प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ तथा पुनर्संरचना कंपनियाँ (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश 2003 30 जून 2012 तक यथा संशोधित अधिसूचना - आरबीआई - Reserve Bank of India
प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ तथा पुनर्संरचना कंपनियाँ (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश 2003 30 जून 2012 तक यथा संशोधित अधिसूचना
भारिबैं/2012-2013/19 2 जुलाई 2012 प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ तथा पुनर्संरचना कंपनियाँ जैसा कि आप विदित है कि उल्लिखित विषय पर सभी मौजूदा अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक अद्यतन परिपत्र/ अधिसूचनायें जारी करता है। 23 अप्रैल 2003 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि. 2/सीजीएम (सीएसएम)/2003 में अंतर्विष्ट सभी अनुदेशों का अद्यतन यथा 30 जून 2012 तककरने के बाद नीचे पुनरुत्पादित किया गया है। अद्यतित अधिसूचना बैंक की वेबसाइट (http://www.rbi.org.in) पर भी उपलब्ध है। भवदीया, (उमा सुब्रमणियम) गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग अधिसूचना सं. गैबैंपवि 2 / सीजीएम (सीएसएम)-2003 23 अप्रैल 2003 प्रतिभूतिकरण कंपनी और पुनर्निर्माण कंपनी भारतीय रिज़र्व बैंक, जनहित में इसे आवश्यक मानते हुए तथा इस बात से संतुष्ट होकर कि वित्तीय प्रणाली को देश के हित के लिए विनियमित करने के हेतु रिज़र्व बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजनार्थ और किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के निवेशकों के हित के लिए हानिकारक ढंग से चलाये जा रहे, कार्यलापों या ऐसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के हित में किसी भी प्रकार से पक्षपाती ढंग से चलाये जा रहे कार्यकलापों को रोकने के लिए; पंजीकरण, आस्ति पुनर्निर्माण के उपायों, कंपनी के कार्यों, विवेकसम्मत मानदडों, वित्तीय आस्तियों के अभिग्रहण और उससे संबंधित यहां नीचे उल्लिखित मामलों के संबंध में मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश जारी करना आवश्यक है, वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 की धारा 3, 9, 10 तथा 12 द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए एतदद्वारा प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को, यहां इसके बाद विनिर्दिष्ट मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश जारी करता है। संक्षिप्त नाम और प्रारंभ 1. (1) ये मार्गदर्शी सिद्धांत और निदेश `प्रतिभूतिकरण कंपनी और पुननिर्माण कंपनी (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश, 2003' के नाम से जाने जायेंगे । (2) ये 23 अप्रैल 2003 से लागू होंगे और इन मार्गदर्शी सिद्धांतों तथा निदेशों में इनके लागू होने की तारीख का कोई संदर्भ उक्त तारीख का संदर्भ माना जायेगा । निदेशों की प्रयोज्यता 2. इन मार्गदर्शी सिद्धांतों तथा निदेशों के प्रावधान, वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 की धारा 3 के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक में पंजीकृत प्रतिभूतिकरण कंपनियों या पुनर्निर्माण कंपनियों पर लागू होंगे । परंतु यहां पैराग्राफ 8 में उल्लिखित न्यास/न्यासों के संबंध में, पैराग्राफ 4,5,6,9,10(i), 10 (iii), 12, 13, 14 और 15 के प्रावधान लागू नहीं होंगे । 3. परिभाषाएँ (1) (i) "अधिनियम" का अर्थ वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 है । (ii)"बैंक" का अर्थ भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 3 के अंतर्गत गठित रिज़र्व बैंक है ; 1(iii) अर्जन (अभिग्रहण) की तारीख का अर्थ उस तारीख से है, जिस तारीख को प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा वित्तीय आस्तियों का स्वामित्व अपनी बहियों या सीधे ट्रस्ट की बहियों में ग्रहण किया जाता है।;] (iv)"जमाराशि" का अर्थ कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 58 क के अंतर्गत बनाये गये कंपनी (जमाराशियों का स्वीकरण) नियम, 1975 में यथा परिभाषित जमाराशि से है ; (v) "उचित मूल्य" का अर्थ अर्जन मूल्य (अर्निंग वैल्यू) तथा अलग-अलग (ब्रेक-अप) मूल्य के माध्य से है ; (vi)"अनर्जक आस्ति" (एनपीए) का अर्थ किसी आस्ति से हे, जिसके संबंध में : (क) ब्याज या मूलधन (या उसकी किश्त), ऋण या अग्रिम प्राप्त करने की तारीख अथवा उधार लेने वाले और प्रवर्तक (ऑरीजिनेटर) के बीच संविदा के अनुसार नियत तारीख से, जो भी बाद में हो 180 दिन या उससे अधिक दिन के लिए अतिदेय हो; (ख) ब्याज या मूलधन (या उसकी किश्त), यहां पैराग्राफ 7(1)(6) में उल्लिखित आस्तियों की वसूली के लिए बनायी गयी योजना में, उसकी प्राप्ति के लिए नियत तारीख से 180 दिन या उससे अधिक दिन की अवधि के लिए अतिदेय हो ; (ग) ब्याज या मूलधन (या उसकी किश्त), यहां पैराग्राफ 7(1)(6) में उल्लिखित आस्तियों की वसूली के लिए जब कोई योजना नहीं तैयार की गयी हो तो योजना अवधि की समाप्ति पर अतिदेय होती है ; या (घ) कोई अन्य प्राप्य राशि, यदि वह प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की बहियों में 180 दिन या उससे अधिक अवधि के लिए अतिदेय हो । परंतु शर्त यह है कि किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी का निदेशक मंडल उधारकर्ता द्वारा चूक करने पर किसी आस्ति को उस पर उल्लिखित अवधि से पहले भी अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकृत कर सकता है (उक्त अधिनियम की धारा 13 में किये गये उपबंध के अनुसार प्रवर्तन में सुविधा के लिए) । (vii) "अतिदेय"का अर्थ किसी उस राशि से है, जो नियत तारीख के बाद अप्रदत्त (अनपेड) रहती है । (viii) "स्वाधिकृत निधि" का अर्थ चुकता ईक्विटी पूंजी, अनिवार्य रूप से ईक्विटी पूंजी में परिवर्तनीय सीमा तक चुकता अधिमान पूंजी, मुक्त आरक्षित निधि (पुनर्मूल्य आरक्षित निधि को छोडकर ) लाभ और हानि खाते में नामे शेष तथा विविध खर्चे (बट्टा खाते में न डाली गई या समायोजित न की गई सीमा तक), अमूर्त आस्तियों का बही मूल्य और अनर्जक आस्तियों के लिए अल्प / कम प्रावधान / निवेशों के मूल्य में उस तथा अधिक आय निर्धारण को, यदि कोई किया गया हो तो, घटाकर तथा आगे किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के अर्जित शेयरों का बही मूल्य और वित्तीय विवरणों के संबंध में लेखा परीक्षकों द्वारा अपनी रिपोर्ट में नियत किये गये मुद्दों के लिए अपेक्षित अन्य कटौतियों को घटाने के बाद लाभ और हानि खाते में जमाशेष के कुल योग से है ; (ix) "योजना अवधि" का अर्थ पुनर्निर्माण के प्रयोजन हेतु अर्जित की गयी अनर्जक आस्तियों (प्रवर्तक की बहियों में) की वसूली हेतु योजना बनाने के लिए अनुमति प्रदान की गई अधिकतम 12 महीने की अवधि से है ; (x) "मानक आस्ति" का अर्थ किसी ऐसी आस्ति से है, जो अनर्जक आस्ति नहीं है । (xi) "न्यास" का अर्थ भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा 3 में यथापरिभाषित न्यास से है । (2) यहां पर प्रयुक्त उन शब्दों और अभिव्यक्तियों का, जिनकी यहां परिभाषा नहीं दी गई है, परंतु वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 में जिनकी परिभाषा दी गई है, वही अर्थ होगा, जो उक्त अधिनियम में उनका अर्थ है । अन्य शब्दों और अभिव्यक्तियों का, जिनकी परिभाषा उक्त अधिनियम में नहीं दी गई है, अर्थ वह होगा, जो कंपनी अधिनियम, 1956 में उनका अर्थ है । 4. पंजीकरण और उससे संबंधित मामले 2[(i) प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी, 7 मार्च 2003 की अधिसूचना सं.गैबैंवि.1 /सीजीएम (सीएसएम) 2003 में विनिर्दिष्ट आवेदन फॉर्म में पंजीकरण के लिए आवेदन करेगी और उक्त अधिनियम की धारा 3 में किये गये उपबंध के अनुसार पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त करेगी;] (ii) कोई प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी, जिसने उक्त अधिनियम के अंतर्गत बैंक द्वारा जारी किया गया पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त किया है, प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण दोनों कार्यकलाप कर सकती हैं ; 3"[(ii) (क) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्संरचना कंपनी बैंक द्वारा पंजीकरण प्रमाणपत्र मंजूर किए जाने की तारीख से 6 माह के भीतर कारोबार प्रारंभ करेगी; बशर्ते कि प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण/पुनर्संरचना कंपनी द्वारा कारोबार प्रारंभ करने की अवधि बढ़ाने के लिए आवेदन करने पर रिज़र्व बैंक इस अवधि को उसके बाद उस समय तक के लिए बढ़ा सकता है जो पंजीकरण प्रमाणपत्र मंजूर होने की तारीख से कुल एक वर्ष के बाद की नहीं होगी। (ii) (ख) जिस प्रतिभूतिकरण कंपनी और पुनर्संरचना कंपनी ने उक्त अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत रिज़र्व बैंक से पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त किया है और इस अधिसूचना की तारीख तक कारोबार प्रारंभ नहीं किया है, वह इस अधिसूचना की तारीख से 6 माह के भीतर कारोबार प्रारंभ करेगी। " 4 (ii)(ग) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45-झक, 45-झख तथा 45-झग के प्रावधान/शर्तें उस गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी पर लागू नही होंगे/होंगी जो प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी है और वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 की धारा 3 के अंतर्गत बैंक के पास पंजीकृत है।] (iii) कोई संस्था जो, उक्त अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत बैंक में पंजीकृत नहीं है, अधिनियम के दायरे के बाहर प्रतिभूतिकरण या आस्ति पुनर्निर्माण का कारोबार कर सकती है । 5.स्वाधिकृत निधि प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को, जो उक्त अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत बैंक में पंजीकरण की इच्छुक है, न्यूनतम 2 करोड़ रुपये की स्वाधिकृत निधि रखनी होगी । 5 [ “बशर्ते प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी धारा 3 के अंतर्गत रिज़र्व बैंक का पंजीकरण मांगनेवाली पुनर्निर्माण कंपनी या प्रतिभूतिकरण (रिज़र्व बैंक)(संशोधन) मार्गदर्शी सिद्धांत एवं निदेश, 2004 के प्रारंभ होने पर जो कारोबार करने वाली है, प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा अभिगृहीत या अभिगृहीत की जाने वाली कुल वित्तीय आस्तियों के कम से कम पंद्रह प्रतिशत की न्यूनतम स्वाधिकृत निधि समग्र आधार पर या 100 करोड़ रुपये, इनमें से जो भी कम हो, रखेगी । साथ ही यह भी शर्त है कि - (i) किसी भी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की न्यूनतम स्वाधिकृत निधि किसी भी मामले में दो करोड़ रुपये से कम नहीं होनी चाहिये । (ii) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी (रिज़र्व बैंक)(संशोधन) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश, 2004 के प्रारंभ होने पर कारोबार करने वाली कोई भी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी इस प्रकार प्रारंभ किये जाने की तारीख से तीन माह के भीतर प्रथम परंतुक(प्राविज़ो) में विनिर्दिष्ट न्यूनतम स्वाधिकृत निधि का स्तर प्राप्त कर लेगी । (iii) प्रथम परंतुक के प्रयोजन के लिए राशि परिगणित करते समय इस बात को हिसाब में नहीं लिया जायेगा कि प्रतिभूतिकरण के प्रयोजन के लिए गठित न्यास को आस्तियां अंतरित की गयीं हैं अथवा नहीं । (iv) जब तक आस्तियों की वसूली नहीं होती तथा ऐसी आस्तियों हेतु जारी की गयी प्रतिभूति का प्रतिदान नहीं होता, तब तक यह राशि प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के पास बनी रहेगी । 