि का अनुमान है। फलत:, अनुसूचि‍त वाणि‍ज्य बैंक (एससीबी) की कुल जमाराशियों के 16 प्रति‍शत बढ़ने का अनुमान है। नि‍जी क्षेत्र और सरकारी क्षेत्र की संसाधन आवश्यकताओं को संतुलि‍त रखने की जरूरत को देखते हुए, अनुसूचि‍त वाणि‍ज्य बैंकों (एससीबी) के खाद्येतर ऋण में 17 प्रति‍शत वृध्दि‍ का अनुमान है। हमेशा की तरह, ये आंकड़े सांकेतिक अनुमान हैं न कि लक्ष्य।

जोखिम के कारक

39. वर्ष 2012-13 में वि‍कास और मुद्रास्फीति‍ से संबंधि‍त सांकेतिक अनुमान कई तरह के जोखि‍मों पर नि‍र्भर हैं जि‍न्हें नीचे बताया जा रहा है:

  1. वैश्वि‍क पण्य कीमतों, वि‍शेषत: कच्चे तेल, का परि‍दृश्य अनि‍श्चि‍त है। जनवरी 2012 की तीसरी ति‍माही समीक्षा के बाद से वैश्वि‍क कच्चे तेल और पेट्रोलि‍यम उत्पाद मूल्य लगातार बढ़ गए हैं। एक ओर जहाँ वैश्वि‍क मांग-आपूर्ति‍ असंतुलन, स्टॉक की तंग हालत और वैश्वि‍क चलनिधि की प्रचुर मात्रा का इसमें हाथ है, वहीं भू-राजनीति‍क घटनाक्रमों ने मूल्य दबावों को हाल में बढ़ा दिया है। यद्यपि‍ मांग की तरफ से तेल कीमतों में वृद्धि का जोखि‍म सीमित है, पर भू-राजनीति‍क तनावों से चिंता बनी हुई है, और आपूर्ति‍ में कोई भी रुकावट कच्चे तेल की कीमतों को और बढ़ा सकती है। इसका घरेलू वि‍कास, मुद्रास्फीति‍ और राजकोषीय व चालू खाता घाटों पर असर पड़ेगा।

  2. 2008-09 से केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा ऊँचा रहा है। 2011-12 में राजकोषीय घाटा भी काफी अधिक रहा है। यद्यपि 2012-13 में राजकोषीय घाटे में कमी लाने की बात कही गई है, परंतु बजटित राजकोषीय घाटे को ऊपर ले जाने वाले कई जोखिम बने हुए हैं। विशेष तौर पर गैर-योजना व्यय को 2012-13 के बजट आकलन के भीतर रोकना सब्सिडियों को सीमित करने की प्रतिबद्धता को पूरा करने की सरकार की क्षमता पर निर्भर करता है। तेल बाज़ार कंपनियों (ओएमसीज़) के साथ इस बोझ को साझा करने के लिए हुए हालिया व्यवस्था के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल कीमतों के वर्तमान स्तर पर ओएमसीज़ की कम उगाहियों की भरपाई का बजट आकलन अपेक्षित राशि से काफी कम होने वाला है। राजकोषीय घाटे में किसी प्रकार की ढील के मुद्रास्फ़ीतीय प्रभाव होंगे।

  3. आगे, बड़े राजकोषीय घाटे के चलते सरकार की उधारी आवश्यकताएं भी बढ़ी हैं। दिनांकित प्रतिभूतियों (डेटेड सिक्यूरिटीज़) के माध्यम से 2012-13 के लिए बजटित 4.8 ट्रिलियन की निवल बाज़ार उधारियां (नेट मार्केट बॉरोइंग्स) गत वर्ष की 4.4 ट्रिलियन की बढ़ी हुई उधारियों से भी अधिक थीं। इतनी बड़ी उधारियों में निजी क्षेत्र को जाने वाले ऋण को घटा देने की संभावना है। यदि राजकोषीय मोर्चे पर चूक होती है तो अधिक उत्पादक निजी क्षेत्र की ऋण माँग के घटने का महत्त्व और अधिक गंभीर हो जाएगा ।

  4. दिसंबर 2011 को समाप्त तिमाही में चालू खाता घाटा (सीएडी) जीडीपी का 4.3 प्रतिशत था जिसे बहुत अधिक कहा जाएगा। इतने ऊँचे दर का चालू खाता घाटा,हमारी अर्थव्यवस्था बनाए नही रख सकती और इसे रोकने की जरूरत है। उभरते बाज़ारों को जाने वाले पूँजी प्रवाह के संबंध में 2012 में कम अनुमान को देखते हुए, सीएडी का वित्तपोषण (फाइनैंसिंग) एक बड़ी चुनौती पेश करता रहेगा।

  5. प्रोटीन प्रधान वस्तुओं में मुद्रा स्फ़ीति दुहरे अंकों में बनी हुई है और इस रुझान के पलटने के आसार नहीं दिख रहे हैं। इसका मुख्य कारण ऐसी वस्तुओं में संरचनागत असंतुलनों का होना है। सरकार ने प्रोटीन-मुद्रास्फ़ीति रोकने के लिए आपूर्ति पक्ष में मध्यावधि से दीर्घावधि के बीच के कुछ उपाय घोषित किए हैं। तथापि, प्रोटीन–प्रधान पदार्थों पर कीमतों का दबाव निकट भविष्य में खाद्य मुद्रास्फ़ीति के लिए जोखिम का कारक बना रहेगा।

III. नीति‍ का रुख़

40. मुद्रास्फीति‍ को रोकने और मुद्रास्फीति‍ प्रत्याशाओं को स्थिर करने के लि‍ए मार्च 2010 - अक्तूबर 2011 के दौरान नीति‍ दर में 375 आधार अंकों की बढ़ोतरी के पश्चात, अपनी दि‍संबर 2011 की मध्य ति‍माही समीक्षा (एमक्यूआर) में रि‍ज़र्व बैंक ठहरा। वि‍कास - मुद्रास्फीति‍ की बाद की परिस्थितियों को देखते हुए रि‍ज़र्व बैंक ने संकेत दि‍ए कि‍ आगे और सख्ती की आवश्यकता नहीं है तथा आगे की कार्रवाई, दरों को कम करने की दिशा में होगी।

41. वैश्वि‍क और घरेलू समष्टि‍ आर्थि‍क परि‍स्थि‍ति‍यों, परि‍दृश्य और जोखि‍मों की पृष्ठभूमि‍ में, 2012-13 के लि‍ए नीति‍ का रुख दो प्रमुख विचारों के आधार पर तय कि‍या गया है।

42. पहला, 2011-12 की तीसरी ति‍माही में वि‍कास महत्त्वपूर्ण रुप से घटकर 6.1 प्रति‍शत पर आ गया, यद्यपि‍ चतुर्थ ति‍माही में इसके मामूली रुप से बेहतर हुए होने की प्रत्याशा है। वर्तमान आकलन के आधार पर, अर्थव्यवस्था स्पष्टत: संकट के बाद के अपने ट्रेंड से नीचे चल रही है।

43. दूसरा, पहले के अनुमान के मुताबिक, शीर्ष (हेडलाइन) डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति‍ और खाद्येतर विनि‍र्मि‍त उत्पाद मुद्रास्फीति‍ मार्च 2012 तक उल्लेखनीय रूप से नरम पड़ी। दि‍संबर - जनवरी के दौरान, खाद्य कीमतों में कमी के कारण मुद्रास्फीति‍ कम हुई, तथापि‍ बाद के दो महीनों में, मुद्रास्फीति‍ में कमी का मुख्य कारण मांग में सुस्ती के चलते मूल घटकों में आई नरमी थी।

44. इस पृष्ठभूमि‍ में, मौद्रि‍क नीति‍ का रुख है कि‍:

  • नीति दरों के स्तर को वि‍कास में वर्तमान नरमी के अनुरूप समायोजित (एडजस्ट) किया जाए।

  • मांग-चालित मुद्रास्फीतीय दबाबों के फिर से उभरने के जोखि‍मों से बचाव किया जाए।

  • वि‍त्तीय व्यवस्था को पहले से अधिक चलनिधि (लिक्विडिटी) का सहारा (कुशन) दिया जाए।

IV. मौद्रि‍क उपाय

45. वर्तमान मूल्यांकन के आधार पर और भाग III में बताए गए नीति‍गत रुख़ के अनुसार रि‍ज़र्व बैंक नि‍म्नलि‍खि‍त नीति‍गत उपायों की घोषणा करता है:

रिपो रेट

46. यह नि‍र्णय लि‍या गया है कि:

चलनि‍धि‍ समायोजन सुवि‍धा (एलएएफ) के अंतर्गत रिपो रेट में तत्काल प्रभाव से 50 आधार अंकों की कटौती कर उसे 8.5 प्रति‍शत से 8.0 प्रति‍शत कर दि‍या जाए।

रि‍वर्स रिपो रेट

47. एलएएफ के अंतर्गत रि‍वर्स रिपो रेट जि‍सका नि‍र्धारण रिपो रेट से 100 आधार अंक नीचे होता है, तत्काल प्रभाव से 7.0 प्रति‍शत पर समायोजि‍त (एडजस्ट) हो गया है।

सीमांत (मार्जि‍नल) स्थायी सुवि‍धा

48. पहले से अधिक चलनिधि (लिक्विडिटी) का सहारा (कुशन) प्रदान करने के लि‍ए यह नि‍र्णय लि‍या गया है कि:

  • मार्जि‍नल स्थायी सुवि‍धा (एमएसएफ) के तहत अनुसूचि‍त वाणि‍ज्य बैंकों की उधार लेने की सीमा को तत्काल प्रभाव से उनके नि‍वल मांग और मीयादी देयताओं के 1 प्रति‍शत से बढ़ाकर 2 प्रति‍शत कि‍या जाए।

49. अब तक की तरह, सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) की अतिरिक्त धारिता (होल्डिंग) होने पर भी बैंक एमएसएफ का लाभ उठा सकते हैं।

50. रिपो रेट से 100 आधार अंकों के अधि‍क के अंतर पर नि‍र्धारि‍त किया गया एमएसएफ रेट तत्काल प्रभाव से 9.0 प्रति‍शत पर एडजस्ट हो गया है।

बैंक रेट

51. बैंक रेट तत्काल प्रभाव से 9.0 प्रति‍शत पर एडजस्ट हो गया है।

आरक्षि‍त नकदी नि‍धि‍ अनुपात (सीआरआर)

52. अनुसूचि‍त बैंकों के आरक्षि‍त नकदी नि‍धि‍ अनुपात (सीआरआर) को उनके नि‍वल मांग और देयताओं (एनडीटीएल) के 4.75 प्रति‍शत पर बनाए रखा गया है।

मार्गदर्शन

53. रिपो रेट में कटौती इस आकलन पर आधारित है कि विकास अपने संकटोत्तर ट्रेंड रेट की तुलना में धीमा पड़ गया है और इससे मूल मुद्रास्फीति में कुछ नरमी आ रही है। तथापि यह रेखांकित किया जाना जरूरी है कि विकास का अपने ट्रेंड से अंतर बहुत मामूली है। साथ ही, मुद्रास्फ़ीति को बढ़ाने वाले जोखिम बने हुए हैं। ये बातें अपने आप ही नीति दरों में और कटौती की गुंजाइश को सीमित कर देती हैं।

