बैंकों के तुलन पत्रेतर एक्सपोज़रों के लिए विवेकपूर्ण मानदंड - आरबीआई - Reserve Bank of India
बैंकों के तुलन पत्रेतर एक्सपोज़रों के लिए विवेकपूर्ण मानदंड
आरबीआइ / 125/ 2008-09 |
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बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी. 31 /21.04.157/2008-09 | ||||||||||||||
8 अगस्त 2008 | ||||||||||||||
17 श्रावण 1930 (शक) | ||||||||||||||
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक | ||||||||||||||
(स्थानीय क्षेत्र बैंक तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) | ||||||||||||||
महोदय |
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बैंकों के तुलन पत्रेतर एक्सपोज़रों के लिए विवेकपूर्ण मानदंड |
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कृपया 30 मई 2008 की भारिबैं प्रेस प्रकाशनी सं. 2007-2008/1528 देखें जिसके अनुसार उपर्युक्त विषय पर प्रारूप दिशानिर्देश टिप्पणियों/प्रतिसूचना के लिए जारी किए गए थे । प्राप्त प्रतिसूचना के आधार पर दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दिया गया है और कार्यान्वयन के लिए परिशिष्ट में दिया गया है । |
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2. यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रारंभ में केवल डेरिवेटिव संविदा के अंतर्गत भुगतान की निर्दिष्ट तारीख से 90 अथवा उससे अधिक दिन की अवधि के लिए नकद रूप में अदत्त रहनेवाली बैंक को देय राशियों का अनर्जक आस्तियों के रूप में वर्गीकरण किया जाएगा (परिशिष्ट का पैरा 2.4) । प्राप्य राशियों (अर्थात् प्राप्य राशि तथा भावी प्राप्य राशियां) की संपूर्ण रकम को अनर्जक आस्ति मानने संबंधी व्यापक मामला विचाराधीन है और यदि आवश्यक हुआ तो अलग से सूचना भेजी जाएगी । |
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3. पुनर्रचित डेरिवेटिव संविदाओं (प्रारूप दिशानिर्देशों के पैरा 2.5 में निहित) पर की जानेवाली कार्रवाई के संबंध में भी अलग से सूचना भेजी जाएगी । |
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भवदीय |
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(पी. विजय भास्कर | ||||||||||||||
मुख्य महाप्रबंधक |
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अनुलग्नक : यथोक्त |
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परिशिष्ट |
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बैंकों के तुलनपत्रेतर एक्सपोज़रों के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंडों पर दिशानिर्देश - |
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पूंजी पर्याप्तता, एक्सपोज़र, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण मानदंड |
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वर्तमान में 1 जुलाई 2008 के ‘पूंजी पर्याप्तता पर विवेकपूर्ण मानदंडों पर मास्टर परिपत्र’ बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 2/21.01.002/2008-09 के पैराग्राफ 2.4.3 तथा 2.4.4 में बासल-1 ढांचे के अंतर्गत विदेशी मुद्रा तथा ब्याज दर संबंधित संविदाओं पर लागू ऋण परिवर्तन घटकों (सीसीएफ) को निर्धारित किया गया है । इसी प्रकार 1 जुलाई 2008 के ‘नए पूंजी पर्याप्तता ढांचे के कार्यान्वयन के लिए दिशानिर्देश’ पर हमारे परिपत्र सं. बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 11/21.06.001/2008-09 के पैराग्राफ 5.15.4 में बासल-1 ढांचे के अंतर्गत इन संविदाओं पर लागू होनेवाले ऋण परिवर्तन घटकों को निर्धारित किया गया है । इसके अलावा, 1 जुलाई 2008 के ‘एक्सपोज़र मानदंडों पर मास्टर परिपत्र’ बैंपाविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 19/13.03.000/2008-09 के पैराग्राफ 2.3.2 के अनुसार बैंकों के पास ‘मूल एक्सपोज़र पद्धति’ अथवा ‘वर्तमान एक्सपोज़र पद्धति’ के माध्यम से डेरिवेटिव उत्पादों के ऋण एक्सपोज़र की गणना करने का विकल्प उपलब्ध है । |
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2. 29 अप्रैल 2008 को जारी किए गए वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक नीतिगत वक्तव्य के पैराग्राफ 165 (अनुबंध 1 में उद्धृत) में निहित प्रस्ताव के अनुसार उपर्युक्त पहलुओं पर विद्यमान अनुदेशों में निम्नलिखित आशोधन निर्धारित किए गए हैं : |
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2.1.ऋण एक्सपोज़र - ऋण एक्सपोज़र की गणना पद्धति एक्सपोज़र मानदंडों के प्रयोजन के लिए बैंक ब्याज दर तथा विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव लेनदेन तथा स्वर्ण के कारण होनेवाले अपने ऋण एक्सपोज़र की गणना के लिए अनुबंध 2 में दिए गए अनुसार ‘वर्तमान एक्सपोज़र पद्धति’ का प्रयोग करेंगे । ऋण एक्सपोज़र की गणना करते समय बैंक ‘सॉल्ड ऑप्शन’ को छोड़ सकते हैं बशर्ते संपूर्ण प्रीमियम/शुल्क अथवा किसी अन्य रूप में आय प्राप्त/वसूल हुई है । |
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2.2.पूंजी पर्याप्तता - ऋण समकक्ष राशि की गणना पूंजी पर्याप्तता के प्रयोजन के लिए भी बासल - 1 तथा बासल - II दोनों ढांचे के अंतर्गत आनेवाले सभी बैंक, ब्याज दर तथा विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव लेनदेन तथा स्वर्ण की ऋण समकक्ष राशि की गणना करने के लिए अनुबंध 2 में दिए गए अनुसार ‘वर्तमान एक्सपोज़र पद्धति’ का उपयोग करेंगे । |
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2.3.डेरिवेटिव एक्सपोज़रों के लिए प्रावधानीकरण अपेक्षाएं ब्याज दर तथा विदेशी मुद्रा लेनदेन तथा स्वर्ण के कारण होनेवाले ऋण एक्सपोज़र, जिनकी संविदा के बाज़ार दर पर अंकित वर्तमान मूल्य के अनुसार गणना की गई है, पर भी संबंधित काउंटर पार्टी की ‘मानक’ श्रेणी में ऋण आस्तियों पर लागू प्रावधानीकरण अपेक्षाएं लागू होंगी । मानक आस्तियों के लिए प्रावधानों पर की जानेवाली कार्रवाई पर लागू सभी शर्तें डेरिवेटिव तथा स्वर्ण एक्सपोज़रों के लिए उपर्युक्त प्रावधानों पर भी लागू होंगी । |
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2.4. डेरिवेटिव लेनदेन के अंतर्गत प्राप्य रशियों का आस्ति वर्गीकरण | ||||||||||||||
डेरिवेटिव लेनदेन के संबंध में बैंक को देय कोई भी राशि जो कि भुगतान के लिए निर्दिष्ट नियत तारीख से 90 दिन की अवधि के लिए नकद रूप में अदत्त रहती है तो उसे ‘अग्रिमों के संविभाग के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण पर विवेकपूर्ण मानदंड’ पर 1 जुलाई 2008 के हमारे मास्टर परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 20/21.04.048/2007-08 में दिए गए अनुसार अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा । | ||||||||||||||
3. उपर्युक्त आशोधन वित्तीय वर्ष 2008-09 से लागू होंगे । तथापि, बैंकों के पास इन आशोधन के कारण अपेक्षित अतिरिक्त पूंजी तथा प्रावधानीकरण अपेक्षाओं का अनुपालन चरणबद्ध रूप से करने का विकल्प रहेगा । यह अनुपालन चार तिमाहियों की अवधि के दौरान किया जा सकता है जो 31 मार्च 2009 को समाप्त होगी । |
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अनुबंध 1 |
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वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक नीतिगत वक्तव्य के पैराग्राफ 165 का उद्धरण | ||||||||||||||
ख) बैंकों के तुलन पत्रेतर एक्सपोज़र |
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165. भारतीय रिज़र्व बैंक ने घरेलू गतिविधियों के परिप्रेक्ष्य में बैंकों के तुलन पत्र के एक्सपोज़रों के संबंध में विवेकपूर्ण ढांचे को मज़बूत बनाने के लिए कदम उठाए हैं । इन उपायों में विशिष्ट क्षेत्रों में एक्सपोज़रों के लिए अतिरिक्त जोखिम-भार तथा प्रावधानीकरण अपेक्षाएं शामिल हैं । वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में हुई नई गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए तथा वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए प्राप्त सुझावों का आधार लेते हुए यह प्रस्ताव है कि |
