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भारतीय रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति 2009-10 की दूसरी तिमाही समीक्षा

भारतीय रिज़र्व बैंक
मौद्रिक नीति 2009-10 की दूसरी तिमाही समीक्षा

डॉ. डी. सुब्बाराव
गवर्नर द्वारा

वैश्विक अर्थव्यवस्था वित्तीय संकट से उपजी गहरी मंदी से उबरने लगी है। इस सुधार प्रक्रिया को उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं, विशेषकर एशिया, के उत्पादन विस्तार से बल मिला है। तथापि इस सुधार की गति और आकार में अस्थिरता बनी हुई है।

2. वस्तुत: वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण एक मिश्रित चित्र प्रस्तुत करता है। सकारात्मक पक्ष में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमानों के अनुसार वैश्विक उत्पादन में दूसरी तिमाही (तिमाही-दर-तिमाही, वार्षिकीकृत) में 3 प्रतिशत का विस्तार हुआ, विनिर्माण गतिविधियों में तेजी आई है, व्यापार में सुधार हुआ है, वित्तीय बाजार की स्थितियों में सुधार हो रहा है और जोखिम वहन करने की क्षमता लौट रही है। शेयर बाजारों में हुए तीव्र सुधारों ने बैंकों को पूंजी बढ़ाने का अवसर प्रदान किया है जिससे उन्हें अपने तुलनपत्र को सुधारने में मदद मिली है। अमेरिका में घरों की कीमतों में स्थायित्व दिखाई देने लगा है। उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के लिए पूंजी का अंतर्वाह पुन:आरंभ हो गया हे। सबसे महत्वपूर्ण बात है, कि संकट के शिखर काल में वित्तीय बाजारों में जो चिन्ता और आशंका का माहौल बना हुआ था अब उसके स्थान पर निश्चिन्तता छा गई है।

3. नकारात्मक पक्ष में, यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि ये सुधार अस्थायी हैं। दूसरी तिमाही में हुए सुधार निश्चित रूप से नीतिगत उत्प्रेरकों का परिणाम हैं। आगे चलकर उत्प्रेरकों का प्रभाव धूमिल पड़ जाएगा और इन्वेंट्री पुनर्निर्माण की प्रक्रिया धीमी पड़ जाएगी। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में सतत खोते रोजगार, धीमी आय वृद्धि और डांवाडोल विश्वास के कारण निजी उपभोग प्रतिबंधित बना हुआ है। यद्यपि उत्पादन में सुधार हो रहा है फिर भी अमेरिका एवं यूरो क्षेत्र में बेरोजगारी में 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी होने का अनुमान है। विरूपित तुलनपत्र, अतिरिक्त क्षमता और वित्तपोषण की बाधाओं के कारण निवेश कमजोर बने रहने की संभावना है। बैंकों का धराशायी होना जारी है। हाल के तिमाही -दर-तिमाही सुधार के बावजूद विश्व व्यापार एक वर्ष पूर्व के अपने स्तर से नीचे बना हुआ है।

4. इस मिश्रित रूख, जिसमें सकारात्मकता की ओर थोड़ा झुकाव है, को प्रदर्शित करते हुए आइएमएफ ने अक्तूबर 2009 के अपने वर्ल्ड इकॉनॉमिक आउटलुक में यह अनुमान लगाया है कि वर्ष 2009 में विश्व अर्थव्यवस्था की संकुचन दर 1.1 प्रतिशत रहेगी, जो जुलाई 2009 के उसके वर्ल्ड इकॉनॉमिक आउटलुक में किए गए 1.4 प्रतिशत के संकुचन के अनुमान में वृद्धिपरक सुधार को दर्शाता है। तथापि आइएफएफ वैश्विक सुधार की प्रक्रिया के धीमी रहने की आशा करता है। दि आर्गनाइजेशन फॉर इकॉनॉमिक कॉऑपरेशन एवं डेवलपमेंट ने आने नवीनतम इकॉनॉमिक आउटलुक (सितंबर 2009) में यह अनुमान व्यक्त किया हे कि कई विपरीत परिस्थितियों की वजह से वर्ष 2010 में क्रियाकलापों की गति में धीमापन रहेगा। समग्र रूप से देखा जाए तो जहां वैश्विक आर्थिक संभावनाओं में जुलाई 2009 की पहली तिमाही समीक्षा में सुधार हुआ है वहीं आर्थिक सुधारों की गति और उसके स्तर के बने रहने के प्रति अनिश्चितता बनी हुई है।

5. भारतीय अर्थव्यवस्था, जिसमें वर्ष 2008-09 के दूसरे उत्तरार्ध के दौरान उल्लेखनीय धीमापन आ गया, खासकर वैश्विक वित्तीय संकट के दुष्प्रभाव के कारण, अब स्थिर हो चली है। ऐसा सतत घटते निर्यातों और वर्ष 1972 के बाद के सबसे भयावह सूखे के बावजूद हुआ है। हाल के महीनों में औद्योगिक क्षेत्र के कार्यनिष्पादन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। देशी और बाह्य वित्तपोषण, दोनों स्थितियों में सकारात्मक रूख देखने में आया है। पूंजी अंतर्वाह में सुधार हुआ है। प्राथमिक पूंजी बाजार की गतिविधियों में तेजी आई है और बैंकेतर देशी स्रोतों से होनेवाले वित्तपोषण में सुधार हुआ है। चलनिधि की स्थिति संतोषजनक रही है और मुद्रा तथा ऋण बाजार की ब्याज दरों में नरमी आई है।

6. इसी के साथ-साथ कई नकारात्मक संकेतक भी दिखाई दिए हैं। निजी उपभोक्ता मांग में अभी भी वृद्धि नहीं हुई है। निम्न खरीफ खाद्य उत्पादन के कारण कृषि उत्पादन में गिरावट की संभावना है। सेवा क्षेत्र की वृद्धि प्रचलित रुझानों से हटकर रही। बैंक ऋण वृद्धि धीमी बनी हुई है। मुद्रास्फीति में वृद्धि के स्पष्ट संकेत दिखाई दे रहे हैं जो विशष रूप से खाद्य कीमतों की वजह से आपूर्ति पक्ष के कारण है।

7. इस तरह से वर्ष 2009-10 की मौद्रिक नीति की यह दूसरी तिमाही समीक्षा वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार के आरंभिक संकेतों और देशी अर्थव्यवस्था में सुधारात्मक संभावना की पृष्ठभूमि पर तैयार की गई है। यह समीक्षा दो भागों में तैयार की गई है। भाग क में मौद्रिक नीति दी गई है जिसे तीन खंडों में बार्टं गया है खंड I व्यष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों का मूल्यांकन प्रस्तुत करता है; खंड II मौद्रिक नीति रुझान को परिभाषित करता है; और खंडIII मौद्रिक उपायों को स्पष्ट करता है। भाग ख विकासात्मक और विनियामक नीतियों को कवर करता है और इसे सात खंडों में बांटा गया है; वित्तीय स्थिरता (खंड I), ब्याज दर नीति (खंड II), वित्तीय बाजार (खंड III), ऋण वितरण प्रणाली और अन्य बैंकिंग सेवाएं (खंडIV), वित्तीय समावेशन (खंड V), वाणिज्यिक बैंकों के लिए विनियामक उपाय (खंडVI), और संस्थागत गतिविधियां (खंड VII)। इस वक्तव्य के भाग क को कल जारी किए गए व्यष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की विस्तृत समीक्षा के साथ पढ़ा और समझा जाना चाहिए।

भाग क. मौद्रिक नीति
I. व्यष्टि-आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां

वैश्विक दृष्टिकोण

वास्तविक जीडीपी

8. वैश्विक आर्थिक निष्पादन में वर्ष 2009 की दूसरी तिमाही के दौरान सुधार हुआ जिसने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को मजबूर किया कि वह जुलाई 2009 में वर्ष 2009 के लिए आर्थिक संकुचन की अनुमानित दर को 1.4 प्रतिशत से कम कर अक्तूबर 2009 के आरंभ में जारी किए गए अपने वर्ल्ड इकॉनॉमिक आउटलुक में 1.1 प्रतिशत कर दे। आइएमएफ ने वर्ष 2010 के लिए वैश्विक वृद्धि के अपने अनुमान में वृद्धि दर्शाते हुए उसे 3.1 प्रतिशत कर दिया है जो उसके जुलाई अपडेट में 2.5 प्रतिशत था (सारणी 1)।

सारणी 1 : अनुमानित वैश्विक सकल देशी उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि (%)

देश/क्षेत्र

2009

2010

यूएस

(-)2.7

1.5

यूके

(-)4.4

0.9

यूरो-क्षेत्र

(-) 4.2

0.3

जापान

(-)5.4

1.7

चीन

8.5

9.0

भारत

5.4

6.4

उभरती हुई तथा विकसनशील अर्थव्यवस्थाएं

1.7

5.1

विश्व

(-) 1.1

3.1

स्रोत: वर्ल्ड इकॉनॉमिक आउटलुक,आइएमएफ, अक्तूबर 2009

9. अमेरिका में व्यष्टि आर्थिक संकेतक मिश्रित है। वास्तविक जीडीपी में वर्ष 2009 की दूसरी तिमाही में 0.7 प्रतिशत संकुचन हुआ, जो वर्ष 2009 की पहली तिमाही के 6.4 प्रतिशत संकुचन की तुलना में उल्लेखनीय सुधार दर्शाता है और बड़े पैमाने पर इसके लिए सरकारी खर्चों का सकारात्मक योगदान जिम्मेदार है। घरों की कीमतों में स्थायित्व के संकेत दिखाई दिए हैं। नकारात्मक पक्ष में, बेरोज़गारी की दर सितंबर 2009 में 9.8 प्रतिशत तक बढ़ी तथा वह और भी बढ़ने की संभावना है। अर्थव्यवस्था, रोज़गार और आय की संभावनाओं के बारे में उपभोक्ता आशंकित हुए हैं।

10. यूरो-क्षेत्र में आर्थिक संकेतक कमजोर ही रहे। वास्तविक सकल देशी उत्पाद 2009 की पहली तिमाही में 4.9 प्रतिशत और दूसरी तिमाही में 4.8 प्रतिशत तक कम हुआ। अगस्त2009 में बेरोज़गारी 9.6 प्रतिशत तक बढ़ी और खुदरा बिक्री में और गिरावट आई। यद्यपि उपभोक्ता और कारोबारी विश्वास में 2009 की तीसरी तिमाही में सुधार हुआ; इनको अभी भी सकारात्मक क्षेत्र में बढ़ना है। यूके में वास्तविक सकल देशी उत्पाद 2009 की दूसरी तिमाही में 5.5 प्रतिशत तक और 2009 की तीसरी तिमाही में 5.2 प्रतिशत तक कम हुआ। यूके में जुलाई-अगस्त 2009 में बेराज़गारी 7.9 प्रतिशत तक बढ़ी। लगभग एक साल के लिए नकारात्मक वृद्धि के बाद 2009 की दूसरी तिमाही में जापान में वास्तविक सकल देशी उत्पाद 2.3 प्रतिशत से बढ़ा। यद्यपि आउटपुट स्थिर हो रहा है और उपभेक्ता तथा कारोबारी विश्वास में वृद्धि हो रही है; फिर भी पूंजी परिव्यय में कटौती करने की योजना बनाने वाली बड़ी कंपनियों के होते हुए औद्योगिक संभावना अनिश्चित रही। समग्रत: आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अगस्त 2009 के संयुक्त अग्रणी संकेतकों ने अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं में, विशेषकर फ्रान्स और इटली में, सुधार के चिहन दर्शाए।

मुद्रास्फीति

11. वैश्विक वस्तु मूल्यों में वैश्विक सुधार की तुलना में तेज उछाल आया है। खाद्यान्न और कृषि संगठन (एफएओ) खाद्यान्न मूल्य सूचकांक अगस्त-सितंबर 2009 में बढ़ गया। अस्थिर खाद्यान्न मूल्यों के साथ औद्योगिक धातु और स्वर्ण मूल्यों में 2009 की तीसरी तिमाही में मजबूती आई। उक्त तिमाही के दौरान अमरीकी डॉलर में उल्लेखनीय कमजोरी आने के कारण स्वर्ण मूल्य रिकार्ड स्तर पर पहुंच गए। तिमाही के दौरान निश्चित संभावना के साथ कच्चे तेल की कीमतें स्थिर रहीं जिससे आर्थिक सुधार की प्रत्याशा में और कमजोर मौजूदा मांग और अधिक स्टॉक की तुलना में भाविष्य में तेल की उच्चतर खपत में संतुलन परिलक्षित होता है। इन प्रवत्तियों के बावजूद, विकसित और उभरती हुई अधिकांश बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं (भारत को छोड़कर) में उपभोक्ता मूल्य वृद्धि अधिकांशत: बड़े आउटपुट अंतरालों के कारण नकारात्मक/निम्न रही। अक्तूबर 2009 के वर्ल्ड इकॉनॉमिक आउटलुक ने प्रगत देशों में उपभोक्ता मूल्य वृद्धि निम्न, अर्थात् 2009 के 0.1 प्रतिशत से बढ़कर 2010 में 1.1 प्रतिशत रहने का अनुमान किया है। उभरती हुई तथा विकसनशील अर्थव्यवस्थाओं में उपभोक्ता मूल्य वृद्धि में 2009 के 5.5 प्रतिशत की तुलना में 2010 में 4.9 प्रतिशत तक की गिरावट का अनुमान है। इसके बिल्कुल ही विपरीत, भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक वृद्धि न केवल उच्च स्तर की थी बल्कि हाल के महीनों में वस्तुत: मजबूत हुई जिससे उच्चतर खाद्यान्न मूल्य परिलक्षित हुए (सारणी 2)।

वित्तीय बाज़ार

12. केंद्रीय बैंक के समर्थक कार्यों और घोषणाओं की व्यापक व्यवस्था ने मुद्रा बाज़ारों में सहजता लाने और कार्पोरेट बांड स्प्रेड को कम करने में सहायता प्रदान की।

सारणी 2 : विभिन्न देशों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक वृद्धि :
वर्ष-दर-वर्ष (%)

देश

सितंबर 2008

मार्च 2009

सितंबर 2009

यूएस

4.9

(-)0.4

(-)1.3

यूके

5.2

2.9

1.1

यूरो-क्षेत्र

3.6

0.6

(-)0.3

ऑस्ट्रेलिया

5.0

2.5

1.5@

जापान

2.1

(-)0.3

(-)2.2#

चीन

4.6

(-)1.2

(-)0.8#

भारत *

9.8

8.0

11.7#

कोरिया

5.1

3.9

2.2

ब्राज़ील

6.3

5.6

4.3

रूस

15.0

14.0

10.7

* औद्यांगिक कामगारों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक

@ जून 2009

# अगस्त 2009

स्रोत:संबंधित देशों की आधिकारिक और ब्लूमबर्ग की वेबसाइट

सभी प्रमुख बाज़ारों में शेयर मूल्यों में उछाल आया। 2008 में हुई बड़ी हानियों के बाद अमरीका और यूरोप के अधिकांश प्रमुख बैंकों ने हाल में लाभ रिपोर्ट किए हैं। नकारात्मक पक्ष में, उधारकर्ताओं द्वारा सख्त ऋण मानकों के माहौल में कंपनियों द्वारा ऋण के स्तरों में कटौती कर दिए जाने के कारण 2009 में कई प्रगत अर्थव्यवस्थाओं में ऋण उठाव में गिरावट आई है। जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के ग्लोबल फाइनान्शियल स्टैबिलिटी रिपोर्ट (जीएफएसआर) में प्रमुख रूप से दर्शाया गया है, यह चिंता की बात है कि वित्तीय जोखिमों का राजकोषीय प्राधिकरणों को अंतरण निजी क्षेत्र को निकाल बाहर कर सकता है और सरकारी क्षेत्र के वित्त की धारणीयता को दुर्बल बना सकता है।

मौद्रिक नीति उपाय

13. ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर, सभी प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं, के केंद्रीय बैंकों ने सरल मौद्रिक नीति को जारी रखा और हाल के महीनों में स्थिर नीतिगत दरें रखी हैं। उन्होंने संकट के बाद वित्तीय बाज़ारों के तनाव को कम करने के लिए चलनिधि प्रदान करने और अन्य सहायता हेतु भी उपाय जारी रखे। मौजूदा चक्र में रिज़र्व बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया पहला जी-20 केंद्रीय बैंक रहा है जिसने अपनी नीतिगत दर (नकद दर) गंभीर आर्थिक संकुचन के घटे हुए जोखिम की पृष्ठभूमि पर 6 अक्तूबर को 25 आधार अंकों से बढ़ाकर 3.25 प्रतिशत कर दी। रिज़र्व बैंक ऑफ न्यूजीलैंड ने 2008 के वित्तीय संकट के दौरान दी गई कुछ अस्थायी आकस्मिक चलनिधि सुविधाओं को हटाया है।

उभरती हुई बाज़ार अर्थव्यवस्थाएं

14. अक्तूबर के अपने वर्ल्ड इकॉनॉमिक आउटलुक में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने उभरती हुई तथा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर के अनुमान को वर्ष 2008 के 6.0 से घटकर 2009 में 1.7प्रतिशत (जुलाई की अद्यतन स्थिति में अनुमानित 1.5 प्रतिशत) पर कर दिया है जो 2010 में बढ़कर 5.1 प्रतिशत तक होगी। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यह उम्मीद नहीं करता कि यह उछाल सभी उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में समान रूप से फैलेगा। एशियाई तथा गैर-एशियाई उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के बीच भिन्नता होगी क्योंकि यह उछाल चीन, भारत और अन्य उभरती एशियाई अर्थवयवस्थाओं द्वारा संचालित होगा। वित्तीय मंदी के प्रति थोड़ा प्रत्यक्ष एक्स्पोजर होने वाले उभरते बाज़ारों ने 2009 की तीसरी तिमाही में उल्लेखनीय आर्थिक गति दर्शाई है, फिर भी दूसरी तिमाही की तेज गति से वह धीमी है। हाल में यूएस और यूरोप को किए गए निर्यात सहित चीन के निर्यात की मात्रा बढ़ती रही है, जिससे चीन के व्यापार आधिक्य में सुधार हो रहा है। चीन में औद्योगिक उत्पादन में और अचल आस्तियों में निवेश की वृद्धि में सुधार होने का अनुमान है और इसकी दीर्घावधि संभावना मजबूत बनी है। इसके विपरीत,यह उम्मीद है कि लैटिन अमरीका, पूर्वी यूरोप और स्वतंत्र देशों के राष्ट्रमंडल (सीआइएस) 2009 के संकुचन का और 2010 में धीमी वृद्धि का सामना करेंगे, जबकि मध्य-पूर्व में संयत वृद्धि अनुमानित है।
       
देशीय परिदृश्य

15. भारतीय अर्थव्यवस्था में 2009-10 की पहली तिमाही में 6.1 प्रतिशत की संवृद्धि दर्ज हुई। यह 2008-09 की चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत के प्रसार की तुलना में अधिक है किन्तु 2008-09 की पहली तिमाही की तदनुरुपी अवधि में 7.8 प्रतिशत प्रसार की तुलना में कम है। संवृद्धि में वर्ष-दर-वर्ष की गिरावट का आधार व्यापक था और इसके दायरे में तीनों प्रधान क्षेत्र अर्थात् कृषि, उद्योग और सेवा (सारणी 3) आ गए।

सारणी 3: वास्तविक जीडीपी संवृद्धि (%)

क्षेत्र

वित्तीय वर्ष

तिमाही संवृद्धि दरें (वर्ष-दर-वर्ष)

2007-08

2008-09

2008-09

2009-10

 

 

तिमाही 1

तिमाही 4

तिमाही 1

कृषि

4.9

1.6

3.0

2.7

2.4

उद्योग

7.4

2.6

5.1

(-)0.5

4.2

सेवा

10.8

9.4

10.0

8.4

7.7

समग्र जीडीपी

9.0

6.7

7.8

5.8

6.1

स्रोत: केद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ)

कृषि

16. इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून (1 जून से 30 सितम्बर) की वर्षा दीर्घावधि औसत से 23 प्रतिशत कम रही जो कि 1972 के बाद सर्वाधिक कमजोर है। मौसम विभाग के 36 उप-खंडों में से 23 में कम वर्षा दर्ज हुई। समूचे मध्य और उत्तरी भारत में कम वर्षा हुई। रिज़र्व बैंक का उत्पाद-भारित वर्षा सूचकांक 2009 में 73 था, जो 2008 के सूचकांक 104 से काफी कम रहा। खरीफ़ फसल की बुवाई की प्रगति के बारे में नवीनतम जानकारी के अनुसार धान की फसल के रकबे में 15.7 प्रतिशत और तिलहन के रकबे में 5.2 प्रतिशत की गिरावट रही।

17. काफी समय से कुल जीडीपी में कृषि के हिस्से में गिरावट होती रही है और 2008-09 की स्थिति के अनुसार यह 17.0 प्रतिशत था। तथापि, अनुभव तो यही रहा है कि कम वर्षा की स्थिति में समग्र आर्थिक प्रत्याशाओं और समृद्धि बोध पर असमानुपातिक प्रभाव पड़ सकता है। उत्पादन में गिरावट होगी तो कीमतें बढ़ेंगी और ग्रामीण श्रमिकों की आय घटेगी। अन्तर-क्षेत्रगत आपूर्ति-माँग के सम्बन्धों को देखते हुए औद्योगिक और सेवा क्षेत्र पर होने वाले प्रतिकूल प्रभाव महत्वपूर्ण हो सकते हैं। सरकारी एजेंसियों के पास 44.3 मिलियन टन का बड़ा खाद्यान्न भंडार, सुधरा हुआ आपूर्ति प्रबंधन और सामाजिक सुरक्षा संजाल कार्यक्रमों से प्रतिकूल प्रभावों को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है।

उद्योग

18. हाल ही के महीनों में औद्योगिक क्षेत्र ने उबरने के स्पष्ट संकेत दिए हैं। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) में अप्रैल-अगस्त 2009 के दौरान 5.8 प्रतिशत की उच्चतर दर से बढ़ोतरी हुई इसकी तुलना में विगत वर्ष की तदनुरूपी अवधि में 4.8 प्रतिशत और 2008-09 की दूसरी छमाही में 0.6 प्रतिशत संवृद्धि हुई थी। यद्यपि आधारभूत, मध्यवर्ती और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के क्षेत्रों में उच्चतर संवृद्धि दर्ज हुई, तथापि पूंजीगत वस्तुओं और उपभोक्ता गैर-टिकाऊ वस्तुओं के क्षेत्रों की संवृद्धि सापेक्षतया मामूली रही।

आइआइपी में 26.7 प्रतिशत की अधिभारिता प्राप्त प्रमुख आधार संरचना क्षेत्र में अप्रैल-अगस्त 2009 के दौरान 4.8 प्रतिशत की संवृद्धि दर्ज हुई, जो कि विगत वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान हुई 3.3 प्रतिशत की संवृद्धि से अधिक है। औद्योगिक उत्पादन के मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों प्रकार के प्रधान संकेतक आगामी महीनों के दौरान औद्योगिक क्रियाकलापों में सुधार की ओर संकेत करते हैं।

सेवाएँ

19. अप्रैल-जुलाई 2009 के दौरान भी सेवाक्षेत्र का कार्य निष्पादन अप्रैल-जुलाई 2009 के दौरान भी 2008-09 की चौथी तिमाही जैसा ही रहा। व्यापार संबद्ध सेवाएँ जैसे कि प्रमुख समुद्री और वायुयान पत्तनों पर प्रदत्त कार्गों सेवाओं में गिरावट/नकारात्मक संवृद्धि बनी रही जो कि व्यापार में संकुचन को प्रकट करता है। अन्तरराष्ट्रीय टर्मिनलों पर यात्रियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई, अलबत्ता यह बढ़ोतरी मामूली रही, जबकि स्वदेशी टर्मिनलों पर यात्रियों की संख्या में गिरावट रही। स्वदेशी क्रियाकलापों से सम्बद्ध अन्य सेवाओं जैसे कि संचार और भवन-निर्माण क्षेत्र में प्रगति के संकेत दिखाई देने शुरू हो गए हैं। रेलवे के लिए राजस्व-अर्जक माल यातायात में अच्छी संवृद्धि दर्ज हुई।

जीडीपी के माँग-घटक

20. वर्ष 2008-09 की दूसरी तिमाही की प्रवृत्ति को बरकरार रखते हुए माँग के दो प्रधान घटकों अर्थात् अर्थात निजी अंतिम उपभोग व्यय और सकल निश्चित पूँजी निरूपण (लगभग 88 प्रतिशत के संयुक्त अधिभार सहित) में 2009-10 की पहली तिमाही में और भी गिरावट रही। राजकोषीय उत्प्रेरक उपायों और छठे वेतन आयोग की घोषणा से प्राप्त भुगतानों के कारण 2008-09 की तीसरी और चौथी तिमाही में सरकारी उपभोग में तेज बढ़ोतरी हुई, इसमें भी 2009-10 की पहली तिमाही में गिरावट दर्ज हुई। यद्यपि राजकोषीय उत्प्रेरक का प्रत्यक्ष प्रभाव धूमिल हो रहा है, तथापि निजी उपभोग और निवेश पर इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव कुछ और समय तक रहेगा। बाह्य मांग कमजोर बनी रही, जबकि 2009-10 की पहली तिमाही में निवल निर्यातों में 2008-09 की पहली तिमाही में हुए निर्यातों की तुलना में सकारात्मकता दिखाई दी क्योंकि आयातों में ज्यादा तेज गिरावट रही (सारणी 4)।

सारणी 4 : जीडीपी के माँग घटक

मद

वित्तीय वर्ष

पहली तिमाही

चौथी तिमाही

पहली तिमाही

2007-08

2008-09

2008-09

2009-10

वर्ष-दर-वर्ष संवृद्धि दर (%)

निजी अंतिम उपभोक्ता व्यय

8.5

2.9

4.5

2.7

1.6

सरकारी अंतिम उपभोक्ता व्यय

7.4

20,2

(-)0.2

21.5

10.2

सकल स्थायी पूँजी निर्माण

12.9

8.2

9.2

6.4

4.2

निवल निर्यात

(-)36.7

(-)41.2

(-)75.9

(-)30.8

231.8

जीडीपी में हिस्सा (%)

निजी अंतिम उपभोक्ता व्यय

57.2

55.5

58.0

51.4

55.6

सरकारी अंतिम उपभोक्ता व्यय

9.8

11.1

9.6

13.4

9.9

सकल स्थायी पूँजी निर्माण

31.6

32.2

32.3

31.6

31.6

निवल निर्यात

(-)4.3

(-)5.8

(-)1.3

(-)2.9

1.6

स्रोत : केद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ)

कारपोरेट कार्य निष्पादन

21. निजी वित्तेतर कारपोरेट क्षेत्र के विक्रय वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 2008-09 की चौथी तिमाही(1.7 प्रतिशत) की तुलना में मामूली रूप से घट कर 2009-10 की पहली तिमाही में (0.9 प्रतिशत) हो गए। गिरावट की प्रवृत्ति की पृष्ठभूमि में, फर्मों ने परिवर्तित चक्रीय परिस्थितियों के प्रति 2008-09 की दूसरी तिमाही के आसपास अपनी इन्वेंटरियों को घटाते हुए त्वरित प्रतिक्रिया दी थी। अब, 2009-10 की पहली तिमाही में सुधार की स्थिति प्रारंभ होने से बिक्री की तुलना में स्टाकों के अनुपात में आई बढ़ोतरी वृद्धि की प्रवृत्ति की विशेषता रही। निवल लाभ में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि में भी 2009-10 की पहली तिमाही में इसके पहले की तीन तिमाहियों में दर्ज हुई ऋणात्मक वृद्धि के बाद स्थिति में बदलाव आया (सारणी 5)।

सारणी 5 : निजी कारपोरेट क्षेत्र का कार्य निष्पादन

मद

पूर्ण वर्ष

पहली तिमाही

चौथी तिमाही

पहली तिमाही

 

2007-08

2008-09

2008-09

2009-10

वृद्धि दर (%)

विक्रय

18.6

17.2

29.3

1.9

(-) 0.9

व्यय

19.4

19.5

33.5

(-) 0.5

(-) 4.4

कच्चे माल की खपत

18.4

18.5

36.1

(-) 7.4

(-)13.4

स्टाफ लागत

22.4

19.5

23.2

11.0

8.2

सकल लाभ

24.9

(-) 4.2

11.9

(-) 8.8

5.8

निवल लाभ

26.0

(-)18.4

6.9

(-)19.9

5.5

अनुपात (%)

बिक्री की तुलना में ब्याज

2.5

3.1

2.4

3.2

2.8

बिक्री की तुलना में सकल लाभ

14.9

13.3

14.5

13.7

15.7

बिक्री की तुलना में निवल लाभ

9.8

8.1

9.7

8.1

10.2

कारोबारी विश्वास

22. रिज़र्व बैंक वर्ष 1998 से विनिर्माण कंपनियों का तिमाही औद्योगिक आउटलुक सर्वेक्षण करता रहा है। इस सर्वेक्षण में, चालू तिमाही के लिए कारोबारी प्रत्याशाओं तथा आगामी तिमाही के लिए कारोबारी संभावना का पता लगाया जाता है। जुलाई-अगस्त 2009 के दौरान किए गए अद्यतन सर्वेक्षण दौर में कारोबारी प्रवृत्ति में आमूलचूल बदलाव देखा गया। वर्ष 2009-10 की दूसरी तिमाही के मूल्यांकन में कारोबारी प्रत्याशा सूचकांक (बीईआइ) में पिछली तिमाही के मुकाबले 7.8 प्रतिशत की वृद्धि के साथ यह बदलाव बरकरार रहा। प्रमुख संकेतकों जैसे उत्पादन, आर्डर-बुक और क्षमता उपयोग में पर्याप्त सुधार पाया गया। वित्तपोषण की स्थितियों कों भी बेहतर बताया गया ।

23. वर्ष 2009-10 की तीसरी तिमाही के लिए विनिर्माण कंपनियों के लिए परिदृश्य में वृद्धि की प्रवृत्ति बरकरार है, और बीईआइ पिछली तिमाही के 109.9 के स्तर से बढ़कर 116.4 हो गया। उत्तरदाताओं ने उत्पादन और क्षमता उपयोग में और सुधार होने, कार्यकारी पूंजी के लिए वित्त की आवश्यकताएं बढ़ने, कच्चे माल की लागत बढ़ने और कीमत-निर्धारण शक्ति उन्हीं के पास लौटने की आशा व्यक्त की है। मांग स्थितियों में आए सुधार की पृष्ठभूमि में विनिर्माण कंपनियों को अपनी रोजगार स्थिति में और सुधार होने की आशा है। रिज़र्व बैंक के औद्योगिक आउटलुक सर्वेक्षण के निष्कर्ष मोटे तौर पर अन्य संस्थाओं जैसे एफआइसीसीआई, एनसीएईआर, एचएसबीसी-मार्किट तथा डन एण्ड ब्राडस्ट्रीट द्वारा किए गए कारोबारी विश्वास सर्वेक्षण के अनुरूप हैं।

मुद्रास्फीति

24. थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) में होनेवाली वर्ष-दर-वर्ष घट-बढ़ द्वारा मापी जानेवाली हेडलाइन मुद्रास्फीति जो आधार प्रभाव (बेस इफेक्ट) के कारण जून-अगस्त 2009 के दौरान ऋणात्मक बनी हुई थी, सितंबर 2009 में धनात्मक स्थिति में लौट आई। डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति एक वर्ष पहले के 11.30 प्रतिशत की तुलना में 10 अक्तूबर 2009 को 1.21 प्रतिशत थी, जबकि मार्च 2009 के अंत में यह 0.84 प्रतिशत थी। चालू वित्त वर्ष के दौरान (10 अक्तूबर 2009 तक) डब्ल्यूपीआई में 5.95 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो कम मानसून के कारण हुई उच्चतर खाद्यान्न मूल्यस्फीति का परिचायक है।

25. जुलाई 2009 की प्रथम तिमाही समीक्षा में अनुमानित कम मानसून वर्षा का सकारात्मक जोखिम अब सामने आया है और प्राथमिक खाद्यान्न मदों और विनिर्मित खाद्य उत्पादों के मूल्य न्यून आपूर्ति के कारण बढ़ गए हैं। चालू वित्त वर्ष (10 अक्तूबर 2009 तक) के दौरान गेहूं (3.5 प्रतिशत) और चावल (5.9 प्रतिशत) के मूल्यों की वृद्धि अपेक्षाकृत कम थी, क्योंकि आपूर्ति के दबाव सार्वजनिक एजेंसियों के पास विद्यमान अच्छे खाद्यान्न भंडार से निष्प्रभ हो गए जो 16.2 मिलियन टन के न्यूनतम स्टाक मानदंड के मुकाबले 1 अक्तूबर 2009 को 44.3मिलियन टन थे। तथापि, निम्नलिखित के मूल्यों में तेज वृद्धि दर्ज हुई है - सब्जियां (59.3प्रतिशत), चाय (30.7 प्रतिशत), चीनी, खांडसरी और गुड़ (28.7 प्रतिशत), अंडे, मांस और मछली (25.3 प्रतिशत), दालें (19.2 प्रतिशत), ज्वार (14.9 प्रतिशत), अचार और मसाले (14.2 प्रतिशत), दूध (7.0 प्रतिशत) और फल (5.2 प्रतिशत)।

26. चूंकि डब्ल्यूपीआइ ऋणात्मक स्थिति से धनात्मक स्थिति की ओर बढ़ रहा है, अत: चालू स्फीतिकारी दबाव अप्रैल-अक्तूबर 2008 में देखे गए स्फीतिकारी दबावों से काफी भिन्न हैं। हालांकि, मुद्रास्फीति के दोनों ही प्रसंग आपूर्ति के दबावों के कारण हुए थे, वर्ष 2008 में आयी मुद्रास्फीति बड़े पैमाने पर अंतर्राष्टीय बाज़ार में मूल धातुएं और खनिज तेलों के मूल्यों में तीव्र वृद्धि के कारण थी। इसके विपरीत, वर्तमान प्रसंग के दौरान मूल्य दबाव देशी स्रोतों से उभरे हैं जो खाद्यान्न वस्तुओं और खाद्य उत्पादों के मूल्यों में वृद्धि का परिचायक है (चार्ट 1)।

1

27. विभेदक स्तर पर, खाद्य वस्तुओं, अत्यावश्यक पण्यों और विनिर्मित खाद्य उत्पादों की डब्ल्यूपीआइ स्फीति दरें वर्तमान में दो अंकों में हैं और वे अपने सामान्य स्तर से काफी अधिक हैं (सारणी 6)।

सारणी 6: वार्षिक मुद्रास्फीति दर (वर्ष-दर-वर्ष) (%)

थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ)

11 अक्तूबर 2008

10 अक्तूबर 2009

डब्ल्यूपीआइ - सभी वस्तुएं

11.30

1.21

डब्ल्यूपीआइ - प्राथमिक वस्तुएं

12.56

8.62

डब्ल्यूपीआइ - खाद्य वस्तुएं

10.17

13.34

डब्ल्यूपीआइ - ईंधन समूह

14.49

(-) 6.80

डब्ल्यूपीआइ - विनिर्मित उत्पाद

9.53

1.26

डब्ल्यूपीआइ - विनिर्मित खाद्य उत्पाद

8.82

16.06

डब्ल्यूपीआइ - अत्यावश्यक वस्तुएं*

8.66

17.82

डब्ल्यूपीआइ - ईंधन को छोड़कर

10.43

3.48

डब्ल्यूपीआइ - खाद्य वस्तुएं और ईंधन को छोड़कर

10.50

0.96

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ)

सितंबर 2008

सितंबर 2009

सीपीआइ - औद्योगिक कामगार #

9.02

11.72

सीपीआइ - शहरी श्रमेतर कर्मचारी #

8.54

12.88

सीपीआइ - कृषि मज़दूर

10.98

13.19

सीपीआइ - ग्रामीण मज़दूर

10.98

12.97

* आवश्यक वस्तुओं (डब्ल्यूपीआइ में भार : 17.8 प्रतिशत) में चावल, गेहूं, ज्वार, बाज़रा, दालें, आलू, प्याज़,
दूध, मीठे पानी की मछली, माँस, मिरची (सूखी), चाय, कोंकिंग कोयला, केरोसीन, आटा, चीनी, गुड़, नमक,
हाइड्रोजनीकृत वनस्पति, रेपसीड और राई तेल, नारियल तेल, मूंगफली तेल,
लॉन्ग क्लॉथ/चादरें, धोतियां, साड़ियां, वायल, घरेलू लाँड्री साबुन और माचिस शामिल हैं। 
# अगस्त से संबंधित।

28. डब्ल्यूपीआइ और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) मुद्रास्फीति दरों में हाल ही के विपरीत उतार-चढ़ावों ने उनके बीच के सामंजस्य पर प्रश्नचिहन लगा दिया है। अल्पावधि में, डब्ल्यूपीआइ और सीपीआइ पर आधारित मुद्रास्फीति दरें व्याप्ति और भारांकों की भिन्नताओं की वजह से अलग-अलग हो सकती हैं। तथापि, ये भिन्नताएं कालांतर में समाप्त हो जाती हैं, क्योंकि थोक मूल्यों में हो रहे परिवर्तन के पश्चात खुदरा मूल्य बदल जाते हैं। उदाहरणस्वरूप, वर्ष 2003 से 2008 तक की पांच वर्ष की अवधि में, औद्योगिक कामगारों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित 4.83 का औसत मुद्रास्फीति 4.99 प्रतिशत के औसत डब्ल्यूपीआइ स्फीति से अधिक भिन्न नहीं था।

29. हाल की अवधि में सीपीआइ स्फीति का डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति से उल्लेखनीय रूप से भिन्न होने का अवसर पहली बार वर्ष 2004 के मध्य में आया। दो मुद्रास्फीति दरों के बीच का यह अंतर बाद में बना रहा परंतु ये दरें तुलनात्मक रूप से कम सीमा में बनी रही। तथापि, हाल में यह अंतर सीपीआइ मुद्रास्फीति की दर द्विअंकीय हो जाने के बावजूद डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति ऋणात्मक होने के कारण बढ़ गया है (चार्ट 2)। इस विशेषता के होने के कई तत्व हैं। पहला, खाद्य मूल्य, जिनका भारांक डब्ल्यूपीआइ (26 प्रतिशत) की तुलना में सीपीआइ (4669प्रतिशत के दायरे में) है, वे हाल ही में तीव्र गति से बढ़ गये हैं। दूसरा, विभिन्न उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों में सेवाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले विविध समूह (भारांक 12-24 प्रतिशत के दायरे में) पर भी मूल्य संबंधी दबाव उल्लेखनीय रूप से परिलक्षित हुए हैं। ये सेवाएं डब्ल्यूपीआइ में शामिल नहीं हैं। तीसरा, धातुओं के मूल्यों, जो सीपीआइ समूह का भाग नहीं है, में तीव्र गिरावट आई है जिससे सीपीआइ और डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति की दरों के बीच अंतर होने की स्थिति को बल मिला है। चौथा, जहां जून-अगस्त 2009 के दौरान एक मज़बूत आधार प्रभाव ने डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति को ऋणात्मक बना दिया, वहीं सीपीआइ मुद्रास्फीति के लिए कोई आधार प्रभाव नहीं था।

2

30. औद्योगिक कामगारों (आइडब्ल्यू) और शहरी श्रमेतर कर्मचारियों (यूएनएमई) के लिए सीपीआइ पर आधारित मुद्रास्फीति में छठे वेतन आयोग अवार्ड के अनुपालन में दिए जा रहे किराया-रहित आवासों निविष्टि-मूल्यों में उल्लेखनीय ऊर्ध्वमुखी परिवर्तन के कारण एक-मुश्त बढ़त हुयी है । वर्तमान में, दो मूल्य सूचकांकों के बीच की अत्यधिक भिन्नता के बावजूद, सीपीआइ मुद्रास्फीति, डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति के अत्यावश्यक वस्तुओं के घटक का करीब से अनुगमन करती है जो यह दर्शाता है कि वर्तमान सीपीआइ मुद्रास्फीति अनिवार्यतया खाद्य मूल्यों से परिचालित होती है (चार्ट 3)।

4

आस्ति मूल्य स्फीति

31. हाल ही की अवधि में आस्ति मूल्यों में तीव्र वृद्धि हुई है। स्टॉक मूल्यों में वर्तमान वित्तीय वर्ष में अब तक 70 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई है। वर्ष 2008 के उत्तरार्ध में और वर्ष 2009 के प्रारंभ में कुछ सुधार दर्शाने के बाद, प्रमुख शहरों में भूसंपदा के मूल्यों में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हुई हैं। हाल ही के महीनों में भारत में पण्यों के मूल्यों में भी वृद्धि हुई है। वैश्विक बाजार में मजबूती की प्रवृत्ति दिखलाते हुए, भारत में सोने के मूल्यों में, विशेषकर अगस्त 2009 के बाद, काफी वृद्धि हुई है और मार्च 2009 के अंत में 15,105 रुपये की तुलना में 23 अक्तूबर 2009 को प्रति 10 ग्राम के लिए उसका मूल्य 16,035 रुपये था।

राजकोषीय परिदृश्य

32. वर्ष 2009-10 के पहले पांच महीनों (अप्रैल-अगस्त) में केंद्र सरकार का राजस्व घाटा बजट अनुमान का 54.9 प्रतिशत था, जबकि राजकोषीय घाटा 45.5 प्रतिशत था (सारणी-7)।

सारणी 7 : केंद्र सरकार की राजकोषीय स्थिति

मद

जीडीपी का %

अप्रैल-अगस्त के दौरान वास्तविक

2008-09
 (सं.अ.)

2009-10
(ब.अ.)

2008-09
(सं.अ.का %)

2009-10
(ब.अ. का %)

1

सकल कर राजस्व

11.8

10.9

30.3

26.2

2

कुल व्यय

16.9

17.4

31.0

33.6

3

राजकोषीय घाटा

6.2*

6.8

35.8

45.5

4

राजस्व घाटा

4.6*

4.8

40.6

54.9

5

प्राथमिक घाटा

2.6*

3.0

38.1

62.8

* महा लेखा नियंत्रक द्वारा जारी अनंतिम लेखों के अनुसार
बअ : बजट अनुमान      संअ : संशोधित अनुमान

33. बजट अनुमानों के अनुसार, 2008-09 के दौरान वास्तविक उधार के बढ़े हुए स्तर की तुलना में 2009-10 के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की कुल निवल उधार आवश्यकता 34प्रतिशत उच्चतर होगी (सारणी 8)।

सारणी 8 : केद्र और राज्य सरकारों द्वारा लिए गए उधार

(करोड़ रुपये)

मद

2007-08
वास्तविक

2008-09
वास्तविक

2009-10
बजट अनुमान

केंद्र सरकार

 

 

 

बाजार से लिए लिए गए सकल उधार $

1,88,215

3,18,550

4,91,044

बाजार से लिए गए निवल उधार

1,08,998

2,98,536

3,97,957

राज्य सरकारें

 

 

 

बाजार से लिए गए निवल उधार

56,224

1,03,766

1,40,000*

बाजार से लिए गए निवल उधार की कुल राशि

1,65,222

4,02,302

5,37,957

$ दिनांकित प्रतिभूतियों और 364 दिवसीय खजाना बिलों के संबंध में है।
* अनुमानित। 2008-09 में राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज के रूप में राज्य सरकारों को जीएसडीपी के 0.5 प्रतिशत की
अतिरिक्त राशि उधार लेने की अनुमति दी गयी है और केंद्रीय बजट 2009-10 में जीएसडीपी के 0.5 प्रतिशत की
अतिरिक्त राशि की अनुमति दी गयी है। इससे 2009-10 में उनके बजट में निर्धारित किए अनुसार लिए गए
उधार जीएसडीपी के 4.0 प्रतिशत हो गए हैं।

34. जैसा कि जुलाई 2009 की पहली तिमाही समीक्षा में उल्लेख किया गया था, रिज़र्व बैंक के सम्मुख एक प्रमुख चुनौती यह है कि केंद्र सरकार द्वारा बड़ी राशियां बाजार उधार कार्यक्रम से जुटाने का प्रबंधन बिना किसी व्यवधान डाले कैसे किया जाए। इस प्रयोजन के लिए रिज़र्व बैंक ने कई उपाय प्रारंभ किये, जिनमें से कुछ अपारंपरिक थे। पहला, रिज़र्व बैंक ने 2009-10 के लिए उधार लेने के कार्यक्रम को  पूवार्ध में भरित किया क्योंकि पहली छमाही में सामान्यतया निजी क्षेत्र कम उधार लेता है। दूसरा, 28,000 करोड़ रुपये की एमएसएस की प्रतिभूतियों को पुन: प्रचलन में लाया गया। तीसरा, रिज़र्व बैंक ने एमएसएस प्रतिभूतियों को विमुक्त कर तथा खुला बाजार परिचालनों के पूर्व घोषित कैलेन्डर के अनुसार खरीद के द्वारा चलनिधि के सक्रिय प्रबंधन का सहारा लिया। वर्ष की पहली छमाही के दौरान एमएसएस प्रतिभूतियों का विमोचन प्रतिदान के माध्यम से 42,000 करोड़ रुपये का था। इसके अतिरिक्त, 2009-10 की पहली छमाही के लिए नीलामी के माध्यम से 80,000 करोड़ रुपये की राशि के खुला बाजार परिचालनों की घोषणा की तुलना में, वास्तविक खरीद 57,487 करोड़ रुपये की थी। अनुमान की तुलना में कमी - चलनिधि की सहज परिस्थितियें के कारण रहीं। बाजार के सहभागियों से प्राप्त जानकारी  से पता चलता है कि खुला बाजार परिचालनों से काफी राहत मिली।

35. वर्ष 2009-10 के दौरान (26 अक्तूबर, 2009 तक) केंद्र सरकार ने दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से 3,19,911 करोड़ रुपये के निवल बाजार उधार (बजट अनुमान का 80.4 प्रतिशत) पूरा कर लिया है (सारणी 9)। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकारों ने भी बाजार उधार कार्यक्रम के माध्यम से 58,683 करोड़ रुपये (निवल) की राशि जुटायी। बाजार उधार कार्यक्रम की प्रंट लोडिंग के परिणामस्वरूप, 2009-10 की शेष अवधि में केंद्र सरकार के उधार कार्यक्रम के तहत निवल निर्गम 62,464 करोड़ रुपये के होंगे (सारणी 9)। चलनिधि के वर्तमान स्तर को देखते हुए, उधार लेने के इस कार्यक्रम को सहजता से पूरा किया जा सकेगा।

सारणी 9 : 2009-10 के दौरान केंद्र सरकार द्वारा लिए गए उधार : दिनांकित प्रतिभूतियां

(करोड़ रुपये)

 

मद

 

पूर्ण वर्ष
(योजनागत)

 

पहली छमाही
(वास्तविक)

 

दूसरी छमाही

योज
नागत

 

वास्तविक
(26 अक्तूबर
2009 तक)

शेष

बाज़ार से लिए गए सकल उधार**

4,18,000

2,95,000

1,23,000

30,000

93,000

घटाएं: चुकौती

53,136

33,089

19,500

0

19,500

बाज़ार से लिए गए निवल उधार**

3,64,864

2,61,911

1,03,500

30,000

73,500

घटाएं: खुला बाजार परिचालन क्रय

57,487*

57,487

*

0

*

जोड़िए: एमएसएस का  (निवल) **

(-) 53,036

(-) 42,000

(-)11,036

0

(-)11,036

नयी प्रतिभूतियों की निवल आपूर्ति

2,54,341

1,62,424

92,464

30,000

62,464

* वर्ष 2009-10 की पहली छमाही के लिए खुला बाजार परिचालन क्रय के 80,000 करोड़ रुपये नियोजित किये गये थे।
आवश्यकतानुसार रिज़र्व बैंक वर्तमान राजकोषीय वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में खुला बाजार परिचालन आयोजित करेगा।
** एमएसएस के पुन:प्रचलन के माध्यम से जुटाया गई राशि को छोड़कर।

36. सरकार द्वारा बड़ी राशियां जुटाने के उधार कार्यक्रम के बावजूद, पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के लिए 8.81 प्रतिशत की तुलना में, 2009-10 में (26 अक्तूबर 2009 तक) केंद्र सरकार के उधार कार्यक्रम के तहत जारी की गयी दिनांकित प्रतिभूतियों पर भारित औसत आय 7.14 प्रतिशत के स्तर पर कम थी। तथापि, अत्यधिक उतार-चढ़ाव के कारण मार्च के अंत में 10-वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों पर 7.01 प्रतिशत आय की तुलना में सितंबर 2009 के प्रारंभ में आय 7.47 प्रतिशत हो गयी। बाद में, अक्तूबर 2009 के मध्य तक यह 7.35 प्रतिशत के स्तर पर आकर ठहर गयी। रिज़र्व बैंक ने बाजार की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ऋण निर्गमों की परिपक्वता अवधि में भी परिवर्तन किया। पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में 15.5 वर्ष की औसत परिपक्वता अवधि की तुलना में, 2009-10 के दौरान (26 अक्तूबर 2009 तक) जारी की गयी प्रतिभूतियों की भारित औसत परिपक्वता अवधि 11.0 वर्ष थी। बाजार के सहभागियों से पता चलता है कि यदि रिज़र्व बैंक द्वारा सक्रिय चलनिधि और परिपक्वता अवधि का प्रबंधन न किया जाता, तो शायद आय काफी अधिक स्तर पर जा सकती थी ।

मौद्रिक परिस्थितियां

37. वर्ष 2009-10 के दौरान (9 अक्तूबर 2009 तक) मौद्रिक समग्र घटकों में वृद्धि कुल मिलाकर अनुमानों के अनुरूप रही है। प्रारक्षित मुद्रा (आरएम) में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि नकारात्मक हो गई जो कि अक्तूबर-जनवरी 2008-09 के दौरान बैंकों के सीआरआर में 400 आधार अंकों की कमी दिखलाता है, जिससे रिज़र्व बैंक के पास बैंकों के शेषों में कमी हो गयी। सीआरआर में परिवर्तनों के पहले दौर के प्रभाव को समायोजित करते हुए, प्रारक्षित मुद्रा में वृद्धि सकारात्मक थी, लेकिन पिछले वर्ष की तुलना में कम थी (सारणी 10)।

सारणी 10: मौद्रिक समग्र राशियों में वार्षिक घट-बढ़ (%)

मद

2008-09
(10 अक्तूबर
2008)

2009-10
(9 अक्तूबर
2009)

प्रारक्षित मुद्रा

28.8

(-) 4.0

प्रारक्षित मुद्रा (प्रारक्षित नकदी निधि के लिए समायोजित)

20.6

14.3

संचलन में मुद्रा

21.4

15.4

मुद्रा आपूर्ति (एम3)

20.9

18.9

एम3 (नीतिगत अनुमान)

16.5-17.0 *

18.0 **

मुद्रा गुणक

4.44

5.5

मुद्रा में रिज़र्व बैंक की निवल विदेशी मुद्रा आस्तियों का अनुपात

210.6

175.9

* वार्षिक नीति वक्तव्य 2008-09 (अप्रैल 2008) के अनुसार अनुमान।
** मौद्रिक नीति 2009-10 (जुलाई 2009) की पहली तिमाही समीक्षा के अनुसार अनुमान।

38. जुलाई 2009 की पहली तिमाही समीक्षा में 18.0 प्रतिशत के संकेतक अनुमान 18.0 प्रतिशत की तुलना में 9 अक्तूबर 2009 को वर्ष-दर-वर्ष आधार पर मुद्रा आपूर्ति (एम3) की वृद्धि 18.9 प्रतिशत थी। एम3 में वृद्धि का प्रमुख स्रोत - सरकार को बैंक उधार था जो सरकार का बड़ी राशियों के लिए बाजार उधार दिखलाता है। यह 2008-09 की स्थिति के विपरीत है जब वाणिज्य क्षेत्र को बैंक उधार तथा बैंकिंग क्षेत्र की निवल विदेशी मुद्रा आस्तियां एम3 की वृद्धि से अधिक था (सारणी 11)।

सारणी 11 : अक्तूबर तक मुद्रा आपूर्ति के प्रमुख स्रोतों में संवृद्धि (%)

मद

वित्तीय वर्ष

वर्ष-दर-वर्ष

2008-09
(10 अक्तूबर)

2009-10
(9 अक्तूबर)

2008-09
(10 अक्तूबर)

2009-10
(9 अक्तूबर)

मुद्रा आपूर्ति (एम3)

7.7

8.0

20.9

18.9

सरकार को निवल बैंक ऋण

10.1

12.4

16.8

44.9

वाणिज्यिक क्षेत्र को बैंक ऋण

9.8

4.1

27.4

10.7

बैंकिंग क्षेत्र की निवल विदेशी विनिमय आस्तियां

4.2

(-)1.4

30.0

(-)1.2

39. वर्ष 2009-10 के दौरान मौद्रिक प्रबंधन को वैश्विक वित्तीय संकट के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए और बिना किसी रुकावट के सरकार द्वारा बाज़ार से बड़ी राशियां उधार लेने के कार्यक्रम को पूरा करने के लिए चलनिधि मुहैया कराने की आवश्यकता के अनुरूप रखा गया है । विदेशी आस्तियों के स्थान पर स्वदेशी आस्तियों के प्रतिस्थापन का कार्य, जो वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही में प्रारंभ हुआ था, चालू वर्ष के प्रथम दो महीनों के दौरान जारी रहा। तथापि, यह प्रवृत्ति मई 2009 के बाद बदल गई जब निवल आधार पर पूंजी का आगमन पुन: प्रारंभ हुआ। नवंबर 2008 के मध्य से चलनिधि की अधिक्यता रही। वर्ष 2009-10 (23 अक्तूबर 2009 तक) के दौरान एलएएफ विंडो के अंतर्गत रिज़र्व बैंक द्वारा प्रतिदिन औसतन 1,20,000 करोड़ रुपए की राशि अवशोषित की गई, जिससे यह पता चलता है कि बैंकिंग प्रणाली में अत्यधिक अधिशेष राशि मौजूद है और यह निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 2.7 प्रतिशत के बराबर है ।

वित्तपोषण की स्थिति

बैंक ऋण

40. अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबी) द्वारा दिए गए खाद्येतर ऋण में काफी गिरावट हुई, जिससे इस वर्ष (9 अक्तूबर 2009 की स्थिति के अनुसार) की संवृद्धि दर (वर्ष-दर-वर्ष) पिछले वर्ष के 29.4 प्रतिशत से घटकर 11.2 प्रतिशत हो गई । वित्तीय वर्ष (9 अक्तूबर 2009 तक) के आधार पर भी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के खाद्येतर ऋण में 4.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई जोकि पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में हुई 10.5 प्रतिशत की संवृद्धि से काफी कम है।

41. खाद्येतर बैंक ऋण में हुई मंदी में कई कारकों का योगदान है। पहला, यह है कि विनिर्माण क्षेत्र की समग्र ऋण मांग में कमी आयी जिससे पण्य वस्तुओं की कीमतों में गिरावट और इन्वेन्ट्रीज़ में कमी दिखाई पड़ी । दूसरा है कि कंपनियां निम्नतर लागत पर गैर-बैंक निधि के देशी स्रोतों एवं बाह्य वित्तपोषण से निधि प्राप्त कर सकीं जोकि संकट के दौरान करीब-करीब समाप्त हो गए थे । तीसरा यह है कि पिछले वर्ष की स्थिति के विपरीत तेल विपणन कंपनियों ने बैंकिंग क्षेत्र से उधार लेना कम किया, क्योंकि तेल की कीमतों में गिरावट हुई । चौथा है बैंक वित्त की काफी राशि म्यूचुअल फंडों की यूनिटों में निवेश के माध्यम से कंपनी क्षेत्र को गई। पांचवां यह है कि बैंकों ने सामान्य मंदी के कारण जोखिम की आशंका से खुदरा क्षेत्र को दिए जाने वाले ऋण पर भी काबू रखा। इस प्रकार के ऋणों में कटौती विदेशी बैंकों और निजी क्षेत्र के बैंकों के मामले में अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ी। बैंक समूह-वार विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि निजी क्षेत्र के बैंकों से दिए जाने वाले ऋण में तीव्र कमी आयी जबकि वास्तविक रूप से विदेशी बैंकों ने वास्तविक रूप से ऋण संकुचन किया (सारणी 12)। इस प्रकार प्रणाली में पर्याप्त चलनिधि के बावजूद खाद्येतर बैंक ऋण विस्तार की गति कम हुई।

सारणी 12 : अक्तूबर तक बैंक समूहवार जमाराशियां
और ऋण संवृद्धि (%) (वर्ष-दर-वर्ष)

बैंक समूह

2008-09
(10 अक्तूबर 2008)

2009-10
(9 अक्तूबर 2009)

 

जमाराशियां

सरकारी क्षेत्र के बैंक

23.6

24.4

विदेशी बैंक समूह

23.2

11.5

निजी बैंक समूह

14.1

6.1

अनुसूचित वाणिज्य बैंक*

21.5

20.0

 

ऋण

सरकारी क्षेत्र के बैंक

32.7

15.3

विदेशी बैंक समूह

32.9

(-)15.9

निजी बैंक समूह

19.7

2.5

अनुसूचित वाणिज्य बैंक*

29.5

10.8

*  क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित

42. बैंकों ने सरकारी प्रतिभूतियों में बड़े निवेश और म्यूचुअल फंडों के यूनिटों में भी काफी बड़ी मात्रा (चालू वित्तीय वर्ष के दौरान अब तक 92,000 करोड़ रुपए की राशि) में निवेश करने के लिए अपने पास उपलब्ध पर्याप्त चलनिधि का उपयोग किया। बाद में, वाणिज्यिक बैंकों के एसएलआर प्रतिभूतियों (एलएएफ के अधीन उपार्जित प्रतिभूतियों सहित) में वाणिज्य बैंकों के निवेश में एक वर्ष पहले के 25.7 प्रतिशत से बढ़कर 9 अक्तूबर 2009 की स्थिति के अनुसार अपने एनडीटीएल का 30.4 प्रतिशत हो गया। एलएएफ संपार्श्विक प्रतिभूतियों के निवल रूप में बैंकों का एसएलआर निवेश 9 अक्तूबर 2009 की स्थिति के अनुसार एनडीटीएल का 27.6 प्रतिशत था।

43. कुल बैंक ऋण के 95 प्रतिशत वाले 49 बैंकों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में अगस्त 2009 में उद्योग को वर्ष-दर-वर्ष बैंक ऋण में वृद्धि कम रही। कृषि, स्थावर संपदा और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को ऋण का प्रवाह उच्च स्तर पर रहा लेकिन आवासन के लिए यह कम था (सारणी 13)।

सारणी 13 : ऋण का वार्षिक क्षेत्रगत प्रवाह

क्षेत्र

29 अगस्त 2008 को (वर्ष-दर-वर्ष)

29 अगस्त 2009 को (वर्ष-दर-वर्ष)

राशि
(करोड़ रुपए में)

कुल में प्रतिशत अंश

घट-बढ़
(%)

राशि
(करोड़ रुपए में)

कुल में प्रतिशत अंश

घट-बढ़
(%)

कृषि

41,185

8.5

18.6

67,228

21.8

25.6

उद्योग

2,30,229

47.5

32.9

1,66,121

53.8

17.9

जिसमें से :

 

 

 

 

 

 

सूक्ष्म एवं लघु

23,865

4.9

20.1

40,146

13.0

28.1

स्थावर संपदा

20,580

4.2

43.1

28,353

9.2

41.5

आवास

29,872

6.2

12.4

14,668

4.8

5.4

गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां

26,443

5.5

51.8

23,837

7.7

30.8

समग्र ऋण

4,84,805

100.0

26.5

3,08,718

100.0

13.3

टिप्पणी : आंकड़े अनंतिम है और उन चुनिंदा बैंकों से संबंधित है, जो समस्त अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा दिये  जानेवाले कुल गैर-खाद्य ऋण के 95 प्रतिशत भाग को कवर करते हैं।

वाणिज्यिक क्षेत्र को वित्तीय संसाधनों का कुल प्रवाह

44. संकट के सर्वोच्च स्तर (जनवरी 2009 की तीसरी तिमाही समीक्षा) के दौरान यह पाया गया था कि बैंक और गैर-बैंक दोनों स्रोतों से वाणिज्य क्षेत्र को संसाधनों का प्रवाह कम हो गया था। जबकि पहले उल्लेख किए गए अनुसार बैंक ऋण में लगातार कमी आयी और गैर-बैंक स्रोतों से वित्तपोषण में भी कमी आयी । विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में वृद्धि, प्राथमिक मामलों में सुधार, बीमा कंपनियों से समर्थन में वृद्धि और गैर-उपहार ऋण में पारस्परिक निधियों द्वारा बड़े निवेश सहित वर्ष 2009-10 की दूसरी तिमाही में गैर-बैंक स्रोतों से संसाधनों के प्रवाह में वृद्धि हुई। 2009-10 में (9 अक्तूबर तक) गैर-बैंक स्रोतों में मामूली रूप से वृद्धि हुई, बैंक ऋणों में आई मंदी के परिणामस्वरूप, वाणिज्यिक क्षेत्र को वित्तीय संसाधनों के कुल प्रवाह में वर्ष 2008-09 की तदनुरूपी अवधि की तुलना में कमी आयी (सारणी 14)।

सारणी 14 : वाणिज्यिक क्षेत्र को वित्तीय संसाधनों का कुल प्रवाह

(करोड़ रुपये)

मद

संपूर्ण वर्ष

वित्तीय वर्ष के दौरान अब तक
(9 अक्तूबर तक)

2007-08

2008-09

2008-09

2009-10

बैंकों से

4,44,807

4,21,091

2,40,092

1,07,861

अन्य स्रोतों से*

5,64,558

4,68,567

2,28,119

2,30,130

कुल संसाधन

10,09,365

8,89,658

4,68,211

3,37,991

मेमो मद:

म्यूचुअल फंडों द्वारा ऋण लिखतों(नॉन-गिल्ट) में निवेश

88,457

(-)32,168

19,896

1,01,956

* उपलब्ध अद्यतन आंकड़ों के अनुसार, दोहरी गणना को समायोजित करते हुए इसमें वित्तीय संस्थाओं (एल आई सी सहित) और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा दिए गए उधारों के साथ-साथ पूंजी बाजार से जुटाए गए संसाधन और ईसीबी, एफसीसीबी, एडीआर/जीडीआर, एफडीआई और अल्पकालिक ऋण के माध्यम से प्राप्त राशियां भी शामिल हैं।

ब्याज दरें

45. संकट से निपटने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा अक्तूबर 2008 की शुरुआत से नीतिगत दरों, रेपो दर में 425 आधार अंकों की और रिवर्स रेपो दर में 275 आधार अंकों की महत्वपूर्ण कटौती की गई। आरक्षित नकदी निधि अनुपात में भी बैंकों की निवल मांग और मीयादी देयताओं के 400 आधार अंकों तक की कटौती की गयी (सारणी 15)।

सारणी 15 : अक्तूबर 2008 से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति में लायी गयी सहजता

 

मद

की स्थिति के अनुसार (प्रतिशत)

अक्तूबर 2008 के प्रारंभ

अक्तूबर 2009

कटौती
(आधार अंकों में)

रेपो दर

9.00

4.75

425

रिवर्स रेपो दर

6.00

3.25

275

आरक्षित नकदी निधि अनुपात (एनडीटीएल का %)

9.00

5.00

400

46. रिज़र्व बैंक की नीतिगत दरों में की गई कटौती से संकेत लेते हुए और चलनिधि की सहज परिस्थितियों को देखते हुए सरकारी क्षेत्र के सभी बैंकों और निजी क्षेत्र के अधिकांश बैंकों ने अपनी जमा और उधार दरों में कमी की। अक्तूबर 2008 और 1 अक्तूबर 2009 के मध्य सावधि जमा दरों में की गई कमी सरकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा 175-350 आधार अंकों, निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा 100-375 आधार अंकों और पांच प्रमुख विदेशी बैंकों द्वारा 125-300 आधार अंकों के दायरे में रही। बेंचमार्क मूल उधार दरों में सरकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा की गई कटौती 125-275 आधार अंकों के दायरे में रही, इसके बाद निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा 100-125 आधार अंकों की और पांच प्रमुख विदेशी बैंकों द्वारा 125 आधार अंकों की कटौती की गई (सारणी 16)।

सारणी 16 : जमा और उधार ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव

(प्रतिशत)

ब्याज दरें

अक्तूबर 2008 (%)

मार्च 2009 (%)

20 अप्रैल 2009 (%)

15 अक्तूबर 2009 (%)

15 अक्तूबर 2009 को
घट-बढ़ (आधार अंकों में)

अक्तूबर 2008 की तुलना में

20 अप्रैल 2009 की तुलना में

सावधि जमा दरें

सरकारी क्षेत्र के बैंक

क) 1 वर्ष तक

2.75-10.25

2.75-8.25

2.75-8.00

1.00-6.75

175-350

125-175

ख) 1 वर्ष से 3वर्ष तक

9.50-10.75

8.00-9.25

7.00-8.75

6.25-7.50

325

75-125

ग) 3 वर्ष से अधिक

8.50-9.75

7.50-9.00

7.25-8.50

6.50-8.00

175-200

50-75

निजी क्षेत्र के बैंक

क) 1 वर्ष तक

3.00-10.50

3.00-8.75

3.00-8.50

2.00-7.00

100-300

100-150

ख) 1 वर्ष से 3वर्ष तक

9.00-11.00

7.50-10.25

7.50-9.50

5.25-8.00

300-375

150-225

ग) 3 वर्ष से अधिक

8.25-11.00

7.50-9.75

7.50-9.25

5.75-8.25

250-275

100-175

पांच प्रमुख विदेशी बैंक

क) 1 वर्ष तक

3.50-9.50

2.50-8.00

2.50-8.00

2.25-6.50

125-300

25-150

ख) 1 वर्ष से 3वर्ष तक

3.60-10.00

2.50-8.00

2.50-8.00

2.25-7.50

135-250

25-50

ग) 3 वर्ष से अधिक

3.60-10.00

2.50-8.00

2.50-8.00

2.25-7.50

135-250

25-50

बीपीएलआर

सरकारी क्षेत्र के बैंक

13.75-14.75

11.50-14.00

11.50-13.50

11.00-13.50

125-275

50

निजी क्षेत्र के बैंक

13.75-17.75

12.75-16.75

12.50-16.75

12.50-16.75

100-125

0

पांच प्रमुख विदेशी बैंक

14.25-16.75

14.25-15.75

14.25-15.50

14.25-15.50

125

25

वित्तीय बाज़ार

मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाज़ार

47. सितंबर 2008 से आरंभ हुई मौद्रिक सहजता और नीतिगत दरों में की गई कटौतियों के परिणामस्वरूप घरेलू वित्तीय बाजारों में सभी आवधिक खंडों में ब्याज दरों में गिरावट आयी। नवंबर 2008 से मांग मुद्रा दर चलनिधि समायोजन सुविधा कॉरिडोर के निचले स्तर के आस-पास या उससे नीचे रही है। खजाना बिलों पर प्राथमिक आय में शिथिलता रही है (सारणी 17)।

सारणी 17 : ब्याज दरें - मासिक औसत (%)

लिखत/खंड

अक्तूबर 2008

मार्च 2009

जुलाई 2009

अक्तूबर 2009

मांग मुद्रा

9.90

4.17

3.21

3.18

सी बी एल ओ

7.73

3.60

2.78

2.51

मार्केट रेपो

8.40

3.90

2.81

2.67

जमा प्रमाणपत्र (सी डी)

10.00

7.53

4.96

3.60

वाणिज्यिक पत्र (सी पी)

14.17

9.79

4.71

4.29

91 दिवसीय खजाना बिल

8.13

4.77

3.22

3.23

10 वर्षीय सरकारी प्रतिभूति

7.80

6.57

7.00

7.33

सरकारी क्षेत्र के बैंकों के मॉडल बी पी एल आर

14.00

12.50

12.00

12.00

* 23 अक्तूबर 2009 तक औसत

48. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बड़े उधार कार्यक्रम के मद्देनजर वर्ष के पूर्वार्द्ध में सरकारी प्रतिभूतियों पर आय अधिक अस्थिरता के साथ बढ़ी। बाजार प्रवृति में परिवर्तन के कारण अगस्त के अंत में बांड आय में अचानक वृद्धि देखी गई और साथ ही 13 अगस्त - 3सितंबर, 2009 के दौरान 10-वर्षीय सरकारी प्रतिभूति पर आय में 42 आधार अंक की वृद्धि हुई। तथापि, रिज़र्व बैंक के इस आश्वासन के बाद कि बैंक अनवरत तरीके से चलनिधि स्थिति और सरकार के बाजार उधार कार्यक्रम को व्यवस्थित करेगा;यह आय स्थिर हुई (चार्ट 4)।

4

49. वर्तमान में, बैंकों को निवेशों की ‘परिपक्वता तक धारित’ (एच टी एम) श्रेणी में उनकी मांग और मीयादी देयताओं (डी टी एल) के 25 प्रतिशत तक सांविधिक चलनिधि अनुपात (एस एल आर) रखने की अनुमति है। हाल ही में, इस आधार पर कि ऐसी छूट सरकारी प्रतिभूतियों के आय और परिणामस्वरूप समूचे ब्याज दर क्षेत्र पर रहे ऊर्ध्वगामी दबाव को कम करेगी, इस सीमा को बढ़ाने की आवश्यकता पर चर्चा हुई है। रिज़र्व बैंक ने एच टी एम सीमा बढ़ाने के सुझाव पर विचार किया। यह स्मरण रहे कि 2004-05 में बैंकों को एकबारगी उपाय के रूप में उनकी मांग और मीयादी देयताओं के 25 प्रतिशत की सीमा तक एच टी एम श्रेणी में धारित कुल एस एल आर प्रतिभूतियों के अधीन एसएलआर प्रतिभूतियों को एच टी एम श्रेणी में अंतरित करने की अनुमति थी। नवंबर 2008 में एसएलआर को 25 प्रतिशत से घटाकर 24 प्रतिशत कर देने के बाद भी इस सीमा में कोई परिवर्तन नहीं किया गया। चूंकि एच टी एम अनुपात पहले से ही निर्धारित एस एल आर से अधिक है, इसलिए, एच टी एम अनुपात को और अधिक बढ़ाने की वांछनीयता पर कोई विचार नहीं किया गया।

संचारण प्रणाली

50. रिज़र्व बैंक की नीतिगत दरों में परिवर्तन जल्द ही मुद्रा और ऋण बाजारों में संचारित हुआ। तथापि, सिस्टम में कई संरचनागत कठिनाइयों, विशेषकर नियत ब्याज दर जमा देयताओं की वजह से क्रेडिट बाजार में यह संचारण धीमा था। चूंकि गत समय में उच्च दर पर करार की गई बैंक जमाराशियों का परिपक्व होना शुरू हो चुका है और बैंकों ने उल्लेखनीय रूप से अपनी मीयादी जमा दरें घटा दी हैं, क्रेडिट बाजार में निम्नतर नीतिगत दरों के संचारण में सुधार हुआ है। इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि बेंचमार्क मूल उधार दरों (बी पी एल आर) के उतार-चढ़ाव से पूरी तरह और शुद्ध रूप में प्रभावी उधार दरें में परिवर्तन परिलक्षित नहीं होते हैं क्योंकि लगभग दो-तिहाई बैंकों की उधार दरें बी पी एल आर दरों से नीचे हैं। ऐसी स्थिति में, बैंकों की उधार दरों में वास्तविक उतार-चढ़ाव बैंकों की औसत भारित उधार दरों में बेहतर रूप से परिलक्षित होता है। अपरिष्कृत अनुमान दर्शाते हैं कि अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की प्रभावी औसत उधार दर मार्च 2008 के 12.3 प्रतिशत से गिरकर मार्च 2009 - नवीनतम अवधि जिसके आंकड़े उपलब्ध हैं - तक 11.1 प्रतिशत हुई (चार्ट 5)। इसके अलावा, प्रभावी उधार दरों के लिए छद्म उपाय के रूप में चुनिंदा बैंकों के आंकड़े बताते हैं कि अग्रिमों पर भारित औसत आय मार्च 2009 के 10.6 प्रतिशत से कम होकर जून 2009 में 10.3 प्रतिशत हो गई।

5

51. बी पी एल आर संबंधी कार्य दल (अध्यक्ष : श्री दीपक मोहंती) जिसने अपनी रिपोर्ट 20 अक्तूबर 2009 को प्रस्तुत की, द्वारा किए गए विश्लेषण में बताया गया है कि यद्यपि 2004 में विभिन्न बैंक समूहों के बीच भारित औसत उधार दरों में काफी विचलन था; हाल की अवधि में इनमें एक समान दर पर अभिमुख होने की प्रवृत्ति देखी गई। इस दल ने आधार दर प्रणाली शुरू करने की सिफारिश की है।

