बैंकों के बीच द्विपक्षीय समाशोधन व्यवस्था की समीक्षा - राज्य और मध्यवर्ती सहकारी बैंक - आरबीआई - Reserve Bank of India
बैंकों के बीच द्विपक्षीय समाशोधन व्यवस्था की समीक्षा - राज्य और मध्यवर्ती सहकारी बैंक
भारिबैं/2009-10/319 18 फरवरी 2010 सभी राज्य और मध्यवर्ती सहकारी बैंक महोदय /महोदया बैंकों के बीच द्विपक्षीय समाशोधन व्यवस्था की समीक्षा - राज्य और मध्यवर्ती सहकारी बैंक जैसा कि आप जानते हैं, बैंकों के सामान्य कारोबार में प्रयुक्त समाशोधन लिखतों के सुविधा जनक, किफायती ढंग से त्वरित कार्यान्वयन और निपटान करने के लिए देश में समाशोधन गृह की एक व्यापक व्यवस्था मौजूद है। वर्तमान में देशभर में मौजूद समाशोधन गृह टी + 1 आधार पर प्रतिदिन 4 मिलियन से अधिक चेकों का बहुस्तरीय निवल समाशोधन और निपटान की सुविधा प्रदान कर रहे हैं । वस्तुत: भारत में स्थानीय चेकाें के प्रोसेसिंग चक्र में चेक की प्रस्तुति तथा वापसी समाशोधन दोनों शामिल हैं जिसकी तुलना विश्वभर में मौजूद इस प्रकार की प्रणालियों से बखुबी की जा सकती है। 2. हाल ही में एक बैंक के वार्षिक निरीक्षण में बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग ने यह पाया है कि बैंक में जमा किए गए तथा अन्य बैंकों द्वारा देय उत्तर दिनांकित चेकों की प्रोसेसिंग और समाशोधन के लिए बैंक ने अन्य बैंकों के साथ द्विपक्षीय समझौता किया था । समझौते के अंतर्गत बैंक इस प्रकार के उत्तर दिनांकित चेक अन्य बैंक को वसूली के लिए सीधे भेजता था तथा उसकी राशि अन्य बैंक में खोले गए अपने चालू खाते में जमा करता था । इसी प्रकार की सुविधा अन्य बैंक को भी इस बैंक पर आहरित उत्तर दिनांकित चेकाें के समाशोधन के लिए दी जा रही थी । कुछ बैंकों से पूछने पर यह पता चला है कि बैंकाें ने आपस में इस प्रकार के काफी द्विपक्षीय समझौते किए हैं और इस तरह समाशोधन गृह के बाहर काफी मात्रा में लिखतों का विनिमय और समाशोधन हो रहा है। 3. विस्तृत समीक्षा के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इस प्रकार के समझौते (कुछ बैंकों द्वारा प्रतिनिधि बैंकिंग व्यवस्था के रूप में निरूपित) समाशोधन गृह के अस्तित्व तथा आवश्यकता को क्षति पहुंचाते हैं तथा समाशोधन प्रणाली को सक्षम बनाने में किसी भी प्रकार का योगदान नहीं करते हैं । वास्तव में, चेकों का द्विपक्षीय रूप से समाशोधन करने में बैंकों को ज्यादा खर्च करना पड़ता है और अधिक समय भी लगता है। समानांतर समाशोधन व्यवस्था समाशोधन गृह के नियमों, मानकों, न्यूनतम बेंचमार्क और समान प्रथाओं को बिगाडती है । बैंकों के बीच के कदाचार के उपबंध तथा विवाद प्रणालीगत चिंता उत्पन्न कर सकते है। 4. इसके अलावा, भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के उपबंध तथा अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए विनियम द्विपक्षीय समाशोधन व्यवस्था पर लागू होते हैं। अधिनियम की धारा 2(1) में भुगतान प्रणाली को भुगतानकर्ता तथा लाभार्थी के बीच भुगतान को संभव बनाने वाली एक प्रणाली, जिसमें समाशोधन, भुगतान या निपटान सेवा या सभी, शामिल है परंतु इसमें शेयर बाजार शामिल नहीं है, के रूप में परिभाषित किया गया है। उक्त अधिनियम की धारा 4(1) में यह निर्धारित किया गया है कि रिजर्व बैंक के अलावा कोई व्यक्ति उक्त अधिनियम के उपबंधों के तहत रिजर्व बैंक द्वारा जारी प्राधिकार के अंतर्गत तथा उसके अनुसार ऐसा करने की अनुमति के बिना किसी भुगतान प्रणाली को प्रारंभ अथवा परिचालित नहीं कर सकता। इस प्रकार की भुगतान प्रणाली के परिचालकों को अधिनियम के अंतर्गत अधिनियम के प्रारंभ होने के छ: महीनों के भीतर अर्थात् 12 फरवरी 2009 के पहले प्राधिकार प्राप्त करना आवश्यक है । बैंकों के बीच की द्विपक्षीय व्यवस्थाएं अंतर-बैंक स्वरूप की होने के कारण भुगतान प्रणाली के दायरे में आती हैं तथा इसके लिए रिजर्व बैंक से प्राधिकार प्राप्त करना आवश्यक है। 5. द्विपक्षीय करार में प्रतिनिधि बैंकिंग व्यवस्था, नकदी प्रबंधन सेवा के अंतर्गत व्यवस्था या कोई अन्य व्यवस्था जिसमें समाशोधन गृह की सुविधा लिए बिना रट हुए एक अथवा दोनों बैंकों के चेकों का नेमी समाशोधन परिकल्पित किया गया है और एटीएम शेयरिंग, ईसीएस अथवा इस प्रकार के अन्य भुगतान प्रणाली उत्पादों जैसे इलेक्ट्रानिक समाशोधन उत्पादों के उपयोग के लिए किए गए करार भी शामिल है । प्राधिकार के बिना किसी द्विपक्षीय समाशोधन व्यवस्था को प्रारंभ करना या उसे जारी रखना अधिनियम का उल्लंघन है तथा अधिनियम उपबंधों के अंतर्गत दंडनीय है । विभिन्न प्रकार के जोखिमों को ध्यान में रखते हुए सभी राज्य और मध्यवर्ती सहकारी बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे सामान्य बैंकिंग लेनदेन के लिए सभी द्विपक्षीय समाशोधन व्यवस्थाओं को तुरंत बंद कर दें। 6. कृपया परिपत्र की प्राप्ति सूचना हमारे संबंधित क्षेत्रीय कार्यालयों को दें तथा यह पुष्टि करें कि पत्र की विषय वस्तु अनुपालन के लिए नोट की गयी है। भवदीय (आर.सी.षडंगी) |