54. इसके अलावा, जैसा कि हाल के केंद्रीय (यूनियन) बजट में कहा गया, सब्सिडियों में कमी लाने के प्रयासों मे कमी के कारण लगातार बनने वाले माँग संबंधी दबाव इस मामले में शेष बची गुंजाइश को और कम कर देंगे। इस संदर्भ में यह अवश्य कहा जाना चाहिए कि नियंत्रित मूल्यों में संशोधनों से जहाँ शीर्ष मुद्रास्फीति (हेडलाइन इनफ्लेशन) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, वहीं इस मामले में उपयुक्त मौद्रिक नीति कार्रवाई इस बात पर आधारित होनी चाहिए कि कीमतें पहले से अधिक हुईं तो वे सामान्य मुद्रास्फ़ीतीय दबावों में बदलती हैं या नहीं। यद्यपि इस बदलाव की संभावना अर्थव्यवस्था में मूल्य निर्धारण की क्षमता पर निर्भर करती है, जो कि अभी कम हो रही है, परंतु प्रभाव की संभावना से पूरी तरह इंकार नहीं किया जा सकता। कुल मिलाकर, राजकोषीय और चालू खाता घाटों से पैदा हुईं कमज़ोरियों की दृष्टि से, समष्टि-आर्थिक स्थिरता के लिए यह जरूरी है कि वास्तविक उत्पादन लागत के अनुसार पेट्रोलियम उत्पादों के नियंत्रित मूल्यों में वृद्धि की जाए।

55. चलनिधि (लिक्विडिटी) के मामले में, एलएएफ से बैंक की घटती उधारियों और मुद्रा बाज़ार दरों की चाल को देखें तो, परिस्थितियां उत्तरोत्तर रिज़र्व बैंक की स्वीकार्य क्षेत्र की ओर बढ़ रही हैं। एमएसएफ सीमा में वृद्धि से अतिरिक्त चलनिधि की सुविधा मिलेगी। तथापि, यदि स्थिति बदलती है, तो स्वीकार्य क्षेत्र की स्थितियां बहाल करने के लिए समुचित व अग्रसक्रिय (प्रोएक्टिव) कदम उठाए जाएंगे।

प्रत्‍याशित परिणाम

56. ऐसी प्रत्याशा है कि इन मौद्रिक नीति कार्रवाइयों से :

  • विकास अपने वर्तमान संकटोत्तर ट्रेंड के आस-पास स्थिर होगा;

  • मुद्रास्फ़ीति व मुद्रास्फ़ीति प्रत्याशाओं के फिर से उभरने के खतरे पर अंकुश लगेगा; और

  • व्यवस्था में उपलब्ध चलनिधि का सहारा (कुशन) बढ़ेगा।

मौद्रिक नीति 2012-13 की मध्य-तिमाही समीक्षा

57. मौद्रिक नीति 2012-13 की आगामी मध्य-तिमाही समीक्षा सोमवार, 18 जून 2012 को प्रेस रिलीज़ के माध्यम से घोषित की जाएगी।

मौद्रिक नीति 2012-13 की पहली तिमाही समीक्षा

58. मौद्रिक नीति 2012-13 की पहली तिमाही समीक्षा मंगलवार, 31 जुलाई 2012 को की जाएगी।

भाग बी -वि‍कासात्मक और वि‍नि‍यामक नीति‍यां

59. वक्तव्य के इस भाग में हाल के नीति‍ वक्तव्यों में रि‍ज़र्व बैंक द्वारा घोषि‍त वि‍भि‍न्न वि‍कासात्मक और वि‍नि‍यामक नीति‍गत उपायों में हुई प्रगति‍ की समीक्षा और नए उपायों की जानकारी भी है।

60. वि‍त्तीय संस्थाएं और बाज़ार एक अनि‍श्चि‍त वैश्वि‍क परि‍वेश में कार्य कि‍ए जा रहे हैं। वि‍श्व भर में वि‍नि‍यामक और पर्यवेक्षी ढाँचों में सुधार, पूंजी और चलनि‍धि‍ बफर्स को बढ़ाने; जोखि‍म प्रबंधन को बेहतर करने; वि‍वेक सम्मत क्षति‍पूर्ति‍ मॉडलों को अपनाने; अच्छी सूचना प्रोद्यौगि‍की (आईटी) शासन और सुरक्षा प्रणालियां स्थापि‍त करने; और कार्यों व साथ ही रि‍पोर्टिंग में भी पारदर्शि‍ता लाने के प्रयास चल रहे हैं। इनके साथ और भी दूसरे उपाय कि‍ए जा रहे हैं ताकि‍ वि‍त्तीय संस्थानों की आंतरि‍क सुद्दढ़ता व जोखि‍म सहने की क्षमता बढ़ाई जा सके और वि‍त्तीय तंत्र को बार-बार होने वाले संकटो से बचाया जा सके।

61. एक मज़बूत और प्रत्यास्थ (रेज़ीलिएन्ट) वित्तीय व्यवस्था तैयार करने की दृष्टि से, भारत में सुधार जारी हैं। वाणिज्य बैंकों के लिए पूँजी व चलनिधि संबंधी और कड़े उपाय लागू किए गए हैं तथा प्रावधानीय बफ़र बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं। बैंकों के लिए बासल III पूँजी व चलनिधि (लिक्विडिटी) मानक निर्धारित किए जाने की प्रक्रिया चल रही है। नई विवेकसम्मत क्षतिपूर्ति प्रथाएं अपनाई गई हैं। प्रणालीगत जोखिमों पर निगरानी रखने के लिए विभिन्न संस्थागत प्रक्रियाओं और साधनों का प्रयोग प्रारंभ किया गया है। समष्टि स्तर पर विवेकसम्मत पर्यवेक्षण को प्रभावी करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

62. वाणिज्य बैंकों के अलावा, शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी), गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और माइक्रो फाइनैंस संस्थाओं (एमएफआइ) को मजबूत करने के कदम उठाए गए हैं। वित्तीय तंत्र के विभिन्न वर्गों में सुधार के साथ-साथ वित्तीय समावेशन पर फोकस जारी है। ग्राहक सेवा को बेहतर बनाने के लिए भी रिज़र्व बैंक बैंकों के साथ मिलकर काम कर रहा है।

I. वित्तीय स्थिरता

वित्तीय स्थिरता का आकलन

63. चौथी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट दिसंबर 2011 को जारी हुई। रिपोर्ट में किए गए आकलन के अनुसार, घरेलू वित्तीय व्यवस्था मजबूत रही, अलबत्ता हाल में स्थिरता के प्रति खतरा बढ़ा है। प्रतिकूल समष्टि आर्थिक घटनाक्रम में बैंकिंग व्यवस्था की प्रत्यास्थता (रेज़ीलिएंस) का आकलन करने वाले कई समष्टि-वित्तीय दबाव परीक्षणों (स्ट्रेस टेस्ट) ने दर्शाया कि वित्तीय व्यवस्था मजबूत है। दबाव परीक्षणों से यह बात भी सामने आई कि अत्यंत दबाव में भी बैंकों की पूँजी पर्याप्तता विनियामक अपेक्षाओं से अधिक रही।

64. व्यवस्थागत जोखिम के अपने आकलन के परिपूरक के रूप में रिज़र्व बैंक ने व्यापक परामर्श के माध्यम से एक व्यवस्थागत जोखिम सर्वेक्षण (एसआरएस) की शुरुआत की। एसआरएस के निष्कर्षों ने भी व्यवस्थागत की स्थिरता की पुन: पुष्टि की। आधे से अधिक सहभागी भारतीय वित्तीय व्यवस्था की स्थिरता के प्रति ‘आश्वस्त’ (कॉन्फ़ीडेंट) या ‘बहुत आश्वस्त’ (वेरी कॉन्फ़ीडेंट) थे। तथापि, सर्वेक्षण में आस्ति गुणवत्ता में गिरावट को बैंकों के समक्ष अहम जोखिमों में एक माना गया।

II. वित्तीय बाज़ार

सरकारी प्रतिभूति और ब्याज दर व्युत्पन्नों के बाज़ार पर कार्यदल

65. अक्टूबर 2011 की दूसरी तिमाही समीक्षा में की गई घोषणा के अनुसार, सरकारी प्रतिभूति और ब्याज दर व्युत्पन्नों के बाज़ार में चलनिधि बढ़ाने के उपाय सुझाने के लिए एक कार्यदल (अध्यक्ष: श्री आर गांधी) का गठन किया गया। कार्यदल अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट को अंतिम रूप दे रहा है जिसके बाद इसे मई 2012 के अंत तक रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर डाला जाएगा ताकि व्यापक फीडबैक प्राप्त किया जा सके। बाज़ार सहभागियों से प्राप्त फीडबैक/टिप्पणियों के आधार पर कार्यदल अपनी रिपोर्ट को फाइनल करेगा।

एनडीएस–नीलामी और एनडीएस-ओएम के लिए वेब पर आधारित सिस्टम की शुरुआत

66. सरकारी प्रतिभूति नीलामियों में खुदरा और बीच के वर्ग के निवेशकों की सीधी सहभागिता के लिए रिज़र्व बैंक ने क्लीयरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लि. (सीसीआइएल) द्वारा विकसित नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम (एनडीएस) –ऑक्शन सिस्टम में वेब आधारित उपयोग की अनुमति दी है। इस सिस्टम में गिल्ट अकाउंट होल्डर्स किसी प्राथमिक सदस्य (प्राइमरी मेंबर) के पोर्टल के जरिये ऑक्शन सिस्टम में अपनी बोली (बिड) सीधे रख सकते हैं जबकि पहले प्राइमरी मेंबर ही सभी घटकों के बिड्स मिलाकर बाज़ार में उनकी तरफ़ से बिड करता था। सेकेंडरी मार्केट लेन-देन हेतु एनडीएस-ऑर्डर मैचिंग (ओएम) सिस्टम में ऐसा ही वेब-आधारित एक्सेस विकसित किया जा रहा है और उम्मीद है कि जून-2012 तक यह लागू हो जाएगा।

III. ऋण वितरण और वित्तीय समावेश

बैंकों के लिए वित्तीय समावेश योजना

67. मई 2011 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में यह बताया गया था कि सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के सभी बैंकों ने अपने-अपने बोर्ड से अनुमोदित तीन-वर्षीय समावेश योजनाएं (एफआईपीज़) तैयार करके प्रस्तुत कर दिया है। इसमें निम्नलिखित शामिल है: ग्रामीण इलाकों में ईंट-गारे से बनी शाखाएं खोलना; बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट्स (बीसी) की नियुक्ति; 2000 से अधिक जनसंख्या वाले बैंकिंग सुविधा से रहित गाँवों का कवरेज व साथ ही 2000 से कम जनसंख्या वाले बैंकिंग सुविधा रहित गाँवों का शाखाओं/बीसी/अन्य माध्यमों द्वारा कवरेज; नो फ्रिल्स अकाउंट्स का खोला जाना; किसान क्रेडिट कार्डों व सामान्य क्रेडिट कार्डों का जारी किया जाना तथा उनके द्वारा वित्तीय परिधि से बाहर वर्गों के लिए से बनाए गए विशिष्ट प्रोडक्ट्स।

68. बैंकों की वित्तीय समावेश योजना के तहत हुई प्रगति का संक्षिप्त विश्लेषण बताता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों का प्रवेश कई गुना बढ़ चुका है। मार्च 2010 की शुरुआत में ईंट-गारे से बनी शाखाओं की संख्या जहाँ 21,475 थी, वहीं बैंक अब 1,38,502 बिंदुओं (आउटलेट्स) से ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएं दे रहे हैं जिसमें 24,085 ग्रामीण शाखाएं, 1,11,948 बीसी ऑउटलेस और अन्य माध्यमों के 2,469 आउटलेट्स हैं। नो फ्रिल्स अकाउंट्स की संख्या बढ़कर 99 मिलियन हो गई जिसमें 87 बिलियन से अधिक का बकाया शेष है। इसमें अप्रैल 2010 से जुड़े नए नो फ्रिल्स अकाउंट्स की लगभग 50 मिलियन है।

69. आगे, नो फ्रिल्स अकाउंट्स में अब लेन-देन की संख्या व मूल्य पर तथा सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) आधारित बीसी आउटलेट्स के माध्यम से वितरित ऋण पर अधिक ज़ोर दिया जाएगा। इस उद्देश्य से बैंकों को कहा गया है कि उनके प्रधान कार्यालय द्वारा तैयार की गई वित्तीय समावेश योजनाएं (एफआईपीज़) संबंधित नियंत्रण कार्यालयों और इसके बाद शाखा स्तरों पर बाँट दी जाएं। इन स्तरों पर हुई प्रगति की समय-समय पर निगरानी के लिए उन्हें एक पद्धति भी लागू करने को कहा गया है।

2,000 से कम जनसंख्या वाले गाँवों में बैंकिंग सेवा की व्यवस्था की कार्ययोजना

70. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के अनुसार, 2,000 से अधिक जनसंख्या वाले गाँवों में बैंकिंग सेवा की व्यवस्था की कार्ययोजना को राज्य-स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी) ने अंतिम रूप दिया। कार्ययोजना के तहत, 2000 से अधिक जनसंख्या वाले 74,414 ऐसे गाँव चिह्नित किए गए जहाँ बैंकिंग सुविधा नहीं थी और इनमें मार्च 2012 तक बैंकिंग सुविधा पहुँचाने के लिए इन्हें विभिन्न बैंकों व क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को आबंटित कर दिया गया। बैंकों ने इनमें से 74,199 (99.7 प्रतिशत) बैंक-सुविधाहीन गाँवों को कवर कर लिया है। अगली चुनौती है देश में बैंकिंग सुविधा से वंचित सभी गाँवों को कवर करने की। तदनुसार, प्रस्ताव है कि:

  • राज्य-स्तरीय बैंकर समितियों (एसएलबीसीज़) को 2,000 से कम जनसंख्या वाले सभी गाँवों में बैंकिंग सेवा की व्यवस्था की कार्ययोजना तैयार करने और एक निश्चित समय सीमा में इन तक बैंकिंग सेवा पहुँचाने के लिए इन्हें कल्पित तौर पर बैंकों को आबंटित करने का आदेश दिया जाए।

71. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे ।

72. वित्तीय समावेश के लिए किए गए प्रयासों से बैंकिंग सेवाओं की पहुँच का जहाँ विस्तार होता है, वहीं यह महत्त्वपूर्ण है कि नए सेट अप किए गए आईसीटी आधारित बीसी डिलिवरी मॉडल के माध्यम से अच्छी सेवा दी जाए। इसलिए, यह जरूरी है कि वर्तमान आधार शाखा और बीसी वाले अवस्थानों के बीच एक ईंट-गारे वाली एक नियमित शाखा का ढाँचा भी हो ताकि 3-4 किलोमीटर की एक उपयुक्त दूरी पर 8-10 बीसी यूनिट्स को सपोर्ट मिल सके। यह कम लागत वाला एक सरल ढाँचा हो सकता है जिसमें पास बुक प्रिंटर से जुड़ा एक कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (सीबीएस) टर्मिनल और नकद रखने का एक संदूक/सेफ हो ताकि बड़े ग्राहक लेन-देन संपन्न हों। इससे नकदी के प्रबंधन, दस्तावेजों के रखरखाव, ग्राहक शिकायत निपटारा तथा बीसी के कार्यों का करीब से पर्यवेक्षण जैसे कार्य अच्छी तरह हो पाएंगे। इन बीसी आउटलेट्स को बैंक शाखा की मान्यता तभी मिलेगी जब बैंकों के पूर्णकालिक प्रधिकृत कर्मचारी इन्हें चलाएंगे और तब उन पर विनियामक रिपोर्टिंग लागू होगी।

प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की नई परिभाषा

73. जैसा कि अक्टूबर 2011 की दूसरी तिमाही समीक्षा में कहा गया था, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के उधारों के वर्तमान वर्गीकरण की फिर से जाँच करने तथा वर्गीकरण व इससे जुड़े मुद्दों पर संशोधित दिशा-निर्देश सुझाने के लिए रिज़र्व बैंक ने एक समिति (अध्यक्ष: श्री एम.वी.नायर) गठित की थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट फरवरी 2012 में प्रस्तुत की। इसके प्रमुख सुझाव इस प्रकार हैं: (i) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार देने का अनुसूचित वाणिज्य बैंकों का वर्तमान लक्ष्य वही रहने दिया जाए; (ii) ‘कृषि और संबद्ध कार्यकलाप’ को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत एक मिश्रित क्षेत्र हो; (iii) कृषि और संबद्ध कार्यकलाप में छोटे और सीमांत किसानों के लिए अलग से एक उप-लक्ष्य निर्धारित किया जाए; (iv) अत्यंत लघु और लघु उद्यमों (एमएसई) के वर्ग में अत्यंत लघु उद्यमों के लिए एक उप-लक्ष्य निर्धारित किया जाए; (v) विदेशी बैंकों के प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्य को बढ़ाकर समायोजित निवल बैंक ऋण का 40 प्रतिशत या ऑफ़ बैलेंस शीट एक्सपोज़र के ऋण समतुल्य (सीईओबीई), इन दोनों में जो भी अधिक हो उसके बराबर कर दिया जाए तथा इसमें निर्यात के लिए 15 प्रतिशत और एमएसई क्षेत्र के लिए 15 प्रतिशत का उप-लक्ष्य रखा जाए; (vi) ट्रेड न किए जा सकने वाले प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र (पीएसएलसीज़) की प्रायोगिक तौर (पायलट बेसिस) पर अनुमति दी जाए; (vii) निर्दिष्ट वर्गों को ऑन-लेंडिंग के लिए बैंकेतर वित्तीय मध्यस्थों को दिए जाने वाले बैंक ऋणों को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकरण के लिए मान्यता दी जाए – एएनबीसी या सीईओबीई के अधिकतम पाँच प्रतिशत तक, दोनों में जो ज्यादा हो ; और (viii) रिपोर्ट-आधारित वर्तमान रिपोर्टिंग को डेटा-आधारित रिपोर्टिंग द्वारा बेहतर किया जाए। टिप्पणियां/सुझावों के लिए रिपोर्ट को रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखा गया है। प्राप्त फीडबैक के आधार पर रिज़र्व बैंक उपर्युक्त परामर्शों के बारे में अपनी राय बनाएगा।

ग्रामीण सहकारिताएं

सहकारिताओं की लाइसेंसिंग

74. वित्तीय क्षेत्र आकलन समिति (अध्यक्ष: डॉ राकेश मोहन और सह अध्यक्ष: श्री अशोक चावला) ने कहा (रिकमेंड किया) था कि जो ग्रामीण सहकारी बैंक मार्च-2012 के अंत तक लाइसेंस नहीं ले पाएं, उन्हें कारोबार की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। रिज़र्व बैंक ने राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण बैंक (नाबार्ड) के साथ मिलकर उन राज्य सहकारी बैंकों (एसटीसीबीज़) और जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबीज़) को लाइसेंस दिए जाने का कार्य मार्च -2012 के अंत तक बिना किसी बड़े हेर-फेर के पूरा कर लेने की योजना कार्यान्वित की । निरीक्षण/त्वरित छानबीन के आधार पर लाइसेंस जारी करने के नाबार्ड के सुझाव पर विचार करने के बाद 31 राज्य सहकारी बैंकों (एसटीसीबीज़) में से एक और 371 जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबीज़) में से 41 ऐसे पाए गए जो मार्च -2012 के अंत तक लाइसेंसिंग मानदंड पूरा नहीं कर रहे थे । इस संबंध में यथासमय उचित कार्रवाई प्रारंभ की जाएगी ।

अल्पावधि सहकारी ऋण संरचना का ठीक किया जाना

75. थ्री टीयर अल्पावधि ऋण संरचना (एसटीसीसीएस) के पुनर्पूंजीकरण (रिकैपिटलाइजेशन) के बाद, मार्च 2012 के अंत की स्थिति के अनुसार बड़ी वित्तीय अनर्जकता वाले 41 डीसीसीबीज़ लाइसेंस मानदंड पूरा नहीं करते पाए गए । संरचनागत बाधाओं से जुड़े मुद्दों की जांच करने और ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने की दृष्टि से उपयुक्त संस्थाओं व ऋण के साधनों के साथ ग्रामीण सहकारी ऋण ढाँचे को सबल करने की संभावनाएं व रास्ते तलाशने की दृष्टि से प्रस्ताव है कि :

  • एसटीसीसीएस की समीक्षा के लिए एक कार्यदल गठित किया जाए जो एसटीसीसीएस का गहन विश्लेषण करे और ऋण की लागत कम करने के विभिन्न विकल्पों तथा वर्तमान थ्री टीयर ढाँचे के स्थान पर टू-टीयर एसटीसीसीएस स्थापित करने की संभाव्यता की पड़ताल करे ।

शहरी सहकारी बैंक

आवास (हाउसिंग), रियल इस्टेट और वाणिज्यिक रियल इस्टेट में शहरी सहकारी बैंकों का एक्सपोज़र

76. वर्तमान में शहरी सहकारी बैंकों को रियल इस्टेट, वाणिज्यिक रियल इस्टेट और आवास (हाउसिंग) ऋण में अपनी कुल आस्तियों के अधिकतम 10 प्रतिशत तक के कुल एक्सपोज़र की अनुमति है तथा 1.5 मिलियन तक के आवास (हाउसिंग) ऋण के लिए उनकी आस्तियों के 5 प्रतिशत की अतिरिक्त सीमा उपलब्ध है। प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र में उधार को बढ़ावा देने के लिए, यह निर्णय लिया जाता है कि:

  • शहरी सहकारी बैंकों को अपने आस्तियों के 5 प्रतिशत की अतिरिक्त सीमा का उपयोग प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र में आने वाले 2.5 मिलियन तक के आवास (हाउसिंग) ऋणों की मंजूरी में करने की अनुमति दी जाए।

77. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।

नए शहरी सहकारी बैंक स्थापित करने के लिए लाइसेंस

78. अप्रैल 2010 की मौद्रिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के अनुसार, अक्टूबर 2010 में नए सहकारी बैंक सेट अप करने के लिए लाइसेंस दिए जाएं या नहीं इस पर विचार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति (अध्यक्ष: श्री वाई. एच. मालेगाम) का गठन किया गया था। समिति को शहरी सहकारी बैंक क्षेत्र के लिए एक छत्रप संगठन (अम्ब्रेला ऑर्गेनाइजेशन) की व्यवहार्यता पर भी विचार करने को कहा गया था। समिति ने अगस्त 2011 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। हितधारकों से टिप्पणियां व सुझाव प्राप्त करने के लिए रिपोर्ट को पब्लिक डोमेन में रखा गया। प्राप्त सुझावों के आधार पर, प्रस्ताव है कि :

