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79090211

स्वर्ण ऋण की चुकौती

आरबीआई/2009-10/342
ग्राआऋवि.केंका.आरएफ.बीसी.60/07.37.02/2009-10

05 मार्च 2010

सभी राज्य और मध्यवर्ती सहकारी बैंक

महोदय / महोदया

स्वर्ण ऋण की चुकौती

राज्य और मध्यवर्ती सहकारी बैंक अपनी उधार नीति के भाग के रुप में स्वर्ण आभूषण की जमानत पर विभिन्न प्रयोजनों हेतु ऋण प्रदान करते हैं । वर्तमान अनुदेशों के अनुसार (दि.31 जनवरी 2003 का हमारा परिपत्र ग्राआऋवि.आरएफ.बीसी.सं.69/ 07.37.02/2002-03 देखें) बैंक, कृषि और संबद्ध कार्यकलापों को छोड़कर अन्य प्रयोजनों के लिए प्रदान किए गए ऋणों और अग्रिमों पर मासिक अंतराल पर ब्याज लगाते हैं ।

2. इस मामले की समीक्षा की गई और यह निर्णय लिया गया है कि एक अतिरिक्त विकल्प के रूप में एक लाख रुपए तक के स्वर्ण ऋणों की एकमुश्त बड़ी और अंतिम चुकौती की अनुमति दी जाए । अत: राज्य और मध्यवर्ती सहकारी बैंकों को अनुमति दी जाती है कि वे स्वर्ण ऋण की मंजूरी हेतु निम्नलिखित दिशानिर्देशों के आधीन एकमुश्त बड़ी और अंतिम चुकौती के लिए अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से नीति निर्धारित करें :

  1. मंजूर किए गए स्वर्ण ऋण की राशि कभी भी 1.00 लाख रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए ।

  2. मंजूरी की तारीख से ऋण की अवधि 12 माह से अधिक न हो ।

  3. इस खाते पर मासिक अंतराल पर ब्याज लगाया जाएगा लेकिन वह मूलधन की चुकौती के साथ भुगतान के लिए देय केवल मंजूरी की तारीख से 12 माह के अंत में ही होगा ।

  4. बैंकों को ऐसे ऋणों के मामले में एक न्यूनतम मार्जिन बनाई रखनी चाहिए और तदनुसार प्रतिभूति (स्वर्ण / स्वर्णाभूषण) के मूल्य, मूल्य में संभावित उतार-चढ़ाव तथा ऋण की अवधि के दौरान लगने वाले ब्याज आदि को ध्यान में रखते हुए ऋण सीमा निर्धारित करनी चाहिए ।

  5. ऐसे ऋण आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण संबंधी मौजूदा मानदंडों से नियंत्रित होंगे तथा मूलधन एवं ब्याज के एक बार अतिदेय हो जाने की स्थिति में उन पर लागू होंगे ।

  6. यदि निर्धारित मर्जिन नहीं बनाई रखी जा रही हो तो इस खाते को चुकौती की तारीख से पहले भी अनर्जक आस्ति (अवमानक श्रेणी) के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा ।

3. यह स्पष्ट किया जाता है कि स्वर्ण / स्वर्णाभूषण की संपार्श्विक प्रतिभूति पर मंजूर फसल ऋणों पर आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण संबंधी मौजूदा मानदंड लागू रहेंगे ।

भवदीय,

(आर. सी. षडंगी)
मुख्य महा प्रबंधक

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