वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य - सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से वित्तीय समावेशन - आरबीआई - Reserve Bank of India
वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य - सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से वित्तीय समावेशन
आरबीआइ/2006-07/406
ग्राआऋवि.केंका.आरआरबी.बीसी. 97/03.05.33(एफ)/2006-07
21 मई 2007
अध्यक्ष
सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
महोदय
वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य - सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से वित्तीय समावेशन
कृपया वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य के पैराग्राफ 163 का अवलोकन करें, जिसकी प्रतिलिपि संलग्न है।
2. हमारे 27 दिसंबर 2005 के परिपत्र ग्राआऋवि.केका.सं.आरआरबी. बीसी. 58/ 03.05.33(एफ)/2005-06 के अनुसार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने एक बुनियादी बैंकिंग ‘नो-फ्रिल्स’ खाते की सुविधा उपलब्ध करायी है ताकि बृहत्तर वित्तीय समावेशन का उद्देश्य प्राप्त हो सके। बैंकों के प्रयास से आम आदमी बैंक खाते खोल पा रहा है । तथापि, वित्तीय समावेशन का उद्देश्य तब तक पूरी तरह से प्राप्त नहीं होगा, जब तक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक देश के दूरवर्ती क्षेत्रों तक बैंकिंग पहुँच को विस्तृत नहीं करते हैं। ऐसा समुचित प्रौद्योगिकी के प्रयोग से कम परिचालन लागत पर तथा कम खर्चीले इनफ्रास्ट्रक्चर के साथ किया जाना है। इससे बैंक लेनदेन की लागत कम कर सकेंगे ताकि स्मॉल टिकट ट्रान्जैक्शन अर्थक्षम हो सके ।
3. कुछ बैंकों ने पहले से ही देश के विभिन्न दूरवर्ती हिस्सों में स्मार्ट कार्ड/मोबाइल प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर शाखा में प्रदत्त सुविधाओं जैसी बैंकिंग सुविधाएँ देने के लिए कुछ प्रायोगिक परियोजनाएँ आरंभ की हैं । अत: क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से अनुरोध है कि वे समुचित प्रौद्योगिकी अपना कर अपने वित्तीय समावेशन प्रयासों में और वृद्धि करें । इस संबंध में ध्यान रखना चाहिए कि जो सॉल्यूशन विकसित किए जाते हैं, वे -
भवदीय
( जी.श्रीनिवासन )
मुख्य महाप्रबंधक
वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य का पैराग्राफ 163
सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से वित्तीय समावेशन
163. ‘शून्य शेष राशि’ या ‘नो फ्रिल्स’ खातों के आरंभ किए जाने से आम आदमी बैंक खाते खोल पा रहा है। तथापि, ग्राहक तक, विशेष रूप से दूरस्थ और बैंक रहित क्षेत्रों में, बैंकिंग सुविधाएँ लेनदेन की कम लागत पर पहुँचाना अभी भी चुनौती है। यह देखते हुए कि इस चुनौती का प्रभावी सामना सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से दी जानेवाली सेवाओं के माध्यम से किया जा सकता है, बैंकों ने अपनी पहुँच बढ़ाने के लिए स्मार्ट कार्ड/मोबाइल प्रोद्योगिकी का उपयाग करते हुए प्रायोगिक परियोजनाएँ आरंभ की हैं। ग्राहकों की अलग से पहचान के लिए बायोमीट्रिक विधियों का भी प्रयोग बढ़ रहा है। अत: