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व्‍यवसाय प्रतिनिधि (बीसी) मॉडल का स्‍तर बढ़ाना – नकदी प्रबंधन संबंधी मुद्दे

आरबीआई/2013-14/570
ग्राआऋवि.एफआईडी.बीसी.सं.96/12.01.011/2013-14

22 अप्रैल 2014

अध्‍यक्ष/ प्रबंध निदेशक / मुख्‍य कार्यपालक अधिकारी
सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक

महोदय/ महोदया,

व्‍यवसाय प्रतिनिधि (बीसी) मॉडल का स्‍तर बढ़ाना –
नकदी प्रबंधन संबंधी मुद्दे

कृपया आप उपर्युक्‍त विषय पर गवर्नर महोदय के 1 अप्रैल 2014 के द्विमासिक नीति वक्‍तव्‍य का पैरा 26 (भाग ख) देखें।

2. इस संबंध में, हम सूचित करते हैं कि पिछले तीन वर्षों में देश के अब तक बैंकरहित रहें क्षेत्रों में बीसी–आईसीटी मॉडल के माध्‍यम से बड़ी संख्‍या में बैंकिंग आउटलेट खोले जाने के बाद प्रति बीसी लेनदेनों के रूप में इसके उपयोग की निगरानी करने का अब वक्‍त आ गया है ताकि बीसी मॉडल की निरंतरता सुनिश्चित हो सके। इस संबंध में पता लगाया गया एक महत्‍वपूर्ण विषय है बीसी का नकदी प्रबंधन।

3. बैंकों द्वारा बीसी से उनके अपने खातों में पूर्णत : पूर्व निधियन (प्री-फंडिंग) कर लेने का आग्रह , भले ही उनका कारोबारी संबंध पर्याप्‍त रूप से प्रदीर्घ क्‍यों न रहा हो, बीसी के परिचालन स्‍तर को बढ़ाने में प्रमुख बाधा के रूप में रहा है। इसी प्रकार, बीसी के पारिश्रमिक का न्‍यून / विलंब से भुगतान और नकदी का बीमा करने का दायित्‍व बीसी पर पास किया जाना भी भारी संख्‍या में खोले गये बैंक खातों में इसके उपयोग को बढ़ाने में तकलीफदेह साबित होता जा रहा है। अत : बैंकों के लिए यह मानना जरुरी है कि बैंक की ओर से बैंकिंग व्‍यवसाय करते समय बीसी द्वारा उपयोग में लायी जानेवाली नकदी बैंक की ही नकदी है। उपर्युक्‍त के परिप्रेक्ष्‍य में तथा बीसी मॉडल का स्‍तर बढ़ाने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि –

  1. बैंकों के बोर्डों को हर छमाही में कम से कम एक बार बीसी के परिचालनों की समीक्षा करनी चाहिए जो इस बात को सुनिश्चित करने की दृष्टि से हो कि कारपोरेट बीसी एवं बीसी एजेंटों के पूर्व निधियन की आवश्‍यकता को क्रमिक रूप से समय के साथ -साथ कम किया जाता है। आदर्श रूप में, सभी सामान्‍य मामलों में पूर्व निधियन क्रमिक रूप से इस प्रकार कम किया जाना चाहिए कि वह उदाहरण के लिए बीसी के परिचालन प्रारंभ करने के 2 वर्षों की समयावधि में , जमाराशियों के मामले में हर बीसी / सीएसपी के लिए निर्धारित सीमाओं के लगभग 15 प्रतिशत और बैंक गारंटियों , आदि के मामले 30 प्रतिशत पर पहुंच जाए।

  2. बोर्ड को बीसी पारिश्रमिक के भुगतान की स्थिति की भी समीक्षा करनी चाहिए और उसे बैंक के उच्‍चतम प्रबंधन द्वारा निगरानी की एक प्रणाली भी बनानी चाहिए। बीसी को जमाराशि रखी जाने और विभिन्‍न क्रेडिट, प्रेषण, ओवरड्राफ्ट तथा बैंक के अन्‍य उत्‍पाद के भुगतान कार्य करने की अनुमति देने संबंधी मुद्दे की भी बोर्ड द्वारा समय -समय पर जांच की जानी चाहिए। इस संबंध में बोर्ड द्वारा शिकायत निवारण प्रणाली भी स्‍थापित करनी चाहिए।

  3. चूंकि बीसी द्वारा प्रयोग की जानेवाली नकदी बैंक की ही नकदी होती है, अत : नकदी का बीमा करने का दायित्‍व बैंक का ही होना चाहिए।

भवदीय

(ए. उदगाता)
प्रधान मुख्‍य महाप्रबंधक

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