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प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ तथा पुनर्संरचना कंपनियाँ (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश 2003 30 जून 2012 तक यथा संशोधित अधिसूचना

भारिबैं/2012-2013/19
गैबैंपवि.(नीप्रभा) कंपरि. सं. 28 /एससीआरसी/26.03.001/2012-13

2 जुलाई 2012

प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ तथा पुनर्संरचना कंपनियाँ
(रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश 2003
30 जून 2012 तक यथा संशोधित अधिसूचना

जैसा कि आप विदित है कि उल्लिखित विषय पर सभी मौजूदा अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक अद्यतन परिपत्र/ अधिसूचनायें जारी करता है। 23 अप्रैल 2003 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि. 2/सीजीएम (सीएसएम)/2003 में अंतर्विष्ट सभी अनुदेशों का अद्यतन यथा 30 जून 2012 तककरने के बाद नीचे पुनरुत्पादित किया गया है। अद्यतित अधिसूचना बैंक की वेबसाइट (http://www.rbi.org.in) पर भी उपलब्ध है।

भवदीया,

(उमा सुब्रमणियम)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक


गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग
केंद्रीय कार्यालय
विश्व व्यापार केंद्र, केंद्र-1
कफ परेड, कोलाबा
मुंबई

अधिसूचना सं. गैबैंपवि 2 / सीजीएम (सीएसएम)-2003

23 अप्रैल 2003

प्रतिभूतिकरण  कंपनी और पुनर्निर्माण कंपनी
 (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत और निदेश, 2003

भारतीय  रिज़र्व बैंक, जनहित में इसे आवश्यक मानते हुए तथा इस बात से संतुष्ट होकर कि वित्तीय प्रणाली को देश के हित के लिए विनियमित करने के हेतु रिज़र्व बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजनार्थ और किसी प्रतिभूतिकरण  कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के निवेशकों के हित के लिए हानिकारक ढंग से चलाये जा रहे, कार्यलापों या ऐसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के हित में किसी भी प्रकार से पक्षपाती ढंग से चलाये जा रहे कार्यकलापों को रोकने के लिए; पंजीकरण, आस्ति पुनर्निर्माण के उपायों, कंपनी के कार्यों, विवेकसम्मत मानदडों, वित्तीय आस्तियों के अभिग्रहण और उससे संबंधित यहां नीचे उल्लिखित मामलों के संबंध में मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश जारी करना आवश्यक है, वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण  तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 की धारा 3, 9, 10 तथा 12 द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए एतदद्वारा प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को, यहां इसके बाद विनिर्दिष्ट मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश जारी करता है।

संक्षिप्त नाम और प्रारंभ

1. (1) ये  मार्गदर्शी सिद्धांत और  निदेश `प्रतिभूतिकरण  कंपनी  और पुननिर्माण कंपनी (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश, 2003' के नाम से जाने जायेंगे ।

  (2) ये 23 अप्रैल 2003 से लागू होंगे और इन मार्गदर्शी सिद्धांतों तथा निदेशों में इनके लागू होने की तारीख का कोई संदर्भ  उक्त तारीख का संदर्भ  माना जायेगा ।

निदेशों की प्रयोज्यता

2.  इन मार्गदर्शी सिद्धांतों तथा निदेशों के प्रावधान, वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 की धारा 3 के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक में पंजीकृत प्रतिभूतिकरण कंपनियों या पुनर्निर्माण कंपनियों पर लागू होंगे ।  परंतु यहां पैराग्राफ 8 में उल्लिखित न्यास/न्यासों के संबंध में, पैराग्राफ 4,5,6,9,10(i), 10 (iii), 12, 13, 14 और 15 के प्रावधान लागू नहीं होंगे ।

3.  परिभाषाएँ

(1) (i) "अधिनियम" का अर्थ वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 है ।

   (ii)"बैंक" का अर्थ भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 3 के अंतर्गत गठित रिज़र्व बैंक है ;

1(iii) अर्जन (अभिग्रहण) की तारीख का अर्थ उस तारीख से है, जिस तारीख को प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा वित्तीय आस्तियों का स्वामित्व अपनी बहियों या सीधे ट्रस्ट की बहियों में ग्रहण किया जाता है।;]

(iv)"जमाराशि" का अर्थ कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 58 क के अंतर्गत बनाये गये कंपनी (जमाराशियों का स्वीकरण) नियम, 1975 में यथा परिभाषित जमाराशि से है ;

(v) "उचित मूल्य" का अर्थ अर्जन मूल्य (अर्निंग वैल्यू) तथा अलग-अलग (ब्रेक-अप) मूल्य के माध्य से  है ;

(vi)"अनर्जक आस्ति" (एनपीए) का अर्थ किसी आस्ति से हे, जिसके संबंध में :

(क)  ब्याज या मूलधन (या उसकी किश्त), ऋण या अग्रिम प्राप्त करने की तारीख अथवा उधार लेने वाले और प्रवर्तक (ऑरीजिनेटर) के बीच संविदा के अनुसार नियत तारीख से, जो भी बाद में हो 180 दिन या उससे अधिक दिन के लिए अतिदेय हो;

(ख) ब्याज या मूलधन (या उसकी किश्त), यहां पैराग्राफ 7(1)(6) में उल्लिखित आस्तियों की वसूली के लिए बनायी गयी योजना में, उसकी प्राप्ति के लिए नियत तारीख से 180 दिन या उससे अधिक दिन की अवधि के लिए अतिदेय हो ;

(ग) ब्याज या मूलधन (या उसकी किश्त), यहां पैराग्राफ 7(1)(6) में उल्लिखित आस्तियों की वसूली के लिए जब कोई योजना नहीं तैयार की गयी हो तो योजना अवधि की समाप्ति पर अतिदेय होती है ; या

(घ)  कोई अन्य प्राप्य राशि, यदि वह प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की बहियों में 180 दिन या उससे अधिक अवधि के लिए अतिदेय हो ।

परंतु शर्त यह है कि किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी का निदेशक मंडल उधारकर्ता द्वारा चूक करने पर किसी आस्ति को उस पर उल्लिखित अवधि से पहले भी अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकृत कर सकता है (उक्त अधिनियम की धारा 13 में किये गये उपबंध के अनुसार प्रवर्तन में सुविधा के लिए) ।

(vii) "अतिदेय"का अर्थ किसी उस राशि से है, जो नियत तारीख के बाद अप्रदत्त (अनपेड) रहती है ।

(viii) "स्वाधिकृत निधि" का अर्थ चुकता ईक्विटी पूंजी, अनिवार्य रूप से ईक्विटी पूंजी में परिवर्तनीय सीमा तक चुकता अधिमान पूंजी, मुक्त आरक्षित निधि (पुनर्मूल्य आरक्षित निधि को छोडकर ) लाभ और हानि खाते में नामे शेष तथा विविध खर्चे (बट्टा खाते में न डाली गई या समायोजित न की गई सीमा तक), अमूर्त आस्तियों का बही मूल्य और अनर्जक आस्तियों के लिए अल्प / कम प्रावधान / निवेशों के मूल्य में उस तथा अधिक आय निर्धारण को, यदि कोई किया गया हो तो, घटाकर तथा आगे किसी प्रतिभूतिकरण  कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के अर्जित शेयरों का बही मूल्य और वित्तीय विवरणों के संबंध में लेखा परीक्षकों द्वारा अपनी रिपोर्ट में नियत किये गये मुद्दों के लिए अपेक्षित अन्य कटौतियों को घटाने के बाद लाभ और हानि खाते में जमाशेष के कुल योग से है ;

(ix) "योजना अवधि" का अर्थ पुनर्निर्माण के प्रयोजन हेतु अर्जित की गयी अनर्जक आस्तियों (प्रवर्तक की बहियों में) की वसूली हेतु योजना बनाने के लिए अनुमति प्रदान की गई अधिकतम 12 महीने की अवधि से है ;

(x) "मानक आस्ति" का अर्थ किसी ऐसी आस्ति से है, जो अनर्जक आस्ति नहीं है ।

(xi) "न्यास" का अर्थ भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा 3 में यथापरिभाषित न्यास से है ।

(2) यहां पर प्रयुक्त उन शब्दों और अभिव्यक्तियों का, जिनकी यहां परिभाषा नहीं दी गई है, परंतु वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 में जिनकी परिभाषा दी गई है, वही अर्थ होगा, जो उक्त अधिनियम में उनका अर्थ है । अन्य शब्दों और अभिव्यक्तियों का, जिनकी परिभाषा उक्त अधिनियम में नहीं दी गई है, अर्थ वह होगा, जो कंपनी अधिनियम, 1956 में उनका अर्थ है ।

4पंजीकरण और उससे संबंधित मामले

2[(i) प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी, 7 मार्च 2003 की अधिसूचना सं.गैबैंवि.1 /सीजीएम (सीएसएम) 2003 में विनिर्दिष्ट आवेदन फॉर्म में पंजीकरण के लिए आवेदन करेगी और उक्त अधिनियम की धारा 3 में किये गये उपबंध के अनुसार पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त करेगी;]

(ii) कोई प्रतिभूतिकरण  कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी, जिसने उक्त अधिनियम के अंतर्गत बैंक द्वारा जारी किया गया पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त किया है, प्रतिभूतिकरण  और पुनर्निर्माण दोनों कार्यकलाप कर सकती हैं ;

3"[(ii) (क) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्संरचना कंपनी बैंक द्वारा पंजीकरण प्रमाणपत्र मंजूर किए जाने की तारीख से 6 माह के भीतर कारोबार प्रारंभ करेगी;

बशर्ते कि प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण/पुनर्संरचना कंपनी द्वारा कारोबार प्रारंभ करने की अवधि बढ़ाने के लिए आवेदन करने पर रिज़र्व बैंक  इस अवधि को उसके बाद उस समय तक के लिए बढ़ा सकता है जो पंजीकरण प्रमाणपत्र मंजूर होने की तारीख से कुल एक वर्ष के बाद की नहीं होगी।

(ii) (ख) जिस प्रतिभूतिकरण कंपनी और पुनर्संरचना कंपनी ने उक्त अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत रिज़र्व बैंक से पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त किया है और इस अधिसूचना की तारीख तक कारोबार प्रारंभ नहीं किया है, वह इस अधिसूचना की तारीख से 6 माह के भीतर कारोबार प्रारंभ करेगी। "

4 (ii)(ग) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45-झक, 45-झख तथा 45-झग के प्रावधान/शर्तें उस गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी पर लागू नही होंगे/होंगी जो प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी है और वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 की धारा 3 के अंतर्गत बैंक के पास पंजीकृत है।]

(iii) कोई संस्था जो, उक्त अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत बैंक में पंजीकृत नहीं है, अधिनियम के दायरे के बाहर प्रतिभूतिकरण  या आस्ति पुनर्निर्माण का कारोबार कर सकती है ।

5.स्वाधिकृत निधि

प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को, जो उक्त अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत बैंक में पंजीकरण की इच्छुक है, न्यूनतम 2 करोड़ रुपये की स्वाधिकृत निधि रखनी होगी ।

5 [ “बशर्ते प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी धारा 3 के अंतर्गत रिज़र्व बैंक का पंजीकरण मांगनेवाली पुनर्निर्माण कंपनी या प्रतिभूतिकरण (रिज़र्व बैंक)(संशोधन) मार्गदर्शी सिद्धांत एवं निदेश, 2004 के प्रारंभ होने पर जो कारोबार करने वाली है, प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा अभिगृहीत या अभिगृहीत की जाने वाली कुल वित्तीय आस्तियों के कम से कम पंद्रह प्रतिशत की न्यूनतम स्वाधिकृत निधि समग्र आधार पर या 100 करोड़ रुपये, इनमें से जो भी कम हो, रखेगी ।

साथ ही यह भी शर्त है कि -

(i) किसी भी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की न्यूनतम स्वाधिकृत निधि किसी भी मामले में दो करोड़ रुपये से कम नहीं होनी चाहिये ।

(ii) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी (रिज़र्व बैंक)(संशोधन) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश, 2004 के प्रारंभ होने पर कारोबार करने वाली कोई भी  प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी इस प्रकार  प्रारंभ किये जाने की तारीख से तीन माह के भीतर प्रथम परंतुक(प्राविज़ो) में विनिर्दिष्ट न्यूनतम स्वाधिकृत निधि का स्तर प्राप्त कर लेगी । 

(iii) प्रथम परंतुक के प्रयोजन के लिए राशि परिगणित करते समय इस बात को हिसाब में नहीं लिया जायेगा कि प्रतिभूतिकरण के प्रयोजन के लिए गठित न्यास को आस्तियां अंतरित की गयीं हैं अथवा नहीं ।

(iv) जब तक आस्तियों की वसूली नहीं होती तथा ऐसी आस्तियों हेतु जारी की गयी प्रतिभूति का प्रतिदान नहीं होता, तब तक यह राशि प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के पास बनी रहेगी ।

6[(v) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी प्रतिभूतिकरण के प्रयोजन से ट्रस्ट संस्थापना द्वारा जारी प्रतिभूति(सिक्युरिटी) रसीदों में प्रत्येक योजना के अंतर्गत 5% से अन्यून निवेश करेगी।

बशर्ते यह कि -
 
प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी जिसने पहले ही प्रतिभूति(सिक्युरिटी) रसीदें जारी की हैं, इस अधिसूचना के जारी होने की तारीख से 6 माह में प्रत्येक योजना के अंतर्गत सिक्युरिटी रसीदों में न्यूनतम अभिदान सीमा प्राप्त करेगी।]

7[(vi) प्रतिभूतिकरण कंपनी तथा पुनर्निर्माण कंपनी प्रतिभूतिकरण कंपनी/पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा प्रत्येक योजना एवं प्रत्येक श्रेणी (क्लास) के अंतर्गत जारी प्रतिभूति रसीदों के न्यूनतम 5% प्रतिभूति रसीदें सतत आधार पर धारण किए रहेंगी जब तक कि ऐसी योजना विशेष के अंतर्गत जारी सभी प्रतिभूति रसीदों की अदायगी नहीं हो जाती है।

6.  स्वीकार्य कारोबार

  1. प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी केवल प्रतिभूतिकरण और आस्ति पुनर्निर्माण के कार्यकलाप तथा उक्त अधिनियम की धारा 10 में उपबंधित कार्य करेगी.

  2. यदि प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी कोई अन्य कारोबार कर रही है, तो वह ऐसा कारोबार 20 जून 2003 तक बंद कर देगी;

  3. कोई प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी जमा के रूप में कोई धन नहीं उगाहेगी ।

7.  आस्ति पुनर्निर्माण    

(1) वित्तीय आस्तियों का अभिग्रहण

  1. प्रत्येक प्रतिभूतिकरण  या पुनर्निर्माण कंपनी, पंजीकरण प्रमाण पत्र की मंजूरी के 90 दिन के अंदर अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से एक ‘वित्तीय आस्ति अभिग्रहण नीति' बनाएगी, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ स्पष्ट रूप से निम्नलिखित के संबंध में नीतियां और मार्गदर्शी सिद्धांत निर्धारित किये जायेंगे
    8[(क) अपनी बहियों या ट्रस्ट की बहियों में सीधे अर्जन के मानदण्ड और प्रक्रिया;]

    (ख)  आस्तियों के प्रकार और वांछित रूप रेखा (प्रोफाइल);

    (ग)  यह सुनिश्चित करते हुए कि अर्जित की गयी आस्तियों का वसूली योग्य मूल्य है, जिसका उचित रूप से आकलन और तटस्थ रूप से मूल्यन किया जा सकता है, मूल्यन की क्रिया विधि;

    (घ)  आस्ति पुनर्निर्माण के लिए अर्जित वित्तीय आस्तियों के मामले में, उनकी वसूली के लिए योजना बनाने हेतु व्यापक (ब्राड) मापदंड ।     

  2. निदेशक मंडल वित्तीय आस्तियों के अभिग्रहण के प्रस्तावों के संबंध में निर्णय लेने के लिए निदेशक और/या कंपनी के किसी अधिकारी को लेकर बनायी गयी किसी समिति को अधिकारों का प्रत्यायोजन कर सकता है ।

  3. नीति से हट कर कोई निर्णय केवल निदेशक मंडल के अनुमोदन से ही लिया जाना चाहिए ।

9(2) (i) प्रबंधन में परिवर्तन या का अधिग्रहण

प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी उक्त अधिनियम की धारा 9(क) में विनिर्दिष्ट उपाय 21 अप्रैल 2010 के परिपत्र सं.गैबैंपवि/नीति प्रभा.(SC/RC)/सं.17/26.03.001/2009-10, समय-समय पर यथासंशोधित, में अंतर्विष्ट अनुदेशों के अनुसरण में प्रयोग में लाएगी ।

(ii) उधारकर्ता के कारोबार के एक भाग या संपूर्ण कारोबार की बिक्री या पट्टे पर देना
         
कोई भी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी तब तक उक्त अधिनियम की धारा 9 (ख) में विनिर्दिष्ट उपाय अमल में नहीं लाएगी, जब तक कि इस संबंध में बैंक द्वारा आवश्यक मार्गदर्शी सिद्धांत जारी नहीं कर दिये जाते हैं।

(3) ऋणों की पुनर्व्यवस्था (रिशेड्यूलिंग) करना

  1. प्रत्येक प्रतिभूतिकरण  कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी उधार लेने वालों से प्राप्य ऋणों की पुनर्व्यवस्था करने के लिए व्यापक मापदंड निर्धारित करते हुए निदेशक मंडल द्वारा विधिवत अनुमोदित एक नीति बनायेगी;

  2. सभी प्रस्ताव उधार लेने वाले के कारोबार की स्वीकार्य योजना, अनुमानित आय और नकदी प्रवाहों के अनुसार तथा उन के द्वारा समर्थित होने चाहिए;

  3. प्रस्तावों से प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी का आस्ति देयता प्रबंधन एवं निवेशकों को दिए गए वादे अधिक मात्रा में प्रभावित नहीं होना चाहिए ।

  4. निदेशक मंडल, ऋणों की पुनर्व्यवस्था करने के प्रस्तावों पर निर्णय लेने के लिए किसी निदेशक और / या कंपनी के किसी अधिकारी को लेकर बनी एक समिति को अधिकार प्रत्यायोजित कर सकता है ।

  5. नीति से हट कर कोई निर्णय केवल निदेशक मंडल के अनुमोदन से ही लिया जाना चाहिए ।

(4) प्रतिभूति हित प्रवर्तन

उक्त अधिनियम की धारा 13 (4) के अंतर्गत जमानती आस्तियों की बिक्री की कार्रवाई करते समय, यदि उक्त बिक्री केवल सार्वजनिक नीलामी के रूप में की जा रही हो तो कोई प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी उक्त जमानती आस्तियों को या तो अपने उपयोग के लिए या पुनर्बिक्री के लिए अर्जित कर सकती है ।           

(5)  उधारकर्ताओं द्वारा देय राशियों का निपटारा

  1. उधारकर्ताओं से प्राप्य ऋणों के निपटारे हेतु व्यापक मापदंड निर्धारित करते हुए प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी निदेशक मंडल के विधिवत अनुमोदन से एक नीति बनाएगी;

  2. उक्त नीति में अन्य बातों के साथ-साथ निर्दिष्ट तारीख,वसूली योग्य राशि के अभिकलन और लेखा के निपटारे का सूत्र, भुगतान की शर्ते और नियत की हुई राशि का भुगतान करने की उधारकर्ता की सामर्थ्य जैसे पहलुओं को शामिल किया जा सकता है ;

  3. जब उक्त निपटारे में करार सम्मत संपूर्ण राशि के एकमुश्त भुगतान का विचार नहीं किया गया हो तो प्रस्ताव, कारोबार की स्वीकार्य योजना उधारकर्ता की अनुमानित आय और नकदी प्रवाहों के अनुसार तथा उससे समर्थित होने चाहिए;

  4. इन प्रस्तावों से प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी का आस्ति देयता प्रबंधन या निवेशकों को दिये गये आश्वासन अधिक प्रभावित नहीं होने चाहिए ;

  5. निदेशक मंडल, देय राशियों के निपटारे हेतु प्रस्तावों के संबंध में निर्णय लेने के लिए किसी निदेशक और / या कंपनी के किसी अधिकारी को लेकर बनी एक समिति को अधिकारों का प्रत्यायोजन कर सकता है ;

  6. नीति से हट कर निर्णय केवल निदेशक मंडल के अनुमोदन से ही लिया जाना चाहिए ।

(6)  वसूली की योजना

(i) प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को योजना अवधि के अंदर आस्तियों की वसूली के लिए एक योजना तैयार करनी चाहिए, जिसमें निम्नलिखित एक या अधिक उपाय किये जा सकते हैं;

(क)  उधारकर्ता द्वारा देय ऋणों के भुगतान  की पुनर्व्यवस्था करना;
(ख) अधिनियम के उपबंधों के अनुसार प्रतिभूति में हित का प्रवर्तन (एनफोर्समेंट)
(ग)  उधारकर्ता द्वारा देय राशियों का निपटारा
(घ) यहां ऊपर पैराग्राफ 7(2) में उल्लिखित अनुसार इस संबंध में बैंक द्वारा आवश्यक मार्गदर्शी सिद्धांत बनाये जाने के बाद उधारकर्ता के कारोबार के संपूर्ण या उसके एक भाग के प्रबंधन में परिवर्तन या अधिग्रहण या बिक्री या पट्टे का अधिग्रहण ।

10 (ii) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी वित्तीय आस्तियों(परिसंपत्तियों) की वसूली की योजना तैयार करेगी जिसके अंतर्गत वसूली अवधि संबंधित वित्तीय आस्तियों के अर्जन की तारीख से किसी भी मामले में पांच वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।

(iii) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी का निदेशक बोर्ड वित्तीय आस्तियों की वसूली की अवधि को इस प्रकार बढ़ा सकता है कि वसूली अवधि आस्ति के अर्जन की तारीख से अधिकतम आठ वर्षों से अधिक न हो।

(iv) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी का निदेशक बोर्ड प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा वित्तीय आस्तियों की वसूली के लिए उल्लिखित खंड (ii) या (iii) में वर्णित अवधि, जैसा भी मामला हो, में वसूली के लिए उठाए जाने वाले कदमों/उपायों को उल्लेख करेगा।

(v) अर्हता प्राप्त संस्थागत क्रेता विस्तारित अवधि की समाप्ति पर ही सरफायसी अधिनियम की धारा 7(3) के उपबंधों का अवलंबन लेने के हकदार होंगे, बशर्ते उक्त खंड (iii) के अंतर्गत वसूली की समय-सीमा में विस्तार किया गया हो।

8. प्रतिभूतिकरण

11 [(1) प्रतिभूति रसीदें जारी करना

प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी, उक्त अधिनियम की धारा 7(1) और (2) के उपबंधों को, विशेष रूप से इस प्रयोजन के लिए स्थापित किए गये एक या अधिक न्यासों के माध्यम से लागू करेगी। यदि आस्तियों को सीधे न्यास/सों की बहियों में अर्जित नहीं किया गया है, तो प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी आस्तियों को उपर्युक्त न्यासों को उसी मूल्य पर हस्तांतरित करेगी, जिस पर वे प्रवर्तक (ऑरीजिनेटर) से अर्जित की गई थीं:-]

  1. उक्त न्यास केवल विनिर्दिष्ट संस्थागत क्रेताओं को ही प्रतिभूति रसीदें जारी करेंगे; और उक्त वित्तीय आस्तियों को इन विनिर्दिष्ट संस्थागत क्रेताओं के लाभ के लिए रखेंगे और उनका प्रबंध करेंगे ।

  2. इन न्यासों की न्यासधारिता उक्त प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के पास रहेगी;

  3. प्रतिभूति रसीदें जारी करने वाली कोई प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी उक्त रसीदें जारी करने से पहले उक्त ट्रस्ट द्वारा बनायी गयी प्रत्येक योजना के अंतर्गत प्रतिभूति रसीदें जारी करने का प्रावधान करते हुए निदेशक मंडल के विधिवत् अनुमोदन से एक नीति बनायेगी;

  4. उपर्युक्त उप पैराग्राफ (iii) में संदर्भित नीति में यह प्रावधान किया जायेगा कि जारी की गयी प्रतिभूति रसीदें केवल अन्य विनिर्दिष्ट संस्थागत क्रेताओं को ही हस्तांतरणीय / समनुदेशन योग्य होंगी ।

2. प्रकटीकरण

प्रतिभूति रसीदें जारी करने की इच्छुक प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी अनुबंध में उल्लिखित अनुसार प्रकटीकरण करेगी ।

9.    पूंजी पर्याप्तता की अपेक्षा

(1) प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी निरंतर आधार पर पूंजी पर्याप्तता अनुपात कायम रखेगी जो उसकी कुल जोखिम भारित आस्तियों के 15% से कम नहीं होगा । जोखिम भारित आस्तियों की गणना तुलनपत्र की और तुलनपत्र के बाह्य मदों के सकल भार के रूप में यहां नीचे दिये ब्यौरे के अनुसार की जायेगी

भारित जोखिम आस्तियां

       तुलनपत्र की मदें

जोखिम भार का प्रतिशत

(क) अनुसूचित वाणिज्य बैंकों में   नकदी और जमाराशि

0

(ख) सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश

0

(ग) अन्य आस्तियां

100

तुलनपत्र बाह्य मदें

 

सभी आकस्मिक देयताएं

50

2. अन्य प्रतिभूतिकरण कंपनियों या पुनर्निर्माण कंपनियों के धारित शेयरों पर कोई जोखिम भार नहीं होगा ।

10. निधियों का अभिनियोजन (डेप्ल्वायमेंट)

  1. कोई प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी प्रवर्तक के रूप में और कोई संयुक्त उद्यम(वेंचर) स्थापित करने के प्रयोजनार्थ आस्ति पुनर्निर्माण के प्रयोजन हेतु बनायी गयी किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी  की  इक्विटी शेयर पूंजी में निवेश कर सकती है;

  2. 12  . [ कोई प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी अपने पास उपलब्ध अधिक धनराशियां इस संबंध में उसके निदेशक मंडल द्वारा निर्धारित की गयी नीति के अनुसार केवल सरकारी प्रतिभूतियों और अनुसूचित वाणिज्य बैंकों में जमाराशियों, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक या ऐसी ही अन्य संस्था जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक समय-समय पर विनिर्दिष्ट करे, की जमाराशियों में भी नियोजित कर सकती हैं/ के रूप में रख सकती है;]

  3. 13 [ कोई प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी भूमि या भवन में निवेश नहीं करेगी,-
    परंतु शर्त यह है कि यह प्रतिबंध प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा अपने उपयोग के लिए भूमि या भवन में निवेश की उस सीमा तक लागू नहीं होंगे जो उसकी स्वाधिकृत निधि के 10% से अनधिक हो,

    बशर्ते यह भी कि प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुर्निर्माण कंपनी द्वारा वित्तीय आस्तियों के पुनर्निर्माण के अपने सामान्य कारोबार के दौरान अपने दावों की पूर्ति के लिए, सरफायसी अधिनियम के उपबंधों के अनुसार, अर्जित भूमि या भवन पर लागू नहीं होगा।"

    बशर्ते यह भी कि किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा वित्तीय आस्तियों के पुनर्निर्माण के अपने सामान्य कारोबार के संबंध में प्रतिभूति हितों को लागू करने के दौरान अर्जित भूमि और/ या भवन ऐसे अर्जन की तारीख से पांच वर्ष या बैंक द्वारा प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की प्राप्य राशियों की वसूली हेतु दी गई विस्तारित अवधि में बेच दी जाएगी।]

11. लेखा वर्ष

प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी प्रत्येक वर्ष 31 मार्च के अनुसार अपना तुलनपत्र और हानि-लाभ खाता तैयार करेगी ।

12.आस्ति वर्गीकरण

(1) वर्गीकरण

(i) प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी सुपरिभाषित ऋण कमजोरियों की मात्रा और वसूली के लिए प्रासंगिक जमानत पर निर्भर रहने की सीमा को ध्यान में रखते हुए 14[अपनी स्वयं की बहियों में धारित]आस्तियों को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत करेगी,अर्थात्

(क) मानक आस्तियां
(ख) अनर्जक आस्तियां

(ii) अनर्जक आस्तियों को आगे निम्नलिखित के रूप में वर्गीकृत किया जायेगा

(क)’अवमानक आस्ति' वह आस्ति है जिसे अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकृत किये जाने की तारीख से 12 महीने से अधिक न हुआ हो;

(ख) ’संदिग्ध आस्ति' वह आस्ति है जिसे अवमानक आस्ति बने 12 महीने से अधिक हुआ हो;

15 [(ग) "हानिगत आस्ति" यदि (ए) परिसंपत्ति 36 महीने से अधिक अवधि के लिए अनर्जक रहती है, (बी) प्रतिभूति के मूल्य में गिरावट आने के कारण या प्रतिभूति के उपलब्ध न होने के कारण उसकी वसूली न होने के वास्तविक खतरे से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई हो; (सी) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी ने या उसके आंतरिक या वाह्य लेखापरीक्षकों द्वारा आस्ति को "हानिगत आस्ति" के रूप में पहचाना गया हो; या (डी) प्रतिभूति रसीद सहित वित्तीय आस्ति पैराग्राफ 7(6)(ii) या 7(6)(iii) के अंतर्गत प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा निर्मित वसूली योजना के अंतर्गत विनिर्दिष्ट कुल समय-सीमा में वसूली न जा सकी हो और प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी या उनके ट्रस्ट के पास लगातार धारण रही हो"।]

(iii) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा आस्ति पुनर्निर्माण के प्रयोजन हेतु अर्जित की गयी आस्तियों को योजना अवधि के दौरान, यदि कोई हो, मानक आस्तियों के रूप में माना जा सकता है।

(2) आस्ति पुनर्निर्माण  पुनः सौदाकृत /पुनर्व्यवस्थित(रिशेड्यूल्ड) आस्तियां

  1. जब किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा मानक आस्ति से संबंधित ब्याज और/या मूलधन के संबंध में करार की शर्तों का फिर से सौदा किया गया हो या उन्हें पुनर्व्यवस्थित किया गया हो (योजना अवधि के दौरान से अलग) तो संबंधित आस्ति को फिर से सौदा किये जाने / पुनर्व्यवस्थित किये जाने की तारीख से मानक आस्ति के रूप में वर्गीकृत किया जायेगा या जैसी भी स्थिति हो उसे संदिग्ध आस्ति के रूप में बने रहने दिया जायेगा ।

  2. उक्त आस्ति को पुनः सौदा की हुई /पुनर्व्यवस्थित शर्तों के अनुसार 12 महीने की अवधि के लिए संतोषजनक कार्यनिष्पादन के बाद ही मानक आस्ति के रूप में उन्नत किया जा सकता है ।

(3) प्रावधानीकरण की अपेक्षाएं

प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी अनर्जक आस्तियों के लिए निम्नानुसार प्रावधान करेगी

आस्ति की श्रेणी

अपेक्षित प्रावधान

अवमानक आस्तियां

बकाया राशि पर 10% का सामान्य प्रावधान

संदिग्ध आस्तियां

(i) उस सीमा तक 100% प्रावधान जिसके लिए आस्ति,  प्रतिभूति के प्राक्कलित वसूली योग्य मूल्य से आवरित नहीं होती है
(ii) उपर्युक्त मद (i) के अलावा, शेष बकाया राशि का 50%

हानिगत आस्तियां

संपूर्ण आस्ति को बट्टे खाते में डाला जायेगा। (यदि किसी कारण से उक्त आस्ति को बहियों में रखा जाता है तो उसके लिए 100% का प्रावधान किया जायेगा )

13. निवेश
सभी निवेशों का मूल्य, लागत या वसूली योग्य मूल्य में से जो भी कम हो उस पर किया जायेगा। जहां पर बाज़ार की दरें उपलब्ध हों वहां बाज़ार मूल्य को वसूली योग्य मूल्य माना जायेगा और ऐसी स्थिति में जब बाज़ार की दरें उपलब्ध नहीं हो तो वसूली योग्य मूल्य उचित मूल्य (फेयर वेल्यू) होगा। परंतु अन्य पंजीकृत प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी में निवेशों को दीर्घकालीन निवेश माना जायेगा और उनका मूल्यन भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान द्वारा जारी किये गये लेखा मानकों और मार्गदर्शी नोटों के अनुसार किया जायेगा ।

14. आय-निर्धारण

(i )आय-निर्धारण मान्यता प्राप्त लेखांकन सिद्धांतों पर आधारित होगा ।

(ii) भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान द्वारा जारी किये गये सभी लेखा मानकों और मार्गदर्शी नोटों का, वहां तक पालन किया जायेगा, जहां तक वे यहां निहित/दिए गए इन मार्गदर्शी सिद्धांतों और निदेशों से असंगत नहीं हों;

(iii) सभी अनर्जक आस्तियों के संबंध में ब्याज और किसी अन्य प्रभार को तभी आय खाते में लिया जायेगा जब वे वास्तव में वसूल हो गये हों। किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा आस्ति के अनर्जक होने से पहले वसूलनीय मानी गयी किन्तु अप्राप्त रही ऐसी आय को अनिर्धारित/अमान्य कर दिया जायेगा ।

15. तुलनपत्र में प्रकटीकरण

(1) कंपनी अधिनियम, 1956 की अनुसूची VI की अपेक्षाओं के अतिरिक्त प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी निम्नलिखित अनुसूचियां तैयार करेगी और उन्हें अपने-अपने तुलनपत्र के साथ अनुबंध के रूप में लगायेंगी

  1. उन बैंकों /वित्तीय संस्थाओं के नाम और पते जिनसे वित्तीय आस्तियां अर्जित की गयी हैं और वे मूल्य जिस पर ऐसी आस्तियां प्रत्येक ऐसे बैंक / वित्तीय संस्था से अर्जित किये गये थे;

  2. विभिन्न वित्तीय आस्तियों का उद्योगवार और प्रवर्तकवार फैलाव (फैलाव कुल आस्तियों के प्रतिशत के रूप में इंगित किया जाना है);

  3. भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान द्वारा जारी किये गये लेखा मानकों और मार्गदर्शी नोटों के अनुसार संबंधित पक्षों का ब्यौरा और उनको देय और उनसे प्राप्य राशियां; और

  4. चार्ट में स्पष्ट रूप से मानक से अनर्जक के रूप में वित्तीय आस्तियों के अंतरण को दर्शाते हुए एक विवरण ।

  5. 16 वित्तीय वर्ष के दौरान अपनी बहियों या ट्रस्ट की बहियों में अर्जित वित्तीय आस्तियों का मूल्य;

  6. वित्तीय वर्ष के दौरान वित्तीय आस्तियों से हुई वसूली का मूल्य;

  7. वित्तीय वर्ष के अंत में वसूली के लिए शेष वित्तीय आस्तियों का मूल्य;

  8. वित्तीय वर्ष के दौरान अंशत: अदा की गई प्रतिभूति रसीदों तथा पूर्णत: अदा हुई  प्रतिभूति रसीदों का मूल्य;

  9. वित्तीय वर्ष के अंत में अदा होने के लिए लंबित प्रतिभूति रसीदों का मूल्य;

  10. पैराग्राफ 7(6)(ii) या 7(6)(iii) के अंतर्गत प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा वित्तीय आस्तियों की वसूली के लिए निर्मित नीति के अंतर्गत वसूली न हो पाने के कारण जिन प्रतिभूति रसीदों की अदायगी नहीं हो सकी, उनका मूल्य;

  11. परिसंपत्तियों के पुनर्निर्माण के (वर्ष-वार) सामान्य कारोबार के अंतर्गत अर्जित भूमि एवं/या भवन का मूल्य।]

(2) (i) वित्तीय विवरणों के तैयार करने और उनके प्रस्तुत करने में अपनायी गयी लेखांकन की नीतियां बैंक द्वारा निर्धारित किये गये लागू विवेकसम्मत मानदंडों के अनुरूप होंगी ।

(ii) जहां पर उक्त लेखांकन नीतियों में से कोई नीति इन निदेशों के अनुरूप न हो तो इन निदेशों से हटने के विवरणों का उसके कारणों सहित और उनके कारण होने वाले वित्तीय प्रभाव का ब्योरा दिया जायेगा । जब ऐसा कोई प्रभाव सुनिश्चित नहीं किया जा सकता हो तो उसके कारणों का उल्लेख करते हुए यह तथ्य उस रूप में प्रकट किया जाना चाहिए ।

(iii) तुलनपत्र या लाभ और हानि लेखे में किसी मद के अनुचित व्यवहार को न तो प्रयोग में लायी गयी लेखांकन नीतियों के प्रकटीकरण से और न तुलनपत्र और लाभ और हानि लेखेगत नोटों में प्रकटीकरण से परिशोधित हो गया माना जा सकता है ।

16. आंतरिक लेखापरीक्षा

प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी अपने द्वारा अपनायी गयी आस्ति अभिग्रहण क्रियाविधियों और आस्ति पुनर्निर्माण के उपायों तथा उससे संबंधित मामलों की आवधिक रूप से जांच और समीक्षा के लिए प्रावधान करते हुए एक कारगर आंतरिक नियंत्रण प्रणाली स्थापित करेगी ।

17. छूट

बैंक को यदि यह आवश्यक प्रतीत होता है कि प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को किसी परेशानी से बचाने के लिए अथवा किसी उचित और पर्याप्त कारण के लिए, सभी प्रतिभूतिकरण कंपनियों या पुनर्निर्माण कंपनियों या किसी विशेष प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी या प्रतिभूतिकरण कंपनियों या पुनर्निर्माण कंपनियों के किसी वर्ग को, ऐसी शर्तों के अधीन जिन्हें वह लगाना चाहे या तो सामान्य रूप से या किसी विशेष अवधि के लिए इन मार्गदर्शी सिद्धांतों और निदेशों के सभी अथवा किसी प्रावधान से छूट प्रदान कर सकता है।

(सी. एस. मूर्ति)
प्रभारी मुख्य महा प्रबंधक


अनुबंध

(1) प्रस्ताव दस्तावेज़ में प्रकटीकरण

क. प्रतिभूति रसीदें जारी करने वाले से संबंधित
  1. पंजीकृत कार्यालय का नाम, स्थान, निगमन की तारीख, प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के कारोबार आरंभ करने की तारीख;

  2. प्रवर्तकों, शेयरधारकों के विवरण और प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के निदेशक मंडल में, उनकी योग्यताओं और अनुभव के साथ निदेशकों की संक्षिप्त रूपरेखा

  3. पिछले तीन वर्षों की अथवा कंपनी का कारोबार आरंभ होने की तारीख में से, जो भी बाद में हो, कंपनी की वित्तीय सूचना का सारांश

  4. पिछले तीन वर्षों अथवा कारोबार आरंभ करने की तारीख से, जो भी बाद में हुआ हो, प्रतिभूतिकरण/आस्ति पुनर्निर्माण के यदि कोई कार्यकलाप किये गये हों तो उनका ब्योरा ।

ख.  प्रस्ताव की शर्तें

  1. प्रस्ताव के उद्देश्य

  2. लिखत का विवरण, इस आशय के एक प्राक्कथन के साथ कि प्रतिभूति रसीदों का हस्तांतरण निर्दिष्ट संस्थागत क्रेताओं तक ही सीमित है, उसके स्वरूप, मूल्यवर्ग, निर्गम मूल्य आदि से संबंधित ब्योरे देते हुए;

  3. आस्तियों के प्रबंधन के लिए की गयी व्यवस्थाएं और प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा ली जाने वाली प्रबंध शुल्क की सीमा;

  4. ब्याज दर /संभावित प्रतिफल;

  5. मूलधन /ब्याज के भुगतान की शर्तें, अवधिपूर्णता/मोचन की तारीख;

  6. शोधन तथा प्रशासन व्यवस्था;

  7. साख निर्धारण का ब्योरा, यदि कोई हो, और उक्त निर्धारण के लिए औचित्य का सारांश;

  8. उन आस्तियों का विवरण जिनका प्रतिभूतिकरण किया जाना है;

  9. आस्ति समूह का भौगोलिक वितरण;

  10. आस्ति समूह की अवशिष्ट अवधिपूर्णता, ब्याज दरें, बकाया मूलधन;

  11. अंतर्निहित प्रतिभूति का स्वरूप और मूल्य, संभावित नकदी प्रवाह, उनकी मात्रा और समय, साख वृद्धि के उपाय

  12. आस्तियों के अभिग्रहण की नीति और अपनायी गयी मूल्यन की पद्धति

  13. बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से आस्तियों के अभिग्रहण की शर्तें

  14. प्रवर्तकों (ओरिजिनेटर) के पास कार्यनिष्पादन के अभिलेख का ब्यौरा

  15. आस्ति समूह में आस्तियों को बदलने की शर्तें

  16. जोखिम फैक्टरों का विवरण, विशेष रूप से भविष्य के नकदी प्रवाहों से संबंधित और उक्त जोखिमों को कम करने के लिए किये गये उपाय

  17. चूक होने की स्थिति में आस्ति पुनर्निर्माण उपायों को लागू करने के लिए की गयी व्यवस्थाएं, यदि कोई हों

  18. न्यासी के कर्तव्य

  19. आस्ति पुनर्निर्माण के  विशिष्ट उपाय, यदि कोई हों, जिनके संबंध में निवेशकों से अनुमोदन लिया जायेगा

  20. विवाद निवारण प्रक्रिया।

(2) तिमाही आधार पर प्रकटीकरण

  1. तिमाही के दौरान हुई कोई चूक, पूर्व भुगतान, हानियां

  2. साख निर्धारण (क्रेडिट रेटिंग) में हुआ परिवर्तन, यदि कोई हो;

  3. वर्तमान आस्ति समूह में नयी आस्ति आने या आस्तियों की वसूली होने से आस्तियों की रूपरेखा(प्रोफाइल) में परिवर्तन

  4. वर्तमान और पिछली तिमाही का संग्रहण(कलेक्शन) सारांश

  5. अर्जन की संभावनाओं को प्रभावित करने वाली कोई अन्य महत्वपूर्ण सूचना जिससे निर्दिष्ट संस्थागत क्रेताओं पर प्रभाव पड़ता हो ।


संशोधनकारी अधिसूचनाओं की सूची

  1. 7 मार्च 2003 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.. 1/सीजीएम(सीएसएम)/2003

  2. 28 अगस्त 2003 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.3/सीजीएम(ओपी)/2003

  3. 29 मार्च 2004 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि. 4/ईडी(एसजी)/2004

  4. 20 सितंबर 2006 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि. 5/सीजीएम(पीके)/2006

  5. 19 अक्तूबर 2006 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि. 6/सीजीएम(पीके)/2006

  6. 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि. नीति प्रभा.(एससी/आरसी)7/सीजीएम(एएसआर) 2010

  7. 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.नीति प्रभा.(एससी/आरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010

  8. 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.नीति प्रभा.(एससी/आरसी)9/सीजीएम(एएसआर)-2010


भारतीय  रिज़र्व बैंक
गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग
केंद्रीय कार्यालय
विश्व व्यापार केंद्र, केंद्र-1
कफ परेड, कोलाबा
मुंबई-400005

प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्संरचना (पुनर्निर्माण) कंपनियों के लिए मार्गदर्शी नोट

वित्तीय आस्तियों के प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण एवं प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002  21 जून 2002 से लागू है। उसमें प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए रिज़र्व बैंक ने प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण कंपनियों के पंजीकरण, उनसे संबंधित अन्य मामलों यथा आस्तियों के अर्जन, आय निर्धारण संबंधी विवेकसम्मत मानदण्ड, आस्तियों के वर्गीकरण, प्रावधानीकरण, लेखा-मानक, पूंजी पर्याप्तता, आस्ति पुनर्निर्माण के लिए उपाय, निधियों के नियोजन के संबंध में मार्गदर्शी सिद्धांत एवं निदेश बनाए हैं।

