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प्राधिकृत व्यापारियों द्वारा समुद्रपारीय विदेशी मुद्रा उधार - औचित्यस्थापन और निगरानी

भारिबैंक/2004/113
एपी(डीआईआर सिरीज़) परिपत्र सं. 81

24 मार्च 2004

सेवा में

विदेशी मुद्रा के सभी प्राधिकृत व्यापारी

महोदया/महोदय,

प्राधिकृत व्यापारियों द्वारा समुद्रपारीय विदेशी
मुद्रा उधार - औचित्यस्थापन और निगरानी

प्राधिकृत व्यापारियों को मई 3, 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 3/2000-आरबी के विनियम 4(2) में दी गई परिस्थितियों और उसमें उल्लिखित शर्तों के अधीन विदेशी मुद्रा में उधार लेने की अनुमति दी गई है।

2. तदनुसार, जोखिम प्रबंध और अंतर-बैंक लेनदेन पर जुलाई 1, 2003 के भारिबैं मास्टर परिपत्र के पैराग्राफसं.ग.5(i) के अनुसार, प्राधिकृत व्यापारी अपने प्रधान कार्यालयों, विदेशी शाखाओं और संपर्ककर्ताओं से अपनी अक्षत स्तर-I पूंजी के 25 प्रतिशत अथवा 100000 अमरीकी डॉलर (अथवा इसके समकक्ष) तक, जो भी अधिक हो, ऋण/ ओवरड्राफट ले सकते हैं। उपर्युक्त परिपत्र के पैराग्राफ सं.ग.5(ii) के अनुसार कतिपय शर्तों के अधीन प्राधिकृत व्यापारी भारत में अपने रुपया संसाधनों की पुन: पूर्ति के लिए ही उपर्युक्त निर्यात ऋण सीमाओं से अधिक ऋण ले सकते हैं। इसके अलावा, विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण के संबंध में जुलाई 1, 2003 के औद्योगिक और निर्यात ऋण विभाग के मास्टर परिपत्र के अनुसार और उसमें निर्धारित शर्तों के अधीन प्राधिकृत व्यापारी अपने ग्राहकों को विदेशी मुद्रा में पोतलदान पूर्व अथवा पोतलदानोत्तर ऋण प्रदान करने के लिए भारत से बाहर स्थित किसी बैंक या वित्तीय संस्था से ऋण सहायता के अंतर्गत भी उधार ले सकते हैं।

3. इसके अलावे, प्राधिकृत व्यापारी भारतीय रिज़र्व बैंक के विशिष्ट अनुमोदन पर बाह्य वाणिज्यिक उधार नीति के अंतर्गत विशिष्ट प्रयोजनों के लिए बाह्य वाणिज्यिक उधार भी ले सकते हैं।

4. अब विदेशी उधारों के लिए वर्तमान सुविधाओं को औचित्यपूर्ण बनाने तथा सभी प्राधिकृत व्यापारियों के लिए एक निगरानी और सूचना प्रणाली शुरू करने का निर्णय लिय गया है। तदनुसार, जुलाई 1, 2003 के मास्टर परिपत्र के र्पराग्राफ सं.ग.5(i) और (ii) के अंतर्गत उपलब्ध सुविधाओं को अब एक एकल सुविधा द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा जिसके अनुसार पांच दिनों के अंदर समायोजित न होने वाले नॉॉााट खाते में ओवरड्राफट और वर्तमान बाह्य वाणिज्यिक उधार सहित सभी संवर्ग के समुद्रपीय विदेशी मुद्रा उधार, पिछले तिमाही के अंत की स्थिति के अनुसार अपने अक्षत स्तर-I पूंजी के 25 प्रतिशत अथवा 100000 अमरीकी डॉलर (अथवा इसके समकक्ष), जो भी अधिक हो, से अनधिक होंगे। इस ऋण सीमा से अधिक कोई भी नया उधार भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्वानुमोदन से ही लिया जाएगा। नए बाह्य वाणिज्यिक उधार के लिए आवेदन बाह्य वाणिज्यिक उधार नीति के अनुसार किए जाएंगे, जुलाई 31, 2004 का ए.पी. (डीआइआरसिरीज़) परिपत्र सं. 60 देखें।

5. निम्नलिखित लेनदेन, अक्षत स्तर-I पूंजी के 25 प्रतिशत अथवा 100000 अमरीकी डॉलर (अथवा इसके समकक्ष), की सीमा कें बाहर, जो भी अधिक हो, होते रहेंगे।

(i) विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण के संगंध में जुलाई 1, 2003 के औद्योगिक और निर्यात ऋण विभाग के मास्टर परिपत्र में निर्धारित शर्तो के अधीन निर्यात ऋण वित्तपोषण के लिए प्राधिकृत व्यापारियों द्वारा विदेशी मुद्रा उधार

(ii) विदेशी बैंको के प्रधान कार्यालयों द्वारा भारत स्थित उनकी शाखाओं के पास स्तर II पूंजी के रूप में रखे गए गौण ऋण

6. सभी प्राधिकृत व्यापारियों को सूचित किया जाता है कि वे मार्च 20, 2004 की स्थिति के अनुसार सभी संवर्गो के अंतर्गत समुद्रपारीय विदेशी मुद्रा उधार के अपने कुल बकाया की सूचना संलग्न फार्मेट के अनुसार (संलग्नक) 31 मार्च, 2004 तक मुख्य महाप्रबंधक, विदेशी मुद्रा विभाग, (विदेशी मुद्रा बाजार प्रभाग, अमर भवन), केद्रीय कार्यालय, भारतीय रिज़र्व बैंक कों दे। रिपोर्ट एक्ज़ेल फार्मेट में को भेजा जाए। इसी तरह की रिपोर्ट प्रत्येक महीने के अंतिम शुक्रवार को प्रस्तुत की जाए ताकि वह अनुवर्ती माह के दर तारीख तक भारतीय रिज़र्व बैंक को पहुंच जाए।

7. विदेशी मुद्रा प्रबंध विनियमावली, 2000 में आवश्यक संशोधन अलग से जारी किए जाएंगे।

8. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं।

भवदीय

ग्रेस कोशी
मुख्य महाप्रबंधक

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