वसुली न हुई निर्यात बिलों को बट्टे खाता डालना -प्रक्रिया का सरलीकरण - आरबीआई - Reserve Bank of India
वसुली न हुई निर्यात बिलों को बट्टे खाता डालना -प्रक्रिया का सरलीकरण
भारतीय रिज़र्व बैंक ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं. 30 4 अप्रैल 2001 प्रति प्रिय महोदय, वसुली न हुई निर्यात बिलों को बट्टे खाता डालना - प्राधिकृत व्यापारियों का ध्यान दिनांक 9 सितंबर 2000 के ए पी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं. 12 के पैरा सी 18 की ओर आकृष्ट किया जाता है जिसके अनुसार उन्हें कतिपय शर्तों के अधीन निर्यातक द्वारा पिछले कैलेण्डर वर्ष के दौरान संबंधित प्राधिकृत व्यापारी के जरिए वसूली गयी कुल निर्यात आगमों का 10 प्रतिशत की समग्र राशि तक वसूल न हुई निर्यात देश को बट्टे खाते डालने की अनुमति प्रदान की गई है । 2. प्रक्रिया का सरलीकरण करने के उद्देशसे मामले की समीक्षा की गयी है और यह निर्णय किया गया है कि प्रतिष्ठा धारक निर्यातकों (अर्थात निर्यात गृह, ट्रेडिंग हाऊसेस, स्टार ट्रेडिंग हाऊसेस सुपर स्टार ट्रेडिंग हाऊसेस) और विनिर्माता निर्यातक अपने उत्पाद का 50 प्रतिशत से अधिक का निर्यात करते हैं और डीजीएफटी (विदेश कारोबार महानिदेशालय) द्वारा उसी प्रकार मान लिया गया है तो पिछले तीन कैलेण्डर वर्षों के दौरान अपने औसत वार्षिक उगाही (पण्यावर्त नहीं) का 5 प्रतिशत की वार्षिक सीमा तक बकाया निर्यात बिलों को बट्टे खाता डालने की अनुमति दे सकते हैं । 5 प्रतिशत की सीमा एक वर्ष में संचयी रुप से और निम्नलिखित शर्तों के अधीन उपलब्ध होगी : i) निर्यातक संबंधित प्राधिकृत व्यापारी को सनदी लेखाकार का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना चाहिए जिसमें यह दर्शाया गया हो कि - क) पिछले तीन कैलेण्डर वर्षों में निर्यात उगाही और वर्ष के दौरान पहले की बट्टे खाता डाली गयी राशि भी, यदि कोई हो ख) बट्टे खाता डाली जानेवाली संबंधित जीआर/एसडीएफ संख्याएं, निर्यातित, वस्तुओं की बिल सं., बीजक मूल्य, निर्यात देश ग) निर्यातक ने उठाये गये निर्यात लाथ, यदि कोई, जिन्हें छोड दिया गया है 3. यह स्पष्ट किया जाता है कि बट्टे खाता डालनेवाली सुविधा के लिए जो पात्र नहीं है वह निम्नानुसार है : क) परराष्ट्रात्मक समस्यावाले देशों को किये गये निर्यात अर्थात जहाँ विदेशी क्रेता स्थानीय मुद्रा में निर्यात के मूल्य को जमा कर दिया है किंतु देश की केंद्रीय बैंकिंग प्राधिकारियों ने राशि प्रत्यावर्तित करने के लिए अनुमति नहीं दी है । ख) जीआर/एसडीएफ फार्म जो प्रवर्तन निदेशालय, राजस्व आसूचना निदेशालय, केद्रीय जॉन ब्युरो आदि जैसे एजेन्सियों के जाँच के अधीन है और बकाया बिल भी जो दीवानी/अपराधिक मुकादमा के अधीन है । 4. बट्टे खाता डालने की अनुमति देने के पश्चात व्यापारी विचाराधीन जीआर/एसडीएफ फार्मों की अनुलिपि भारतीय रिज़व बैंक को निम्नानुसार विधिवत प्रमाणित करते हुए आर विवरणी के साथ भेजे - " 4 अप्रैल 2001 के ए.पी. (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं. 30 के अनुसार बट्टे खाता डाली गयी राशि ---------------- (राशि अंकों और अक्षरों में ) तारीख : ---------------------- 5. प्राधिकृत व्यापारी यह नोट करें कि दिनांक 9 सितंबर 2000 के ए पी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं. 12 के पैरा सी 18 के अधीन पात्र राशि घटित होने पर इस सुविधा के अंतर्गत बट्टे खाता डाली गयी राशि का ध्यान रखा जायें । 6. प्राधिकृत व्यापारी भारतीय रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय को जिसके क्षेत्राधिकार में वे कार्य करते हैं, संलग्न फार्मेट में फार्म ईबीडब्ल्यू में एक विवरण में इस परिपत्र के अधीन अनुमत बट्टे खाते लिखी गई ब्यौरों को दर्शाते हुए प्रस्तुत करें । 7. प्राधिकृत व्यापारी इस परिपत्र की विषय-वस्तु से अपने संबंधित ग्राहकों को अवगत कराये । 8. इस परिपत्र में अंतर्विष्ट निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10 (4) और धारा 11 (1) के अंतर्गत जारी किये गये है और इसका किसी भी तरह से उल्लंघन किया जाना अथवा अनुपालन न किया जाना अधिनियम के अधीन निर्धारित जुर्माने से दंडनीय है । भवदीया, (कि.ज.उदेशी) |