  • नए शहरी सहकारी बैंक (यूसीबीज़) स्थापित करने के लाइसेंस पर दिशा-निर्देश जून 2012 के अंत तक जारी कर दिए जाएं।

ग्राहक सेवा

दामोदरन समिति की रिर्पोट का कार्यान्वयन

79. अक्तूबर 2011 की दूसरी तिमाही समीक्षा में घोषित किया गया था कि बैंकों में ग्राहक सेवा पर बनी समिति (अध्यक्ष:श्री एम दामोदरन) द्वारा की गई उन सिफारशों को जिन पर एक व्यापक सहमति बन चुकी थी तथा उन कार्रवाई बिंदुओं को भी कार्यान्वित किया जाएगा जिन्हें सितंबर 2011 में आयोजित बैंकिंग लोकपाल के वार्षिक सम्मेलन में भारतीय बैंक समूह (आईबीए) और भारतीय बैंकिंग कोड और मानक बोर्ड (बीसीएसबीआई) द्वारा तय किया गया था । आगे, यह कहा गया था कि दामोदरन समिति की बाकी सिफारिशों को हितधारकों (स्टेकहोल्डर) के साथ आगे बढ़ाया जाएगा ।

80. दामोदरन समिति ने कुल 232 सिफारिशें की थी । इसमें से,107 सिफारिशों को अब तक कार्यान्वित किया जा चुका है और आईबीए ने इस संबंध में सदस्य बैंकों को परिचालनगत दिशा-निर्देश जारी कर दिए है । अन्य 19 सिफारिशें स्वीकृत वर्ग में हैं जिन पर आईबीए द्वारा शीघ्र ही समुचित दिशानिर्देश जारी किए जाने की उम्मीद है । भारतीय रिज़र्व बैंक ने दामोदरन समिति द्वारा की गई बाकी सिफारिशों के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने के कार्य की रूपरेखा तैयार करने के लिए आईबीए,बीसीएसबीआई,इन्स्टिटयूट फॉर डेवलेपमेंट एण्ड रिसर्च इन बैंकिंग टेक्नोलॉजी (आईडीआरबीटी) और नेशनल पेंमेंट कॉरपोरेशन आफ इंडिया (एनपीसीआई) से चर्चा की है । आईबीए ने अब एक उप समिति का गठन किया है जो संबंधित अंतरर्राष्ट्रीय मानकों और बेहतर तौर-तरीकों का अध्ययन करके शेष सिफारिशों के कार्यान्वयन पर गौर करेगी ।

फ्लोटिंग ब्याज दर वाले आवास ऋण – फोरक्लोज़र चार्जेज़/ पूर्वभुगतान दंड (प्रीपेमेंट पेनाल्टी) की समाप्ति

81. दामोदरन समिति ने देखा था कि आवास ऋणों के प्रीपेमेंट पर बैंकों द्वारा लगाए जाने वाले फोरक्लोज़र चार्जेज़ को होम लोन लेने वाले सभी उधारकर्ता नापसंद करते थे विशेषत: इसलिए कि जब ब्याज घट रहा होता तो पहले के उधारकर्ताओं को इसका लाभ पहुँचाने में बैंक आना-कानी करते थे । इसके चलते, फोरक्लोज़र चार्जेज़ को अवरोधी तौर-तरीके के रूप में देखा गया जिसके कारण उधारकर्ता अधिक सस्ते स्त्रोतों को चुनने में हिचकते हैं।

82. यह समझा जाता है कि फोरक्लोज़र चार्जेज़/ पूर्वभुगतान दंड (प्रीपेमेंट पेनाल्टी) हटाने से वर्तमान और नए उधारकर्ताओं के बीच भेदभाव कम होगा और बैंकों के बीच स्पर्धा से फ्लोटिंग रेट वाले होम लोन्स में कीमतों का और बेहतर निर्धारण होगा। यद्यपि हाल में कई बैंकों ने खुद ही अपने फ्लोटिंग रेट वाले आवास ऋणों (होम लोन्स) पर से पूर्वभुगतान दंड (प्रीपेमेंट पेनाल्टी) को हटा लिया है, परंतु इस संबंध में पूरी बैंकिंग व्यवस्था में एकरूपता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है तदनुसार, प्रस्ताव है कि:

  • बैंकों को फ्लोटिंग ब्याज दर वाले आवास ऋणों (होम लोन्स) पर फोरक्लोज़र चार्जेज़/ पूर्वभुगतान दंड (प्रीपेमेंट पेनाल्टी) लगाने की अनुमति नहीं दी जाए।

83. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।

जमाराशियों पर ब्याज दरों में विभिन्नता (वैरिएशन) कम से कम हो

84. अन्य बातों के साथ-साथ रिज़र्व बैंक ने कहा है कि जो सावधि जमा योजनाएं (फिक्स्ड डिपॉजिट स्कीम्स) विशेष रूप से भारतीय वरिष्ठ नागरिकों के लिए हैं उनको और 1.5 मिलियन व उससे अधिक की एकल सावधि जमाराशियों (सिंगल टर्म डिपॉज़िट्स) को छोड़कर अन्य जमाराशियों पर दिए जाने वाले ब्याज के मामले में बैंक भेद-भाव न करें। तथापि, यह पाया गया है कि बैंकों की खुदरा व थोक जमा राशियों की दरों में व्यापक अंतर है जो कि खुदरा जमाकर्ताओं (डिपॉजिटर्स) के प्रति अनुचित है। इसके अलावा, परिपक्वता में बहुत कम अंतर वाली जमाराशियों पर भी बैंक की दरों में काफी फ़र्क है। इससे चलनिधि प्रबंधन व्यवस्था और कीमत निर्धारण प्रक्रिया में कमी का पता चलता है। अत:

  • देयताओं (लाबिलिटीज़) के कीमत निर्धारण के संबंध में बैंकों को अपने बोर्ड से अनुमोदित एक पारदर्शी नीति रखनी चाहिए और उन्हें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि 1.5 मिलियन व उससे अधिक की एकल सावधि जमाराशियों (सिंगल टर्म डिपॉज़िट्स) व अन्य सावधि जमाराशियों में अंतर कम से कम हो।

85. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।

भारत में बैंकों के ग्राहकों के लिए विशिष्ट ग्राहक पहचान (यूनिक कस्टमर आइडेंटिफिकेशन) कोड

86. यूनिक कस्टमर आइडेंटिफिकेशन कोड (यूसीआइसी) से किसी ग्राहक को पहचानने, उसको मिली सुविधाओं को ट्रैक करने, विभिन्न खातों में हो रहे वित्तीय लेन-देन पर निगरानी रखने, जोखिम (रिस्क) का बेहतर विवरण तैयार करने (प्रोफाइलिंग) में, ग्राहक विवरण को समग्रता में देखने और बैंकिंग काम-काज को ग्राहक के लिए सुगम बनाने में बैंकों को सहायता मिलेगी। हालांकि कुछ बैंकों ने पहले ही यूसीआइसी विकसित किया है, परंतु कई बैंकों में पूरे संगठन में ऐसा कोई विशिष्ट (यूनिक) नंबर नहीं है जिससे किसी एक (सिंगल) ग्राहक को चिह्नित (आइडेंटिफाइ) किया जा सके। इस संबंध में भारत सरकार ने पहले ही कुछ कदम उठाए हैं; उनके द्वारा गठित एक कार्यदल ने विभिन्न बैंकों और वित्तीय संस्थानों के ग्राहकों के लिए विशिष्ट अभिज्ञापक (आइडेंटिफायर्स) लागू करने का प्रस्ताव रखा है। इस तरह की कोई प्रणाली समूची व्यवस्था के लिए वांछनीय है, परंतु इसके पूरी तरह शुरू होने में अच्छा खासा समय लगने की संभावना है। इस दिशा में शुरुआती कदम के रूप में, बैक को कहा जाता है कि:

  • शुरुआत के तौर पर सभी वैयक्तिक ग्राहकों (इंडिविजूअल कस्टमर्स) के मामले में किसी भी नए कारोबारी संबंध की शुरुआत करते समय यूसीआइसी दिए जाने की दिशा में कार्रवाई प्रारंभ की जाए। इसी प्रकार वर्तमान वैयक्तिक ग्राहकों (इंडिविजूअल कस्टमर) को भी अप्रैल-2013 के अंत तक विशिष्ट ग्राहक पहचान (यूनिक कस्टमर आइडेंटिफिकेशन) कोड दे दिए जाएं।

87. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।

बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच (एक्सेस)-मूलभूत बैंक जमा खाता

88. बैंकिंग समावेश को रिज़र्व बैंक ने उच्च प्राथमिकता दी है। इस अवधारणा को आगे बढ़ाने के लिए नवंबर 2005 में बैंकों को एक बिना ताम-झाम का (‘नो फ्रिल्स’) मूलभूत बैंकिंग खाता उपलब्ध कराने को कहा गया था जिसमें ‘शून्य’ (निल) या बहुत कम न्यूनतम बैलेंस और प्रभार रखा जाए ताकि आबादी के बड़े हिस्से के लिए यह खाता उपलब्ध हो। खाते के इस प्रकार के नामकरण से ध्वनित होता है कि ऐसे खाते खोलने का बड़ा कारण वित्तीय समावेश योजना के अंतर्गत संख्यात्मक लक्ष्य की उपलब्धि दर्शाना है। विषय की समीक्षा के बाद, इस नामकरण से जुड़े हुए धब्बे को हटाने और समूची बैंकिंग व्यवस्था में मूलभूत बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराने में अधिक एकरूपता लाने की दृष्टि से मूलभूत बैंकिंग ‘नो फ्रिल्स’ खाता खोलने से संबंधित दिशा-निर्देशों में बदलाव लाने का निर्णय लिया गया है। तदनुसार, प्रस्ताव है कि :

  • बैंक अपने सभी ग्राहकों के लिए कुछ न्यूनतम समान सुविधाओं वाला ‘मूलभूत बचत बैंक जमा खाता’ उपलब्ध कराएं जिसमें न्यूनतम बैलेंस की आवश्यकता न हो।

89. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।

IV. वाणि‍ज्य बैंकों के लि‍ए वि‍नि‍यामक और पर्यवेक्षी उपाय

बैंकिंग क्षेत्र की प्रत्यास्थता का सुदृढ़ीकरण

बासल III पूँजी वि‍नि‍यमनों का कार्यान्वयन

90. जैसा कि‍ अक्तूबर 2011 की दूसरी ति‍माही समीक्षा में कहा गया था, रि‍ज़र्व बैंक ने बासल III- भारत में पूँजी वि‍नि‍यमनों का कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन ऑफ कैपिटल रेग्यूलेशन इन इंडिया) - पर ड्राफ्ट दि‍शा-नि‍र्देश तैयार कि‍ए और दि‍संबर 2011 में अपने वेबसाइट पर इसे रखा ताकि‍ इस संबंध में वि‍भि‍न्न हि‍तधारकों के वि‍चार/सुझाव जाने जा सकें। ड्राफ्ट दि‍शा-नि‍र्देशों में पूँजी अनुपातों की संक्रमणकालीन व्यवस्था (फेज़-इन) और अनुपयुक्त पूँजी उपकरणों के पि‍तामहकरण/ग्रैंडफादरिंग (फेज़-आउट) के संबंध में बासल III पूँजी वि‍नि‍यमनों के सुगम कार्यान्वयन का रास्ता बताया गया। बैंकों से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर रि‍ज़र्व बैंक बैंकों की पूँजी स्थि‍ति‍ व लेवरेज पर प्रस्तावि‍त बासल III मानकों के संभावि‍त प्रभाव के आकलन भी कर रहा है। वि‍भि‍न्न हि‍तधारकों के वि‍चार/सुझाव ध्यान में रखते हुए इस आकलन प्रक्रि‍या के अलावा पूँजी वि‍नि‍यमनों पर दि‍शा-नि‍र्देशों को अंति‍म रुप दि‍या जाएगा। प्रस्ताव है कि‍:

