अपने ग्राहक को जानने संबंधी मानदंड /धन शोधन निवारण मानक - आरबीआई - Reserve Bank of India
अपने ग्राहक को जानने संबंधी मानदंड /धन शोधन निवारण मानक
भारिबैं/2010-11/163 9 अगस्त 2010 सभी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ अपने ग्राहक को जानने संबंधी मानदंड /धन शोधन निवारण मानक कृपया उल्लिखित विषय पर 1 जुलाई 2010 का मास्टर परिपत्र सं. 184 देखें। अवशिष्ट गैर बैंकिंग कंपनियों सहित सभी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को सूचित किया जाता है कि वे उक्त परिपत्र में किए गए निम्नलिखित संशोधनों पर ध्यान दें: व्यावसायिक मध्यवर्तियों द्वारा खोले गए ग्राहक खाते 2. जब किसी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी को यह पता चले अथवा ऐसा विश्वास करने के कारण हों कि व्यावसायिक मध्यवर्ती द्वारा खोला गया ग्राहक खाता किसी एक ग्राहक के लिए है तो उस ग्राहक की पहचान की जानी चाहिए। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ म्युच्युअल निधियों, पेंशन निधियों अथवा अन्य प्रकार की निधियों जैसी संस्थाओं की ओर से व्यावसायिक मध्यवर्तियों द्वारा प्रबंधित ‘समूहित’ खाते रख सकती हैं। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पास विविध प्रकार के ग्राहकों के लिए ‘ऑन डिपाज़िट’अथवा ‘इन एक्रो’ धारित निधियों के लिए वकीलों/चार्टर्ड एकाउंटेंटों अथवा स्टॉक ब्रोकरों द्वारा प्रबंधित ‘समूहित’ खाते भी होते हैं। जहां मध्यवर्तियों द्वारा धारित निधियां गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी में एक साथ मिश्रित नहीं होती हैं और ऐसे ‘उप-खाते’ भी हैं, जिनमें से प्रत्येक किसी एक हितार्थी स्वामी का खाता हो, वहां सभी हितार्थी स्वामियों की पहचान करनी चाहिए। जहां ऐसी निधियां गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी स्तर पर एक साथ मिश्रित हों, वहां भी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी को हितार्थी स्वामियों की पहचान करनी चाहिए। साथ ही, उक्त मास्टर परिपत्र के अनुबंध VI के पैराग्राफ 3 के अनुसार यदि गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी ग्राहक स्वीकृति नीति के अनुसरण में किसी खाते को स्वीकार करने का निर्णय लेती है तो संबंधित गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी को चाहिए कि वह हितार्थी स्वामी/स्वामियों की पहचान करने हेतु समुचित कदम उठाए और उसकी/ उनकी पहचान का सत्यापन इस प्रकार करे ताकि इस बात की संतुष्टि हो जाए कि हितार्थी स्वामी कौन है। अत: मौजूदा एएमएल/सीएफटी ढांचे में वकीलों तथा चार्टर्ड एकाउंटेंटों, आदि जैसे व्यावसायिक मध्यवर्तियों के लिए अपने ग्राहकों की ओर से खाते रखना संभव नहीं है, क्योंकि वे ग्राहक गोपनीयता से बंधे होते हैं जिसके कारण ग्राहक के ब्योरे प्रकट करना प्रतिबंधित होता है । 3. अत: इस बात को दोहराया जाता है कि गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को वकीलों तथा चार्टर्ड एकाउंटेंटों आदि जैसे व्यावसायिक मध्यवर्तियों द्वारा ग्राहक/ग्राहकों की ओर से खाते खोलने तथा/अथवा रखने की अनुमति नहीं देनी चाहिए जे ग्राहक गोपनीयता की व्यावसायिक बाध्यता के कारण खाते के स्वामी की सही पहचान प्रकट नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा, किसी व्यावसायिक मध्यवर्ती को किसी ऐसे ग्राहक की ओर से खाता खोलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जो किसी बाध्यता के कारण ग्राहक की ओर से रखे गए खाते की सही पहचान अथवा खाते के लाभार्थी स्वामी की सही पहचान जानने तथा सत्यापित करने अथवा लेनदेन के सही स्वरूप तथा प्रयोजन को समझने की गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी की क्षमता के आड़े आती हो । 4. ये दिशानिर्देश भारतीय रिज़र्वबैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45-ट तथा 45-ठ के अंतर्गत जारी किए गए हैं । इनका उल्लंघन होने पर अथवा अनुपालन न करने पर भारतीय रिज़व बैंक अधिनियम के अंतर्गत दंड दिया जा सकता है । भवदीय (उमा सुब्रमणियम) |