बैंककारी कंपनी (नामांकन) नियमावली, 1985 - स्पष्टीकरण - आरबीआई - Reserve Bank of India
बैंककारी कंपनी (नामांकन) नियमावली, 1985 - स्पष्टीकरण
आरबीआइ/2010-11/454 30 मार्च 2011 सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक महोदय बैंककारी कंपनी (नामांकन) नियमावली, 1985 - स्पष्टीकरण 1. नामांकन फॉर्म में साक्ष्य जैसा कि आप जानते हैं बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 45झेडए ,45झेडसी तथा 45 झेडई के साथ पठित धारा 52 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए बैंककारी कंपनी (नामांकन) नियमावली, 1985 बनाई गई है। इस नामांकन नियमावली में नामांकन फॉर्म (डीए1, डीए2 तथा डीए3) निर्धारित किए गए हैं । इन फॉर्मों में अन्य बातों के साथ-साथ यह व्यवस्था है कि खाताधारक के अंगूठे के निशान को दो साक्षियों द्वारा अनुप्रमाणित किया जाना चाहिए। हमने यह पाया है कि कुछ बैंक हस्ताक्षर का भी साक्षियों द्वारा अनुप्रमाणन किए जाने पर जोर देते हैं । हमने इस मामले की भारतीय बैंक संघ के साथ विचार-विमर्श कर जांच की है । यह स्पष्ट किया जाता है कि फॉर्म डीए1, डीए2 तथा डीए3 में खाताधारकों के हस्ताक्षरों का साक्षियों/गवाहों द्वारा अनुप्रमाणन आवश्यक नहीं है । 2. संयुक्त जमा खातों के मामले में नामांकन यह देखा गया है कि कभी-कभी "कोई एक या उत्तरजीवी" अधिदेश के साथ या बिना इस अधिदेश के संयुक्त खाता खोलने वाले ग्राहकों को नामांकन सुविधा का प्रयोग करने से मना किया जाता है । यह स्पष्ट किया जाता है कि नामांकन सुविधा संयुक्त जमा खातों के लिए भी उपलब्ध है । अत: बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनकी शाखाएं सभी जमा खातों जिनमें ग्राहकों द्वारा खोले गए संयुक्त जमा खाते भी शामिल हैं, को नामांकन सुविधा देती हैं । बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे उपर्युक्त स्पष्टीकरण के अनुसार अनुदेशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करें । भवदीय (पी. आर. रवि मोहन) |