बैंकों के तुलन पत्र में शामिल न होनेवाले एक्सपोज़र के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंड - आरबीआई - Reserve Bank of India
बैंकों के तुलन पत्र में शामिल न होनेवाले एक्सपोज़र के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंड
आरबीआइ/2008-09/218
बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 57/21.04.157/2008-09
13 अक्तूबर 2008
21 आश्विन 1930 (शक)
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(स्थानीय क्षेत्र बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)
महोदय
बैंकों के तुलन पत्र में शामिल न होनेवाले
एक्सपोज़र के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंड
कृपया उपर्युक्त विषय पर 8 अगस्त 2008 का हमारा परिपत्र आरबीआइ/2008-09/125 बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 31/21.04.157/2008-09
देखें ।
2. डेरिवेटिव लेनदेन के संबंध में अतिदेय भुगतानों की आस्ति वर्गीकरण स्थिति तथा डेरिवेटिव संविदाओं की पुनर्रचना से संबंधित मुद्दों की जांच की गयी है और इस संबंध में निम्नानुसार सूचित किया जाता है :
2.1 आस्ति वर्गीकरण
i)यदि किसी डेरिवेटिव संविदा के सकारात्मक बाजार दर पर आधारित मूल्य दर्शानेवाली अतिदेय प्राप्य राशियों का 90 दिन या उससे अधिक अवधि तक भुगतान प्राप्त नहीं होता है तो उन्हें अनर्जक आस्ति माना जायेगा । ऐसी स्थिति में वर्तमान आस्ति वर्गीकरण मानदंडों के अनुसार उधारकर्ता-वार वर्गीकरण के सिद्धांत का अनुसरण करते हुए उस ग्राहक को दी गयी अन्य निधिक सुविधाएं भी अनर्जक आस्तियों के रूप में वर्गीकृत की जाएंगी ।
ii)यदि संबंधित ग्राहक बैंक का उधारकर्ता भी हो तथा बैंक से नकदी ऋण या ओवरड्राफ्ट सुविधा प्राप्त कर रहा हो तो उपर्युक्त मद (i) में उल्लिखित प्राप्य राशियों को देय तिथि को उस खाते में नामे डाला जाए तथा उसकी अदायगी न होने का प्रभाव नकदी ऋण /ओवरड्राफ्ट सुविधा खाते में परिलक्षित होगा। विद्यमान मानदंडों के अनुसार यहाँ भी उधारकर्ता-वार आस्ति वर्गीकरण का सिद्धांत लागू होगा।
iii)उन मामलों में जहाँ संविदा में यह प्रावधान है कि डेरिवेटिव संविदा की परिपक्वता के पहले उसके वर्तमान बाजार दर आधारित मूल्य का निर्धारण होगा, वहाँ 90 दिन की अतिदेय अवधि के बाद केवल चालू ऋण एक्सपोज़र (संभावित भावी एक्सपोज़र नहीं) को अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।
iv)चूँकि उपर्युक्त अतिदेय प्राप्य राशियाँ अप्राप्त आय को दर्शाती हैं, जिसे बैंक ने उपचय के आधार पर पहले ही ‘बुक’ कर लिया है, 90 दिनों की अतिदेय अवधि के बाद ‘लाभ और हानि खाते’ में पहले ही ले जायी गयी राशि की प्रति प्रविष्टी की जानी चाहिए तथा इस राशि को ‘उचंत खाता’ में रखा जाना चाहिए, ठीक उसी तरह से जैसा अतिदेय अग्रिमों के मामले में किया जाता है।
2.2 डेरिवेटिव संविदा की पुनर्रचना
ऐसे मामलों में जहां डेरिवेटिव संविदा की पुनर्रचना की जाती है, पुनर्रचना की तारीख को संविदा के बाज़ार दर आधारित मूल्य का नकद निर्धारण होना चाहिए । इस प्रयोजन के लिए मूल संविदा के किसी भी पैमाने में कोई भी परिवर्तन पुनर्रचना माना जाएगा ।
3. ये अनुदेश भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं पर भी लागू होंगे ।
भवदीय
(प्रशांत सरन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक