भारतीय रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति 2010-11 की दूसरी तिमाही समीक्षा - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति 2010-11 की दूसरी तिमाही समीक्षा
भारतीय रिज़र्व बैंक डॉ.डी.सुब्बाराव भूमिका दूसरी तिमाही समीक्षा की पृष्ठभूमि मिश्रित है। एक ओर जहाँ विकसित अर्थव्यवस्थाओं में लगातार ठहराव बना हुआ है वहीं दूसरी ओर उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमईज़) से सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। 2010 के उत्तरार्ध में, विकसित अर्थव्यवस्थाओं में जहाँ रिकवरी मंद पड़ गयी है वहीं ईएमईज़ की वृद्धि सुदृढ़ बनी हुई है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में कमजोर व असमान रिकवरी और बड़े पैमाने पर बेरोजगारी के कारण यह चिंता है कि वैश्विक रिकवरी कब तक जारी रह पाएगी एवं इसे देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ़) ने 2011 में विश्व की जीडीपी वृद्धि के संबंध में 4.2 प्रतिशत का अनुमान लगाया है जो कि 2010 की 4.8 प्रतिशत की तुलना में कम है। 2. रिकवरी की घटती रफ्तार के बारे में बढ़ती फ़िक्र के कारण कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों ने मात्रात्मक सुलभता (क्वांटिटेटिव ईज़िंग) का दूसरा चरण प्रारंभ कर दिया है या करने की सोच रहे हैं ताकि प्राइवेट डिमांड को बढ़ावा मिले। विकसित अर्थव्यवस्थाओं की अत्यधिक ढीली मौद्रिक नीति से वैश्विक रिकवरी को मध्यावधि तौर पर कुछ लाभ मिल सकता है, परंतु अल्पावधि में इससे ईएमईज़ में पूँजी का प्रवाह बढ़ेगा और विश्व भर में वस्तुओं की कीमतों पर बढ़ने का दबाव पड़ेगा। 3. घरेलू मोर्चे पर, आर्थिक कार्य-कलाप जम कर चल रहे हैं। 2010-11 की पहली तिमाही में जीडीपी में 8.8 प्रतिशत की वृद्धि बताती है कि मुख्यत: आंतरिक कारकों के बल पर अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी का रुझान बना हुआ है। दक्षिण-पश्चिम मॉनसून सामान्य रहा जिससे कृषि पैदावार के बेहतर होने और ग्रामीण क्षेत्रों में माँग बढ़ने की उम्मीद की जा सकती है। औद्योगिक और सेवा क्षेत्र के अधिकांश संकेतक भी वृद्धि के बने रहने की ओर इशारा कर रहे हैं। 4. हाल के महीनों मे आई कुछ नरमी के बावजूद, समग्र मुद्रास्फीति अपने मध्यावधि रुझान से उल्लेखनीय रूप से अधिक बनी हुई है। चिंता की बात यह है कि खाद्येतर निर्मित उत्पादों की मुद्रास्फ़ीति तो स्थिर हो गयी है, परंतु खाद्य मुद्रास्फ़ीति में कोई कमी नहीं आई है जैसा कि मॉनसून के बाद उम्मीद की जा रही थी। सामान्य मॉनसून के बाद भी लगातार बढ़ रही खाद्य कीमतों से खाद्य मुद्रास्फ़ीति की संरचनात्मक प्रकृति और मुद्रा स्फ़ीतीय प्रत्याशाओं पर पड़ने वाले इसके प्रभाव को लेकर चिंता है। आगे, अर्थव्यवस्था में वृद्धि जब इस रुझान के करीब है, तो संरचनात्मक खाद्य मुद्रास्फ़ीति के फ़ैलकर अन्य वस्तुओं की कीमतों में मिल जाने का जोख़िम अहम है और इसके फ़लस्वरूप कीमतों में हाल में आई कमी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है। 5. यह वक्तव्य दो भागों में है। भाग ए में मौद्रिक नीति को समेटा गया है और यह चार भागों में है: भाग I में वैश्विक और घरेलू समष्टि आर्थिक घटनाचक्र का एक खाका दिया गया है; भाग II में आर्थिक विकास, मुद्रास्फीति, मुद्रा और ऋण समुच्चयों (एग्रिगेट्स) से जुड़े परिदृश्य और आकलन हैं, भाग III में मौद्रिक नीति के रुख को बताया गया है और भाग IV में मौद्रिक उपायों का विवरण है। भाग बी में विकासात्मक और विनियामक नीतियों को रखा गया है और यह छह भागों में है: वित्तीय स्थिरता (भाग I), ब्याज दर नीति (भाग II), वित्तीय बाजार (भाग III), ऋण वितरण और वित्तीय समावेश (भाग IV), वाणिज्य बैंकों के लिए उठाए गए विनियामक एवं पर्यवेक्षी कदम (भाग V),संस्थागत गतिविधियां (भाग VI). इस वक्तव्य के भाग ए को समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों में दी गयी विस्तृत समीक्षा के साथ पढ़ा और समझा जाए जो रिज़र्व बैंक द्वारा कल जारी की गयी है। भाग ए. मौद्रिक नीति वैश्विक अर्थव्यवस्था 6. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ़) ने अक्टूबर 2010 में जारी अपने वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक में 2010 में विश्व की वृद्धि के संबंध में किए अपने आकलन को 4.6 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.8 कर दिया है। तथापि, वर्ष की दूसरी छमाही के बारे में किया गया आकलन पहली छमाही की तुलना में उल्लेखनीय रूप से कम है। इसके अतिरिक्त विकास की प्रक्रिया असमान बनी हुई है और मुख्यत: उभरते व विकासशील देशों पर निर्भर है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में रिकवरी कमजोर बनी हुई है क्योंकि प्राइवेट डिमांड में इतनी बढ़ोतरी नहीं हुई है कि घटते राजकोषीय प्रोत्साहन की भरपाई हो सके। 7. अमेरिका में 2010 की तीसरी तिमाही में वृद्धि में सुस्ती छाई हुई है। ऊँची बेरोजगारी, आय में अल्प वृद्धि, आवास धन में ह्रास और ऋण की तंग हालत के कारण परिवारों का व्यय ठिठका हुआ है। जापान की आर्थिक रिकवरी भी हाल में नरम पड़ रही है जैसा कि वहाँ के औद्योगिक उत्पादन और निर्यात की वृद्धि में आ रही कमी को देखने से पता लगता है। दूसरी तरफ़, यूरो क्षेत्र में, मई-जून 2010 के सरकारी ऋण समस्या के बाद, आर्थिक कार्य-कलापों में सुदृढ़ता के संकेत मिल रहे हैं, अलबत्ता पूरे क्षेत्र में असमान गति के साथ। ईएमईज़ में मजबूत विकास जारी है जिसमें मुख्य भूमिका घरेलू माँग की है, हालांकि निर्यात का भी सहयोग है। 8. संसाधनों के उपयोग में कमी और बेरोजगारी की अधिकता के कारण विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फ़ीति की दरें नरम बनी रहीं। अमेरिका और जापान में, मुद्रास्फ़ीति की दरें वांछित स्तर से उल्लेखनीय रूप से कम हैं जिससे मात्रात्मक सुलभता (क्वांटिटेटिव ईज़िंग) के जरिये और अधिक प्रोत्साहन देने का तर्काधार केंद्रीय बैंकों को मिलता है । इसके ठीक विपरीत, उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमईज़) में घरेलू माँग बढ़ रही है जिससे मुद्रास्फ़ीतीय दबाव पैदा हो रहे हैं। इसमें इन बाजारों में आ रहे पूँजी प्रवाहों के चलते वस्तुओं की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि से हालात और बिगड़ सकते हैं। मुद्रास्फ़ीति को लेकर कई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमईज़) में चिंता बढ़ रही है। घरेलू अर्थव्यवस्था 9. 2010-11 की पहली तिमाही में भारत का 8.8 प्रतिशत का विकास दर्शाता है कि 2009-10 में जो रिकवरी शुरू हुई थी वह अब पुख्ता हो रही है। सामान्य दक्षिण पश्चिम मॉनसून और इसकी देर तक टिकने के कारण खरीफ़ और रबी की उपज के बेहतर होने की संभावनाएं बढ़ गयी हैं। 10. औद्योगिक वृद्धि सुदृढ़ रही है, अलबत्ता अस्थिरता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी के साथ। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) में, अप्रैल-अगस्त 2010 के दौरान वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि 5.6 से 15.2 के दायरे में रही एवं इसका औसत 10.6 प्रतिशत रहा। पूँजीगत वस्तुओं, उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं और मध्यवर्ती वस्तुओं के क्षेत्रों में औद्योगिक वृद्धि ऊँची रही । अस्थिरता से जहाँ ह्रास की चिंता जनम लेती हैं वहीं आर्थिक कार्य-कलापों के अन्य संकेत निरंतर गतिशीलता दर्शा रहे हैं। 2010-11 की पहली छमाही में निर्यात निरंतर बढ़े हैं, और इसमें गत वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 27.6 प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी है। 2,546 वित्तेतर कंपनियों के एक नमूने के सर्वेक्षण के विश्लेषण पर यह देखा गया कि 2010-11 की पहली तिमाही में प्राइवेट कॉरपोरेट बिक्री में वर्ष-दर-वर्ष 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई। कंपनियों के प्रदर्शन के प्रारंभिक परिणाम बता रहे हैं कि 2010-11 की दूसरी तिमाही में कॉरपोरेट बिक्री में वृद्धि बनी हुई है और लाभ अर्जकता बढ़ी है। सितंबर 2010 के अग्रिम कर भुगतान के अनुसार प्रत्यक्ष कर उगाही पिछले साल के मुकाबले 16.5 प्रतिशत बढ़ी है। इसी प्रकार, अप्रैल-सितंबर के दौरान अप्रत्यक्ष कर उगाही 2009 की इसी अवधि की तुलना में 43.1 प्रतिशत ज़्यादा थी। 11. विभिन्न सेवा क्षेत्रों में 2009-10 की दूसरी छमाही में देखा गया उछाल इस वर्ष भी जारी रहा। भारतीय रिज़र्व बैंक के अद्यतन तिमाही औद्योगिक परिदृश्य सर्वेक्षण में कारोबारी परिस्थितियों के समग्र रूप से बेहतर होने के संकेत मिल रहे हैं। कारोबारी परिस्थितियों के अन्य सर्वेक्षणों मे भी यही रुझान दिख रहा है। क्षमता उपयोग पर भारतीय रिज़र्व बैंक का सर्वेक्षण दर्शाता है कि समग्र स्तर पर उपयोग में अल्प ह्रास है, पर ऐसा प्रतीत होता है कि कई क्षेत्र क्षमता अवरोध का सामना कर रहे हैं जिसके चलते आयात बढ़ गए हैं। 12. मुद्रास्फ़ीति के मोर्चे पर, 14 सितंबर, 2010 को जारी हुआ थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) की नयी सीरीज वस्तुओं के मूल्य का बेहतर प्रतिनिधित्व करती है जिसमें अपडेटेड बेस (2004-05= 100) और वस्तुओं का अधिक व्यापक कवरेज है। मध्यावधि में समग्र स्तर पर मुद्रा स्फ़ीति में पुरानी और नए सीरीज़ में तो कोई ज़्यादा अंतर नहीं है, परंतु अलग-अलग देखा जाय तो उल्लेखनीय अंतर है। नई डब्ल्यूपीआइ सीरीज़ के अनुसार वर्ष-दर-वर्ष मुद्रास्फ़ीति घट कर अगस्त 2010 में 8.5 प्रतिशत और सितंबर 2010 में 8.6 प्रतिशत पर आ गयी जबकि मार्च-जुलाई 2010 में ये दोहरे अंकों में थी। अलग-अलग (डिसएग्रिगेटेड) स्तर पर, पुरानी की तुलना में नई श्रृंखला में प्राथमिक वस्तुओं, विशेषत: खाद्य पदार्थों में मुद्रास्फ़ीति अधिक है जबकि विनिर्मित उत्पादों (मैन्युफ़ैक्चर्ड प्रोडक्ट्स) में कुछ कम है। 13. 2010-11 के दौरान, हालांकि प्राथमिक खाद्य मुद्रास्फ़ीति मई के 21.4 प्रतिशत से घटकर सितंबर में 15.7 प्रतिशत पर आयी, परंतु यह कमी पिछले मौकों पर सामान्य मॉनसून के बाद देखे गए ढांचे के अनुरूप नहीं थी। इसका कुछ कारण उपभोग की थाली में अधिक प्रोटीन वाली चीज़ों का बढ़ता महत्त्व भी है जिनकी कीमतों में वृद्धि अधिक रही है। प्रोटीन आधार वाले खाद्य पदार्थों जैसे दालें, दूध, अंडे, मछली और मांस (डब्ल्यूपीआइ की टोकरी में कुल मिला कर जिनका भार 6.4 प्रतिशत है), में वर्ष-दर-वर्ष मुद्रास्फ़ीति दर मई 2010 में 34 प्रतिशत की चोटी पर पहुँच गयी और सितंबर 2010 में 23.9 प्रतिशत की ऊँचाई पर बनी रही। अन्य प्राथमिक खाद्य पदार्थों (भार 8.0 प्रतिशत) में मुद्रास्फ़ीति जून 2010 के 14.0 प्रतिशत से घटकर सितंबर 2010 में 9.4 प्रतिशत पर आ गयी जो कि प्रमुख अनाजों, फ़लों व सब्जियों पर सामान्य मॉनसून के असर को साफ़-साफ़ झलका रही है। कुल मिलाकर, कुछ कमी आने के बावजूद, खाद्य मुद्रास्फ़ीति समग्र रूप में ऊँचे स्तर पर रही। सितंबर 2010 में वर्ष-दर-वर्ष मुद्रास्फ़ीति कुछ प्राथमिक खाद्येतर वस्तुओं में भी अधिक रही जैसे, कच्चा रबर (57.4 प्रतिशत), गन्ना (53.3 प्रतिशत) और रुई(27.5 प्रतिशत)। रुई की कीमतों का बढ़ना वैश्विक रुझान दर्शाता है। 14. विनिर्माण (मैन्युफ़क्चरिंग) सेक्टर की बात करें तो वर्ष-दर-वर्ष थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) खाद्येतर विनिर्मित (नॉन-फ़ूड मैन्युफ़ैक्चर्ड) वस्तुओं (भार: 55.0 प्रतिशत) में मुद्रास्फ़ीति सितंबर 2009 के (-) 2.0 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2010 में 5.0 प्रतिशत पर आने से पहले अप्रैल 2010 में 5.9 प्रतिशत की ऊँचाई पर चला गया था। खाद्येतर वस्तुओं की मुद्रास्फ़ीति (खाद्य उत्पादों और खाद्य पदार्थों को छोड़कर डब्ल्यूपीआइ) जो सितंबर 2009 में (-) 2.9 प्रतिशत थी, तेजी से बढ़कर अप्रैल 2010 में 9.2 प्रतिशत पर जा पहुँची और सितंबर 2010 तक 7.8 प्रतिशत पर उतरी। खाद्येतर चीजों (भार 75.7 प्रतिशत) ने सितंबर 2010 में थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) मुद्रास्फ़ीति में 65.5 प्रतिशत का योगदान दिया जबकि जनवरी 2010 में इनका हिस्सा 40.5 प्रतिशत था। 15. औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता सूचकांक (सीपीआइ) पर आधारित मुद्रास्फ़ीति 13 महीनों तक दुहरे अंकों में रहने के बाद अगस्त 2010 से घटकर एक अंक पर आ गयी है। यद्यपि, विभिन्न उपभोक्ता सूचकांक टोकरियां (सीपीआइ बास्केट) अभी भी 1980 के मध्य और 2001 के उपभोग पैटर्न को दर्शा रही हैं जिसमें अनाजों के लिए अपेक्षाकृत अधिक भार है जबकि अधिक अद्यतन (2004-05) डब्ल्यूपीआइ टोकरी बताती है कि भोजन उपभोग प्रोटीन-समृद्ध पदार्थों की ओर रुख कर चुका है जहाँ कीमतों में वृद्धि अधिक रही है। उपभोक्ता सूचकांक टोकरियां (सीपीआइ बास्केट्स) तत्संबंधी खाद्य मुद्रास्फ़ीति को, उस हद तक, कमतर दर्शाती हैं। 16. वर्ष-दर-वर्ष आधार पर मुद्रा आपूर्ति (एम3) वृद्धि मार्च 2010 के अंत के 16.8 प्रतिशत से घटकर मई-2010 में 14.5 प्रतिशत और फ़िर बढ़कर 8 अक्टूबर, 2010 तक 15.2 प्रतिशत हो गयी। वर्ष 2010-11 के 17.0 प्रतिशत के सांकेतिक अनुमान से यह स्तर कम था। एम3 में कम वृद्धि से बैंक जमाराशियों, विशेषत: दीर्घावधि जमाराशियों में कमी का पता चलता है। आगे, मुद्रा में बढ़ोतरी जमाराशियों में वृद्धि की तुलना में अधिक रही है जिससे मुद्रा गुणक अनुपात (मनी मल्टीप्लायर) घटा और एम3 वृद्धि में कमी आयी। इस ट्रेंड में योगदान जमाराशियों पर ऋणात्मक वास्तविक ब्याज दरों (निगेटिव रियल इंटरेस्ट रेट्स) का भी रहा जिसके कारण जमाकर्ता मुद्रा अपने पास रखने और सोना व रियल इस्टेट जैसी वित्तेतर आस्तियों में निवेश करने को प्रवृत्त हुए हैं जिनकी कीमतों में वर्ष के दौरान काफ़ी इजाफ़ा देखा गया है। 17. वर्ष-दर-वर्ष आधार पर खाद्येतर ऋण-वृद्धि मार्च 2010 के अंत के 17.1 प्रतिशत से बढ़कर 2 जुलाई, 2010 तक 22.3 प्रतिशत पर पहुँच गयी जिसका कुछ कारण टेलीकॉम स्पेक्ट्रम ऑक्शनों के चलते हुई ऋण मांग (क्रेडिट डिमांड) में अधिकता है। यद्यपि 8 अक्टूबर, 2010 की स्थिति के अनुसार यह घटकर 20.1 प्रतिशत पर पहुँची, पर अप्रैल 2010 की मौद्रिक नीति में बतायी गयी 20 प्रतिशत की सांकेतिक राह पर ही है। स्पेक्ट्रम ऑक्शन संबंधी एडवान्सेज़ के लिए समायोजन करने के बाद भी, चालू वित्तीय वर्ष में बैंक ऋण में अब तक हुई वृद्धि दीर्घकालिक रुझान के अनुसार रही है। अलग-अलग आँकड़े बताते हैं कि आधारभूत उद्योग (विशेषत: बिजली और टेलीकॉम) और आवास क्षेत्र जैसे बड़े उद्योगों को दिए जाने वाले ऋण में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि उल्लेखनीय रूप से अधिक रही। वाणिज्य क्षेत्र में बैंक-ऋण में वृद्धि के साथ-साथ अन्य स्त्रोतों से मिलने वाली निधियों में भी बढ़ोतरी हुई। मोटे तौर किए गए आकलन के अनुसार बैंक, बैंकेतर और बाह्य क्षेत्र से वाणिज्य क्षेत्र को जाने वाले वित्तीय संसाधन का कुल प्रवाह वर्ष 2010-11 की पहली छमाही में बढ़कर ₹ 4,85,000 करोड़ हो गया जबकि गत वर्ष इसी अवधि के दौरान यह ₹ 3,29,000 करोड़ था। 18. उधार (लेंडिंग) के क्षेत्र में, 1 जुलाई 2010 से आधार दर प्रणाली (बेस रेट सिस्टम) ने बेंचमार्क मूल उधार दर (बीपीएलआर) की जगह ले ली। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के आधार दर (बेस रेट) 5.50-9.00 प्रतिशत के दायरे में रखे गए। आगे चल कर, कई बैंकों ने समीक्षा की और अक्तूबर 2010 तक अपने बेस रेट 10-50 आधार अंकों के दायरे में वृद्धि की । प्रमुख बैंकों के बेस रेट, कुल बैंक ऋण में जिनकी हिस्सेदारी 94 प्रतिशत से अधिक की है, 7.50-8.50 प्रतिशत के दायरे में है। बैंकों ने पुराने ऋणों के लिए अपने बीपीएलआर में भी 25-75 आधार अंकों के दायरे में वृद्धि की है। 19. सिस्टम से भारी मात्रा में चलनिधियों के निकल जाने के चलते मई 2010 के अंत और जुलाई 2010 के बीच चलनिधि की तंग बनी हुई स्थितियों में अगस्त 2010 में कुछ राहत हुई। कुछ समय तक बारी-बारी से कभी अधिशेष (सरप्लस) और कभी घाटे (डेफिसिट) की स्थिति के बाद, 9 सितंबर 2010 से रिज़र्व बैंक की चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) विंडो सिस्टम में चलनिधि डाल (इनजेक्ट कर) रही है। डाली गयी चलनिधि की औसत दैनिक निवल मात्रा सितंबर में लगभग ₹ 24,000 करोड़ और अक्तूबर 2010 में 61,700 करोड़ रही जिसमें सर्वाधिक मात्रा ₹ 1,28,685 करोड़ की रही जो 30 अक्तूबर 2010 को डाली गयी। एलएएफ़ विंडो के तहत चलनिधि डालना यद्यपि घोषित नीति के अनुरूप है, इसमें तेज बदलाव सरकार के पास नकदी की स्थिति में भारी बढ़ोतरी के कारण हुआ जो कि 30 अक्टूबर, 2010 को ₹ 77,736 करोड़ थी। 20. अवरोधी चलनिधि दबाव (फ्रिक्शनल लिक्विडिटि प्रेशर) की स्थिति से राहत दिलाने के लिए रिज़र्व बैंक ने 29 अक्टूबर 2010 को दूसरा एसएलएएफ़ करने का निर्णय लिया और अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को 8 अक्टूबर, 2010 की स्थिति के अनुसार अपने एनडीटीएल के 1.0 प्रतिशत तक की सीमा तक एलएएफ के अंतर्गत अतिरिक्त चलनिधि सुविधा का उपयोग करने की अनुमति दी। अवरोधी चलनिधि दबाव (फ्रिक्शनल लिक्विडिटि प्रेशर) के बने रहने की संभावना को देखते हुए और चलनिधि राहत प्रदान करने के उद्देश्य से इन व्यवस्थाओं की उपलब्धता 04 नवंबर, 2010 तक बढ़ा दी गयी है। 21. बैंकिंग प्रणाली द्वारा उधार दरों में की गयी वृद्धि और चलनिधि स्थितियां, दोनों ही मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के मौद्रिक नीति रुझान के अनुरूप रहीं। चलनिधि की तंग स्थितियां, नीतिगत दरों से वाणिज्यिक उधार दरों की ओर जाने को मजबूत बनाने में मददगार हो रही हैं और आधार दर प्रणाली के परिचालन द्वारा यह प्रक्रिया और भी पारदर्शी हो रही है। जैसा कि वांछनीय है, मुद्रास्फीति प्रबंधन की दृष्टि से यह चिंता वाजिब है कि यह घाटा बैंकों की निवल मांग और सावधि देयताओं (एनडीटीएल) के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित (+/-) एक प्रतिशत की सहज स्थिति से काफी अधिक है, जैसा कि हाल ही के सप्ताहों में एलएएफ के तहत लिए गए उधारों से भी प्रकट होता है। सरकार की शेष राशि का उच्च स्तर इस बात का संकेत देता है कि आने वाले सप्ताहों में सरकार द्वारा उसकी शेष राशि में कमी लाने के चलते कुछ हद तक चलनिधि की तंगहाली में सुधार होने की संभावना है। 22. बड़े पैमाने पर स्पैक्ट्रम नीलामी से होने वाले आगम, कर राजस्व में उछाल और चालू वर्ष के दौरान विनिवेश से होने वाले उल्लेखनीय अन्तर्वाहों की प्रत्याशा में सरकार द्वारा यह घोषणा की गयी कि वह इस वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में अपने बाजार उधारों में 10,000 करोड़ रुपये तक की कमी लाएगी। इसके अलावा, सरकार द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक के परामर्श से अपने नकदी प्रबंधन परिचालनों के एक अंग के रूप में 21 अक्तूबर 2010 को घोषणा की गयी कि वह 2010-11 के दौरान परिपक्व होने वाली ₹ 28,533 करोड़ की राशि की सरकारी प्रतिभूतियों की पुनर्खरीद करेगी। पुनर्खरीद परिचालनों के लिए निधि का प्रबंध सरकार के पास उपलब्ध अतिरिक्त नकदी शेष से किया जाएगा। प्रथम ऋंखला में पुनर्खरीद हेतु 12,000 करोड़ रुपये की समग्र राशि की प्रतिभूतियों को अधिसूचित किया गया था और 2148 करोड़ रुपये की प्रतिभूतियों को 26 अक्तूबर 2010 को हुई नीलामी में स्वीकार किया गया था। 23. चालू वर्ष के दौरान सरकार की कुल राजस्व वसूलियों में वृद्धि एक स्वागत योग्य कदम है। यह राजकोषीय घाटे के बजट अनुमानों से अधिक हो जाने की आशंका को एक तरह से समाप्त कर देती है। राजकोषीय समेकन कई कारणों से महत्वपूर्ण है, जिसमें यह तथ्य भी शामिल है कि मौद्रिक नीति अत्यधिक कुशलता से काम करती है, जब मुद्रास्फीतिगत परिस्थितियों का सामना करना पड़े, साथ ही राजकोषीय परिस्थिति नियंत्रण में हो। राजकोषीय समेकन प्रयास को विश्वसनीय और प्रभावी बनाने के लिए कई बातें महत्वपूर्ण होती हैं। खर्चों का ढांचा बदलने पर भी उतना ही ध्यान दिया जाना चाहिए जितना कि राजस्व की वृद्धि पर, विनिवेश जैसे एकबारगी होने वाले राजस्व के बदले आवर्ती खर्च प्रतिबद्धताओं को स्थान नहीं दिया जाना चाहिए और समायोजन की गुणवत्ता को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। 24. चलनिधि स्थितियों और संशोधित सरकारी उधारों के पूर्वानुमानों के संयोजन का प्रतिलाभ वक्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अल्पावधि की दृष्टि से जहां चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) विंडो घाटे की स्थिति में परिचालित होती रही, वहीं सितंबर-अक्तूबर 2010 के दौरान एक दिवसीय ब्याज दरें, प्राय: चलनिधि समायोजन सुविधा दरों के दायरे के उच्चतम स्तर के करीब रहीं और कई अवसरों पर मांग में आयी अचानक तेजी के कारण इससे अधिक भी रहीं। तथापि, दीर्घावधि की दृष्टि से केन्द्र सरकार द्वारा निवल उधारों में कमी किए जाने की घोषणा का प्रभाव सरकारी बांड प्रतिफलों में कमी के रूप में यह पड़ा कि 10 वर्षीय बेंचमार्क सरकारी प्रतिभूति पर प्रतिफल अगस्त के उच्चतम 8.07 प्रतिशत से घटकर अक्तूबर 2010 के प्रारंभ में लगभग 7.92 प्रतिशत रह गया। हाल ही में, प्रतिफलों में पुन: वृद्धि हुई और ये 20 अक्तूबर 2010 को 8.14 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गये जो चलनिधि स्थितियों में तंगहाली को दर्शाती हैं। 25. हाल ही के सप्ताहों में बेहतर घरेलू वृद्धि की संभावनाओं और वैश्विक चलनिधि-अतिरेक द्वारा संचालित विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) की ओर से भारी अन्तर्वाहों के चलते स्वदेशी इक्विटी कीमतों में उल्लेखनीय रूप से तेजी आयी। विदेशी मुद्रा बाजार में सितंबर 2010 के प्रारंभ से निवल अन्तर्वाहों में उल्लेखनीय रूप से तेजी देखी गयी, जो कि अक्तूबर 2010 के दौरान ₹ 44.03 से ₹ 44.74 प्रति यूएस डालर के दायरे में रुपये के साथ व्यवस्थित बना रहा। 26. 36 मुद्राओं में वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) आधारित कारोबार के अनुसार 2010-11 के दौरान अब तक (22 अक्तूबर 2010) रुपये में 0.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 6 मुद्राओं के कारोबार पर आधारित आरईईआर (3.1 प्रतिशत) के आधार पर मूल्यवर्धन की यह सीमा, नि:संदेह अधिक थी, जो इस अवधि में अमरीकी डालर के मुकाबले भारतीय रुपये के मामूली मूल्यवर्धन और प्रमुख विकसित देशों के साथ उच्चतर मुद्रास्फीति अंतराल दोनों को प्रकट करती है। यह देखते हुए कि 36 मुद्राओं पर आधारित आरईईआर में बहुत से ऐसे देशों की मुद्राएं शामिल हैं जो वैश्विक बाजार में भारत के साथ सीधे प्रतिस्पर्धी हैं, तो यह प्रतिस्पर्धात्मकता पर वैश्विक मुद्रा-विनिमय दर के प्रभाव का बेहतर प्रतिबिम्ब है। इस सूचकांक में सापेक्षिक रूप से छोटा मूल्यवर्धन भी इस तथ्य को प्रकट करता है कि इस अवधि के दौरान बहुत से प्रतिस्पर्धी देशों ने अपनी-अपनी मुद्राओं का मूल्यवर्धन देखा है। इस परिप्रेक्ष्य में रुपये का हाल ही में हुआ मामूली मूल्यवर्धन प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ वाला नहीं भी हो सकता है। 27. वैश्विक अर्थव्यवस्था की सतत निष्क्रियता ने निर्यात वृद्धि और अदृश्य प्राप्तियों में कुछ कमी की है, तथापि, सुदृढ़ घरेलू रिकवरी के कारण आयात वृद्धि में गति आई है। परिणामस्वरूप, व्यापार घाटा और चालू खाते का घाटा (सीएडी) दोनों ही में 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान बढ़ोतरी हुई। यदि वर्तमान प्रवृत्ति बनी रहती है तो जीडीपी की प्रतिशतता के रूप में सीएडी विगत वर्ष की तुलना में काफी उच्चतर रहेगा। सामान्यतया यह माना जाता है कि जीडीपी के 3 प्रतिशत से अधिक का सीएडी है तो मध्यम अवधि के दौरान इसे काबू में रख पाना कठिन होता है। इसलिए यह चुनौती है कि मध्यम अवधि के दौरान घाटे पर लगाम लगायी जाए और अल्पावधि में इसका वित्तपोषण किया जाए। मध्यावधि के कार्यों पर सरकार और रिज़र्व बैंक दोनों ही को ध्यान देना होगा। अल्पावधि का कार्य तो यह देखना रहेगा कि चालू खाते का पूरी तरह से वित्तपोषण हो, जब कि यह भी सुनिश्चित किया जाए कि पूंजी का प्रवाह अर्थव्यवस्था की अवशोषक क्षमता की सीमा से ज्यादा बाहर नहीं हो, और दीर्घावधि के घटक और समग्र पूंजी में स्थायी प्रवाह उच्च रहे। II. परिदृश्य और आकलन वैश्विक परिदृश्य वृद्धि 28. विश्व मुद्रा कोष ने अपने नवीनतम वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक में वैश्विक वृद्धि के बारे में आकलन किया है कि यह 2010 में 4.8 प्रतिशत से कम होकर 2011 में 4.2 प्रतिशत रह जाएगी। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक क्रियाकलापों के विभिन्न संकेतकों से इशारा मिल रहा है कि 2010 की दूसरी छमाही में वृद्धि में धीमापन रहेगा और यह धीमापन 2011 की पहली छमाही के दौरान भी बना रह सकता है। प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं में ऋण-निरंतरता के मुद्दे के कारण वृद्धि प्रक्रिया के लिए अतिरिक्त राजकोषीय उत्प्रेरणा प्रदान करने की गुंजाइश पर दबाव रहा। वैश्विक सम्पर्कों को देखा जाए तो वैश्विक रिकवरी में मंदी का प्रतिकूल प्रभाव उभरती हुई अर्थव्यस्थाओं (ईएमई) में वृद्धि पर पड़ेगा, खासकर व्यापारिक चैनल के माध्यम से, जिनमें भारत भी शामिल है। मुद्रास्फीति 29. वर्तमान क्षमता प्रयोग के विद्यमान न्यून स्तरों और बेरोजगारी की उच्च दरों के कारण विकसित अर्थव्यवस्थाओं में अल्पावधि के दौरान मुद्रास्फीति काबू में रहेगी। हालांकि, धीमी वैश्विक रिकवरी की प्रत्याशा के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय पण्य-कीमतों में हाल ही में बढ़ोतरी होना चिन्ता का विषय है। विभिन्न ईएमई पहले ही से स्फीतिकारी दबाव का सामना कर रहे हैं। खास तौर पर खाद्य, ऊर्जा और धातुओं की कीमतों में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी हुई। इसलिए ईएमई देशों में मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी का जोखिम बढ़ गया है जो कि स्वदेशी क्षमता के बढ़ते उपभोग और वैश्विक पण्य कीमतों में बढ़ोतरी दोनों के कारण है। घरेलू परिदृश्य वृद्धि 30. कृषि क्षेत्र के अच्छे निष्पादन और विद्यमान वैश्विक समष्टि आर्थिक दृश्यावली के दरम्यान औद्योगिक उत्पादन और सेवा क्षेत्र क्रियाकलापों की समूची श्रृंखला को ध्यान में रखते हुए 2010-11 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि का आधारभूत आकलन 8.5 प्रतिशत पर रखा गया है, जैसा कि जुलाई 2010 में निर्धारित कर दिया गया था (चार्ट‑I)। 31. वर्ष 2010-11 के लिए रिज़र्व बैंक का वृद्धि-आकलन भी इसके व्यावसायिक पूर्वानुमानकर्ताओं के सर्वेक्षण और अन्य एजेंसियों द्वारा लगाए गए माध्यक वृद्धि (मीडियन ग्रोथ) पूर्वानुमान के समानुरूप है। मुद्रास्फीति 32. यद्यपि हाल ही के महीनों में हेडलाइन मुद्रास्फीति में नरमी आई है तथापि, मुद्रास्फीति की वर्तमान दर रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित सहज दायरे से काफी ऊपर है। सितंबर 2010 के पहले पखवाड़े के दौरान रिज़र्व बैंक द्वारा कराए गए तिमाही मुद्रास्फीति प्रत्याशा सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि अल्पावधि में पारिवारिक स्फीतिकारी प्रत्याशाओं में मामूली बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा, कुछ नरमी के बावजूद खाद्य-कीमतों में अब तक एक वर्ष के दौरान लगातार बढ़ोतरी रही है, जो कि आंशिक रूप से विभिन्न पण्यों में मांग-आपूर्ति के संरचनागत बेमेलपन को दिखाती है इसके अलावा प्रोटीन स्रोतों, तिलहनों और सब्जियों में भी यही प्रवृत्ति दिखाई दी है। बदलती हुई उपभोग प्रवृत्तियों को देखते हुए, और अब तक अपर्याप्त आपूर्ति अनुक्रिया के क्रम में खाद्य-कीमतों की प्रकृति लगातार आकार ग्रहण कर रही है। इसके अलावा, यहां तक कि गैर-खाद्य विनिर्माण की स्फीति वस्तुत: नरम हुई है, तथापि यह अपनी मध्यम अवधि की प्रवृत्ति से अधिक ही बनी हुई है। 33. आगे देखें तो मुद्रास्फीति का परिदृश्य निम्नलिखित घटकों के आधार पर आकार ग्रहण करेगा। पहला, यह निर्भर करेगा कि खाद्य-कीमतों की स्फीति कैसे बढ़ती है। दूसरे, वैश्विक पण्य कीमतों की बढ़ोतरी चिन्ता का विषय बन गयी है। तीसरे, संकुचित-क्षमता बाधाओं के बीच अनवरत वृद्धि से होने वाली मांग के कारण दबावों का भी प्रभाव रहेगा। शेष यह आशा है कि, मुद्रास्फीति अपने वर्तमान बढ़े हुए स्तर से नरम पड़ेगी, जैसा कि आपूर्ति की बाधाओं में कमी और संयुक्त नीतिगत कार्रवाई के रूप में अलग-अलग दिखाई दे रहा है। 34. जुलाई में समीक्षा के दौरान रिज़र्व बैंक ने मार्च 2011 के लिए थोक मूल्य सूचकांक स्फीति का आधारभूत आकलन 6.0 प्रतिशत पर किया था। यह आकलन थोक मूल्य सूचकांक की पुरानी श्रृंखला पर आधारित था। जैसा कि संकेत किया जा चुका है, पुरानी और नई श्रृंखलाओं के बीच मध्यम अवधि स्फीति प्रवृत्ति में सकल स्तर पर बहुत अंतर नहीं है, लेकिन, समूह स्तरों पर महत्वपूर्ण अंतर हैं। वर्तमान में उपलब्ध सूचना के आधार पर और इस तथ्य के आधार पर कि खाद्य-कीमतों की मुद्रास्फीति में अपेक्षित नरमी पूरी तरह से फलीभूत नहीं हुई है, तो मार्च 2011 के लिए थोक मूल्य सूचकांक का आधारभूत आकलन 5.5 प्रतिशत पर रखा गया है, जो कि पुरानी श्रृखंला के तहत 6.0 प्रतिशत के समतुल्य है। प्रभावी रूप से इसका आशय हुआ कि जुलाई 2010 की समीक्षा में किए गए आकलन अपरिवर्तित ही रहे हैं (चार्ट-2)। 35. रिज़र्व बैंक का प्रयास रहेगा कि कीमतों में स्थिरता लायी जाए और मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं पर अंकुश लगाया जाए। इन उद्देश्यों को ध्यना में रखते हुए रिज़र्व बैंक विकासमान समष्टि आर्थिक स्थिति के संदर्भ में सकल मुद्रास्फीति और इसके पृथक-पृथक घटकों का मूल्यांकन करता रहेगा। 36. मुद्रास्फीति के वर्तमान परिदृश्य में भी यह देखना महत्वपूर्ण है कि 2000 के दशक में औसत हेडलाइन मुद्रास्फीति दर 5.0-5.5 प्रतिशत के दायरे में रही, जो कि लगभग 7.5 प्रतिशत की ऐतिहासिक ट्रेंड रेट से कम है। यह रूपांतरण कई कारकों के मिलने से हुआ। मुद्रास्फीति दर को न्यून और स्थिर रखने की मौद्रिक नीति की वचनबद्धता इनमें से एक थी। यह रिकार्ड मौद्रिक नीति और अधिक सामान्य रूप में कहें तो मुद्रास्फीति प्रबंधन संरचना की विश्वसनीयता के लिए महत्वपूर्ण आधार है। इस पृष्ठभूमि में मौद्रिक नीति का संचालन मुद्रास्फीति की प्रत्याशा को 4.0-4.5 प्रतिशत के दायरे में ढालने एवं बनाए रखने का काम करता रहेगा। यह 3.0 प्रतिशत की मुद्रा स्फीति के मध्यावधि प्रयोजन के अनुरूप रहेगा जो कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ भारत के व्यापक एकीकरण के साथ सामंजस्यपूर्ण होगा। मौद्रिक समुच्चय 37. यद्यपि साल-दर-साल आधार पर मुद्रा आपूर्ति (M3) की वृद्धि अक्तूबर 2010 की शुरुआत में 15.2 प्रतिशत पर रही जो कि 17.0 प्रतिशत के सूचक आकलन से कम थी, गैर-खाद्य ऋण में 20.1 प्रतिशत की वृद्धि 20.0 प्रतिशत के सूचक आकलन के निकट थी। जमाराशि और ऋण वृद्धि में बढ़ोतरी के संकेत पहले ही से हैं। यह अपेक्षित है कि मौद्रिक समुच्चय अप्रैल के नीतिगत वक्तव्य में उल्लिखित अनुमानित वक्र-पथ के अनुसार ही आगे बढ़ेगा। तदनुसार 2010-11 के लिए M3 और गैर-खाद्य ऋण वृद्धि का आकलन क्रमश: 17 प्रतिशत और 20 प्रतिशत पर रखा गया है। हमेशा की तरह ही ये संख्याएं लक्ष्य नहीं बल्कि सांकेतिक आकलन है। जोखिम संबंधी कारक 38. उपर्युक्त स्थूल आर्थिक तथा मौद्रिक अनुमान में बड़े पैमाने पर वृद्धि भी हो सकती है और कमी भी पहला, आंतरिक वृद्धि में मुख्य जोखिम उन अर्थव्यवस्थाओं में दीर्घकालिक मंद तथा बाधापूर्ण समुत्थान प्रक्रिया से होगा जैसा कि वैश्विक आर्थिक गतिविधि के हाल ही के संकेतकों से पता चलता है। इस बात को लेकर भी चिंता है कि निजी मांग में वृद्धि न होने पर भी वित्तीय समेकन के चलते समुत्थान की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। यदि वैश्विक समुत्थान प्रक्रिया में कमी आती है, तो उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं, जिसमें भारत भी शामिल है और जो अब तक मजबूत रही है, पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है। हालांकि अन्य प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में, जीडीपी के एक प्रतिशत के रूप में भारत का निर्यात कुल मिलाकर कम ही है लेकिन व्यापक रूप से वैश्विक व्यापार में मंदी का निश्चित रूप से विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ेगा। 39. दूसरा, हालांकि हाल ही में समग्र मुद्रास्फीति तथा खाद्येतर विनिर्मित उत्पादों की मुद्रास्फीति में कमी आई है, लेकिन स्फीतिकारक दबाव बने हुए हैं जो कई कारणों से और बढ सकते हैं। क्षीण वैश्विक समुत्थान के बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय पण्य मूल्यों में हाल ही में उभरती अर्थव्यवस्थाओं से मजबूत मांग तथा वृद्धि अधिशेष वैश्विक चलनिधि के कारण पण्यों के वित्तीकरण से उछाल आया है। यदि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं द्वारा कुछ और अधिक मात्रात्मक कमी लाई जाती है, जो वैश्विक पण्य मूल्यों पर जोखिम और ज्यादा हो जाएगा। लगातार उच्च घरेलू खाद्य मुद्रास्फीति कुछ संरचनात्मक घटक की ओर इंगित करती है, जो कि समग्र मुद्रास्फीति पर अपना प्रभाव डालना जारी रखेगी। कई उद्योगों में घरेलू क्षमता प्रयोग संकट से पूर्व की स्थिति पर होने पर मांग संबंधी दबाव बढ़ सकते हैं। इसलिए, भविष्य में मुद्रास्फीति में वृद्धि होने की संभावना है। 40. तीसरा, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में सुधार कमजोर होने के कारण जापान ने पहले ही विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप के माध्यम से और अधिक मौद्रिक सहजता प्रारंभ कर दी है। कुछ और उन्नत अर्थव्यवस्थाएं मात्रात्मक सहजता का एक और दौर प्रारंभ करने जा रही हैं। भारत सहित उभरती अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि की बेहतर संभावनाओं को देखते हुए, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंकों द्वारा निर्मित अधिशेष चलनिधि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में आ सकती है। वस्तुत:, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में और अधिक मात्रात्मक सहजता की प्रत्याशा से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में पहले ही बड़े पूंजीगत प्रवाह आ गए हैं। परिणाम स्वरूप, उभरती अर्थव्यवस्थाओं में विनियम दरें बढ़ रही हैं। आस्ति मूल्यों में भी वृद्धि हो रही है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में महत्वपूर्ण वृद्धि अंतर के साथ-साथ अधिशेष वैश्चिक चलनिधि, ब्याज दर अंतर तथा उच्चतर वित्तीय बाजार प्रतिफल के कारण भारत में पूंजी प्रवाहों में और वृद्धि हो सकती है। हालांकि भारत को अपने बढ़ते चालू खाता घाटे के वित्तपोषण के लिए पूंजी प्रवाहों की आवश्यकता है, अर्थव्यवस्था की सह सकने की क्षमता से अधिक बहुत बड़े पूंजी प्रवाह विनियम दर तथा मौद्रिक प्रबंधन के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन सकते हैं। 41. चौथा, भारत का चालू खाता घाटा हाल ही में एक ओर तो निर्यात और अदृश्य राशियों में मंदी आ जाने के कारण और दूसरी ओर घरेलू अर्थव्यवस्था में मजबूत तेजी के कारण आयात में वृद्धि के कारण बढ़ गया है। हालांकि अब तक चालू खाता घाटा बढ़ते पूंजीगत प्रवाहों से आसानी से वित्तपोषित होता रहा है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय पूंजी प्रवाहों में अनिश्चितता के चलते चालू खाता घाटा में वृद्धि चिंता का कारण है। 42. पांचवां, कई अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की ही तरह भारत में आस्ति मूल्यों में तीव्र वृद्धि हुई है। शेयर बाजार अपने अब तक के सर्वोच्च स्तर के पास है। मैट्रो शहरों में आवासीय संपत्ति के मूल्य संकट-पूर्व के उच्च स्तर से अधिक हो गए हैं। हालांकि, भारत में परिवारों के आय स्तर तथा कंपनियों के अर्जन लगातार बढ़े हैं, लेकिन इतने कम समय में आस्ति मूल्यों में तीव्र वृद्धि चिंता का कारण है। III. नीति का रुझान 43. अक्तूबर 2009 से, रिज़र्व बैंक ने सीआरआर में कुल मिलाकर 100 आधार अंकों की वृद्धि की है, तथा एलएएफ के अधीन रेपो तथा रिवर्स रेपो दरों में क्रमश: 125 आधार अंकों तथा 175 आधार अंकों की वृद्धि की है। विश्व में लगातार अनिश्चितता के व्यापक संदर्भ में भारत की विशिष्ट वृद्धि-मुद्रास्फीति परिस्थिति को देखते हुए मौद्रिक नीति निर्धारित की गयी है। 44. अत:, 2010-11 की शेष अवधि के लिए हमारी नीति का रुझान तीन प्रमुख विचारों पर आधारित है: 45. पहला, घरेलू अर्थव्यवस्था का आधार मजबूत है। 2010-11 की पहली तिमाही के लिए 8.8 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था संकट से पूर्व के वृद्धि मार्ग पर तेजी से बढ़ रही है। वैश्विक समुत्थान को लेकर अभी भी चिंता बनी हुई है, लेकिन भारत की घरेलू वृद्धि के वाहक (ड्राइवर) मजबूत हैं जिससे वैश्विक समुत्थान में मंदी के नकारात्मक प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकेगा। 46. दूसरा, मुद्रास्फीति अभी भी उच्च स्तर पर है। इसका कारण मांग और आपूर्ति दोनों ही हैं। मुद्रास्फीति काफी उच्च स्तर पर रहने का अनुमान है। मुद्रास्फीति की व्यापकता तथा निरंतरता के कारण, मांग संबंधी स्फीतिकारक दबावों तथा स्फीतिकारक प्रत्याशाओं पर नियंत्रण रखना जरूरी है। 47. तीसरा, हालांकि चलनिधि की कमी किसी स्फीति विरोधी रुझान के अनुरूप ही होती है, लेकिन अत्यधिक कमी वित्तीय बाजारों तथा बैंकिंग प्रणाली में ऋण वृद्धि के लिए विघ्नकारी हो सकती है। चलनिधि की कमी के कारण आर्थिक गतिविधि में बाधा न आए, इसके लिए चलनिधि की कमी को एक तर्कसंगत सीमा में ही रखना होगा। 48. उपर्युक्त उल्लिखित पृष्ठभूमि में, मौद्रिक नीति के रुझान का उद्देश्य होगा: मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखने के साथ-साथ, स्फीतिकारक प्रत्याशाओं में और वृद्धि होने पर उसका सामना करने के लिए तैयार रहना। मूल्य, आउटपुट तथा वित्तीय स्थिरता के अनुरूप ब्याज दर व्यवस्था बनाए रखना। चलनिधि का सक्रियता से प्रबंधन करना ताकि वह ऐसे संतुलन में रहे जहां अधिशेष के कारण मौद्रिक संचरण में कमी न हो और कमी के कारण पूंजी प्रवाहों में कमी न हो। IV. मौद्रिक उपाय 49. वर्तमान मूल्यांकन के आधार पर और भाग III में बताए गए नीतिगत रुझान के अनुसार रिज़र्व बैंक निम्नलिखित नीतिगत उपायों की घोषणा करता है: बैंक दर 50. बैंक दर को 6.0 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है। रेपो दर 51. यह निर्णय लिया गया है कि: चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रेपो दर में तत्काल प्रभाव से 25 आधार अंकों की बढ़ोतरी कर उसे 6.0 प्रतिशत से 6.25 प्रतिशत कर दिया जाए। रिवर्स रेपो दर 52. यह निर्णय लिया गया है कि: एलएएफ के तहत रिवर्स रेपो दर में तत्काल प्रभाव से 25 आधार अंकों की बढ़ोतरी करके उसे 5.0 प्रतिशत से 5.25 प्रतिशत कर दिया जाए। आरक्षित नकदी निधि अनुपात 53. अनुसूचित बैंकों के आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को उनकी निवल मांग और देयताओं (एनडीटीएल) के 6.0 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है। प्रत्याशित परिणाम 54. मौद्रिक नीति कार्रवाइयों के अपेक्षित परिणाम: 55. रिज़र्व बैंक वैश्विक तथा घरेलू दोनों ही समष्टि आर्थिक स्थितियों पर बारीकी से निगरानी रखना जारी रखेगा। हम भारी एवं अस्थिर पूंजी प्रवाहों और घरेलू चलनिधि स्थितियों में होने वाले तीव्र उतार-चढ़ावों के संभाव्य रूप से बाधा डालने वाले प्रभावों को कम करने की दृष्टि से मूल्य तथा उत्पादन स्थिरता के व्यापक उद्देश्यों के अनुरूप यथा अपेक्षित कार्रवाई करेंगे। 56. वृद्धि और मुद्रास्फीति की वर्तमान प्रवृत्तियों के ही आधार पर रिज़र्व बैंक मानता है कि निकट भविष्य में दर संबंधी और कार्रवाइयों की संभावना अपेक्षाकृत कम है। फिर भी, अनिश्चितता के इस युग में हमें उन आघातों के लिए उचित जवाब देने के लिए तैयार रहना पड़ेगा जो कि या तो वैश्चिक अथवा घरेलू परिस्थितियों के कारण उत्पन्न होंगे। मौद्रिक नीति 2010-11 की मध्य तिमाही समीक्षा 57. वर्ष 2010-11 की मौद्रिक नीति की अगली मध्य तिमाही समीक्षा की घोषणा 16 दिसंबर 2010 को प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से की जाएगी। मौद्रिक नीति 2010-11 की तीसरी तिमाही समीक्षा 58. मौद्रिक नीति 2010-11 की तीसरी तिमाही समीक्षा 25 जनवरी 2011 को की जाएगी। भाग बी. विकासात्मक तथा विनियामक नीतियां 59. हाल में आये वित्तीय संकट के कारण बैंकों और वित्तीय संस्थाओं पर से नियंत्रण हटाये जाने के स्वरूप में मूलभूत बदलाव करने की आवश्यकता बढ़ गयी है। इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जी-20, वित्तीय स्थिरता बोर्ड (एफएसबी) और बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल समिति (बीसीबीएस) के तत्वावधान में महत्वपूर्ण कदम उठाये गए हैं। उभरते ढांचे के जिन व्यापक घटकों पर सहमति हो गयी है वे हैं - बैंकिंग संस्थाओं को बासल III के अधीन और अधिक तथा बेहतर गुणवत्तावाली पूंजी के साथ चौमुखी संरक्षण देना, सर्वांगीण रूप से महत्वपूर्ण वित्तीय संस्थाओं (एसआइएफआई) के लिए एक उचित ढांचा बनाना, क्षतिपूर्ति की प्रथाओं को विवेकपूर्ण जोखिम ग्राही और दीर्घाविधिक मूल्य निर्माण के समरूप बनाना, और ऐसे लेखांकन मानक विकसित करना जिससे कि वित्तीय स्थिरता बढ़े। भारत जी-20, एफएसबी और बीसीबीएस का सदस्य है, इस नाते रिज़र्व बैंक उक्त सुधार पैकेज बनाने के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है। 60. हाल ही के वर्षों में रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमन का बल केवल वित्तीय प्रणाली सुदृढ़ बनाने पर ही नहीं रहा है, अपितु वित्तीय बाज़ारों को विकसित करने, वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना, ऋण सुपुर्दगी, विशेष रूप से लघु और मझौले उद्यमों (एसएमई) क्षेत्र को दी जानेवाली ग्राहक सेवा में सुधार लाना तथा भुगतान और निपटान प्रणाली को सुदृढ़ बनाना भी इसमें शामिल है। इस प्रकार, रिज़र्व बैंक इन क्षेत्रों में सुधार लाने पर जोर देता रहेगा ताकि वित्तीय प्रणाली की दक्षता एवं स्थिरता बढ़ती रहे। 61. नए नीतिगत उपायों की सूची के साथ-साथ पिछली नीतिगत घोषणाओं के संबंध में की गयी कार्रवाई का सारांश नीचे दिया गया है। I. वित्तीय स्थिरता वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट 62. रिज़र्व बैंक वित्तीय प्रणाली की बारीकी से तथा विवेकपूर्ण ढंग से निरंतर आधार पर निगरानी रखता है। वित्तीय स्थिरता का मूल्यांकन और उसके निष्कर्ष वित्तीय स्थिरता रिपोर्टों (एफएसआर) के रूप में वित्तीय संस्थाओं, बाजार के प्रतिभागियों तथा आम जनता को उपलब्ध कराया जाते हैं। प्रथम वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) मार्च 2010 में प्रकाशित की गयी है। दूसरी एफएसआर दिसंबर 2010 में प्रकाशित की जाएगी। आगे चलकर एफएसआर हर वर्ष जून और दिसंबर में प्रकाशित की जाएगी। वित्तीय स्थिरता का मूल्यांकन 63. समष्टि-विवेकपूर्ण निगरानी को सुदृढ़ बनाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। इस संदर्भ में, वर्ष में दो बार प्रणालीगत जोखिम मापक रिपोर्टों सहित अधिक बारंबारता से आंतरिक मूल्यांकन प्रारंभ कर दिये गए हैं। हाल के आंतरिक मूल्यांकन के अनुसार, वर्तमान में, वित्तीय प्रणाली आम तौर पर स्थिर बनी हुई है। बैंकिंग क्षेत्र मजबूत है और वित्तीय क्षेत्र के लिए माना जा रहा है कि वह प्रतिकूल घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न आघातों के प्रति लचीला है। तथापि, वित्तीय स्थिरता के लिए वैश्विक रूप से तथा देशांतर्गत दोनों ही रूप से उभरनेवाले जोखिमों पर निरंतर रूप से सावधानी से निगरानी रखे जाने की जरूरत है। II. ब्याज दर नीति आधार दर 64. जैसा कि अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में बताया गया है, आधार दर की प्रणाली पहली जुलाई 2010 से लागू हो गयी। न्यूनतम मूल उधार दर प्रणाली से आधार दर प्रणाली की तरफ जाने की यात्रा सुगम रही। बचत बैंक जमाराशियों पर ब्याज 65. वित्तीय क्षेत्र के एक सुधार के रूप में, रिज़र्व बैंक ने बचत बैंक जमाराशियों के अलावा, जमाराशियों पर ब्याज दर पर यह नियंत्रण हटा दिया है। बचत बैंक जमाराशियों पर ब्याज दर पहली मार्च 2003 से प्रति वर्ष 3.5 प्रतिशत दर ही बनी रही हैं। ब्याज दर पर क्रमिक रूप से नियंत्रण हटाने को ध्यान में लेते हुए यह प्रस्ताव है कि: • बचत बैंक जमाराशि ब्याज दर से विनियमन हटाने के पक्ष व विपक्ष पर एक चर्चा पत्र तैयार किया जाए । 66. चर्चा पत्र दिसंबर 2010 के अंत तक रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर डाला जाएगा और उस पर सामान्य जनता से प्रतिसूचना (फीड बैक) ली जाएगी। III- वित्तीय बाज़ार वित्तीय बाज़ार उत्पाद ब्याज दर फ्यूचर्स 67. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में यह बताया गया था कि भारत सरकार की प्रतिभूतियॉं धारित करने वाले 5 वर्षीय और 2 वर्षीय आनुमानिक कूपनों और 91 दिन के खजाना बिलों पर विनिमय कारोबार वाले ब्याज दर फ्यूचर्स प्रारंभ किए जाएंगे। यह भी बताया गया था कि भारतीय रिज़र्व बैंक-सेबी स्थायी तकनीकी समिति उत्पाद की रूपरेखा और परिचालनगत तौर-तरीके निश्चित करेगी। उत्पाद की रूपरेखा से संबंधित मामले पर भारतीय रिज़र्व बैंक-सेबी स्थायी तकनीकी समिति ने विचार-विमर्श किया था। रिज़र्व बैंक अन्य देशों की नकदी-निर्धारित ब्याज दर फ्यूचर्स व्यवस्था का अनुभव ध्यान में लेते हुए ऐसे ब्याज दर फ्यूचर्स प्रारंभ करेगा। एक वर्ष से कम परिपक्वता वाले अपरिवर्तनीय डिबेंचरों का विनियमन 68. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में यह प्रस्ताव किया गया था कि एक वर्ष से कम अवधिवाले अपरिवर्तनीय डिबेंचरों को जून 2010 के अंत तक जारी करने के संबंध में अंतिम मार्गदर्शी सिद्धान्त जारी किए जाएं। तदनुसार प्राप्त प्रति-सूचना के आधार पर जून 2010 में अपरिवर्तनीय डिबेंचरों पर मार्गदर्शी सिद्धान्त जारी किए गए जो 2 अगस्त 2010 से लागू किए गए। इन मार्गदर्शी सिद्धान्तों में अन्य बातों के साथ-साथ अपरिवर्तनीय डिबेंचरों को जारी करने के लिए पात्रता मानदंड, उनके श्रेणी-निर्धारण की आवश्यकता, परिपक्वता, मूल्य-वर्ग, सीमाऍं और जारी करने की राशि तथा कंपनियों, डिबेंचर न्यासियों और श्रेणी निर्धारण एजेंसियों की जिम्मेदारियों भी शामिल की गयी हैं। क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप की शुरूआत 69. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में यह बताया गया था कि कंपनी बांडों के लिए क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप शुरू करने के बारे में आंतरिक कार्यकारी दल की रिपोर्ट का प्रारूप जुलाई 2010 के अंत तक रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाएगा। तदनुसार रिपोर्ट का प्रारूप 4 अगस्त 2010 को रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर प्रदर्शित किया गया और जनता की राय 4 अक्तूबर 2010 तक मॉंगी गयी। कंपनियों सहित इससे जुड़े सभी पक्षों के साथ विस्तृत परामर्श करके प्राप्त अभिमत/सुझावों की जॉंच की जा रही है। कंपनी बांडों में रेपो 70. कंपनी बांड बाज़ार के विकास के लिए रिज़र्व बैंक ने जनवरी 2010 में मार्गदर्शी सिद्धान्त जारी किये जिसमें कंपनी बांडो में कुछ निश्चित शर्तों के अधीन पुनर्खरीद की अनुमति दी थी। कंपनी बांडों में रेपो लेनदेनों में आगे और सुविधा हो इसलिए रिज़र्व बैंक ने बाज़ार के प्रतिभागियों के साथ विचार-विमर्श करके कंपनी बांडों में रेपो को शामिल करने के बारे में मार्गदर्शी सिद्धान्तों की समीक्षा की है। तदनुसार, यह निर्णय लिया गया है कि : वर्तमान टी+1 और टी+2 को शामिल करके टी+0 आधार पर कंपनी बांडों में रेपो के निपटान के लिए अनुमति देना और उचित रूप से रेपो पर मार्जिन आवश्यकताओं में संशोधन करना। 71. विस्तृत मार्गदर्शी सिद्धान्त, जो पहली दिसंबर 2010 से प्रभावी होंगे, अलग से जारी किये जा रहे हैं। ओवर-द-काउंटर फोरेक्स डेरिवेटिव्ज पर मार्गदर्शी सिद्धान्त 72. ओवर द काउंटर विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव्ज पर मार्गदर्शी सिद्धान्तों का प्रारूप जनता के अभिमत के लिए नवंबर 2009 में रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर प्रदर्शित किया गया था। शेयरधारकों से प्राप्त प्रतिसूचना पर मुद्रा, विदेशी मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाज़ार तकनीकी सलाहकार समिति की बैठक में चर्चा की गयी। इस चर्चा के आधार पर इस विषय पर संशोधित मार्गदर्शी सिद्धान्तों का प्रारूप रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर जुलाई 2010 को प्रदर्शित किया गया और अंतिम अभिमत 13 अगस्त 2010 तक मांगे गये। मुद्रा, विदेशी मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाज़ार तकनीकी सलाहकार समिति की बैठक में संबंधित पक्षों से प्राप्त अभिमतों की जाँच की गयी और उन पर चर्चा की गयी। प्राप्त प्रतिसूचना के परिप्रेक्ष्य में अंतिम मार्गदर्शी सिद्धान्त नवंबर 2010 के अंत तक जारी किये जाएंगे। विनिमय कारोबार करेंसी ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट की शुरुआत 73. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में यह बताया गया था कि रिज़र्व बैंक, निवासियों (रेज़िडेंट्स) के लिए स्पाट यूएस डालर/रुपया विनिमय दर पर साधारण वैनिला करेंसी ऑप्शन्स प्रारंभ करने के लिए मान्यता प्राप्त शेयर बाज़ारों को अनुमति देगा। जुलाई 2010 में रिज़र्व बैंक ने मान्यता-प्राप्त शेयर बाज़ारों के एक करेंसी डेरिवेटिव्ज खंड में स्पॉट यूएस डॉलर- भारतीय रुपया दर पर करेंसी ऑप्शन्स में व्यापार की अनुमति दी। करेंसी ऑप्शन्स बाज़ार समय-समय पर रिज़र्व बैंक और सेबी द्वारा जारी मार्गदर्शी सिद्धान्तों के अनुसार कार्य करेगा। मुद्रा बाजार मौद्रिक नीति की कार्य-पद्धति की समीक्षा के लिए कार्य दल 74. जुलाई 2010 की मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा में घोषित किये गये अनुसार रिज़र्व बैंक ने 4 अक्तूबर 2010 को मौद्रिक नीति की वर्तमान परिचालन प्रक्रिया, जिसमें चलनिधि समायोजन सुविधा शामिल है, की समीक्षा करने के लिए एक कार्यकारी दल गठित किया (अध्यक्ष:श्री दीपक मोहन्ती)। इस दल में रिज़र्व बैंक के संबंधित विभाग से, भारतीय बैंक संघ (आइबीए) और निर्धारित आय मुद्रा बाज़ार और व्युत्पन्न (डेरिवेटिव्ज) संघ (फिमडा) के प्रतिनिधि शामिल हैं। इस दल में बाहर के विशेषज्ञ भी शामिल किये गए थे। यह दल अपनी पहली बैठक की तारीख से तीन माह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। वित्तीय बाज़ार आधारभूत संरचना जमा और वाणिज्यिक पत्रों के प्रमाणपत्रों की रिपोर्टिंग के लिए मंच 75. फिमडा द्वारा विकसित जमा प्रमाणपत्र और वाणिज्यिक पत्रों में गौण बाज़ार लेनदेनों के लिए रिपोर्टिंग मंच 1 जुलाई 2010 से शुरू कर दिया गया है। जैसा कि व्यवस्था की गयी है, रिज़र्व बैंक, सेबी और आइआरडीए द्वारा नियंत्रित की जानेवाली इकाइयां अब जमा प्रमाणपत्र और वाणिज्यिक पत्र में काउंटर पर व्यापार में फिमडा मंच पर रिपोर्ट कर रही हैं। फिमडा भी मूल्य लेनदेन राशि और प्रतिफल सहित जमा प्रमाणपत्र और वाणिज्यिक पत्रों में व्यापार के बारे में ऑनलाइन जानकारी उपलब्ध करा रहा है। IV ऋण वितरण और वित्तीय समावेशन सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यम क्षेत्र को ऋण प्रवाह सूक्ष्म , लघु और मझोले उद्यम क्षेत्र पर उच्च स्तरीय कार्यदल 76. सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों के संघों (एमएसएमई) द्वारा उठाये गये विभिन्न मुद्दों पर विचार करने और कार्रवाई के लिए कार्यसूची बनाने हेतु सरकार द्वारा गठित किए गए एक उच्च स्तरीय कार्यदल (अध्यक्ष: श्री टी. के. ए. नायर) ने जनवरी 2010 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। कार्यदल की सिफारिशों के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक ने जून 2010 में दिशानिर्देश जारी किए जिसमें अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को सूचित किया गया कि सूक्ष्म और लघु उद्यमों को दिए जाने वाले अग्रिमों के 60 प्रतिशत का आवंटन का लक्ष्य चरणबद्ध रूप में प्राप्त किया जाना है। यह वर्ष 2010-11 में 50 प्रतिशत, वर्ष 2011-12 में 55 प्रतिशत और वर्ष 2012-13 में 60 प्रतिशत प्राप्त किया जाए। इसके अलावा, बैंकों को सूक्ष्म उद्यमों के खातों की संख्या में 10 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि और सूक्ष्म तथा लघु उद्यम क्षेत्र को ऋण प्रवाह में वर्ष दर वर्ष आधार पर 20 प्रतिशत की वृद्धि प्राप्त करने का लक्ष्य सौंपा गया। इस संबंध में रिज़र्व बैंक, बैंकों द्वारा प्राप्त किए गये लक्ष्यों की कड़ी निगरानी कर रहा है। ग्रामीण ऋण संस्थान सहकारी संस्थाओं को लाइसेंस देना 77. वित्तीय क्षेत्र आकलन समिति (अध्यक्ष: डा. राकेश मोहन और उपाध्यक्ष: श्री अशोक चावला) ने सिफारिश की थी कि जो ग्रामीण सहकारी बैंक वर्ष 2012 तक लाइसेंस प्राप्त नहीं कर पाते हैं उन्हें कार्य करने की अनुमति न दी जाए। तदनुसार, अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में यह प्रस्ताव किया गया था कि लाइसेंस रहित राज्य और केन्द्रीय सहकारी बैंकों को उनके काम में बाधा पहुंचाए बिना लाइसेंस देने के लिए एक रोडमैप तैयार किया जाए। इस उद्देश्य के लिए, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के साथ परामर्श करके, इन बैंकों को लाइसेंस प्रदान करने के लिए संशोधित दिशानिर्देश जारी किए गए थे। राज्य सहकारी बैंकों/जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) को लाइसेंस प्रदान करने संबंधी संशोधित दिशानिर्देश जारी होने के बाद 10 राज्य सहकारी बैंकों और 113 जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को लाइसेंस प्रदान किए गए हैं। इससे 30 सितंबर 2010 की स्थिति के अनुसार लाइसेंस रहित राज्य सहकारी बैकों की संख्या 17 से घट कर 7 और जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों की संख्या 296 से घट कर 163 रह गयी है। ग्रामीण सहकारी ऋण ढांचे को पुनस्र्ज्जीवन 78. ग्रामीण सहकारी ऋण संस्थानों को पुनस्र्ज्जीवित करने के लिए गठित कार्यदल (अध्यक्ष: प्रोफेसर ए.वैद्यनाथन) और राज्य सरकारों के साथ परामर्श करके भारत सरकार ने अल्पावधि में ग्रामीण सहकारी ऋण ढांचे में नये प्राण फूंकने के लिए एक पैकेज अनुमोदित किया था। पैंकेज में की गयी परिकल्पना के अनुसार अब तक 25 राज्यों ने भारत सरकार और नाबार्ड के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। 16 राज्यों ने अपने सहकारी समिति अधिनियमों में आवश्यक संशोधन किए हैं। 31 अगस्त 2010 की स्थिति के अनुसार नाबार्ड ने 14 राज्यों में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) को पैकेज के तहत भारत सरकार के हिस्से के रूप में लगभग ₹ 7990 करोड़ की कुल राशि जारी कर दी है। जमीनी सहकारी समितियों के जरिए वित्तीय समावेशन 79. अप्रैल 2010 के नीति वक्तव्य में यह प्रस्ताव रखा गया था कि रिज़र्व बैंक, नाबार्ड और कुछ राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों को मिलाकर एक समिति का गठन किया जाए जो समानांतर स्वावलंबन सहकारी समिति अधिनियमों के तहत भलीभांति चल रही प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस), बहुउद्देश्यीय वृहत आदिवासी सहकारी समितियों (एलएएमपीएस), किसान सेवा समितियों (एफएसएस) और बचत और ऋण सहकारी समितियों के कामकाज के तरीके का अध्ययन करे ताकि वित्तीय समावेशन में उनके योगदान की क्षमता का आकलन किया जा सके। तदनुसार, नाबार्ड और संबंधित राज्य सरकारों के साथ मिलकर रिज़र्व बैंक देश में भली प्रकार चल रही चुनिंदा ग्रामीण सहकारी समितियों (लगभग 220) का अध्ययन कर रहा है ताकि वित्तीय समावेशन में उनके योगदान की क्षमता का आकलन किया जा सके। इस अध्ययन के जनवरी 2011 के अंत तक पूरा होने की संभावना है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को शाखा लाइसेंस देने में उदारता 80. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के संबंध में मौजूदा शाखा लाइसेंस नीति को और अधिक उदार बनाने के एक हिस्से के रूप में यह प्रस्ताव किया जाता है: जनगणना 2001 में पहचान किए गए टियर-3 से टियर-6 केन्द्रों (49,999 तक की जनसंख्या) में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को रिज़र्व बैंक की पूर्वानुमति के बगैर शाखा खोलने की अनुमति प्रदान की जाए, बशर्ते वे कुछ शर्तों का पालन करें। 81. इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। प्राथमिक क्षेत्र को उधार 82. अक्तूबर 2009 की दूसरी तिमाही समीक्षा में की गयी घोषणा के अनुसार, वित्तीय क्षेत्र सुधार समिति (अध्यक्ष: डा. रघुराम जी.राजन) द्वारा की गयी सिफारिशों के अनुरूप प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्रों (पीएसएलसीएस) की अच्छाइयों और खामियों की जांच करने के लिए एक कार्यदल (अध्यक्ष: श्री वी.के.शर्मा) गठित किया गया था। अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में किए गए उल्लेख के अनुसार कार्यदल के विचारार्थ विषयों को विस्तार प्रदान किया गया था ताकि प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के उधारों के तहत बैंकों द्वारा माइक्रो-फाइनेंस (एमएफआईएस) संस्थाओं को दिए गए उधार को शामिल करने से संबंधित अच्छाइयों और खामियों का पता लगाया जा सके। कार्यदल ने अपनी रिपोर्ट अगस्त 2010 में प्रस्तुत कर दी है। तथापि, माइक्रोफाइनेंस (एमएफआई) क्षेत्र में हाल की गतिविधियों को देखते हुए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा माइक्रोंफाइनेंस कंपनियों को दी गयी सहायता से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जांच करने और साथ ही शर्मा कार्यदल की सिफारिशों को भी ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक के केन्द्रीय बोर्ड की एक उप समिति (अध्यक्ष: श्री वाई.वी.मालेगाम) गठित की गयी है। उप समिति अन्य बातों के साथ-साथ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की लघु-वित्त (माइक्रो-फाइनेंस) गतिविधियों के नियमन विशेष रूप से उधारकर्ताओं के हितों के आड़े आने वाले मुद्दों के संबंध में अपनी सिफारिशें देगी। उप-समिति द्वारा जनवरी 2011 के अंत तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने की संभावना है। मालेगाम उप-समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्रों (पीएसएलसीएस) और प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के उधारों के तहत लघु-वित्त (माइक्रोफाइनेंस) संस्थाओं को ऋण देने वाले बैंकों से संबंधित मुद्दों पर एक समग्र दृष्टि डाली जाएगी। बैंकों के लिए वित्तीय समावेशन योजना 83. वित्तीय समावेशन के लिए बैंकिंग की पहुंच को बढ़ाने के उद्देश्य को देखते हुए सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के घरेलू अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को अन्य बातों के साथ-साथ यह सलाह दी गयी थी कि वे बोर्ड द्वारा अनुमोदित तीन वर्षीय वित्तीय समावेशन योजना (एफआइपी) बनाकर शुरू करें और मार्च 2010 तक उसे रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करें। घरेलू अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ने अपनी वित्तीय समायोजन योजनाएं तैयार कर ली हैं और रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत कर दी हैं। इन योजनाओं के संबंध में प्रमुख बैंकों से विचार-विमर्श किया गया और विचार-विमर्श के आधार पर बैंकों ने संशोधित योजना प्रस्तुत कीं। इन योजनाओं को लागू करने में हुई प्रगति पर कड़ी निगरानी रखने के लिए बैंकों को एक तिमाही रिपोर्टिंग प्रारूप दिया गया है और इन योजनाओं पर रिज़र्व बैंक कड़ी निगरानी रख रहा है। 2000 से अधिक जनसंख्या वाले गांवों में बैंकिंग सेवाओं के प्रावधान के लिए रूपरेखा 84. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में की गयी घोषणा के अनुसार राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति ने 2000 से अधिक जनसंख्या वाले प्रत्येक गांव में बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए रूपरेखा तैयार की है और 2001 की जनगणना के अनुसार बैंक रहित 73,113 गांवों की शिनाख्त की गयी हैं जिन्हें मार्च 2012 तक बैंकिंग सेवाओं का प्रावधान करने के लिए विभिन्न बैंकों के बीच आबंटित कर दिया गया है। केंद्रीय बज़ट 2010-11 में वित्त मंत्री द्वारा की गयी घोषणा के अनुसरण में बैंकिंग सेवाओं के प्रावधानों के लिए समय सीमा को मार्च 2011 से बढ़ाकर मार्च 2012 कर दिया गया है। मार्च 2011 को मध्यवर्ती लक्ष्य के तौर पर बनाए रखा गया है। संबंधित एसएलबीसी इस रूपरेखा के कार्यान्वयन में हुई प्रगति पर विचार-विमर्श कर रहे हैं और इस पर कड़ी निगरानी रख रहे हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में रिज़र्व बैंक का उप-कार्यालय 85. सभी पूर्वोत्तर राज्यों की आवश्यकताओं को पूर्ति के लिए वर्तमान में रिज़र्व बैंक का केवल एक कार्यालय गुवाहाटी में है। समय के साथ, यद्यपि इन राज्यों की जनसंख्या और बैंकिंग आवश्यकताओं में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है, तथापि बैंक शाखाओं में इन क्षेत्रों की आवश्यकता के अनुसार बढ़ोतरी नहीं हुई है। इन राज्यों के आर्थिक और बुनियादी ढांचागत पिछड़ेपन और वित्तीय समावेशन और इन राज्यों में सामान्य आर्थिक विकास की जरूरत को देखते हुए, यह निर्णय लिया गया है कि -
कारोबारी प्रतिनिधि - छूट 86. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में की गयी घोषणा के अनुसार रिज़र्व बैंक ने अप्रैल 2010 में बैंकों को अपनी सुविधानुसार बैंकिंग प्रतिनिधि (बीसी) के तौर पर कॉमन सेवा केंद्रों के संचालकों सहित किसी व्यक्ति को नियुक्त करने और उपयुक्त समुचित सावधानी बरतने, जिसमें एजेंसी जोखिमों को न्यूनतम करने के लिए अतिरिक्त उचित बचाव उपाय शामिल हैं, के संबंध में दिशानिर्देश जारी किया। अगस्त 2010 में रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर ''कारोबारी प्रतिनिधि के रूप में 'लाभार्थ' कंपनियों की नियुक्ति'' शीर्षक से एक परिचर्चा आलेख प्रकाशित किया गया, जिस पर 20 अगस्त 2010 तक जनता से अभिमत मांगे गए। इसकी अच्छाइयों और खामियों पर विचार करते हुए तथा विभिन्न पक्षों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर बैंकों को यह अनुमति दी गयी कि वे पहले ही से अनुमति प्राप्त व्यक्तियों/संस्थाओं के अलावा सितम्बर 2010 में जारी दिशानिदेर्शों के अनुपालन की शर्त के तहत भारतीय कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत कंपनियों, एनबीएफसी के अलावा, को नियुक्त कर सकते हैं। शहरी सहकारी बैंक नए शहरी सहकारी बैंक के गठन के लिए लाइसेंस 87. अप्रैल 2010 में मौद्रिक नीति वक्तव्य में दिए गए संकेत के अनुसार बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 [सहकारी समितियों पर यथा लागू (एएसीएस)] की धारा 22 के तहत नए शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के गठन के लिए लाइसेंस दिए जाने के औचित्य के संबंध में अध्ययन के लिए सभी हितधारकों के प्रतिनिधियों के साथ अक्तूबर 2010 में एक विशेषज्ञ समिति (अध्यक्ष: श्री वाई.एच.मालेगम) गठित की गयी। अपेक्षा है कि समिति 6 महीनों के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर देगी। समिति यूसीबी क्षेत्र के लिए शीर्षस्थ संगठन की व्यवहायर्ता पर भी विचार करेगी। शहरी सहकारी बैंकों के परिचालन क्षेत्र में बढ़ोतरी 88. अच्छी तरह से प्रबंधित और वित्तीय दृष्टि से मजबूत शहरी सहकारी बैंकों के विकास को और अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए, यह प्रस्तावित है कि :
89. इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। शहरी सहकारी बैंकों के लिए शाखा लाइसेंसीकरण नीति में उदारता 90. शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के लिए शाखा लाइसेंसीकरण नीति को और अधिक उदार बनाने के लिए यह प्रस्ताव है कि: • सुव्यवस्थित और वित्तीय रूप से मजबूत शहरी सहकारी बैंकों को उनके वर्तमान/अनुमोदित परिचालन क्षेत्र के भीतर वर्तमान 10 प्रतिशत की उच्चतम सीमा से आगे शाखाएं खोलने और काउंटर विस्तार की अनुमति दी जाए बशर्ते उनके पास प्रत्येक शाखा के लिए पूंजी की पर्याप्त व्यवस्था हो। 91. इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। शहरी सहकारी बैंकों के लिए व्यवसाय प्रतिनिधि/व्यवसाय सुलभकर्ता मॉडल 92. शहरी सरकारी बैंकों की पहुंच का दायरा बढ़ाने और तदनुसार वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को और आगे बढ़ाने के लिए यह प्रस्ताव है कि:
शहरी सहकारी बैंकों द्वारा मंजूर किए जाने वाले जमानती उधारों और अग्रिमों की सीमा में वृद्धि 93. कुछ वर्षों से शहरी सहकारी बैंकों के कारोबार में हुई वृद्धि को देखते हुए, यह प्रस्ताव किया जाता है कि:
94. इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। शहरी सहकारी बैंकों का आवास ऋण में एक्सपोजर 95. वर्तमान में, शहरी सहकारी बैंक पिछले वर्ष की 31 मार्च की स्थिति के अनुसार अपनी जमाराशि संसाधनों के 15 प्रतिशत तक आवास, रियल इस्टेट और वाणिज्यिक रियल इस्टेट उधार दे सकते हैं। अब यह निर्णय लिया गया है कि शहरी सहकारी बैंकों के आवास, रियल इस्टेट और वाणिज्यिक रियल इस्टेट उधारों को उनकी जमाराशियों से संबद्ध करने के बजाय उनकी कुल आस्तियों से संबद्ध किया जाए। तदनुसार, यह प्रस्ताव किया जाता है कि :
उधार से शेयर को जोड़ने वाले वाले मानदंड से छूट 96. शहरी सहकारी बैंकों के कर्जदारों के लिए यह अनिवार्य है कि वे अपनी उधारियों के 2.5-5.0 प्रतिशत तक बैंक के शेयर खरीदें। शहरी सहकारी बैंकों में सुगम्यता लाने के लिए, जो पहले से ही पूंजी में कुछ और जोड़े बिना उधार देने के लिए अच्छी तरह पूंजीकृत हैं, यह प्रस्ताव किया जाता है कि :
शहरी सहकारी बैंकों के लिए इन्फिनेट सदस्यता, रिज़र्व बैंक के साथ चालू/एसजीएल खाता और आरटीजीएस सदस्यता की सुविधा 97. शहरी सहकारी बैंक अपने ग्राहकों को बेहतर सेवा देने में सक्षम हों, इस हेतु यह प्रस्ताव है कि:
ग्राहक सेवा 98. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में की गयी घोषणा के अनुक्रम में, पेंशनभोगियों सहित खुदरा और छोटे ग्राहकों की दी जानेवाली बैंकिंग सेवा की समीक्षा करने के लिए ग्राहक सेवा पर एक समिति (अध्यक्ष: श्री एम.दामोदरन) गठित की गयी। यह समिति बैंकों में प्रचलित शिकायत निपटान प्रणाली- उसकी संरचना और प्रभावोत्पादकता की जांच करेगी और शिकायतों के त्वरित निपटान के लिए उपाय सुझाएगी। यह समिति संबंधित अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं की भी जांच करेगी। समिति की रिपोर्ट के परिणाम के आधार पर ऑन-साइट निरीक्षण करने की आवश्यकता और ग्राहक सेवा के आधार पर बैंकों की रेटिंग करने की जांच की जाएगी। समिति द्वारा जनवरी 2011 के अंत तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने की संभावना है। 99. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में दर्शाए गए अनुसार बैंकों को मई 2010 में सूचित किया गया कि वे प्रत्येक छ: महीने में एक बार बोर्ड की बैठक में ग्राहक सेवा के लिए विशेष रूप से समय दें और उसमें उसकी समीक्षा करें। V. वाणिज्य बैंकों के संबंध में विनियामक और पर्यवेक्षी उपाय आघात सहने की बैंकिंग क्षेत्र की क्षमता को मज़बूत बनाना 100. बैंक पर्यवेक्षण संबंधी बासल समिति (बीसीबीएस) ने वित्तीय संकट के प्रतिक्रियास्वरूप अक्तूबर 2010 में जी-20 को अपनी रिपोर्ट पेश की। उस रिपोर्ट में बैंकों और वैश्विक बैंकिंग प्रणाली की आघात सहने की क्षमता को मज़बूत बनाने के लिए बैंक पर्यवेक्षण संबंधी बासल समिति (बीसीबीएस) और उसके शासी निकाय, जो कि केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों और पर्यवेक्षण के अध्यक्षों का समूह (जीएचओएस) है, द्वारा उठाए गए कदम शामिल किए गए थे। बैंक-विशेष और व्यापक प्रणालीगत जोखिमों के निवारण से संबंधित नए वैश्विक मानकों को बासल-।।। का नाम दिया गया है। बासल‑।।। में अन्य बातों के साथ-साथ विनियामक पूंजी, पूंजी संरक्षण बफर, प्रति-चक्रीय बफर, प्रतिपार्टी क्रेडिट जोखिम का नियंत्रण, लीवरेज अनुपात और वैश्विक चलनिधि मानकों की परिभाषा का संशोधन शामिल हैं। 101. उल्लेखनीय है कि बैंक पर्यवेक्षण संबंधी बासल समिति (बीसीबीएस) ने दिसंबर 2009 में जनसाधारण की राय लेने के लिए दो परामर्शी दस्तावेज जारी किए थे। उसने न्यूनतम पूंजी अपेक्षा का व्यापक मात्रात्मक प्रभाव संबंधी अध्ययन (क्यूआइएस) और टॉप-डाउन कैलिब्रेशन भी किए थे। जुलाई और सितंबर 2010 में संपन्न अपनी बैठकों में जीएचओएस ने प्राप्त टिप्पणियों, क्यूआइएस और टॉप-डाउन कैलिब्रेशन के आधार पर पूंजी और चलनिधि सुधार पैकेज के समग्र ढांचे को स्वीकार कर लिया है। दिसंबर 2010 के अंत तक पूरी तरह से तैयार बासल-।।। नियमावली प्रकाशित की जाएगी। 102. रिज़र्व बैंक भारत स्थित बैंकों के लिए उपयुक्त सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं को अपनाता रहा है। इसलिए बैंकों को सूचित किया जाता है कि :
बासल-।। ढांचे के अंतर्गत उन्नत पद्धतियों का कार्यान्वयन 103. रिज़र्व बैंक ने जुलाई 2009 में भारत में बासल-।। ढांचे के अंतर्गत विनियामक पूंजी की अभिकलन संबंधी उन्नत पद्धतियों को अपनाने की समय-सीमा घोषित कर दी थी। परिचालनगत जोखिम के संबंध में मानकीकृत पद्धति (टीएसए)/वैकल्पिक मानकीकृत पद्धति (एएसए) संबंधी दिशा-निर्देश मार्च 2010 में जारी किए गए थे और बाज़ार जोखिम के संबंध में आंतरिक मॉडल पद्धति (आइएमए) संबंधी दिशा-निर्देश अप्रैल 2010 में जारी किए गए थे। परिचालनगत जोखिम से संबंधित उन्नत मापन पद्धति (एएमए) संबंधी दिशा-निर्देशों को दिसंबर 2010 तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा। क्रेडिट जोखिम के संबंध में आंतरिक रेटिंग-आधारित पद्धति संबंधी दिशा-निर्देश तैयार किए गए हैं। वाणिज्य बैंकों द्वारा आवास ऋण आवास ऋणों में ऋण-मूल्य अनुपात 104. वर्तमान में बैंक के आवास ऋण दिए जाने से संबंधित ऋण-मूल्य (एलटीवी) अनुपात के संबंध में कोई विनियामक उच्चतम सीमा अस्तित्व में नहीं है। अत्यधिक सुविधाओं (लीवरेजिंग) को रोकने की दृष्टि से यह प्रस्ताव है कि :
रिहायशी आवास ऋणों पर जोखिम-भार 105. वर्तमान में ₹ 30 लाख तक के रिहायशी आवास ऋणों, जिनका एलटीवी अनुपात 75 प्रतिशत है, के लिए जोखिम भार 50 प्रतिशत है, जबकि उससे अधिक राशि के ऋणों के लिए यह अनुपात 75 प्रतिशत है। यदि एलटीवी अनुपात 75 प्रतिशत से अधिक है तो सभी आवास ऋणों के लिए जोखिम भार 100 प्रतिशत होगा, चाहे ऋण की राशि कुछ भी हो। तदनुसार यह प्रस्ताव है कि : ₹ 75 लाख और उससे अधिक राशि वाले रिहायशी आवास ऋणों के लिए जोखिम भार को बढ़ा कर 125 प्रतिशत कर दिया जाए, चाहे एलटीवी अनुपात कुछ भी हो। आवास ऋणों के लिए लुभावनी (टीज़र) दरें 106. यह देखा गया है कि कुछ बैंक 'लुभावनी (टीज़र) दर' पर आवास ऋण मंज़ूर करने की प्रथा अपना रहे हैं, जिसमें पहले के कुछ वर्षों के लिए अपेक्षाकृत कम ब्याज दर की पेशकश की जाती है, जबकि बाद में उन्हें काफी बढ़ा दिया जाता है। यह प्रथा चिंता में डालती है, क्योंकि कुछ उधारकर्ताओं के लिए सामान्य ब्याज दर, जोकि प्रारंभिक वर्षों में लागू दर से काफी अधिक हो, पर ऋण की चुकौती करना काफी कठिन महसूस होगा। यह देखा गया है कि कई बैंक प्रारंभिक ऋण मूल्यांकन करते समय इस बात पर ध्यान नहीं देते हैं कि उधारकर्ता सामान्य उधार दरों पर चुकौती करने की क्षमता रखता है या नहीं। ऐसे ऋणों से जुड़े उच्चतर जोखिम को ध्यान में रखते हुए यह प्रस्ताव है कि :
गैर-वित्तीय कंपनियों में बैंकों का निवेश 107. मौजूदा विवेकपूर्ण ढांचे के अंतर्गत बैंकों को वित्तीय सेवादाता कंपनियों को छोड़कर अन्य कंपनियों में निवेश करने के लिए रिज़र्व बैंक की पूर्व-अनुमति लेना ज़रूरी नहीं है। बैंक अपनी प्रत्यक्ष या परोक्ष धारिताओं के माध्यम से ऐसी संस्थाओं पर नियंत्रण करने या उन पर महत्वपूर्ण प्रभाव उत्पन्न करने में समर्थ हो सकते हैं। इस प्रकार, बैंक ऐसी गतिविधियां अपना सकते हैं, जोकि बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 6 की उप-धारा (1) के अंतर्गत अनुमत नहीं हैं या भारत में बैंकिंग को फैलाने के अनुकूल न हों या जनता के हित की दृष्टि से अन्यथा उपयोगी या आवश्यक न हों। अत: यह प्रस्ताव किया गया है कि :
108. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। वित्तीय-समूहों (फ़ाइनैंशियल कॉन्ग्लॉमरेट्स) से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड 109. रिज़र्व बैंक ने भारत स्थित वित्तीय समूहों (एफसी) के पर्यवेक्षण पर एक आंतरिक दल का गठन किया है। उस आंतरिक दल ने वित्तीय समूहों के पर्यवेक्षण को सुदृढ़ बनाने के लिए कई सिफारिशें की हैं, जिनमें कुछ विनियामक मानदंडों में सुधार भी शामिल हैं। अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य से यह पता चलता है कि रिज़र्व बैंक विनियामक व पर्यवेक्षी परिप्रेक्ष्य में उक्त दल की सिफारिशों की जांच कर रहा था। शुरुआती तौर पर यह निर्णय लिया गया है कि : (i) वित्तीय समूहों से संबंधित पूंजी पर्याप्तता; और (ii) समूह के अंतर्गत लेनदेनों और वित्तीय समूहों में एक्सपोज़रों के संबंध में दल की सिफारिशें लागू की जाएं। वित्तीय समूहों के लिए पूंजी पर्याप्तता 110. बासल II नियामक-ढांचे के अनुसार सहायक इकाइयों की इक्विटी में निवेशों और बैंकिंग, प्रतिभूति और अन्य वित्तीय संस्थाओं में महत्वपूर्ण अल्पांश निवेशों, जहां इन संस्थाओं में अन्य विनियामक पूंजी निवेश के साथ-साथ नियंत्रण लागू नहीं है, को बैंकिंग समूह की पूंजी से अलग किया जाना अपेक्षित है, यदि ये संस्थाएं समेकित नहीं हैं। समूह ने सिफारिश की है कि उल्लेखनीय प्रभाव/निवेश की सीमा को मौजूदा 30 प्रतिशत के स्थान पर घटाकर 20 प्रतिशत तय किया जाए। तदनुसार, प्रस्ताव है कि:
111. पूर्व में बताये अनुसार बासल III नियमों को अंतिम रूप दिए जाने के बाद पूंजी पर्याप्ता अपेक्षाओं में फिर से सामंजस्य बिठाया जाएगा। अंत: समूह कारोबार और वित्तीय समूहों में एक्सपोज़र 112. बैंक और समूह की अन्य संस्थाओं की अन्तर संबंधता पर रोक लगाये जाने हेतु यह प्रस्ताव किया जाता है कि -
113. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। बैंकिंग संगठनों में कॉरपोरेट गवर्नेंस बढ़ाये जाने के सिद्धांत 114. बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल समिति (बीसीबीएस) द्वारा अक्तूबर 2010 में बैंकिंग संगठनों में कारपोरेट गवर्नेंस बढ़ाये जाने के सिद्धांत जारी किये गये हैं। ये सिद्धांत बैंकों में कारपोरेट गवर्नेंस की ऐसी मूलभूत कमियों का समाधान करते हैं जो वित्तीय संकट के दौरान सामने आयीं। भारत में बैंकिंग संगठनों की विभिन्न श्रेणियों को ध्यान में रखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों में कारपोरेट गवर्नेंस मानकों में सुधार हेतु यथोचित कदम उठाए जा रहे हैं। हाल ही में कुछ समय पूर्व गांगुली समिति (2002) की सिफारिशों के अनुसार बैंकों के निदेशक मंडल में निदेशकों के लिए 'योग्य एवं उचित' मानदंड का क्रियान्वयन और निजी क्षेत्र के बैंकों में अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के पद का विभाजन भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इस दिशा में उठाये गये उल्लेखनीय कदम हैं, जिनसे कारपोरेट गवर्नेंस के स्तर में सुधार हुआ है। तथापि, बीसीबीएस द्वारा जारी सिद्धांतों को देखते हुए बैंकों में कारपोरेट गवर्नेंस के मामलों की समीक्षा किए जाने जरूरत है। तदनुसार, यह प्रस्ताव है कि :
115. इस बारे में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। अनकदीकृत (इल्लिक्विड) पोजीशन के समायोजन और संव्यवहार के मूल्यांकन पर कार्यदल
116. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में यह संकेत दिया गया था कि एक कार्यदल का गठन किया जाएगा जो विभिन्न जोखिमों/लागतों के मूल्यांकन समायोजन और अनकदीकृत पोजीशनों के संव्यवहार के लिए उचित संरचना के लिए सिफारिश करेगा। तदनुसार जून 2010 में एक कार्यदल (समन्वयकर्ता: श्री पी.आर. रविमोहन) गठित किया गया जिसके सदस्य रिज़र्व बैंक, आइबीए, एफआइएमएमडीए, भारतीय विदेशी मुद्रा डीलर संघ (एफईडीएआइ) और चुनिंदा बैंकों से लिए गए। इस कार्यदल ने अपनी रिपोर्ट सितम्बर 2010 में प्रस्तुत की। इस दल ने बहुत से मुद्दों पर अपनी सिफारिशें की हैं, जिनमें गैर-नकदीकृत पोजीशन के अभिनिर्धारण, अद्रव्यता के लिए समायोजन और अप्राप्त क्रेडिट-अर्जन के लिए मूल्यांकन समायोजन और बैंकों के डेरिवेटिव पोर्टफोलियो की समापन लागत शामिल हैं। इस दल की सिफारिशों का परीक्षण किया जा रहा है।
भारतीय लेखांकन मानकों और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानकों की समाभिरूपता 117. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में बताए गए अनुसार एक कार्यदल (अध्यक्ष: श्री पी.आर. रविमोहन) का गठन किया गया था ताकि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानकों (आइएफआरएस) के साथ भारतीय लेखांकन मानकों की समाभिरूपता के संदर्भ में कार्यान्वयन मुद्दों और परिचालनात्मक निर्देशों का निरूपण करने में सुविधा हो सके और बैंकिंग तथा एनबीएफसी और शहरी सहकारी बैंकों को इसके कार्यान्वयन की रूपरेखा का अनुपालन करने के लिए तैयार किया जाए। इस रूपरेखा के अनुसार सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक पहली अप्रैल 2013 से अपनी ओपनिंग बैलेन्स शीट की आइएफआरएस में संपरिवर्तित लेखांकन मानकों के अनुसरण में तैयार करेंगे। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और शहरी सहकारी बैंकों के संदर्भ में क्रमानुसार व्यवस्था अपनाई गयी है। भारत में बैंक होल्डिंग कंपनी/वित्तीय होल्डिंग कंपनी की शुरुआत 118. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में की गयी घोषणा के अनुसरण में एक कार्यदल (अध्यक्ष: श्रीमती श्यामला गोपीनाथ) का गठन किया गया है ताकि अपेक्षित वैधानिक संशोधनों/संरचना के साथ-साथ होल्डिंग कंपनी संरचना की शुरुआत करने का परीक्षण किया जा सके। इस दल का कार्य चल रहा है। प्रतिपूर्ति प्रथाएं 119. वैश्विक समुदाय द्वारा उठाये गए कदमों और जी-20 राष्ट्रों द्वारा किए गए प्रयासों के अनुक्रम में निजी क्षेत्र के बैंकों और विदेशी बैंकों के संदर्भ में सुदृढ़ क्षतिपूर्ति नीति के लिए दिशानिर्देशों का प्रारूप तैयार किया गया और लोक-अभिमत प्राप्त करने के लिए जुलाई 2010 में रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर दिया गया। ये दिशानिर्देश व्यापक रूप से सुदृढ़ क्षतिपूर्ति संव्यवहार से संबंधित एफएसपी सिद्धांतों पर आधारित हैं। इन दिशानिर्देशों में क्षतिपूर्ति को विवेकपूर्ण जोखिम-सहनीयता के साथ संरूपित करने और बैंकों के पूर्णकालिक निदेशकों/मुख्य कार्यपालक अधिकारियों, जोखिम उठाने वालों के साथ-साथ लेखा परीक्षण, अनुपालन और जोखिम प्रबंधन कार्यों में लगे स्टाफ के बारे में प्रकटीकरण को शामिल किया गया है। विभिन्न बैंकों संगठनों/व्यक्तियों से प्राप्त अभिमतों का परीक्षण किया जा रहा है। तदनुसार प्रस्तावित है:
नए बैंकों को लाइसेंस देना 120. केन्द्रीय बजट 2010-11 में माननीय वित्त मंत्री ने उल्लेख किया था कि रिज़र्व बैंक निजी क्षेत्र में कुछ और बैंक लाइसेंस देने पर विचार करेगा। परिणामस्वरूप, अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में यह उल्लेख किया गया था कि अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं, भारतीय अनुभव तथा वर्तमान स्वामित्व तथा अधिशासन (ओ एण्ड जी) दिशानिर्देशों को शामिल करते हुए एक चर्चा पत्र तैयार किया जाएगा जिसे टिप्पणियां तथा फीडबैक प्राप्त करने के लिए जुलाई 2010 के अंत तक रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखा जाएगा। इसके बाद दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दिया जाएगा। तदनुसार, अगस्त 2010 में चर्चा पत्र को सार्वजनिक डोमेन में रखा गया। विभिन्न पार्टियों से प्राप्त टिप्पणियों तथा सुझावों तथा अक्तूबर 2010 में प्रमुख हिताधिकारियों के साथ हुई चर्चा के आधार पर, यह प्रस्ताव है कि: आम राय जानने के लिए जनवरी 2011 के अंत तक ड्राफ्ट दिशानिर्देशों को सार्वजनिक डोमेन में रखा जाए भारत में विदेशी बैंकों की उपस्थिति 121. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में यह उल्लेख किया गया था कि संकट से सीख लेते हुए सितंबर 2010 तक शाखा या पूर्ण स्वामित्व वाली संस्था (डब्ल्यूओएस) के माध्यम से विदेशी बैंकों की उपस्थिति के बारे में एक चर्चा पत्र तैयार किया जाएगा। तदनुसार, सरकार के साथ परामर्श से भारत में विदेशी बैंकों की उपस्थिति के स्वरूप के बारे में एक चर्चा पत्र को अंतिम रूप दिया जा रहा है। बैंकों में क्षमता निर्माण 122. आगामी वर्षों में विभिन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए बैंकों को तैयार रहना चाहिए। विशेषकर, सभी बैंकों द्वारा बासल III कार्यान्वयन, बड़े और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय बैंकों द्वारा बासल II के अधीन उन्नत दृष्टिकोणों को अपनाने तथा अप्रैल, 2013 की स्थिति के अनुसार आईएफआरएस के साथ अभिसरण के कारण बैंकों को अपनी प्रौद्योगिकी का तथा जोखिम प्रबंधन क्षमताओं का उन्नयन करना होगा। बैंकों को इसके लिए आवश्यक कौशलों की समीक्षा करनी चाहिए तथा गंभीरता से और समयबद्ध तरीके से क्षमता निर्माण करना चाहिए। रिज़र्व बैंक भी आगामी वर्षों में बैंकिंग क्षेत्र के लिए और अधिक क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित करके इस संबंध में अपने प्रयासों में तेजी लाएगा। सूचना प्रौद्योगिकी तथा संबंधित मुद्दे: दिशानिर्देशों में विस्तार 123. अप्रैल 2010 की मौद्रिक नीति में यह प्रस्ताव किया गया कि सूचना सुरक्षा, इलैक्ट्रानिक बैंकिंग, प्रौद्योगिकी जोखिम प्रबंधन, तथा साइबर धोखाधड़ी को रोकने के लिए एक कार्य दल गठित किया जाए। तदनुसार, इलैक्ट्रानिक बैंकिंग, नियंत्रणों, अधिशासन तथा प्रौद्योगिकी जोखिम प्रबंधन मानकों (अध्यक्ष: श्री जी. गोपालकृष्णन) के संबंध में एक कार्य दल गठित किया गया था। दल द्वारा प्रौद्योगिकी, अधिशासन, परिचालनात्मक मुद्दों विधिक तथा शैक्षिक पहलुओं के संबंध में गठित उप-दलों की सिफारिशों पर कार्य दल में चर्चा की गयी और अब उन्हें औपचारिक रूप दिया जा रहा है। आशा है कि कार्य दल नवंबर 2010 के अंत तक अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दे देगा। VI. संस्थागत गतिविधियां भुगतान और निपटान प्रणालियां भुगतान और निपटान प्रणालियों पर समिति की सदस्यता 124. भारत अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआइएस) के तत्वावधान में गठित भुगतान और निपटान प्रणाली समिति (सीपीएसएस) का एक सदस्य बना। सीपीएसएस के चार कार्यकारी समूहों पर रिज़र्व बैंक का प्रतिनिधित्व है। ये है i) मानकों की सामान्य समीक्षा; ii) रेपो बाजार की बुनियादी संरचना; iii) लेनदेन के बाद की (लेनदेनोत्तर) सेवाएं; और iv) खुदरा भुगतान प्रणालियां। चेक के फार्मों पर सुरक्षा लक्षणों का मानकीकरण 125. जैसा कि अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में उल्लेख किया गया था, चेकों पर सुरक्षा लक्षणों की बेंचमार्क विशिष्टियों तथा चेक फार्मों पर स्थान निर्धारण के साथ एक चेक ट्रंकेशन प्रणाली (सीटीएस) 2010 मानक निर्धारित किया गया है। सीटीएस-2010 में अन्य बातों के साथ-साथ चेक फार्मों पर फेरबदल/सुधार की पाबंदी संबंधी एक लिखित आदेश (प्रिस्क्रिप्शन) शामिल किया गया है। इस बीच यह स्पष्ट किया गया है कि उक्त आदेश केवल इमेज आधारित चेक ट्रंकेशन प्रणाली के अधीन समाशोधित चेकों पर लागू होगी और यह पहली दिसंबर 2010 से प्रभावी होगी। उक्त पाबंदी (आदेश) चुंबकीय स्याही चिह्न (माइकर) समाशोधन, के तहत समाशोधित चेकों गैर-माइकर समाशोधित ओटीसी संग्रहण (नकद भुगतान के लिये) या समाशोधन गृह के बाहर चेकों की सीधी वसूली पर लागू नहीं होगी। 126. आईबीए और भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआइ) को नए चेक मानकों को लागू करने का दायित्व संयुक्त रूप से सौंपा गया है। 127. जैसा कि अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में उल्लेख किया गया था, एनपीसीआइ को देश में खुदरा भुगतान व्यवस्था के संदर्भ में भावी नवोन्मेषों पर विचार करने के लिए अपनी निश्चित भूमिका की जानकारी है। एनपीसीआइ ने अंतर-बैंक मोबाइल (चल) भुगतानों के निपटान के लिए एक प्रायोगिक परियोजना शुरू कर दी है। साथ ही, चेन्नै में ग्रिड आधारित चेक ट्रंकेशन प्रणाली (सीटीएस) का कार्य मार्च 2011 के अंत तक शुरू हो जाने की आशा है। राष्ट्रीय इलेक्ट्रानिक निधि अंतरण प्रणाली का कार्यनिष्पादन 128. जुलाई 2010 के अंत में, 98 बैंकों की लगभग 70,000 शाखाओं ने राष्ट्रीय इलेक्ट्रानिक निधि अंतरण (एनईएफटी) प्रणाली में भाग लिया था और प्रोसेस किये गये लेनदेनों की मात्रा जुलाई 2010 में बढ़कर 9.5 मिलियन हो गयी। बैंकों से स्वचालित डाटा प्रवाह 129. जैसा कि अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में उल्लेख किया गया था, वाणिज्य बैंकों की कोर बैंकिंग सोल्यूशन (सीबीएस) अथवा अन्य आइटी प्रणालियों से रिज़र्व बैंक को स्वचालित डेटा फ्लो (एक सीधी अंतरण प्रक्रिया) पर एक दृष्टिकोण पेपर तैयार करने के लिए बैंकों, रिज़र्व बैंक, बैंकिंग प्रौद्योगिकी में विकास और अनुसंधान संस्थान (आइडीआरबीटी) और आइबीए के विशेषज्ञों को शामिल करते हुए एक कोर समूह गठित किया गया है। उक्त कोर समूह ने बैंकों से रिज़र्व बैंक को भेजी जानेवाली स्वचालित डेटा प्रवाह की जानकारी के संबंध में एक दृष्टिकोण पेपर तैयार किया है। उक्त पेपर में, अन्य बातों के साथ-साथ, बैंकों द्वारा उनकी टेक्नॉलॉजी और प्रोसेस दायरे के आधार पर उन्हें एक समूह में वर्गीकृत किये जाने के लिए अपनायी जानेवाली पद्धति की चर्चा की गयी है। इसके आधार पर, विवरणियों का संपूर्ण ऑटोमेशन हासिल करने की अनुमानित समायावधि भी प्रस्तुत की गयी है। इस दृष्टिकोण पेपर की जांच की जा रही है और इसे बैंकों के बीच उनके स्तर पर आवश्यक कार्रवाई के लिए परिचालित किया जाएगा। 130. बैंकों को सुझाये गए दृष्टिकोण को दो चरणों में लागू किया जाएगा। प्रथम चरण में, बैंकों को अपने लेनदेन सर्वर से अपने प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआइएस) सर्वर को असीमित रूप में डेटा भेजना होगा और बिना किसी मानवी हस्तक्षेप के एमआइएस सर्वर से स्वचालित रूप से सभी विवरणियां तैयार करनी होंगी। दूसरे चरण में, रिज़र्व बैंक बैंकों के एमआइएस सर्वर से एक सीधी प्रक्रिया (स्ट्रेट थ्रू) में डाटा प्रवाह के लिए एक पुल मेकॉनिज़म लागू करेगा। समूची परियोजना के लिए समायावधि का निर्धारण बैंकों के परामर्श से किया जाएगा। तत्काल सकल भुगतान प्रणाली 131. भारतीय तत्काल सकल भुगतान प्रणाली (आरटीजीएस) ने मार्च 2004 से उसके प्रारंभ से ही गति पकड़ कर लेनदेन की मात्रा और मूल्य दोनों में जबरदस्त वृद्धि दर्शायी। इलैक्ट्रानिक भुगतान लेनदेनों की संख्या में वृद्धि होने के कारण बडे़ मूल्य के भुगतान के आदेशों को आगे बढ़ाने और निपटाने के लिए प्राथमिक रूप से भारतीय तत्काल सकल भुगतान प्रणाली की स्थिति तय करना समीचीन हो गया है। साथ ही, रिज़र्व बैंक ने एक दिन में 11 निपटान चक्र के साथ तुरंत तत्काल भुगतान अंतिमता के साथ राष्ट्रीय इलैक्ट्रॉनिक निधि अंतरण के रूप में एक सुदृढ़ फुटकर इलैक्ट्रॉनिक निधि अंतरण प्रणाली स्थापित की है। तदनुसार, प्रणाली सहभागियों के साथ विचार-विमर्श करके यह निर्णय लिया गया है कि:
132. ग्राहक अपने लेनदेन राष्ट्रीय इलैक्ट्रॉनिक निधि अंतरण के माध्यम से करें इसलिए प्रोत्साहन के रूप में ग्राहकों के लिए तत्काल सकल भुगतान प्रणाली लेनदेनों की तुलना में निम्नतर प्रभार अदा करने पड़ें, इस दृष्टि से ₹ 1 लाख से ₹ 2 लाख तक का एक नया मूल्य बैंड तैयार किया जाएगा। 133. इस मामले में विस्तृत मार्गदर्शी सिद्धान्त अलग से जारी किये जाएंगे। 134. जैसा कि अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में बताया गया है, रिज़र्व बैंक और अन्य चयनित बैंक जैसे भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, आइसीआइसीआइ बैंक और एचडीएफसी बैंक के प्रतिनिधि के प्रतिनिधि शामिल करते हुए एक कार्यकारी दल गठित किया गया था जो तत्काल सकल भुगतान प्रणाली की अगली पीढ़ी के कार्यान्वयन के लिए एक दृष्टिकोण तैयार करें। इस दल ने अपनी रिपोर्ट अगस्त 2010 को प्रस्तुत की, जो अभी स्वीकार की जानी है। तत्काल सकल भुगतान प्रणाली की अगली पीढ़ी पर काम अभी चल रहा है जिसे पूरा होने के लिए 2 वर्ष का समय लग सकता है। चेक ट्रंकेशन प्रणाली 135. चेक ट्रंकेशन प्रणाली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र नई दिल्ली में फरवरी 2008 में सफलतापूर्वक चलाया गया। चेक ट्रंकेशन प्रणाली को पूरी तरह से अपना लिए जाने के बाद अलग से चल रही माइकर समाशोधन को जुलाई 2009 से बंद कर दिया गया। चेक ट्रंकेशन प्रणाली से प्रतिदिन औसतन 0.5 मिलियन से अधिक लिखतें गुजरती हैं। चेक ट्रंकेशन प्रणाली का अगला पड़ाव मार्च 2011 में चेन्नै में नियोजित है। इस परियोजना को एनपीसीआइ द्वारा पूरा किया जा रहा है। इस कार्यक्रम की प्रक्रिया ग्रिड आधारित पद्धति होगी जिससे तमिलनाडु के दूसरे शहरों और निकटवर्ती केरल तथा कर्नाटक राज्यों के समाशोधन गृहों को भी शामिल किया जा सकेगा। साथ ही, नई दिल्ली और चेन्नै दोनों की चेक ट्रंकेशन प्रणाली के परिचालन के लिए आपदा से निपटने (डीआर) की एकसमान व्यवस्था स्थापित करने के प्रयास जारी हैं। मुद्रा प्रबंधन 136. ऐसे सभी बैंकों से, जिनकी अपनी सभी शाखाओं में प्रतिदिन औसतन ₹ 1 करोड़ या अधिक की नकद प्राप्ति होती है से कहा गया था कि वे मार्च 2010 तक नोट सोर्टिंग मशीनें लगवा लें। अब तक 1,108 ऐसी शाखाओं (करेंसी चेस्ट शाखाओं को छोड़कर) की पहचान की जा चुकी है, जिनकी प्रतिदिन औसतन नकद प्राप्तियां ₹ 1 करोड़ या अधिक है, बैंकों ने बताया है कि 669 शाखाओं में नोट सोर्टिंग मशीनें लगी दी गयी हैं और काम में लायी जा रही हैं। शेष शाखाओं के लिए बैंकों ने नजदीकी करेंसी चेस्ट शाखा/ मुद्रा प्रबंधन शाखा में व्यवस्था की है। अक्तूबर 2009 के द्वितीय तिमाही सर्वेक्षण में यह भी संकेत किया गया था कि बैंक अपनी ऐसी समस्त शाखाओं में, जिनमें प्रतिदिन औसतन नकद प्राप्तियॉं ₹ 50 लाख तथा ₹ 1 करोड़ के बीच हैं, मार्च 2011 तक नोट सोर्टिंग मशीनें लगा लें। बैंकों से यह अपेक्षित है कि 31 मार्च 2011 तक इस स्थिति पर पहुंचने के लिए अपने प्रयासों में तेजी लाएं। 137. जैसा कि अक्तूबर 2009 के द्वितीय तिमाही सर्वेक्षण में यह बताया गया था कि बैंकों को सलाह दी गयी थी कि वे मुद्रा प्रबंधन का दायित्व कम से कम महाप्रबंधक स्तर के ही नोडल अधिकारी को दें, तथा वह रिज़र्व बैंक द्वारा करेंसी चेस्टों को दिए गए दायित्वों के लिए उत्तरदायी होगा। इस बीच सभी वाणिज्यिक बैंकों ने नोडल अधिकरी नियुक्त कर लिये हैं। मुम्बई |