धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के अंतर्गत अधिसूचित नियमों के अनुसार बैंकों का दायित्व - आरबीआई - Reserve Bank of India
धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के अंतर्गत अधिसूचित नियमों के अनुसार बैंकों का दायित्व
आरबीआइ/2007-08/381
आरपीसीडी. केका.आरएफ. एएमएल. बीसी. सं. 81/07.40.00/2007-08
25 ज़ून 2008
मुख्य कार्यपालक
सभी राय़ और केद्रीय सहकारी बैंक
महोदय
धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के अंतर्गत अधिसूचित नियमों के अनुसार बैंकों का दायित्व
कृपया 03 माफी 2006 का हमारा परिपत्र आरपीसीडी.केका.आरएफं. एएमएल. बीसी. 65/07.02.12/ 2005-06 देखें। उक्त परिपत्र के पैराग्राफ 3 में यह सुनिश्चित किया गया था कि बैंकों से अपेक्षित है कि वे नियम 3 में उल्लिखित अपने ग्राहक के साथ किए गए लेनदेन से संबंधित ज़ानकारी हार्ड तथा सॉफ्ट प्रतियों में रखें तथा परिरक्षित करें। आगे यह स्पष्ट किया ज़ाता है कि बैंकों को पूर्वोक्त नियम 3 में उल्लिखित सभी लेनदेन से संबंधित ज़ानकारी निदेशक, वित्तीय आसूचित इकाई- भारत (एफआइयू-आइएनडी) को भी रिपोर्ट करनी चाहिए।
2.‘अपने ग्राहक को ज़ानिए’ मानदंड तथा धन शोधन निवारण उपायों पर दिशानिर्देश संबंधी हमारे 18 फरवरी 2005 के परिपत्र के पैराग्राफ 2 में निहित अनुदेशों के अनुसार बैंकों को ााटखिम वर्गीकरण के आधार पर प्रत्येक ग्राहक का एक प्रोफाइल तैयार करना चाहिए। इसके अतिरिक्त 28 फरवरी 2008 के हमारे परिपत्र के पैरा 4 में ााटखिम वर्गीकरण की आवधिक समीक्षा करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है । अत:, इस बात को दोहराया ााता है कि लेनदेन निगरानी व्यवस्था के एक भाग के रूप में बैंकों को एक ऐसा उपयुक्त सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन स्थापित करना चाहिए ााट ग्राहक के अद्यतन प्रोफाइल तथा जोखिम वर्गीकरण से असंगत लेनदेन होने पर सतर्कता का संकेत दे। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि सतर्कता के संकेत देनेवाला एक सक्षम सॉफ्टवेयर संदिग्ध लेनदेन की प्रभावी पहचान तथा रिपोर्टिंग के लिए आवश्यक है ।
3. 03 मार्ादिं 2006 के हमारे उपर्युक्त परिपत्र के पैराग्राफ 6 में बैंकों को सूचित किया गया था कि वे एफआइयू-आइएनडी को भेाा ााने वाली नकद लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) तथा संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट (एसटीआर) को इलेक्ट्रॉनिक रूप से फाइल करने के लिए तत्काल कदम उठाएं। एफआइयू-आइएनडी ने सूर्ातिं किया है कि बहुत सारे बैंकों ने अभी तक इलेक्ट्रॉनिक रिपोर्ट फाइल नहीं की हैं । अत: यह सूचित किया ााता है कि उन बैंकों के मामले में ज़हां सभी शाखाएं अभी तक पूर्णत: कंप्यूटरीकृत नहीं हुई हैं, बैंक के प्रधान अधिकारी को चाहिए कि वे कंप्यूटरीकृत नहीं हुई शाखाओं से लेनदेन के ब्यौरों को छांटकर, उन्हें एफआइयू-आइएनडी द्वारा अपनी वेबसाइट http://fiuindia.gov.in पर उपलब्ध कराई गयी सीटीआर/एसटीआर की एडिटेबल इलैक्ट्रॉनिक यूटिलिटिा की सहायता से एक इलैक्ट्रॉनिक फाइल में डालने की उपयुक्त व्यवस्था करें।
