मौद्रिक नीति 2013-14 की दूसरी तिमाही समीक्षा - आरबीआई - Reserve Bank of India
मौद्रिक नीति 2013-14 की दूसरी तिमाही समीक्षा
डॉ. रघुराम जी. राजन भाग ए. मौद्रिक नीति मौद्रिक और चलनिधि उपाय उभरती समष्टि आर्थिक स्थिति के आकलन के पश्चात रिज़र्व बैंक ने यह निर्णय लिया है कि :
आकलन 2. सितंबर में हुई मध्य-तिमाही समीक्षा के बाद से अमेरिका में राजकोषीय चिंताओं में कुछ कमी आने और यूरो क्षेत्र व यूके में गतिविधियों के अग्रणी संकेतों के सुधरने से वैश्विक विकास का परिदृश्य कुछ बेहतर हुआ है। 3. उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में फेडरल रिज़र्व के बॉण्ड क्रयों में क्रमिक कमी में विलंब की संभावना ने वित्तीय बाज़ारों को कुछ शांत किया है और पूँजी-प्रवाह फिर शुरू हो गया है। तथापि, घरेलू अड़चनों से विकास को होने वाली बाधाओं के कारण विकास के नीचे जाने और बाह्य क्षेत्र में यकायक होने वाले परिवर्तनों से प्रभावित होने की संभावना बनी हुई है। 4. भारत में, उपभोग व निवेश माँग में लगातार गिरावट के चलते टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं में कमी और पूँजीगत वस्तुओं में धीमे विकास के कारण औद्योगिक गतिविधि कमज़ोर पड़ गई है। निर्यात वृद्धि में मज़बूती और कुछ क्षेत्रों में उत्थान के संकेतों के साथ कृषि में प्रत्याशित उछाल से, पहली छमाही की तुलना में 2013-14 की दूसरी छमाही में विकास को आगे बढ़ने में सहायता मिल सकती है जिससे वास्तविक जीडीपी वृद्धि पहली तिमाही के 4.4 प्रतिशत से बढ़कर समग्र तौर पर वर्ष के लिए 5.0 प्रतिशत के केंद्रीय अनुमान तक जा सकती है (चार्ट 1)। रुके हुए बड़े प्रोजेक्टों की फिर से शुरुआत और प्रक्रिया में अटके पड़े परियोजनाओं को निवेश संबंधी कैबिनट कमिटी द्वारा क्लीयर किए जाने से वर्ष के अंत की ओर निवेश व समग्र गतिविधि को उछाल मिलेगा। 5. इस बीच, कई बड़ी इकाइयों द्वारा भुगतान (पेमेंट) रोक रखे जाने के कारण, छोटे व मझोले उद्यमों पर चलनिधि का दबाव बन रहा है। इनमें से कई वित्तीय विपत्ती का सामना कर रही हैं। सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के भुगतान में तेजी से तथा छोटे व मझोले उद्यमों की ओर क्रेडिट को मोड़ने से इसका कुछ समाधान निकल सकता है। 6. सितंबर में थोकमूल्य सूचकांक (डबल्यूपीआई) द्वारा मापी गई मुद्रास्फीति लगातार चौथे महीने बढ़ी। विकास में कमी के चलते जितने अवस्फीतीय परिणाम संभावित थे, उनको विनिर्मित उत्पादों (मैन्यूफैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स) पर रुपए के मूल्य-ह्रास के साथ खाद्य व ईंधन मुद्रास्फीति के चलते होने वाली मुद्रास्फीति ने, काफी हद तक, निष्क्रिय कर दिया। यद्यपि ख़रीफ की फसल के आने और नियमित मौसमी कमी के साथ खाद्य कीमतों का दबाव कम हो सकता है, परंतु वर्ष के शेष हिस्से के अधिकांश समय में समग्र डबल्यूपीआई मुद्रास्फीति के वर्तमान स्तर से अधिक पर बने रहने की प्रत्याशा (चार्ट 2), को देखते हुए उचित नीतिगत कार्रवाई की आवश्यकता है। 7. खुदरा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा मापी गई मुद्रास्फीति भी सभी घटकों - खाद्य और सर्विसेज समेत खाद्येतर घटकों - में तेजी से बढ़ गई है जिससे मुद्रास्फीतीय प्रत्याशाएं ऊँचाई पर बनी हुई हैं। आने वाले महीनों में, यदि नीतिगत कार्रवाई नहीं होती है तो खाद्य मुद्रास्फीति में प्रत्याशित कमी के बावजूद, खुदरा मुद्रास्फीति 9 प्रतिशत के आस-पास या इससे ज्यादा (चार्ट 3) भी हो सकती है। 8. जमाराशि में वृद्धि के अनुरूप ऋण में तेज़ वृद्धि और त्योहारों से जुड़ी मुद्रा की मांग से पैदा होने वाली प्रणालीगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए चलनिधि प्रबंधन का स्वरूप निर्धारित किया गया है। एक-दिवसीय एलएएफ रिपो के ज़रिये बैंक-वार एनडीटीएल के 0.5 प्रतिशत तक चलनिधि उपलब्ध कराई गई है। इसके अलावा, पात्र निर्यात ऋण बकाया का 50 प्रतिशत तक निर्यात ऋण पुनर्वित्त की राशि प्रणाली-स्तर के लगभग 0.5 प्रतिशत एनडीटीएल के बराबर होती है। बाज़ार के सहभागियों को और अधिक प्राथमिक चलनिधि उपलब्ध कराने और आरक्षित निधि (रिज़र्व) की अपेक्षाओं के प्रबंधन में अधिक लचीलेपन के लिए 7-दिवसीय और 14-दिवसीय अवधि की सावधि (टर्म) रिपो की शुरूआत की गई है जिसके अंतर्गत एनडीटीएल के 0.25 प्रतिशत तक के बराबर चलनिधि उपलब्ध होगी। चलनिधि को सुलभ करने हेतु रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए उपायों के परिणामस्वरूप एमएसएफ से औसत आहरण में काफी कमी आई और यह मध्य-सितंबर के ₹1.4 ट्रिलियन से मध्य-अक्तूबर में ₹0.4 ट्रिलियन पर आ गया तथा मुद्रा बाज़ार दरें 125 आधार अंक नीचे आ गईं। तथापि, आगे चलकर चलनिधि के मांग (डिमांड) और आपूर्ति (सप्लाइ) में अंतराल को कम करने के लिए बैंकों को अपनी जमाराशि में बढ़ोतरी के प्रयासों में तेज़ी लानी होगी। 9. जहाँ तक बाह्य क्षेत्र का सवाल है, पिछले दो महीनों में निर्यात के प्रदर्शन में सुधार के साथ तेल से इतर वस्तुओं के आयात की मांग में कमी से व्यापार घाटे में साफ़ तौर पर कुछ कमी दिखाई दे रही है जो आगे चलकर चालू खाता घाटे (सीएडी) के लिए अच्छा साबित हो सकता है। नीतिगत कार्रवाइयों से बाह्य क्षेत्र के वित्तपोषण (फाइनैंसिंग) अंतराल कम हुए हैं। इन कार्रवाइयों से विदेशी मुद्रा बाजार की उथल-पुथल कुछ शांत हुई है। तथापि, विदेशी मुद्रा बाजार में सामान्य स्थिति तभी बहाल होगी जब पब्लिक सेक्टर ऑयल मार्केटिंग कंपनियों से आने वाली डॉलर की माँग को पूरी तरह बाज़ार की ओर मोड़ दिया जाएगा। नीतिगत रुख़ और औचित्य 10. सितंबर से, विदेशी क्षेत्र के बेहतर होते माहौल में जैसे-जैसे चालू खाता घाटा (सीएडी) को कम करने के प्रयासों के नतीजे आने लगे, विदेशी मुद्रा बाज़ार में अस्थिरता कम हुई और चलनिधि में तंगी के लिए की गई असाधारण कार्रवाइयों को क्रमश: समेटना संभव हुआ। चलनिधि स्थितियों को सामान्य करने के लिए सिस्टम में लिक्विडिटी उपलब्ध कराने की आवश्यकताओं को देखते हुए अब बैंकिंग सिस्टम के एनडीटीएल के 0.5 प्रतिशत के बराबर की अधिसूचित राशि के सावधि (टर्म) रिपो संचालित किए जाएंगे। इसके अलावा एमएसएफ रेट में 25 आधार अंकों की कमी की जाएगी। 11. मुद्रास्फीति में हालिया वृद्धि और मुद्रा दर मूल्यह्रास व नियंत्रित ईंधन कीमतों में चल रहे एडजस्टमेंट के प्रभाव की उम्मीद में मुद्रास्फीतीय प्रत्याशाओं के बढ़े हुए होने के कारण चढ़ती कीमतों के दबाव के चक्र को तोड़ना जरूरी है ताकि वित्तीय बचत में ह्रास को रोका जा सके और विकास की बुनियाद को मज़बूती मिले। एलएएफ रिपो रेट को इसी संदर्भ में 25 आधार अंक बढ़ाया गया है। 12. इस समीक्षा में एमएसएफ रेट में कटौती और रिपो रेट में बढ़ोतरी से ब्याज दर के दायरे को सामान्य मौद्रिक नीति कार्रवाइयों में लौटा लाने की प्रक्रिया अब पूरी हो गई। 13. इस समीक्षा के नीतिगत रुख़ और उपायों का उद्देश्य कमजोर वृद्धि की स्थिति में बढ़ते मुद्रास्फीतीय दबावों और बढ़ती मुद्रास्फीतीय प्रत्याशाओं को रोकना है। इससे समष्टि-आर्थिक व वित्तीय स्थिरता में मदद मिलेगी जो विकास के माहौल को बेहतर करने में सहायक होगा। विकास की उभरती परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक मुद्रास्फीति के जोख़िम पर कड़ी नज़र रखेगा। मौद्रिक नीति 2013-14 की मध्य-तिमाही समीक्षा 14. वर्ष 2013-14 की मौद्रिक नीति की अगली मध्य तिमाही समीक्षा की घोषणा बुधवार, 18 दिसंबर 2013 को प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से की जाएगी। मौद्रिक नीति 2013-14 की तीसरी तिमाही समीक्षा 15. मौद्रिक नीति 2013-14 की तीसरी तिमाही समीक्षा मंगलवार, 28 जनवरी 2014 को की जाएगी। भाग बी. विकासात्मक और विनियामक नीतियां 16. इस भाग में हाल के नीतिगत वक्तव्यों में रिज़र्व बैंक द्वारा घोषित विभिन्न विकासात्मक और नीतिगत उपायों की समीक्षा की गई है और नए उपायों की घोषणा भी की गई है। 17. आगामी कुछ तिमाहियों में रिज़र्व बैंक के विकासात्मक उपाय निम्नलिखित पाँच स्तंभों पर आधारित होंगे: ए. मौद्रिक नीति के फ्रेमवर्क को स्पष्ट करना और सुदृढ़ करना। बी. नई इकाइयों के प्रवेश, शाखाओं का विस्तार, नए प्रकार के बैंकों को प्रोत्साहन और विदेशी बैंकों को बेहतर ढंग से विनियमित संगठनात्मक स्वरूपों की ओर बढ़ाकर बैंकिंग ढाँचे को सुदृढ़ करना। सी. वित्तीय बाजारों की व्यापकता व गहराई तथा उनकी लिक्विडिटी व प्रत्यास्थता को बढ़ाना ताकि भारत की वृद्धि के वित्तपोषण में होने वाले जोखिम को वो झेल सकें। डी. वित्तीय समावेश को बढ़ावा देने के उपायों द्वारा छोटे व मंझोले उद्यमों, असंगठित क्षेत्र, गरीबों तथा देश के दूर-दराज व कम-सेवा-प्राप्त क्षेत्रों के लिए वित्त की उपलब्धता का विस्तार करना। ई. वास्तविक व वित्तीय पुनर्संरचना तथा ऋण वसूली के सुदृढ़ीकरण द्वारा कॉरपोरेट व वित्तीय संस्थाओं की मुश्किलों से निपटने की व्यवस्था की क्षमता का विकास करना । 18. डॉ उर्जित पटेल समिति की रिपोर्ट के आने के बाद मौद्रिक नीति के फ्रेमवर्क पर कार्रवाई की जाएगी। बैंक संरचनाओं और वित्तीय बाज़ारों को मज़बूत करने के कई उपाय घोषित किए गए हैं तथा बाकी उपायों पर काम पूरा होने पर उनकी घोषणा की जाएगी। वित्तीय समावेश के विस्तार करने की रणनीति डॉ नचिकेत मोर समिति रिपोर्ट पर आधारित होगी, वैसे इस विषय में प्रौद्योगिकी के प्रयोग की संभावना तलाश करने के काफी प्रयास पहले से ही किए जा रहे हैं। अंतत:, पुनर्संरचना तथा ऋण वसूली के कुछ उपाय जल्द ही घोषित किए जाएंगे। I. घटनाक्रम और नीतियां: बैंकिंग संरचना प्रतिचक्रीय पूँजी बफर पर बासल III विनियम 19. बासल III पूँजी ढाँचे के तहत भारत में प्रतिचक्रीय पूँजी बफर ढाँचे को कार्यरूप देने के लिए एक आंतरिक कार्यदल (अध्यक्ष: श्री बी महापात्र) का गठन किया गया था। प्रस्ताव है कि: -
प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण घरेलू बैंकों के लिए ढाँचा 20. बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल समिति (बीसीबीएस) ने प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण घरेलू बैंकों (डी-एसआईबी) से डील करने के लिए अक्टूबर 2012 में एक ढाँचा दिया। डी-एसआईबी ढाँचा सिद्धांत-आधारित है और राष्ट्रीय प्राधिकारियों के लिए इसमें बैंकों के प्रणालीगत महत्त्व और डी-एसआईबी के लिए अतिरिक्त पूँजी के आकलन के संबंध में सामान्य मार्गदर्शन हैं। प्रस्ताव है कि:
दबाव परीक्षण के बारे में दिशानिर्देश 21. रिज़र्व बैंक ने जून 2007 में दबाव परीक्षण के बारे में दिशानिर्देश जारी किए थे। इन दिशानिर्देशों में बैंकों से दबाव परीक्षण पर एक अच्छी नीति अपनाने की अपेक्षा की गई थी जिसके आधार पर दबावग्रस्त परिस्थितियों में चलनिधि जोखिम,ब्याज दर जोखिम, ऋण जोखिम, और विदेशी मुद्रा जोखिम का निर्धारण किया जाए। इस विषय पर बीसीबीएस सिद्धांतों और बाद के वैश्विक घटनाक्रमों को देखते हुए, प्रस्ताव है कि:
कंपनियों के अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोज़र 22. कंपनियों के अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोज़र चिंता का विषय हें क्योंकि वे संबंधित कंपनी और समूची वित्तीय व्यवस्था के लिए भी खतरा हैं। उद्योग के सहभागियों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर, प्रस्ताव है कि:
रुपया बचत/सावधि जमाराशियों पर ब्याज के भुगतान की आवधिकता 23. वर्तमान दिशानिर्देशों के अनुसार, बैंकों को बचत जमाराशियों और सावधि जमाराशियों पर ब्याज तिमाही या उससे अधिक अंतरालों पर देना होता है। चूँकि सभी वाणिज्यिक बैंक अब कोर बैंकिंग प्लेटफॉर्म पर हैं, यह निर्णय लिया गया है कि:
निजी क्षेत्र (प्राइवेट सेक्टर) में नए बैंकों की लाइसेंसिंग – उच्च स्तरीय सलाहकार समिति का गठन 24. निजी क्षेत्र में नए बैंकों की लाइसेंसिंग के संबंध में 22 फरवरी 2013 को जारी दिशानिर्देशों के अनुसार प्राथमिक पात्रता सुनिश्चित करने के लिए रिज़र्व बैंक आवेदनों की जांच करेगा और उसके बाद ये आवेदन उच्च स्तरीय सलाहकार समिति (एचएलएसी) को भेजे जाएंगे। एचएलएसी आवेदनों की जांच के लिए अपनी प्रक्रिया खुद बनाएगी और अपने रिकमेंडेशन्स रिज़र्व बैंक को विचारार्थ प्रस्तुत करेगी। बैंक शुरू करने का सैद्धांतिक अनुमोदन (इन प्रिंसिपल एप्रूवल) देने का निर्णय रिज़र्व बैंक द्वारा लिया जाएगा और इस संबंध में रिज़र्व बैंक का निर्णय फाइनल होगा। 25. उच्च स्तरीय सलाहकार समिति (एचएलएसी) का गठन रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर की अध्यक्षता में किया गया है। श्रीमती उषा थोरात, रिज़र्व बैंक की पूर्व उप गवर्नर, श्री सी बी भावे, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के पूर्व अध्यक्ष और डॉ नचिकेत एम मोर, निदेशक, केंद्रीय निदेशक बोर्ड, रिज़र्व बैंक इस समिति के सदस्य हैं। समिति की पहली बैठक 1 नवंबर 2013 को होगी। भारत में विदेशी बैंकों की उपस्थिति का स्वरूप – समनुषंगीकरण की योजना 26. भारत में विदेशी बैंकों की उपस्थिति पर रिज़र्व बैंक द्वारा 2005 में जारी की गई रूपरेखा के अगले क्रम में और अप्रैल 2010 की मौद्रिक नीति में की गई घोषणा के अनुसार, तथा वित्तीय संकट से मिले सबक को जगह देते हुए रिज़र्व बैंक ने भारत में विदेशी बैकों की उपस्थिति पर 21 जनवरी 2011 को एक चर्चा पत्र जारी किया जिसमें वित्तीय स्थिरता की दृष्टि से उपस्थिति के अनुषंगी स्वरूप को तरजीह हासिल है। हितधारकों से प्राप्त फीडबैक को देखते हुए भारत में विदेशी बैंकों के समनुषंगीकरण की एक योजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है जो प्रमुखत: पारस्परिकता और इकहरे स्वरूप की उपस्थिति के सिद्धांतों पर धारित होगी। पूर्णत: स्वाधिकृत सहायक कंपनियों (डब्ल्यूओएस) को शाखाएं खोलने सहित कई बातों में राष्ट्रीय कंपनियों के समतुल्य (नियर-नेशनल) दर्जा मिलेगा। 27. यद्यपि वर्तमान विदेशी बैंकों (अर्थात् अगस्त 2010 के पहले बने बैंक) के लिए पूर्णत: स्वाधिकृत सहायक कंपनियों (डब्ल्यूओएस) में बदलना जरूरी नहीं होगा, उनको इसे मिलने वाले लगभग-राष्ट्रीय(नियर-नेशनल) दर्जे के आकर्षण द्वारा इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा कि वे डब्ल्यूओएस में बदल जाएं। पूर्णत: स्वाधिकृत सहायक कंपनी (डब्ल्यूओएस) के लिए प्रारंभिक न्यूनतम प्रदत्त वोटिंग इक्विटी पूँजी या निवल मालियत रु. 5 बिलियन की होगी। प्रस्ताव है कि
II. घटनाक्रम और नीतियां: वित्तीय बाजार खुदरा मुद्रास्फीति सूचकांकित प्रतिभूतियां 28. 2013-14 के केंद्रीय बजट में ऐसे लिखत (इंस्ट्रूमेंट्स) लाने का प्रस्ताव किया गया जो मुद्रास्फीति से बचत (सेविंग्स) का बचाव कर सकें और निवेश हेतु लोगों को स्वर्ण का एक विकल्प दें। 10-वर्षीय अवधि वाले खुदरा निवेशकों के लिए मुद्रास्फीति सूचकांकित प्रतिभूतियों को नए (मिश्रित) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ा जाएगा। एकल व्यक्ति, हिंदू अविभक्त परिवार (एचयूएफ), ट्रस्ट और धर्मार्थ संस्थान इसमें पात्र निवेशक होंगे। इन पर ब्याज अर्धवार्षिक चक्रवृद्धि आधार पर जोड़ा जाएगा और छुड़ाने (रिडेम्पशन) पर भुगतान संचयी तौर पर किया जाएगा। ये प्रतिभूतियां आम जनता को बैंकों द्वारा उपलब्ध होंगी। तदनुसार, प्रस्ताव है कि :
कैश से सेटल किए जाने वाले 10-वर्षीय ब्याज दर फ़्यूचर्स कॉन्ट्रैक्टस 29. मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाजार को विकसित करने के लिए कैश से सेटल किए जाने वाले 10-वर्षीय ब्याज दर फ़्यूचर्स कॉन्ट्रैक्टस (आईआरएफ) की शुरुआत करने का निर्णय लिया गया है। प्रोडक्ट की डिज़ाइन और परिचालन तौर-तरीकों पर सभी हितधारकों और बाजार निकायों व स्टॉक एक्सचेंजों से बात-चीत चल रही है और उनके फीडबैक को ध्यान में रखते हुए सेबी के साथ विचार विमर्श के पश्चात, रिज़र्व बैंक:
कॉरपोरेट बॉण्डों में ऋण वृद्धि 30. भारत में कॉरपोरेट बॉण्ड के बाज़ार में अभी पर्याप्त गहराई और चलनिधि (लिक्विडिटी) का अभाव है। परिणामत: बैंक फाइनैंसिंग पर कॉरपोरेट्स काफी निर्भर हैं। अत: प्रस्ताव है कि:
सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) की टाइमिंग में संशोधन 31. इलेक्ट्रॉनिक फन्ड्स ट्रांसफर को सुगम करने और रिज़र्व मेंटेनेंस में अनावश्यक अस्थिरता को कम करने के उद्देश्य से, यह निर्णय लिया गया है कि:
म्यूचुअल फंडों के लिए रिपो सुविधाएं 32. 17 जुलाई 2013 को रिज़र्व बैंक ने म्यूचुअल फंडों के लिए एक विशेष रिपो खिड़की (विंडो) खोली जिससे बैंक म्यूचुअल फंडों की लिक्विडिटी की जरूरतों को पूरा कर पाएं। असाधारण उपायों के सामान्य होने और तब से चलनिधि (लिक्विडिटी) की स्थितियों में सुधार को देखते हुए इस खिड़की को तत्काल प्रभाव से बंद करने का निर्णय लिया गया है। निर्यातकों के लिए सेवाओं/ सुविधाओं पर तकनीकी समिति 33. निर्यातकों के लिए सेवाओं/ सुविधाओं पर तकनीकी समिति (अध्यक्ष : श्री जी पद्मनाभन) के कुछ सुझाव जैसे -- ई-कॉमर्स लेन-देन की सीमा में वृद्धि और प्रोजेक्ट एक्सपोर्ट्स के तहत कागज़ातों के प्रस्तुतीकरण की समय सीमा में बढ़ोतरी, ओवर-द-काउंटर बुक किए गए फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स की रिपोर्टिंग अपेक्षाओं में सरलीकरण और निर्यातकों के लिए फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स रद्द करने और फिर से बुक करने की सीमा में बढ़ोतरी – स्वीकार किए गए हैं और आवश्यक दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। जहाँ तक दूसरे सुझावों की बात है, सरकारी एजेंसियों/दूसरे हितधारकों के साथ मिलकर उनके कार्यान्वयन हेतु विश्लेषण चल रहा है। III. घटनाक्रम और नीतियां: वित्तीय समावेश तथा भुगतान व निपटान प्रणालियां सामान्य क्रेडिट कार्ड योजना 34. सामान्य क्रेडिट कार्ड (जीसीसी) योजना की परिधि में संशोधन करके व्यक्तियों के क्रेडिट लिंकेज को कृषीतर उद्यम कार्यकलाप तक बढ़ाया जा रहा है तथा इसे समग्र तौर पर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के तहत रखा जा रहा है। ऐसी प्रत्याशा है कि संशोधित योजना से छोटे कारोबार और कम आय वाले हाउसहोल्ड्स की ओर ऋण के प्रवाह में वृद्धि होगी। इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश नवबर 2013 के मध्य तक जारी कर दिए जाएंगे। बैंक-रहित गाँवों में बैंकिंग सेवा प्रदान करने की व्यवस्था की रूपरेखा 35. राज्य स्तरीय बैंकर समितियों (एसएलबीसी को कहा गया है कि वे 2000 से कम की जनसंख्या वाले बैंकिंग सुविधा से वंचित सभी गाँवों को कवर करने की एक रूपरेखा तैयार करें और इन गाँवों को बैंकिंग सेवा देने के लिए कल्पित तौर पर बैंकों को आबंटित (अलॉट) करें। तदनुसार, बैंकिंग सुविधा से वंचित लगभग 4,90,000 गाँवों को चिन्हित करके उन्हें मार्च 2016 के पहले बैंकिंग सुविधा देने के लिए विभिन्न बैंकों को अलॉट किया गया है। ग्रामिण सहकारिताएं : अल्पावधि सहकारी ऋण संरचना का सुव्यवस्थीकरण 36. अल्पावधि सहकारी ऋण संरचना (एसटीसीसीएस) पर रिज़र्व बैंक ने जनवरी 2013 में एक विशेषज्ञ समिति (अध्यक्ष: डॉ. प्रकाश बख्शी) का गठन किया । अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित सुझावों को कार्यान्वयन के लिए लिया गया है: ग्रामीण सहकारिताओं के प्रशासन और प्रबंधन में उन्नति, कोर बैंकिंग सॉल्यूशन्स (सीबीएस) की ओर बढ़ना तथा राज्य सहकारी बैंकों व जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों के सीबीएस की ओर संक्रमण में ग्रामीण सहकारी बैंकों की मानव संसाधन आवश्यकताओं को जाँचने के लिए एक कार्य दल का गठन। ग्राहक सेवा – एसएमएस एलर्ट भेजने के लिए बैंकों द्वारा लगाया गया प्रभार 37. ग्राहकों को एसएमएस एलर्ट भेजने के लिए बैंकों द्वारा लगाए गए प्रभारों (चार्जेज़) में औचित्य और समानता सुनिश्चित करने के लिए, बैंकों कहा गया है कि वे अपने तथा टेलिकाम सर्विस प्रोवाइडर्स के पास उपलब्ध तकनीक का पूरा उपयोग करें और यह सुनिश्चित करें कि ये प्रभार सभी ग्राहकों पर वास्तविक आधार पर लगाए जाएं। भुगतान और निपटान प्रणाली इलेक्ट्रॉनिक बिल पेमेंट्स सिस्टम - जीआईआरओ (जायरो) सलाहकार दल 38. जीआईआरओ (जायरो) आधारित भुगतान प्रणाली समिति की रिपोर्ट के बाद जिसमें आवश्यक सेवाओं, इंश्योरेंस प्रीमिया, यूटिलिटी पेमेंट्स, टैक्स, यूनिवर्सिटी फीस, परीक्षा फीस और इस प्रकार की अन्य चीजों के लिए जीआईआरओ मॉडल पर आधारित इलेक्ट्रॉनिक बिल पेमेंट सिस्टम की जरूरत पर बल दिया गया था, एक जीआईआरओ सलाहकार दल (अध्यक्ष: प्रोफेसर उमेश बेल्लुर) बनाया गया है जिसमें बैंकों व अन्य हितधारकों का प्रतिनिधित्व है। दिसंबर-2013 के अंत तक इस ग्रूप के रिपोर्ट के आ जाने की आशा है। मोबाइल बैंकिंग की उपलब्धता के विस्तार पर तकनीकी समिति 39. देश में मोबाइल बैंकिंग के विस्तार के लिए किसी भी प्रकार के हैंडसेट पर चलने वाले एप्लीकेशन से एन्क्रिप्टेड एसएएमएस-आधारित फंड ट्रांसफर की व्यवहार्यता सहित विभिन्न विकल्पों को जाँचने परकने के लिए एक तकनीकी समिति (अध्यक्ष : श्री बी सांबमूर्ति) बनाई गई है।दिसंबर-2013 के अंत तक समिति के रिपोर्ट के आ जाने की आशा है। कार्ड प्रेजेंट इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन की सुरक्षा और इनमें जोखिम कम करने के उपाय 40. कार्ड लेन-देन और इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग की आधारभूत व्यवस्था को सुरक्षित करने के लिए रिज़र्व बैंक ने बैंकों को जून 2013 के अंत तक सुरक्षा विशेषताओं को लागू करने को कहा है। इस संबंध में बैंकों की तैयारी की समीक्षा से पता चला है कि तकनीकी समस्याओं के चलते वांक्षित परिवेश में जाने में दिक्कत आ रही है। तदनुसार सभी हितधारकों को एक बार के लिए समय सीमा बढ़ाइ गई है। बैंकेतर इकाइयों द्वारा जारी प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट्स से कैश भुगतान 41. प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट्स (पीपीआई) को और अधिक लोकप्रिय बनाने और बैंक खाता रहित लोगों के लिए धन-प्रेषण सुगम बनाने के लिए चुनिंदा बैंकेतर पीपीआईज़ के साथ मिलकर एक प्रायोगिक परियोजना बनाई जा रही है जिसमें आधार (यूआईडी नंबर) पर आधारित बायोमेट्रिक अधिप्रमाणन (ऑथेंटिकेशन) के इस्तेमाल से बैंकेतर इकाइयों द्वारा जारी पीपीआईज़ से कैश भुगतान (धन-प्रेषण) की तकनीकी व ऑपरेशनीय व्यावहारिकता का अध्ययन किया जाएगा। इस परियोजना के प्रमुख तकनीकी, ऑपरेशनीय और कार्यात्मक मानकों को सहभागियों के साथ विचार-विमर्श करके अंतिम रूप दिया जा रहा है और आशा है कि मार्च 2014 के अंत तक यह प्रायोगिक परियोजना शुरू हो जाएगी। IV. पुनर्रचना गैर-बैकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसीज़) : पुनर्रचना दिशानिर्देश 42.रिज़र्व बैंक के कार्यदल (अध्यक्ष: श्री बी. महापात्र) ने बैंकों व वित्तीय संस्थाओं द्वारा दिए गए अग्रिमों की पुनर्रचना संबंधी विवेक-सम्मत दिशानिर्देशों की समीक्षा की और इस संबंध में बैंकों को दिशानिर्देश जारी किए गए। चुँकि एनबीएफसी भी, उन वित्तीय संस्थाओं का हिस्सा हैं जहाँ पुनर्रचना सुविधाएं या तो सहायता संघ (कोन्सोर्टियम) के अंग के रूप में या अन्य किसी तौर पर अब उपलब्ध हैं, यह निर्णय लिया गया है कि:
V. संस्थागत और अन्य घटनाक्रम वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग की सिफारिशें (एफएसएलआरसी) 43. प्रस्ताव है कि उपभोक्ता संरक्षण और क्षमता निर्माण से संबंधित एफएसएलआरसी की निम्नलिखित सिफारिशों (रिकमेंडेशन्स) को कार्यान्वित किया जाए :
मुद्रा प्रबंधन : बैंक नोटों और सिक्कों का वितरण 44. बैंकों को कहा गया था कि देश में बैंकनोटों और सिक्कों की बढ़ती मांग को पूरा करने करने के लिए वे व्यवसाय प्रतिनिधि (बीसी) की संभावनाओं को तलाशें और आखिरी गली तक पहुँचने के लिए मार्गस्थ नकदी (सीआईटी) इकाइयों की सेवाएं लेने पर विचार करें। 10 सितंबर और 10 अक्तूबर2013 को निर्देश जारी करके बैंकों को अनुमति दी गई है कि बीसी/सीआइटी के द्वारा किए जा सकने वाले कार्यकलापों के दायरे में बैंकनोट और सिक्कों के वितरण को भी शामिल करें। 45. बैंकों ने भी नोटो और सिक्कों के वितरण और कटे-फटे नोटों के बारे में निर्णय लेने (एडज्यूडिकेशन) के खुदरा कार्य करने की अपनी क्षमता को बढ़ाया है। उन्होंने इस कार्य के लिए अब तक 805बैंक शाखाएं चिन्हित कर ली हैं। तदनुसार, रिजर्व बैंक के काउंटरों पर नोटों के वितरण स्तर में 61 प्रतिशत, और सिक्कों में 64 प्रतिशत कम हुआ है तथा नोटों के एडज्यूडिकेशन में 51 प्रतिशत की कमी आई है। जाली बैंक नोटों की पकड़ और रिपोर्टिंग 46. पकड़े गए जाली नोटों को रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करने की योजना शुरू करने की विभाग-संबंधी स्थायी संसद समिति (डीपीएससी) की सिफारिश को देखते हुए बैंकों को 27 जून 2013 को इस संबंध में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया, जाली नोटों की पकड़ के लिए बैंकों को मुआवजा तथा नोटों कीपकड़ /रिर्पोटिंगन करने पर जुर्माने के बारे में निर्देश जारी किए गए है। मुंबई |