  • बासल III पूँजी वि‍नि‍यमनों के कार्यान्वयन पर अंति‍म दि‍शा-नि‍र्देश अप्रैल - 2012 के अंत तक जारी कर दि‍ए जाएं।

चलनि‍धि‍ जोखि‍म प्रबंधन और चलनि‍धि‍ मानकों पर बासल III ढाँचे का कार्यान्वयन

91. बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल समि‍ति‍ द्वारा क्रमश: सि‍तंबर 2008 और दि‍संबर 2010 में प्रकाशि‍त दस्तावेजों, प्रिंसि‍पल्स फॉर साउंड लि‍क्वि‍डि‍टी रि‍स्क मैनेजमेंट एंड सुपरवि‍ज़न और बासल III: इंटरनेशनल फ्रेमवर्क फॉर लि‍क्वि‍डि‍टी रि‍स्क मैनेजमेंट, स्टैंडर्ड्स एंड मॉनि‍टरिंग के आधार पर रि‍ज़र्व बैंक ने लि‍क्वि‍डि‍टी रि‍स्क मैनेजमेंट एंड बासल III फ्रेमवर्क ऑन लिक्विडिटी स्टैंडर्ड्स पर ड्राफ्ट दि‍शा-नि‍र्देश तैयार कि‍ए तथा टि‍प्प्णि‍यों और राय के लि‍ए फरवरी 2012 में अपनी वेबसाइट पर रखा।

92. इन ड्राफ्ट दि‍शा-नि‍र्देशों में चलनि‍धि‍ जोखि‍म प्रबंधन पर रि‍ज़र्व बैंक द्वारा वि‍गत में समय-समय पर जारी वि‍भि‍न्न दि‍शा-नि‍र्देशों/मार्गदर्शन को समेकि‍त कि‍या गया है और आवश्यकतानुसार इन नि‍र्देशों/मार्गदर्शन को बैंकिंग पर्यवेक्षण के बारे में बीसीबीएस द्वारा जारी प्रिंसिपल्स फॉर साउंड लिक्विडिटी रिस्क मैनेजमेंट एंड सुपरविज़न के अनुसार सुसंगत और संवर्धित कि‍या गया है। इनमें चलनिधि जोखिम नियंत्रण, आकलन, निगरानी और चलनिधि स्थितियों के बारे में रिज़र्व बैंक को रिपोर्ट करने के संबंध में विस्‍तृत मार्गदर्शन शामिल हैं। ड्राफ्ट दि‍शा-नि‍र्देशों में बासल III नि‍यमों में दिए गए दो न्यूनतम वैश्वि‍क मानकों - यथा - चलनि‍धि‍ कवरेज अनुपात (एलसीआर) और नि‍वल स्थि‍र फंडिंग अनुपात (एनएसएफआर) को भी शामि‍ल कि‍या गया है।

93. चलनि‍धि‍ जोखि‍म प्रबंधन के वर्धित उपायों को जहाँ ड्राफ्ट दि‍शा-नि‍र्देशों के अंति‍म रुप दि‍ए जाने के तुरंत बाद लागू कि‍या जाना है, वहीं एलसीआर और एनएसएफआर बैंकों पर क्रमश: 1 जनवरी, 2015 और 1 जनवरी, 2018 से लागू होंगे। तब तक बैंकों को सर्वोत्तम प्रयास आधार (बेस्ट एफर्ट बेसि‍स) पर बासल III मार्गदर्शनों का पालन करना होगा। इससे बैंक बासल III अपेक्षाओं के लि‍ए तैयार होंगे। प्रस्ताव है कि‍ :

  • प्राप्त सुझावों/फीड बैंक को ध्यान में रखकर चलनि‍धि‍ प्रबंधन पर अंति‍म दि‍शा-नि‍र्देशों और बासल III चलनि‍धि‍ मानकों को मई 2012 के अंत तक जारी कर दि‍या जाए।

मुख्यत: स्वर्ण पर उधार देने के कारोबार में लगी एनबीएफसी को बैंक वि‍त्त

94. मुख्यत: स्वर्णाभूषणों पर उधार देने में लगी एनबीएफसियों ने, अपने तुलन पत्र (बैलेंस शीट) के आकार में और संख्या दोनों में, हाल के वर्ष में काफी बढ़ोतरी की है । उनके कारोबार के बढ़ने तथा उनके कारोबारी मॉडल को देखते हुए जिससे केंद्रीकरण जोखि‍म (कन्सेंट्रेशन रिस्क) स्वाभाविक रूप से जुड़ा है, वि‍नि‍यामक चिंताओं के लि‍हाज से कुछ वि‍वेक सम्मत कदम उठाए गए हैं जिनमें कहा गया है कि स्वर्णाभूषणों पर कर्ज में कर्ज-से-मूल्य (लोन-टू-वैल्यू/एलटीवी) का अनुपात 60 प्रति‍शत से अधि‍क न हो और 1 अप्रैल 2014 तक 12 प्रति‍शत की न्यूनतम टियर 1 पूँजी हो । यह भी कहा गया है कि बुलियन / प्राथमिक स्वर्ण और सोने के सिक्कों पर एनबीएफसी कोई अग्रिम (एडवांस) न मंजूर करें।

95. एनबीएफसी तेजी से फैले हैं और इस कारण पब्लिक फ़ंडों पर, जिनमें बैंक फाइनैंस भी है, एनबीएफसी की निर्भरता बढ़ गई है। उपर्युक्त विवेकसम्मत कार्रवाइयों के पूरक के रूप में प्रस्ताव है कि:

  • अपनी कुल वित्तीय आस्तियों के 50 प्रतिशत तक या अधिक के स्वर्ण ऋण वाले किसी एक एनबीएफसी में बैंक अपने विनियामक एक्सपोज़र सीमा को पूँजी फंड के वर्तमान 10 प्रतिशत से घटाकर 7.5 प्रतिशत पर लाएं। तथापि, यदि बैंक का अतिरिक्त एक्सपोज़र एनबीएफसी द्वारा आधारभूत संरचना क्षेत्र को ऑन-लेंडिंग में दिए फंड के चलते हो, तो एक्सपोज़र सीमा (सीलिंग) 5 प्रतिशत से ऊपर, अर्थात् 12.5 तक जा सकती है; और

  • ऐसी सभी एनबीएफसियों में अपने कुल एक्सपोज़र पर बैंक एक आंतरिक उप-सीमा रखें जिनका अपनी कुल वित्तीय आस्तियों के 50 प्रतिशत तक या अधिक का हिस्सा स्वर्ण ऋण का हो ।

96. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।

एनबीएफसियों द्वारा स्वर्ण पर उधार: कार्यदल का गठन

97. हाल में एनबीएफसी द्वारा स्वर्ण पर ऋण देने में काफी वृद्धि हुई है। कुछ एनबीएफसी के विरुद्ध शिकायते भी हैं कि स्वर्ण ऋणों के मामलों का आनन-फानन में निपटारा करने में वे समुचित दस्तावेजी प्रक्रिया और अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) मानकों का समुचित रूप से पालन नहीं कर रहे हैं। स्वर्ण के आयात भी तेजी से बढ़े हैं और इससे समष्टि-आर्थिक चिंताएं पैदा हुई हैं। इन सभी पक्षों का विस्तृत अध्ययन करने के लिए, एक कार्यदल (संयोजक: श्री के. यू. बी. राव) का गठन किया गया है। इस दल के मुख्य कार्यक्षेत्र ये हैं: (i) स्वर्ण ऋणों की माँग के ट्रेंड का आकलन और इस बात का अध्ययन कि इसका स्वर्ण के आयातों पर क्या प्रभाव पड़ा है; (ii) बाह्य एवं वित्तीय स्थिरता पर स्वर्ण निर्यात के प्रभाव का विश्लेषण; (iii) स्वर्ण की कीमतों का विश्लेषण और इस बात की जाँच कि क्या सोने की कीमत को प्रभावित करने में स्वर्ण ऋण देने वाली एनबीएफसियों की कोई भूमिका है; (iv) स्वर्ण ऋणों के लिए एनबीएफसियों के फंड के स्त्रोतों, विशेषत: बैंकिंग प्रणाली से उनके उधार की जाँच; और (v) स्वर्ण के संपार्श्विक(कोलैटरल) पर उधार दे रही एनबीएफसियों के काम करने के वर्तमान तौर-तरीकों की जाँच । उम्मीद है कि जुलाई 2012 के अंत तक कार्यदल की रिपोर्ट प्रस्तुत हो जाएगी।

केवाईसी/एएमएल दिशा-निर्देशों का कार्यान्वयन

98. ग्राहकों के जोखिम वर्गीकरण के साथ-साथ ग्राहक विवरणों (प्रोफाइल्स) का समेकन व आवधिक अद्यतनीकरण (अपडेशन) एवं खातों में अलर्ट्स की मॉनीटरिंग व समापन (क्लोज़र) जैसे कार्य बैंकों के कारोबार के विकास में सहायक होने के साथ-साथ केवाईसी के प्रभावी कार्यान्वयन व धन-शोधन निवारण (एएमएल) और आतंकवाद की फाइनैंसिंग से लड़ने के लिए भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। तथापि, केवाईसी/एएमएल पर रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों के प्रभावी कार्यान्वयन में ढिलाई देखी जा रही है। केवाईसी/एएमएल प्रक्रिया में किसी प्रकार की कमज़ोरी से बैंकों के लिए परिचालनात्मक जोखिम (ऑपरेशनल रिस्क) की संभावना बढ़ जाती है। अत: बैंकों को केवाईसी/एएमएल संबंधी विनियामक दिशा-निर्देशों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए। तदनुसार, प्रस्ताव है कि :

  • बैंकों को निदेश दिया जाए कि वे अपने वर्तमान सभी ग्राहकों का जोखिम वर्गीकरण, ग्राहक विवरणों (प्रोफाइल्स) का समेकन व आवधिक अद्यतनीकरण (अपडेशन) एक निश्चित समय में पूरा कर लें पर किसी भी हालत में मार्च-2013 के अंत तक।

99. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।

अनर्जक आस्ति (एनपीए) प्रबंधन – एक सशक्त कार्यप्रणाली एवं वर्गीकृत आँकड़ों की आवश्यकता

100. बैंकों की आस्ति-गुणवत्ता उनकी वित्तीय स्थिति का एक महत्वपूर्ण सूचक है। इससे यह भी पता चलता है कि बैंकों का ऋण जोखिम प्रबंधन तथा वसूली का माहौल कितना प्रभावशाली है। यह अहम बात है कि सभी समस्याग्रस्त खातों में गड़बड़ी के लक्षणों को पहले ही पकड़ लिया जाए और उनमें से संभावना वाले खातों को जल्द से जल्द पुनर्रचना सुविधाएँ भी प्रदान की जाएं ताकि उनका आर्थिक मूल्य बचाए रखा जा सके। वार्षिक वित्तीय निरीक्षण (एएफआई) के दौरान यह पाया गया है कि छोटे खातों को पुनर्रचना सुविधाएँ तत्काल नहीं प्रदान की जातीं। बैंकों की अपनी अनर्जक आस्तियों (एनपीए) तथा पुनर्रचित खातों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने की क्षमता बढ़ाने के लिए तथा यह मानते हुए कि बैंकों की सभी शाखाएँ कंप्यूटरीकृत हो गई हैं, प्रस्ताव है कि :

  • बैंकों को यह निदेश दिया जाए कि वे एक ऐसी मजबूत कार्यप्रणाली स्थापित करें जिसमें गड़बड़ी के लक्षणों का पहले ही पता चल सके और अन्य उपायों सहित जरूरत के मुताबिक संभावना वाले सभी खातों की शीघ्र पुनर्रचना व्यवस्था भी हो ताकि उनका आर्थिक मूल्य बचाए रखा जा सके; और

  • बैंकों को यह निदेश दिया जाए कि वे अपने एनपीए खातों, बट्टे-खातों, समझौता निपटानों, वसूली तथा पुनर्रचित खातों संबंधी मदवार समुचित आंकड़े रखें जो सिस्टम जेनरेटेड / कंप्यूटर से प्राप्त किए गए हों।

101. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।

अदावी जमाराशियों (अनक्लेम्ड डिपॉज़िट्स) के विनियामक ढाँचे का सुदृढ़ीकरण

102. समय समय पर बैंकों को कहा गया है कि वे अपनी मशीनरी मज़बूत करें और अदावी जमाराशियों (अनक्लेम्ड डिपॉज़िट्स) या निष्क्रिय पड़े खातों के खाताधारकों का पता पता लगाने में सक्रिय भूमिका निभाएं। ऐसे निर्देशों के बावजूद, बैंक अनक्लेम्ड डिपॉज़िट्स / निष्क्रिय खातों (इनऑपरेटिव अकाउंट्स) से जुड़े ग्राहकों का पता लगाने में अग्रसक्रिय (प्रोएक्टिव) नहीं रहे हैं। साथ ही, इन अदावी जमाराशियों (अनक्लेम्ड डिपॉज़िट्स) / निष्क्रिय खातों के मालिकों का पता लगाने का मामला अपने ग्राहक को जानने के संबंध में बरती जाने वाली समुचित सावधानियों व अपेक्षित कार्रवाइयों (केवाईसी ड्यू डिलिजेंस) से करीब से जुड़ा हुआ है। अत: निष्क्रिय खातों/ अदावी जमाराशियों (अनक्लेम्ड डिपॉज़िट्स) के विनियामक ढाँचे को और मज़बूत करना आवश्यक है। तदनुसार, प्रस्ताव है कि:

  • बैंकों को अदावी जमाराशियों के वर्गीकरण; शिकायतों के त्वरित निपटान के लिए शिकायत निवारण कार्यप्रणाली; रिकॉर्ड के रखरखाव; और ऐसे खातों की आवधिक समीक्षा पर बोर्ड अनुमोदित नीति रखने का आदेश दिया जाए।

103. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।

नियत ब्याज दर उत्पाद (फिक्स्ड इंटरेस्ट रेट प्रॉडक्ट्स)

104. बैंकों को इस बात की आजादी है कि अपने किसी भी वर्ग के ऋण पर नियत (फिक्स्ड) ब्याज दर रखें या अस्थिर (फ्लोटिंग), बशर्ते यह उनके आस्ति देयता प्रबंधन ढाँचों कें अनुसार हो। उन्हें इसकी भी आजादी है कि स्थिर दर जमाराशियों (फिक्स्ड रेट डिपॉजिट्स) के अलावा, घरेलू सावधि जमाराशियों पर बाज़ार निर्धारित बाहरी एंकर रेट से स्पष्टत: जुड़ा फ्लोटिंग रेट रखें। यह पाया गया है कि जमाराशियों पर ब्याज दरें ज्यादातर फिक्स्ड हैं, वहीं खुदरा ऋण उत्पाद, विशेषत: आवास ऋण अस्थिर(फ्लोटिंग) ब्याज दर पर मंजूर किए गए हैं, जिससे उधारकर्ता को ब्याज दर की गति में अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है। दूसरी ओर बैंकों के पास यह क्षमता है कि वे ब्याज दर के ऐसे जोखिमों को संभाल सकें। मामले की जाँच-पड़ताल के लिए, प्रस्ताव है कि :

  • बैंकों द्वारा दीर्घावधि नियत (फिक्स्ड) ब्याज दर के अधिक उत्पाद लाने की व्यवहार्यता का आकलन करने के लिए एक कार्यदल का गठन किया जाए।

बैंक समाधान (रिजॉल्यूशन) कार्यप्रणाली: विनियामक ढाँचे का सुदृढ़ीकरण

105. वित्तीय स्थिरता बोर्ड (एफएसबी) ने बारह मूल तत्व प्रस्तावित किए हैं यानी अत्यावश्यक प्रमुख विशेषताएं (की एट्रिब्यूट्स) जिनसे बिना किसी बड़े प्रणालीगत उथल-पुथल के और कर-दाताओं को बिना हानि पहुँचाए, साथ ही शेयरहोल्डरों और बेजमानती (अनसिक्योर्ड) व अबीमाकृत (अनइन्स्योर्ड) ऋणदाताओं पर हानि का बोझ डालते हुए अव्यवहार्य (नॉन-वायबल) फर्मों के मुख्य आर्थिक कार्य-कलापों को जारी रखते हुए समाधान (रिजॉल्यूशन) प्राधिकारी वित्तीय संस्थानों का समाधान (को रिजॉल्भ) कर पाएंगे। ‘प्रमुख विशेषताओं’ (की एट्रिब्यूट्स) के लिए आवश्यक है कि समस्त अधिकार क्षेत्र (सदस्य देशों) में एक प्रभावी समाधान (रिजॉल्यूशन) व्यवस्था हो जिससे ऐसे फर्म को जो व्यवहार्य (वायबल) न रह गई हो और न ही जिसमें वायबल होने की कोई यथोचित संभावना बची हो, का समाधान (को रिजॉल्व) करने के लिए, समाधान (रिजॉल्यूशन) प्राधिकारी के पास व्यापक अधिकार/साधन व विकल्प हो।

106. भारतीय, खास तौर पर बैंकिंग प्रणाली के लिए, समाधान (रिजॉल्यूशन) व्यवस्था में ‘प्रमुख विशेषताओं’ (की एट्रिब्यूट्स) की तुलना में वर्तमान कमियों की जाँच करने और इन कमियों को दूर करने के लिए आवश्यक विधायी व विनियामक परिवर्तनों के स्वरूप और विस्तार पर सुझाव देने के लिए मार्च 2012 में समाधान (रिजॉल्यूशन) व्यवस्था पर एक आंतरिक कार्यदल (अध्यक्ष: श्री बी महापात्र) का गठन किया गया।

प्रतिभूतिकरण (सिक्यूरिटाइजेशन) संबंधी दिशा-निर्देश

107. एक सुसंगत और स्वस्थ प्रतिभूतिकरण बाज़ार (सिक्यूरिटाइजेशन मार्केट) विकसित करने तथा प्रवर्तकों (ओरिजिनेटर्स) व निवेशकों के हितों में बेहतर तालमेल सुनिश्चित करने की दृष्टि से यह आवश्यक समझा गया कि बैंकों व एनबीएफसीज़ द्वारा प्रवर्तित व खरीदे गए प्रतिभूति ऋणों के लिए एक न्यूनतम लॉक-इन पीरियड और न्यूनतम प्रतिधारण मानकों (रिटेंशन क्राइटेरिया) का निर्धारण किया जाए। तदनुसार, आम राय के लिए प्रतिभूति लेन-देन पर अप्रैल 2011 में एक चर्चा-पत्र और दिशा-निर्देशों का ड्राफ्ट जारी किया गया। प्राप्त फीडबैक और इस बीच अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम को देखते हुए जनता के विचार जानने के लिए सितंबर 2011 में संशोधित ड्राफ्ट दिशा-निर्देश जारी किए गए। विभिन्न हितधारकों की राय पर विचार करने के बाद, प्रस्ताव है कि:

  • प्रतिभूतिकरण पर अंतिम दिशा-निर्देश अप्रैल 2012 के अंत तक जारी कर दिए जाएं।

गत्यात्मक प्रावधानीकरण (डायनामिक प्रोविज़निंग)

108. अक्तूबर 2011 की दूसरी तिमाही समीक्षा में की गई घोषणा के अनुसार, मार्च 2012 में गत्यात्मक ऋण हानि प्रावधानीकरण ढाँचे को लागू करने (इन्ट्रोडक्शन ऑफ डायनामिक लोन लॉस प्रोविज़निंग फ्रेमवर्क फॉर बैंक्स इन इंडिया) पर एक चर्चा पत्र भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखा गया और बैंकों व अन्य हितधारकों की राय/टिप्पणियां माँगी गई। चर्चा पत्र पर प्राप्त राय/टिप्पणियों पर विचार करने के बाद गत्यात्मक प्रावधानीकरण पर दिशा-निर्देशों को फाइनल किया जाएगा।

क्षतिपूर्ति के तौर-तरीके

109. अक्तूबर 2011 की दूसरी तिमाही समीक्षा में यह घोषणा की गई थी कि रिज़र्व बैंक क्षतिपूर्ति के अच्छे तौर-तरीकों पर एफएसबी के सिद्धांतों के आधार पर (एफएसबीज़ प्रिंसपल्स ऑन साउंड कंपेन्शेसन प्रैक्टिसेज़) क्षतिपूर्ति संबंधी अंतिम दिशा-निर्देश जारी करने की प्रक्रिया में है। फीडबैक/टिप्पणियां प्राप्त करने के बाद भारत स्थित सभी निजी क्षेत्र के बैंकों व विदेशी बैंकों को जनवरी 2012 में क्षतिपूर्ति पर अंतिम दिशा-निर्देश जारी किए गए। इन दिशा-निर्देशों में क्षतिपूर्ति की प्रभावी व्यवस्था (गवर्नेंस), क्षतिपूर्ति का विवेकसम्मत जोखिम (प्रूडेंट रिस्क-टेकिंग) के साथ तालमेल और खुलासों (डिसक्लोज़र्स) को लिया गया है। ये दिशा-निर्देश क्षतिपूर्ति संबंधी रिज़र्व बैंक के वर्तमान दिशा-निर्देशों का अधिक्रमण करते हैं। यह नीति वित्तीय वर्ष 2012-13 से लागू होगी।

ऋण मूल्य निर्धारण पर कार्यदल

110. अक्तूबर 2011 की दूसरी तिमाही समीक्षा में की गई घोषणा के अनुसार अस्थिर दर (फ्लोटिंग रेट) ऋण उत्पादों के मूल्य निर्धारण के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय तौर-तरीकों की तुलना में भारतीय तौर-तरीकों की समीक्षा के लिए जनवरी 2012 में ऋण के मूल्य निर्धारण पर एक कार्यदल (अध्यक्ष: श्री आनंद सिन्हा) बनाया गया। मूल्य निर्धारण और ऋण दस्तावेजीकरण (लोन डॉक्यूमेंटेशन) में पारदर्शिता को बेहतर करने की दृष्टि से कार्यदल ऋण कीमत-लागत अंतर (क्रेडिट स्प्रेड्स) व इसके घटकों के निर्धारण की पद्धति का भी अध्ययन करेगा और फ्लोटिंग रेट लोन प्रोडक्ट्स के समुचित मूल्य निर्धारण हेतु उपाय सुझाएगा। कार्यदल ने अपनी पहली बैठक फरवरी 2012 में आयोजित की और जुलाई 2012 के अंत तक इसे अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है।