4. 03 मार्च 2006 के हमारे उपर्युक्त परिपत्र के पैराग्राफ 6(।) (क) में बैंकों को सूचित किया गया था कि वे प्रत्येक महीने की नकद लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) एफआइयू-आइएनडी को परवर्ती महीने की 15 तारीख तक अवश्य भेाटं। यह भी स्पष्ट किया ााता है कि शाखाओं द्वारा अपने नियंत्रक कार्यालयों को भेाा ााने वाली नकद लेनदेन रिपोर्ट अनिवार्यत:मासिक आधार (पाक्षिक आधार पर नहीं) पर प्रस्तुत की ाानी चाहिए तथा बैंकों को सुनिश्र्ातिं करना र्ााहिए कि निर्धारित समय अनुसूचित के अनुसार एफआइयू-आइएनडी को प्रत्येक महीने की सीटीआर प्रस्तुत की ााती है।
5.सीटीआर के संबंध में यह पुन: सूचित किया ज़ाता है कि दस लाख रुपये की उचितम सीमा आपस में ज़ुड़े नकद लेनदेन पर भी लागू होगी। इसके अलावा, एफआइयू-आइएनडी के साथ विर्ाारिं-विमर्श करने के बाद यह स्पष्ट किया ज़ाता है कि :
क) आपस में जुड़े नकद लेनदेन को निर्धारित करने के लिए बैंकों को एक कैलेंडर महीने के दौरान किसी खाते में किए गए ऐसे सभी अलग-अलग नकद लेनदेन को ध्यान में लेना होगा ज़हां नामे अथवा ामा प्रविष्टियों का अलग-अलग योग महीने के दौरान दस लाख रुपये से अधिक है। तथापि, सीटीआर फाइल करते समय पचिस हाार रुपये से कम अलग-अलग नकद लेनदेन के ब्यौरों को न दर्शाया ज़ाए। आपस में जुड़े नकद लेनदेन का उदाहरण अनुबंध - 1 में दिया गया है।
ख) सीटीआर में केवल वही लेनदेन होने चाहिए ज़ो बैंक ने अपने ग्राहकों की ओर से किए हैं। बैंक के आंतरिक खातों के बीर्ा िंकिए गए लेनदेन इसमें शामिल नहीं होंगे ।
ग) ज़हां ज़ाली अथवा नकली भारतीय मुद्रा नोटों का असली के रूप में उपयोग किया गया हो, वहां ऐसे सभी नकद लेनदेनों की सूचना प्रधान अधिकारी द्वारा अनुबंध II तथा III में दिए गए फॉर्मेट में एफआइयू-आइएनडी को तत्काल भेज़ी ज़ाना चाहिए। इन नकद लेनदेनों में ऐसे लेनदेन भी शामिल होने चाहिए ज़हां मूल्यवान प्रतिभूति अथवा दस्तावेज़ो की ज़ालसाज़ी की गई है। यह सूचना एफआइयू-आइएनडी को प्लेन टेक्स्ट में भेाा ज़ानी चाहिए ।
6. 18 फरवरी 2005 के हमारे परिपत्र आरपीसीडी. सं. एएमएल. बीसी. 80/07.40.00/2004-05 से संलग्न अपने ग्राहक को ज़ानिए मानदंड /धन शोधन निवारण उपायों से संबंधित दिशानिर्देशों के पैराग्राफ 4 में बैंकों को सूचित किया गया है कि वे सभी ज़टिल, असामान्य रूप से बड़े लेनदेन और लेनदेन के ऐसे असामान्य स्वरूप की ओर विशेष ध्यान दें ानिका कोई सुस्पष्ट आर्थिक अथवा विधि सम्मत प्रयोान न हो। यह भी स्पष्ट किया ज़ाता है कि ज़हां तक संभव हो ऐसे लेनदेन से संबंधित सभी दस्तावेा / कार्यालयीन अभिलेख / ज्ञापन सहित उसकी पृष्ठभूमि तथा उसके प्रयोान की ज़ाच की ज़ाए तथा शाखा तथा प्रधान अधिकारी दोनों स्तर पर प्राप्त निष्कर्षों को उर्ातिं रूप से रिकार्ड किया ज़ाए। धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 की अपेक्षा के अनुसार इन अभिलेखों को दस वर्ष की अवधि के लिए परिरक्षित किया ज़ाना है।लेनदेन की संवीक्षा से संबंधित दिन-प्रति-दिन का कार्य करने में लेखा परीक्षकों की सहायता के लिए तथा रिज़र्व बैंक/अन्य संबंधित प्राधिकारियों को भी ऐसे रिकार्ड तथा संबंधित दस्तावेा उपलब्ध कराये ज़ाएँ ।
7. 03 मार्च 2006 के परिपत्र के पैराग्राफ 7 में बैंकों को सूचित किया गया है कि एफआइयू-आइएनडी को उनके द्वारा भेाट गए एसटीआर के बारे में ग्राहक को पता नहीं चलना चाहिए। यह संभव है कि कुछ मामलों में ग्राहकों को कुछ ब्योरे देने अथवा दस्तावेा प्रस्तुत करने के लिए कहे ज़ाने पर ग्राहक अपने लेनदेन का परित्याग करे अथवा उसे बीच में ही रोक दे। यह स्पष्ट किया ज़ाता है कि बैंकों को एसटीआर में लेनदेन के ऐसे सभी प्रयासों के संबंध में सूचना देनी चाहिए, भले ही ग्राहकों ने इन लेनदेनों को अधूरा छोड़ दिया हो।
8. एसटीआर तैयार करते समय बैंक पूर्वोक्त नियमावली के नियम 2 (छ) में निहित ‘संदिग्ध लेनदेन’ की परिभाषा को ध्यान में रखें । साथ ही, यह स्पष्ट किया जाता है कि बैंक लेनदेन की राशि पर तथा /अथवा धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 की अनुसूचि के भाग - ख में तिरूपित अपराधों के लिए परिकल्पित न्यूनतम सीमा पर ध्यान दिए बिना एसटीआर तब बनाए ाब उनके पास यह विश्वास करने के लिए उचत्ा आधार है कि लेनदेन में सामान्यत: अपराध से प्राप्त राशि सम्मिलित है।
9. स्टाफ को अपने ग्राहक को ज़ानिए /धन शोधन निवारण के संबंध में ाागरूक बनाने के लिए तथा संदिग्ध लेनदेन के लिए सतर्कता संकेत तैयार करने के लिए बैंक ‘बैंकों के लिए आइबीए के मार्गदर्शी नोट 2005’ के अनुबंध इ में निहित संदिग्ध गतिविधियों की निदर्शी सूच(प्रति लिपि संलग्न) देखें ।
10. ये दिशानिर्देश बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (ाठसाकि सहकारी समितियों पर लागू है ) की धारा 35क तथा पूर्वोक्त नियमावली के अधीन ाारी किए गए हैं। उक्त दिशानिर्देशों का किसी भी प्रकार से उल्लंघन करने पर अधिनियम के संबंधित प्रावधानों के अंतर्गत दंड दिया ज़ा सकता है ।
भवदीय
(ज़ी. श्रीनिवासन )
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक
अनुबंध - I
आपस में ाजड़े नकद लेनदेन का उदाहरण
अप्रैल के माह के दौरान किसी शाखा में निम्नलिखित लेनदेन हुए हैं :
तारीख |
माध्यम |
नामे |
ज़मा |
आगे लाया गया शेष (रुपये में) |
02/04/2008 |
नकद |
5,00,000.00 |
3,00,000.00 |
6,00,000.00 |
07/04/2008 |
नकद |
40,000.00 |
2,00,000.00 |
7,60,000.00 |
08/04/2008 |
नकद |
4,70,000.00 |
1,00,000.00 |
3,90,000.00 |
मासिक संकलन |
10,10,000.00 |
6,00,000.00 |
i) उपर्युक्त स्पष्टीकरण के अनुसार उपर्युक्त उदाहरण में ज़ाट नामे लेनदेन हैं वे आपस में ज़ुड़े नकद लेनदेन हैं क्योंकि कैलेंडर माह के दौरान कुल नकद नामे लेनदेन 10 लाख रुपये से अधिक हैं। तथापि, बैंक को केवल 02/04 तथा 08/04/2008 को हुए लेनदेन को रिपोर्ट करना चाहिए। 07/04/2008 के नामे लेनदेन को बैंक अलग से रिपोर्ट नहीं करे क्योंकि वह 50,000/- रुपये से कम है।
ii) उपर्युक्त उदाहरण में दिए गए सभी ज़मा लेनदेनों को आपस में ज़ुड़ा नहीं समझ ज़ाएगा, क्योंकि माह के दौरान ामा लेनदेन का कुल योग दस लाख रुपये से अधिक नहीं है। अत:, 02, 07 तथा 08/04/2008 के ज़मा लेनदेन बैंकों द्वारा रिपोर्ट नहीं किए ज़ाने चाहिए ।