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आदाता के खाते में देय चेकों का समाहरण - तृतीय पक्ष के खाते में प्राप्तियां जमा करने पर रोक

भारिबैं/2005-06/376
ग्राआऋवि.केका.आरएफ.बीसी.सं.78/07.38.03/2005-06.

27 अप्रैल 2006.

सभी राज्य सहकारी बैंक/
जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक/क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक

महोदय,

आदाता के खाते में देय चेकों का समाहरण - तृतीय पक्ष के खाते में प्राप्तियां जमा करने पर रोक

कृपया दि. 2 सितंबर 1996 का हमारा परिपत्र ग्राआऋवि.सं.बीसी.31/07.38.01/96-97 देखें जिसमें सूचित किया गया था कि बैंकों को उनकी ग्राहक सोसाइटियों की ओर से तृतीय पक्ष "आदाता खातेवाली" लिखतों का समाहरण नहीं करना चाहिए। जैसाकि बैंकाें को ज्ञात है कि आदाता के खाते में देय चेक का आदाता ग्राहक हेतु समाहरण करना अपेक्षित है।

2. कुछ व्यवितयों/संस्थाओं द्वारा प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (आइपीओ) प्रक्रिया के हाल ही में दुरुपयोग तथा इस संबंध में सेबी से प्राप्त रिपोर्टो को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने कुछ बैंकों में विस्तृत जांच की ताकि इस प्रणाली में हेरफेर करने हेतु विभिन्न पार्टियों द्वारा अपनाये गए तरीके का पता लगाया जा सके। यह पाया गया कि ऊपर उल्लिखित अनुदेशों के बावजूद बैंको ने निक्षेपागार सेवाएँ उपलब्ध करानेवाले सहयोगियों के अनुरोध पर व्यक्तिगत आदाता खाते के धन वापसी आदेशों की प्राप्तियों को व्यक्तिगत खाते के स्थान पर दलालों के खाते में जमा कर दिया था। इससे भुगतान प्रणाली में हेराफेरी हुई है और अनियमितताओं के अपराध को बढॅॉवा मिला है। यदि बैंक आदाता के खाते में देय चेक के समाहरण की प्रणाली का अतिक्रमण न करते ता यह हेराफेरी नहीं होती। इस अतिक्रमण को विवेकशील बाजार व्यवहार के रुप में सुधार नहीं सकते क्योंकि इससे बैंकों के सम्मुख विभिन्न जोखिमों की संभावना है।

3. कानूनी अपेक्षाओं तथा विशेष रुप से परक्राम्य लिखत अधिनियम, के आशय के अनुरुप तथा बैंकाें को अनधिकृत समाहरण से होने वाली देयताओं के भार से बचाने के मद्देनजर, तथा भुगतान और बैंकिंग प्रणाली की निष्ठा और सुदृढॅता के हित में, तथा हाल ही में पाए गए अतिक्रमों की पुनरावृत्ति को रोकने के उद्देश्य से रिजॅर्व बैंक ने संतुष्ट होने पर यह अवश्यक समझा है कि " आदाता के खाते में " जमा किए जाने वाले चेकों को उसमें दिए गए आदाता के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति के खाते में जमा करने पर रोक लगा दी जाए। तदनुसार रिजॅर्व बैंक, बैंकों को निदेश देता है कि वे किसी व्यक्ति के लिए आदाता के खाते वाले चेकों का समाहरण आदाता ग्राहक के अतिरिक्त और किसी व्यक्ति के लिए न करें।

4. ये अनुदेश बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 35क (जैसा कि सहकारी समितियों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों पर लागू है) के अन्तर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए जारी किए गए है।

भवदीय

 

(वी एस दास)

कार्यपालक निदेशक

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