बैंकों द्वारा अग्रिमों की पुनर्रचना पर कार्यदल

111. अक्तूबर 2011 की दूसरी तिमाही समीक्षा में की गई घोषणा के अनुसार बैंकों/वित्तीय संस्थानों द्वारा अग्रिमों की पुनर्रचना पर वर्तमान विवेकसम्मत दिशनिर्देशों की समीक्षा करने और सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय तौर-तरीकों व लेखांकन (अकाउंटिंग) मानकों को ध्यान में रखते हुए इस संबंध में सशोधन सुझाने के लिए जनवरी 2012 में एक कार्यदल (अध्यक्ष : श्री बी. महापात्र) गठित किया गया। इस दल में चुनिंदा बैंकों, आईबीए, भारत सरकार, कंपनी ऋण पुनर्रचना कक्ष तथा रिज़र्व बैंक के विनियामक/पर्यवेक्षी विभागों का प्रतिनिधित्व है। उम्मीद है कि जुलाई 2012 के अंत तक कार्यदल अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर देगा।

पर्यवेक्षी नीतियां, पद्धतियां और प्रक्रियाएं: एक व्यापक समीक्षा

112. भारत में वाणिज्य बैंकों के संबंध में वर्तमान पर्यवेक्षी प्रक्रियाओं की समीक्षा के लिए रिज़र्व बैंक ने उच्च-स्तरीय संचालन समिति (अध्यक्ष: डॉ. के. सी. चक्रवर्ती) बनाई। इस समिति की सहायता के लिए रिज़र्व बैंक व कुछ बैंकों के प्रतिनिधियों को लेकर एक तकनीकी समिति बी बनाई गई है। समिति के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) पूँजी पर्याप्तता(कैपिटल एडिक्वेसी), आस्ति गुणवत्ता(एसेट क्वालिटी), प्रबंधन(मैनेजमेंट), आय (अर्निंग), चलिनिधि (लिक्विडिटी) तथा प्रणाली (सिस्टम) व नियंत्रण (कंट्रोल) (सीएएमईएलएस) मॉडल के जरिये विगत कार्य-निष्पादन की जाँच करने से हटाकर पर्यवेक्षी रुख को जोखिम के मार्ग और माध्यम (पाथ एंड पैसेज) की पूर्वसूचना की ओर ले जाना ; (ii) ऐसा पर्यवेक्षी तंत्र तैयार करना जो न केवल बैंक के विनियामक अनुपालन व शोधक्षमता पर ध्यान दे बल्कि बैंक के जोखिमपन (रिस्कीनेस) का पता लगाए, यह देखे कि आकार चाहे जो हो जोखिम मार्ग अपनाने की कारोबारी तैयारी क्या है एवं विफलता के प्रभाव के बारे में बताए; (iii) जोखिम आधारित कारोबार संचालन अपनाने के आवश्यक तत्वों को सांकेतिक समय सीमा के साथ निर्धारित करना; और (iv) रेटिंग पद्धतियां विकसित करना जिसमें ग्राहकों के लिए समुचित, पारदर्शी, भेदभाव रहित मूल्य-निर्धारण को भी शामिल किया जाए। उम्मीद है कि समिति अपनी रिपोर्ट जुलाई 2012 के अंत तक प्रस्तुत कर देगी।

V. संस्थागत गतिविधियां

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां

मूल निवेश (कोर इन्वेस्टमेंट) कंपनियों द्वारा विदेशों में निवेश

113. जैसा कि अक्तूबर 2011 की दूसरी तिमाही समीक्षा में कहा गया था, मूल निवेश कंपनियों (सीआईसी) का प्राथमिक कार्य ग्रूप इकाइयों में हित धारण के लिए इनके इक्विटी शेयरों में निवेश करना है। होल्डिंग कंपनी के रूप में सीआईसी को विदेश स्थित वित्तीय व वित्तेतर दोनों इकाइयों में निवेश करना पड़ सकता है। तदनुसार, प्रस्ताव है कि:

  • मूल निवेश (कोर इन्वेस्टमेंट) कंपनियों द्वारा विदेशों में निवेश संबंधी ड्राफ्ट दिशा-निर्देशों को आम जनता की राय के लिए अप्रैल-2012 के अंत तक रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रख दिया जाए।

एनबीएफसियों के वर्तमान विनियामक ढाँचे की समीक्षा

114. जैसा कि अक्तूबर 2011 की दूसरी तिमाही समीक्षा में कहा गया था, एनबीएफसी के बढ़ते महत्त्व और वित्तीय प्रणाली के दूसरे वर्गों के साथ उनकी अंतर्संबद्धता को देखते हुए एनबीएफसी से जुड़े कई उभरते हुए मुद्दों, जिनका वित्तीय स्थिरता पर प्रभाव है, पर विचार करने के लिए रिज़र्व बैंक ने एक कार्यदल (अध्यक्ष:श्रीमती उषा थोरात) बनाया। इस विषय में आम जनता की राय जानने के लिए रिपोर्ट को अगस्त 2011 में रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखा गया। प्राप्त फीडबैक के आधार पर, प्रस्ताव है कि:

  • जून 2012 के अंत तक एनबीएफसियों के विनियामक ढाँचे पर ड्राफ्ट दिशा-निर्देश जारी कर दिए जाएं।

भुगतान और निपटान प्रणालियां

व्हाइट लेबल एटीएम

115. भारत में एटीएम स्थापित करने की अनुमति अभी केवल बैंकों को है। रिज़र्व बैंक ने एटीएम नीति की समीक्षा की है और देश में एटीएमों की वृद्धि और पैठ को तेज़ करने के लिए बैंकेतर इकाइयों को भी एटीएम लगाने की, उनके स्वामित्व की व उन्हें चलाने (ऑरेट करने) की अनुमति देने का निर्णय लिया गया है। ये एटीएम व्हाइट लेबल एटीएम्स (डबल्यूएमएलए) की तरह होंगे और सभी बैंकों के ग्राहकों को सेवाएं देंगे। बैंकेतर इकाइयां ऐसे डबल्यूएमएलए की मालिक हो सकती हैं और इन्हें चला सकती हैं, पर इनमें नकदी प्रबंधन और ग्राहक शिकायत निवारण का काम स्पॉन्सर बैंक का होगा। डबल्यूएमएलए दिशा-निर्देशों का ड्राफ्ट आम राय के लिए रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर फरवरी 2012 में रखा गया। नकदी प्रबंधन, एटीएम नेटवर्क सदस्यता और ग्राहक शिकायत निवारण आदि विभिन्न पक्षों को देखते हुए ड्राफ्ट सर्कुलर में हितधारकों (डबल्यूएमएलए ऑपरेटरों, स्पॉन्सर बैंकों और एटीएम नेटवर्क ऑपरेटरों) की भूमिका एवं दायित्वों को बताया गया है। जनता एवं हितधारकों के विचारों को देखने के बाद अंतिम दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे।

रूपे कार्ड

116. 2009-12 के अपने भुगतान प्रणाली विज़न दस्तावेज में रिज़र्व बैंक ने एक घरेलू कार्ड लॉन्च करने की संभावना का उल्लेख किया था। तदनुसार, एनपीसीआई को रूपे डेबिट कार्ड के प्रायोगिक (पायलट) लॉन्च के लिए प्राधिकृत किया गया। मार्च 2012 में कार्ड लॉन्च किया गया है। रुपे कार्ड का उद्देश्य है कम प्रोसेसिंग फीस पर कार्ड लेन-देन के एक भुगतान व निपटान (पेमेंट एंड सेटलमेंट) प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देना ताकि अल्प मूल्य वाले लेन-देन में भी छोटे व्यापारी प्रतिष्ठानों के लिए कार्ड भुगतान स्वीकार करना व्यवहार्य हो सके। इससे देश में कार्ड लेन-देन को और बढ़ावा मिलने और इस प्रकार मुद्रा (करेंसी) के प्रयोग में कमी आने की उम्मीद है।

एसडब्ल्यूईएफटी (स्विफ्ट) निगरानी दल की सदस्यता

117. विश्वव्यापी वित्तीय दूरसंचार समिति (स्विफ्ट) वर्तमान में जी-10 केंद्रीय बैंकों की सहकारी निगरानी में है जिसमें नेशनल बैंक ऑफ बेल्जियम अग्रणी निरीक्षक (लीड ओवरसीअर) है। स्विफ्ट सहकारी निगरानी दल (ओजी) के फोरम के जरिये जी-10 केंद्रीय बैंक स्विफ्ट की सहकारी निगरानी संचालित करते हैं । अब जी-10 केंद्रीय बैंकों ने भुगतान व निपटान प्रणाली समिति (सीपीएसएस) के सदस्य देशों को शामिल करके स्विफ्ट निगरानी (ओवरसाइट) फोरम का विस्तार करने का निर्णय लिया है। रिज़र्व बैंक को स्विफ्ट ओवरसाइट फोरम में शामिल होने के लिए निमंत्रित किया गया है। इस बीच, घरेलू वित्तीय लेन-देन के लिए, कुछ शर्तों के तहत, स्विफ्ट के उपयोग की सैद्धांतिक अनुमति देने का निर्णय लिया गया है। इस संबंध में कार्य-पद्धति की रूप-रेखा तैयार की जा रही है।

राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण प्रणाली (एनईएफटी) का निष्पादन

118. एनईएफटी योजना में किए गए सभी सुधारों को स्टेकधारकों ने मन से स्वीकार किया है तथा स्वीकार्यता, पहुंच एवं लेनदेन की मात्रा के हिसाब से यह उत्पाद तरक्की की राह पर अग्रसर है। मार्च 2012 के अंत तक 109 बैंकों की लगभग 84,000 शाखाओं ने एनईएफटी प्रणाली में भाग लिया। मार्च 2012 में संसाधित लेनदेनों की संख्या लगभग 27 मिलियन तक पहुंच गई। 2011-12 में मासिक औसत मात्रा लगभग 19 मिलियन प्रति माह रही है। इसके अलावा, अब 82 में से 71 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अपने प्रायोजक बैंकों के माध्यम से एनईएफटी में उप-सदस्यों के रूप में भाग ले रहे हैं। इससे एनईएफटी के दायरे में और 12,000 शाखाएं आ गई हैं।

119. भारतीय रिज़र्व बैंक की सहायता से दि रॉयल मोनिटरी अथॉरिटी (आरएमए) ऑफ भूटान ने दिसंबर 2011 में एनईएफटी को सफलतापूर्वक शुरू किया । इसके अलावा आरएमए ने अपने राष्ट्रीय एटीएम स्विच को भारत के राष्ट्रीत वित्तीय स्विच (एनएफएस) से लिंक करने में भारतीय रिज़र्व बैंक से सहायता का अनुरोध किया है। उन्हें इस संबंध में आवश्यक सहयोग प्रदान किया जा रहा है।

