बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 19 - सहायक कंपनियों तथा अन्य कंपनियों में निवेश - दिशानिर्देश - आरबीआई - Reserve Bank of India
बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 19 - सहायक कंपनियों तथा अन्य कंपनियों में निवेश - दिशानिर्देश
आरबीआई/2011-12/297 12 दिसंबर 2011 सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक महोदय बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 19 - कृपया परा-बैंकिंग कार्यकलाप पर 01 जुलाई 2011 के हमारे मास्टर परिपत्र बैंपविवि. सं. एफएसडी. बीसी. 15/24.01.001/2011-12 के पैराग्राफ 2 तथा 3 में निहित अनुदेश देखें जो बैंकों द्वारा सहायक कंपनियां स्थापित करने के साथ-साथ जो वित्तीय सेवा कंपनियां सहायक कंपनियां नहीं हैं उनमें बैंकों के निवेश के लिए दिशानिर्देशों से संबंधित हैं । इसके लिए रिज़र्व बैंक का पूर्वानुमोदन अपेक्षित है तथा उन्हें कतिपय निर्धारित विवेकपूर्ण सीमाओं के भीतर अनुमति दी गई है । 2. बैंकों द्वारा ऐसी कंपनियों में निवेश जो सहायक कंपनियां नहीं हैं, पर बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (बी. आर. एक्ट) की धारा 19(2) लागू होती है । वर्तमान में ऐसे मामलों को छोड़कर जहां निवेशित कंपनियां वित्तीय सेवा कंपनियां हैं, ऐसे निवेशों के लिए पूर्वानुमोदन के लिए कोई अपेक्षा नहीं है । इसलिए यह संभव है कि बैंक अन्य कंपनियों में अपनी धारिताओं के माध्यम से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से ऐसी कंपनियों पर नियंत्रण या महत्वपूर्ण प्रभाव रख सकते हैं और इस प्रकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे कार्यकलापों में शामिल हो सकते हैं जिनके लिए बैंकों को अनुमति नहीं प्राप्त है [उक्त अधिनियम की धारा 6(1) - ऐसे कार्यकलापों से संबंधित है जिनके लिए बैंकों को अनुमति प्राप्त है ]। यह उक्त अधिनियम के उपबंधों की भावना के विरुद्ध होगा और इसे विवेकपूर्ण नजरिए से उचित नहीं समझा जाता । 3. इसलिए, यह निर्णय लिया गया है कि ऐसी कंपनियों, जो सहायक कंपनियां नहीं हैं और `वित्तीय सेवा कंपनियां' नहीं हैं, में बैंकों के निवेश के संबंध में विवेकपूर्ण दिशानिर्देश निर्धारित किया जाए (जैसा कि अनुबंध I में परिभाषित किया गया है) । 4. निम्नलिखित पैराग्राफों में पहले बैंकों द्वारा सहायक कंपनियां स्थापित करने तथा वित्तीय सेवाओं से संबद्ध कंपनियों (सहायक कंपनियां नहीं) में उनके निवेश से संबंधित मौजूदा विनियमों का उल्लेख किया गया है ताकि इस संबंध में एक दृष्टिकोण प्रदान किया जा सके और उसके बाद ऐसी कंपनियों (सहायक कंपनियां नहीं) जो वित्तीय सेवा कंपनियां नहीं हैं, में बैंकों के निवेश को शासित करने के लिए विवेकपूर्ण विनियम निर्धारित किए जा सकें । 5. सहायक कंपनियों में निवेश बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धरा 19 की उप-धारा (1) के अनुसार कोई भी बैंकिंग कंपनी (i) उक्त अधिनियम की धारा 6 की उप-धारा(1) के खंड (क) से (ण) तक के अंतर्गत निर्दिष्ट कोई व्यवसाय अर्थात् वे कार्य जो बैंक कर सकते हैं, करने अथवा (ii) भारतीय रिज़र्व बैंक की पिछली अनुमति से केवल भारत के बाहर बैंकिंग व्यवसाय करने अथवा (iii) इस प्रकार का अन्य कोई व्यवसाय करने जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्र सरकार के पूर्वानुमोदन से यह समझे कि उस व्यवसाय से भारत में बैंकिंग का विस्तार होगा अथवा प्रकारांतर से जनहित में उपयोगी या आवश्यक होगा (उदाहरणार्थ बैंकिंग क्षेत्र की सूचना प्रौद्योगिकी जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंकों द्वारा स्थापित की जाने वाली सूचना प्रौद्योगिकी सहायक कंपनियां इस श्रेणी में आ सकती हैं) । 