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अग्रिम संविभाग से संबंधित आय-निर्धारण, आस्ति-

अग्रिम संविभाग से संबंधित आय-निर्धारण, आस्ति-
वर्गीकरण और प्रावधान करने से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड

भारतीय रिज़र्व बैंक
बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग
केन्द्रीय कार्यालय, मुंबई
जुलाई 2002

संदर्भ : बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 1 /21.04.048/2002-03

4 जुलाई 2002
13 आषाढ़ 1924(शक)

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के मुख्य कार्यपालक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर)

प्रिय महोदय,

मास्टर परिपत्र - अग्रिम संविभाग से संबंधित आय-निर्धारण, आस्ति-
वर्गीकरण और प्रावधान करने से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड

कृपया आप 30 अगस्त 2001 का मास्टर परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 20/ 21.04.048/ 2001-2002 देखें, जिसमें अग्रिम संविभाग से संबंधित आय-निर्धारण, आस्ति-वर्गीकरण और प्रावधान करने से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंडों से संबंधित विषयों पर 30 जून 2001 तक जारी किये गये अनुदेश / दिशा-निर्देश समेकित किये गये हैं । अब उक्त मास्टर परिपत्र को 30 जून 2002 तक जारी किये गये अनुदेशों को शामिल करते हुए उपयुक्त रूप में संशोधित कर दिया गया है और इसे रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (

http//www.rbi.org.in ) पर भी उपलब्ध करवा दिया गया है ।

यह मास्टर परिपत्र उपर्युक्त विषय पर रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये गये परिपत्रों के उन सभी अनुदेशों का संकलन है, जो इस परिपत्र की तारीख को प्रचलन में हैं ।

भवदीय

(एम. आर. श्रीनिवासन)
प्रभारी मुख्य महा प्रबंधक

अनुलग्नक : यथोक्त

विषय-सूची

विषय

 

1. सामान्य
2. परिभाषाएं
3. आय-निर्धारण
4. आति वर्गीकरण
5. प्रावधान संबंधी मानदंड

अग्रिमों से संबंधित आय-निर्धारण, आस्ति-वर्गीकरण
और प्रावधान करने से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड

1. सामान्य

1.1 अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं के अनुरूप तथा राजकोषीय प्रणाली से संबंधित समिति (अध्यक्ष श्री एम. नरसिंहम) द्वारा की गयी सिफारिशों के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक ने चरणबद्ध रूप में बैंकों के अग्रिम संविभाग के लिए आय-निर्धारण, आस्ति-वर्गीकरण और प्रावधान करने के लिए विवेकपूर्ण मानदंड निर्धारित किये हैं, ताकि प्रकाशित खातों में अधिक सामंजस्य और पारदर्शिता की दिशा में बढ़ा जा सके ।

1.2 आय-निर्धारण की नीति वस्तुनिष्ठ होनी चाहिए और वह वसूली के रिकॉड़ पर आधारित होनी चाहिए, न कि तथ्यपरक बातों पर । इसी प्रकार बैंकों की आस्तियों का वर्गीकरण वस्तुनिष्ठ मानदंड के आधार पर किया जाना चाहिए, जो मानदंडों को एकसमान और सामंजस्यपूर्ण ढंग से लागू करना सुनिश्चित करेगा । साथ ही, आस्तियों के वर्गीकरण के आधार पर प्रावधान किया जाना चाहिए, जो आस्तियों के अनर्जक बने रहने की अवधि और जमानत की उपलब्धता तथा उसवे मूल्य की वसूली योग्यता पर आधारित हो ।

1.3 विवेकपूर्ण मानदंड शुरू किये जाने से अग्रिमों के वर्गीकरण के लिए स्थिति-कूट आधारित प्रणाली पर्यवेक्षी ब्याज के अधीन नहीं रही है । इस प्रकार हेल्थ कोड प्रणाली के अधीन सभी संबंधित सूचना देने से संबंधित अपेक्षाएं आदि भी पर्यवेक्षी अपेक्षा नहीं रही है । तथापि बैंक प्रबंध नियंत्रण साधन के रूप में अपने विवेकानुसार उक्त प्रणाली को जारी रख सकते हैं ।

2. परिभाषाएं

2.1 अनर्जक आस्तियां

2.1.1. कोई आस्ति, जिसमें पट्टेवाली आस्ति शामिल है, तब अनर्जक बनती है जब वह बैंक के लिए आय अर्जित करना बंद कर देती है । ‘अनर्जक आस्ति’ (एन पी ए) को ऐसी ऋण सुविधा के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके संदर्भ में ब्याज और / या मूलधन की किस्त निर्दिष्ट अवधि के लिए ‘गत देय’ बनी हुई है । निर्दिष्ट अवधि को चरणबद्ध रूप में निम्नप्रकार कम किया गया था

31 मार्च को समाप्त वर्ष

निर्दिष्ट अवधि

1993

चार तिमाहियां

1994

तीन तिमाहियां

1995 और उसके बाद

दो तिमाहियां

2.1.2. किसी भी ऋण सुविधा के अधीन देय कोई राशि ‘गत देय’ तब मानी जाती है जब वह देय तारीख से 30 दिन के भीतर अदा नहीं की जाये । भुगतान और निपटान

प्रणालियों, वसूली वातावरण में सुधारों, बैंकिंग तंत्र आदि में प्रौद्योगिकी के उन्नयन आदि के कारण यह निर्णय किया गया कि ‘गत देय’ संकल्पना को 31 मार्च 2001 से समाप्त किया जाये । तदुनसार, उस तारीख से अनर्जक आस्ति वह अग्रिम हेागा जहां -

  1. ब्याज और / या मूलधन की किस्त मीयादी ऋण के संदर्भ में 180 दिन से अधिक की अवधि के लिए अतिदेय बनी रहती है,
  2. ओवरड्राफ्ट / नकदी ऋण के संदर्भ में खाता 180 दिन से अधिक की अवधि के लिए ‘अनियमित’ बना रहता है,
  3. खरीदे और भुनाये गये बिलों के मामले में बिल 180 दिन से अधिक की अवधि के लिए अतिदेय बना रहता है,
  4. कृषि प्रयोजनों के लिए दिये गये अग्रिमों के मामले में ब्याज और / या मूलधन की किस्त दो फसल मौसमों के लिए, परन्तु दो वर्ष से अनधिक अवधि के लिए अतिदेय बनी रहती है, तथा
  5. अन्य खातों के संदर्भ में प्राप्त की जाने वाली कोई राशि 180 दिन से अधिक की अवधि के लिए अतिदेय बनी रहती है ।

2.1.3 अंतरराष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं के साथ चलने तथा अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से यह निर्णय किया गया है कि अनर्जक आस्तियों की पहचान करने के लिए 31 मार्च 2004 से ‘90 दिन के अतिदेय’ मानदंड को अपनाया जाये । तदनुसार, 31 मार्च 2004 से, अनर्जक आस्ति वह ऋण या अग्रिम होगा जहां -

  1. ब्याज और / या मूलधन की किस्त मीयादी ऋण के संदर्भ में 90 दिन से अधिक की अवधि के लिए अतिदेय बनी रहती है,
  2. ओवरड्राफ्ट / नकदी ऋण के संदर्भ में खाता 90 दिन से अधिक की अवधि के लिए ‘अनियमित’ बना रहता है,
  3. खरीदे और भुनाये गये बिलों के मामले में बिल 90 दिन से अधिक की अवधि के लिए अतिदेय बना रहता है,
  4. कृषि प्रयोजनों के लिए दिये गये अग्रिमों के मामले में ब्याज और / या मूलधन की किस्त दो फसल मौसमों के लिए, परन्तु दो वर्ष से अनधिक अवधि के लिए अतिदेय बनी रहती है, तथा
  5. अन्य खातों के संदर्भ में प्राप्त की जाने वाली कोई राशि 90 दिन से अधिक की अवधि के लिए अतिदेय बनी रहती है ।

90 दिन के मानदंड को सहजता से अपनाने के उपाय के रूप में बैंकों से कहा गया है कि वे 1 अप्रैल 2002 तक मासिक आधार पर ब्याज लगाने को अपनायें । किंतु मासिक आधार पर ब्याज लगाने के कारण किसी अग्रिम को अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकृत करने की तारीख नहीं बदलनी चाहिए ।

इसलिए बैंकों को चाहिए कि यदि किसी तिमाही में लगाया गया ब्याज तिमाही की समाप्ति की तारीख से 1 अप्रैल 2002 से 180 दिन में और 31 मार्च 2004 से तिमाही की समाप्ति की तारीख से 90 दिन में पूरी तरह अदा न होने पर ही उसे अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकृत करना जारी रखें ।

2.2 ‘अनियमित’ दर्जा :

किसी खाते को तब ‘अनियमित’ माना जाये जब बकाया शेष राशि स्वीकृत सीमा / आहरण अधिकार से लगातार अधिक रहती है । उन मामलों में जहां प्रधान परिचालन खाते में बकाया शेष राशि स्वीकृत सीमा / आहरण अधिकार से कम है, परंतु तुलनपत्र की तारीख की स्थिति के अनुसार लगातार छ: महीनों के लिए कोई जमा नहीं है अथवा उसी अवधि में नामे डाले गये ब्याज को समायोजित करने के लिए पर्याप्त जमा नहीं है, वहाँ इन खातों को अनियमित माना जाये ।

2.3 ‘अतिदेय’

किसी भी ऋण सुविधा के अधीन बैंक को देय कोई राशि ‘अतिदेय’ तब है यदि वह बैंक द्वारा निर्धारित तारीख को अदा नहीं की जाती है ।

3. आय-निर्धारण

3.1 आय-निर्धारण - नीति

    3.1.1 आय-निर्धारण की नीति वस्तुनिष्ठ होनी चाहिए और वह वसूली रिकॉड़ पर आधारित होनी चाहिए । अंतरराष्ट्रीय रूप से अनर्जक आस्तियों से होने वाली आय को प्रोद्भूत आधार पर मान्य नहीं किया जाता, बल्कि आय के रूप में केवल तभी माना जाता है जब वह वास्तव में प्राप्त होती है । अत: बैंकों को किसी अनर्जक आस्ति पर ब्याज वसूल नहीं करना चाहिए और उसे आय खाते में नहीं लेना चाहिए ।

    3.1.2 तथापि, मीयादी जमाराशियों, एन एस सी, आइ वी पी, के वी पी तथा जीवन पॉलिसियों की जमानत पर दिये जाने वाले अग्रिमों पर ब्याज को देय तारीख को आय खाते में लेना चाहिए, बशर्ते खातों में पर्याप्त मार्जिन उपलब्ध हो ।

    3.1.3 बकाया ऋणों के पुन: परक्रामण अथवा पुनर्निर्धारण के परिणामस्वरूप बैंकों द्वारा अर्जित शुल्कों और कमीशनों को ऋण की पुन: परक्रामित या पुनर्निर्धारित सीमा तक व्याप्त अवधि के लिए उपचय के आधार पर मान्यता दी जाये ।

    3.1.4 यदि सरकार द्वारा गारंटीकृत अग्रिम अनर्जक आस्ति बन जाते हैं, तो ऐसे अग्रिमों पर ब्याज को तब तक आय खाते में नहीं लेना चाहिए जब तक कि ब्याज वसूल नहीं हो जाता ।

    3.2 आय का प्रत्यावर्तन

    3.2.1 यदि, खरीदे और भुनाये गये बिलों सहित, कोई अग्रिम किसी वर्ष के अंत में अनर्जक आस्ति बन जाता है, तो तदनुरूपी पिछले वर्ष में जमा ब्याज को, प्रोद्भूत और आय खाते यदि वह वसूल न किया गया हो, प्रत्यावर्तित किया जाना चाहिए या उसके लिए प्रावधान किया जाना चाहिए । यह सरकार के गारंटीप्राप्त खातों पर भी लागू होगा ।

    3.2.2 अनर्जक आस्तियों के संदर्भ में, शुल्क, कमीशन और इसी प्रकार की प्रोद्भूत होने वाली आय वर्तमान अवधि में प्रोद्भूत होना बंद हो जानी चाहिए और यदि वह वसूल न की गयी हो तो पिछली अवधियों से प्रत्यावर्तित की जानी चाहिए या उनके लिए प्रावधान किया जाना चाहिए ।

    3.2.3 पट्टेवाली आस्तियां

    1. पट्टेवाली आस्ति पर शुद्ध पट्टा किराया (वित्त प्रभार) जो प्रोद्भूत हुआ हो और आय खाते में, आस्ति के अनर्जक बनने के पहले जमा किया गया हो तथा जो बिना वसूली के बना हुआ हो, उसे प्रत्यावर्तित किया जाना चाहिए या चालू लेखांकन अवधि में उसके लिए प्रावधान किया जाना चाहिए ।

    ii) ‘शुद्ध पट्टा किराये’ शब्दों का अर्थ लाभ-हानि लेखे के जमा में ली गयी वित्त प्रभार की राशि होगा और उसकी गणना सांविधिक मूल्यह्रास की राशि पट्टा समकरण खाते द्वारा समायोजित सकल पट्टा किराये के रूप में की जायेगी ।

    iii) भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान की काउंसिल द्वारा जारी ‘‘पट्टों के लिए लेखांकन संबंधी मार्गदर्शी नोट’’ के अनुसार बैंकों द्वारा पृथक पट्टा समकरण खाता खोला जाना चाहिए और पट्टा समायोजन खातें में, यथास्थिति, तदनुरूपी नामे या जमा किया जाना चाहिए । साथ ही, पट्टा समकरण खाते को हर वर्ष लाभ-हानि लेखे में अंतरित किया जाना चाहिए तथा उसे ‘सकल आय’ शीर्ष के अधीन पट्टा किराये के सकल मूल्य से कटौती / में जोड़ के रूप में बताया जाना चाहिए ।

    3.3 अनर्जक आस्तियों की वसूली का विनियोग

    3.3.1 अनर्जक आस्तियों पर वसूल ब्याज को आय खाते में लिया जाये, बशर्ते ब्याज हेतु खातों में जमा राशि संबंधित ऋणकर्ता को मंजूर नयी / अतिरिक्त ऋण सुविधाओं में से न हो ।

    3.3.2 अनर्जक आस्तियों (अर्थात् देय मूलधन या ब्याज) में वसूली के विनियोग के प्रयोजन के लिए बैंक और ऋणकर्ता के बीच स्पष्ट करार न होने से, बैंकों को कोई भी लेखांकन सिद्धांत अपनाना चाहिए तथा वसूलियों के विनियोग के अधिकार का एकसमान और सुसंगत रूप में प्रयोग करना चाहिए ।

    3.4 ब्याज लगाना

    बैंकों द्वारा किसी अनर्जक खाते में ब्याज नामे डालने के लिए अपना विवेक इस्तेमाल किये जाने तथा उसे ब्याज उचंत खाते में लेने या प्रोफार्मा खाते में ऐसे ब्याज का केवल रिकाड़ रखने पर कोई आपत्ति नहीं है ।

    3.5 अनर्जक आस्तियों की सूचना देना

    3.5.1 बैंकों को चाहिए कि वे प्रत्येक वर्ष लेखा-परीक्षा पूरी होने के बाद 31 मार्च की अनर्जक आस्तियों की रिपोर्ट भेजें । अनर्जक आस्तियां विदेशी शाखाओं के अग्रिमों सहित बैंकों के ग्लोबल संविभाग से संबंधित होंगी । रिपोर्ट अनुबंध I में दिये गये निर्धारित फार्मेट के अनुसार दी जानी चाहिए ।

    3.5.2 रिज़र्व बैंक को अनर्जक आस्ति के आंकड़े देते समय ब्याज उचंत खाते में धारित राशि को शुद्ध अनर्जक आस्तियां निकालते समय सकल अनर्जक आस्तियों तथा सकल अग्रिमों से घटाना चाहिए । जिन बैंकों ने अनर्जक अग्रिम खातों में देय ब्याज रखने के लिए ब्याज अग्रिमों में उचंत खाता नहीं रखा है, वे अनर्जक आस्तियों पर प्राप्य ब्याज की राशि को रिपोर्ट में फुटनोट के रूप में दें ।

    3.5.3 जहां कहीं अनर्जक आस्तियों की रिज़र्व बैंक को सूचना दी जाती है, वहां यदि कोई तकनीकी बट्टे खाते की राशि हो, तो उसे बकाया सकल अग्रिमों तथा सकल अनर्जक आस्तियों में से कम किया जाना चाहिए, ताकि सूचित की जाने वाली अनर्जक आस्तियों की मात्रा में कोई अशुद्धि न हो ।

    4. आस्ति वर्गीकरण

    4.1 अनर्जक आस्तियों की श्रेणियां

    बैंकों के लिए अपेक्षित है कि वे अनर्जक आस्तियों को, जिस अवधि के लिए आस्ति अनर्जक बनी रहती है तथा देय राशि की वसूली योग्यता के आधार पर और आगे निम्नलिखित तीन श्रेणियों में वर्गीकृत करें :

    क) अवमानक आस्तियाँ
    ख) संदिग्ध आस्तियाँ और
    ग) हानि वाली आस्तियाँ

    4.1.1 अवमानक आस्तियाँ

    अवमानक आस्ति वह होती है जो अधिक से अधिक दो वर्ष के लिए निष्क्रिय आस्ति के रूप में वर्गीकृत की गयी है । 31 मार्च 2001 से अवमानक आस्ति वह है जो 18 महीनों तक या उससे कम अवधि के लिए अनर्जक बनी रहती है । इस प्रकार के मामलों में ऋणकर्ता / गारंटीकर्ता की चालू शुद्ध कीमत अथवा भारित जमानत का बाजार मूल्य बैंक को देय राशियों की पूरी वसूली सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त नहीं है । दूसरे शब्दों में, इस प्रकार की आस्ति में भली-भांति परिभाषित वह ऋण की कमजोरी होगी जो ऋण का परिसमापन बाधित करेगी और जिसमें कुछ ऐसी संभावना निहित है कि यदि इन कमियों को ठीक नहीं किया गया तो बैंक को कुछ हानि होगी ।

    4.1.2 संदिग्ध आस्तियां

    संदिग्ध आस्ति वह है जो दो वर्ष से अधिक समय के लिए अनर्जक आस्ति रही है । 31 मार्च 2001 से किसी आस्ति को संदिग्ध के रूप में तब वर्गीकृत किया जाना है जब वह 18 महीनों से अधिक की अवधि के लिए अनर्जक आस्ति बनी रहती है । संदिग्ध के रूप में वर्गीकृत किये गये ऋण में वे सभी कमजोरियाँ निहित हैं जो अवमानव आस्ति में हैं और साथ ही यह विशेषता भी जोड़ी जाती है कि उक्त कमजोरियाँ वर्तमान में ज्ञात तथ्यों, शर्तों और मूल्यों के आधार पर उनकी पूर्व उगाही अथवा परिसमापन अत्यधिक शंकास्पद और असंभाव्य हो जाता है ।

    31 मार्च 2005 से किसी आस्ति को उस स्थिति में संदिग्ध के रूप में वर्गीकृत किया जायेगा, यदि वह 12 महीने के लिए अवमानक बनी रहे ।

    4.1.3 हानिवाली आस्तियां

    घाटे की आस्ति वह है जहां बैंक अथवा आंतरिक अथवा बाह्य लेखा-परीक्षकों अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक के निरीक्षण द्वारा घाटे को पहचाना गया है किंतु उस राशि को पूर्णत: बट्टे खाते नहीं डाला गया है । दूसरे शब्दों में, इस प्रकार की आस्ति वसूली योग्य नहीं मानी जाती और इस प्रकार की आस्ति विश्वसनीय आस्ति के रूप में जारी रखना आवश्यक नहीं

    होता, हालांकि उसके कुछ बचाव या वसूली मूल्य की प्राप्ति हो सकती है ।

    4.2 आस्तियों के वर्गीकरण के लिए दिशा-निर्देश

    4.2.1 मोटे तौर पर कहा जाये तो, उपर्युक्त श्रेणियों में आस्तियों का वर्गीकरण सुस्पष्ट ऋण कमजोरियों की मात्रा और देय राशियों की वसूली के लिए संपार्श्विक जमानत पर निर्भरता की सीमा को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए ।

    4.2.2 बैंकों को विशेष तौर पर अधिक मूल्य वाले खातों के संबंध में अनर्जक आस्तियों की पहचान में देरी करने अथवा स्थगित करने की प्रवृत्ति को समाप्त करने के लिए उपयुक्त आंतरिक प्रणालियां तैयार करनी चाहिए । बैंकों को अपने संबंधित कारोबारी स्तरों पर निर्भर रहते हुए किन खातों को अधिक मूल्य वाले खाते की श्रेणी में रखा जायेगा, इसका निर्णय करने के लिए न्यूनतम सीमा निर्धारित करनी चाहिए । यह न्यूनतम सीमा पूरे लेखा वर्ष के लिए वैध होनी चाहिए । उचित आस्ति वर्गीकरण सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदारी और वैध स्तर बैंकों द्वारा तय किये जाने चाहिए । प्रणाली द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वर्तमान दिशा-निर्देशों के अनुसार जिस तारीख को खाते को अनर्जक आस्ति के

    रूप में वर्गीकृत किया जाये उस तारीख से एक महीने में आस्ति-वर्गीकरण संबंधी किसी भी तरह के संदेह को विनिर्दिष्ट आंतरिक माध्यम से दूर कर लिया जाये ।

    4.2.3 अस्थायी कमियों वाले खाते

    (i) किसी आस्ति का अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकरण वसूली के रिकाड़ पर आधारित होना चाहिए । बैंक को किसी अग्रिम खाते को केवल इस कारण से अनर्जक खाते के रूप में वर्गीकृत नहीं करना चाहिए कि उसमें कुछ कमियां विद्यमान हैं, जो अस्थायी स्वरूप की है, जैसे अद्यतन उपलब्ध स्टॉक विवरण पर आधारित पर्याप्त आहरण शक्ति की अनुपलब्धता, बकाया जमा शेष अस्थायी रूप से सीमा से अधिक होना, स्टॉक विवरण प्रस्तुत न करना तथा देय तारीखों को सीमाओं को नवीकृत न करना, आदि । इस प्रकार की कमियों वाले खातों के वर्गीकरण के मामले में बैंक निम्नलिखित दिशा-निर्देश अपना सकते हैं :

    (क) बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कार्यशील पूंजी खातों में किये गये आहरणों के लिए पर्याप्त चालू आस्तियां रखी गयी हों, क्योंकि संकट के समय पहले चालू आस्तियों का विनियोजन किया जाता है । आहरणाधिकार स्टॉक विवरण के आधार पर प्राप्त किया जाना आवश्यक है, जो चालू हो । तथापि, बड़े ऋणकर्ताओं की व्यावहारिक कठिनाइयों पर विचार करते हुए आहरणाधिकार निश्चित करने के लिए बैंक जिन स्टॉक विवरणों पर निर्भर रहते हैं वे तीन माह से अधिक पुराने नहीं होने चाहिए । तीन माह से अधिक पुराने स्टॉक विवरणों से परिकलित आहरणाधिकार पर आधारित खाते की बकाया राशियों को अनियमित माना जायेगा । यदि ऐसे अनियमित आहरणों की अनुमति खाते में लगातार 180 दिन की अवधि के लिए दी जाये तो कार्यशील पूंजी ऋण खाता अनर्जक हो जायेगा, भले ही यूनिट कार्य कर रहा हो अथवा ऋणकर्ता की वित्तीय स्थिति संतोषजनक हो ।

    (ख) नियत तारीख / तदर्थ स्वीकृति की तारीख से तीन महीने तक नियमित और तदर्थ ऋण सीमाओं की पुनरीक्षा कर ली जानी चाहिए / उन्हें नियमित कर लिया जाना चाहिए । ऋणकर्ताओं से वित्तीय विवरण और अन्य आंकड़े उपलब्ध न होने जैसे अवरोधों की स्थिति में शाखा को इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करने चाहिए कि ऋण सीमाओं का नवीकरण / उसकी समीक्षा पहले से चल रही है और वह शीघ्र पूरी हो जायेगी । किसी भी स्थिति में, एक सामान्य अनुशासन के रूप में छ: माह से अधिक की देरी को वांछनीय नहीं माना जाता है । अत: नियत तारीख / तदर्थ स्वीकृति की तारीख से 180 दिन में जिन खातों में नियमित / तदर्थ ऋण सीमाओं की पुनरीक्षा / उनका नवीकरण न कर लिया गया हो उन्हें अनर्जक माना जायेगा ।

    4.2.4 तुलनपत्र की तारीख के निकट नियमित किये गये खाते

    जिन ऋण खातों में तुलनपत्र की तारीख से पूर्व एक-दो बार राशियां जमा की गयी हों, उनका आस्ति-वर्गीकरण सावधानीपूर्वक और व्यक्तिनिष्ठता की गुंजाइश के बिना किया जाना

    चाहिए । जहां खाता उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर अंतर्निहित कमजोरियों का संकेत दे रहा हो, वहां खाते को अनर्जक माना जाना चाहिए । अन्य वास्तविक मामलों में, बैंकों को उनके कार्यनिष्पादन की स्थिति के बारे में संदेह को समाप्त करने के लिए खाते को नियमित करने के ढंग के बारे में सांविधिक लेखा-परीक्षकों / निरीक्षण अधिकारियों के समक्ष संतोषजनक साक्ष्य अवश्य प्रस्तुत करना चाहिए ।

    4.2.5 आस्ति वर्गीकरण ऋणकर्तावार हो न कि सुविधावार हो

    1. उस स्थिति की अभिकल्पना करना कठिन है जिसमें कोई एक सुविधा समस्यापूर्ण हो जाती है और दूसरी सुविधाएं नहीं । अत: किसी ऋणकर्ता को दी गयी सभी
      सुविधाएं निष्क्रिय आस्ति के रूप में मानी जायेंगी, न कि कोई सुविधा विशेष अथवा कोई अंश, जो अनियमित हो गया हो ।
    2. यदि साखपत्र विकसित करने या गारंटियां लागू करने के फलस्वरूप उत्पन्न नामे राशियों को अलग खाते में रखा जाता है, तो उस खाते में शेष बकाया राशि को भी आय-निर्धारण, आस्ति-वर्गीकरण और प्रावधान करने से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड लागू करने के प्रयोजन के लिए ऋणकर्ता के प्रधान परिचालन खाते के भाग के रूप में माना जाना चाहिए ।

    4.2.6 सहायता संघीय व्यवस्थाओं के अंतर्गत अग्रिम

    संघीय व्यवस्था के अंतर्गत खातों का आस्ति-वर्गीकरण अलग-अलग सदस्य बैंकों की वसूली के अभिलेख और अग्रिमों की वसूली की संभावनाओं को प्रभावित करने वाले अन्य पहलुओं पर आधारित होना चाहिए । जब संघीय ऋण-व्यवस्था के अंतर्गत उधारकर्ता द्वारा प्रेषित निधियां एक बैंक के पास एकत्र की जाती हैं और / या प्रेषित निधियां प्राप्त करने वाला बैंक जब अन्य सदस्य बैंकों का हिस्सा नहीं देता है तो अन्य सदस्य बैंकों की बहियों में उक्त खाते में ‘अप्राप्ति’ मानी जायेगी और इस प्रकार उक्त खाता अनर्जक-आस्ति माना जायेगा । इसलिए संघीय ऋण-व्यवस्था में भाग लेने वाले बैंकों को अपनी संबंधित लेखा बहियों में समुचित आस्ति-वर्गीकरण सुनिश्चित करने के लिए वसूली का अपना हिस्सा अग्रणी बैंक से अंतरित कराने की व्यवस्था करनी चाहिए या वसूली के अपने हिस्से को अंतरित करने के लिए अग्रणी बैंक से स्पष्ट सहमति प्राप्त करनी चाहिए ।

    4.2.7 ऐसे खाते जहां प्रतिभूति के मूल्य में ह्रास हुआ है

    1. ऋण-हानि के गंभीर मामले में किसी अनर्जक आस्ति को वर्गीकरण की विभिन्न श्रेणियों से होकर गुजरने की आवश्यकता नहीं है और ऐसी आस्तियों को तत्काल संदिग्ध / हानि-आस्ति के रूप में, जैसा भी उचित हो, वर्गीकृत किया जाना चाहिए । प्रतिभूति के मूल्य में ह्रास को तब महत्वपूर्ण माना जा सकता है, जब प्रतिभूति का वसूलीयोग्य मूल्य पिछले निरीक्षण के समय बैंक द्वारा निर्धारित या भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा स्वीकृत मूल्य के, जैसी भी स्थिति हो, 50 प्रतिशत से कम हो । ऐसी अनर्जक आस्तियों को तत्काल संदिग्ध
    2. श्रेणी में वर्गीकृत किया जाना चाहिए और संदिग्ध आस्तियों के लिए लागू प्रावधान किया जाना चाहिए ।

    3. यदि बैंक / अनुमोदित मूल्यांकनकर्ता / रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित जमानत का वसूली योग्य मूल्य ऋण खातों में बकाया राशि के 10 प्रतिशत से कम है, तो जमानत के अस्तित्व को अनदेखा किया जाना चाहिए और आस्ति को सीधे ही हानि वाली आस्ति के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए । बैंक द्वारा इसे या तो बट्टे खाते डाला जा सकता है अथवा इसके लिए पूर्णत: प्रावधान किया जा सकता है ।

    4.2.8 वाणिज्य बैंकों द्वारा प्राथमिक कृषि ऋण समितियों / कृषक सेवा समितियों को दिये गये अग्रिम

    बैंकों द्वारा प्राथमिक कृषि ऋण समितियों / कृषक सेवा समितियों को दिये गये कृषि अग्रिमों तथा अन्य प्रयोजनों के लिए मंजूर किये गये अग्रिमों के संबंध में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों / कृषक सेवा समितियों को मंजूर केवल वह विशिष्ट ऋण सुविधा ही अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकृत की जायेगी जिससे गत देय (पास्ट ड्यू) (देय तिथि के एक माह बाद) होने के पश्चात् दो फसल मौसमों (दो अर्ध-वर्षोंं से अधिक नहीं) / दो तिमाहियों तक की अवधि के लिए चूक की गयी तथा प्राथमिक कृषि ऋण समितियों / कृषक सेवा समितियों को मंजूर सभी ऋण सुविधाएं अनर्जक आस्ति नहीं होंगी । आगे उधार देने की व्यवस्था के बाहर बैंक द्वारा किसी प्राथमिक कृषि ऋण समिति / कृषक सेवा समिति के सदस्य उधारकर्ता को मंजूर अन्य प्रत्यक्ष ऋण और अग्रिम अनर्जक आस्ति होंगे भले ही उसी उधारकर्ता को मंजूर ऋण सुविधाओं में से कोई भी ऋण सुविधा के अनर्जक आस्ति हो जाये ।

    4.2.9 मीयादी जमाराशियों, एन एस सी, के वी पी / आइ वी पी आदि की जमानत पर अग्रिम

    मीयादी जमाराशियों, अभ्यर्पण के लिए पात्र राष्ट्रीय बचतपत्र, आइ वी पी, के वी पी और जीवन पॉलिसियों की जमानत पर दिये गये अग्रिमों को अनर्जक आस्ति नहीं माना जाना चाहिए । सोने के आभूषणों, सरकारी प्रतिभूतियों और अन्य सभी प्रतिभूतियों की जमानत पर दिये जाने वाले अग्रिम इस छूट के अंतर्गत नहीं आते ।

    4.2.10 ब्याज के भुगतान के लिए स्थगन वाले ऋण

    1. औद्योगिक परियोजनाओं अथवा कृषि, बागान आदि के लिए दिये गये बैंक वित्त के मामले में, जहाँ ब्याज का भुगतान ऋण स्थगन अथवा परियोजना के प्रारंभ से कार्यारंभ तक की अवधि बीतने के बाद ही ‘‘देय’’ होता है । इसलिए इस प्रकार की राशि ‘गत देय’ नहीं होती है और इसलिए अनर्जक आस्ति ब्याज नामे करने की तारीख के संदर्भ में होती है । यदि वसूली नहीं होती तो ब्याज की अदायगी के लिए देय तारीख के बाद वह राशि अतिदेय हो जाती है ।
    2. कर्मचारियों को दिये गये आवास ऋणों अथवा इसी तरह के अग्रिमों के मामले में, जहां मूलधन की वसूली के बाद ब्याज भुगतानयोग्य होता है, वहां ब्याज को पहली तिमाही के बाद से ही ‘‘गत देय’’ मानने की आवश्यकता नहीं है । इस प्रकार के ऋणों / अग्रिमों को अनर्जक आस्ति के रूप में तभी वर्गीकृत किया जाना चाहिए जब नियत तारीख को मूलधन की किस्त की चुकौती अथवा ब्याज की अदायगी में चूक हो ।

    4.2.11 कृषि अग्रिम

    i) कृषि प्रयोजन के लिए दिये गये अग्रिमों के संदर्भ में, जहां ब्याज और / या मूलधन की किस्त दो फसल मौसमों के लिए पिछला बकाया बनने के बाद परन्तु दो छमाहियों से अनधिक अवधि के लिए अदत्त बनी रहती है, वहां इस प्रकार के अग्रिम को अनर्जक अग्रिम माना जाना चाहिए । उक्त मानदंड उन सभी प्रत्यक्ष कृषि अग्रिमों पर लागू किया जाना चाहिए, जो प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के ऋण के संबंध में 1 अगस्त 2001 के मास्टर परिपत्र सं. आरपीसीडी. प्लान. बीसी. 12/04.09.01/2001-2002 की मद सं. 1.1, 1.1.2(i) से (vii) तक, 1.1.2(viii) (क)(1) और 1.1.2(viii) (ख)(1) में सूचीबद्ध किये गये हैं । इन मदों की सूची का अंश अनुबंध II में दिया गया है । ऊपर विनिर्दिष्ट ऋणों से इतर अन्य कृषि ऋणों के संबंध में अनर्जक आस्तियों का निर्धारण उसी आधार पर किया जायेगा, जिस तरह कृषि से इतर अग्रिमों के लिए वर्तमान में 180 दिन की चूक के मामले में किया जाता है ।

    ii) जहां प्राकृतिक आपदाएं कृषि ऋणकर्ताओं की चुकौती की क्षमता कम कर देती हैं, वहां बैंक राहत उपाय के रूप में निम्नलिखित के बारे में स्वयं निर्णय ले सकते हैंं - अल्पकालिक उत्पादन ऋण को मीयादी ऋण में परिवर्तित करना अथवा चुकौती की अवधि को पुनर्निर्धारित करना; और रिज़र्व बैंक के 20 जून 1998 के परिपत्र आर पी सी डी. सं. पी एल एफ एस. बीसी. 128/05.04.02/97-98 तथा 21 जुलाई 1998 के परिपत्र आर पी सी डी. सं. पी एल एफ एस. बीसी. 9/ 05.01.04 /98-99 में उल्लिखित विभिन्न दिशा-निर्देशों के अधीन नये अल्पकालिक ऋण स्वीकृत करना ।

    iii) परिवर्तन या पुनर्निर्धारण के ऐसे मामलों में, मीयादी ऋण तथा नये अल्पकालिक ऋण को चालू देयताओं के रूप में माना जाये तथा उनका वर्गीकरण अनर्जक आस्तियों के रूप में करने की आवश्यकता नहीं है । इन ऋणों का आस्ति-वर्गीकरण इसके बाद संशोधित शर्तों द्वारा प्रबंधित होगा तथा उसे अनर्जक आस्ति तभी माना जायेगा जब ब्याज और / या मूलधन की किस्त पहले देय होने के बाद दो फसल मौसमों तक, परन्तु दो छमाहियों से अनधिक अवधि के लिए अदत्त बनी रहे ।

    4.2.12 सरकार द्वारा गारंटीकृत अग्रिम

    केन्द्र सरकार की गारंटी द्वारा समर्थित ऋण सुविधाएं अतिदेय होने पर भी अनर्जक आस्ति के रूप में तभी मानी जायें जब सरकार लागू की गयी अपनी गारंटी को अस्वीकार कर दे । सरकार की गारंटी प्राप्त अग्रिमों को अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकृत करने से यह छूट आय के निर्धारण के

    प्रयोजन के लिए नहीं है । पहली अप्रैल 2000 से, राज्य सरकार की गारंटियों की जमानत पर मंजूर अग्रिमों को सामान्य तौर पर अनर्जक आस्ति के रूप में तब वर्गीकृत किया जाना चाहिए जब गारंटी लागू की गयी हो और वह दो तिमाहियों से अधिक के लिए चूक वाली बनी रहे । 31 मार्च 2001 से चूक की अवधि को संशोधित कर 180 दिन से अधिक कर दिया गया है ।

    4.2.13 ऋणों को पुनर्व्यवस्थित / पुनर्निर्धारित करना

    i) जहां ब्याज और मूलधन के संबंध में ऋण करार की शर्तें उत्पादन शुरू होने के बाद बातचीत से पुन: तय की गयी हैं या पुन: निर्धारित की गयी हैं, वहां मानक आस्ति को अवमानक के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए और उसे बातचीत से पुन: तय या पुन: निर्धारित शर्तों के अधीन संतोषजनक कार्य-निष्पादन के कम से कम एक वर्ष के लिए ऐसी श्रेणी में बने रहना चाहिए । अवमानक और संदिग्ध आस्तियों के मामले में भी पुन: निर्धारण किसी बैंक को अग्रिम की गुणवत्ता का दर्जा स्वत: बढ़ाने के लिए तब तक पात्रता प्रदान नहीं करता जब तक कि पुन: निर्धारित / बातचीत से पुन: तय शर्तों के अधीन संतोषजनक कार्य-निष्पादन न हो । बैंकों से इस आशय के अभ्यावेदन के फलस्वरूप कि भले ही शर्तों का संशोधन ऋणकर्ता से प्राप्य राशियों की चुकौती के आश्वासन को खतरे में नहीं डालता हो, फिर भी ऊपर बतायी गयी शर्तें मानक और अवमानक ऋण आस्तियों को पुनर्व्यवस्थित करने से बैंकों को रोकती हैं, मानक और अवमानक ऋण आस्तियों को पुनर्व्यवस्थित करने से संबंधित मानदंडों की मार्च 2001 में समीक्षा की गयी । खातों की पुनर्व्यवस्था के संदर्भ में, निम्नलिखित अवस्थाओं की पहचान की जा सकती है, जिनमें ऋण करार की शर्तों को पुनर्व्यवस्थित / पुनर्निर्धारित / बातचीत से पुन: तय किया जा सकता है :

    (क) वाणिज्यिक उत्पादन शुरू होने के पूर्व,
    (ख) वाणिज्यिक उत्पादन शुरू होने के बाद, परंतु आस्ति के अवमानक आस्ति के रूप में वर्गीकृत किये जाने से पहले,

    (ग) वाणिज्यिक उत्पादन शुरू होने के बाद तथा जब आस्ति को अवमानक आस्ति के रूप में वर्गीकृत किया गया हो ।

    ऊपर बतायी गयी तीनों अवस्थाओं में से प्रत्येक में, तैयार किये गये पुनर्व्यवस्थित करने के पैकेज के भाग के रूप में, परित्याग सहित या परित्याग के बिना, मूलधन और / या ब्याज का पुनर्निर्धारण आदि किया जा सकता है ।

    ii) पुनर्व्यवस्थित मानक खातों का व्यवहार

    (क) पहली दोनों अवस्थाओं में से किसी अवस्था में सिर्फ मूल धन की किस्तों को पुर्व्यवस्थित किये जाने से एक मानक आस्ति को अवमानक आस्ति की श्रेणी में वर्गीकृत नहीं किया जायेगा, बशर्ते उधार / ऋण की सुविधा पूर्णत: जमानतयुक्त हो ।

    (ख) ऊपर बतायी गयी पहली दो अवस्थाओं में से किसी अवस्था में ब्याज को पुनर्व्यवस्थित किये जाने से किसी आस्ति का दर्जा घटाकर उसे अवमानक श्रेणी में नहीं लाया जायेगा, बशर्ते ब्याज के मामले में वर्तमान मूल्य के रूप में मापी गयी परित्याग की राशि को, यदि कोई हो, या तो बट्टे खाते डाल दिया गया हो या उसके परित्याग की मात्रा तक के लिए प्रावधान किया गया हो । इस प्रयोजन के लिए किसी खाते के मामले में मूल ऋण करार के अनुसार भविष्य में देय ब्याज को ऋणकर्ता की जोखिम श्रेणी के लिए उपयुक्त दर पर वर्तमान मूल्य (अर्थात् चालू मूल ऋण दर (पी एल आर) + ऋणकर्ता की श्रेणी के लिए उपयुक्त ऋण जोखिम प्रीमियम) पर भुनाया जाना चाहिए तथा उसकी तुलना उसी आधार पर भुनाये गये पुनर्व्यवस्थित करने के पैकेज के अंतर्गत प्राप्त किये जाने के लिए प्रत्याशित देय राशियों के वर्तमान मूल्य से की जानी चाहिए ।

    (ग) यदि वर्तमान मूल्य के रूप में ब्याज की राशि में कोई परित्याग शामिल हो, जैसा कि उक्त ‘ख’ में उल्लेख किया गया है, तो परित्याग की राशि को या तो बट्टे खाते डाला जाना चाहिए या परित्याग की मात्रा तक के लिए प्रावधान किया जाना चाहिए ।

    iii) पुनर्व्यवस्थित अवमानक खातों का व्यवहार

    (क) मूलधन की किस्तों का ही पुनर्निर्धारण किये जाने मात्र से अवमानक आस्ति विनिर्दिष्ट अवधि के लिए अवमानक श्रेणी में बनी रहने के लिए पात्र होगी, बशर्ते उधार / ऋण की सुविधा पूर्णत: जमानतयुक्त हो ।

    (ख) ब्याज का पुनर्निर्धारण किये जाने से अवमानक आस्ति विनिर्दिष्ट अवधि के लिए अवमानक श्रेणी में वर्गीकृत किये जाने के लिए पात्र बनी रहेगी, बशर्ते ब्याज के मामले में वर्तमान मूल्य के रूप में मापी गयी परित्याग की राशि, यदि कोई हो, या तो बट्टे खाते डाल दी गयी हो या उसके परित्याग की मात्रा तक के लिए प्रावधान किया गया हो । इस प्रयोजन के लिए किसी खाते के मामले में मूल ऋण करार के अनुसार भविष्य में देय ब्याज को ऋणकर्ता की जोखिम श्रेणी के लिए उपयुक्त दर पर वर्तमान मूल्य (अर्थात् चालू मूल ऋण दर + ऋणकर्ता की श्रेणी के लिए उपयुक्त ऋण जोखिम प्रीमियम) पर भुनाया जाना चाहिए तथा उसकी तुलना उसी आधार पर भुनाये गये पुनर्व्यवस्थित करने के पैकेज के अंतर्गत प्राप्त किये जाने के लिए प्रत्याशित देयराशियों के वर्तमान मूल्य से की जानी चाहिए ।

    (ग) यदि वर्तमान मूल्य के रूप में ब्याज की राशि में कोई परित्याग शामिल हो, जैसा कि उक्त ‘ख’ में उल्लेख किया गया है, तो परित्याग की राशि को या तो बट्टे खाते डाला जाना चाहिए या परित्याग की मात्रा तक के लिए प्रावधान किया जाना चाहिए । जिन मामलों में गत देय ब्याज को बट्टे खाते डालकर परित्याग किया

    गया हो उन मामलों में भी आस्ति को अवमानक आस्ति के रूप में माना जाना जारी रखा जाये ।

    (iv) पुनर्व्यवस्थित खातों का उन्नयन

    जो अवमानक खाते पुनर्व्यवस्थित आदि किये गये हैं, चाहे वह मूलधन की किस्त के संबंध में हो या ब्याज राशि के संबंध में, किसी भी रूप में हो, उन्हें एक निर्दिष्ट अवधि के बाद ही मानक श्रेणी में उन्नत किया जा सकता है, अर्थात् ब्याज या मूलधन, जो भी पहले देय हो, का पहला भुगतान, देय हो जाने की तारीख के बाद एक वर्ष की अवधि तक वह संतोषजनक रूप में निष्पादित रहे । पहले किये गये प्रावधान की राशि, ऊपर बताये गये अनुसार वर्तमान मूल्य में ब्याज राशि में परित्याग के लिए प्रावधान की गयी शुद्ध राशि को भी एक वर्ष के बाद प्रत्यावर्तित किया जा सकता है । इस एक वर्ष की अवधि में यदि खाता संतोषजनक रूप में रहे तो अवमानक आस्ति अपने वर्गीकरण में कम श्रेणी वाली नहीं होगी । परंतु यदि एक वर्ष की अवधि में संतोषजनक निष्पादन दिखायी न पड़े तो पुनर्व्यवस्थित खाते का आस्ति वर्गीकरण पुनर्व्यवस्थित करने के पहले के भुगतान कार्यक्रम के संदर्भ में लागू विवेकपूर्ण मानदंडों के अनुसार शासित होगा ।

    (v) सामान्य

    (क) ये अनुदेश सभी प्रकार की ऋण सुविधाओं पर लागू होंगे, जिनमें औद्योगिक इकाइयों को दी गयी कार्यशील पूंजी सीमायें शामिल हैं, बशर्ते वे गोचर जमानत द्वारा पूरी तरह सुरक्षित हों ।

    (ख) चूंकि व्यापार में केवल पण्यों की खरीद और बिक्री शामिल है और निर्माता इकाइयों के सामने आने वाली वाणिज्यिक उत्पादन, समय और लागत बढ़ने आदि अड़ॅचनों जैसी समस्यायें उन पर लागू नहीं हैं, इसलिए व्यापारियों को दी गयी ऋण सुविधाओं की पुनर्व्यवस्था / चुकौती के पुनर्निर्धारित कार्यक्रम पर ये दिशा-निर्देश लागू नहीं किये जाने चाहिए ।

    (ग) जिन ऋणों को पुनर्व्यवस्थित / चुकौती कार्यक्रम का पुनर्निर्धारण किया जा रहा हो उन ऋण सुविधाओं के लिए कितनी सुरक्षा उपलब्ध है, इसका निर्धारण करते समय संपार्श्विक जमानत को भी हिसाब में लिया जायेगा, बशर्ते इस प्रकार की संपार्श्विक जमानत गोचर जमानत हो और बैंक के पक्ष में उचित रूप से प्रभारित हो तथा प्रवर्तक /अन्य की गारंटी जैसे अगोचर रूप में न हो ।

    4.2.14 कंपनी ऋण पुनर्विन्यास

    पृष्ठभूमि

    (i) चुकौती के लिए भरसक प्रयत्न करने और इरादा होने के बावजूद कभी-कभी कंपनियों को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । इन कठिनाइयों के कारण उनके नियंत्रण से बाहर होते हैं और कतिपय आंतरिक कारण भी होते हैं । कंपनियों के पुनरुज्जीवन और साथ ही बैंकों एवं वित्तीय संस्थाओं द्वारा ऋण दी गयी राशि की सुरक्षा की दृष्टि से वास्तविक स्थितियों में पुनर्विन्यास के माध्यम से समय पर सहायता
    देना आवश्यक हो जाता है । परंतु ऋण देनेवाली विभिन्न संस्थाओं के बीच सहमति में विलंब इस प्रकार के प्रयासों में रुकावट पैदा करता है ।

    (ii) इंग्लैंड, थाइलैंड, कोरिया आदि अन्य देशों के अनुभव के आधार पर कंपनी ऋण के पुनर्विन्यास के लिए संस्थागत तंत्र भारत में बनाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए एक कंपनी ऋण पुनर्विन्यास प्रणाली विकसित की गयी है, जो निम्नप्रकार है :

    उद्देश्य

    (i) कंपनी ऋण पुनर्विन्यास के ढांचे का उद्देश्य औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोड़ (बी आइ एफ आर), ऋण वसूली अधिकरण (डी आर टी) तथा अन्य कानूनी कार्यवाही की परिधि से बाहर के आंतरिक और बाह्य कारकों से प्रभावित संभाव्य क्षमता वाली कंपनियों के कंपनी ऋणों के पुनर्विन्यास के लिए समय पर और पारदर्शी तंत्र सुनिश्चित करना है, जो सभी संबंधित संस्थाओं के लिए लाभदायक हो । विशेष रूप से ढांचे का लक्ष्य संभाव्य क्षमता वाली उन कंपनियों को बचाना होगा जो कतिपय आंतरिक और बाह्य कारकों से प्रभावित हों और इसका उद्देश्य ऋणदाताओं तथा अन्य हितधारकों की हानियों को सुव्यवस्थित और समन्वित पुनर्विन्यास कार्यक्रम के माध्यम से कम से कम करना भी है ।

    विन्यास

    (ii) अपने देश में कंपनी ऋण पुनर्विन्यास प्रणाली का ढांचा तीन स्तरीय होगा :

    (क) कंपनी ऋण पुनर्विन्यास स्थायी मंच

    (ख) कंपनी ऋण पुनर्विन्यास अधिकारप्राप्त समूह

    (ग) कंपनी ऋण पुनर्विन्यास कक्ष

    (अ) कंपनी ऋण पुनर्विन्यास स्थायी मंच :

    (क) कंपनी ऋण पुनर्विन्यास स्थायी मंच इस प्रणाली में भाग लेने वाली सभी वित्तीय संस्थाओं और बैंकों के प्रतिनिधियों का सामान्य मंच (बॉडी) होगा । सभी वित्तीय संस्थाओं और बैंकों को अपने हित में इस प्रणाली में भाग लेना चाहिए । कंपनी ऋण पुनर्विन्यास स्थायी मंच एक स्वयं

    में अधिकारप्राप्त मंच होगा, जो नीति और दिशा-निर्देश निर्धारित करेगा, कंपनी ऋण पुनर्विन्यास की प्रगति का मार्गदर्शन करेगा और उस पर निगरानी रखेगा ।

    यह मंच ऋणदाताओं और ऋणकर्ताओं दोनों के लिए (परामर्श द्वारा) सभी संबंधित संस्थाओं के हित में ऋण पुनर्विन्यास योजनायें बनाने के लिए नीतियां और दिशा-निर्देश सर्वसम्मति और सामूहिक रूप से विकसित करने के लिए एक आधिकारिक मंच प्रदान प्रदान करेगा ।

    कंपनी ऋण पुनर्विन्यास स्थायी मंच में अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक; प्रबंध निदेशक, भारतीय औद्योगिक ऋण और निवेश निगम लि.; अध्यक्ष, भारतीय स्टेट बैंक; अध्यक्ष, भारतीय बैंक संघ और कार्यपालक निदेशक, भारतीय रिज़र्व बैंक और साथ ही प्रणाली में स्थायी सदस्य के रूप में भाग लेने वाले सभी बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक शामिल होंगे । यह मंच एक वर्ष की अवधि के लिए अपना अध्यक्ष चुनेगा और बाद के वर्षों में क्रमिक रूप से चयन का सिद्धांत अपनाया जायेगा । परन्तु यह मंच पूर्णकालिक अधिकारी के रूप में एक कार्यकारी अध्यक्ष रखने का निर्णय कर सकता है । कार्यकारी अध्यक्ष कंपनी ऋण पुनर्विन्यास स्थायी मंच का मार्गदर्शन करने और उसके निर्णयों के निर्वाह का कार्य करेगा ।

    (ख) कंपनी ऋण पुनर्विन्यास का मुख्य समूह (कोर ग्रुप) कंपनी ऋण पुनर्विन्यास स्थायी मंच में से बनाया जायेगा, जो स्थायी मंच की ओर से बैठकों के संयोजन और नीति संबंधी निर्णय लेने में स्थायी मंच की सहायता करेगा । इस मुख्य समूह में आइ डी बी आइ, आइ सी आइ सी आइ, भारतीय स्टेट बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, पंजाब नेशनल बैंक, भारतीय बैंक संघ के मुख्य कार्यपालक और भारतीय रिज़र्व बैंक के एक प्रतिनिधि शामिल होंगे ।

    कंपनी ऋण पुनर्विन्यास स्थायी मंच की बैठक हर छ: महीने में कम से कम एक बार होगी और मंच कंपनी ऋण पुनर्विन्यास प्रणाली की प्रगति की समीक्षा करेगा और उस पर निगरानी रखेगा । यह मंच ऋण के पुनर्विन्यास के लिए कंपनी ऋण पुनर्विन्यास (सी डी आर) अधिकारप्राप्त समूह और कंपनी ऋण पुनर्विन्यास (सी डी आर) कक्ष द्वारा अपनायी जाने वाली नीतियां और दिशा-निर्देश भी निर्धारित करेगा तथा उनके सहज रूप से कार्य-निष्पादन एवं ऋण पुनर्विन्यास के लिए निर्धारित समय-सूची का दृढ़ता से पालन सुनिश्चित करेगा । यह मंच कंपनी ऋण पुनर्विन्यास अधिकारप्राप्त समूह और कंपनी ऋण पुनर्विन्यास कक्ष के अलग-अलग निर्णयों की भी समीक्षा करेगा ।

    (ग) कंपनी ऋण पुनर्विन्यास स्थायी मंच, कंपनी ऋण पुनर्विन्यास अधिकारप्राप्त समूह और कंपनी ऋण पुनर्विन्यास कक्ष (जिनका वर्णन आगे के पैराग्राफों में है) का कार्यालय आइ डी बी आइ में होगा । प्रशासनिक तथा अन्य लागतों में सभी वित्तीय संस्थाओं और बैंकों की हिस्सेदारी होगी । हिस्सेदारी का स्वरूप स्थायी मंच द्वारा तय किया जायेगा ।

    (आ)

    कंपनी ऋण पुनर्विन्यास अधिकारप्राप्त समूह और कंपनी ऋण पुनर्विन्यास कक्ष

    (क) कंपनी ऋण पुनर्विन्यास के अलग-अलग मामलों का निर्णय कंपनी ऋण पुनर्विन्यास अधिकारप्राप्त समूह द्वारा किया जायेगा, जिसमें आइ डी बी आइ, आइ सी आइ सी आइ लि. और भारतीय स्टेट बैंक के कार्यपालक निदेशक के स्तर के प्रतिनिधि स्थायी सदस्य होंगे । इसके अतिरिक्त संबंधित कंपनी को ऋण देने वाली वित्तीय संस्थाओं और बैंकों के कार्यपालक निदेशक के स्तर के प्रतिनिधि तो होंगे ही । कंपनी ऋण पुनर्विन्यास अधिकारप्राप्त समूह प्रभावशाली एवं व्यापक आधार वाला हो तथा कुशलतापूर्वक और सहज रूप से कार्य कर सके, इसके लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक वित्तीय संस्था और बैंक कंपनी ऋण पुनर्विन्यास प्रणाली में सहभागी के रूप में दो या तीन कार्यपालक निदेशकों के पैनल का नामन करे, जिनमें से एक अलग-अलग पुनर्विन्यास मामलों पर कार्रवाई करने के लिए अधिकारप्राप्त समूह की विशिष्ट बैठक में भाग लेगा । परंतु जहां किसी बैंक / वित्तीय संस्था में केवल एक कार्यपालक निदेशक हो वहां उक्त पैनल में वरिष्ठ अधिकारी शामिल हो सकते हैं, जिन्हें निदेशक मंडल द्वारा विधिवत् प्राधिकृत किया गया हो । कंपनी ऋण पुनर्विन्यास अधिकारप्राप्त समूह में बैंकों / वित्तीय संस्थाओं के प्रतिनिधि का स्तर पर्याप्त वरिष्ठ होना चाहिए, ताकि ऋण पुनर्विन्यास के संबंध में त्याग सहित उसके द्वारा दिये गये आवश्यक वचन का संबंधित बैंक / वित्तीय संस्था द्वारा पालन हो सके ।

    उक्त अधिकारप्राप्त समूह सी डी आर कक्ष द्वारा प्रस्तुत पुनर्विन्यास के अनुरोधों के सभी मामलों की प्रारंभिक रिपोर्ट पर विचार करेगा। अधिकारप्राप्त समूह द्वारा यह निर्णय किये जाने के बाद कि प्रथमदृष्टया कंपनी का पुनर्विन्यास संभव है और स्थायी मंच द्वारा बनायी गयी नीति और दिशा-निर्देशों के अनुसार यह उद्यम संभाव्य रूप से अर्थक्षम है, तो सी डी आर कक्ष द्वारा प्रमुख संस्थान के सहयोग से विस्तृत पुनर्विन्यास पैकेज तैयार किया जायेगा ।

    कंपनी ऋण पुनर्विन्यास अधिकारप्राप्त समूह को ऋण के पुनर्विन्यास के प्रत्येक मामले को देखने, कंपनी की अर्थक्षमता तथा पुनर्विन्यास की संभावना की जांच करने तथा 90 दिन की निर्दिष्ट अवधि अथवा अधिकारप्राप्त समूह को मामला प्राप्त होने के अधिक से अधिक 180 दिन के भीतर पुनर्विन्यास पैकेज को अनुमोदित करने का कार्य सौंपा जायेगा ।

    (ख) सहभागी संस्थानों / बैंकों के संबंधित बोर्डों द्वारा कंपनी ऋण पुनर्विन्यास अधिकारप्राप्त समूह में उनके प्रतिनिधियों के पक्ष में सामान्य प्राधिकरण दिया जाना चाहिए, जिसमें उन्हें अलग-अलग कंपनियों के ऋणों के पुनर्विन्यास के संबंध में अपने संगठन की ओर से निर्णय ले सकने का अधिकार दिया जाये।

    (ग) कंपनी ऋण पुनर्विन्यास अधिकारप्राप्त समूह के निर्णय अंतिम और कार्रवाई के लिए संदर्भ आधार होंगे । यदि ऋण का पुनर्विन्यास अर्थक्षम और संभाव्य पाया जाये और अधिकारप्राप्त समूह द्वारा स्वीकार किया जाये, तो कंपनी को पुनर्विन्यास प्रणाली में रखा जायेगा। तथापि, यदि पुनर्विन्यास को अर्थक्षम नहीं पाया जाये, तो लेनदार प्राप्य राशि की तत्काल वसूली और / या समापन या

    कंपनी को बंद करने के लिए सम्मिलित रूप से या अलग-अलग आवश्यक कदम उठाने के लिए स्वतंत्र होंगे ।

    (इ)

    कंपनी ऋण पुनर्विन्यास कक्ष

    (क) सी डी आर स्थायी मंच तथा सी डी आर अधिकारप्राप्त समूह को उनके समस्त कार्यों में एक कंपनी ऋण पुनर्विन्यास कक्ष द्वारा सहायता प्रदान की जायेगी । यह सी डी आर कक्ष ऋणकर्ताओं / ऋणदाताओं से प्राप्त प्रस्तावों की, प्रस्तावित पुनर्विन्यास योजना और अन्य सूचना मंगवाकर प्रारंभिक संवीक्षा करेगा और मामले को सी डी आर अधिकारप्राप्त समूह के समक्ष एक महीने के भीतर रखेगा, ताकि यह निर्णय किया जा सके कि प्रथमदृष्टया पुनर्विन्यास संभाव्य है या नहीं । यदि है, तो सी डी आर कक्ष ऋणदाताओं की सहायता से विस्तृत पुनर्विन्यास योजना तैयार करेगा तथा यदि आवश्यक हुआ तो बाहर से विशेषज्ञों को भी कार्य में लगायेगा । यदि मामला प्रथमदृष्टया संभाव्य नहीं पाया जाता तो ऋणदाता अपनी प्राप्य राशि की वसूली के लिए कार्रवाई शुरू कर सकते हैं ।

    (ख) प्रारंभ में सी डी आर कक्ष भारतीय औद्योगिक विकास बैंक, मुंबई में गठित किया जायेगा तथा कक्ष के लिए पर्याप्त स्टाफ-सदस्य बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से प्रतिनियुक्त किये जायेंगे । सी डी आर कक्ष बाहर के व्यावसायिकों की सहायता भी ले सकता है । सी डी आर कक्ष सहित कंपनी ऋण पुनर्विन्यास तंत्र के परिचालन की प्रारंभिक लागत की पूर्ति प्रारंभ में एक वर्ष के लिए भारतीय औद्योगिक विकास बैंक द्वारा की जायेगी तथा बाद में मुख्य समूह (कोर ग्रुप) में रहने वाली वित्तीय संस्थाओं और बैंकों से प्रत्येक द्वारा 50 लाख रुपये की दर से तथा अन्य संस्थाओं और बैंकों से प्रत्येक द्वारा 5 लाख रुपये की दर से अंशदान द्वारा की जायेगी ।

    (ग) ऋणदाताओं या ऋणकर्ताओं द्वारा कंपनी ऋण पुनर्विन्यास के सभी मामले सी डी आर कक्ष को भेजे जायेंगे। प्रमुख संस्था / कंपनी के प्रमुख हितधारकों की यह जिम्मेदारी होगी कि वे अन्य हितधारकों के साथ विचार-विमर्श कर प्रारंभिक पुनर्विन्यास योजना तैयार करें और एक महीने के भीतर सी डी आर कक्ष को प्रस्तुत करें । सी डी आर कक्ष सी डी आर स्थायी मंच द्वारा अनुमोदित सामान्य नीतियों और दिशा-निर्देशों के अनुसार पुनर्विन्यास योजना तैयार करेगा तथा निर्णय के लिए 30 दिन के भीतर अधिकारप्राप्त समूह के समक्ष विचारार्थ रखेगा । अधिकारप्राप्त समूह उसे अनुमोदित कर सकता है या संशोधन का सुझाव दे सकता है, तथापि अंतिम निर्णय 90 दिन की कुल अवधि के भीतर ले लिया जाना चाहिए । तथापि, पर्याप्त कारण होने पर, यह अवधि सी डी आर कक्ष को मामला प्राप्त होने की तारीख से अधिकतम 180 दिन तक बढ़ायी जा सकती है ।

    अन्य विशेषताएं

    :

    (i) कंपनी ऋण पुनर्विन्यास एक असांविधिक तंत्र होगा

    (ii) कंपनी ऋण पुनर्विन्यास तंत्र ऋणकर्ता-ऋणदाता करार तथा अंतर-ऋणकर्ता करार पर आधारित स्वैच्छिक प्रणाली होगी ।

    (iii) यह योजना उन खातों पर लागू नहीं होगी, जिनमें केवल एक वित्तीय संस्था या एक बैंक शामिल है । कंपनी ऋण पुनर्विन्यास तंत्र में बैंकों और संस्थाओं द्वारा दिये गये 20 करोड़ रुपये और उससे अधिक के बकाया ऋण आदि जोखिम वाले बहुविध बैंकिंग खाते / समूहन / सहायता संघीय खाते शामिल होंगे ।

    (iv) सी डी आर तंत्र केवल मानक और अवमानक खातों के लिए लागू होगा । सी डी आर समूह को प्रेषित करने से पहले निर्दिष्ट अवधि के लिए खाते / कंपनी के बीमार होने, अनर्जक आस्ति या चूक करने वाली होने की आवश्यकता नहीं होगी । किन्तु अंतरिम उपाय के रूप में, यह निर्णय लिया गया है कि भारतीय रिज़र्व बैंक सी डी आर ‘स्थायी दल’ (कोर-ग्रुप) की विशिष्ट सिफारिशों के आधार पर कंपनी ऋण पुनर्विन्यास के लिए अनुमति प्रदान करे बशर्तें कम से कम 75 प्रतिशत (मूल्य के अनुसार) उधारदाता, जिनमें बैंक और वित्तीय संस्थाएं हैं, सी डी आर के लिए सहमत हों भले ही बैंकों / वित्तीय संस्थाओं में आस्ति वर्गीकरण की स्थिति में अंतर हो । तथापि, अनर्जक आस्तियों के संभाव्य रूप से अर्थक्षम मामलों को प्राथमिकता दी जायेगी । यह दृष्टिकोण ऋण पुनर्विन्यास के लिए आवश्यक लचीलापन और समय पर हस्तक्षेप करने की सुविधा प्रदान करेगा और इससे समय पर हस्तक्षेप किया जा सकेगा । चूंकि ऋण पुनर्विन्यास बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा या उनकी सहमति से किये जा रहे हैं, अत: कोई लक्ष्य निर्धारित करने की जरूरत नहीं होगी । किसी भी स्थिति में जानबूझकर चूक या अपकरण करने वाली किसी कंपनी के अनुरोध पर सी डी आर के अंतर्गत पुनर्विन्यास के लिए विचार नहीं किया जायेगा ।

    (v) कंपनी ऋण पुनर्विन्यास तंत्र को मामला निम्नलिखित द्वारा शुरू किया जा सकता है - (i) किसी एक या अधिक ऐसे जमानती ऋणदाता से जिसका कार्यकारी पूंजी या मीयादी वित्त में न्यूनतम 20 प्रतिशत अंश हैं या (ii) संबंधित कंपनी द्वारा, यदि किसी बैंक या वित्तीय संस्था द्वारा समर्थित हो जिसका उपर्युक्त (i) में दिये गये अनुसार हित हो ।

    कानूनी आधार

    कंपनी ऋण पुनर्विन्यास तंत्र के लिए कानूनी आधार ऋणकर्ता - ऋणदाता करार (डी सी ए) और अंतर-ऋणदाता करार द्वारा प्रदान किया जायेगा । ऋणकर्ता को या तो मूल ऋण के दस्तावेज तैयार करते समय (भविष्य के मामलों के लिए) अथवा कंपनी ऋण पुनर्विन्यास कक्ष को मामला भेजते समय ऋणकर्ता - ऋणदाता करार को स्वीकार करना होगा । इसी तरह, स्थायी मंच की अपनी सदस्यता के माध्यम से सी डी आर तंत्र में सभी सहभागियों को, आवश्यक दबाव और दंडात्मक शर्तों सहित, निर्धारित

    नीतियों और दिशा-निर्देशों के माध्यम से प्रणाली को परिचालित करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी करार करना होगा ।

    ठहराव खंड

    ऋणकर्ता-ऋणदाता करार का एक महत्वपूर्ण तत्व दोनों ओर से 90 दिन या 180 दिनों के लिए ‘ठहराव’ करार बाध्यता होगी । इस खंड के अंतर्गत, ऋणकर्ता और ऋणदाता दोनों को कानूनी ‘ठहराव’ बाध्यता पर सहमत होना पड़ेगा, जिससे दोनों पार्टियों को ‘ठहराव’ अवधि के दौरान कोई अन्य कानूनी कार्रवाई करने के लिए कोई रास्ता न अपनाने का वचन देना होगा, ताकि न्यायिक अथवा अन्य किसी बाहरी हस्तक्षेप के बिना आवश्यक ऋण पुनर्विन्यास करने के लिए सी डी आर तंत्र अपनाया जा सके ।

    अंतर-ऋणदाता करार में अपेक्षित दबाव और दंडात्मक शर्तों के साथ जमानती ऋणदाताओं के बीच कानूनी बाध्यता करार होगा, जिसमें ऋणदाताओं को सी डी आर तंत्र के विभिन्न तत्वों को स्वीकार करने का उन्हें वचन देना होगा । साथ ही, ऋणदाताओं को इससे सहमत होना पड़ेगा कि यदि मूल्य द्वारा 75 प्रतिशत जमानती ऋणदाता ऋण पुनर्विन्यास पैकेज के लिए सहमत होते हैं तो, वही शेष जमानती ऋणदाताओं पर भी बाध्यकारी होगा ।

    पुनर्विन्यास किये गये खातों के लिए लेखांकन व्यवहार

    सी डी आर के अंतर्गत पुनर्विन्यास किये गये खातों का लेखांकन व्यवहार 30 मार्च 2001 के परिपत्र बैंपविवि. बीपी. बीसी. 98/21.04.048/2000-01 में उल्लिखित विवेकपूर्ण मानंदडों द्वारा नियंत्रित होगा । सी डी आर के अंतर्गत कंपनी ऋणों का पुनर्विन्यास निम्नलिखित चरणों में हो सकता है :

    क) वाणिज्यक उत्पादन शुरू होने के पहले ;

    ख) वाणिज्यिक उत्पादन शुरू होने के बाद, परन्तु आस्ति को अवमानक के रूप में वर्गीकृत किये जाने से पूर्व ;

    ग) वाणिज्यिक उत्पादन शुरू होने तथा आस्ति को अवमानक के रूप में वर्गीकृत किये जाने के बाद ।

    खातों का विवेकपूर्ण व्यवहार, जो सी डी आर के अंतर्गत पुनर्विन्यास की शर्त पर होगा, निम्नलिखित मानदंडों द्वारा नियंत्रित होगा :

    सी डी आर के अंतर्गत पुनर्विन्यास किये गये मानक खातों का व्यवहार

    क) उपर्युक्त पहले दो चरणों में से किसी चरण पर डउक्त पैराग्राफ 5 (क) और (ख) केवल मूलधन की किस्तों का पुनर्विन्यास किया जाना किसी मानक आस्ति को अवमानक श्रेणी में वर्गीकृत करने का कारण नहीं होगा, बशर्ते उधार / ऋण / सुविधा पूर्णत: जमानती हो ।

    ख) पूर्ववर्ती पहले दो चरणों में से किसी चरण पर ब्याज के तत्व का पुनर्विन्यास किये जाने के कारण किसी आस्ति का स्तर घटाकर अवमानक श्रेणी में नहीं लाया जायेगा, परन्तु शर्त यह है कि ब्याज के तत्व में वर्तमान मूल्य की दृष्टि से मापी गयी त्याग की राशि को, यदि कोई हो, बट्टे खाते डाला जाये या उसमें शामिल त्याग के बराबर प्रावधान किया जाये । इस प्रयोजन के लिए, किसी खाते के संदर्भ में मूल ऋण करार के अनुसार देय भावी ब्याज को ऋणकर्ता की जोखिम श्रेणी के लिए उपयुक्त दर से वर्तमान मूल्य पर बट्टा काटा जाना चाहिए (अर्थात् चालू मूल उधार दर (पी एल आर) + ऋणकर्ता श्रेणी के लिए उपयुक्त ऋण जोखिम प्रीमियम) तथा पुनर्विन्यास पैकेज के अंतर्गत प्राप्त होने वाली राशि के वर्तमान मूल्य के साथ तुलना की जानी चाहिए और उसी आधार पर बट्टा काटा जाना चाहिए ।

    ग) यदि उपर्युक्त (ख) के अनुसार वर्तमान मूल्य की दृष्टि से ब्याज की राशि में त्याग शामिल हो तो त्याग की राशि को बट्टे खाते डाला जाना चाहिए या शामिल की गयी त्याग की राशि के बराबर प्रावधान किया जाना चाहिए ।

    सी डी आर के अंतर्गत पुनर्विन्यास किये गये अवमानक खातों का व्यवहार

    क) केवल मूलधन की किस्तों का पुनर्विन्यास किया जाना, अवमानक आस्ति को अवमानक श्रेणी में निर्दिष्ट अवधि के लिए जारी रखने के लिए पात्र तब बनायेगा जब उधार / ऋण सुविधा पूरी तरह जमानती हो ।

    ख) ब्याज तत्व का पुनर्विन्यास किया जाना किसी अवमानक आस्ति को निर्दिष्ट अवधि के लिए अवमानक श्रेणी में वर्गीकृत रूप में ही जारी रखने के लिए इस शर्त पर पात्र बनायेगा कि वर्तमान मूल्य की दृष्टि से मापे गये ब्याज तत्व में त्याग की राशि, यदि कोई हो, बट्टे खाते डाल दी जाये या शामिल त्याग की राशि के बराबर प्रावधान किया जाये । इस प्रयोजन के लिए, किसी खाते के संदर्भ में मूल ऋण करार के अनुसार देय भावी ब्याज को ऋणकर्ता की जोखिम श्रेणी के लिए उपयुक्त दर से वर्तमान मूल्य पर बट्टा काटा जाना चाहिए (अर्थात् चालू मूल उधार दर (पी एल आर) + ऋणकर्ता श्रेणी के लिए उपयुक्त ऋण जोखिम प्रीमियम) तथा पुनर्विन्यास पैकेज के अंतर्गत प्राप्त होने वाली राशि के वर्तमान मूल्य के साथ तुलना की जानी चाहिए और उसी आधार पर बट्टा काटा जाना चाहिए ।

    ग) वर्तमान मूल्य के अर्थ में, जैसा कि ऊपर बताया गया है, ब्याज की कोई राशि यदि छोड़नी हो तो त्याग की राशि या तो बट्टे खाते डाली जानी चाहिए या किये जाने वाले त्याग तक की राशि का प्रावधान

    किया जाना चाहिए । जिन मामलों में यह त्याग भूतकाल के देय ब्याज को बट्टे खाते डालकर किया जाना हो, उन मामलों में भी आस्तियां अवमानक के रूप में मानी जाती रहनी चाहिए ।

    उपर्युक्त (ii) (क), (ख) और (ग) पर बताये गये जो अवमानक खाते पुनर्विन्यास आदि के अधीन लाये गये हैं, चाहे वे मूलधन की किस्त के संबंध में हों अथवा ब्याज की राशि के संबंध में, उनकी रूपात्मकता कुछ भी हो, केवल विशिष्ट अवधि के बाद, अर्थात् ब्याज या मूलधन की पहली अदायगी की तारीख, जो भी पहले हो, के एक वर्ष बाद मानक की श्रेणी में उन्नत किये जाने के पात्र होंगे । यह इस शर्त पर भी होगा कि इस अवधि में उस खाते का कार्य-निष्पादन संतोषजनक रहे । पहले किये गये प्रावधान की राशि, पूर्वोक्त वर्तमान मूल्य के अर्थ में त्याग किये गये ब्याज की राशि के लिए प्रावधान को घटाकर शुद्ध राशि को भी एक वर्ष की अवधि के बाद प्रतिवर्तित किया जा सकता है ।

    इस एक वर्ष की अवधि में अवमानक आस्ति का अपने वर्गीकरण में क्षय नहीं होगा, यदि इस अवधि में खाते का कार्य-निष्पादन संतोषजनक रहा हो । परंतु यदि एक वर्ष में संतोषजनक प्रदर्शन नहीं रहा हो तो पुनर्विन्यास किये गये खाते का आस्ति वर्गीकरण पुनर्विन्यास के अनुसार अदायगी के कार्यक्रम से पहले के संदर्भ में लागू होने वाले विवेकपूर्ण मानदंडों के अनुसार शासित होगा ।

    कंपनी ऋण पुनर्विन्यास के अंतर्गत आस्ति वर्गीकरण बैंकों के लिए लागू मौज़ूदा विवेकपूर्ण मानदंडों के अनुसार बैंक विशेष के लिए किया जाता रहेगा, जो प्रत्येक बैंक की वसूली के रिकॉड़ पर आधारित होगा ।

    4.2.15 कार्यान्वित की जा रही परियोजनाएं

    कुछ मामलों में यह देखने में आया है किकार्यान्वित की जा रही परियोजना के निर्धारित समयावधि के बाद चलने पर भी तत्संबंधी ऋण आस्ति को केवल इसलिए मानक आस्ति के रूप में वर्गीकृत किया जाता रहा है क्योंकि परियोजना का कार्यान्वयन चल रहा था । इस बात को ध्यान में रखते हुए कि निर्धारित समयावधि से बहुत अधिक समय तक परियोजना के चलने पर उसकी लाभप्रदता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और आस्ति की गुणवत्ता में कमी आती है, यह आवश्यक समझा गया कि परियोजना को पूरा करने के लिए वस्तुपरक तथा निश्चित समय-सीमा निर्धारित की जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि चल रही परियोजना की ऋण आस्तियों को उचित प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है और उसकी आस्ति की गुणवत्ता सही रूप में परिलक्षित होती है । उपर्युक्त पृष्ठभूमि में, यह निर्णय लिया गया था कि निर्धारित समयावधि से अधिक चलने वाली औद्योगिक परियोजनाओं के लिए बैंकों पर आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करने के संबंध में नीचे दिये गये मानदंड लागू किये जाएं ।

    (i) जिस तारीख को परियोजना पूरी की जानी थी उस तारीख के निर्धारण के लिए चल रही परियोजनाओं को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है :

    श्रेणी I : वे परियोजनाएं जिनका वित्तीय समापन (फाइनेंशियल क्लोज़र) किया गया है और उनका विधिवत् रिकाड़ (फार्मली डाक्यूमेंटेड) किया गया है ।

    श्रेणी II : 100 करोड़ रुपये अथवा उससे अधिक की मूल परियोजना लागत वाली 1997 से पूर्व स्वीकृत परियोजनाएं जिनका वित्तीय समापन विधिवत् रूप से रिकाड़ नहीं किया गया है ।

    श्रेणी III : 100 करोड़ रुपये से कम की मूल परियोजना लागत वाली 1997 से पूर्व स्वीकृत परियोजनाएं जिनका वित्तीय समापन विधिवत् रिकाड़ नहीं किया गया है ।

    आस्ति वर्गीकरण

    (ii) उक्त प्रत्येक श्रेणी के लिए परियोजना के पूरे हो चुकने की तारीख तथा उससे संबंधित ऋण आस्ति का वर्गीकरण नीचे दिये गये प्रकार से किया जाए :

    श्रेणी I

    (ऐसी परियोजनाएं जिनका वित्तीय समापन प्राप्त किया गया और उनका विधिवत् रिकाड़ किया गया) : ऐसे मामलों में परियोजना पूरी होने की तारीख वही होनी चाहिए जो मूल वित्तीय समापन के समय परिकल्पित की गयी थी । ऐसे सभी मामलों में, आस्ति को परियोजना के पूरा होने की तारीख के बाद दो वर्ष से अनधिक अवधि के लिए मानक आस्ति के रूप में माना जाए, जैसा कि परियोजना के प्रारंभिक वित्तीय समापन के समय परिकल्पित था ।

    किन्तु, 1997 के बाद वित्तपोषित परियोजना के संदर्भ में यदि वित्तीय समापन का विधिवत् रिकाड़ नहीं किया गया है तो नीचे श्रेणी III के लिए दिये गये मानदंड लागू होंगे ।

    श्रेणी II

    (100 करोड़ रुपये अथवा उससे अधिक की मूल परियोजना लागत वाली 1997 से पूर्व स्वीकृत परियोजनाएं जिनका वित्तीय समापन विधिवत् रूप से रिकाड़ नहीं किया गया है ) : 1997 से पहले मंजूर की गयी ऐसी परियोजनाओं के लिए जहां वित्तीय समापन की तारीख को विधिवत् रिकाड़ नहीं किया गया था, एक स्वतंत्र समूह का गठन किया गया जिसमें मीयादी ऋणदात्री संस्थाओं के विशेषज्ञ और इस क्षेत्र के बाहरी विशेषज्ञ शामिल थे ताकि परियोजना के पूरी होने की अनुमानित तारीख का निर्धारण किया जा सके । इस समूह ने सभी महत्वपूर्ण और संबंधित तथ्यों तथा परिस्थितियों के आधार पर, परियोजना-दर-परियोजना आधार पर परियोजना पूरी होने की अनुमानित तारीख का निर्धारण किया है । ऐसे मामलों में, आस्तियों को परियोजना पूरी होने की अनुमानित तारीख के अतिरिक्त दो वर्ष से अनधिक अवधि के लिए, जैसा कि समूह द्वारा निर्धारित की जाए, मानक आस्ति माना जाए । जिन बैंकों ने ऐसी परियोजनाओं के लिए वित्त प्रदान किया है वे उन शीर्ष वित्तीय संस्थाओं से संपर्क करें जिन्हें संबंधित परियोजना पूरी होने की अनुमानित तारीख से संबंधित ब्यौरे प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र समूह की रिपोर्ट की प्रतिलिपि दी गयी है ।

    श्रेणी III

    (100 करोड़ रुपये से कम की मूल परियोजना लागत वाली 1997 से पूर्व स्वीकृत परियोजनाएं जिनका वित्तीय समापन विधिवत् रिकाड़ नहीं किया गया है) : इन मामलों में, 1997 के पहले मंजूर की गयी परियोजनाओं के लिए जहां वित्तीय समापन का विधिवत् रिकाड़ नहीं किया गया था, परियोजना पूरी होने की तारीख वही होगी जो मंजूरी के समय मूल रूप से परिकल्पित की गयी थी । ऐसे मामलों में, आस्तियों को परियोजना पूरी होने की तारीख के बाद दो वर्ष से अनधिक अवधि के लिए ही मानक आस्ति के रूप में माना जायेगा, जैसा कि समूह द्वारा निर्णय किया गया था।

    (iii) उपर्युक्त सभी तीनों श्रेणियों में, दो वर्ष की उक्त निर्धारित समयावधि से अधिक समय लगने की स्थिति में आस्ति को अवमानक आस्ति के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए फिर चाहे वसूली का रिकाड़ और तदनुसार उसके लिए किया गया प्रावधान कुछ भी हो ।

    (iv) वित्तीय संस्थाओं /बैंकों द्वारा भविष्य में वित्तपोषित की जाने वाली परियोजनाओं के बारे में, परियोजना पूरी होने की तारीख का स्पष्ट उल्लेख परियोजना के वित्तीय समापन के समय ही किया जाना चाहिए । ऐसे मामलों में, यदि परियोजना पूरी होने की तारीख के बाद छह महीने की अवधि के बाद व्यापारिक उत्पादन, जैसा कि परियोजना के प्रारंभिक वित्तीय समापन का प्रारंभ में उल्लेख किया गया हो, शुरू होता हो तो उस खाते को अवमानक आस्ति माना जाएगा ।

    आय निर्धारण

    (v) आय निर्धारण से संबंधित मौजूदा अनुदेश अपरिवर्तित रहेंगे । परिणामत:, बैंकों को चाहिए कि वे वर्तमान अनुदेशों के अनुसार ‘अनर्जक आस्ति’ होते हुए भी आस्ति को मानक आस्ति के रूप में वर्गीकृत किये जाने पर भी परियोजनाओं के बारे में प्रोद्भूत आधार पर आय का निर्धारण न करें । दूसरे शब्दों में, जहां परियोजना के खातों को मानक आस्ति के रूप में वर्गीकृत किया जाये, वहीं यदि आस्ति 180 दिन के मौजूदा बकाया मानदंड के अनुसार अन्यथा रूप से ‘अनर्जक हो गयी हो, तो बैंक नकदी आधार पर वसूली के बाद ही इन खातों में आय का निर्धारण करेंगे । 31 मार्च 2004 से बकाया मानदंड 90 दिन का होगा ।

    परिणामत:, जिन बैंकों ने पहले गलत ढंग से आय का निर्धारण किया है उन्हें चाहिए कि यदि मौजूदा वर्ष के दौरान इसे आय के रूप में निर्धारित कर दिया गया हो तो वे ब्याज को प्रतिवर्तित कर दें अथवा यदि पिछले वर्ष (वर्षों) में इसे आय के रूप में निर्धारित किया गया हो तो, उसके समतुल्य राशि के लिए प्रावधान कर दें। ‘निधिक ब्याज’ के रूप में निर्धारित आय की विनियामक प्रक्रिया और ईक्विटी, डिबेंचरों या किसी अन्य लिखत में परिवर्तन के बारे में बैंकों को चाहिए कि वे निम्नलिखित का पालन करें :-

    क) निधिक ब्याज: अनर्जक आस्तियों के बारे में आय निर्धारण चाहे ऋण करार की शर्तों का पुनर्निर्माण/ पुनर्निर्धारण /पुन: समझौता के अधीन हो या नहीं, वसूली के बाद ही, कड़ाई से नकदी आधार पर न कि बकाया ब्याज की राशि को निधि में रखने पर किया जाना चाहिए । परन्तु यदि, निधिक ब्याज की राशि को आय के रूप में निर्धारित किया गया हो तो, साथ ही

    साथ, समतुल्य राशि का भी प्रावधान किया जाना चाहिए । दूसरे शब्दों में, अनर्जक आस्तियों के संदर्भ में ब्याज के निधीयन को यदि आय के रूप में निर्धारित किया गया हो तो उसके लिए पूर्णत: प्रावधान किया जाना चाहिए ।

    ख) ईक्विटी, डिबेंचर या किसी अन्य लिखत में परिवर्तन : अन्य लिखतों में परिवर्तित बकाया राशि में सामान्यत: मूलधन और ब्याज के घटक शामिल होंगे । यदि ब्याज की बकाया राशि को ईक्विटी या किसी अन्य लिखत में परिवर्तित किया जाता हो और इसके कारण आय निर्धारित की जाती हो तो, इस रूप में निर्धारित आय की राशि के लिए पूरा प्रावधान किया जाना चाहिए ताकि इस प्रकार के आय निर्धारण के प्रभाव से बचा जा सके । इस प्रकार का प्रावधान उस राशि के अतिरिक्त होगा जो निवेश मूल्यन मानदंडों के अनुसार ईक्विटी या अन्य लिखतों के मूल्य में ह्रास के लिए आवश्यक है । परन्तु, यदि ब्याज को निर्दिष्ट भाव वाली ईक्विटी में परिवर्तित किया जाता है तो परिवर्तन की तारीख को ईक्विटी के बाज़ार मूल्य पर ब्याज आय का निर्धारण किया जा सकेगा जो ईक्विटी में परिवर्तित ब्याज की राशि से अधिक नहीं होगा । इसके बाद इस प्रकार की ईक्विटी को ‘विक्रय के लिए उपलब्ध’ श्रेणी में वर्गीकृत किया जाएगा और उसका मूल्यन निम्न लागत या बाजार मूल्य पर किया जाएगा । अनर्जक आस्तियों के संदर्भ में मूल और /या ब्याज डिबेंचरों में परिवर्तन के मामले में, ऐसे डिबेंचरों को उसी आस्ति वर्गीकरण में प्रारंभ से अनर्जक आस्ति के रूप में माना जाना चाहिए जो परिवर्तन के एकदम पहले ऋण पर लागू है तथा मानदंडों के अनुसार प्रावधान करना चाहिए । यह मानदंड जीरो कूपन बांडों या ऐसे अन्य लिखतों पर भी लागू होगा जो जारीकर्ता की देयता आस्थगित करना चाहते हैं । ऐसे डिबेंचरों पर, आय का निर्धारण केवल वसूली के आधार पर किया जाना चाहिए । वसूल न किये गये ब्याज, जिसे डिबेंचरों या किसी अन्य नियत अवधिपूर्णता के लिखत में परिवर्तित किया गया है, के संदर्भ में आय का निर्धारण ऐसे लिखत के प्रतिदान पर ही किया जाना चाहिए । उपर्युक्त की शर्त पर, ऋण की मूल राशि के परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पन्न इक्विटी शेयर या अन्य लिखत भी ऐसे लिखतों पर लागू सामान्य विवेकपूर्ण मूल्यांकन मानदंडों की शर्त के अधीन होंगे ।

    प्रावधान करना

    (vi) जहां, अनर्जक आस्तियों के लिए प्रावधान करने संबंधी मौजूदा मानदंडों में कोई परिवर्तन नहीं होगा, वहीं जिन बैंकों ने कुछ खातों के संदर्भ में पहले ही प्रावधान किये हैं, जिसे अब ‘मानक’ के रूप में वर्गीकृत किया जायेगा, वे उन प्रावधानों को बनाये रखना जारी रखेंगे और उसका प्रत्यावर्तन नहीं करेंगे ।

    4.2.16 उधारकर्ता / गारंटीकर्ता की जमानत की उपलब्धता / शुद्ध मूल्यवत्ता

    उधारकर्ता / गारंटीकर्ता की जमानत की उपलब्धता / शुद्ध मूल्यवत्ता किसी अग्रिम को अनर्जक आस्ति के रूप में अथवा अन्य प्रकार से मानने के प्रयोजन हेतु हिसाब में नहीं ली जानी चाहिए, क्योंकि आय-निर्धारण वसूली के रिकॉड़ पर निर्भर है ।

    4.2.17 टेक-आउट वित्तपोषण

    ‘टेक-आउट’ वित्तपोषण दीर्घावधि की मूलभूत संरचना संबंधी परियोजनाओं के लिए निधियों की व्यवस्था के सन्दर्भ में एक उत्पाद है । इस व्यवस्था के तहत मूलभूत संरचना संबंधी परियोजनाओं का वित्तपोषण करने वाली संस्था / बैंक किसी अन्य वित्तीय संस्था के साथ व्यवस्था करके पूर्व निर्धारित आधार पर इस प्रकार के वित्तपोषण के सम्बन्ध में अपनी बहियों का बकाया राशि का उनकी बहियों में अंतरण करने की व्यवस्था करेंगे। टेकिंग ओवर (अधिग्रहण) में लगने वाले समय की दृष्टि से इस बीच चूक की संभावना हो सकती है । उस सम्बद्ध बैंक / वित्तीय संस्था को आय-निर्धारण और प्रावधान करने के मानदण्डों का अनुपालन करना होगा, जिसकी बहियों में इन खातों को संगत तारीख को तुलनपत्र की मद के रूप में लिया गया है । यदि ऋणदाता संस्था को लगता है कि वसूली के रिकाड़ के आधार पर कोई आस्ति अनर्जक आस्ति बन चुकी है, तो उसका तदनुसार वर्गीकरण करना चाहिए । ऋणदाता संस्था को आय का निर्धारण उपचय के आधार पर नहीं करना चाहिए और इसे केवल तभी हिसाब में लेना चाहिए, जब ऋणकर्ता / ग्रहणकर्ता संस्था से इसका भुगतान मिल जाये (यदि व्यवस्था में ऐसा प्रावधान हो) । ऋणदाता संस्था को किसी आस्ति के अनर्जक आस्ति में परिवर्तित हो जाने की दशा में, ग्रहणकर्ता संस्था द्वारा ग्रहण किये जाने तक, उसके लिए प्रावधान करने चाहिए। जैसे ही ग्रहणकर्ता संस्था आस्तियों का अधिग्रहण कर ले, तभी सम्बद्ध प्रावधानों को प्रत्यावर्तित किया जा सकता है। तथापि, ऐसी आस्तियों को ग्रहण करने पर ग्रहणकर्ता संस्था को खाते को उसी तारीख से अनर्जक आस्ति के रूप में लेते हुए प्रावधान करना चाहिए जिस तारीख को यह वस्तुत: अनर्जक खाता बना हो, भले ही उस तारीख को वह खाता इसकी बहियों में न रहा हो ।

    4.2.18 पोतलदान के बाद आपूर्तिकर्ता का ऋण

    1. जिन देशों के लिए निर्यात ऋण और गारंटी निगम की रक्षा प्राप्त है, उन देशों को माल के निर्यात हेतु बैंकों द्वारा पोतलदान के बाद के ऋण के संबंध में भारतीय निर्यात-आयात बैंक ने गारंटी-सह-पुनर्वित्त कार्यक्रम प्रारंभ किया है, जिसके द्वारा, चूक करने की स्थिति में, निर्यात ऋण और गारंटी निगम के पास निर्यातकर्ता द्वारा दावा दायर करने के बाद भारतीय निर्यात-आयात बैंक गारंटी की राशि का भुगतान बैंक द्वारा गारंटी लागू करने के 30 दिन में बैंक को करेगा ।
    2. तदनुसार भारतीय निर्यात-आयात बैंक से जितनी राशि का भुगतान प्राप्त हो उतनी राशि को आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान के प्रयोजन के लिए अनर्जक आस्ति के रूप में न माना जाये ।

    4.2.19 निर्यात परियोजना वित्त

    1. ऐसे उदाहरण हो सकते हैं जहां वास्तविक आयातकर्ता ने विदेश स्थित बैंक को देय राशि अदा कर दी हो किन्तु वह बैंक युद्ध, संघर्ष, संयुक्त राष्ट्र संघ की पाबंदियों जैसी राजनीतिक गतिविधियों के कारण उस राशि का प्रेषण करने में असमर्थ रहा हो ।
    2. ऐसे मामलों में जहां संबंधित (ऋण देनेवाला) बैंक दस्तावेजी साक्ष्य के द्वारा यह स्थापित करने में समर्थ हो कि आयातकर्ता ने विदेश स्थित बैंक में राशि जमा करके सम्पूर्ण देय राशियां चुका दी हैं और यह चुकौती बैंक की बहियों में अनर्जक आस्तियां बनने से पहले हो चुकी हो, किन्तु वह देश राजनीतिक स्थिति अथवा अन्य कारणों से उस राशि का आयातकर्ता को प्रेषण करने की अनुमति न दे पा रहा हो, तो आस्ति वर्गीकरण विदेश स्थित बैंक में आयातकर्ता द्वारा राशि जमा करने की तारीख से एक वर्ष के बाद लागू किये जायें ।

    4.2.20 औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोड़ / मीयादी ऋण संस्थाओं द्वारा
    अनुमोदित पुनर्वास के अंतर्गत अग्रिम

    जिस अग्रिम की शर्तों पर पुन: समझौता किया गया हो उस अग्रिम के संबंध में वर्गीकरण को उन्नत करने की अनुमति बैंकों को तब तक नहीं है जब तक पुन: किये गये समझौते की शर्तों का पैकेज एक वर्ष की अवधि तक संतोषजनक रूप में कार्य न कर चुका हो औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोड़ / मीयादी ऋण संस्थाओं द्वारा अनुमोदित पुनर्वास के अंतर्गत किसी यूनिट को स्वीकृत की गयी मौजूदा ऋण सुविधायें, यथास्थिति, अवमानक या संदिग्ध के रूप में वर्गीकृत की जाती रहेंगी, वहीं पुनर्वास पैकेज के अंतर्गत स्वीकृत अतिरिक्त सुविधाओं के संबंध में आय-निर्धारण, आस्ति-वर्गीकरण के मानदंड राशि के वितरण की तारीख से एक वर्ष के बाद लागू होंगे ।

    5. प्रावधान संबंधी मानदंड

    5.1 सामान्य

    5.1.1 बैंकों द्वारा विशाखन को कम करने और पर्याप्त प्रावधानीकरण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से यह सुझाव दिया गया था कि यदि बैंक के सांविधिक लेखा परीक्षक चाहे तो वे रिजॅर्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय / जिन निरीक्षकों ने पिछले वर्ष के दौरान बैंक का निरीक्षण किया था उनसे अंतर लाने वाले खातों के संबंध में बातचीत कर सकते हैं ।

    5.1.2 इसके अनुसरण में क्षेत्रीय कार्यालयों को यह सूचित किया गया था कि वे ऐसे अलग-अलग अग्रिमों की सूची भेजें जहां रिज़र्व बैंक और बैंक के बीच एक निर्दिष्ट स्तर से ऊपर प्रावधानीकरण संबंधी आवश्यकताओं में अंतर है ताकि बैंक और सांविधिक लेखा परीक्षक ऋण हानि आदि के लिए प्रावधान करते समय रिज़र्व बैंक के मूल्यांकन को ध्यान में रखें ।

    5.1.3 ऋण आस्तियों, निवेश अथवा किसी अन्य के मूल्यन में किसी कमी के लिए पर्याप्त प्रावधान करने की प्राथमिक जिम्मेदारी बैंक के प्रबंध-तंत्र और सांविधिक लेखा-परीक्षकों की हैं । रिज़र्व बैंक के निरीक्षण करने वाले अधिकारी द्वारा किया गया मूल्यांकन विवेकपूर्ण दिशा-निर्देशों के अनुसार पर्याप्त और आवश्यक प्रावधान करने के संबंध में निर्णय लेने के लिए बैंक के प्रबंध-तंत्र और लेखा-परीक्षकों की सहायता करने के लिए दिया जाता है ।

    5.1.4 विवेकपूर्ण मानदंड के अनुकूलन में निर्धारित श्रेणियों में आस्तियों के वर्गीकरण के आधार पर अनर्जक आस्तियों से संबंधित प्रावधान किया जाना चाहिए, जैसा कि पैराग्राफ 4 में बताया गया है । किसी खाते में वसूली संदिग्ध हो जाने और उसे संदिग्ध के रूप में पहचानने के बीच के समय को हिसाब में लेते हुए जमानत की वसूली और बैंक को प्रभारित की गयी जमानत के मूल्य में कमी के लिए बैंकों को अवमानक आस्तियों, संदिग्ध आस्तियाें और हानि वाली आस्तियों के लिए प्रावधान निम्नप्रकार करना चाहिए :

    5.2 हानि वाली आस्तियां

    संपूर्ण आस्ति को बट्टे खाते डाला जाना चाहिए । यदि आस्तियों को किसी कारण बहियों में बनाये रखने की अनुमति दी गयी हो तो बकाया राशि के लिए शत-प्रतिशत प्रावधान किया जाना चाहिए ।

    5.3 संदिग्ध आस्तियां

    1. जिस जमानत के लिए बैंक की वैध पहुंच हो उसके वसूलीयोग्य मूल्य द्वारा जो अग्रिम सुरक्षित न हो उनके लिए शत-प्रतिशत प्रावधान किया जाना चाहिए और वसूली योग्य मूल्य का यथार्थपरक अनुमान लगाया जाना चाहिए ।
    2. जमानती अंश के संबंध में प्रावधान जमानत के अंश के 20 प्रतिशत से 50 प्रतिशत की दरों पर निम्नलिखित आधार पर किया जाना चाहिए, जो उस अवधि पर निर्भर होगा जिस अवधि के लिए आस्ति संदिग्ध रही हो :
    3. जिस अवधि के लिए आस्ति संदिग्ध समझी गयी हो

      अपेक्षित प्रावधान (%)

      एक वर्ष तक

      20

      एक से तीन वर्ष तक

      30

      तीन वर्ष से अधिक

      50

      संदिग्ध आस्तियों की परिभाषा में 31 मार्च 2001 से परिवर्तन (उपर्युक्त पैरा 4.1.2 देखें) के परिणामस्वरूप अतिरिक्त प्रावधान क्रमिक रूप से निम्नप्रकार चरणों में किया जाना चाहिए :

      • 31.03.2001 को,
      • अवमानक आस्ति से संदिग्ध श्रेणी को संक्रमण के लिए 18 महीने के नये मानदंड के कारण जो आस्तियां संदिग्ध हो गयी हैं उन पर अपेक्षित अतिरिक्त प्रावधान का 50 प्रतिशत ।
      • 31.03.2002 को,
      • 31.03.2002 को आवश्यक प्रावधानों के अलावा प्रावधान का शेष प्रावधान जो पिछले वर्ष नहीं किया गया ।

      (iv) बैंकों को यह अनुमति दी गयी है कि वे आस्ति को अवमानक से संदिग्ध आस्ति के रूप में 18 से घटाकर 12 महीने किये जाने की संक्रमण अवधि के परिणामस्वरूप होने वाले अतिरिक्त प्रावधानीकरण को चार वर्ष की अवधि में चरणबद्ध करें, जो 31 मार्च 2005 को समाप्त होने वाले वर्ष से शुरू होकर प्रतिवर्ष न्यूनतम 20 प्रतिशत हो ।

      टिप्पणी : प्रावधान के लिए जमानत का मूल्यन

      जमानत के मूल्य का अनुमान लगाने में अंतर से उत्पन्न भिन्नता को कम करने और स्टॉक के मूल्यन पर विश्वसनीयता बढ़ाने के उद्देश्य से 5 करोड़ रुपये और उससे अधिक की शेष अनर्जक राशि के मामले में बोड़ द्वारा अनुमोदित एजेंसी द्वारा वार्षिक अंतराल पर स्टॉक का लेखा-परीक्षण करवाना आवश्यक होगा । बैंक के पक्ष में प्रभारित अचल संपत्ति जैसी संर्पाश्विक जमानतों का मूल्यन निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित दिशा-निर्देशों के अनुसार नियुक्त मूल्यनकर्ता द्वारा तीन वर्ष में एक बार करवाया जाना चाहिए ।

      5.4 अवमानक आस्तियां

      कुल बकाया राशि पर 10 प्रतिशत का सामान्य प्रावधान डी आइ सी जी सी / निर्यात ऋण और गारंटी निगम की रक्षा और उपलबध जमानत को हिसाब में लिये बिना किया जाना चाहिए ।

      5.5 मानक आस्तियां

      1. 31.03.2000
      को समाप्त वर्ष से बैंकों को सार्वभौम ऋण संविभाग के आधार पर मानक आस्तियों पर न्यूनतम 0.25 प्रतिशत का सामान्य प्रावधान करना चाहिए ।
    4. शुद्ध अनर्जक आस्तियों की गणना के लिए मानक आस्तियों पर प्रावधान को हिसाब में नहीं लिया जाना चाहिए ।
    5. मानक आस्तियों पर प्रावधान को सकल अग्रिमों में से नहीं घटाया जाना चाहिए, बल्कि उसे ‘मानक आस्तियों पर आकस्मिक प्रावधान’ के रूप में तुलन-पत्र की अनुसूची 5 में ‘अन्य देयताएं और प्रावधान - अन्य’ के अंतर्गत अलग से दिखाया जाना चाहिए ।
    6. 5.6 असंबद्ध (फ्लोटिंग) प्रावधान

      कुछ बैंक अनर्जक आस्तियों के रूप में पहचाने गये खातों के संबंध में किये गये विशिष्ट प्रावधान से अधिक असंबद्ध प्रावधान करते हैं । जहां इस तरह के असंबद्ध प्रावधान उपलब्ध हैं, वहां उन्हें ऊपर बताये गये प्रावधान संबंधी दिशा-निर्देशों के अनुसार किये जाने वाले प्रावधानों में समायोजित किया जा सकता है । इस बात पर विचार करते हुए कि ऋण की हानि के लिए उच्चतर प्रावधान बैंकों की समग्र वित्तीय स्थिति को अधिक सुदृढ़ता और वित्तीय क्षेत्र को स्थिरता प्रदान करता है, बैंकों से अनुरोध किया है कि वे अपेक्षित प्रथा के अनुसार न्यूनतम विवेकपूर्ण स्तर से ऊपर के प्रावधानों को स्वेच्छा से पृथक् रखें ।

      5.7 पट्टे की आस्तियों पर प्रावधान

      1. अवमानक आस्तियां
      2. (क) शुद्ध बही मूल्य का 10 प्रतिशत

        (ख) भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान द्वारा जारी की गयी ‘पट्टों के लिए लेखा संबंधी मार्गदर्शक टिप्पणी’ के अनुसार नियत आस्ति का सकल बही मूल्य उसकी ऐतिहासिक लागत अथवा खाता बहियों में ऐतिहासिक लागत के लिए स्थानापन्न की गयी अन्य राशि अथवा वित्तीय विवरण है । सांविधिक मूल्यह्रास को लाभ और हानि खाते में अलग से दिखाया जाना चाहिए । शुद्ध बही मूल्य निकालने के लिए संचित मूल्यह्रास को पट्टा करने वाले के तुलनपत्र में पट्टे की आस्ति के सकल बही मूल्य में से घटा दिया जाना चाहिए ।

        (ग) ‘पट्टा संयोजन खाता’ में शेष राशि भी पट्टे की आस्तियों के ‘शुद्ध बही मूल्य’ में समायोजित की जानी चाहिए । नियत आस्तियों की प्रत्येक श्रेणी के संबंध में समायोजन की राशि या तो मुख्य तुलनपत्र में अथवा पट्टे की आस्तियों से संबंधित खंड में पृथक् स्तंभ के रूप में नियत आस्ति अनुसूची में दिखायी जानी चाहिए ।

      3. संदिग्ध आस्तियां
      4. पट्टे की आस्तियों के वसूलीयोग्य मूल्य द्वारा जितना वित्त सुरक्षित नहीं है उसके लिए शत-प्रतिशत प्रावधान । उपर्युक्त प्रावधान के अतिरिक्त जमानती अंश के शुद्ध बही मूल्य पर निम्नलिखित प्रावधान किये जाने चाहिए जो उस अवधि पर निर्भर होंगे जिसके लिए आस्तियां संदिग्ध रही हैं :

        अवधि

        प्रावधान का %

        एक वर्ष तक

        20

        एक से तीन वर्ष तक

        30

        तीन वर्ष से अधिक

        50

        (iii) हानिवाली आस्तियां

        संपूर्ण राशि बट्टेखाते डाली जानी चाहिए । यदि आस्तियों को किसी कारण बहियों में बनाये रखने की अनुमति दी गयी हो तो बकाया राशि के लिए शत-प्रतिशत का प्रावधान किया जाना चाहिए ।

        5.8 विशेष परिस्थितियों में प्रावधानों के लिए दिशा-निर्देश

        5.8.1 सरकार द्वारा गारंटीकृत अग्रिम

        1. 31 मार्च 2000 से राज्य सरकार की गारंटी पर स्वीकृत अग्रिमों के संबंध में, यदि गारंटी लागू की गयी है और दो तिमाहियों से अधिक (वर्तमान में 180 दिन) तक के लिए चूक में
          रहती हो तो बैंकों को ऊपर पैराग्राफ 4.1.2 में किये गये निर्धारण के अनुसार सामान्य प्रावधान करने चाहिए ।
        2. राज्य सरकारों द्वारा गारंटीकृत जिन अग्रिमों के संबंध में गारंटी 31.03.2000 तक लागू रही हो उनके मामलों में 31.03.2000 से 31.03.2003 को समाप्त वित्तीय वर्षों में प्रत्येक वर्ष न्यूनतम 25 प्रतिशत का आवश्यक प्रावधान चरणबद्ध रूप से करने की अनुमति दी गयी थी ।

        5.8.2 औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोड़ / मीयादी ऋण संस्थाओं द्वारा अनुमोदित पुनर्वास के अंतर्गत अग्रिम

        1. औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोड़ / मीयादी ऋण संस्थाओं द्वारा अनुमोदित पुनर्वास पैकेज के अंतर्गत अग्रिमों के संबंध में मौज़ूदा ऋण सुविधाओं पर बैंक को देय राशियों के संबंध में प्रावधान उनके अवमानक या संदिग्ध आस्ति के रूप में वर्गीकरण के अनुसार किया जाना जारी रखा जाये ।
        2. औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोड़ और / या मीयादी ऋण संस्थाओं द्वारा अंतिम रूप दिये गये पैकेज के अनुसार स्वीकृत अतिरिक्त सुविधाओं के बारे में प्रावधान राशि की वितरण की तारीख से एक वषर् की अवधि के लिए अतिरिक्त सुविधाओं पर प्रावधान करने की आवश्यकता नहीं है ।

        (iii) उन लघु उद्योग इकाइयों को स्वीकृत अतिरिक्त ऋण सुविधाओं के संबंध में एक वर्ष की अवधि के लिए कोई प्रावधान किये जाने की जरूरत नहीं है, जिन्हें रुग्ण माना गया है ड17 अप्रैल 1993 के ग्रा आ ऋ वि के परिपत्र सं. पी एल एन एफ एस. बीसी. 99/06.02.031/9ॅ2-93 के पैरा 5(क) में दी गयी परिभाषा के अनुसार तथा जिनके संबंध में बैंकों द्वारा स्वयं या सहायता संघीय व्यवस्थाओं के अंतर्गत पुनर्वास पैकेज / पोषण कार्यक्रम तैयार किये गये हों ।

        5.8.3 मीयादी जमाराशियों, समर्पण के लिए पात्र राष्ट्रीय बचत पत्रों, इंदिरा विकास पत्रों, किसान विकास पत्रों और जीवन बीमा पॉलिसियों पर अग्रिमों को प्रावधान करने की अपेक्षा से छूट दी गयी है ।

        5.8.4 परंतु स्वर्ण आभूषणों, सरकारी प्रतिभूतियों तथा अन्य प्रकार की प्रतिभूतियों पर दिये गये अग्रिमों को प्रावधान संबंधी अपेक्षाओं से छूट नहीं दी गयी है ।

        5.8.5 ब्याज उचंत खाते का व्यवहार

        ब्याज उचंत खाते की राशियों को प्रावधानों का भाग नहीं माना जाना चाहिए । ब्याज उचंत खाते की राशि को संबंधित अग्रिमों से घटाया जाना चाहिए और उसके बाद मानदंडों के अनुसार प्रावधान इस तरह की कटौती के बाद शेष राशियों पर किया जाना चाहिए ।

        5.8.6 ई सी जी सी / डी आइ सी जी सी की गारंटी द्वारा सुरक्षित अग्रिम

        ई सी जी सी / डी आइ सी जी सी की गारंटी द्वारा सुरक्षित अग्रिमों के मामले में इन निगमों द्वारा गारंटीकृत राशि से अधिक शेष के लिए ही प्रावधान किया जाना चाहिए । इसके अतिरिक्त संदिग्ध आस्तियों के लिए अपेक्षित प्रावधान की राशि निकालते समय पहले जमानतों का वसूलीयोग्य मूल्य इन निगमों द्वारा गारंटीकृत राशि के संबंध में बकाया शेष में से घटा दिया जाना चाहिए और उसके बाद नीचे दिये गये उदाहरण के अनुसार प्रावधान किया जाना चाहिए :

        उदाहरण

        बकाया राशि

        4 लाख रुपये

        डी आइ सी जी सी सुरक्षा

        50 प्रतिशत

        जिस अवधि के लिए अग्रिम संदिग्ध रहा

        3 वर्ष से अधिक संदिग्ध रहा

        धारित जमानत का मूल्य (रुपये छोड़कर)

        1.50 लाख रुपये

        अपेक्षित प्रावधान

        बकाया राशि

        4 लाख रुपये

        घटायें : धारित प्रतिभूति का मूल्य

        1.50 लाख रुपये

        वसूल न हो सकनेवाली शेष राशि

        2.50 लाख रुपये

        घटायें : डी आइ सी जी सी सुरक्षा (वसूल न हो सकनेवाली राशि का 50 प्रतिशत)

        1.25 लाख रुपये

        शुद्ध गैर जमानती शेष

        1.25 लाख रुपये

        अग्रिम के गैर जमानती अंश के लिए प्रावधान

        1.25 लाख रुपये (गैर जमानती अंश के 100 प्रतिशत की दर पर)

        अग्रिम के जमानती अंश के लिए प्रावधान

        0.75 लाख रुपये (जमानती अंश के 50 प्रतिशत की दर पर)

        अपेक्षित कुल प्रावधान

        2.00 लाख रुपये

        5.8.7 सी जी टी एस आइ गारंटी द्वारा सुरक्षित अग्रिम

        सी जी टी एस आइ गारंटी द्वारा सुरक्षित अग्रिम के अनर्जक आस्ति हो जाने के मामले में गारंटीकृत अंश के लिए कोई प्रावधान नहीं किया जाना है । गारंटीकृत अंश से अधिक बकाया राशि के लिए प्रावधान अनर्जक अग्रिमों के बारे में प्रावधान करने से संबंधित प्रचलित दिशा-निर्देशों के अनुसार किया जाना चाहिए । दो उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं :

        उदाहरण I

        आस्ति वर्गीकरण की स्थिति

        संदिग्ध - 3 वर्ष से अधिक

         

        सी जी टी एस आइ की सुरक्षा :

        बकाया राशि का 75 प्रतिशत या असुरक्षित राशि का 75 प्रतिशत या 18.75 लाख रुपये, जो भी कम हो

         

        जमानत का वसूलीयोग्य मूल्य

        1.50 लाख रुपये

         

        बकाया शेषराशि

        10.00 लाख रुपये

         

        घटायें : जमानत का वसूलीयोग्य मूल्य

        1.50 लाख रुपये

         

        असुरक्षित राशि

        8.50 लाख रुपये

         

        घटाये : सी जी टी एस आइ रक्षा (75 प्रतिशत)

        6.38 लाख रुपये

         

        शुद्ध गैर जमानती और असुरक्षित अंश

        2.12 लाख रुपये

         
           

        अपेक्षित प्रावधान

        सुरक्षित अंश

        1.50 लाख रुपये

        0.75 लाख रुपये

        (50 प्रतिशत की दर से )

        शुद्ध गैर जमानती और असुरक्षित अंश

        2.12 लाख रुपये

        2.12 लाख रुपये
        (100 प्रतिशत की दर से)

        कुल अपेक्षित प्रावधान

         

        2.87 लाख रुपये

        उदाहरण II

        आस्ति वर्गीकरण की स्थिति

        संदिग्ध - 3 वर्ष से अधिक

         

        सी जी टी एस आइ की सुरक्षा :

        बकाया राशि का 75 प्रतिशत या असुरक्षित राशि का 75 प्रतिशत या 18.75 लाख रुपये, जो भी कम हो

         

        जमानत का वसूलीयोग्य मूल्य

        10.00 लाख रुपये

         

        बकाया शेषराशि

        40.00 लाख रुपये

         

        घटायें : जमानत का वसूलीयोग्य मूल्य

        10.00 लाख रुपये

         

        असुरक्षित राशि

        30.00 लाख रुपये

         

        घटायें : सी जी टी एस आइ रक्षा (75 प्रतिशत)

        18.75 लाख रुपये

         

        शुद्ध गैर जमानती और असुरक्षित अंश

        11.25 लाख रुपये

         
           

        अपेक्षित प्रावधान

        सुरक्षित अंश

        10.00 लाख रुपये

        5.00 लाख रुपये
        (50 प्रतिशत की दर से )

        शुद्ध गैर जमानती और असुरक्षित अंश

        11.25 लाख रुपये

        11.25 लाख रुपये
        (100 प्रतिशत की दर से)

        कुल अपेक्षित प्रावधान

         

        16.25 लाख रुपये

        5.8.8 लिया गया वित्त

        ऋण देने वाली संस्था को चाहिए कि वह ‘लिये गये वित्त’ के अनर्जक हो जाने पर अधिग्रहण करने वाली संस्था द्वारा अधिग्रहण होने तक उसके लिए प्रावधान करे । जब भी अधिग्रहण करने वाली संस्था द्वारा आस्ति का अधिग्रहण कर लिया जाये तो तदनुरूप प्रावधान प्रत्यावर्तित किया जाना चाहिए ।

        5.8.9 विनिमय दर में घट-बढ़ खाते के लिए प्रारक्षित राशि

        जब भारतीय रुपये की विनियम दर में प्रतिकूल गतिविधि हो तो विदेशी मुद्रा की अधिकता वाले ऋण की बकाया राशि (जहां वास्तविक वितरण भारतीय रुपयों में किया गया हो) कालातीत देय राशि हो जाती है तो वह तदनुसार बढ़ जाती है जिसके परिणामस्वरूप प्रावधान की अपेक्षाओं पर भी असर पड़ता है । इस प्रकार की आस्तियों का सामान्यत: पुनर्मूल्यन नहीं किया जाना चाहिए । यदि इस तरह की आस्तियों का पुनर्मूल्यन लेखाकरण की अपेक्षाओं के अनुसार अथवा किसी अन्य अपेक्षा के कारण किया जाये तो निम्नलिखित क्रियाविधि अपनायी जानी चाहिए :

        • आस्तियों के पुनर्मूल्यन पर हानि को बैंक के लाभ और हानि खाते में डाला जाना चाहिए ।
        • आस्ति वर्गीकरण के अनुसार प्रावधान की अपेक्षा के अतिरिक्त बैंकों को पुनर्मूल्यन से लाभ की संपूर्ण राशि को विशिष्ट आस्तियों पर प्रावधान के रूप में विदेशी मुद्रा विनिमय में घट-बढ़ के कारण तदनुरूपी आस्तियों, यदि कोई हों, के संबंध में माना जाना चाहिए ।

        5.9 अनर्जक आस्तियों को बट्टे खाते डालना

        5.9.1 आय कर अधिनियम, 1961 की धारा 43 (घ) के अनुसार अशोध्य और संदिग्ध ऋणों की श्रेणी से संबंधित ब्याज द्वारा आय को, रिज़र्व बैंक द्वारा इस तरह के ऋणों के संबंध में जारी किये गये दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखते हुए, उस पिछले वर्ष में कर के लिए प्रभार योग्य माना जाये जिस वर्ष में बैंक के लाभ और हानि खाते में जमा की गयी हो या प्राप्त की गयी हो, जो भी पहले हो ।

        5.9.2 यह शर्त ऊपर बताये गये अनुसार अपेक्षित प्रावधान के लिए लागू नहीं होगी । दूसरे शब्दों में, अनर्जक आस्तियों के लिए प्रावधान करने हेतु अलग रखी गयी राशि कर में कटौती के लिए पात्र नहीं है ।

        5.9.3 इसलिए बैंक या तो दिशा-निर्देशों के अनुसार पूरा प्रावधान करें अथवा अपने लेखा-परीक्षकों / कर परामर्शदाताओं के परामर्श से उचित पद्धति विकसित करके इस प्रकार के अग्रिमों

        को बट्टे खाते डालें और यथालागू कर लाभों का दावा करें । इस प्रकार के खातों में की गयी वसूलियों को नियमानुसार कर प्रयोजन के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए ।

        5.10 प्रधान कार्यालय के स्तर पर बट्टे खाते डालना

        बैंक शाखा की बहियों में संबंधित अग्रिमों के बकाया रहते हुए भी प्रधान कार्यालय स्तर पर अग्रिमों को बट्टे खाते डाल सकते हैं । परंतु यह आवश्यक है कि संबंधित खातों को दिये गये वर्गीकरण के अनुसार प्रावधान किया जाये । दूसरे शब्दों में, यदि अग्रिम हानि वाली आस्ति है तो उसके लिए शत-प्रतिशत प्रावधान करना होगा ।

         

        अनुबंध I

        अनर्जक आस्तियों के लिए सूचना देनेवाला फार्मेट -
        सकल और शुद्ध स्थिति
        (पैराग्राफ 3.5 के अनुसार)

        बैंक का नाम :

        .........................तारीख को स्थिति

        (दो दशमलव तक राशि करोड़ रुपयों में)

        ब्यौरे

        राशि

        1. सकल अग्रिम*

         

        2. सकल अनर्जक आस्तियां*

         

        3. सकल अग्रिमों के प्रतिशत के रूप में सकल अनर्जक आस्तियां

         

        4. कुल कटौतियां (i +ii+iii+iv)

         

        i) ब्याज उचंत खाते में जमाशेषग़्

         

        ii) डी आइ सी जी सी / ई सी जी सी से प्राप्त और समायोजन के लिए अनिर्णीत दावे

         

        iii) प्राप्त आंशिक भुगतान और जिसे निलंबित खाते में रखा गया

         

        iv) कुल धारित प्रावधान**

         

        5. शुद्ध अग्रिम (1-4)

         

        6. शुद्ध अनर्जक आस्तियां (2-4)

         

        7. शुद्ध अग्रिमों के प्रतिशत के रूप में शुद्ध अनर्जक आस्तियां

         

        * .............करोड़ रुपये की तकनीकी बट्टे खाते डाली गयी राशि को छोड़कर

        ** तकनीकी बट्टे खाते डाली गयी राशि (.............करोड़ रुपये तथा मानक आस्तियों संबंधी प्रावधान (.................करोड़ रुपये) को छोड़कर

        ग़् जो बैंक अनर्जक आस्तियों पर प्रोद्भूत ब्याज को रखने के लिए ब्याज उचंत खाता नहीं रखते हैं वे अनर्जक आस्तियों पर प्राप्य ब्याज की राशि इस विवरण के फुटनोट के रूप में भेजें ।

        टिप्पणी

        : इस विवरण के प्रयोजन के लिए ‘सकल अग्रिम’ का अर्थ है सभी बकाया ऋण और अग्रिम, जिनमें ऐसे अग्रिम शामिल हैं जिनके लिए पुनर्वित्त प्राप्त हुआ है परंतु पुनर्भुनाई बिल शामिल नहीं है तथा प्रधान कार्यालय स्तर पर बट्टे खाते डाले गये अग्रिम (तकनीकी बट्टे खाते डाले गये) ।

        अनुबंध II

        प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अग्रिमों से संबंधित मास्टर परिपत्र से
        प्रत्यक्ष कृषि अग्रिमों की सूची का प्रासंगिक अंश
        - 1 अगस्त 2001 का आरपीसीडी.प्लान. बीसी. 12/04.09.01/2001-02

            1.1 कृषि प्रयोजनों के लिए किसानों केा सीधे वित्तपोषण

        1.1.1 फसल उगाने के लिए अल्पावधि ऋण, अर्थातॅ् फसल ऋणों के लिए । इसके अतिरिक्त 6 महीने से अनधिक अवधि के लिए कृषि उपज (गोदाम रसीदों सहित) को गिरवी / दृष्टिबंधक रखकर उन किसानों को 1 लाख रुपये तक के अग्रिम प्रदान किये जाते हैं, जिन्हें फसल उगाने के लिए फसल ऋण दिये गये थे, लेकिन शर्त यह है कि उधारकर्ता किसी एक ही बैंक से ऋण ले ।

        2. मध्यावधि एवं दीर्घावधि ऋण (किसानों को उनकी उत्पादन एवं विकास संबंधी आवश्यकताओं के लिए सीधे दिया जाता है ।)

        (i) कृषि औैजारों औैर मशीनों की खरीद

        (क) कृषि औजारों की खरीद : लोहे के हल, हैरो, होजॅ, भूमि समतलक, मेड़ बनाने वाले औजार, हाथ के औजार, छिड़काव यंत्र, झाड़न, पुवाल का गट्ठर बनाने वाले यंत्र, गन्ना पेरनेवाली मशीन, थ्रेशर मशीन, आदि ।

        (ख) खेती के लिए मशीनों की खरीद : ट्रैक्टर, ट्रेलर, विद्युतचालित हल, ट्रैक्टर के सहायक उपकरण यथा डिस्क हल आदि ।

        (ग) ट्रक, मिनी ट्रक, जीप, पिक-अप वैन, बैलगाड़ियां और अन्य परिवहन उपकरणों आदि की खरीद, जिनसे कृषि संबंधी निवेश वस्तुओं और खेती की उपज को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा / लाया जा सवे ।

        (घ) कृषि निविष्टियों और उत्पादों का परिवहन (ढुलाई)।

        (ड.) हल जोतने के लिए पशुओं की खरीद ।

        (ii) निम्नलिखित के जरिये सिंचाई संभावना का विकास

        (क) उथले और गहरे नलकूपों, तालाबों आदि का निर्माण और ड्रिलिंग मशीनों की खरीद ।

        (ख) सतही कुओं का निर्माण, उन्हें गहरा करना और साफ करना, कुओं की खुदाई, कुओं का विद्युतीकरण, ऑयल इंजिन की खरीद और बिजली के मोटर और पंप लगाना ।

        (ग) टर्बाइन पंपांें की खरीद और उन्हें लगाना, खेतों में नालियों का निर्माण (खुली और भूमिगत) आदि ।

        (घ) उद्वहन सिंचाई परियोजना का निर्माण ।

        (ड.) छिड़ॅकाव वाली सिंचाई प्रणाली लगाना ।

        (च) कृषि प्रयोजनों के लिए उपयोग किये जानेवाले पंपसेटों को बिजली से चलाने के लिए जनरेटर / सेटों की खरीद ।

        1. भूमि सुधार और भूमि विकास संबंधी योजनाएं
        2. :

        खेतों में मेड़ बनाना, भूमि को समतल करना, टेरेसिंग, धान उगानेवाले सूखे खेतों को नम सिंचाई वाले खेतों में बदलना, बंजर भूमि विकास, खेतों से पानी निकालने के लिए नालियां बनाना, खेतों की मिट्टी का सुधार और लवणता की रोकथाम, गीों को भरना, बुलडोज़रों की खरीद आदि ।

        (iv) कृषि फार्म के लिए भवनों और ढांचों आदि का निर्माण

        बैलों को बांधने के लिए शेड, औजारों को रखने के लिए शेड, ट्रैक्टर और ट्रकों को रखने के लिए शेड, कृषि-फार्म के लिए भंडार आदि ।

        (v) भंडार संबंधी सुविधाओं का निर्माण औैर उन्हें चलाना

        भंडार घरों, गोदामों, साइलो और कोल्ड स्टोरेज का निर्माण और उन्हें चलाना तथा किसानों को अपने उत्पाद के भंडारण के लिए प्रयोग किये जाने वाले कोल्ड स्टोरेज स्थापित करने के लिए दिये गये ऋण ।

        (vi) फसलों के संकर बीजों का उत्पादन औैर संसाधन

        (vii) सिंचाई प्रभारों, आदि का भुगतान

        कुओं और नलकूपों से भाड़े पर पानी लेने के लिए प्रभार, नहर जल प्रभार (आबपाशी), आयल इंजनों और विद्युत-मोटरों का रखरखाव, मजदूरों को मजदूरी का भुगतान, बिजली के लिए प्रभार, किराये पर यंत्र देनेवाली सेवा इकाइयों को सेवा-प्रभार, विकास संबंधी उप कर का भुगतान आदि ।

        (viii) किसानों को किये गये अन्य प्रकार के सीधे वित्तपोषण

        (क) अल्पावधि ऋण

        पारंपारिक / गैर-पारंपारिक बागानों एवं उद्यानों को

        (ख) मध्यावधि और दीर्घावधि ऋण

        सभी प्रकार के बागानों, बागबानियों, वन उद्योग, आदि के लिए विकास ऋण ।

        ************

        विवेकपूर्ण मानदंड

        भाग - अ

        मास्टर परिपत्र द्वारा समेकित किये गये परिपत्रों की सूची

        सं.

        परिपत्र सं.

        दिनांक

        विषय

        पैरा सं.

        1.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 108/ 21. 04. 048/2001-2002

        28.05.2002

        अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और
        प्रावधान करने संबंधी मानदंड - निर्धारित समयावधि से अधिक
        समय तक कार्यान्वित की जा रही परियोजनाओं का निरूपण

        4.2.15

        2.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 101/ 21. 01.002/2001-02

        09.05.2002

        कंपनी ऋण का पुनर्विन्यास

        4.2.14

        3.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 100/ 21. 01.002/2001-02

        09.05.2002

        आस्ति वर्गीकरण के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंड

        4.1.2

        4.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 59/ 21. 04. 048/2001-2002

        22.01.2002

        आय-निर्धारण, आस्ति-वर्गीकरण और प्रावधान संबंधी विवेकपूर्ण मानदंड - कृषि अग्रिम

        4.2.11(i)

        5.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 25/ 21. 04. 048 / 2000-2001

        11.09.2001

        आय-निर्धारण, आस्ति-वर्गीकरण और प्रावधान करने के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंड

        4.2.13(v)

        6.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 15/ 21. 04. 048/ 2000-2001

        23.08.2001

        कंपनी ऋण पुनर्विन्यास (सी डी आर)

        4.2.14

        7.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 132/ 21. 04. 048/ 2000-2001

        14.06.2001

        अग्रिमों के संबंध में आय-निर्धारण, आस्ति-वर्गीकरण और प्रावधान करना

        4.2.2, 4.2.3, 4.2.4, 4.2.5(ii), 4.2.6, 4.2.7

        सं.

        परिपत्र सं.

        दिनांक

        विषय

        पैरा सं.

        8.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 128/ 21. 04. 048/00-01

        07.06.2001

        लघु उद्योगों के लिए ऋण गारंटी न्यास द्वारा गारंटीकृत लघु उद्योग अग्रिम -जोखिम भार और प्रावधान करने से संबंधित मानदंड

        5.8.7

        9.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 116/ 21. 04.048/2000-2001

        02.05.2001

        मौद्रिक और ऋण नीति संबंधी उपाय 2001-02

        2.1.2, 2.1.3

        10.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 98/ 21. 04.048/2000-2001

        30.03.2001

        पुनर्व्यवस्थित खाताें का व्यवहार

        4.2.13

        11.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 40/ 21. 04.048/2000-2001

        30.10.2000

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करना - भारतीय रिज़र्व बैंक को अनर्जक आस्तियों की सूचना देना

        3.5

        12.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 161/ 21. 04.048/2000

        24.04.2000

        पूंजी पर्याप्तता, आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधान करने के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंड

        5.5

        13.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 144/ 21. 04.048/2000

        29.02.2000

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण तथा अन्य संबंधित मामले और पर्याप्तता
        मानक - ‘टेक आउट’ वित्त

        4.2.15, 5.8.8

        14.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 138/ 21. 04.048/2000

        07.02.2000

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करना - निर्यात परियोजना वित्त

        4.2.17

        15.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 103/ 21.04.048/99

        21.10.99

        आय-निर्धारण, आस्ति-वर्गीकरण और प्रावधान करना - प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के माध्यम से वाणिज्य बैंकों द्वारा कृषि वित्त

        4.2.8

        16.

        बैंपविवि. सं. एफएससी. बीसी. 70/21.04.048/ 99

        17.07.99

        उपस्कर पट्टेदारी कार्यकलाप -

        लेखांकन / प्रावधान करने संबंधी मानदण्ड

        3.2.3, 5.7

        17.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 45/ 21.04.048/99

        10.05.99

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करना - वाणिज्यिक उत्पादन शुरू करने की संकल्पना

        4.2.13

        सं.

        परिपत्र सं.

        दिनांक

        विषय

        पैरा सं.

        18.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 120/ 21. 04.048/98

        29.12.98

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करने के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंड - प्राकृतिक विपदाओं से प्रभावित कृषि ऋण

        4.2.11(ii) और (iii)

        19.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 103/ 21. 01.002/98

        31.10.98

        मौद्रिक और ऋण नीति संबंधी उपाय

        4.1.1, 4.1.2, 5.5, 5.8.1

        20.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 17/ 21. 04.048/98

        04.03.98

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करने के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंड - कृषि अग्रिम

        4.2.11

        21.

        बैंपवि. सं. सीओ. पीपी. बीसी. 6/ 11. 01.005/96-97

        15.05.97

        आस्ति मूल्यांकन और ऋण हानि के प्रावधान से संबंधित मूल्यांकन

        5.1.3

        22.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 29/ 21. 04.048/97

        09.04.97

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करना - कृषि अग्रिम

        4.2.11

        23.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 14/ 21. 04.048/97

        19.02.97

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करना - कृषि अग्रिम

        4.2.11

        24.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 9/ 21. 04.048/97

        29.01.97

        विवेकपूर्ण मानदंड - पूंजी पर्याप्तता, आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करना

        4.2.3, 4.2.4, 4.26

        25.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 163/ 21.04.048/96

        24.12.96

        25000 रुपये से कम की जमा शेष वाले अग्रिमों का वर्गीकरण

        4.1

        26.

        बैंपवि. सं. सीओ. बीसी. 21/ 11. 02.826/96-97

        31.10.96

        आस्ति मूल्यांकन और ऋण हानि के प्रावधान से संबंधित मूल्यांकन

        5.1.1

        27.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 65/ 21. 04.048/96

        04.06.96

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करना

        4.2.6

        28.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 26/ 21. 04.048/96

        19.03.96

        अनर्जक अग्रिम - रिज़र्व बैंक को सूचना देना

        3.5

        सं.

        परिपत्र सं.

        दिनांक

        विषय

        पैरा सं.

        29.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 25/ 21. 04.048/96

        19.03.96

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करना

        4.2.6, 4.2.12, 5.10

        30

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 134/ 21. 04.048/95

        20.11.95

        एक्ज़िम बैंक का नया उधार कार्यक्रम - पोतलदानोंत्तर आपूर्तिकर्ता के ऋण के संदर्भ में वाणिज्य बैंकों को गारंटी एवं पुनर्वित्त प्रदान करना

        4.2.16

        31.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 36/ 21. 04.048/95

        03.04.95

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करना

        3.2.2, 3.3, 4.2.18, 5.8.2(i), (ii)

        32.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 134/ 21. 04.048/94

        14.11.94

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करना तथा अन्य संबंधित मामले

        4.2.16, 5.8.2

        33.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 58/ 21. 04.048/94

        16.05.94

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करना तथा पूंजी पर्याप्तता मानदंड - स्पष्टीकरण

        5.8.6

        34.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 50/ 21. 04.048/94

        30.04.94

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करना

        5.8.6

        35.

        डीओएस.बीसी.4/

        16.14.001/93-94

        19.03.94

        ऋण निगरानी प्रणाली - उधार खातों के लिए स्थिति कूट प्रणाली

        1.3

        36.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 8/ 21. 04.043/94

        04.02.94

        आय निर्धारण और प्रावधान करना तथा अन्य संबंधित मामले

        3.1.2, 3.4, 4.2.9, 4.2.18, 5.6, 5.8.3, 5.8.4, 5.8.5

        37.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 195/ 21.04.048/93

        24.11.93

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करना - स्पष्टीकरण

        4.2.12

        38.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 95/ 21. 04.048/93

        23.03.93

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण, प्रावधान करना तथा अन्य संबंधित मामले

        5.9.1 से 5.9.3

        सं.

        परिपत्र सं.

        दिनांक

        विषय

        पैरा सं.

        39.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 59/ 21. 04.043/92

        17.12.92

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करना - स्पष्टीकरण

        2.1.2, 3.2.1, 3.2.2, 4.2.5 (i), 4.2.6, 4.2.7(ii), 4.2.10, 4.2.11, 4.2.2, 4.2.14

        40.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 129/ 21.04.043/92

        27.04.92

        आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण, प्रावधान करना तथा अन्य संबंधित मामले

        1.1, 1.2, 2.1.1, 2.2, 3.1.1, 3.1.3, 4.1, 4.1.1, 4.1.2, 4.1.3, 4.2, 5.1, 5.1.2, 5.2, 5.3, 5.4

        41.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 42/सी. 469 (डब्ल्यू)-90

        31.10.90

        अनर्जक ऋणों का वर्गीकरण

        3.1.1

        42.

        बैंपविवि. सं. एफओएल. बीसी. 136/सी. 249-85

        07.11.85

        ऋण निगरानी प्रणाली - बैंकों में उधार खातों के लिए स्थिति कूट लागू करना

        1.3

        भाग - आ

        विवेकपूर्ण मानदंडों से संबंधित अनुदेशों / दिशा-निर्देशों / निदेशों वाले अन्य परिपत्रों की सूची

        सं.

        परिपत्र सं.

        परिपत्र का वह पैराग्राफ जिसका अधिक्रमण किया गया है

        दिनांक

        विषय

        पैरा सं.

        1.

        बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 35/ 21. 01.002/99

        2(iii)

        24.04.99

        मौद्रिक और ऋण नीति संबंधी उपाय

        4.2.13(i), 4.2.13(iv)

        2.

        बैंपविवि. सं. एफएससी. बीसी.18 /24. 01.001/93-94

        1(ii), 1(v)

        19.02.94

        उपस्कर पट्टे पर देना, किराया खरीद, फैक्टरिंग आदि गतिविधियां

        2.1, 3.2.3

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