जानबूझकर चूक करने वाले और उनके विरुद्ध कार्रवाई - आरबीआई - Reserve Bank of India
जानबूझकर चूक करने वाले और उनके विरुद्ध कार्रवाई
जानबूझकर चूक करने वाले और उनके विरुद्ध कार्रवाई
संदर्भ : बैंपविवि. सं.डीएल (डब्ल्यू). बीसी. 110 /20.16.003/2001-02
30 मई 2002
09 ज्येष्ठ 1924 (शक)
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक और
सभी अधिसूचित अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाएं
प्रिय महोदय,
जानबूझकर चूक करने वाले और उनके विरुद्ध कार्रवाई
कृपया 20 फरवरी 1999 का हमारा परिपत्र बैंपविवि. सं. बीसी. डीएल (डब्ल्यू)12/ 20.16.002(1)/ 98-99 (प्रतिलिपि संलग्न) देखें जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ ‘जानबूझकर की गयी चूक’ को परिभाषित किया गया था तथा जानबूझकर चूक करने वालों के संबंध में कतिपय जानकारियों का पता लगाकर उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक को सूचित करने के संबंध में बैंकों और अधिसूचित वित्तीय संस्थाओं के लिए एक पद्धति प्रारंभ की गयी थी ।
2.
वित्तीय संस्थाओं के संबंध में संसद की स्थायी समिति की 8वीं रिपोर्ट में वित्तीय प्रणाली में जानबूझकर की गयी चूक के बने रहने पर व्यक्त की गयी चिंता को ध्यान में रखते हुए, भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारत सरकार के परामर्श से उक्त समिति की कतिपय सिफारिशों की जांच करने के लिए जानबूझकर चूक करने वालों के संबंध में मई 2001 में श्री एस. एस. कोहली, भारतीय बैंक संघ के तत्कालीन अध्यक्ष की अध्यक्षता में एक कार्यदल गठित किया था । कार्यदल ने अपनी रिपोर्ट नवंबर 2001 में प्रस्तुत की । इस कार्यदल की सिफारिशों पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गठित एक आंतरिक कार्यदल द्वारा पुन: विचार किया गया । अब हम तत्काल प्रभाव से कार्यान्वयन हेतु निम्नानुसार सूचित करते हैं :परिभाषाएं
3.
यह निर्णय किया गया है कि 20 फरवरी 1999 के परिपत्र बैंपविवि. सं. बीसी. डीएल (डब्ल्यू)12/20.16.002(1)/98-99 में निहित परिभाषा /व्याख्याओं के अधिक्रमण में ‘जानबूझकर की गयी चूक’ को निम्नानुसार पुन: परिभाषित किया जाए :यदि निम्नलिखितो में से कोई भी स्थिति होती हो तो उसे ‘जानबूझकर की गयी चूक’ माना जाएगा :
(क) इकाई ने ऋणदाता के प्रति अपने भुगतान / चुकौती संबंधी दायित्वों को पूरा करने में चूक की हो, यद्यपि उस दायित्व को पूरा करने के लिए उसमें क्षमता थी ।
(ख) इकाई ने ऋणदाता के प्रति अपने भुगतान / चुकौती संबंधी दायित्वों को पूरा करने में चूक की हो और ऋणदाता से प्राप्त वित्त का उस विशिष्ट प्रयोजन के लिए उपयोग नहीं किया हो जिसके लिए उसे लिया गया था, बल्कि उसका अन्य प्रयोजन हेतु उपयोग किया गया हो ।
(ग) इकाई ने ऋणदाता के प्रति अपने भुगतान / चुकौती संबंधी दायित्वों को पूरा करने में चूक की हो और निधियों को गलत ढंग से दूसरी जगह अंतरित किया हो जिससे न तो निधियों का उस निर्दिष्ट प्रयोजन के लिए उपयोग किया गया है जिसके लिए वह ली गयी थी और न ही इकाई के पास अन्य आस्तियों के रूप में निधियां उपलब्ध हैं ।
निधियों का विशाखन और गलत ढंग से दूसरी जगह अंतरण
4.