6. सहायक कंपनियों में किए गए निवेश के अलावा निवेश बैंककारी विनियमन अधिनियम की धारा 19 की उप-धारा (2) के अंतर्गत यह उपबंध किया गया है कि कोई भी बैंकिंग कंपनी किसी कंपनी में गिरवीदार, बंधकग्राही या संपूर्ण स्वामी के रूप में उस कंपनी की चुकता पूंजी के 30 प्रतिशत अथवा स्वयं अपनी चुकता शेयर पूंजी तथा आरक्षित निधियों के 30 प्रतिशत से अधिक किसी राशि, इनमें से जो कम हो, के शेयरधारित नहीं कर सकती । यह नोट किया जाए कि सहायक कंपनियों के विपरीत उन कंपनियों के कार्यकलापों पर कोई सांविधिक प्रतिबंध नहीं है जिनमें बैंक बैंककारी विनियमन अधिनियम की धारा 19 की उप-धारा (2) के अंतर्गत यथानिर्धारित उच्चतम सीमा के भीतर ईक्विटी धारित कर सकते हैं । दूसरे शब्दों में, ये कंपनियां वित्तीय सेवाएं कंपनियां तथा ऐसी कंपनियां भी हो सकती हैं जो वित्तीय सेवाओं से नहीं जुड़ी हैं । 7. सहायक कंपनियों तथा वित्तीय सेवा कंपनियों में निवेश के लिए विवेकपूर्ण विनियमावली मौजूदा विनियमों के अनुसार बैंकों के लिए अनिवार्य है कि वे सहायक कंपनियां स्थापित करने तथा वित्तीय सेवा कंपनियों में कोई ईक्विटी निवेश करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक का पूर्वानुमोदन प्राप्त करें जो निम्नलिखित सीमाओं तथा शर्तों के अधीन होगा : किसी सहायक कंपनी अथवा वित्तीय संस्था, शेयर तथा अन्य बाजारों, निक्षेपागारों आदि सहित किसी वित्तीय सेवा कंपनी जो सहायक कंपनी न हो, में किसी बैंक का निवेश बैंक की चुकता शेयर पूंजी के 10 प्रतिशत तथा सभी सहायक कंपनियों एवं सभी गैर-सहायक वित्तीय सेवा कंपनियों में किया गया कुल निवेश बैंक की चुकता शेयर पूंजी तथा आरक्षित निधियों के 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए । तथापि, यदि वित्तीय सेवा कंपनियों में निवेश `व्यापार के लिए धारित' श्रेणी के अंतर्गत धारित हैं तथा उन्हें 90 दिन से अधिक समय के लिए धारित किया गया है जो न तो 20 प्रतिशत की उच्चतम सीमा लागू होती है और न ही भारतीय रिज़र्व बैंक का पूर्वानुमोदन अपेक्षित है। 8. गैर-वित्तीय सेवा कंपनियों में बैंकों के निवेश पर विवेकपूर्ण विनियमावली चूंकि गैर-वित्तीय सेवा कंपनियों में निवेश के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक का पूर्वानुमोदन आवश्यक नहीं है इसलिए बैंक बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 19(2) के उपबंधों के अंतर्गत इन कंपनियों में संभावित रूप से काफी ईक्विटी धारण कर सकते हैं । इसके परिणामस्वरूप, जैसा कि पैराग्राफ 2 में बताया गया है, बैंक अन्य कंपनियों में अपनी प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष धारिताओं के माध्यम से ऐसी कंपनियों पर नियंत्रण रखते हैं और काफी हद तक उन्हें प्रभावित करते हैं और इस प्रकार ऐसे कार्यकलापों में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होते हैं जिनके लिए बैंकों को अनुमति नहीं प्राप्त होती । इसलिए, ऐसे निवेशों के लिए सीमा निर्धारित करना आवश्यक है । इस उद्देश्य से निम्नलिखित दिशानिर्देश निर्धारित किए गए हैं : i) गैर-वित्तीय