सभी राज्य सहकारी बैंक और केन्द्रीय सहकारी बैंक - आरबीआई - Reserve Bank of India
सभी राज्य सहकारी बैंक और केन्द्रीय सहकारी बैंक
आरबीआई / 2004-05/37
ग्राआऋवि. सं.बीसी. 3/07.37.02/2004-05
जूलाई 12, 2004
आषाढ़ 21,1926 (शक)
सभी राज्य सहकारी बैंक और केन्द्रीय सहकारी बैंक
प्रिय महोदय,
आय की पहचान, आस्तियों का वर्गीकरण और प्रावधानन से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड - वफ्षि अग्रिम
वफ्पया उपर्युक्त विषय पर दिनांक 27 मार्च 2002 का हमारा परिपत्र ग्राआऋवि.केका. बीसी.70/07.37.02/2001-02 देखें ।
वर्तमान मानदंडों के अनुसार, वफ्षि प्रयोजनों के लिए मंजूर अग्रिमों को गैर निवादक आस्ति तब माना जाता है, जब ब्याज और/अथवा मूलधन की विस्त देय होने के बाद दो फसल कटाई मौसमों तक परंतु अधिकतम दो अर्ध वर्ष तक रहती है । तथापि, लंबी अवधि की फसलों के मामले में अधिकतम दो अर्धवर्ष की अवधि का वर्तमान निर्धारण अपर्याप्त होगा । चुकौती की तारीखों का फसल की कटाई से मेल रखने के विचार से बैंकों को सूचित किया जाता है कि दिनांक 30 सितंबर 2004 से निम्नलिखित सशोधित मानदंड लागू होंगे ।
क) अल्प अवधि वाली फसलों के लिए मंजूर किया गया ऋण तब अनर्जक आस्ति माना जायेगा जब मूल धन की किश्त या उस पर देय ब्याज दो फसल मौसमों के लिए अतिदेय हो जाये ।
ख) लंबी अवधि की फसलों के लिए मंजूर किया गया ऋण तब अनर्जक आस्ति माना जायेगा जब मूलधन की किश्त या उस पर देय ब्याज एक फसल मौसम के लिए अतिदेय हो जाये ।
2. इन दिशानिर्देशों के प्रयोजन के लिए ‘‘लंबी अवधि’’ की फसलें वे फसलें होंगी जिनकी फसल अवधि एक वर्ष से अधिक होगी और ऐसी फसलें, जो लंबी अवधि की फसलें नहीं हैं, कम/अल्प अवधि की फसलें मानी जायेंगी ।
3. किसी फसल का फसल-मौसम, जिसका मतलब उगायी गयी फसलों की कटाई तक का समय होगा, प्रत्येक राज्य में राज्य स्तरीय बैंकर समिति द्वारा निर्धारित किया जायेगा ।
4. वफ्षक द्वारा उगाये गये फसलों की अवधि के आधार पर अनुबंध में दर्शाए अनुसार उनके द्वारा लिये गये वफ्षि मीयादी ऋणों पर उपर्युक्त गैर निष्पादित आस्तियों के मानदंड भी लागू होंगे । अनुबंध में निर्दिष्ट तथा गैर वफ्षकों को दिये गये मीयादी ऋणों के अतिरिक्त वफ्षि ऋणों के संबंध में गैर निष्पादित आस्तियों की पहचान गैर वफ्षि अग्रिमों के समान उसी आधार पर ही होगी । दिनांक 30 दिसंबर 2002 के हमारे परिपत्र ग्राआऋवि.सं.आरएफ.बीसी.39/07.37.02/2002-03 में सूचित किये अनुसार दिनांक 31 मार्च 2006 को समाप्त वर्ष से वर्तमान 180 दिन के बकाया मानदंडों को कम कर 90 दिन के बकाया मानदंड कर दिये जाएंगें ।
5. बैंकों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध है कि वे ऋण और अग्रिम मंजूर करते समय उधारकर्ताओं के पास नकदी की उपलब्धता के आधार पर यथार्थपरक चुकौती-कार्यक्रम बनायें। ऐसा करने से उधारकर्ताओं को ऋणों की शीघ्र चुकौती करने में बहुत मदद मिलेगी और इस प्रकार वफ्षि संबंधी अग्रिमों की वसूली का रिकाड़ सुधर सकेगा ।
6. दिनांक 22 जून 1996 के हमारे परिपत्र ग्राआऋवि.बीसी.सं.155/07.37.02/95-96 में निहित समय-समय पर यथासंशोंधित अन्य सभी अनुदेश अपरिवर्तित रहेंगे ।
7. वफ्पया इस परिपत्र की विषयवस्तु अपने निदेशक मंडल के समक्ष प्रस्तुत करें ।
8. वफ्पया इस परिपत्र की पावती हमारे संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को दें ।
भवदीय,
(सी.एस.मुर्ती)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक
उक्त दिनांक का परांकन ग्राआऋवि.के.का.सं.24/07.37.02/2004-2005
प्रतिलिपि निम्नलिखित को सूचनार्थ प्रेषित:
(डाक सूची के अनुसार)
(इपिलन सुरिन)
उप महाप्रबंधक
अनुबंध
प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण दिये जाने संबंधी मास्टर परिपत्र का, प्रत्यक्ष वफ्षि अग्रिमों की सूची का संबंधित उद्धरण
