दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 के अंतर्गत एविओम इंडिया हाउसिंग फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड के विरुद्ध कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया ("सीआईआरपी") शुरू करने के लिए आवेदन - आरबीआई - Reserve Bank of India
दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 के अंतर्गत एविओम इंडिया हाउसिंग फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड के विरुद्ध कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया ("सीआईआरपी") शुरू करने के लिए आवेदन
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज (30 जनवरी 2025) माननीय राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण की नई दिल्ली पीठ में एविओम इंडिया हाउसिंग फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड के विरुद्ध सीआईआरपी शुरू करने हेतु दिवाला और शोधन अक्षमता(वित्तीय सेवा प्रदाताओं की दिवाला और समापन कार्यवाहियाँ तथा न्यायनिर्णायन प्राधिकरण को आवेदन) नियम, 2019 (“एफएसपी दिवाला नियम”) के नियम 5 और 6 के साथ पठित दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (“आईबीसी”), 2016 की धारा 239 की उप-धारा (2) के खंड (यट) के साथ पठित धारा 227 के अंतर्गत एक आवेदन दायर किया है। एफएसपी दिवाला नियम के नियम 5 (ख) (i) के अनुसार, आवेदन दायर करने की तारीख से लेकर उसके स्वीकार या निरस्त होने तक अंतरिम अधिस्थगन लागू रहेगा। नियम 5 (ख) के स्पष्टीकरण में यह प्रावधान है कि "अंतरिम स्थगन" धारा 14 की उप-धारा (1), (2) और (3) के उपबंधों के अनुसार प्रभावी होगा। आईबीसी की धारा 14 की उप-धारा (1), (2) और (3) को नीचे पुन: प्रस्तुत किया गया है: “(1) उपधारा (2) और उपधारा (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, दिवाला प्रारंभ की तारीख को, न्यायनिर्णायक प्राधिकारी आदेश द्वारा निम्नलिखित सभी को प्रतिषिद्ध करने के लिए अधिस्थगन की घोषणा करेगा, अर्थात्ः- (क) निगमित ऋणी के विरुद्ध वाद को संस्थित करने या लंबित वादों और कार्यवाहियों को जारी रखने, जिसके अंतर्गत किसी न्यायालय, अधिकरण, माध्यस्थम् पैनल या अन्य प्राधिकारी के किसी निर्णय, डिक्री या आदेश का निष्पादन भी है; (ख) निगमित ऋणी द्वारा उसकी किसी आस्ति या किसी विधिक अधिकार या उसमें किसी फायदाग्राही हित का अंतरण, विल्लंगम, अन्य संक्रामण या व्ययन करना; (ग) अपनी संपत्ति के संबंध में निगमित ऋणी द्वारा सृजित किसी प्रतिभूति हित के पुरोबंध, वसूली या प्रवृत्त करने की कोई कार्रवाई जिसके अंतर्गत वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम, 2002 (2002 का 54) के अधीन कोई कार्रवाई भी है; (घ) किसी स्वामी या पट्टाकर्ता द्वारा किसी संपति की वसूली जहां ऐसी संपत्ति निगमित ऋणी के अधिभोग में है या उसके कब्जे में है। स्पष्टीकरण: इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, यह स्पष्ट किया जाता है कि तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय प्राधिकारी या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन गठित सेक्टरीय विनियामक या किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र, रजिस्ट्रीकरण, कोटा, रियायत, समाशोधन या वैसा ही अनुदान या अधिकार का प्रदान किया जाना, दिवाला के आधारों पर इस शर्त के अधीन रहते हुए निलंबित या पर्यवसित नहीं किया जाएगा कि अधिस्थगन अवधि के दौरान अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र, रजिस्ट्रीकरण, कोटा, रियायत, समाशोधन या वैसे ही अनुदान या अधिकार के उपयोग या उसके बने रहने के कारण उद्भूत होने वाले चालू शोध्यों के संदाय में कोई व्यतिक्रम नहीं किया गया है; (2) निगमित ऋणी को आवश्यक वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति, जैसा विनिर्दिष्ट किया जाए, को अधिस्थगन कालावधि के दौरान समाप्त या निलंबित या बाधित नहीं किया जाएगा । (3) उपधारा (1) के उपबंध निम्नलिखित को लागू नहीं होंगे, – (क) ऐसे संव्यवहार, करार, अन्य ठहराव, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, किसी वित्तीय सेक्टर विनियामक या किसी अन्य प्राधिकारी के परामर्श से अधिसूचित किए जाएं; (ख) किसी निगमित ऋणी को गारंटी की संविदा में प्रतिभूति।। (पुनीत पंचोली) प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/2038 |