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वर्ष 2010-11 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य : डॉ. डी. सुब्बाराव, गवर्नर का प्रेस वक्तव्य

20 अप्रैल 2010

वर्ष 2010-11 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य :
डॉ. डी. सुब्बाराव, गवर्नर का प्रेस वक्तव्य

"आज सुबह प्रमुख बैंकों के प्रधानों के साथ मेरी एक बैठक हुई जहाँ हमने वर्ष 2010-11 के लिए रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति की घोषणा की। हमने इस नीति को तैयार करने में स्टेकधारकों की एक व्यापक श्रेणी से परामर्श किया है और उनके विचार सामने लाए हैं। रिज़र्व बैंक के नीति रुझान का वर्णन करने के पहले मैं संक्षेप में बैंकों के साथ हमारी चर्चा के मुख्य बिंदुओं का सारांश प्रस्तुत करना चाहूँगा।

बैंकों के साथ बैठक

बैंकों ने रिज़र्व बैंक के नीति रुझान का स्वागत किया। वे सहमत थे कि आज रिज़र्व बैंक द्वारा घोषित मौद्रिक उपाय वृद्धि मुद्रास्फीति गतिशीलता को देखते हुए समुचित थे। मौद्रिक नीति के अलावा चर्चा तीन विशिष्ट मुद्दों के इर्द-गिर्द केंद्रित रही : (i) सरकारी बाज़ार उधार कार्यक्रम; (ii) वित्तीय समावेशन; और (iii) मूलभूत सुविधा को वित्तीय सहायता। बैंकों ने उल्लेख किया कि कार्यक्रम के अनुसार सरकारी उधार प्रणाली में संसाधनों के अनुमानित दर को देखते हुए निजी क्षेत्र माँग को दूर नहीं करेगा। बैंकों ने रिज़र्व बैंक को आश्वास्त किया कि वे वित्तीय समावेशन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में भागिदारी रखते हैं और यह उल्लेख किया कि वे वित्तीय समावेशन के संवर्धन के लिए नवोन्मेषित ढंग से कार्य करेंगे। बैंक मूलभूत सुविधा क्षेत्र के प्रति बढ़ते हुए अपने एक्पोज़र के बारे में चिंतित थे। यद्यपि, उन्होंने बैंकों द्वारा मूलभूत सुविधा को वित्तीय सहायता के संवर्धन के प्रति रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू किए गए उपायों का स्वागत किया, उन्होंने उल्लेख किया कि बैंकिंग क्षेत्र के प्रयासों के अनुपूरक के रूप में वित्तीय सहायता हेतु वैकल्पिक ॉााटत विकसित करने की जरुरत है।

वैश्विक संदर्भ

वर्ष 2010-11 के लिए यह मौद्रिक नीति अपेक्षाकृत एक जटिल आर्थिक पृष्ठभूमि में निर्धारित की गई है। यद्यपि, यह स्थिति एक तिमाही पूर्व की अपेक्षा पुन: अधिक आश्वस्त करने योग्य है, वैश्विक सुधार के स्वरूप और गति के बारे में अनिश्चितता जारी है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में निजी व्यय को संयमित करना जारी है तथा मुद्रास्फीति सामान्यत: अभी भी इस प्रकार नियंत्रित है कि इन अर्थव्यवस्थाओं में राजकोषीय और मौद्रिक प्रोत्साहन एक व्यापक अवधि तक जारी रहेगा। उभरती हुई बाज़ार अर्थव्यवस्थाएं (इएमइ) उल्लेखनीय रूप से सुधार वक्र पर आगे बढ़ रही हैं लेकिन उनमें से कुछ मुद्रास्फीतिकारी दबावों का भी सामना कर रही हैं। इसने कुछ उभरती हुई बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंकों को प्रोत्साहित किया है कि वे आर्थिक सहायता वाली अपनी मौद्रिक नीतियाँ चरणबद्ध रूप से समाप्त करना शुरू कर दें।

भारतीय अर्थव्यवस्था

वृद्धि

भारत में आर्थिक हालातों में सुधार ने जो वर्ष 2009-10 की दूसरी तिमाही के आसपास शुरू हुआ, तब से लगातार उन्नति दर्शायी है। औद्योगिक सुधार अधिक व्यापक आधारित हो गया है और यह आशा की जाती है कि बढ़ती हुई घरेलू और बाह्य माँग की पृष्ठभूमि में एक मज़बूत पकड़ बनाएगा। लगभग एक वर्ष तक निरंतर गिरावट के बाद अक्टूबर/नवंबर 2009 से निर्यात और आयात में विस्तार हुआ है। बैंक तथा गैर-बैंक दोनों ॉााटतों से वाणिज्यिक क्षेत्र को संसाधनों का प्रवाह तेज़ हो गया है। भारतीय रिज़र्व बैंक और अन्य के द्वारा कराए गए सर्वेक्षण यह प्रस्तावित करते हैं कि कारोबारी आशावादिता में सुधार हुआ है। नीति प्रयोजनों के लिए संतुलित रूप में सामान्य मानसून तथा औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में जारी अच्छे कार्यनिष्पादन के आकलन के अंतर्गत रिज़र्व बैंक वर्ष 2010-11 के लिए वृद्धिशील आधार पर वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि 8.0 प्रतिशत रहने का अनुमान करता है।

मुद्रास्फीति

मुद्रास्फीति के संदर्भ में गतिविधियाँ चिंताजनक हैं। हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) मुद्रास्फीति अक्तूबर 2009 में 1.5 प्रतिशत से बढ़ कर मार्च 2010 में 9.9 प्रतिशत हो गई। हाल ही के महीनों में मुद्रास्फीति के संचालकों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। आरंभ में खाद्य मूल्यों द्वारा शुरू हुई प्रक्रिया अब अधिक सामान्य हो गई है। यह गैर खाद्य उत्पादों की मुद्रास्फीति से स्पष्ट है जो नवंबर 2009 से (-)0.4 प्रतिशत से बढ़ कर मार्च 2010 में 4.7 हो गई है।

आगे जाकर मुद्रास्फीति के परिदृश्य में तीन बड़ी अनिश्चितताएं हैं। पहली, 2010-11 में मानसून की संभावना अभी भी स्पष्ट नहीं है। दूसरी, तेल के मूल्य अस्थिर बने हुए हैं। तीसरी, माँग में दबाव बनने के प्रमाण हैं। घरेलू माँग आपूर्ति शेष तथा पण्य मूल्यों की वैश्विक प्रवृत्ति के मद्देनज़र, मार्च 2011 के लिए थोक मूल्य सूचकांक के लिए आधारगत पूर्वानुमान 5.5 प्रतिशत होगा।

समग्र मौद्रिक स्थिति

निजी क्षेत्र और सरकारी उधार की ऋण माँग को पूरा करने के लिए ॉााटत माँग के संतुलन की आवश्यकता के मद्देनज़र मौद्रिक पूर्वानुमान, वृद्धि और मुद्रास्फीति संभावना के अनुरूप बनाए गए हैं। नीति के प्रयोजन हेतु, 2010-11 के लिए मुद्रा आपूर्ति (एम3) की वृद्धि 17.0 प्रतिशत होने की संभावना है। इसके अनुरूप अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की कुल जमाराशियों में 18.0 प्रतिशत वृद्धि होने का अनुमान है। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के गैर खाद्य ऋणों में 20.0 प्रतिशत वृद्धि होने की आशा है। हमेशा की तरह, ये संख्याएँ सांकेतिक अनुमान के रूप में उपलब्ध कराई गई हैं, लक्ष्य के रूप में नहीं।

वित्तीय बाज़ार

समग्र चलनिधि आधिक्य में रही, हालांकि इसमें मौद्रिक नीति के रुझान के अनुरूप वर्ष के अंत में कमी आई है। ओवरनाइट ब्याज दरें सामान्यत: चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) दर सीमा के न्यूनतम स्तर के समीप रहीं। सरकार द्वारा बड़े बाज़ार उधारों से सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिलाभ का ऊर्ध्वगामी दबाव रहा जो रिज़र्व बैंक द्वारा सक्रिय चलनिधि प्रबंधन द्वारा नियंत्रित रहा।