6[(v) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी प्रतिभूतिकरण के प्रयोजन से ट्रस्ट संस्थापना द्वारा जारी प्रतिभूति(सिक्युरिटी) रसीदों में प्रत्येक योजना के अंतर्गत 5% से अन्यून निवेश करेगी। बशर्ते यह कि - 7[(vi) प्रतिभूतिकरण कंपनी तथा पुनर्निर्माण कंपनी प्रतिभूतिकरण कंपनी/पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा प्रत्येक योजना एवं प्रत्येक श्रेणी (क्लास) के अंतर्गत जारी प्रतिभूति रसीदों के न्यूनतम 5% प्रतिभूति रसीदें सतत आधार पर धारण किए रहेंगी जब तक कि ऐसी योजना विशेष के अंतर्गत जारी सभी प्रतिभूति रसीदों की अदायगी नहीं हो जाती है। 6. स्वीकार्य कारोबार
7. आस्ति पुनर्निर्माण (1) वित्तीय आस्तियों का अभिग्रहण
9(2) (i) प्रबंधन में परिवर्तन या का अधिग्रहण प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी उक्त अधिनियम की धारा 9(क) में विनिर्दिष्ट उपाय 21 अप्रैल 2010 के परिपत्र सं.गैबैंपवि/नीति प्रभा.(SC/RC)/सं.17/26.03.001/2009-10, समय-समय पर यथासंशोधित, में अंतर्विष्ट अनुदेशों के अनुसरण में प्रयोग में लाएगी । (ii) उधारकर्ता के कारोबार के एक भाग या संपूर्ण कारोबार की बिक्री या पट्टे पर देना (3) ऋणों की पुनर्व्यवस्था (रिशेड्यूलिंग) करना
(4) प्रतिभूति हित प्रवर्तन उक्त अधिनियम की धारा 13 (4) के अंतर्गत जमानती आस्तियों की बिक्री की कार्रवाई करते समय, यदि उक्त बिक्री केवल सार्वजनिक नीलामी के रूप में की जा रही हो तो कोई प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी उक्त जमानती आस्तियों को या तो अपने उपयोग के लिए या पुनर्बिक्री के लिए अर्जित कर सकती है । (5) उधारकर्ताओं द्वारा देय राशियों का निपटारा
(6) वसूली की योजना (i) प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को योजना अवधि के अंदर आस्तियों की वसूली के लिए एक योजना तैयार करनी चाहिए, जिसमें निम्नलिखित एक या अधिक उपाय किये जा सकते हैं; (क) उधारकर्ता द्वारा देय ऋणों के भुगतान की पुनर्व्यवस्था करना; 10 (ii) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी वित्तीय आस्तियों(परिसंपत्तियों) की वसूली की योजना तैयार करेगी जिसके अंतर्गत वसूली अवधि संबंधित वित्तीय आस्तियों के अर्जन की तारीख से किसी भी मामले में पांच वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। (iii) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी का निदेशक बोर्ड वित्तीय आस्तियों की वसूली की अवधि को इस प्रकार बढ़ा सकता है कि वसूली अवधि आस्ति के अर्जन की तारीख से अधिकतम आठ वर्षों से अधिक न हो। (iv) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी का निदेशक बोर्ड प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा वित्तीय आस्तियों की वसूली के लिए उल्लिखित खंड (ii) या (iii) में वर्णित अवधि, जैसा भी मामला हो, में वसूली के लिए उठाए जाने वाले कदमों/उपायों को उल्लेख करेगा। (v) अर्हता प्राप्त संस्थागत क्रेता विस्तारित अवधि की समाप्ति पर ही सरफायसी अधिनियम की धारा 7(3) के उपबंधों का अवलंबन लेने के हकदार होंगे, बशर्ते उक्त खंड (iii) के अंतर्गत वसूली की समय-सीमा में विस्तार किया गया हो। 8. प्रतिभूतिकरण 11 [(1) प्रतिभूति रसीदें जारी करना प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी, उक्त अधिनियम की धारा 7(1) और (2) के उपबंधों को, विशेष रूप से इस प्रयोजन के लिए स्थापित किए गये एक या अधिक न्यासों के माध्यम से लागू करेगी। यदि आस्तियों को सीधे न्यास/सों की बहियों में अर्जित नहीं किया गया है, तो प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी आस्तियों को उपर्युक्त न्यासों को उसी मूल्य पर हस्तांतरित करेगी, जिस पर वे प्रवर्तक (ऑरीजिनेटर) से अर्जित की गई थीं:-]
