मौद्रिक नीति वक्तव्य 2013-14 - आरबीआई - Reserve Bank of India
मौद्रिक नीति वक्तव्य 2013-14
डॉ. डी. सुब्बाराव भूमिका वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थिरता के प्रारंभिक संकेतों और घरेलू अर्थव्यवस्था में, मामूली ही सही, सुधार की संभावनाओं के परिवेश में 2013-14 की वार्षिक नीति तैयार की गई है। 2. विकसित अर्थव्यवस्थाओं (एईज़) में बेहतर होते वित्तीय हालात और अनुकूल समष्टि आर्थिक नीतियों के कारण कुछ समय के लिए ख़तरे कम हुए हैं। परंतु अभी भी मंद पड़े हुए आर्थिक कार्य-कलापों पर इस सुधार का असर पड़ना बाकी है। समुत्थान को बनाए रखने की संभावनाओं पर नीति-कार्यान्वयन के जोख़िमों और परिणामों के बारे में अनिश्चितता की छाया मँडरा रही है। उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) में समुत्थान की गति अलग-अलग है। तथापि, कुछ प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं में कमज़ोर बाह्य माँग और घरेलू अड़चनों के चलते निवेश अभी भी संकुचित है। उत्पादन में ऋणात्मक अंतरालों और अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल व खाद्य कीमतों में हाल में आई नरमी के कारण मुद्रास्फ़ीतीय जोखिम नियंत्रित प्रतीत हो रहे हैं। 3. घरेलू स्तर पर, विकास में उम्मीद से अधिक मंदी आई क्योंकि विनिर्माण (मैन्यूफैक्चरिंग) व सेवा (सर्विसेज़) की गतिविधियां आपूर्तिगत अड़चनों और बाह्य मांग में कमी से प्रभावित हुईं। अधिकांश अग्रणी संकेतक 2013-14 में समुत्थान की गति के धीमा रहने की सूचना दे रहे हैं। 2012-13 की चौथी तिमाही में मुद्रास्फ़ीति में काफी गिरावट आई, परंतु थोक व खुदरा दोनों स्तरों पर इसके ऊपर जाने के दबाव बने हुए हैं जिसका कारण खाद्य मुद्रास्फ़ीति का ऊँचाई पर बने रहना और नियंत्रित ईंधन मूल्यों में जारी संशोधन हैं। इस परिदृश्य के लिए मुख्य जोखिम हैं: अभी भी ऊँचाई पर बने हुए दुहरे घाटे जो कि पूँजीगत प्रवाहों के अचानक रुक जाने अथवा वापस लौटने के असर से बढ़ गए हैं, निवेशकों के मन में बनी हुई झिझक और आपूर्तिगत अड़चनों का बढ़ता दबाव, विशेषत: खाद्य व आधारभूत संरचना के क्षेत्रों में। 4. उपर्युक्त वैश्विक एवं घरेलू संदर्भों में तैयार किए इस वक्तव्य को रिज़र्व बैंक द्वारा कल जारी की गयी समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों में दी गयी विस्तृत समीक्षा के साथ पढ़ा और समझा जाए । 5. यह वक्तकव्य दो भागों में है। भाग ए मौद्रिक नीति को कवर करता है और इसे चार खंडों में बांटा गया है: खंड I में वैश्विक एवं घरेलू समष्टि आर्थिक गतिविधियों पर एक नज़र डाली गई हैं; खंड II में घरेलू विकास, मुद्रास्फीति और कुल मौद्रिक राशियों संबंधी परिदृश्य एवं पूर्वानुमान दिए गए हैं; खंड III मौद्रिक नीति के रुख़ को स्पष्ट करता है तथा खंड IV में मौद्रिक व चलनिधि उपायों का उल्लेख है। भाग बी में विकासात्मक एवं विनियामक नीतियां दी गई हैं और इसे पाँच खंडों में बांटा गया है: वित्तीय स्थिरता (खंड I), वित्तीय बाज़ार (खंड II), ऋण वितरण और वित्तीय समावेश (खंड III), वाणिज्य बैंकों के लिए विनियामक एवं पर्यवेक्षी उपाय (खंड IV), तथा संस्थागत गतिविधियाँ (खंड V)। वैश्विक अर्थव्यवस्था 6. प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में विकास की राहें जहाँ अलग-अलग तरह से बढ़ रही हैं वहीं वैश्विक आर्थिक कार्यकलाप मंद पड़े हुए हैं। अमेरिका में आवास क्षेत्र व रोजगार के हालातों में हुई बेहतरी के फलस्वरूप एक धीमा समुत्थान पैर जमा रहा है। तथापि, समुत्थान की रफ्तार पर बजट पृथक्करण, जो कि आने वाले महीनों में और तेज होगा, के प्रतिकूल असर का ख़तरा बना हुआ है । 2012 की चौथी तिमाही से जापान की अर्थव्यवस्था की सिकुड़न थम गई। मौद्रिक व राजकोषीय प्रोत्साहनों के साथ-साथ कमज़ोर पड़ते येन के चलते बाहरी मांग में आई तेजी के फलस्वरूप उपभोक्ता के आत्मविश्वास में कुछ बढ़ोतरी हुई है। यूरो क्षेत्र में, औद्योंगिक उत्पादन में गिरावट, कमज़ोर निर्यात और अल्प घरेलू मांग जैसी विशषताएं लिए मंदी 2013 की पहली तिमाही में जारी रही। ऊँची बेरोजगारी, राजकोषीय कर्षण (फिस्कल ड्रैग) और वित्तीय क्षेत्र के सुधार में हिचकती प्रगति से उपभोक्ता का विश्वास डगमगा गया है। 7. 2012 में मंदी के बाद कई उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) में विकास में उछाल देखा गया क्योंकि इन्वेंटरी साइकल में परिवर्तन एवं निवेश में तेजी आने के बाद घरेलू मांग में वृद्धि हुई है। ब्रिक्स (बीआरआईसीएस) देशों में, ब्राज़िल और दक्षिण अफ्रिका में विकास तेज रहा जबकि चीन, रूस व भारत में औसत ट्रेंड से नीचे बना रहा। 8. विकसित अर्थव्यवस्थाओं (एईज़) में मांग के दबावों की अनुपस्थिति में मुद्रास्फ़ीति नरम रही है और मुद्रास्फ़ीतीय प्रत्याशाएं सुस्थिर बनी हुई हैं। दूसरी ओर, उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) की तसवीर मिली जुली है। ब्राजील, रूस और टर्की में जहाँ मुद्रास्फ़िति बढ़ी है, वहीं चीन, कोरिया, थाइलैंड और चिली में नरमी आई है। 9. 2012 के दौरान ऊँचाई पर बने रहने बाद, मार्च-अप्रैल 2013 में कच्चे तेल की कीमतें नरम पड़ीं जो मांग में छाई निराशा को दर्शाती हैं। धातु की कीमतों में नरमी और खाद्य कीमतों में गिरावट के कारण ऊर्जा से इतर जिंसों की कीमतें 2013 की पहली तिमाही में नरम रही हैं। घरेलू अर्थव्यवस्था 10. 2012-13 की तीसरी तिमाही में उत्पादन में केवल 4.5 प्रतिशत की वृद्धि रही जो कि 15 तिमाहियों में न्यूनतम है और इसके साथ ही अप्रैल-दिसंबर 2012 की अवधि में समग्र जीडीपी वृद्धि एक वर्ष पहले के 6.6 प्रतिशत के स्तर से 5.0 प्रतिशत पर उतर आई। इसके पीछे की मुख्य वज़ह थी औद्योगिक गतिविधि में लंबे समय से चली आ रही कमजोरी जो घरेलू आपूर्तिगत बाधाओं के कारण बढ़ गई, और कमज़ोर बाह्य मांग के चलते सर्विसेज़ में आई मंदी। 2012-13 के जीडीपी विकास के संबंध में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा किया गया 5.0 प्रतिशत का अग्रिम अनुमान बताता है कि चौथी तिमाही में अर्थव्यवस्था में 4.7 प्रतिशत का विकास हुआ होगा। 11. फ़रवरी 2013 में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि एक महीने पहले के 2.4 प्रतिशत से सरककर 0.6 प्रतिशत पर आ गिरी जिसका मुख्य कारण खनन व बिजली उत्पादन में कमी तथा मैन्यूफैक्चरिंग में मंद पड़ती वृद्धि है। परिणामत:, समग्र तौर पर, 2012-13 (अप्रैल-फ़रवरी) में, गत वर्ष की तत्संबंधी अवधि के 3.5 प्रतिशत की तुलना में, औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि घटकर 0.9 प्रतिशत पर आ गिरी। रिज़र्व बैंक की आदेश बही (ऑर्डर बुक), माल (इन्वेंटरी) और क्षमता उपयोग (कैपेसिटी यूटिलाईजेशन) सर्वेक्षण (ओबीआईसीयूएस/ओबीकस), के अनुसार क्षमता उपयोगिता (कैपेसिटी यूटिलाईजेशन) में कोई वृद्धि नहीं हुई । रबी उत्पादन, विशेषत: दालों का, एक वर्ष पहले से बेहतर होने की आशा है। तथापि, इससे खरीफ़ उत्पादन में कमी की भरपाई नहीं हो पाएगी। परिणामत: 2012-13 में फसल उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान में गत वर्ष के अंतिम आकलन की तुलना में 3.5 प्रतिशत की कमी का संकेत है। मैन्यूफ़ैक्चरिंग व सर्विसेज़ को शामिल करने वाला संमिश्र क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई), मार्च 2013 में 17 महीने के सबसे नीचले स्तर पर आ गया। इस प्रकार एकदम हाल के संकेतक बताते हैं कि 2012-13 की चौथी तिमाही में विकास नीचे रहा होगा 12. मांग की ओर, अप्रैल 2012 – फरवरी 2013 के दौरान, पूँजीगत वस्तुओं के उत्पादन में लगातार गिरावट निवेश में मंद हालात का सूचक है। कंपनियों की बिक्री में कमी और उपभोक्ताओं का कमज़ोर होता आत्मविश्वास बताता है कि मंदी खपत व्यय की ओर बढ़ रही होगी। 13. थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के रूप में मापी गई हेडलाइन मुद्रास्फीति गत वर्ष के 8.9 प्रतिशत से घटकर 2012-13 में औसत 7.3 प्रतिशत पर आ गई। 2012-13 की चौथी तिमाही में यह कमी खास तौर पर ज्यादा रही और वर्षांत मुद्राफ़ीति ने 6.0 प्रतिशत का आँकड़ा दर्ज किया। समग्र मुद्रास्फ़ीति में नरमी के बावजूद, अप्रैल 2012 में सब्जियों की कीमत असामान्य ढंग से बढ़ जाने व उसके बाद मानसून में देरी के चलते अनाजों के दाम बढ़ने और धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में तेज बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप बढ़ी हुई खाद्य मुद्रास्फ़ीति वर्ष भर दबाव को ऊपर ले जाने का कारण बनी रही। ईंधन मुद्रास्फ़ीति 2012-13 में औसतन दुहरे अंकों में रही जिसका मुख्य कारण नियंत्रित मूल्यों को संशोधित करके बढ़ाया जाना तथा अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की ऊँची कीमतों का उन चीजों पर प्रभाव रहा जिनकी कीमतों के निर्धारण में स्वतंत्रता है। खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति (नॉन-फूड मैन्यूफैक्चर्ड प्रॉडक्टस) इनफ़्लेशन 2012-13 की पहली छमाही में सुकून के दायरे से ऊपर रही परंतु इनपुट मूल्य दबावों के कम होने व मूल्य-निर्धारण क्षमता में कमी के कारण दूसरी छमाही में इसमें कमी आई जो मार्च तक 3.5 प्रतिशत पर आ गई। 14. नए संयुक्त (ग्रामीण और शहरी) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) (आधार: 2010=100), द्वारा मापी गई खुदरा मुद्रास्फ़ीति (रिटेल इनफ़्लेशन) का 2012-13 का औसत 10.2 प्रतिशत रहा जिसकी बड़ी वज़ह खाद्य मुद्रास्फ़ीति रही। खाद्य व ईंधन समूहों को बाहर रखने के बावजूद, सीपीआई मुद्रास्फ़ीति नरम नहीं पड़ी और 8.7 प्रतिशत के औसत स्तर पर रही। दूसरी सीपीआइयों में भी दुहरे अंक की मुद्रास्फ़ीति देखी गई। 15. यह महत्त्वपूर्ण है कि रिज़र्व बैंक द्वारा संचालित शहरी हाउसहोल्ड्स के सर्वेक्षण में मुद्रास्फीति प्रत्याशा में 2012-13 की चौथी तिमाही में हलकी नरमी दिखी, हालांकि खाद्य कीमतों के ऊँचे होने के कारण मुद्रास्फ़ीति दुहरे अंकों में रही। ग्रामीण इलाकों में पारिश्रामिक मुद्रास्फ़ीति, जो अप्रैल 2009 से अक्टूबर 2012 के बीच औसतन 20 प्रतिशत के करीब रही, जनवरी 2013 में मामूली रूप से घटकर 17.4 प्रतिशत पर आ गई। रिज़र्व बैंक के तिमाही आवास मूल्य सूचकांक द्वारा मापी गई आवास मूल्य मुद्रास्फ़ीति में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर वृद्धि जारी रही। 16. 2,473 गैर-सरकारी गैर-वित्तीय कंपनियों के एक कॉमन सेंपल के आधार पर 2012-13 की तीसरी तिमाही में कंपनी प्रदर्शन का विश्लेषण, बिक्री वृद्धि और लाभ में भी काफी कमी दर्शाता है। चौथी तिमाही में कंपनी प्रदर्शन के शुरुआती परिणाम बताते हैं कि बिक्री में गिरावट जारी है, अलबत्ता लाभ मार्जिन में मामूली सी वृद्धि हुई है। 17. 2012-13 की पहली तिमाही में मुद्रा आपूर्ति (एम3) वृद्धि 14 .0 प्रतिशत थी पर सावधि जमा की वृद्धि के मंद पड़ने के चलते दिसंबर के अंत तक 11.2 पर आ गई। चौथी तिमाही में जमा संग्रहण में कुछ वृद्धि हुई जिससे मार्च के अंत तक जमाराशि वृद्धि 14.3 प्रतिशत तक पहुँची। परिणामत: मार्च 2013 के अंत तक एम3 वृद्धि 13.3 प्रतिशत तक पहुँची जो 13.0 प्रतिशत के संशोधित सांकेतिक अनुमान से मामूली रूप से अधिक है। 18. खाद्येतर ऋण वृद्धि (नॉन-फूड क्रेडिट ग्रोथ) 2012-13 की शुरुआत के 18.2 प्रतिशत से घटी और वर्ष के अधिकांश हिस्से में 16.0 प्रतिशत के आस-पास रही। मार्च 2013 तक खाद्येतर ऋण वृद्धि 14.0 प्रतिशत पर आ गिरी जो 16.0 प्रतिशत के सांकेतिक अनुमान से कम है और जोखिम से कतराने व मांग के सुस्त होने का द्योतक है। रिज़र्व बैंक द्वारा ऋण परिस्थितियों के सर्वेक्षण में समग्र तौर पर जहाँ ऋण परिस्थितियों के सुगम होने के संकेत हैं, वहीं 2012-13 की चौथी तिमाही में धातु, निर्माण, वाणिज्यिक रीयल इस्टेट, रसायन और वित्त में हालात कुछ तंग रहे। 19. वाणिज्यिक क्षेत्र को बैंकों, गैर-बैंकों और बाहरी स्त्रोतों से वित्तीय संसाधनों का कुल प्रवाह गत वर्ष के रु.11.6 ट्रिलियन से अधिक होकर 2012-13 में रु.12.8 ट्रिलियन पर पहुँचा। इस वृद्धि के मुख्य कारण इस प्रकार रहे: अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा अधिक नॉन-एसएलआर इन्वेस्टमेंट, एनबीएफसी की ओर से ऋण प्रवाह में वृद्धि, वित्तेतर इकाइयों द्वारा कुल निजी बिक्री (प्राइवेट प्लेसमेंट) और सार्वजनिक निगम (प्बलिक इश्यू) तथा विदेशों से अल्पावधि ऋण व बाह्य वाणिज्यिक उधार। 20. 2012-13 में पॉलिसी रिपो रेट और आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में कटौतियों के अनुरूप, मोडल टर्म डिपॉज़िट रेट 11 आधार अंक (बीपीएस) नीचे खिसका और मोडल बेस रेट 50 आधार अंक। सावधि जमा दरों में गिरावट जहाँ अधिकांशत: पहली छमाही में हुई, वहीं मोडल बेस रेट 50 आधार अंक कम होकर 10.25 प्रतिशत पर आया और यह कमी दो चरणों में 2012-13 की पहली और चौथी, दोनों तिमाहियों में प्रत्येक में 25 आधार अंक में देखने को मिली। चौथी तिमाही में, 39 बैंकों ने अपने बेस रेट में 5-75 आधार अंकों की कमी की। 2012-13 में (फरवरी तक) बैंकों की भारित औसत उधारी दर 36 बीपीएस कम होकर 12.17 प्रतिशत पर आ गई। 21. रिज़र्व बैंक के पास लगातार अधिक सरकारी कैश बैलेंस और वर्ष के अधिकांश समय में वृद्धिशील जमाराशियों की तुलना में ऋण के ऊँचे अनुपात से चलनिधि (लिक्विडिटी) दबाव में रही। दैनिक चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत निवल औसत चलनिधि वर्ष की पहली छमाही के रु. 730 बिलियन से जबर्दस्त रूप से बढ़कर दूसरी छमाही में रु. 1012 बिलियन पर पहुँच गई। लिक्विडिटी की तंगी को कम करने के लिए, वर्ष के दौरान रिज़र्व बैंक ने तीन बार अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबीज़) के सीरआरआर में कटौती करते हुए 75 बीपीएस की कमी की और सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) में 100 बीपीएस की कटौती की। इसके अतिरिक्त रिज़र्व बैंक ने खुले बाजार की परिचालन क्रय निलामियों (ओएमओ पर्चेज़ ऑक्शन्स) द्वारा रु. 1,546 बिलियन की लिक्विडिटी डाली। एलएएफ के तहत निवल लिक्विडिटी, जो वर्षांत की मांग के कारण 28 मार्च 2013 को रु. 1,808 बिलियन के शिखर पर थी, उसने तेजी से दिशा बदली और अप्रैल 2013 के अंत तक घटकर रु. 842 बिलियन पर रह गई। 22. 2012-13 में केंद्र सरकार वित्त का संशोधित अनुमान (आरई) बताता है कि 5.2 प्रतिशत का सकल राजकोषीय घाटा–जीडीपी अनुपात बजटित स्तर के आस-पास और संशोधित योजना में तय लक्ष्य के भीतर था। 2013-14 के बजट अनुमान (बीई) में सकल राजकोषीय घाटा–जीडीपी अनुपात को 4.8 प्रतिशत पर रखा गया है। राजस्व घाटा–जीडीपी अनुपात में 0.6 प्रतिशत बिंदु की कटौती के जरिये इस संशोधन को हासिल करने की उम्मीद की गई है। 23. पॉलिसी रेट में कटौती और सरकार द्वारा सुधार के कई उपायों की घोषणा तथा वित्तीय समेकन के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता के परिणामस्वरूप, 10-वर्षीय बेंचमार्क यील्ड 3 अप्रैल 2012 के 8.79 प्रतिशत से घटकर 30 अप्रैल 2013 को 7.79 प्रतिशत पर आया। 24. 2012-13 की तीसरी तिमाही में चालू खाता घाटा (सीएडी) जीडीपी के 6.7 प्रतिशत की सर्वकालिक ऊँचाई पर आ गया। ऐसे संकेत हैं कि चौथी तिमाही में इसमें कमी आई होगी। इस कमी का मुख्य कारण यह था कि पहली तीन तिमाहियों में घटने के बाद निर्यात के धनात्मक विकास की ओर लौटने तथा तेल-से-इतर व स्वर्ण-से-इतर आयातों व स्वर्ण आयातों में कमी आने कारण व्यापार घाटा घटने लगा। सीएडी बढ़ा तो अवश्य पर देश में आने वाली पूँजी के प्रवाह में वर्ष के उत्तरार्ध में हुई वृद्धि ने इसका वित्तपोषण (फ़ाइनैंसिंग) सुनिश्चित कर दिया। II. देशी परिदृश्य और पूर्वानुमान विकास 25. 2012-13 में जीडीपी विकास के संबंध में सीएसओ का 5.0 प्रतिशत का अग्रिम अनुमान रिज़र्व बैंक द्वारा जनवरी 2013 की तीसरी तिमाही समीक्षा (टीक्यूआर) में बताए गए 5.5 प्रतिशत के आधारस्तरीय पूर्वानुमान (बेसलाइन प्रोजेक्शन) से कम है जो उद्योग व सेवा क्षेत्र में प्रत्याशा से धीमा विकास दर्शाता है। 26. गत वर्ष की तुलना में 2013-14 के दौरान आर्थिक कार्यकलाप में, केवल वर्ष के उत्तरार्ध में संभावित तेजी के आधार पर ही, मामूली उन्नति होने की प्रत्याशा है। मानसून अगर सामान्य रहा तो कृषि की वृद्धि ट्रेंड की ओर लौट सकती है। नए निवेशों की धारा सूख जाने और विभिन्न अड़चनों व कार्यान्वयन अंतरालों के चलते विद्यमान प्रोजेक्टों के रुक जाने के कारण औद्योगिक गतिविधि का परिदृश्य मंद बना हुआ है। 2012 की तुलना में वैश्विक विकास के कुछ खास आगे नहीं बढ़ने की संभावना को देखते हुए सर्विसेज़ व निर्यात में वृद्धि मंथर रह सकती है। तदनुसार, 2013-14 में आधारस्तरीय जीडीपी वृद्धि का पूर्वानुमान 5.7 प्रतिशत का है (चार्ट 1)। मुद्रास्फ़ीति 27. मार्च 2013 तक, 6.0 प्रतिशत की डबल्यूपीआई मुद्रास्फ़ीति रिज़र्व बैंक के 6.8 प्रतिशत के सांकेतिक अनुमान से कम रही जिसका मुख्य कारण वर्ष की दूसरी छमाही में खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति (नॉन-फूड मैन्यूफ़ैक्चर्ड प्रोडक्ट्स इनफ्लेशन) का तेजी से कम होना रहा। कच्चे तेल और खाद्य कीमतों के कम होने की प्रत्याशा पर चालू वर्ष का वैश्विक मुद्रास्फ़ीति परिदृश्य गत वर्ष की तुलना में नरम दिख रहा है। तदनुसार, आयातित मुद्रास्फ़ीति के कम रहने की संभावना है, बशर्ते एक्सचेंज रेट मोटे तौर पर स्थिर रहे। कंपनी प्रदर्शन, औद्योगिक परिदृश्य और पीएमआई के संकेतक मूल्य निर्धारण क्षमता में कमी की ओर इशारा कर रहे हैं। दूसरी ओर, खाद्य मुद्रास्फ़ीति ऊर्ध्वगामी दबाव का स्त्रोत बन सकती है क्योंकि आपूर्तिगत असंतुलन बने हुए हैं। साथ ही, नियंत्रित मूल्यों के संशोधन की टाइमिंग और उनका आकार, विशेषत: बिजली और कोयले में, 2013-14 में मुद्रास्फ़ीति के आगे की राह तय करेगा। 28. घरेलू मांग-आपूर्ति संतुलन, वैश्विक पण्य कीमतों का परिदृश्य और सामान्य मानसून का पूर्वानुमान देखते हुए, 2013-14 में डबल्यूपीआई इनफ़्लेशन के 5.5 प्रतिशत के आस-पास के दायरे में रहने की प्रत्याशा है और पहली छमाही में विगत नीतिगत कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप इसमें कुछ कमी आ सकती है, यद्यपि दूसरी छमाही में, मुख्यत: आधार परिणामों (बेस इफेक्ट्स) के कारण कुछ वृद्धि हो सकती है। (चार्ट 2). 29. मुद्रास्फ़ीति को काबू में रखने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि हाल में हासिल उपलब्धियों को पुख़्ता किया जाए और आगे बढ़ाया जाए। तदनुसार, रिज़र्व बैंक का प्रयास रहेगा कि अपने पास उपलब्ध सभी साधनों का उपयोग करके मार्च 2014 तक मुद्रास्फ़ीति के विकास को 5.0 प्रतिशत के स्तर पर लाया जाए। 30. यह पुन: रेखांकित करना जरूरी है कि भले ही ऊँची और लगातार बनी हुई मुद्रास्फ़ीति का सबसे हाल का दौर विगत तीन वर्षों में रहा हो, पर समग्र तौर पर 2000 के दशक में डबल्यूपीआई और सीपीआई मुद्रास्फ़ीति का औसत क्रमश: 5.4 और 5.8 रहा जो कि लगभग 7.6 प्रतिशत के पिछले ट्रेंड रेट से कम है। इस रिकॉर्ड की पृष्ठभूमि और टिकाऊ विकास हेतु सहायक मुद्रास्फ़ीति की सीमा (थ्रेसहोल्ड लेवल) के बारे में यथार्थपरक साक्ष्य को देखते हुए लक्ष्य है कि डबल्यूपीआई मुद्रास्फ़ीति को अल्पावधि में लगभग 5.0 प्रतिशत और मध्यावधि में 3.0 प्रतिशत पर नियंत्रित किया जाए जो विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ भारत के व्यापक एकीकरण के अनुरूप है । कुल मौद्रिक राशियां (मॉनिटरी एग्रिगेट्स) 31. विकास के संबंध में उपर्युक्त पूर्वानुमान और मुद्रास्फ़ीति के बारे में रिज़र्व बैंक की सहन सीमा के अनुरूप, 2013-14 में नीतिगत उद्देश्यों के लिए एम3 वृद्धि को 13.0 प्रतिशत पर रखा गया है। परिणामत:, अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबीज़) की कुल जमाराशियों के 14.0 प्रतिशत की दर से बढ़ने का पूर्वानुमान है। निजी क्षेत्र की संसाधन आवश्यकता को देखते हुए अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबीज़) के खाद्येतर ऋण के बारे में 15.0 प्रतिशत वृद्धि का पूर्वानुमान है। हमेशा की तरह ये संख्याएं सांकेतिक पूर्वानुमान हैं और लक्ष्य नहीं। मौद्रिक नीति का संचालन इस पर निर्भर होगा कि कुल मौद्रिक राशियां (मॉनिटरी एग्रिगेट्स) इन सांकेतिक पथों पर कैसे आगे बढ़ती हैं। जोखिम के कारक 32. 2013-14 के समष्टि आर्थिक परिदृश्य को निम्नलिखित कई बातों से जोखिम है। i) अर्थव्यवस्था को अब तक का सबसे बड़ा जोखिम चालू खाता घाटा (सीएडी) से है जो गत वर्ष ऐतिहासिक और रिज़र्व बैंक के आकलन के अनुसार जीडीपी के 2.5 प्रतिशत के कायम रखे जा सकने वाले स्तर से काफ़ी अधिक था। मान लिया कि राजकोषीय घाटा आगे चलकर कम होगा, पर होने वाली कमी को ध्यान में रखते हुए भी यह ऊँचा है। बड़े राजकोषीय घाटे बढ़कर सीएडी में मिल सकते हैं जिससे सीएडी को संभालाना और भी कठिन हो सकता है। चालू खाता घाटा यदि लगातार वर्ष-दर-वर्ष वहनीय स्तर से अधिक बना रहे तो बाह्य देयताओं को पूरा करने पर दबाव पड़ेगा। ii) बड़ा सीएडी अपने आप में एक जोखिम तो है ही, इसके वित्तपोषण से अर्थव्यवस्था के सामने पूँजी प्रवाहों के अचानक रुकने और उलटी दिशा में चल देने का ख़तरा पैदा हो जाता है। वैश्विक व्यवस्था की सुगम चलनिधि स्थितियों के कारण यद्यपि सीएडी को गत वर्ष फाइनैंस किया जा सकता था परंतु दो कारणों से भारत व अन्य ईडीईज़ में चलनिधि के हालात तेजी से बदल सकते थे। पहला तो यह कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए परिदृश्य अनिश्चित बना हुआ है, और किसी घटना का झटका न हो तब भी प्रक्रियागत झटके हो सकते हैं जिससे ईडीईज़ से पूँजी बाहर जा सकती है। दूसरा, मात्रात्मक सुलभता (क्यूई) के कारण, विकसित अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंक एक अन्जान क्षेत्र में हैं जहाँ इस बात को लेकर बड़ी अनिश्चितता है कि समुत्थान का पथ क्या होगा और मात्रात्मक सुलभता की मात्रा कब कितनी होगी। यदि वैश्विक चलनिधि स्थितियां तेजी से तंग होने लगे तो भारत के सामने पूँजी प्रवाहों के अचानक रुकने और उलटी दिशा में चल देने की समस्या आ सकती है जिससे हमारी समष्टि-वित्तीय स्थिरता मुश्किल में पड़ सकती है। iii) निवेश में समुत्थान के बिना विकास में समुत्थान कायम नहीं रह सकता। परंतु कारोबारी आत्मविश्वास के दमित होने एवं लाभअर्जकता को चोट लगने के कारण निवेश का मिज़ाज ठंडा पड़ा है। उधार लेने और देने वाले दोनों जोखिम से कतरा रहे हैं। गवर्नेंस की चिंताओं, अनुमोदन में देरी और ऋण की तंग स्थितियों के कारण ऋण लेने वाले कतरा रहे हैं। ऋण देने वालों की चिंता एसेट की क्वालिटी खराब होने, कैश फ्लो में कमी के चलते उधार लेने वालों की घटती ऋण पात्रता और बढ़े हुए जोखिम प्रीमियम को लेकर है। iv) आगे की बात करें तो अर्थव्यवस्था में विशेषकर खाद्य व आधारभूत संरचना के क्षेत्रों में आपूर्तिगत अड़चनों से मुद्रास्फ़ीतीय दबावों को कम करने व मुद्रास्फ़ीतीय प्रत्याशाओं को सुस्थिर करने में मौद्रिक नीति का असर कम हो सकता है। खाद्य कीमतों के दबाव, एमएसपी को संशोधित कर बढ़ाया जाना और तेजी से बढ़ती मजदूरी से मजदूरी-मूल्य चक्र तैयार हो रहा है। आपूर्तिगत अड़चनों को शिकंजे को खोलने के नीतिगत प्रयासों और उत्पादकता व प्रतिस्पर्धात्मकता में टिकाऊ सुधार के बिना, विकास और कमजोर पड़ सकता है और मुद्रास्फ़ीतीय दबाव फिर से उभर सकते हैं। 33. वित्तीय संकट के कारण अपनाई गई विस्तारकारी नीति से रिज़र्व बैंक ने अक्तूबर 2009 से बाहर आना प्रारंभ किया। जनवरी 2010 और अक्तूबर 2011 के बीच रिज़र्व बैंक ने प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) कुल 100 आधार अंक बढ़ाया और नीतिगत रिपो रेट 13 बार बढ़ाकर उसमें 375 आधार अंकों की वृद्धि की तथा इस दौरान नीतिगत रुख़ मुद्रास्फ़ीति को रोकने और मुद्रास्फ़ीतीय प्रत्याशाओं को सुस्थिर करने की और रहा। 34. वृद्धि, विशेषत: निवेश कार्य में, मंदी और मुद्रास्फ़ीति में नरमी को देखते हुए, दिसंबर 2011 में रिज़र्व बैंक ठहरा। संकेत यह था कि और कसाव की जरूरत नहीं और आगे की कार्रवाई रेटों को कम करने की और रहेगी। जनवरी 2012 में, रिज़र्व बैंक ने नीतिगत रुख़ में परिवर्तन का संकेत दिया और कसाव के चक्र को उलटते हुए विकास संबंधी जोखिमों को कम करने की ओर ध्यान दिया गया। सीआरआर को जनवरी-मार्च 2012 के बीच कुल 125 अंक कम करके पॉलिसी रिपो रेट में शुरुआत में ही अप्रैल में 50 आधार अंकों की कमी के लिए चलनिधि स्थितियां तैयार की गईं। 35. 2012-13 में अधिकांश समय में, रिज़र्व बैंक ने ऋण व चलनिधि स्थितियों को सुलभ करने का प्रयास लगातार जारी रखा और इस क्रम में अगस्त 2012 में 100 आधार अंकों की कटौती तथा सितंबर 2012 - मार्च 2013 के बीच सीआरआर में कुल 75 आधार अंकों व रिपो रेट में 50 आधार अंकों की कमी की गई। 36. कुल मिलाकर, 2012-13 में वर्ष भर में पॉलिसी रिपो रेट 100 बेसिस प्वाइंट घटाया गया, एसएलआर 100 बेसिस प्वाइंट और सीआरआर 75 आधार अंक तथा इसके साथ रु. 1.5 ट्रिलियन के आकार के ओएमओ के जरिये चलनिधि डाली गई। मार्च 2013 की अपनी मध्य तिमाही समीक्षा (एमक्यूआर) में पॉलिसी रिपो रेट में 25 आधार अंकों की कमी करने के बाद रिज़र्व बैंक ने कहा था कि नीतिगत सुलभता के पहले ही प्रभावित हो चुकने, मुद्रास्फ़ीति में मंथर कमी और बढ़ते सीएडी घाटे को देखते हुए और अधिक मौद्रिक सुगमता की गुंजाइश बिल्कुल सीमित है। 37. वैश्विक और घरेलू समष्टि-आर्थिक स्थितियों, परिदृश्य व जोखिम की पृष्ठभूमि में 2013-14 में नीतिगत रुख़ निम्नलिखित विचारों पर आधारित है: 38. पहला, विकास लगातार और बड़ी तेजी से घटा है और 2010-11 की चौथी तिमाही के 9.2 प्रतिशत के आधे से अधिक कम होकर 2012-13 की तीसरी तिमाही में 4.5 प्रतिशत पर आ गिरा है। रिज़र्व बैंक का वर्तमान आकलन यह है कि इस वर्ष की पहली छमाही में कार्यकलाप मंद रहेंगे और परिस्थितियां अनुकूल ढंग से आगे बढ़ीं तो 2013-14 के उत्तरार्ध में मामूली गति आएगी। 39. दूसरा, यद्यपि, थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फ़ीति (डबल्यूपीआई इनफ्लेशन), मार्च 2013 तक कम होकर रिज़र्व बैंक की सहन सीमा के करीब आ पहुँची है, पर यह ध्यान देना जरूरी है कि खाद्य कीमतों के दबाव बने हुए हैं और आपूर्ति में तमाम अड़चने हैं जिससे मुद्रास्फ़ीति व्यापक हो सकती है और भुगतान संतुलन पर दबाव बढ़ सकते हैं। 40. इस पृष्ठभूमि में, मौद्रिक नीति का रुख़ है कि:
41. वर्तमान मूल्यांकन के आधार पर और भाग III में बताए गए नीतिगत रुख़ के अनुरूप रिज़र्व बैंक निम्नमलिखित नीतिगत उपायों की घोषणा करता है: रेपो रेट 42. यह निर्णय लिया गया है कि:
रिवर्स रेपो रेट 43. एलएएफ़ के तहत रिवर्स रेपो रेट जिसका निर्धारण रेपो रेट से 100 आधार अंक नीचे होता है, अपने आप तत्काल प्रभाव से 6.25 प्रतिशत पर समायोजित (एडजस्ट) हो गया है। मार्जिनल स्थायी सुविधा दर 44. रेपो रेट से 100 आधार अंक अधिक पर निर्धारित की जानेवाली मार्जिनल स्थायी सुविधा दर (एमएसएफ़ रेट) तत्काल प्रभाव से 8.25 प्रतिशत पर एडजस्ट हो गई है। बैंक रेट 45. बैंक रेट तत्काल प्रभाव से 8.25 प्रतिशत पर एडजस्ट हो गया है। प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात 46. अनुसूचित बैकों के आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को उनके निवल मांग और देयताओं (एनडीटीएल) के 4.0 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है। मार्गदर्शन 47. हेडलाइन मुद्रास्फ़ीति के धीरे-धीरे नरम पड़ने पर विकास को सहयोग प्रदान करने के लिए जनवरी 2012 से जो कदम उठाए जा रहे हैं, इस समीक्षा में कही गई नीतिगत कार्रवाइयां उन्हीं को आगे ले जा रही हैं। हाल में की गई नीतिगत कार्रवाइयां अपने आप विकास का पुनरुत्थान नहीं कर सकती। इसे, आपूर्तिगत अड़चनों को दूर करने, प्रशासन को बेहतर बनाने व लोक निवेश को बेहतर बनाने के प्रयासों के साथ-साथ राजकोषीय समेकन (फ़िस्कल कॉन्सोलिडेशन) के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता का सहयोग चाहिए। क्षेत्रवार मांग आपूर्ति असंतुलनों, नियंत्रित मूल्यों में जारी संशोधन और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) वृद्धियों से पैदा होने वाले दबावों से अभी भी निकट भविष्य में मुद्रास्फ़ीति को ऊपर ले जाने वाले ख़तरों को देखते हुए, मुद्रास्फ़ीतीय दबावों के फिर से सामने आने की संभावना के आगे मौद्रिक नीति अपना कवच शिथिल नहीं होने दे सकती। चालू खाता घाटा (सीएडी) व इसकी फ़ाइनैंसिंग के चलते होने वाले ख़तरों के प्रति भी मौद्रिक नीति को सजग रहना होगा, जिनके कारण नीतिगत रुख में तेजी से परिवर्तन की जरूरत भी पड़ सकती है। समग्र तौर पर विकास-मुद्रास्फ़ीति के गतिमान संबंधों के बारे में रिज़र्व बैंक के आकलन में और अधिक मौद्रिक सुगमता की गुंजाइश बड़ी मुश्किल से है। मौद्रिक संचरण को पुख़्ता करने के लिए रिज़र्व बैंक विकास-मुद्रास्फ़ीति प्रतिसंतुलन के अनुरूप चलनिधि के सक्रिय प्रबंधन का प्रयास करता रहेगा। मौद्रिक नीति 2013-14 की मध्य तिमाही समीक्षा 48. वर्ष 2013-14 की मौद्रिक नीति की अगली मध्य तिमाही समीक्षा की घोषणा सोमवार, 17 जून 2013 को प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से की जाएगी। मौद्रिक नीति 2013-14 की पहली तिमाही समीक्षा 49. मौद्रिक नीति 2013-14 की पहली तिमाही समीक्षा मंगलवार, 30 जुलाई 2013 को की जाएगी। भाग बी - विकासात्मक और विनियामक नीतियां 50.वक्तव्य के इस भाग में हाल के नीतिवक्तव्यों में रिज़र्व बैंक द्वारा घोषित विभिन्न विकासात्मक और विनियामक नीतिगत उपायों में हुई प्रगतिकी समीक्षा और नए उपायों की जानकारी भी है। 51. वैश्विक वित्तीय स्थिरता को निकट भविष्य में होने वाले खतरे अब पीछे हटते दिखाई दे रहे हैं क्योंकि अतिरेकी घटनाओं से जुड़ी संभावना कम हो गई है और जोखिम प्रवणता जाग उठी है, जैसा कि वित्तीय बाज़ारों के प्रति बढ़ते उत्साह में देखने को मिल रहा है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में पूँजी निवेश (फ़ंडिंग) के हालात बेहतर हुए हैं, परंतु ऋण के प्रभावों और बैलेंस शीट में लगातार बनी हुई कमज़ोरी के कारण ऋण के हालात तनावग्रस्त हैं। उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए, विकसित अर्थव्यवस्थाओं की अपरांपरिक नीतियों के परिणाम पर्याप्त रूप से अहम बने हुए हैं, विशेषत: ऋण जोखिम के गलत मूल्य निर्धारण, चलनिधि जोखिम में वृद्धि, और कम लागत की उधारियों के चलते ऋण वृद्धि व अधिक पूँजी प्रवाह के कारण हो रहा विदेशी मुद्रा एक्सपोज़र। देशी वित्तीय स्थिरता की रक्षा के अलावा, इन अर्थव्यवस्थाओं के सामने ऐसी सहायक वित्तपोषक परिस्थितियां तैयार करने की चुनौती है जो स्थिरता के साथ विकास को तेज करें। 52. अंतर्राष्ट्रीय मंच पर, वैश्विक वित्तीय नियामक ढाँचे को मज़बूत करने का काम अधूरा है एवं देर से हो रहा है जिससे संकटापन्नता और अनिश्चितता बढ़ती है। वित्तीय व्यवस्था के कमज़ोर हिस्सों की पुनर्संरचना के पथ पर पुरजोर प्रगति के लिए जरूरत है निर्णायक व सु-समन्वित कार्रवाइयों,पूँजी व चलनिधि बफर तैयार करने व भविष्योन्मुखी प्रावधानीकरण, प्रणाली-व्यापी महत्त्व वाली इकाइयों के लिए मजबूत ढाँचा विकसित करने, उन्नत बाज़ार अनुशासन के लिए प्रकटन बढ़ाने, अंतर्राष्ट्रीय समाधान करारों सहित कारगर समाधान व्यवस्था (रिसॉल्यूशन रेजिम) स्थापित करने, अविनियमित इकाइयों विनियमन की परिधि में लाने और लेखांकन मानकों में अंतर मिटाने की। 53. इस चुनौतीपूर्ण और अनिश्चित अंतर्राष्ट्रीय माहौल में चल रहे संरचनात्मक सुधारों का लक्ष्य है कि भारतीय बैंकिंग सिस्टम को अधिक सक्षम, प्रत्यास्थ और सामाजिक रूप से अधिक प्रासंगिक बनाया जाए। ज़ोर इस बात पर है कि बिना किसी बड़े उथल-पुथल के बैलेंस शीट और शासकीय तंत्रों को मजबूत किया जाए और देश-विशेष की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए बेसल III मानदंडों के अनुसार विवेकसम्मत ढाँचे को सुदृढ़ व परिष्कृत किया जाए। समय परिप्रेक्ष्य में विभिन्न क्षेत्रवार व प्रतिनिधिक तौर पर भी जोखिम भार व प्रावधानीकरण तथा परस्पर संबद्धता व एक ही क्षेत्र में एक्सपोज़र के संदर्भ में प्रतिचक्रीय नीतियां अपनाकर प्रणाली व्यापी जोख़िमों को संभालने पर भी प्रमुखता से ध्यान दिया जा रहा है। वित्तीय समावेश, वित्तीय साक्षरता और उपभोक्ता संरक्षण को ऐसी तिकड़ी के रूप में देखा जा रहा है जो मिलकर वित्तीय स्थिरता का ताना-बाना बुनते है। गैर-बैंकिंग वित्तीय इकाइयों के संबध में, जमाकर्ता के हितों की रक्षा का प्रारंभिक सरोकार अब और बड़ा होकर प्रणाली व्यापी जोखिमों को कम करने हेतु एक अधिक व्यापक संरचना की ओर बढ़ गया है। वित्तीय स्थिरता के व्यापक संदर्भ में वित्तीय बाज़ारों, प्रोडक्ट्स और प्रक्रियाओं को विकसित किया जा रहा है जिसमें वित्तीय प्रणाली की परिपक्वता और वास्तविक अर्थव्यवस्था की जरूरतों के मुताबिक नवोन्मेष को अतिरेक पर नियंत्रण के द्वारा संतुलित किया जा रहा है। 54. इस पृष्ठभूमि में, 2013-14 की विकासात्मक व विनियामक नीतियों संबंधी वक्तव्य में विगत नीतिगत घोषणाओं पर हुई प्रगति का आकलन और प्रमुख क्षेत्रों में की गई नीतिगत पहलकदमियों की जानकारियां दी गई हैं यथा -- वित्तीय बाज़ार की आधारभूत संरचना का सुदृढ़ीकरण; कृषि व अन्य उत्पादक क्षेत्रों की ओर ऋण-प्रवाह में उन्नति; बैंकों के लिए गत्यात्मक प्रावधानीकरण की व्यवस्था का कार्यान्वयन; चलनिधि जोखिम पर निगरानी के लिए एक ढाँचे का निर्माण; निजी क्षेत्र में नए बैंकों के लाइसेंसीकरण के लिए दिशा-निर्देशों का फाइनलाइज़ेशन; भारत के बैंकिंग ढाँचे की समीक्षा, धन प्रबंधन के कार्य-कलापों का विनियमन; ग्राहक सेवा की दिशा में किए गए प्रयास; भुगतान संबंधी आधारभूत व्यवस्था का विस्तार और प्रणाली में संकेद्रण जोखिम (कॉन्सेंट्रेशन रिस्क) में कमी; बैंकनोटों व सिक्कों की वितरण व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण; और जाली नोटों की पकड़ व रिपोर्टिंग व्यवस्था में सुधार। वित्तीय स्थिरता का आकलन 55. दिसंबर 2012 में जारी छठी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर), में कहा गया है कि जून 2012 में किए गए आकलन के बाद से भारतीय वित्तीय व्यवस्था में समग्र समष्टि आर्थिक जोखिम बढ़ गए हैं। वैश्विक विकास व वित्तीय् स्थिरता के प्रति जोखिम के अलावा, घरेलू कारकों- यथा अपेक्षाकृत ऊँची मुद्रास्फ़ीति के साथ विकास में गिरावट, घरेलू बचत, और विशेषत: हाउसहोल्ड वित्तीय बचत में कमी- से समष्टि आर्थिक स्थिरता के प्रति जोखिम पहले से अधिक हो गया था। इसके अतिरिक्त, कमज़ोर होते बाह्य क्षेत्र मानकों के साथ, ऊँचा चालू खाता घाटा (सीएडी), तनावग्रस्त राजकोषीय स्थिति और बढ़ते कॉरपोरेट् लिवरेज, विशेषत: अरक्षित (अनहेज्ड) एक्सपोज़र्स के साथ बाह्य वाणिज्यिक उधार को समष्टि-आर्थिक स्थिरता के प्रति अन्य ख़तरों के रूप में देखा गया। बैंकिंग क्षेत्र के लिए, तंग चलनिधि हालातों और घटते एसेट क्वालिटी को लेकर चिंता बनी हुई है, अलबत्ता यह क्षेत्र ऋण, बाज़ार, और चलनिधी जोखिमों के प्रति प्रत्यास्थ (रेज़िलिएंट) रहा है और समग्र प्रणालीगत स्तर पर पूँजी से जोखिम भारित आस्तियों के अच्छे अनुपात को देखते हुए समष्टि आर्थिक आघातों को झेलने में सक्षम भी है। वित्तीय प्रणाली के विभिन्न क्षेत्रों के बीच अंतर्संबंध मज़बूत है और मूल क्षेत्र (कोर) में किसी संस्था के फेल होने पर संक्रमण का ख़तरा अधिक बना हुआ है। यह पाया गया कि म्युचूअल फ़ंड और इंश्योरेंस कंपनियां चलनिधि संक्रमण के संभावित स्त्रोत हैं क्योंकि ये वित्तीय व्यवस्था में ऋणदाता हैं। वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद उप-समिति – हाल में किए गए प्रयास 56. वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद उप-समिति (एफएसडीसी) के तत्वावधान में, वित्तीय क्षेत्र के विनियामकों (भारतीय रिज़र्व बैंक, भारतीय प्रतिभुति और विनिमय बोर्ड, बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण) ने पर्यवेक्षण (सुपरविज़न) के क्षेत्र में अधिक सहयोग की दृष्टि से 08 मार्च 2013 को एक सहमति ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। एमओयू में वित्तीय संगुट (फ़ाइनैंसियल कॉन्ग्लॉमरेट्स) के रूप में चिह्नित वित्तीय समूहों की संयुक्त निगरानी और पर्यवेक्षण की बात कही गई है। 57.एफएसडीसी की उप-समिति ने वित्तीय शिक्षा के लिए राष्ट्रीय रणनीति (एनएसएफ़ई) को अनुमोदित किया। एनएसएफ़ई में सभी भारतीयों के लिए वित्तीय शिक्षा की व्यवस्था की बात कही गई है जिससे बचत की जरूरत व उपयोगिता, औपचारिक वित्तीय क्षेत्र के उपयोग के फ़ायदे और, बचत को निवेश में बदलने के विभिन्न विकल्प, बीमा के जरिये सुरक्षा व इन विकल्पों की विशेषताओं की वास्तविक पहचान से लोग परिचित हों। जनता की राय और वैश्विक समकक्ष समीक्षा के आधार पर एनएसएफ़ई को संशोधित किया गया है। सरकारी प्रतिभूति और ब्याज दर व्युत्पन्नों के बाज़ार पर कार्यदल 58. जैसा कि अक्टूबर 2012 की दूसरी तिमाही समीक्षा में कहा गया था, सरकारी प्रतिभूति और ब्याज दर व्युत्पन्नों के बाज़ार (इंडरेस्ट रेट डेरिवेटिव्स मार्केट्स) पर कार्यदल (अध्यक्ष: श्री आर गांधी) की रिपोर्ट को अगस्त 2012 में अंतिम रूप दे दिया गया है। कुछ सिफ़ारिशें जैसे, न्यूज़वायर्स व ऑक्शन सिस्टम में प्राथमिक निलामियों (प्राइमरी ऑक्शन्स) के परिणामों की जानकारी में समयअंतराल में कमी; जैसे प्राथमिक नीलामी (प्राइमरी ऑक्शन) में बोली लगाने (बिडिंग) के लिए टाइम विंडो की ट्रंकेटिंग; खजाना बिलों (टी-बिल्स) में प्राथमिक नीलामी के निपटान चक्र को T+2 से बदलकर T+1 किया जाना; समरूप-मूल्य और बहु-मूल्य प्रारूपों के मिश्रण के रूप में सरकारी प्रतिभूतियों में प्राथमिक निलामी का संचालन; राज्य विकास ऋणों की वर्तमान सिक्यूरिटीज़ का फिर से जारी किया जाना; ब्याज दर अदला-बदली (आईआरएस) कॉन्ट्रैक्ट का मानकीकरण ताकि इन कॉन्ट्रैक्ट्स की केंद्रीकृत क्लीयरिंग और सेटलमेंट हो सके; और सरकारी प्रतिभूतियों में ओवर द काउंटर (ओटीसी) ट्रेड्स के सेकेंडरी मार्केट रिपोर्टिंग की लोक ऋण कार्यालय – तयशुदा लेनदेन प्रणाली (पीडीओ-एनडीएस) से क्रमश: तयशुदा लेनदेन प्रणाली ऑर्डर मिलान (एनडीएस-ओएम) और क्लीयर कॉर्प रिपो ऑर्डर मैचिंग सिस्टम (सिआरओएमएस) की ओर संचरण पहले ही लागू किए जा चुके हैं। आगे, भारत सरकार ने 2013-14 के यूनियन बजट में खुदरा इन्वेस्टरों के लिए मुद्रास्फ़ीति-सूचकांकित बॉण्ड लाने की घोषणा की है। जैसा कि इस खंड में आगे बताया जाएगा, परिपक्वता तक धारित (एचटीएम) के संबंध में भी छूट की समीक्षा की गई है। 59. भारत सरकार के लोक ऋण का समेकन; कैश से सेटल किए जाने वाले 10-वर्षीय ब्याज दर फ़्यूचर्स (आईआरएफ) की शुरुआत; सिंगल बॉण्ड फ़्यूचर्स की शुरुआत; और एसजीएल फॉर्म से डीमैट फॉर्म और डीमैट से एसजीएल की ओर निर्बाध आवा-जाही हेतु ऑपरेशनल प्रक्रियाओं के सरलीकरण जैसे कुछ दूसरे रिकमेंडेशन्स हैं जिन पर सभी हितधारकों के साथ विचार-विमर्श चल रहा है। स्थिर ब्याज दर वाले उत्पाद 60. जैसा कि दूसरी तिमाही समीक्षा में बताया गया था, बैंकों द्वारा दीर्घावधि स्थिर ब्याज दर ऋण उत्पाद शुरू करने की कार्य-व्यवहार्यता के आकलन हेतु गठित समिति (अध्यक्ष: के. के. वोहरा) की रिपोर्ट रिज़र्व बैंक की साइट पर रखी गई और इस पर आम लोगों/हितधारकों की राय मांगी गई। प्राप्त फ़ीडबैक के आधार पर, फाइनल रिपोर्ट रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर जनवरी 2013 में रखी गई। इन सुझावों को लागू करने पर विचार कर सकते हैं ताकि आर्थिक चक्रों व नीतिगत दरों में परिवर्तन से पैदा होने वाले अनुचित ब्याज दर जोखिमों का खुदरा ग्राहकों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। मुद्रा व्युत्पन्नों (करेंसी डेरिविटिव्स) में विदेशी संस्थागत निवेशकों की सहभागिता 61. वित्त मंत्री ने 2013-14 के अपने बजट भाषण में घोषणा की थी कि विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआईज़) को देश में अपने रुपया मूल्य वर्गित एक्सपोज़र की सीमा तक एक्सचेंजों के मुद्रा व्युत्पन्नों (करेंसी डेरिविटिव्स) वाले हिस्से में सहभागिता की अनुमति दी जाएगी। उपर्युक्त घोषणा के अनुसार, प्रस्ताव है कि: घरेलू एक्सचेंजों में एक्सचेंज ट्रेडेड करेंसी फ़्यूचरों का उपयोग करके अपने मुद्रा जोखिम (करेंसी रिस्क) को हेज करने की अनुमति एफआईआईज़ को दी जाए। जुलाई- 2013 के अंत तक ड्राफ्ट दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे। बाज़ार चलनिधि संकेतकों का प्रसार 62. 2005 में, एनडीएस-ओएम के लागू होने के बाद से, सरकारी प्रतिभूतियों के सेकेंडरी मार्केट में टर्नओवर व चलनिधि में काफ़ी उन्नति हुई है। पारदर्शिता बढ़ाने और चलनिधि के संबंध में बेहतर आँकड़ा प्रसार के लिए अब से भारतीय समाशोधन निगम लि. (सीसीआईएल) अपनी वेबसाइट पर बाज़ार चलनिधि संकेतकों (मार्केट लिक्विडिटी इंडिकेटर्स) की जानकारी नियमित मासिक अंतराल पर देगा। प्रारंभ में, बोली-प्रस्तावित दर के अंतर (बिड-आस्क स्प्रेड्स), ऑर्डर बुक के आकार, परिणामात्मक लागत (इम्पैक्ट कॉस्ट), टर्नओवर अनुपात और ट्रेड की गई प्रतिभूतियों की संख्या की जानकारी सीसीआईएल की वेबसाइट पर दी जाएगी। अनुभव के आधार पर इसे आगे और परिष्कृत किया जाएगा। वित्तीय बाजार आधारभूत संरचना निर्यातकों हेतु सेवाओं/सुविधाओं पर तकनीकी समिति 63. निर्यात से संबंधित विभिन्न मुद्दों जैसे ऋण की उपलब्धता, लेनदेन लागत, इंश्योरेंस, फैक्टरिंग तथा बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के साथ निर्यातकों के काम-काज के दूसरे प्रक्रियागत पक्षों की जाँच करने के लिए 13 फरवरी 2013 को निर्यातकों हेतु सेवाओं/सुविधाओं पर एक तकनीकी समिति (अध्यक्ष: श्री जी. पद्मनाभन) का गठन किया गया था। समिति के रिकमेंडेशन्स का अध्ययन चल रहा है। रिपोर्ट को जल्द ही रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखा जाएगा। निर्यात रिपोर्टिंग और अनुवर्ती कार्रवाई (एक्सपोर्ट रिपोर्टिंग और फॉलो-अप) 64. जैसा कि दूसरी तिमाही समीक्षा में बताया गया था, वर्तमान निर्यात रिपोर्टिंग और अनुवर्ती कार्रवाई प्रक्रिया में कमियों/खामियों और कस्टम व बैंक रिपोर्टिंग में मिलान नहीं किए जा सकने वाले लेन-देन का पता लगाने के लिए एवं प्रणाली की उपयुक्त पुनर्संरचना पर सुझाव के लिए एक कार्यदल (अध्यक्ष:रश्मि फ़ौजदार) का गठन किया गया था। कार्यदल की सिफारिशों का कार्यान्वयन किया जा रहा है। सितंबर 2013 के अंत तक विचाराधीन संरचना के लागू किए जाने की संभावना को देखते हुए, प्राधिकृत व्यापारियों (एडीज़) को अपने लेन-देन से संबंधित निर्यात से हुई आय की प्राप्ति और निर्यात के साक्ष्य-स्वरूप कागज़ातों की स्थिति को नियमित रूप से रिज़र्व बैंक के डेटाबेस में अपडेट करना पड़ेगा ताकि बड़े मूल्य के लेन-देन/ गंभीर प्रकृति के लेन-देन को कारगर ढंग से फॉलोअप किया जा सके और निर्यात लेन-देन पर निगरानी रखी जा सके। III. ऋण वितरण और वित्तीय समावेश प्राथमिक क्षेत्र दिशानिर्देश 65. प्राथमिकता क्षेत्र के व्यापक ढाँचे में प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र अग्रिम के रूप में गिने जाने हेतु पात्र होने के लिए कुछ ऋण सीमाओं में वृद्धि के संबध में हितधारकों से प्राप्त फ़ीडबैक के आधार पर, प्रस्ताव है कि:
दिशानिर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं। अत्यंत लघु और लघु उद्यम 66. एमएसई सेक्टर के ऋण वृद्धि में ह्रास से हो रही चिंताओं को देखते हुए, इस क्षेत्र में ऋण संबंधी समस्त मुद्दों की निगरानी हेतु बैंकों द्वारा एक संरचित तंत्र के बारे में सुझाव देने के लिए भारतीय बैंक संघ (आईबीए) के नेतृत्व में एक उपसमिति (अध्यक्ष: श्री के आर कामत) का गठन किया गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है और इसके रिकमेंडेशन्स के आधार पर यह तय किया गया है कि बैंकों को:
विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं। वित्तीय समावेश डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर 67. हिताधिकारियों (बेनिफिशियरी) के बैंक खाते में सीधे क्रेडिट करके समाज कल्याण लाभ हेतु डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के लिए बैंकों को सूचित किया जाता है कि:
दिशानिर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं। वित्तीय समावेश योजना 2013-1668. अप्रैल 2010 में पहली बार प्रारंभ की गई वितीय समावेश योजना (एफआईपी) 2010-13 के कार्यान्वयन से 2 लाख से अधिक गाँवों में बैंकिंग ऑउटलेट्स खुले हैं। वित्तीय समावेश को वैश्विक कवरेज दिलाने के अगले चरण में ले जाने और और इलेक्ट्रॉनिक बेनिफिट ट्रांसफर (ईबीटी) के लिए, बैंकों को 2013-16 की अवधि के लिए अगला एफआईपी बनाने को कहा गया है। बैंकों द्वारा प्रस्तुत एफआईपी पर रिज़र्व बैंक के साथ विस्तृत चर्चा की जाएगी। अत: बैंकों को सूचित किया जाता है कि:
वित्तीय साक्षरता सामग्री 69. वित्तीय रूप से वंचित वर्ग को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने के लिए, साक्षरता कैंप संचालित करने का एक मॉडल तैयार किया गया है जिसमें विस्तृत ऑपरेशनल तौर-तरीकों बताए जाएं तथा जिसकी परिणति के रूप में वंचित प्रभावी ढंग से वित्तीय सुविधा तक पहुँच (इफेक्टिव फ़ाइनैंशियल एक्सेस) पाए। आगे, यह सुनिश्चित करने के लिए कि एक सरल व स्पष्ट वित्तीय साक्षरता सामग्री लक्ष्य समूह को समान रूप से मिलती रहे, रिज़र्व बैंक ने व्यापक वित्तीय साक्षरता सामग्री तैयार की है जिसमें एक वित्तीय साक्षरता गाइड, एक फाइनैंशियल डायरी और 16 वित्तीय साक्षरता पोस्टरों का एक सेट है। अत: बैंकों को सूचित किया जाता है कि :
लीड बैंक योजना – महानगरीय इलाके 70. वर्तमान में, लीड बैंक स्कीम (एलबीएस) देश के सभी जिलों में, सिवाय महानगरीय इलाकों में स्थित जिलों के, लागू है। तथापि, वित्तीय वंचन की चुनौती महानगरीय इलाकों में भी व्यापक है, विशेषत: वंचित व कम आय वाले समूहों में। सरकारी प्राधिकारियों एवं बैंकों के बीच संस्थागत व्यवस्था उपलब्ध कराने, शहरी गरीबों के वंचित वर्ग के घर की चौखट तक बैंकिंग पहुँचाने, और डीबीटी को कार्यान्वित करने के लिए, यह निर्णय लिया गया है कि:
ग्रामीण सहकारिताएं : अल्पावधि सहकारी ऋण संरचना का सुव्यवस्थीकरण 71. दूसरी तिमाही समीक्षा में की गई घोषणा के अनुसार, रिज़र्व बैंक ने अल्पावधि सहकारी ऋण संरचना (एसटीसीसीएस) का गहराई से विश्लेषण करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति (अध्यक्ष: डॉ.प्रकाश बख़्शी) का गठन किया। समिति ने अपनी रिपोर्ट जनवरी 2013 में प्रस्तुत की और ग्रामीण सहकारी ऋण संरचना को सुदृढ़ करने के लिए 25 रिकमेंडेशन्स दिए हैं। 72. विशेषज्ञ समिति की राय (जहाँ कहीं लागू हो) को जल्द व कारगर ढंग से कार्यान्वित करने के लिए राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) और रिज़र्व बैंक के सदस्यों को लेकर एक कार्यान्वयन समिति (अध्यक्ष: श्री वी रामकृष्ण राव) बनाई गई है। इस संबंध में हुई प्रगति अक्टूबर 2013 की दूसरी तिमाही समीक्षा में रिपोर्ट की जाएगी। ग्राहक सेवा दामोदरन समिति की रिपोर्ट का कार्यान्वयन 73. जैसा कि अप्रैल 2012 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में कहा गया था, दामोदरन समिति के कुछ सुझावों के कर्यान्वयन की जाँच के लिए भारतीय बैंक समूह (आईबीए) के एक उप-समूह का गठन किया गया था। इसमें निम्नलिखित बातें शामिल हैं : मूलभूत बैंकिंग सेवाओं के लिए सेवा प्रभार की बेंचमार्किंग, नॉन-होम ब्रांच लेन-देन के लिए प्रभार, ऑटोमेटेड टेलर मशीन (एटीएम)/ प्वाइंट ऑफ सेल/ इंटरनेट बैंकिंग के लिए शून्य देयता (जीरो लायबिलिटी) और ग्राहक की लापरवाही सिद्ध करने का जिम्मा बैंक पर तथा फ्लोटिंग ब्याज दर व्यवस्था के तहत पुराने व नए ग्राहकों को दी जाने वाली ब्याज दरों में भेदभाव। इन सिफारिशों (रिकमेंडेशन्स) को लागू करने के लिए आईबीए को एक सुविचारित कार्ययोजना तैयार करने और यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि समिति के परामर्शों से वांछित परिणाम पूर्ण रूप से आएं। दामोदरन समिति की सिफारिशें- इंटरसोल प्रभारों में एकरूपता 74. कोर बैंकिंग सोल्यूशन (सीबीएस) के प्रारंभ होने के बाद, यह आशा की जाती है कि बैंक के ग्राहकों के साथ किसी भी बिक्री या सर्विस डिलीवरी प्वाईंट पर एक समान व्यवहार किया जाएगा। तथापि, यह देखा गया है कि कुछ बैंक अपने स्वंय के ग्राहकों के साथ भेदभाव करते हैं, इस प्रकार कि एक शाखा को ‘होम ब्रांच’ का नाम दिया जा रहा है जहाँ उत्पादों/सेवाओं के लिए कोई चार्ज नहीं लग रहा है और दूसरी शाखाओं को ‘नॉन-होम ब्रांच’ कहकर उन्हीं उत्पादों/सेवाओं के लिए के लिए चार्ज लगाया जा रहा है। यह तरीका बैंक प्रभारों की तर्कसंगतता पर रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों की भावना के अनुकूल नहीं है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि बैंक की सभी शाखाओं/सर्विस डिलीवरी लोकेशनों में बैंक ग्राहकों के साथ बिना किसी भेदभाव के, न्यायसंगत, यथोचित ढंग और पारदर्शी तरीके से व्यवहार हो, बैंकों को सूचित किया जाता है कि:
जून 2013 के अंत तक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए जाएगें। बैंकिंग लोकपाल योजना 75. जैसा कि अक्तूबर 2012 की दूसरी तिमाही समीक्षा में कहा गया था, रिज़र्व बैंक ने बैंकों में ग्राहक सेवा पर समिति की सिफारिशों और राज्य सभा कमिटी ऑन सबोर्डिनेट लेजीसलेशन की सिफारिशों और सुझावों को ध्यान में रखते हुए बैंकिंग लोकपाल योजना 2006 की समीक्षा, अद्यतनीकरण और संशोधन के लिए एक समिति गठित (अध्यक्ष: श्रीमती सुमा वर्मा) की है। कार्यदल ने अपनी रिर्पोट जनवरी 2013 में प्रस्तुत की, जिसकी अभी जांच चल रही है। IV. विनियामक और पर्यवेक्षी उपाय बासल III पूँजी विनियमन का कार्यान्वयन 76. 1 अप्रैल 2013 से बासल III पूंजी विनियमन पर रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों को, सिवाय ओटीसी डेरिवेटिव्स के लिए क्रेडिट वेल्यूएशन एडजस्टमेंट (सीवीए) रिस्क केपिटल चार्ज के, कार्यान्वित किया गया है। केंद्रीय प्रतिपक्ष के माध्यम से अनिवार्य (मेंडेटरी) फोरेक्स फारवर्ड गारंटीड सेटेलमेंट को लागू करने से जुड़े कुछ मुद्दों के समाधान होने तक, सीवीए रिस्क केपिटल चार्ज के कार्यान्वयन को 1 जनवरी 2014 तक टाल दिया गया है। 77. दूसरी तिमाही समीक्षा में की गई घोषणा के अनुसार, (i) पूंजी प्रकटीकरण आवश्यकताओं की संरचना और (ii) केंद्रीय प्रतिपक्षों में बैंकों के एक्सपोज़र के लिए पूंजी आवश्यकताओं पर ड्राफ्ट दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। यह प्रस्तावित है कि:
बासल III के तहत चलनिधि (लिक्विडिटी) कवरेज अनुपात और चलनिधि जोखिम (लिक्विडिटी रिस्क) निगरानी के साधनों पर दिशानिर्देश 78. चलनिधि मानकों पर बासल III ढाँचे में चलनिधि (लिक्विडिटी) कवरेज अनुपात (एलसीआर), निवल स्थिर फ़ंडिंग अनुपात (एनएसएफआर) और लिक्विडिटी जोखिम निगरानी के साधन शामिल हैं। रिज़र्व बैंक ने चलनिधि जोखिम प्रबंधन (लिक्विडिटी रिस्क मैनेजमेंट) और चलनिधि मानकों पर बासल III ढाँचे पर ड्राफ्ट दिशानिर्देश फरवरी 2012 में जारी कर दिए थे। हितधारकों (स्टेकहोल्डर्स) से प्राप्त फ़ीडबैक के आधार पर चलनिधि जोखिम प्रबंधन पर नवंबर 2012 में दिशानिर्देश जारी किए गए। इसमें चलनिधि जोखिम के गवर्नेंस, माप, मोनिटरिंग और लिक्विडिटी की पोजीशन्स पर रिज़र्व बैंक को रिपोर्टिंग शामिल हैं। बासल समिति ने बासल III चलनिधि मानकों को पर्यवेक्षण अवधि/संशोधन में रखा था ताकि वित्तीय बाज़ारों, ऋण देने और आर्थिक विकास के लिए इन मानकों से यदि कुछ अनचाहे नतीजे निकल आएं तो उन पर कार्रवाई की जा सके। नवंबर 2012 में चलनिधि जोखिम प्रबंधन (लिक्विडिटी रिस्क मैनेजमेंट) पर जारी दिशानिर्देशों में रिज़र्व बैंक ने कहा कि जब बासल समिति संबंधित ढाँचे को फाइनल कर लेगी, उसके बाद बासल III चलनिधि मानकों पर दिशा निर्देश जारी किए जाएंगे। बासल समिति ने जनवरी 2013 में बासल III : लिक्विडिटी कवरेज अनुपात और लिक्विडिटी जोखिम निगरानी साधन जारी किया है और एनएसएफ़आर और प्रकटन अपेक्षाओं को अंतिम रूप देने में लगी है। एलसीआर को 01 जनवरी 2015 से और एनएसएफ़आर को 01 जनवरी 2018 से लागू किया जाएगा। बासल समिति के संशोधनों को ध्यान में रखकर रिज़र्व बैंक बासल III चलनिधि मानकों और चलनिधि जोखिम निगरानी साधनों पर अंतिम दिशा निर्देश जारी करेगा। भारत में बैंकों के लिए गत्यात्मक प्रोविजनिंग व्यवस्था का कार्यान्वयन 79. रिज़र्व बैंक ने अपनी वेबसाइट पर भारत में बैंकों के लिए गत्यात्मक ऋण क्षति प्रावधानीकरण संरचना की शुरुआत पर मार्च 2012 में एक चर्चा पत्र रखकर इस विषय पर लोगों को अपने विचार देने को कहा था। रिज़र्व बैंक हितधारकों से प्राप्त टिप्पणियों/विचारों पर गौर कर रहा है तथा बैंकों से प्राप्त नए और अद्यतन आँकड़ों के आधार पर प्रस्तावित गत्यात्मक प्रावधानीकरण के मानकों को फिर से समायोजित किया जा रहा है। प्रस्ताव है कि:
इंट्रा ग्रूप लेनदेन और एक्सपोज़रों के प्रबंधन पर अंतिम दिशा-निर्देश 80. इंट्रा समूह लेनदेन और एक्सपोज़र (आईटीईएस) के प्रबंधन पर ड्राफ्ट दिशानिर्देश अगस्त 2012 को जारी किए गए थे। ड्राफ्ट दिशानिर्देशों में बैंकों के इंट्रा समूह एक्सपोजरों पर विवेकपूर्ण एक्सपोज़र सीमाएं बताई गई हैं और यह सुनिश्चित करने के उपाय दिए गए हैं कि समूह संस्थाओं के साथ अपने व्यवहार में बैंक दूरी बनाए रखें और समूह जोखिम प्रबंधन और समूह-व्यापी निगरानी के संबंध में न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करें। ये उपाय यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किए गए है कि बैंक आइटीईएस से उत्पन्न संकेंद्रण (कॉन्सेंट्रेशन) और संक्रमण जोखिमों पर काबू पाने के लिए बैंक आईटीईएस में सुरक्षित और अच्छे ढंग से कार्य करें। ड्राफ्ट दिशा निर्देशों पर विभिन्न हितधारकों से प्राप्त टिप्पणियों/ प्रतिक्रियाओं को देखा-परखा जा रहा है। यह प्रस्तावित है कि:
बैंकों/वित्तीय संस्थाओं द्वारा दिए जाने वाले अग्रिमों की पुनर्संरचना पर विवेकसम्मत दिशानिर्देश (प्रुडेंशियल गाइडलाइन्स) 81. दूसरी तिमाही समीक्षा में यह घोषणा की गई थी कि बैंकों / वित्तीय संस्थाओं द्वारा दिए जाने वाले अग्रिमों की पुनर्संरचना पर वर्तमान विवेकसम्मत (प्रुडेंशियल) दिशानिर्देशों की समीक्षा के लिए कार्यदल (अध्यक्ष: श्री बी.महापात्र) की सिफारिशों और इस संबंध में प्राप्त टिप्पणियों/सुझावों की जांच की जा रही है और जनवरी 2013 के अंत तक ड्राफ्ट दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। तदनुसार, 31 जनवरी 2013 को ड्राफ्ट दिशानिर्देश जारी किए गए और इस पर 28 फरवरी 2013 तक टिप्पणी मंगाई गई। प्राप्त टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए, यह निर्णय लिया गया है कि:
वाणिज्यिक रियल इस्टेट-आवासीय मकान: विवेकसम्मत मानदंड (प्रुडेंशियल नॉर्म्स) 82. सितंबर 2009 में, रिज़र्व बैंक ने कुछ एक्सपोज़रों को वाणिज्यिक रियल इस्टेट एक्सपोज़रों (सीआरई) के रूप में वर्गीकृत करने से संबंधित दिशा निर्देश जारी किए थे। अपने अंतर्निहित मूल्य अस्थिरता के कारण सीआरई एक्सपोज़र संवेदनशील हैं। अतएव, इन एक्सपोज़रों पर आम तौर पर उच्च जोखिम भार और उच्चतर प्रावधानीकरण अपेक्षाए लागू होती हैं। तथापि, सामान्यत: यह देखा गया है कि सीआरई के अंतर्गत रेज़िडेंशियल हाउसिंग सेक्टर में सीआरई सेक्टर के अन्य घटकों की अपेक्षा कम जोखिम है। तदनुसार, यह प्रस्ताव है कि:
इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश जून 2013 के अंत तक जारी किए जाएगें। प्रतिभूतिकरण में ऋण बढ़ाने (क्रेडिट एनहान्समेंट) के रीसेट पर दिशानिर्देश 83. रिज़र्व बैंक ने मई 2012 में “प्रतिभूतिकरण लेनदेन संबंधी दिशानिर्देशों में संशोधन” पर ड्राफ्ट दिशानिर्देश जारी किए। भारतीय प्रतिभूतिकरण बाजार का सुव्यवस्थित विकास सुनिश्चित करने के लिए प्रतिभूतिकरण लेनदेन के संबंध में न्यूनतम होल्डिंग अवधि, न्यूनतम धारण अनुपात (रिटेंशन रेशियो), ऋण की शुरुआत (लोन ओरिजिनेशन) और समुचित सावधानी के मानकों पर इन दिशानिर्देशों के माध्यम से विभिन्न मानदंड लाए गए। यद्यपि मौजूदा दिशा निर्देशों में विशेष प्रयोजन माध्यम द्वारा जारी प्रतिभूतियों के जीवन-काल के दौरान ऋण बढ़ाने (क्रेडिट एनहान्समेंट) के रीसेट की अनुमति नहीं है, मई 2012 में यह उल्लेख किया गया था कि ऋण बढ़ाने (क्रेडिट एनहान्समेंट) के रीसेट पर दिशानिर्देशों को अलग से जारी किया जाएगा। तदनुसार, प्रस्ताव है कि:
परिपक्वता तक धारित (एचटीएम) वर्ग के अंतर्गत एसएलआर होल्डिंग्स 84. सितंबर 2004 में जारी वर्तमान अनुदेशों के अनुसार, एचटीएम वर्ग के तहत कुल निवेश के 25 प्रतिशत की सीमा से अधिक जाने की अनुमति बैंकों को है, बशर्ते अधिक वाले हिस्से में केवल एसएलआर सिक्यूरिटीज़ हों और एचटीएम वर्ग में धारित कुल एसएलआर सिक्यूरिटीज़ दूसरे पिछले पखवाड़े के अंतिम शुक्रवार के उनके मांग और मीयादी देयताओं (डीटीएल) की स्थिति के 25 प्रतिशत से अधिक न हों। यह छूट उस समय बैंककारी विनियमन अधिनियम (बी आर ऐक्ट) 1949 की धारा 24 के तहत डीटीएल के 25 प्रतिशत तक एसएलआर मेंटेन करने की आवश्यकता को देखते हुए दी गई थी। इसके बाद से एसएलआर आवश्यकता को घटाकर डीटीएल का 23 प्रतिशत कर दिया गया है। तदनुसार, प्रस्ताव है कि :
सरकारी प्रतिभूति और ब्याज दर व्युत्पन्नों के बाज़ार पर कार्यदल के परामर्शों के अनुसार किए गए 25 से 23 प्रतिशत के इस समायोजन को प्रत्येक तिमाही में 50 आधार अंकों की कटौती द्वारा लागू किया जाएगा और इसकी शुरुआत जून 2013 को समाप्त तिमाही से होगी । विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। भारत में बैंकिंग संरचना 85. फरवरी 2013 में निजी क्षेत्र में नए बैंकों को लाइसेंस देने से संबंधित जारी दिशानिर्देशों में यह कहा गया था कि रिज़र्व बैंक दो माह के भीतर भारत में बैंकिंग संरचना पर नीतिगत चर्चा पत्र तैयार करेगा, जिसमें बैंकिंग क्षेत्र सुधार समिति,1998 (अध्यक्ष: श्री एम.नरसिंहम), वित्तीय क्षेत्र सुधार समिति, 2008 (अध्यक्ष: श्री रघुराम राजन) की सिफारिशों और अन्य दृष्टिकोणों को ध्यान में रखा जाएगा। चर्चा पत्र में कुछ विषय इस प्रकार हैं: कुछ बड़े आकार वाले बैंकों का समेकन (कॉन्सोलिडेशन) मिलाना ताकि हमारे पास कुछ वैश्विक बैंक हों, वित्तीय समावेश के पसंदीदा माध्यम के रूप में छोटे व स्थानीय बैंकों की वाछंनीयता और व्यवहारिकता, यूनिर्वसल बैंकिंग लाइसेंस देने के बजाय घरेलू और विदेशी बैंकों के लिए अलग-अलग लाइसेंस नियमों के माध्यम से निवेश बैंक रखने की जरूरत, भारत में विदेशी बैंकों के लिए पोलिसी, शहरी सहकारी बैंकों का वाणिज्यिक बैंकों में रूपांतरण और समूह में होने या मांग प्राप्त होने पर, नए बैंकों को लाइसेंस देने की आवधिकता, ब्लॉक में या आसानी से उपलब्ध। अत: यह प्रस्ताव है कि:
वेल्थ मैनेजमेंट सेवाओं तथा तीसरे पक्ष (थर्ड पार्टी) के वित्तीय उत्पादों की मार्केटिंग और वितरण का प्रावधान 86. ऐसे आरोपों के सामने आने पर कि कुछ बैंक टैक्स से बचने के लिए लेनदेन की संरचना में हेर-फेर कर रहे हैं और फ़ंड्स के गलत ट्रांसफर में लिप्त हैं, रिज़र्व बैंक ने मामले की हाल ही में जांच की। इस जांच से बैंकों से बेहतर विनियामक अनुपालन की जरूरत उभर कर सामने आई। प्रस्ताव है कि इस संबंध में दिशानिर्देश जारी किए जाएं जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ, निम्नलिखित को शामिल किया जाए: (ए) धन प्रबंधन (वेल्थ मैनेजमेंट) 87. वेल्थ मैनेजमेंट सेवाओं (डब्लयूएमएस) में सामान्यत: रेफरल सेवाएं, निवेश परामर्शदात्री सेवाएं (आइएएस) और पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सेवाएं (पीएमएस) आती हैं। भारत में, सुविकसित ब्रांच नेटवर्क वाले बैंकों का कस्टमर बेस बहुत बड़ा है। गलत उत्पादों की बिक्री, हित के संघर्ष, उत्पादों एवं धोखाधड़ी के बारे में ज्ञान व स्पष्टता की कमी से वेल्थ मैनेजमेंट सेवाएं देने वाले बैंकों को प्रतिष्ठा का जोखिम है। इसलिए, प्रस्ताव है कि:
(बी) तृतीय पक्ष (थर्ड पार्टी) के वित्तीय उत्पादों की मार्केटिंग और वितरण 88. वर्तमान अनुदेशों के अनुसार, बैंकों को गैरजोखिम सहभागिता के आधार पर अन्य इकाइयों के एजेंट के रूप में बीमा और म्युचूअल फंड की मार्केटिंग करने की अनुमति है। ऐसा देखा गया है कि कुछ मामलों में, बैंकों ने मार्केटिग वालों की डयूटियों को शाखा के अन्य कार्यो से स्पष्टत: अलग नहीं कर रखा है और बैंक कर्मचारियों को तीसरे पक्ष, जैसे बीमा, म्युचूअल फंड या अन्य कंपनियों, के उत्पाद बेचने पर उनसे सीधे ही प्रोत्साहन प्राप्त हो रहे हैं। ऐसी व्यवस्था के कारण गलत/अनुचित बिक्री (मिस-सेलिंग) व स्टाफ प्रोत्साहन संरचना में गड़बड़ी हो सकती है। इसलिए, प्रस्ताव है कि बैंकों को यह कहा जाए कि:
जून 2013 के अंत तक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए जाएगें। (सी) अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) मानदंड / एंटी मनी लॉन्डरिंग (एएमएल) मानक / को आतंकवाद) फाइनैंसिंग का मुकाबला (सीएफटी) 89. उपर्युक्त जांच में, यह देखा गया था कि एजेंट के रूप में तृतीय पक्ष के वित्तीय उत्पादों की मार्केटिंग और वितरण करते समय बैंक ग्राहक के संबंध में केवाईसी/एएमएल/सीएफटी दिशानिर्देशों के अनुसार समुचित सावधानी (ड्यू डिलिजेंस) का पालन नहीं करते। कुछ बैंक, ऐसे मामलो में, जहां जरूरी हो, नकद लेनदेन रिर्पोट (सीटीआरएस) या संदिग्ध लेनदेन रिर्पोट (एसटीआरएस) भी फाईल नहीं कर रहे हैं। इस संदर्भ में प्रस्ताव है कि, बैंकों को यह कहा जाए कि:
जून 2013 के अंत तक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। केवाईसी/एएमएल/सीएफटी पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न 90. सामान्य जनता और बैंकों को भी शिक्षित करने के लिए, रिज़र्व बैंक केवाईसी/एएमएल/सीएफटी पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू) को अपनी वेबसाइट पर रखता रहा है। केवाईसी/एएमएल/सीएफटी दिशार्निर्देशों पर वर्तमान एफएक्यू मई 2011 में वेबसाइट पर रखे गए थे। तब से इस क्षेत्र में कुछ नई बातें घटित हुई हैं जैसे वित्तीय समावेश को आगे बढ़ाने के लिए केवाईसी मानदंडों का सरलीकरण। वित्तीय समावेश को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बैंकों और सामान्य जनता में केवाईसी/एएमएल/सीएफटी की आवश्यकताओं की समझ बढ़ाने और इसके अनुपालन आसान बनाने के लिए, यह प्रस्ताव है कि:
खुदरा ऋण का मूल्य निर्धारण 91. रिज़र्व बैंक ने यह पाया है कि बैंक खुदरा उधारकर्ताओं (रिटेल बॉरोअर्स) पर अलग-अलग ब्याज दर लगा रहे हैं वह भी तब जबकि लोन के सैंक्शन होने की तारीख एक ही है। वर्तमान अनुदेशों के अनुसार, जुलाई 2010 से सभी श्रेणी के ऋणों को (कुछ निर्दिष्ट मामलों में छूट है) बेस रेट से जोड़ा जाना है। यह अपेक्षित है कि उधारकर्ता को चार्ज की गई अंतिम ब्याज दर में उत्पाद और ग्राहक विशेष के लिए लगाए जाने वाले प्रभार शामिल हों तथा यह उचित व पारदर्शी हो। तथापि, बैंक द्वारा एक ही दिन में विभिन्न उधारकर्ताओं को दिए गए रिटेल लोन में चार्ज की गई ब्याज दर में बहुत व्यापक अंतर संभवत ग्राहक जोखिम प्रोफाईल के कारण नहीं हो सकता। ऐसे तौर-तरीके सिस्टम में पारदर्शिता की कमी का संकेत हो सकते हैं। 92. किसी बैंक का ऋण प्रबंधन वस्तुत: एक आंतरिक प्रबंधन से जुड़ा कार्य है और बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने बोर्ड से अनुमोदित एक सुस्पष्ट ऋण नीति रखें जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ ब्याज दर निर्धारण के कारक स्पष्ट किए गए हों। तथापि, इस संबंध में सामने आई हुई बातों को ध्यान में रखते हुए बैंकों को यह कहा जाता है कि ऐसे तौर-तरीकों पर प्रबंधन की निगरानी रखें और नीतियों के जरिये सुनिश्चित करें कि ऋण विशेषत: खुदरा ऋण (रिटेल लोन्स) का मूल्य निर्धारण, पारदर्शी, यथार्थपरक, और उधारकर्ता संबंधी जोखिम की अवधारणा से जुड़ा हो। जमाकर्ता शिक्षा और जागरुकता फ़ंड 93. बैंकिंग लॉ (अमेंडमेंट) ऐक्ट 2012 के लागू होने के बाद बैकिंग अधिनियम, 1949 में धारा 26ए जोड़ी गई है जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ रिज़र्व बैंक को एक जमाकर्ता शिक्षा और जागरुकता फ़ंड (डीईएएफ़) बनाने का अधिकार दिया गया है। डीईएएफ़ में वह राशि जमा की जाएगी जो भारत में किसी भी बैंकिंग कंपनी के किसी भी खाते में दस वर्षों से आपरेट नहीं हुई हो या कोई राशि जो दस वर्ष से अधिक की अवधि तक बिना क्लेम के पड़ी हो तो दस वर्ष की समाप्ति के बाद तीन महीने के भीतर डीईएएफ में जमा की जाएगी। डीईएएफ को जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा व रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्धारित ऐसे अन्य उद्देश्यों के लिए के लिए उपयोग में लाया जाएगा जिससे जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा हो। तथापि सेक्शन 26 ए के प्रावधान 10 वर्ष की समाप्त के पश्चात भी जमाकर्ता को अपनी जमाराशि क्लेम करने या खाता/जमाराशि को ऑपरेट करने या राशि जमा करने से नहीं रोकते; ऐसी स्थिति में बैंकिंग कंपनी को जमाराशि का भुगतान करना होगा और वह डीईएएफ से इस राशि का रिफ़ंड क्लेम कर सकती है। उपर्युक्त को देखते हुए, प्रस्ताव है कि :
ऋण सूचना का प्रसार 94. दूसरी तिमाही समीक्षा में यह कहा गया था कि ऋण संस्थाओं को अपने उधारकर्ताओं से संबंधित ऋण सूचना समय पर और सटीकता से उपलब्ध करानी चाहिए और उपलब्ध ऋण सूचना का अपने ऋण मूल्यांकन प्रक्रिया के एक अंग के रूप में व्यापक उपयोग करना चाहिए। 95. तदनुसार, विभिन्न क्षेत्रों के संबंध में ऋण संस्थाओं द्वारा ऋण सूचना कंपनियों को सूचना देने के प्रारूप की जाँच करने के लिए ऋण सूचना कंपनियों और ऋण संस्थाओं के प्रतिनिधियों को लेकर एक समिति (अध्यक्ष: श्री आदित्य पुरी) बनाई गई है। समिति ऋण मूल्यांकन प्रक्रिया के एक अंग के रूप में ऋण सूचना के उपयोग के बारे में ऋण संस्थाओं के मार्गदर्शन हेतु सर्वोत्तम तौर-तरीके भी सुझाएगी। सितंबर 2013 के अंत तक समिति अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर देगी। वार्षिक शाखा प्रसार योजना 96. वर्तमान में अपनी वार्षिक शाखा प्रसार योजना (एबीईपी) तैयार करते समय अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को वर्ष के दौरान खोली जाने को प्रस्तावित शाखाओं की कुल संख्या का कम से कम 25 प्रतिशत, बैंक रहित ग्रामीण (टीयर 5 और टीयर 6) केंद्रों के लिए, आबंटित करना होता है। वित्तीय समावेश हासिल करने की दिशा में वर्तमान विषमताओं को दूर करने के लिए ग्रामीण इलाकों में शाखा विस्तार आवश्यक है। भारत सरकार की डीबीटी योजना के सुगम कार्यान्वयन के उद्देश्य से बैंक रहित ग्रामीण इलाकों में शाखा विस्तार में तेजी लाने के लिए, बैंकों को कहा जाता है कि :
विस्तृत दिशानिर्देश जून 2013 के अंत तक जारी किए जाएंगे। स्वर्ण का आयात 97. स्वर्ण पर कार्य दल (अध्यक्ष: श्री के.यु.बी.राव) ने रिकमेंड किया था कि स्वर्ण आयात विनियमनों का तालमेल अन्य आयातों के साथ किया जाए ताकि स्वर्ण आयातों व अन्य आयातों के लिए बराबरी का मैदान तैयार करके स्वर्ण आयातों को कम किया जा सके। वर्तमान में रिज़र्व बैंक ने प्राधिकृत बैंकों को (i) परेषण आधार (कन्साइन्मेंट बेसिस); (ii) अनिर्धारित कीमत आधार (अनफ़िक्स्ड प्राइस बेसिस) (iii) ऋण आधार (लोन बेसिस) पर स्वर्ण आयात करने की अनुमति दी है। रत्न व आभूषण क्षेत्र में निर्यातोन्मुखी इकाइयों (ईओयूज़)/ विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड्स) की इकाइयों द्वारा और साख पत्र (एलसीज़) के जरिये नामित एजेंसियों/बैंकों द्वारा स्वर्ण आयात सीधे-सीधे भी किया जाता है। तथापि, नामित बैंकों द्वारा आयातित स्वर्ण का बड़ा हिस्सा परेषण आधार (कन्साइन्मेंट बेसिस) पर है जहाँ नामित बैंकों को इन स्टॉकों को फ़ंड नहीं करना होता। घरेलू उपयोग में स्वर्ण की मांग में कमी लाने की दृष्टि से, प्रस्ताव है कि:
विस्तृत दिशानिर्देश मई 2013 के अंत तक जारी किए जाएंगे। स्वर्ण पर ऋण 98. वर्तमान अनुदेशों के अनुसार, बैंकों को स्वर्ण आभूषणों व अन्य आभूषणों और बैंकों द्वारा बेचे जाने वाले विशेष रूप से ढाले गए सोने के सिक्कों पर अग्रिम (एडवान्सेज़) मंजूर करने की इजाजत है। तथापि सोना खरीदने के लिए, चाहे वह किसी रूप में हो – प्राथमिक स्वर्ण (प्राइमरी गोल्ड), स्वर्ण बुलियन, सोने के आभूषण, सोने के सिक्के और गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फ़ड्स और गोल्ड म्युचूअल फ़ंडों के यूनिट्स खरीदने के लिए किसी भी तरह का अग्रिम (एडवान्स) नहीं मंजूर किया जा सकता। बैंकों द्वारा बेचे जाने वाले विशेष रूप से ढाले गए सोने के सिक्कों पर अग्रिम (एडवान्सेज़) मंजूर करने पर आपत्ति भले न हो, परंतु एक रिस्क यह है कि इनमें से कुछ सिक्के अधिक वजन के हों और इस प्रकार स्वर्ण बुलियन पर अग्रिम (एडवान्सेज़) की मंजूरी पर प्रतिबंध संबंधी रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों का उल्लंघन हो। तदनुसार प्रस्ताव है कि :
विस्तृत दिशानिर्देश मई 2013 के अंत तक जारी किए जाएंगे। अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोज़र 99. वर्तमान अनुदेशों के अनुसार, बैंकों को कंपनियों (कॉरपोरेट्स) के अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोज़र से पैदा होने वाले जोखिमों के कड़े मूल्यांकन की प्रक्रिया लागू करनी चाहिए और क्रेडिट रिस्क प्रीमियम में इसकी कीमत लगाई जानी चाहिए पर साथ ही बैंक के बोर्ड-अनुमोदित नीति के आधार पर कंपनियों के अरक्षित स्थितियों (अनहेज्ड पोजीशन्स) पर एक सीमा निर्धारित करने पर भी विचार करें। ये कदम बड़े ही अहम हैं क्योंकि उधार लेने वालों का अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोज़र न सिर्फ़ उनके लिए बल्कि उनकी फ़ाइनैंसिंग करने वाले बैंकों व समूची वित्तीय व्यवस्था के लिए जोखिम के स्त्रोत हैं, विशेषत: मुद्रा के उतार-चढ़ाव के समय में। इन उपायों को पुख़्ता करने के लिए जरूरी है कि कंपनियों से यह अपेक्षा की जाए कि अपने अरक्षित विदेशी मुद्रा (अनहेज़्ड फॉरेन करेंसी) एक्सपोज़र के लिए वे एक जोखिम प्रबंधन प्रणाली (रिस्क मैनेजमेंट सिस्टम) कायम करें। ये उपाय अभी पर्याप्त रूप से लागू नहीं किए गए हैं। यह देखते हुए और कॉरपोरेट्स के अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोज़र से उत्पन्न होने वाले जोखिमों से निपटने के लिए, प्रस्ताव है कि :
