गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी- माइक्रो फाइनेंस संस्थान (एनबीएफसी- एमएफआई) निदेश- संशोधन - आरबीआई - Reserve Bank of India
गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी- माइक्रो फाइनेंस संस्थान (एनबीएफसी- एमएफआई) निदेश- संशोधन
भारिबैं/2014-15/544 08 अप्रैल 2015 सभी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी –एमएफआई महोदय, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी- माइक्रो फाइनेंस संस्थान (एनबीएफसी- एमएफआई) निदेश- संशोधन आंध्र प्रदेश एमएफआई संकट की पृष्ठभूमि में 02 दिसम्बर 2011 की अधिसूचना गैबैंपवि.नीप्र.सं.234/मुमप्र(यूएस)-2011 में विनिर्दिष्ट निदेशक तथा अनुवर्ती संशोधन जारी किये गये थे । उसके बाद इस क्षेत्र में व्यापक बढोत्तरी हुई। तदनुसार इस संबंध में कुछ संशोधन जारी किये जा रहें हैं जो निम्नलिखित है: 2. उक्त अधिसूचना का पैरा 3 (ii)(ए) के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में ₹ 60,000/- तक पारिवारिक आय या अर्ध शहरी तथा शहरी क्षेत्र में ₹ 1,20,000/- तक पारिवारिक आय वाले उधारकर्ता को एनबीएफसी-एमएफआई द्वारा प्रदत्त ऋण को अर्हक आस्ति के रूप में परिभाषित किया गया है। इसे व्यापक बनाने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि ग्रामीण क्षेत्र में ₹ 1,00,000/- तक पारिवारिक आय या अर्ध शहरी तथा शहरी क्षेत्र में ₹ 1,60,000/- तक पारिवारिक आय वाले उधारकर्ता को एनबीएफसी-एमएफआई द्वारा प्रदत्त ऋण को पात्र अर्हक आस्ति के रूप में परिभाषित किया जाएगा। 3. उक्त अधिसूचना का पैरा 3 (ii)(सी) के अनुसार एनबीएफसी-एमएफआई द्वारा ऋण देते समय यह सुनिश्चित किया जाए कि उधारकर्ता की कुल ऋण ग्रस्तता ₹ 50,000/- से अधिक नहीं हो। उक्त में कुछ आंशिक संशोधन कर उधारकर्ता की कुल ऋण ग्रस्तता की सीमा को बढाकर ₹ 1,00,000/- कर दिया गया है। उधारकर्ता की कुल ऋण ग्रस्तता की गणना करते समय शिक्षा तथा चिकित्सा व्यय को बाहर रखा गया है। 4. उक्त अधिसूचना का पैरा 3 (ii)(बी) के अनुसार पहले चरण में ऋण राशि ₹ 35,000/- से अधिक नहीं हो तथा क्रमबद्ध अगले चरण में ₹ 50,000/- से अधिक नहीं होनी चाहिए। कुल ऋण ग्रस्तता की सीमा में संशोधन के आलोक में, ऋण संवितरण संशोधन किया जा रहा है। इसके बाद से, पहले चरण में ऋण राशि ₹ 60,000/- से अधिक नहीं हो तथा क्रमबद्ध अगले चरण में ₹ 1,00,000/- से अधिक नहीं हो। 5. उक्त अधिसूचना का पैरा 3(ii)(एफ) के अनुसार, एनबीएफसी- एमएफआई को प्रदान की गई ऋण राशि का कम से कम 70% आय सृजन के कार्यकलापों में लगाया जाना चाहिए तथा शेष 30% का प्रयोग अन्य कार्यों जैसे घर मरम्मत, शिक्षा, चिकित्सा तथा अन्य आकास्मिक कार्यों के लिए किया जा सकता है। इस सीमा को 50:50 के अनुसार संशोधित किया जाता है तद्नुसार, एनबीएफसी- एमएफआई को प्रदान की गई कुल ऋण राशि का कम से कम 50 प्रतिशत आय सृजन के कार्य में होना अनिवार्य है तथा शेष 50 प्रतिशत का प्रयोग उक्त अन्य कार्यों के लिए किया जा सकता है। 6. उक्त के अलावा, सभी एनबीएफसी-एमएफआई से अपेक्षित है कि वे विवेकशील रहे तथा अपने ऋण कार्यकलापों में अनावश्यक ऋण राशि का व्यय के संबंध में निहित खतरे के प्रति अपने उधारकर्ताओं को शिक्षित करें। 7. गैर – बैंकिंग वित्तीय कंपनी-माइक्रो फाइनेंस संस्थान (एनबीएफसी-एमएफआई) -निदेश, 2011, प्रणालीगत महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशि नहीं स्वीकार करने अथवा नहीं धारण करने वाली) कंपनी विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़ॅर्व बैंक) निदेश, 2015 तथा गैर प्रणालीगत महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशि नहीं स्वीकार अथवा धारण करने वाले) कंपनी विवेकपूर्ण मानदंड(रिज़र्व बैंक) निदेश, 2015 को संशोधित करने वाली उक्त दिनांक की अधिसूचनाएं इसके साथ संलग्न है। भवदीय, (सी डी श्रीनिवासन) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिसूचना सं.गैबैंविवि(नीप्र)013/सीजीएम(सीडीएस)-2015 08 अप्रैल 2015 भारतीय रिजर्व बैंक, जनता के हित में यह आवश्यक समझकर और इस बात से संतुष्ट होकर कि देश के हित में ऋण प्रणाली को विनियमित करने के लिए, बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजन से गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी- माइक्रो फाइनेंस संस्थान (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2011 (02 दिसम्बर 2011 की अधिसूचना गैबैंपवि. नीप्र.सं. 234/सीजीएम(यूएस)-2011) (जिसे इसके बाद निदेश कहा जाएगा), को संशोधित करना आवश्यक है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 45 ञक, 45-ट, 45-ठ और 45-ड द्वारा प्रदत्त शक्तियों और इस संबंध में प्राप्त समस्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उक्त निदेश को तत्काल प्रभाव से निम्नवत संशोधित करने का निदेश देता है यथा- 1. पैराग्राफ 3, उप पैराग्राफ (ii) में, ए. खंड (ए) को निम्नलिखित खंड से प्रतिस्थापित किया जाए, यथा - “(ए) एनबीएफसी-एमएफआई द्वारा उधारकर्ता ऋण के संवितरण के लिए ग्रामीण क्षेत्र में ₹ 1,00,000/- तक पारिवारिक आय या अर्ध शहरी तथा शहरी क्षेत्र में ₹ 1,60,000/- पारिवारिक आय सीमा निर्धारित की गई है।“ बी. खंड (बी) को निम्नलिखित खंड से प्रतिस्थापित किया जाए, यथा - “(बी) पहले चरण में ऋण राशि ₹ 60,000/- से अधिक नहीं हो तथा क्रमबद्ध अगले चरण में ₹ 1,00,000/- से अधिक नहीं हो।“ (सी) खंड (सी) को निम्नलिखित खंड और नियम से प्रतिस्थापित किया जाए, यथा - “(सी) उधारकर्ता की कुल ऋण ग्रस्तता ₹ 1,00,000 से अधिक नहीं हो” बशर्तें, यदि ऋण किसी शैक्षणिक अथवा चिकित्सा के व्यय के लिए है तो उधारकर्ता की कुल ऋण ग्रस्तता में इसे शामिल नहीं किया जाएगा। डी. खंड (एफ) को निम्नलिखित खंड से प्रतिस्थापित किया जाए, यथा - “(एफ) एमएफआई द्वारा प्रदत्त कुल ऋण कम से कम 50 प्रतिशन आय सृजन के लिए होना चाहिए।“ (सी डी श्रीनिवासन) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिसूचना सं.गैबैंविवि(नीप्र)014/सीजीएम(सीडीएस)-2015 08 अप्रैल 2015 भारतीय रिजर्व बैंक, जनता के हित में यह आवश्यक समझकर और इस बात से संतुष्ट होकर कि देश के हित में ऋण प्रणाली को विनियमित करने के लिए, बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजन से गैर प्रणालीगत महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशि नहीं स्वीकार करने और नहीं धारण करने वाली) कंपनी विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2015 (जिसे इसके बाद निदेश कहा जाएगा), [27 मार्च 2015 की अधिसूचना सं. गैबैंविवि.008/सीजीएम(सीडीएस] को संशोधित करना आवश्यक है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 45 ञक द्वारा प्रदत्त शक्तियों और इस संबंध में प्राप्त समस्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उक्त निदेश को तत्काल प्रभाव से निम्नवत संशोधित करने का निदेश देता है यथा- 1. पैराग्राफ 2, उप पैराग्राफ (xiii) के खंड (ii) प्रयोजन के लिए में विनिर्दिष्ट शब्द “अर्हक आस्तियां” को निम्नलिखित से प्रतिस्थापित किया जाए: “अर्हक आस्तियां” अर्थात ऋण जो निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करती हो:
(सी डी श्रीनिवासन) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिसूचना सं.गैबैंविवि(नीप्र)015/सीजीएम(सीडीएस)-2015 08 अप्रैल 2015 भारतीय रिजर्व बैंक, जनता के हित में यह आवश्यक समझकर और इस बात से संतुष्ट होकर कि देश के हित में ऋण प्रणाली को विनियमित करने के लिए, बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजन से प्रणालीगत महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशि नहीं स्वीकार करने और नहीं धारण करने वाली) कंपनी विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2015 (जिसे इसके बाद निदेश कहा जाएगा), [27 मार्च 2015 की अधिसूचना सं. गैबैंविवि.009/सीजीएम(सीडीएस] को संशोधित करना आवश्यक है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 45 ञक द्वारा प्रदत्त शक्तियों और इस संबंध में प्राप्त समस्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उक्त निदेश को तत्काल प्रभाव से निम्नवत संशोधित करने का निदेश देता है यथा- 1. पैराग्राफ 2, उप पैराग्राफ (xii) के खंड (बी) प्रयोजन के लिए में विनिर्दिष्ट शब्द “अर्हक आस्तियां” को निम्नलिखित से प्रतिस्थापित किया जाए: “अर्हक आस्तियां” अर्थात ऋण जो निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करती हो:
(सी डी श्रीनिवासन) |