2. प्रकटीकरण प्रतिभूति रसीदें जारी करने की इच्छुक प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी अनुबंध में उल्लिखित अनुसार प्रकटीकरण करेगी । 9. पूंजी पर्याप्तता की अपेक्षा (1) प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी निरंतर आधार पर पूंजी पर्याप्तता अनुपात कायम रखेगी जो उसकी कुल जोखिम भारित आस्तियों के 15% से कम नहीं होगा । जोखिम भारित आस्तियों की गणना तुलनपत्र की और तुलनपत्र के बाह्य मदों के सकल भार के रूप में यहां नीचे दिये ब्यौरे के अनुसार की जायेगी भारित जोखिम आस्तियां
10. निधियों का अभिनियोजन (डेप्ल्वायमेंट)
11. लेखा वर्ष प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी प्रत्येक वर्ष 31 मार्च के अनुसार अपना तुलनपत्र और हानि-लाभ खाता तैयार करेगी । 12.आस्ति वर्गीकरण (1) वर्गीकरण (i) प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी सुपरिभाषित ऋण कमजोरियों की मात्रा और वसूली के लिए प्रासंगिक जमानत पर निर्भर रहने की सीमा को ध्यान में रखते हुए 14[अपनी स्वयं की बहियों में धारित]आस्तियों को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत करेगी,अर्थात् (क) मानक आस्तियां (ii) अनर्जक आस्तियों को आगे निम्नलिखित के रूप में वर्गीकृत किया जायेगा (क)’अवमानक आस्ति' वह आस्ति है जिसे अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकृत किये जाने की तारीख से 12 महीने से अधिक न हुआ हो; (ख) ’संदिग्ध आस्ति' वह आस्ति है जिसे अवमानक आस्ति बने 12 महीने से अधिक हुआ हो; 15 [(ग) "हानिगत आस्ति" यदि (ए) परिसंपत्ति 36 महीने से अधिक अवधि के लिए अनर्जक रहती है, (बी) प्रतिभूति के मूल्य में गिरावट आने के कारण या प्रतिभूति के उपलब्ध न होने के कारण उसकी वसूली न होने के वास्तविक खतरे से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई हो; (सी) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी ने या उसके आंतरिक या वाह्य लेखापरीक्षकों द्वारा आस्ति को "हानिगत आस्ति" के रूप में पहचाना गया हो; या (डी) प्रतिभूति रसीद सहित वित्तीय आस्ति पैराग्राफ 7(6)(ii) या 7(6)(iii) के अंतर्गत प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा निर्मित वसूली योजना के अंतर्गत विनिर्दिष्ट कुल समय-सीमा में वसूली न जा सकी हो और प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी या उनके ट्रस्ट के पास लगातार धारण रही हो"।] (iii) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा आस्ति पुनर्निर्माण के प्रयोजन हेतु अर्जित की गयी आस्तियों को योजना अवधि के दौरान, यदि कोई हो, मानक आस्तियों के रूप में माना जा सकता है। (2) आस्ति पुनर्निर्माण पुनः सौदाकृत /पुनर्व्यवस्थित(रिशेड्यूल्ड) आस्तियां
(3) प्रावधानीकरण की अपेक्षाएं प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी अनर्जक आस्तियों के लिए निम्नानुसार प्रावधान करेगी