विस्तृत दिशानिर्देश जून 2013 के अंत तक जारी किए जाएंगे। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां स्वर्ण ऋणों में कारोबार 100. 6 फरवरी 2013 को रिज़र्व बैंक ने अपनी वेबसाईट पर स्वर्ण पर कार्य दल (अध्यक्ष: श्री के.यु.बी.राव) के रिपोर्ट की फाइनल कापी डाली। कार्य दल ने स्वर्ण पर ऋण देनेवाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के संबंध में कई सिफारिशें (रिकमेंडेशन्स) की हैं। इसमें मूल्य व ऋण का अनुपात, शाखा विस्तारीकरण और नीलामी के संबंध में उचित व्यवहार संहिता के प्रावधानों एवं ऋण की शर्तों के बारे में पारदर्शिता की समीक्षा है। रिज़र्व बैंक द्वारा इन रिकमेंडेशन्स की जांच की जा रही है और यह प्रस्तावित है कि:
बैंकों द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी संसाधनों की शेयरिंग 101. बैंकों द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी(आइटी) की बुनियादी सुविधाओं के बढ़ते प्रयोग के कारण, कार्यकुशलता और सुरक्षा के अपेक्षित स्तर को बनाए रखने के साथ लागत का इष्टतम उपयोग करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के साझा संसाधनों के मुद्दे की समीक्षा करने की जरूरत है। सुरक्षा मुद्दों, डेटा की शुद्धता (इंटिग्रिटी) और गोपनीयता को ध्यान में रखते हुए, जहां पर भी संभव हो बैंकिंग सेक्टर द्वारा ऐसे साझा किए गए आईटी संसाधनों की व्याहर्यता को संपूर्णता को देखा-परखा जाना चाहिए। विभिन्न मुद्दों के आकलन के पश्चात, प्रस्ताव है कि अगस्त 2013 के अंत तक बैंकों को इस संबंध में आदेश दिया जाए। बैंको द्वारा कारोबारी निरंतरता योजना, भेद्यता आकलन और सूचना प्रणालियों की पैठ का परीक्षण 102. अप्रैल 2012 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में किए गए उल्लेख के अनुसार, बैंकों को अन्य बातों के साथ-साथ, उचित सूचना सुरक्षा (आईएस) ढाँचा और आईटी गवर्नेंस संरचना लागू करने को कहा गया था ताकि आईटी और कारोबार के बीच बेहतर तालमेल हो सके। अपनी सूचना प्रणालियों (आईएस) को सुरक्षित करने, उनकी निरंतरता सुनिश्चित करने और उसकी मजबूती की जांच करने के लिए बैंकों को उचित कारोबार निरंतरता योजना (बीसीपीएस) लागू करनी होगी और उनकी आवधिक जांच करनी होगी। इन सूचना प्रणालियों (आईएस) की भेद्यता का आकलन व और इनकी पैठ का परीक्षण होना चाहिए। उक्त जरूरतों से संबधित वाली नीतियां बोर्ड स्तर पर अनुमोदित होनी चाहिए। बैंकों को इस संबंध में उचित दिशा-निर्देश जून 2013 के अंत तक जारी किए जाएंगे। भुगतान और निपटान प्रणाली व्हाइट लेबल प्वाईंट आफ सेल 103. ग्रामीण क्षेत्रों में प्वाईंट आफ सेल (पीओएस) की पहुँच बढ़ाने और इलेक्ट्रानिक भुगतानों को बढ़ावा देने के लिए, प्रस्ताव है कि:
भुगतान संबंधी आधारभूत व्यवस्था का विस्तार 104. एक वास्तविक अंतर-प्रचालनीय (इंटर-ऑपरेबल) और एकीकृत भुगतान प्रणाली के लिए, यह आवश्यक है कि बैंक से इतर इकाइयों द्वारा परिचालित भुगतान प्रणालियों को वर्तमान अंतर–बैंक कार्ड भुगतान प्रणाली से भी जोड़ा जाए जैसा कि ‘पेंमेंट सिस्टम इन इंड़िया:विजन 2012-15’ नामक दस्तावेज में परिकल्पित किया गया है। तदनुसार,यह प्रस्ताव है कि:
भुगतान प्रणाली की आधारभूत व्यवस्था में संकेद्रण जोखिम (कांसंट्रेशन रिस्क) 105. भुगतान में किसी एक या दो हितधारकों की अनन्य अधिकार या लगभग एकाधिकार की स्थिति जोखिम वाली बात है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इसे भारत में भुगतान प्रणाली: विज़न 2012-15 में रेखांकित किया गया था। तदनुसार, यह प्रस्ताव है कि:
वैकल्पिक भुगतान: जाइरो आधारित भुगतान प्रणाली कार्यान्वयन समिति 106. दूसरी तिमाही समीक्षा में घोषणा के पश्चात, जाइरो आधारित भुगतान प्रणाली कार्यान्वयन समिति (अध्यक्ष: श्री जी.पद्मनाभन) का जनवरी 2013 में गठन किया गया। समिति ने 29 अप्रैल 2013 को अपनी रिर्पोट प्रस्तुत की। इस रिर्पोट की जांच की जा रही है। समरूप (यूनिफॉर्म) राउटिंग कोड और खाता संख्या ढाँचा 107. दूसरी तिमाही समीक्षा में की गई घोषणा के अनुसार, सभी बैंकों में समरूप राउटिंग कोड और समरूप खाता संख्या की व्यवहार्यता की परीक्षा करने के लिए विभिन्न हितधारकों को लेकर एक तकनीकी समिति (अध्यक्ष: श्री विजय चुघ) का गठन किया गया था। समिति ने अपनी रिर्पोट प्रस्तुत कर दी है और रिज़र्व बैंक इसके सिफारिशों को जांच रहा है। कार्ड प्रेजेंट लेन-देन में अतिरिक्त अधिप्रमाणन (ऑथेंटिकेशन) के लिए आधार के प्रयोग की व्यवहार्यता के अध्ययन के लिए कार्य दल 108. कार्ड प्रेजेंट लेनदेनों को सुरक्षित करने पर गठित कार्य दल (अध्यक्ष: सुश्री गौरी मुखर्जी) की एक रिकमेंडेशन के अनुसार, एक कार्य दल (अध्यक्ष: श्री पुलक कुमार सिन्हा) का गठन किया गया है जो कार्ड प्रेजेंट लेन-देन में अतिरिक्त अधिप्रमाणन (ऑथेंटिकेशन) के लिए आधार के प्रयोग की व्यवहार्यता व अन्य संबंधित मुद्दों का अध्ययन करेगा। कार्यदल की जून 2013 के अंत तक अपनी रिर्पोट प्रस्तुत करने की संभावना है। मुद्रा प्रबंध बैंक नोटों व सिक्कों का वितरण- प्रोत्साहन और दंड की समीक्षा 109. अप्रैल 2012 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के अनुसार, बेहतर ग्राहक सेवा के लिए बैंकों की चुनी हुई शाखाओं द्वारा आम जनता को बैंक नोट और सिक्कों के वितरण से संबंधित सेवा प्रदान करने की रूपरेखा तैयार की जा रही है । जून 2013 के अंत तक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए जा रहे हैं। बैंकनोट और सिक्कों का वितरण- वैकल्पिक माध्यम 110. देश में बैंकनोट और सिक्कों की बढ़ती मांग को पूरा करने करने के लिए, आवश्यक है कि बैंक उनके वितरण के वैकल्पिक माध्यमों की पहचान करें। इस मामले में, बैंक इन सेवाओं को बिजनेस करोसपोन्डेंट्स (बीसी) के जरिये देने की संभावना तलाश सकते हैं और मार्गस्थ नकदी (सीआईटी) इकाइयों की सेवाएं लेने पर विचार कर सकते है, जिससे दूर-दराज़ के लोगों को जोड़ने की दिशा में भी कुछ काम हो। जून 2013 के अंत तक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। जिलों में मुद्रा वितरण में सुधार - लीड बैंकों की पहचान 111. यह सुनिश्चित करने की दृष्टि से कि बैंकनोट और सिक्कों के वितरण में बैंकों की अधिक स्पष्ट हिस्सेदारी है और साथ ही महानगर और शहरी केंद्रों के अलावा अन्य स्थानों में उनके निर्बाध आपूर्ति की सुविधा के लिए, यह प्रस्तावित है कि लीड बैंक सुविधा की तर्ज पर एक योजना तैयार की जाए और अलग अलग बैंकों को विशिष्ट क्षेत्र (जिले/राज्य) आंबटित किए जाएं। पहचान किए गए लीड बैकों की जिम्मेदारी होगी कि वे उस क्षेत्र में स्थित करेंसी चेस्ट और छोटे सिक्का डिपो के साथ उचित समन्वय के द्वारा यह सुनिश्चित करें कि जनता की साफ नोटों और सिक्कों की वास्तविक जरूरतें पूरी हो। जून 2013 के अंत तक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। जाली बैंकनोटो की पकड़ और रिर्पोटिंग 112. गृह मंत्रालय पर विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति(डीपीएससी) ने अपनी 161 वीं रिर्पोट में यह सिफारिश की है कि रिज़र्व बैंक द्वारा उच्च मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों की सुरक्षा विशेषताओं को निरंतर अपग्रेड करने और जाली नोटों की पहचान की कार्यप्रणाली को मजबूत करने के प्रयास और प्रभावी बनाए जाएं जिससे जाली नोटों के खतरे को समाप्त किया जा सके। 113. जालसाजी से बचने के लिए बैंकनोट में नए सुरक्षा विशेषताओं/ नए डिजाइनों को शामिल करना और जालसाजों से एक कदम आगे रहना एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है, रिज़र्व बैंक और अन्य हितधारकों से परामर्श कर भारत सरकार द्वारा बेहतर और उन्नत सुरक्षा विशेषताओं को शामिल करने की प्रक्रिया अब शुरू कर दी गई है। 114. इसके अलावा जाली नोटों की पहचान के लिए कार्यप्रणाली को मजबूत बनाने की दिशा में एक कदम के रूप में, मई 2012 में रिज़र्व बैंक ने बैंकों को कहा था कि अपने नकदी प्रबंधन में यह सुनिश्चित करने की व्यवस्था करें कि रु.100 से अधिक मूल्यवर्ग की नकद प्राप्तियों को जाँच के लिए मशीन से प्रोसेस किए बगैर दुबारा चलन (सर्कुलेशन) में न लाया जाए। बैंकों को नवंबर 2012 में यह भी कहा गया था कि वैसे मामले जिनमें नकली नोट पकड़े जाएं परंतु उन्हें नष्ट और रिपोर्ट न किया जाए, उनमें यह माना जाएगा कि संबंधित बैंक नकली नोटों को चलाने में लिप्त है तथा ऐसे मामलों में दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है। 115. जाली नोटों के खतरे को समाप्त करने के लिए डीपीएससी की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए, अब यह निर्णय लिया गया है कि पकड़े गए जाली नोटों की रिर्पोटिंग करने हेतु बैंकों को प्रोत्साहित करने के लिए, बैंकों के लिए एक प्रोत्साहन योजना शुरू की जाएगी। साथ ही साथ, जाली नोटों को न पकड़ने और उसकी रिर्पोटिंग न करने पर वर्तमान दंड पर भी गौर किया जा रहा है। जून 2013 के अंत तक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। दूसरी तिमाही समीक्षा 116. विकासात्मक और विनियामक नीतियों की अगली समीक्षा मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013 को मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा के अंतर्गत की जाएगी। |