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अनुबंध 2 |
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पूंजी पर्याप्तता तथा बाज़ार अनुशासन पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश - नई पूंजी पर्याप्तता के कार्यान्वयन पर 1 जुलाई 2008 के मास्टर परिपत्र, भारिबैं परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 11/21.06.001/ 2008-09 के पैरा 5.15.4 को निम्नलिखित से प्रतिस्थापित किया जाए : |
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"5.15.4 वर्तमान एक्सपोज़र पद्धति |
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i) वर्तमान एक्सपोज़र पद्धति का प्रयोग करते हुए अभिकलित बाज़ार संबंधित तुलन पत्रेतर लेनदेन की ऋण समकक्ष राशि इन संविदाओं के वर्तमान ऋण एक्सपोज़र तथा संभाव्य भावी ऋण एक्सपोज़र का जोड़ है । ऋण एक्सपोज़र की गणना करते समय बैंक ‘सॉल्ड ऑप्शन’ को छोड़ सकते हैं बशर्ते संपूर्ण प्रीमियम/शुल्क अथवा किसी अन्य रूप में आय प्राप्त/वसूल हुई हो । |
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ii) वर्तमान ऋण एक्सपोज़र को इन संविदाओं के बाज़ार दर पर अंकित धनात्मक मूल्य के जोड़ के रूप में परिभाषित किया गया है । वर्तमान ऋण एक्सपोज़र पद्धति में इन संविदाओं को बाजार दर पर अंकित कर वर्तमान ऋण एक्सपोज़र की आवधिक गणना करना अपेक्षित है, जिससे वर्तमान ऋण एक्सपोज़र प्राप्त होगा । |
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iii) इस बात पर ध्यान दिए बिना कि संविदा का शून्य, धनात्मक अथवा ऋणात्मक बाज़ार दर पर अंकित मूल्य है, इन संविदाओं में से प्रत्येक की काल्पनिक मूल राशि का लिखत के स्वरूप तथा शेष परिपक्वता के अनुसार नीचे निर्दिष्ट संबंधित ऍड-ऑन घटक से गुणन कर संभाव्य भावी ऋण एक्सपोज़र निर्धारित किया जाता है । |
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सारणी 9 : बाज़ार संबंधित तुलन पत्रेतर मदों के लिए ऋण परिवर्तन घटक |
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iv) बार-बार बदलने वाले मूलधन वाली संविदाओं के लिए ऍड-ऑन घटकों का संविदा में शेष भुगतानों की संख्या से गुणन करना है । |
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v) उन संविदाओं के लिए जिनकी निर्दिष्ट भुगतान तारीखों के बाद बकाया एक्सपोज़र के निपटान करने की रचना की गई है और जहां शर्तों को ऐसे पुनर्निर्धारित किया जाता है कि इन निर्दिष्ट तारीखों को संविदा का बाज़ार मूल्य शून्य है, शेष परिपक्वता अगली पुनर्निर्धारण तारीख तक के समय के बराबर के समय पर निर्धारित की जाएगी । तथापि, उन ब्याज दर संविदाओं के मामले में, जिनकी एक वर्ष से अधिक अवधि की शेष परिपक्वताएं हैं और जो उपर्युक्त मानदंडों को पूर्ण करती हैं, उन पर लागू ऋण परिवर्तन घटक अथवा ‘ऍड-ऑन घटक’ 1.00 प्रतिशत की न्यूनतम सीमा के अधीन होगा । |
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vi) एकल मुद्रा अस्थायी/अस्थायी ब्याज दर स्वैप के लिए संभाव्य भावी ऋण एक्सपोज़र की गणना नहीं की जाएगी; इन संविदाओं पर ऋण एक्सपोज़र की गणना केवल उनके बाज़ार दर पर अंकित मूल्य के आधार पर की जाएगी । |
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vii) संभाव्य भावी एक्सपोज़र प्रत्यक्ष के बजाय प्रभावी काल्पनिक राशियों पर आधारित होना चाहिए । लेनदेन के ढांचे के कारण स्वीकृत काल्पनिक राशि में बढ़ोतरी अथवा वर्धित होने की स्थिति में संभाव्य भावी एक्सपोज़र का निर्धारण करते समय बैंकों को प्रभावी काल्पनिक राशि का प्रयोग करना चाहिए । उदाहरण के लिए 1 मिलियन यूएस डालरों की स्वीकृत काल्पनिक राशि जिसमें बीपीएलआर की दुगुनी आंतरिक दर के आधार पर भुगतान शामिल है, की प्रभावी काल्पनिक राशि होगी 2 मिलियन यूएस |