बाज़ार उधार

वर्ष 2010-11 के लिए यूनियन बज़ट में राजकोषीय समेकन की प्रक्रिया आरंभ हो गई है तथा 2010-11 में केंद्र सरकार की बाज़ार उधार आवश्यकता पिछले वर्ष से कम होने का अनुमान है। तथापि, 2010-11 में प्रतिभूतियों के नए निर्गम पिछले वर्ष से 36.3 प्रतिशत अधिक होंगे। तीन मुख्य कारणों से उधार का प्रबंध करना पिछले वर्ष की अपेक्षा अधिक चुनौतीभरा होगा।

पहला, खुले बाज़ार परिचालन (ओएमओ) और बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) के माध्यू से चलनिधि प्रबंध के लिए विकल्प जिसका उपयोग पिछले वर्ष हमने व्यापक रूप से किया था इस वर्ष सीमित होंगे।

दूसरा, एक सक्षम संभावना को दूर करते हुए निजी ऋण की माँग में तेज़ी आयेगी।

अंत में मुद्रास्फीति दबाव अधिक मज़बूत हैं।

निरपेक्ष रूप से रिज़र्व बैंक यह सुनिश्चित करेगा कि सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों की ऋण आवश्यकताएं पूरी की जाएं।

जोखिम के कारक

अब मैं जोखिम के कारकों की बात करूँगा। वर्ष 2010-11 के लिए वृद्धि और मुद्रास्फीति के सांकेतिक अनुमान जहां फिर से आश्वासन योग्य प्रतीत हो सकते हैं वहीं हमारे लिए वृद्धि के प्रमुख कम जोखिम और मुद्रास्फीति के अधिक जोखिमों को समझना आवश्यक है।

  • वैश्विक सुधार के बने रहने की प्रत्याशा मुख्य रूप से निजी मांग की पुन: वापसी पर निर्भर है जो मुख्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में कमजोर बनी रही है। जहां भारत में मुख्यतः घरेलू मांग द्वारा सुधार संचालित होने की अपेक्षा है वहीं मंदी और अनिश्चित वैश्विक परिवेश से इस पर प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है।

  • यदि वैश्विक सुधार में गति आ जाती है तो पण्य और ऊर्जा मूल्य अधिक बढ़ सकते हैं जिससे मुद्रास्फीतिकारी दबाव बढ़ सकते हैं।

  • किसी प्रतिकूल मानसून के कारण खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और इससे राजकोषीय भार बढ़ सकता है और ग्रामीण उपभोक्ता एवं निवेश मांग कम हो सकती है।

  • विकसित अर्थव्यवस्थाओं में जारी रही निभावात्मक मौद्रिक नीति से अपेक्षित है कि भारत सहित उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में भारी मात्रा में पूंजी प्रवाह बढेंगे। इसके विनिमय दर और मौद्रिक प्रबंध के लिए चुनौती बनी रहेगी।

विनिमय दर प्रबंधन पर कुछ ट्टिपणियाँ : हमारी विनिमय दर नीति निश्चित अथवा पूर्वघोषित लक्ष्य अथवा सीमा पर आधारित नहीं होती है। हमारी नीति समष्टि आर्थिक स्थिति में आने वाले अवरोधों तथा अत्यधिक अस्थिरता का प्रबंधन करने के लिए बाज़ार में हस्तक्षेप करने के लिए लचीलापन बनाए रखने की है। हाल ही के अनुभव से आर्थिक मूलभूत सिद्धांतों और चालू खाता शेष की प्रकृति की तुलना में विनिमय दर की घट-बढ़ पर प्रभाव डालने वाले भारी और अकसर अस्थिर पूंजी प्रवाह के मामले को रेखांकित किया गया है। इसलिए तीव्र और अस्थिर विनिमय दर में हुई घट-बढ़ और इससे वास्तविक अर्थव्यवस्था पर हानिकारक प्रभाव होने की संभावना के संबंध में सतर्क रहना आवश्यक है।

मौद्रिक नीति रुझान

भारत में अक्तूबर 2009 से मौद्रिक नीति प्रतिक्रिया भारत की विशेष समष्टि आर्थिक स्थितियों के अनुरूप रही है। वैश्विक आर्थिक संकट को देखते हुए रिज़र्व बैंक ने सितंबर 2008 के मध्य में निभावात्मक मौद्रिक नीति का अनुसरण किया। इस नीति ने बाजार सहभागियों में आत्मविश्वास निर्माण किया, वैश्विक वित्तीय संकट का अर्थव्यवस्था पर पड़नेवाला प्रभाव कम किया और यह सुनिश्चित किया कि अधिकतर अन्य अर्थव्यवस्थाओं से पहले अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार होने की शुरुआत हो जाए। तथापि, बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति और इससे मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं को होनेवाले जोखिम को देखते हुए रिज़र्व बैंक ने अक्तूबर 2009 के आरंभ से विस्तारकारी मौद्रिक नीति छोड़ देने की प्रक्रिया शुरु की।

हमारी 2010-11 की मौद्रिक नीति के रुझान निम्नलिखित तीन मुद्दों पर आधारित हैं। पहला, मध्य/मार्च 2010 में रेपो दर और रिवर्स रेपो दर में 25 आधार अंकों की वृद्धि करने के बावजूद भी हमारी नीति दरें अभी भी नकारात्मक हैं। अब जबकि स्थितियों में पूर्णतः सुधार हो चुका है, हमें अपने नीतिगत लिखतों को सामान्य स्थिति में लाने के लिए नपे तुले ढंग से आगे बढ़ना होगा। दूसरा, मुद्रास्फीति की मौजूदा घटना जो कि आपूर्ति पक्ष के कारकों के कारण शुरु हुई वह एक व्यापक मुद्रास्फीति की प्रक्रिया में विकसित हो रही है। मांग पक्ष के दबाव अब स्पष्ट रूप से विदित हैं। इसलिए अब यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि मांग पक्ष की मुद्रास्फीति मज़बूत न होने पाए। तीसरी, बात जिसने हमारे मौद्रिक नीति रुझान को व्यक्त किया है वह है चलनिधि को अवशोषित करने की मौद्रिक नीति को संतुलित करने की आवश्यकता और इस बात को सुनिश्चित करना कि सरकार एवं निजी क्षेत्र दोनों ही के पास क्रेडिट उपलब्ध हो।

इस पृष्ठभूमि में, मौद्रिक नीति का आशय है

  • मुद्रास्फीति के दबावों के और अधिक बढ़ने के संबंध में समुचित रूप से, तेजी से एवं प्रभावी ढंग से प्रति उत्तर देने के लिए तैय्यार रहने के साथ-साथ मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं को स्थिर किया जाए।

  • निजी एवं सार्वजनिक दोनों ही क्षेत्रों द्वारा क्रेडिट की मांग में आने वाली वृद्धि को निर्बाधा रूप से संतुष्ट करने को सुनिश्चित करने के लिए चलनिधि का सक्रिय प्रबंधन।

  • मूल्य, आउटपुट और वित्तीय स्थिरता के अनुकूल एक ब्याज दर प्रशासन को बरकरार रखना।

मौद्रिक नीति उपाय

हमारे मौद्रिक नीति वक्तव्य 2010-11 में निम्नलिखित मौद्रिक उपाय हैं :

  • रिपो दर में तत्काल प्रभाव से 25 आधार अंक की वृद्धि हुई है, अब यह 5.0 प्रतिशत से बढ़ कर 5.25 प्रतिशत हो गई है।

  • रिवर्स रिपो दर में तत्काल प्रभाव से 25 आधार अंक की वृद्धि हुई है, जो 3.5 प्रतिशत से बढ़ कर 3.75 प्रतिशत हो गई है।

  • 24 अप्रैल 2010 को समाप्त पखवाड़े से अनुसूचित बैंको के नकदी प्रारक्षित अनुपात (सीआरआर) में 25 आधार अंक की वृद्धि हुई है, जो उनकी निवल माँग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 5.75 प्रतिशत से बढ़ कर 6.00 प्रतिशत हो गई है।

अपेक्षित परिणाम

उक्त नीतिगत कार्रवाई से निम्नलिखित चार प्रमुख परिणाम अपेक्षित हैं:

  1. मुद्रास्फीति सीमित होगी और मुद्रास्फीतिकारी संभावनाओं पर अंकुश लगेगा।

  2. सुधार प्रक्रिया जारी रहेगी।

  3. सरकारी उधार आवश्यकताओं और निजी ऋण माँग की पूर्ति होगी।

  4. नीतिगत लिखत आगे इस प्रकार तैयार किए जाएंगे जो अर्थव्यवस्था की उभरती हुई स्थिति के अनुरूप हें।

अगला मार्ग

रिज़र्व बैंक समष्टि आर्थिक स्थितियों, विशिष्ट रूप से मूल्य स्थिति, की गहन निगरानी जारी रखेगा एवं यथा अपेक्षित अगली कार्रवाई करेगा।

विकासात्मक एवं विनियामक नीतियाँ

अब मैं विकासात्मक एवं विनियामक मुद्दों के संबंध में बात करुँगा। पिछले कई वर्षों में, रिज़र्व बैंक ने वित्तीय मध्यस्थता को बेहतर बनाने और वित्तीय स्थिरता को बरकरार रखने के लिए व्यापक स्तर पर वित्तीय क्षेत्र के सुधारों को अपनाया है। वैश्विक वित्तीय संकट से यथोचित सीख सीखने पर विशेष बल देने एवं वित्तीय अस्थिरताओं से पुनः सामना होने पर सतर्क हो जाने वाले विनियामक प्रशासन को लाने के लिए यह प्रक्रिया अब और भी अधिक गहन हो गई है। रिज़र्व बैंक अब वित्तीय स्थिरता को बरकरार रखने के साथ वित्तीय क्षेत्र एवं वित्तीय बाजारों की कार्यक्षमता को बेहतर बनाने के लिए और अधिक प्रयास करेगा।

साथ ही साथ, वित्तीय समावेशन के कार्यक्रमों का बैंक पूरे उत्साह से अनुसरण करता रहेगा।

मैं इन क्षेत्रों में शुरू किए गए अथवा शुरू किए जानेवाले कुछ कार्यों पर प्रकाश डालना चाहूँगा:

वित्तीय स्थिरता

  • छमाही आधार पर वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट प्रकाशित करना। 25 मार्च 2010 को प्रकाशित प्रथम रिपोर्ट में यह पाया गया है कि वित्तीय स्थिरता हेतु समग्र जोखिम सीमित था।

ब्याज दर

  • ऋण के मूल्य निर्धारण को सुगम बनाने, उधार दरों में पारदर्शिता बढ़ाने एवं मौद्रिक नीति के संप्रेषण के मूल्यांकन में सुधार हेतु 01 जुलाई 2010 से आधार दर प्रणाली में स्विच ओवर करने हेतु बैंकों को अधिदेश जारी करना।

वित्तीय बाज़ार उत्पाद

  • 5 वर्षीय एवं 2 वर्षीय सांकेतिक कूपन वाली प्रतिभूतियों और 91 दिवसीय खज़ाना बिलों पर ब्याज दर फ्यूचर्स शुरू करना।

  • मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों को निवासियों के लिए हाज़िर अमरीकी डॉलर/रुपया विनिमय दर पर साधारण करेंसी आप्शन शुरू करने की अनुमति प्रदान करना।

  • जमा प्रमाणत्र एवं वाणिज्यिक पेपर (सीपी) में गौण द्वितीयक बाज़ार लेनदेनों हेतु रिपोर्टिंग मंच शुरू करना।

  • समस्त ओटीसी ब्याज दर एवं फोरेक्स डेरिवेटिव लेनदेनों हेतु दक्ष, एकल-बिंदु रिपोर्टिंग प्रणाली के लिए तौर-तरीके निर्धारित करने के लिए कार्यदल गठित करना।

ऋण वितरण एवं वित्तीय समावेशन

  • किसी भी व्यक्ति को बैंक की सुविधा एवं उनके द्वारा समुचित सावधानी बरतने के अधीन बैंकिंग संवाददाता (बीसी) के रूप में कार्य करवाने हेतु बैंकों को अनुमति देना।

  • प्रत्येक बैंक के साथ उनकी वित्तीय समावेशन योजना (एफआइपी) पर विचार-विमर्श करना एवं इसके कार्यान्वयन पर निगरानी रखना।

  • बैंकों को यह अधिदेश देना कि छोटे एवं लघु उद्यम (एमएसई) क्षेत्र की समस्त इकाइयों को 5 लाख रुपए तक की वर्तमान सीमा के बदले 10 लाख रुपए तक के ऋण पर संपार्श्विक प्रतिभूति पर जोर न देना।

  • भारत सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय कार्यदल की सिफारिशों के मद्देनज़र एमएसई क्षेत्र, विशेषत: रूप से अति लघु उद्यम, को ऋण प्रवाह बढ़ाने हेतु बैंकों से अनुरोध करना। इस संबंध में बैंकों के कार्यनिष्पादन पर रिज़र्व बैंक निगरानी रखेगा।

  • आधार स्तर पर कार्यरत ग्रामीण सहकारी संस्थाओं के वित्तीय समावेशन में संभाव्य योगदान के मूल्यांकन हेतु उनके कार्य संबंधी सूचना एकत्र करने के लिए समिति गठित करना।

  • नए शहरी सहकारी बैंकों को लाइसेंस प्रदान करने की उपयुक्तता के अध्ययन हेतु समिति गठित करना।

  • सुप्रबंधित शहरी सहकारी बैंकों को वार्षिक कारोबारी योजना के माध्यम से अनुमोदन लिए बिना ही ऑफ-साइट एटीएम स्थापित करने की अनुमति देना।

विनियामक उपाय

  • विदेशी बैंकों के शाखा अथवा पूर्णत: स्वामित्ववाले सहायक बैंकों के अस्तित्व के संबंध में सितंबर 2010 तक चर्चा पेपर तैयार करना।

  • जुलाई 2010 के अंत तक निजी क्षेत्र सहभागियों को अतिरिक्त बैंकिंग लाइसेंस प्रदान करने पर विचार करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं, भारतीय अनुभव और मौजूदा स्वामित्व तथा अभिशासन के दिशा-निर्देशों को क्रमानुसार निर्धारित करने के लिए चर्चा पेपर तैयार करना।

  • धारण कंपनी संरचना की शुरुआत करने के लिए रूपरेखा की सिफारिश हेतु एक कार्यकारी दल का गठन करना।

  • कुछ स्थितियों में सड़क/महामार्ग परियोजनाओं तथा चुंगी (टोल) वसूलने संबंधी अधिकार को बिल्ड आपरेट ट्रांस्फर माडल के अंतर्गत वार्षिकता को कतिपय शर्तों के अंतर्गत मूर्त प्रतिभूति माना जाए।

  • प्रतिभूतिकरण कंपनियों/पुनर्गठन कंपनियों को अपनी निजी बही अथवा उनके गठित ट्रस्ट की बहियों में सीधे ही आस्तियों को प्राप्त करने की अनुमति दिया जाना।

  • जून 2010 की समाप्ति तक सुदृढ़ प्रतिपूर्ति परंपरा के संबंध में वित्तीय स्थिरता बोर्ड के सिद्धांतों के आधार पर व्यापक दिशा-निर्देश जारी किया जाना।

  • बैंकिंग पर्यवेक्षी सिद्धांतों पर गठित बासेल समिति के अनुरुप विद्यमान वैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत विदेशी पर्यवेक्षी प्राधिकारियों के साथ द्विपक्षी समझौता ज्ञापन किया जाना।

  • 100 करोड़ रुपए और उससे अधिक परिसंपत्ति वाली कोर निवेश कंपनियों को प्रणालीबद्ध रूप से महत्वपूर्ण कोर निवेश कंपनी समझा जाना। ऐसी कंपनियां रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत होनी चाहिए।

ग्राहक सेवा

  • खुदरा और छोटे ग्राहकों को दी जानेवाली बैंकिंग सेवाओं पर निगरानी के लिए एक समिति का गठन करना।

  • कार्य-स्थल पर और कार्य-स्थल से इतर निरीक्षणों के माध्यम से ग्राहक सेवा पर रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों को लागू करने की व्यवस्था को और अधिक मज़बूत बनाना।

  • बैंकों को प्रत्येक छमाही में एक बार बोर्ड की बैठक में ग्राहक सेवा पर समीक्षा करने और उस पर विचार-विमर्श करने के लिए अलग से समय निर्धारित करने की अपेक्षा।"

जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/1417

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