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विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (फेमा) – के तहत रिपोर्टिंग

भारिबैंक/2012-13/383
ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं. 76

17 जनवरी 2013

सभी श्रेणी-I प्राधिकृत व्यापारी बैंक

महोदया/ महोदय,

विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम,
1999 (फेमा) – के तहत रिपोर्टिंग

विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (फेमा) की धारा 11 (2) के तहत, रिज़र्व बैंक, इस अधिनियम अथवा उसके अंतर्गत बनाये गये किसी नियम, विनियम, अधिसूचना, निर्देश अथवा आदेश के उपबंधों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए, किसी प्राधिकृत व्यक्ति को ऐसी जानकारी, उस प्रकार से प्रस्तुत करने के लिए निर्देश दे सकता है, जिसे वह उचित समझता है। तदनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक ने विदेशी मुद्रा लेनदेनों के लिए विनिर्दिष्ट नियमों/विनियमों के अनुपालन और समय-समय पर जारी निर्देशों के अनुसार उनकी रिपोर्टिंग का उत्तरदायित्व प्राधिकृत व्यापारियों को सौंपा है।

2. कंपाउंडिंग प्रक्रिया के दौरान, कतिपय अवसरों पर, आवेदकों द्वारा हमारे ध्यान में यह बात लायी गयी है कि कंपनियों (कार्पोरेट्स) और व्यक्तियों द्वारा विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (फेमा) के उपबंधों का उल्लंघन प्राधिकृत व्यापारियों की भूल-चूक के कारण होता है तथा कुछ आवेदकों ने अपने दावे के समर्थन में दस्तावेजी साक्ष्य भी प्रस्तुत किए हैं। रिज़र्व बैंक द्वारा ऐसे उल्लंघनों पर कार्रवाई के मामले, मुख्यत: निम्नलिखित से संबंधित होते हैं:

  1. ऋण पंजीकरण संख्या (LRN) प्राप्त किए बिना बाह्य वाणिज्यिक उधार (ECB) के आहरण [फेमा 3/2000 का विनियम 3 और 6];

  2. मान्यता-रहित उधारदाता से किसी अपात्र उधारकर्ता को गैर-अनुमत अंतिम उपयोग, आदि के लिए स्वचालित मार्ग के तहत बाह्य वाणिज्यिक उधार (ECB) के आहरण की अनुमति [फेमा 3/2000 का विनियम 3 और 6];

  3. समुद्रपारीय प्रत्यक्ष निवेश (ODI) के लिए समुद्रपारीय संपूर्ण स्वामित्ववाली सहायक संस्था/संयुक्त उद्यम (WOS/JV) को द्वितीय विप्रेषण करने से पहले यूनिक पहचान संख्या प्राप्त करने के लिए फार्म ओडीआई (ODI) फाइल न करना [फेमा 120/2004 का विनियम 6 (2) (vi)];

  4. समुद्रपारीय निवेश के संबंध में प्राधिकृत व्यापारियों को वार्षिक कार्यनिष्पादन रिपोर्टें (APRs) / शेयर प्रमाणपत्रों की प्रतियाँ प्रस्तुत न करना (और प्राधिकृत व्यापारियों द्वारा उसके बारे में रिज़र्व बैंक को रिपोर्ट न करना [फेमा 120/2004 का विनियम 15];

  5. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संबंध में एडवांस रिपोर्टिंग फार्मेट में रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को रिपोर्ट प्रस्तुत करने में विलंब [फेमा 20/2000 की अनुसूची । का पैराग्राफ 9(1)(ए)];

  6. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के तहत पात्र लिखत जारी करने के बाद ब्योरें रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को 30 दिनों के भीतर फार्म एफसी-जीपीआर में फाइल करने में विलंब [फेमा 20/2000 की अनुसूची । का पैराग्राफ 9(1)(बी)];

  7. निवासी व्यक्ति/कंपनियों द्वारा, फार्म एफसी-टीआरएस में, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लेनदेनों के लिए शेयरों के अंतरण से संबंधित ब्योरों की फाइलिंग में विलंब [फेमा 20/2000 का विनियम 10 (ए)(बी)];आदि।

3. रिज़र्व बैंक द्वारा प्राप्त कंपाउंडिंग के मामलों से संबंधित डाटा से परिलक्षित हुआ है कि कुल मामलों में से 70% से अधिक मामले विदेशी प्रत्यक्ष निवेश से संबंधित हैं, जिसमें से 72% मामले एडवांस रिपोर्टिंग/एफसीजीपीआर के प्रस्तुतीकरण में विलंब से संबंधित हैं। बाह्य वाणिज्यिक उधार के बाबत, प्राप्त मामलों में से 24% मामले ऋण पंजीकरण संख्या (LRN) प्राप्त किए बिना आहरण करने (drawdown) से संबंधित हैं । उसी प्रकार, समुद्रपारीय प्रत्यक्ष निवेश के संबंध में, 66% मामले समुद्रपारीय निवेशों की आनलाइन रिपोर्टिंग न करने से संबंधित हैं। ऐसे उल्लंघनों को टालने/रोकने में प्राधिकृत व्यापारियों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ती है और तदनुसार, बैंकों में इस प्रकार का कार्य करने वाले अधिकारियों को (dealing officials) उक्त कार्य प्रभावी रूप से करने के लिए सजग (sensitised) तथा प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।

4. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, बाह्य वाणिज्यिक उधार तथा जावक (आउटवर्ड) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को समाविष्ट करने वाले सभी लेनदेन हमारी भुगतान संतुलन सांख्यिकी के महत्वपूर्ण घटक हैं, जिन्हें तिमाही आधार पर समेकित तथा प्रकाशित किया जाता है। रिपोर्टिंग में हुए किसी विलंब से डाटा की सटीकता और परिणामस्वरूप पूँजीगत प्रवाह देश में आने और देश से बाहर जाने से संबंधित नीतिगत निर्णयों की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है। अतएव, प्राधिकृत व्यापारियों को सूचित किया जाता है कि वे सिस्टम में विदेशी मुद्रा लेनदेनों की रिपोर्टिंग दर्ज करते समय उनकी सटीकता सुनिश्चित करें ताकि फेमा, 1999 के उपबंधों के उल्लंघन के लिए प्राधिकृत व्यापारियों पर दोषारोपण न हो सके।

5. इस संबंध में, यह दोहराया जाता है कि फेमा, 1999 की धारा 11 (3) के अनुसार, रिज़र्व बैंक इस अधिनियम के तहत, रिज़र्व बैंक द्वारा दिए गए किसी निर्देश के उल्लंघन के लिए अथवा रिज़र्व बैंक द्वारा दिए गए निर्देशानुसार किसी विवरणी को फाइल करने में असफल होने पर प्राधिकृत व्यक्ति पर दंड लगा सकता है।

6. इस परिपत्र में निहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10 (4) और धारा 11 (1) के अधीन जारी किए गए हैं ।

भवदीया,

(डॉ. सुजाता एलिज़ाबेथ प्रसाद)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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