अपने ग्राहक को जानने संबंधी मानदंड /धन शोधन निवारण मानक - आरबीआई - Reserve Bank of India
अपने ग्राहक को जानने संबंधी मानदंड /धन शोधन निवारण मानक
भारिबैं/2010-11/161 9 अगस्त 2010 सभी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ महोदय अपने ग्राहक को जानने संबंधी मानदंड /धन शोधन निवारण मानककृपया उल्लिखित विषय पर 1 जुलाई 2010 का मास्टर परिपत्र सं. 184 देखें। अवशिष्ट गैर बैंकिंग कंपनियों सहित सभी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को सूचित किया जाता है कि वे उक्त परिपत्र में किए गए निम्नलिखित संशोधनों पर ध्यान दें: वित्तीय कार्रवाई कार्यदल (एफएटीएफ) की संस्तुतियों को लागू न करने वाले या अपर्याप्त रूप में लागू करने वाले देश 2. 1 जुलाई 2010 के मास्टर परिपत्र सं. 184 के पैरा 16 की ओर ध्यान आकृष्ट किया जाता है। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को सूचित किया गया है कि वे वित्तीय कार्रवाई कार्यदल (FATF) के बयान में शामिल क्षेत्रों में धनशोधन निवारण/आतंकवाद के वित्तपोषण के खिलाफ संघर्ष संबंधी मशीनरीगत खामियों से उत्पन्न होने वाले जोखिमों कोध्यान में रखें। इसके अलावा यह भी सूचित किया जाता है कि समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा परिचालित वित्तीय कार्रवाई कार्यदल (FATF) के बयानों के अलावा, सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध सूचना को भी उन देशों की पहचान करने में इस्तेमाल करने पर विचार करें जो वित्तीय कार्रवाई कार्यदल की संस्तुतियों को लागू नहीं करते हैं या अपर्याप्त रूप में लागू करते हैं। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ इन देशों के व्यक्तियों (कानून कार्य संबंधी व्यक्तियों और अन्य वित्तीय संस्थाओं सहित) या ऐसे देशों से कारोबारी संबंध रखने या लेनदेन करने के मामलों पर विशेष ध्यान दें। 3. 1 जुलाई 2010 के मास्टर परिपत्र सं. 184 के अनुबंध VI के पैराग्राफ 4 के अनुसार सतत निगरानी ग्राहक को जानने की प्रक्रिया का प्रभावी अंग है। यह सूचित किया जाता है कि वित्तीय कार्रवाई कार्यदल के बयान में शामिल क्षेत्रों या ऐसे देशों जिन्होने वित्तीय कार्रवाई कार्यदल के बयान में की गई संस्तुतियों को लागू नहीं किया है या अपर्याप्त रूप से लागू किया है के व्यक्तियों (कानूनी कार्य संबंधी व्यक्तियों और अन्य वित्तीय संस्थाओं सहित) की पृष्ठभूमि तथा लेनदेनों की जांच करनी चाहिए। इसके अलावा, यदि लेनदेन प्रकटत: कोई आर्थिक या प्रकट विधिक प्रयोजन से न किया गया प्रतीत हो तो ऐसे लेनदेन की भूमिका तथा प्रयोजन, जहाँ तक संभव हो, जांचना चाहिए तथा प्राप्त निष्कर्ष लिखित रूप में सभी दस्तावेजों के साथ अनुरक्षित रखने चाहिए और भारतीय रिज़र्व बैंक/अन्य संबंधित प्राधिकारी के अनुरोध पर उपलब्ध कराने चाहिए। 4. ये दिशानिर्देश भारतीय रिज़र्वबैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45-ट तथा 45-ठ के अंतर्गत जारी किए गए हैं । इनका उल्लंघन होने पर अथवा अनुपालन न करने पर भारतीय रिज़व बैंक अधिनियम के अंतर्गत दंड दिया जा सकता है । भवदीय (उमा सुब्रमणियम) |