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आईएफएससी बैंकिंग यूनिटों (आईबीयू) की स्थापना – अनुमेय गतिविधियां

भा.रि.बैं./2016-17/273
बैंविवि.आईबीडी.बीसी.59/23.13.004/2016-17

10 अप्रैल, 2017

सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय/महोदया,

आईएफएससी बैंकिंग यूनिटों (आईबीयू) की स्थापना – अनुमेय गतिविधियां

कृपया भारतीय रिज़र्व बैंक का दिनांक 01 अप्रैल 2015 का परिपत्र बैंविवि.आईबीडी.बीसी.14570/23.13.004/2014-15 देखें, जिसे समय-समय पर संशोधित किया गया है और जिसमें अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (आईएफएससी) बैंकिंग यूनिटों (आईबीयू) के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के निदेश निर्धारित किए गए हैं। हमें आईएफएससी में आईबीयू और वित्तीय संस्थाओं के परिचालन के संबंध में हितधारकों से कुछ सुझाव और प्रश्न प्राप्त हुए हैं। इन मुद्दों की जांच की गई है और निदेशों में निम्नानुसार और संशोधन किए गए हैं:

2. दिनांक 1 अप्रैल, 2015 के उपर्युक्त परिपत्र के अनुबंध I और अनुबंध II के मौजूदा पैरा 2.6 (vii) को संशोधन के बाद निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“आईबीयू अपने निदेशक बोर्ड के पूर्वानुमोदन से संरचित उत्पादों सहित ऐसे डेरिवेटिव का लेनदेन कर सकते हैं जिनके लेनदेन करने की अनुमति भारतीय रिज़र्व बैंक के मौजूदा निदेशों के अनुसार भारत में परिचालन करने वाले बैंकों को दी गई है। तथापि, आईबीयू किसी अन्य डेरिवेटिव उत्पादों के प्रस्ताव देने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमोदन प्राप्त करेंगे। भारतीय रिज़र्व बैंक से अनुमोदन मांगने से पहले, बैंक यह सुनिश्चित करेंगे कि प्रस्तावित किए जाने के लिए उपलब्ध उत्पादों/लेनदेनों से जुड़े पूंजी प्रभार का मूल्य निर्धारण करने, कीमत आंकने और उसकी गणना करने के लिए और जोखिम का प्रबंधन करने के लिए आईबीयू के पास आवश्यक विशेषज्ञता है और ऐसे लेनदेन करने के लिए उनके बोर्ड का अनुमोदन भी प्राप्त किया जाना चाहिए।”

3. दिनांक 1 अप्रैल, 2015 के उपर्युक्त परिपत्र के अनुबंध I और अनुबंध II में एक नया पैरा सं. 2.6 (x) जोड़ा गया है, जिसे निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“आईबीयू द्वारा गैर-बैंकों से स्वीकार की गईं सावधि जमाओं की परिपक्वता-पूर्व चुकौती एक वर्ष के भीतर नहीं की जा सकती है। तथापि, आईबीयू से ऋण सुविधा प्राप्त करने के लिए गैर-बैंकों से संपार्श्विक के रूप में स्वीकार की गईं अथवा किसी एक्सचेंज के पक्ष में मार्जिन के रूप में जमा सावधि जमाओं को ऋण की चुकौती अथवा मार्जिन कॉल पूरा करने में चूक की दशा में अवधि-पूर्व समायोजित किया जा सकता है।”

4. दिनांक 1 अप्रैल, 2015 के उपर्युक्त परिपत्र के अनुबंध I और अनुबंध II में एक नये पैरा सं. 2.6 (xi) और (xii) जोड़े गए हैं, जिन्हें निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“(xi) आईबीयू उस ब्याज दर और मुद्रा डेरिवेटिव खंड में ट्रेडिंग करने के लिए आईएफएससी में एक्सचेंज का ट्रेडिंग सदस्य हो सकता है जिसे भारत में परिचालन करने वाले बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक के मौजूदा निदेशों के अनुसार करने की अनुमति है।

(xii) आईबीयू किसी डेरिवेटिव खंड में समाशोधन और निपटान के लिए आईएफएससी में एक्सचेंज का व्यावसायिक समाशोधन सदस्य बन सकता है। यह निम्नलिखित शर्तों के अधीन होगा:

  1. आईबीयू का मूल बैंक (“बैंक”) 26 मई 2016 के मास्टर निदेश बैंविवि.एफएसडी.सं.101/ 24.01.041/2015-16 के पैरा 21 में निर्धारित की गई विवेकपूर्ण अपेक्षाओं को पूरा करेगा।

  2. आईबीयू बैंक के बोर्ड के अनुमोदन से प्रभावी जोखिम नियंत्रण उपाय करेगा, अपने प्रत्येक ट्रेडिंग ग्राहक के संबंध में जोखिम एक्सपोजर पर विवेकपूर्ण सीमाएं तय करेगा, जिसके लिए उनकी निवल मालियत, व्यापार टर्न-ओवर, इत्यादि को ध्यान में रखा जाएगा।

  3. आईबीयू डेरिवेटिव खंड के पीसीएम के रूप में, एक्सचेंज के ट्रेड सदस्यों के रूप में अपने ग्राहकों द्वारा किए गए सौदों की गारंटी दे सकता है जो इस शर्त के अधीन होगा कि इसके पंजीकृत ग्राहकों के संबंध में बैंक द्वारा लिए जाने वाले कुल एक्सपोजर का निर्धारण बैंक की निवल मालियत के संबंध में बोर्ड द्वारा किया जाना चाहिए और उसकी नियमित निगरानी की जानी चाहिए। तथापि, आईबीयू को पीसीएम के रूप में इसकी भूमिका में अपेक्षित लेनदेन के अतिरिक्त किसी अन्य लेनदेन की गारंटी नहीं देनी चाहिए।

  4. आईबीयू उन विभिन्न मार्जिन अपेक्षाओं का सख्त अनुपालन सुनिश्चित करेगा जिनका निर्धारण बैंक के बोर्ड और भारतीय रिज़र्व बैंक के कमोडिटी दलालों की ओर से जारीकृत गारंटी से संबंधित मौजूदा दिशानिर्देशों के द्वारा किया जा सकता है।

  5. आईबीयू अन्य विनियामक निकायों द्वारा निर्धारित उन सभी शर्तों, यदि कोई हो, का अनुपालन करेगा, जो पीसीएम के रूप में उनकी भूमिका के लिए प्रासंगिक हो।”

5. दिनांक 1 अप्रैल, 2015 के उपर्युक्त परिपत्र के अनुबंध I और अनुबंध II में एक नया पैरा सं. 2.6 (xiii) जोड़ा गया है, जिसे निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“आईबीयू को आईएफएससी स्टॉक ब्रोकिंग/कमोडिटी ब्रोकिंग ईकाइयों को बैंक गारंटी और अल्पावधि ऋण की सुविधा देने की अनुमति है, बशर्ते कि ऋणों और अग्रिमों पर सांविधिक प्रतिबंध पर 1 जुलाई 2015 के मास्टर परिपत्र के पैरा 2.3.1.2 में निहित निबंधन और शर्तों का पालन किया जा रहा हो।”

6. दिनांक 1 अप्रैल, 2015 के उपर्युक्त परिपत्र के अनुबंध I और अनुबंध II के पैरा सं. 2.11 के अंत में निम्नलिखित पाठ जोड़ा गया है:

“दिनांक 02 मार्च 2015 की फेमा अधिसूचना सं.339/2015-आरबी के अनुसार, किसी वित्तीय संस्था अथवा आईएफएससी में स्थापित वित्तीय संस्था की किसी शाखा और भारत सरकार अथवा किसी विनियामक प्राधिकरण द्वारा अनुमत/मान्यता-प्राप्त ऐसी किसी संस्था को भारत के बाहर निवासी व्यक्ति माना जाएगा। इसके अतिरिक्त, दिनांक 01 अप्रैल 2016 की फेमा अधिसूचना सं.5 (आर)/2016-आरबी (अनुसूची-4) के अंतर्गत, भारत में व्यावसायिक हित रखने वाला भारत से बाहर का निवासी कोई व्यक्ति भारतीय रुपये में अपने प्रशासनिक व्यय के लिए घरेलू क्षेत्र में किसी प्राधिकृत व्यापारी के पास विशेष अनिवासी रुपया खाता (एसएनआरआर खाता) रख सकता है। तदनुसार, कोई वित्तीय संस्था (02 मार्च 2015 की फेमा अधिसूचना सं.339/2015-आरबी के अंतर्गत यथापरिभाषित) अथवा आईएफएससी में परिचालन करने वाले आईबीयू सहित किसी वित्तीय संस्था की कोई शाखा और भारत सरकार अथवा किसी नियामक प्राधिकरण द्वारा अनुमत/मान्यता-प्राप्त ऐसी कोई संस्था भारतीय रुपये में अपने प्रशासनिक व्यय के लिए घरेलू क्षेत्र में किसी बैंक (प्राधिकृत व्यापारी) में एसएनआरआरए खाता रख सकता है। इन खातों का निधीयन अंतर्राष्ट्रीय विप्रेषण के लिए उचित माध्यम से केवल विदेशी मुद्रा विप्रेषण द्वारा ही किया जाएगा, बशर्ते कि फेमा के मौजूदा दिशानिर्देशों का अनुपालन किया जा रहा हो। जिस घरेलू बैंक में एसएनआरआरए खाता रखा गया है उसे उचित अनुदेश देकर, वित्तीय संस्था एक ग्राहक की हैसियत से अपने एसएनआरआरए खाते से फेमा विनियमावली के अंतर्गत अनुमत भुगतान कर सकता है।

भवदीय,

(राजिन्दर कुमार)
मुख्य महाप्रबंधक

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