2. रिज़र्व बैंक ने एतदर्थ अनुदेशों का एक सेट विकसित किया है जिनका अनुपालन सभी प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों को करना है ताकि आस्ति पुनर्निर्माण की प्रक्रिया सुगमता एवं अच्छी तरह (सुदृढ़ता के साथ) पूरी हो सके। इसके अलावा, विभिन्न मामलों पर जारी मार्गदर्शी सिद्धांतों के आधार पर बैंक ने मार्गदर्शी नोट तैयार किया है जिनके सांरांश प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों के मार्गदर्शन के लिए नीचे दिये जा रहे हैं।  इन नोटों में प्रयुक्त शब्दों एवं अभिव्यक्तियों के वही अर्थ हैं जो अधिनियम में हैं।

(1)  वित्तीय आस्तियों का अर्जन

  1. प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी से अपेक्षित है कि वह पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रापित की तारीख से 90 दिनों के अंदर आस्ति अर्जन नीति विकसित/तैयार करे जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह उल्लेख होगा कि लेन-देन का तरीका पारदर्शी होगा एवं भली-भांति सूचित (वेल इनफार्म्ड) बाजार में वे उचित मूल्य पर होंगे, साथ ही पर्याप्त सावधानी बरतते समय लेन-देन का कार्य निष्पक्ष/निरपेक्ष (on arms length basis) होगा।

  2. किसी बैंक/वित्तीय संस्था की वित्तीय आस्तियों के अर्जित किए जाने वाले शेयरों को, उल्लिखित अधिनियम के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए, उचित एवं निष्पक्ष तरीके से निकाला (वर्क आउट किया) जाएगा जिसमें किसी उधारकर्ता पर बकाया राशि के 75% से अन्यून राशि के धारक रक्षित लेनदारों (सिक्योर्ड क्रेडिटर्स) की सहमति लेना आवश्यक है।

  3. सरल एवं त्वरित वसूली के लिए, विभन्न बैंकों /वित्तीय संस्थाओं के प्रति ऋणी किसी कर्जदार से मिलने वाली सभी आस्तियों के अर्जन पर विचार किया जाए। इसी प्रकार उसी संपार्श्विक प्रतिभूति से संबंध रखनेवाली वित्तीय आस्तियों के अर्जन पर विचार किया जाए ताकि तुलनात्मक रूप से त्वरितता एवं सुगमता से वसूली हो सके।

  4. अर्जित की जानेवाली आस्तियों की सूची में निधि गैर निधि आधार वाली आस्तियों, दोनों को शामिल किया जाए। मूलकर्ता (ओरिजनेटर) की बहियों में मानक रही आस्तियों, जिनकी वसूली बाद में मुश्किल हो सकती है, को भी अर्जित किया जा सकता है।

  5. किसी बैंक/वित्तीय संस्था की निधिक आस्तियों के अर्जन में आगे उधार देने के वायदे को टेकओवर करते समय शामिल किया जाए। गैर निधिक लेन-देनगत प्रतिभूति हित अर्जन की शर्त में निधियों की मांग उठने तक संबंधित वायदे बैंक/वित्तीय संस्था के पास उपलब्ध रहेंगे।

  6. जो ऋण उचित दस्तावेजों से समर्थित हों, उनसे बचना (दूर रहना) चाहिए।

  7. जहाँ तक संभव हो एक ही प्रकार की प्रोफाइल की आस्तियों के मूल्यांकन की प्रक्रिया समान हो एवं यह सुनिश्चत किया जाए कि वित्तीय आस्तियों का मूल्यांकन वैज्ञानिक एवं निष्पक्ष तरीके से किया जाए। आस्तियों के मूल्य के आधार पर उनका मूल्यांकन आंतरिक रूप में (स्वत:)/बाहर की एजेंसी से करवा लेना चाहिए। आदर्श स्थिति होगी यदि मूल्यांकन उस समिति से करवाया जाए जिसे आस्तियों को अर्जित करने के लिए अनुमोदन देने का प्राधिकार दिया गया है जो निदेशक बोर्ड द्वारा विनिर्दष्ट अर्जन नीति के तहत इस कार्य को अंजाम देगी।

  8. प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा अर्जित आस्तियाँ प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा बनाए गए न्यास (ट्रस्ट) को उसी मूल्य पर अंतरित की जाएं जिस मूल्य पर वे आस्तियों के मूलकर्ता (ओरिजिनेटर) से ली गई हों। तथापि, प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा बनाए गए न्यास (ट्रस्ट) की बहियों में बैंकों/वित्तीय संस्थाओं से अर्जित आस्तियों को सीधे लेने पर प्रतिबंध नहीं है।

  9. प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा अर्जित आस्तियाँ सामान्यत: उस अवधि के भीतर वसूल ली जानी चाहिए जो अर्जन की तारीख से किसी भी मामले में पांच वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। तथापि, यदि अर्जन की तारीख से पांच वर्ष की समाप्ति के अंत तक आस्तियों की वसूली शेष रहती है, तो प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी का निदेशक बोर्ड इस वसूली अवधि को, कतिपय शर्तों के तहत, संबंधित वित्तीय आस्तियों के अर्जन की मूल तारीख से कुल आठ वर्षं से अनधिक अवधि के लिए बढ़ा सकता है।

  10. कोई भी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी किसी अन्य प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी से वित्तीय आस्तियाँ अर्जित नहीं करेगी क्योंकि प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ या पुनर्निर्माण कंपनियाँ सरफायसी अधिनियम में "वित्तीय संस्था" की दी गई परिभाषा में शामिल नहीं हैं।

 (2).प्रतिभूति रसीदें जारी करना

  1. प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी प्रतिभूति रसीदें जारी करने के ही प्रयोजन से स्थापित ट्रस्ट के माध्यम से उन्हें जारी करेगी। ऐसे ट्रस्ट की न्यासधारिता प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी में ही निहित होगी।

  2. ट्रस्ट प्रतिभूति रसीदें अर्हता प्राप्त संस्थागत क्रेताओं को ही जारी करेगा और ये केवल अन्य अर्हता प्राप्त संस्थागत क्रेताओं के पक्ष में ही अंतरणीय/समनुदेशनीय होंगी

  3. प्रतिभूति रसीदें जारी करने की इच्छुक प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी प्रस्ताव दस्तावेज में प्रकटीकरण करेगी जिसे बैंक द्वारा, समय-समय पर, विनिर्दिष्ट किया गया हो।

  4. प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी प्रतिभूतिकरण के प्रयोजन से स्थापित ट्रस्ट द्वारा प्रत्येक योजना के तहत जारी प्रतिभूति रसीदों में न्यूनतम 5% राशि का निवेश करेगी।

  5. प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी तथा पुनर्निर्माण कंपनी प्रतिभूतिकरण कंपनी/पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा प्रत्येक योजना के अंतर्गत जारी प्रतिभूति रसीदों के न्यूनतम 5% प्रतिभूति रसीदें सतत आधार पर धारण किए रहेंगी जब तक कि ऐसी योजना विशेष के अंतर्गत जारी सभी प्रतिभूति रसीदों की अदायगी नहीं हो जाती है।

  6. अर्हता प्राप्त संस्थागत क्रेता संबंधित आस्ति की वसूली के लिए लागू अवधि अर्थात 5 वर्ष या विस्तारित 8 वर्ष की समाप्ति पर ही सरफायसी अधिनियम की धारा 7(3) के उपबंधों का अवलंबन लेने के हकदार होंगे।

  7. प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी से अपेक्षित है कि वह अपने द्वारा जारी प्रतिभूति रसीदों के निवल आस्ति मूल्य की घोषणा आवधिक अंतराल पर करे ताकि अर्हता प्राप्त संस्थागत क्रेता प्रतिभूति रसीदों में किए गए अपने निवेश का मूल्यन कर सकें / मूल्य को आंक सकें। निवल आस्ति मूल्य निकालने/आंकने के लिए, यह अपेक्षित है कि प्रतिभूति रसीदों को "वसूली रेटिंग स्केल" पर रेट किया जाए तथा रेटिंग एजेंसियों से अपेक्षित है कि वे रेटिंग निर्धारण की तार्किकता/संगति का खुलासा करें।

(3). विवेकपूर्ण/सम्मत मानदण्डों की प्रयोज्यता

  1. प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी से अपेक्षित है कि वह सतत आधार पर पूंजी   पर्याप्तता अनुपात बनाए रखे जो उसकी कुल जोखिम भारित आस्तियों के 15% से कम नहीं होगी।

  2. प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी से अपेक्षित है कि वह आस्तियों के बकाया रहने की अवधि तथा उनकी वसूली पर असर डालने वाली अन्य कमजोरियों को मद्देनजर रखते हुए आस्तियों को मानक एवं अनर्जक वर्ग में वर्गीकृ त करे।  ऐसी कंपनियों से यह भी अपेक्षित है कि अनर्जक आस्तियों के बारे में, बैंक द्वारा समय-समय पर विनिर्दिष्ट, प्रावधान भी करें। वर्गीकरण/प्रावधानीकरण मानदण्ड उन आस्तियों के लिए लागू होंगे जो प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की बहियों में धारित हों।

  3. "हानिगत आस्तियों" में प्रतिभूति रसीदों सहित प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा धारण रखी गई वे वित्तीय आस्तियाँ शामिल होंगी जो कुल वसूली अवधि 5 वर्ष या 8 वर्ष, जैसा भी मामला हो, में वसूल न की जा सकी हों  ।

  4. कोई प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी अन्य प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की ईक्विटी में निवेश कर सकती है या केवल अपनी बेशी निधियों का निवेश सरकारी प्रतिभूतियों या अनुसूचित वाणिज्य बैंकों/लघु उद्योग वाकस बैंक(सिडबी)/राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड)/ऐसी कोई कंपनी(इंटिटी), जिसे रिज़र्व बैंक समय-समय पर एतदर्थ विनिर्दिष्ट करे, की जमाराशियों में कर सकती है।

  5. कोई भी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी अपने उपयोग के लिए भूमि एवं भवन में अपनी स्वाधिकृत निधियों के 10% तक निवेश करने से इतर निवेश नहीं करेगी। तथापि, यदि प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को पुनर्निर्माण के सामान्य कारोबार के दौरान प्रतिभूति हित के प्रवर्तन से यदि कोई भूमि अर्जित होती/या भवन अर्जित होता है, तो उसके अर्जन की तारीख से 5 वर्ष या बैंक द्वारा दी गई विस्तारित अवधि में उसे बेचना होगा।

  6. प्रतिभूतिकरण कंपनियों एवं पुनर्निर्माण कंपनियों के आय निर्धारण मान्यता प्राप्त लेखा सिद्धांतों तथा भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान द्वारा जारी सभी लेखा-मानकों एवं मार्गदर्शी नोटों पर वहाँ तक आधारित होंगे जहाँ तक वे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी मार्गदर्शी सिद्धांतों एवं निदेशों से असंगत न हों।

(4) निदेशक बोर्ड द्वारा नीतिगत दस्तावेजों की मंजूरी

प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी आस्तियों के अर्जन, उधारकर्ताओं के ऋणों की रिशिड्यूलिंग, उधारकर्ता द्वारा देय ऋण/णों का निपटान/अदायगी, प्रतिभूति रसीदें जारी करने तथा बेशी निधियों के नियोजन से संबंधित नीतिगत मार्गदर्शी सिद्धांत अपने निदेशक बोर्ड की मंजूरी से तैयार करेगी। प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को पंजीकरण प्रमाणपत्र मंजूर होने की तारीख से 90 दिनों के भीतर उसके द्वारा वित्तीय आस्तियों के अर्जन से संबंधित नीति तैयार/विकसित कर ली जानी चाहिए। प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी आस्तियों के अर्जन, कीमत निर्धारण, आदि के मामले में निदेशक बोर्ड द्वारा किए गए विनिर्देशन से भिन्न रुख अख्तियार करने के मामलों के ब्योरों का कारण सहित अभिलेख रखेंगी।

(5) विनियामक रिपोर्टिंग

  1. प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी से अपेक्षित है कि वह संबंधित तिमाही की समाप्ति से 15 दिनों के भीतर तिमाही विवरण अर्थात एससी/आरसी 1 तथा एससीआरसी 2 प्रस्तुत करे जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ स्वाधिकृत निधियों की स्थिति, अर्जित आस्तियों का मूल्य, जारी/बकाया प्रतिभूति रसीदें, प्रतिभूति रसीदों में विभिन्न अर्हता प्राप्त संस्थागत क्रे ताओं द्वारा किए गए निवेश, बैंकों/वित्तीय संस्थाओं की सूची जिनसे प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी ने आस्तियाँ अर्जित की हों, का उल्लेख हो।

  2. प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी से अपेक्षित है कि वह अपने लेखापरीक्षित तुलनपत्र और निदेशकों/लेखापरीक्षक की रिपोर्ट की एक-एक प्रति, कंपनी की उस सामान्य बैठक जिसमें उसके लेखापरीक्षित लेखों को अंगीकार किया जाता है, के आयोजित होने से एक माह के भीतर बैंक को प्रस्तुत करे ।

(6) आंतरिक लेखापरीक्षा

यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ या पुनर्निर्माण कंपनियाँ स्वस्थ आधार पर कार्य कर रही हैं , ऐसी कंपनियों के परिचालन तथा गतिविधियाँ आंतरिक/वाह्य एजेंसियों की आवधिक जांच-पड़ताल के अधीन होने चाहिए।

(7) लेखा वर्ष /तुलनपत्र में प्रकटीकरण

प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी 31 मार्च को समाप्त हरेक वर्ष के लिए अपना तुलनपत्र तथा लाभ-हानि लेखे तैयार करेगी। कंपनी अधिनियम, 1956 की अनुसूची VI की अपेक्षा के अनुपालन के अलावा प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी 23 अप्रैल 2003 की अधिसूचना सं. 2 के पैरा 15 में सूचीबद्ध विभिन्न मुद्दों पर अतिरिक्त प्रकटीकरण भी करेगी।


1.21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं: गैबैंपवि.नीप्र . (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा प्रतिस्थापित.

2 7 मार्च 2003 कीअधिसूचना सं: गैबैंपवि.1/सीजीएम(सीएसएम) -2003 द्वारा शामिल.

3 19 अक्तूबर 2006 की अशोसूचना सं: गैबैंपवि.6/सीजीएम (पीके) 2006 द्वारा जोडा गया.

4 28 अगस्त 2003 की अधिसूचना सं: गैबैंपवि.3/सीजीएम (ओपीए) -2003 द्वारा शामिल.

5 29 मार्च 2004 की अधिसूचना सं: गैबैंपवि.4/ईडी (एसजी)-2006 द्वारा जोडा गया.

6 20 सितम्बर 2006 की अधिसूचना सं: गैबैंपवि.5/सीजीएम(पीके)/2006 द्वारा प्रतिस्थापित.

7 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)9/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया.

8 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया.

9 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)7/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया

10 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया

11 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया

12 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया

13 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010द्वाराजोडागया

14 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया

15 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010द्वाराजोडागया

16 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि.नीप्र (एससीआरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोडा गया

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