ग्राआऋवि. पीएलएएन - बीसी. 42ए /04.09.01/2001-002 दिनांक
11 नवंबर 2002
- वफ्षि संबंधी प्रयोजनों के लिए किसानों को प्रत्यक्ष वित्त
- फसलें उगाने के लिए अल्पावधिक ऋण अर्थात् वफ्षि ऋणों के लिए । इसके अलावा, किसानों को वफ्षि संबंधी उत्पादों (माल गोदाम की रसीदों सहित) की गिरवी /दफ्ष्टिबंधक के आधार पर, 12 महीनों से अनधिक अवधि के लिए, 5 लाख रुपये तक के अग्रिम उन मामलों में जबकि किसानों को उत्पाद उगाने के लिए फसल ऋण दिये गये हों, बशर्तें उधारकर्ताओं ने एक ही बैंक से ऋण लिया हो ।
- मध्यावधि और दीर्घावधिक ऋण (किसानों को उत्पादन और विकास संबंधी आवश्यकताओं के वित्तीयन के लिए दिया गया प्रत्यक्ष ऋण)।
(व) कफ्षि उपकरण और मशीनरी की खरीद
(क) वफ्षि उपकरणों की खरीद : - लोहे के हल, हैरो, होज़, लैंड लेवेलर, बंडफार्मर्स, हैंड टूल्स, स्प्रेयर, डस्टर, हे-प्रेस, गन्ने की पेराई करने वाले कोल्हू, थ्रेशर मशीनें इत्यादि ।
(ख) वफ्षि मशीनरी की खरीद : - टै्रक्टर, ट्रेलर, पावर टिलर, टैक्टर संबंधी उपकरण, उदाहरण के िलए डिस्क प्लाउ इत्यादि ।
(ग) वफ्षि के काम में आने वाली वस्तुओं और वफ्षि उत्पादों के परिवहन में मदद करने केलिए ट्रकों, मिनी ट्रकों, जीपों, पिक-अप वैनों, बैलगाड़ियों और परिवहन संबंधी अन्य उपकरणों की खरीद ।
(घ) वफ्षि के काम आनेवाली वस्तुओं और वफ्षि उत्पादों का परिवहन।
(ङ) जुताई का काम करने वाले पशुओं की खरीद ।
(वव) निम्नलिखित के माध्यम से सिंचाई की क्षमता का विकास
(क) उथले और गहरे नल कूपों, टैंकों इत्यादि का निर्माण और ड्रिलिंग यूनिटों की खरीद ।
(ख) कम गहरे कुओं का निर्माण और उनका गहरा किया जाना, बोरवेल बिठाना, कुओं का विद्युतीकरण, ऑयल इंजनों की खरीद, इलेक्ट्रिक मोटर और इलेक्ट्रिक पंप बिठाना ।
(ग) टरबाइन पंप खरीदना और बिठाना, सिंचाई की नालियों का निर्माण (खुली हुई और अंडर ग्राउंड) इत्यादि ।
(घ) लिफ्ट सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण ।
(ङ) स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली बिठाना ।
(च) वफ्षि के कामों के लिए प्रयोग किये जाने वाले पंप सेटों की ताकत बढ़ाने के लिए जनरेटर सेटों की खरीद ।
(ववव) भूमि का उद्धार और भूमि विकास योजनाएं
वफ्षि की जमीनों के लिए बाँध बनाना, जमीन को समतल करना, सीढ़ीदार चबूतरे बनाना, सूखे धान की जमीन को सिंचाई योग्य धान वाली जमीन में बदलना, बंजर भूमि का विकास, वफ्षि संबंधी जल निकासी के लिए नालियां बनाना, दूषित जमीन का उद्धार और खारापन रोकना, गड्ढे वाली जमीन का उद्धार, बुलडोजरों की खरीद इत्यादि।
(वख्) वफ्षि के लिए बांधो तथा अन्य ढांचों का निर्माण इत्यादि
बैलों के लिए शेड, उपकरणों के लिए शेड, ट्रैवटर और ट्रक के लिए शेड तथा कफ्षि संबंधी वस्तुएं रखने के लिए गोदाम इत्यादि ।
(ख्) स्टोरेज सुविधाओं का निर्माण और रखरखाव्ा
माल गोदाम, गोदाम, साइलो का निर्माण और उनका रखरखाव तथा अपने उत्पाद के भंडारण के लिए कोल्ड स्टोरेज स्थापित करने के लिए किसानों को ऋण मंजूर करना ।
(ख्व) फसलों के लिए संकर बीजों का उत्पादन और उनका संसाधन
(ख्वव) संचाई प्रभारों का भुगतान इत्यादि
कुओं और ट्यूबवेलों से उधार लिये गये जल प्रभार, नहर के पानी का प्रभार, ऑयल इंजिनों और बिजली की मोटरों की मरम्मत और रखरखाव, मजूदर प्रभारों, बिजली प्रभारों, विपणन प्रभारों, सेवा प्रभारों का कस्टम सर्विस इकाइयों को भुगतान, विकास उपकर का भुगतान इत्यादि ।
(ख्ववव) किसानों को अन्य प्रकार का प्रत्यक्ष वित्त
(क) अल्पावधिक ऋण
परंपरागत / गैर-परंपरागत वफ्क्षारोपण और बागवानी के लिए ।
(ख) मध्यम और दीर्घावधिक ऋण
- वफ्क्षारोपण, बागवानी, वानिकी और बंजर भूमि के लिए विकास ऋण
- वफ्षि संबंधी प्रयोजनों के लिए जमीन खरीदने हेतु छोटे और सीमांत किसानों को वित्तीय सहायता देना ।