वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा : बैंकों द्वारा नियुक्त वसूली एजेंट - आरबीआई - Reserve Bank of India
वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा : बैंकों द्वारा नियुक्त वसूली एजेंट
आरबीआइ/2007-08/296
बैंपविवि. सं. एलईजी. बीसी. 75/09.07.005/2007-08
24 अप्रैल 2008
4 वैशाख 1930 (शक)
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)
महोदय
वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा : बैंकों द्वारा नियुक्त वसूली एजेंट
कृपया आप वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा का पैरा 172 और 173 देखें जिनकी प्रति संलग्न है । पिछले कुछ दिनों से वसूली एजेंटों की नियुक्ति के संबंध में बैंकों के खिलाफ विवाद और मुकदमों की बढ़ी हुई संख्या को देखते हुए यह महसूस किया जा रहा है कि इस संबंध में प्रतिकूल प्रचार से पूरे बैंकिंग क्षेत्र की प्रतिष्ठा को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है । अत: भारत में बैंकों द्वारा वसूली एजेंटों की नियुक्ति से संबंधित नीति, परिपाटी और प्रक्रिया की समीक्षा करने की आवश्यकता उत्पन्न हुई है । इस पृष्ठभूमि में भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्रारूप दिशानिर्देश जारी किए थे जो सभी संबंधितों के अभिमतों के लिए वेबसाइट पर रखे गये थे । बैंकों/व्यक्तियों/संगठनों के व्यापक क्षेत्र से प्राप्त फीडबैक के आधार पर प्रारूप दिशानिर्देशों को समुचित रूप से संशोधित किया गया है और अंतिम दिशानिर्देश निम्नानुसार हैं :
वसूली एजेंटों की नियुक्ति
2. बैंकों को यह सूचित किया जाता है कि वे वसूली एजेंट नियुक्त करते समय निम्नलिखित विशेष पहलुओं को ध्यान में रखें :
- इन दिशानिर्देशों में ‘एजेंट’ में बैंकों द्वारा नियुक्त एजेन्सियों और संबंधित एजेन्सियों के एजेंटों/ कर्मचारियों का समावेश है।
- बैंकों को चाहिए कि वे वसूली एजेंटों की नियुक्ति के लिए सावधानी युक्त प्रक्रिया अपनाएं जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ वसूली प्रक्रिया में संलग्न व्यक्तियों के संबंध में सावधानी रखने का प्रावधान हो । उचित सावधानीयुक्त प्रणाली सामान्यत: 3 नवंबर 2006 के परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. 40/21.04.158/2006-07 द्वारा वित्तीय सेवाओं की आउटसोर्सिंग संबंधी भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुरूप होने चाहिए । साथ ही, बैंकों को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वसूली प्रक्रिया में उनके द्वारा नियुक्त एजेंट, अपने कर्मचारियों के पूर्ववृत्तों का सत्यापन करते हैं, जिसमें पूरी सावधानी के रूप में रोज़गार पूर्व पुलिस सत्यापन का समावेश हो । पूर्ववृत्तों का पुन: सत्यापन करने की आवधिकता के बारे में बैंक निर्णय ले सकते हैं ।
