अंतर-बैंक देयताओं की विवेकपूर्ण सीमा - आरबीआई - Reserve Bank of India
अंतर-बैंक देयताओं की विवेकपूर्ण सीमा
आरबीआइ/2006-2007/281
बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 66 /21.01.002/ 2006-07
6 मार्च 2007
15 फाल्गुन 1928 (शक)
सभी वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)
महोदय
अंतर-बैंक देयताओं की विवेकपूर्ण सीमा
जैसा कि आपको ज्ञात है, भारत में आस्ति पक्ष के प्रतिपक्षी जोखिम संकेद्रण ने पर्याप्त ध्यान आकृष्ट किया है और इस संबंध में विनियामक नीतिगत कदम भी उठाए गए हैं, परंतु बैंकों के देयता पक्ष में जोखिम संकेद्रण की ओर समान रूप से ध्यान नहीं दिया गया है । वित्तीय स्थिरता के दृष्टिकोण से देयता पक्ष प्रबंधन का अपना महत्व है। अत: बैंकों के देयता पक्ष के जोखिम संकेद्रण को नियंत्रित करना उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि आस्ति पक्ष के जोखिम संकेद्रण को नियंत्रित करना। विशेष रूप से अनियंत्रित अंतर-बैंक देयताओं का पूरी प्रणाली पर प्रभाव पड़ सकता है, भले ही अलग-अलग प्रतिपक्षी बैंक आबंटित एक्सपोज़र के भीतर हों। इसके अलावा, किसी बड़े बैंक की अनियंत्रित देयता का व्यापक निरंतर वृद्धिशील प्रभाव भी पड़ सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि देयता प्रबंधन की एक परिपूर्ण प्रणाली स्थापित की जाए ताकि बैंक इस संबंध में सचेत रहें कि बड़ी राशि की अंतर-बैंक देयताओं पर आधारित कारोबार मॉडल का अनुसरण करने में अंतर्निहित जोखिम क्या हैं तथा इस प्रकार का मॉडल किस प्रकार संपूर्ण प्रणाली के लिए जोखिम उत्पन्न कर सकता है।
2. बैंकों के देयता पक्ष में संकेद्रण घटाने के लिए, निम्नलिखित उपाय निर्धारित किए जाते हैं -
(क) किसी बैंक की अंतर-बैंक देयताएँ पिछले वर्ष के 31 मार्च को उसकी निवल मालियत (नेटवर्थ) के 200 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। तथापि, कोई बैंक अपने कारोबार मॉडल को ध्यान में रखते हुए अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से अपनी अंतर-बैंक देयताओं की निम्नतर सीमा निर्धारित कर सकता है।
(ख) जिन बैंकों का सीआरएआर पिछले वर्ष के 31 मार्च को न्यूनतम सीआरएआर (9 प्रतिशत) से कम से कम 25 प्रतिशत अधिक अर्थात् 11.25 प्रतिशत है, उन्हें निवल मालियत के 300 प्रतिशत तक अंतर-बैंक देयताओं की उच्चतर सीमा रखने की अनुमति दी जाती है।
(ग) उपर्युक्त निर्धारित सीमा के भीतर केवल भारत के भीतर निधि आधारित अंतर-बैंक देयताएँ (भारत में परिचालन करने वाले बैंकों के प्रति विदेशी मुद्रा में अंतर-बैंक देयताएँ सहित) आती हैं। दूसरे शब्दों में भारत के बाहर अंतर-बैंक देयताओं को इस सीमा से बाहर रखा गया है।
(घ) उपर्युक्त सीमा में सीबीएलओ के अंतर्गत संपार्श्वीकृत उधार और नाबार्ड, सिडबी आदि से पुनर्वित्त शामिल नहीं होंगे।
(च) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित मांग मुद्रा उधार की वर्तमान सीमा उपर्युक्त सीमाओं के भीतर उप-सीमा के रूप में परिचालन करेगी।
(छ) थोक जमाराशियों के उच्च संकेद्रण वाले बैंकों को ऐसी जमाराशियों से जुड़े सम्भावित जोखिम के संबंध में सचेत रहना चाहिए तथा ऐसी जमाराशियों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण उत्पन्न होने वाले चलनिधि जोखिम को नियंत्रित करने के लिए उपयुक्त नीति बनानी चाहिए।
3. उपर्युक्त दिशानिर्देश 1 अप्रैल 2007 लागू होंगे। परंतु, जो बैंक इन अपेक्षाओं का 1 अप्रैल 2007 से अनुपालन करने की स्थिति में नहीं हैं, वे भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुमोदन हेतु एक योजना भेजें, जिसमें उस तारीख का उल्लेख होना चाहिए जिस तारीख से वे अपेक्षाओं का अनुपालन कर सकेंगे।
भवदीय
(प्रशांत सरन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक