सांविधिक लेखापरीक्षक का प्रमाणपत्र बैंक को प्रस्तुत करना - आरबीआई - Reserve Bank of India
सांविधिक लेखापरीक्षक का प्रमाणपत्र बैंक को प्रस्तुत करना
भारिबैं/2009-10/187 22 अक्तूबर 2009 सभी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ प्रिय महोदय, सांविधिक लेखापरीक्षक का प्रमाणपत्र बैंक को प्रस्तुत करना "गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशियाँ स्वीकारने या धारण करने वाली) कंपनियाँ विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2007" एवं "गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशियाँ न स्वीकारने व धारण करने वाली) कंपनियाँ विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2007" के पैरा 15 के अनुसार प्रत्येक गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी को अपने सांविधिक लेखापरीक्षक का प्रमाणपत्र बैंक को प्रस्तुत करना होता है कि कंपनी गैर बैंकिंग वित्तीय संस्था के कारोबार में लगी है जिससे उसे भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45-झक के अंतर्गत पंजीकरण प्रमाणपत्र धारण किए रहना है। 31 मार्च को समाप्त वित्तीय वर्ष को कंपनी की स्थिति के संदर्भानुसार इस संबंध में सांविधिक लेखापरीक्षक का प्रमाणपत्र कंपनी द्वारा गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग के उस क्षेत्रीय कार्यालय को प्रति वर्ष अधिकतम 30 जून तक प्रस्तुत किया जाना है जिसके अधिकारक्षेत्र में गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी पंजीकृत है। 2. यह निर्णय लिया गया है कि गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ तुलनपत्र को अंतिम रूप देने की तारीख से एक माह के भीतर किन्तु हर हालत में संबंधित वर्ष के 30 दिसंबर से अनधिक अवधि के भीतर यह प्रमाणपत्र प्रस्तुत करें। 3. "गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशियाँ स्वीकारने या धारण करने वाली) कंपनियाँ विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2007" में संशोधन करने वाली अधिसूचना सं. 209 एवं "गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशियाँ न स्वीकारने व धारण करने वाली) कंपनियाँ विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2007" में संशोधन करने वाली अधिसूचना सं. 210,जो आज की तारीख में जारी हुई हैं, की एक-एक प्रति ध्यान पूर्वक अनुपालन के लिए संलग्न हैं। भवदीय (ए. नारायण राव) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिसूचना सं.गैबैंपवि.(नीति प्रभा.)209/मुमप्र(एएनआर)-2009, दिनांक 22 अक्तूबर 2009 भारतीय रिज़र्व बैंक ,ऐसा करना जनहित में आवश्यक समझकर तथा इस बात से संतुष्ट हो कर कि देश हित में ऋण प्रणाली को विनियमित करने हेतु रिज़र्व बैंक को सक्षम बनाने के लिए "गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशियाँ स्वीकारने या धारण करने वाली) कंपनियाँ विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2007", जो 22 फरवरी 2007 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि. 192/ डीजी (वीएल)-2007 में अंतर्विष्ट हैं, को संशोधित करना आवश्यक है, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 45-ञक द्वारा प्रदत्त शक्तियों और इस संबंध में उसे सक्षम बनाने वाली सभी शक्तियों का प्रयोग करते हुए एतद्वारा निदेश देता है कि उक्त निदेश तत्काल प्रभाव से निम्नवत संशोधित होंगे अर्थात- पैराग्राफ 15 में, "प्रति वर्ष अधिकतम 30 जून तक " शब्दों को निम्नलिखित से प्रतिस्थापित किया जाएगा: "तुलनपत्र को अंतिम रूप देने की तारीख से एक माह के भीतर किन्तु हर हालत में संबंधित वर्ष के 30 दिसंबर से अनधिक अवधि के भीतर," (ए. नारायण राव) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिसूचना सं. गैबैंपवि.(नीति प्रभा.)210/मुमप्र(एएनआर)-2009, दिनांक 22 अक्तूबर 2009 भारतीय रिज़र्व बैंक ,ऐसा करना जनहित में आवश्यक समझकर तथा इस बात से संतुष्ट हो कर कि देश हित में ऋण प्रणाली को विनियमित करने हेतु रिज़र्व बैंक को सक्षम बनाने के लिए "गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशियाँ न स्वीकारने व धारण करने वाली) कंपनियाँ विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2007", जो 22 फरवरी 2007 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि. 193/ डीजी (वीएल)-2007 में अंतर्विष्ट हैं, को संशोधित करना आवश्यक है, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 45-ञक द्वारा प्रदत्त शक्तियों और इस संबंध में उसे सक्षम बनाने वाली सभी शक्तियों का प्रयोग करते हुए एतद्वारा निदेश देता है कि उक्त निदेश तत्काल प्रभाव से निम्नवत संशोधित होंगे अर्थात- पैराग्राफ 15 में, " प्रति वर्ष अधिकतम 30 जून तक " शब्दों को निम्नलिखित से प्रतिस्थापित किया जाएगा: "तुलनपत्र को अंतिम रूप देने की तारीख से एक माह के भीतर किन्तु हर हालत में संबंधित वर्ष के 30 दिसंबर से अनधिक अवधि के भीतर," (ए. नारायण राव) |