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राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में चेक ट्रंकेशन प्रणाली (सीटीएस) के कार्यान्‍वयन हेतु पायलट परियोजना

आरबीआई/2005-2006/152
संदर्भ.डीपीएसएस(केका) सं.298/01.01.18/2005-2006

1 सितम्‍बर 2005

अध्‍यक्ष / मुख्‍य कार्यपालक अधिकारी
सभी अनुसूचित बैंक

महोदया / महोदया

राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में चेक ट्रंकेशन प्रणाली (सीटीएस) के कार्यान्‍वयन हेतु पायलट परियोजना

आप जानते ही हैं कि राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में चेक ट्रंकेशन प्रणाली की पायलट परियोजना वर्ष 2006 की प्रथम तिमाही के दौरान को व्‍यवहार में लिया जाएगा। सदस्‍य बैंकों को सूचित किया जाता है कि इस परियोजना की प्रगति के साथ बने रहने के लिए तैयार रहें।

2. नई दिल्‍ली में चेक ट्रन्‍केशन की पायलट परियोजना में सहभागी बैंक यह नोट करें कि आवक और जावक क्‍लीयरिंग के लिए वर्तमान पेपर आधारित क्‍लीयरिंग के स्‍थान पर प्रतिकृति और डाटा क्‍लीयरिंग होगी और चेक वापसी की मदों की प्रोसेसिंग के लिए केवल डाटा की क्‍लीरिंग की जाएगी। चेक डाटा और प्रतिकृतियों को जावक और आवक मदों के लिए प्रतिकृति आर्काइव में स्‍टोर किया जाएगा। क्‍लीयरिंग हाउस के आर्काइव में क्‍लीयरिंग की सभी इमेजों और डाटा को आठ वर्ष तक रखेंगे। इस बारे में आगामी अनुदेशों तक कागजी लिखतों को आठ साल की अवधि तक रखा जाना अपेक्षित है।

3. हम नई दिल्ली में नियमित अंतरालों पर बैंकों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे हैं और उन्हें इस परियोजना की गतिविधियों और उनके द्वारा उठाए जाने वाले प्रारंभिक कदमों से अवगत करा रहे हैं। बैंकों से मिले फीडबैक से यह संकेत मिलता है कि अधिकांश बैंकों ने 1 जुलाई 2004 के हमारे परिपत्र आरबीआई/2004-2005/28 संदर्भ डीआईटी.केका.सं.1/09.63.36/2004-05 में बताए गए उपाय नहीं किए हैं।

4. जिन समस्‍याओं पर तत्‍काल कार्रवाई अपेक्षित है वे निम्‍नानुसार हैं :

क) सभी बैंक जो नई दिल्‍ली बैंकर्स क्‍लीयरिंग हाउस के सदस्‍य हैं, उनसे अपेक्षित है कि चेकों को जावक प्रस्‍तुतियों के लिए ‘प्‍वाइंट ऑफ ट्रन्‍केशन’ अर्थात क्‍लीयरिंग चक्र में स्‍थल को अंतिम रूप प्रदान करें, बैंकों के भीरत चेकों का भौतिक आवागमन समाप्‍त हो जाएगा। बैंक भी अपने-अपने चेकों को शाखाओं, एटीएूम, ग्राहक लोकेशनों, केन्‍द्रीय लोकेशनों या क्‍लस्‍टरों और प्रतिकृति सर्विस ब्‍यूरो पर ट्रन्‍केट करना चुन सकते हैं। यदि अपेक्षित हो तो कुछ बैंक हाइब्रिड मॉडल का विकल्‍प ले सकते हैं। इससे इस सहभागिता के लिए जरूरी स्‍कैनरों और नेटवर्क के प्रकार के बारे में निर्णय लेने में सहायता मिलेगी।

ख) इसी प्रकार, क्‍लीयरिंग हाउस से प्राप्‍त प्रतिकृतियों और माइकर लाइनों के आधार पर लिखतों के आवक भुगतानों हेतु प्रोसेसिंग प्‍वाइंट को अंतिम रूप देने की जरूरत होगी, अर्थात क्‍या बैंक आवक मदों की केन्‍द्रीकृत भुगतान प्रोसेसिंग का प्रयोग करेंगे या विकेन्‍द्रीकृत भुगतान प्रोसेसिंग का या फिर मिश्रित तरीका अपनाएंगे।

ग) बैंकों से अपेक्षित है कि वे क्‍लीयरिंग में प्रतिकृति प्रस्‍तुत करने और भुगतान प्रोसेसिंग हेतु प्रतिकृति को स्‍वीकार करने के लिए अपने विद्यमान आंतरिक बैंकिंग और क्‍लीयरिंग मैनुअलों में संशोधन करें। यह देखते हुए कि भुगतान प्रोसेसिंग का कार्य किसी भी बैंकिंग संस्‍था के लिए संवदेनशील होता है अत: प्रधान कार्यालय/नियंत्रक कार्यालय से शाखाओं को नीतिगत अनुदेश/दिशानिदेश दिए जाने की जरूरत है।

घ) बैंकों से यह संस्‍तुति की जाती है कि चेक ट्रन्‍केशन क्‍लीयरिंग प्रणाली में प्रोसेसिंग को सरल और उन्‍नत बनाने के लिए नई प्रोसेसिंग युक्तियों का प्रयोग किया जाए। बैंक स्‍वचालित या मैनुअल/नियम आधारित हस्‍ताक्षरण सत्‍यापन युक्तियों, धोखाधड़ी पकड़ने वाली युक्तियों, लेखा निगरानी युक्तियों, कर्टसी धनराशि अभिज्ञान (सीएआर) और विधिक धनराशि अभिज्ञान (एलएआर) युक्तियों, आदि का प्रयोग करने पर निर्णय ले सकते हैं।

ङ) इलेक्‍ट्रॉनिक रूप में आवक और जावक प्रतिकृतियों के भंडारण और इसकी पुन: प्राप्ति, अलग-अलग बैंकों की प्रतिरक्षण नीति के आधार पर इलेक्‍ट्रॉनिक रूप में ऑनलाइन जावक प्रस्‍तुतियों और आवक लिखतों के लिए प्रतिरक्षण अवधि (बैंक अपनी कारोबारी जरूरतों के आधार पर आवक और जावक के लिए ऑनलाइन प्रतिरक्षण अवधि के बारे में निर्णय लें) और विधिक अपेक्षाओं के अनुसार उपयुक्‍त मीडिया पर ऑफलाइन प्रतिरक्षण, क्‍लीयरिंग हाउस और बैंकों के अपने आंतरिक नेटवर्क पर इन प्रतिकृतियों और माइकर डाटा के प्रेषण हेतु नेटवर्किंग अवसंरचना के बारे में बैंकों को निर्णय करना होगा।

च) जावक और आवक प्रोसेसिंग के लिए उपयोग की जाने वाली प्रणालियों का आकार और विन्‍यास बैंकों की कारोबारी अपेक्षाओं का कार्य है और इसका आकलन बैंक की अपनी आवक और जावक लिखतों की मात्रा, बैंक द्वारा ऐसी आवक और जावक प्रतिकृतियों और माइकर डाटा की प्रतिधारण अवधि और चेकों की प्रतिकृतियों के आकार के आधार पर किया जाए। प्रतिकृतियों के तीन निर्धारित आकारों और प्रत्‍येक प्रतिकृति में अलग-अलग बैंकों के स्रोत लिखत के अनुसार अंतर हो सकता है हालांकि आकार निर्धारण के प्रयोजन से हस्‍ताक्षर सहित तीन प्रकार की निर्धारित प्रतिकृतियों के आकार के लिए बैंक अनवरत रूप से 75 (पचहत्तर) केबी को चुन सकते हैं। ट्रन्‍केशन स्‍थल और प्रतिधारण अवधि का प्रभाव भंडारण अपेक्षाओं पर भी अवश्‍य पड़ेगा और तदनुसार बैंकों को अपने-अपने सिस्‍टम की भंडारण अपेक्षाओं का उचित रूप से आकलन करें। बैंकों के लिए यह भी विचार करना जरूरी होगा कि अपनी भावी जरूरतों के अनुसार अपने-अपने सिस्‍टम की मापनीयता पर विचार करें।

