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79062266

प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार पर संशोधित दिशा-निर्देश

भारिबैं / 20067-08 / 126
शबैंवि.पीसीबी.परि.सं. 11 / 09.09.01/2007-08

30 अगस्त 2007

मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी प्राथमिक(शहरी) सहकारी बैंक

महोदय,

प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार पर संशोधित दिशा-निर्देश

वर्ष 2005-06 के लिए रिज़र्व बैंक के वार्षिक नीति वक्तव्य में, जैसे कि घोषणा की गई थी, प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार से संबंधित निर्धारणों को संशोधित किया गया तथा समय-समय पर विभिन्न नये क्षेत्र शामिल किए गए । यह माना जा रहा है कि क्षेत्रों में विस्तार के कारण एकाग्रता में कमी आई है। पात्रता संबंधी मानदंडों तथा अन्य संबंधित पहलुओं की आगे और समीक्षा करने के लिए भी सुझाव प्राप्त हुए हैं। साथ ही, यह भी तर्क दिया गया है कि प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत शामिल होने के लिए केवल वे क्षेत्र पात्र होने चाहिए जो जनसंख्या के बड़े हिस्से , कमज़ोर वर्गों और रोज़गार प्रधान क्षेत्रों जैसे कृषि, अत्यंत लघु और लघु उद्यम को प्रभावित करते हों।

2. इस संबंध में, प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार के निर्धारण को जारी रखने की आवश्यकता की जांच , प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र का गठन करने वाले खंडो, लक्ष्यों और उप-लक्ष्यों आदि सहित प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार पर वर्तमान नीति की समीक्षा तथा इस संबंध में आवश्यक परिवर्तन, यदि कोई हो, की सिफारिश करने हेतु रिज़र्व बैंक में एक आंतरिक कार्यकारी दल (अध्यक्ष : श्री सी.एस.मूर्ति) का गठन किया गया था। बैंकों, वित्तीय संस्थानों, गैर- बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, उद्योगों के संघों, मीडिया , जनता तथा भारतीय बैंक संघ से प्राप्त टिप्पणियों / सिफारिशों के परिप्रेक्ष्य में दल की सिफारिशों की जांच की गई और तदनुसार प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार पर दिशा-निर्देशों को संशोधित किया गया । संशोधित दिशा-निर्देश संलग्न हैं।

3. इन दिशा-निर्देशों में व्यष्टि, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 के अनुसार लघु और व्यष्टि उद्यम की संशोधित परिभाषा को विचार में लिया गया है।

4. संशोधित दिशा-निर्देशों को तत्काल लागू किया जाए । यदि किसी बैंक को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के संशोधित दिशा निर्देशों के अनुपालन में कोई कठिनाई हो तो वह उपयुक्त कारणों सहित अनुपालन हेतु समय-सीमा के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय से संपर्क कर सकता है।

5. लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए शहरी सहकारी बैंकों को ठोस उपाय करने चाहिए तथा यदि आवश्यक हो तो, वित्तपोषण किये जाने वाले लाभार्थियों की श्रेणी को ध्यान में रखते हुए प्रणाली और पद्धति को आवश्यकतानुसार सरल किया जाए।

6. प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम तथा अल्प संख्यक समूदाय को दिए जाने वाले ऋण के आंकडे प्रस्तुत करने के लिए फॉर्मेट ( विवरण I,II और III) सलंग्न हैं।

भवदीय

( ए.के.खौण्ड )
मुख्य महाप्रबंधक

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