पूंजी पर्याप्तता तथा बाजार अनुशासन पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश - नया पूंजी पर्याप्तता ढांचा (एनसीएएफ) - समानांतर प्रयोग तथा विवेकपूर्ण न्यूनतम सीमा - आरबीआई - Reserve Bank of India
पूंजी पर्याप्तता तथा बाजार अनुशासन पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश - नया पूंजी पर्याप्तता ढांचा (एनसीएएफ) - समानांतर प्रयोग तथा विवेकपूर्ण न्यूनतम सीमा
आरबीआइ/2010-11/348 31 दिसंबर 2010 सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक महोदय पूंजी पर्याप्तता तथा बाजार अनुशासन पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश - कृपया उपर्युक्त विषय पर 7 अप्रैल 2010 का हमारा परिपत्र बैंपविवि. बीपी. बीसी. सं. 87/21.06.001/2009-10 तथा पूंजी पर्याप्तता और बाजार अनुशासन पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश - नया पूंजी पर्याप्तता ढांचा (एनसीएएफ) पर 01 जुलाई 2010 के मास्टर परिपत्र सं. बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 15/21.06.001/2010-11 का पैराग्राफ 4.1.2 देखें जिनके अनुसार भारत में कार्यरत विदेशी बैंक तथा भारत के बाहर परिचालनात्मक मौजूदगी वाले भारतीय बैंक नियत तारीख (अर्थात् 31 मार्च 2010) के बाद भी समानांतर प्रयोग जारी रखेंगे और वे यह सुनिश्चित करेंगे कि बासल II के अनुसार ऋण तथा बाजार जोखिम के लिए उनकी न्यूनतम पूंजी अपेक्षा बासल I ढांचे के अनुसार परिगणित न्यूनतम पूंजी अपेक्षा के 80% से अधिक बनी हुई है। 2. मौद्रिक नीति 2010-11 की 02 नवंबर 2010 को घोषित दूसरी तिमाही समीक्षा में बैंकों को ‘वाणिज्य बैंकों के लिए विनियामक और पर्यवेक्षी उपाय-आघात सहने की बैंकिंग क्षेत्र की क्षमता को मजबूत बनाना’ से संबंधित पैरा 102 के द्वारा (उद्धरण की प्रतिलिपि संलग्न) सूचित किया गया है कि वे समानांतर प्रयोग तीन वर्ष की अवधि अर्थात् 31 मार्च 2013 तक जारी रखें जो समीक्षाधीन होगा। तदनुसार, भारत स्थित सभी बैंक 31 मार्च 2013 तक समानांतर प्रयोग जारी रखेंगे जो समीक्षाधीन होगा और वे यह सुनिश्चित करेंगे कि उनकी बासल II न्यूनतम पूंजी अपेक्षा ऋण और बाजार जोखिम से संबंधित बासल - I ढांचे के अंतर्गत अपेक्षित न्यूनतम पूंजी अपेक्षा के 80% की विवेकपूर्ण सीमा से अधिक बनी हुई है। 3. उपर्युक्त मास्टर परिपत्र के पैराग्राफ 2.4 में निहित समानांतर प्रयोग पर अन्य सभी दिशानिर्देशों का पालन बैंकों द्वारा किया जाना चाहिए। भवदीय (बि. महापात्र) मौद्रिक नीति 2010-11 की 2 नवंबर 2010 को घोषित दूसरी तिमाही समीक्षा का उद्धरण V. वाणिज्य बैंकों के लिए विनियामक और पर्यवेक्षी उपाय आघात सहने की बैंकिंग क्षेत्र की क्षमता को मजबूत बनाना 100. बैंक पर्यवेक्षण संबंधी बासल समिति (बीसीबीएस) ने वित्तीय संकट के प्रतिक्रियास्वरूप अक्तूबर 2010 में जी-20 को अपनी रिपोर्ट पेश की । उस रिपोर्ट में बैंकों और वैश्विक बैंकिंग प्रणाली की आघात सहने की क्षमता को मजबूत बनाने के लिए बैंक पर्यवेक्षण संबंधी बासल समिति (बीसीबीएस) और उसके शासी निकाय, जो कि केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों और पर्यवेक्षण के अध्यक्षों का समूह (जीएचओएस) है, द्वारा उठाए गए कदम शामिल किए गए थे । बैंक-विशेष और व्यापक प्रणालीगत जोखिमों के निवारण से संबंधित नए वैश्विक मानकों को बासल-III का नाम दिया गया है । बासल-III में अन्य बातों के साथ-साथ विनियामक पूंजी, पूंजी संरक्षण बफर, प्रति-चक्रीय बफर, प्रतिपार्टी क्रेडिट जोखिम का नियंत्रण, लीवरेज अनुपात और वैश्विक चलनिधि मानकों की परिभाषा का संशोधन शामिल है। 101. उल्लेखनीय है कि बैंक पर्यवेक्षण संबंधी बासल समिति (बीसीबीएस) ने दिसंबर 2009 में जनसाधारण की राय लेने के लिए दो परामर्शी दस्तावेज जारी किए थे। उसने न्यूनतम पूंजी अपेक्षा का व्यापक मात्रात्मक प्रभाव संबंधी अध्ययन (क्यूआइएस) और टॉप-डाउन कैलिब्रेशन भी किए थे। जुलाई और सितंबर 2010 में संपन्न अपनी बैठकों में जीएचओएस ने प्राप्त टिप्पणियों, क्यूआइएस और टॉप-डाउन कैलिब्रेशन के आधार पर पूंजी और चलनिधि सुधार पैकेज के समग्र ढांचे को स्वीकार कर लिया है। पूरी तरह से तैयार बासल-III नियमावली दिसंबर 2010 के अंत तक प्रकाशित की जाएगी। 102. रिज़र्व बैंक भारत स्थित बैंकों के लिए उपयुक्त सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं को अपनाता रहा है। इसलिए बैंकों को सूचित किया जाता है कि :
|