छ) रिज़र्व बैंक सदस्‍य बैंकों को केवल क्‍लीयरिंग हाउस इन्‍टरफेस (सीएचआई) एप्‍लीकेशन सॉफ्टवेयर प्रदान करेगा। सदस्‍या बैंकों को (i) उचित हार्डवेयर, (ii) सिस्‍टम सॉफ्टवेयर; और (iii) नेटवर्किंग अवसंरचना खरीदनी पड़ेगी। नेटवर्क/मीडिया पर क्‍लीयरिंग हाउस से प्रेषित/द्वारा प्राप्‍त किए जाने वाले माइकर डाटा और लिखतों की प्रतिकृतियों के आवक और जावक के लिए सीएचआई एक गेटवे के तौर पर काम करेगा। क्‍लीयरिंग हाउस इन्‍टरफेस एक विन्‍डोज आधारित सॉफ्टवेयर है जिसमें ऑरेकल रिलेशनल डाटाबेस का अंत: स्‍थापित करते हुए गेटवे सर्वर पर लोड किया गया है। क्‍लीयरिंग हाउस के साथ सभी प्रकार से संप्रेषणों के लिए पब्लिक कुंजिका अवसंरचना का प्रयोग करते हुए गेटवे की संस्‍थापना की जाएगी। यह क्‍लीरिंग हाउस इन्‍टरफेस जावक प्रस्‍तुतियों हेतु शाखाओं से प्राप्‍त प्रतिकृतियों और माइकर डाटा का समेकन करेगा और आहर्ता बैंक की शाखा-अनुसार आवक प्रतिकृतियों और माइकर डाटा को अलग-अलग क्‍लीयरिंग हाउस इन्‍टरफेसों पर डिलीवर करेगा। सीएचआई की परिचयात्‍मक विस्‍तृत कार्यचालन सीटीएस परियोजना हेतु आरएफपी में दिया गया है, जो हमारी वेबसाइट (www.rbi.org.in – निविदाएं – 1 जून 2004) पर उपलब्‍ध है। बैंकों को यह सुनिश्चित करने हेतु सूचित किया जाता है कि भारतीय रिज़र्व बैंक क्‍लीयरिंग हाउस इन्‍टरफेस (सीएचआई) पर भेजे जाने वाली प्रतिकृतियां और डाटा हमारे द्वारा जारी दिशानिदेशों का अनुपालन करते हैं। इन प्रतिकृतियों को हमारे द्वारा जारी की गई अपेक्षित प्रतिकृति गुणवत्ता आश्‍वस्ति (आईक्‍यूए) और प्रतिकृति गुणवत्ता प्रयोज्‍यता (आईक्‍यूयू) विशिष्टियों को पास करना होगा, जिसमें विफलता होने पर इन प्रतिकृतियों को अस्‍वीकार कर दिया जाएगा।

ज) बैंकों से अपेक्षित है कि वे अपनी विद्यमान क्‍लीयरिंग और/या बैंकिंग एप्‍लीकेशन्‍स का इन्‍टरफेस क्‍लीयरिंग हाउस इन्‍टरफेस सॉफ्टवेयर द्वारा स्‍वीकृत/वितरित करने के लिए डाटा और प्रतिकृति प्ररूपों की जरूरतों के अनुसार तैयार करें। इस प्रयोजन के लिए प्रत्‍येक बैंक क्‍लीयरिंग हाउस इन्‍टरफेस (सीएचआई) के साथ आंतरिक रूप से प्रयोग की जा रही वर्तमान बैंकिंग एप्‍लीकेशनों का इन्‍टीग्रेशन करने हेतु वेन्‍डर का चयन करने की जरूरत पड़ेगी। रिज़र्व बैंक उन इन्‍टरफेस आवश्यकताओं और डाटा संरचनाओं का प्रकाशन करेगा जिनके अनुसार क्‍लीयरिंग हाउस इन्‍टरफेस पर प्रतिकृतियों और माइकर डाटा का प्रेषण या प्राप्ति की जाएगी।

झ) सीटीएस क्‍लीयरिंग प्रतिकृतियों पर आधारित है इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है कि स्रोत प्रलेख प्रतिकृतियों के अनुकूल हों। चेकों का मुद्रण माइकर पद्धतिपरक दिशानिदेशों में दिए गए माइकर विषयक स्‍टेशनरी मानकों के अनुसार करना होगा और चेक का आकार अपरिवर्तित रहेगा। हालांकि बैंकों के लिए कतिपय सावधानियां रखनी होंगी, जो निम्‍नानुसार हैं :

  • पृष्‍ठभूमि का रंग हल्‍का होना चाहिए ताकि लिखित अंश स्‍पष्‍ट रहे, पृष्‍ठभूमि में गहरे रंगों के प्रयोग से बचा जाए।

  • भारी डिजाइन वाले लक्षणों या सूक्ष्‍म-अक्षरों का अत्‍यधिक प्रयोग करने से बचा जाए क्‍योंकि इनसे पृष्‍ठभूमि और लिखित अंश के बीच विभेद कम हो जाता है। किसी लिखत पर होलोग्राम और प्रतीक चिह्नों तथा अन्‍य अद्वितीय लक्षणों को लिखत के अग्रभाग पर रखा जा सकता है।

विभिन्‍न फील्‍ड की तय स्थिति देते हुए नए मानकीकृत प्ररूप के बारे में विस्‍तृत परिपत्र अलग से जारी किया जा रहा है।

ञ) सुविधा के लिए एक जांचसूची अनुलग्‍नक–1 पर और प्रतिकृति आधारित प्रोसेसिंग प्रणालियों हेतु दिशानिदेश अनुलग्‍नक–2 के रूप में संलग्‍न हैं।

5. क्‍योंकि यह परियोजना 31 मार्च 2006 तक लाइव करने का कार्यक्रम निर्धारित है इसलिए बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे यथाशीघ्र अपनी जरूरतों के लिए सर्वोत्तम वेन्‍डर का चयन करें और यह ध्‍यान रखा जाए कि सीटीएस परियोजना के लिए रिज़र्व बैंक ने अनुमोदित वेन्‍डरों की कोई सूची तैयार नहीं की है। चयनित वेन्‍डर को सीएचआई के आउटपुट को आपके बैंक में उपलब्‍ध सॉफ्टवेयर के साथ एकीकृत करना होगा और यह सुनिश्‍चित करना होगा कि जावक प्रतिकृतियां सीएचआई द्वारा स्‍वीकार की जाती हैं, इनमें संबंधित बैंक द्वारा अपेक्षित भुगतान प्रोसेसिंग मॉड्यूल, स्‍टोरेज की पुन: प्राप्ति और अन्‍य मॉड्यूल भी समाहित हैं। इन प्रतिकृतियों हेतु मानकों को पहले ही घोषित किया जा चुका है (11 मार्च 2005 को जारी संदर्भ सं.आरबीआई/2004-05/393/ संदर्भ. डीआईटी.के.का.सं.2218/09.63.36/2004-2005), और चयनित वेन्‍डरों को अपेक्षित मानकों को पूरा करना होगा। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है कि बैंकों द्वारा वेन्‍डरों का चयन जल्‍दी ही कर लिया जाए, क्‍योंकि इस परियोजना की सफलता बैंकों की प्रणालियों को भारतीय रिज़र्व बैंक के सीएचआई के साथ सफलतापूर्वक एकीकृत करने पर निर्भर है। यह महत्त्वपूर्ण है कि बैंकों द्वारा सख्‍त और कठारे परीक्षण किए जाएं ताकि सभी सिस्‍टम बैंकों की अपनी और भारतीय रिज़र्व बैंक की अपेक्षाओं के अनुपालन में हों और चयनित सिस्‍टम परीक्षित और प्रमाणित कर लिया जाए कि यह सीएचआई के साथ निर्बाध इन्‍टरफेस करे। सीएचआई के लिए साइट तैयार करने के बारे में तकनीकी विशिष्‍टताओं को शीघ्र ही बता दिया जाएगा।

6. आपके बैंक द्वारा चुने गए वेन्‍डर के नाम और उनके पते तथा संपर्क हेतु नम्‍बरों को kazasudhakar@rbi.org.in पर ईमेल के माध्‍यम से सितम्‍बर 2005 के अंत तक हमारे पास भिजवा दिया जाए।

कृपया पावती भिजवाएं।

काजा सुधाकर
महाप्रबंधक


अनुलग्‍नक-1

राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में चेक ट्रन्‍केशन की पायलट परियोजना