- बैंकों द्वारा विधिवत् सूचना और उपयुक्त प्राधिकार सुनिश्चित करने की दृष्टि से उन्हें चाहिए कि वे वसूली एजेंटों को चूक के मामले भेजते समय ऋणकर्ता को भी वसूली एजेन्सी कंपनियों के ब्योरे सूचित करें । साथ ही, कुछ मामलों में ऐसा हो सकता है कि अस्वीकार किये जाने/अनुपलब्धता/टालमटोल के कारण वसूली एजेन्सी से संबंधित ब्योरे ऋणकर्ता को प्राप्त नहीं हुए हों । अत: यह उचित होगा कि एजेंट भी संबंधित नोटिस तथा संबंधित बैंक से प्राप्त प्राधिकार पत्र की प्रति तथा बैंक अथवा एजेन्सी फर्म/कंपनी द्वारा उन्हें जारी किया गया पहचान पत्र अपने साथ ले जाएं । साथ ही, जहां वसूली प्रक्रिया के दौरान संबंधित बैंक वसूली एजेन्सी में परिवर्तन करता है तो ऐसे परिवर्तन की सूचना बैंक द्वारा ऋणकर्ता को दिये जाने के साथ-साथ, नये एजेंट को भी उक्त नोटिस तथा प्राधिकार पत्र एवं अपना पहचान पत्र अपने साथ ले जाना चाहिए ।
- नोटिस और प्राधिकार पत्र में, अन्य ब्योरों के साथ-साथ, संबंधित वसूली एजेन्सी के टेलीफोन नंबर भी होने चाहिए । बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वसूली एजेंटों द्वारा ग्राहकों और ग्राहकों द्वारा वसूली एजेंटों को किये गये फोन कॉल की बातचीत की टेप रिकार्डिंग की जाती है । बैंकों को उचित एहतियात बरतनी चाहिए जैसे कि ग्राहक को सूचित किया जाना चाहिए कि बातचीत रिकार्ड की जा रही है, आदि ।
- बैंकों द्वारा नियुक्त वसूली एजेन्सी फर्मों/कंपनियों के अद्यतन ब्योरे बैंक की वेबसाइट पर भी देने चाहिए ।
- जहां शिकायत दर्ज की गयी हो, वहां बैंकों को चाहिए कि वे वसूली एजेन्सी को मामले तब तक न भेजें जब तक संबंधित ऋणकर्ता द्वारा दर्ज की गई शिकायत का अंतिम रूप से निपटान नहीं हो जाता । तथापि, उचित सबूतों के साथ बैंक को इस बात का पक्का विश्वास हो कि ऋणकर्ता लगातार मामूली/परेशान करनेवाली शिकायतें करता है तो ऐसे मामले में शिकायत उनके पास विचाराधीन होते हुए भी बैंक वसूली एजेंटों के माध्यम से वसूली प्रक्रिया जारी रख सकता है । जिन मामलों में ऋणकर्ता की बकाया राशि का मामला न्यायाधीन हो सकता है, वहां बैंकों को परिस्थिति के अनुरूप वसूली एजेन्सियों को मामला भेजने के संबंध में यथोचित रूप से पूरी एहतियात बरतनी चाहिए ।
- प्रत्येक बैंक को एक ऐसी प्रणाली स्थापित करनी चाहिए जिसमें वसूली प्रक्रिया से संबंधित ऋणकर्ताओं की शिकायतों को दूर किया जा सके । ऐसी प्रणाली के ब्योरे उपर्युक्त मद (iii) में उल्लेख किये गये अनुसार वसूली एजेन्सी के ब्योरे सूचित करते समय ऋणकर्ता को बताये जाने चाहिए ।
- यह पता चला है कि कुछ बैंक वसूली एजेंटों के लिए काफी उच्च वसूली लक्ष्य निर्धारित करते हैं या अत्यधिक प्रोत्साहन प्रदान करते हैं — इससे बकाया राशि की वसूली के लिए वसूली एजेंट डराने-धमकाने और संदेहास्पद पद्धतियों का उपयोग करने के लिए प्रेरित हो जाते हैं — अत: बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वसूली एजेंटों के साथ की गयी संविदा वसूली एजेंटों को वसूली प्रक्रिया में असभ्य, गैर-कानूनी और संदेहास्पद व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित न करे।
- (क) उधारदाताओं के लिए उचित परिपाटी संहिता संबंधी दिशानिर्देशों के बारे में 5 मई 2003 के परिपत्र बैंपविवि. एलईजी. सं. बीसी. 104/09.07.007/2002-03 (ख) वित्तीय सेवाओं की आउटसोर्सिंग संबंधी 3 नवंबर 2006 का परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. 40/21.04.158/2006-07 तथा (ग) क्रेडिट कार्ड परिचालन संबंधी 2 जुलाई 2007 के मास्टर परिपत्र बैंपविवि. एफएसडी. बीसी. 17/ 24.01.011/2007-08 की ओर ध्यान आकृष्ट किया जाता है । साथ ही, ‘ग्राहकों के प्रति बैंक की प्रतिबद्धता की संहिता’ (बीसीएसबीआइ कोड) के पैरा 6 की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया जाता है जो बकाया राशि की वसूली से संबंधित है । बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे ऋण वसूली प्रक्रिया के दौरान उपर्युक्त दिशानिर्देशों/संहिता का कड़ाई से पालन करें ।
- बैंकों द्वारा वित्तीय सेवाओं की आउट-सोर्सिंग में जोखिम प्रबंधन तथा आचार संहिता पर दिशानिर्देश संबंधी 3 नवंबर 2006 के हमारे परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. 40/21.04.158/2006-07 के पैरा 5.7.1 में बैंकों को यह सूचित किया गया था कि वे यह सुनिश्चित करें कि अन्य बातों के साथ-साथ वसूली एजेंट को समुचित प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे अपनी जिम्मेदारियां सावधानीपूर्वक तथा संवेदनशील ढंग से निभा सकें जिसमें विशेष रूप से, ग्राहक से संपर्क करने का समय, ग्राहक से संबंधित सूचना की गोपनीयता आदि का विशेष रूप से ध्यान रखा जाए ।
- रिज़र्व बैंक ने भारतीय बैंक संघ से यह अनुरोध किया है कि वह भारतीय बैंकिंग और वित्त संस्थान (आइआइबीएफ) के परामर्श से प्रत्यक्ष वसूली एजेंटों के लिए न्यूनतम 100 घंटे के प्रशिक्षण का एक प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम तैयार करे । उक्त कार्यक्रम आरंभ होने पर बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एक वर्ष के भीतर उनके सभी वसूली एजेंट उक्त प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं तथा उक्त संस्थान से इस संबंध में प्रमाण पत्र प्राप्त करते हैं । साथ ही, बैंकों द्वारा नियुक्त सेवा प्रदाताओं को भी सिर्फ ऐसे ही व्यक्तियों को नियुक्त करना चाहिए जिन्होंने उक्त प्रशिक्षण प्राप्त किया हो और भारतीय बैंकिंग और वित्त संस्थान से प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया हो । इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि देश-भर में बड़ी संख्या में एजेंटों को प्रशिक्षण देना होगा, अन्य संस्थाएं/बैंक के अपने प्रशिक्षण महाविद्यालय भी भारतीय बैंकिंग और वित्त संस्थान के साथ संयुक्त व्यवस्था कर वसूली एजेंटों को प्रशिक्षण दे सकते हैं ताकि प्रशिक्षण के स्तर में एकरूपता रहे । तथापि, प्रत्येक एजेंट को भारतीय बैंकिंग और वित्त संस्थान द्वारा भारत-भर में आयोजित परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी ।
- हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक मामला आया था जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की थी कि हम इस देश में कानून द्वारा शासित हैं तथा ऋणों की वसूली अथवा वाहनों की जब्ती सिर्फ कानूनी तरीकों से ही की जा सकती है — इस संबंध में, यह उल्लेखनीय है कि वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतीकरण एवं पुनर्गठित तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 तथा उसके अंतर्गत बनाये गये प्रतिभूति हित (प्रवर्तन) नियम, 2002 में न केवल जमानत हित लागू करने से संबंधित क्रियाविधियों को सुपरिभाषित किया गया है बल्कि जमानत हित लागू करने के बाद चल और अचल संपत्ति की नीलामी के लिए भी क्रियाविधियां सुनिश्चित की गयी हैं — अत: यह वांछनीय है कि बैंक ऐसे संबंधित कानूनों के अंतर्गत उपलब्ध कानूनी उपायों का ही सहारा लें, जिनके अनुसार न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना जमानत हित लागू करने की बैंकों को अनुमति दी गयी हो ।
- जहां बैंकों ने ऋणकर्ता के साथ की गयी संविदा में पुन: कब्जा संबंधी खंड शामिल किया हो और अपने अधिकारों को लागू करने के लिए ऐसे पुन: कब्जा खंड पर विश्वास किया हो वहां उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसा पुन: कब्जा खंड कानूनी रूप से वैध है तथा भारतीय संविदा अधिनियम के उपबंधों का पूर्णत: पालन करता है । यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि संविदा करते समय इस पुन: कब्जा संबंधी खंड के बारे में स्पष्ट रूप से ऋणकर्ता को अवगत करा देना चाहिए । साथ ही, संविदा की शर्तें पूर्णत: वसूली नीति के अनुसार ही होनी चाहिए और उनमें निम्नलिखित के संबंध में उपबंध शामिल किये जाने चाहिए । (क) कब्जा लेने से पहले ग्राहकों को दिये जानेवाले नोटिस की अवधि (ख) किन परिस्थितियों में नोटिस अवधि में छूट दी जा सकती है (ग) प्रतिभूति को कब्जे में लेने के लिए अपनायी जानेवाली क्रियाविधि (घ) संपत्ति की बिक्री/नीलामी के पहले ऋण की चुकौती के लिए उधारकर्ता को दिये जानेवाले अंतिम मौके के संबंध में प्रावधान (V) उधारकर्ता को पुन: कब्जा प्रदान करने की क्रियाविधि और (च) संपत्ति की बिक्री/नीलामी की क्रियाविधि ।
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि 10 लाख रुपये से कम के ऋण, व्यक्तिगत ऋण, क्रेडिट कार्ड तथा आवास ऋण के मामले लोक अदालतों को भेजे जा सकते हैं । इस संबंध में बैंकों का ध्यान 3 ंअगस्त 2004 के परिपत्र बैंपविवि. सं. एलईजी. बीसी. 21/09.06.002/2004-05 की ओर आकृष्ट किया जाता है जिसमें उन्हें यह सूचित किया गया था कि वे ऋणों की वसूली के लिए सिविल न्यायालयों द्वारा गठित लोक अदालतों के मंच का उपयोग करें । बैंकों को यह सूचित किया जाता है कि वे माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये सुझाव के अनुसार 10 लाख रुपये से कम के व्यक्तिगत ऋण, क्रेडिट कार्ड ऋण अथवा आवास ऋणों की वसूली के लिए वरीयत: लोक अदालतों के मंच का उपयोग करें ।
- जहां किसी विशिष्ट उधारकर्ता के मामले पर सहानुभूतिपूर्ण विचार किया जाना उचित प्रतीत होता हो, वहां उधारकर्ताओं को समुचित परामर्श प्रदान करने के लिए ऋण परामर्शदाताओं की सेवाओं का लाभ उठाने हेतु एक प्रणाली विकसित करने के लिए बैंकों को प्रोत्साहित किया जाए।
वसूली एजेंटों के लिए प्रोत्साहन
वसूली एजेंटों द्वारा अपनायी गयी पद्धतियां
वसूली एजेंटों के लिए प्रशिक्षण
बैंकों को बंधक /दृष्टिबंधक संपत्ति को कब्जे में लेना
लोक अदालत मंच का उपयोग
ऋण परामर्शदाताओं की सेवाओं का उपयोग
बैंक/उनके वसूली एजेंटों के खिलाफ शिकायत
3. बैंक मूल स्वामी के रूप में अपने एजेंटों द्वारा किये गये कार्य/कार्रवाई के लिए जिम्मेदार हैं । अत: उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके ऋणों की वसूली के लिए नियुक्त उनके एजेंट ऋणों की वसूली की प्रक्रिया अपनाते समय बीसीएसबीआइ संहिता सहित उपर्युक्त दिशानिर्देशों तथा अनुदेशों का पूरी तरह पालन करें ।
4. उपर्युक्त दिशानिर्देशों के उल्लंघन तथा बैंकों के वसूली एजेंटों द्वारा अपनायी जानेवाली गलत परिपाटियों के संबंध में रिज़र्व बैंक को प्राप्त शिकायतों को गंभीरता से लिया जाएगा । रिज़र्व बैंक संबंधित बैंक पर यह प्रतिबंध लगाने पर विचार कर सकता है कि वह सीमित समय के लिए संबंधित क्षेत्र में आधिकारिक अथवा कार्यात्मक वसूली एजेंट नियुक्त न करें । उक्त दिशानिर्देशों के लगातार उल्लंघन किये जाने के मामले में रिज़र्व बैंक प्रतिबंध की अवधि अथवा क्षेत्र बढ़ाने पर विचार कर सकता है । इसके अलावा, वसूली प्रक्रिया से संबंधित नीति, परिपाटी अथवा क्रियाविधि के संबंध में उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी बैंक अथवा उसके निदेशकों/अधिकारियों/एजेंटों के विरुद्ध कोई टिप्पणी की जाती है अथवा दंड लगाया जाता है तो ऐसी ही पर्यवेक्षी कार्रवाई की जाएगी ।
5. यह अपेक्षा की जाती है कि बैंक सामान्यत: यह सुनिश्चित करेंगे कि ऋण वसूली प्रक्रिया के दौरान उनके कर्मचारी भी उपर्युक्त दिशानिर्देशों का अनुपालन करते हैं ।
आवधिक समीक्षा
6. वसूली एजेंटों की नियुक्ति करनेवाले बैंकों को यह सूचित किया जाता है कि वे अनुभव से सीखने, सुधार लाने तथा दिशानिर्देशों को बेहतर बनाने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को सुझाव देने हेतु उक्त व्यवस्था की आवधिक समीक्षा करें ।
भवदीय
(प्रशांत सरन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक
वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा के पैरा 172 और 173 से उद्धरण
बैंकों द्वारा नियुक्त वसूली एजेंट
172. बैंकों द्वारा नियुक्त वसूली एजेंटों के विरुद्ध कानूनी मामलों की हाल में बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए यह महसूस किया जाता है कि प्रतिकूल प्रचार से पूरे बैंकिंग क्षेत्र की प्रतिष्ठा को गंभीर खतरा हो सकता है । अत: इस बात की तात्कालिक आवश्यकता है कि भारत में बैंकों द्वारा नियुक्त वसूली एजेंटों से संबंधित नीति, परिपाटी तथा क्रियाविधि की समीक्षा की जाए । तदनुसार, बैंकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे वसूली एजेंट नियुक्त करते समय निर्धारित विशिष्ट दिशानिर्देशों का ध्यान रखें ।
173. बैंकों के वसूली एजेंटों द्वारा प्रयुक्त गलत परिपाटियों के संबंध में रिज़र्व बैंक को प्राप्त शिकायतों पर गंभीर पर्यवेक्षी रुख अपनाया जाएगा । रिज़र्व बैंक ऐसे बैंकों द्वारा वसूली एजेंट नियुक्त करने पर अस्थायी प्रतिबंध (अथवा गलत परिपाटी जारी रखने पर स्थायी प्रतिबंध) लगाने पर विचार करेगा जिनके वसूली एजेंटों द्वारा गलत परंपरा अपनाने के मामले में उच्च न्यायालय/सर्वोच्च न्यायालय ने बैंक अथवा उनके निदेशकों/अधिकारियों के विरुद्ध टिप्पणियां की हों अथवा दंड लगाया हो । इस संबंध में एक परिचालन परिपत्र 15 नवंबर 2007 को जारी किया जाएगा ।