13. निवेश 14. आय-निर्धारण (i )आय-निर्धारण मान्यता प्राप्त लेखांकन सिद्धांतों पर आधारित होगा । (ii) भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान द्वारा जारी किये गये सभी लेखा मानकों और मार्गदर्शी नोटों का, वहां तक पालन किया जायेगा, जहां तक वे यहां निहित/दिए गए इन मार्गदर्शी सिद्धांतों और निदेशों से असंगत नहीं हों; (iii) सभी अनर्जक आस्तियों के संबंध में ब्याज और किसी अन्य प्रभार को तभी आय खाते में लिया जायेगा जब वे वास्तव में वसूल हो गये हों। किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा आस्ति के अनर्जक होने से पहले वसूलनीय मानी गयी किन्तु अप्राप्त रही ऐसी आय को अनिर्धारित/अमान्य कर दिया जायेगा । 15. तुलनपत्र में प्रकटीकरण (1) कंपनी अधिनियम, 1956 की अनुसूची VI की अपेक्षाओं के अतिरिक्त प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी निम्नलिखित अनुसूचियां तैयार करेगी और उन्हें अपने-अपने तुलनपत्र के साथ अनुबंध के रूप में लगायेंगी
(2) (i) वित्तीय विवरणों के तैयार करने और उनके प्रस्तुत करने में अपनायी गयी लेखांकन की नीतियां बैंक द्वारा निर्धारित किये गये लागू विवेकसम्मत मानदंडों के अनुरूप होंगी । (ii) जहां पर उक्त लेखांकन नीतियों में से कोई नीति इन निदेशों के अनुरूप न हो तो इन निदेशों से हटने के विवरणों का उसके कारणों सहित और उनके कारण होने वाले वित्तीय प्रभाव का ब्योरा दिया जायेगा । जब ऐसा कोई प्रभाव सुनिश्चित नहीं किया जा सकता हो तो उसके कारणों का उल्लेख करते हुए यह तथ्य उस रूप में प्रकट किया जाना चाहिए । (iii) तुलनपत्र या लाभ और हानि लेखे में किसी मद के अनुचित व्यवहार को न तो प्रयोग में लायी गयी लेखांकन नीतियों के प्रकटीकरण से और न तुलनपत्र और लाभ और हानि लेखेगत नोटों में प्रकटीकरण से परिशोधित हो गया माना जा सकता है । 16. आंतरिक लेखापरीक्षा प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी अपने द्वारा अपनायी गयी आस्ति अभिग्रहण क्रियाविधियों और आस्ति पुनर्निर्माण के उपायों तथा उससे संबंधित मामलों की आवधिक रूप से जांच और समीक्षा के लिए प्रावधान करते हुए एक कारगर आंतरिक नियंत्रण प्रणाली स्थापित करेगी । 17. छूट बैंक को यदि यह आवश्यक प्रतीत होता है कि प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को किसी परेशानी से बचाने के लिए अथवा किसी उचित और पर्याप्त कारण के लिए, सभी प्रतिभूतिकरण कंपनियों या पुनर्निर्माण कंपनियों या किसी विशेष प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी या प्रतिभूतिकरण कंपनियों या पुनर्निर्माण कंपनियों के किसी वर्ग को, ऐसी शर्तों के अधीन जिन्हें वह लगाना चाहे या तो सामान्य रूप से या किसी विशेष अवधि के लिए इन मार्गदर्शी सिद्धांतों और निदेशों के सभी अथवा किसी प्रावधान से छूट प्रदान कर सकता है। (सी. एस. मूर्ति) अनुबंध (1) प्रस्ताव दस्तावेज़ में प्रकटीकरण क. प्रतिभूति रसीदें जारी करने वाले से संबंधित
ख. प्रस्ताव की शर्तें
(2) तिमाही आधार पर प्रकटीकरण
संशोधनकारी अधिसूचनाओं की सूची
भारतीय रिज़र्व बैंक प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्संरचना (पुनर्निर्माण) कंपनियों के लिए मार्गदर्शी नोट वित्तीय आस्तियों के प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण एवं प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 21 जून 2002 से लागू है। उसमें प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए रिज़र्व बैंक ने प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण कंपनियों के पंजीकरण, उनसे संबंधित अन्य मामलों यथा आस्तियों के अर्जन, आय निर्धारण संबंधी विवेकसम्मत मानदण्ड, आस्तियों के वर्गीकरण, प्रावधानीकरण, लेखा-मानक, पूंजी पर्याप्तता, आस्ति पुनर्निर्माण के लिए उपाय, निधियों के नियोजन के संबंध में मार्गदर्शी सिद्धांत एवं निदेश बनाए हैं। 2. रिज़र्व बैंक ने एतदर्थ अनुदेशों का एक सेट विकसित किया है जिनका अनुपालन सभी प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों को करना है ताकि आस्ति पुनर्निर्माण की प्रक्रिया सुगमता एवं अच्छी तरह (सुदृढ़ता के साथ) पूरी हो सके। इसके अलावा, विभिन्न मामलों पर जारी मार्गदर्शी सिद्धांतों के आधार पर बैंक ने मार्गदर्शी नोट तैयार किया है जिनके सांरांश प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों के मार्गदर्शन के लिए नीचे दिये जा रहे हैं। इन नोटों में प्रयुक्त शब्दों एवं अभिव्यक्तियों के वही अर्थ हैं जो अधिनियम में हैं। (1) वित्तीय आस्तियों का अर्जन