विदेशी मुद्रा बाज़ार

52. वर्ष 2009-10 के दौरान (23 अक्तूबर 2009 तक), विदेशी मुद्रा बाज़ार व्यवस्थित रहा और रुपये में प्रमुख मुद्राओं की तुलना में द्विपक्षीय संचलन दृष्टिगत हुआ। वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान रुपया अमरीकी डालर की तुलना में 9.7 प्रतिशत और जापानी येन की तुलना में 2.6 प्रतिशत मजबूत हुआ जबकि पाउंड स्टर्लिंग की तुलना में 5.7 प्रतिशत और यूरो की तुलना में इसमें 3.2 प्रतिशत की गिरावट आई (चार्ट 6)। वास्तविक विनिमय दर के रूप में छह मुद्रा व्यापार आधारित वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) (199394=100) मार्च 2009 के अंत के 96.3 से बढ़कर 23 अक्तूबर 2009 तक 104.2 हो गयी।

इक्विटी बाज़ार

53. वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान (23 अक्तूबर 2009 तक) देशी पूंजी बाज़ार का द्वितीयक खंड उल्लासपूर्ण रहा। स्टाक मार्केट में तेजी से हुआ सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये आशावादी परिदृश्य के कारण, बड़े स्तर पर विदेशी संस्थागत निवेशों का अंतर्वाह दर्शाता है। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय स्टॉक मार्केट में वर्ष 2009-10 (21 अक्तूबर 2009 तक) में 13.8 बिलियन अमरीकी डालर की निवल खरीदारी की, जबकि वर्ष 2008-09 की तदनुरूपी अवधि में 8.6 बिलियन अमरीकी डालर की निवल बिक्री की गई थी। बीएसई सेन्सेक्स मार्च 2009 को अंत के 9,709 से बढ़कर 23 अक्तूबर 2009 क ाट 16,811 हो गया जो वर्ष 2009-10 के दौरान आज की तारीख तक 73.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।

6

बाह्य क्षेत्र

54. भारत का बाह्य खाता वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान सहज रहा। बाह्य मांग में कमी और देशी अर्थव्यवस्था में मंदी और निर्यातों की तुलना में आयात में अधिक कमी के कारण वस्तुगत व्यापार में कमी आई। व्यापार घाटा 2008-09 की प्रथम तिमाही के 31.4 बिलियन अमरीकी डालर से घटकर 2009-10 की प्रथम तिमाही में 26.0 बिलियन अमरीकी डालर हो गया । तथापि,आंशिक रूप से कच्चे तेल के मूल्यों में वृद्धि होने के कारण (सारणी 18) 2009-10 की प्रथम तिमाही में व्यापार घाटा 2008-09 की चौथी तिमाही के 14.6 बिलियन अमरीकी डालर की तुलना में अधिक रहा। वर्ष 2009-10 की प्रथम तिमाही में 5.8 बिलियन अमरीकी डालर का चालू खाता घाटा वर्ष 2008-09 की प्रथम तिमाही के 9.0 बिलियन अमरीकी डालर के घाटे की तुलना में कम था; वर्ष 2008-09 की चौथी तिमाही में 4.7 बिलियन अमरीकी डालर का चालू खाता अधिशेष रिकार्ड किया गया। वर्ष 2008-09 की अंतिम दो तिमाहियें में पूंजी खाते में दिखाई दे रहे ऋणात्मक शेष में पूरी तरह से परिवर्तन होकर वह वर्ष 2009-10 की प्रथम तिमाही के दौरान 6.7 बिलियन अमरीकी डालर का सकारात्मक शेष दर्शाने लगा।

सारिणी 18 : भारत का भुगतान संतुलन
(बिलियन अमरीकी डालर)

मद

सम्पूर्ण वर्ष

2008-09

2009-10

 

2007-08

2008-09

पहली तिमाही

चौथी तिमाही

पहली तिमाही

निर्यात

166.2

175.2

49.1

39.8

38.8

आयात

257.8

294.6

80.5

54.4

64.8

व्यापार संतुलन

(-)91.6

(-)119.4

(-)31.4

(-)14.6

(-)26.0

अदृश्य मदें, निवल

74.6

89.6

22.4

19.3

20.2

चालू खाता शेष

(-)17.0

(-)29.8

(-)9.0

4.7

(-)5.8

निवल पूंजी खाता

108.0

9.1

11.1

(-)5.3

6.7

समग्र शेष #

92.2

(-)20.1

2.2

0.3

0.1

मेमो

जी.डी.पी के प्रतिशत के रूप में

     

व्यापार शेष

(-)7.8

(-)10.3

चालू खाता शेष

(-)1.5

(-)2.6

निवल पूंजी अंतर्वाह

9.2

0.8

# समग्र शेष में चालू खाता शेष, निवल पूंजी खाता और भूल-चूक घटाकर शामिल हैं।

55. वर्ष 2009-10 में आज की तारीख तक विदेशी मुद्रा भंडार में आइएमएफ द्वारा किये गये एसडीआर आबंटन (5.2 बिलियन अमरीकी डालर) सहित 32.9 बिलियन अमरीकी डालर की वृद्धि हुई और यह 16 अक्तूबर 2009 की स्थिति के अनुसार 284.8 बिलियन अमरीकी डालर था (सारणी 19)।

सारणी 19: विदेशी मुद्रा भंडार में घट-बढ़

अवधि

घट-बढ़ (बिलयन अमरीकी डालर में)

पूर्ण वर्ष

2004-05

28.6

2005-06

10.1

2006-07

 47.6

2007-08

110.5

2008-09

(-)57.7

वित्तीय वर्ष (16 अक्तूबर तक)

2008-09

(-) 35.8

2009-10

32.9

56. विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन भुगतान संतुलनें के घटकों में होने वाले परिवर्तनें और विभिन्न प्रकार के अंतर्वाहों से संबंद्ध ‘चलनिधि जोखिमों’ को प्रदर्शित करने के प्रयासें द्वारा निर्देशित होता है।

II. मौद्रिक नीति का रुझान

57. सितम्बर 2008 के मध्य से ही अपनाई जा रही उदार मौद्रिक नीति के एक भाग के रूप में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने रुपया और डॉलर की भरपूर चलनिधि प्रदान की है और बाजार का ऐसा परिवेश बरकरार रखा है जो उत्पादक क्षेत्रों को कम लागत पर क्रेडिट के सतत प्रवाह के लिए समानुकूल है। प्रारंभ किए गए महत्वपूर्ण उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं - एलएएफ के तहत नीतिगत दरों को ऐतिहासिक न्यून स्तरों तक कम करना, आरक्षित निधि अपेक्षाओं को कम करना, क्षेत्र-विशेष से सम्बद्ध चलनिधि सुविधाओं और विदेशी मुद्रा स्वैप सुविधा की स्थापना, ईसीबी दिशानिर्देशों में छूट, जोखिम अधिभारों और प्रावधानीकरण में समायोजन के प्रतिचक्रीय विवेकपूर्ण उपाय और पुनर्गठित आस्तियों के लिए सशर्त विशेष नियामक ट्रीटमेन्ट।

चलनिधि प्रभाव

58. उदार मौद्रिक रुझान के साथ सामंजस्य रखते हुए, रिज़र्व बैंक ने खुले बाजार परिचालनों (ओएमओ) और बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) की प्रतिभूतियों के समापन के माध्यम से देशी आस्तियों का विस्तार किया ताकि अपेक्षित मौद्रिक विस्तार का समर्थन देने के लिए प्राथमिक चलनिधि प्रदान की जा सके। सितम्बर 2008 के मध्य से रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए विभिन्न उपायों से प्रणाली में 5,85,000 करोड़ रुपये की सकल चलनिधि में वास्तविक/संभावित बढ़ोतरी हुई।

59. रिज़र्व बैंक द्वारा विशिष्ट मौद्रिक छूट के परिणामस्वरूप, नवम्बर 2008 के बाद से बैंकिंग प्रणाली में चलनिधि की प्रचुरता रही है। यह सर्वाधिक स्पष्ट रूप से प्रकट है कि एलएएफ विन्डो के तहत प्रतिदिन औसतन लगभग 1,20,000 करोड़ रुपये की प्राप्ति हो रही है। रिज़र्व बैंक द्वारा स्थापित विभिन्न पुनर्वित्त सुविधाओं का प्रयोग भी कम ही रहा है, जो कि पुन: प्रकट करता है कि चलनिधि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। जैसा कि पहले भी उल्लेख किया जा चुका है कि विगत एक वर्ष के दौरान सभी बाजारों में ब्याज दरों में महत्वपूर्ण गिरावट रही। न्यूनतम नीतिगत दरों के क्रेडिट मार्किट तक पहुँच कर कार्यरूप लेने में देरी रही। अधिकांश वाणिज्य बैंकों ने डिपॉजिट दरें घटाईं जिससे निधियों की लागत में गिरावट आई और बैंक अपनी बीपीएलआर को कम कर सके। प्रभावी उधार दरें भी घट चुकी हैं क्योंकि बैंकों द्वारा अपना लगभग तीन चौथाई उधार बीपीएलआर दरों से कम दरों पर दिया जा रहा है।

संवृद्धि अनुमान

60. वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही के दौरान वास्तविक जीडीपी में 6.1 प्रतिशत की संवृद्धि दर्ज हुई जो कि 2008-09 की तदनुरुपी तिमाही में हुई 7.8 प्रतिशत की संवृद्धि से कम है, लेकिन 2008-09 की दूसरी छमाही में हुई 5.8 प्रतिशत की संवृद्धि से मामूली सी अधिक है। इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून 1972 के बाद से सर्वाधिक कमजोर रहा, जिसने कृषि फसलों की उपज और रकबे दोनों को प्रभावित किया। यह खरीफ की उपज को प्रभावित करेगा और रबी सत्र के दौरान कृषि उपज का कार्यनिष्पादन आपूर्ति प्रबन्ध के लिए महत्वपूर्ण रहेगा। कुल मिलाकर, 2009-10 में कृषि उपज विगत वर्ष की तुलना में कम रहने की संभावना है।

61. यद्यपि बाह्य माँग में निरंतर संकुचन बना रहा। तथापि बड़े राजकोषीय और मौद्रिक उत्प्रेरकों ने देशी खपत को बढ़ावा दिया और औद्योगिक क्षेत्र में सुधार में मदद मिली। औद्योगिक क्षेत्र की प्रत्याशाएँ प्रथम तिमाही समीक्षा के समय जितनी आशाजनक थी उससे भी ज्यादा आशाजनक रहीं। स्टॉक मार्किट में सुधार के साथ ही पूँजी -बाजार के प्राइमरी खंड में भी अभी हाल में क्रियाकलापों में बढ़ोतरी हुई। इसने और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थितियों में सहजता -दोनों ने साथ मिलकर निवेश क्रियाकलाप में बढ़ोतरी को अच्छा बढ़ावा दिया। कारोबारी विश्वास सर्वेक्षणों में भी संकेत मिलता है कि निर्यात माँग में कमजोर प्रत्याशा के बावजूद परिदृश्य में और भी सुधार होगा।

62. विगत अवधि में सेवा क्षेत्र के विभिन्न क्रियाकलापों में बहुत गिरावट आ गई थी। सुधरी हुई औद्यागिक वृद्धि के सामंजस्य के साथ इनमें भी सुधार होगा, अलबत्ता इसकी गति कम रहेगी। कृषि उपज में मामूली गिरावट और औद्योगिक उत्पादन में तेज सुधार का अनुमान करते हुए 2009-10 के लिए जीडीपी में बेसलाइन अनुमान ऊर्ध्वगामी पूर्वाग्रह के साथ 6.0 प्रतिशत पर रखी गई है (चार्ट-7)। इस प्रकार नीतिगत प्रयोजनों के लिए 2009-10 के लिए जीडीपी प्रत्याशा बिना बदलाव किए वही रखी गयी है जो जुलाई 2009 की पहली तिमाही समीक्षा में रखी गई थी।

7

मुद्रास्फीति अनुमान

63. व्यापक सांख्यिकी आधार प्रभाव के कारण जून-अगस्त 2009 के दौरान हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक नकारात्मक हो गए। जैसा कि प्रथम तिमाही समीक्षा में अनुमान लगाया गया था, खाद्य सामग्रियों की कीमतों में बड़ी बढ़ोतरी और विश्वव्यापी स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी की आशा में थोक मूल्य सूचकांक सकारात्मक दायरे में आ गया, अलबत्ता यह कार्य अपेक्षा से कुछ सप्ताह पहले हो गया।

64. जुलाई 2009 की पहली तिमाही समीक्षा में संकेत दिया गया था कि मानसूनी वर्षा में गिरावट के कारण कीमतें बढ़ने के जोखिम रहेंगे। यह स्थिति सामने आ चुकी है क्योंकि खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेज बढ़ोतरी हुई है। आगे देखें तो खाद्य सामग्री की महंगाई का मार्ग तैयार करने में रबी फसल की प्रत्याशा महत्वपूर्ण रहेगी। सरकारी एजेन्सियों के पास खाद्यान्नों के बड़े भंडारों से आपूर्ति संकट के कारण किसी भी बड़े प्रतिकूल प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी। हाल ही के वर्षों में कृषि के लिए व्यापार की सुधरी हुई शर्तों सें इस क्षेत्र के लिए कुछ प्रोत्साहन मिलेगा।

65. वैश्विक पण्य कीमतें वर्ष 2009 के प्रारंभ मे निम्नतम स्तर पर थी, लेकिन इनमें वैश्विक सुधार से काफी पहले तेजी आ गई। तेल की वैश्विक कीमतें मिश्रित चित्र प्रस्तुत करती हैं। कच्चे तेल की कीमतों में जनवरी-मार्च 2009 के निम्नतम स्तरों से बढ़ोतरी हुई, ये कीमतें जून2009 से रेज बाउन्ड बनी हुई हैं। प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा सहज मौद्रिक नीति का अनुसरण करने के कारण उपलब्ध व्यापक वैश्विक चलनिधि की सहायता से पण्य बाजार का काफी वित्तीयीकरण हुआ, खासकर उन उत्पादों का जो मांग-आपूर्ति अंतराल से प्रभावित होते हैं। ये गतिविधियां आगामी वर्षों में पण्यों की कीमतों में अधिकाधिक उतार-चढ़ाव को प्रेरित कर सकती हैं।

66. हाल ही के समय में स्फीति आकलन लगातार जटिल होते गए हैं, क्योंकि थोक मूल्य सूचकांक स्फीति दर नकारात्मक या न्यून रही और सीपीआइ स्फीति के विभिन्न मानदंड ज्यादातर अवधि के लिए दो अंकों के आसपास या इससे ऊपर बने रहे। सीपीआइ स्फीति मार्च2008 से ही उच्चतर स्तर पर बनी रही और थोक मूल्य सूचकांक में गिरावट की प्रत्याशाओं के अनुरूप इसमें कमी नहीं हुई। वस्तुत:अनिवार्य पण्य कीमतें में तेज बढ़ोतरी के कारण इसमें सख्ती आ गई। देश के विभिन्न भागों में अपर्याप्त मानसूनी वर्षा और सूखे के कारण इस स्थिति में और भी गंभीरता आ गई। रिज़र्व बैंक स्फीति के मानदंडों की पूरी श्रृंखला की निगरानी करता है, इसके घटक समग्र और विखंडित दोनों प्रकार के हैं और अन्य आर्थिक और वित्तीय संकेतकों से सामंजस्य रखते हीं, ताकि थोक मूल्य सूचकांक के संदर्भ में रिज़र्व बैंक अपने नीतिगत रूझान की अभिव्यक्ति और अंतर्निहित स्फीतिकारी दबावों का आकलन कर सके। सरकार ने 19 अक्तूबर 2009 को निर्णय लिया कि थोक मूल्य सूचकांक (आधार 1993-94) की वर्तमान शृंखला की बारंबारता को साप्ताहिक के स्थान पर मासिक कर दिया जाए। उपलब्ध सूचकांकों अर्थात् थोक मूल्य सूचकांक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के चार मानदंड अन्तर्निहित स्फीतिकारी स्थितियों को पर्याप्त रूप से समाहित करने में विफल हैं क्योंकि इनका दायरा अपर्याप्त है और सम्बन्धित आधार-वर्ष परिवर्तित उत्पादन और उपभोग पैटर्न को प्रकट नहीं करते हैं। यह, थोक मूल्य सूचकांक शृंखला के साथ-साथ प्रस्तावित दो सूचकांकों अर्थात सीपीआइ-शहरी और सीपीआइ-ग्रामीण के दायरे में परिवर्तन और आधार वर्ष को नवीनतम करने में तेजी लाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

67. जुलाई 2009 की पहली तिमाही समीक्षा में मार्च 2010 के अंत के लिए प्रत्याशित थोक मूल्य सूचकांक को 5.0 प्रतिशत के आस-पास रखा गया है। जुलाई समीक्षा में संकेत दिया गया था कि इस प्रत्याशा में ऊर्ध्वगामी जोखिम है। यद्यपि वर्ष-दर-वर्ष आधार पर देखें तो 10अक्तूबर 2009 को थोक मूल्य सूचकांक स्फीति 1.21 प्रतिशत थी, जो वित्तीय  वर्ष आधार पर पहले ही 5.95 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं, तथापि कुछ बढ़ोतरी प्रासंगिक है और इसमें कमी संभावित है। हालांकि, आधार-प्रभाव के कारण जून-अगस्त 2009 के दौरान थोक मूल्य सूचकांक स्फीति नकारात्मक रही, अब अपेक्षित है कि उच्च खाद्यान्न कीमतों के कारण यह विपरीत दिशा में गतिमान हो जाएगी। रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए परिवारों के तिमाही स्फीति अनुमान सर्वेक्षण में संकेत मिलता है कि यद्यपि स्फीतिकारी अनुमान सुस्थिर रहेंगे तथापि उत्तर देने वाले अधिकांश व्यक्तियों का अनुमान है कि आगामी तीन माह के दौरान और आगामी वर्ष में स्फीति दर में बढ़ोतरी होगी।

68. पण्य कीमतों में वैश्विक प्रवृत्ति और स्वदेशी मांग-आपूर्ति संतुलन को ध्यान में रखते हुए मार्च 2010 के अंत के लिए थोक मूल्य सूचकांक स्फीति की प्रत्याशा को 6.5 प्रतिशत पर रखा गया है, जिसमें ऊर्ध्वगामी पूर्वाग्रह भी हैं (चार्ट - 8)। यह जुलाई 2009 की प्रथम तिमाही समीक्षा में अनुमानित 5.0 प्रतिशत थोक मूल्य सूचकांक स्फीति से उच्चतर है, क्योंकि ऊर्ध्वगामी जोखिम मूर्त रूप ले चुका है।

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69. हमेशा की तरह, रिज़र्व बैंक मूल्य स्थिरता बनाए रखना तथा स्फीतिकारी प्रत्याशाओं को नियंत्रित करना सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा। मौद्रिक नीति के संचालन में मुद्रास्फीति को 4.0-4.5 प्रतिशत के दायरे में अनुकूल बनाने और सीमित रखने का रुख जारी रहेगा। यह भारत के वैश्विक अर्थव्यवस्था के व्यापक एकीकरण से सुसंगत 3.0 प्रतिशत मुद्रास्फीति के मध्यावधि उद्देश्यों के अनुरूप रहेगा।

मौद्रिक अनुमान

70. मुद्रा आपूर्ति एम3 में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि मार्च 2009 के अंत के 18.6 प्रतिशत से बढ़कर 9 अक्तूबर 2009 तक 18.9 प्रतिशत पर पहुंच गई। इस वर्ष एम3 के विस्तार का प्रमुख स्रोत रिज़र्व बैंक द्वारा ‘ओएमओ’ खरीदों सहित बैंकिंग प्रणाली द्वारा सरकार के बड़े बाजार उधार का वित्तपोषण रहा। वाणिज्य क्षेत्र को दिए गए बैंक ऋण में वृद्धि उल्लेखनीय रूप से कम रही जो एक वर्ष पहले के 27.4 प्रतिशत के उच्च स्तर से घटकर 10.7 प्रतिशत हो गई।

71. जुलाई 2009 की पहली तिमाही समीक्षा में एम3 वृद्धि के संकेतक प्रक्षेप वक्र को अप्रैल2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में परिकल्पित 17.0 प्रतिशत से बढ़ाकर 18.0 प्रतिशत कर दिया गया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बढ़े हुए सरकारी बाजार उधार कार्यक्रम से निजी क्षेत्र को ऋण प्रवाह से वंचित नहीं किया जाए। वर्ष 2009-10 के बाजार उधार कार्यक्रम का 80प्रतिशत से अधिक भाग अब पूरा हो चुका है। वर्ष 2009-10 में (9 अक्तूबर 2009 तक) क्रेडिट में 1,14,800 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई। इस प्रकार, 20 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि प्राप्त करने के लिए बैंकों को वर्ष की शेष अवधि में 4,40,000 करोड़ रुपये का क्रेडिट विस्तार करना होगा जो यदि फुटकर ऋण (क्रेडिट) की मांग न बढ़े तो मुश्किल होगा। साथ ही, वित्तपोषण के बैंकेतर स्रोत तक कारपोरेटों की पहुंच देशी और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही के लिए, आसान हो गई है, जो बैंक क्रेडिट के विकल्प की ओर ले जा सकती है। वर्ष 2009-10 की दूसरी छमाही के दौरान जहां क्रेडिट मांग बढ़ने की आशा है, वहीं 20 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि प्राप्त करना संभव नहीं है।

72. वर्ष 2009-10 की शेष अवधि में सरकार तथा वाणिज्य क्षेत्र की उधार संबंधी जरूरतों को देखते हुए जुलाई 2009 में 18.0 प्रतिशत मुद्रा आपूर्ति वृद्धि के निर्धारित संकेतक अनुमान में संशोधन कर उसे कम करते हुए 17.0 प्रतिशत कर दिया गया। इसके अनुरूप, अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की कुल जमाराशियां बढ़कर 18.0 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों और निजी कारपोरेट क्षेत्र के बांडों/डिबेंचरों/शेयरों तथा वाणिज्यिक पत्र (सीपी) में निवेश सहित समायोजित खाद्येतर ऋण की वृद्धि में भी संशोधन कर, कमी की गई और उसे वार्षिक नीति वक्तव्य तथा प्रथम तिमाही समीक्षा में निर्धारित 20.0 प्रतिशत से घटाकर 18.0 प्रतिशत कर दिया गया। बैंकों से पुन: आग्रह किया गया कि वे क्रेडिट की गुणवत्ता को बनाए रखने, जो वृद्धि के पुनरुत्थान के लिए महत्वपूर्ण है, के साथ-साथ क्रेडिट के विस्तार के प्रति अपने प्रयास बढ़ाएं।

समग्र मूल्यांकन

73. जुलाई 2009 में हुई प्रथम तिमाही समीक्षा के समय से वैश्विक आर्थिक संभावना में स्पष्ट सुधार होता रहा है। भारत में भी, अर्थव्यवस्था के वृद्धि के पथ पर पुन: आ जाने के निश्चित संकेत हैं। तदनुसार, विश्व भर में, और भारत में भी सभी का ध्यान संकट का प्रबंध करने से हटकर सुधार के प्रबंध की ओर रहा है।

74. भारत के लिए नीतिगत दुविधा उन्नत अर्थव्यवस्थाओं तथा साथ ही, अन्य उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की अपेक्षा कुछ महत्वपूर्ण संबंधों में भिन्न है। पहले, इनमें से अधिकांश देशों को मुद्रास्फीति के तत्काल जोखिम का सामना नहीं करना पड़ता है। वस्तुत:, कई उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में चिंता का विषय संभाव्य अपस्फीति, जो लगभग समाप्त होने वाली है, के संबंध में है। दूसरी ओर, भारत सक्रिय रूप से मुद्रास्फीति - बढ़ती हुई थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति और कड़ाई से बढ़ी हुई उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में आई वृद्धि की प्रवृत्ति से जूझ रहा है।

75. दूसरे, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं को उन घरेलू क्षेत्रों, फर्मों और वित्तीय संस्थाओं से आई समस्याओं का सामना करना पड़ा जो अब भी अपने बाधित तुलन-पत्रों से जूझ रहे हैं। सौभाग्यवश, भारत में हमारे लिए यह समस्या नहीं है, परंतु हमारे लिए देशी खपत तथा निवेश की मांग जो हमारी वृद्धि के पारंपरिक, महत्वपूर्ण कारक है, को पुनरुज्जीवित करने की चुनौती अभी भी बनी हुई है।