सेवा कार्यकलापों के साथ जुड़ी कंपनियों में किसी बैंक का ईक्विटी निवेश निवेशिती कंपनी की चुकता शेयर पूंजी के 10 प्रतिशत या बैंक की चुकता शेयर पूंजी एवं आरक्षित निधियों के 10 प्रतिशत, इनमें से जो कम हो, से अधिक नहीं होना चाहिए । इस सीमा के प्रयोजन से `व्यापार के लिए धारित' के अंतर्गत धारित ईक्विटी निवेशों को भी हिसाब में लिया जाएगा । उपर्युक्त सीमाओं के भीतर किए गए निवेशों के लिए रिज़र्व बैंक का पूर्वानुमोदन आवश्यक नहीं होगा भले ही वे निवेश `व्यापार के लिए धारित' श्रेणी में हो या न हों । ii) किसी गैर-वित्तीय सेवा कंपनी में (क) किसी बैंक; (ख) ऐसी कंपनियां जो बैंक की सहायक कंपनियां, सहयोगी कंपनियां या संयुक्त उपक्रम या बैंक द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित कंपनियाँ हों; तथा (ग) बैंक द्वारा नियंत्रित आस्ति प्रबंधन कंपनी (एएमसी) द्वारा प्रबंधित म्युचूअल फंडों द्वारा किया गया निवेश कुल मिलाकर निवेशिती कंपनी की चुकता शेयर पूंजी के 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए । iii) ऐसी निवेशिती कंपनी में उसकी चुकता शेयर पूंजी के 10 प्रतिशत से अधिक लेकिन 30 प्रतिशत से कम निवेश करने के लिए किसी बैंक के अनुरोध पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा तभी विचार किया जाएगा यदि उक्त निवेशिती कंपनी ऐसे गैर-वित्तीय कार्य कलापों से जुड़ी हो जिनके लिए बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 6(1) के अनुसार बैंकों को अनुमति दी गई है । यह बात पुन: दोहराई जाती है कि बैंकों को ऐसे कार्यकलाप करने के लिए सहायक कंपनियां स्थापित करने की अनुमति दी जाती है जो भारत में बैंकिंग के विस्तार के लिए फलप्रद तथा बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 19(1) (ग) के उपबंधों के अनुसार जनहित में उपयेागी और आवश्यक हैं । iv) किसी बैंक का सहायक कंपनियों तथा वित्तीय सेवा कार्यकलापों से जुड़ी अन्य कंपनियों के साथ-साथ गैर-वित्तीय सेवा कार्यकलापों से जुड़ी कंपनियों में कुल ईक्विटी निवेश उक्त बैंक की चुकता शेयर पूंजी तथा आरक्षित निधियों के 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए । `व्यापार के लिए धारित' श्रेणी के अंतर्गत वर्गीकृत निवेशों जिन्हें 90 दिन से अधिक के लिए नहीं धारित किया गया है, पर 20 प्रतिशत की उच्चतम सीमा लागू नहीं होगी । v) किसी गैर-वित्तीय सेवा निवेशिती कंपनी में उसकी चुकता पूंजी के 10 प्रतिशत से अधिक ईक्विटी धारिता की अनुमति भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्वानुमोदन (बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 19(2) के अनुसार 30 प्रतिशत की सांविधिक सीमा के अधीन) के बिना की जा सकती है यदि अतिरिक्त धारिता पुनर्रचना/कार्पोरेट ऋण पुनर्व्यवस्था (सीडीआर) के माध्यम से अथवा किसी कंपनी में बैंक द्वारा अपने ऋण/किए गए निवेशों पर ब्याज को बचाने के लिए अर्जित किया गया हो । ऐसे मामलों में निवेशिती कंपनी की चुकता शेयर पूंजी के 10 प्रतिशत से अधिक ईक्विटी निवेश को उपर्युक्त 20 प्रतिशत सीमा से छूट प्राप्त होगी । तथापि, बैंकों को एक निर्धारित समय सीमा के भीतर ऐसे शेयरों के निपटान के लिए एक समयबद्ध कार्य योजना भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करनी होगी । उपर्युक्त दिशानिर्देशों के प्रयोजन से सहायक कंपनियों, सहयोगी कंपनियों अथवा संयुक्त उपक्रम जैसे शब्दों का अर्थ वही होगा जो कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 211(3ग) के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित लेखा पद्धति मानकों द्वारा निर्धारित किया गया है (अनुबंध 2 के रूप में उद्धरण संलग्न)। 9. बैंकों को गैर-वित्तीय सेवा कार्यकलाप करने वाली कंपनियों में निवेश करते समय इन दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करना चाहिए । बैंकों को गैर-वित्तीय कंपनियों में अपने निवेशों तथा उपर्युक्त पैरा 8 में वर्णित कंपनियों द्वारा निवेशों की समीक्षा तीन महीने के भीतर करनी चाहिए । जहां निवेशों के मामले में उपर्युक्त नीतिगत मापदंडों का पालन नहीं किया जाता वहां बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि (क) निवेशों को कम करके निर्धारित सीमाओं तक लाया जाता है तथा/अथवा मामले के अनुसार नियंत्रण या महत्वपूर्ण प्रभाव को हटा लिया जाता है अथवा (ख) उपर्युक्त पैरा 8 के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक का अनुमोदन प्राप्त किया जाता 10. उपर्युक्त पैरा 9 के अनुसार समीक्षा के साथ जहां मौजूदा निवेश उपर्युक्त दिशानिर्देशों के अनुसार न हों वहां विनियामकीय अपेक्षा का पालन करने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई समीक्षा की तारीख से एक महीने के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक को भेजी जाए । भवदीय (दीपक सिंघल) संलग्नक : यथोपरि वित्तीय सेवा कंपनियां सहायक कंपनियों तथा अन्य कंपनियों में निवेश पर विवेकपूर्व दिशानिदेशों के प्रयोजन के लिए `वित्तीय सेवा कंपनियां' का तात्पर्य `वित्तीय सेवाओं के व्यवसाय' से जुड़ी कंपनियों से है । `वित्तीय सेवाओं का व्यवसाय' का तात्पर्य है - i) बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 6 की उप-धारा (1) के खंड (क), (ग), (घ), (ड.) के तहत यथावर्णित तथा बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 6 की उप-धारा (1) के खंड (ण) के तहत अधिसूचित प्रकार के कारोबार; ii) भारतीय रिज़र्व बैंक, 1934 की धारा 45 के खंड (ग) तथा खंड (च) के तहत यथावर्णित प्रकार के कारोबार; iii) ऋण सूचना कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005 के तहत यथावर्णित ऋण सूचना का कारोबार; iv) भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के तहत यथापरिभाषित किसी भुगतान प्रणाली का प्रचालन; v) शेयर बाजार, पण्य बाजार, डेरिवेटिव बाजार या इसी प्रकार के अन्य बाजार का परिचालन ; vi) निक्षेपागर अधिनियम, 1996 के तहत यथावर्णित निक्षेपागार का परिचालन; vii) वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण और प्रतिभूति ब्याज का प्रवर्तन अधिनियम, 2002 के तहत यथावर्णित प्रतिभूतिकरण या पुनर्निर्माण का कारोबार; viii) भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम 1992 तथा उसके तहत बनाए गए विनियमों के तहत यथावर्णित मर्चेंट बैंकर, संविभाग प्रबंधक, शेयर दलाल, उप-दलाल, शेयर अंतरण एजेंट, न्यास का न्यासी विलेख, किसी इश्यू का पंजीयक, मर्चेंट बैंकर, हामीदार, डिबेंचर न्यासी, निवेश परामर्शदाता तथा इसी प्रकार के अन्य मध्यस्थ का कारोबार ; ix) भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (ऋण निर्धारक एजेंसी) विनियमावली 1999 के तहत यथापरिभाषित क्रेडिट रेटिंग एजेंसी का कारोबार; x) भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के अंतर्गत दी गयी परिभाषा के अनुसार सामूहिक निवेश योजना का कारोबार ; xi) पेंशन निधि प्रबंध का कारोबार ; xii) विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के अंतर्गत दी गयी परिभाषा के अनुसार प्राधिकृत व्यक्ति/संस्था का कारोबार ; xiii) रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर विनिर्दिष्ट कोई अन्य कारोबार । भारतीय लेखांकन मानक के अनुसार सहायक, सहयोगी, संयुक्त उद्यम, `नियंत्रण और महत्वपूर्ण प्रभाव' की परिभाषा लेखांकन मानक 18, 21, 23 और 27 उपर्युक्त शब्दों को परिभाषित करते हैं । सहायक वह उद्यम है जो किसी अन्य उद्यम (जिसे मूल या प्रवर्तक उद्यम कहा जाता है) द्वारा नियंत्रित हो । सहयोगी वह उद्यम है जिसमें निवेशक का महत्वपूर्ण प्रभाव हो और जो न तो निवेशक का सहायक हो या संयुक्त उद्यम हो । संयुक्त उद्यम एक संविदात्मक व्यवस्था है जिसके द्वारा दो या अधिक पक्षकार कोई आर्थिक गतिविधि आरंभ करते हैं, जो संयुक्त नियंत्रण के अधीन हो । महत्वपूर्ण प्रभाव निवेशिती के वित्तीय और/अथवा परिचालन संबंधी नीतिगत निर्णयों में भागीदारी करने लेकिन उनकी नीतियों को नियंत्रित नहीं करने की शक्ति है । नियंत्रण -
नियंत्रण तब माना जाता है जब मूल या प्रवर्तक उद्यम, प्रत्यक्षत: अथवा अप्रत्यक्षत: सहायक उद्यम (उद्यमों) के माध्यम से किसी उद्यम के मताधिकार के आधे से अधिक अंश पर स्वामित्व रखता है । नियंत्रण तब भी माना जाता है जब कोई उद्यम निदेशक बोर्ड (किसी कंपनी के मामले में) अथवा तदनुरूप नियंत्रक निकाय (यदि उद्यम कंपनी नहीं हो) के गठन को नियंत्रित करता है, ताकि उसकी गतिविधियों से आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सके । किसी कंपनी के निदेशक बोर्ड के गठन पर किसी उद्यम का नियंत्रण तब माना जाता है जब उस उद्यम के पास किसी अन्य व्यक्ति/संस्था की सहमति लिये बिना कंपनी के सभी या बहुसंख्यक निदेशकों को नियुक्त करने या हटाने की शक्ति हो । किसी उद्यम के पास कोई निदेशक नियुक्त करने की शक्ति तब मानी जाती है जब निम्नलिखित शर्तें पूरी की जाती हैं :
एएस 23 के प्रयोजन से महत्वपूर्ण प्रभाव के अंतर्गत किसी उद्यम की वित्तीय और/अथवा परिचालन नीतियों को नियंत्रित करना शामिल नहीं है । महत्वपूर्ण प्रभाव शेयर के स्वामित्व, संविधि या करार के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है । जहां तक शेयर स्वामित्व का संबंध है, यदि कोई निवेशक निवेशिती के मताधिकार का 20% या उससे अधिक अंश प्रत्यक्षत: या सहायक उद्यम (उद्यमों) के माध्यम से अप्रत्यक्षत: धारित करता है, तो यह माना जाता है कि निवेशक का महत्वपूर्ण प्रभाव है - केवल उस स्थिति में नहीं, जब यह स्पष्ट रूप से दर्शाया जा सके कि ऐसी बात नहीं है । ठीक इसके विपरीत, यदि कोई निवेशक किसी निवेशिती में मताधिकार का 20% से कम अंश प्रत्यक्षत: अथवा सहायक उद्यम (उद्यमों) के माध्यम से अप्रत्यक्षत: धारित करता है तो यह माना जाता है कि निवेशक के पास महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं है - केवल उस स्थिति में नहीं जब ऐसा प्रभाव स्पष्ट रूप में दर्शाया जा सके । किसी अन्य निवेशक का महत्वपूर्ण या प्रमुख स्वामित्व हो तो इससे निवेशक का महत्वपूर्ण प्रभाव बाधित हो जाए यह आवश्यक नहीं है । किसी निवेशक का महत्वपूर्ण प्रभाव निम्नलिखित एक या अधिक तरीकों से प्रमाणित होता है :
|