(2).प्रतिभूति रसीदें जारी करना
(3). विवेकपूर्ण/सम्मत मानदण्डों की प्रयोज्यता
(4) निदेशक बोर्ड द्वारा नीतिगत दस्तावेजों की मंजूरी प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी आस्तियों के अर्जन, उधारकर्ताओं के ऋणों की रिशिड्यूलिंग, उधारकर्ता द्वारा देय ऋण/णों का निपटान/अदायगी, प्रतिभूति रसीदें जारी करने तथा बेशी निधियों के नियोजन से संबंधित नीतिगत मार्गदर्शी सिद्धांत अपने निदेशक बोर्ड की मंजूरी से तैयार करेगी। प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को पंजीकरण प्रमाणपत्र मंजूर होने की तारीख से 90 दिनों के भीतर उसके द्वारा वित्तीय आस्तियों के अर्जन से संबंधित नीति तैयार/विकसित कर ली जानी चाहिए। प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी आस्तियों के अर्जन, कीमत निर्धारण, आदि के मामले में निदेशक बोर्ड द्वारा किए गए विनिर्देशन से भिन्न रुख अख्तियार करने के मामलों के ब्योरों का कारण सहित अभिलेख रखेंगी। (5) विनियामक रिपोर्टिंग
(6) आंतरिक लेखापरीक्षा यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ या पुनर्निर्माण कंपनियाँ स्वस्थ आधार पर कार्य कर रही हैं , ऐसी कंपनियों के परिचालन तथा गतिविधियाँ आंतरिक/वाह्य एजेंसियों की आवधिक जांच-पड़ताल के अधीन होने चाहिए। (7) लेखा वर्ष /तुलनपत्र में प्रकटीकरण प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी 31 मार्च को समाप्त हरेक वर्ष के लिए अपना तुलनपत्र तथा लाभ-हानि लेखे तैयार करेगी। कंपनी अधिनियम, 1956 की अनुसूची VI की अपेक्षा के अनुपालन के अलावा प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी 23 अप्रैल 2003 की अधिसूचना सं. 2 के पैरा 15 में सूचीबद्ध विभिन्न मुद्दों पर अतिरिक्त प्रकटीकरण भी करेगी। 1.21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं: गैबैंपवि.नीप्र . (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा प्रतिस्थापित. 2 7 मार्च 2003 कीअधिसूचना सं: गैबैंपवि.1/सीजीएम(सीएसएम) -2003 द्वारा शामिल. 3 19 अक्तूबर 2006 की अशोसूचना सं: गैबैंपवि.6/सीजीएम (पीके) 2006 द्वारा जोडा गया. 4 28 अगस्त 2003 की अधिसूचना सं: गैबैंपवि.3/सीजीएम (ओपीए) -2003 द्वारा शामिल. 5 29 मार्च 2004 की अधिसूचना सं: गैबैंपवि.4/ईडी (एसजी)-2006 द्वारा जोडा गया. 6 20 सितम्बर 2006 की अधिसूचना सं: गैबैंपवि.5/सीजीएम(पीके)/2006 द्वारा प्रतिस्थापित. 7 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)9/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया. 8 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया. 9 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)7/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया 10 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया 11 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया 12 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया 13 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010द्वाराजोडागया 14 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया 15 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010द्वाराजोडागया 16 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया |