बैंकों का परियोजना वित्त संविभाग
आरबीआइ/2007-08/179
बैंपविवि. बीपी. सं. 48/21.04.048/2007-08
6 नवंबर 2007
15 कार्तिक 1929 (शक)
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)
महोदय
बैंकों का परियोजना वित्त संविभाग
परियोजनाओं का वित्तपोषण करते समय जहां तक प्रवर्तक की ईक्विटी के स्तर का निर्धारण करने का प्रश्न है, बैंक सामान्यत: निम्नलिखित में से कोई एक पद्धति अपनाते हैं ।
1. बैंक द्वारा अपनी प्रतिबद्ध राशि का वितरण प्रारंभ करने से पूर्व प्रवर्तक अपना संपूर्ण अंशदान सामने लाते हैं ।
2. प्रवर्तक अपनी ईक्विटी का कुछ प्रतिशत (40 प्रतिशत-50 प्रतिशत) पहले देते हैं और शेष चरणबद्ध रूप से दिया जाता है ।
3. प्रवर्तक प्रारंभ से ही इस बात के लिए सहमत होते हैं कि वे बैंकों द्वारा ऋण के हिस्से के वित्तपोषण के अनुपात में ईक्विटी निधि लाएंगे ।
हम इस बात से सहमत हैं कि ऐसे निर्णय संबंधित बैंकों के बोर्डों द्वारा लिए जाने हैं, तथापि यह पाया गया है कि अंतिम पद्धति में ईक्विटी निधीयन जोखिम अधिक है ।
2. इस जोखिम को नियंत्रित रखने के लिए, बैंकों को उन्हीं के हित में यह सूचित किया जाता है कि वे ऋण ईक्विटी अनुपात (डीईआर) के संबंध में स्पष्ट नीति अपनाएं तथा यह सुनिश्चित करें कि प्रवर्तकों द्वारा ईक्विटी/निधियों की वृद्धि इस प्रकार होनी चाहिए जिससे डीईआर का निर्धारित स्तर सभी समय बना रहे । इसके अलावा वे क्रमवार निधीयन अपना सकते हैं ताकि बैंकों द्वारा ईक्विटी के निधीयन की संभावना से बचा जा सके ।
भवदीय
(प्रशांत सरन)
मुख्य महाप्रबंधक