बैंकों के लिए जांच-सूची

1 अपने ही बैंक में जावक ट्रन्‍केशन के लिए निर्णायक मुद्दे सितम्‍बर
2 क्‍लीयरिंग हाउस और बैंक के आंतरिक नेटवर्क पर प्रतिकृतियों तथा माइकर डाटा के प्रेषण हेतु अपेक्षित नेटवर्किंग अवसंरचना का आकलन सितम्‍बर
3 प्रतिकृतियों और माइकर डाटा के आवक भुगतान प्रोसेसिंग के निर्णायक मुद्दे सितम्‍बर
4 इलेक्‍ट्रॉनिक रूप में आवक और जावक प्रतिकृतियों को सिस्‍टम में भंडारण और बाद में इन्‍हें पुन: प्राप्‍त करने हेतु, ऑनलाइन जावक प्रस्‍तुतिकरण और आवक लिखतों को इलेक्‍ट्रॉनिक रूप में प्रतिधारित रखने की अवधि के बारे में निर्णय लेना सितम्‍बर
5 जावक और आवक क्‍लीयरिंग, जावक/आवक प्रतिकृतियों/डाटा आदि के भंडारण हेतु हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर अपेक्षाओं का आकलन सितम्‍बर
6 भुगतान प्रोसेसिंग के कार्यप्रवाह को पुन: तैयार करने; तथा संबंधित स्‍टाफ के प्रशिक्षण और उन्‍हें कार्य के अनुकूल बनाने पर निर्णय करना सितम्‍बर
7 आवश्‍यक हार्डवेयर/सॉफ्टवेयर के अधिग्रहण और बैंक के विद्यमान बैंकिंग /क्‍लीयरिंग एप्‍लीकेशनों को सीएचआई के साथ एकीकृत करने के लिए वेन्‍डर/रों पर अंतिम निर्णय/चयनित सूची बनाना। अक्‍तूबर
8 पद्धतिगत दिशानिदेशों को अंतिम रूप देना नवम्‍बर
9 क्‍लीयरिंग परिचालनों से सम्‍बद्ध सभी अधिकारियों और स्‍टाफ सदस्‍यों की जागरुकता के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम दिसम्‍बर
10 हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की संस्‍थापना जनवरी
11 डमी चेकों के साथ परीक्षण संचालन की शुरुआत फरवरी, 2006 का प्रथम सप्‍ताह
12 “लाइव रन” मार्च 2006 का अंतिम सप्‍ताह

अनुलग्‍नक-2

बैंकों में प्रतिकृति आधारित प्रोसेसिंग प्रणालियों हेतु दिशानिदेश

गाइड के रूप में बैंकों के प्रतिकृति आधारित प्रोसेसिंग प्रणाली/प्रणालियों में आदर्श रूप मं निम्‍नलिखित विशेषताएं अवश्‍य होनी चाहिए :

क. प्रचुरता के साथ बिना किसी एकल प्‍वाइंट की विफलता के

ख. उच्‍च उपलब्‍धता

ग. बैंक की वर्तमान और भावी जरूरतों को पूरा करने के लिए सुग्राह्यता (संवितरित अभिग्रहण, केन्‍द्रीकृत अभिग्रहण, क्‍लस्‍टर मॉडल, प्रतिकृति सर्विस ब्‍यूरो, एटीएम/पीओएस, कार्पोरेट ग्राहक अभिग्रहण, आदि)

घ. भारतीय रिज़र्व बैंक की सीएचआई प्रणाली के साथ अटूट इन्‍टरफेस

ङ. सीएचआई के साथ क्‍लीयरिंग विन्‍डो और रिकवरी पद्धतियों को अवश्‍य पूरा करे

च. सभी इमेजें और डाटा आईक्‍यूए/आईक्‍यूये को और भारतीय रिज़र्व बैंक से प्राप्‍त सुरक्षा विशिष्‍टताओं को पूरा करें।

छ. चेक वापसी दर्ज करने और प्रतिकृति की प्रिन्टिंग के लिए शाखाओं के साथ वेब-इन्‍टरफेस प्रदान करे

ज. भुगतान करने वाली शाखा के लिए निर्गाम प्रस्‍तुतियों और आवक प्रस्‍तुतियों हेतु सीडी तैयार करने में सक्षम

झ. विखंडन के विभिन्‍न स्‍थलों से मदों के प्रेषण और प्राप्ति का अनुसरण और निगरानी हो सके

ञ. बैंक खाते की प्रोसेसिंग प्रणाली को नवीनतम करे।

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