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समुद्रपारीय निवेश : उदारीकरण/युक्तिकरण

–्र॰ख्र्ड्ढ–ख्र्×न्न्/2007-08/337

आरबीआइ/2007-08/352
ए.पी.(डीआइआर सिरीज)परिपत्र सं.48

3 जून 2008

सेवा में

सभी प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक
महोदया/महोदय

समुद्रपारीय निवेश : उदारीकरण/युक्तिकरण

प्राधिकृत व्यापारी बैंकों का ध्यान समुद्रपारीय निवेश पर 18 मई 2007 , 01 जून 2007 और 26 सितंबर 2007 के क्रमश: ए.पी.(डीआईआर सिरीज)परिपत्र सं.59 ,ए.पी.(डीआईआर सिरीज)परिपत्र सं.68 और ए.पी.(डीआईआर सिरीज)परिपत्र सं.11 तथा समय-समय पर यथासंशोधित जुलाई 7, 2004 की अधिसूचना सं.फेमा.120/आरबी-2004 की ओर आकर्षित किया जाता है। जैसा कि वर्ष 2008-09 के वार्षिक नीति विवरण (पैरा 131तथा 132) में घोषणा की गई है, समुद्रपारीय निवेशों को नियंत्रित करने वाले विनियमों को निम्नवत् और अधिक उदार बनाया गया है भारत स्थित कंपनियों को और अधिक परिचालन लोचकता प्रदान करने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि विभिन्न विनियमों को निम्नानुसार और अधिक उदार बनाया है :

2. ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधन क्षेत्रों में समुद्रपारीय निवेश

26 सितंबर 2007 के ए.पी.(डीआईआर सिरीज)परिपत्र सं.11 के अनुसार भारतीय पार्टी को स्वत: अनुमोदित मार्ग के तहत विदेश स्थित संयुक्त उद्यमों /पूर्ण स्वामित्ववाली सहायक कंपनी में अंतिम लेखा परीक्षण की तारीख में तुलनपत्र की निवल मालियत के 400 प्रतिशत तक के निवेश की अनुमति है। समुद्रपारीय निवेश में भारतीय पार्टियों को और अधिक लचीलापन प्रदान करने के लिए भारत सरकार के परामर्श से यह निर्णय लिया गया है कि भारतीय कंपनियों को अब ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधन क्षेत्रों जैसे कि ऑयल, गैस, कोयला तथा खनिज कच्ची धातुओं आदि में अंतिम लेखापरीक्षण की तारीख में तुलनपत्र की निवल मालियत के 400 प्रतिशत तक के समुद्रपारीय निवेश की अनुमति दी जाए । निवल मालियत की 400 प्रतिशत से ऊपर की राशि का निवेश भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व अनुमोदन से किया जा सकेगा । अत: प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक, इस प्रकार के मामले 01 जून 2007 के ए.पी.(डीआईआर सिरीज)परिपत्र सं.68 उल्लिखित प्रक्रिया के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रेषित करें ।

3. ऑयल सेक्टर में अनिगमित इकाइयों में समुद्रपारीय निवेश

(I) 18 मई 2007 , के ए.पी.(डीआईआर सिरीज)परिपत्र सं.59 के प्रावधानों के अनुसार, भारत सरकार द्वारा विधिवत् अनुमोदित नवरत्न पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (पीएसयू) को बिना किसी सीमा के ऑयल सेक्टर में स्वत: अनुमोदित मार्ग के तहत अनिगमित इकाइयों में समुद्रपारीय निवेश की अनुमति दी गई है। यह सुविधा अब ओएनजीसी विदेश लिमिटेड(ओवीएल) तथा ऑयल इंडिया लिमिटेड(ओआईएल) को भी प्रदान कर दी गयी है ।

(II) इस प्रक्रिया को और अधिक उदार बनाने के आशय से भारत सरकार के परामर्श से अब यह निर्णय लिया गया है कि अन्य भारतीय कंपनियों को भी अब ऑयल सेक्टर में अनिगमित इकाइयों में समुद्रपारीय निवेश अनुमति दी जाए । अत: प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक, यह सुनिश्चित करने के बाद कि प्रस्ताव सक्षम अधिकारी द्वारा अनुमोदित है और ऐसे निवेश के समर्थन में बोर्ड के संकल्प की प्रमाणित प्रति संलग्न की गयी है, भारतीय कंपनियों को उनकी निवल मालियत के 400 प्रतिशत तक के प्रेषण की अनुमति दे सकते हैं। नवरत्न पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (पीएसयू), ओएनजीसी विदेश लिमिटेड(ओवीएल) तथा ऑयल इंडिया लिमिटेड(ओआईएल) के अलावा अनिगमित इकाइयों में अंतिम लेखापरीक्षण की तारीख के अनुसार तुलनपत्र की निवल मालियत के 400 प्रतिशत से अधकि के निवेश की अनुमति हेतु अन्य भारतीय कंपनियों के जिनमे कि ऐसे निवेश सक्षम अधिकारी द्वारा अनुमोदित है , प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक, 01 जून 2007 के ए.पी.(डीआईआर सिरीज)परिपत्र सं.68 में उल्लिखित प्रक्रिया के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक को पूर्व अनुमोदन हेतु प्रेषित करें ।

(III) अनिगमित इकाइयों में किये जाने वाले सभी समुद्रपारीय निवेशों के लिए (I)समय-समय पर यथासंशोधित 7 जुलाई 2004 की अधिसूचना सं.फेमा.120/आरबी-2004 डविदेशी मुद्रा प्रबंध अंतरण अथवा प्रतिभूति का निर्गम( संशोधन) विनियमावली 2004 की विनियम 15 (iii) में निर्धारित प्रक्रिया की रिपोर्टिंग अपेक्षाओं का पालन करना जरूरी होगा । इसके अतिरिक्त, नवरत्न पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (पीएसयू) तथा अन्य इकाइयों द्वारा अनिगमित इकाइयों में किये जाने वाले ऐसे सभी समुद्रपारीय निवेशों के लिए वार्षिक कार्यनिष्पादन रिपोर्ट सहित फार्म ओडीआइ में रिपोर्ट करना जरूरी होगा ।[ संदर्भ : 01 जून 2007 के ए.पी.(डीआईआर सिरीज)परिपत्र सं.68]

4. निर्यातों का पूँजीकरण

समय-समय पर यथासंशोधित 7 जुलाई 2004 की अधिसूचना सं.फेमा.120/आरबी-2004 डविदेशी मुद्रा प्रबंध (अंतरण अथवा किसी विदेशी प्रतिभूति का निर्गम) विनियमावली 2004 के विनियम 15 (i) के प्रावधानों के अनुसार, विनियमावली के अनुरूप विदेशी इकाई से भारतीय पार्टी को देय विदेशी इकाई को प्लांट, मशीनरी, उपकरण,और अन्य माल/ सॉफ्टवेयर के निर्यात के भुगतान की पूरी / आंशिक राशि होने के कारण विदेश में पूँजीकरण के जरिये सीधे निवेश करने वाली भारतीय पार्टी को उन मामलों में जहाँ कि निर्यात की आवक राशि की वसूली निर्यात की तारीख से छ: माह से अधिक समय तक बकाया रही हो , भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना अपेक्षित है । इस व्यवस्था और विदेशी व्यापार नीति समरूपता के उद्देशय से इसके बाद से भारतीय पार्टी भारतीय रिज़र्व बैंक के पास केवल उन्हीं मामलों के लिए आयें जिनमें कि निर्यात-आवक राशि की वसूली निर्धारित अवधि से अधिक समय तक बकाया रहती है।

5. 7 जुलाई 2004 की अधिसूचना सं.फेमा.120/आरबी-2004 डविदेशी मुद्रा प्रबंध (अंतरण अथवा किसी विदेशी प्रतिभूति का निर्गम) विनियमावली 2004 में आवश्यक संशोधन अलग से जारी किए जा रहे हैं।

6. प्राधिकृत व्यापारी बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित ग्राहकों को अवगत करा दें।

7. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं और अन्य किसी कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/ अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर है।

भवदीय

(सलीम गंगाधरन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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