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अपनी सहायक कंपनियों के संबंध में बैंकों द्वारा जारी किये जाने वाले आश्वासन पत्रों (एलओसी) के लिए विवेकपूर्ण मानदंड

आरबीआइ/2007-08/255
बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 65/21.04.009/2007-08

4 मार्च 2008

14 फाल्गुन 1929 (शक)
सभी वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)
महोदय

अपनी सहायक कंपनियों के संबंध में बैंकों द्वारा जारी किये जाने वाले
आश्वासन पत्रों (एलओसी) के लिए विवेकपूर्ण मानदंड

 

यह देखा गया है कि भारत में बैंक विदेश में अपनी सहायक कंपनियां/शाखाएं खोलने के लिए विदेशी विनियामकों का अनुमोदन प्राप्त करने के लिए उनकी अपेक्षाओं की पूर्ति करने तथा भारत में अपनी सहायक कंपनियों की कुछ गतिविधियों का समर्थन करने के लिए भी आश्वासन पत्र (एलओसी) जारी करते आ रहे हैं । इन आश्वासन पत्रों का उद्देश्य (i) विदेशी और देशी विनियामकों को यह आश्वासन देना है कि मूल बैंक अपनी विदेशी/देशी सहायक कंपनियों का समर्थन करेगा यदि उन्हें भविष्य में किसी वित्तीय समस्या का सामना करना पड़े; तथा (ii) बैंक की भारतीय सहायक कंपनियों के निर्गम/उत्पाद का श्रेणी निर्धारण करनेवाली भारत की श्रेणी निर्धारक कंपनियों को यह आश्वासन देना है कि सहायक कंपनी को मूल बैंक का समर्थन उपलब्ध है। ऐसे आश्वासन पत्रों से जारीकर्ता बैंकों के लिए आकस्मिक देयता का तत्व उत्पन्न हो सकता है, जो कि वर्तमान विनियामक व्यवस्था में समुचित रूप से व्यक्त नहीं हुआ है ।

2. अत: यह देखते हुए कि भविष्य में जारीकर्ता बैंकों को संभाव्य देयताओं/बाध्यताओं को पूरा करना पड़ सकता है, बैंकों द्वारा आश्वासन पत्र जारी करने के मामले की भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जांच की गयी तथा इस संबंध में निम्नलिखित विवेकपूर्ण मानदंड निर्धारित करने का निर्णय लिया गया है :

i) आश्वासन पत्र का प्रत्येक निर्गम बैंक के निदेशक मंडल के पूर्वानुमोदन के अधीन होना चाहिए। आश्वासन पत्र जारी करने के लिए बैंकों को एक सुपरिभाषित नीति निर्धारित करनी चाहिए जिसमें यह भी शामिल होना चाहिए कि विभिन्न प्रयोजनों के लिए बैंक किस निर्दिष्ट संचयी सीमा तक आश्वासन पत्र जारी कर सकते हैं । नीति में अन्य बातों के साथ-साथ यह भी प्रावधान होना चाहिए कि बैंक जारी किए गए आश्वासन पत्र के कानूनी रूप से बाध्यकारी स्वरूप के संबंध में एक विधिक अभिमत प्राप्त करके उसे अपने अभिलेख में रखेगा। जारी किए गए सभी आश्वासन पत्रों का रिकार्ड रखने के लिए एक उचित प्रणाली भी स्थापित की जानी चाहिए ।

ii) बैंक को कम-से-कम वर्ष में एक बार यह मूल्यांकन करना चाहिए कि उसके द्वारा निर्गत आश्वासन पत्रों के अंतर्गत स्वीकार किये गये दायित्व के अनुसार यदि उसे भारत स्थित या विदेश स्थित अपनी सहायक कंपनी का समर्थन करने के लिए कहा जाता है तो निर्गत और बकाया आश्वासन पत्रों के अंतर्गत संभावित वित्तीय प्रभाव क्या होगा । यह मूल्यांकन निर्णयात्मक आधार पर गुणात्मक रूप से किया जाना चाहिए और इस प्रकार मूल्यांकित राशि की रिपोर्ट वर्ष में कम-से-कम एक बार बोर्ड को की जानी चाहिए। पहली बार इस प्रकार का मूल्यांकन उन सभी निर्गत आश्वासन पत्रों के संबंध में किया जाना चाहिए जो 31 मार्च 2008 को बकाया हैं और इसका निष्कर्ष बोर्ड की आगामी बैठक में रखा जाना चाहिए। यह मूल्यांकन बैंक की चलनिधि आयोजना संबंधी कार्य का भी एक भाग होना चाहिए ।

iii) श्रेणी निर्धारण एजेंसी /आंतरिक अथवा बाहरी लेखा परीक्षकों/आंतरिक निरीक्षकों अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक के निरीक्षण दल द्वारा यदि किसी आश्वासन पत्र का मूल्यांकन बैंक की आकस्मिक देयता के रूप में किया गया है तो उसे सभी विवेकपूर्ण विनियामक प्रयोजनों के लिए बैंक द्वारा जारी की गई वित्तीय गारंटी के समान समझा जाएगा।

iv) बैंकों को वर्ष के दौरान जारी किए गए सभी आश्वासन पत्रों के संपूर्ण ब्यौरे तथा उनका मूल्यांकित वित्तीय प्रभाव तथा पूर्व में उनके द्वारा जारी किए गए तथा बकाया आश्वासन पत्रों के अंतर्गत मूल्यांकित संचयी वित्तीय बाध्यता को अपने प्रकाशित वित्तीय विवरणों में ‘लेखा पर टिप्पणी’ के एक भाग के रूप में प्रकट करना चाहिए ।

भवदीय

(प्रशांत सरन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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