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"अपने ग्राहक को जानिए " - दिशानिर्देश धन शोधन निवारण मानदंड

 

आरबीआई /2004-05/369
ग्राआऋवि. सं.आरआरबी.बीसी. 81 /03.05.33(ई)/2004-05

18 फरवरी 2005
29 माघ 1926 (शक)

सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के अध्यक्ष

महोदय,

"अपने ग्राहक को जानिए " - दिशानिर्देश धन शोधन निवारण मानदंड

वफ्पया आप "अपने ग्राह को जानिए" मानदंडों के संबंध में नाबाड़ के दिनांक 30 अप्रैल 2003 के परिपत्र सं. एनबी.डीओएस.एचओ.पीओएल. 333/जे.1-2002-03 (परिपत्र सं. 106/डीओएस.15/2003) तथा 28 अगस्त 2004 के परिपत्र सं. एनबी.डीओएस.एचओ.पीओएल.2069/जे.1/2004-05 (परिपत्र सं. 230/डीओएस.39/2004-05) देखें )। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से कहा गया था कि वे ग्राहकों के खाते खोलने और संदेहास्पद लेनदेन पर नजर रखने के लिए ग्राहकों की पहचान के मामले में एक निश्चित प्रक्रिया का पालन करें ताकि संदिग्ध लेनदेन की रिपोर्ट उपयुक्त प्राधिकारियों को दी जा सके। धन शोधन निवारण मानदंडों और आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए ‘‘फाइनेन्शल एक्शन टास्क फोर्स’’ (एफएटीएफ) द्वारा दी गयी सिफारिशों के परिप्रेक्ष्य में इन ‘‘अपने ग्राहक को जानिए’’ दिशानिर्देशों को संशोधित किया गया है । ये मानदंड विनियामक प्राधिकारियों द्वारा धन शोधन निवारण और आतंकवाद वित्तपोषण विरोधी नीतियां बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय आधार का काम कर रहे है । अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संबंधों के लिए बैंकों / वित्तीय संस्थाओं तथा देश द्वारा इन मानदंडों का पालन किया जाना आवश्यक हो गया है । एफएटीएफ की सिफारिशों के आधार पर और बैंकिंग पर्यवेक्षण के संबंध में बासेल समिति द्वारा बैंकों को ग्राहक के संबंध में उचित सावधानी बरतने के मामले में जारी किये गये पेपर के आधार पर (जहां भी आवश्यक समझा गया है वहां संकेतात्मक सुझावों के साथ) व्यापक दिशानिर्देश संलग्न हैं । बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनके निदेशक मंडलों के अनुमोदन से, ‘‘अपने ग्राहक को जानिए’’ और धन शोधन निवारण के मामले में उपयुक्त नीति बनायी जाती है तथा इस परिपत्र की तारीख से 3 महीने के भीतर लागू कर दी जाती है । बैंक यह भी सुनिश्चित करें कि वे 31 दिसंबर 2005 से पहले इस परिपत्र के प्रावधानों का पूरी तरह अनुपालन कर लेंगे ।

2. परिचालनगत दिशानिर्देश तैयार करते समय क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे खाता खोलने के लिए ग्राहकों से एकत्र की गयी सूचना को गोपनीय समझें और सेवाओं के प्रतिविक्रय या किसी अन्य प्रयोजन के लिए ऐसे विवरण दूसरों को प्रकट न करें । अत: क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक यह सुनिश्चित करें कि ग्राहकों से मांगी गयी सूचना संभावित जोखिम से संबद्ध / के अनुरूप हो, वे कोई ऐसी सूचना न मांगें जो अनावश्यक दखलंदाजी हो, तथा ऐसी सूचना इस संबंध में जारी किए गये दिशानिर्देशों के अनुरूप हो । ग्राहक से कोई अन्य सूचना उसकी सहमति से तथा खाता खोलने के बाद अलग से मांगी जानी चाहिए ।

3. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक यह सुनिश्चित करना जारी रखें कि 50 हजार रुपये या उससे अधिक मूल्य के मांग ड्राफ्ट /तार अंतरण या किसी अन्य प्रकार से निधियों का विप्रेषण और यात्री चेक जारी करना, ग्राहक के खाते में डेबिट करके या चेक के आधार पर किया जाए न कि नकद भुगतान के आधार पर ।

4. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जहां कहीं भी लागू हो, वहां विदेशी अंशदान और विनियमन अधिनियम, 1976 के प्रावधानों का कड़ाई से पालन किया जाये ।

5. ये दिशानिर्देश बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 35 ए के अधीन जारी किये जा रहे हैं तथा इनका उल्लंघन किये जाने अथवा अनुपालन न किये जाने पर अधिनियम के संबंधित प्रावधानों के अंतर्गत दंड लगाये जा सकते हैं ।

6. किसी बैंक द्वारा नीतिगत ढांचा तैयार कर लिए जाने और लागू कर दिये जाने के बाद, इस परिपत्र द्वारा जारी किये जा रहे अनुदेश, ‘‘अपने ग्राहक को जानिए’’ तथा धन शोधन निवारण उपायों के संबंध में अब तक जारी किये गये अनुदेशों का अधिक्रमण करेंगे ।

भवदीय,

(जी.श्रीनिवासन )

मुख्य महाप्रबंधक

अनुलग्नक : यथोक्त


उक्त दिनांक का परांकन ग्राआऋवि.सं.आरआरबी. 391/03.05.33(ई)/ 2004-05

प्रतिलिपि सूचना और आवश्यक कार्रवाई हेतु निम्नलिखित को प्रेषित :-

  1. सभी प्रायोजक बैंक ।
  2. नाबाड़, प्रधान कार्यालय, आइडीडी/डीओएस, मुम्बई ।
  3. ग्राआऋवि के सभी क्षेत्रीय कार्यालय

 

( आर.एन.दास)

उप महाप्रबंधक
अनु- यथोक्त


 

"अपने ग्राहक को जानिए" मानदंडों

तथा

धन शोधन निवारण उपायों के संबंध में दिशानिर्देश

"अपने ग्राहक को जानिए" मानदंड

1. "अपने ग्राहक को जानिए" दिशानिर्देशों का उद्देश्य धन शोधन गतिविधियों के लिए अपराधी तत्त्वों द्वारा, जानबूझकर या अनजाने ही, बैंकों का इस्तेमाल किए जाने से रोकना है। "अपने ग्राहक को जानिए" क्रियाविधि से बैंकों को अपने ग्राहकों तथा उनके वित्तीय लेन-देन को जानने / समझने का बेहतर अवसर मिलता है जिससे बैंकों को अपने जोखिमों का प्रबंधन विवेकपूर्ण तरीके से करने में मदद मिलती है । बैंकों को "अपने ग्राहक को जानिए" संबंधी नीतियां बनाते समय निम्नलिखित चार प्रमुख तत्वों को शामिल करना चाहिए :

  1. ग्राहक स्वीकरण नीति;
  2. ग्राहक पहचान क्रियाविधि;
  3. लेनदेन की मॉनीटरिंग; और
  4. जोखिम प्रबंधन

"अपने ग्राहक को जानिए" नीति के प्रयोजन हेतु ‘‘ग्राहक’’ की परिभाषा निम्नलिखित हो सकती है :

  • कोई व्यक्ति या संस्था जो खाता खोलता /खोलती है और / या जिसका बैंंक के साथ कारोबारी संबंध है;

  • कोई ऐसा व्यक्ति या संस्था जिसकी ओर से खाता खोला जाता है (अर्थात् हितार्थी स्वामी);
  • व्यावसायिक मध्यस्थों, जैसे स्टॉक ब्रोकर, चार्टड़ एकाउंटेंट, सॉलीसिटर इत्यादि, द्वारा (जैसा कि कानून द्वारा अनुमत हो) किये गये लेन-देन के हिताधिकारी, और
  • किसी वित्तीय लेन-देन (जो बैंक के लिए प्रतिष्ठा संबंधी या कोई अन्य बड़ा जोखिम पैदा कर सकता है - जैसे किसी एक लेन-देन से रूप में तार अंतरण या उच्च मूल्य का मांग ड्राफ्ट जारी किया जाना) से जुड़ा कोई व्यक्ति या संस्था ।

ग्राहक स्वीकरण नीति (सी ए पी)

2. बैंकों को ग्राहकों को स्वीकार करने के लिए स्पष्ट मानदंड निर्धारित करके एक स्पष्ट ग्राहक स्वीकरण नीति तैयार करनी चाहिए । यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ग्राहक स्वीकरण नीति में बैंक में ग्राहक-संबंध के निम्नलिखित पहलुओं पर स्पष्ट दिशानिर्देश निश्चित कर दिये गये हैं ।

  1. अज्ञातनाम / छद्मनाम से या फर्जी /बेनामी नामों से कोई खाता न खोला जाय;
  2. कारोबार के स्वरूप, ग्राहक के स्थान, भुगतान के तरीके, टर्न ओवर की मात्रा, ग्राहक की सामाजिक और आर्थिक स्थिति इत्यादि के अनुसार जोखिम निर्धारण संबंधी मानदंड स्पष्टत: निश्चित कर दिए जाने चाहिए ताकि ग्राहकों को कम जोखिम, मध्यम जोखिम और उच्च जोखिम श्रेणियों (बैंक अन्य उपयुक्त नाम भी चुन सकते हैं - जैसे स्तर घ्, स्तर घ्घ् और स्तर घ्घ्घ्) में विभाजित किया जा सके; जिन ग्राहकों के लिए बहुत उच्च स्तर की मॉनिटरिंग जरूरी है - जैसे पोलिटिकली एक्सपोज्ॅड पर्सन को आवश्यकता पड़ने पर और उच्चतर श्रेणी में रखा जा सकता है (अनुबंध I में स्पष्टीकरण देखें ) ;
  3. संभावित जोखिम के आधार पर और धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 की अपेक्षाओं तथा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी किये गए दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न श्रेणियों के ग्राहकों के मामले में दस्तावेजों संबंधी अपेक्षाएँ तथा एकत्र की जाने वाली अन्य सूचना;
  4. जिन मामलों में बैंक ग्राहकों के संबंध में उचित सावधानी संबंधी उपाय लागू न कर पायें (जैसे जिन मामलों में ग्राहक के असहयोग के कारण या बैंक को उपलब्ध कराये गए आंकड़ों / सूचना की अविश्वसनीयता के कारण जोखिम की श्रेणी के अनुसार बैंक ग्राहक की पहचान का सत्यापन कर सकने में असमर्थ हो) उन मामलों में खाता न खोलना या मौजूदा खाते बंद कर देना ।तथापि, यह जरूरी है कि इस मामले में पूर्व निश्चित व्यवस्था विद्यमान हो ताकि किसी ग्राहक को अनावश्यक परेशानी न उठानी पड़े । उदाहरण के लिए किसी ग्राहक को, उसका खाता बंद करने के निर्णय का कारण बताते हुए उसे उचित नोटिस देने के बाद ही, काफी उच्च स्तर पर खाता बंद करने का निर्णय लिया जाना चाहिए ।
  5. जिन परिस्थितियों में किसी ग्राहक को किसी अन्य व्यक्ति / संस्था की ओर से काम करने की अनुमति दी जाए उनके बारे मे, स्थापित बैंकिंग विधि और व्यवहार के अनुरूप स्पष्ट उल्लेख कर दिया जाना चाहिए क्योंवि ऐसे अवसर आ सकते हैं जब किसी आदेश-धारक (मैनडेट होल्डर) द्वारा कोई खाता परिचालित किया जाए या किसी मध्यस्थ द्वारा न्यासीय क्षमता में /हैसियत से खाता खोला जाए, और
  6. कोई नया खाता खोलने से पहले आवश्यक जांच-पड़ताल करना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई ग्राहक किसी ऐसे व्यक्ति से न मिलता-जुलता हो जिसकी आपराधिक पफ्ष्ठभूमि हो या जिस पर प्रतिबंध लगा दिया गया हो (जैसे व्यक्तिगत आतंकवादी या आतंकवादी संगठन इत्यादि)।

बैंक जोखिम की श्रेणी का ध्यान रखते हुए प्रत्येक नये ग्राहक के लिए एक प्रोफाइल तैयार करें । ग्राहक की प्रोफाइल में ग्राहक की पहचान, उसकी सामाजिक /आर्थिक हैसियत, उसके कारोबार का स्वरूप, उसके ग्राहकाें के कारोबार तथा स्थान से संबंधित सूचना शामिल की जानी चाहिए । उचित सावधानी का स्वरूप और उसकी सीमा बैंक द्वारा अनुमानित जोखिम पर निर्भर होगी । तथापि ग्राहकों का प्रोफाइल तैयार करते समय बैंकों को ग्राहकों से केवल वही सूचना मांगनी चाहिए जो जोखिम की श्रेणी से संबंध रखती हो तथा वे ऐसी कोई सूचना न मांगें जो अनावश्यक दखलंदाजी हो । ग्राहक प्रोफाइल एक गोपनीय दस्तावेज होगा तथा उसमें दिये गये विवरण सेवाओं के प्रतिविक्रय या किसी अन्य प्रयोजन हेतु प्रकट नहीं किये जाएंगे ।

जोखिम वर्गीकरण के प्रयोजन के लिए, उन व्यक्तियों (उच्च निवल मूल्य वालों को छोड़कर) और कंपनियों को, जिनके संबंध में पहचान तथा संपत्ति के स्रोतों का आसानी से पता लगाया जा सकता है और जिनके खातों के लेनदेन कुल मिलाकर ज्ञात प्रोफाइल के अनुरूप है, कम जोखिम के रूप में वर्गीवफ्त करें । कम जोखिम वाले ग्राहकों के उदाहरण, वेतन प्राप्त करने वाले कर्मचारी जिनके वेतन का ढांचा सुपरिभाषित है; समाज के निम्न आर्थिक स्तर वाले लोग जिनके खातों में छोटी शेषराशियाँ और कम लेनदेन होता है; सरकारी विभाग एवं सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियां, विनियामक और सांविधिक निकाय आदि हो सकते हैं । ऐसे मामलों में, केवल पहचान और ग्राहक के पते का सत्यापन करने की मूलभूत आवश्यकता को पूरा करना नीतिगत अनिवार्यता हो । जो ग्राहक बैंक के लिए औसत से उच्चतर जोखिम पैदा करने की संभावना रखते हैं उन्हें मध्यम अथवा उच्च जोखिम के रूप में वर्गीवफ्त किया जाए जो ग्राहक की पफ्ष्ठभूमि, कार्यकलाप का स्वरूप और स्थान, मूल देश, निधियों के स्रोत और ग्राहक के प्रोफाइल आदि पर निर्भर होगा । बैंक जोखिम मूल्यांकन पर आधारित उचित सावधानी बरतने के अधिक उपाय करें, जिसमें यह अपेक्षित होगा कि विशेषकर जिनके निधियों के स्रोत स्पष्ट नहीं हैं ऐसे उच्चतर जोखिम ग्राहकों के लिए गहन ‘उचित सावधानी’ लागू की जाए । जिनके लिए उच्चतर उचित सावधानी आवश्यक है ऐसे ग्राहकों के उदाहरण हैं; (क) अनिवासी ग्राहक, (ख) उच्च निवल मूल्य वाले व्यक्ति, (ग) न्यास, धर्मादाय, गैर-सरकारी संगठन और दानराशियां प्राप्त करने वाले संगठन, (घ) ऐसी कंपनियां जिनमें निकट परिवार में शेयरधारिता अथवा हितार्थी स्वामित्व है, (ङ) ‘निष्क्रिय साझेदार’ वाले फर्म, (च) विदेशी मूल के पोलिटिकली एक्सपोज्ॅड पर्सन (पी ई पी), (छ) अप्रत्यक्ष (नॉन फेस टू फेस) ग्राहक, (ज) उपलब्ध सार्वजनिक सूचना के अनुसार धोखेबाज़ के रूप में बदनाम ग्राहक आदि ।

यह बात ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि ग्राहक स्वीकरण नीति को अपनाना एवं उसका कार्यान्वयन अत्यधिक प्रतिबंधात्मक नहीं होना चाहिए और इसका परिणाम सामान्य जनता, विशेषकर वित्तीय और सामाजिक तौर पर प्रतिकूल परिस्थिति वाले लोगों को बैंकिंग सेवाएं नकारने में नहीं होना चाहिए ।

ग्राहक पहचान क्रियाविधि (सी आइ पी)

3. बैंकों के बोर्डों द्वारा अनुमोदित उक्त नीति में विभिन्न स्तरों पर, अर्थात् बैंकिंग संबंध स्थापित करते समय, वित्तीय लेनदेन करते समय अथवा यदि पहले प्राप्त की गई ग्राहक पहचान संबंधी जानकारी की विश्वसनीयता /सत्यता अथवा पर्याप्तता के बारे में बैंक को कोई संदेह हो तो उस समय, की जाने वाली ग्राहकों को पहचानने की क्रियाविधि की सुस्पष्ट जानकारी दी जानी चाहिए । ग्राहक की पहचान से तात्पर्य ग्राहक को अभिनिर्धारित करना और विश्वसनीय, स्वतंत्र स्त्रोत दस्तावेज़ों, डेटा या सूचना द्वारा उनका सत्यापन करना । बैंकों के लिए यह आवश्यक है कि वे प्रत्येक नये ग्राहक, चाहे वह नियमित हो या कभी कदा आने वाला हो का अभिनिर्धारण अपनी संतुष्टि होने तक करने हेतु आवश्यक पर्याप्त जानकारी और उसके बैंकिंग संबंध के अभिप्रेत स्वरूप के प्रयोजन की जानकारी प्राप्त करें । संतुष्ट होने का अर्थ यह है कि संबंधित बैंक सक्षम प्राधिकारियों को इस बात से संतुष्ट करा सकता है कि मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुपालन में ग्राहक के संबंध में जोखिम के स्वरूप पर आधारित उचित सावधानी बरती गई है । इस प्रकार का जोखिम आधारित दृष्टिकोण बैंकों के अनावश्यक खर्च से बचने तथा ग्राहकों की दृष्टि से बोझिल व्यवस्था को टालने के लिए आवश्यक है । जोखिम निर्धारण के अलावा, आवश्यक सूचना /दस्तावेज़ों का स्वरूप भी ग्राहक के प्रकार (वैयक्तिक, कंपनी आदि) पर निर्भर होगा । जो ग्राहक ‘नेचुरल’ व्यक्ति हैं बैंकों को चाहिए कि उनसे उनकी पहचान उनका पता /स्थान सत्यापित करने के लिए पर्याप्त अभिनिर्धारण डेटा तथा उनका हाल ही का फोटोग्राफ भी प्राप्त करें । जो ग्राहक विधिक व्यक्ति अथवा संस्थाएँ हैं, उनके लिए बैंक को चाहिए कि वे (व) उचित एवं संगत दस्तावेजों के माध्यम से उक्त विधिक व्यक्ति /संस्था के विधिक दर्जे का सत्यापन करें, (वव) विधिक व्यक्ति /संस्था की ओर से कार्य करने का दावा करने वाले व्यक्ति के बारे में यह सत्यापित करें कि उसे इसके लिए प्राधिवफ्त किया गया है, और उस व्यक्ति विशेष की पहचान को सत्यापित किया जाए, (ववव) ग्राहक का स्वामित्व और नियंत्रण संरचना को समझें और अंतत: विधिक व्यक्ति का नियंत्रण करने वाले ‘नेचुरल’ व्यक्तियों को निर्धारित करें । कुछ विशिष्ट मामलों के संबंध में ग्राहक पहचान अपेक्षा, विशेषकर ऐसे विधिक व्यक्ति जिनके लिए अतिरिक्त सावधानी की आवश्यकता है, अनुबंध घ् में दी गयी हैं । तथापि, बैंक ऐसे व्यक्तियों /संस्थाओं के साथ व्यवहार संबंधी अपने अनुभव, सामान्य बैंकरों के विवेक तथा स्थापित प्रथाओं के अनुसार विधिक आवश्यकताओं के आधार पर अपने आंतरिक दिशानिर्देश तैयार करें । यदि बैंक ग्राहक स्वीवफ्ति नीति के अनुसरण में ऐसे खातों को स्वीकार करने का निर्णय लेता है तो संबंधित बैंक को चाहिए कि वे हितार्थी स्वामी /स्वामियों को अभिनिर्धारित करने हेतु समुचित कदम उठाएँ और उसकी /उनकी पहचान इस प्रकार करें ताकि इस बात की संतुष्टि हो जाए कि हितार्थी स्वामी कौन हैं । दस्तावेजों /सूचना के स्वरूप और प्रकार की संकेतक सूची, जिस पर ग्राहक की पहचान के लिए निर्भर रहा जा सकता है, अनुबंध-II में दी गयी है ।

लेनदेनों की निगरानी

4. ‘‘अपने ग्राहक को जानिए’’ संबंधी कारगर क्रियाविधियों का अनिवार्य तत्व है निरंतर निगरानी । बैंक केवल तभी प्रभावी ढंग से अपनी जोखिम का नियंत्रण कर सकते हैं और उसे कम कर सकते हैं जब उनमें ग्राहक की सामान्य और समुचित गतिविधि की समझ हो ताकि इससे गतिविधि के नियमित पैटर्न से बाहर के लेनदेनों का पता लगाने के साधन उनके पास उपलब्ध हो जाएं । तथापि, निगरानी किस सीमा तक होगी वह उस खाते के जोखिम की संवेदनशीलता पर निर्भर होगा। बैंकों को चाहिए कि वे सभी जटिल, असामान्य रूप से बड़े लेनदेनों और सभी ऐसी असामान्य बातें, जिनका कोई सुस्पष्ट आर्थिक अथवा दृश्य वैध प्रयोजन न हो, की ओर विशेष ध्यान दें । बैंक खातों की किसी विशिष्ट श्रेणी के लिए प्रारंभिक सीमाएं निर्धारित करें और इन सीमाओं को लांघने वाले लेनदेनों की ओर विशेष ध्यान दें। बड़ी नकद राशि वाले लेनदेन, जो संबंधित ग्राहक की सामान्य और अपेक्षित गतिविधि के अनुरूप नहीं हैं, की ओर बैंक का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित होना चाहिए । रखी गयी शेष राशि के आकार के अनुरूप न होने वाले बहुत बड़े लेनदेन यह दर्शाते हैं कि उस खाते से बड़ी-बड़ी निधियां निकाली जा रही है। उच्च जोखिम वाले खातों पर सख्त निगरानी रखी जानी चाहिए । प्रत्येक बैंक को ग्राहक की पफ्ष्ठभूमि, जैसे - मूल का देश, निधियों के स्त्रोत, निहित लेनदेनों के प्रकार और जोखिम के अन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ऐसे खातों के लिए महत्वपूर्ण संकेतक निश्चित करना चाहिए । बैंकों को खातों के जोखिम वर्गीकरण की आवधिक समीक्षा की एक प्रणाली आरंभ करनी चाहिए और इस संबंध में उचित सावधानी के और अधिक उपाय लागू करने की भी आवश्यकता है । बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खातों के लेनदेनों का अभिलेख सुरक्षित रखा जाता है और धन शोधन निवारण (पी एम एल) अधिनियम 2002 की धारा 12 के अनुसरण में यथा अपेक्षित स्थिति बनाए रखी जाती है । यह भी सुनिश्चित किया जाए कि संदेहास्पद स्वरूप के लेनदेनों और /अथवा धन शोधन निवारण (पी एम एल) अधिनियम 2002 की धारा 12 के अंतर्गत अधिसूचित किसी भी अन्य प्रकार के लेनदेन से संबंधित रिपोर्ट उचित विधि प्रवर्तक प्राधिकारी को दी जाती है ।

बैंकों को सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी शाखाएं 10 लाख रुपये तथा उससे अधिक राशि के समस्त नकद लेनदेनों (जमा तथा आहरण) का उचित रिकाड़ बनाए रखना जारी रखती है । आंतरिक निगरानी प्रणाली में ऐसे लेनदेनों तथा संदेहास्पद स्वरूप के लेनदेनों को नियंत्रक /प्रधान कार्यालय को पखवाड़े के आधार पर रिपोर्ट किये जाने के लिए कोई अंतर्निहित क्रियाविधि होनी चाहिए ।

जोखिम प्रबंधन

5. बैंक के निदेशक बोड़ को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि योग्य क्रियाविधियों को स्थापित करके तथा उनका प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करके, एक प्रभावी ‘अपने ग्राहक को जानिए’ कार्यक्रम लागू किया जाता है । इसमें उचित प्रबंधन निरीक्षण, प्रणालियां तथा नियंत्रण, कार्यों का पफ्थक्करण, प्रशिक्षण तथा अन्य संबंधित मामले शामिल होने चाहिए । बैंक की नीतियों तथा क्रियाविधियों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए बैंक के भीतर ही उत्तरदायित्व का स्पष्ट विनियोजन किया जाए। बैंक लेनदेन, खाते अथवा बैंकिंग /व्यापारिक संबंधों में निहित जोखिम को ध्यान में रखते हुए, अपने बोड़ के साथ परामर्श करके अपने मौजूदा तथा नये ग्राहकों का जोखिम प्रोफाइल तैयार करने की क्रियाविधियां बनाएं तथा धन शोधन निवारण के लिए विभिन्न उपायों को लागू करें। ‘अपने ग्राहक को जानिए’ नीतियों तथा क्रियाविधियों के मूल्यांकन तथा उनके अनुपालन को सुनिश्चित करने में बैंक की आंतरिक लेखा-परीक्षा तथा अनुपालन संबंधी गतिविधियों की महत्वपूर्ण भूमिका है । सामान्य नियमानुसार, अनुपालन कार्य में बैंक की अपनी नीतियों
तथा क्रियाविधियों का, जिनमें विधिक तथा विनियामक अपेक्षाएं शामिल हैं, स्वतंत्र मूल्यांकन निहित होना चाहिए । बैंकों को सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी लेखा-परीक्षा व्यवस्था में ऐसे व्यक्ति कार्यरत हैं जो ऐसी नीतियों तथा क्रियाविधियों से भली-भाँति परिचित हैं । समवर्ती /आंतरिक लेखा-परीक्षकों को विशेष रूप से शाखाओं में ‘अपने ग्राहक को जानिए’ क्रियाविधियों की जांच करनी चाहिए तथा उन्हें लागू किये जाने को सत्यापित करना चाहिए तथा इस संबंध में पायी गयी कमियों पर टिप्पणी देनी चाहिए । संबंधित अनुपालन रिपोर्ट को बोड़ की लेखा-परीक्षा समिति के समक्ष तिमाही अंतरालों पर प्रस्तुत किया जाए ।

बैंकों को लगातार कर्मचारी प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने चाहिए ताकि स्टाफ-सदस्य ‘अपने ग्राहक को जानिए’ क्रियाविधियों में पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित हो सकें । प्रशिक्षण कार्यक्रमों में फ्रंटलाइन स्टाफ, अनुपालन (कंप्लायंस) स्टाफ तथा नये ग्राहक के साथ व्यवहार करने वाले स्टाफ को दिये जाने वाले प्रशिक्षण के वेंद्र बिंदु अलग-अलग होने चाहिए । यह अत्यंत आवश्यक है कि सभी संबंधित स्टाफ-सदस्य ‘अपने ग्राहक को जानिए’ नीतियों के औचित्य को पूरी तरह समझते हैं और उनका निरंतर कार्यान्वयन करते हैं ।

ग्राहक शिक्षा

6. ‘अपने ग्राहक को जानिए’ क्रियाविधि के कार्यान्वयन के संदर्भ में बैंकों के लिए ग्राहकों से कुछ ऐसी जानकारी मांगना आवश्यक होता है जो वैयक्तिक स्वरूप की हो अथवा जिसकी इसके पहले कभी मांग न की गयी हो । इससे कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि ग्राहक ऐसी जानकारी माँगने के उद्देश्य तथा प्रयोजन के बारे में बहुत सारे प्रश्न पूछे । अत: ग्राहक को ‘अपने ग्राहक को जानिए’ कार्यक्रम के उद्देश्यों के बारे में जानकारी देने के लिए यह आवश्यक है कि बैंक संबंधित विशिष्ट साहित्य /प्रचार-पुस्तिका आदि तैयार करें। फ्रंट डेस्क स्टाफ को ग्राहकों के साथ बातचीत करते समय ऐसी परिस्थितियों को संभालने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ।

नयी प्रौद्योगिकियों का प्रयोग - क्रेडिट काड़ /डेबिट काड़ /स्मार्ट काड़ /गिफ्ट काड़

7. बैंकों को नयी अथवा विकासशील प्रौद्योगिकियों जिनमें इंटरनेट बैंकिंग शामिल है, जिसके कारण धन के स्रोत का पता नहीं चलता, इनसे उभरने वाले धन शोधन से संबंधित जोखिमों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो धन शोधन योजनाओं में उनके उपयोग को रोकने के उपाय करने चाहिए ।

अधिकांश बैंक विभिन्न प्रकार के इलैक्ट्रॉनिक काड़ जारी करने के व्यवसाय में लगे हैं । ग्राहक इन कार्डों का माल तथा सेवाएं खरीदने, ए टी एम में से नकद आहरित करने के लिए प्रयोग करते हैं, साथ ही निधियों के इलैक्ट्रॉनिक अंतरण के लिए भी इनका उपयोग हो सकता है । सामान्यत: एजेंट की सेवाओं के माध्यम से इन कार्डों को काम में लाया जाता है । बैंकों को सुनिश्चित करना चाहिए कि ग्राहकों को काड़ जारी करने से पूर्व ‘अपने ग्राहक को जानिए’ क्रियाविधियों को उचित रूप में लागू किया जाता है । यह भी वांछनीय है कि एजेंट पर भी ‘अपने ग्राहक को जानिए’ उपाय लागू किये जाते हैं ।

मौजूदा खातों के लिए अपने ग्राहकों को जानिए

8. बैंकों को यह सूचित किया गया था कि वे ‘अपने ग्राहकों को जानिए’ मानदंडों को अपने समस्त मौजूदा ग्राहकों पर समयबद्ध तरीके से लागू करें ।जहां संशोधित दिशानिर्देश सभी नये ग्राहकों पर लागू होंगे, वहां बैंक अपने मौजूदा ग्राहकों पर ये दिशानिर्देश खाते के आकार तथा जोखिम के आधार पर लागू करें ।

तथापि, मौजूदा खातों में होने वाले लेन-देन पर निरंतर नजॅर रखी जानी चाहिए तथा खाते के परिचालन में कोई असामान्य बात नजर आने पर ग्राहक संबंधी उचित सावधानी बरतने के उपायों की समीक्षा प्रारंभ की जानी चाहिए । बैंक खाते के स्वरूप तथा प्रकार के आधार पर ऐसे खातों पर मौद्रिक सीमाएं लागू करने पर विचार कर सकते हैं। तथापि, यह भी सुनिश्चित किया जाए कि कंपनियों, फर्मों, न्यासों, धर्मादायों, धार्मिक संगठनों तथा अन्य संस्थाओं के सभी मौजूदा खातों पर न्यूनतम ‘अपने ग्राहक को जानिए’ मानक लागू किए जाएं जिनसे नेचुरल /विधिक व्यक्ति तथा ‘हितार्थी स्वामियों’ की पहचान की जा सके । बैंक यह भी सुनिश्चित करें कि मीयादी /आवर्ती जमा खातों अथवा उसी स्वरूप के खातों को उनके नवीकरण के समय नये खाते माना जाता है तथा उनपर संशोधित ‘अपने ग्राहक को जानिए’ क्रियाविधि लागू की जाती है । जहां ग्राहक द्वारा जानकारी प्रस्तुत न करने तथा /अथवा ग्राहक के असहयोग के कारण बैंक को ‘अपने ग्राहक को जानिए’ उपाय लागू करना संभव नहीं है, वहां बैंक अपने ग्राहक को ऐसा निर्णय लेने के कारण स्पष्ट करने वाली एक सूचना जारी करने के बाद, खाता बंद करने अथवा उस ग्राहक से बैंकिंग /व्यावसायिक संबंध समाप्त करने पर विचार कर सकता है । ऐसे निर्णय उचित वरिष्ठ स्तर पर लेना आवश्यक है ।

प्रधान अधिकारी की नियुक्ति

9. बैंक किसी वरिष्ठ प्रबंधन अधिकरी को प्रधान अधिकारी के रूप में पदनामित करने के लिए नियुक्त करें । प्रधान अधिकारी बैंक के मुख्य / कॉर्पोरेट कार्यालय में स्थित होगा तथा उस पर सभी लेन-देनों की निगरानी तथा रिपोर्टिंग तथा कानून के अंतर्गत अपेक्षित जानकारी के अदान-प्रदान का दायित्व होगा । इस अधिकारी को प्रवर्तन एजेंसियों, बैंकों तथा किसी अन्य संस्था, जो कि धन शोधन तथा आतंकवाद के वित्तपोषण के विरुद्ध संघर्ष में शामिल है, के साथ निरंतर संपर्क बनाए रखना होगा ।


 

अनुबंध I

ग्राहक पहचान संबंधी अपेक्षाएं - सांकेतिक दिशानिर्देश

न्यास/नामिती अथवा न्यासी खाते

यह संभावना हो सकती है कि न्यास /नामिती अथवा न्यासी खातों का, ग्राहक पहचान क्रियाविधियों से बचने के लिए उपयोग किया जा सकता है । बैंकों को यह निश्चित कर लेना चाहिए कि क्या ग्राहक न्यासी /नामिती अथवा किसी अन्य मध्यवर्ती के रूप में किसी अन्य व्यक्ति की ओर से कार्य कर रहा है यदि ऐसा है तो बैंक को उन ग्राहकों से, जिनकी ओर से वे काम कर रहे हैं, उन मध्यवर्तियों अथवा व्यक्तियों की पहचान का संतोषजनक साक्ष्य प्राप्त करने पर जोर देना चाहिए तथा न्यास के स्वरूप तथा अन्य निर्धारित व्यवस्थाओं के ब्यौरे भी प्राप्त करना चाहिए । किसी न्यास के लिए खाता खोलते समय, बैंकों को न्यासियों तथा न्यास के अवस्थापकों (जिनमें न्यास में आस्तियां लगाने वाला कोई व्यक्ति शामिल है), अनुदान देनेवालों, संरक्षकों, हिताधिकारियों तथा - हस्ताक्षरकर्ताओं की पहचान को सत्यापित करने की उचित सावधानी बरतनी चाहिए । हिताधिकारियों को जब भी परिभाषित किया गया हो तब उनकी पहचान कर ली जानी चाहिए । फाउंडेशन के मामले में, संस्थापक प्रबंधकों /निदेशकों तथा हिताधिकारियों को जब भी परिभाषित किया गया हो तब उनका सत्यापन करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए ।

कंपनियों तथा फर्मों के खाते

बैंकों को बैंकों में खाते रखने के लिए व्यक्तियों द्वारा बिजनेस कंपनियों का एक ‘फ्रंट’ के रूप में उपयोग करने के मामले में सतर्क रहना आवश्यक है । बैंकों को कंपनी के नियंत्रक ढांचे की जांच करनी होगी, निधियों के स्रोत का पता करना होगा तथा उन नेचुरल व्यक्तियों की पहचान करनी होगी जिनका नियंत्रक हित है और जो प्रबंधतंत्र का एक हिस्सा हैं । इन अपेक्षाओं को जोखिम बोध के अनुसार कम-अधिक किया जा सकता है -उदाहरण के लिए, सार्वजनिक कंपनी के मामले में सभी शेयरधारकों को पहचानना आवश्यक नहीं होगा ।

व्यावसायिक मध्यवर्तियों द्वारा खोले गये ग्राहक खाते

जब किसी बैंक को यह पता है अथवा ऐसा विश्वास करने का कारण है कि व्यावसायिक मध्यवर्ती द्वारा खोला गया ग्राहक खाता किसी एकल ग्राहक के लिए है तो उस ग्राहक की पहचान कर ली जानी चाहिए । बैंकों के पास म्युच्युअल निधियों, पेन्शन निधियों अथवा अन्य प्रकार की निधियों जैसी संस्थाओं की ओर से व्यावसायिक मध्यवर्तियों द्वारा प्रबंधित ‘समूहित’ खाते हो सकते हैं । बैंकों में विविध प्रकार के ग्राहकों के लिए ‘ऑन डिपाज़िट’ अथवा ‘इन एस्क्रो’ धारित निधियों के लिए वकीलों /चार्टड़ एकाउंटंट्स् अथवा स्टॉक ब्रोकरों द्वारा प्रबंधित ‘समूहित’ खाते भी होते हैं। जहां मध्यवर्तियों द्वारा धारित निधियां बैंक में एक साथ मिश्रित नहीं होती हैं और बैंक में ‘उप-खाते’ भी हैं, जिनमें से प्रत्येक किसी एक हितार्थी स्वामी का खाता हो, वहां सभी हितार्थी स्वामियों की पहचान करनी होगी । जहां ऐसी निधियों को बैंक में एक साथ मिश्रित किया गया है, वहां भी बैंक को हितार्थी स्वामियों की पहचान करनी चाहिए । जहां बैंक, किसी मध्यवर्ती द्वारा की गयी ‘ग्राहक संबंधी उचित सतर्कता’ पर निर्भर हैं वहां उन्हें अपने को इस बात से संतुष्ट करना होगा कि मध्यवर्ती नियंत्रित तथा पर्यवेक्षित है और उसने अपने यहां ‘‘अपने ग्राहक को जानिए’’ अपेक्षाओं का अनुपालन करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था कर ली है । यह स्पष्ट किया जाता है कि ग्राहक को जानने का अंतिम दायित्व बैंक का है ।

भारत के बाहर रहने वाले पोलिटिकली एक्सपोज्ॅड पर्सन (पी इ पी) के खाते

पोलिटिकली एक्सपोज्ॅड पर्सन वे हैं जो विदेश में प्रमुख सार्वजनिक कार्य करते हैं अथवा ऐसे कार्य उन्हें सौंपे गये हैं । उदाहरण के लिए राज्यों अथवा सरकारों के प्रमुख, वरिष्ठ राजनीतिज्ञ, वरिष्ठ सरकारी /न्यायिक/ सेना अधिकारी, राजकीय स्वामित्व वाले निगमों के वरिष्ठ कार्यपालक महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टी कार्यकर्ता इत्यादि बैंक संबंध स्थापित करने का उद्देश्य रखने वाले इस श्रेणी के किसी व्यक्ति /ग्राहक के मामले में पर्याप्त जानकारी प्राप्त करें तथा उस व्यक्ति के संबंध में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध समस्त जानकारी की जांच करें । बैंकों को पोलिटिकली एक्सपोज्ॅड पर्सन को ग्राहक के रूप में स्वीकार करने से पहले इस व्यक्ति की पहचान को सत्यापित करना चाहिए और इन निधियों के स्रोत की जानकारी हासिल करनी चाहिए । पोलिटिकली एक्सपोज्ॅड पर्सन के लिए खाता खोलने का निर्णय ग्राहक स्वीकरण नीति में स्पष्टत: निर्धारित वरिष्ठ स्तर पर लिया जाए । बैंकों को चाहिए कि वे ऐसे खातों की निरंतर आधार पर अधिक मॉनीटरिंग करें । इन उपर्युक्त मानदंडों को पोलिटिकली एक्सपोज्ॅड पर्सन के परिवार के सदस्यों अथवा नजदीकी रिश्तेदारों के खातों के मामले में भी लागू किया जाना चाहिए ।

अप्रत्यक्ष (नॉन फेस टू फेस) ग्राहकों के खाते

टेलीफोन और इलैक्ट्रॉनिक बैंकिंग के प्रचलन से बैंकों द्वारा ग्राहकों के लिए अधिकाधिक खाते खोले जा रहें है जिसके लिए ग्राहकों के बैंक शाखा में आने की आवश्यकता नहीं होती। अप्रत्यक्ष ग्राहकों के मामले में, ग्राहक की सामान्य पहचान क्रियाविधि लागू करने के अलावा निहित उच्चतर जोखिम को कम करने के उद्देश्य से विशिष्ट और पर्याप्त क्रियाविधियों की आवश्यकता है। सभी प्रस्तुत दस्तावेजों के प्रमाणीकरण पर ज़ोर दिया जाय और यदि आवश्यक हो तो अतिरिक्त दस्तावेजों की माँग की जाए । ऐसे मामलों में, बैंक ग्राहक के दूसरे बैंक खाते के जरिए पहला भुगतान करने की अपेक्षा भी रख सकते है जिसमें ‘अपने ग्राहक को जानिए’ के समान मानकों का पालन होता है । सीमा पार ग्राहकों के मामले में ग्राहक के दस्तावेजों के साथ मेल मिलाने की अतिरिक्त कठिनाई होती है और ऐसी स्थिति में बैंक के तीसरी पार्टी को प्रमाणीकरण पहचान पर निर्भर रहना पड़ता है । ऐसे मामलों में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि तीसरी पार्टी एक विनियमित और पर्यवेक्षित संस्था है और वहां पर ‘अपने ग्राहक को जानिए’ प्रणाली पर्याप्त रूप में कार्यरत है।

संपर्ककर्ता बैंकिंग (कॉरेस्पाेंडेंट बैंकिंग)

संपर्ककर्ता बैंकिंग में एक बैंक (संपर्ककर्ता बैंक) से दूसरे बैंक (रिस्पॉन्डेंट बैंक) में बैंकिंग सेवा का प्रावधान रहता है । इन सेवाओं में नकद /निधियो का प्रबंधन, अंतर्राष्ट्रीय तार अंतरण, मांग ड्राफ्ट आहरण और डाक अंतरण व्यवस्था, खातो के जरिए देय व्यवस्था, चेक समाशोधन आदि का समावेश रहता है । संपर्ककर्ता बैंक /रिस्पॉन्डेंट बैंक के कामकाज का स्वरूप पूर्णत: समझने के लिए बैंकों को पर्याप्त जानकारी प्राप्त करनी चाहिए । दूसरे बैंक का प्रबंधन, प्रमुख कारोबारी गतिविधियाँ, एएमएल /सीएफटी अनुपालन का स्तर, खाता खोलने का उद्देश्य किसी तीसरे व्यक्ति की पहचान जो संपर्ककर्ता बैंकिंग का उपयोग करेगा और संपर्ककर्ता /रिस्पॉन्डेंट के देश में विनियामक / पर्यवेक्षण ढाँचे के संबंध में जानकारी विशेष रूप से संगत हो सकती है । इसी प्रकार, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी के जरिए यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि क्या दूसरे बैंक पर धन शोधन या आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन देने के संबंध में किसी प्रकार की जांच या विनियामक कार्रवाई की जा रही है । यह वांछनीय होगा कि ऐसे संबंध केवल बोड़ के अनुमोदन से ही स्थापित किए जाएं, तथापि यदि किसी बैंक का बोड़ किसी प्रशासनिक प्राधिकारी को शक्ति प्रत्यायोजित करना चाहें तो वे ऐसे संबंध अनुमोदित करने के लिए स्पष्ट मानदंडों को निर्धारित करते हुए, बैंकों के अध्यक्ष /सीइओं के नेतफ्त्व वाली समिति को प्रत्यायोजित कर सकते हैं। समिति द्वारा अनुमोदित प्रस्तावों को अनिवार्यत: बोड़ के कार्योत्तर अनुमोदन हेतु अगली बैठक में प्रस्तुत किया जाना चाहिए । प्रत्येक बैंक की जिम्मेदारियों को जिनके साथ संपर्ककर्ता बैंकिंग संबंध स्थापित किये गये है स्पष्ट रूप में प्रलेखित किया जाना चाहिए । खाते के जरिए देय मामलों में संपर्ककर्ता बैंक को सुनिश्चित करना चाहिए कि रिस्पॉन्डेंट बैंक ने उन ग्राहकों की पहचान का सत्यापन कर लिया है जिनकी खातों में सीधी पहुँच है और उनके संबंध में निरंतर ‘उचित सावधानी’ बरती जा रही है । संपर्ककर्ता बैंक को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि रिस्पॉन्डेंट बैंक ग्राहक पहचान संबंधी जानकारी अनुरोध करने पर तुरंत देने में सक्षम हैं ।

किसी ‘‘शेल बैंक’’ (अर्थात् ऐसा बैंक जो किसी देश में निगमित है जहां उसका अपना अस्तित्व नहीं है और वह किसी विनियमित वित्तीय समूह से संबंधित नहीं है) के साथ संपर्ककर्ता संबंध स्थापित करने से बैंक को इन्कार करना चाहिए । शेल बैंकों को भारत में कार्य करने की अनुमति नहीं है । बैंकों को उन रिस्पॉन्डेंट विदेशी वित्तीय संस्थाओं के साथ संबंध स्थापित करते समय सतर्क रहना चाहिए जो उनके खातों का उपयोग करने की अनुमति शेल बैंकों को देते हैं । बैंकों उन रिस्पॉन्डेंट बैंकों के साथ संबंध बनाए रखने में अत्यंत सतर्कता बरतनी चाहिए जो ऐसे देशों में स्थित हैं जहां ‘अपने ग्राहक को जानिए’ मानक कमजोर हैं और ऐसे देश जिन्हें धन शोधन और आंतकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण के विरुद्ध संघर्ष में ‘असहयोगी’ के रूप में जाना गया है । बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके रिस्पॉन्डेंट बैंकों के पास धन शोधन निवारण नीति और क्रियाविधि है और वे संपर्ककर्ता खातों के जरिए किए गए लेनेदेनों के संबंध में निरंतर ‘उचित सावधानी’ क्रियाविधि लागू करते है ।


अनुबंध II

ग्राहक पहचान क्रियाविधि

सत्यापित किये जानेवाले पहलू और ग्राहकों

से प्राप्त किये जाने वाले दस्तावेज

पहलू

दस्तावेज

व्यक्तियों के खाते

- विधिक नाम और प्रयोग में लाए गए अन्य नाम

 

 

 

- सही स्थायी पता

(व) पासपोर्ट (वव) पैन काड़ (ववव) मतदाता पहचान पत्र (वख्) ड्राइविंग लाइसेंस (ख्) पहचान पत्र (बैंक के संतुष्ट होने की शर्त पर) (ख्व) बैंक की संतुष्टि के लिए मान्यताप्राप्त सरकारी प्राधिकारी या सरकारी कर्मचारी द्वारा ग्राहक के पहचान तथा निवास को सत्यापित करता हुआ पत्र

(व) टेलीफोन बिल (वव) बैंक खाता विवरण (ववव) किसी मान्यताप्राप्त सरकारी प्राधिकारी से पत्र (वख्) बिजली का बिल (ख्) राशन काड़ (ख्व) नियोक्ता से पत्र (बैंक के संतुष्ट होने की शर्त पर)

(ऐसा कोई भी एक दस्तावेज पर्याप्त है जो बैंक को ग्राहक की जानकारी के संबंध में संतुष्ट करता हो)

कंपनियों के खाते

  • कंपनी का नाम
  • कारोबार का प्रमुख स्थान
  • कंपनी का डाक पता
  • टेलीफोन/फैक्स संख्या

(व) निगमन और संस्था के बहिर्नियम और अंतर्नियम के संबंध में प्रमाणपत्र (वव) खाता खोलने के संबंध में निदेशक बोड़ का प्रस्ताव और जिन्हें खाता चलाने का अधिकार है उनकी पहचान (ववव) उनकी ओर से कारोबार चलाने हेतु अपने प्रबंधकों, अधिकारियों या कर्मचारियों को प्रदत्त मुख्तारनामा (वख्) पैन आबंटन पत्र की प्रतिलिपि (ख्) टेलीफोन बिल की प्रतिलिपि

भागीदारी फर्म के खाते

  • विधिक नाम
  • पता
  • भागीदारों के नाम और पते
  • फर्म और भागीदारों के टेलीफोन नंबर

(व) पंजीकरण प्रमाणपत्र यदि पंजीवफ्त हो (वव) भागीदारी विलेख (ववव) उनकी ओर से कारोबार चलाने हेतु किसी भागीदार या फर्म के कर्मचारी को प्रदत्त मुख्तारनामा (वख्) भागीदारों और मुख्तारनामा धारित व्यक्तियों और उनके पते की पहचान कराता कोई भी अधिकारिक वैध दस्तावेज

(ख्) फर्म/भागीदारों के नाम, टेलीफोन बिल

न्यासों और संस्थानों के खाते

  • न्यासियों, सेटलर्स हितार्थी और हस्ताक्षरकर्ताओं के नाम
  • संस्थापकों, प्रबंधकों/निदेशकों और हितार्थी के नाम और पते
  • टेलीफोन/फैक्स नंबर

 

(व) पंजीकरण प्रमाण यदि पंजीवफ्त हो (वव) उनकी ओर से कारोबार चलाने हेतु प्रदत्त मुख्तारनामा (ववव) न्यासियों, सेटलर्स, हितार्थी और मुख्तारनामा धारित व्यक्तियों, संस्थापकों /प्रबंधकों /निदेशकों और उनके पते की पहचान कराता कोई भी आधिकारिक वैध दस्तावेज (वख्) फाउंडेशन /एसोसिएशन के प्रबंधन निकाय का प्रस्ताव (ख्) टेलीफोन बिल


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