2011-17 का आईटी विज़न दस्तावेज

120. फरवरी 2011 में 2011-2017 का सूचना प्रौद्योगिकी विज़न दस्तावेज जारी किया गया। रिज़र्व बैंक के 2011-2017 के सूचना प्रौद्योगिकी विज़न के कार्यान्वयन पर स्थायी समिति (स्टैंडिंग कमेटी) (अध्यक्ष:- श्री आनंद सिन्हा) निगरानी रख रही है। इस संबंध में उठाए गए मुख्य कदम इस प्रकार हैं:- केंद्रीय बोर्ड सूचना प्रौद्योगिकी उप-समिति की स्थापना, संपूर्ण बैंक के लिए कारोबारी निरंतरता योजना (बीसीपी) दस्तावेज तैयार करना, आंतरिक उपयोग के लिए सूचना प्रौद्योगिकी परियोजना प्रबंधन दिशानिर्देश जारी करना तथा कारोबारी संसाधन रिइंजीनियरिंग हेतु ढाँचा बनाने पर कार्य करना। उत्कृष्टता के केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिए आईडीआरबीटी ने गवर्नेंस एवं सुरक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में कार्य करना शुरू कर दिया है। संबंधित क्षेत्रों में बैंकों के कार्यो के बारे में आईबीए समन्वय का कार्य कर रहा है।

आईटी एवं आईएस गवर्नेंस

121. फरवरी 2011 में जारी 2011-2017 के सूचना प्रौद्योगिकी विजन दस्तावेज में वाणिज्य बैंकों के लिए प्राथमिकताएं निर्धारित करते हुए उल्लेख किया गया है कि वे फ्रंट-एंड ग्राहक सेवा में उपयोग में लाए जा रहे सीबीएस का उपयोग अब सूचना प्रबंध प्रणाली (एमआईएस), विनियामक रिपोर्टिंग,समग्र जोखिम प्रबंधन, वित्तीय समावेशन एवं ग्राहक सेवा प्रबंधन के लिए भी करें। यह देखते हुए कि बैंकिंग क्षेत्र में प्रौद्योगिकी अपनाने से कुछ परिचालनगत जोखिम भी पैदा हो सकते हैं जिनका असर वित्तीय स्थिरता पर भी पड़ सकता है, दस्तावेज में आंतरिक नियंत्रण, जोखिम शमन प्रणाली तथा कारोबारी निरंतरता योजना (बीसीपी) की आवश्यता पर जोर दिया गया है। इसके लिए बैंक अपने आईटी गवर्नेंस ढाँचे में सुधार की दिशा में कार्य करें तथा सुपरिभाषित सूचना प्रौद्योगिकी नीतियों के साथ-साथ सूचना सुरक्षा (आईएस) ढाँचे को भी विकसित करें।

122. सुविन्यस्त आईटी गवर्नेंस मॉडलों को अपनाने से बैंकों को आईटी व कारोबार में बेहतर तालमेल बनाने, कार्यक्षमताओं के सृजन, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत सर्वोत्तम तौर-तरीकों के अनुसरण में वृद्धि में सहायता मिलेगी और बेहतर नियंत्रण व सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी। आईटी गवर्नेंस उद्देश्यों से हम बेहतर कार्य-निष्पादन की ओर प्रभावी व सक्षमतापूर्वक बढ़ सकते हैं। उपर्युक्त उद्देश्य प्राप्त करने के लिए बैंकों को सुविन्यस्त आईटी गवर्नेंस मॉडल अपनाने की दिशा में बढ़ने की जरूरत है। अपने स्तर पर, रिज़र्व बैंक ने  अपने आईटी गवर्नेंस कार्यप्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए एक केंद्रीय बोर्ड सूचना प्रौद्योगिकी उप-समिति (आईटी सब कमिटी ऑफ द सेंट्रल बोर्ड) बनाई है जिसकी अध्यक्षता एक बाहरी निदेशक को दी गई है।

123. अपने कारोबार व बाज़ार संबंधी आदान-प्रदान के संचालन में बैंक विभिन्न आईटी चैनलों का उत्तरोत्तर प्रयोग कर रहे हैं। नए अवसरों का लाभ उठाने की बैंकों की क्षमता, पहुँच योग्य (एक्सेसिबल) व सुरक्षित सेवा माध्यम (सर्विस चैनल) दे सकने की उनकी क्षमता पर निर्भर होगी। तथापि इससे तकनीक व परिचालनगत (ऑपरेशनल) जोखिम के प्रति उनका एक्सपोज़र बढ़ेगा जिसका प्रभाव अलग-अलग बैंकों और पूरे वित्तीय क्षेत्र पर पड़ सकता है। वर्तमान बैंकिंग परिवेश, कारोबारी लक्ष्यों, प्रक्रियाओं, लोगों व तकनीक के लायक व्यापक आईएस ढाँचा अपनाने से इन चुनौतियों का मुकाबला किया जा सकेगा।

बैंकों से स्वचालित आँकड़ा प्रवाह (ऑटोमेटेड डेटा फ्लो)

124. मई 2011 की मौद्रिक नीति में की गई घोषणा के बाद, रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की जाने वाली विवरणियों को स्वचालित आँकड़ा प्रवाह (ऑटोमेटेड डेटा फ्लो (एडीएफ)) के अंतर्गत लाने को बैंक तैयार हो गए हैं। एडीएफ परियोजना के कार्यान्वयन को दिशा देने व इस पर निगरानी रखने के लिए एक कार्य-दल का गठन किया गया है। बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के विवरणियां (रिटर्न्स) जेनरेट करने के लिए आवश्यक प्रणाली व प्रक्रियाओं की व्यवस्था के लिए बैंक विभिन्न रणनीतियां अपना रहे हैं। रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की जाने वाली सभी विवरणियों को जेनरेट करने के लिए बैंकों को मार्च 2013 के अंत तक उपयुक्त सॉल्यूशन लागू कर देना है। इस संबंध में कार्यान्वयन की प्रगति पर रिज़र्व बैंक ने कड़ी निगरानी रखी है।

मुद्रा प्रबंध (करेंसी मैनेजमेंट)

कारोबारी प्रक्रिया और प्रशिक्षण का पुनर्संरेखण (रिअलाइनमेंट)

125. वक्त की उभरती जरूरतों और तकनीक की पटरी पर मुद्रा प्रबंध व्यवस्थाओं को बनाए रखने के लिए परिचालनगत (ऑपरेशनल) दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण पक्षों पर फिर से गौर किया गया है। मुद्रा प्रबंध से जुड़ी बैंक की कारोबारी प्रक्रियाओं को सुसंगत/पुनर्संरेखित (रिअलाइन) करने से संबंधित एक कार्ययोजना बनाई गई है ताकि कार्यक्षमता व उत्पादकता में वृद्धि हो।

126. नकली नोटों के बढ़ते मामलों को देखते हुए, बैंक में ऐसे नोटों को पहचानने में पूर्ण रूप से प्रशिक्षित कार्मिकों की जरूरत कई गुना बढ़ गई है। ऐसे प्रशिक्षित लोगों का काउंटरों पर होना न केवल नकली नोटों को पकड़/पहचान के लिए जरूरी है बल्कि यह जनता के लिए जागरुकता केंद्र का काम भी करता है। हालांकि, रिज़र्व बैंक व अन्य बैंक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते रहे हैं, परंतु उभरते हालातों को देखते हुए ये पर्याप्त नहीं लगते हैं। बैंकों के साथ परामर्श करके आईबीए यह सुनिश्चित करेगा कि कैश की हैंडलिंग करने वाले सभी बैंक कर्मी 3 वर्ष की अवधि के भीतर असली भारतीय बैंक नोटों की विशेषताओं में ट्रेंड हों। इस संबंध में रिज़र्व बैंक भी संकाय सहयोग (फैकल्टी सपोर्ट) और प्रशिक्षण सामग्री उपलब्ध कराएगा।

नकली नोटों की पहचान और रिपोर्टिंग

127. यह पहले ही कहा गया है कि 100 और इससे अधिक मूल्य-वर्ग के बैंक नोट रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा करने वाली मशीनों से प्रोसेस करने के बाद काउंटरों पर एटीएमों के जरिये जारी किए जाएं। ऐसी व्यवस्था इसलिए की गई है कि नकली नोट बैंक/ब्रांच स्तर पर ही पकड़ लिए जाएं, और इस प्रकार उन्हें दुबारा चलन में आने से रोका जा सके। यह भी पाया गया है कि उपर्युक्त कार्रवाइयों और इस संबंध में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) फाइल करने की प्रक्रिया को युक्तिसंगत बनाने के बावजूद बैंकों द्वारा नकली नोटों को पकड़ने व तत्पश्चात उसकी रिपोर्टिंग पर्याप्त नहीं हो रही है। इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं क्योंकि रिज़र्व बैंक चलन में नकली नोटों की संख्या और अर्थव्यवस्था पर उसके प्रभाव का आकलन कर पाने की स्थिति में नहीं है। इन समस्याओं को दूर करने के लिए, बैंको को कहा जाता है कि:

  • वे यह सुनिश्चित करें कि काउंटरों पर प्राप्त नोटों को फिर से चलन में तभी लाया जाए जब मशीनों द्वारा समुचित रूप से उनकी सत्यता जाँच ली गई हो; और

  • अपनी व्यवस्था को इतना दुरुस्त रखें कि वे नकली नोटों के जोखिम को झेलने के लायक हों न कि आम आदमी पर इसका बोझ पड़े जिसके पास अनजाने में ऐसे नोट आ जाते हैं।

128. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।

129. बैंकों से उम्मीद की जाती है कि वे रिज़र्व बैंक के निर्देशों के अनुसार नकली नोटों को पकड़ने की संशोधित प्रक्रिया का सावधानी से पालन करें।

बैंक नोटों व सिक्कों के वितरण माध्यम

130. वर्तमान में बैंक नोट व सिक्के रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालयों तथा करेंसी चेस्टों/ बैंक शाखाओं के माध्यम से वितरित किए जाते हैं। बैंकों की शाखाओं के नेटवर्क के भौगोलिक विस्तार और लेवरेजिंग तकनीक को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि:

  • बैंक नोटों व सिक्कों का वितरण केवल करेंसी चेस्टों/ बैंक शाखाओं के माध्यम से ही किया जाए और इस प्रकार संबंधित सेवाओं को ग्राहकों के और पास लाया जाए। यह उम्मीद की जाती है कि आम आदमी की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंक अपनी वितरण प्रणालियों व प्रक्रियाओं को सुदृढ़ करें।

131. बैंकों से बात-चीत करके विस्तृत परिचालनात्मक (ऑपरेशनल) दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।

सिक्कों की माँग पर उच्च-स्तरीय समिति

132. सिक्कों की उपलब्धता पर विभिन्न व्यापार निकायों और आम जनता से बढ़ती शिकायतों को देखते हुए भारत सरकार ने सिक्कों की बढ़ती माँग, तथा आपूर्ति/वितरण बाधाओं से जुड़े मुद्दों की जाँच करने के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति (अध्यक्ष: डॉ के. सी चक्रवर्ती) गठित की ताकि आम जनता को सिक्के नियम से व सुगमता से मिलते रहें। उम्मीद है कि समिति अपनी रिपोर्ट मई-2012 के अंत तक प्रस्तुत कर देगी।

दूसरी तिमाही समीक्षा

133. विकासात्मक और विनियामक नीतियों की अगली समीक्षा मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा के अंतर्गत मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012 को की जाएगी ।

मुंबई
17 अप्रैल 2012

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