76. तीसरे, उपर्युक्त मुद्दे से कुछ संबंधित मुद्दा यह कि भारत आपूर्ति की समस्या वाली अर्थव्यवस्था है जो मांग के अभाव की समस्या से ग्रस्त उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत है। हमें, विशेष रूप से, बुनियादी सुविधाओं - बिजली, सड़क, शहरी बुनियादी सुविधाओं तथा सामाजिक बुनियादी सुविधाओं की आपूर्ति का विस्तार करने की जरूरत है। संकट के समय के दौरान कमज़ोर मांग के कारण धीमी बनी हुई आपूर्ति की समस्या पुन: उभर सकती है और संभवत: बाध्यकर बन सकती है।

77. चौथे और महत्वपूर्ण रूप से, भारत दोहरे घाटों - राजकोषीय और चालू खाता घाटों-वाली कुछ बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। हालांकि हमारा चालू खाता घाटा मामूली है और यह अर्थव्यवस्था की निवेश जरूरतों के चलते और भी न्यून हो सकता है, वहीं एक उत्तरदायी, विश्वसनीय और समयबद्ध राजकोषीय समायोजन करने की जरूरत के बारे में दो राय नहीं हो सकती। राजकोषीय समेकन और औचित्य के लिए हो रही बहस दबाव डाल रहे हैं और सर्वविदित है, अत: यहां इसे दोहराने की आवश्यकता नहीं है। परंतु तत्काल संबंधित स्वरूप का एक मामला है सरकार के उधार कार्यक्रम की मात्रा कम करने की नितांत जरूरत, ताकि एक संयत ब्याज दर प्रणाली बनाए रखने में सहायता मिले। यह निवेश मांग की बढ़ोतरी के लिए महत्वपूर्ण है जिस पर हमारी दीर्घावधि आर्थिक संभावनाएं निर्भर हैं।

78. विश्व भर में, विस्तारक मौद्रिक रुझान से हटने (एक्ज़िट) का समय और क्रमबद्धता संबंधी सक्रिय और कभी जीवंत चर्चा होती है, उक्त ‘एक्ज़िट’ हमारे नीतिगत ढांचे का भी केंद्र स्थान का विषय रहता है। जैसा कि रिज़र्व बैंक ने कई सार्वजनिक वक्तव्यों में कहा है, हमारा चालू मौद्रिक बल स्थिर स्वरूप का नहीं है और हमें विस्तारकारी रुझान को बदलने की आवश्यकता है। तथापि, यह जानना महत्वपूर्ण है कि हमारे उपर्युक्त समष्टि आर्थिक परिवेश की अनूठी विशेषताओं के कारण भारत में एक्ज़िट संबंधी चर्चा अन्य उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में गुणात्मक रूप से भिन्न है।

79. रिज़र्व बैंक के लिए यह एक सामयिक चुनौती है कि मूल्य स्थिरता के साथ समझौता किये बिना सुधार की प्रक्रिया का समर्थन किया जाए। इसके लिए आपसी सामंजस्य कार्यों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन आवश्यक है। संवृद्धि के प्रचालक यह अपेक्षा करते हैं कि एक्जिट में देर की जाए, जबकि स्फीतिकारी चिन्ताएं शीघ्र एक्जिट की आवश्यकता को दर्शाती हैं। अपरिपक्व एक्जिट किया गया तो कमजोर संवृद्धि पटरी से उतर जाएगी, लेकिन एक्जिट में देरी के कारण मुद्रास्फीति की संभावनाओं को पर्याप्त बढ़ावा मिलेगा।

80. इस नीतिगत समीक्षा तक पहुँचने में रिज़र्व बैंक ने बहुत से स्टेकहोल्डरों से परामर्श किया है। इन परामर्शों के आधार पर विस्तार परक मौद्रिक नीति के रुख के पक्ष-विपक्ष में दिए गए तर्कों का सारांश निम्नानुसार है।

मौद्रिक सहजता के परावर्तन कार्य को
शुरू करने के पक्ष में तर्क

81. मौद्रिक नीति की सहजता के परावर्तन के पक्ष में सबसे मजबूत तर्क मुद्रास्फीति से संबंधित चिंता से उपजा है। डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति अब धनात्मक हो गई है, अब तक जिस आधार-प्रभाव से डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति कम रही है, अब वह समाप्त हो गया है और सीपीआइ मुद्रास्फीति ऊंचे स्तर पर अटकी हुई है। वित्तीय वर्ष के आधार पर डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति में पहले ही 5.95 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई है। इस तथ्य को देखते हुए कि मौद्रिक नीति का असर होने में कुछ देर लगती है, यह जरूरी है कि हम अभी कार्रवाई करें।

82. इसके अलावा, यह भी तर्क है कि यद्यपि वर्तमान स्फीतिकारक दबाव खाद्य पदार्थों के मूल्यों के कारण आये हैं, तो ये उच्चतर मुद्रास्फीति की संभावना को मजबूती दे सकते हैं, और उनसे सामान्यीकृत मुद्रास्फीति बन सकती है। रिज़र्व बैंक द्वारा स्फीति संबंधी संभावनाओं का सर्वेक्षण यह दर्शाता है कि परिवारों में यह प्रत्याशा है कि अगले तीन महीनों एवं एक वर्ष में महंगाई बढ़ जाएगी। मौद्रिक नीति जिस तरह कुछ अंतराल के बाद परिचालित होती है, उससे यह सुझाव मिलता है कि कड़ाई का रुख बाद में अपनाये जाने की अपेक्षा अभी अपना लिया जाये।

83. मौद्रिक नीति को शीघ्र प्रत्यावर्तित करने का एक जबरदस्त तर्क चलनिधि संबंधी चिंताओं से भी उत्पन्न होता है। सरकार की शेष राशियों में हुई अस्थायी वृद्धियों के कारण कुछ दिनों को छोड़कर मई 2009 से दैनिक आधार पर एलएएफ के माध्यम से 1,00,000 करोड़ रुपये से अधिक का अवशोषण किया जाता रहा है। इससे बैंकिंग प्रणाली में अत्यधिक चलनिधि परिलक्षित होती है जिससे अधारणीय आस्ति मूल्यों की वृद्धि हो सकती है। आस्ति-मूल्यों के माध्यम से चलनिधि आधिक्य के कुछ प्रमाण पहले ही दृष्टिगोचर हो रहे हैं जिनसे वित्तीय स्थिरता संबंधी संभावित चिंताएं भी जुड़ी हुई हैं। अत्यधिक पूंजी अंतर्प्रवाह और आस्ति मूल्य स्फीति दोनों के एक दूसरे के लिए घातक होने की संभावना है। चलनिधि की दृष्टि से यह भी तर्क किया जा रहा है कि चलनिधि के वर्तमान आधिक्य के कारण मुद्रास्फीति की संभावना उत्पन्न हो सकती है भले ही ऋण की मांग कम स्तर पर बनी हुई हो।

मौद्रिक नीति की सहजता में परावर्तन को
स्थगित करने के लिए तर्क

84. वर्तमान मौद्रिक रुख को जारी रखने के पक्ष में प्रमुख तर्क यह है कि सुधार अभी भी कमज़ोर स्थिति में है। निर्यातों में अभी भी कमी हो रही है और औद्योगिक उत्पादन में हाल ही का सुधार अतिरंजित है क्योंकि यह अंशत: आधार-प्रभाव तथा इंवेटरी रीस्टॉकिंग के एकबारगी प्रभाव के कारण हुआ है। समय से पूर्व नीति को कड़ा करने से वृद्धि के संवेगों पर कुप्रभाव पड़ेगा। दूसरी ओर, कृषि उत्पादन में हुई गिरावट की क्षतिपूर्ति करने के लिए उदार रुख को सतत वैश्विक सुधार का पक्का सबूत मिलने तक जारी रखना आवश्यक है।

85. मौद्रिक नीति की सहजता को तत्काल बदलने के विरुद्ध दूसरा तर्क यह है कि वर्तमान मुद्रास्फीतिकारक दबाव आपूर्ति संबंधी सीमाओं विशेषत: खाद्यान्नों के मूल्यों के कारण हैं। सामान्य रूप से मौद्रिक नीति खाद्यान्न मूल्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का उपकरण नहीं है। ऐसी चिंताएं अवश्य हो सकती हैं। खाद्यान्न मूल्य के बढ़ने से मुद्रास्फीति की संभावनाएं उत्पन्न हो सकती हैं। लेकिन उसकी संभाव्यता कम है क्योंकि मौसमी प्रवृत्ति के अनुसार आगामी महीनों में खाद्यान्न मूल्यों में कमी हो सकती हैं। रबी फसल की संभावनाएं भी उत्साहजनक हैं जो खाद्य मूल्यों में हो रहे दबावों को कम करेंगी। इन परिस्थितियों में, कड़ाई का रुख अपनाने से गिरावट का जोखिम अत्यधिक है जिससे स्पष्टत: कोई सुधार नहीं होगा।

86. उदार मौद्रिक नीति का रुख बनाए रखने के पक्ष में तीसरा तर्क यह है कि वर्तमान स्थिति में इसे परिवर्तित करने से सरकारी बांडों पर आय की वृद्धि होगी जिससे ब्याज दरों पर ऊर्ध्वमुखी दबाव पड़ेगा और उपभोग तथा निवेश की मांग दोनों में कमी आयेगी। इससे प्रारंभिक सुधार को क्षति पहुंच सकती है।

87. अंत में, भारत की वृद्धि संबंधी संभावनाओं के कारण पूंजी अंतर्वाह पुन: शुरू हुआ है। यह तर्क दिया जा रहा है कि यदि हम अन्य अर्थव्यवस्थाओं के पहले ही अपनी नीति को सख्त करेंगे तो ब्याज दरों का व्यापक अंतर उच्चतर पूंजी उधार के लिए नकारात्मक प्रोत्साहन बन जाएगा। चालू खाते के घाटे से अधिक पूंजी प्रवाह का प्रबंधन करने में अर्थव्यवस्था को लागत चुकानी पड़ेगी जो विनिमय मूल्य में वृद्धि, उच्चतर प्रणालीगत चलनिधि तथा प्रभावहीन करने के कार्य की वित्तीय लागत का एक सम्मिश्रण होगा।

88. रिज़र्व बैंक ने इन तर्कों का अध्ययन किया है। इनमें से कुछ तर्क अधिक प्रोत्साहनकारी है और कुछ कम है। अब की स्थिति में इस संबंध में न्यायनिर्णय का सार यह है कि ‘सुविधा समापन’ को सुसंरचित रूप में क्रमश: लागू करना उपयुक्त होगा ताकि सुधार की प्रक्रिया में कमी न आए और मुद्रास्फीति संबंधी संभावनाएं स्थिर बनी रहें। ‘सुविधा समापन’ की प्रक्रिया विशेष चलनिधि समर्थन के उपायों को समाप्त करने के साथ शुरू हो सकती है।

89. यह याद रहे कि संकट के प्रतिक्रिया में अन्य केंद्रीय बैंकों की भांति रिज़र्व बैंक ने भी परंपरागत और गैर-परंपरागत उपायों को लागू किया है। जहां फिलहाल परंपरागत उपायों को बदलना उपयुक्त नहीं समझा जा रहा है, वहीं कई गैर-परंपरागत उपायों को तत्काल बदला जा सकता है। ‘सुविधा समापन’ के प्रथम चरण में निम्नलिखित उपाय शामिल हैं।

90. सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) जिसे मांग और मीयादी देयताओं के 25प्रतिशत से घटाकर 24 प्रतिशत कर दिया गया था, उसे पुन: 25 प्रतिशत किया जा रहा है। निर्यात ऋण पुनर्वित्त सुविधा की सीमा डभारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 17(3ए) के अंतर्गत को, जिसे बकाया निर्यात ऋण के 50 प्रतिशत तक बढ़ाया गया था, उसे पुन: संकटपूर्व के 15 प्रतिशत के स्तर तक कम किया जा रहा है। दो मानकेतर पुनर्वित्त सुविधाओं: (i) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 17(3बी) के अंतर्गत अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए विशेष पुनर्वित्त सुविधा (31 मार्च 2010 तक उपलब्ध), और (ii) अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए विशेष मीयादी रेपो सुविधा (म्यूचुअल फंडों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और आवास वित्त कंपनियों के निधियन के लिए) (31 मार्च 2010 तक उपलब्ध) को तत्काल प्रभाव से समाप्त किया जा रहा है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी इस वक्तव्य के अनुवर्ती भागों में दी गयी है।

नीति का रुझान

91. उपर्युक्त समग्र आकलन के आधार पर, 2009-10 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति का रुझान निम्नानुसार होगा:

  • मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति पर निगरानी रखना और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखने के लिए नीति में परिवर्तनों के द्वारा शीघ्र तथा प्रभावी कार्रवाई करना।

  • चलनिधि की स्थिति पर कड़ी निगरानी रखना और इसका सक्रिय प्रबंधन करना ताकि मूल्य स्थिरता और वित्तीय स्थिरता को बनाए रखते हुए उत्पादक क्षेत्रों की ऋण मांग को पर्याप्त रूप से पूरा किया जा सके।

  • मूल्य स्थिरता और वित्तीय स्थिरता के अनुरूप तथा विकास की प्रक्रिया में सहायता करने के लिए मौद्रिक तथा ब्याज दर व्यवस्था बनाए रखना।

92. रिज़र्व बैंक मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिए अपनी बुनियादी प्रतिबद्धता के प्रति सजग है। वह मूल्य स्थिति की निगरानी करता रहेगा और स्थूल आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार शीघ्र और प्रभावी कार्रवाई करेगा।

III. मौद्रिक उपाय

बैंक दर

93. 6.0 प्रतिशत पर वर्तमान बैंक दर में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।

रेपो दर

94. चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत 4.75 प्रतिशत पर रेपो दर में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।

रिवर्स रेपो दर

95. एलएएफ के अंतर्गत 3.25 प्रतिशत की वर्तमान दर में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।

96. रिज़र्व बैंक परिस्थितियों के अनुसार नियत या परिवर्तनीय दरों पर रेपो/रिवर्स रेपो नीलामियां आयोजित करेगा।

97. बाजार की परिस्थितियों तथा अन्य संबंधित बातों को ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक एक दिन या उससे अधिक अवधि की रेपो/रिवर्स रेपो नीलामियां आयोजित करेगा। रिज़र्व बैंक एलएएफ के अंतर्गत, पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से किसी भी निविदा (निविदाओं) को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार सुरक्षित रखेगा ताकि दैनिक चलनिधि प्रबंधन में एलएएफ का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सके।

प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात

98. वाणिज्य बैंकों की निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 5.0 प्रतिशत की वर्तमान दर में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।

99. वाणिज्य बैंकों के संपार्श्विक उधार और ऋण दायित्व (सीबीएलओ) को सीआरआर संबंधी शर्त से छूट दी गयी थी ताकि सीबीएलओ को एक मुद्रा बाजार इकाई के रूप में विकसित किया जा सके। सीबीएलओ खंड में पिछले कुछ वर्षों में मात्रा काफी बढ़ गई है, विशेषकर अंतर-बैंक बाजार से बैंकेतर संस्थाओं को हटा देने के बाद। जनवरी 2003 में सीबीएलओ खंड में दैनिक औसत मात्रा केवल 6 करोड़ रुपये थी, अब यह 60,000 करोड़ रुपये से अधिक है। चूंकि मुद्रा बाजार लिखत के रूप में सीबीएलओ को विकसित करने का उद्देश्य पूरा हो चुका है, इसलिए यह प्रस्ताव है कि :

  • क्लिअरिडग कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (सीसीआइएल) के साथ सीबीएलओ में लेनदेनों के कारण वाणिज्य बैंकों की देयताएं 21 नवंबर 2009 से सीआरआर बनाए रखने के अधीन होंगी।

सांविधिक चलनिधि अनुपात

100. लेहमन ब्रदर्स की विफलता के बाद, वैश्विक तथा देशी वित्तीय बाजारों में दुरूह स्थूल आर्थिक स्थिति तथा वैश्विक एवं देशी वित्तीय बाजारों में चलनिधि की स्थिति को देखते हुए, अनुसूचित वाणिज्य बैंकों का सांविधिक चलनिधि अनुपात 8 नवंबर 2008 से उनके एनडीटीएल के 25 प्रतिशत से घटाकर 24 प्रतिशत कर दिया गया था। नवंबर 2008 के मध्य से चलनिधि की स्थिति सहज रही है जैसा कि रिज़र्व बैंक की एलएएफ सुविधा के अधीन बैंकों द्वारा दैनिक आधार पर अतिरिक्त राशियों को रखने से दिखलायी देता है। तदनुसार, यह निर्णय लिया गया है कि :

  • 7 नवंबर 2009 से प्रारंभ हो रहे पखवाड़े से अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए एसएलआर फिर से उनकी एनडीटीएल का 25 प्रतिशत होगा।

101. इस समय अनुसूचित वाणिज्य बैंक, एलएएफ प्रतिभूतियों को घटाने के बाद, अपने एनडीटीएल का 27.6 प्रतिशत एसएलआर में रख रहे हैं और एलएएफ प्रतिभूतियों को शामिल करने के बाद 30.4 प्रतिशत रख रहे हैं। इस प्रकार, एसएलआर में वृद्धि का बैंकिंग प्रणाली में चलनिधि की स्थिति पर तथा निजी क्षेत्र का देय ऋण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

तीसरी तिमाही समीक्षा

102. वर्ष 2009-10 के लिए मौद्रिक नीति की तीसरी तिमाही समीक्षा 29 जनवरी 2010 को की जाएगी।

भाग ख. विकासात्मक और विनियामक नीतियां

103. वैश्विक वित्तीय संकट ने कुछ ऐसे मुद्दे उठाये हैं जिनके बारे में हम सोचते थे कि वे खत्म हो चुके हैं और कुछ ऐसे प्रश्न फिर से उठाए हैं जिनके बारे में हम सोचते थे कि उनका उत्तर दिया जा चुका है। इस संकट ने वित्तीय क्षेत्र के विनियमन और पर्यवेक्षण में कुछ विलक्षण नीतियों तथा प्रथाओं पर भी ध्यान डाला। संकट से प्राप्त सबक को दिखलाते हुए, अब वैश्विक स्तर पर विनियामक ढांचे और पर्यवेक्षी प्रक्रियाओं पर सक्रिय चर्चा हो रही हैं। ऐसी आशा है कि यह एक ऐसी निरंतर प्रक्रिया होगी जिसमें अगले कुछ वर्षों में नियमित आधार पर सुधार पैकेजों के बारे में सहमति बनेगी और उन्हें अंतिम रूप दिया जाएगा।

104. अधिकांश देशों की तुलना में भारत पर इस संकट का प्रभाव बहुत ज्यादा नहीं पड़ा क्योंकि सापेक्ष रूप से हमारी नीतियां सतर्क हैं, विनियमन विवेकपूर्व और पर्यवेक्षण प्रभावशाली है। फिर भी, भारत के लिए भी इस संकट से कुछ सीखा जा सकता है जैसे कि (i) प्रणालीगत और संस्थागत स्तरों पर विनियमन को और मजबूत करना; (ii) हमारे पर्यवेक्षण को और अधिक प्रभावशाली करना और उसमें वैल्यु एडिशन करना; तथा (iii) जोखिम के प्रबंधन में हमारे कौशल को बढ़ाना। वैश्विक स्तर पर चर्चा में भारत ने सक्रिय रूप से भाग लिया। हमारा काम यह होगा कि वैश्विक चर्चा में हम अपना मत रखें और सक्रिय आधार पर भारतीय परिस्थितियों के अनुसार वैश्विक नीतियों और दिशा निर्देशों को अपने अनुकूल बना लें। एक ऐसा काम जो रिज़र्व बैंक हमेशा से करता रहा है लेकिन अब उसको स्पष्ट कर दिया गया है - वह है वित्तीय स्थिरता की निगरानी करना और उसे बनाए रखना। इसके अतिरिक्त, हमें वित्तीय समावेशन की चुनौतियों पर भी सक्रियता से ध्यान देना होगा।

105. सुधार एक निरंतर प्रक्रिया है। पिछले कुछ वर्षों में, रिज़र्व बैंक ने सुधार की प्रक्रिया को परामर्श और सहभागिता से आगे बढ़ाया है। अब रिज़र्व बैंक में नीति की समीक्षा से पहले स्टेक धारकों से परामर्श किया जाता है, विशेषज्ञों से अभिमत मांगे जाते हैं, फीडबैक प्राप्त करने के लिए उसके वेबसाइट पर नीति संबंधी प्रस्तावों के प्रारूप रखे जाते हैं और नीतियों को व्यापक रूप से प्रसारित किया जाता है। हम इन प्रथाओं में सुधार लाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहेंगे।

106. पिछले नीति वक्तव्य पर की गयी कार्रवाई और स्थिति तथा नई नीतियों का सार नीचे दिया गया है।

I. वित्तीय स्थिरता

107. पिट्सबर्ग में 24-25 सितंबर 2009 को हाल ही में हुई जी-20 शिखर वार्ता में, अन्य बातों के साथ-साथ यह निर्णय लिया गया था कि बैंकों तथा अन्य वित्तीय फर्मों के लिए वैश्विक विनियामक प्रणालियां उन बातों पर नियंत्रण लगाए जिनके कारण यह संकट उत्पन्न हुआ और इस प्रकार: (i) पूंजी मानकों में वृद्धि करें; (ii) मजबूत अंतरराष्ट्रीय प्रतिपूर्ति मानकों को लागू करें जिनका उद्देश्य ऐसी प्रथाओं को खत्म करना होगा जिनके कारण अत्यधिक जोखिम लेना पड़ा; (iii) ओवर द काउंटर डेरिवेटिव बाजार में सुधार लाना; (iv) ऐसे मजबूत साधन बनाना जिनसे बड़ी वैश्विक फर्मों को उनके द्वारा लिये जा रहे जोखिमों के लिए जवाबदेह बनाया जा सके; तथा (v) यह सुनिश्चित करना कि बड़ी वैश्विक वित्तीय फर्मों के लिए मानक उनकी असफलता की लागत के अनुरूप है। यह भी सहमति बनी कि 21वीं शताब्दी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वैश्विक विन्यास में सुधार लाया जा सके।

108. वित्तीय क्षेत्र में की गई अंतरर्राष्ट्रीय और देशी पहल को ध्यान में रखते हुए, अप्रैल2009 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में भारतीय रिज़र्व बैंक में एक वित्तीय स्थिरता यूनिट (एफएसयू) के गठन का प्रस्ताव किया गया था। तदनुसार, जुलाई 2009 में एफएसयू गठित किया गया जिसमें भारतीय रिज़र्व बैंक के विनियामक, पर्यवेक्षी, सांख्यिकी, आर्थिक और वित्तीय बाजार विभागों से विशेषज्ञ शामिल किये गये। यह यूनिट (i) निरंतर आधार पर वित्तीय प्रणाली की स्थूल-विवेकपूर्ण निगरानी करेगा; (ii) वित्तीय स्थिरता रिपोर्टें तैयार करेगा; (iii) प्रमुख घटकों का डेटाबेस करेगा जो वित्तीय स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं और वित्तीय संकेतकों के प्रमुख सेट की समय श्रृंखला तैयार करेगा; (iv) गतिशीलता का आकलन करने के लिए प्रणालीगत स्ट्रेस टेस्ट करेगा; तथा (v) वित्तीय स्थिरता का आकलन करने के लिए मॉडल विकसित करेगा। यह यूनिट वित्तीय स्थिरता बोर्ड में भारतीय रिज़र्व बैंक के प्रतिनिधि को सचिवालय सुविधा भी उपलब्ध कराता है। आशा है कि पहली वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट दिसंबर 2009 के अंत तक आ जाएगी।

II. ब्याज दर नीति

बीपीएलआर प्रणाली : समीक्षा

109. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में वर्तमान बेंचमार्क मूल उधार दर (बीपीएलआर) प्रणाली की समीक्षा करने और ऋण मूल्यन को और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए परिवर्तनों के बारे में सुझाव देने के लिए एक कार्यकारी दल के गठन का प्रस्ताव किया गया था। तदनुसार, जून 2009 में एक कार्यकारी दल (अध्यक्ष: श्री दीपक मोहंती) गठित किया गया था और दल ने अपनी रिपोर्ट 20 अक्तूबर 2009 को प्रस्तुत कर दी है। रिपोर्ट को अभिमत तथा सुझाव प्राप्त करने के लिए उसी दिन भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर भी रखा गया। रिपोर्ट के बारे में फीडबैक प्राप्त करने के बाद रिज़र्व बैंक सिफारिशों पर विचार करेगा।

III. वित्तीय बाजार

वित्तीय बाजार उत्पाद

ब्याज दर फ्यूचर्स

110. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में भारत सरकार के बांड के संबंध में 10-वर्षीय नोशनल कूपन पर एक्सचेंज ट्रेडिड इंटरेस्ट रेट फ्यूचर्स (आइआरएफएस) प्रारंभ करने की बात कही गयी थी। तदनुसार, सेबी के परामर्श से, आइआरएफ प्रारंभ किये गये और अगस्त2009 में मान्यताप्राप्त बाजारों में आइआरएफ का लेनदेन करने के लिए प्रेमवर्क संबंधी अनुदेश रिज़र्व बैंक के वेबसाइट पर रखे गये। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज ने आइआरएफ में 31अगस्त 2009 को लेनदेन प्रारंभ कर दिया हे।

कारपोरेट बाँड में रेपो प्रारंभ करना

111. रिज़र्व बैंक ने अभिमत/फीडबैक प्राप्त करने के लिए कारपोरेट बांड में रेपो संबंधी प्रारूप दिशानिर्देश 17 सितंबर 2009 को अपनी वेबसाइट पर रखे। एक्सचेंजों के समाशोधन गृहों द्वारा परिचालनगत कार्पोरेट बांडों में ओटीसी ट्रेड के लिए समाशोधन एवं निपटान प्रणाली पर आधारित डीवीपी-I (ट्रेड-बाय-ट्रेड) के साथ कार्पोरेट बांडों में अब रिपो की शुरुआत की जा सकती है। तदनुसार:

  • कार्पोरेट बांडों में रिपो संबंधी अंतिम दिशा-निर्देश नवंबर 2009 के अंत तक जारी किए जाएंगे।

एक वर्ष से कम की परिपक्वता अवधि वाले अप्रत्यावर्तनीय
डिबेंचरों (एनसीडी) का विनियमन

112. वर्तमान में, एक वर्ष से कम परिपक्वता अवधि वाले अप्रत्यावर्तनीय डिबेंचरों (एनसीडी) को जारी करना सेबी अथवा भारत सरकार द्वारा विनियमन के अधीन नहीं है। वित्तीय बाजार (एचएलसीसीएफएम) संबंधी उच्च स्तरीय समन्वयन समिति में यह निर्णय लिया था कि ‘मुद्रा बाजार लिखतों’ जैसे लिखतों को रिज़र्व बैंक के विनियमन के अधीन लाये जाने की जरूरत है। अत: रिज़र्व बैंक और सेबी के प्रतिनिधित्व सहित एक कार्यकारी दल गठित किया गया, जिसने इस मामले की जांच की थी। कार्यकारी दल ने अब अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है और यह सिफारिश की है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (संशोधित) अधिनियम, 2006 के खंड IIIडी के ‘मुद्रा बाजार लिखतों’ की परिभाषा में दिए अनुसार रिज़र्व बैंक एक वर्ष से कम की परिपक्वता अवधि वाले एनसीडी जारी करने के संबंध में विनियम बनाए। कार्यकारी दल की सिफारिशों पर मुद्रा, विदेशी मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाजार के संबंध में 23 सितंबर 2009 को हुई टीएसी की बैठक में चर्चा की गई और यह सहमति हुई कि रिज़र्व बैंक वाणिज्यिक पत्र (सीपी) जारी करने के लिए दिशा-निर्देशों के आधार पर विनियम बनाए। तदनुसार:

  • दिशानिर्देशों का प्रारूप तैयार किया जा रहा हैं जिसे टिप्पणियों/सुझावों हेतु रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर नवंबर 2009 के अंत तक डाला जाएगा।

क्रेडिट डिफाल्ट स्वैप (सीडीएस) को प्रारंभ करना

113. वर्ष 2007 में रिज़र्व बैंक ने भारत में क्रेडिट डिफाल्ट स्वैप (सीडीएस) को प्रारंभ करने के लिए दिशानिर्देशों का प्रारूप जारी किया। तथापि, हाल के वित्तीय संकट में क्रेडिट डेरिवेटिव की भूमिका को देखते हुए अंतिम दिशानिर्देश जारी करना स्थगित किया गया था। इस संबंध में वित्तीय संकट से सीख लेते हुए सावधानी से आगे बढ़ने पर विचार किया गया था। क्रेडिट डेरिवेटिव के क्षेत्र में पहले ही किए गए/किये जा रहे अंतरराष्ट्रीय कार्य के साथ कदम मिलाने के लिए और भारतीय बाजारों की विशेषताओं को देखते हुए यह प्रस्तावित है कि :

  • निवासी कंपनियों के लिए समुचित सुरक्षा उपायों के साथ कार्पोरेट बांडों हेतु एकल नाम वाले क्रेडिट डिफाल्ट स्वैप हेतु प्लेन वैनिला ओटीसी की शुरुआत करना। प्रारंभ में सभी क्रेडिट डिफाल्ट स्वैप के लिए यह अपेक्षित होगा कि वे एक केंद्रीकृत ट्रेड रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म पर रिपोर्टिंग करें और समय बीतने के साथ उन्हें एक केंद्रीय समाशोधन प्लेटफार्म पर लाया जाएगा।

114. रिज़र्व बैंक बाजार सहभागियों के साथ परामर्श करते हुए परिचालनगत ढांचे को अंतिम रूप देने के लिए एक आंतरिक दल का गठन कर रहा है।

प्रतिभूति के पंजीकृत ब्याज और मूलधन की
पृथक ट्रेडिंग (एसटीआरआइपीएस)

115. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के अनुसार सरकारी प्रतिभूतियों की स्ट्रिपिंग/उनका पुनर्निधारण करने संबंधी प्रारूप/दिशा-निर्देश रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर 1 मई 2009 को अप-लोड किए गए जिसमें 29 मई 2009 तक बाजार-प्रतिभागियों से उनकी टिप्पणियां/सुझाव मांगे गए। बाजार प्रतिभागियों से प्राप्त फीड-बैक/सुझावों के आधार पर दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप प्रदान किया गया। बैंकों को परिपक्वता की अवधि तक रखने योग्य (एचटीएम)/बिक्री के लिए उपलब्ध (एएफएन)/व्यापार के लिए रखने योग्य पोटफोलियों में निवेशित पात्र प्रतिभूतियों को हटाने/पुनर्गठित करने की अनुमति प्रदान की जाएगी। तदनुसार :

  • यथानिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान स्ट्रिप्स प्रारंभ की जाएंगी।

अस्थिर दर वाले बॉन्ड (एफआरबी)

116. अप्रैल 2009 के वार्षिक वक्तव्य में की गई घोषणा के अनुसार अस्थिर दर वाले बांडों को जारी करने के ढांचे में संशोधन किया गया है ताकि उत्पाद निर्माण से सबंधित मुद्दों का ध्यान रखा जा सके। एफआरबी को अब से ‘मूल्य आधारित’ नीलामी द्वारा जारी किया जाएगा जबकि पूर्व में इसे ‘व्यापक आधार’ नीलामी द्वारा जारी किया जाता था। एफआरबी के संशोधित निर्गम ढांचे को तयशुदा लेनदेन प्रणाली (एनडीएस) को ध्यान में रखते हुए बनाया गया जिसे 11मई2009 को कार्यान्वित किया गया था। तदनुसार :

  • बाजार स्थितियों और बाजार संभावना के आधार पर वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान अस्थिर ब्याजवाले बांड जारी किए जायेंगे।

मुद्रा वायदा संविदाओं के मुद्रा युग्मों का विस्तार

117. वर्तमान में भारत में निवासी व्यक्तियों को अमरीकी डालर - भारतीय रुपये की मुद्रा वायदा संविदाओं में तीन पंजीकृत स्टाक एक्सचेंजों में व्यापार करने की अनुमति प्रदत्त है। सभी तीन एक्सचेंजों में संविदाओं के दैनिक टर्नओवर का संयुक्त औसत मार्च 2009 को 1.1बिलियन अमरीकी डालर से बढ़कर सितंबर 2009 में 2.5 बिलियन अमरीकी डालर हो गया। बाजार प्रतिभागी अभ्यावेदन देते रहें हैं कि अन्य प्रमुख मुद्रा युग्मों में भी मुद्रा वायदा संविदा व्यापार की अनुमति प्रदान की जाए ताकि इस प्रकार की मुद्राओं में उनके जोखिम की डायरेक्ट हेजिंग की सुविधा प्रदान की जा सकें। तदनुसार, यह प्रस्ताव है कि -

  • मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंजों को पहले ही से अनुमति प्राप्त यू.एस. डालर - रुपये में वायदा संविदाओं के अलावा; यूरो - भारतीय रुपये; जापानी येन - भारतीय रुपये और पाउंड स्टर्लिंग - भारतीय रुपये के मुद्रा युग्मों में मुद्रा वायदा संविदाओं की पेशकश करने की अनुमति प्रदान की जाय।

118. मुद्रा वायदा (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2008 में आवश्यक संशोधन अलग से किये जा रहे हैं।

फॉरेक्स, पण्य और माल-भाड़ा डेरिवेटिव पर दिशानिर्देश

119. घरेलू और अंतर-राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में आये परिवर्तनों और बैंकों, बाज़ार प्रतिभागियों, उद्योग संघों और अन्य से प्राप्त फीड-बैक के आधार पर मौजूदा विदेशी मुद्रा और पण्य तथा विदेशी भाड़ा डेरिवेटिव पर दिशानिर्देशों की समीक्षा एक आंतरिक समूह द्वारा की गई। प्रस्तावों के प्रारूप पर मुद्रा, विदेशी मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाजारों पर टीएसी की बैठक में विचार-विमर्श किया गया। तदनुसार :

  • व्यापक प्रचार और टिप्पणियों / सुझावों के लिये प्रारूप दिशानिर्देशों को रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर नवंबर 2009 के अंत तक अपलोड किया जा रहा है।

वित्तीय बाजार के लिए बुनियादी सुविधाएं

रेपो लेखांकन में संशोधन

120. रेपो लेखांकन पर रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर पहले से ही डाले गये दिशानिर्देशों के प्रारूप पर प्राप्त अभिमतों को ध्यान में रखते हुए 1 अप्रैल 2010 से लागू किए जाने हेतु संशोधित दिशानिर्देश जारी किए जाने का उल्लेख अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में किया गया था। तदनुसार:

  • दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दिया जा रहा है और इनको नवंबर 2009 के अंत तक जारी कर दिया जाएगा।

कारपोरेट बॉन्डों में ओटीसी व्यापारों का
समाशोधन और निपटान : स्थिति

121. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के अनुसार शेयर बाजारों के समाशोधन गृहों, यथा - राष्ट्रीय प्रतिभूति समाशोधन निगम लिमिटेड (एनएससीसीएल) और भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड (आइसीसीएल) को डी-वी-पी-I आधार (अर्थात ट्रेड-बाय-ट्रेड आधार) पर तत्काल सकल निपटान (आरटीजीएस) में कारपोरेट बांडों के ओटीसी लेनदेनों के निपटान में सुविधा प्रदान करने के लिए रिज़र्व बैंक के पास ट्रांजिटरी पूलिंग खाता रखने की अनुमति दी गई थी। भारतीय रिज़र्व बैंक और सेबी ने इस संबंध में अपेक्षित निर्देश जारी कर दिए हैं जिनमें विनिर्दिष्ट विनियमित संस्थाओं के लिए यह जरूरी कर दिया गया है कि 1 दिसंबर 2009 से वे कारपोरेट बॉन्डों के सभी ओटीसी लेनदेनों का निपटान एनएससीसीएल और आइसीसीएल के माध्यम से करें।

मुद्रा बाज़ार

पुनर्वित्त/विशेष चलनिधि सुविधाएं

122. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में उल्लेख किए अनुसार रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को प्रदान की गई निम्नलिखित चलनिधि सुविधाएं 31 मार्च 2010 तक उपलब्ध थी

(i) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम (आरबीआई) की धारा 17(3क) के अंतर्गत निर्यात ऋण पुनर्वित्त (ईसीआर) सुविधा (पात्र बकाया रुपया निर्यात ऋण के पचास प्रतिशत तक सीमित); (ii) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 17(3ख) के अंतर्गत अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए विशेष पुनर्वित्त सुविधा ड24 अक्तूबर 2008 को विद्यमान उनकी निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 1 प्रतिशत तक सीमित; (iii) पारस्परिक निधियों (एमएफ), गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और आवास वित्त कंपनियों (एचएफसी) की निधियन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विशेष सावधि रेपो सुविधा डनिवल मांग और मीयादी देयताओं के 1.5 प्रतिशत तक सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) में छूट तक सीमित; (iv) लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी), राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) और भारतीय आयात-निर्यात बैंक (एक्जिम बैंक) को पुनर्वित्त सुविधा (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धाराओं क्रमश: 17(4ज), 17(4घघ) और 17(4ञ) के अंतर्गत) और (v) बैंकों के लिए तीन माह की अवधि तक की विदेशी मुद्रा स्वैप सुविधा।

123. इन सुविधाओं की समीक्षा किए जाने पर यह प्रकट हुआ कि इन सुविधाओं का उपयोग कम हो रहा है। इस बात पर विचार करते हुए और बाजार में विद्यमान चलनिधि परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, यह प्रस्ताव किया जाता है कि तत्काल निम्नानुसार कदम उठाए जाएं:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 17(3क) के अंतर्गत दी गई निर्यात ऋण पुनर्वित्त सुविधा की, पात्र बकाया रुपया निर्यात ऋण के 50 प्रतिशत की सीमा को घटाकर 15 प्रतिशत किया जाए;

  • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 17(3ख) के अंतर्गत अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए विशेष पुनर्वित्त सुविधा को समाप्त किया जाए;

  • पारस्परिक निधियों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और आवास वित्त कंपनियों के निधियन संबंधी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को दी गई विशेष सावधि रेपो सुविधा को समाप्त किया जाए; और

  • बैंकों की विदेशी मुद्रा स्वैप सुविधा को समाप्त किया जाए।

124. सिडबी, एनएचबी और एक्ज़िम बैंक के लिए पुनर्वित्त सुविधा (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धाराओं क्रमश:17(4ज), 17(4घघ) और 17(4ञ) के अंतर्गत) पूर्व-घोषित तारीख 31 मार्च 2010 तक परिचालित होती रहेगी। तथापि, इन तीनों वित्तीय संस्थाओं (एफआई) को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी बकाया राशियां 31 मार्च 2010 को कारोबार समय की समाप्ति तक चुकता कर दी जाए।

सरकारी प्रतिभूति बाज़ार

भारत सरकार की प्रतिभूतियों की
नीलामी की प्रकिया : स्थिति

125. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में निर्दिष्ट किए अनुसार, भारत सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक के परामर्श से सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री हेतु नीलामी के साथ-साथ गैर-प्रतिस्पर्धात्मक बोली की सुविधा की योजना संबंधी विशिष्ट अधिसूचना में संशोधन कर दिया है। तद्नुसार, आंतरिक कार्यदल (अध्यक्ष : एच.आर. खान) की रिज़र्व बैंक से संबंधित शेष रही सिफारिशों यथा (i) भौतिक रूप से बोली प्रस्तुत करने की सुविधा की समाप्ति और केवल एनडीएस के माध्यम से प्रतिस्पर्धात्मक बोली प्रस्तुत करना, (ii) गैर-प्रतिस्पर्धात्मक बोलियों के संबंध में बैंक/प्राथमिक व्यापारी (पीडी) द्वारा इसके सभी घटकों की ओर से एक एकल समेकित नीलामी-बोली को प्रस्तुत करने, को 22 मई 2009 से कार्यान्वित कर दिया गया है। आंतरिक कार्य दल की सिफारिशों के कार्यान्वयन ने नीलामी के परिणामों की घोषणा में लगने वाले समय में कमी लाकर नीलामी प्रक्रिया में दक्षता को बढ़ाया है जिससे नीलाम की गयी प्रतिभूतियों के कारोबार के लिए उपलब्ध समय में बढ़ोतरी हुई है।

राज्य विकास ऋणों (एसडीएल) की नीलामी में
गैर-प्रतिस्पर्धात्मक बोलियां : स्थिति

126. राज्य विकास ऋणों के लिए निवेशक - आधार बढ़ाने और चलनिधि में वृद्धि करने के लिए 20 जुलाई 2007 को सभी राज्य सरकारों ने राज्य विकास ऋणों की नीलामी में गैर-प्रतिस्पर्धात्मक बोलियों के लिए एक योजना अधिसूचित की थी। अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के अनुसरण में राज्य विकास ऋणों की नीलामी में गैर-प्रतिस्पर्धात्मक बोलियों की योजना को 25 अगस्त 2009 से कार्यशील बना दिया गया है। इस योजना के अंतर्गत राज्य विकास ऋणों की अधिसूचित राशि के दस प्रतिशत तक पात्र व्यक्तियों और संस्थाओं को आबंटन किया जाएगा, बशर्ते प्रति स्टाक एकल बोली अधिसूचित राशि के एक प्रतिशत से अधिक न हो। बैंक और प्राथमिक डीलर के माध्यम से राज्य विकास ऋण की नीलामी में निवेशक केवल एक बोली प्रस्तुत कर सकता है।

IV. ऋण वितरण प्रणाली और अन्य बैंकिंग सेवाएं

एमएसई सेक्टर को ऋण प्रवाह

127. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में उल्लेख किए गए अनुसार रुग्ण एसएमई के पुनर्वास के लिए गठित कार्य दल (अध्यक्ष :डॉ. के. सी. चक्रवर्ती) के आधार पर मई 2009 में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए दिशानिर्देश जारी कर दिए गए हैं। इन दिशानिर्देशों के अनुक्रम में बैंकों को सूचित किया गया कि वे अपने संबंधित बोर्ड से विधिवत अनुमोदन लेकर सूक्ष्म और लघु उद्यमों (एमएसई) के लिए (i) क्रेडिट सुविधाओं का विस्तार नियंत्रित करने संबंधी ऋण नीति; (ii) संभाव्य रूप से अर्थक्षम बीमार इकाइयों/उद्यमों के पुनरुत्थान के लिए पुर्नसंरचना/पुनर्वास नीति और (iii) अनर्जक ऋणों की वसूली के लिए गैर-विवेकाधिकार वाली एकबारगी निपटान योजना के संबंध में नीतियों की समीक्षा करें। भारत सरकार/राज्य सरकारों/राज्य स्तरीय बैंकर समिति संयोजक बैंकों से संबंधित अन्य सिफारिशें भी उन्हें आवश्यक कार्रवाई के लिए प्रेषित की गईं। रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालयों को सूचित किया गया कि वे राज्य सरकारों/एसएलबीसी संयोजक बैंकों द्वारा शुरू की गई कार्रवाइयों पर निगरानी रखें और एसएलबीसी की बैठकों में इस संबंध में हुई प्रगति पर चर्चा करें।

128. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में यह भी प्रस्ताव किया गया कि सूक्ष्म और लघु उद्यमों पर गठित स्थायी परामर्शदात्री समिति क्रेडिट गारंटी योजना की समीक्षा करेगी। तदनुसार, सूक्ष्म और छोटे उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी निधि ट्रस्ट (सीजीएफटीएमएसई) की क्रेडिट गारंटी योजना की समीक्षा करने और एमएसई निवेश के लिए ‘संपूर्ण टर्नओवर गारंटी’ की व्यवहार्यता की समीक्षा करने के लिए एक कार्य दल (अध्यक्ष :श्री वी.के. शर्मा) गठित किया गया। इस कार्य दल की रिपोर्ट दिसंबर 2009 के अंत तक प्रस्तुत किए जाने की संभावना है।

कृषि ऋण माफी और ऋण राहत
योजना, 2008 : स्थिति

129. केंद्रीय बजट 2008-09 में किसानों के लिए कृषि ऋण को माफी और ऋण राहत योजना की घोषणा की गई जिसके तहत अनुमानित 50,000 करोड़ रुपए की कुल लागत के अतिदेय ऋण माफ किए गए और अनुमानित 10,000 करोड़ रुपए के अतिदेय ऋणों के लिए एकबारगी निपटान (ओटीएस) राहत दी गई। इसमें से 28,000 करोड़ रुपये राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) को क्षेत्रीय ग्रामीण बैकों (आरआरबी) और सहकारी बैंकों के दावों की प्रतिपूर्ति के लिए दिए गए और शेष राशि अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबी), स्थानीय क्षेत्र बैंकों (एलएबी) और शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के दावों की प्रतिपूर्ति के लिए रखी गई। आज की तारीख तक अनुसूचित वाणिज्य बैंकों और शहरी सहकारी बैंकों ने अपने ‘ऋण माफी’ दावों के 64.7 प्रतिशत तक की प्रतिपूर्ति की है।

ग्रामीण सहकारी बैंक

सहकारी बैंकों को लाइसेन्स देना : स्थिति

130. वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन समिति (अध्यक्ष :डॉ. राकेश मोहन और सह-अध्यक्ष:

श्री अशोक चावला) ने सिफारिश की थी कि जो क्षेत्रीय सहकारी बैंक 2012 तक लाइसेन्स लेने में असफल रहें, उन्हें परिचालन जारी रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। तदनुसार, अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में यह प्रस्ताव किया गया कि इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक सुव्यवस्थित रूपरेखा तैयार की जाए। इन बैंकों को लाइसेन्स प्रदान करने के मानदंड पर नाबार्ड के साथ परामर्श कर तैयार किए गए और लाइसेन्स जारी करने के संबंध में कार्रवाई शुरू की गई। वर्तमान में, 31 राज्य सहकारी बैंकों में से 17 और 371 केंद्रीय सहकारी बैंकों में से 296 बैंकों के पास लाइसेन्स नहीं है।

ग्रामीण सहकारी ऋण संरचना
का पुनरुत्थान : स्थिति

131. ग्रामीण सहकारी ऋण संस्थान (अध्यक्ष : प्रोफेसर ए. वैद्यनाथन) पर गठित कार्य बल की सिफारिशों के आधार पर और राज्य सरकारों के साथ परिचर्चा के बाद भारत सरकार ने अल्पावधि ग्रामीण सहकारी क्रेडिट संरचना के पुनरुत्थान के लिए एक पैकेज का अनुमोदन किया। अब तक, जैसा कि पैकेज में आकलन किया गया, 25 राज्यों ने भारत सरकार और नाबार्ड के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। बारह राज्यों ने अपने संबंधित सहकारी समिति अधिनियमों में संशोधन किए हैं। इस पैकेज के तहत भारत सरकार के भाग के रूप में नाबार्ड ने 10 राज्यों में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पी ए सी एस) को कुल 6,639 करोड़ रुपए की राशि जारी की है। भारत सरकार द्वारा गठित राष्ट्रीय कार्यान्वयन और निगरानी समिति (एनआइएमसी) इस पुनरुत्थान पैकेज के कार्यान्वयन की निगरानी कर रही है।

132. इसके अलावा, सहकारी क्रेडिट संरचना के दीर्घावधि अध्ययन का कार्य भी इसी कार्य बल को सौंपा गया है। इस कार्य बल ने अगस्त 2006 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। केंद्रीय बजट 2008-09 में यह घोषणा की गई थी कि भारत सरकार और राज्य सरकारों ने दीर्घावधि सहकारी ऋण संरचना के पुनरुत्थान के लिए पैकेज की विषय-वस्तु के मद्देनजर समझौता किया है। इस पैकेज की लागत 3,074 करोड़ रुपए आंकी गई जिसमें से केंद्र सरकार का हिस्सा 2,642 करोड़ रुपए होगा। भारत सरकार ने दीर्घावधि सहकारी ऋण संरचना की व्यवहार्यता, एक अलग पैकेज की सार्थकता और कार्यान्वयन की रणनीति के संबंध में विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए रिज़र्व बैंक और नाबार्ड से प्रतिनिधियों को लेते हुए सितंबर 2009 में एक कार्य बल (अध्यक्ष : श्री जी.सी. चतुर्वेदी) गठित किया।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए जोखिम भारित आस्ति और पूंजी अनुपात (सीआरएआर) : स्थिति

133. वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन समिति (अध्यक्ष : डॉ. राकेश मोहन, सह-अध्यक्ष : श्री अशोक चावला) की सिफारिशों के आधार पर अप्रैल 2009 की वार्षिक नीति वक्तव्य में पुनर्पूंजीकरण और समामेलन की स्थिति पर विचार करते हुए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए चरणबद्ध तरीके से सीआरएआर लागू करने का प्रस्ताव किया गया। भारत सरकार ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की वित्तीय स्थिति की जांच करने और मार्च 2012 तक इन बैंकों के सीआरएआर 9 प्रतिशत तक बढ़ाने हेतु एक रूपरेखा तैयार करने के लिए सरकार, प्रायोजक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और नाबार्ड से प्रतिनिधियों को लेते हुए एक समिति (अध्यक्ष : डॉ. के. सी. चक्रवर्ती) का गठन किया। इस समिति की रिपोर्ट जनवरी 2010 के अंत तक प्रस्तुत किए जाने की संभावना है।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का समामेलन : स्थिति

134. कुल 196 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में से 159 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक 46 नये क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (27 बैंकों द्वारा प्रायोजित और एक संघशासित क्षेत्र सहित 26 राज्यों में स्थित) में समामेलित हो चुके हैं। तब से संघशासित क्षेत्र पुदुचेरी में भी एक नये क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना हुई है। तदनुसार, अब कार्यरत क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की कुल संख्या 84 हो गई है।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का पुनर्पूंजीकरण : स्थिति

135. केंद्रीय बजट 2007-08 में यह घोषणा की गई कि ऐसे क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक जिनकी निवल मालियत नकारात्मक हो, उन्हें चरणबद्ध तरीके से पुनर्पूंजीकृत किया जाएगा। 31 जुलाई 2009 तक 1,796 करोड़ रुपए की राशि के साथ 27 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का पुनर्पूंजीकरण हो जाने के साथ-साथ पुनर्पूंजीकरण की प्रक्रिया अब पूरी हो चुकी है।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का तकनीकी उन्नयन : स्थिति

136. वित्तीय समावेशन के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक को सूचना प्रौद्योगिकी (आइटी)-आधारित समाधान को अपनाने में सक्षम बनाने के लिए, अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में नाबार्ड की सलाह से वित्तीय समावेशन समिति (अध्यक्ष डॉ. सी. रंगराजन) द्वारा अभिनिर्धारित उच्च वित्तीय वंचन वाले जिलों में वित्तीय समावेशन के लिए अपनाई जाने वाली सूचना और संसूचना प्रौद्यागिकी (आइसीटी) की पहचान करना प्रस्तावित था। आइसीटी के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने के लिए कोर बैंकिंग सोल्यूशन (सीबीएस) को लागू करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक द्वारा सीबीएस को अपनाए जाने के लिए रोडमैप तैयार करने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा गठित आंतरिक कार्यदल (अध्यक्ष: श्री जी. श्रीनिवासन) की रिपोर्ट सभी प्रायोजित बैंकों को अक्तूबर 2008 में इस सलाह के साथ भेज दी गई है कि वे उनके द्वारा प्रायोजित आरआरबी में इन संस्तुतियों को कार्यान्वित करें। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के हितधारक अर्थात भारत सरकार, राज्य सरकारों और प्रायोजित बैंकों के बीच सीबीएस परियोजना के निधियन लागत को बांटने से संबंधित मुद्दा नाबार्ड के विचाराधीन है।

शहरी सहकारी बैंक

शहरी सहकारी बैंकों के लिए विनियामक एवं
पर्यवेक्षी ढांचे की समीक्षा : स्थिति

137. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में शहरी सहकारी बैंक के लिए उचित आंतरिक नियंत्रण, जोखिम प्रबंधन प्रणाली, आस्ति-देयता प्रबंधन (एएलएम)और प्रकटीकरण मानदंडों पर वर्तमान अनुदेशों की समीक्षा और बड़े एवं प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण शहरी सहकारी बैंक के संदर्भ में बाजार जोखिम पर लागू पूंजीगत प्रभार की भी समीक्षा प्रस्तावित थी। यह समीक्षा की जा रही है।

शहरी सहकारी बैंकों को सूचना प्रौद्योगिकी सहायता: स्थिति

138. शहरी सहकारी बैंकों के आइटी पहलों की आगे ले जाने के तरीकों पर कार्यदल (अध्यक्ष: श्री आर.गांधी) की संस्तुतियों के आधार पर एक आंतरिक कार्य योजना बना ली गई है। छोटे और एकल इकाई वाले शहरी सहकारी बैंक की बड़ी संख्या और कंप्यूटरीकरण के स्तर में एकरूपता की कमी को ध्यान में रखते हुए कार्य योजना में कंप्यूटरीकृत प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआइएस) रिपोर्टिंग और स्वचालित विनियामक रिपोर्टिंग (एआरआर) को शामिल करने के लिए न्यूनतम स्तर तक सूचना प्रौद्योगिकी ढ़ांचे के निर्माण की संभावना को शामिल किया गया  है। सेवा प्रदाता के साथ विचार-विमर्श के पश्चात शहरी सहकारी बैंक को आईटी सहायता प्रदान करने के लिए एप्लीकेशन सर्विस प्रोवाइडर (एएसपी) मॉडल को अपनाने का निर्णय लिया गया है। बैंकिंग प्रौद्योगिकी विकास और अनुसंधान संस्थान (आइडीबीआरटी) के परामर्श से रूपरेखा तैयार की जा रही है।

शहरी सहकारी बैंकों के लिए शीर्ष संगठन का
निर्माण और पुनर्स्थापन निध:स्थिति

139. अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में दिए गए संकेतों के अनुसार, संबंधित राज्यों में यूसीबी क्षेत्र के लिए शीर्ष संगठन के निर्माण को सरल बनाने के लिए उचित विनियामक और पर्यवेक्षी ढांचे सहित उपायों का सुझाव देने के लिए एक कार्यदल (अध्यक्ष:श्रीवी.एस.दास) का गठन किया गया था। समूह ने अब अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है।

दायभाग (लेगेसी) मामलों में शहरी सहकारी बैंक की आस्तियों एवं देयताओं का वाणिज्यिक बैंकों को डीआइसीजीसी समर्थित अंतरण

140. शहरी सहकारी बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने के उपाय के तौर पर रिज़र्व बैंक ने निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम की सहायता से 31 मार्च, 2007 तक नकारात्मक निवल मालियत वाले कमजोर शहरी सहकारी बैंक का मजबूत शहरी सहकारी बैंक में समामेलन की योजना पर विचार किया है। हालांकि, जहां शहरी सहकारी बैंक क्षेत्र में समामेलन के लिए प्रस्ताव नहीं आ रहे हैं, उन मामलों में यह प्रस्तावित है कि :

  • शहरी सहकारी बैंकों के दायभाग(लेगेसी) मामलों के आस्ति और देयताओं को घरेलू अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों में अंतरण करने से संबंधित योजना को डीआइसीजीसी की सहायता उपलब्ध कराना बशर्ते कि योजना जमाकर्ताओं के लिए 100 प्रतिशत सुरक्षा सुनिश्चित करती हो और सहायक की राशि डीआइसीजीसी अधिनियम, 1961 की धारा 16(2) के अधीन उपलब्ध सीमा तक हो। 

141. इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।

V. वित्तीय समावेशन

व्यवसाय सम्पर्की (बीसी) मॉडल

अप्रैल 2007 के वार्षिक नीति वक्तव्य में यथा प्रस्तावित, व्यवसाय सम्पर्की मॉडल से अब तक प्राप्त अनुभवों की समीक्षा और विनियामक और पर्यवेक्षी ढांचे और उपभोक्ता सुरक्षा मामले को ध्यान में रखते हुए, कारोबार प्रतिनिधि के तौर पर कार्य कर सकने वाले व्यक्तियों का दायरा बढ़ाने के उपायों पर सुझाव देने के लिए एक कार्यदल (अध्यक्ष : श्री पी. विजयभास्कर) गठित की गई। कार्यदल की रिपोर्ट रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखी गई है। कार्यदल की संस्तुतियों के आधार पर यह प्रस्तावित है क:

  • बैंकों को व्यवसाय सम्पर्की के तौर पर प्रतिनिधियों को नियुक्त करने की पहले दी गई अनुमति के अतिरिक्त, निम्नलिखित इकाइयों को व्यवसाय सम्पर्की के तौर पर नियुक्त करने की अनुमति देना: (i) निजी किराना भंडार/दवाई/उचित मूल्य दुकान के मालिक; (ii) वैयक्तिक पब्लिक कॉल आफिस (पीसीओ) ऑपरेटर; (iii) भारत सरकार/ बीमा कंपनियों की लघु बचत योजनाओं के एजेंट (iv)पेट्रोल पंप मालिक; (v) सेवानिवृत्त शिक्षक; और (vi) बैंकों से जुड़े सुसंचालित स्वयं सहायता समूहों के प्राधिकृत पदाधिकारी; और

  • व्यवसाय सम्पर्की के माध्यम से सेवा देने के लिए बैंकों को अपने बोर्ड की अनुमति से पारदर्शी तरीके से ग्राहक से उचित सेवा प्रभार लेने की अनुमति देना। ग्राहक को इस बारे में स्पष्ट रूप से बता दिया जाना चाहिए।

143. प्राप्त अनुभव के आधार पर योजना की कार्यपद्धति की एक वर्ष बाद समीक्षा की जाएगी।

शत प्रतिशत वित्तीय समावेशन के लिये राज्य स्तरीय बैंकर समिति की पायलट परियोजना

144. देश के कुल 623 जिलों में से अब तक 431 जिलों को शत-प्रतिशत वित्तीय समावेशन के लिये निर्धारित किया गया है। इनमें से 18 राज्यों और 6 संघ शासित क्षेत्रों के 204 जिलों ने लक्ष्य प्राप्ति की सूचना दी है। हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, उत्तराखंड, गोवा, चंडीगढ़, पुदुचेरी ,दमण व दीव, दादरा व नगर हवेली और लक्षद्वीप ने रिपोर्ट किया है कि उनके सभी जिलों ने शत प्रतिशत वित्तीय समावेशन का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने शत-प्रतिशत वित्तीय समावेशन का दावा करने वाले 8 राज्यों के 26 जिलों में बाहरी एजेंसी के जरिए एक मूल्यांकन अध्ययन कराया है ताकि आगे कार्रवाई करने के लिए सीख ली जा सके। इस अध्ययन रिपोर्ट ने अन्य बातों के साथ-साथ यह खुलासा किया है कि यद्यपि राज्य स्तरीय बैंकिंग समिति ने कई जिलों को शत-प्रतिशत वित्तीय रूप से समाविष्ट घोषित कर दिया था तथापि वास्तविक वित्तीय समावेशन उससे कम ही इजआ। काफी बड़ी संख्या में नो-फ्रिल खाते निक्रिय हैं और लेन-देनों की संख्या कम है तथा अभी भी कई गांवों में आईसीटी आधारित सेवा पहुँचना बाकी है। इस अध्ययन के निष्कर्ष जनवरी 2009 में बैंकों क ाट सूचित कर दिये गये थे और उनसे समुचित उपाय करने के लिये कहा गया था।

उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में विशेष कार्यबल (टास्क फोर्स)

145. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में बैंकोंद्वारा वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य पाये जाने वाले उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के केद्रों में बैंकिंग सुविधायें प्रदान करने के लिये रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों को वित्तीय मदद देने की योजना बनाने का संकेत दिया गया था बशर्ते कि राज्य सरकारें आवश्यक परिसर और अन्य ढांचागत मदद मुहैया करायें। अपने योगदान के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक एक बारगी पूंजी लागत और बैंक द्वारा पेशकश की गई न्यूनतम बोली के अनुरूप पांच वर्ष की सीमित अवधि के लिये आवर्ती खर्चों का वहन करेगा। मेघालय सरकार ने परिसर और सुरक्षा प्रदान करने के प्रस्ताव पर सहमति दर्शाई है। तदनुसार, सरकारी क्षेत्र के तीन बैंकों को 8 केद्र आबंटित किये गये हैं। इस क्षेत्र के अन्य राज्यों के संबंध में भी कार्रवाई प्रारंभ कर दी गई है।

सरकारी योजनाओं के लिये इलेक्ट्रॉनिक
बेनिफिट ट्रान्सफर को शीघ्र अपनाना

146. बैंकों को अपनी पहुँच बढ़ाने के लिये आइसीटी समाधान अपनाने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु रिज़र्व बैंक ने स्मार्ट कार्ड आधारित इलेक्ट्रॉनिक बेनिफिट ट्रान्सफ र प्रणाली अपनाने की प्रक्रिया को तेज करने के लिये एक योजना बनाई और उन राज्यों में ईबीटी प्रणाली प्रारंभ की जो इसे अपनाने के लिये तैयार हैं। इस योजना के अनुसार रिज़र्व बैंक 50 रुपये प्रति खाते की दर से बायो मेट्रिक एक्ससेस/ स्मार्ट कार्ड वाले खातों को खोलने पर आने वाली लागत के एक अंश की प्रतिपूर्ति बैंकों क ाट करेगा। इन खातों के जरिए सामाजिक सुरक्षा लाभों राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) के भुगतान और अन्य सरकारी लाभ कार्यक्रमों के तहत भुगतान गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले व्यक्तियों को किये जायेंगे। वर्तमान में यह योजना आंध्र प्रदेश में कार्यान्वित की जा रही है। अब तक सात बैंकों द्वारा जुलाई-दिसंबर 2008 के दौरान आंध्र-प्रदेश में जारी किए गए स्मार्ट कार्डों के लिये उन्हें 1.8 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। अन्य राज्यों जैसे कि कर्नाटक और उत्तराखंड में यह प्रक्रिया क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों में है और रिज़र्व बैंक द्वारा आंशिक प्रतिपूर्ति करने की योजना का विस्तार एक और वर्ष के लिये 30 जून 2010 तक कर दिया गया है। बैंकों को सलाह दी गई है कि वे संबंधित केद्र और राज्य सरकारें के विभागों के साथ समन्वय स्थापित करते हुये कार्य करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य के सभी लाभ व्यक्तियें को एक निर्धारित समयावधि में केवल बैंक खातों के जरिये प्राप्त हो सकें।

अग्रणी बैंक योजना पर उच्च स्तरीय समिति

147. अग्रणी बैंक योजना पर उच्च स्तरीय समिति (अध्यक्ष: श्रीमती उषा थोरात) ने 21 मई 2009 को अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट को रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर अपलोड किया गया और इस पर आम जनता और अन्य हितधारकों की टिप्पणियां मांगी गईं। प्राप्त फीडबैक के आधार पर समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट 20 अगस्त 2009 को रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की और उसे 24 अगस्त 2009 को रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर अपलोड किया गया। जबकि समिति की सिफारिशें विचाराधीन हैं यह प्रस्ताव किया जाता है क:

  • अग्रणी बैंकों को यह सलाह दी जाये कि वे जिला परामर्शदात्री समितियों की एक उप-समिति गठित करें जो मार्च 2010 तक एक ऐसा रोडमैप तैयार करें जिसकी सहायता से मार्च 2011 तक दो हजार से अधिक की आबादी वाले प्रत्येक गांव में एक बैंकिंग आउटलेट के जरिए बैंकिंग सुविधायें मुहैया कराई जा सकें। इस प्रकार की बैंकिंग सेवाओं के लिये यह आवश्यक नहीं है कि उन्हे ईंट-पत्थर से बनी किसी शाखा में ही मुहैया कराया जाए बल्कि उन्हें विभिन्न प्रकार के आइसीटी माडलों, व्यवसाय संपर्की सहित, में से किसी के भी द्वारा प्रदान किया जा सकता है।

माइक्रो-फाइनांस : स्थिति

148. देश में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी)-बैंक लिकेंज कार्यक्रम प्रमुख माइक्रो फाइनांस कार्यक्रम के रूप में सामने आया है और इसे वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बेंकों और सहकारी बैंकों द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है। 31 मार्च 2009 की स्थिति के अनुसार 22,680 करोड़ रुपये के बकाया बैंक ऋणों के साथ 4.2 मिलियन एसएचजी कार्य कर रहे थे जो कि 31 मार्च 2008 की स्थिति से 34 प्रतिशत अधिक है। वर्ष 2008-09 के दौरान बैंकों ने 1.6 मिलियन एसएचजी का वित्त पोषण किया इसमें मौजूदा एसएचजी को दुबारा दिया गया 12,254 करोड़ रुपए का ऋण शामिल है। 31 मार्च 2009 की स्थिति के अनुसार बैंकों के पास एसएचजी के 6.1 मिलियन बचत खाते थे जिनमें लगभग 5,546 करोड़ रुपये की कुल जमा राशियाँ थीं।

149. निर्धनों को वित्तीय सेवायें प्रदान करने में माइक्रो फाइनांस संस्थानों की भूमिका महत्वपूर्ण होती जा रही है। बैंकिंग क्षेत्र माइक्रो फाइनांस संस्थानों को ऋण उपलब्ध करा रहा है ताकि वे आगे एसएचजी क ाट ऋण दे सकें। वर्ष 2008-09 के दौरान 581 माइक्रो फाइनांस संस्थानों को 3,732 करोड़ रुपये के ऋण वितरित किये गये जिससे 31 मार्च 2009 की स्थिति के अनुसार 1,915 माइक्रो फाइनांस संस्थानों को दिए गए बकाया ऋण बढ़कर 5,009 करोड़ रुपये हो गए।

प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण प्रमाणपत्र (पीएसएलसी): कार्य दल

150. वित्तीय क्षेत्र सुधार समिति (अध्यक्ष: डॉ. रघुराम जी. राजन) ने अन्य बातों के साथ-साथ प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋणों का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये बैंकों द्वारा खरीदने योग्य पीएसएलसी व्यवस्था शुरू करने की सिफारिश की थी। समिति की सिफारिशों के अनुसार पीएसएलसी माइक्रो फाइनांस संस्थानों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, सहकारी संस्थाओं जैसे पंजीकृत ऋण दाताओं और पंजीकृत साहूकारों द्वारा प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को दिये गये ऋण के लिये जारी किये जायेंगे और बैंकों द्वारा भी अपनी निर्धारित प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण आवश्यकताओटं से अधिक दी गई ऋण राशियों के लिये इन्हें जारी किया जायेगा। इन प्रमाणपत्रों का खुले बाज़ार में व्यापार किया जा सकेगा और वे बैंक जो प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को दिये जाने वाले ऋण के मानदंड पूरा को नहीं कर पाते है वे इस प्रकार के प्रमाण पत्र को खरीदकर प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के मानकों का पालन कर सकते हैं। समिति ने यह भी सिफरिश की पीएसएलसी के व्यापार में ऋण आस्तियें की खरीद करने के विपरीत वास्तविक ऋण वास्तविक उधारकर्ता के खातों में बने रहेंगे। तथापि, खरीदकर्ता बैंक उस राशि को अपनी प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण आवश्यकताओं के तहत दर्शाएगा। पीएसएलसी का बिक्री कर्ता, यदि वह एक बैंक है तो, इसे अपनी प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र की उधारी आवश्यकताओं से हटा देगा, यद्यपि वह अपने खातों में ऋण को दर्शाता रहेगा।

151. आरंभिक चर्चा यह दर्शाती है कि इस प्रस्ताव में खूबियां और कमियां दोनों है। अत: यह प्रस्ताव है क:

  • प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण प्रमाणपत्र लागू करने से जुड़े मुद्दों की जांच करने के लिये एक कार्य दल का गठन किया जाये जो उचित सिफारिशें प्रस्तुत करे।
VI. वाणिज्यिक बैंकों के लिये विनियामक उपाय

शाखाओं को प्राधिकृत करने संबंधी नीति में छूट

152. अप्रैल 2009 में घोषित वार्षिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के अनुसार बैंकिंग की पहुँच बनाने और वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहित करने के लिये शाखाओं को खोलने हेतु बैंकों को अधिक लचीलापन प्रदान करने के दृष्टिकोण से वर्तमान शाखाओं को प्राधिकृत करने की नीति की समीक्षा करने के लिये एक कार्य दल (अध्यक्ष : श्री पी. विजयभास्कर) गठित किया गया। इस बीच इस दल ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है। उक्त दल की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुये देशी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) के लिये शाखाओं को प्राधिकृत करने की वर्तमान नीति में निम्नानुसार छूट देने का प्रस्ताव है

  • देशी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) अब सामान्य स्वीकृति के तहत जनगणना 2001 में निर्धारित टीयर-3 से टीयर-6 केद्रों (50,000 तक की आबादी वाले) में शाखायें खोलने के लिये स्वतंत्र हैं।

  • देशी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) को टीयर-1 और टीयर-2 के केद्रों में (50,000 से अधिक आबादी वाले) शाखाएं खोलने के लिये पूर्वानुमति लेना जारी रहेगा।

  • बैंक टीयर-3 से टीयर-6 के केद्रों में अपने शाखा विस्तार को इस प्रकार योजनाबद्ध कर सकते हैं कि इस प्रकार की कम से कम एक तिहाई शाखाएं अल्प बैंंकिंग सुविधा वाले राज्यों के अल्प बैंकिंग सुविधावाले जिलों में हों जिन्हें रिज़र्व बैंक द्वारा अलग से अधिसूचित किया जाएगा। यह देशी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) द्वारा टीयर-1 और टीयर-2 केद्रों में शाखाएं खोलने हेतु दिये गये प्रस्तावों पर रिज़र्व बैंक द्वारा विचार किये जाने वाले मानदंडों में से एक मानदंड होगा। इस प्रकार के प्रस्तावों पर विचार करते समय रिज़र्व बैंक इसके अलावा वित्तीय समावेशन, प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधारियें और ग्राहक सेवा के स्तर में बैंकों के निष्पादन को भी अन्य बातों के साथ ध्यान में रखेगा।

बासल II ढांचे का संवर्द्धन

153. जुलाई 2009 में, बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल समिति ने बासल-II ढांचे के कुछ क्षेत्रों में संवर्द्धनों और संशोधनों को अंतिम रूप प्रदान किया। बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल समिति के संवर्द्धित/ संशोधित दिशानिर्देश उनके तीन दस्तावेजों में निहित हैं, नामत: बासल-II ढांचे का संवर्द्धन; बासल-II बाज़ार जोखिम ढांचे का संशोधन; और व्यापार बही में वृद्धिशील जोखिम के लिये पूंजी प्रभार की गणना हेतु दिशानिर्देश। इन संवर्द्धनों और संशोधनों का उद्देश्य उक्त ढांचे को सुदृढ़ बनाना और वित्तीय संकट से मिली सीख पर अमल करना है।

154. बीसीबीएस द्वारा तय संवर्द्धन और समीक्षाएं अधिकाश: बासल II ढांचे के अग्रिम एप्रोच पर लागू हैं भारत में बैंकों ने ढांचे के मानकीकृत/आधारभूत अप्रोच को कार्यान्वित किया है। हालांकि, जहां भी मानकीकृत/आधारभूत अप्रोच पर ये संवर्द्धन और समीक्षाएं लागू हैं, उनके लिए प्रस्तावित है कि :

  • भारत में कार्यरत बैंकों द्वारा लागू किए जाने हेतु उचित विस्तृत दिशा-निर्देशों को नवम्बर 2009 के अंत तक जारी किया जाए।

आस्ति देयता प्रबंधन के लिये अवधि अंतराल विश्लेषण की शुरुआत

155. रिज़र्व बैंक ने फरवरी 1999 में आस्ति देयता प्रबंधन पर दिशा निर्देश जारी किए थे जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ ब्याज दर जोखिम उपाय से संबंधित पहलुओं को शामिल किया गया है। बैंकों को ये दिशा-निर्देश पारंपरिक अंतराल विश्लेषण (टीजीए) का प्रयोग कर ‘आय संदर्भ’ से ब्याज दर जोखिम प्रबंधन के लिए दिए गए है। शुरुआत के तौर पर टीजीए को ब्याज दर जोखिम को आंकने के लिए उपयुक्त तरीका माना गया। तथापि, रिज़र्व बैंक ने आने वाले समय में अवधि अंतराल विश्लेषण (डीजीए) अनुरुपण, और समयावधि में जोखिम मूल्य जैसे ब्याज दर जोखिम प्रबंधन की नवीनतम तकनीक की ओर उस समय अग्रसर होने का संकेत किया था जब बैंक इस संबंध में पर्याप्त अनुभव एवं विशेषज्ञता प्राप्त कर लें। चूंकि बैंकों ने टीजीए के कार्यान्वयन में पर्याप्त अनुभव प्राप्त कर लिया है और वे व्यापारिक खाते में ब्याज दर जोखिम को आंकने के लिए मानकीकृत अवधि उपाय का प्रयोग करते वक्त अवधि/संशोधित अवधि की संकल्पना को लागू करने के संबंध में परिचित हो चुके होंगे अतएव यह बैंकों के ब्याज दर जोखिम के प्रबंधन के लिए डीजीए को अपनाने के लिए उचित अवसर है। इससे, बैंक ‘आर्थिक मूल्य परिप्रेक्ष्य’ से ब्याज दर जोखिम प्रबंधन के प्रयोग की ओर अग्रसर होंगे, तदनुसार, यह प्रस्तावित हैं कि :-

  • ब्याज दर जोखिम के प्रबंधन के लिए डीजीए के प्रयोग पर विस्तृत दिशा-निर्देश नवम्बर 2009 के अंत तक किए जाए।

अंतरण वित्तपोषण के लिए पूंजी पर्याप्तता मानदंड की समीक्षा

156. वर्तमान में, अंतरण वित्तपोषण करने वाली संस्था के तुलन पत्र से इतर एक्सपोजर के लिए संपरिवर्तन घटक 100 प्रतिशत है जिसमें अंतरण निष्पादन करने तक की अवधि के दौरान संस्थान की शर्तरहित वचनबद्धता को समाहित किया गया है। सशर्त अंतरण के लिए सीसीएफ 50 प्रतिशत के निचले स्तर पर निर्धारित किया गया है जो समझौते की सशर्त प्रकृति के कारण अंतरण निष्पादन से संबंधित अनिश्चितता परिलक्षित करता है। अंतरण वित्तपोषण करने वाली संस्था का वर्तमान पूंजी पर्याप्तता प्रावधान बासल I और बासल II के तहत वायदा आस्ति खरीद के पूंजी पर्याप्तता प्रावधान के अनुरूप है। इस मुद्दे पर पुनर्विचार किया गया और यह प्रस्ताव किया गया कि :

  • बैंकों को चरणबद्ध तरीके से अंतरण एक्सपोजर के लिए पूंजी बढ़ाने की अनुमति दी जाए। 

157. इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं।

वाणिज्यिक स्थावर संपदा एक्सपोज़र

158. पिछले एक वर्ष में वाणिज्यिक स्थावर संपदा क्षेत्र को प्रदत्त ऋण में हुई अत्यधिक वृद्धि तथा इस क्षेत्र में पुनर्संरचनागत अग्रिमों में बढ़ोतरी की दृष्टि से संभाव्य अनर्जक आस्तियों के संबंध में कुशन की व्यवस्था करना विवेकसम्मत होगा। तदनुसार यह प्रस्ताव किया गया है क:

  • वाणिज्यिक स्थावर संपदा क्षेत्र को दिए गए अग्रिमों, जिन्हें ‘मानक आस्तियों’ के रूप में वर्गीकृत किया गया हो, के लिए प्रावधानीकरण अपेक्षा को 0.40 प्रतिशत के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 1 प्रतिशत कर दिया जाए।

ऋण हानियों के प्रावधानों की पर्याप्तता की समीक्षा

159. वर्तमान में एनपीए से संबंधित प्रावधानीकरण की अपेक्षाओं का दायरा बकाया राशि के 10 प्रतिशत से 100 प्रतिशत के बीच है, जो कि एनपीए की अवधि, उपलब्ध प्रतिभूति और बैंक की आंतरिक नीति पर निर्भर करता है। चूंकि प्रावधानीकरण के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनिर्दिष्ट दरें न्यूनतम हैं तथा बैंक अपने ऋण पोर्टफोलियो की ऋणग्रस्तता पर आधारित संगत नीति के अधीन अतिरिक्त प्रावधान कर सकते हैं, अत: विभिन्न बैंकों के प्रावधानीकरण कवरेज अनुपात के स्तर में अत्यधिक विषमता एवं अंतराल पाया गया है। प्रावधानीकरण कवर को सुधारने एवं वैयक्तिक बैंको की स्थिति को मज़बूत बनाने की दृष्टि से यह प्रस्ताव किया गया है क:

  • बैंकों को सूचित किया जाए कि वे एनपीए के संबंध में अस्थायी प्रावधानों के साथ-साथ विनिर्दिष्ट प्रावधानों को समाहित करते हुए अपनी प्रावधानीकरण संबंधी कुशन में सुधार करें तथा यह सुनिश्चित करें कि अस्थायी प्रावधानों सहित कुल प्रावधानीकरण कवरेज अनुपात 70 प्रतिशत से कम न हो। बैंकों को सितंबर 2010 के अंत तक यह मानदंड पूरा कर लेना चाहिए।

बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण में संलग्न एनबीएफसी को बैंकों का एक्सपोज़र: जोखिम भारांकों की समीक्षा

160. वर्तमान में प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण जमा राशियां न लेनेवाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी-एनडी-एसआइ) को बैंकों के एक्सपोज़र का भारांक 100 प्रतिशत है। किंतु एनबीएफसी-एनडी-एसआई के वर्ग के अंतर्गत वाली आस्ति वित्तपोषण कंपनियां क्रेडिट रेटिंग पर आधारित जोखिम भार रखती हैं। जैसा कि इस भाग की धारा VII के पैरा 178 में बताया गया है बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण में संलग्न एनबीएफसी को एक नए वर्ग में वर्गीकृत किया जाएगा, जो कि बुनियादी एनबीएफसी कहलाएगा। चूंकि ऐसी एनबीएफसी द्वारा किए जाने वाले वित्तपोषण से बुनियादी ढांचे को मूर्त रूप प्राप्त होता है, अत: यह प्रस्ताव किया गया है क:

  • ऐसी एनबीएफसी को बैंकों के एक्सपोज़रों के ऋण भारांकें को बाह्य साख-निर्धारण संस्थाओ (ईसीएआइ) द्वारा एनबीएफसी को दी जाने वाली क्रेडिट रेटिंग से संबद्ध किया जाए।

प्रतिभूतिकरण एक्सपोज़रों के संबंध में लॉक-इन अवधि और न्यूनतम प्रतिधारण

161. प्रवर्तकों द्वारा प्रतिभूतिकरण के प्रयोजन से सृजित आस्तियों के संबंध में समुचित सावधानी बरतने को सुनिश्चित करने की दृष्टि से अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में यह प्रस्ताव किया गया कि इस प्रकार प्रतिभूतिकरण किए जाने से पहले बैंक ऋणों के लिए न्यूनतम लॉक-इन अवधि तय की जाए। यह भी प्रस्ताव किया गया कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक अन्य उपाय के तौर पर प्रवर्तकों के लिए न्यूनतम प्रतिधारण का मानदंड विनिर्दिष्ट किया जाए। तदनुसार यह प्रस्ताव किया गया है क:

  • सभी प्रकार के ऋणों के लिए न्यूनतम लॉक-इन अवधि उनके प्रतिभूतिकरण किए जाने से पहले वाले एक वर्ष की अवधि होगी; तथा

  • प्रवर्तकों द्वारा किया जाने वाला न्यूनतम प्रतिधारण उन आस्तियों का 10 प्रतिशत होगा, जिन्हें प्रतिभूतिकृत किया जा रहा हो।

162. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, विशेष रूप से यूरोपीय संघ एवं यूएस में न्यूनतम प्रतिधारण मानदंड संबंधी कार्य अभी भी चालू है। भारतीय रिज़र्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित किए जा रहे मानदंडों को ध्यान में रखते हुए एक वर्ष की लॉक-इन अवधि की गणना के तौर-तरीके पर विस्तृत दिशा-निर्देश और अन्य परिचालनगत ब्योरे जारी करेगा।

क्षतिपूर्ति प्रक्रिया

163. क्षतिपूर्ति प्रक्रिया, विशेष रूप से बड़ी वित्तीय संस्थाओं से संबंधित क्षतिपूर्ति प्रक्रिया उन कारकों में से एक है, जिन्होंने मौजूदा वैश्विक वित्तीय संकट में योगदान किया है। एफएसबी ने सुदृढ क्षतिपूर्ति प्रक्रियाओं के संबंध में कतिपय सिद्धांत बनाए हैं। इन सिद्धांतों में क्षतिपूर्ति के प्रभावी अभिशासन, सभी प्रकार के जोखिमों के लिए क्षतिपूर्ति को समायोजित करने, जोखिम जन्य परिणामों का सामना करने में सक्षम होने तथा जोखिमों की समयावधि की दृष्टि से समर्थ होने पर जोर दिया गया है। ये सिद्धांत, जिन्हें जी-20 द्वारा समर्थित किया गया हो, किसी वित्तीय संस्था में कार्यरत सभी कर्मचारियें के लिए क्षतिपूर्ति योजना के लिए मार्गदर्शी सिद्धांत हों। रिज़र्व बैंक सुदृढ क्षतिपूर्ति के संबंध में एफएसबी सिद्धांतों पर कार्य कर रहा है तथा यह प्रस्ताव किया गया है क:

  • सुदृढ क्षतिपूर्ति नीति की दिशा में निजी क्षेत्र के बैंकों एवं विदेशी बैंकों के लिए उपयुक्त दिशा-निर्देश जारी किए जाएं।

चलनिधि संबंधी जोखिम

164. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में यह प्रस्ताव किया गया था कि चलनिधि जोखिम प्रबंधन पर प्रारूप परिपत्र जारी किया जाए। साथ ही, जून 2009 के मध्य में भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर "चलनिधि जोखिम प्रबंधन" संबंधी मार्गदर्शन नोट प्रस्तुत किया जाए। इसे स्थगित कर दिया गया। चलनिधि जोखिम प्रबंधन पर वैश्विक स्तर पर सक्रिय विचार-विमर्श किया जा रहा है, साथ ही, बीसीबीएस एकीकृत जोखिम प्रबंधन प्रणाली को अपनाने के तौर-तरीकों को समुन्नत बनाने के प्रक्रियाधीन है, अत: इसे ध्यान में रखते हुए अब यह प्रस्ताव किया गया है क:

  • दिसंबर 2009 के अंत तक इन परिवर्तनों पर प्रकाश डालते हुए एक प्रारूप परिपत्र जारी किया जाए।

दबाव परीक्षण

165. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में यह प्रस्ताव किया गया है कि ज्यों ही बीसीबीएस द्वारा ‘प्रिन्सिपल्स फॉर साउन्ड स्ट्रेस टेस्टिंग प्रैक्टिसेज़ एंड सुपरविज़न’ संबंधी प्रारूप को अंतिम रूप दिया जाता हो त्यों ही दबाव परीक्षण के दिशानिर्देशों को अपग्रेड किया जाए। इस परिप्रेक्ष्य में जून 2007 में बैंकों को जो दिशानिर्देश दिए गए हैं, उन्हें बीसीबीएस द्वारा जारी किए गए अंतिम प्रारूप के आलोक में और दबाव परीक्षण के क्षेत्र में किए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय, विशेष रूप से आइएमएफ और एफएसबी द्वारा किए जा रहे कार्य/पहल की दृष्टि से व्यापक बनाना अपेक्षित है। यह प्रस्ताव किया गया है क:

  • जनवरी 2010 के अंत तक बैंकों को दबाव परीक्षण संबंधी दिशानिर्देश जारी किए जाएं।

क्रेडिट रेटिंग एजेन्सियांस्थिति

166. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में यह बताया गया था कि रिज़र्व बैंक सेबी के साथ मिलकर रेटिंग एजेन्सियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय प्रतिभूति आयोग संगठन (आइओएससीओ) की मूलभूत आचार संहिता के अनुपालन की दिशा में कार्य करेगा। तदनुसार, बासल II के अंतर्गत रेटिंग एजेन्सियों की लगातार आधिकारिक मान्यता की समीक्षा करने की दृष्टि से रिज़र्व बैंक ने भारतीय साख निर्धारण सूचना सेवा लिमिटेड (सीआरआइसीआइएल), आइसीआरए लिमिटेड, ऋण विश्लेषण और अनुसंधान लिमिटेड तथा फिट्च के साथ बैठकों का आयोजन किया है। रिज़र्व बैंक ने रेटिंग एजेन्सियों द्वारा आईओएससीओ की समुन्नत मूलभूत आचार संहिता के अनुपालन पर मूल्यांकन करने के लिए सेबी के साथ विचार-विमर्श प्रारंभ किया है।

VII. संस्थागत गतिविधियां

भुगतान एवं निपटान प्रणालियां

भारत में पूर्वदत्त भुगतान लिखतों से संबंधित दिशानिर्देश:

167. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में किए गए उल्लेख के अनुसार पात्रता संबंधी मानदंडों को पूरा करने वाले अनुसूचित वाणिज्य बैंकों एवं गैर-बैंक संस्थाओं को पूर्वदत्त भुगतान लिखत जारी करने की अनुमति दी गई। इसके अलावा, अगस्त 2009 में अन्य संस्थाओं को भी अनुमति दी गई कि वे मोबाइल फोन आधारित सेमी-क्लोज्ड सिस्टम पर 5,000 रुपये के अधिकतम मूल्य के पूर्वदत्त लिखत जारी कर सकते हैं।

इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणालियां

168. मार्च 2009 के अंत से सितंबर 2009 के अंत तक राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण (एनईएफटी) के शाखा-नेटवर्क में बढ़ोतरी हुई, जो कि 54,200 से 60,839 हो गया तथा आरटीजीएस-साधित शाखाओं की संख्या में वृद्धि हुई, जो 55,000 से 60,144 हो गई।  आरटीजीएस नेटवर्क द्वारा किए गए दैनिक लेनदेनों की औसत संख्या 80,000 से बढ़कर 90,000 हो गई

राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक समाशोधन सेवा

169. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य के अनुसार राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक समाशोधन सेवा (एनईसीएस), जिसका आरंभ सितंबर 2008 में किया गया था, द्वारा किए जाने वाले लेनदेनों की मात्रा में क्रमिक रूप से वृद्धि हो रही है। सितंबर 2009 के अंत की स्थिति के अनुसार 114 बैंकों की 30,780 शाखाएं एनईसीएस में भाग ले रही हैं।

एटीएम में ग्राहक सेवा

170. रिज़र्व बैंक को बैंक ग्राहकों से एटीएम में किसी कारणवश नकदी संवितरित नहीं किए जाने के बावजूद वह राशि अपने खाते में नामे डाले जाने के संबंध में बड़ी संख्या में शिकायतें मिली हैं। ग्राहक सेवा को सुधारने की दृष्टि से रिज़र्व बैंक ने सभी बैंकों को सूचित किया है कि वे ग्राहकों को चूके हुए एटीएम लेनदेनों की वजह से गलत तरीके से उनके खाते में नामे डाली गई राशि की प्रतिपूर्ति उस ग्राहक की शिकायत के प्राप्ति-दिनांक से अधिक-से-अधिक 12 दिनों की अवधि के अंदर करें। यदि कोई बैंक ऐसे ग्राहक के खाते में धन-राशि वापस जमा नहीं करता हो तो उसे व्यथित ग्राहक को प्रतिदिन 100 रुपये की प्रतिपूर्ति करनी पड़ेगी। बैंक द्वारा ग्राहक को उसके खाते में प्रतिपूति की राशि ठीक उसी दिन जमा करनी होगी, जिस दिन को चूके हुए एटीएम लेनदेन की राशि वापिस की जाती हो।

अन्य बैंकों के एटीएम के प्रयोग की सुविधा: युक्तिसंगत बनाना

171. रिज़र्व बैंक ने ग्राहकों को सूचित किया था कि वे 1 अप्रैल 2009 से अन्य बैंकों के एटीएम से बिना किसी प्रभार के नकदी आहरण कर सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप एटीएम के लेनदेनों, खासकर छोटे मूल्य के नकदी आहरण के लेनदेनों की मात्रा में बढ़ोतरी हुई, जिससे परिचालन की व्यवहार्यता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इसलिए भारतीय बैंकर संघ (आइबीए) ने रिज़र्व बैंक से संपर्क किया और ग्राहक सुविधा को और कारगर करने एवं परिचालनगत कठिनाइयों को कम करने के बीच तालमेल बिठाने को युक्तिसंगत बनाने की दृष्टि से सुझाव प्रस्तुत किया। इसके मद्देनज़र रिज़र्व बैंक ने आईबीए के निम्नलिखित सुझावों को स्वीकार किया है (i) अन्य बैंकों के एटीएम की पहुँच केवल उन ग्राहकों के लिए उपलब्ध होगी, जो बचत खाते रखते हों, (ii) अन्य बैंकों के एटीएम से निकाली जाने वाली धन-राशि के लिए 10,000 रुपये की सीमा तय करना; तथा (iii) अन्य बैंकों के एटीएम से प्रतिमाह केवल पाँच न:शुल्क लेनदेनों की अनुमति दी जाए। ये अनुदेश 15 अक्तूबर, 2009 से प्रभावी हुए।

मोबाइल भुगतान

172. 8 अक्तूबर 2008 को मोबाइल भुगतानों के लिए जारी परिचालनात्मक दिशानिर्देशों को जारी करने के साथ रिज़र्व बैंक ने अब तक 32 बैंकों को अपने ग्राहकों को मोबाइल बैंकिंग सुविधाएं प्रदान करने की अनुमति दी है।

चेक ट्रंकेशन प्रणाली

173. अप्रैल 2009 का वार्षिक नीति वक्तव्य यह दर्शाता है कि रिज़र्व बैंक पूरे देश में चेक ट्रंकेशन प्रणाली (सीटीएस) को लागू करने का प्रयास करेगा। इसके अनुसरण में 1 जुलाई 2009 से, नई दिल्ली के सभी चेक के ढेर को सीटीएस में अंतरित किया गया और तदनुसार मैग्नेटिक इंक केरेक्टर रिकगनेशन क्लियरिडग (एमआइसीआर) (भारतीय स्टेट बैंक और रिज़र्व बैंक दोनों जगहों पर) बंद की गई थी। इसके अतिरिक्त चेन्नै में सीटीएस शुरू करने के प्रयास आरंभ किए गए और यह प्रस्ताव किया गया कि नई दिल्ली और चेन्नै एक दूसरे के बेकअप के रूप में कार्य करेंगे। 1 जुलाई 2009 से, सीटीएस में प्रस्तुतकर्ता बैंक और अदाकर्ता बैंक दोनों से प्रत्येक लिखत पर 0.50 रुपए का शुल्क लगाया गया है। वर्तमान में सीटीएस में प्रतिदिन लगभग 6,00,000 लिखत आते हैं।

बिक्री केंद्र (पीओएस) पर नकद आहरण

174. नकदी अधिकांशत: छोटे मूल्य के भुगतान के लिए उपयोग में लाई जाती है और ऐसे में वहां पर मुद्रा की उपलब्धता की हमेशा आवश्यकता रहती है। विभिन्न व्यापार स्थलों के बिक्री केंद्र (पीओएस) टर्मिनल में डेबिट कार्ड का उपयोग नियमित रूप से आगे बढ़ रहा है। अगस्त 2009 के अंत तक देश में पीओएस टर्मिनलों की संख्या 4,87,024 थी। प्लास्टिक कार्ड के उपयोग के समय ग्राहक सुविधा को बढ़ाने के एक प्रयास के रूप में, भारत में जारी सभी डेबिट कार्ड पर पीओएस टर्मिनल पर प्रति दिन 1,000 रुपए तक के नकद आहरण की स्वीकृति दी गई है।

भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007

175. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में दर्शाए अनुसार, सभी भुगतान प्रणाली प्रदाता/परिचालक, जिनमें क्रेडिट कार्ड जारी करनेवाली कंपनी और मुद्रा अंतरण कार्य करनेवाली संस्था भी शामिल है, को भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के अनुसार प्राधिकृत होना आवश्यक है। तदनुसार, भारत में सेवा प्रदान करनेवाले 30 भुगतान प्रणाली सेवा प्रदाताओं को रिज़र्व बैंक द्वारा सितंबर 2009 के अंत तक प्राधिकार प्रमाणपत्र प्रदान किए गए।

मुद्रा प्रबंधन

176. रिज़र्व बैंक द्वारा गठित मुद्रा प्रबंध पर उच्च स्तरीय दल (अध्यक्ष: श्रीमती उषा थोरात) ने अपनी रिपोर्ट अगस्त 2009 में प्रस्तुत की। दल ने, अन्य बातों के साथ-साथ, आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग और मुद्रा के स्टॉकिंग, प्रोसेसिंग और वितरण के लिए सुरक्षा प्रणाली के महत्व पर जोर दिया ताकि जनता को वास्तविक और स्वच्छ नोट पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होना सुनिश्चित किया जा सके। उक्त उद्देश्य को उचित प्राथमिकता दिए जाने के लिए बैंकों को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से, यह प्रस्ताव है कि -

  • बैंकों के लिए उनकी सभी शाखाओं में क्रमबद्ध तरीके से नोट सॉर्टिंग मशीन संस्थापित करना अनिवार्य किया जाए। इसकी रूपरेखा का अनुमोदन रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाएगा; और

  • प्रत्येक बैंक में एक नोडल अधिकारी को मुद्रा प्रबंध का दायित्व सौंपा जाए जो वरिष्ठ कार्यकारी हो और जिसका स्तर महाप्रबंधक से कम न हो तथा वह रिज़र्व बैंक द्वारा मुद्रा तिजोरी के लिए दिए गए दायित्व के लिए जिम्मेदार हो।

177. कार्यकारी दल की रिपोर्ट पर आधारित विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किये जाएंगे।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां

एनबीएफसीएस -एनडी - एसआइ का वर्गीकरण
इफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां

178. अधिकांशत: संरचनात्मक वित्तपोषण में कार्यरत एनबीएफसीएस - एनडी - एसआइ ने रिज़र्व बैंक को अभ्यावेदन दिया है कि उन्होंने संरचनात्मक क्षेत्र को ऋण प्रदान करने की जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उसे देखते हुए संरचनात्मक वित्तपोषण करनेवाली एनबीएफसी की एक अलग ही श्रेणी होनी चाहिए। वर्तमान में, रिज़र्व बैंक ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को तीन श्रेणियों-अर्थात् परिसंपत्ति वित्त कंपनियां, ऋण कंपनिया और निवेश कंपनियां-में वर्गीकृत किया है। अब यह निर्णय किया गया है कि -

  • ‘संरचानात्मक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनिया’ नाम से गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की एक चौथी श्रेणी आरंभ की जाए, जो संरचनात्मक परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए अपनी कुल आस्तियों का कम से कम 75 प्रतिशत धारित करनेवाली कंपनी के रूप में परिभाषित होगी।

179. पात्रता मानदंड सहित विस्तृत अनुदेश अलग से जारी किए जाएंगे।

गैंर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा वाहनों को अपने कब्जे में लेना

180. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में यह जोर दिया गया था कि एनबीएफसी के पास अपना कब्जा लेने संबंधी अंतर्निहित खंड  (वाहनों का अपना कब्जा लेने के संबंध में) तथा उधारकर्ता के साथ की जानेवाली संविदा/किए जानेवाले ऋण करार में पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए शर्तो तथा नियमों के संबंध में विस्तृत प्रावधान होने चाहिए, जिन्हें विधिक रूप से लागू किया जाएगा। तदनुसार, एनबीएफसी को संविदा/ऋण करार के शर्तों और नियमों की स्थूल संरचना सूचित की गई अर्थात् (i) कब्जा लेने के पहले की नोटिस अवधि; (ii) वे परिस्थितियां जिनमें नोटिस अवधि की छूट दी जा सके; (iii) जमानत के तौर पर रखी गई संपत्ति पर कब्ज़ा लेने संबंधी क्रियाविधि; (iv) संपत्ति की बिक्री/नीलामी के पहले उधारकर्ता को एक अंतिम अवसर प्रदान करने संबंधी प्रावधान; (v) उधारकर्ता को पुन: कब्जा देने संबंधी क्रियाविधि; और (vi) संपत्ति की बिक्री/नीलामी संबंधी क्रियाविधि। साथ ही, एनबीएफसी से आग्रह किया गया कि वे ऋण मंजूर/संवितरित करते समय उधारकर्ता को ऐसे शर्तों एवं नियमों की प्रतिलिपि उपलब्ध कराएं, जो ऐसी संविदाओं/ऋण करारों का प्रमुख घटक होंगे।

पात्र एनबीएफसीएस - एनडी - एसआइ के लिए विशेष चलनिधि सुविधा

181.एनबीएफसी-एनडी-एसआइ को भारतीय औद्योगिक विकास बैंक दबावग्रस्त आस्ति स्थिरीकरण निधि (आइडीबीआइ एसएएसएफ)न्यास के जरिए अस्थायी चलनिधि असंतुलन को पूरा करने के लिए दी जानेवाली विशेष चलनिधि सुविधा, जिसे उक्त कार्य संपन्न करने के लिए विशेष प्रयोजन माध्यम के रूप में अधिसूचित किया गया था, को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा जारी किये गये पात्र दस्तावेजों के संबंध में 30 सितंबर 2009 तक बढ़ा दी गयी थी। उक्त विशेष प्रयोजन माध्यम 31 दिसंबर, 2009 के बाद नई खरीदारी करना बंद करेगा और इसकी समस्त देय राशियों की वसूली 31 मार्च 2010 तक कर लेगा। उक्त सुविधा के अधीन 750 करोड़ रुपए तक राशि प्राप्त कर ली गई है और इसे 7 जुलाई 2009 तक पूरी तरह चुका दिया गया।

मुम्बई
7 अक्तूबर 2009

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