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भारत में विदेशी मुद्रा भंडार में अनुवृद्धि : स्रोत,खरीद-बिक्री तथा लागतें - रिज़र्व बैंक अध्ययन

भारत में विदेशी मुद्रा भंडार में अनुवृद्धि : स्रोत,
खरीद-बिक्री तथा लागतें - रिज़र्व बैंक अध्ययन

31 जनवरी 2003

चालू राजकोषीय वर्ष के दौरान पहली अप्रैल 2002 से 17 जनवरी 2003 तक भारत के विदेशी मुद्रा भंडार 54.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 18.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि दर्शाते हुए 72.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गये। सुरक्षा की दृष्टि से यह स्वागत योग्य लक्षण है क्योंकि यह भारत को बाह्य वित्तीय स्थिति में सुरक्षा प्रदान करता है, भारत की बाह्य स्थिति में इतना अधिक सुधार भारत के अपने इतिहास में पहली बार हुआ है। यह घटना जब कुछ दूसरे विकासशील देशों, चीन जैसे कुछेक अपवादों को छोड़कर, की तुलना में बहुत सुखद और अलग लगती है। अलबत्ता, इसमें कुछ सांख्यिकीय और विश्लेषणात्मक मुद्दे भी खड़े किये हैं। ये हैं -

  • भंडारों में इस अनुवृद्धि के स्रोत क्या हैं?
  • क्या वे इस अंतर्निहित खरीद-बिक्री अवसरों की वजह से हैं?
  • इन भंडारों की लागत?

भारतीय रिज़र्व बैंक के आर्थिक विश्लेषण और नीति विभाग ने इन मुद्दों पर एक अध्ययन किया। पूरा अध्ययन रिज़र्व बैंक की वेबसाइट

www.rbi.org.in पर उपलब्ध है। अध्ययन की खास-खास बातें इस प्रकार हैं :

अनुवृद्धि के प्रमुख स्रोत

(आंकड़े बिलियन अमेरिकी डॉलर में)

मद

अप्रैल-नवंबर

 

2001

2002

I. चालू खाता शेष राशियां

- 1.3

2.5

II. पूंजी खाता शेष राशियां (निवल)

6.3

8.0

विदेशी निवेश

2.7

1.9

बैंकिंग पूंजी : जिसमें से

3.6

4.0

अनिवासी खाते

2.2

2.1

अल्पावधि ऋण

- 0.5

0.1

अन्य पूंजी

1.2

3.8

वाणिज्यिक उधार

- 0.9

- 1.8

III. मूल्यन में परिवर्तन

0.4

2.1

कुल

4.5

12.6

चालू राजकोषीय वर्ष के दौरान नवंबर के अंत तक विदेशी मुद्रा भंडारों में अनुवृद्धि के मुख्य स्रोत इस प्रकार रहे हैं -

  • चालू खाते में अधिशेष
  • अन्य पूंजी में वृद्धि
  • भंडारों में मूल्यन परिवर्तन

अध्ययन ने यह पाया है कि ‘अन्य पूंजी’ में अनुवृद्धि रुपया वृद्धि के कारण निर्यात प्राप्तियों में हुई वृद्धि के कारण हुई है। निर्यात प्राप्तियां, जो रुपये में और मूल्यह्रास की आशंका के कारण इससे पूर्व रोके रखी गयी थीं उन्हें भी रुपये में उछाल के कारण वसूल किया जा रहा है। अमेरिकी डॉलर की तुलना में यूरो, ग्रेट ब्रिटन पाउंड, और येन में उछाल को दर्शाने वाले मूल्यन परिवर्तनों से विदेशी भंडारों के मूल्य में 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई है।

खरीद बिक्री अवसर

वर्तमान में अनिवासी विदेशी मुद्रा खातों ज़्एफसीएनआर(बी)ल पर प्रस्तावित ब्याज दर लिबोर की तुलना में 25 आधार पॉइंट कम है जबकि अनिवासी रुपया परिवर्तनीय जमाराशियों (एनआरई जमाराशियों) पर प्रस्तावित ब्याज दरें आम तौर पर इसी अवधि की घरेलू जमाराशियों के लिए प्रस्तावित दरों के बराबर ही होती हैं। उदाहरण के लिए छह महीने से एक वर्ष की अवधि के लिए एनआरई जमाराशियों पर प्रस्तावित ब्याज दरें 4.5 से 6.0 प्रतिशत बीच होती हैं जबकि इतनी ही अवधि की घरेलू जमाराशियों पर प्रस्तावित ब्याज दरें 4.0 से 6.25 प्रतिशत के बीच होती हैं।

अलबत्ता, विदेशों में तथा भारत में, यदि विदेश की निचली ब्याज दरों को देखें तो दरों के बीच 3.0 से 4.0 प्रतिशत का ब्याज दर अंतराल मौजूद रहता है। अप्रैल-नवंबर 2002 की अवधि के दौरान अनिवासी जमाराशियों में 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की शुद्ध वृद्धि हुई है जो अप्रैल-नवंबर 2001 में हुई 2.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि के लगभग बराबर ही है। इस अनुवृद्धि में अनिवासी अपरिवर्तनीय रुपया खातों (एनआरएनआर तथा एनआरएसआर खाते) में जमाराशियों में आयी गिरावट भी शामिल है। ये खाते मार्च 2002 में समाप्त कर दिये गये थे। इसके अलावा 1999-2000 से अनिवासी जमाराशियों में आनेवाला प्रवाह 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 2.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच रहा है। दूसरे शब्दों में कहे तो चालू राजकोषीय वर्ष के दौरान एनआरआई जमाराशियों के ज़रिए आनेवाली राशियां पिछले कुछ वर्षों के दौरान पायी गयी प्रवृत्तियों के अनुरूप ही हैं। इस तरह से यह दिखाने के लिए कोई प्रमाण नहीं मिलते कि उपलब्ध खरीद-बिक्री अवसरों के कारण विदेशी मुद्रा भंडारों में अनुवृद्धि हुई हो।

भंडारों की लागत

भंडारों के स्रोतों के विश्लेषण से यह संकेत मिलता है कि ताज़ी अनुवृद्धियों का काफी बड़ा हिस्सा चालू खाता अधिशेष (20.0 प्रतिशत), ऋण का हिस्सा न बननेवाले पूंजी आगम (40.0 प्रतिशत) तथा मुद्रा मूल्यन (17.0 प्रतिशत) के माध्यम से बना है। शेष (23.0 प्रतिशत) जो ऋण का हिस्सा बननेवाले पूंजी आगमों से बना है, उसमें अनिवासी जमाराशियां, बैंकिंग पूंजी के अंतर्गत अन्य आस्तियां तथा अल्पावधि ऋण शामिल हैं। चूंकि ऋण का हिस्सा बननेवाले आगम काफी कम हैं, यहां यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भंडारों की अनुवृद्धि की लागत बहुत अधिक नहीं है। इसके अलावा भंडारों में पिछले कुछ वर्षों के दौरान समस्त वृद्धि बाहरी ऋणों के समग्र स्तर में कोई वृद्धि किये बिना की गयी है। अंत में 30 जून 2002 को समाप्त हुए वर्ष के दौरान शुद्ध अर्जन विदेशी मुद्रा भंडार 4.1 प्रतिशत होते हैं। इसमें रुपया तथा विदेशी मुद्राओं, जिनमें विदेशी मुद्रा भंडार रखे जाते हैं, के बीच विनिमय दर उतार-चढ़ावों के कारण मूल्यन परिवर्तन तथा स्वर्ण के मूल्यों में उतार-चढ़ावों के कारण होनेवाले लाभ/हानियां शामिल नहीं हैं। दूसरे शब्दों में कहे तो भंडारों में 4.1 प्रतिशत के लाभ में अमेरिकी डॉलर की तुलना में गैर-डॉलर मुद्राओं के मूल्य में वृद्धि के कारण विदेशी मुद्रा भंडार पोर्टफोलियो के रूप में डॉलर में हुए पर्याप्त लाभ तथा वर्ष के दौरान स्वर्ण के मूल्य में हुई वृद्धि से होनेवाले लाभ शामिल नहीं हैं।

अल्पना किल्लावाला
महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2002-2003/803

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