यह निर्णय किया गया है कि ‘निधियों का विशाखन’ और ‘निधियों का गलत ढंग से दूसरी जगह अंतरण’ का आशय नीचे दिये गये अनुसार होगा :-4.1
ऊपर पैरा 3(ख) में उल्लिखित निधियों का विशाखन तब माना जाएगा जब नीचे दी गयी स्थितियों में से कोई भी स्थिति लागू होती हो :(क) ऋण की मंजूरी की शर्तों का उल्लंघन करते हुए अल्पावधि कार्यकारी पूंजी का दीर्घावधि प्रयोजन के लिए उपयोग करना;
(ख) उधार ली गयी निधि को उन प्रयोजनों /कार्यों अथवा आस्तियों के सृजन से भिन्न उपयोग करना जिनके लिए ऋण मंजूर किया गया था;
(ग) निधियों का सहायक /ग्रुप कंपनियों अथवा अन्य कंपनियों में अंतरण, चाहे वह किसी भी प्रकार से किया गया हो;
(घ) ऋणदाता से पूर्व अनुमति लिये बिना ऋणदाता बैंक अथवा सहायता संघ के सदस्यों को छोड़कर अन्य बैंक के माध्यम से निधियों को इधर-उधर लगाना (राउटिंग) ;
(ङ) ऋणदाता की पूर्व अनुमति लिये बिना इक्विटी / ऋण दस्तावेज प्राप्त करके अन्य कंपनियों में निवेश;
(च) संवितरित /आहरित राशि की तुलना में निधियों के विनियोजन में कमी और उस कमी के कारणों को स्पष्ट न करना ।
4.2
उक्त पैरा 3(ग) में उल्लिखित निधियों का गलत ढंग से दूसरी जगह अंतरण (साइफनिंग ऑफ फंड्स) तब माना जाएगा यदि बैंकों /वित्तीय संस्थाओं से ली गयी निधियों का उन प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाये जो उधारकर्ता के कामकाज से संबंधित नहीं है और इससे इकाई अथवा उधारकर्ता की वित्तीय स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो । किसी विशेष स्थिति में यह निर्णय करने के लिए कि निधियों का गलत ढंग से दूसरी जगह अंतरण हुआ है अथवा नहीं, वास्तविक स्थिति और मामले से संबंधित परिस्थितियों के आधार पर ऋणदाता का अपना स्वनिर्णय होगा ।उच्चतम सीमाएं
5.
जानबूझकर चूक करने वाले व्यक्तियों या निधियों के विशाखन / गलत ढंग से अंतरण करने वाले व्यक्तियों के रूप में पहचाने गये सभी उधारकर्ताओं / प्रवर्तकों पर जहां सामान्यत: नीचे के पैरा 7 में उल्लिखित दंडात्मक कार्रवाई लागू होगी, वहीं बैंकों /वित्तीय संस्थाओं द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक को जानबूझकर चूक के मामलों के बारे में सूचना दिये जाने के प्रयोजन के लिए केन्द्रीय सर्तकता आयोग द्वारा निर्धारित 25 लाख रुपये की वर्तमान सीमा को ध्यान में रखते हुए, इस परिपत्र की तारीख को 25 लाख रुपये या अधिक की बकाया राशि रखने वाले किसी भी चूककर्ता के विरुद्ध नीचे के पैरा 7 में निर्धारित दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी । निधियों के ‘विशाखन’ / ‘गलत ढंग से अंतरण’ के मामलें को संज्ञान के दायरे में रखने के लिए भी 25 लाख रुपये की यह सीमा लागू होगी ।निधियों का अंतिम उपयोग
6.
परियोजना वित्तीयन के मामले में, बैंकों /वित्तीय संस्थाओं का यह प्रयास रहा है कि वे अन्य बातों के साथ-साथ इस प्रयोजन के लिए सनदी लेखाकारों से प्रमाणपत्र प्राप्त कर निधियों का अंतिम उपयोग सुनिश्चित करें । अल्पावधि कंपनी / बेजमानती ऋणों के मामले में, ऋणदाताओं की ओर से स्वयं "समुचित सतर्कता" जैसा दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए ताकि जहां तक संभव हो, इस प्रकार के ऋण केवल उन्हीं उधारकार्ताओं तक सीमित रहे जिनकी ईमानदारी और विश्वसनीयता बिलकुल स्पष्ट हो । अत: बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को चाहिए कि वे सिर्फ सनदी लेखाकारों द्वारा दिये गये प्रमाणपऋाों पर ही निर्भर न रहें बल्कि वे अपनी आंतरिक नियत्रण एवं ऋण जोखिम प्रबंधन प्रणाली को भी मजबूत करें ताकि उनके ऋण संविभाग की गुणवत्ता में वृद्धि हो सके । यह बतलाने की आवश्यकता नहीं है कि निधियों के अंतिम उपयोग को सुनिश्चित करना बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के ऋण नीति दस्तावेज का एक हिस्सा होना चाहिए जिसके लिए समुचित कार्रवाई की जानी चाहिए । निम्नलिखित कुछ ऐसे उदाहरणस्वरूप उपाय हैं जो ऋणदाताओं द्वारा निधियों के अंतिम उपयोग की निगरानी तथा उन्हें सुनिश्चित करने के लिए किये जा सकते हैं :-(क) उधारकर्ताओं की तिमाही प्रगति रिपोर्टें / परिचालन विवरण / तुलनपत्र की सार्थक जांच-पड़ताल;
(ख) ऋणदाताओं को जमानत के रूप में प्रभारित उधारकर्ताओं की आस्तियों का नियमित निरीक्षण;
(ग) उधारकर्ताओं की लेखा बहियों तथा अन्य बैंकों में उनके गैर-ग्रहणाधिकार खातों की आवधिक जांच-पड़ताल;
(घ) सहायताप्राप्त इकाइयों का आवधिक दौरा;
(ङ) कार्यकारी पूंजीगत वित्तपोषण के मामले में स्टॉक की आवधिक लेखापरीक्षा की प्रणाली;
(च) ऋणदाताओं के "ऋण" कार्यकलाप की आवधिक व्यापक प्रबंध लेखा-परीक्षा ताकि ऋण प्रशासन में वास्तविक कमजोरियों की पहचान की जा सके ।
(उपायों की यह सूची उदाहरण के रूप में है जो संपूर्ण नहीं है)
दंडात्मक कार्रवाइयां
7.
जानबूझकर चूक करनेवालों के पूंजी बाजार में प्रवेश को रोकने के प्रयोजनार्थ, भारतीय रिज़र्व बैंक अब से सेबी को भी जानबूझकर चूक करनेवालाें की सूची की एक प्रति प्रेषित करेगा । यह भी निर्णय लिया गया है कि बैंकों और वित्तीय संस्थाओं उपर्युक्त पैराग्राफ 3 में दी गयी परिभाषा के अनुसार जानबूझकर चूक करने वाले के रूप में पहचाने गये व्यक्तियों के विरुद्ध निम्नलिखित कार्रवाइयां करें :क) बैंक /वित्तीय संस्थाएं सूचीबद्ध जानबूझकर चूक करनेवालों को कोई भी अतिरिक्त सुविधा प्रदान न करें । इसके अलावा, बैंकों /वित्तीय संस्थाओं द्वारा ऐसे उद्यमियों / कंपनियों के प्रवर्तकाें की पहचान की जाए जहां निधियों के विशाखन / गलत ढंग से दूसरी जगह अंतरण, गलत बयानी, लेखों की जालसाज़ी और कपटपूर्ण लेनदेन किया गया हो तो उन्हें अनुसूचित वाणिज्य बैंकों, विकास वित्तीय संस्थाओं, सरकार के स्वामित्ववाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, निवेश संस्थाओं आदि से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जानबूझकर चूक करनेवालों की सूची में उनके नाम प्रकाशित किये जाने की तारीख से 5 वर्ष की अवधि के लिए नये उद्यम शुरू करने के लिए संस्थागत वित्त से वंचित कर दिया जाए ।
ख) जहां आवश्यक हो, उधारकर्ताओं / गारंटीदाताओं के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया और बकायों की वसूली के मोचन निषेध का काम तुरंत शुरू किया जाए । ऋणदाता, जहां कहीं आवश्यक हो, जानबूझकर चूक करनेवालों के खिलाफ फौजदारी कार्यवाही शुरू कर सकते हैं ।
ग) जहां कही संभव हो, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को चाहिए कि वे जानबूझकर चूक करनेवाली इकाई के प्रबंधन में परिवर्तन के लिए व्यवहार्य दृष्टिकोण अपनाएं ।
घ) कंपनी के साथ ऋण करार में की गयी प्रतिज्ञा में,ं जिसमें अधिसूचित वित्तीय कंपनियों की महत्वपूर्ण भागीदारी होती है, वित्तीय कंपनियों को इस बात का भी उल्लेख करना चाहिए कि उधारकर्ता कंपनी का कोई भी व्यक्ति ऐसी कंपनी के निदेशक बोड़ का सदस्य नहीं है जिसकी पहचान उक्त पैराग्राफ 3 की परिभाषा के अनुसार जानबूझकर चूक करनेवाले व्यक्ति के रूप में की गयी है और यदि इस प्रकार का कोई व्यक्ति उधारकर्ता कंपनी के निदेशक बोड़ का सदस्य पाया जाएगा तो कंपनी ऐसे व्यक्ति को बोड़ से हटाने के लिए तत्काल और प्रभावी कार्रवाई करेगी ।
बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की ओर से यह जरूरी होगा कि वे संपूर्ण प्रक्रिया के लिए पारदर्शी तंत्र अपनायें ताकि दंड संबंधी प्रावधानों का दुरुपयोग न हो और इस प्रकार की विवेकाधीन शक्तियों की व्याप्ति को एकदम न्यूनतम रखा जाये । यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अकेले या एक्के-दुक्के उदाहरण को दांडिक कार्रवाई करने के लिए आधार नहीं बनाया जाता ।
8.
किसी समूह की ऋण लेने वाली एकल कंपनी की जानबूझकर चूक पर कारवाई करते समय बैंकों / वित्तीय संस्थाओं को अलग-अलग कंपनी के पिछले रिकाड़ पर, उसके उधारदाताओं को उसकी चुकौती के कार्यनिष्पादन के संदर्भ में, विचार करना चाहिए । तथापि, उन मामलों में जहां समूह की कंपनियों द्वारा जानबूझकर चूक करने वाले यूनिटों की ओर से दिये गये आश्वासन पत्र और / या गारंटियों को बैंकों / वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत किये जाने पर सकारा नहीं जाता तो ऐसी समूह कंपनियों को भी जानबूझकर चूक करने वाली के रूप में गिना जाना चाहिए ।लेखा परीक्षकों की भूमिका
9.
ऐसे मामले में जहां बैंकों / वित्तीय संस्थाओं द्वारा उधारकर्ताओं की ओर से खातों की जालसाज़ी पाये जाये तो, उन्हें यह पता लगने पर कि लेखा-परीक्षक लेखा-परीक्षा करने में लापरवाह या त्रुटिपूर्ण थे, भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान (आइ सी ए आइ) के पास उधारकर्ताओं के लेखा-परीक्षकों के खिलाफ औपचारिक शिकायत दर्ज करनी चाहिए ताकि आइ सी ए आइ जांच कर सके और लेखा परीक्षकों की जवाबदेही निश्चित कर सके ।10.
इस उद्देश्य से कि निधियों के अंतिम उपयोग पर निगरानी रखी जा सके, यदि ऋणदाता उधारकर्ता द्वारा निधियों के विशाखन / गलत ढंग से दूसरी जगह अंतरण के संबंध में ऋणकर्ताओं के लेखा परीक्षकों से विशिष्ट प्रमाणीकरण चाहता है तो ऋणदाता को इस प्रयोजन के लिए लेखा-परीक्षकों को पृथक आदेश देना चाहिए । लेखा-परीक्षकों से इस प्रकार का प्रमाणीकरण प्राप्त करने के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को यह सुनिश्चित करने की भी जरूरत होगी कि ऋण करारों में उचित प्रतिज्ञापत्र शामिल किया जाता है ताकि ऋणदाता उधारकर्ताओं / लेखा-परीक्षकों को ऐसा आदेश दे सके ।भारतीय रिज़र्व बैंक को सूचना देना
11.
जानबूझकर चूक करनेवालों की परिभाषा में ऊपर पैरा 3 के अनुसार परिवर्तन किये जाने के परिणामस्वरूप, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को यह सूचित किया जाता है कि वे संशोधित परिभाषा के अनुसार 31 मार्च 2002 तक की जानबूझकर चूक करनेवालों की सूची संकलित करें तथा मौजूदा अनुदेशों के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करें ।12.
कृपया प्राप्ति-सूचना देें ।भवदीय
( सी. आर. मुरलीधरन )
मुख्य महा प्रबंधक