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बैंकों में जोखिम प्रबंधन प्रणालियां

बैंकों में जोखिम प्रबंधन प्रणालियां

संदर्भ : बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 64 /21.04.103/2002-03

29 जनवरी 2003
9 माघ 1924 (शक)

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर)

प्रिय महोदय,

बैंकों में जोखिम प्रबंधन प्रणालिया

जैसा कि आप जानते हैं, आस्ति-देयता प्रबंधन के संबंध में रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देश 10 फरवरी 1999 के परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 8/21.04.098/99 द्वारा बैंकों को जारी किये गये थे । इन दिशा-निर्देशों में मौटे तौर पर बैंकों द्वारा चलनिधि और ब्याज दर जोखिमों का प्रबंधन शामिल था, उनमें उक्त दो जोखिमों को नियंत्रित करने के लिए सूचना प्रणाली निर्दिष्ट की गयी थी तथा साथ ही चलनिधि संबंधी असंतुलनों के लिए विवेकपूर्ण सीमाएं निर्दिष्ट की गयी थीं। बाद में, रिज़र्व बैंक द्वारा 7 अक्तूबर 1999 के परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी (एससी) बीसी. 98/ 21.04.103/ 99 द्वारा बैंकों में जोखिम प्रबंधन प्रणाली के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये गये जिनका उद्देश्य ऐसे बैंकों को आधार (बेंच मार्क) प्रदान करना था जिन्होंने तब तक समेकित जोखिम प्रबंधन प्रणाली स्थापित नहीं की थी और इसमें ऋण जोखिमों का प्रबंधन, बाज़ार जोखिमों का प्रबंधन तथा जोखिम प्रबंधन ढांचा विकसित करना शामिल था ।

2. बैंकों में जोखिम प्रबंधन प्रणालियों को और बढ़ाने तथा उन्हें परिष्कृत करने की ओर बढ़ते हुए, ऋण जोखिम प्रबंधन और बाज़ार जोखिम प्रबंधन के संबंध में मार्गदर्शी नोट के प्रारूप जारी किये गये थे तथा उसे बैंकों, वित्तीय संस्थाओं और बाज़ार के अन्य सहभागियों के बीच व्यापक विचार-विमर्श के लिए रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखा गया था । मार्गदर्शी नोट भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गठित दो कार्यकारी दलों की सिफारिशों पर आधारित था; इन दलों में बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के विशेषज्ञ शामिल थे । बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, रेटिंग एजेंसियों और बाज़ार के अन्य सहभागियों के एक बड़े वर्ग से प्राप्त अभिमतों /प्रति सूचना के परिप्रेक्ष्य में मार्गदर्शी नोट के प्रारूप को संशोधित किया गया था तथा 12 अक्तूबर 2002 के पत्र बैंपविवि. सं. बीपी. 520/ 21.04.103/ 2002-03 द्वारा संशोधित मार्गदर्शी नोट जारी किये गये और बैंकों को सूचित किया गया कि वे अपनी जोखिम प्रबंधन प्रणालियों का उन्नयन करने के लिए इन मार्गदर्शी नोट का उपयोग करें । ऋण जोखिम और बाज़ार जोखिम के प्रबंधन के लिए संशोधित मार्गदर्शी नोट भी अधिक प्रचार-प्रसार के लिए रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखे गये ।

3. जोखिम आधारित पर्यवेक्षण (आर बी एस) में परिवर्तन की प्रक्रिया में बैंकों को शामिल करने के उद्देश्य से ‘बैंकों के जोखिम आधारित पर्यवेक्षण की दिशा में कदम’ के संबंध में चर्चा-पत्र 13 अगस्त 2001 के पत्र डीबीएस. सीओ/आरबीएस/58/36.01.002 द्वारा सभी वाणिज्य बैंकों को जारी किया गया था जिसमें बैंकों को सूचित किया गया था कि वे पांच विशिष्ट क्षेत्रों में जोखिम आधारित पर्यवेक्षण के लिए अपने को तैयार करने के लिए कार्रवाई शुरू करें । 12 जुलाई 2002 के पत्र डीबीएस/सीओ/89/36.01.03/2002-03 द्वारा बैंकों को विस्तृत जोखिम रूपरेखा के संबंध में टेम्प्लेटस् भेजे गये थे, जिनका उद्देश्य उन्हें जोखिम रूपरेखा बनाने की तकनीकों को समझने में समर्थ बनाना तथा उनकी प्रबंधन प्रणाली को जोखिम आधारित पर्यवेक्षण की अपेक्षाओं को पूरा करने की ओर उन्मुख करना था । चूंकि आंतरिक लेखा परीक्षा जोखिम आधारित पर्यवेक्षण प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण घटक है, अत: 27 दिसम्बर 2002 के परिपत्र डीबीएस. सीओ. पीपी. बीसी. 10/ 11.01.005/ 2002-03 द्वारा बैंकों को जोखिम आधारित आंतरिक लेखा परीक्षा के दिशा-निर्देश जारी किये गये । जोखिम आधारित पर्यवेक्षण के अंतर्गत बैंकों का स्थल पर निरीक्षण रिज़र्व बैंक द्वारा शीघ्र ही, प्रारंभ में, प्रायोगिक आधार पर शुरू किया जायेगा और उसके बाद प्राप्त अनुभवों के आधार पर प्रक्रिया को परिष्कृत किया जायेगा और उसे सभी बैंकों पर लागू किया जायेगा । बैंकों में जोखिम प्रबंधन कार्यों और जोखिम आधारित पर्यवेक्षण के लिए उनकी तैयारी को बढ़ाने के उद्देश्य से बैंकों के लिए यह जरूरी होगा कि वे अपनी जोखिम प्रबंधन प्रणालियां अपनायें और उपर्युक्त दिशा-निर्देशों के अनुसार उचित ढांचा /प्रणालियां यथाशीघ्र लागू करें ।

4. इस संबंध में यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि नये पूंजी पर्याप्तता ढांचे का उद्देश्य पूंजी आबंटन प्रक्रियाओं में जोखिम संवेदनशीलता के बढ़े हुए स्तर को अपनाना है और बैंक के परिचालन में अंतर्निहित सभी प्रमुख जोखिमों अर्थात् ऋण जोखिम, बाजार जोखिम और परिचालनगत जोखिम को सीमित करना है तथा पारस्पर सुदृढ़ करने वाले उपायों से जोखिम संवेदनशीलता को बढ़ाने की परिकल्पना की गयी जिससे वित्तीय प्रणाली को सुरक्षित रखने और मजबूत करने में सामूहिक रूप से योगदान दिया जा सकेगा ।

5. उपर्युक्त पृष्ठभूमि में, समेकित जोखिम प्रबंधन प्रणाली को अपनाये जाने को ध्यान में रखते हुए, जिससे बैंकों को नये पूंजी पर्याप्तता ढांचे को सुचारु रूप से अपनाने को सुनिश्चित करने में विभिन्न प्रकार के जोखिम को पहचानने, उनके लिए उपाय करने, निगरानी और नियंत्रित करने में और सहायता मिलेगी, बैंकों को यह सूचित किया गया है कि वे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी ऊपर उल्लिखित दिशा-निर्देशों और मार्गदर्शी नोटों के संदर्भ में पहले से लागू जोखिम प्रबंधन प्रणाली का समीक्षात्मक रूप से मूल्यांकन करें । बैंकों को विशेष रूप से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका जोखिम प्रबंधन ढांचा उनके कारोबार के आकार और जटिलता, जोखिम दर्शन, बाजार बोध एवं पूंजी के प्रत्याशित स्तर के अनुकूल उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप है । जोखिम प्रबंधन प्रणाली ऐसी होनी चाहिए कि वह कारोबार में परिवर्तन, बाज़ार की गतिशीलता और भविष्य में बैंकों द्वारा लाये जाने वाले नये उत्पादों को अपनाने में सक्षम हो । चूंकि जोखिम मानदंडों के निर्धारण और समेकित जोखिम प्रबंधन और नियंत्रण प्रणाली लागू करने की प्रारंभिक जिम्मेदारी निदेशक बोड़ की है, इसलिए जोखिम प्रबंधन प्रणाली का मूल्यांकन संबंधी नोट बोड़ के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए । इस प्रकार के मूल्यांकन के आधार पर बैंकों को चाहिए कि वे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी जोखिम प्रबंधन दिशा-निर्देशों के अनुपालन में किसी प्रकार की खामी को दूर करने के लिए अपने बोड़ के अनुमोदन से समुचित कदम उठायें और यह सुनिश्चित करें कि उनके पास कारगर और मजबूत जोखिम प्रबंधन प्रणाली उपलब्ध है ।

6. कृपया प्राप्ति-सूचना भिजवायें ।

भवदीय

(सी. आर. मुरलीधरन)
मुख्य महा प्रबंधक

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