शहरी सहकारी बैंकों में अदावी जमाराशियां / निष्क्रिय खाते- छात्रवृत्ति की राशि क्रेडिट करने के लिए तथा सरकारी योजनाओं के अंतर्गत प्रत्यक्ष लाभ अंतरण को क्रेडिट करने के लिए खोले गए कतिपय बचत बैंक खातों का ट्रीटमेंट - आरबीआई - Reserve Bank of India
शहरी सहकारी बैंकों में अदावी जमाराशियां / निष्क्रिय खाते- छात्रवृत्ति की राशि क्रेडिट करने के लिए तथा सरकारी योजनाओं के अंतर्गत प्रत्यक्ष लाभ अंतरण को क्रेडिट करने के लिए खोले गए कतिपय बचत बैंक खातों का ट्रीटमेंट
आरबीआई/2013-14/300 30 सितंबर 2013 मुख्य कार्यपालक अधिकारी महोदया/ महोदय, शहरी सहकारी बैंकों में अदावी जमाराशियां / निष्क्रिय खाते- छात्रवृत्ति की राशि क्रेडिट करने के लिए तथा सरकारी योजनाओं के अंतर्गत प्रत्यक्ष लाभ अंतरण को क्रेडिट करने के लिए खोले गए कतिपय बचत बैंक खातों का ट्रीटमेंट कृपया अदावी जमाराशियों/ निष्क्रिय खातों परजारी दिनांक 01 सितंबर 2008 के परिपत्र सं शबैंवि.बीपीडी (पीसीबी) परि.सं.9/13.01.000/2013-14 देखें, जिसमें शहरी सहकारी बैंकों को सूचित किया गया था कि किसी बचत अथवा चालू खाते में अगर दो वर्ष से अधिक अवधि के लिए कोई लेन देन नहीं हो रहा है तो उन्हें निष्क्रिय खाता माना जाए और ऐसे खातों के संबंध में अपनाई जाने वाली सावधानी के संबंध में भी बैंकों को सूचित किया गया था। 2. राज्य और केंद्र सरकारों ने केंद्र/राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों के लिए खोले गए उन खातों में चेक/प्रत्यक्ष लाभ अंतरण/ इलेक्ट्रॉनिक लाभ अंतरण/ छात्रों के लिए छात्रवृत्ति आदि क्रेडिट करने में कठिनाई व्यक्त की है जो खाते दो वर्षों से अधिक अवधि के लिए परिचालन न होने के कारण निष्क्रिय खाते के रूप में वर्गीकृत कर दिये गये हैं। 3. उपर्युक्त को ध्यान में रखते हुए शहरी सहकारी बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे बैंकों द्वारा खोले गए ऐसे सभी खातों के लिए सीबीएस में एक अलग "उत्पाद कोड" दें ताकि उपर्युक्त पैरा 2 में उल्लिखित राशि क्रेडिट करते समय गैर-परिचालन के कारण निष्क्रिय खाते की शर्त लागू न हो। 4. ऐसे खातों में धोखाधड़ी आदि का जोखिम कम करने के लिए, इन खातों में परिचालन के लिए अनुमति देते समय लेन देन की प्रामाणिकता, हस्ताक्षर का सत्यापन तथा पहचान आदि सुनिश्चित करते हुए उचित सावधानी बरती जानी चाहिए। तथापि, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ग्राहक को किसी भी प्रकार से कोई असुविधा नहीं हो रही है। भवदीय, (ए. के. बेरा) |